Thursday, June 26, 2014

FUN-MAZA-MASTI सीता --एक गाँव की लड़की--11

FUN-MAZA-MASTI

 सीता --एक गाँव की लड़की--11
 कोमल दीदी खुद ही चलकर मेरे पास आ गई।
"सीता,मैं आप लोगों की दिल दुखाना नहीं चाहती थी। मैं तो बस एक दोस्त की तरह जुड़ना चाहती हूँ। अगर आप लोगों को मेरी बातों से ठेस पहुँची हो तो प्लीज माफ कर देना। पर प्लीज दोस्ती मत छोड़ना।"
मैं उन्हें एक टक देखी जा रही थी। उनकी आँखें बोलते-2 नम सी हो गई थी। उनकी हालत देख मैं भी भावुक सी हो गई। फिर वो अपनी आँखें पोँछती बोली,"ये लो मेरी कार्ड, अगर अपनी इस नादान से बात करने की इच्छा हुई तो बेहिचक फोन करना।"
मैं अब उन्हें ज्यादा देर तक ऐसी देख नहीं पा रही थी और जल्द से जल्द निकलना चाहती थी। मैंने कार्ड ली और ओके कहते हुए सीढ़ी से नीचे उतरने लगी।
पूरे रास्ते गुमशुम सी बैठी रही, मानोँ साँप छू गई हो। कई बार बोलने की कोशिश भी की पर उसने कोई जवाब ही नहीं दी। घर आते ही उसने रूम में घुस कमरे लॉक कर ली। मैं भी कुछ देर टाइम पास करने टीवी के सामने बैठ गई।
बैठे-2 नौ कब बज गए, मालूम ही नहीं पड़ी। श्याम भी आ गए थे। जल्दी से खाना बनाई और श्याम को खाना खिला दी। फिर पूजा को आवाज दी तो वो भी आई और चुपचाप खाना खा चली गई। मैं भी सोने चली गई।
अगली सुबह फिर वही कल वाली बात। दूध लेने के बाद उस ऑटो वाले की बेहूदा हरकतेँ देख के भागना। मन ही मन सोचने लगी कि ये ऑटो वाला रोज कैसे हमारी गली में आ जाता है।कहीं वो सिर्फ मुझे ही देखने ही नहीं आता है।
नहीं. नहीं. शायद घर होगा आगे। तभी तो रोज इधर से ही आता है। कल भी तो दोपहर में इधर की तरफ ही तो आ रहा था। पर मुझे देखते ही वापस हो गया था। खैर मैं अपने सिर को झटकते हुए उसकी बातों को दिमाग से निकाल देना चाहती थी।
सुबह भी पूजा कुछ नहीं बोल रही थी। नाश्ता करने के बाद वो कॉलेज निकल गई। श्याम भी कुछ देर में ड्यूटी पर निकल गए। मैं भी सारे काम निपटा आराम करने रूम में चली आई पर दिल में अब बेचैनी सी होने लगी थी। पता नहीं पूजा कुछ क्यों नहीं बोल रही है। अगर उसने नहीं बोली कभी इस बारे में तो पता नहीं मैं खुद को कैसे मना पाऊंगी। कैसे अपने दिल को समझा पाऊंगी। इन्हीं सब बातों में खोती कब सो गई मालूम नहीं।
पूजा कॉलेज से आ गई थी और नाश्ता कर रही थी, तब मेरी नींद खुली। मैं उसकी तरफ एक नजर डाली और बाथरुम की तरफ चली गई। फ्रेश होने के बाद जैसे ही निकली, पूजा बोली,"भाभी, अब आपको क्या हो गया जो मुँह फेर रही हो।"
मैं ठिठकती हुई रुक गई और पूजा की तरफ मुड़ के बोली,"मुझे क्या होगी! खुद ही कल से ऐसे चुप हैं मानोँ जैसे आसमान गिर गई हो तेरे सिर पे।"
मैं शिकायत करते हुए मुस्कुरा दी। पूजा तब तक नाश्ता कर चुकी थी। हाथ साफ करती हुई बोली,"भाभी, मैं उनकी बातों से बिल्कुल नाराज नहीं थी क्योंकि वो झूठ तो नहीं कह रही थी।" मैं भी पूजा की बातों को हाँ में सहमति दी। पूजा मेरे निकट आ गई और बोली," बस थोड़ी सी डर गई थी कि इन शहरी लोगों का पता नहीं पैसों के लिए कब किसे हलाल कर दे।"
"मतलब......!"मैं चौंक कर पूजा को बात समझाने के लिए पूछी।
"मतलब ये कि कहीं वो हमें ब्लैक-मेल तो नहीं करने की सोच रही ये सब बातें कह कर। यहाँ तो रोज ऐसी बातें होती रहती है।"पूजा मुझे समझाते हुए बोली।
मैं तो हैरान सी रह गई पूजा की सोच देख कर। किसी भी बात को तुरंत ही अंत तक ले जाकर सोचती है कि परिणाम क्या होगी इसकी।
मेरी दिमाग में ये बातें आते ही आगे की सोच सिहर गई।तभी पूजा बोली,"पर अब टेँशन लेने की कोई बात नहीं है भाभी।"
"क्यों?"मैं तो पूजा की हर बात सुन परेशान हुई जा रही थी। कभी कुछ कहती, कभी कुछ।
"आज कॉलेज में उसी दोस्त को सारी बात बताई थी। वो तो पहले खूब हँसी फिर बोली कि वो फायदा उठाने वाली लेडिज नहीं हैं। जहाँ तक वो एक दोस्त की तरह हर मुसीबत में हर वक्त साथ देती है।"
मैं भी पूजा की बात से कोमल दीदी को याद कर मुस्कुरा पड़ी।
"वो तो ठीक है पर अगर गाँव की देख उनकी नेचर बाद में बदल गई तो...।"अब मेरे मन में भी थोड़ी शंका हुई।
"भाभी, मैं ये कहाँ कह रही कि उनसे दोस्ती कर ही लो। जस्ट उनके बारे में बता रही हूँ और आप हो कि...."
मेरी बात पर पूजा हैरानी भरी आवाजोँ में बोली। मैं मुस्कुराती हुई बोली,"अच्छा छोड़ ये सब। चलो छत पर थोड़ी लाइव देखते हैं।"
"Wow मेरी जानेमन! कुछ तो बोली। पर अभी तो धूप निकली ही है और लाइव शुरू होने में करीब 30 मिनट बचे हैं।" पूजा तो ऐसे समझाने लगी कि मानो वो तो उनका पूरा टाइम टेबल जानती है।
"अच्छा चलो ना फिर भी। कुछ देर यूँ ही टाइमपास करेंगे।" मैं पुनः जोर देते हुए बोली।
पूजा मुस्कुरा दी और हामी भरते हुए छत की तरफ चल दी। अब पूजा को क्या पता कि मैं तो कुछ और ही देखने जा रही थी। गेट लॉक की और कुछ ही देर में हम दोनों छत पर थे।
मेरी नजर तो सबसे पहले उस छत की तरफ गई जहाँ कल लाइव शो चल रही थी। वहाँ तो अभी एक भी लोग नहीं थे। मैं फिर दूसरी तरफ देखने लगी। मेन रोड की तरफ देखी तो एक से एक बिल्डिँग नजर आ रही थी। यहाँ से मेनरोड नजर तो नहीं आ रही थी पर वहाँ सड़कों पर दौड़ रही गाड़ियों की तेज आवाजें जरूर सुनाई दे रही थी।
दूसरी तरफ नजर दौड़ाई तो गली आगे जा कर बाएँ और दाएँ की मुड़ गई थी। इधर की तरफ घर भी धीरे-धीरे छोटे होते जा रहे थे आगे।
"पूजा,ये सड़क आगे जाकर खत्म हो जाती है क्या?" पूजा को अपनी बगल में खड़ी देख पूछी।
"नहीं भाभी,ये सड़क आगे उस कॉलोनी से होती हुई आगे पुनः मेनरोड पर निकल जाती है।"पूजा हल्के शब्दों में बता दी।
मेरी नजर दोनों कॉलोनी की तरफ गई जहाँ कोई भी घर दो मंजिल से ज्यादा की नहीं थी।कुछ घर तो बिल्कुल गाँवों की झोपड़ी की तरह थी। तभी पूजा आगे बोली,"भाभी, इन दोनों कॉलोनी में सिर्फ कम आय वाले लोग रहते हैं जैसे कि मजदूर,दूधवाला, ऑटोवाला वगैरह-2। यहाँ मेन रोड से जितनी अंदर जाओगी, वैसी ही लोगों की रैंक भी कम होती जाती है।"
पूजा की बात सुन हम दोनों इस वर्गीकरण पर हँस पड़े।


 मैं छत पर खड़ी उस कॉलोनी की तरफ देख रही थी या कहो किसी को ढूँढने की कोशिश कर रही थी। पूजा मेरी बगल से निकल दूसरी तरफ चली गई।
मैं मन में सोचे जा रही थी कि कहाँ पर होगी उस ऑटो वाले का घर?
अचानक मैं अपने सिर को झटकी... छिः.. पता नहीं मेरे अंदर उस मामूली ड्राइवर कैसे आ गया। ड्राइवर तो था पर था वो मेरी हुस्न का दीवाना... ड्राइवर तो सब दिन अपनी बीबी या रण्डी को ही चोदता है तो उसकी ऐसी हरकत तो वाजिब थी। अगले ही पल मैं एक बार सोचनी लग गई..
ऑटो ड्राइवर है तो किसी झोपड़ी में ही रहता होगा। घर में उसकी बीबी-बच्चे होंगे। दिन भर कमा कर आता होगा थका हुआ और खाना खा सो जाता होगा। नहीं.. नहीं.. दिखने में तो काफी हिष्ट-पुष्ट है.. जरूर अपनी बीबी को जम के चोदता होगा फिर सोता होगा।घनी-2 मूँछेँ,सिर पर गमछी लपेटे,कमीज की सिर्फ नीचे की एक बटन लगी, लाल-2 आँखें, मुँह में गुटखा चबाए भयानक लग रहा था। और किसी लड़की को देखता तो मानोँ अगर वो लड़की अकेली मिल जाए तो उसी जगह पटक के चोद ले। उसकी तरह उसकी बीबी भी काली होगी पर काफी सेक्सी होगी.. क्योंकि काले लोगों में सेक्स कूट-2 के भरी होती है। दोनों जब सेक्स करते होंगे तो पड़ोसी की निश्चित ही नींद टूट जाती होगी...
और ऐसी बातें सोचते-2 मेरे होंठों पर मुस्कान तैर गई।
"ओ भाभी,कहाँ खोई हुई है? आपके फोन में किसी का मैसेज आया है.."तभी दूसरी तरफ से आई पूजा की आवाज सुन मैं ख्वाबोँ की दुनिया से बाहर निकली। पूजा की तरफ नजर दौड़ा एक छोटी सी स्माइल दी और मैसेज देखने लगी।
"कुछ दोस्त जिंदगी में इस कदर शामिल हो जाते हैं,
अगर भुलाना चाहो तो और याद आते हैं।
बस जाते हैं वो दिल में इस कदर कि,
आँखें बंद करो तो सामने नजर आते हैं।।"
मैसेज पढ़ मेरी होंठों पर मुस्कान आ गई। पूजा मुझे मुस्कुराते देख पास आती हुई बोली,"क्यों मेरी रानी, बड़ी चवनिया मुस्कान दे रही है मैसेज देख कर। जरा हमें भी तो दिखाओ किसके हैं।"
मैं अभी भी मुस्कुराए जा रही थी।पूजा मेरे हाथों से फोन ले पहले नम्बर देखी,फिर हँसते हुए जोर-जोर से मैसेज पढ़ने लगी। मेरी तो हँसी के साथ-2 शर्म भी आने लगी थी। जैसे ही मैसेज खत्म हुई पूजा फोन मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोली,"हाय, अपने इस दीवाने को जल्दी से उत्तर दो।"
मैं ना में सिर हिला दी। पूजा चौँकती हुई बोली,"ओ मेरी सती सावित्री, ऐसे कैसे चलेगा। जल्दी से जवाब दे वर्ना तुम जिंदगी भर अंकल के लंड को याद करने में ही गुजार दोगी। समझी कुछ."


 पूजा की बात सुनते ही मैं उसके हाथ से फोन ली और बोली,"बड़ी आई मैसेज-2 खेलने वाली.. मैं नहीं खेलने वाली।"
और फोन लेते हुए नम्बर डायल कर फोन कान में लगा ली। ये देखते ही पूजा खुशी से उछल पड़ी और बोली," Woww! भाभी, तुम तो बड़ी कमीनी निकली। मैं कहाँ मैसेज करने की सोच रही और तुम तो सीधी.."
पूजा अपनी बात पूरी भी नहीं कर सकी कि तब तक मैंने उसके मुँह को हाथों से बंद कर दी।
"प्रणाम अंकल.." फोन रिसीव होते ही मैं बोली।
"जीती रहो बेटा, कैसी हो? नई जगह पर मन तो लग रहा है ना।पूजा जब तक कॉलेज रहती तब तक तो अकेली बोर हो जाती होगी।"अंकल एक ही बार में कई सवाल कर गए।
मैं हँसती हुई बोली,"बिल्कुल ठीक हूँ अंकल। और यहाँ हम दोनों काफी मजे में हैं.. हाँ कभी कभी बोर जरूर हो जाती।"
"ओह मेरी बच्ची.. तो तुम फोन क्यों नहीं कर लेती। बात कर लेगी तो थोड़ी रिलेक्स हो जाएगी और बाहर भी घूमने चली जाया करना।"अंकल तरस खाते हुए बोले।इधर पूजा गौर से हम दोनों की बातें सुन रही थी।
"जी अंकल।"मैं अंकल की बातों को समर्थन देते हुए बोली।
"अंकल, आप हमसे मिलने कब आओगे?" पूजा की नाचती नजरों में देखती मुस्कुराती हुई बोली। पूजा मेरी इस सवाल पर Wow कहने की मुद्रा में अपनी होंठ कर ली।
"अरे सीता बेटा, मैं खुद ही आपसे मिलने के लिए कितना तरस रहा हूँ; तुम सोच नहीं सकती। कल तक किसी तरह समय निकाल कर आ जाऊँगा।"अंकल के हर शब्दों में बेकरारी साफ-2 झलक रही थी।
"ठीक है अंकल,मैं इंतजार करूँगी।" मैं अंकल की बेसब्री पर मुस्कुराती हुई थोड़े और जख्म दे दी।
"ओफ्फ.... थैंक्स बेटा.. मन तो नहीं है पर अभी एक जरूरी मीटिंग में जाना है इसलिए रख रहा हूँ। फुर्सत में आराम से बात करेंगे।" अंकल के बुझे हुए शब्द मेरे कानों में पड़ी तो मैं झूम सी गई। अंकल तो सच में पूरे फिदा थे।
"ठीक है अंकल पर...."मैं अंकल को लगभग रोकती हुई बोली। इधर पूजा मेरी तरफ आँखें फाड़ कर देखने लगी कि अब क्या कहने वाली है।
"पर क्या बेटा?"अंकल एक बार फिर जोश में आते हुए बोले।मैं कुछ देर खामोश सी हो गई। पूजा भी मुझे समझने की कोशिश करती देखी जा रही थी।
"हैल्लो.. सीता बेटा.. अरे बोलो ना.. कुछ दिक्कत है या कोई बात है, बेहिचक बोलो।"अंकल की आवाजें एक बार फिर गूँजी। मैं थोड़ी हकलाती हुई बोली,"वो अं..अंकल.. मुझे उस दिन वाला प्यार चाहिए था आपसे.."
मैं अब सच में थोड़ी शर्मा गई कहते हुए और साथ में मेरी चूत भी। पूजा तो अपने दोनों हाथ से मुँह ढँक दबी हुई हँसी हँसने लगी। वो दोनों समझ गए थे कि मैं चुम्मा माँग रही हूँ।मैं अपने चेहरे पर आई पसीने साफ करती हुई पूजा को चुप रहने की इशारा की।
"अम्म..म.. वो पूजा नहीं है क्या घर पर।" अंकल भी थोड़े डर गए और हकलाते हुए बोले। अब हँसी निकालने की बारी मेरी थी अंकल की हालत देख,पर किसी तरह काबू पाते हुए नाराज भरे शब्दों में बोली,"अंकल,पूजा घर पर रहती तो थोड़े ही ना माँगती। वो अपने दोस्त के साथ बाहर गई है..प्लीज अंकलललल..."
पूजा की तो हँसी से हालत खराब हो रही थी। वो वहीं अपनी पेट पकड़ बैठ गई। पूजा घर पर नहीं है सुन अंकल थोड़ी राहत की साँस लिए और नॉर्मल होने की कोशिश करते हुए बोले,"अच्छा बेटा, अभी तो जल्दी में हूँ वर्ना ढेर सारी देता। कहाँ पर दूँ, जल्दी बोलो."
मैं थोड़ी इठलाती हुई बोली,"अंकल..जहाँ पर उस दिन दिए थे।"
"वो तो ठीक है मेरी रानी बिटिया, पर अगर उस जगह की नाम बता देती तो और भी अच्छे ढंग से देता।"अंकल थोड़े से सकुचाते हुए बोले शायद उन्हें झिझक हो रही थी। पर कह तो सही रहे थे। कोई लड़की अगर खुल के सेक्सी बातें बोलती है तो पार्टनर दुगुने उत्साह से मजे दिलाता है।
मैं अब ज्यादा वक्त नहीं लेना चाहती थी क्योंकि अब मेरी भी चूत फव्वारे छोड़ने लगी थी।
अबकी बार तो मैं सच में सिहर गई और शर्माते हुए बोली," ज..जी अंकल वो मेरी होंठों पर..."
इतनी ही कह पाई कि मेरी साँसें तेज होने लगी थी। और पूजा तो हँसते-2 एक तरफ लुढक चुकी थी। दूसरी तरफ अंकल एक मुख से एक आहहह निकली और घबराई हुई शब्दों में बोले," बेटा, होंठ नहीं कहो... प्यारी-2, सुंदर, रसीली और शहद जैसी मीठी होंठ कहो। अच्छा अब जरा आप अपने होंठों पर मोबाइल रखिए.."
मैं हल्की हँसी हँसती हुई बोली.. "जी अंकल, रख दी।"
तभी अंकल की एक जोरदार और लम्बी सी चुम्मी की तेज आवाज मोबाइल से निकली...
और पीछे से अंकल हल्के शब्दों में बोले,"आह मेरी रानी"
मैं समझ गई कि अंकल अब पूरे जोश में आ गए हैं.. मैं हल्की हँसी के साथ मुस्कुराती हुई बोली,"थैंक्स अंकल,अब आप जाइए.. और जल्दी ही मिलने आइएगा। उम्मुआहहहह...." इस बार अंकल को एक झटके देती हुई मैं भी उतावला हो गई थी.. अंकल तो बदहवास से कहीं खो गए। उनकी तरफ से कोई आवाज नहीं सुन मैं हैल्लो की तो अंकल की सिर्फ सिसकारि निकल सकी। मैं तेजी से बाय अंकल कहती हुई फोन रख दी। फोन रखने के साथ ही हम दोनों की 15 मिनट की रुकी हुई हँसी एक साथ गूँज उठी...



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