FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--126
और टारगेट्स
कचड़ा और भी बहुत जगह से बटोरा गया।
केनेडी ब्रिज
फ्रेंच ब्रिज
अँधेरी फ्लाईओवर
मिलन सब वे।
केनेडी ब्रिज , जो बी बी ऐंड सी आई ( अब वेस्टर्न रेलवे ) के फाउंडर के नाम पे , जहाँ एक जमाने में इम्पीरियल फ़िल्म स्टूडियो हुआ करता था और जिसमें , हिन्दुस्तान की पहली टाकी फ़िल्म , आलम आरा बनी थी,सबसे पहले पहल वहीँ हुयी। तीन बजे के थोड़ी देर बाद ही ,उस इलाके में रहने वाली रूपजीवाअों और उनके सहयोगियों ने एक टीम को साजो समान के साथ धर दबोचा।
सिर्फ मिलन सब वे पर थोड़ी देर हुयी , जहाँ ट्रैफिक ऐक्सिडेंट करा के उन्होंने डाइवर्जन क्रिएट किया था। और एक बॉम्ब , की स्टोन के पास लगाने में वो कामयाब हो गए थे। पर वहाँ भी ए टी इस की टीम मौजूद थी और सब धर दबोचे गए।
जब ए टी एस चीफ मुझे ये सब बता रहे थे , तो उनकी आवाज से साफ साफ ख़ुशी नजर आ रही थी। किसी ऐसे आदमी की आवाज , जिसने बड़ी जंग जीत ली हो और जंग तो बड़ी थी ही।
वो बोल रहे थे , हाथी निकल गयी बस पूँछ बाकी है। ४२ लोग पकड़े गए हैं। जिसमें ७ कुख्यात आतंकवादी है , जिनकी तलाश कई देशो को थी। ६ स्लीपर में से पांच पकड़े जा चुके हैं। एक को नागपाड़ा में और एक को बोरीवली के पास के जंगल में घेर कर रखा गया है। ज़िंदा पकड़ने की कोशिश के चलते थोड़ी मुश्किल हो रही है। जिनमे एक स्लीपर हो सकता है और एक बॉम्ब मेकर। बस आधे घंटे में वो आप्रेशन भी खत्म हो जाएगा। इंटर इंटेलिजेंस विंग पकड़े गए लोगों से पूछताछ कर रही है।
जब वो फोन रख रहे थे , तभी खबर आई , की नागपाड़ा का आपरेशन खत्म हो गया है , और एक स्लीपर वहां पकड़ा गया है। गैस बॉम्ब यूज करके उसे बेहोश कर दिया गया था। अभी उसे रिवाईव करने की कोशिश की जा रही है, जे जे हॉस्पिटल में।
और पीछे से किसी ने बोला की एक सेना की पैरा टीम हेलीकाप्टर से बोरीवली में भेजी जा रही है।
एन पी ने बोला की वो भी इन के साथ जाएगा , अब साफ होचुका था की , बोरीवली के जंगल में जो बचा है वो ' बॉम्ब मेकर ' ही है।
वही बॉम्ब मेकर , जिसने बनारस ,बड़ौदा और बॉम्बे के लिए स्पेशलाइज्ड बॉम्ब बनाये थे।
बनारस में नारियलके अंदर फिट होने वाले , जो होलिका दहन के साथ जल कर विस्फोट करते और करीब १०० -१२० होलिका में विस्फोट होता , हजारों मारे जाते।
बड़ौदा में , पेट्रोल और कोयले से लदे वैगन , जिनका निशाना , पेट्रोलियम रिफाइनरीज और बड़े बड़े पावर हाउस थे।
और फिर मुम्बई , में आज।
' चलों रखता हूँ 'कह के उन्होंने फोन रख दिया और बोरीवली के जंगल के आपरेशन में मशगूल हो गए थे।
मैंने घड़ी देखी। आठ बज रहे थे।
अगर ये दुष्ट कही कामयाब हो जाते , २६. ११ की तरह , हमला करने में तो क्या होता।
फिर मैं हलके से मुस्कराने लगा ,
गनीमत था रीत या गुड्डी पास में नहीं थी।
डाँट बड़ी जोर से पड़ती , " फिर वही निगेटिव थिंकिंग "
पिटाई भी हो सकती थी।
लेकिन फिर भी,
अगर सिर्फ रेलवे ही देखें ,
चर्च गेट पर इवनिंग पीक में एक साथ हजारों लोग रहते हैं।
भीड़ , जल्दी ,अफरा तफरी , एक साथ चार चार लोकल ट्रेनों में चढ़ते लोग ,
और उसी के बीच ,असाल्ट राइफल्स से फायरिंग , बाम्ब्स , आग ,
सैकड़ों लोग मरते और उससे ज्यादा कई गुना लोग घायल होते ,
और अंत में जब रिलीफ एजेंसीज घुस रही होती , उसी समय ,
भयानक एक्स्प्लोजन और चर्च गेट की ८ मंजिला बिल्डिंग का एक हिस्सा , भरभरा कर गिर पड़ता।
कितने दबते उसमें ,
और वही भाग , ट्रेन आपरेशन के लिए था।
कम से कम १५ दिन तक चर्च गेट से ट्रेन आपरेशन बंद रहता।
विटी की हालत तो और ख़राब होती।
चारो और से बंद सब वे में साइक्लो सारिन गैस।
घुट घुट कर तड़प तड़प कर ,
सोच कर ही ,
और उस के बाद आईडी से जो क्रेटर बनता , नीचे सब वे।
महीनो डी एन रोड बंद रहती।
और दादर , जहाँ सेन्ट्रल और वेस्टर्न लाइन मिलती है।
कितने लोग फायरिंग और ग्रेनेड से पुल पे मरते ,
और पुल के कोलॅप्स होने पे हफ़्तों हफतों के लिए सेन्ट्रल वेस्टर्न लाइन बंद हो जाती।
अँधेरी में ऐक्सिडेंट जिसमे राजधानी के साथ कई लोकल गाड़ियां भी खत्म होतीं।
गाड़ियों के नीचे दबे ,चीखते पुकारते लोग।
वो मंजर सोच के ही दिल दहल जाता है ,
और फिर बॉम्ब ब्लास्ट से टी एम इस ( ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम ) महीनो लोकल ट्रेने आधी कैपिसिटी से चलतीं।
मकसद साफ था ,
मौत का कहर बरसाने के साथ , मुम्बई की कमर तोड़ने की पूरी पूरी तैयारी थी।
हर आतंकी हमले केबाद ,दुखी, रगड़ती , घिसटती मुम्बई ,फिर किसी तरह उठ खड़ी होती है
और रेंग कर सही ही ,अगले दिन से चलने लगती है।
लेकिन इसबार कीतैयारी पूरी थी , मुम्बई के पहिये , लोकल ट्रेन के सिसटम को तहस नहस करने की।
११ जुलाई २००६ में जो ट्रेन में बॉम्बिंग हुयी थी साढ़े तीन घंटे अंदर लोकल ट्रेने चलनी शुरू हो गयी थीं।
रातो रात ,जिन ट्रेनों में बॉम्ब ब्लास्ट हुए थे , उनके रेक हटा दिए गए थे ,
और जब सुबह हुयी , तो स्कूल जाने वाले बच्चो केलिए , आफिस वालों के लिए ,दुकानो में काम करने वालों के लिए लोकल ट्रेने रोज की तरह मुस्तैद खड़ी थीं।
और दिन में दस बजे तक तो नार्मल सर्विसेज चलने लगी थीं।
इसबार ये नहीं हो सकता था।
चर्च गेट , सी इस टी एम , दादर , अँधेरी ,
ट्रैक , ऊपर के बिजली के तार ,रेक सभी डैमेज होते ,
फायरिंग , बिल्डिंग कोलैप्स , पुल का गिरना , ट्रेन एक्सीडेंट , कण्ट्रोल रूम में बॉम्ब ब्लास्ट
और जो लोग ट्रेनों से हट कर सड़क पर पहुंचते तो
सड़क बंद ,
जे जे फ्लाईओवर ,
कैनेडी और फ्रेंच ब्रिज
अँधेरी , मिलन सब वे
ये आतंक की सुनामी पूरे बॉम्बे को लील लेती।
लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ,
अलर्ट मुम्बई पुलिस , अलर्ट ए टी इस
एन पी और उस के साथी।
लेकिन सब से बड़ी बात थी अबकी पेपर आउट था आलमोस्ट ,
और उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार थी रीत।
रीत -करन
और उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार थी रीत।
साथ में आई बी , रा , मेरे हैकर दोस्त , कार्लोस
लेकिन सबसे पहले रीत।
रीत ,
जिससे कोई जीत नहीं सकता
जिसका दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है।
रीत
जिसने दुःख सहे और सुख दिए
बनारस में जिसे सबसे पहले शक हुआ की मामला टेढ़ा है।
फिर फेलुदा , कार्लोस के साथ , उसने स्लीपर जेड का पता लगाया।
पुरे प्लाट की कहानी ढूंढी , दालमंडी की सोनल को समझा कर ,
' काल गर्ल ' का रूप धर सारे फोन के डिटेल्स उड़ाए
बनारस में और बड़ौदा में आतंकियों के छक्के छुड़ाए
उसी ने पता लगाया की किस ट्रेन से आर डी एक्स मुम्बई गया है
और फिर आगे का मोर्चा सम्हाला , एन पी ने।
जिसने सिर्फ बॉम्ब मेकर का पता किया , बल्कि उसने जो अपना नया पासपोर्ट , नयी आई डी बनवायी थी , उस का भी पता लगवाया।
कौन उस से चौथी पास्ता लेन के पाइपवाला बिल्डिंग में बने डिस्को में मिला , उसका भी पता लगाया
और उसके बाद ए टी एस के साथ मिलकर , एक एक की तलाश की।
और रीत का साथ दिया करन ने ,
रीत और करन ,जिन्होंने बनारस में आतंक की सबसे ज्यादा मार झेली थी।
रीत और करन ,दोनों के परिवार में कोई नहीं बचा था बनारस के बॉम्ब ब्लास्ट में।
बचपन की जो दोस्ती प्यार में कैशोर्य में बदल गयी थी , टेरर ने उस पर भी स्याही पोत दी थी।
रीत की आँखों के सामने उसके माँ बाप गए और जब वो स्टेशन पहुंची तो वहां करन के माता -पिता की क्षत विक्षत देह और करन का कोट एक देह पर जिसका सिर नहीं था ,
रीत बहुत दिनों तक बस ज़िंदा थी , बिना मकसद के।
और उसने मकसद ढूंढ लिया टेरर के खिलाफ लड़ाई में।
करन की याद दास्त चली गयी थी।
और जब याददास्त बीते दिनों की वापस आई , तो उसे पता चला की रीत नहीं रही।
वो कैसे फिर मिले ये सब कहानी आप पढ़ चुके हैं .
और दोनों मुम्बई में थे टेरर की इस जंग में शामिल।
मैच की पहली इनिंग हो चुकी थी।
लेकिन ज्यादा खतरा दूसरी इनिंग में था।
जिसके बारे में बहुत कम मालुम था।
सिवाय इसके की एक पोर्ट पर बॉम्ब ब्लास्ट होना था ,
और एक शिप से हमला होना था।
रीत नेवल कमांड सेंटर में थी , वेस्टर्न नेवल कमांड के हेडक्वार्टर में
और करन पोर्ट पर था।
कुछ मेरे हैकर्स दोस्त की मदद से , कुछ रा की मदद से बॉम्ब ब्लास्ट के बारे में थोड़ा बहुत मालूम हो गया था।
लेकिन जो मालूम हुआ था , हालत उससे और उलझ गयी थी।
दस मिनट पहले मैंने , करन और रीत ने टेली कांफ्रेंस की थी।
लेकिन फैसला करन को ही लेना था और उसे एक्जीक्यूट भी करना था।
कुछ देर पहले जो इन्फो आई थीं , मुझे जो आइडिया आई मैंने , रीत को वेस्टर्न नेवल हेडक्वार्टर को पास कर दिया था।
करन जे एन पी टी ( जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ) पर था , और जूझ रहा था हालत से।
कुछ समझ नहीं आ रहा था , अगले डेढ़ घंटे में आने वाले तूफान को कैसे रोके
पोर्ट : करन
रात के आठ बज चुके थे . करन उधेड बुन मे लगा हुआ था .कस्टम आफिस मे उसके साथ कस्टम सिक्योरिटी के चीफ, जे एन पी टी के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर , आइ बी के एक ज्वाइन्ट डायरेक्टर और भी सिक्योरिटी ऐजेन्सीज के लोग बैठे थे . समस्या जितनी सुलझ रही थी , उतनी और उलझ रही थी .
टाइम बीतता जा रहा था . और टाइम ही नही था उसके पास .
मुम्बयी जब वो पहुन्चा था तो , उसे ये कुछ देर बाद पता चल गया था की मुम्बयी के खतरो मे एक बडा खतरा , एक पोर्ट पर बाम्ब एक्स्प्लोजन होना है .
कुछ देर तक तो वो लोग बहुत उधेड बुन मे रहे , कौन पोर्ट हो सकता है ये .
यहां दो बडे पोर्ट हैं , मुम्बयी पोर्ट और जवाहर लाल नेहरु पोर्ट जो नेवा शेवा मे है और नया पोर्ट है .
मुम्बयी पोर्ट , देश के सबसे पूराने बन्दरगाहों में है , एक नेचुरल बन्दरगाह है . बहुत अर्से तक ये बहुत बडी मात्रा में ट्रैफिक का , आयात निर्यात का केन्द्र रहा . दीवार ऐसी फिल्मों में , जिस बन्दर गाह को दिखाया गया है वो यही बन्दर गाह है. लेकिन कन्टेराईजशन के चलते , इस का महत्व कम हो गया .
वक्त के साथ बडे शिप बने और उन शिप के लिये ड्राफट यानी पानी की वो गहरायी , जहां शिप जेटी पे खडे होते हैं, बहुत इम्पोर्टेन्ट होती है. खास तौर पे बडे , पोस्ट पैनामेक्स वेसेल्स के लिये . और इसी तरह सुपर आयल टैन्कर के लिये भी काफी ड्राफ्ट चाहिये. इस लिये धीरे धीरे इस पोर्ट का महत्व कम हो गया.
लेकिन बात सिर्फ इन दोनो पोर्ट्स की नही थी . और भी ढेर सारी छोटी जेट्टी थी , और उनमे से कुछ तो बडी सम्वेदन शील थीं , जैसे तारापुर , जो तारापुर एटामिक एनर्जी सेन्टर के पास ही था .
करन और रीत ने मिल कर बहुत सोचा . रीत ने अपने मगज अस्त्र का प्रयोग किया और करन से पूछा ,
" अगर हाथी को छिपाना हो तो कहां छुपायेंगे "
"हाथियो के बीच मे सिम्पल ." हंस के करन ने जवाब दिया .
"तो सबसे ज्यादा कन्टेनर कहां आते हैं ," रीत ने दूसरा सवाल दागा , और करन को मौका मिल गया .
उसने जे एन पी टी के ब्रोशर की इन्फ़ो दुहरा दी.
११-१२ मे ४.३२ मिलियन कन्टेनर आये थे यहा और अभी तो पांच मिलियन से ज्यादा कन्टेनर आते है. ये हिन्दुस्तान के किसी भी पोर्ट से ज्यादा हैं .
रीत की आंखो में चमक थी.
"तो फिर ये बात साफ है , ये इन्फो तो पक्की है , बॉम्ब कंटेनर में हैं। "
रीत ने मुस्कराते हुए कहा।
"हाँ , और ये भी की वो आज या कल ही शिप से उतरे हैं , लेकिन वो क्यू साइड पर ( क्यू साइड - जहाँ जेटी या बर्थ पे शिप रहते हैं उसके आसपास का स्थान , जहाँ सामान उतारा जाता है ) हैं या रेल यार्ड में पहुँच गए हैं या , कंटेनर यार्ड में है ये कुछ पता नहीं। " करन परेशानी से बोला।
" एक एक करके श्रीमान , एक एक करके " रीत खिलखिलाते बोली।
उसका दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता था।
फिर बोली
" अभी हम लोग सिर्फ ये तय कर हैं की उन कंटेनरों की किस पोर्ट में होने के चांसेज ज्यादा है , उस पोर्ट पे वो कहाँ होंगे वो ये अगला स्टेप होगा। तो अगर सबसे ज्यादा कंटेनर जे एन पी टी पे आते हैं तो संभावना उसके वहीँ होने की ज्यादा है , और लो ये खबर पढ़ो। "
मल्टी टास्किंग में रीत का कोई जवाब नहीं था।
बात करते करते उसने नेट पर एक न्यूज सर्विस से ये खबर ढूंढ निकाली थी ,
" सिंगापुर की समुद्र शिपिंग एजेंसीज के द्वारा भेजा गया एक कंटेनर , १० दिन तक जे एन पी टी पर पड़ा रहा। उसे खोलने पर उसके अंदर से १० असाल्ट राइफल , ३ पिस्टल और २८,०० राउंड एम्युनिशन के मिले "
रीत ने कहा की हमें अपनी खोज जे एन पी टी से ही शुरू करनी चाहिए।
करन आफ्टरनून में वहां पहुँच गया। हाँ , बाकी पोर्ट्स और जेटी पे लोकल पुलिस और आई बी के लोग सर्च जारी रखे थे।
जे एन पी टी पहुंचने के कुछ देर बाद ही ,जो पडोसी देश के कमांड और कंट्रोल सेण्टर में उन्होंने सेंध लगाई थी ,उससे ये बात कनफर्म हो गयी की कंटेनर , जे एन पी टी पर हैं और एक से ज्यादा हैं और अलग अलग शिप से उतरे हैं।
तब तक करन पोर्ट ऑफिशियल्स , शिपिंग लाइंस के एजेंट्स, कस्टम हाउस एजेंट्स की अच्छी क्लास के चुका था। तीन किलोमीटर के पोर्ट के एरिया का दो चक्कर काट चूका था , और समझ गया था कीसेक पोर्ट में तीन कम्पनियो के टर्मिनल हैं और सबके डाटा बेस अलग है।
जे एन पी टी पर , दो टर्मिनल और हैं। एन एस आई सी टी और जी टी आई।
एन एस आई सी टी ( नवा शेवा इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल ) की शुरुआत १९९७ में हुयी ,जब एक इंटरनेशनल कंजोर्टियम जिसके लीड पार्ट्नर , पी एंड ओ पोर्ट्स आस्ट्रेलिया थे , ने दो बर्थ के निमार्ण , आपरेशन और मेन्टेन्स के लिए जे इन पी टी से अग्रीमेंट किया और ये दोनों बर्थ , २००० में शुरू हो गयीं।
इनका आपरेशन अत्याधुनिक था। उन्होंने ६५० मीटर की लेंथ का निर्माण किया और पोर्ट साइड बाकी फैसिलिटी भी डेवलप की। पहली बार इन्होने दो सुपर पोस्ट पनामेक्स क्रेन और ६ पोस्ट पनामेक्स क्रेन भी उपलब्ध करायी जिससे बड़े कंटेनर शिप भी यहाँ आ सकें। ( कंटेनर शिप्स की साइज , पनामा कैनाल से नापी जाती है और जो शिप , पनामा कैनाल के आर पार हो जाते हैं , वो पनामेक्स वेसल कहे जाते हैं। इनमें तीन से पांच हजार तक कंटेनर आते हैं।
पोस्ट पनामेक्स शिप , वो कंटेनर शिप है , जो इससे पार नहीं हो पाते और उनमें ५, से १० हजार तक कंटेनर आते है , लेकिन सुपर पोस्ट पनामेक्स शिप में १५, हजार कंटेनर तक एक बार में आ जाते है और इनके लिए ड्राफ्ट की आवश्यकता भी ज्यादा होती है ).
इस संयुक्त वेंचर की सफलता के बाद जे एन पी टी ने , २००४ में इसी पैटर्न पर एकऔर एग्रीमेंट किया , ३० साल के लिए और इसबार उसका नाम था जी टी आई ( गेटवे टर्मिनल आफ इंडिया ) और इसके दो महत्वपूर्ण पार्टनर थे , कंटेनर कार्पोरेशन आफ इण्डिया ( जो भारतीय रेलवे का उपक्रम है ) और ए पी एम टर्मिनल। ए पी एम टर्मिनल , मर्स्क शिपिंग लाइंस की टर्मिनल आपरेट करने वाली एजेंसी है और ये कहना काफी होगा की मर्स्क शिपिंग लाइन , १९९६ से दुनिया की सबसे बड़ी कंटेनर शिपिंग लाइन है।
ए पी एम टर्मिनल कंपनी का मुख्यालय , हेग नीदरलैंड में है और ये पांच महाद्वीपों , ३९ देशो में ६५ पोर्ट आपरेट करती है। इस टर्मिनल पर सुविधाएं , एन एस आई सी टी से भी बढ़ कर हैं और १० पोस्ट पनामेक्स क्रेन यहाँ पर हैं। इसकी की लेंथ और कैपिसिटी भी जे एन पी टी और एन एस आई सी टी दोनों से ज्यादा है।
इसकी की लेंथ ७१२ मीटर है , जबकि बाकी दोनों की क्रमश: ६८० और ६०० है। इसकी कैपसिटी १. ८ मिलियन टी इ यू है , जबकि बाकी दोनों की क्रमश १. १ और १. २ मिलियन टी ई यू है। कुल मिलाकर पूरे पोर्ट की क्षमता ४. १ मिलियन टी यू है।
और करन की परेशानी और बढ़ी हुयी थी।
तीन में से दो मल्टी नेशनल कार्पोरेशन , और उन के डाटा वेयरहाउस , उनके कार्पोरेट हेडक्वार्टरस , औस्ट्रेलिया और नीदरलैंड में थे। उन्हें कन्विंस कर के पहले उसे एक्सेस करना,… किसी तरह करके , उसने बिल आफ लैडिंग , सारे टर्मिनल पे आये पिछले तीन दिन के शिप्स के पोर्ट आॉफ काल की लिस्ट , कंटेनर्स के इ डी आई ( इलेक्टानिक डाटा इंटरचेंज ) के रिकार्ड सब वो खंगाल रहा था।
उसी के साथ करन ने ये इंस्ट्रकशन दे दिया की था कीकोई भी कंटेनर , पोर्ट से बाहर नहीं जाएगा। जो कंटेनर ट्रेन पे लदे हैं या ट्रक पे लोड हो गए हैं , वो भी बाहर नहीं जाएंगे। पोर्ट से कुछ भी अंदर बाहर नहीं जाएगा।
उसे पूरा शक था की हो सकता है वो कंटेनर ट्रेन पे लोड हो के जब बाहर निकले तब उस समय कोई उसे डिटोनेट करा दे। ज्यादातर कंटेनर जो दिल्ली की और जाते थे वो दिवा -वसई होकर निकलते थे और वसई -विरार में आबादी काफी थी। लेकिन करन को पता नहीं था उसने किस छत्ते में हाथ डाल दिया था।
थोड़ी ही देर में तीनो टर्मिनल आपरेटर उसके सर पे सवार हो गए की अगर कंटेनर मूव नहींहोगा तो सारा पोर्ट चोक हो जाएगा। सारी बर्थ्स भरी हैं , ६ शिप बाहर हैं। कस्टमर्स का एक्सपोर्ट कमिटमेंट है , लेट होने से कमिटमेंट फेल हो जाएगा। अभी अगर उसने आर्डर वापिस नहीं लिया , तो कामर्स मिनिस्ट्री और शिपिंग मिनस्ट्री से फोन आने शुरू हो जाएंगे। लेबर यूनियन के लोग भी हल्ला करेंगे।
करन लाख समझाता रहा लेकिन वो लोग नहीं माने।
उसने कहा भी कंटेनर में बॉम्ब होने की सूचना है , टेरर अटैक का खतरा है। तो वो सारे लोग बोले पिछले ६ महीने में ७ बार ये हो चुका है। किसी का कंटेनर कही डिले हो जाता है , तो वो आखिर में यही हथकंडा अपनाता है।
गनीमत थी करन के साथ कुछ ए टी एस के लोग थे और मुम्बई में पुलिस कमिशनर सिस्टम होने से उन्हें मैजिस्ट्रियल पावर मिली है।
उन्होंने तुरंत बात करके , पूरे पोर्ट एरिया में धारा १४४ लगाई और प्रॉहिबिटरी पावर का इस्तेमाल का अगले ६ घंटे के लिए करके पोर्ट की सारी एक्टिविटी रोक दी और आर्डर दे दिया की अगर कोई क्रेन भी आपरेट होती दिखी तो उसे तुरंत अरेस्ट कर लो।
सारे कस्टम एजेंट्स , टर्मिनल आपरेटर गुस्से में बाहर निकल गए।
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फागुन के दिन चार--126
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कचड़ा और भी बहुत जगह से बटोरा गया।
केनेडी ब्रिज
फ्रेंच ब्रिज
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सिर्फ मिलन सब वे पर थोड़ी देर हुयी , जहाँ ट्रैफिक ऐक्सिडेंट करा के उन्होंने डाइवर्जन क्रिएट किया था। और एक बॉम्ब , की स्टोन के पास लगाने में वो कामयाब हो गए थे। पर वहाँ भी ए टी इस की टीम मौजूद थी और सब धर दबोचे गए।
जब ए टी एस चीफ मुझे ये सब बता रहे थे , तो उनकी आवाज से साफ साफ ख़ुशी नजर आ रही थी। किसी ऐसे आदमी की आवाज , जिसने बड़ी जंग जीत ली हो और जंग तो बड़ी थी ही।
वो बोल रहे थे , हाथी निकल गयी बस पूँछ बाकी है। ४२ लोग पकड़े गए हैं। जिसमें ७ कुख्यात आतंकवादी है , जिनकी तलाश कई देशो को थी। ६ स्लीपर में से पांच पकड़े जा चुके हैं। एक को नागपाड़ा में और एक को बोरीवली के पास के जंगल में घेर कर रखा गया है। ज़िंदा पकड़ने की कोशिश के चलते थोड़ी मुश्किल हो रही है। जिनमे एक स्लीपर हो सकता है और एक बॉम्ब मेकर। बस आधे घंटे में वो आप्रेशन भी खत्म हो जाएगा। इंटर इंटेलिजेंस विंग पकड़े गए लोगों से पूछताछ कर रही है।
जब वो फोन रख रहे थे , तभी खबर आई , की नागपाड़ा का आपरेशन खत्म हो गया है , और एक स्लीपर वहां पकड़ा गया है। गैस बॉम्ब यूज करके उसे बेहोश कर दिया गया था। अभी उसे रिवाईव करने की कोशिश की जा रही है, जे जे हॉस्पिटल में।
और पीछे से किसी ने बोला की एक सेना की पैरा टीम हेलीकाप्टर से बोरीवली में भेजी जा रही है।
एन पी ने बोला की वो भी इन के साथ जाएगा , अब साफ होचुका था की , बोरीवली के जंगल में जो बचा है वो ' बॉम्ब मेकर ' ही है।
वही बॉम्ब मेकर , जिसने बनारस ,बड़ौदा और बॉम्बे के लिए स्पेशलाइज्ड बॉम्ब बनाये थे।
बनारस में नारियलके अंदर फिट होने वाले , जो होलिका दहन के साथ जल कर विस्फोट करते और करीब १०० -१२० होलिका में विस्फोट होता , हजारों मारे जाते।
बड़ौदा में , पेट्रोल और कोयले से लदे वैगन , जिनका निशाना , पेट्रोलियम रिफाइनरीज और बड़े बड़े पावर हाउस थे।
और फिर मुम्बई , में आज।
' चलों रखता हूँ 'कह के उन्होंने फोन रख दिया और बोरीवली के जंगल के आपरेशन में मशगूल हो गए थे।
मैंने घड़ी देखी। आठ बज रहे थे।
अगर ये दुष्ट कही कामयाब हो जाते , २६. ११ की तरह , हमला करने में तो क्या होता।
फिर मैं हलके से मुस्कराने लगा ,
गनीमत था रीत या गुड्डी पास में नहीं थी।
डाँट बड़ी जोर से पड़ती , " फिर वही निगेटिव थिंकिंग "
पिटाई भी हो सकती थी।
लेकिन फिर भी,
अगर सिर्फ रेलवे ही देखें ,
चर्च गेट पर इवनिंग पीक में एक साथ हजारों लोग रहते हैं।
भीड़ , जल्दी ,अफरा तफरी , एक साथ चार चार लोकल ट्रेनों में चढ़ते लोग ,
और उसी के बीच ,असाल्ट राइफल्स से फायरिंग , बाम्ब्स , आग ,
सैकड़ों लोग मरते और उससे ज्यादा कई गुना लोग घायल होते ,
और अंत में जब रिलीफ एजेंसीज घुस रही होती , उसी समय ,
भयानक एक्स्प्लोजन और चर्च गेट की ८ मंजिला बिल्डिंग का एक हिस्सा , भरभरा कर गिर पड़ता।
कितने दबते उसमें ,
और वही भाग , ट्रेन आपरेशन के लिए था।
कम से कम १५ दिन तक चर्च गेट से ट्रेन आपरेशन बंद रहता।
विटी की हालत तो और ख़राब होती।
चारो और से बंद सब वे में साइक्लो सारिन गैस।
घुट घुट कर तड़प तड़प कर ,
सोच कर ही ,
और उस के बाद आईडी से जो क्रेटर बनता , नीचे सब वे।
महीनो डी एन रोड बंद रहती।
और दादर , जहाँ सेन्ट्रल और वेस्टर्न लाइन मिलती है।
कितने लोग फायरिंग और ग्रेनेड से पुल पे मरते ,
और पुल के कोलॅप्स होने पे हफ़्तों हफतों के लिए सेन्ट्रल वेस्टर्न लाइन बंद हो जाती।
अँधेरी में ऐक्सिडेंट जिसमे राजधानी के साथ कई लोकल गाड़ियां भी खत्म होतीं।
गाड़ियों के नीचे दबे ,चीखते पुकारते लोग।
वो मंजर सोच के ही दिल दहल जाता है ,
और फिर बॉम्ब ब्लास्ट से टी एम इस ( ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम ) महीनो लोकल ट्रेने आधी कैपिसिटी से चलतीं।
मकसद साफ था ,
मौत का कहर बरसाने के साथ , मुम्बई की कमर तोड़ने की पूरी पूरी तैयारी थी।
हर आतंकी हमले केबाद ,दुखी, रगड़ती , घिसटती मुम्बई ,फिर किसी तरह उठ खड़ी होती है
और रेंग कर सही ही ,अगले दिन से चलने लगती है।
लेकिन इसबार कीतैयारी पूरी थी , मुम्बई के पहिये , लोकल ट्रेन के सिसटम को तहस नहस करने की।
११ जुलाई २००६ में जो ट्रेन में बॉम्बिंग हुयी थी साढ़े तीन घंटे अंदर लोकल ट्रेने चलनी शुरू हो गयी थीं।
रातो रात ,जिन ट्रेनों में बॉम्ब ब्लास्ट हुए थे , उनके रेक हटा दिए गए थे ,
और जब सुबह हुयी , तो स्कूल जाने वाले बच्चो केलिए , आफिस वालों के लिए ,दुकानो में काम करने वालों के लिए लोकल ट्रेने रोज की तरह मुस्तैद खड़ी थीं।
और दिन में दस बजे तक तो नार्मल सर्विसेज चलने लगी थीं।
इसबार ये नहीं हो सकता था।
चर्च गेट , सी इस टी एम , दादर , अँधेरी ,
ट्रैक , ऊपर के बिजली के तार ,रेक सभी डैमेज होते ,
फायरिंग , बिल्डिंग कोलैप्स , पुल का गिरना , ट्रेन एक्सीडेंट , कण्ट्रोल रूम में बॉम्ब ब्लास्ट
और जो लोग ट्रेनों से हट कर सड़क पर पहुंचते तो
सड़क बंद ,
जे जे फ्लाईओवर ,
कैनेडी और फ्रेंच ब्रिज
अँधेरी , मिलन सब वे
ये आतंक की सुनामी पूरे बॉम्बे को लील लेती।
लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ,
अलर्ट मुम्बई पुलिस , अलर्ट ए टी इस
एन पी और उस के साथी।
लेकिन सब से बड़ी बात थी अबकी पेपर आउट था आलमोस्ट ,
और उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार थी रीत।
रीत -करन
और उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार थी रीत।
साथ में आई बी , रा , मेरे हैकर दोस्त , कार्लोस
लेकिन सबसे पहले रीत।
रीत ,
जिससे कोई जीत नहीं सकता
जिसका दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है।
रीत
जिसने दुःख सहे और सुख दिए
बनारस में जिसे सबसे पहले शक हुआ की मामला टेढ़ा है।
फिर फेलुदा , कार्लोस के साथ , उसने स्लीपर जेड का पता लगाया।
पुरे प्लाट की कहानी ढूंढी , दालमंडी की सोनल को समझा कर ,
' काल गर्ल ' का रूप धर सारे फोन के डिटेल्स उड़ाए
बनारस में और बड़ौदा में आतंकियों के छक्के छुड़ाए
उसी ने पता लगाया की किस ट्रेन से आर डी एक्स मुम्बई गया है
और फिर आगे का मोर्चा सम्हाला , एन पी ने।
जिसने सिर्फ बॉम्ब मेकर का पता किया , बल्कि उसने जो अपना नया पासपोर्ट , नयी आई डी बनवायी थी , उस का भी पता लगवाया।
कौन उस से चौथी पास्ता लेन के पाइपवाला बिल्डिंग में बने डिस्को में मिला , उसका भी पता लगाया
और उसके बाद ए टी एस के साथ मिलकर , एक एक की तलाश की।
और रीत का साथ दिया करन ने ,
रीत और करन ,जिन्होंने बनारस में आतंक की सबसे ज्यादा मार झेली थी।
रीत और करन ,दोनों के परिवार में कोई नहीं बचा था बनारस के बॉम्ब ब्लास्ट में।
बचपन की जो दोस्ती प्यार में कैशोर्य में बदल गयी थी , टेरर ने उस पर भी स्याही पोत दी थी।
रीत की आँखों के सामने उसके माँ बाप गए और जब वो स्टेशन पहुंची तो वहां करन के माता -पिता की क्षत विक्षत देह और करन का कोट एक देह पर जिसका सिर नहीं था ,
रीत बहुत दिनों तक बस ज़िंदा थी , बिना मकसद के।
और उसने मकसद ढूंढ लिया टेरर के खिलाफ लड़ाई में।
करन की याद दास्त चली गयी थी।
और जब याददास्त बीते दिनों की वापस आई , तो उसे पता चला की रीत नहीं रही।
वो कैसे फिर मिले ये सब कहानी आप पढ़ चुके हैं .
और दोनों मुम्बई में थे टेरर की इस जंग में शामिल।
मैच की पहली इनिंग हो चुकी थी।
लेकिन ज्यादा खतरा दूसरी इनिंग में था।
जिसके बारे में बहुत कम मालुम था।
सिवाय इसके की एक पोर्ट पर बॉम्ब ब्लास्ट होना था ,
और एक शिप से हमला होना था।
रीत नेवल कमांड सेंटर में थी , वेस्टर्न नेवल कमांड के हेडक्वार्टर में
और करन पोर्ट पर था।
कुछ मेरे हैकर्स दोस्त की मदद से , कुछ रा की मदद से बॉम्ब ब्लास्ट के बारे में थोड़ा बहुत मालूम हो गया था।
लेकिन जो मालूम हुआ था , हालत उससे और उलझ गयी थी।
दस मिनट पहले मैंने , करन और रीत ने टेली कांफ्रेंस की थी।
लेकिन फैसला करन को ही लेना था और उसे एक्जीक्यूट भी करना था।
कुछ देर पहले जो इन्फो आई थीं , मुझे जो आइडिया आई मैंने , रीत को वेस्टर्न नेवल हेडक्वार्टर को पास कर दिया था।
करन जे एन पी टी ( जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ) पर था , और जूझ रहा था हालत से।
कुछ समझ नहीं आ रहा था , अगले डेढ़ घंटे में आने वाले तूफान को कैसे रोके
पोर्ट : करन
रात के आठ बज चुके थे . करन उधेड बुन मे लगा हुआ था .कस्टम आफिस मे उसके साथ कस्टम सिक्योरिटी के चीफ, जे एन पी टी के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर , आइ बी के एक ज्वाइन्ट डायरेक्टर और भी सिक्योरिटी ऐजेन्सीज के लोग बैठे थे . समस्या जितनी सुलझ रही थी , उतनी और उलझ रही थी .
टाइम बीतता जा रहा था . और टाइम ही नही था उसके पास .
मुम्बयी जब वो पहुन्चा था तो , उसे ये कुछ देर बाद पता चल गया था की मुम्बयी के खतरो मे एक बडा खतरा , एक पोर्ट पर बाम्ब एक्स्प्लोजन होना है .
कुछ देर तक तो वो लोग बहुत उधेड बुन मे रहे , कौन पोर्ट हो सकता है ये .
यहां दो बडे पोर्ट हैं , मुम्बयी पोर्ट और जवाहर लाल नेहरु पोर्ट जो नेवा शेवा मे है और नया पोर्ट है .
मुम्बयी पोर्ट , देश के सबसे पूराने बन्दरगाहों में है , एक नेचुरल बन्दरगाह है . बहुत अर्से तक ये बहुत बडी मात्रा में ट्रैफिक का , आयात निर्यात का केन्द्र रहा . दीवार ऐसी फिल्मों में , जिस बन्दर गाह को दिखाया गया है वो यही बन्दर गाह है. लेकिन कन्टेराईजशन के चलते , इस का महत्व कम हो गया .
वक्त के साथ बडे शिप बने और उन शिप के लिये ड्राफट यानी पानी की वो गहरायी , जहां शिप जेटी पे खडे होते हैं, बहुत इम्पोर्टेन्ट होती है. खास तौर पे बडे , पोस्ट पैनामेक्स वेसेल्स के लिये . और इसी तरह सुपर आयल टैन्कर के लिये भी काफी ड्राफ्ट चाहिये. इस लिये धीरे धीरे इस पोर्ट का महत्व कम हो गया.
लेकिन बात सिर्फ इन दोनो पोर्ट्स की नही थी . और भी ढेर सारी छोटी जेट्टी थी , और उनमे से कुछ तो बडी सम्वेदन शील थीं , जैसे तारापुर , जो तारापुर एटामिक एनर्जी सेन्टर के पास ही था .
करन और रीत ने मिल कर बहुत सोचा . रीत ने अपने मगज अस्त्र का प्रयोग किया और करन से पूछा ,
" अगर हाथी को छिपाना हो तो कहां छुपायेंगे "
"हाथियो के बीच मे सिम्पल ." हंस के करन ने जवाब दिया .
"तो सबसे ज्यादा कन्टेनर कहां आते हैं ," रीत ने दूसरा सवाल दागा , और करन को मौका मिल गया .
उसने जे एन पी टी के ब्रोशर की इन्फ़ो दुहरा दी.
११-१२ मे ४.३२ मिलियन कन्टेनर आये थे यहा और अभी तो पांच मिलियन से ज्यादा कन्टेनर आते है. ये हिन्दुस्तान के किसी भी पोर्ट से ज्यादा हैं .
रीत की आंखो में चमक थी.
"तो फिर ये बात साफ है , ये इन्फो तो पक्की है , बॉम्ब कंटेनर में हैं। "
रीत ने मुस्कराते हुए कहा।
"हाँ , और ये भी की वो आज या कल ही शिप से उतरे हैं , लेकिन वो क्यू साइड पर ( क्यू साइड - जहाँ जेटी या बर्थ पे शिप रहते हैं उसके आसपास का स्थान , जहाँ सामान उतारा जाता है ) हैं या रेल यार्ड में पहुँच गए हैं या , कंटेनर यार्ड में है ये कुछ पता नहीं। " करन परेशानी से बोला।
" एक एक करके श्रीमान , एक एक करके " रीत खिलखिलाते बोली।
उसका दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता था।
फिर बोली
" अभी हम लोग सिर्फ ये तय कर हैं की उन कंटेनरों की किस पोर्ट में होने के चांसेज ज्यादा है , उस पोर्ट पे वो कहाँ होंगे वो ये अगला स्टेप होगा। तो अगर सबसे ज्यादा कंटेनर जे एन पी टी पे आते हैं तो संभावना उसके वहीँ होने की ज्यादा है , और लो ये खबर पढ़ो। "
मल्टी टास्किंग में रीत का कोई जवाब नहीं था।
बात करते करते उसने नेट पर एक न्यूज सर्विस से ये खबर ढूंढ निकाली थी ,
" सिंगापुर की समुद्र शिपिंग एजेंसीज के द्वारा भेजा गया एक कंटेनर , १० दिन तक जे एन पी टी पर पड़ा रहा। उसे खोलने पर उसके अंदर से १० असाल्ट राइफल , ३ पिस्टल और २८,०० राउंड एम्युनिशन के मिले "
रीत ने कहा की हमें अपनी खोज जे एन पी टी से ही शुरू करनी चाहिए।
करन आफ्टरनून में वहां पहुँच गया। हाँ , बाकी पोर्ट्स और जेटी पे लोकल पुलिस और आई बी के लोग सर्च जारी रखे थे।
जे एन पी टी पहुंचने के कुछ देर बाद ही ,जो पडोसी देश के कमांड और कंट्रोल सेण्टर में उन्होंने सेंध लगाई थी ,उससे ये बात कनफर्म हो गयी की कंटेनर , जे एन पी टी पर हैं और एक से ज्यादा हैं और अलग अलग शिप से उतरे हैं।
तब तक करन पोर्ट ऑफिशियल्स , शिपिंग लाइंस के एजेंट्स, कस्टम हाउस एजेंट्स की अच्छी क्लास के चुका था। तीन किलोमीटर के पोर्ट के एरिया का दो चक्कर काट चूका था , और समझ गया था कीसेक पोर्ट में तीन कम्पनियो के टर्मिनल हैं और सबके डाटा बेस अलग है।
जे एन पी टी पर , दो टर्मिनल और हैं। एन एस आई सी टी और जी टी आई।
एन एस आई सी टी ( नवा शेवा इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल ) की शुरुआत १९९७ में हुयी ,जब एक इंटरनेशनल कंजोर्टियम जिसके लीड पार्ट्नर , पी एंड ओ पोर्ट्स आस्ट्रेलिया थे , ने दो बर्थ के निमार्ण , आपरेशन और मेन्टेन्स के लिए जे इन पी टी से अग्रीमेंट किया और ये दोनों बर्थ , २००० में शुरू हो गयीं।
इनका आपरेशन अत्याधुनिक था। उन्होंने ६५० मीटर की लेंथ का निर्माण किया और पोर्ट साइड बाकी फैसिलिटी भी डेवलप की। पहली बार इन्होने दो सुपर पोस्ट पनामेक्स क्रेन और ६ पोस्ट पनामेक्स क्रेन भी उपलब्ध करायी जिससे बड़े कंटेनर शिप भी यहाँ आ सकें। ( कंटेनर शिप्स की साइज , पनामा कैनाल से नापी जाती है और जो शिप , पनामा कैनाल के आर पार हो जाते हैं , वो पनामेक्स वेसल कहे जाते हैं। इनमें तीन से पांच हजार तक कंटेनर आते हैं।
पोस्ट पनामेक्स शिप , वो कंटेनर शिप है , जो इससे पार नहीं हो पाते और उनमें ५, से १० हजार तक कंटेनर आते है , लेकिन सुपर पोस्ट पनामेक्स शिप में १५, हजार कंटेनर तक एक बार में आ जाते है और इनके लिए ड्राफ्ट की आवश्यकता भी ज्यादा होती है ).
इस संयुक्त वेंचर की सफलता के बाद जे एन पी टी ने , २००४ में इसी पैटर्न पर एकऔर एग्रीमेंट किया , ३० साल के लिए और इसबार उसका नाम था जी टी आई ( गेटवे टर्मिनल आफ इंडिया ) और इसके दो महत्वपूर्ण पार्टनर थे , कंटेनर कार्पोरेशन आफ इण्डिया ( जो भारतीय रेलवे का उपक्रम है ) और ए पी एम टर्मिनल। ए पी एम टर्मिनल , मर्स्क शिपिंग लाइंस की टर्मिनल आपरेट करने वाली एजेंसी है और ये कहना काफी होगा की मर्स्क शिपिंग लाइन , १९९६ से दुनिया की सबसे बड़ी कंटेनर शिपिंग लाइन है।
ए पी एम टर्मिनल कंपनी का मुख्यालय , हेग नीदरलैंड में है और ये पांच महाद्वीपों , ३९ देशो में ६५ पोर्ट आपरेट करती है। इस टर्मिनल पर सुविधाएं , एन एस आई सी टी से भी बढ़ कर हैं और १० पोस्ट पनामेक्स क्रेन यहाँ पर हैं। इसकी की लेंथ और कैपिसिटी भी जे एन पी टी और एन एस आई सी टी दोनों से ज्यादा है।
इसकी की लेंथ ७१२ मीटर है , जबकि बाकी दोनों की क्रमश: ६८० और ६०० है। इसकी कैपसिटी १. ८ मिलियन टी इ यू है , जबकि बाकी दोनों की क्रमश १. १ और १. २ मिलियन टी ई यू है। कुल मिलाकर पूरे पोर्ट की क्षमता ४. १ मिलियन टी यू है।
और करन की परेशानी और बढ़ी हुयी थी।
तीन में से दो मल्टी नेशनल कार्पोरेशन , और उन के डाटा वेयरहाउस , उनके कार्पोरेट हेडक्वार्टरस , औस्ट्रेलिया और नीदरलैंड में थे। उन्हें कन्विंस कर के पहले उसे एक्सेस करना,… किसी तरह करके , उसने बिल आफ लैडिंग , सारे टर्मिनल पे आये पिछले तीन दिन के शिप्स के पोर्ट आॉफ काल की लिस्ट , कंटेनर्स के इ डी आई ( इलेक्टानिक डाटा इंटरचेंज ) के रिकार्ड सब वो खंगाल रहा था।
उसी के साथ करन ने ये इंस्ट्रकशन दे दिया की था कीकोई भी कंटेनर , पोर्ट से बाहर नहीं जाएगा। जो कंटेनर ट्रेन पे लदे हैं या ट्रक पे लोड हो गए हैं , वो भी बाहर नहीं जाएंगे। पोर्ट से कुछ भी अंदर बाहर नहीं जाएगा।
उसे पूरा शक था की हो सकता है वो कंटेनर ट्रेन पे लोड हो के जब बाहर निकले तब उस समय कोई उसे डिटोनेट करा दे। ज्यादातर कंटेनर जो दिल्ली की और जाते थे वो दिवा -वसई होकर निकलते थे और वसई -विरार में आबादी काफी थी। लेकिन करन को पता नहीं था उसने किस छत्ते में हाथ डाल दिया था।
थोड़ी ही देर में तीनो टर्मिनल आपरेटर उसके सर पे सवार हो गए की अगर कंटेनर मूव नहींहोगा तो सारा पोर्ट चोक हो जाएगा। सारी बर्थ्स भरी हैं , ६ शिप बाहर हैं। कस्टमर्स का एक्सपोर्ट कमिटमेंट है , लेट होने से कमिटमेंट फेल हो जाएगा। अभी अगर उसने आर्डर वापिस नहीं लिया , तो कामर्स मिनिस्ट्री और शिपिंग मिनस्ट्री से फोन आने शुरू हो जाएंगे। लेबर यूनियन के लोग भी हल्ला करेंगे।
करन लाख समझाता रहा लेकिन वो लोग नहीं माने।
उसने कहा भी कंटेनर में बॉम्ब होने की सूचना है , टेरर अटैक का खतरा है। तो वो सारे लोग बोले पिछले ६ महीने में ७ बार ये हो चुका है। किसी का कंटेनर कही डिले हो जाता है , तो वो आखिर में यही हथकंडा अपनाता है।
गनीमत थी करन के साथ कुछ ए टी एस के लोग थे और मुम्बई में पुलिस कमिशनर सिस्टम होने से उन्हें मैजिस्ट्रियल पावर मिली है।
उन्होंने तुरंत बात करके , पूरे पोर्ट एरिया में धारा १४४ लगाई और प्रॉहिबिटरी पावर का इस्तेमाल का अगले ६ घंटे के लिए करके पोर्ट की सारी एक्टिविटी रोक दी और आर्डर दे दिया की अगर कोई क्रेन भी आपरेट होती दिखी तो उसे तुरंत अरेस्ट कर लो।
सारे कस्टम एजेंट्स , टर्मिनल आपरेटर गुस्से में बाहर निकल गए।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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