FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--124
अगला हमला : अँधेरी
अँधेरी ट्रैफिक के लिए इम्पोर्टेन्ट है , और रेलवे के लिए भी।
यहाँ पर ऑफिसेज भी हैं और रेजिडेंशियल एरिया भी।
मेट्रो यहाँ मेन लाइन से जुड़ रही है और हार्बर लाइन भी यहीं खत्म होती है।
यानी अगर आपको नयी मुम्बई जाना है तो आपको यहाँ से सीधी लोकल मिल जायेगी , कहीं बदलने की जरुरत नहीं है।
भीड़ की हालत पूछिये मत , स्टेशन से बाहर पैर निकलाइए और मेन बाजार के अंदर।
लेकिन रेलवे आपरेशन के लिए भी अँधेरी कितना इम्पॉर्टेंट है , ते बहुत से रेलवे वालों को भी नहीं मालूम है।
वेस्टर्न लाइन पर प्रति दिन १२०० से ऊपर गाड़ियां चलती है और इनके आपरेशन का कंट्रोल मैनुअली संभव नहीं है। इसलिए एक पूरी तरह कम्प्यूटराइज्ड ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम ( टी एम एस ) २००४ से लगाया गया।
ये दो भागों में है। एक भाग चर्च गेट -अँधेरी है जो मुंबई सेन्ट्रल के कण्ट्रोल आफिस से संचालित होता है। इसमें चर्च गेट से अँधेरी तक के स्टेशन कंट्रोल होते हैं। और दूसरा सिस्टम अँधेरी में है जिसमें , अँधेरी से विरार तक के स्टेशन कंट्रोल होते हैं।
ये सिस्टम पूरी तरह इलेक्ट्रॉनिकली कंट्रोल्ड है।
इसमें हर स्टेशन पर सॉलिड स्टेट इंटरलाकिंग होती है और सारे स्टेशन इस टी एम एस के जरिये जुड़े होते हैं।
बांद्रा से अँधेरी तक के समानांतर पांच लाइनो पे लगातार ट्रेने चलती है। दो लाइने , स्लो अप और स्लो डाउन और दो फास्ट अप और फास्ट डाउन है। जिसपर लोकल और मेन लाइन की गाड़ियां अनवरत चलती रहती हैं। इसके साथ पांचवीं लाइन पे हार्बर लाइन की गाड़ियां चलती है।
इन गाड़ियों के लिए सिग्नल पूरी तरह औटोमेटिक हैं और गाड़ियों के मूवमंेट के आधार पर अपने आप उनकी दशा बदलती रहती है और वो कभी लाल , कभी हरे और कभी पीले होते रहते हैं।
इसी तरह से गाडी के प्लेटफार्म पर आने , एक लाइन से दूसरे लाइन पर जाने के लिए क्रास ओवर का आपरेशन , ये सुनिश्चित करना की गाड़ियों के बीच कोई कॉन्फ्लिक्टिंग मूवमेंट न हो यानी एक लाइन पर दो गाड़ियों के लिए एक साथ सिग्नल ना आजाये , ये सब टी एम एस के द्वारा नियंत्रित होता है।
ये सारे आपरेशन फेल सेफ होते हैं। यानी अगर कुछ फेल हुआ तो सिगनल लाल हो जाएगा और गाडी खड़ी हो जायेगी।
यद्यपि सारा सिस्टम कम्प्यूटराइज्ड और औटोमेटिक है लेकिन एक ट्रेन डिस्क्राइबर सिस्ट्म के पैनल पे कंट्रोलर बैंठे रहते हैं जहा दीवार पर लगी एक विशाल काय स्क्रीन पर सारे स्टेशन , उनके सिग्नल , रास्ते के सिगनल , और ट्रेन्स की स्थिति दिखती रहती है।
यहाँ से लोकल ट्रेनों ड्राइवर से सीधे बात करने की भी सुविधा है।
अगस्त क्रांति एक्स्प्रेस
अगस्त क्रान्ति राजधानी , एक पूरी तरह वातानुकूलित राजधानी एक्सप्रेस गाडी है , जो शाम 5 . 40 पर मुम्बई सेन्ट्रल स्टेशन से चलती है।
इस में एक फर्स्ट ए सी के अलावा , सात सेकेण्ड एसी , सात थर्ड एसी के डिब्बे और दो पैंट्री कार होती हैं। यात्रा में मिलने वाली सभी संभव सुविधाये इस ट्रेन में मिलती हैं। इस गाडी में करीब १२०० पैसेंजर रोज चलते है।
मुम्बई सेन्ट्रल से चलने के बाद , ये गाडी अपनी अधिकतम स्पीड एक सौ बीस किलोमीटर प्रति घण्टा की ओर अग्रसर हो रही थी।
ट्रेन के अंदर वेटर मिनरल वाटर की बोतल, वेलकम ड्रिंक , न्यूज पेपर सर्व कर चुके थे और चाय नाश्ते के लिए आर्डर ले रहे थे। पैंट्री कार मैनेजर और कैटरिंग सुपरवाइजर लोगों से मिल रहे थे। टी टी ने टिकट चेकिंग शुरू कर दी थी।
यात्री अपनी सीटों पे बैठ चुके थे और आपस में बात चीत शुरू कर रहे थे।
मुम्बई सेन्ट्रल से चलने के बाद गाडी का पहला स्टापेज अँधेरी पर था। जहाँ सबर्ब के लोग इस गाडी में आते थे।
६ १२ पर इस गाडी को अँधेरी पहुँचना था।
दादर पार हो चूका था।
ट्रेन बांद्रा से निकल रही थी।
और उसी समय अन्धेरी में एक भयानक षड्यंत्र की योजना थी।
वही , जो कुछ समय पहले , चर्च गेट , दादर , सी एस टी एम में हो रहा था।
लेकिन उससे भी भयावह ,
और बिना किसी बॉम्ब , गोली , राइफल के ये हमला होना था।
एकदम 9 /11 की तरह
उसमें जहाज विध्वंसक थे और इसमें ये काम अगस्त क्रांति को करना था।
योजना , कंट्रोल के सॉफ्टवेयर को कम्प्रोमाइज करने की थी।
टी एम एस से मेसेज , केबल के जरिये मोटर्स तक जाता है , जो प्वाइंट्स को आपरेट करके ट्रेन का रुट तय करते हैं , और रुट फिक्स होने के बाद सिग्नल को इंडिकेशन मिलता है।
बस इसी में से एक केबल के जरिये , रिवर्स इंफोर्मेटिक्स का इस्तेमाल कर , सिस्टम के ब्रेन को कम्प्रोमाइज करना था।
दो दिन पहले सिस्टम का पूरा आर्किटेक्चर लीक आउट कर लिया गया था।
वैसे तो सिस्टम फुल प्रूफ था लेकिन एक 'बैक टनेल 'का स्कोप था।
बस इसी रास्ते से उसे अंदर घुसना था।
अगस्त क्रान्ति के अँधेरी आने के दो मिनट पहले ,
सिस्टम कम्प्रोमाइज होने के बाद , उसी रुट पर दादर लोकल को भी सिग्नल मिलता , जो बोरीवली से आ रही थी।
और अगस्त क्राँति के ड्रायवर को भी।
लेकिन तब भी संभव था की अगस्त क्रान्ति के ड्राइवर को अगर सामने से आती ट्रेन दिख जाती तो वो इमरजेंसी ब्रेक लगा देता।
इसलिए सिस्टम के कमांड में ये फेर बदल किया गया की आखिरी पल में , क्रास ओवर बदल के गाडी का रास्ता बदल दिया जाता।
सड़क की तरह गाडी का रुट बदलना ट्रेन के ड्राइवर के हाथ में नहीं होता।
इसलिए वो अधिक से अधिक इमरजेंसी ब्रेक लगा सकता है। और इमरजेंसी ब्रेक की दूरी कम से काम ८०० मीटर होनी चाहिए , लेकिन एक बार ट्रेन क्रास और पे चढ़ गयी तो , … कुछ नहीं हो सकता। क्योंकि फिर दोनों ट्रेनों के बीच की दूरी ५०० मीटर से काम की बचती है।
और पन्दरह से बीस सेकेण्ड का समय मुश्किल से मिलता है , जिसमे पांच सेकेण्ड का समय रीऐकशन में निकल जाता। ब्रेक लगाने पर भी टक्कर के समय ट्रेन की स्पीड ७० से ८० किलोमीटर के बीच होती।
अगस्त क्रान्ति में १२०० के करीब लोग थे।
दादर लोकल में भी हजार से कम नहीं रहे होंगे।
रेलवे एक्सीडेंट में , सबसे खतरनाक एक्सीडेंट टक्कर की होती हैं , और वो भी भरी हुयी , तेज स्पीड की गाडी में तो और।
लेकिन ये एक्सीडेंट और भयावह होता , क्योंकि ऐक्सिडेंट के बाद डिब्बे पटरी से उतर जाते है और अगल बगल की पटरियों को भी अफेक्ट करते है।
इस मामले में , अगल बगल के ट्रैक पर भी या तो गाडी होती या आने वाली होती।
और वो गिरे हुए कोचों से लड़ती। शाम का समय था वो सारी ट्रेने खचा खच भरी रहतीं। उस समय ट्रेन से तो कितने लोग बाहर लटके रहते।
और ये सब कुछ उस की विभीषिका को बढ़ावा देते।
४-५०० से कम लोगों की क्षति नहीं होती।
घायल जो होते वो अलग।
साढ़े पांच से साढ़े छ के बीच , चर्च गेट , सी एस टी एम सब वे , दादर , अँधेरी,
सिर्फ चीख पुकार त्राहि माम ,…
और इतना ही काफी नहीं था।
एक बॉम्ब अँधेरी के टी एम एस प्लांट होना था , इसी समय जो २० मिनट बाद एक्सप्लोड होना था , जो रिस्क्यू और रिलीफ वर्कर्स को तो प्रभावित करता ही , पूरे आपरेशन सिस्टम को हमेशा के लिए खत्म कर देता।
और उसे रिस्टोर करने में कम से कम १५- २० दिन का समय लगता। तब तक मुम्बई की लोकल अपनी आधी से भी काम कैपेसिटी पर चल पातीं।
लेकिन ये सब कुछ नहीं हुआ।
अगस्त क्रान्ति अँधेरी में रुकी , बोरीवली में रुकी और फिर चाय नाश्ता मिलना शूरु हुआ।
क्योंकि दुष्ट दमन हो गया था।
वो सारे लोग कर्टसी , ए टी एस , चार बजे के पहले पकड़ लिए गए थे।
कैसे पकड़े गए , किसने पकड़ा , ये सब शेयर करना शायद सिक्योरिटी के लिए ठीक नहीं होगा।
बस ये समझ लें की ये हमला नहीं हो सका।
हाँ बस ये बात की एक स्लीपर इस हमले के पीछे था।
और वो और उसके दोनों साथी धर दबोचे गए और उन्होंने सब ककहरा पढ़ दिया।
क्रॉफोर्ड मार्केट की आपधापी कभी कम नहीं होती लेकिन शाम होने के पहले वो अपने पीक पे पहुंचने लगती है। भले ही नाम उसका बदल कर महात्मा ज्योतिबा फूले मार्केट कर दिया गया हो लेकिन सबकी जुबान पे चढ़ा नाम यही है।
आर्थर क्रॉफोर्ड , मुम्बई के पहले म्युनिसिपल कमिश्नर के नाम पे है ये। नार्मन और फ्लेमिश स्थापत्य के मिश्रण से बना है ये , और इसके आर्किटेक्ट विलियम इमर्सन थे , लेकिन एक इंट्रेस्टिंग चीज , इसके अंदर बना फव्वारा है , जिसके निर्माता रुडयार्ड किपलिंग , मशहूर लेखक के पिता , लॉकवुड किपलिंग थे।
आर्थर क्रॉफोर्ड एक इंट्रेस्टिंग व्यक्तित्व के स्वामी थे। बॉम्बे के विकास की नीव के साथ 'अंडर द टेबल ' लेन देन की प्रणाली की स्थापना का भी श्रेय इन्हे जाता है।
मुम्बई में पीने के पानी का इंतजाम , गार्बेज की सफाई का इंतजाम , सिमेट्री ऐसी बहुत सी चीजों का श्रेय इन्हे जाता है। लेकिन इसके साथ ही अपने आधीन मामूलदार लोगों से ये 'तयशुदा रकम 'भी वसूलते थे और इनके खिलाफ गोखले और तिलक दोनों लोगों ने आंदोलन किया। जांच में रिश्वत तो नहीं सिद्ध हो पायी , हाँ ये जरूर उन्होंने स्वीकार किया की वो अपने 'सबआर्डिनेट्स 'से उधार लेते थे।
उन्हें लन्दन वापस कर दिया गया।
क्रॉफोर्ड मार्केट ढेर सारी बाजारों से जुड़ा है, कालबा देवी के मंगलदास मार्केट ( टेक्सटाइल्स , जहाँ कहा जाता है एक लाख लोग रोज कपडे खरीदते हैं ) , झावेरी बाजार गहनो के लिए , दवा बाजार , प्रिंसेस स्ट्रीट , और इस से आने जाने वाली सारी भीड़ क्रॉफोर्ड मार्केट के ट्रैफिक पे असर डालती है। इसी के साथ चीरा बाजार , भूलेश्वर , चोर बाजार सब पास में ही हैं।
और यहां से थोड़ा और आगे बढे तो भिन्डी बाजार है , जिसपर एक फ़िल्म भी बनी।
कहा जाता है ये क्रॉफोर्ड मार्केट के पीछे की ओर है , इसलिए अंग्रेज इसे बिहाइंड द बाजार कहते थे। जो बिगड़ कर भिन्डी बाजार हो गया।
मोहम्मद अली रोड भी बॉम्बे की व्यस्त रोड में है और रोजे के दिनों में यहाँ रौनक और बढ़ जाती है , खास तौर पे नान वेज खाने वालों के लिए , सुलेमान हलवाई के अंडे के मालपुए , बगल में तीतर और बटेर के अनेक व्यंजन , भोजन के रसिकों के लिए तो नाम सुन कर मुंह में पानी आ जाता है।
और इसी मोहम्मद अली रोड के ऊपर है जे जे फ्लाईओवर।
ये वीटी स्टेशन की रोड को नागपाड़ा से जोड़ता है और भायखला से , जे जे हॉस्पिटल पर यह खतम होता है। पूर्वी मुम्बई के लिए दक्षिण मुम्बई से सेन्ट्रल मुम्बई को जोड़ने वाला ये एक बड़ा लंबा फ्लाई ओवर है।
ये फ्लाईओवर मुहम्मद अली रोड के ऊपर , उसी तरह घूमता , मुड़ता , मकानों की छतो के बीच से होता , निकलता है। दिन रात इसके ऊपर गाड़ियों का तांता लगा रहता है।
और एक ट्रक इसी फ्लाईओवर की ओर चला आ रहा था। छोटे साइज के ट्रकों का आना जाना बहुत कॉमन था।
वो कालबा देवी के अलग अलग थोक के बाजारों से सामान लाके कभी रेलवे स्टेशन तो कभी ट्रांसपोर्ट के लिए चलते रहते थे. यह ट्रक चीरा बाजार से चला था , जहाँ से कपडे की कुछ गांठे उसमें लोड हुयी थीं। और फिर प्रिंसेज स्ट्रीट से कुछ केमिकल के बड़े पैकेट।
शाम के पांच बजे के बाद क्रॉफोर्ड मार्केट के आसपास पैदल चलना मुश्किल हो जाता है , और वो भारी ट्रक था। आज वैसे भी नाकाबंदी काफी थी , इसलिए गाड़ियां और रेंग रेंग कर चल रही थीं। ट्रक मनीष मार्केट के पास से निकला था और जे जे फ्लाईओवर की ओर बढ़ रहा था और अब उसकी स्पीड थोड़ी बढ़ रही थी।
लेकिन ड्राइवर की निगाह , पुलिस की नाकाबंदी पे थी जो जे जे स्कूल आफ आर्ट और हज हाउस के बीच थी।
वो फ्लाईओवर के ऊपर चढने और उतरने वाली गाड़ियों को चेक कर रहे थे। नॉर्मली ये नाकाबंदी , उन मोटरसाइकल वालों के लिए होती थी , जो मना होने के बावजूद फ्लाई ओवर पे चढ़ जाते थे। लेकिन आज सारी गाड़ियां उन की जांच के दायरे में आ रही थी।
जे जे फ्लाईओवर
पुल के नीचे भी कई गाड़ियां पार्क थीं। कुछ पुलिस और स्पेशल फोर्स वाले वहां चौकन्ने नजर आ रहे थे।
ड्राइवर मुस्कराया। उसे मालुम था की इन पार्क की गयी गाड़ियों की कई बार चेकिंग हो चुकी है लेकिन , जो मिलना था वो उन्हें नहीं मिला है।
उसने घड़ी देखी ६ बजने वाली थी , और उसने अक्स्लिरेटर पे दबाया।
मिशन का सिर्फ आधा हिस्सा उसे मालूम था।
मिशन का पूरा रूप किसी को नहीं मालूम था।
बस उसे ये मालूम था की उसे अपनी ट्रक , पुल के खम्भे से लड़ाना था , पूरी स्पीड से , और साथ ही दरवाजा खोल के बाहर निकल जाना था। लड़ने के आधे मिनट के पहले।
उसने कई बार इसकी ट्रेनिंग की थी और इतना वक्त काफी था उसके लिए कम से कम २०० मीटर के दायरे के बाहर निकल जाने के लिए।
और इसी दायरे में मैक्सिमम इफेक्ट होता। दूसरे वह गिर कर पीछे की और लुढ़कता , और धमाके और उस के बीच में ट्रक होता।
उसके ट्रक का सामान दो तीन बार चेक हुआ था , लेकिन सारा एक्सप्लोसिव बोनेट के अंदर था। और इम्पैक्ट् का असर सीधे जिस खम्बे से वो लड़ता उसके ऊपर होता। ट्रक के हुड की डिजाइन भी इस तरहकी थी और उसमें सेमेटक्स लगे हुए थे की बहुत तेज शाक वेव्स जेनरेट होतीं।
इम्पैक्ट और पेन्ट्रेशन दोनों लिहाज से असर बहुत तेज होता।
और इसी के साथ पीछे जो सामान रखा था वो एक्सप्लोसिव तो नहीं था , लेकिन हाइली इन्फ्लेमेबल था और आवो भी इस विभषिका को भयावह बनाता।
ड्राइवर के हाथ में एक रिमोट भी था। और इसमें दो बटने थी।
एक पुल के नीचे खड़ी गाड़ियों के टैंक में रखे बाम्ब्स के लिए , और दूसरा उन गाड़ियों के नीचे जमीन में छुपे पावरफुल बाम्ब्स के लिए।
ये कार , बॉम्बस की तरह काम कर रही थी लेकिन साथ साथ बाम्ब्स को छुपाने के लिए।
दो बार एंटी बॉम्ब स्क्वाड के लोग आ के पल का चप्पा चाप छान गए थे , उन्होंने कार अच्छी तरह से चेक की थी , लेकिन जहाँ कारें खड़ी थी , उस के नीचे का हिस्सा , नीचे की जमीन चेक करने का ख्याल उन के दिमाग में नहीं आया।
इस तरह तीन बार शाक वेव्स जेनरेट होतीं।
पहली बार ट्रक के लड़ने से ,
दुबारा कार में बॉम्ब से , जो कार के टैंक के अंदर होने से और घातक हो जातीं।
और तीसरी जमीं में छिपे बाम्ब्स से।
और जो खम्भा उन्होंने चुना था वो स्ट्रक्चरल स्ट्रेंथ में वीकेस्ट था।
शाक वेव्स से अचानक तेजी से टेम्प्रेचर , प्रेशर और फ्लो तीनो बढ़ते हैं और मैटीरियल स्ट्रेंथ पर उसका असर पड़ता है।
विशेष रूप से ट्रक के सामने वाले हिस्से में है एक्सप्लोसिव्स यूज किये गए थे जो टी इन टी के मिश्रण से बनाये गए थे और टी इन टी से १. ८ गुना ज्यादा प्रभाव शाली थे। टी एन टी की डिटोनेशन वेलॉसिटी ६,९०० मीटर /सेकेण्ड है और एक तेज सुपरसानिक बूम का असर होगा।
लेकिन इस शाक वेव का असर कुछ देर में खत्म हो जाता क्योंकि इसके पीछे से जो सांउन्ड वेव निकलती वो असर कम कर देती।
और इसी लिए वो कार बॉम्ब थे।
असर कम होने से पहले ही , फिर शाक वेव्स शुरू हो जातीं साथ कार के टूटे टुकड़े , प्रोजेक्टाइल की तरह तेज गति से कंक्रीट को हिट करते और उसे और कमजोर बनाते।
और उसके बाद नंबर आता कार के नीचे छुपे हुए बाम्ब्स का ,
लेकिन जिसने भी ये अटैक प्लान किया था उसे मालूम था की ये इस पुल पे असर तो डालेगा , उसे कमजोर करेगा लेकिन उससे ज्यादा नहीं।
इस हमले का एक बहुत बड़ा असर डाइवर्सनरी होता।
रिलीफ एजेंसीज , चारो और फैले हुए सिक्योरिटी फोर्सेज के लोग , डिटेक्टिव्स , पुलिस सभी लोग ग्राउंड जीरो की और पहुंचते।
मीडया की गाड़ियां भी वहीँ दौड़ पड़तीं।
और पुल के बाकी हिस्से की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता।
एक और डाइवर्जनरी ट्रिक भी शूरु होनी थी , पहले धमाके के साथ।
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भीड़ की हालत पूछिये मत , स्टेशन से बाहर पैर निकलाइए और मेन बाजार के अंदर।
लेकिन रेलवे आपरेशन के लिए भी अँधेरी कितना इम्पॉर्टेंट है , ते बहुत से रेलवे वालों को भी नहीं मालूम है।
वेस्टर्न लाइन पर प्रति दिन १२०० से ऊपर गाड़ियां चलती है और इनके आपरेशन का कंट्रोल मैनुअली संभव नहीं है। इसलिए एक पूरी तरह कम्प्यूटराइज्ड ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम ( टी एम एस ) २००४ से लगाया गया।
ये दो भागों में है। एक भाग चर्च गेट -अँधेरी है जो मुंबई सेन्ट्रल के कण्ट्रोल आफिस से संचालित होता है। इसमें चर्च गेट से अँधेरी तक के स्टेशन कंट्रोल होते हैं। और दूसरा सिस्टम अँधेरी में है जिसमें , अँधेरी से विरार तक के स्टेशन कंट्रोल होते हैं।
ये सिस्टम पूरी तरह इलेक्ट्रॉनिकली कंट्रोल्ड है।
इसमें हर स्टेशन पर सॉलिड स्टेट इंटरलाकिंग होती है और सारे स्टेशन इस टी एम एस के जरिये जुड़े होते हैं।
बांद्रा से अँधेरी तक के समानांतर पांच लाइनो पे लगातार ट्रेने चलती है। दो लाइने , स्लो अप और स्लो डाउन और दो फास्ट अप और फास्ट डाउन है। जिसपर लोकल और मेन लाइन की गाड़ियां अनवरत चलती रहती हैं। इसके साथ पांचवीं लाइन पे हार्बर लाइन की गाड़ियां चलती है।
इन गाड़ियों के लिए सिग्नल पूरी तरह औटोमेटिक हैं और गाड़ियों के मूवमंेट के आधार पर अपने आप उनकी दशा बदलती रहती है और वो कभी लाल , कभी हरे और कभी पीले होते रहते हैं।
इसी तरह से गाडी के प्लेटफार्म पर आने , एक लाइन से दूसरे लाइन पर जाने के लिए क्रास ओवर का आपरेशन , ये सुनिश्चित करना की गाड़ियों के बीच कोई कॉन्फ्लिक्टिंग मूवमेंट न हो यानी एक लाइन पर दो गाड़ियों के लिए एक साथ सिग्नल ना आजाये , ये सब टी एम एस के द्वारा नियंत्रित होता है।
ये सारे आपरेशन फेल सेफ होते हैं। यानी अगर कुछ फेल हुआ तो सिगनल लाल हो जाएगा और गाडी खड़ी हो जायेगी।
यद्यपि सारा सिस्टम कम्प्यूटराइज्ड और औटोमेटिक है लेकिन एक ट्रेन डिस्क्राइबर सिस्ट्म के पैनल पे कंट्रोलर बैंठे रहते हैं जहा दीवार पर लगी एक विशाल काय स्क्रीन पर सारे स्टेशन , उनके सिग्नल , रास्ते के सिगनल , और ट्रेन्स की स्थिति दिखती रहती है।
यहाँ से लोकल ट्रेनों ड्राइवर से सीधे बात करने की भी सुविधा है।
अगस्त क्रांति एक्स्प्रेस
अगस्त क्रान्ति राजधानी , एक पूरी तरह वातानुकूलित राजधानी एक्सप्रेस गाडी है , जो शाम 5 . 40 पर मुम्बई सेन्ट्रल स्टेशन से चलती है।
इस में एक फर्स्ट ए सी के अलावा , सात सेकेण्ड एसी , सात थर्ड एसी के डिब्बे और दो पैंट्री कार होती हैं। यात्रा में मिलने वाली सभी संभव सुविधाये इस ट्रेन में मिलती हैं। इस गाडी में करीब १२०० पैसेंजर रोज चलते है।
मुम्बई सेन्ट्रल से चलने के बाद , ये गाडी अपनी अधिकतम स्पीड एक सौ बीस किलोमीटर प्रति घण्टा की ओर अग्रसर हो रही थी।
ट्रेन के अंदर वेटर मिनरल वाटर की बोतल, वेलकम ड्रिंक , न्यूज पेपर सर्व कर चुके थे और चाय नाश्ते के लिए आर्डर ले रहे थे। पैंट्री कार मैनेजर और कैटरिंग सुपरवाइजर लोगों से मिल रहे थे। टी टी ने टिकट चेकिंग शुरू कर दी थी।
यात्री अपनी सीटों पे बैठ चुके थे और आपस में बात चीत शुरू कर रहे थे।
मुम्बई सेन्ट्रल से चलने के बाद गाडी का पहला स्टापेज अँधेरी पर था। जहाँ सबर्ब के लोग इस गाडी में आते थे।
६ १२ पर इस गाडी को अँधेरी पहुँचना था।
दादर पार हो चूका था।
ट्रेन बांद्रा से निकल रही थी।
और उसी समय अन्धेरी में एक भयानक षड्यंत्र की योजना थी।
वही , जो कुछ समय पहले , चर्च गेट , दादर , सी एस टी एम में हो रहा था।
लेकिन उससे भी भयावह ,
और बिना किसी बॉम्ब , गोली , राइफल के ये हमला होना था।
एकदम 9 /11 की तरह
उसमें जहाज विध्वंसक थे और इसमें ये काम अगस्त क्रांति को करना था।
योजना , कंट्रोल के सॉफ्टवेयर को कम्प्रोमाइज करने की थी।
टी एम एस से मेसेज , केबल के जरिये मोटर्स तक जाता है , जो प्वाइंट्स को आपरेट करके ट्रेन का रुट तय करते हैं , और रुट फिक्स होने के बाद सिग्नल को इंडिकेशन मिलता है।
बस इसी में से एक केबल के जरिये , रिवर्स इंफोर्मेटिक्स का इस्तेमाल कर , सिस्टम के ब्रेन को कम्प्रोमाइज करना था।
दो दिन पहले सिस्टम का पूरा आर्किटेक्चर लीक आउट कर लिया गया था।
वैसे तो सिस्टम फुल प्रूफ था लेकिन एक 'बैक टनेल 'का स्कोप था।
बस इसी रास्ते से उसे अंदर घुसना था।
अगस्त क्रान्ति के अँधेरी आने के दो मिनट पहले ,
सिस्टम कम्प्रोमाइज होने के बाद , उसी रुट पर दादर लोकल को भी सिग्नल मिलता , जो बोरीवली से आ रही थी।
और अगस्त क्राँति के ड्रायवर को भी।
लेकिन तब भी संभव था की अगस्त क्रान्ति के ड्राइवर को अगर सामने से आती ट्रेन दिख जाती तो वो इमरजेंसी ब्रेक लगा देता।
इसलिए सिस्टम के कमांड में ये फेर बदल किया गया की आखिरी पल में , क्रास ओवर बदल के गाडी का रास्ता बदल दिया जाता।
सड़क की तरह गाडी का रुट बदलना ट्रेन के ड्राइवर के हाथ में नहीं होता।
इसलिए वो अधिक से अधिक इमरजेंसी ब्रेक लगा सकता है। और इमरजेंसी ब्रेक की दूरी कम से काम ८०० मीटर होनी चाहिए , लेकिन एक बार ट्रेन क्रास और पे चढ़ गयी तो , … कुछ नहीं हो सकता। क्योंकि फिर दोनों ट्रेनों के बीच की दूरी ५०० मीटर से काम की बचती है।
और पन्दरह से बीस सेकेण्ड का समय मुश्किल से मिलता है , जिसमे पांच सेकेण्ड का समय रीऐकशन में निकल जाता। ब्रेक लगाने पर भी टक्कर के समय ट्रेन की स्पीड ७० से ८० किलोमीटर के बीच होती।
अगस्त क्रान्ति में १२०० के करीब लोग थे।
दादर लोकल में भी हजार से कम नहीं रहे होंगे।
रेलवे एक्सीडेंट में , सबसे खतरनाक एक्सीडेंट टक्कर की होती हैं , और वो भी भरी हुयी , तेज स्पीड की गाडी में तो और।
लेकिन ये एक्सीडेंट और भयावह होता , क्योंकि ऐक्सिडेंट के बाद डिब्बे पटरी से उतर जाते है और अगल बगल की पटरियों को भी अफेक्ट करते है।
इस मामले में , अगल बगल के ट्रैक पर भी या तो गाडी होती या आने वाली होती।
और वो गिरे हुए कोचों से लड़ती। शाम का समय था वो सारी ट्रेने खचा खच भरी रहतीं। उस समय ट्रेन से तो कितने लोग बाहर लटके रहते।
और ये सब कुछ उस की विभीषिका को बढ़ावा देते।
४-५०० से कम लोगों की क्षति नहीं होती।
घायल जो होते वो अलग।
साढ़े पांच से साढ़े छ के बीच , चर्च गेट , सी एस टी एम सब वे , दादर , अँधेरी,
सिर्फ चीख पुकार त्राहि माम ,…
और इतना ही काफी नहीं था।
एक बॉम्ब अँधेरी के टी एम एस प्लांट होना था , इसी समय जो २० मिनट बाद एक्सप्लोड होना था , जो रिस्क्यू और रिलीफ वर्कर्स को तो प्रभावित करता ही , पूरे आपरेशन सिस्टम को हमेशा के लिए खत्म कर देता।
और उसे रिस्टोर करने में कम से कम १५- २० दिन का समय लगता। तब तक मुम्बई की लोकल अपनी आधी से भी काम कैपेसिटी पर चल पातीं।
लेकिन ये सब कुछ नहीं हुआ।
अगस्त क्रान्ति अँधेरी में रुकी , बोरीवली में रुकी और फिर चाय नाश्ता मिलना शूरु हुआ।
क्योंकि दुष्ट दमन हो गया था।
वो सारे लोग कर्टसी , ए टी एस , चार बजे के पहले पकड़ लिए गए थे।
कैसे पकड़े गए , किसने पकड़ा , ये सब शेयर करना शायद सिक्योरिटी के लिए ठीक नहीं होगा।
बस ये समझ लें की ये हमला नहीं हो सका।
हाँ बस ये बात की एक स्लीपर इस हमले के पीछे था।
और वो और उसके दोनों साथी धर दबोचे गए और उन्होंने सब ककहरा पढ़ दिया।
क्रॉफोर्ड मार्केट की आपधापी कभी कम नहीं होती लेकिन शाम होने के पहले वो अपने पीक पे पहुंचने लगती है। भले ही नाम उसका बदल कर महात्मा ज्योतिबा फूले मार्केट कर दिया गया हो लेकिन सबकी जुबान पे चढ़ा नाम यही है।
आर्थर क्रॉफोर्ड , मुम्बई के पहले म्युनिसिपल कमिश्नर के नाम पे है ये। नार्मन और फ्लेमिश स्थापत्य के मिश्रण से बना है ये , और इसके आर्किटेक्ट विलियम इमर्सन थे , लेकिन एक इंट्रेस्टिंग चीज , इसके अंदर बना फव्वारा है , जिसके निर्माता रुडयार्ड किपलिंग , मशहूर लेखक के पिता , लॉकवुड किपलिंग थे।
आर्थर क्रॉफोर्ड एक इंट्रेस्टिंग व्यक्तित्व के स्वामी थे। बॉम्बे के विकास की नीव के साथ 'अंडर द टेबल ' लेन देन की प्रणाली की स्थापना का भी श्रेय इन्हे जाता है।
मुम्बई में पीने के पानी का इंतजाम , गार्बेज की सफाई का इंतजाम , सिमेट्री ऐसी बहुत सी चीजों का श्रेय इन्हे जाता है। लेकिन इसके साथ ही अपने आधीन मामूलदार लोगों से ये 'तयशुदा रकम 'भी वसूलते थे और इनके खिलाफ गोखले और तिलक दोनों लोगों ने आंदोलन किया। जांच में रिश्वत तो नहीं सिद्ध हो पायी , हाँ ये जरूर उन्होंने स्वीकार किया की वो अपने 'सबआर्डिनेट्स 'से उधार लेते थे।
उन्हें लन्दन वापस कर दिया गया।
क्रॉफोर्ड मार्केट ढेर सारी बाजारों से जुड़ा है, कालबा देवी के मंगलदास मार्केट ( टेक्सटाइल्स , जहाँ कहा जाता है एक लाख लोग रोज कपडे खरीदते हैं ) , झावेरी बाजार गहनो के लिए , दवा बाजार , प्रिंसेस स्ट्रीट , और इस से आने जाने वाली सारी भीड़ क्रॉफोर्ड मार्केट के ट्रैफिक पे असर डालती है। इसी के साथ चीरा बाजार , भूलेश्वर , चोर बाजार सब पास में ही हैं।
और यहां से थोड़ा और आगे बढे तो भिन्डी बाजार है , जिसपर एक फ़िल्म भी बनी।
कहा जाता है ये क्रॉफोर्ड मार्केट के पीछे की ओर है , इसलिए अंग्रेज इसे बिहाइंड द बाजार कहते थे। जो बिगड़ कर भिन्डी बाजार हो गया।
मोहम्मद अली रोड भी बॉम्बे की व्यस्त रोड में है और रोजे के दिनों में यहाँ रौनक और बढ़ जाती है , खास तौर पे नान वेज खाने वालों के लिए , सुलेमान हलवाई के अंडे के मालपुए , बगल में तीतर और बटेर के अनेक व्यंजन , भोजन के रसिकों के लिए तो नाम सुन कर मुंह में पानी आ जाता है।
और इसी मोहम्मद अली रोड के ऊपर है जे जे फ्लाईओवर।
ये वीटी स्टेशन की रोड को नागपाड़ा से जोड़ता है और भायखला से , जे जे हॉस्पिटल पर यह खतम होता है। पूर्वी मुम्बई के लिए दक्षिण मुम्बई से सेन्ट्रल मुम्बई को जोड़ने वाला ये एक बड़ा लंबा फ्लाई ओवर है।
ये फ्लाईओवर मुहम्मद अली रोड के ऊपर , उसी तरह घूमता , मुड़ता , मकानों की छतो के बीच से होता , निकलता है। दिन रात इसके ऊपर गाड़ियों का तांता लगा रहता है।
और एक ट्रक इसी फ्लाईओवर की ओर चला आ रहा था। छोटे साइज के ट्रकों का आना जाना बहुत कॉमन था।
वो कालबा देवी के अलग अलग थोक के बाजारों से सामान लाके कभी रेलवे स्टेशन तो कभी ट्रांसपोर्ट के लिए चलते रहते थे. यह ट्रक चीरा बाजार से चला था , जहाँ से कपडे की कुछ गांठे उसमें लोड हुयी थीं। और फिर प्रिंसेज स्ट्रीट से कुछ केमिकल के बड़े पैकेट।
शाम के पांच बजे के बाद क्रॉफोर्ड मार्केट के आसपास पैदल चलना मुश्किल हो जाता है , और वो भारी ट्रक था। आज वैसे भी नाकाबंदी काफी थी , इसलिए गाड़ियां और रेंग रेंग कर चल रही थीं। ट्रक मनीष मार्केट के पास से निकला था और जे जे फ्लाईओवर की ओर बढ़ रहा था और अब उसकी स्पीड थोड़ी बढ़ रही थी।
लेकिन ड्राइवर की निगाह , पुलिस की नाकाबंदी पे थी जो जे जे स्कूल आफ आर्ट और हज हाउस के बीच थी।
वो फ्लाईओवर के ऊपर चढने और उतरने वाली गाड़ियों को चेक कर रहे थे। नॉर्मली ये नाकाबंदी , उन मोटरसाइकल वालों के लिए होती थी , जो मना होने के बावजूद फ्लाई ओवर पे चढ़ जाते थे। लेकिन आज सारी गाड़ियां उन की जांच के दायरे में आ रही थी।
जे जे फ्लाईओवर
पुल के नीचे भी कई गाड़ियां पार्क थीं। कुछ पुलिस और स्पेशल फोर्स वाले वहां चौकन्ने नजर आ रहे थे।
ड्राइवर मुस्कराया। उसे मालुम था की इन पार्क की गयी गाड़ियों की कई बार चेकिंग हो चुकी है लेकिन , जो मिलना था वो उन्हें नहीं मिला है।
उसने घड़ी देखी ६ बजने वाली थी , और उसने अक्स्लिरेटर पे दबाया।
मिशन का सिर्फ आधा हिस्सा उसे मालूम था।
मिशन का पूरा रूप किसी को नहीं मालूम था।
बस उसे ये मालूम था की उसे अपनी ट्रक , पुल के खम्भे से लड़ाना था , पूरी स्पीड से , और साथ ही दरवाजा खोल के बाहर निकल जाना था। लड़ने के आधे मिनट के पहले।
उसने कई बार इसकी ट्रेनिंग की थी और इतना वक्त काफी था उसके लिए कम से कम २०० मीटर के दायरे के बाहर निकल जाने के लिए।
और इसी दायरे में मैक्सिमम इफेक्ट होता। दूसरे वह गिर कर पीछे की और लुढ़कता , और धमाके और उस के बीच में ट्रक होता।
उसके ट्रक का सामान दो तीन बार चेक हुआ था , लेकिन सारा एक्सप्लोसिव बोनेट के अंदर था। और इम्पैक्ट् का असर सीधे जिस खम्बे से वो लड़ता उसके ऊपर होता। ट्रक के हुड की डिजाइन भी इस तरहकी थी और उसमें सेमेटक्स लगे हुए थे की बहुत तेज शाक वेव्स जेनरेट होतीं।
इम्पैक्ट और पेन्ट्रेशन दोनों लिहाज से असर बहुत तेज होता।
और इसी के साथ पीछे जो सामान रखा था वो एक्सप्लोसिव तो नहीं था , लेकिन हाइली इन्फ्लेमेबल था और आवो भी इस विभषिका को भयावह बनाता।
ड्राइवर के हाथ में एक रिमोट भी था। और इसमें दो बटने थी।
एक पुल के नीचे खड़ी गाड़ियों के टैंक में रखे बाम्ब्स के लिए , और दूसरा उन गाड़ियों के नीचे जमीन में छुपे पावरफुल बाम्ब्स के लिए।
ये कार , बॉम्बस की तरह काम कर रही थी लेकिन साथ साथ बाम्ब्स को छुपाने के लिए।
दो बार एंटी बॉम्ब स्क्वाड के लोग आ के पल का चप्पा चाप छान गए थे , उन्होंने कार अच्छी तरह से चेक की थी , लेकिन जहाँ कारें खड़ी थी , उस के नीचे का हिस्सा , नीचे की जमीन चेक करने का ख्याल उन के दिमाग में नहीं आया।
इस तरह तीन बार शाक वेव्स जेनरेट होतीं।
पहली बार ट्रक के लड़ने से ,
दुबारा कार में बॉम्ब से , जो कार के टैंक के अंदर होने से और घातक हो जातीं।
और तीसरी जमीं में छिपे बाम्ब्स से।
और जो खम्भा उन्होंने चुना था वो स्ट्रक्चरल स्ट्रेंथ में वीकेस्ट था।
शाक वेव्स से अचानक तेजी से टेम्प्रेचर , प्रेशर और फ्लो तीनो बढ़ते हैं और मैटीरियल स्ट्रेंथ पर उसका असर पड़ता है।
विशेष रूप से ट्रक के सामने वाले हिस्से में है एक्सप्लोसिव्स यूज किये गए थे जो टी इन टी के मिश्रण से बनाये गए थे और टी इन टी से १. ८ गुना ज्यादा प्रभाव शाली थे। टी एन टी की डिटोनेशन वेलॉसिटी ६,९०० मीटर /सेकेण्ड है और एक तेज सुपरसानिक बूम का असर होगा।
लेकिन इस शाक वेव का असर कुछ देर में खत्म हो जाता क्योंकि इसके पीछे से जो सांउन्ड वेव निकलती वो असर कम कर देती।
और इसी लिए वो कार बॉम्ब थे।
असर कम होने से पहले ही , फिर शाक वेव्स शुरू हो जातीं साथ कार के टूटे टुकड़े , प्रोजेक्टाइल की तरह तेज गति से कंक्रीट को हिट करते और उसे और कमजोर बनाते।
और उसके बाद नंबर आता कार के नीचे छुपे हुए बाम्ब्स का ,
लेकिन जिसने भी ये अटैक प्लान किया था उसे मालूम था की ये इस पुल पे असर तो डालेगा , उसे कमजोर करेगा लेकिन उससे ज्यादा नहीं।
इस हमले का एक बहुत बड़ा असर डाइवर्सनरी होता।
रिलीफ एजेंसीज , चारो और फैले हुए सिक्योरिटी फोर्सेज के लोग , डिटेक्टिव्स , पुलिस सभी लोग ग्राउंड जीरो की और पहुंचते।
मीडया की गाड़ियां भी वहीँ दौड़ पड़तीं।
और पुल के बाकी हिस्से की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता।
एक और डाइवर्जनरी ट्रिक भी शूरु होनी थी , पहले धमाके के साथ।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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