Thursday, June 12, 2014

FUN-MAZA-MASTI सीता --एक गाँव की लड़की--8

FUN-MAZA-MASTI

 सीता --एक गाँव की लड़की--8

 कुछ ही देर में अपने भैया के साथ बगीचे पहुँच गई थी। मैं उतरी और अपनी गांड़ पूरब पश्चिम करती आगे बढ़ गई। सिर्फ चोली में मेरी चुची मानो दो बड़े-2 पर्वत जैसी लग रही थी।पीछे भैया भी जल्दी से बाईक खड़ी की और लगभग दौड़ते हुए पीछे-2 चलने लगे। भैया की हालत देख मेरी तो हँसी निकल रही थी पर किसी तरह खुद को रोक रखी थी। एक पेड़ के पास रुकते हुए मैं तेजी से पलटी।
ओह गॉड! भैया अपनी जीभ होंठ पर फेरते हुए लुँगी के ऊपर से लण्ड सहलाते हुए आ रहे थे। मुझ पर नजर पड़ते ही भैया हड़बड़ा कर हाथ हटा लिए। मैं भी बिना शर्म किए हल्की ही मुस्कान देते हुए बोली," भैया, अब जल्दी से आम खिलाओ।"
भैया हाँ कहते हुए एक पेड़ की तरफ बढ़े और चढ़ गए। कुछ ही दूर चढ़े थे कि तभी उनकी लुँगी हवा में लहराती हुई नीचे आ गई।ऊपर देखी तो भैया सिर्फ अंडरवियर में नीचे की तरफ देख रहे थे और उनका लण्ड तो मानो कह रहा कि ये अंडरवियर भी निकालो;मुझे घुटन हो रही है। फिर मैं जोर से हँसते हुए लुँगी उठा के पेड़ पर रखते हुए पूछी,"क्या हुआ भैया?"
"ओफ्फ। मेरी लुँगी खुल के गिर गई।"
"कोई बात नहीं भैया। वैसे यहाँ कोई नहीं आने वाला जिससे आपको शर्म आएगी। अब जल्दी से पके आम नीचे करो।" मैं मुस्काती हुई बोली। मेरी बात सुन भैया भी मुस्कुरा दिए और आम तोड़ने लग गए। जल्द ही ढेर सारी आम जमा हो गई नीचे। कुछ ही देर में भैया भी नीचे आ गए। तुरंत ही मेरी नजर भैया के लण्ड की तरफ घूम गई।
अरे! ये तो अभी भी खड़ा ही है। इतनी देर तक ध्यान बँटे रहने के बावजूद भी ठुमके लगा रहा था। फिर मैं दो पके हुए आम लिए और एक भैया को देते हुए खाने बोली। भैया भी अब शर्म नहीं कर रहे थे। आम लेते हुए वहीं पास में एक झुकी हुई टहनी के सहारे खड़े हो खाने लगे। मैं भी उनके बगल में खड़ी हो खाने लगी। आम खत्म होते ही भैया आगे बढ़े और दो आम और उठा लिए।
जैसे ही उन्होंने मुँह लगाया जोर से थू-थू करते हुए चीख पड़े। मेरी तो जोर से हँसी निकल पड़ी क्योंकि मेरी वाली खट्टे नहीं थे।
"सीता, तुम्हारे आम कितने मीठे थे और ये....." भैया मेरी तरफ देखते हुए बोले। भैया की द्विअर्थी शब्द सुन मैं कुटीली मुस्कान देते हुए बोली,"अच्छा......"
भैया मेरी इस अदा देखते हुए शायद कुछ याद करने की कोशिश करने लगे। अचानक वे बिल्कुल झेँप से गए और सिर झुका लिए। शायद उन्हें अपनी गलती का आभास हो गया था कि वे क्या बोल दिए।
तभी मैं आगे बढ़ी और भैया के काफी करीब जाकर खड़ी हो गई। फिर हाथ वाली आम अपने दोनों आम के बीचोँ बीच लाते हुए हल्के से बोली,"जब मेरे आम इतने मीठे हैं तो खाते क्यों नहीं?"
इतना सुनते ही भैया की नजरें ऊपर उठ गई और अचरज से मेरी तरफ देखने लगे। मैं मुस्कुराते हुए अपनी एक आँखें दबा दी।
तभी भैया मुझे अपनी बाँहों में जोर से भीँचते हुए जकड़ लिए। मेरी दोनों आमों के बीच ये आम भी फँस गई थी। मैं तो सिर्फ गले लगने से ही पानी छोड़ने लगी थी। तभी भैया मेरे चेहरे को पकड़ते हुए अपने गर्म होंठ मेरी होंठ पर रख दिए। मैं तो आकाश में उड़ने लग गई थी। मेरे हाथ भैया को पीछे से जकड़ ली थी। भैया भी मुझे कसते हुए होंठों का रसपान करने लगे। हम दोनों की पकड़ इतनी गहरी हो गई थी कि बीच में फँसी आम भी अपनी पानी छोड़ने लगी थी और मेरी चोली को गीली करने लगी। पर मैं बेफिक्र हो भैया के होंठ का स्वाद चख रही थी। कुछ ही पल में भैया की जीभ मेरी जीभ से टकराने लगी। मैं अब पूरी तरह से मचल रही थी।तभी भैया मुझे घुमाते हुए टहनी के सहारे झुका दिए और अपना लण्ड मेरी चूत पर टिकाते हुए ताबड़तोड़ किस करने लगे। कभी होंठ पर,कभी गाल पर,कभी गर्दन पर,कभी चुची की उभारोँ पर। इतनी तेजी से चुम्मी ले रहे थे कि कहना मुश्किल था कब कहाँ पर चूम रहे हैं।
मेरी हालत अब पस्त होने लगी थी। मेरे पाँवोँ की ताकत बिलकुल खत्म हो गई थी। मेरी सफेद चोली पीले रंग में बदल गई थी और भैया जीभ से पीलेपन दूर करने की कोशिश कर रहे थे।
अचानक मैं तेजी से उठते हुए भैया से लिपटती हुई चीख पड़ी। मेरी चूत से मानो लावा फूट पड़ी। मैं सुबकते हुए पानी छोड़ रही थी।
तभी एक और ज्वालामुखी फूटी और भैया भी "आहहहहह सीता" कहते हुए झटके खाने लगे। उनका तोप अंडरवियर में अपने अँगारेँ बरसाने लगी। हम दोनों झड़ चुके थे।
कुछ देर तक यूँ ही हम दोनों चिपके रहे। फिर भैया मेरी चूतड़ पर पकड़ बनाते हुए नीचे जमीन पर लिटा दिए। मैं अपनी आँखें बंद किए चेहरे पर मुस्कान लाते हुए लेट गई। फिर भैया भी मेरे ऊपर लेटते हुए मेरे होंठ को चूमने लगे। कुछ ही देर में मैं गर्म होने लगी थी। अचानक से भैया मेरी चोली खोलने लगे और कुछ ही देर में मेरी चुची भैया के सामने नंगी थी। गोरी-2 चुची देखते ही भैया के मुँह से लार टपकने लगी। अगले ही पल भैया अपना आपा खोते हुए अपने दाँत गड़ा दिए। मैं जोर से चीख पड़ी जिसकी गूँज बगीचे में काफी देर तक सुनाई देती रही। भैया अब एक हाथ से मेरी चुची की मसल रहे थे और दूसरी हाथ से मेरी चुची ऐंठते हुए चूसे जा रहे थे।
कुछ ही देर भैया का एक बार फिर से अपने शबाब पर था और मेरी चूत में ठोकरे लगा रहा था। जिससे मेरी चूत में छोटी नदी बहने लगी थी। मैं अब कसमसाने लगी और खुद पर नियंत्रण खोने लगी थी।
अगले ही क्षण मैं सिसकते हुए बोली,"आहहहहहह भैया, नीचे कुछ हो रही है। जल्दी कुछ करो। ओफ्फ ओह!" भैया अभी भी और तड़पाने के मूड में थे। वे नीचे की ओर चूमते हुए खिसकने लगे। जैसे ही उनकी जीभ मेरी नाभी में नाची, मैं पीठ उचकाते हुए तड़प उठी। भैया लगातार मेरी नाभी को जीभ से कुरेदने में लग गए। मेरे दोनों हाथ भैया के बालों को नोँचने लग गए थे और उन्हें हटाने की कोशिश कर रही थी। भैया भी अब पूरे रंग में आ गई थी। भैया के इस रूप को देख मैं हैरान रह गई कि सब दिन गाँव में रहने वाले सेक्स को इतने अच्छे से कैसे खेल रहे हैं।


 तभी भैया उठे और मेरे पैरों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए मेरी लहँगा को ऊपर करने लगे। कुछ ही पल में पूरी लहँगा मेरे पेट को ढँक चुकी थी और नीचे सिर्फ पेन्टी मेरी चूत की रखवाली कर रही थी। मैं इतनी देर से तो बेशर्म बन रही थी पर अब तो शर्म से मरने लगी थी और अपने हाथों से मुँह को ढँक ली थी। भैया पेन्टी के ऊपर से ही चूत पर उँगली नचाने लगे और अचानक उँगली फँसाते हुए एक जोरदार झटके दे दिए। मेरी भीँगी हुई पेन्टी चरचराती हुई कई टुकड़े में बँट गई। भैया की नजर मेरी चूत पर पड़ते ही बोल पड़े,"ओफ्फ। क्या संगमरमर सी चूत है सीता तुम्हारी। कसम से अगर पहले जानता तो मैं कब का चोद चुका रहता।" और अपने होंठ मेरी गीली चूत में भिड़ा दिए। मैं कुछ बोलना चाहती थी पर भैया के होंठ लगते ही मेरी आवाज एक आहहहह में बदल के गूँजने लगी। भैया मेरी चूत को ऐसे चुसने लगे कि मानो वो मेरी चूत नहीं, मेरी होंठ हो। मैं उल्टे हाथ से जमीन की घास नोँच नोँच के फेंकने लगी थी। अचानक मैं चिहुँक उठी। भैया मेरी चूत के दाने को अपने दाँतो से पकड़ काट रहे थे। मेरी शरीर में खून की जगह पानी दौड़ने लगी थी। मैं लगातार चीखी जा रही थी। भैया बेरहम बनते हुए मुझे तड़पाने लगे। मैं ज्यादा देर तक टिक नहीं पाई और शरीर को जमीन पर रगड़ते हुए फव्वारे छोड़ने लगी। भैया बिना मुँह हटाए मेरी चूतरस तेजी से पीने लग गए। मैं भी लगातार भैया को अपनी रस सीधे गले में उतार रही थी। कुछ ही पल में भैया सारा रस चट कर गए थे। सारा रस चुसने के बाद भी भैया मेरी चूत को छोड़ने के मूड में नहीं थे। वे अब अपनी जीभ डालकर कुरेदने लगे। मैं झड़ने के बाद थोड़ी सुस्त पड़ गई थी। पर भैया की जीभ से मैं तुरंत ही अपने रंग में रंग गई और मचलने लगी। खुरदरे जीभ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सकी। मैं तड़पते हुए भैया के बाल पकड़ते हुए बोली,"आहहहहहह भैया, अब मत तरसाओ। जल्दी कुछ करो वर्ना मैं मर जाऊंगी। ओफ्फ......"
भैया होंठ हटाते हुए मेरी तरफ देखने लगे। मैं लगभग रुआंसी सी हो गई थी। भैया भी सोचे कि लगता है कि चूल्हा अब पूरी तरह से गर्म है, अब जल्दी ही भुट्टे सेंक लेना चाहिए। वे उठे और आगे बढ़ते हुए अपना 8 इंची लण्ड मेरी होंठ से सटाते हुए बोले,"जान, अब थोड़ा इसकी भी सेवा कर दो।"
मैं तो जल्द से जल्द चुदना चाहती थी। बिना कुछ कहे मैं गप्प से लण्ड को अपने होंठों में फँसा ली। भैया के मुख से एक जोर से सिसकारि निकल गई। उनके अंडोँ को पकड़े अपने होंठ आगे पीछे करने लगी। पूरे बगीचे में अब भैया की आवाजें गूँजने लगी थी। कुछ ही देर में मेरी रसीली होंठ अपने जलवे दिखा दी। भैया तड़पते हुए मेरी बाल पकड़े और अपने लण्ड को पीछे कर लिए। मेरी एक छोटी आह निकल गई। फिर मैं अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए नशीली आँखों से देखने लगी। भैया नीचे झुकते हुए मेरी होंठों को चूमे और बोले,"अब दिलाता हूँ असली मजा।" और नीचे मेरी दोनों पैरों को ऊपर करते हुए बीच में आ गए। फिर झुकते हुए अपने लंड को मेरी चूत पर घिसने लगे। मेरी नाजुक चूत भैया के गर्म लोहे को सह नहीं पाई और पानी छोड़ने लगी। दो बार झड़ने के बाद भी मेरी वासना की तुरंत ही भड़क गई। मैं अपनी गांड़ ऊपर करती हुई लण्ड को अपने चूत में लेने की कोशिश करने लगी। अचानक ही मेरी चूत पर एक जोरदार हमले हुए। मैं जोर से चीखते हुए तड़पने लगी।
"आहह.ह.ह.ह..भैयाआआआआआआआ. मर गईईईईईईईईईईईई"
जोर मुझे अपनी मजबूत बाँहो से जकड़े थे।मैं चाह कर भी खुद को छुड़ा नहीं सकती थी। तभी मैं अपनी चूत की नजर घुमाई तो होश उड़ गई मेरी। भैया का 8 इंची लंड जड़ तक चूत में उतर चुकी थी। मेरी चूत में काफी दर्द हो रही थी।
तभी भैया मेरे कानों को चूमते हुए पूछे,"सीता,ज्यादा दर्द हो रहा है क्या?"
मैं रोनी सूरत बनाते हुए हाँ में सिर हिला दी।
"लगता है शाले श्याम 5 इंच का लंड लिए घूम रहा है। अगर पहले पता होता तो कतई नहीं तुम्हें चुदने के लिए उसके पास जाने देता।"
भैया की बातें सुनते ही मैं दर्द को भूलते जोर से हँस पड़ी। भैया को लगा कि मेरी दर्द कम हो गई है तो अपना लंड पीछे खींचते हुए धक्का लगा दिए। मैं आउच्च्च्च्च्च करते हुए उछल पड़ी।
"जानू, असली लंड से चुदने पर थोड़ा दर्द तो सहना ही पड़ेगा।" और मुस्कुरा दिए।
"भैया, उनका भी असली ही था पर आपसे थोड़ा छोटा था।"कहते हुए मैं मुस्कुराते हुए अपनी नजर घुमा दी।
"हाहाहा..अच्छा..!" कहते हुए भैया मेरी चुची मसलते हुए चुसने लगे। अपने लंड की तारीफ सुन और गर्मजोशी से चुसने लग गए थे।कुछ ही देर में मैं दर्द से मुक्त हो अपनी चूत ऊपर की तरफ धकेलने लगी। ये देखते ही भैया मुँह मेरी चुची से हटा लिए। और फिर अपना लंड खींचते हुए अंदर कर दिए और आगे पीछे करने लगे। मेरी चीख अब सेक्सी आवाजें में बदल गई थी। भैया अपने हर धक्के पर याहहहहहह करते और साथ में मैं भी आहहहहह करती हुई उनका साथ दे रही थी।
कुछ ही देर में भैया किसी मशीन के पिस्टन की तेजी से चोदने लगे। खुले में चुदने के मजे मैं पूरी तरह से ले रही थी। भैया पूरे रफ्तार से मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ा रहे थे।
कोई 15 मिनट तक लगातार पेलने के बाद भैया चीखते बोले,"आहहहह सीता! मेरी प्यारी बहन, मैं आने वाला हूँऊँऊँऊँ.. अंदर ही डाल दूँ?"
"हाँ भैयायायायाया... मैं भी आने वाली हूँ। अपना सारा पानी अंदर ही डाल दो।"मैं भी लगभग चीखते हुए बोली।
तभी भैया का पूरा शरीर अकड़ते हुए झटके खाने लगा और नीचे मैं भी अकड़ने लगी। भैया अपने लंड से अपनी बहन की गहरी चूत को नहला रहे थे। एक दूसरे को इतनी जोर से जकड़े हुए थे कि मेरी नाखून उनकी पीठ को नोँच रही थी। भैया के दाँत मेरी चुची में गड़ गई थी। काफी देर तक झटके खाने के बाद हम दोनों शांत यूँ ही एक दूसरे के शरीर पर चिपके थे। मैं मस्ती में अपनी आँखें बंद किए खो सी गई थी। फिर भैया मुझ पर से हटते हुए बगल में हाँफते हुए लुढक गए।


 कुछ देर बाद जब होश में आई तो उठ के बैठ गई और अपनी हालत देख मैं मुस्कुराने लगी। पूरी चोली आम के रस और भैया के थूक से सनी हुई थी। और लहँगा तो पूरी मिट्टी से भरी हुई थी। पास ही मेरी पेन्टी फटी पड़ी थी। इस वक्त अगर कोई देख ले उसे समझते देर नहीं लगेगी कि अभी-2 दमदार चुदाई हुई है। बगल में नजर दौड़ाई तो देखी भैया बेसुध से अभी भी पड़े हुए थे मानो लम्बी रेस दौड़ के आए हों। उनका लंड अभी भी मेरी चूत की रस से सनी हुई थी। मैं मुस्कुराते हुए फटी हुई पेन्टी उठाई और आहिस्ते से उनका लंड साफ करने लग गई। लंड पर हाथ पड़ते ही भैया आँखें खोल दिए और मुस्कुराने लगे। जवाब में मैं भी शर्मिली हँसी हँसते हुए बोली,"अब उठो भी भैया! जल्दी घर चलो वर्ना ज्यादा देर हुई तो भाभी मुफ्त में डांटेगी।"
"ऐसी माल के बदले अगर कोई 100 डंडे भी मारे तो मैं मार खाना मंजूर करूँगा मेरी रानी। मुआहहह" भैया उठ के बैठते हुए बोले।
मैं उनकी बात सुन हँसते हुए बोली,"ठीक है,ठीक है। अब बातें बनाना कम करो और जल्दी से कपड़े ठीक करो; और जल्दी चलो।" भैया हँसते हुए अपने कपड़े ठीक किए और सारे आम थैली में डाल बाईक पर लाद दिए। फिर मैं भी चुन्नी निकाल शॉल की तरह ओढ ली और बाईक पर भैया से चिपकते हुए बैठ घर की तरफ चल दी।
घर आते ही मैं तेजी से अपने रूम में गई और कपड़े लेकर बाथरुम में घुस गई। करीब 1 घंटे बाद फ्रेश हो बाथरुम से निकली तो भाभी हमें देख मंद-2 मुस्कुरा रही थी। मैं भी धीरे से मुस्कुरा कर भाभी की मुस्कान को समझने की कोशिश करते हुए अपने रूम की तरफ बढ़ गई।
रूम में आते ही फोन की याद आ गई जो कि मैं यहीं भूल गई थी। मेरे दिमाग में भाभी की हँसी बिजली की तरह कौँध गई। कहीं अंकल या पूजा कमीनी पूजा कुछ भाभी से बोल तो नहीं दी। मैं तेजी से अपने पर्स में से फोन निकली। देखी तो फोन में 15 Missed Call पूजा की थी और 1 Message अंकल की थी।
मन ही मन भगवान को थैंक्स दी कि भाभी ने फोन Recieved नहीं की थी। मैंने अंकल के संदेश को खोल के पढ़ने लगी। थैंक्स गॉड! अंकल को विधायक की टिकट मिल गई और अंकल ने उसी की बधाई संदेश भेजे थे। मुझे तो खुशी पे खुशी मिली जा रही थी। मैंने भी जल्दी से बधाई संदेश लिखी और अंकल को भेज दिए।
फिर मैं पूजा को Call Back की। फोन उठाते ही पूजा के सुंदर होंठों ने गाली की तो बारिश कर दी। मैंने हँसते हुए फोन भूल जाने की बात काफी कोशिश के बाद बता पाई, क्योंकि वो बिना कुछ सुने गाली दिए जा रही थी। फिर पूजा शांत होते हुए बोली," भाभी, आपकी बहुत याद आ रही है। जब तक बाहर रहती तो ठीक रहती है, जैसे ही घर आती हूँ तो आपकी यादें बहुत सताने लगती है।"
पूजा एक प्रेमी की तरह बोले जा रही थी। मेरी तो हँसी निकल रही थी पर सच कहूँ तो मैं भी पूजा से मिलने के लिए तड़प रही थी।
"भाभी, इस रविवार को भैया को किसी तरह आपको लाने भेजूँगी। प्लीज आप आ जाना।" पूजा अपनी छोटी सी योजना हमें समझाते हुए बोली।
मैं भी तुरंत हाँ कह दी और पूछी,"पूजा, अंकल से पार्टी मिली या नहीं। आज तो उन्हें टिकट मिल गई है।"
"अरे भाभी, जिस काम में पूजा अपनी टांगेँ अड़ा देगी, वो काम भला कौन रोक सकता। अंकल अगर पहले मेरी हेल्प लेते तो इतनी बाधा नहीं आती उन्हें।"पूजा चहकते हुए अपनी जीत का बखान करने लगी। मैं तो पूजा की बातें सुन चौंक ही पड़ी।
"मतलब......?" मैं इसे और जानने के ख्याल से सिर्फ यही पूछ सकी।
"मेरी सीता डॉर्लिँग, पहले आप पटना तो फिर सारी कहानी बताती हूँ। अभी तो बस इतनी जान लो कि कल पूरी रात अंकल के पार्टी अध्यक्ष समेत 3 मर्द मेरी धज्जियाँ उड़ाते रहे। और अगली सुबह अंकल को टिकट मिल गई।" और कहते हुए पूजा हँस दी।
"क्या...?"पूजा की संक्षेप में कही बातें सुन मेरी मुँह से सिर्फ इतनी ही निकल पड़ी। तभी पूजा तेजी से कुछ बोलती हुई फोन रख दी जो कि ठीक से सुन नहीं पाई। मैं तो पूजा की हुई 3 मर्द के साथ चुदाई में खो सी गई। कैसे छोटी सी पूजा उनका लंड अपने छोटी सी चूत में रात भर ली होगी। दिल में पूजा द्वारा की पूरी रात चुदाई की कहानी छपने लगी थी। इन्हीं लाइव चलचित्र को देखते और भैया द्वारा दी गई दर्द से कब मेरी आँख लग गई, पता नहीं।
शाम के 5 बजे मेरी आँख खुली, जब भाभी मुझे उठाई। मैं उठते हुए भाभी की तरफ देखते हुए मुस्कुरा दी। तभी भाभी बोली,"लगता है हमारी रानी सपने में अपने राजा जी के संग धूम मचा रही थी।"
मैं भाभी की मजाक से हँसते हुए बेड से नीचे उतर खड़ी हुई कि मैं आह करते हुए गिरते-2 बची। मेरी चूत में अब काफी दर्द महसूस हो रही थी। भाभी भी तुरंत ही मेरी बाँहेँ पकड़ ली।
ये कैसी चुदाई थी, मजे पहले ले लो और दर्द 4 घंटे बाद। मैं तो भैया की इस अदा की कायल हो गई और मुस्कुरा दी। तभी भाभी मेरी गालोँ पर हाथ फेरते हुए बोली,"क्या बात है? राजा जी पटना में हैं तो ये दर्द किस महाशय ने दिए।"
"भाभी,आप तो हर वक्त मजाक ही करते रहते हैं।" मैं शर्माते हुए मन में भैया को याद करते झूठ बोल दी। "मजाक मैं नहीं आप कर रही हैं। जल्दी से आप बताओगी या फिर मैं उसका नाम बोलूँ।" भाभी एक बार फिर जोर देते हुए पूछी।
"कोई नहीं भाभी। वो बगीचे में गिर गई थी जिससे चोट आ गई है।" मैं किसी तरह भाभी को मनाने की कोशिश करने लगी।
तभी भाभी बोली," सीता, हर दर्द को अच्छी तरह से पहचानती हूँ। अब सीधे से नाम बोलो वर्ना मैं बोल दूंगी।" और भाभी मुस्कुरा के देखने लगी।
मैं बार बार भाभी की ऐसी धमकी से जोश में आते हुए बोली,"अब आप जानती है उसका नाम तो जरा मैं भी तो सुन लूँ कि कौन है आपकी नजरों में जो मेरी ये हालत कर सकता है।"
भाभी अपने होंठों पर शरारती मुस्कान लाते हुए मुझसे सटते हुए कान में धीरे से बोली," इस पूरे गाँव में ऐसा दर्द मेरे पति यानी आपके भैया के सिवाय कोई नहीं दे सकता।"
मैं तो सन्न रह गई। मेरे हाथ पाँव कांपने लगे और बूत सी बनी खड़ी थी। कुछ ही पल में मेरी आँखों से आँसू छलक पड़ी।






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