Thursday, June 26, 2014

FUN-MAZA-MASTI सीता --एक गाँव की लड़की--9

FUN-MAZA-MASTI

 सीता --एक गाँव की लड़की--9

भाभी मुझे रोते देख अपने सीने से चिपकाती हुई बोली,"सीता, मेरी जगह तुम क्यों रो रही हो। रोना तो मुझे चाहिए था कि मेरे पति बाहर भी मुँह मारते फिरते हैं। चलो चुप हो जाओ।"
भाभी की प्यार और दर्द भरी बातें सुन मैंने सुबकते हुए बोली,"सॉरी भाभी, हमसे गलती हो गई। आप नाराज मत होना। पता नहीं कैसे मैं बहक गई। प्लीज आज माफ कर दो, आगे से कभी सोचूँगी भी नहीं।" मैं खुद को काफी गिरी हुई समझने लगी थी। काफी अफसोस हो रही थी कि ऐसी गंदी हरकत क्यों की मैंने। अपने ही परिवार में सेंध लगा बैठी। ऐसे में एक हँसता हुए जिंदगी पल भर में तबाह हो सकती है।
"अरे पगली, मैं नाराज कहाँ हूँ। हाँ नाराज जरूर होती अगर तुम्हारी जगह कोई और होती। मैं अपने प्यारी सी ननद को एक खुशी भी नहीं दे सकती क्या?"
भाभी की बात सुनते ही मैं सीधी होती एकटक भाभी को निहारे जा रही थी। पता नहीं क्यों, भाभी के चेहरे में मुझे भगवान दिखने लगी थी। भाभी अपनी तरफ मेरी नजर देख बोली,"अब क्या हुआ? कसम से कह रही हूँ मैं तनिक भी नाराज नहीं हूँ।"
भाभी की बात सुनते ही मैं एक बार फिर ठुनकती हुई उनके सीने पर सिर रख दी। भाभी जोरों से हँस पड़ी और बोली,"अब नाटक बंद करो और चलो गर्म पानी रखी है बाथरुम में। जल्दी से नहा लो,दर्द कम हो जाएगा।"
ओफ्फ!एक और वार... जब आई थी तो मैं ठीक ही थी; फिर भाभी को कैसे पता मैं चुद के आई हूँ। और भाभी पहले से गर्म पानी कर रखी है। मैं पुनः गहरी सोच में पड़ गई। तभी भाभी मेरी हालत देख मुस्करा दी और बोली,"ज्यादा मत सोचो सीता। जब तुम लोग बगीचे से आई थी, तब मैं सच में तुम्हें देखी भी नहीं थी। लेकिन तुम्हारे भैया मुझसे इस तरह की कोई भी बात नहीं छिपाते। समझी! चलो अब।" और भाभी मुझे खींचते हुए बाथरुम की तरफ चल पड़ी। मेरे कदम तो मानो जमीन से जुड़ गई थी। भाभी को निहारते हुए जबरदस्ती आगे बढ़ी जा रही थी।
बाथरुम में ले जाकर भाभी जल्दी फ्रेश हो निकलने कह बाहर निकल गई। मैं बूत सी बनी यूँ ही करीब आधे घंटे तक बैठी रही। इन आधे घंटे में ना जाने कितने सवाल खुद से पूछ चुकी थी, याद नहीं।
तभी भाभी की आवाज फिर सुनाई दी तो मैं ख्वाबोँ से जगी और जल्दी से आती हूँ कह फ्रेश होने लगी।
फ्रेश होने के बाद देखी भाभी किचन के काम में लग गई थी। मैं भी भाभी के साथ उनके काम में हाथ बँटाने लगी। तभी बाहर बाईक की आवाज आई,शायद भैया आ गए थे। आते ही भैया मुझसे बोले,"सीता, तुम फोन रिसीव क्यों नहीं करती। मेहमान कितनी देर से तुम्हें ट्राई कर रहे हैं।" ओफ्फ ! मैं आज बार- फोन ही भूल जाती हूँ। मैं तेजी से निकल अपने रूम फोन लेने के निकल पड़ी।
गई छूटी कॉलेँ थी श्याम की, मैंने तुरंत ही कॉल-बैक की। फोन रिसीव करते ही श्याम बोल पड़े,"मैं परसों आ रहा हूँ तुम्हें लेने,तैयार रहना। भैया जी को भी बोल दिया हूँ।"
मैं मन ही मन काफी दुःखी हुई क्योंकि अभी तो भैया के साथ ठीक से मजे भी ले नहीं पाई थी। मैं मना तो नहीं कर सकती पर बुझे मन से पूछी,"इतनी जल्दी...?"
"हाँ डॉर्लिँग, अकेले अब रहना बिल्कुल कठिन लग रहा है। और पूजा भी जिद कर रही है कि भाभी को जल्दी लाओ वर्ना मैं भी गाँव चली जाऊंगी। सो प्लीज..." श्याम एक ही सुर में कह डाले।
मैं पूजा का नाम सुनते ही खिल सी गई। फिर मैं भी तुरंत सोच ली कि इन 2 दिन में ही भैया से थोड़ी ही सही मजे ले लुँगी, आगे अगली बार देखी जाएगी। और फिर श्याम को "ठीक है।"कह कुछ प्यार भरी बातें की और फोन रख दी।
रात के करीब 9 बज रहे थे। भैया खाना खा चुके थे। मैं और भाभी भी साथ में खाना खाई। फिर मैं अपने रूम की तरफ बढ़ी थी कि पीछे से भाभी हाथ पकड़ते हुए रोक ली। मैं रुकते हुए भाभी की तरफ नजरों से ही क्यों पूछ बैठी। भाभी बोली,"सीता, मैं तो चाहती थी कि आज रात तुम दोनों एक साथ सो जाओ क्योंकि परसों तुम चली जाएगी। लेकिन अगर मैं ऐसा की तो तुम अगली 3 दिन तक चल भी नहीं पाएगी। सो प्लीज बुरा मत मानना।"
मैं चुपचाप भाभी की बात सुन रही थी। आगे भाभी बोली,"मैं नहीं चाहती कि मेरी प्यारी ननद किसी परेशानी में पड़े। पर हाँ, कल रात मैं नहीं छोड़ने वाली क्योंकि आपके भैया कल सुबह मार्केट से दवा लाने जाएँगे जिससे चुदने के बाद 24 घंटे तक तेज दर्द नहीं होती। मैं भी पहले वो दवा खाती थी, पर अब जरूरत नहीं पड़ती।"
भाभी की पूरी बात सुनते ही मैं मुस्कुराती हुई हाँ में सिर हिला दी।
"ठीक है अब जाओ आराम करो। कल अपने भैया का असली रूप देख लेना कि कैसे और किस तरह बेरहमी से करते हैं।" कहती हुई भाभी हँस पड़ी। मैं भी शर्मा के मुस्कुरा दी और वापस अपने रूम की तरफ चल दी। तभी पता नहीं मुझे क्या सुझी। मैं पीछे से बोली,"भाभी, आज पूरी मत खाना। मेरे वास्ते कल के लिए थोड़ी सी छोड़ देना।"
भाभी सुनते ही हँसती हुई "ठीक है।"कहती हुई चली गई।
रूम में आते ही मैंने अपने सारे कपड़े खोल फेंक पूरी नंगी हो गई। भाभी के मुख से अपने और भैया के बारे में बातें सुन के ही मैं गर्म हो गई थी। मैं बेड पर लेट गई। मैं हाथों से मस्ती में चुची मसलने लगी। मस्ती जब चढ़ने लगी तो मैं अपनी हाथ नीचे ले जाकर चूत पर ज्यों ही रखी, मैं दर्द से चीखते-2 बची। ओफ्फ! अभी भी इतनी तेज दर्द। कैसे शांत करूँ अब इसे। भाभी सच ही कहती थी अगर आज मैं और चुदती तो 3 नहीं 6 दिन तक बेड पर ही पड़ी रहती मैं। फिर तेजी से दिमाग चलाती जल्द ही उपाय खोज ली। श्रृंगार-बॉक्स से ठंडी क्रीम निकाली और पूरी उँगली पर लेप ली। ठंडक की वजह से कुछ तो दर्द कम महसूस होगी। और फिर बेड पर लेट चूत पर उँगली चला कर झड़ने की कोशिश करने लगी। मैं दर्द से कुलबुला रही थी पर किसी तरह उँगली चलाती रही ताकि झड़ सकूँ।
करीब 10 मिनट तक करने के बाद मैं अकड़ने लगी और अगले ही क्षण मेरी चूत पानी छोड़ने लगी। झड़ते हुए मुझे इतनी सुकून मिली कि मैं तुरंत ही नींद के आगोश में चली गई और नंगी ही सो गई।

अगली सुबह मेरी नींद देर से खुली। अंग-अंग टूट रही थी। कल वाली चुदाई की खुमारी अब जा के दूर हुई थी। तभी नजर मेरी नंगी शरीर पर पड़ी पतली सी सफेद चादर पर गई। ओह गॉड! पूरी रात मैं नंगी ही सो रही थी। फिर दिमाग पर जोर देते हुए रात का वाक्या याद करने लगी। रात में झड़ने के बाद तो नंगी ही सो गई थी फिर ये चादर किसने डाल दी। जरूर भाभी आई होगी जगाने। फिर मुझे नंगी ही गहरी नींद में सोती देख चादर डाल दी होगी। मेरे होंठ पर अनायास ही मुस्कान की तरंगेँ रेँगने लगी और मेरी आँखें चादर को देखने लगी।
एक दम पतली सी सूती कपड़ों की थी जिसमें आसानी से आर-पार देखी जा सकती थी। नरम होने के कारण मेरी शरीर से इतनी चिपकी थी कि मानो वो चादर नहीं मेरी त्वचा ही है। मेरी शरीर की हर एक ढाँचा उभर कर दिखाई दे रही थी। मैं अपनी ही शरीर की बनावट देख खो सी गई। कुछ देर बाद मैं उठी और फ्रेश होने के लिए कपड़े ढूँढने लगी। अचानक मेरी शैतानी जाग गई और मन ही मन मुस्काती हुई उसी चादर को ओढते हुए बाथरुम की तरफ चल दी। चादर मेरी जांघ तक ही पहुँच पा रही थी। और जांघ तक ढँकी भी थी तो बस नाम की। मेरी हर अमानत चादर के बाहर बिल्कुल साफ-2 दिखाई पड़ रही थी।
मैं अपने पायल और चूड़ी खनकाती हुई मटक-2 के जा रही थी। अचानक मेरी नजर आँगन के दूसरी तरफ भैया पर नजर गई। भैया नाश्ता कर रहे थे,उनकी नजर मुझ पर पड़ते ही कौर के लिए खोली गई मुँह,खुली ही रह गई। हालाँकि भैया मेरी चूत बजा चुके थे,लेकिन मर्द अगर अपनी पत्नी को ही नए रूप में देख ले तो उसका अंग अंग वासना से तुरंत ही भर जाता है; वैसी ही हालत भैया की इस वक्त थी। मैं तिरछी नजरों से देखते हुए मंद-मंद मुस्कुराती चलती हुई बाथरुम में घुस गई। अंदर मैं इत्मिनान से फ्रेश हुई और अच्छी तरह रगड़ रगड़ कर साथ ही नहा ली।चूत की दर्द अब नहीं के बराबर थी। नहाने के बाद मैं भैया को फिर तड़पाने के ख्याल से मुस्कुराती हुई चादर चुची के उभारोँ पर बाँध ली। चादर शरीर पर पड़ते ही पूरी गीली हो गई। बाहर निकलते ही मैं भैया की तरफ नजर दौड़ाई। ओह , मेरी मंशा पर पूरी तरह पानी फिर गई। ज्यादा देर लगा दी मैंने जिससे भैया मार्केट निकल चुके थे। मन मसोस कर मैं अपने रूम की तरफ बढ़ने लगी। तभी किचन से भाभी की आवाज आई,"सीता, पहले चाय पी लो।बाद में कपड़े पहनना।"
मैं गेट के पास ठिठक के रुक गई। फिर होंठों पर हल्की मुस्कान लाते हुए मुड़ते हुए किचन में आ गई। भाभी मुस्कुराते हुए चाय मेरी तरफ बढ़ा दी।

मैं कप ले चाय पीने लगी। तभी भाभी बोली,"ऐसे तो और भी सुंदर लग रही हो।"
मैं मुस्कुरा के भाभी को थैंक्स बोली। फिर भाभी हँसती हुई बोली,"पता है तुम्हें देखते ही उनका लंड तन के कुतुबमीनार बन गई थी।" मैं भी हँस पड़ी और पूछी,"मार्केट चले गए क्या?"
"हाँ, और जल्द ही आने की कोशिश करेंगे। वैसे एक बार तो चुस के शांत कर दी पर वो तुम्हें याद कर तुरंत ही फिर खड़ा हो गया और उन्हें अपने खड़े लंड में ही जाना पड़ा।" भाभी कहते-2 जोर से हँस दी। मैं भी उनके साथ हँस पड़ी।
"चाय कैसी बनी आज?"भाभी पूछी।
मैं भाभी के ऐसे प्रश्न सुन भौँहेँ सिकुराती हुई बोली,"अच्छी तो है। आपसे कभी किचन में गलती हुई है जो आज पूछ रही हैं।"
"आज चाय में कुछ Extra चीजें डाल दी इसीलिए पूछी।" भाभी होंठों पर कुटील मुस्कान लाती हुई बोली।
मैं एक फिर एक घूँट पी स्वाद मालूम करने की कोशिश की पर नाकाम रही। फिर अपनी भौँहेँ उचका के पूछी,"क्या डाली हो?"
भाभी हँसते हुए बोली,"आज चाय में दूध-शक्कर के साथ उनके लंड का पानी मिलाई हूँ।"और खिलखिला के हँस दी। मैं तो गुस्से से कांप रही थी। फिर बेसिन की तरफ बढ़ते हुए बोली,"रण्डी कहीं की। तुझे और कुछ नहीं सूझती क्या?"
तभी भाभी मुझे पीछे से पकड़ती हुई बोली,"प्लीज सीता, फेंकना मत। मेरी गला अभी भी दर्द कर रही है। इतनी बेरहमी से डाले थे कि पूछो मत। मेरी इस दर्द को यूँ ही बेकार मत करो प्लीज।"
भाभी की याचना करती देख मैं ढीली पड़ गई और सारा गुस्सा रफ्फूचक्कर हो गई। फिर अपने होंठों पर मुस्कान लाई और पलटते हुए बोली,"ऐसी हरकत फिर कभी मत करना वर्ना मैं आपसे कभी नहीं बोलूँगी।"
भाभी हाँ कहती हुई मेरी उभारोँ को चूमते हुए थैंक्स बोल मेरी हाथ की कप को मेरे होंठों से लगा दी। मैं उनकी आँखों में झाँकती लंड के पानी वाली चाय पीने लगी। अब मैं चाय पीते हुए गर्म होने लगी थी। आखिर क्यों नहीं होती; अपने सगे भैया के लंड पानी की चाय भाभी जो पिला रही थी। मैं चाय खत्म की और भाभी को थैंक्स बोल अपने रूम में आ गई।
मैं कपड़े पहनी और भाभी को फ्रेश होने कह बाकी के बचे काम को निपटाने लगी। काम खत्म करने के बाद हम दोनों खाना खा आराम करने चली गई।
दोपहर के 3 बजे करीब मैं और भाभी साथ बैठी इधर-उधर की बातें कर रही थी कि तभी भाभी की फोन बजी। भाभी बात करने लगी। मैं ध्यान से सुन उनकी बातें सुनने लगी। कुछ ही पल में भाभी काफी मायूस सी हो गई। मैं भी कुछ परेशान हो गई भाभी को देख। फिर भाभी फोन रखते हुए बोली,"सीता, आज वो नहीं आएंगें!"
अब मायूस होने की बारी मेरी थी। मेरे सपने टूट कर बिखर रहे थे। कितनी चीजें सोच के रखी थी आज रात के लिए। फिर एक शब्दों में क्यों पूछी।
"वो मामाजी का देहांत हो गया है। वो घर आ रहे थे कि रास्ते में उन्हें फोन आया तो वहीं से लौटना पड़ गया। अब कल शाम तक आएंगें।"
भाभी की बात खत्म होते मैं गुस्से से मन ही मन खूब गाली देने लगी। जो व्यक्ति दुनिया छोड़ चले जाते हैं उन्हें अपशब्द कहना नहीं चाहिए, पर ये चीज मेरी चूत नहीं समझ रही थी तो मैं क्या करती। मैं बिल्कुल ही उदास हो गई थी। भाभी मेरे कंधों पर हाथ रख बोली,"कोई बात नहीं सीता। उदास मत हो अगली बार हम दोनों की ये इच्छा जरूर पूरी होगी।"
ये तो मैं भी जानती थी पर अगली बार मैं कब आऊंगी,खुद नहीं जानती थी। किसी तरह हम दोनों ने शाम में किचन का काम खत्म कर खाना खा सोने चली गई।


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