FUN-MAZA-MASTI
थूक लगा-लगा कर --1
मुम्बई के जुहू बीच पर बना एक खूबसूरत बंगला,
रात के लगभग डेढ़ बजे का वक्त,
बंगले के चारों तरफ 6 फिट ऊँची बाऊन्ड्री-वॉल.
और इसी बाऊन्ड्री-वॉल के पास,
"चलें...."-एक फुसफुसाती आवाज।
"पहले बीड़ी तो खत्म होने दे...."-दूसरी मध्यम आवाज।
लगभग एक मिनट बाद,
"चल...."
दोनों ने पारदर्शी मास्क पहना और बाऊन्ड्री-वॉल के ऊपर चढ़ गये।
"कूदूं....."
"हर चीज पूछ कर करेगा क्या....कूद.."
'धप्प्'
'धप्प्'
दोनों लॉन के किनारे ऊँगी झाड़ियों में उलझे पड़े थे।
"तेरी माँ का चोदू साले ......तुझे यही जगह मिली थी कूदने के लिये!"
"गलती हो गई भाई.....दिन में तो निशान लगया था लेकिन बारिस की वजह से....."
"चुपकर....."
दोनों जैसे-तैसे झड़ियों से आजाद हुये।
लॉन में ऊगी घासों को कुचलते हुये वो बंगले के ठीक पीछे पहुँचे।
"वो रस्सी कहाँ है?"
"सुबह तो इधर ही झूल रही थी...."
"साले.....तो क्या तेरी बहन के भोषड़े में घुस गई....."
"लगता है बंगला रंगने वाले ले गये...."
"अब क्या तेरी झाँट पकड़ कर ऊपर चढ़ू....कुछ सोच...."
दोनों के बीच एक पल मौन पसरा रहा।
"वाटर पाईप से भी तो ....."
"सोचता है, पर देर से.....थोड़ा जल्दी सोचना सीख....."
स्ट्रीट लाइट की रोशनी में वो दोनों साये जैसे नजर आ रहे थे।
"पहले मैं जाता हूँ...."
"तो जा....."
लगभग पाँच मिनट बाद दोनों छत पर थे।
"दरवाजा किधर है?...."
"उस तरफ...."
उसने ऊँगली से इशारा किया।
दोनों दरवाजे के पास पहुच कर ठिठके।
"टार्च जला...."
'टिक्क्'
रोशनी चमकी।
"भोषड़ी के.....चेहरे पर नहीं, लॉक पर..."
टॉर्च का फोकस दरवाजे के लॉक पर जाकर ठिठका।
एक चमकीला तार दरवाजे के लॉक में दाखिल हुआ।
'किर्र....कर्र...कट्ट्....'
दो मिनट पश्चात्,
"खुल गया....टॉर्च बुझा...."
पुनः अँधेरा व्याप्त हो गया।
स्ट्रीट लाइट की रोशनी यहाँ भी हल्की मात्रा में बिखरी हुई थी।
"दरवाजा बंद कर दूँ?...."
"भूतनी के....हगने के बाद गाँड़ धोते हैं.....हाथ नहीं...दरवाजा खुला रहने दे...भागने में आसानी होगी।"
दोनों सीढ़ियों से दबे पाँव नीचे उतरने लगे।
थोड़ी देर बाद दोनों एक मध्यिम सी रोशनी से भरे गलियारे में थे।
"तिजोरी किधर है?"
"आगे से दाँयें.... "
कुछ क्षणोंपरान्त वो एक दरवाजे के पास पहुँच कर ठिठके।
"यही है...."
एक बार फिर लॉक में वही चमचमाती तार प्रवीष्ट हुई।
'टिक्क्....'
"खुल गया....."-बेहद फुसफुसाती आवाज।
दरवाजे को खोलकर दोनों भीतर दाखिल हुये।
अंदर पूरी तरह धुप्प् अँधेरा था।
"अबे......टॉर्च तो जला"
'टिक्क्'
कमरे में रोशनी का एक गोला उभरा।
"तिजोरी किधर है?"
रोशनी का गोला कमरे की दिवालों पर भटकने लगा।
एकाएक,
"ये है...."
हल्की पगचापों की आवाज के साथ वो तिजोरी तक पहुँचे।
"बैग खोल और सारे औजार निकाल...."
'किर्रSSSSSSS'
चैन खुलने की आवाज।
'किट्ट्...पट्ट्....धप्प्....धु प्प्.......'
कमरे में कुछ देर तक इसी तरह की आवाजें गूँजती रहीं।
अगले पन्द्रह मिनटों में दो काम हुये,
पहला- तिजोरी को खोला गया,
दूसरा- तिजोरी में जो कुछ भी था, उसे बैग के हवाले किया गया।
पन्द्रह मिनट गुजरने के ठीक बाद,
"काफी माल है....अब तो ऐश ही ऐश...."
"पहले यहाँ से निकल....."
दोनों ने दरवाजा बंद किया और गलियारे में आ गये।
गलियारे से गुजारते हुये एक खिड़की के पास, दोनों के पाँव जहाँ के तहाँ थम गये।
कारण?
पुरूषों के शरीर की सबसे बड़ी भूख और कमजोरी,
लड़की।
"क्या माल है?....."
कमरे के भीतर बेड पर कोई सो रही थी।
"एकदम हिरोईन..."
"कितनी गोरी है साली.....चाटने लायक..."
"चड्ढी दिख रही है......."
"ये बड़े घर की लड़कियाँ गड़कटी कच्छी क्यों पहनती हैं बे.....देख के दिमाग की माँ-बहन एक हो जाती है..."
"इसकी गाँड़ कितनी चिकनी और मोटी है......ऐसा माल हमारी किस्मत में क्यों नहीं हैं......बस एक बार मिल जाये..."
"अबे, इसके सामने तो अपने मुहल्ले की सारी आइटम फेल हैं......बस एक बार इसकी चूत मारने को मिल जाय.....थूक लगा-लगा कर चोदूंगा....तब तक जब तक इसकी बुर भोषड़ी न बन जाय...."
"तो क्या कहते हो भाई?....चले...."
"कहाँ?..."
"बुर चोदने...."
"अगर चिल्लाई तो....."
"इसकी जो गड़कटी चड्ढी दिख रही है न उसे इसके मुँह में घुसेड़ देंगे....साली की बोलती अपने आप बंद हो जायेगी...."
"तो चल....."
दोनों ने दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन भीतर से बंद था।
एक ने बैग से तार निकला और लॉक के साथ माथापच्ची करने लगा।
'क्लिक्'
लॉक खुल गया।
दरवाजे को धीरे से खोलकर दोनों भीतर दाखिल हुये।
अंदर एक नाइट लैंम्प जल रहा था।
बिस्तर पर परी जैसी लड़की सपनों की दुनिया में विचर रही थी।
पैसों से भरा बैग एक कोने में रखा गया।
फिर...
"अब...?"
एक की फुसफुसाती आवाज।
"साली कितनी चिकनी है.....एक बार हाँ करे तो अभी बीवी बना लूं...."
"ख्वाब मत देख......ऐसी लड़कियों के नखरे बहुत होते हैं....बुर चोद और निकल चल...."
"आपकी बात ठीक है भाई ......"
फिर जो भी हुआ बहुत तेजी से हुआ।
एक ने लड़की का मुँह दबोच लिया और दूसरे ने उसका पैर।
लड़की हड़बड़ा कर उठी।
लेकिन जब तक वह सभल पाती तब तक पैर पकड़ने वाला उसके कोमल शरीर पर पहाड़ की तरह पसर गया था।
"हाथ हटा...."
सिरहाने बैठे चोर ने लड़की के मुँह से अपना हाथ हटाया।
ठीक उसी वक्त-
'चप्प्.....'
ऊपर लदे चोर ने लड़की के गुलाब से भी ज्यादा नाजुक होंठों को अपने खुरदुरे होठों के बीच दबोच लिया और बुरी तरह उसके होठों को पीने लगा।
"कस के चूसो भाई साली को......खून निकल दो.....रगड़-रगड़ के मजा लेना है इस चिकनी से......"- सिरहाने बैठा चोर कामुकता से मिसमिसाया।
लड़की गूं-गूं करती रही।
अपने होठों को आजाद करने की भरसक कोशिश की।
लेकिन कामयाबी जब तक मिलती तब तक उसके होठों के साथ बलात्कार हो चुका था।
होठों पर उस चोर का ढेर सारा थूक लग गया था।
मानों लड़की का होठ कभी चूसने को नसीब ही न हुआ हो।
ऐसे चाटा था जैसे मुर्गी की भुनी हुई तंदूरी टाँग भभोड़ी हो।
"यू बास्टर्डस्.....छोड़ दो मुझे......वरना मैं शोर मचा दूंगी...."
"साली शोर मचायेगी न तो तेरी चिकनी बुर को पूरी रात चोद-चोद कर भोषड़ा बना दूंगा......किसी के काबिल नहीं बचेगी.......कोई शादी भी नहीं करेगा तेरी फटी बुर देखकर......."
ये सुनकर लड़की डर गई।
उसका टोन तुरन्त बदला।
"प्लीज मुझे छोड़ दो....खराब मत करो......प्लीज...."
"हाय मेरी चिकनी मुर्गी.......मुझे कोई करोड़ भी दे तब भी तेरी चूत का मजा लिये बिना यहाँ से हीलने वाला नही हूँ....मेरी बात ध्यान से सुन.....बुर तो तेरी चुदकर ही रहेगी.....अब ये तेरे ऊपर है कि तू प्यार से चुदना चाहती है या जबरजस्ती....."
"प्लीज तुम लोगों को जो पैसा चाहिये वो ले लो लेकिन मुझे छोड़ दो............"
उसकी बात सुनकर दोनों चोरों की नजरें आपस में मिली।
कुछ मूक इशारा हुआ फिर वो लड़की से बोला-
"हमें जो लेना था वो तो ले ही चुके हैं.......अब तेरी लेनी हैं.....चल तेरे सामने दो रास्ते हैं...पहला- सिर्फ मैं तेरी बुर चोदूंगा वो भी थुक लगा के या हम दोनों मिलकर तेरी बुर और गाँड़ चोदेंगे, वो भी तुझे रण्डी बनाके......बोल कौन सा रास्ता पसंद है?.....सिर्फ बुर देगी या बुर और गाँड़ दोनों........ जल्दी बोल नहीं तो चोदना शुरू कर दूंगा.....बरदास्त के बाहर हो रहा है......"
लड़की बड़ी असमंजस की अवस्था में फंस चुकी थी।
"मैं तुम लोगों का हाथ से कर दूंगी.... लेकिन प्लीज मुझे खराब मत कीजिये......मेरी शादी तय हो चुकी है.......मेरी लाइफ बरबाद हो जायेगी....प्लीज..."
दोनों चोरों की नजर एक बार फिर मिली।
"चल ठीक है......मैं तेरी लाइफ नहीं बरबाद करूंगा लेकिन तेरी लूंगा जरूर....."
लड़की को हैरानी हुई-
"मतलब...."
"तेरी गाँड़ मारूंगा......थुक लगा के.....बोल देगी....तेरे पति को पता भी नहीं चलेगा और हमारा काम भी हो जायेगा......अब जल्दी बोल....वरना तेरी बुर और गाँड़ दोनों चोद-चोद कर फाड़ देगें......."
लड़की को ये विकल्प कुछ ठीक लगा।
"ठीक है लेकिन सिर्फ........."
"जल्दी बोल......"
"सिर्फ आपसे......."
"चल मानी तेरी बात......."-फिर वो सरहाने बैठे चोर से बोला-"....तू बाहर जा.....मैं इसकी लेकर आता हूं....."
चोर को कोई ऐतराज नहीं हुआ।
"....कस के लेना भाई.....चपक के पेलना....बहुत चिकनी और मोटी गांड़ है......बार-बार ऐसा माल नहीं मिलेगा.....इतनी कस के हुमकना की साली बेड से उठ ही न पाये....."
वो चोर दरवाजे के बाहर आ तो गया लेकिन दरवाजा बंद करके उसकी झिर्री से भीतर का नजारा देखने से खुद को रोक नहीं पाया।
शेष अगले भाग में......
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थूक लगा-लगा कर --1
मुम्बई के जुहू बीच पर बना एक खूबसूरत बंगला,
रात के लगभग डेढ़ बजे का वक्त,
बंगले के चारों तरफ 6 फिट ऊँची बाऊन्ड्री-वॉल.
और इसी बाऊन्ड्री-वॉल के पास,
"चलें...."-एक फुसफुसाती आवाज।
"पहले बीड़ी तो खत्म होने दे...."-दूसरी मध्यम आवाज।
लगभग एक मिनट बाद,
"चल...."
दोनों ने पारदर्शी मास्क पहना और बाऊन्ड्री-वॉल के ऊपर चढ़ गये।
"कूदूं....."
"हर चीज पूछ कर करेगा क्या....कूद.."
'धप्प्'
'धप्प्'
दोनों लॉन के किनारे ऊँगी झाड़ियों में उलझे पड़े थे।
"तेरी माँ का चोदू साले ......तुझे यही जगह मिली थी कूदने के लिये!"
"गलती हो गई भाई.....दिन में तो निशान लगया था लेकिन बारिस की वजह से....."
"चुपकर....."
दोनों जैसे-तैसे झड़ियों से आजाद हुये।
लॉन में ऊगी घासों को कुचलते हुये वो बंगले के ठीक पीछे पहुँचे।
"वो रस्सी कहाँ है?"
"सुबह तो इधर ही झूल रही थी...."
"साले.....तो क्या तेरी बहन के भोषड़े में घुस गई....."
"लगता है बंगला रंगने वाले ले गये...."
"अब क्या तेरी झाँट पकड़ कर ऊपर चढ़ू....कुछ सोच...."
दोनों के बीच एक पल मौन पसरा रहा।
"वाटर पाईप से भी तो ....."
"सोचता है, पर देर से.....थोड़ा जल्दी सोचना सीख....."
स्ट्रीट लाइट की रोशनी में वो दोनों साये जैसे नजर आ रहे थे।
"पहले मैं जाता हूँ...."
"तो जा....."
लगभग पाँच मिनट बाद दोनों छत पर थे।
"दरवाजा किधर है?...."
"उस तरफ...."
उसने ऊँगली से इशारा किया।
दोनों दरवाजे के पास पहुच कर ठिठके।
"टार्च जला...."
'टिक्क्'
रोशनी चमकी।
"भोषड़ी के.....चेहरे पर नहीं, लॉक पर..."
टॉर्च का फोकस दरवाजे के लॉक पर जाकर ठिठका।
एक चमकीला तार दरवाजे के लॉक में दाखिल हुआ।
'किर्र....कर्र...कट्ट्....'
दो मिनट पश्चात्,
"खुल गया....टॉर्च बुझा...."
पुनः अँधेरा व्याप्त हो गया।
स्ट्रीट लाइट की रोशनी यहाँ भी हल्की मात्रा में बिखरी हुई थी।
"दरवाजा बंद कर दूँ?...."
"भूतनी के....हगने के बाद गाँड़ धोते हैं.....हाथ नहीं...दरवाजा खुला रहने दे...भागने में आसानी होगी।"
दोनों सीढ़ियों से दबे पाँव नीचे उतरने लगे।
थोड़ी देर बाद दोनों एक मध्यिम सी रोशनी से भरे गलियारे में थे।
"तिजोरी किधर है?"
"आगे से दाँयें.... "
कुछ क्षणोंपरान्त वो एक दरवाजे के पास पहुँच कर ठिठके।
"यही है...."
एक बार फिर लॉक में वही चमचमाती तार प्रवीष्ट हुई।
'टिक्क्....'
"खुल गया....."-बेहद फुसफुसाती आवाज।
दरवाजे को खोलकर दोनों भीतर दाखिल हुये।
अंदर पूरी तरह धुप्प् अँधेरा था।
"अबे......टॉर्च तो जला"
'टिक्क्'
कमरे में रोशनी का एक गोला उभरा।
"तिजोरी किधर है?"
रोशनी का गोला कमरे की दिवालों पर भटकने लगा।
एकाएक,
"ये है...."
हल्की पगचापों की आवाज के साथ वो तिजोरी तक पहुँचे।
"बैग खोल और सारे औजार निकाल...."
'किर्रSSSSSSS'
चैन खुलने की आवाज।
'किट्ट्...पट्ट्....धप्प्....धु
कमरे में कुछ देर तक इसी तरह की आवाजें गूँजती रहीं।
अगले पन्द्रह मिनटों में दो काम हुये,
पहला- तिजोरी को खोला गया,
दूसरा- तिजोरी में जो कुछ भी था, उसे बैग के हवाले किया गया।
पन्द्रह मिनट गुजरने के ठीक बाद,
"काफी माल है....अब तो ऐश ही ऐश...."
"पहले यहाँ से निकल....."
दोनों ने दरवाजा बंद किया और गलियारे में आ गये।
गलियारे से गुजारते हुये एक खिड़की के पास, दोनों के पाँव जहाँ के तहाँ थम गये।
कारण?
पुरूषों के शरीर की सबसे बड़ी भूख और कमजोरी,
लड़की।
"क्या माल है?....."
कमरे के भीतर बेड पर कोई सो रही थी।
"एकदम हिरोईन..."
"कितनी गोरी है साली.....चाटने लायक..."
"चड्ढी दिख रही है......."
"ये बड़े घर की लड़कियाँ गड़कटी कच्छी क्यों पहनती हैं बे.....देख के दिमाग की माँ-बहन एक हो जाती है..."
"इसकी गाँड़ कितनी चिकनी और मोटी है......ऐसा माल हमारी किस्मत में क्यों नहीं हैं......बस एक बार मिल जाये..."
"अबे, इसके सामने तो अपने मुहल्ले की सारी आइटम फेल हैं......बस एक बार इसकी चूत मारने को मिल जाय.....थूक लगा-लगा कर चोदूंगा....तब तक जब तक इसकी बुर भोषड़ी न बन जाय...."
"तो क्या कहते हो भाई?....चले...."
"कहाँ?..."
"बुर चोदने...."
"अगर चिल्लाई तो....."
"इसकी जो गड़कटी चड्ढी दिख रही है न उसे इसके मुँह में घुसेड़ देंगे....साली की बोलती अपने आप बंद हो जायेगी...."
"तो चल....."
दोनों ने दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन भीतर से बंद था।
एक ने बैग से तार निकला और लॉक के साथ माथापच्ची करने लगा।
'क्लिक्'
लॉक खुल गया।
दरवाजे को धीरे से खोलकर दोनों भीतर दाखिल हुये।
अंदर एक नाइट लैंम्प जल रहा था।
बिस्तर पर परी जैसी लड़की सपनों की दुनिया में विचर रही थी।
पैसों से भरा बैग एक कोने में रखा गया।
फिर...
"अब...?"
एक की फुसफुसाती आवाज।
"साली कितनी चिकनी है.....एक बार हाँ करे तो अभी बीवी बना लूं...."
"ख्वाब मत देख......ऐसी लड़कियों के नखरे बहुत होते हैं....बुर चोद और निकल चल...."
"आपकी बात ठीक है भाई ......"
फिर जो भी हुआ बहुत तेजी से हुआ।
एक ने लड़की का मुँह दबोच लिया और दूसरे ने उसका पैर।
लड़की हड़बड़ा कर उठी।
लेकिन जब तक वह सभल पाती तब तक पैर पकड़ने वाला उसके कोमल शरीर पर पहाड़ की तरह पसर गया था।
"हाथ हटा...."
सिरहाने बैठे चोर ने लड़की के मुँह से अपना हाथ हटाया।
ठीक उसी वक्त-
'चप्प्.....'
ऊपर लदे चोर ने लड़की के गुलाब से भी ज्यादा नाजुक होंठों को अपने खुरदुरे होठों के बीच दबोच लिया और बुरी तरह उसके होठों को पीने लगा।
"कस के चूसो भाई साली को......खून निकल दो.....रगड़-रगड़ के मजा लेना है इस चिकनी से......"- सिरहाने बैठा चोर कामुकता से मिसमिसाया।
लड़की गूं-गूं करती रही।
अपने होठों को आजाद करने की भरसक कोशिश की।
लेकिन कामयाबी जब तक मिलती तब तक उसके होठों के साथ बलात्कार हो चुका था।
होठों पर उस चोर का ढेर सारा थूक लग गया था।
मानों लड़की का होठ कभी चूसने को नसीब ही न हुआ हो।
ऐसे चाटा था जैसे मुर्गी की भुनी हुई तंदूरी टाँग भभोड़ी हो।
"यू बास्टर्डस्.....छोड़ दो मुझे......वरना मैं शोर मचा दूंगी...."
"साली शोर मचायेगी न तो तेरी चिकनी बुर को पूरी रात चोद-चोद कर भोषड़ा बना दूंगा......किसी के काबिल नहीं बचेगी.......कोई शादी भी नहीं करेगा तेरी फटी बुर देखकर......."
ये सुनकर लड़की डर गई।
उसका टोन तुरन्त बदला।
"प्लीज मुझे छोड़ दो....खराब मत करो......प्लीज...."
"हाय मेरी चिकनी मुर्गी.......मुझे कोई करोड़ भी दे तब भी तेरी चूत का मजा लिये बिना यहाँ से हीलने वाला नही हूँ....मेरी बात ध्यान से सुन.....बुर तो तेरी चुदकर ही रहेगी.....अब ये तेरे ऊपर है कि तू प्यार से चुदना चाहती है या जबरजस्ती....."
"प्लीज तुम लोगों को जो पैसा चाहिये वो ले लो लेकिन मुझे छोड़ दो............"
उसकी बात सुनकर दोनों चोरों की नजरें आपस में मिली।
कुछ मूक इशारा हुआ फिर वो लड़की से बोला-
"हमें जो लेना था वो तो ले ही चुके हैं.......अब तेरी लेनी हैं.....चल तेरे सामने दो रास्ते हैं...पहला- सिर्फ मैं तेरी बुर चोदूंगा वो भी थुक लगा के या हम दोनों मिलकर तेरी बुर और गाँड़ चोदेंगे, वो भी तुझे रण्डी बनाके......बोल कौन सा रास्ता पसंद है?.....सिर्फ बुर देगी या बुर और गाँड़ दोनों........ जल्दी बोल नहीं तो चोदना शुरू कर दूंगा.....बरदास्त के बाहर हो रहा है......"
लड़की बड़ी असमंजस की अवस्था में फंस चुकी थी।
"मैं तुम लोगों का हाथ से कर दूंगी.... लेकिन प्लीज मुझे खराब मत कीजिये......मेरी शादी तय हो चुकी है.......मेरी लाइफ बरबाद हो जायेगी....प्लीज..."
दोनों चोरों की नजर एक बार फिर मिली।
"चल ठीक है......मैं तेरी लाइफ नहीं बरबाद करूंगा लेकिन तेरी लूंगा जरूर....."
लड़की को हैरानी हुई-
"मतलब...."
"तेरी गाँड़ मारूंगा......थुक लगा के.....बोल देगी....तेरे पति को पता भी नहीं चलेगा और हमारा काम भी हो जायेगा......अब जल्दी बोल....वरना तेरी बुर और गाँड़ दोनों चोद-चोद कर फाड़ देगें......."
लड़की को ये विकल्प कुछ ठीक लगा।
"ठीक है लेकिन सिर्फ........."
"जल्दी बोल......"
"सिर्फ आपसे......."
"चल मानी तेरी बात......."-फिर वो सरहाने बैठे चोर से बोला-"....तू बाहर जा.....मैं इसकी लेकर आता हूं....."
चोर को कोई ऐतराज नहीं हुआ।
"....कस के लेना भाई.....चपक के पेलना....बहुत चिकनी और मोटी गांड़ है......बार-बार ऐसा माल नहीं मिलेगा.....इतनी कस के हुमकना की साली बेड से उठ ही न पाये....."
वो चोर दरवाजे के बाहर आ तो गया लेकिन दरवाजा बंद करके उसकी झिर्री से भीतर का नजारा देखने से खुद को रोक नहीं पाया।
शेष अगले भाग में......
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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