Tuesday, June 17, 2014

FUN-MAZA-MASTI शर्मीली नीलान्जना--3

FUN-MAZA-MASTI


शर्मीली नीलान्जना--3

 "अच्छा ?" - मैने कहा और् अपनी हथेलियों से नीला की दोनों छातियों को जकडकर काबू में किया. बदन का पूरा भार् कलाइयों से नीला क्की दूधिया छाती पर उतारते मुहाने पर तैयार् खडे लौड़े को और् ऊपर खींच् चूत पर् ऐसी जोर् की ठोकर मरी कि नीला की कमर् चरमरा उठी.
" हाऽऽ..य्य. जरा धीरे ना. मैने ऐसा तो नहीं कहा था." - नीला बोली.
अब् मेरा लौड़ा रुकने वाला नहीं था. नीला की चूत में ऊपर और् नीचे, दायें और् बांये, हर कोने पर निशाना साधता वह् बिन रुके भकाभकऽऽ-फचाफच्ऽऽ चोदे जा रहा था. नीला की पलकों में स्वप्नलोक तैर् रहा था. आहें भरती वह मीठी-मीठी सिसकरियां ले रही थी. बीच्-बीच् में विराम देता मैं नीला के माथे को , होठों को, गालों और् कान की लवों को बेतहाशा चूम जाता था. उसके गले से मेरे गले का समागम होता और् उसकी चूचियों को मसलता, सुराहीदार गर्दन को चाटता मै उसे मदहोश् कर देता था. सिर् से पांव तक् अंगों के प्यार भरे मेल-मिलाप के साथ नीला की गुलाबी से भुक्क लाल् हो चली लार टपकाती चूत और् मेरे बेसब्र ठन्नाए लौड़े का खेल जारी रहा. नीला की चूत और् मेरा लौड़ा चुदवाते और् चोदते भी और्ऽ..और्ऽ...और्ऽ.. की तमन्ना में लोटपोट हो रहे थे. नीला की चूत "दो.ऽऽ".."दो.ऽऽ"..."दो.ऽऽ.." चीख्ती हांफ रही थी और् मेरा लौड़ा उसके चिथडे उडाता "लो.ऽऽ"..."लो.ऽऽ"..."लो.ऽऽ" कहता हर् वार् पर् चोट को और् तेज करता चूत पर टूट रहा था. आनंद के स्वर्ग की ओर चलते-चलते हमारी नसें अब् हवा में तैरने लगी थीं. नीला और् मैं कहां खो गए थे यह नहीं मालूम. केवल मदहोशी की मौज थी जो हमें सारे जहान् से दूर उस जहान में ले जा रही थी जो केवल हम दोनों का था - केवल् नीला का और् केवल् मेरा.
चरम ऊंचाई पर चढती नीलांजना से अपने को न संभाला गया. उसपर ऐसा जोश सवार हुआ कि चूत से लंड को ठेलती और् मेरी जांघें मोडती वह लौड़े पर यूं सवार हो गयी जैसे कोई महारानी किसी राजा का किला जीतने जा रही हो. मेरे हाथ के पन्जों में पन्जे फंसाए, उंगलियों से उंगलियों को गूंथती नीला अपने पुत्ठों को भरपूर ऊंचाई तक उठा-उठाकर् " धप्प.ऽऽ..धप्प.ऽऽ..धप्प.ऽऽ " वार किये जा रही थी. मुझे डर लगा कि रति और् काम के भिडंत का वह् शोर बाहर कोई न सुन ले. नीलांजना से मैने कहा - " मेरी जोशीली जी, ज़रा ध्यान रखो कि हमारे प्यार के चुतीला संगीत का यह शानदार संगीत बाहर न सुनाई पडे."
मदमस्त नीला मौज में थी. हंसती हुई वह् बोली - " सुनने दो ना. कोई क्या बिगाड लेगा. यूं क्यों नहीं कहते कि चिथडे उडते देख् तुम्हारा यह यार दर्द से चीख रहा है. जो होना है वह अब हो ही जाए."
मेरी संधि पर सवार मुझ पर प्रहार करती नीला दर-असल बगल् के आदमकद आईनों में इस नज़ारे को निहारती मुग्ध हो रही थी. खास तौर पर वह यह देख् कर् खुश् हो रही थी कि उसकी चूत मेरे लौड़े पर रेलगाडी के पिस्टन की तरह् कैसे मजेदार ढ्ंग से कसी हुई चिकनाहट में सटासट उठती-गिरती, घुसती-निकलती साफ् नज़र आ रही है.
घिस-घिसकर भुक्क लाल हो चली नीला की गुलाबी चूत मेरे प्रेम के स्वर्गिक रस से तर-बतर होकर टपकी जा रही थी.
" मैं थक गई. अब तुम आओ " कहती नीला निढाल चित्त होकर पसर गई थी.

उसकी जांघों को फाडता रस से तरबतर चुचुआती चूत पर अपने को टिका मैने एकबारगी इतनी जोर का धक्का लगाया कि नीला मेरे कठोर प्रहार से ’उई.ऽऽऽऽऽऽ.आ..ऽऽह’ कहती उचक पडी थी. वह बुदबुदा रही थी.
" थोडा धीरे ना. चुदाई करना है कि मेरी जान निकालनी है ?"
मेरा बौराया दिमाग अब पूरे मूड में था. मेरा लंड नीलारानी की दर्ख्वास्त को दरकिनार कर दनादन उसकी चूत को ठोके जा रहा था.
बिस्तर के दोनो बाजू दीवार पर जडे आदमकद आइनों में सारा नज़ारा दिखाई पड रहा था. खेल को अन्जाम तक पहुंचाने का मेरा मूड बन चला था. चोदने और् चुदवाने के चरम पलों का अपना अलग मजा होता है. नीला की छोटी रानी के पठार का पूरा कछार गीला हो चला था. जैसे जैसे चोट भारी पडती गई, ज्यूं-ज्यूं लौड़े राजा के साथ मेरे पुत्ठों का उठान बढता गया त्यों-त्यों नीलांजना की कराहती सिसकारियों के साथ् मेरी आवाज में " लोऽ".. "और् लोऽ"...ये संभालोऽऽ".." लो भरपूर मजा लो"...अपनी चूत के चिथडे-चिथडे उड जाने दो"..."आह कैसा मजा आ रहा है" की बुदबुदाहट संगीत की लहरियों की तरह मिल-मिल कर हम दोनों को जन्नत की सैर करा रही थी. संगीत की इन लहरियों के साथ् "धपाक्कऽऽ-धपाक्कऽऽ की गूंज" और् "चाप्प ऽऽ...चाप्प..ऽऽ" की छपक तबले की तरह संगत कर रही थी. जन्नत की आखिरी मंजिल पर पहुंचते-पहुंचते चूत पर लंद रजा की चुदाई की चोट ऐसी जबरदस्त होने लगी जैसे भारी सब्बल गुस्साकर सींग मारता पाताल-लोक को छेद डालने के लिये पिल पडा हो. उन बेकाबू और् भयानक प्रहारों से चीखती नीला उठ-उठ कर मेरे उस लौड़े को थामने, रोकने उतारू हो चली जो इस वक्त रोके भी न रुकने वाला था. उधर "आह मैं मर गईऽऽऽ"..."रुकोऽऽऽ"...."बस नाऽऽऽ..आ" की आवाज नीला के मुंह से निकल रही थी और् इधर् नीला की चूत की शिराओं को कंपित करता, सनसनाता हुआ रुक-रुक कर फुहारें बरसा रहा था. रस के बोझ से मेरा लंब जब-जब नीलारानी की चूत के अन्दर सनसनाता, फूलता, मुटाता हुआ रस की फुहार छोडता, तब-तब उसकी चूतरानी उस अलौकिक रस का स्वागत करती हुई लपक-लपक कर अपनी तिजोरी में बन्द कर रखने के लियी सिकुड-सिकुड जाती थी.
नीलांजना रानी हांफ रही थी. खुशी उससे संभाली नहीं जा रही थी.
" बस...बस... बस..मेरे प्यारे. तुम्हारे लौड़े ने तो आज सचमुच् मेरी चूत को चिथडों मे बिखेरते घायल कर डाला है. इस चुदाई को मै जनम् भर नहीं भूल पाऊंगी. अब जब् तक दुबारा मौका नहीं मिलता है मेरी चूत् ऐसी जोरदार चुदाई की तमन्ना में मरती रहेगी." नीला खुशी में मदमस्त हो गई थी.
" हाय..मेरे प्यारे..आओ. आओ तुमको गले लगा लूं" कहती हुई नीला ने अपने बदन को ऊपर उठा कर मेरे बदन से बांध् लिया. अंदर बहती बिजली की सनसनाती कडक् का आनंद इस नीलारानी से मेरे बदन के नख से शिख तक एक हो जाने में ही सर्वाधिक था. खूबसूरत नीलांजना की कमर के निचले भाग को अपनी बाहों से कसे मेरा अस्तित्त्व उसके बदन में समा चला था. इस् तरह समूचे अस्तित्त्व के साथ् उन पलों में एक्-दूजे मे समाये हम दोनों ही उस दिव्य कंपन का आनंद ले रहे थे जो एक..दो..तीन्..जैसी अनेक सरसराहटों के साथ् चूत की खोल में जमकर थम चला मेरा पौरुष् उतार रहा था. तूफान आखिर थमते-थमते थमा. बदन में समाई मौज को कसकर चिपटाए नीला और् मै समाधि की निद्रा में कब जा पहुंचे इसका पता ही न चला.
नीला को भरपूर आराम देने के लिहाज से अपने सिर को उसके पायताने की तरफ् किये मैने भी आंखें मूंद लीं.

०००००००००००००

गहराती रात में अचानक एक सपने की गुदगुदी से मेरी आंख् खुल गई. मैं अपने को देख् रहा था और् अदेखी परियों के पंख् मेरे पौरुष् को हौले-हौले स्पर्श् करते जगाते चले जा रहे थे. आंख् खुलने पर मैने पाया कि मेरा लंब फूल रहा है. परी-वरी सपने के साथ् गायब हो गयी थी. हकीकत यह थी कि वह तो मेरी नीला परी ही थी जो घुटने मोडकर अपनी जगह सए नीचे सरक आई थी. मेरा लंब अपने मुंह में डाले वह नीला ही पलकें बन्द किये चुइन्गम की तरह चूस रही थी. मेरेआ होश् जागते ही वह फूलकर मुटाता लंब और कडककर टन्नाने लगा. मैने कोई हरकत नहीं की. सोचा कि इस वक्त अनजान बने रहने के खेल में ही अधिक मजा है. कुछ् देर वैसे ही मजा लेने के बाद मैने धीरे से अपने को व्यवस्थित किया और् फिर् नीला की जंघाओं के बीच् समाई चूत पर जुबान फेरता उसकी गुलाबी कली को टटकाना शुरू कर दिया.
अब नीला समझ् चुकी थी कि मैं जाग चला हूं. उसने मेरी बाहों को रजाई के पल्ले की तरह थामा और् अपने बदन पर मुझे ओढ लिया. नीलांजना की आंखें मुंदी ही हुई थीं. सारा कुछ उनींदे अनजाने में अपने आप हो रहा था. उसी आलम में नीला के घुटनों को खिसकाया और चूत की फांक को टोहता अपना लौड़ा उसमें घुसा दिया. नीला की कमर को कसकर मैने अपनी बाहों के घेरे में ले लिया था. उस स्वप्निल माहौल में ही चूत को लंड से ठांस बहुत देर तक मै नीला को चोदता चला गया. अन्जान और नि:शब्द सन्नाटे की चुदाई में अपना अलग मजा था. सिकुडन, सिहरन और् थिरकन भरी फुहार का हम यूं मजा ले रहे थे जैसे वह सरा-कुछ हमारे बीच सपनों में हो रहा हो. चूतरानी जब भरपूर बारिश से भीग चली तो नीलांजना ने मेरी पीठ पर शाबाशी की प्यार भरी थपकियां दीं. मुझे छातियों में छिपाती नीला अपने कपोल मेरे गालों से सटा फिर से तसल्ली की नींद में डूब गई. वैसी भरपूर तसल्ली के बाद मुझको भी नींद आनी ही थी.

००००००००००००००००

सुबह नींद खुली तो आठ बजने को आ रहे थे. नीलांजना को दस बजे तक लौटना था. नौ बजे तक हम तरोताजा होकर होटल से निकलने तैयार हो चले थे. नीलांजना ने इस वक्त छींटदार सलवार का सूत पहना हुआ था. कल हमने भरपूर प्यार किया था. चौबीस घंटे पहले की नीलांजना कल दिन और रात की चुदाई के बाद कुम्हला चली थी. लेकिन् गुलाबी चेहरे पर छाया यह धुंधलका भी उसमें कजरारा रंग भर रहा था.नीला की गहरी काली पुतलियों को घेरती आंखों की सफ़ेदी बोझिल थकान और् उनींदेपन के लाल डोरों से अलग् रंग् में थी. मैं उसे देख रहा था और् वह मुझे देख् रही थी. मेरी आंखों में झांकती अचानक उसके होठों पर बारीक सी मुस्कान उतर आई. थकान के बोझ् के बावजूद न जाने क्यों उसकी आंखों में एक चमक तैर् गई थी. नीला की वैसी अदा ने अचानक मुझे भी बदल दिया. उसके सुन्दर् मुखडे को निहारते उसकी छिपी मुस्कान और् आंखों की चमक् का रहस्य मेरे दिल् पर खुल् रहा था. जरूर इस पल मुझे निहारती नीला के अन्दर मेरी वह छटा चलचित्रों की श्रिंखला मै तैर आई थी जो कल दिन और् रात के खूबसूरत खेल में देखी थी. नीला की उस मुद्रा ने मुझे भी मेरे साथ खेलती रही आई अपनी प्रिया की बिस्तरबंद छटाओं में डुबा दिया था. स्म्रितियों से गुजरता यह वह पल था जब इधर-उधर छूट गया सामान चेक करने के बाद पलंग के पायताने सूट्केस और् बैग के साथ नीला और मैं रवानगी के लिये तैयार खडे थे.
" चलें अब" - नीलिमा ने पूछा.
" तुम्हारे अन्दर जो चल रहा था वह मेरी आंखों में भी समा आया है. आह ! तुम्हें छोडने जी अब भी नहीं चाह रहा." नीला को बाहों में भरते मैने कहा.
" मैने कब कहा कि मेरा जी तुम्हें छोडने को कर रहा है? मजबूरी है. अब जाना होगा. इस वक्त वह मूड फिर मत जगाओ प्लीज़" नीला बोली.
"फिर कब् किस वक्त ?" - मैं पूछ् रहा था.
" कैसे बताऊं ?"
सवाल दोनों के सामने थे. जवाब न उसके पास था , न मेरे पास. सवालों के पशोपेश में उदास आंखें आपस में उलझकर डूब गई थीं.
" चलें ?"- नीला का सर मेरी छाती में छिपा हुआ था. होठों से उदास् बुद्बुदाहट वहीं से निकली थी. पूछने की अदा यूं थी जैसे नीला के "चलें " का मतलब यह हो कि " चलने की इच्छा नहीं हो रही है.
मुझे जवाब मिल गया था. नीला के पलकों को लगातार चूमता मैं उसके अधरों पर जा टिका. बेसबरी से हम दोनों के होठ् भिडकर उलझ् गए थे. अलग होने न उसके होठ् तैयार थे , न मेरे. अलग होने की जगह होड उनमे चबाने और् लील जाने की चल पडी थी. बदन सनसनी की तरंगों से मचलते बेकाबू हुए पड रहे थे. नीला की सलवार का नाडा मैने सर्र से खींच् दिया. इसका जवाब देती मेरी पैन्ट के जिप खोलती और् मेरे लौड़े को मुत्ठी में कसकर बाहर खींचती उसने दिया. इस वक्त समय ज्यादा न था. पलंग के कोर पर नीला के पुत्ठे टिकाते मैने नीला की टांगें अपनी जांघों के बीच् खींच् लीं. नीला को उस तरह पलंग के सिरे पर ही अधचित्ता करके खडे खडे ही झुकते हुए मैने नीला की चूत में अपना फूलता और् तन्नाता लौड़ा सरका दिया.
" नईं ना...आ...आ . हाय क्या कर रहे हो..!" कहती हुई भी नीला की जांघें खुद ब खुद् मेरे लौड़े को निगलने जगह बना रही थीं. जैसे प्रवेश् से पहले पूजा का प्रणाम करते हैं उस तरह अपनी तीन उंगलियों से चूत के कपाटों को नरमी से सहलाकर उन उंगलियों को चूमा. इसके बाद बिना देरी किये मैने अपना पूरा का पूरा लौड़ा नीला की चूत में जमकर पेल दिया.
" हाय रे..,..मैं तो मर जाऊंगी" नीला ने कमर को लहराते हुए उसे ठ्ंसवाने की राह आसान करते खुशी का संगीत उन स्वरों में मुझ तक भेजा. नीला की उस ’नईं ना’ का मतलब था कि " चोद-चोदकर् फाड ही डालो मेरे रजा. इस मरने का भी अलग मजा है."
नीलांजना की छातियों पर हथेलियों से पूरी गोलाइयों को मसकते और् उसके प्यारे चेहरे को निहारते मैने दनादन उसकी लपकती चूत मे ठन्नाए लौड़े को पेलना शुरू कर दिया. पूरी लंबाई में वह् बाहर आता जाता बार्-बार् एक लय के साथ् नीलिमारानी की चूत को ठेल रहा था. चुदवाने और् चोदने के इस आखिरी दौर् का अपना अलग मजा था. चूंकि कल् एक-दूसरे से टकराते , एक दूसरे के चिथडे उडाते चूतरानी और् उसका लंडराजा दोनों थके थे पेलने और् धंसने की शुरुआत मैने बडे कोमल तरीके से की.मेरा लौड़ा यूं कोमलता के अह्सास के साथ् लयात्मक ढंग से नीलांजना की चूत में धंस और निकल रहा था कि बारीक से बारीक गुदगुदी का अहसास नीला और मेरे दिल तक पहुंचता हर् चोट पर खूब गुदगुदाता रहे. दस मिनट तक हौले-हौले उस गुदगुदी में नहाने के बाद मूड बदला चला. मैने झुककर पंजों से नीला की छातियों को कसकर निचोडा दाल और् उसके होठों को बेरहम दीवानगी से चूमते चबा दाला.
वह उत्तेजना में उछलती और् लहराती " सी"..."सी"..."मर् जाऊंगी नैं ना" कहती मुझे परे ढकेल रही थी और् मैं उसके कानों मे मन्त्र की तरह बुदबुदा रहा था - " अब जरा दिल थामो. तुम्हारा प्यारा सेवक तुम्हें स्वर्ग की सैर् कराएगा."
नीला की कमर् को हाथों से खूब कसकर मैने चिपतया और् घुटनों को अपनी भुजाओं के बल टांगता मैने नीला की चूत पर मेल ट्रैन की भरपूर स्पीड से भारी ठुकाई शुरू कर दी. हिमालय की चोटी पर चढे जोश् से लौड़ा चूत की इतनी तेज् ठुकाई कर रहा था कि बार-बार् चिपककर फिट होते और् निकल आते कार्क की हरकत से बोतल का मुंह ’पुक्क...पुक्क.. पुक्क...पुक्क’ का सुर निकाले जा रहा था. उसके साथ् खूब उठ-उठ कर ठोकते मेरे पुत्ठे नीला की चूत के पठार से तकराते ’चत्ट..चत्ट..चत्ट..चत्ट’की ताल दे रहे थे.
नीलांजना रानी " हाय...नईं ना..,..हाय धीरे ना..बस् करो ना..हाय.. दर्द कर रहा है.." कहती बुदबुदा रही थी लेकिन् गरम तवे को ठोक-ठोक कर ठंडा करने के लिये मैं उतारू था. रस की कीचड बरी बारिश के बीच् मेरा लौड़ा और नीलारानी की चूत फूल-फूलकर भुक्क लाल हो रहे थे. सनसनी का चरम क्षण जब आया तो झुकता-झुकता मेरा बदन आखिर नीला के बदन् से चिपटता उसमें समा गया था. ऐसी चाहत भरी थी कि इस अंतिम संभोग के आनंद में पोर-पोर को डुबाए हम दोनों के चिपके बदन दो से मिटकर एक हो जाएं.
चूत और् लौड़े की सनसनाहट से भीगे अपने-अपने दिलों को एक दूसरे को सौंपते नीला और् मै बहुत देर तक वैसे ही निढाल लिपटे रहे. यह वक्त मजबूरी का था इसलिये अगली भिडंत के लिये मूड बनाते इन्तिज़ार मे सोया रहना संभव न था. पंद्रह मिनट के बाद हमने होटल से रुखसत ली. नीला को लाउन्ज में बिठा मै बाहर टैक्सी की तलब में खडा था.तभी एक टैक्सी आकर रुकी . इससे पहले कि मैं ड्राइवर से मुखातिब होता कोई एक बीस साला सर्वांग सुंदरता की परी बाला उससे बाहर आई. पोर-पोर में ऐसी चिकनाई भरी कसावट थी और् गोरे बदन पर् छाई जवानी का ऐसा ताजा सिन्दूरी दूधियापन कि ठीक अपने सामने उसे खडा पाकर् मैं होश् खोए खडा रह गया.
" नीलांजना कहां है ? तैयार हो गयी ? " मिलाने के लिये हाथ् बढाए उसने अपना परिचय दिया - "मैं शीना, नीला की इन्तिमेट रूम मेट"
अब भी अचरज में डूबे मैने शीना का आगे बढा हाथ थाम लिय. मुझे इसका भी होश् नहीं रहा कि मिलाकर हाथ् छोड दूं.
" हाथ छोडिये ना अब. सब देखने लगेंगे. इतना पसंद आया हो तो बाद में कभी कसर निकाल लीजियेगा." शीना ने फुसफुसाकर आगाह किया.
अब मुझे होश आया.
" नीला तो ठीक, लेकिन् मुझे आप ने कैसे जाना ?" - मैने पूछ लिया.
" माइ डियर हैन्डसम. अब भोले न बनिये. बाथरूम में जोडे में घुसने से पहले उसका और् कमरे का दरवाजा बंद करना अब मत भूला कीजिये."
" मतलब ? शीना तुम क्या कह रही हो ?"
" जी , कल यहां से गुजरते मैने आप लोगों को होटल् में जाते देख् लिया था. पास ही घर है. मै कुछ् देर बाद् ये खयाल करके कि आप् लोगों के साथ् सुबह-सुबह गप्प मार आऊं, रूम नंबर पूछ्ती घुस आई थी. बस और क्या.?" - शीना बोली.
" बस इतना ही ना ! मैं सनझ् गया. फिर आप नीला को न देख लौट आई होंगी." - मैने कहा.
" हां जी, दिल् बहलाने के लिये ये खयाल फिलहाल अच्छा है. यूं हकीकत ये है कि कल बाथरूम में नीला को आप के साथ् जोरदार भिडा देखकर मुझे साली नीला पर बहुत गुस्सा आई थी. इन्टिमेट फ्रेन्ड होकर भी साली ने मुझे असल प्रोग्राम क्यों छिपाया ? जी तो यूं किया कि आप दोनों के बीच मैं भी घुस जाऊं और् या तो मजा किरकिरा कर दूं या नीला के हिस्से क मजा मैं लूट जाऊं." - थोडा शर्माती हुई शीना बोली.
मैं घबरा गया. अपने होठों पर उंगली रखते इशारे से चुप कराते मैने कहा - " शीना तुम बहुत सुंदर हो और् मुझे उतनी ही अच्छी भी लगती हो. नीला से कुछ न कहना प्लीज़. उसके बदले मुझे जो भी सजा दोगी. मुझे मन्जूर है."
" प्रामिस" - उसने पूछा.
" पक्का." मैने जवाब दिया.
मेरा मोबाइल नंबर लेकर और् अपना देते हुए शीना हल्की आवाज में बोली " बाद में बात करेंगे. भूलियेगा नही."
मेरी सलाह पर मुझसे अनजान की तरह वह लाउन्ज पर गई और् नीला को साथ ले आई. जैसे दो अनजानों के बीच परिचय करया जाता है वैसे नीला ने शीना का मुझसे परिचय कराया. उस रुकी टैक्सी पर् ही सवार हो हम तीनों निकल पडे. नीला और् शीना को उनकी जगह छोड मै करीब के उस शहर की ओर निकल चला जहां कोई चार पांच् दिन मुझे अपने कामों से ठहरना था.
समाप्त 



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