FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--123
दादर, एक और हमला
और चर्च गेट की तरह वी टी भी बच गयी।
...
रेलवे पर हमला दो और जगहों पे प्लान था।
६. १० पर दादर पर
दादर में एक फुट ओवर ब्रिज है जो जहाँ फूल वाले बाजार लगाते हैं , दादर वेस्ट से दादर सेन्ट्रल की ओर , स्टेशन पार कर के उतरता है।
दादर में पहले भी कबूतरखाना के पास बम ब्लास्ट हो चुका है।
इस पुल पर हमेशा भीड़ रहती है , लेकिन शाम के समय तो ये खचाखच भरा रहता है।
कुछ कुछ जगहों पे पुल क्रैक भी दिखते हैं लेकिन मरम्मत कर के काम चलता है।
पुल के ऊपर तमाम हाकर किताबें , रुमाल , सीडी और अगडम बगड़म बहुत कुछ बेचते रहते हैं।
एक मिनट भी रुके तो पीछे से कोई धक्का दे देंगा।
अगला हमला यही प्लान था।
इस पल के ऊपर जहाँ हजारो लोग आर पार होते थे वहीँ इसकेनीचे से हर एक दो मिनट पे सेन्ट्रल , वेस्टर्न की कोई ना कोई गाडी पार होती थी।
तीन लोग इस हमले में शुमार थे , जिनके पास शॉपिंग बैग थे।
इन शॉपिंग बैग्स में सिर्फ स्मोक बाम्ब्स थे।
और उनके पास मास्क और गॉगल्स थे.
और उस हमले का असर लांग टर्म का होने वाला था।
पहले वो तीनों स्मोक बॉम्ब छोड़ते ,दो दोनों ओर के सीढ़ियों पे और एक बीच में। फिर उस कन्फ्यूजन का फायदा उठा के , वो उस ब्रिज पे आई डी डिवाइस तीन चार जगह लगाते। वो आई डी डिवाइस उन्ही क्रैक्स में लगने थे और जहाँ सीढियाँ जुडी थी।
और फिर पुल से उतरते हुए वो रिमोट से सारे आई ई डी एक्सप्लोड कर देते।
सीढ़ियाँ जो टूटती तो उस पर भगदड़ में फंसे लोग , गिर के मरते, घायल होते। उस के अलावा हर आईडी में आर डी एक्स का इस्तेमाल था , और शार्पनेल का भी। तो दस से पन्दरह मीटर के दायरे में जो आते , उनका बचना मुश्किल था।
इस तरह मरने वालों की संख्या १०० से ११० तक हो सकती थी।
इस के बाद वो बचे हुए स्मोक बॉम्ब और हैण्ड ग्रेनेड छोड़ते , जिससे और घायल होते।
लेकिन असली खतरा दूसरा था। वो खतरा था पुल के ऊपर।
जिस तरह से उन्होंने आईडी लगाए थे , पुल की स्टेबिलिटी को खतरा था। और उनके हैंडग्रेनेड का निशाना , आदमी नहीं , बल्कि आई ई डी से किये हुए गड्ढे थे और उसी के साथ पुल के जितने भी कमजोर प्वाइंट थे उस पे भी उन्होंने ग्रेनेड से अटैक किया। इन ग्रेनेड में थरमाइट्स का इस्तेमाल हुआ था और वो आ ई डी से किये हुए गड्ढो में जाते , और फिर अंदर घुस कर उन्हें पिघला देते।
इससे पुल का सारा दबाव यहीं पर पड़ जाता और कुछ ही देर में पुल के हिस्से नीचे गिरने शुरू हो जाते और नीचे का ट्रैक भी जाम हो जाता।
अगर कोई गाडी उस समय होती तो उस के भी दुर्घटना ग्रस्त होने के चांसेज होते।
इस तरह जान माल की कुल हानि , बहुत होती।
दुश्मन कौन
दादर का हादसा कैसे बचा , ये भी एक इंट्रेस्टिंग कहानी है। ये बहुत कुछ एक जिग सा पजल की तरह था , जिसके अलग अलग टुकड़े , अलग अलग लोगों ने जोड़े।
सबसे पहला जिग सा पज़ल का हिस्सा सॉल्व किया रॉ और मेरे हैकर दोस्तों ने मिल के , जिन्होंने पडोसी देश में , कमांड और कंट्रोल सेंटर में सेंध लगाई थी और वहां से न सिर्फ वहां के डाटा हैक किये , बल्कि वहां केबल में डाले गए बग से पेरीफेरल सेंटर तक भी वो पहुँच गए।
मेन कंट्रोल और कमांड सेंटर में ही , कुछ नक़्शे मिले और उसमे दादर के इस पुल का भी प्लान था।
और फिर उस प्लान को एक बग पे लोड कर , उस से सम्बंधित जो भी प्लान मिले , सूचनाये मिली वो भी कुरेद कुरेद के निकाल ली।
और उसी में दो खतरनाक प्लान मिले , एक में उस पुल पर कहाँ कहाँ आ ई डी लगेगा ये भी दिखाया था और लाल निशान से पुल का कौन भाग टूट कर गिरेगा , ये भी दर्शाया था , और उसके साथ नीचे ट्रेन भी दर्शायी गयी थी। और इस नक़्शे से ये आज सुबह ही ये अंदाजा लग गया था की ये पुल दुष्टात्माओं के निशाने पे है। और इसे आ ई डी से उड़ाने की योजना है।
उसी समय बॉम्ब डिस्पोजल स्क्वाड ने उस पल की गहरी छान बीन की लेकिन कुछ नहीं मिला।
लेकिन दूसरा प्लान और इम्पॉर्टेंट था। ये एक स्ट्रक्चरल कंसल्टेंट का प्लान था जिसे बी एम सी ( बॉम्बे म्युनिसिपल कार्पोरेशन ) ने बनवाया था। और ये बहुत सिमित लोगों के लिए था। इस में इस पुल के सभी स्ट्रक्चरल डिटेल्स थे। यहाँ तक की ज्वायस्ट में कहाँ कहाँ पे इरोजन आ गया है , कौन सा पार्ट रस्टेड है।
ये ब्रिज ट्रस टाइप का था , और उसमें हर ट्रस के डिटेल्स भी दिए गए थे। और जगह जगह समय के साथ कहाँ पे भारी स्ट्रेस हुआ था ये भिडिया गया था। इस प्लान के आधार पे कुछ टेम्पोरेरी रिपेयर की गयी थी , उसका भी उसमें जिक्र था।
इस प्लान के मिलने से एंटी टेरर सेंटर ( ऐ टी एस ) में टेंसन और बढ़ गया।
लेकिन उस जिग सा पजल का दूसरा हिस्सा पूरा किया , बैक रूम ब्वायज ने , ( असल में उसमे दो गर्ल्स भी थीं टीना और रीमा ). ये जैसा की पहले जिक्र हुआ था , आई आई टी मुम्बई के लड़के लड़कियां थे , जो सॉफ्टेवयर सपोर्ट , सी सी टीवी ऐनिलिसिस और इस तरह के और काम कर रहे थे।
दादर के पुल का प्लान ‘कमांड और कंट्रोल सेंटर’ से मिलते ही, उस ग्रूप ने दादर के पास के लगे एक हफ्ते के सी सी टीवी को खंगालना शुरू कर दिया। और एक हफ्ते का वीडियो सर्च करने पर , उन्हें भारी सफलता मिली।
कोई सस्पेकेटेड आदमी या , एन पी के लिस्ट वाला कोई नहीं मिला।
लेकिन शरलॉक होम्स की मशहूर कहानी जिसमे , कुत्ता नहीं भूँकता , वाली बात थी।
टीना ने दो लोगों को चार पांच बार नोटिस किया जिनका चेहरा आधा शेड में , या झुका रहता था।
और ये बात साफ हो गयी की ये प्रोफेशनल लोग हैं , जिन्हे सी सी टी वि कैमरा आइडेंटिफाई करने की ट्रेनिंग है और उससे बचना भी जानते है।
लेकिन टीना की निगाहों से बचाना मुश्किल था।
उसने उन दोनों लोगों की फोटो को ज़ूम किया , अलग किया और फिर जीतनी बार वो नजर आये थे , उसमे उनके चेहरे के हिस्से को जोड़ के फिर रिकन्सट्रकट किया।
करीब ७४ % चेहरा मिल गया था।
और तेज निगाहों के लिया उतना काफी था।
एन पी ने अपने कांटेक्ट जागृत किये। दादर वेस्ट में , कामथ होटल के बगल में एक मसाज पारलर चलता था वर्षा , वहां की एक लड़की ने उसे पहचाना।
गली के बाहर , उसने दो बार एक को देखा था। पुलिस वालों से बचने , संभावित ग्राहक पहचानते उसकी निगाहें तेज हो गयी थी।
एक फूल बेचने वाली ने भी पहचाना।
और उन दोनों की मदद से अब उसके चेहरे का मुखौटा पूरा बन गया था।
लेकिन एक महत्वपूर्ण क्ल्यु उन बैक रूम ब्वायज ने उस प्लान से पकड़ा जो बी एम सी का था और उसमें स्ट्रक्चरल डिटेल्स थे।
वो एक कांफिडेंशियल प्लान था और उस पर डिजिटल सिग्नेचर्स थे।
आखिरी सिग्नेचर १० दिन पहले का था।
प्लान ये था की ये पता करें की किसने उस प्लान को एक्सेस किया और वहां से कापी कर के निकाला।
और उन लोगों ने बी एम सी का कम्प्यूटर हैक कर लिया।
जिस कम्यूटर में ये प्लान था वो मशीन लाक्ड था , लेकिन उसक सिस्टम एडमिन में जा के ये पता चला की दस दिन पहले रात में साढ़े ग्यारह बजे किसी ने उस कंप्यूटर में लॉग किया था और उस प्लान को एक्सेस कर के कापी किया था।
हालांकि उस ने अपने सारे डिजिटल फिंगर प्रिंट्स मिटाने की कोशिश की थी , लेकिन रजिस्टरी के एक कोने में कुछ डिटेल मिल गए।
लेकिन वो आदमी कौन था ये पता नहीं चल पाया।
अब रीमा का दिमाग चल गया।
उस ने सिक्योरिटी कैमरे का कंप्यूटर हैक किया।
लेकिन उस समय का उस इलाके का कैमरा कही और फोकस था। पर एक बात साफ हो गयी की , उस कमरे में में बिना डिजिटल इम्प्रेशन के कोई नहीं घुस एकता और उस कंप्यूटर से कुछ कापी करने के लिए उस कमरे में , कंप्यूटर को फिजकली एक्सेस करना जरुरी है।
एक्सेस करने के लिए न सिरफ मशीन पे अंगूठा लगाना पड़ता है , बल्कि आईरिस भी कंप्यूटर चेक करता है।
इसका मतलब ये किसी इनसाइडर का काम था।
रीमा ने उस कंप्यूटर के अंदर प्रवेश किया जिसमें , इंट्री के रिकार्ड रहते हैं , और उस आदमी के थमब प्रिंट्स ही नहीं मिले बल्कि एच आर के डाटा सरवर में जाके उसकी पूरी जनम कुंडली भी मिल गयी।
और उसकी सैलरी स्लिप से बैंक अकाउंट नंबर भी मिल गया।
बैंक से ये भी पता चला की अगले दिन उसके अकाउंट में दस लाख रुपये डाले गए थे।
अब रीमा ने उसकी फोटो सारे डिटेल ए टी एस वालों के हवाले कर दिए।
आधे घंटे के अंदर वो आदमी ए टी इस के तहखाने में था और सत्य बोलने का रिकार्ड तोड़ रहा था।
वो बी एम सी का एक मिडल लेवल एक्जीक्यूटिव था।
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फागुन के दिन चार--123
दादर, एक और हमला
और चर्च गेट की तरह वी टी भी बच गयी।
...
रेलवे पर हमला दो और जगहों पे प्लान था।
६. १० पर दादर पर
दादर में एक फुट ओवर ब्रिज है जो जहाँ फूल वाले बाजार लगाते हैं , दादर वेस्ट से दादर सेन्ट्रल की ओर , स्टेशन पार कर के उतरता है।
दादर में पहले भी कबूतरखाना के पास बम ब्लास्ट हो चुका है।
इस पुल पर हमेशा भीड़ रहती है , लेकिन शाम के समय तो ये खचाखच भरा रहता है।
कुछ कुछ जगहों पे पुल क्रैक भी दिखते हैं लेकिन मरम्मत कर के काम चलता है।
पुल के ऊपर तमाम हाकर किताबें , रुमाल , सीडी और अगडम बगड़म बहुत कुछ बेचते रहते हैं।
एक मिनट भी रुके तो पीछे से कोई धक्का दे देंगा।
अगला हमला यही प्लान था।
इस पल के ऊपर जहाँ हजारो लोग आर पार होते थे वहीँ इसकेनीचे से हर एक दो मिनट पे सेन्ट्रल , वेस्टर्न की कोई ना कोई गाडी पार होती थी।
तीन लोग इस हमले में शुमार थे , जिनके पास शॉपिंग बैग थे।
इन शॉपिंग बैग्स में सिर्फ स्मोक बाम्ब्स थे।
और उनके पास मास्क और गॉगल्स थे.
और उस हमले का असर लांग टर्म का होने वाला था।
पहले वो तीनों स्मोक बॉम्ब छोड़ते ,दो दोनों ओर के सीढ़ियों पे और एक बीच में। फिर उस कन्फ्यूजन का फायदा उठा के , वो उस ब्रिज पे आई डी डिवाइस तीन चार जगह लगाते। वो आई डी डिवाइस उन्ही क्रैक्स में लगने थे और जहाँ सीढियाँ जुडी थी।
और फिर पुल से उतरते हुए वो रिमोट से सारे आई ई डी एक्सप्लोड कर देते।
सीढ़ियाँ जो टूटती तो उस पर भगदड़ में फंसे लोग , गिर के मरते, घायल होते। उस के अलावा हर आईडी में आर डी एक्स का इस्तेमाल था , और शार्पनेल का भी। तो दस से पन्दरह मीटर के दायरे में जो आते , उनका बचना मुश्किल था।
इस तरह मरने वालों की संख्या १०० से ११० तक हो सकती थी।
इस के बाद वो बचे हुए स्मोक बॉम्ब और हैण्ड ग्रेनेड छोड़ते , जिससे और घायल होते।
लेकिन असली खतरा दूसरा था। वो खतरा था पुल के ऊपर।
जिस तरह से उन्होंने आईडी लगाए थे , पुल की स्टेबिलिटी को खतरा था। और उनके हैंडग्रेनेड का निशाना , आदमी नहीं , बल्कि आई ई डी से किये हुए गड्ढे थे और उसी के साथ पुल के जितने भी कमजोर प्वाइंट थे उस पे भी उन्होंने ग्रेनेड से अटैक किया। इन ग्रेनेड में थरमाइट्स का इस्तेमाल हुआ था और वो आ ई डी से किये हुए गड्ढो में जाते , और फिर अंदर घुस कर उन्हें पिघला देते।
इससे पुल का सारा दबाव यहीं पर पड़ जाता और कुछ ही देर में पुल के हिस्से नीचे गिरने शुरू हो जाते और नीचे का ट्रैक भी जाम हो जाता।
अगर कोई गाडी उस समय होती तो उस के भी दुर्घटना ग्रस्त होने के चांसेज होते।
इस तरह जान माल की कुल हानि , बहुत होती।
दुश्मन कौन
दादर का हादसा कैसे बचा , ये भी एक इंट्रेस्टिंग कहानी है। ये बहुत कुछ एक जिग सा पजल की तरह था , जिसके अलग अलग टुकड़े , अलग अलग लोगों ने जोड़े।
सबसे पहला जिग सा पज़ल का हिस्सा सॉल्व किया रॉ और मेरे हैकर दोस्तों ने मिल के , जिन्होंने पडोसी देश में , कमांड और कंट्रोल सेंटर में सेंध लगाई थी और वहां से न सिर्फ वहां के डाटा हैक किये , बल्कि वहां केबल में डाले गए बग से पेरीफेरल सेंटर तक भी वो पहुँच गए।
मेन कंट्रोल और कमांड सेंटर में ही , कुछ नक़्शे मिले और उसमे दादर के इस पुल का भी प्लान था।
और फिर उस प्लान को एक बग पे लोड कर , उस से सम्बंधित जो भी प्लान मिले , सूचनाये मिली वो भी कुरेद कुरेद के निकाल ली।
और उसी में दो खतरनाक प्लान मिले , एक में उस पुल पर कहाँ कहाँ आ ई डी लगेगा ये भी दिखाया था और लाल निशान से पुल का कौन भाग टूट कर गिरेगा , ये भी दर्शाया था , और उसके साथ नीचे ट्रेन भी दर्शायी गयी थी। और इस नक़्शे से ये आज सुबह ही ये अंदाजा लग गया था की ये पुल दुष्टात्माओं के निशाने पे है। और इसे आ ई डी से उड़ाने की योजना है।
उसी समय बॉम्ब डिस्पोजल स्क्वाड ने उस पल की गहरी छान बीन की लेकिन कुछ नहीं मिला।
लेकिन दूसरा प्लान और इम्पॉर्टेंट था। ये एक स्ट्रक्चरल कंसल्टेंट का प्लान था जिसे बी एम सी ( बॉम्बे म्युनिसिपल कार्पोरेशन ) ने बनवाया था। और ये बहुत सिमित लोगों के लिए था। इस में इस पुल के सभी स्ट्रक्चरल डिटेल्स थे। यहाँ तक की ज्वायस्ट में कहाँ कहाँ पे इरोजन आ गया है , कौन सा पार्ट रस्टेड है।
ये ब्रिज ट्रस टाइप का था , और उसमें हर ट्रस के डिटेल्स भी दिए गए थे। और जगह जगह समय के साथ कहाँ पे भारी स्ट्रेस हुआ था ये भिडिया गया था। इस प्लान के आधार पे कुछ टेम्पोरेरी रिपेयर की गयी थी , उसका भी उसमें जिक्र था।
इस प्लान के मिलने से एंटी टेरर सेंटर ( ऐ टी एस ) में टेंसन और बढ़ गया।
लेकिन उस जिग सा पजल का दूसरा हिस्सा पूरा किया , बैक रूम ब्वायज ने , ( असल में उसमे दो गर्ल्स भी थीं टीना और रीमा ). ये जैसा की पहले जिक्र हुआ था , आई आई टी मुम्बई के लड़के लड़कियां थे , जो सॉफ्टेवयर सपोर्ट , सी सी टीवी ऐनिलिसिस और इस तरह के और काम कर रहे थे।
दादर के पुल का प्लान ‘कमांड और कंट्रोल सेंटर’ से मिलते ही, उस ग्रूप ने दादर के पास के लगे एक हफ्ते के सी सी टीवी को खंगालना शुरू कर दिया। और एक हफ्ते का वीडियो सर्च करने पर , उन्हें भारी सफलता मिली।
कोई सस्पेकेटेड आदमी या , एन पी के लिस्ट वाला कोई नहीं मिला।
लेकिन शरलॉक होम्स की मशहूर कहानी जिसमे , कुत्ता नहीं भूँकता , वाली बात थी।
टीना ने दो लोगों को चार पांच बार नोटिस किया जिनका चेहरा आधा शेड में , या झुका रहता था।
और ये बात साफ हो गयी की ये प्रोफेशनल लोग हैं , जिन्हे सी सी टी वि कैमरा आइडेंटिफाई करने की ट्रेनिंग है और उससे बचना भी जानते है।
लेकिन टीना की निगाहों से बचाना मुश्किल था।
उसने उन दोनों लोगों की फोटो को ज़ूम किया , अलग किया और फिर जीतनी बार वो नजर आये थे , उसमे उनके चेहरे के हिस्से को जोड़ के फिर रिकन्सट्रकट किया।
करीब ७४ % चेहरा मिल गया था।
और तेज निगाहों के लिया उतना काफी था।
एन पी ने अपने कांटेक्ट जागृत किये। दादर वेस्ट में , कामथ होटल के बगल में एक मसाज पारलर चलता था वर्षा , वहां की एक लड़की ने उसे पहचाना।
गली के बाहर , उसने दो बार एक को देखा था। पुलिस वालों से बचने , संभावित ग्राहक पहचानते उसकी निगाहें तेज हो गयी थी।
एक फूल बेचने वाली ने भी पहचाना।
और उन दोनों की मदद से अब उसके चेहरे का मुखौटा पूरा बन गया था।
लेकिन एक महत्वपूर्ण क्ल्यु उन बैक रूम ब्वायज ने उस प्लान से पकड़ा जो बी एम सी का था और उसमें स्ट्रक्चरल डिटेल्स थे।
वो एक कांफिडेंशियल प्लान था और उस पर डिजिटल सिग्नेचर्स थे।
आखिरी सिग्नेचर १० दिन पहले का था।
प्लान ये था की ये पता करें की किसने उस प्लान को एक्सेस किया और वहां से कापी कर के निकाला।
और उन लोगों ने बी एम सी का कम्प्यूटर हैक कर लिया।
जिस कम्यूटर में ये प्लान था वो मशीन लाक्ड था , लेकिन उसक सिस्टम एडमिन में जा के ये पता चला की दस दिन पहले रात में साढ़े ग्यारह बजे किसी ने उस कंप्यूटर में लॉग किया था और उस प्लान को एक्सेस कर के कापी किया था।
हालांकि उस ने अपने सारे डिजिटल फिंगर प्रिंट्स मिटाने की कोशिश की थी , लेकिन रजिस्टरी के एक कोने में कुछ डिटेल मिल गए।
लेकिन वो आदमी कौन था ये पता नहीं चल पाया।
अब रीमा का दिमाग चल गया।
उस ने सिक्योरिटी कैमरे का कंप्यूटर हैक किया।
लेकिन उस समय का उस इलाके का कैमरा कही और फोकस था। पर एक बात साफ हो गयी की , उस कमरे में में बिना डिजिटल इम्प्रेशन के कोई नहीं घुस एकता और उस कंप्यूटर से कुछ कापी करने के लिए उस कमरे में , कंप्यूटर को फिजकली एक्सेस करना जरुरी है।
एक्सेस करने के लिए न सिरफ मशीन पे अंगूठा लगाना पड़ता है , बल्कि आईरिस भी कंप्यूटर चेक करता है।
इसका मतलब ये किसी इनसाइडर का काम था।
रीमा ने उस कंप्यूटर के अंदर प्रवेश किया जिसमें , इंट्री के रिकार्ड रहते हैं , और उस आदमी के थमब प्रिंट्स ही नहीं मिले बल्कि एच आर के डाटा सरवर में जाके उसकी पूरी जनम कुंडली भी मिल गयी।
और उसकी सैलरी स्लिप से बैंक अकाउंट नंबर भी मिल गया।
बैंक से ये भी पता चला की अगले दिन उसके अकाउंट में दस लाख रुपये डाले गए थे।
अब रीमा ने उसकी फोटो सारे डिटेल ए टी एस वालों के हवाले कर दिए।
आधे घंटे के अंदर वो आदमी ए टी इस के तहखाने में था और सत्य बोलने का रिकार्ड तोड़ रहा था।
वो बी एम सी का एक मिडल लेवल एक्जीक्यूटिव था।
प्लान , ब्लैकमेल
वो बी एम सी का एक मिडल लेवल एक्जीक्यूटिव था।
उसे कोई ब्लैक मेल कर रहा था।
उसे ये बोला गया था की प्लान की कापी , शिवाजी पार्क में एक बेंच पे छोड़ देगा। और अगर उसने काम सही किया तो १२ बजे तक उसके अकाउंट में १० लाख रुपये पहुँच जाएंगे। वरना एक बजे उसकी लड़की जो दसवीं में पढ़ती है , घर वापस नहीं आएगी। अगले दिन उसकी ब्ल्यू फ़िल्म उसके पास पहुँच जायेगी।
शिवाजी पार्क में उसने उस प्लान की सी डी छोड़ दी थी।
उस दिन उसने आधे दिन की छुट्टी ले ली थी और जब बारह बजे उसके अकाउंट में पैसा जमा होने का मोबाइल पे मेसेज आया तो उसकी आधी सांस लौटी।
और पूरी सांस , जब लड़की घर लौट आई तब लौटी।
लेकिन उसके मोबाइल पे शाम को एक एम एम था।
जिसमे उसके शिवाजी पार्क में बेंच पर बैठने , प्लान की सी डी छोड़ने की वीडियो क्लिप थी।
बैंक में उसके एकाउंट का कल और आज का स्टेटमेंट था। जिसमे , ३,२४, ५४८ से बढ़कर , उसका अकाउंट , १३, २४, ५४८ हो गया था।
और लड़की की बस स्टैंड पर वेट करती , टेनिस की कोचिंग के लिए जाती और स्कूल के बाहर की फोटो थी।
अगले एस एम एस में पांच और प्लान का नाम था और अब उसे आजाद मैदान में एक बेंच पे उसे छोड़ना था।
इसी तरह ए टी इस को पांच और पुलों का पता चल गया जो आतंकवादियों के निशाने पे थे।
Lekin लेकिन मुद्दा ये था की उससे वो प्लान किसने हथियाया। कौन है इन सबके पीछे , हमला कौन करेगा। हमले का तरीका क्या होगा। क्योंकि बिना इन सब सवालों के जवाब के हमला रोकना मुश्किल था।
फिर वो बैक रूम ब्वायज की टीम और एन पी के कॉन्टेक्ट्स काम आये।
सबसे पहले आजाद मैदान के सी सी टी वी कैमरे ने वो तस्वीर पकड़ी , एक आदमी की बेंच पे झुक के सी डी उठाते हुए। उस समय की तस्वीर साफ नहीं थी। उसने मुंह झुका रखा था।
लेकिन उसकी प्रिकॉशन काम नहीं आई जब वो आजाद मैदान के बाहर निकाल रहा था। उसकी जॉंगिंग ट्रैक सूट से वो पहचान लिया गया। और इस बार चेहरा साफ था।
शिवाजी पार्क के पास के सी सी टीवी से भी उसकी फोटो पकड़ गयी।
और अब उसको सब ने पहचान लिया।
ये एक 'स्लीपर '' था।
जो बॉम्ब मेकर से मिला था और जिसे एन पी ने ट्रेस किया था , बॉम्ब मेकर के साथ।
और पिछली रात एक पिक पॉकेट ने उसका मोबाइल उड़ा के सारे कांटेक्ट निकाल लिए थे। ये बताने की जरुरत नहीं की ये काम एन पी के इशारे पे हुआ था।
तो अब दो जमूरों और बॉस दोनों का पता चल गया था।
लेकिन कहानी अभी बाकी थी।
जिग सा पजल का आखिरी हिस्सा , दादर के पुलिस के लोगों , ए टी स की सरवायलेन्स यूनिट और और वहां के लोगों ने पूरा किया।
दो घंटे के अंदर ही उन दो लोगों के बारे में काफी कुछ मालूम हो गया।
और जो स्लीपर था , उस के मोबाइल फोन के जरिये उसे ट्रेस कर लिया गया।
हमले का तरीका अभी भी नहीं मालूम था।
लेकिन हमला करने वाले तो मालूम थे।
और अब उन के हर कदम पे ए टी एस की निगाह थी।
एक उन का बैंक अप करने वाला साथी भी जद में आ गया।
और चार बजे के पहले सारे एक साथ पकडे गए, सिवाय स्लीपर के।
वो मलाड के पास एक बार से उन्हें कंट्रोल कर रहा था।
वो वहीँ पकड़ा गया।
वो बी एम सी का एक मिडल लेवल एक्जीक्यूटिव था।
उसे कोई ब्लैक मेल कर रहा था।
उसे ये बोला गया था की प्लान की कापी , शिवाजी पार्क में एक बेंच पे छोड़ देगा। और अगर उसने काम सही किया तो १२ बजे तक उसके अकाउंट में १० लाख रुपये पहुँच जाएंगे। वरना एक बजे उसकी लड़की जो दसवीं में पढ़ती है , घर वापस नहीं आएगी। अगले दिन उसकी ब्ल्यू फ़िल्म उसके पास पहुँच जायेगी।
शिवाजी पार्क में उसने उस प्लान की सी डी छोड़ दी थी।
उस दिन उसने आधे दिन की छुट्टी ले ली थी और जब बारह बजे उसके अकाउंट में पैसा जमा होने का मोबाइल पे मेसेज आया तो उसकी आधी सांस लौटी।
और पूरी सांस , जब लड़की घर लौट आई तब लौटी।
लेकिन उसके मोबाइल पे शाम को एक एम एम था।
जिसमे उसके शिवाजी पार्क में बेंच पर बैठने , प्लान की सी डी छोड़ने की वीडियो क्लिप थी।
बैंक में उसके एकाउंट का कल और आज का स्टेटमेंट था। जिसमे , ३,२४, ५४८ से बढ़कर , उसका अकाउंट , १३, २४, ५४८ हो गया था।
और लड़की की बस स्टैंड पर वेट करती , टेनिस की कोचिंग के लिए जाती और स्कूल के बाहर की फोटो थी।
अगले एस एम एस में पांच और प्लान का नाम था और अब उसे आजाद मैदान में एक बेंच पे उसे छोड़ना था।
इसी तरह ए टी इस को पांच और पुलों का पता चल गया जो आतंकवादियों के निशाने पे थे।
Lekin लेकिन मुद्दा ये था की उससे वो प्लान किसने हथियाया। कौन है इन सबके पीछे , हमला कौन करेगा। हमले का तरीका क्या होगा। क्योंकि बिना इन सब सवालों के जवाब के हमला रोकना मुश्किल था।
फिर वो बैक रूम ब्वायज की टीम और एन पी के कॉन्टेक्ट्स काम आये।
सबसे पहले आजाद मैदान के सी सी टी वी कैमरे ने वो तस्वीर पकड़ी , एक आदमी की बेंच पे झुक के सी डी उठाते हुए। उस समय की तस्वीर साफ नहीं थी। उसने मुंह झुका रखा था।
लेकिन उसकी प्रिकॉशन काम नहीं आई जब वो आजाद मैदान के बाहर निकाल रहा था। उसकी जॉंगिंग ट्रैक सूट से वो पहचान लिया गया। और इस बार चेहरा साफ था।
शिवाजी पार्क के पास के सी सी टीवी से भी उसकी फोटो पकड़ गयी।
और अब उसको सब ने पहचान लिया।
ये एक 'स्लीपर '' था।
जो बॉम्ब मेकर से मिला था और जिसे एन पी ने ट्रेस किया था , बॉम्ब मेकर के साथ।
और पिछली रात एक पिक पॉकेट ने उसका मोबाइल उड़ा के सारे कांटेक्ट निकाल लिए थे। ये बताने की जरुरत नहीं की ये काम एन पी के इशारे पे हुआ था।
तो अब दो जमूरों और बॉस दोनों का पता चल गया था।
लेकिन कहानी अभी बाकी थी।
जिग सा पजल का आखिरी हिस्सा , दादर के पुलिस के लोगों , ए टी स की सरवायलेन्स यूनिट और और वहां के लोगों ने पूरा किया।
दो घंटे के अंदर ही उन दो लोगों के बारे में काफी कुछ मालूम हो गया।
और जो स्लीपर था , उस के मोबाइल फोन के जरिये उसे ट्रेस कर लिया गया।
हमले का तरीका अभी भी नहीं मालूम था।
लेकिन हमला करने वाले तो मालूम थे।
और अब उन के हर कदम पे ए टी एस की निगाह थी।
एक उन का बैंक अप करने वाला साथी भी जद में आ गया।
और चार बजे के पहले सारे एक साथ पकडे गए, सिवाय स्लीपर के।
वो मलाड के पास एक बार से उन्हें कंट्रोल कर रहा था।
वो वहीँ पकड़ा गया।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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