FUN-MAZA-MASTI
फिर् धीरे-धीरे हम् दोनों उन हालातों में बढ़ आये जहां देह् की शिराओं में घने बादल घुमड़ने लगे थे, तूफ़ान आ रहा था और् बिजलियां चमकने लगी थीं. माहौल् बरसने-बरसने का हो रहा था और् कभी भी बारिश् हो सकती थी.
मैने नीला को खींचकर पटक दिया और् पूरी ताकत से खुद में चिपका लिया. नीचे ’भकाभक्-भकाभक’ की आवाज के साथ् जोरदार टक्ककर जारी थी और् ऊपर मसली जाती छातियों के साथ् एक दूसरे को मदहोशी में निहारती आंखें थीं.नीलान्जना और् मेरी भुजाएं एक-दूसरे को पूरी ताकत से कसकर थामे हुई थीं. नीला और् मेरे देह की एक-एक रग आज मिट् जाने तक का पूरा जोर लगाकर् स्वर्ग की उस दिव्य क्रीड़ा का सारा रस निचोड़कर् रख लेने को बेताब थी. ऐसा लग रहा था जैसे नीला और् मेरा बदन बादलों में तैर रहा है और् सारी कायनात फूलों की बारिश् करती हम दोनों के साथ खुशी की लहरों पर तैर रही है. उस खेल में आखिरकर ठोकरें यूं तेज हो चलीं कि मनो मेरा लौड़ा और् नीलारानी की ’चप्प-चप्प’ करती चूत सारी ताकत् लगाकर एक-दूसरे के चिथड़े उड़ाने को पिल पड़े हैं. मेरे लौड़े की नसें अब थिरकने लगी थीं और् उधर नीला की चूत कीचड़ में सनी चिड़िया की मानिन्द ’फुर-फुर’ उड़ रही थी. बिजली अब गिरने ही वाली थी. तब उस पल अचानक मैने पाया कि एक-दो-तीन -चार्-पांच्...की थिरक और चमक के साथ लगातार् बिजलियां चमकीं और् मेरा चरम पर पहुंचा लौड़ा अपनी नीला प्यारी की चूत में मादकता के रस के साथ मूसलाधार बरस पड़ा. उधर नीला की चूत उस थिरकन को समेटती लगतार अपने को सिकोड़ती और् कसती जा रही थी. स्वर्गिक सुख् मे नहला देने वाली इस बारिश की हर बून्द को नीलारानी जैसे अपने अंदर समेत कर् चूत की तिजोरी मे भर लेना चाहती थी.उस वक्त नीला और् मैं उत्तेजना के शिखर पर सवार होकर एक दूसरे की बांहों में कसकर गुंथे हुए एक दूसरे के होठों पर चुम्बनों की झड़ी लगाते खुशी से चीख् रहे थे -"आह् कितना मजा आ रह है. मेरे राजा...मेरी रानी आओ मुझमें समा जाओ....तुम् कितनी अच्छी हो..तुम् कितने प्यारे हो...आह्, का..स्स्..श्..हम जनम भर इस्सी हालत् में रहे आएं..आह्,..ये पल कभी न भूलेगा मेरे प्यारे...मेरी प्यारी, तुम्हारी चूत का ये मजा मेरे लंड् में हमेशा समाया रहेगा,...आह् मेरी रानी"...वगैरह.
हम दोनों पर एक अजीब किस्म की मादक बेहोशी तारी होती चली जा रही थी. हम दोनों एक दूसरे को झिंझोड़ते हुए सारे बदन पर् चुंबनोंकी झड़ी लगए जा रहे थे.
"आह् मेरे प्यारे, मेरे राजा प्रियहरि,आज् मैं बहुत खुश हूं"-नीलांजना बुदबुदा रही थी.
""मेरी प्यारी नीला, मेरी रानी, आज तुम्हारी चूत ने जो सुख दिया है उसे मै कभी नहीं भुला सकता. चोदने का ऐसा मजा फिर न जाने कब मिलेगा?"
मेरी और नीलांजना की मुंडियां एक-दूजे की जांघों की संधि को लील रही थीं. नीला के होठों के बीच् मेरा नन्हा जिगर खेल रहा था. मेरे होठ बड़ी बेताबी से नीला की गुलाबी चूत को "चप्प-चप्प" की पुरजोर आवाज करते चूमे जा रहे थे.
बाथ् के टब् से साबुन का झाग् बहाकर् नीलांजना और् मै वैसी ही अवस्था में शावर के तले बैठे हुए थे. शावर की तेज धार् ठीक नीला की चूत और् मेरे लंड पर गिर रही थी. यह भी एक अनोखा शमा था. मै और् नीला दोनों तेज धार् की मार से सनसनाती चूत और् थिरकते हुए लौड़े का नज़ारा मुग्ध होकर देख रहे थे. खुशी न समाई पड़ती तो बीच्-बीच् में हम्-दोनो लिपट पड़ते थे. नीला अपनी गुलाबी चूत के दोनों होटों पर् प्यार से उंगलियां फिरा रही थी कि अचानक मेरा लंड उसके हाथ् में आ गया. नीला ने देखा कि यह क्या? मेरा लंड उसकी छुअन भर से अपने बम्म लाल मुंड के साथ् फिर् उठ खड़ा हुआ है.
"हाय, मैं मर् गयी. ये तो फिर् खड़ा हो गया !" नीला ने उसे घूरकर देखा. अपनी दो उंगलियों से उसपर प्यार् की चपत जड़ते हुए नीलांजना यह कहती तुरंत भागी कि "बस् करो बाबा, अभी नहीं."
मेरे मन में चाहत जागी कि नीला को दबोच् लूं और् फिर् चढ़ जाऊं, लेकिन् मैं बस् उसे भागती देखता रहा. मैने सोचा कि अभी तो सारा दिन और् सारी रात बाकी है. नीला से अगली मुठभेड़ की नई तरकीब पर दिमाग दौड़ाता मै यानी प्रियम नहाने का मजा लेता रहा.
सुबह का प्रोग्राम् निबटाकर नीला और् मैं शानदार कपडों में सज-धजकर होटल से सज्जनों की तरह बाहर निकले. तब कोई अन्दाजा भी न लगा सकता था कि इन सज्जन और् सज्जनी की चूत् और् लंड ने खूब भिडकर सुबह-सुबह ही एक् दूसरे के चिथडे उडा डाले हैं. नीलारानी और् मेरे बीच् से समय गायब होता हुआ हम दोनों को स्वर्ग की सैर् करा चुका था.
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दोपहर का खाना नीला और् मैने बाहर ही खाया. चारमीनार और् सालारजंग म्यूजियम की सैर् करते-करते शाम ढलने लगी थी. सामने बाग में हम लोग थककर आराम से बैठे हुए थे. नीलांजना का खूबसूरत गुलाबी चेहरा पीछे मेरी पीठ से सटा कन्धे पर टिका हुआ था. वह अधनींदी सी थी. सुबह की चुदाई अब् भी नीला के दिमाग में सुरसुरा रही थी.
वह बोली - माइ डियर प्रिय, मुझको ख्वाब में भी इतना अंदाजा नहीं था कि तुम मुझको इतना प्यार दोगे.
नीलांजना के सिर पर प्यार से हाथ् फेरते हुए उसके बालों की लट से खेलते मैने कहा -" मेरी प्यारी नीला, वह तो मैने सुबह-सुबह् तुम्हारे बर्थ् डे की शुभ-कामना दी थी. वह इस बात की सजा भी थी कि तुमने नहीं बताया था कि आज तुम्हारा जन्म-दिन् भी है."
" चालाक. पर तुमने कैसे जाना कि आज मेरा जन्मदिन है ?-"नीला बोली.
" बस जान लिया. जिसे पाने मेरा दिल बरसों से बेकरार था उस प्रिया का जन्मदिन मुझे भला क्यों न याद रहेगा ?
" प्रिय, आप बडे वैसे हैं. ठीक है कि तुम्हारी सुबह की सजा भी प्यारी थी. लेकिन् आप मेरा उपहार अब् कब् दोगे ?" - नीला ने मुस्कुरा कर कहा.
’ हां, वह तो अभी बाकी है.चलो शापिंग करें. मेरी रानी जो चाहेगी वह आज मैं दूंगा."
" नहीं, मुझे कुछ भी नहीं चाहिये. तुम ही तो हो जो मेरी कद्र करते हो. सुबह सुबह तुमने जो गिफ़्ट दी है उससे ज्यादा कीमती गिफ्ट बहला मरे लिये और् क्या होगी ?" नीलांजना ने मेरी नाक की नोक को चिमटते हुए हौले से खींचा. नीला का चेहरा सुबह की याद से लजाता लाल हो रहा था और् होठों पर् दबी मुस्कान तैर् रही थी.
बाज़ार में हमने कुछ्-कुछ् सामान खरीदा. डिपार्टमेन्टल स्टोर में शापिंग करते वक्त मैं और् नीला अपनी पसन्द का सामान ढूंढते कुछ समय के लिये अलग् हुए थे. सच् तो यह है कि मै नीला के लिये चुपचाप उपहार खरीद कर रात में उसे चौंकाना चाहता था. लौटते लौटते मैने रंग बिरंगे फूलों से भरी एक पूरी बास्केट खरीद नीला की नज़रों से परे छिपा रखी थी. हमें लौटते हुए रात हो चली थी. तरोताजा होते बातें करते कुछ् समय बिताने के बाद हमने खाना मंगाया और् खाना खाकर गर्म काफी का एक्-एक् प्याला लिया.
मैं और् नीला साथ्- साथ् सोफे पर् बैठे थे. हमारी आंखें आपस में उलझ रही थीं. नींद की खुमारी आंखों में थी, लेकिन् नींद नहीं थी. नीला के कपोलों को अपनी हथेलियों में थामकर् उसके कानों पर् अपने होठ् टिका मैने उसे जन्म-रात की बधाई दी. नीला मेरी बाहों में झुक आई थी. नीला की चिबुक को थाम मैने उसका मुखडा ऊपर किया और् प्यार से निहारते हुए नीला के गुलाबी होठों पर् अपने होठ् भिडा दिये. एक दूसरे के होठों को चबाने, निगलने, और् लील जाने की होड् ने हम दोनों को बेहाल और् बेकाबू कर रखा था.
नीला ने मुझे देखा और् कहा कि सुबह ही आप ने मेरे पैरों की सारी नसें झिंझोड डाली हैं. अब तो परेशान नहीं करना है ना.ऽऽ ? उसने कहा - " चलो अब सो जाते हैं.सुबह तैयार होकर मुझे लौटना भी है ना."
" तुम भी यार नीलारानी, अभी रात पडी है और् तुम्हें सुबह की चिन्ता सताने लगी."
" तो ? तुम्हीं बताओ ?" नीलांजना बोली.
मैने अपनी प्रिया के जन्मदिन पर खरीदी रेशमी साडी, ब्लाउज़, ब्रा और् पेटीकोट का पैकेट उसकी ओर बढाते हुए कहा - " आज देखूं तो मेरी पसन्द के कपडों में मेरी प्यारी-प्यारी नीलान्जना रानी कैसी लगती है ?"
ओ के. बाबा ओ के. तुम्हारी खुशी के लिये सज लेती हूं.
नीलान्जना को सजने में आधा घन्टे का समय गुजर चला था. फिर उसकी आवाज की घन्टी खनकी.
" प्रियम, ज़रा आइये ना प्लीज़."
नीलांजना की खूबसूरती उन कपडों में गजब ढा रही थी. कमरे की दोनों तरफ की दीवारों में टंगे आईनों में नीला की सुन्दरता साक्षात वीनस की पेन्टिंग की तरह जडी थी.
" ज़रा इस ब्रा का हुक तो लगाना प्लीज़. मुझसे लग नहीं रहा है."
नीला की पीठ के पीछे खडा सामने आइने में उसे निहारते मैने जवाब दिया -" भला इस ब्रा बेचारी को क्या मालूम कि उसकी मालकिन् का कीमती सामान उसमें समायेगा भी कि नहीं ?"
ब्रा के हुकों को हाथ् में थामे ही मेरी हथेलियां नीला की जबरदस्त गोलाइयों पर् जम गई थीं. मेरी अंगुलियों उनकी संगमरमरी चिकनाई पर फिसलने लगी थीं.
नीला नाराज हो रही थी या उसका दिखावा कर रही थी, यह मुझे नहीं मालूम.
" ओफ् ओह , आह. नो प्लीज़. नईं ना. जो काम कहा वह करो ना..."
मैने अपनी प्रिया की उन प्यारी-प्यारी गोलाइयों को उसकी चाहत के अनुसार कस दिया था. नीला अब मेरी ओर पलटी और् कहा -
" अब बताइये मैं कैसी लग रही हूं ?"
नीला को देखने मैं कुछ परे हटा. आसमानी साडी में दमकता नीला का चेहरा पूनम के चांद की तरह खिल उठा था. बारीक तराशे होटों पर गुलाब का रंग लिपस्टिक की शक्ल में ताजगी भर रहा था. बहुरंगी किनारियों में सजा साडी का नीला रंग् मानो झाडियों में अटका बादल था. नीला की सहज खूबसूरत भौहों पर आई-ब्रो पेन्सिल के धार नीला की आंखों को इन्द्रधनुषी छ्टा दे रही थी. हरिणी सी खूबसूरत आंखों की चमक इस सज्जा से और् बढ् गई थी. मेरी नीलांजना की सुंदरता अपने नाम को सार्थक् करती इस वक्त मेरे सामने खडी थी. नीला के रूप से चुंधियाती सनसनी मेरी नजरों से बिजली की तरह कडकडाती मेरी टांगों के बीच गिरी पड रही थी . वह सनसनी खलबली मचाती और अंगडाई लेती हुई अपनी नीला रानी के स्वागत में खडी हो रही थी..
" आह क्या बात है ? गजब ढा रही हो. मेरी प्यारी नीला इस वक्त सुहागरात के लिये तैयार बैठी नई नवेली दुलन की तरह तैयार नज़र आ रही है." - मैने शरारत से कहा.
" धत्त. आप बडे बेशरम हैं. मुझे लाज आ रही है. वह रस्म तो आप ने बेताब होकर सुबह ही पूरी कर ली है."- वह बोली. नीलारानी की सुस्ती अब प्यार की अंगडाई में तब्दील हो चली थी. उसकी लाडली भी अब फुरक-फुरक कर नाचने लगी थी.
नीला की चिबुक को अपनी हथेली में थाम मैने उस प्यारी मूरत का प्यारा चेहरा ऊपर उठाया.नीलांजना की आंखों में आंखें डाल उसके कानों में मेरे होठों ने हौले से कहा -" मेरी प्यारी, वह् तो सुहाग-दिन का तोहफा था. सुहाग की रात तो अब लेकर यह मेरी आसमानी परी उतरी है."
नीलांजना का मुखडा मेरी छाती में समा गया. उसने कहा - " अब् मेरी शामत आई. तुम्हारे इरादे खतरनाक हैं."
नीला की उंगलियां मेरे पैन्ट में समाई अपनी चाहत के लौड़े पर फिर रही थीं. बार-बार उन्हें होठों पर लाती नीलारानी सिहर्-सिहर् कर् चूम रही थी.
" हाय रे क्या करूं ?" - लौड़े को मुटठी में तौलती नीला बोली
" चाहती हूं फौरन इस प्यारे को लपक कर खा जाऊं फिर् भले क्यों न यह मेरी चूत को फाड-फाडकर मिटा डाले. तुम्हारी नीला तुमसे कभी अलग नहीं हो सकती. लेकिन मेरे पांव ! हाय इनका मैं क्या करूं ? सुबह तुमने निचोडकर इन्हे थका डाला है. बहुत दुख् रहे हैं ? इनका कुछ् इलाज करो प्लीज़"
वह भी हो जाएगा. इलाज है मेरी रानी. बस् तुम् इंतजार करो. मुझे भी तैयार हो जाने दो." मैने नीला की चुम्मी लेते हुए प्यार से कहा.
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मुझे अपने और् कमरे को तैयार करने में थोडा समय लग गया. नीला मुझे पुकार् रही थी.
" जल्दी आओ प्लीज़. और् कितनी देर लगेगी.मैं यहां बोर हो रही हूं."
रात के झक्क झीने सफेद् कपडों में मैं बाहर निकला. नीला ने दिलचस्पी से देखा. बोली -
" वाव् यू आर् लुकिंग् क्यूट . वेरी हैन्डसम. जी करता है तुम्हें...." वह् चुप हो गई.
"क्या ? बोलो भी ना " - मैने कहा.
"कुछ् नहीं. अब् और् रहा नहीं जाता. मुझे बिस्तर पर ले चलो. मेरे पांवों का इलाज कब करोगे."
नीला को अपनी बांहों में उठा मैने कमरे में सजा;ए बैड पर् लाकर पटक दिया. बिस्तर् मेरे सजाये गुलाब, चमेली, रातरानी, सेवंती, और् नरगिस के फूलों से सजा महक रहा था. फूलों से सजी लडियां मसहरी की डंडियों पर झालर बनाती झूल रही थीं. कमरे के एक कोने में सजे लैम्प की आसमानी छटा वली झीनी-झीनी दूधिया रौशनी अपनी मादक
छटा बिखेर रही थी. बाकी बत्तियां मैने गुल कर् दी थीं.
" यह होटल का कमरा है या चमन् का बाग? ओह् मेरे राजा यू आर ग्रेट्. अब समझ आया कि तुम्हें इतनी देर क्यों लग रही थी?" - नीला बोली.
महकते सेज पर नीलांजना घुटने मोडे लेटी थी. मैं उसके पायताने बैठा था. नीला की हथेलियों को खोल पन्जे से पन्जे भिडाता उसके खूबसूरत बदन पर मैं झुक चला था. चेहरे पर् लहराते चेहरों में आंखें एक-दूसरे में डूब गई थीं.
" अब ?"- नीला ने बेहोश आवाज में सवाल किया.
नीलांजना की आंखों की दोनो पलकों से गुजरते मेरे होंठ् उसके अधरों पर् जाकर थम् गये और् फिर् उठते-गिरते जोर-जोर की आवाज के सथ् नीला के होटों पर चुम्बनों की ऐसी बेताब् झडी लगी कि उसकी समूची काया लहरों की मानिन्द हिलोरें लेने लगी.
" मेरी प्यारी रानी, अब् तुम् ही नहीं मैं भी तुम्हारा बीमार हो चला हूं. चलो अब् हम एक-दूसरे का इलाज शुरू करें. सब् से पहले मुझे अपनी प्यारी नीला के पैरों की थकावट् भगानी है."
पलंग के पायताने नीचे रखी शीशी से भरपूर तेल् हथेलियों पर उलेडते मैने मालिश् शुरू की. सब से पहले तलवे, फिर उंगलियों की पोरें, पिंडलियां, जंघाएं और् आगे? मेरी तेल्-भीगी अंगुलियां वहां पहुंची जहां नीला की चिकनी कोमल् जंघाओं की संधि-रेखा थी. हां घाघरा पलटता चला गया था और् अब् मेरे सामने भूरे-भूरे घुंघराले केशों के बीच् की वही गहरी रेखा थी. पहले प्यार भरी हल्की-हल्की थपकियों से मैने उसे पुचकारते हुए दिलासा दिया. अपनी उंगलियों को तेल् में फिर् से भिगा तब मैने अंदर सोई रानी को जगाने उसकी उभरी पलकों और् बीच की दरार को चिकनाना शुरू किया. बीच-बीच में अगल और बगल की जंघाओं पर मै यूं थपकी देता जा रहा था जैसे रंगमहल के पट् खोलने के लिये दस्तक दी जा रही हो. असर होने लगा था. झांटों की लंबी भूरी रेखा की चिलमन से गुलाबी कली की तरह अंदर छिपी रानी ने चुपके-चुपके झांकना शुरू कर दिया था. उसकी गुलाबी शिरायें लपलपा रही थीं. वह अब् पिघल रही थी. ऊपर से कूकर के भाप की मानिन्द सीटी सिसक रही थी और् नीचे नीला की छोटी रानी बार-बार जीभ् की फुनगी दिखाती और् छिपाती लार टपकाने लगी थी.
झुरमुटों के बीच दरारों से झांकती नीला की वह बेताब् जीभ इशारे कर रही थी -" आओ ना, यही तो मुकम्मल वक्त है राजा. अब जीभ से जीभ टकराने भी दो यार. मैं खुद पुकार रही हूं तो तुम् क्यों शरमा रहे हो."
अब् मेरी जीभ की फुनगी नीला की छोटीरानी की जीभ् को ठोकर देती और् लेती मजे ले-लेकर खेल रही थी. अपनी रानी का मूड भांपकर उसकी पहरेदार बनी जांघें अपनी अकड और् जकड छोडकर फैलती और् ढीली होकर दूर-दूर पसरती जा रही थीं. नीला के मुंह् से "आह-आह" के साथ मीठी-मीठी सिसकारी की धुन् लगातार् बज रही थी. उसका समूचा बदन बेकाबू होकर लहरें लेता इस और् उस करवट हिचकोले खाने लगा था. हम दोनों के कपडे बंधन तोडकर बिखर चले थे. नीला की छोटी रानी से मिलने को बेताब मेरा राजा तन-तनकर उछ्ल-कूद रहा था. वह चीख रहा था कि रानी ने जब पट खोल दिये हैं तो मेरी जीभ् क्यों दरवाजा रोके अडी हुई है. मैं उसे समझाता चला आ रहा था कि मेरे प्यारे लौड़े राजा, तुम्हारे लिये ही तो इतनी तैयारी मैं कर रहा हूं. बस दो मिनट धीरज धरो फिर् तो बेताब रानी खुद तुमसे यूं भकाभक चुदने वाली है कि खुशी से चीखती उछ्ल-उछ्लकर हवा में उडती वह् छत से टकराने लगेगी.
मैने अपने लौड़े की बात समझने में भले देर कर दी थी लेकिन् नीला के कानों ने जरूर उसकी पुकार सुन् ली होगी. नीला अचानक चील की तरह झपटी. अपनी हथेलियों से मेरी हथेलियों के पंजे फ्ंसाकर जोर के झटके से वह मुझपर आ झुकी. बावली होती नीला ने अपने होंठ् मेरे होठों पर जमाकर समूचा का समूचा लील डाला और् खूब बेरहमी से उन्हें चबाती चली गई. मेरे हाथों को थामकर नीला ने वहां टिका दिया जहां उसकी दूधिया गुलाबी छातियों के पहाड पर चोंच् उठाई चूचियां पकी हुई खूबसूरत चेरियों की तरह चमक रही थीं. नीलारानी का बदन प्यार की शराब के नशे में मचल रहा था. वह् और् नीचे झुकी और् लप्प से लपकती मेरे लौड़े को अपने गले तक ठूंस गई. हत्टे-कत्टे लौड़े राजा को चुप् करती नीला ने उसकी बोलती बंद् कर दी थी. उधर चप्पऽ-चप्पऽ करती वह् रूठे लौड़े को चूमती और् होठों में निगलती-उगलती, दुलार करती मना रही थी और इधर मैं नीलारानी की उन छातियों से खेल रहा था जो फूल-फूल कर तनी हुईं मेरी हथेलियों के इन्तिज़ार में मचल रही थीं. उनकी शिकायत दूर करने मेरी तेल-सनी हथेलियां किसी मंजे खिलाडी की तरह उनपर फिसल रही थीं. कहना मुश्किल है कि वह वह् अपनी चूतरानी के प्यारे भुजंग लौड़े को देख्-देख् कर् पागल हुए जा रहे नीला के अंदर की दीवानगी थी या फिर रतिरानी के पहाड् पर् चिकनाई में फिसलती और् भूरी बेरियों को चिमटती गुदगुदाती मेरी हथेलियों का कमाल था जिसका असर मेरी गोरी नीला के मुंह् से आहों और् सिसकारियों में निकला पड रहा था.
न तो अब मुझसे रहा जा रहा था और् न मेरी प्यारी नीला से. दोनो ही अब् अपने अंदर् के कामदेव और रति की उस आखिरी भिडंत के लिये अधीर थे. नीला की चूत तैयार होकर अब् इस मूड में आ चली थी कि लौड़े की मार से खूब चुदवा-चुदवा कर्, छकछक कर, बिना उफ् किये अपने चिथडे उडवाती हुई जनम् भर के लिये प्यास बुझाकर् अपने को मिटा डाले. इधर मेरा लौड़ा भी नीला की उछाल मारती चूत को चोद-चोदकर बेहाल् कर देने के लिये बेताब हो रहा था. वह् नीला की चूत पर टूटकर बैल् की तरह सींग मारता आज इस तरह भिड जाने बेकरार था कि चूत के साथ उस भिडंत में अपनी प्यारी नीला चूत को छितरा-छितरा कर् यूं लहूलुहान कर डाले कि नीला उसे जनम भर न भूल पाये. वह ऐसी यादगार भिडंत चाहता था जिसमें फटकर् छितरा चली नीलारानी की लहू-लुहान् चूत और् चूत की टक्कर से छिल-छिलकर घायल पडा उसका यह भयानक लंड् एक-दूसरे पर् फिदा होते गले मिलकर आखिर में "आह् क्या बात थी मेरे यार में" और् "वाह्-वाह् क्या मजा आया" कहते फिर् मिलने के लिये जुदा हों.
आखिर वह घडी आई. नीलांजना का हाथ बेताब होकर् मेरे उस कठोर अस्तित्व को अपनी मुत्ठी में थामकर खींचने लगा था जो उसकी जांघों के बीच् में छिपी कोमलता को भेदकर अंदर समाये रस के झरने को खोलकर बहा दे. दूसरे हाथ् से मेरे सिर को दबाती वह इस तरह झुकाये जा रही थी कि वह् नीला की चूचियों से टकराता - चूसता उसके होठों पर जा टिका था. नीला और् मेरे बदन की जमीन भूचाल से लहरा रही थी. तैय्यारी का यह मुकम्मल मुकाम था. नीलान्जना अब् अपने को संभाल नहीं पा रही थी. मैने जायजा लिया तो पाया कि नीला की जांघों का पठार उस्की सुरंग के झरने से गीला हो रहा था.
" देर मत करो प्लीज़. आओ. मै मरी जा रही हूं." - उसने कहा.
तूफान से पहले पलभर के लिये मैं शान्त होना चाहता था. जल्दबाजी से काम बिगडता हैयह मुझे मालूम था. पलंग के नीचे ही मैने गुलाबजल में घुला शहद फूलों का जूस, और् शैम्पेन् की बोतल् छिपा रखी थी. अपने और् नीला को शैम्पेन से नहलाते और् पीते-पिलाते मैने उसके कान् की लवों को अपने होठों मे चुइंगम की तरह चबाते उसके जन्मदिन की मुबारकबाद दी. यह कामना की कि प्यारी नीलारानी और् मेरे बीच की यह शानदार रात हमारी जिन्दगी की अविस्मरणीय रात बनकर रह जाये.
नीलांजना के बदन पर फूलों का रस और् शहद सींचने के बाद मैने सर से पांव तक उसे वैसी बदहवासी से चाटना शुरू किया कि जैसे भूखा जानवर पत्तल का हरएक कोना चाट कर साफ कर दिया करता है.नीला से चिपका मेरा बदन भी शैम्पेन , फूलों की सुगंध् और् इत्र की महक् से महमहा रहा था. खुशी से पागल हुई जा रही नीलांजना का हर अंग मचलता हुआ मछली की तरह उछ्ला पड रहा था. ऐसी खुशी न उसने कभी पाई थी और न कभी आगे पा सकने की उम्मीद उसे थी. उसके लिये रुकना मुश्किल हो रहा था. मेरी हथेलियों में अपने पन्जे नीला ने खूब कसकर् फंसा लिये और् इससे पहले कि उसके इरादे मैं भांप पाता एक झटके के वार से उसने मुझे चित्त किया और मौज में आई शेरनी की तरह मुझ पर चढ् बैठी. उसके इरादे जबरदस्त थे.मेरे समूचे बदन को उसकी जीभ् लपक्-लपक कर चाटती रही. जांघों के बीच् पहुंचकर मेरे उस अंग पर लपा-लप्प जीभ फिराती गप्प से लील गई जो खुद नीला को लीलने की चाहत में नब्बे से एक सौ बीस अंश् का कोण बनाता ठन्ना रहा था. मेरे लंब की सुपारी को नीला अपने होठों से निचोडती बार-बार निगल और् खींच रही थी. मेरा लौड़ा नीला के होठों के बीच मगन् हो खेल रहा था. नीला उसे उस सुख् में पहुंचा रही थी जो जिन्दगी में दुर्लभ था. गुदगुदी की मौज में आहें भरता मेरा दिल पागल होता चीख रहा था -" हाय मेरी रानी, हाय-हाय नीला प्यारी तुम आज क्या गजब ढाने जा रही हो. इससे पहले कि मैं तुम्हें खलास करूं कहीं तुम ही न मुझे खलास कर दो."
नीला की ओर ढलता मेरा बदन बेकाबू हुआ जा रहा था. नीला को झटककर् उसी की शैली में ही मैने उसके बदन को उलताकर चित्त किया और् नीला के पन्जों मे पन्जे फंसाये उसकी जांघों के बीच सवार हो गया. नीला भी जोश में आ गई थी. खेल्-खेल् में अब होड इस बात की मच गई कि हम दोनो के बीच कौन जीतने जा रहा है ? उसकी चूत हमलावर होकर् मेरे लौड़े पर् पहले सवार होगी या मेरा लौड़ा नीला की चूत पर् कब्जा करके पहले वार करेगा ? हम दोनों झूला झूलने और् झुलाने का खेल खेल रहे थे. कभी नीलारानी मुझे उलटती मुझपर सवार होती झिंझोड जाती और कभी मैं उसे उलटकर चूत को रगड जाता.यह वह प्यारा काम-युद्ध था जहां ताकत से हारने की नहीं नजाकत की अदा से एक-दूसरे को जीतने की होड लगी थी. प्रतिरोध का सवाल ही नहीं था. हारता चाहे कोई भी जीत दोनों की होनी थी. खेल इस् कदर बढा कि हमने उन बेशकीमती कपडों के चीथडे बना दिये जो शुरुआत में बदन को सजा रहे थे. रंग बिरंगी चिन्दियों से फूलों का बिस्तर
और् ज्यादा सज रहा था.
नीला बदहवाश् हो हांफने लगी थी. इस बार जो मैने झटके से उसे उलटा तो उछलकर उसका लहंगा भी कमर पर् जा टिका. नीला की पिन्डलियों पर् मेरी जकड मजबूत थी.
" आप जीत गये. मैं हार गई." मदमाती आंखों से मुस्कुराती नीला ने लम्बी सांस भरते हुए कहा.
मैने प्यार से नीलारानी के होठों की चुम्मी ली. उसकी जान्घों पर् प्यार की थपकियां दीं. मुंह नीचे झुका और् फिर् मेरे होठों से लपकती जीभ् कोमलता से चूसती, चबाती, ठेलती हुई नीला की गुलाबी चूत से खेल रही थी. उसकी जंघाओं को पसारते हुए मैने धीमी आवाज़ में कहा - " घुसेड दूं ?"
कुछ् कहने की बजाय नीला के हाथ् आगे बढे, ठन्नाए लौड़े को कसकर मुत्ठी में समेटा और् खींचकर अपनी चूतरानी के मुहाने पर ला टिकाया.
" क्या चोदने के बाद पूछोगे कि घुसेड दूं ? मेरे प्यारे राजा, आओ. मैं तैयार हूं. आधी जंग तो तुम् जीत चुके. अब देखूं कि आगे कौन् किसको जीतता है." - नीलांजना ने मदमाती आंखों से मुझे निगलते हुए कहा और् झटककर मुझे अपने ऊपर खींच् लिया.
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शर्मीली नीलान्जना--2
टकराहट् की हर् थाप् के साथ् नीला और् मेरे दिल् का जोश् बढ़ता चला जाता था.मगन् होकर् लंड् और् चूत के बीच् भकाभक् का खेल् देखते हर् टक्कर् मे हम् दोनों अपने-अपने खिलाड़ी का हौसला बढ़ाते कह पड़ते थे - "शाब्बास्,जोर् से".."और जोर से."... "पीछे मत् हटना"..."मारो कस्स के"...."ठांस डालो"..."लपक जाऽऽ रानी"..."लील ले"..."चोद डाल" .."उड़ाओ चिथड़े"...."शाब्बास्.."फिर् धीरे-धीरे हम् दोनों उन हालातों में बढ़ आये जहां देह् की शिराओं में घने बादल घुमड़ने लगे थे, तूफ़ान आ रहा था और् बिजलियां चमकने लगी थीं. माहौल् बरसने-बरसने का हो रहा था और् कभी भी बारिश् हो सकती थी.
मैने नीला को खींचकर पटक दिया और् पूरी ताकत से खुद में चिपका लिया. नीचे ’भकाभक्-भकाभक’ की आवाज के साथ् जोरदार टक्ककर जारी थी और् ऊपर मसली जाती छातियों के साथ् एक दूसरे को मदहोशी में निहारती आंखें थीं.नीलान्जना और् मेरी भुजाएं एक-दूसरे को पूरी ताकत से कसकर थामे हुई थीं. नीला और् मेरे देह की एक-एक रग आज मिट् जाने तक का पूरा जोर लगाकर् स्वर्ग की उस दिव्य क्रीड़ा का सारा रस निचोड़कर् रख लेने को बेताब थी. ऐसा लग रहा था जैसे नीला और् मेरा बदन बादलों में तैर रहा है और् सारी कायनात फूलों की बारिश् करती हम दोनों के साथ खुशी की लहरों पर तैर रही है. उस खेल में आखिरकर ठोकरें यूं तेज हो चलीं कि मनो मेरा लौड़ा और् नीलारानी की ’चप्प-चप्प’ करती चूत सारी ताकत् लगाकर एक-दूसरे के चिथड़े उड़ाने को पिल पड़े हैं. मेरे लौड़े की नसें अब थिरकने लगी थीं और् उधर नीला की चूत कीचड़ में सनी चिड़िया की मानिन्द ’फुर-फुर’ उड़ रही थी. बिजली अब गिरने ही वाली थी. तब उस पल अचानक मैने पाया कि एक-दो-तीन -चार्-पांच्...की थिरक और चमक के साथ लगातार् बिजलियां चमकीं और् मेरा चरम पर पहुंचा लौड़ा अपनी नीला प्यारी की चूत में मादकता के रस के साथ मूसलाधार बरस पड़ा. उधर नीला की चूत उस थिरकन को समेटती लगतार अपने को सिकोड़ती और् कसती जा रही थी. स्वर्गिक सुख् मे नहला देने वाली इस बारिश की हर बून्द को नीलारानी जैसे अपने अंदर समेत कर् चूत की तिजोरी मे भर लेना चाहती थी.उस वक्त नीला और् मैं उत्तेजना के शिखर पर सवार होकर एक दूसरे की बांहों में कसकर गुंथे हुए एक दूसरे के होठों पर चुम्बनों की झड़ी लगाते खुशी से चीख् रहे थे -"आह् कितना मजा आ रह है. मेरे राजा...मेरी रानी आओ मुझमें समा जाओ....तुम् कितनी अच्छी हो..तुम् कितने प्यारे हो...आह्, का..स्स्..श्..हम जनम भर इस्सी हालत् में रहे आएं..आह्,..ये पल कभी न भूलेगा मेरे प्यारे...मेरी प्यारी, तुम्हारी चूत का ये मजा मेरे लंड् में हमेशा समाया रहेगा,...आह् मेरी रानी"...वगैरह.
हम दोनों पर एक अजीब किस्म की मादक बेहोशी तारी होती चली जा रही थी. हम दोनों एक दूसरे को झिंझोड़ते हुए सारे बदन पर् चुंबनोंकी झड़ी लगए जा रहे थे.
"आह् मेरे प्यारे, मेरे राजा प्रियहरि,आज् मैं बहुत खुश हूं"-नीलांजना बुदबुदा रही थी.
""मेरी प्यारी नीला, मेरी रानी, आज तुम्हारी चूत ने जो सुख दिया है उसे मै कभी नहीं भुला सकता. चोदने का ऐसा मजा फिर न जाने कब मिलेगा?"
मेरी और नीलांजना की मुंडियां एक-दूजे की जांघों की संधि को लील रही थीं. नीला के होठों के बीच् मेरा नन्हा जिगर खेल रहा था. मेरे होठ बड़ी बेताबी से नीला की गुलाबी चूत को "चप्प-चप्प" की पुरजोर आवाज करते चूमे जा रहे थे.
बाथ् के टब् से साबुन का झाग् बहाकर् नीलांजना और् मै वैसी ही अवस्था में शावर के तले बैठे हुए थे. शावर की तेज धार् ठीक नीला की चूत और् मेरे लंड पर गिर रही थी. यह भी एक अनोखा शमा था. मै और् नीला दोनों तेज धार् की मार से सनसनाती चूत और् थिरकते हुए लौड़े का नज़ारा मुग्ध होकर देख रहे थे. खुशी न समाई पड़ती तो बीच्-बीच् में हम्-दोनो लिपट पड़ते थे. नीला अपनी गुलाबी चूत के दोनों होटों पर् प्यार से उंगलियां फिरा रही थी कि अचानक मेरा लंड उसके हाथ् में आ गया. नीला ने देखा कि यह क्या? मेरा लंड उसकी छुअन भर से अपने बम्म लाल मुंड के साथ् फिर् उठ खड़ा हुआ है.
"हाय, मैं मर् गयी. ये तो फिर् खड़ा हो गया !" नीला ने उसे घूरकर देखा. अपनी दो उंगलियों से उसपर प्यार् की चपत जड़ते हुए नीलांजना यह कहती तुरंत भागी कि "बस् करो बाबा, अभी नहीं."
मेरे मन में चाहत जागी कि नीला को दबोच् लूं और् फिर् चढ़ जाऊं, लेकिन् मैं बस् उसे भागती देखता रहा. मैने सोचा कि अभी तो सारा दिन और् सारी रात बाकी है. नीला से अगली मुठभेड़ की नई तरकीब पर दिमाग दौड़ाता मै यानी प्रियम नहाने का मजा लेता रहा.
सुबह का प्रोग्राम् निबटाकर नीला और् मैं शानदार कपडों में सज-धजकर होटल से सज्जनों की तरह बाहर निकले. तब कोई अन्दाजा भी न लगा सकता था कि इन सज्जन और् सज्जनी की चूत् और् लंड ने खूब भिडकर सुबह-सुबह ही एक् दूसरे के चिथडे उडा डाले हैं. नीलारानी और् मेरे बीच् से समय गायब होता हुआ हम दोनों को स्वर्ग की सैर् करा चुका था.
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दोपहर का खाना नीला और् मैने बाहर ही खाया. चारमीनार और् सालारजंग म्यूजियम की सैर् करते-करते शाम ढलने लगी थी. सामने बाग में हम लोग थककर आराम से बैठे हुए थे. नीलांजना का खूबसूरत गुलाबी चेहरा पीछे मेरी पीठ से सटा कन्धे पर टिका हुआ था. वह अधनींदी सी थी. सुबह की चुदाई अब् भी नीला के दिमाग में सुरसुरा रही थी.
वह बोली - माइ डियर प्रिय, मुझको ख्वाब में भी इतना अंदाजा नहीं था कि तुम मुझको इतना प्यार दोगे.
नीलांजना के सिर पर प्यार से हाथ् फेरते हुए उसके बालों की लट से खेलते मैने कहा -" मेरी प्यारी नीला, वह तो मैने सुबह-सुबह् तुम्हारे बर्थ् डे की शुभ-कामना दी थी. वह इस बात की सजा भी थी कि तुमने नहीं बताया था कि आज तुम्हारा जन्म-दिन् भी है."
" चालाक. पर तुमने कैसे जाना कि आज मेरा जन्मदिन है ?-"नीला बोली.
" बस जान लिया. जिसे पाने मेरा दिल बरसों से बेकरार था उस प्रिया का जन्मदिन मुझे भला क्यों न याद रहेगा ?
" प्रिय, आप बडे वैसे हैं. ठीक है कि तुम्हारी सुबह की सजा भी प्यारी थी. लेकिन् आप मेरा उपहार अब् कब् दोगे ?" - नीला ने मुस्कुरा कर कहा.
’ हां, वह तो अभी बाकी है.चलो शापिंग करें. मेरी रानी जो चाहेगी वह आज मैं दूंगा."
" नहीं, मुझे कुछ भी नहीं चाहिये. तुम ही तो हो जो मेरी कद्र करते हो. सुबह सुबह तुमने जो गिफ़्ट दी है उससे ज्यादा कीमती गिफ्ट बहला मरे लिये और् क्या होगी ?" नीलांजना ने मेरी नाक की नोक को चिमटते हुए हौले से खींचा. नीला का चेहरा सुबह की याद से लजाता लाल हो रहा था और् होठों पर् दबी मुस्कान तैर् रही थी.
बाज़ार में हमने कुछ्-कुछ् सामान खरीदा. डिपार्टमेन्टल स्टोर में शापिंग करते वक्त मैं और् नीला अपनी पसन्द का सामान ढूंढते कुछ समय के लिये अलग् हुए थे. सच् तो यह है कि मै नीला के लिये चुपचाप उपहार खरीद कर रात में उसे चौंकाना चाहता था. लौटते लौटते मैने रंग बिरंगे फूलों से भरी एक पूरी बास्केट खरीद नीला की नज़रों से परे छिपा रखी थी. हमें लौटते हुए रात हो चली थी. तरोताजा होते बातें करते कुछ् समय बिताने के बाद हमने खाना मंगाया और् खाना खाकर गर्म काफी का एक्-एक् प्याला लिया.
मैं और् नीला साथ्- साथ् सोफे पर् बैठे थे. हमारी आंखें आपस में उलझ रही थीं. नींद की खुमारी आंखों में थी, लेकिन् नींद नहीं थी. नीला के कपोलों को अपनी हथेलियों में थामकर् उसके कानों पर् अपने होठ् टिका मैने उसे जन्म-रात की बधाई दी. नीला मेरी बाहों में झुक आई थी. नीला की चिबुक को थाम मैने उसका मुखडा ऊपर किया और् प्यार से निहारते हुए नीला के गुलाबी होठों पर् अपने होठ् भिडा दिये. एक दूसरे के होठों को चबाने, निगलने, और् लील जाने की होड् ने हम दोनों को बेहाल और् बेकाबू कर रखा था.
नीला ने मुझे देखा और् कहा कि सुबह ही आप ने मेरे पैरों की सारी नसें झिंझोड डाली हैं. अब तो परेशान नहीं करना है ना.ऽऽ ? उसने कहा - " चलो अब सो जाते हैं.सुबह तैयार होकर मुझे लौटना भी है ना."
" तुम भी यार नीलारानी, अभी रात पडी है और् तुम्हें सुबह की चिन्ता सताने लगी."
" तो ? तुम्हीं बताओ ?" नीलांजना बोली.
मैने अपनी प्रिया के जन्मदिन पर खरीदी रेशमी साडी, ब्लाउज़, ब्रा और् पेटीकोट का पैकेट उसकी ओर बढाते हुए कहा - " आज देखूं तो मेरी पसन्द के कपडों में मेरी प्यारी-प्यारी नीलान्जना रानी कैसी लगती है ?"
ओ के. बाबा ओ के. तुम्हारी खुशी के लिये सज लेती हूं.
नीलान्जना को सजने में आधा घन्टे का समय गुजर चला था. फिर उसकी आवाज की घन्टी खनकी.
" प्रियम, ज़रा आइये ना प्लीज़."
नीलांजना की खूबसूरती उन कपडों में गजब ढा रही थी. कमरे की दोनों तरफ की दीवारों में टंगे आईनों में नीला की सुन्दरता साक्षात वीनस की पेन्टिंग की तरह जडी थी.
" ज़रा इस ब्रा का हुक तो लगाना प्लीज़. मुझसे लग नहीं रहा है."
नीला की पीठ के पीछे खडा सामने आइने में उसे निहारते मैने जवाब दिया -" भला इस ब्रा बेचारी को क्या मालूम कि उसकी मालकिन् का कीमती सामान उसमें समायेगा भी कि नहीं ?"
ब्रा के हुकों को हाथ् में थामे ही मेरी हथेलियां नीला की जबरदस्त गोलाइयों पर् जम गई थीं. मेरी अंगुलियों उनकी संगमरमरी चिकनाई पर फिसलने लगी थीं.
नीला नाराज हो रही थी या उसका दिखावा कर रही थी, यह मुझे नहीं मालूम.
" ओफ् ओह , आह. नो प्लीज़. नईं ना. जो काम कहा वह करो ना..."
मैने अपनी प्रिया की उन प्यारी-प्यारी गोलाइयों को उसकी चाहत के अनुसार कस दिया था. नीला अब मेरी ओर पलटी और् कहा -
" अब बताइये मैं कैसी लग रही हूं ?"
नीला को देखने मैं कुछ परे हटा. आसमानी साडी में दमकता नीला का चेहरा पूनम के चांद की तरह खिल उठा था. बारीक तराशे होटों पर गुलाब का रंग लिपस्टिक की शक्ल में ताजगी भर रहा था. बहुरंगी किनारियों में सजा साडी का नीला रंग् मानो झाडियों में अटका बादल था. नीला की सहज खूबसूरत भौहों पर आई-ब्रो पेन्सिल के धार नीला की आंखों को इन्द्रधनुषी छ्टा दे रही थी. हरिणी सी खूबसूरत आंखों की चमक इस सज्जा से और् बढ् गई थी. मेरी नीलांजना की सुंदरता अपने नाम को सार्थक् करती इस वक्त मेरे सामने खडी थी. नीला के रूप से चुंधियाती सनसनी मेरी नजरों से बिजली की तरह कडकडाती मेरी टांगों के बीच गिरी पड रही थी . वह सनसनी खलबली मचाती और अंगडाई लेती हुई अपनी नीला रानी के स्वागत में खडी हो रही थी..
" आह क्या बात है ? गजब ढा रही हो. मेरी प्यारी नीला इस वक्त सुहागरात के लिये तैयार बैठी नई नवेली दुलन की तरह तैयार नज़र आ रही है." - मैने शरारत से कहा.
" धत्त. आप बडे बेशरम हैं. मुझे लाज आ रही है. वह रस्म तो आप ने बेताब होकर सुबह ही पूरी कर ली है."- वह बोली. नीलारानी की सुस्ती अब प्यार की अंगडाई में तब्दील हो चली थी. उसकी लाडली भी अब फुरक-फुरक कर नाचने लगी थी.
नीला की चिबुक को अपनी हथेली में थाम मैने उस प्यारी मूरत का प्यारा चेहरा ऊपर उठाया.नीलांजना की आंखों में आंखें डाल उसके कानों में मेरे होठों ने हौले से कहा -" मेरी प्यारी, वह् तो सुहाग-दिन का तोहफा था. सुहाग की रात तो अब लेकर यह मेरी आसमानी परी उतरी है."
नीलांजना का मुखडा मेरी छाती में समा गया. उसने कहा - " अब् मेरी शामत आई. तुम्हारे इरादे खतरनाक हैं."
नीला की उंगलियां मेरे पैन्ट में समाई अपनी चाहत के लौड़े पर फिर रही थीं. बार-बार उन्हें होठों पर लाती नीलारानी सिहर्-सिहर् कर् चूम रही थी.
" हाय रे क्या करूं ?" - लौड़े को मुटठी में तौलती नीला बोली
" चाहती हूं फौरन इस प्यारे को लपक कर खा जाऊं फिर् भले क्यों न यह मेरी चूत को फाड-फाडकर मिटा डाले. तुम्हारी नीला तुमसे कभी अलग नहीं हो सकती. लेकिन मेरे पांव ! हाय इनका मैं क्या करूं ? सुबह तुमने निचोडकर इन्हे थका डाला है. बहुत दुख् रहे हैं ? इनका कुछ् इलाज करो प्लीज़"
वह भी हो जाएगा. इलाज है मेरी रानी. बस् तुम् इंतजार करो. मुझे भी तैयार हो जाने दो." मैने नीला की चुम्मी लेते हुए प्यार से कहा.
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मुझे अपने और् कमरे को तैयार करने में थोडा समय लग गया. नीला मुझे पुकार् रही थी.
" जल्दी आओ प्लीज़. और् कितनी देर लगेगी.मैं यहां बोर हो रही हूं."
रात के झक्क झीने सफेद् कपडों में मैं बाहर निकला. नीला ने दिलचस्पी से देखा. बोली -
" वाव् यू आर् लुकिंग् क्यूट . वेरी हैन्डसम. जी करता है तुम्हें...." वह् चुप हो गई.
"क्या ? बोलो भी ना " - मैने कहा.
"कुछ् नहीं. अब् और् रहा नहीं जाता. मुझे बिस्तर पर ले चलो. मेरे पांवों का इलाज कब करोगे."
नीला को अपनी बांहों में उठा मैने कमरे में सजा;ए बैड पर् लाकर पटक दिया. बिस्तर् मेरे सजाये गुलाब, चमेली, रातरानी, सेवंती, और् नरगिस के फूलों से सजा महक रहा था. फूलों से सजी लडियां मसहरी की डंडियों पर झालर बनाती झूल रही थीं. कमरे के एक कोने में सजे लैम्प की आसमानी छटा वली झीनी-झीनी दूधिया रौशनी अपनी मादक
छटा बिखेर रही थी. बाकी बत्तियां मैने गुल कर् दी थीं.
" यह होटल का कमरा है या चमन् का बाग? ओह् मेरे राजा यू आर ग्रेट्. अब समझ आया कि तुम्हें इतनी देर क्यों लग रही थी?" - नीला बोली.
महकते सेज पर नीलांजना घुटने मोडे लेटी थी. मैं उसके पायताने बैठा था. नीला की हथेलियों को खोल पन्जे से पन्जे भिडाता उसके खूबसूरत बदन पर मैं झुक चला था. चेहरे पर् लहराते चेहरों में आंखें एक-दूसरे में डूब गई थीं.
" अब ?"- नीला ने बेहोश आवाज में सवाल किया.
नीलांजना की आंखों की दोनो पलकों से गुजरते मेरे होंठ् उसके अधरों पर् जाकर थम् गये और् फिर् उठते-गिरते जोर-जोर की आवाज के सथ् नीला के होटों पर चुम्बनों की ऐसी बेताब् झडी लगी कि उसकी समूची काया लहरों की मानिन्द हिलोरें लेने लगी.
" मेरी प्यारी रानी, अब् तुम् ही नहीं मैं भी तुम्हारा बीमार हो चला हूं. चलो अब् हम एक-दूसरे का इलाज शुरू करें. सब् से पहले मुझे अपनी प्यारी नीला के पैरों की थकावट् भगानी है."
पलंग के पायताने नीचे रखी शीशी से भरपूर तेल् हथेलियों पर उलेडते मैने मालिश् शुरू की. सब से पहले तलवे, फिर उंगलियों की पोरें, पिंडलियां, जंघाएं और् आगे? मेरी तेल्-भीगी अंगुलियां वहां पहुंची जहां नीला की चिकनी कोमल् जंघाओं की संधि-रेखा थी. हां घाघरा पलटता चला गया था और् अब् मेरे सामने भूरे-भूरे घुंघराले केशों के बीच् की वही गहरी रेखा थी. पहले प्यार भरी हल्की-हल्की थपकियों से मैने उसे पुचकारते हुए दिलासा दिया. अपनी उंगलियों को तेल् में फिर् से भिगा तब मैने अंदर सोई रानी को जगाने उसकी उभरी पलकों और् बीच की दरार को चिकनाना शुरू किया. बीच-बीच में अगल और बगल की जंघाओं पर मै यूं थपकी देता जा रहा था जैसे रंगमहल के पट् खोलने के लिये दस्तक दी जा रही हो. असर होने लगा था. झांटों की लंबी भूरी रेखा की चिलमन से गुलाबी कली की तरह अंदर छिपी रानी ने चुपके-चुपके झांकना शुरू कर दिया था. उसकी गुलाबी शिरायें लपलपा रही थीं. वह अब् पिघल रही थी. ऊपर से कूकर के भाप की मानिन्द सीटी सिसक रही थी और् नीचे नीला की छोटी रानी बार-बार जीभ् की फुनगी दिखाती और् छिपाती लार टपकाने लगी थी.
झुरमुटों के बीच दरारों से झांकती नीला की वह बेताब् जीभ इशारे कर रही थी -" आओ ना, यही तो मुकम्मल वक्त है राजा. अब जीभ से जीभ टकराने भी दो यार. मैं खुद पुकार रही हूं तो तुम् क्यों शरमा रहे हो."
अब् मेरी जीभ की फुनगी नीला की छोटीरानी की जीभ् को ठोकर देती और् लेती मजे ले-लेकर खेल रही थी. अपनी रानी का मूड भांपकर उसकी पहरेदार बनी जांघें अपनी अकड और् जकड छोडकर फैलती और् ढीली होकर दूर-दूर पसरती जा रही थीं. नीला के मुंह् से "आह-आह" के साथ मीठी-मीठी सिसकारी की धुन् लगातार् बज रही थी. उसका समूचा बदन बेकाबू होकर लहरें लेता इस और् उस करवट हिचकोले खाने लगा था. हम दोनों के कपडे बंधन तोडकर बिखर चले थे. नीला की छोटी रानी से मिलने को बेताब मेरा राजा तन-तनकर उछ्ल-कूद रहा था. वह चीख रहा था कि रानी ने जब पट खोल दिये हैं तो मेरी जीभ् क्यों दरवाजा रोके अडी हुई है. मैं उसे समझाता चला आ रहा था कि मेरे प्यारे लौड़े राजा, तुम्हारे लिये ही तो इतनी तैयारी मैं कर रहा हूं. बस दो मिनट धीरज धरो फिर् तो बेताब रानी खुद तुमसे यूं भकाभक चुदने वाली है कि खुशी से चीखती उछ्ल-उछ्लकर हवा में उडती वह् छत से टकराने लगेगी.
मैने अपने लौड़े की बात समझने में भले देर कर दी थी लेकिन् नीला के कानों ने जरूर उसकी पुकार सुन् ली होगी. नीला अचानक चील की तरह झपटी. अपनी हथेलियों से मेरी हथेलियों के पंजे फ्ंसाकर जोर के झटके से वह मुझपर आ झुकी. बावली होती नीला ने अपने होंठ् मेरे होठों पर जमाकर समूचा का समूचा लील डाला और् खूब बेरहमी से उन्हें चबाती चली गई. मेरे हाथों को थामकर नीला ने वहां टिका दिया जहां उसकी दूधिया गुलाबी छातियों के पहाड पर चोंच् उठाई चूचियां पकी हुई खूबसूरत चेरियों की तरह चमक रही थीं. नीलारानी का बदन प्यार की शराब के नशे में मचल रहा था. वह् और् नीचे झुकी और् लप्प से लपकती मेरे लौड़े को अपने गले तक ठूंस गई. हत्टे-कत्टे लौड़े राजा को चुप् करती नीला ने उसकी बोलती बंद् कर दी थी. उधर चप्पऽ-चप्पऽ करती वह् रूठे लौड़े को चूमती और् होठों में निगलती-उगलती, दुलार करती मना रही थी और इधर मैं नीलारानी की उन छातियों से खेल रहा था जो फूल-फूल कर तनी हुईं मेरी हथेलियों के इन्तिज़ार में मचल रही थीं. उनकी शिकायत दूर करने मेरी तेल-सनी हथेलियां किसी मंजे खिलाडी की तरह उनपर फिसल रही थीं. कहना मुश्किल है कि वह वह् अपनी चूतरानी के प्यारे भुजंग लौड़े को देख्-देख् कर् पागल हुए जा रहे नीला के अंदर की दीवानगी थी या फिर रतिरानी के पहाड् पर् चिकनाई में फिसलती और् भूरी बेरियों को चिमटती गुदगुदाती मेरी हथेलियों का कमाल था जिसका असर मेरी गोरी नीला के मुंह् से आहों और् सिसकारियों में निकला पड रहा था.
न तो अब मुझसे रहा जा रहा था और् न मेरी प्यारी नीला से. दोनो ही अब् अपने अंदर् के कामदेव और रति की उस आखिरी भिडंत के लिये अधीर थे. नीला की चूत तैयार होकर अब् इस मूड में आ चली थी कि लौड़े की मार से खूब चुदवा-चुदवा कर्, छकछक कर, बिना उफ् किये अपने चिथडे उडवाती हुई जनम् भर के लिये प्यास बुझाकर् अपने को मिटा डाले. इधर मेरा लौड़ा भी नीला की उछाल मारती चूत को चोद-चोदकर बेहाल् कर देने के लिये बेताब हो रहा था. वह् नीला की चूत पर टूटकर बैल् की तरह सींग मारता आज इस तरह भिड जाने बेकरार था कि चूत के साथ उस भिडंत में अपनी प्यारी नीला चूत को छितरा-छितरा कर् यूं लहूलुहान कर डाले कि नीला उसे जनम भर न भूल पाये. वह ऐसी यादगार भिडंत चाहता था जिसमें फटकर् छितरा चली नीलारानी की लहू-लुहान् चूत और् चूत की टक्कर से छिल-छिलकर घायल पडा उसका यह भयानक लंड् एक-दूसरे पर् फिदा होते गले मिलकर आखिर में "आह् क्या बात थी मेरे यार में" और् "वाह्-वाह् क्या मजा आया" कहते फिर् मिलने के लिये जुदा हों.
आखिर वह घडी आई. नीलांजना का हाथ बेताब होकर् मेरे उस कठोर अस्तित्व को अपनी मुत्ठी में थामकर खींचने लगा था जो उसकी जांघों के बीच् में छिपी कोमलता को भेदकर अंदर समाये रस के झरने को खोलकर बहा दे. दूसरे हाथ् से मेरे सिर को दबाती वह इस तरह झुकाये जा रही थी कि वह् नीला की चूचियों से टकराता - चूसता उसके होठों पर जा टिका था. नीला और् मेरे बदन की जमीन भूचाल से लहरा रही थी. तैय्यारी का यह मुकम्मल मुकाम था. नीलान्जना अब् अपने को संभाल नहीं पा रही थी. मैने जायजा लिया तो पाया कि नीला की जांघों का पठार उस्की सुरंग के झरने से गीला हो रहा था.
" देर मत करो प्लीज़. आओ. मै मरी जा रही हूं." - उसने कहा.
तूफान से पहले पलभर के लिये मैं शान्त होना चाहता था. जल्दबाजी से काम बिगडता हैयह मुझे मालूम था. पलंग के नीचे ही मैने गुलाबजल में घुला शहद फूलों का जूस, और् शैम्पेन् की बोतल् छिपा रखी थी. अपने और् नीला को शैम्पेन से नहलाते और् पीते-पिलाते मैने उसके कान् की लवों को अपने होठों मे चुइंगम की तरह चबाते उसके जन्मदिन की मुबारकबाद दी. यह कामना की कि प्यारी नीलारानी और् मेरे बीच की यह शानदार रात हमारी जिन्दगी की अविस्मरणीय रात बनकर रह जाये.
नीलांजना के बदन पर फूलों का रस और् शहद सींचने के बाद मैने सर से पांव तक उसे वैसी बदहवासी से चाटना शुरू किया कि जैसे भूखा जानवर पत्तल का हरएक कोना चाट कर साफ कर दिया करता है.नीला से चिपका मेरा बदन भी शैम्पेन , फूलों की सुगंध् और् इत्र की महक् से महमहा रहा था. खुशी से पागल हुई जा रही नीलांजना का हर अंग मचलता हुआ मछली की तरह उछ्ला पड रहा था. ऐसी खुशी न उसने कभी पाई थी और न कभी आगे पा सकने की उम्मीद उसे थी. उसके लिये रुकना मुश्किल हो रहा था. मेरी हथेलियों में अपने पन्जे नीला ने खूब कसकर् फंसा लिये और् इससे पहले कि उसके इरादे मैं भांप पाता एक झटके के वार से उसने मुझे चित्त किया और मौज में आई शेरनी की तरह मुझ पर चढ् बैठी. उसके इरादे जबरदस्त थे.मेरे समूचे बदन को उसकी जीभ् लपक्-लपक कर चाटती रही. जांघों के बीच् पहुंचकर मेरे उस अंग पर लपा-लप्प जीभ फिराती गप्प से लील गई जो खुद नीला को लीलने की चाहत में नब्बे से एक सौ बीस अंश् का कोण बनाता ठन्ना रहा था. मेरे लंब की सुपारी को नीला अपने होठों से निचोडती बार-बार निगल और् खींच रही थी. मेरा लौड़ा नीला के होठों के बीच मगन् हो खेल रहा था. नीला उसे उस सुख् में पहुंचा रही थी जो जिन्दगी में दुर्लभ था. गुदगुदी की मौज में आहें भरता मेरा दिल पागल होता चीख रहा था -" हाय मेरी रानी, हाय-हाय नीला प्यारी तुम आज क्या गजब ढाने जा रही हो. इससे पहले कि मैं तुम्हें खलास करूं कहीं तुम ही न मुझे खलास कर दो."
नीला की ओर ढलता मेरा बदन बेकाबू हुआ जा रहा था. नीला को झटककर् उसी की शैली में ही मैने उसके बदन को उलताकर चित्त किया और् नीला के पन्जों मे पन्जे फंसाये उसकी जांघों के बीच सवार हो गया. नीला भी जोश में आ गई थी. खेल्-खेल् में अब होड इस बात की मच गई कि हम दोनो के बीच कौन जीतने जा रहा है ? उसकी चूत हमलावर होकर् मेरे लौड़े पर् पहले सवार होगी या मेरा लौड़ा नीला की चूत पर् कब्जा करके पहले वार करेगा ? हम दोनों झूला झूलने और् झुलाने का खेल खेल रहे थे. कभी नीलारानी मुझे उलटती मुझपर सवार होती झिंझोड जाती और कभी मैं उसे उलटकर चूत को रगड जाता.यह वह प्यारा काम-युद्ध था जहां ताकत से हारने की नहीं नजाकत की अदा से एक-दूसरे को जीतने की होड लगी थी. प्रतिरोध का सवाल ही नहीं था. हारता चाहे कोई भी जीत दोनों की होनी थी. खेल इस् कदर बढा कि हमने उन बेशकीमती कपडों के चीथडे बना दिये जो शुरुआत में बदन को सजा रहे थे. रंग बिरंगी चिन्दियों से फूलों का बिस्तर
और् ज्यादा सज रहा था.
नीला बदहवाश् हो हांफने लगी थी. इस बार जो मैने झटके से उसे उलटा तो उछलकर उसका लहंगा भी कमर पर् जा टिका. नीला की पिन्डलियों पर् मेरी जकड मजबूत थी.
" आप जीत गये. मैं हार गई." मदमाती आंखों से मुस्कुराती नीला ने लम्बी सांस भरते हुए कहा.
मैने प्यार से नीलारानी के होठों की चुम्मी ली. उसकी जान्घों पर् प्यार की थपकियां दीं. मुंह नीचे झुका और् फिर् मेरे होठों से लपकती जीभ् कोमलता से चूसती, चबाती, ठेलती हुई नीला की गुलाबी चूत से खेल रही थी. उसकी जंघाओं को पसारते हुए मैने धीमी आवाज़ में कहा - " घुसेड दूं ?"
कुछ् कहने की बजाय नीला के हाथ् आगे बढे, ठन्नाए लौड़े को कसकर मुत्ठी में समेटा और् खींचकर अपनी चूतरानी के मुहाने पर ला टिकाया.
" क्या चोदने के बाद पूछोगे कि घुसेड दूं ? मेरे प्यारे राजा, आओ. मैं तैयार हूं. आधी जंग तो तुम् जीत चुके. अब देखूं कि आगे कौन् किसको जीतता है." - नीलांजना ने मदमाती आंखों से मुझे निगलते हुए कहा और् झटककर मुझे अपने ऊपर खींच् लिया.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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