FUN-MAZA-MASTI.
मेरी हेमा मालिनी-2
गीता ने मुझे पागल बना दिया था, बारबार में गीता के बारे में और उसके बूब्स के बारे में सोचता रहता था. किसी कम में मन नहीं लग रहा था. ज्यादातर मुझे शाम के वक़्त ही गीता के साथ अकेले मिलने का वक़्त होता था, वो समय पर घर पे कोई नै होता था. में भी कैसा बेवकूफ था की इतना सेक्सी माल के साथ में रहते हुए आज तक कभी कुछ नहीं किया था. और अब मेरा मन और लंड गीता के लिए बेताब हो चूका था. पूरा दिन बारबार गीता की खिड़की पे देखता रहता था पर गीता दिखी ही नहीं शाम के वक़्त ज्यादा तर में घर पे अकेले ही होता था और गीता को अकेले में मिलने का यही मौका होता था, इससे पहले कई शाम हमने मेरे घर पे बिताई थी, लेकिन कभी कुछ दिमाग में नहीं था. शाम हो गई और ५-६ बजे तक गीता का कोई अतापता नहीं था, मेरी बहिन भी नहीं थी, बाद में मुझे पता चला था की वोह दोनों साथमे बाज़ार गए थे. २-३ घंटे गीता की वेट करके में भी मायुश हो कर, गीता के नाम पर मुठ मर कर बहार चला गया. रात को घर पे खाना खाने के बाद सब बैठे हुए थे तभी गीता आई और मेरे सामने अजीब तरह से मुस्कुराई. जैसे जले पे नमक छिड़क रही हो. में थोड़ी देर बैठा रहा फिर अचानक से उठ कर में नीचे चला गया, करीब आधा घंटा राह देखने के बाद मेरा इंतज़ार रंग लाया, गीता अपने घर जाने के लिए नीचे आई और मैंने उसे वही पे पकड़ लिया , गीता को बहो में भर के पहली बार उसके होठो को कीस किया, जिंदगी में पहली बार किसी के होठ पर कीस कर रहा था. २-३ मिनट के बाद मेरा एक हाथ गीता में मम्मे पर रखा और हलके से दबाने लगा, गीता के मुह से हलकी हलकी सिसकारी निकलती थी, मेरा एक हाथ गीता के बूब्स पर था और एक हाथ उसकी पीठ सहला रहे थे जहा पे में उसकी ब्रा की स्टिप महसूस कर रहा था और मेरे होठ गीता के होठ चूसने में मग्न थे. यह सभी हरकतों के दौरान गीता सिर्फ अपनी आँखे बंध करके हलकी हलकी सिसकारी कर रही थी, उसके अलावा वो बिलकुल एक पत्थर की मूरत की तरह कड़ी thi, ५-१० मिनट में बाद धीरे धीरे मेरा एक हाथ गीता के पैरो पर पहोचा और जैसे हे मैंने अपना हाथ उसकी स्कर्ट में डालना चाहा उसने मेरा हाथ पकड़ लिया. उससे पहले की वोह मेरा हाथ पकडती मेरा हाथ उसकी जांघो पर पहोच गया. वाह दोस्तों क्या मुलायम और चिकनी जांघे थी उसकी, मेरा लंड लोहे के रोड की माफिक तन कर खड़ा हो गया. क्योंकि मेरे घर पे सब लोग मौजूद थे कोई भी कभी भी नीचे आ सकता था इसीलिए मैंने गीता को छोड़ दिया और अगले मौके का इंतज़ार करने लगा
कल रात को घर के सभी लोग मोजूद होने की वजाश से मेरी हिम्मत ही नहीं हो पायी थी की में कुछ करू इसिलए मैंने गीता को कुछ नहीं किया था, नतीजा यह हुआ की में रातभर करवाते बदलता रहा और मेरा लंड छत की तरफ ताना हुआ रहता था, फिर बाथरूम में जा कर गीता की याद में और गीता के भरी स्तनों को सोच कर मुठ मारी और जैसे ही गीता की चूत का ख्याल दिमाग में आया मेरे लंड से इतनी तेज़ वीर्य की पिचकारी छुटी की जैसे बन्दुक से गोली निकलती है. दुसरे दिन सुबह करीब ११ बजे गीता उसकी खिड़की में दिखी, वोह कपडे बदल रही थी और उसकी पीठ मेरे घर की और थी, में खिड़की में खड़ा रह कर नजारा देखने को बेताब हो गया, गीता ने अपना टॉप के सरे बटन खोल कर जब निकाल ने लगी तो उसकी काले रंग की ब्रा दिखी, और अगले सी पल पता नहीं क्या हुआ की गीता मेरी और घूमी और जैसे ही मुझे खिड़की पे खड़ा देखा उसने तुरंत टॉप वापस पहन लिया, मुझे लगा की गीता मेरे पर गुस्सा होगी लेकिन वोह गुस्सा होने की बजाये शर्माने लगी. अब में बिन्दाष्ट हो गया था, में गीता को विनती की की वोह मेरे सामने कपडे बदले, हम दोनों की घर की खिड़की के बिच सिर्फ २ मीटर की ही दुरी थी, में उसे बार बार विनती की मेरे सामने कपडे बदल ने की, लेकिन दोस्तों बिना भाव खाए या बिना नखरा किया सीधी तरह लडको की बात कभी किसी लड़की ने सुनी है? फिर काफी देर तक हाथ पैर जोड़ने के बाद गीता ने धीरे धीरे अपने टॉप के बटन खोलने सुरु किये. जैसे जैसे उसकी टॉप के बटन खुलते गए, वैसे वैसे यहाँ मेरे लंड खड़ा होने लगा. मेरा लंड और मन नाच रहा था की आज तो गीता को नंगी देख सकुगा, पर है रे किसमत, जैसे ही गीता ने अपना टॉप खोला मेरे घर पे किसी की आवाज आई तो मुझे खिड़की छोड़ कर भागना पड़ा और गीता भी अन्दर चली गई, एक बार फिर किस्मत ने धोखा दिया, पर दोस्तों अगर भरोसा और हिम्मत हो तो हमेशा किस्मत दोखा नहीं देती, आज शाम को तो कैसे भी कर के किल्ला फ़तेह करना है यह सोच कर अपने आप को शाम के लिए तैयार करने लगा. और शाम का इंतज़ार करने लगा, शाम को करीब ४ बजे मेरी माँ और बहिन बहार चले गए और फिर में अपनी दादी के मंदिर जाने का इंतज़ार करने लगा और करीब ५ बजे दादी मंदिर गई, में जल्दी से खिड़की पे आया और गीता को धुन्धने लगा, लगभग ५.३० गाजे गीता मेरे घर पे आई, जैसी हे वो आई में उसको बाहों में भर लिया और उसके होठो पर अपने होठ रख दिए और धोरे धोरे उसके होठ चूसने लगा और धीरे धीरे मेरा एक हाथ उसके बदन को छूकर सीधा उसके स्तन पर रख दिया और धीरे धीरे उसका एक स्तन दबाने लगा, गीता भी आज बहोत गर्म थी वोह भी मेरी किस का मजा ले रही थी और अपने हाथो से मेरी पीठ सहला रही थी गीता ने आज लाल रंग का टॉप और काले रंग का स्कर्ट पहना था, वोह हमेसा फ़्रोक या टॉप और स्कर्ट ही पहेनती थी. हौले हौले हम लोग आगे बढ़ाते गए और और मैंने गीता के टॉप के बटन खोलने शुरू कर दिए, जैसे ही उसका टॉप खोला उसका गोरा बदन देख कर मेरे होश उड़ गए मैंने गीता का एक हाथ मेरे लंड पे रख कर पेंट के ऊपर से हलके से दबाया पहले तो वो शर्मा गई, फिर धीरे धीरे उसकी शर्मा वासना में परिवर्तित होने लगी और उसने मेरा लंड दबा दिया, मैंने भी अपना टीशर्ट खोल दिया, मैंने गीता की पीठ पे हाथ ले जा कर उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी ब्रा जमीं पे गिर गई और उसके दूध जैसे सफ़ेद मम्मे को देख कर मेरा लंड मेरे पेंट से बहार आने तो बेताब होने लगा, मैंने एक हाथ से उसका स्तन दबाया, हम दोनों के लिए यह पहला अवसर था, उसके मुह से हलकी सिसकारी निकली,
क्या कोमल स्पर्श था उसके बूब्स का, जैसे ही मैंने अपने हाथो से उसके बूब्स दबाये मुझे ४४० वोल्ट का करंट लगा, फिर में अपना पेंट और अंडरवियर भी खोल दिया, में गीता के सामने बिलकुल नंगा था, पहले तो वोह शर्मा गई, पर मेरे हाथ और होठो ने उसकी श्री शर्म तो वासना बे तब्दील कर दिया, वोह भी मेरी तरह एकदम गर्म और चुदाई के लिए बेताब हो चुकी थी, में अपना एक हाथ उसके स्कर्ट में डाला और मेरे हाथो ने उसकी चूत का गिला पण उसकी पेंटी के ऊपर से महसूस किया, बाद में हम दोनों को एक दुसरे को खूब चूमा, बदन के एक एक हिस्से को चूमा, अंत में मैंने उसकी निप्प्ले को दांतों से दबाते हुए उसकी पेंटी भी खोल दी, वो एकदम से घबरा गई, उसकी आँखों में शर्म के साथ घबराहट थी, और उसकी निप्प्ले को चूसते हुए में उसके उप्पर आ गया, और अपने लंड का सुपारा उसकी चूत के होठो पर रखा, उसकी चूत पहले से ही काफी गीली थी, में सीधा उसके ऊपर स्वर होके अपना लुंड उसकी चूत में घुसाने की कोशिश करने लगा, वैसे तो में बहोत साडी ब्लू फिल्मे देखि थी और उसके लिए में समजता था की में आसानी से चूत चोद सकुगा, लेकिन में गलत साबित हुआ, काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी मेरा लुंड गीता की चूत में नहीं घुसा, फिर एक बार और कोशिश करने जा रहा था और जैसे ही में एक और ढाका मरने जा रहा था की गीता ने उपना बदन कमर से ऊपर उठाया और मेरा लंड थोडा सा अन्दर घुस गया, गीता के मुह से चीख निकली, दोस्तों वोह तो अच्छा हुआ था की में जोर जोर से म्यूजिक चालू रखा था, नहीं तो गीता के चीखने पर मुसीबत हो जाती.
मैंने एक बार फिर अपना लंड गीता की चूत से बहार निकला और दूसरा जानलेवा ढाका मरने से पहले मैंने गीता की आँखों में देखा तो उसमे शर्म भी थी, और वासना भी थी, आंसू भी थे और ख़ुशी भी थी. डर भी था और अनुमति भी थी. मैंने गीता का मुह अपने होठो से बंध किया और एक जोरदार ढाका दिया मेरा लंड गीता की बुर को चीरते हुए पूरा गीता की चूत में घुस गया, गीता के होश उड़ चुके थे और उसकी चीख तो उंदर ही दब गयी थी. में थोड़ी देर ऐसे ही रहा फिर धीरे धीरे गीता को चोदना शुरू किया, क्योंकि में भी पहली बार चुदाई कर रहा था, ५ मिनट में तो में झड गया, पर वोह ५ मिनट मेरी जिंदगी के सबसे हसीं और कभी ना भूलने वाले ५ मिनट साबित हुए.
तो जब भी मौका मिलता था, और जब भी गीता मेरे घर में मुझे अकेले मितली थी, वो एक चुदाई के बाद ही वापस जाती थी. में ७-८ बार गीता को चोदा लेकिन अभी तक ओरल सेक्स नहीं किया था.
ये दौरान मेरे घर के पीछे और एक परिवार रहेता था, जिसमे अंकल एंटी के आलावा उनकी ३ बेटिया (रमिला, छाया और रत्ना) और एक लड़का (मुकेश) और उसकी बीवी (स्मिता) और एक उनका नन्हा सा बालक था, उसमे से रत्ना और छोटे बच्चे के अलावा सब लोग उम्र में मुझसे बड़े थे, बदकिस्मती (और मेरी खुस्किस्मती) से तीनो लड़की कुंवारी थी. सब से बड़ी रमिला को तो में कभी छू भी नहीं पाया था, लेकिन छाया, रत्ना और स्मिता के साथ बहुत मजे किये थे
सब से पहेले में स्मिता का एक्सपेरिएंस बताता हु एक बार रात को में देर से घर पहोचा, और जब सोने के लिए अपने रूम में गया (मेरे कमरा सबसे ऊपर के फ्लोर पर था, जहा टेरेस के आधे हिस्से में कमरा बनाया था, और सामने स्मिता का घर था, मेरी आदत थी इधर उधर झाँकने की . में दरवाज़े की दरार से देखा तो सामने स्मिता कुर्शी पर बैठी हुई थी और उसका पति मुकेश पीछे से स्मिता के मम्मे को दबा रहा था , मैंने गीता को कई बार नंगा देखा था, लेकिन यह पहली बार किसी की प्यार करते हुए देख रहा था और मेरा लंड तुरंत टाईट हो कर मेरे पेंट से बहार आने को तरसने लगा
रात को करीब १ बज गया था, वोह दोनों अपने सेक्स के नशे में चूर थे, मेरे कमरे की बत्ती बंध होने के कारन शायद उसको मालूम नहीं था की कोई देख रहा है, या फिर वासना की आग में दोनों इस तरह से जल रहे थे की शायद उन्हें खिड़की या बत्ती बजाने की जरुरत नहीं समजी थी. उन्हों ने सोचा होगा की रात को १ बजे कौन देखेगा, मुकेश स्मिता के बूब्स दबा रहा था और उसके होठो को किस कर रहा था
फिर उसने स्मिता को खड़ा किया और अपना एक हाथ स्मिता की साडी के निचे से उंदर दाल दिया, हलाकि मुझे उसका हाथ क्या कर रहा था वोह तो नहीं दिख रहा था, पर जिस तरह से स्मिता छटपत्ता रही थी में समज गया की उसका हाथ स्मिता की छुट से खेल रहे है और फिर मुकेश ने धीरे से स्मिता की पेंटी को नीचे कर दिया और एकदम से फिर निकल ही दिया , फिर वापस हाथ अन्दर डाला और स्मिता की हरकते और तेज़ हो गई, मतलब यह था की मुकेश अब शायद अपनी ऊँगली उंगलिया स्मिता की चूत में मस्ती कर रही होगी वह पर यह सब हो रहा था तभी मुझे पता ही नहीं चला की कब में अपना लंड निकल कर मुठ मारने लगा था, फिर मुकेश ने स्मिता का ब्लाउस के बटन खोलना शुरू किया और एक के बाद एक सरे बटन खोल दिए. ताजुब यह हुआ की स्मिता ने ब्रा नहीं पहनी थी और ना तो मुकेश ने स्मिता की साडी खोली. स्मिता के मम्मे बिना ब्रा के एकदम पैड पे लटकते आम की तरह जुल रहे थे, मुकेश ने ब्लाउस एक बाजु किया तो स्मिता के बूब्स के दर्शन हुए, क्या बूब्स था, दिम लाइट होने के बाउजुद भी उसके मम्मे दिखाई दे रहे थे, उधर मुकेश ने स्मिता के बूब्स चुसना शुरू किया, मैंने अपने हाथ की रफ़्तार तेज़ की. मुकेश का मुह स्मिता के बूब्स चूस रहे थे और एक हाथ उसकी चूत पे खेल रहा था. तब एक बात मेरी ध्यान में आई के स्मिता जब भी मुकेश का लंड पकड़ ने जाती तो मुकेश तुरंत स्मिता का हाथ रोक लेता था . यह बात कुछ समज में नही आई.
बाद में मुकेश ने स्मिता तो बिस्तर पे लिटा दिया, मुझे लगा अभी लाइव ब्लू फिल्म देखने को मिलेगी, मैंने कभी किसी को रियल में चोद्ते हु नहीं देखा था, इसीलिए मेरे लंड इस तरह से टाईट हो रहा था की पूछो मत, अब दोस्तों स्मिता को नंगी देखने को मिलेगा, लेकिन यह मुकेश तो अजीब इन्सान है. ना तो उसने स्मिता की साडी खोली ना तो खुद के कपडे खोले, बस सिर्फ स्मिता की साडी और पेटीकोट को कमर के उपर तक उठाया, और अपना पेंट और उन्देर्वेअर थोडा नीचे किया और फिर में क्या देखा की मुकेश का लंड एकदम छोटा सा था, मेरा लंड जब सोया हुआ रहता है तब भी इसे बड़ा दिखता है. लेकिन यह तो एकदम छोटा अफ़सोस इस बात का रहा की ना तो उसने स्मिता के कपडे खोले और दिम लाइट की वजह से मुझे ये पता नहीं चला की स्मिता की चूत पर जाँते थी या नहीं जाट , और फिर मुकेश को ना तो स्मिता की चूत चाटने की जरुरत पड़ी, न तो उसकी चूत गीली करने की न अपना लंड चुस्वाने के, बस वोह तो सीधा अपना लंड स्मिता मी चूत में दाल दिया, और स्मिता तो चोदने लगा. और फिर ८-१० धक्के में तो मुकेश खलाश हो गया. अब दोस्तों आप ही बताओ की एक जवान शादीशुदा औरत और एक बच्चे की माँ, क्या इतने से सेक्स से संतुस्ट हो सकती है और मुकेश तो जैसे हम लोग पीसाब करने जाते कैसे पेंट खोला पीसाब किया और चुपचाप पेंट वापस पहन लिया वैसे ही खलास होकर तुरंत अपना लंड बहार निकला छड़ी और पेंट वापस पहना और स्मिता के बाजु में सो गया.
मुझे स्मिता की हालत पर दया आ गई और साथ साथ में खुश भी हो रहा था की एक चांस है स्मिता को जितने का, वरना तो मुकेश सभी बातो में मुझसे आगे था, लेकिन सेक्स के बारे में बेचारा बहोत पीछे रह गया था स्मिता अपने पति असंतुस्ट थी और उसका में फैयदा उठाना चाहता था, उसका असंतोष मेरे लिए आशीर्वाद बनने वाला था, अब में स्मिता तो कैसे पटाया जाये वो सोचने लगा था, गीता तो मेरे घर पर रोज आती थी इसीलिए आसानी से मेरा कम हो सका था, और शायद यही तरीका रत्ना के साथ भी अजमाया जा सकता है, लेकिन स्मिता तो कभी कभार ही मेरे घर पर आती थी, और वोह भी अकेले नहीं. अब के करू वोह समज में नहीं आ रहा था
फिर मुझे ध्यान आया के जो चीज़ स्मिता को मेरी तरफ आकर्षित कर सकती है वो एक मात्र मेरा लंड था, तो क्यों ना अपने लंड का ही इस्तेमाल किया जाए, यह तरीका थोडा जोखिम वाला था, पर कुछ pane के लिए जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा. दोपहर को खाने के बाद स्मिता अपने ऊपर के कमरे में आराम करने के लिए आती थी, तो में यही वक़्त पे उसको अपनी और आकर्षित करने की कोशिश करने का फैसला किया, एक बार दोपहर को में ऊपर मेरे कमरे में गया और दरवाज़े की दरार से स्मिता के घर में झाँकने लगा. थोड़ी देर के बाद स्मिता अपने कमरे में आई, मैंने अपने बदन पर सिर्फ तोलिया लपेटा हुआ था, और उन्देर्वेअर भी नहीं पहनी थी. क्योंकि कई बार में नहाने के बाद टेरेस पर धुप में सिर्फ तोलिया लपेट कर खड़ा रहता था में दरवाज़े की दरार से देखते हुए अपना लंड हिलाने लगा, मुठ मारने का हथियार तो सामने था ही, मेरा लंड तुरंत टाईट हो गया, थोड़ी देर के बाद मैंने बड़े आवाज के साथ दरवाजा खोल दिया, ताकि स्मिता का ध्यान मुज पर पड़े, और दरवाजा खुलते ही स्मिता ने मुझे देखा और मैंने अपना तोलिया नीचे गिया दिया, मानो की गलती से अपने आप तोलिये निकल गया हो. और मैंने तुरंत तोलिया उठाया और फिर से लपेट लिया और तुरंत अन्दर आ कर टेरेस का दरवाजा बंध कर लिया, लेकिन ये सब के दौरान स्मिता को पूरा मौका मिल गया मेरे लंड को देखने का और फिर लंड देखने के बाद जो ख़ुशी स्मिता के चेहरे पर थी वोह मुझसे छुपी ना रही.
वोही ख़ुशी जो मेरे लिए एक नयी उम्मीद नया जोश और नया माल (मेरे लंड के लिए) ले कर आने वाली थी. मैंने दरवाजे की दरार से देखा तो स्मिता मेरे घर की और ही देख रही थी. शायद मुझे देखने की कोशिश कर रही थी. में कपडे पहन कर फिर टेरेस पर गया तो स्मिता मुझे देख कर शर्मा के अन्दर चली गई. लेकिन जाते जाते शरमाते हुए जो मुस्कुराई मुझे लगा की अभी स्मिता को चोदना इतना मुस्किल काम नहीं होगा, क्योंकि उसकी भी लगा की शायद मेरे लंड उसकी चूत की प्यास बजा सकेगा
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मेरी हेमा मालिनी-2
गीता ने मुझे पागल बना दिया था, बारबार में गीता के बारे में और उसके बूब्स के बारे में सोचता रहता था. किसी कम में मन नहीं लग रहा था. ज्यादातर मुझे शाम के वक़्त ही गीता के साथ अकेले मिलने का वक़्त होता था, वो समय पर घर पे कोई नै होता था. में भी कैसा बेवकूफ था की इतना सेक्सी माल के साथ में रहते हुए आज तक कभी कुछ नहीं किया था. और अब मेरा मन और लंड गीता के लिए बेताब हो चूका था. पूरा दिन बारबार गीता की खिड़की पे देखता रहता था पर गीता दिखी ही नहीं शाम के वक़्त ज्यादा तर में घर पे अकेले ही होता था और गीता को अकेले में मिलने का यही मौका होता था, इससे पहले कई शाम हमने मेरे घर पे बिताई थी, लेकिन कभी कुछ दिमाग में नहीं था. शाम हो गई और ५-६ बजे तक गीता का कोई अतापता नहीं था, मेरी बहिन भी नहीं थी, बाद में मुझे पता चला था की वोह दोनों साथमे बाज़ार गए थे. २-३ घंटे गीता की वेट करके में भी मायुश हो कर, गीता के नाम पर मुठ मर कर बहार चला गया. रात को घर पे खाना खाने के बाद सब बैठे हुए थे तभी गीता आई और मेरे सामने अजीब तरह से मुस्कुराई. जैसे जले पे नमक छिड़क रही हो. में थोड़ी देर बैठा रहा फिर अचानक से उठ कर में नीचे चला गया, करीब आधा घंटा राह देखने के बाद मेरा इंतज़ार रंग लाया, गीता अपने घर जाने के लिए नीचे आई और मैंने उसे वही पे पकड़ लिया , गीता को बहो में भर के पहली बार उसके होठो को कीस किया, जिंदगी में पहली बार किसी के होठ पर कीस कर रहा था. २-३ मिनट के बाद मेरा एक हाथ गीता में मम्मे पर रखा और हलके से दबाने लगा, गीता के मुह से हलकी हलकी सिसकारी निकलती थी, मेरा एक हाथ गीता के बूब्स पर था और एक हाथ उसकी पीठ सहला रहे थे जहा पे में उसकी ब्रा की स्टिप महसूस कर रहा था और मेरे होठ गीता के होठ चूसने में मग्न थे. यह सभी हरकतों के दौरान गीता सिर्फ अपनी आँखे बंध करके हलकी हलकी सिसकारी कर रही थी, उसके अलावा वो बिलकुल एक पत्थर की मूरत की तरह कड़ी thi, ५-१० मिनट में बाद धीरे धीरे मेरा एक हाथ गीता के पैरो पर पहोचा और जैसे हे मैंने अपना हाथ उसकी स्कर्ट में डालना चाहा उसने मेरा हाथ पकड़ लिया. उससे पहले की वोह मेरा हाथ पकडती मेरा हाथ उसकी जांघो पर पहोच गया. वाह दोस्तों क्या मुलायम और चिकनी जांघे थी उसकी, मेरा लंड लोहे के रोड की माफिक तन कर खड़ा हो गया. क्योंकि मेरे घर पे सब लोग मौजूद थे कोई भी कभी भी नीचे आ सकता था इसीलिए मैंने गीता को छोड़ दिया और अगले मौके का इंतज़ार करने लगा
कल रात को घर के सभी लोग मोजूद होने की वजाश से मेरी हिम्मत ही नहीं हो पायी थी की में कुछ करू इसिलए मैंने गीता को कुछ नहीं किया था, नतीजा यह हुआ की में रातभर करवाते बदलता रहा और मेरा लंड छत की तरफ ताना हुआ रहता था, फिर बाथरूम में जा कर गीता की याद में और गीता के भरी स्तनों को सोच कर मुठ मारी और जैसे ही गीता की चूत का ख्याल दिमाग में आया मेरे लंड से इतनी तेज़ वीर्य की पिचकारी छुटी की जैसे बन्दुक से गोली निकलती है. दुसरे दिन सुबह करीब ११ बजे गीता उसकी खिड़की में दिखी, वोह कपडे बदल रही थी और उसकी पीठ मेरे घर की और थी, में खिड़की में खड़ा रह कर नजारा देखने को बेताब हो गया, गीता ने अपना टॉप के सरे बटन खोल कर जब निकाल ने लगी तो उसकी काले रंग की ब्रा दिखी, और अगले सी पल पता नहीं क्या हुआ की गीता मेरी और घूमी और जैसे ही मुझे खिड़की पे खड़ा देखा उसने तुरंत टॉप वापस पहन लिया, मुझे लगा की गीता मेरे पर गुस्सा होगी लेकिन वोह गुस्सा होने की बजाये शर्माने लगी. अब में बिन्दाष्ट हो गया था, में गीता को विनती की की वोह मेरे सामने कपडे बदले, हम दोनों की घर की खिड़की के बिच सिर्फ २ मीटर की ही दुरी थी, में उसे बार बार विनती की मेरे सामने कपडे बदल ने की, लेकिन दोस्तों बिना भाव खाए या बिना नखरा किया सीधी तरह लडको की बात कभी किसी लड़की ने सुनी है? फिर काफी देर तक हाथ पैर जोड़ने के बाद गीता ने धीरे धीरे अपने टॉप के बटन खोलने सुरु किये. जैसे जैसे उसकी टॉप के बटन खुलते गए, वैसे वैसे यहाँ मेरे लंड खड़ा होने लगा. मेरा लंड और मन नाच रहा था की आज तो गीता को नंगी देख सकुगा, पर है रे किसमत, जैसे ही गीता ने अपना टॉप खोला मेरे घर पे किसी की आवाज आई तो मुझे खिड़की छोड़ कर भागना पड़ा और गीता भी अन्दर चली गई, एक बार फिर किस्मत ने धोखा दिया, पर दोस्तों अगर भरोसा और हिम्मत हो तो हमेशा किस्मत दोखा नहीं देती, आज शाम को तो कैसे भी कर के किल्ला फ़तेह करना है यह सोच कर अपने आप को शाम के लिए तैयार करने लगा. और शाम का इंतज़ार करने लगा, शाम को करीब ४ बजे मेरी माँ और बहिन बहार चले गए और फिर में अपनी दादी के मंदिर जाने का इंतज़ार करने लगा और करीब ५ बजे दादी मंदिर गई, में जल्दी से खिड़की पे आया और गीता को धुन्धने लगा, लगभग ५.३० गाजे गीता मेरे घर पे आई, जैसी हे वो आई में उसको बाहों में भर लिया और उसके होठो पर अपने होठ रख दिए और धोरे धोरे उसके होठ चूसने लगा और धीरे धीरे मेरा एक हाथ उसके बदन को छूकर सीधा उसके स्तन पर रख दिया और धीरे धीरे उसका एक स्तन दबाने लगा, गीता भी आज बहोत गर्म थी वोह भी मेरी किस का मजा ले रही थी और अपने हाथो से मेरी पीठ सहला रही थी गीता ने आज लाल रंग का टॉप और काले रंग का स्कर्ट पहना था, वोह हमेसा फ़्रोक या टॉप और स्कर्ट ही पहेनती थी. हौले हौले हम लोग आगे बढ़ाते गए और और मैंने गीता के टॉप के बटन खोलने शुरू कर दिए, जैसे ही उसका टॉप खोला उसका गोरा बदन देख कर मेरे होश उड़ गए मैंने गीता का एक हाथ मेरे लंड पे रख कर पेंट के ऊपर से हलके से दबाया पहले तो वो शर्मा गई, फिर धीरे धीरे उसकी शर्मा वासना में परिवर्तित होने लगी और उसने मेरा लंड दबा दिया, मैंने भी अपना टीशर्ट खोल दिया, मैंने गीता की पीठ पे हाथ ले जा कर उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी ब्रा जमीं पे गिर गई और उसके दूध जैसे सफ़ेद मम्मे को देख कर मेरा लंड मेरे पेंट से बहार आने तो बेताब होने लगा, मैंने एक हाथ से उसका स्तन दबाया, हम दोनों के लिए यह पहला अवसर था, उसके मुह से हलकी सिसकारी निकली,
क्या कोमल स्पर्श था उसके बूब्स का, जैसे ही मैंने अपने हाथो से उसके बूब्स दबाये मुझे ४४० वोल्ट का करंट लगा, फिर में अपना पेंट और अंडरवियर भी खोल दिया, में गीता के सामने बिलकुल नंगा था, पहले तो वोह शर्मा गई, पर मेरे हाथ और होठो ने उसकी श्री शर्म तो वासना बे तब्दील कर दिया, वोह भी मेरी तरह एकदम गर्म और चुदाई के लिए बेताब हो चुकी थी, में अपना एक हाथ उसके स्कर्ट में डाला और मेरे हाथो ने उसकी चूत का गिला पण उसकी पेंटी के ऊपर से महसूस किया, बाद में हम दोनों को एक दुसरे को खूब चूमा, बदन के एक एक हिस्से को चूमा, अंत में मैंने उसकी निप्प्ले को दांतों से दबाते हुए उसकी पेंटी भी खोल दी, वो एकदम से घबरा गई, उसकी आँखों में शर्म के साथ घबराहट थी, और उसकी निप्प्ले को चूसते हुए में उसके उप्पर आ गया, और अपने लंड का सुपारा उसकी चूत के होठो पर रखा, उसकी चूत पहले से ही काफी गीली थी, में सीधा उसके ऊपर स्वर होके अपना लुंड उसकी चूत में घुसाने की कोशिश करने लगा, वैसे तो में बहोत साडी ब्लू फिल्मे देखि थी और उसके लिए में समजता था की में आसानी से चूत चोद सकुगा, लेकिन में गलत साबित हुआ, काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी मेरा लुंड गीता की चूत में नहीं घुसा, फिर एक बार और कोशिश करने जा रहा था और जैसे ही में एक और ढाका मरने जा रहा था की गीता ने उपना बदन कमर से ऊपर उठाया और मेरा लंड थोडा सा अन्दर घुस गया, गीता के मुह से चीख निकली, दोस्तों वोह तो अच्छा हुआ था की में जोर जोर से म्यूजिक चालू रखा था, नहीं तो गीता के चीखने पर मुसीबत हो जाती.
मैंने एक बार फिर अपना लंड गीता की चूत से बहार निकला और दूसरा जानलेवा ढाका मरने से पहले मैंने गीता की आँखों में देखा तो उसमे शर्म भी थी, और वासना भी थी, आंसू भी थे और ख़ुशी भी थी. डर भी था और अनुमति भी थी. मैंने गीता का मुह अपने होठो से बंध किया और एक जोरदार ढाका दिया मेरा लंड गीता की बुर को चीरते हुए पूरा गीता की चूत में घुस गया, गीता के होश उड़ चुके थे और उसकी चीख तो उंदर ही दब गयी थी. में थोड़ी देर ऐसे ही रहा फिर धीरे धीरे गीता को चोदना शुरू किया, क्योंकि में भी पहली बार चुदाई कर रहा था, ५ मिनट में तो में झड गया, पर वोह ५ मिनट मेरी जिंदगी के सबसे हसीं और कभी ना भूलने वाले ५ मिनट साबित हुए.
तो जब भी मौका मिलता था, और जब भी गीता मेरे घर में मुझे अकेले मितली थी, वो एक चुदाई के बाद ही वापस जाती थी. में ७-८ बार गीता को चोदा लेकिन अभी तक ओरल सेक्स नहीं किया था.
ये दौरान मेरे घर के पीछे और एक परिवार रहेता था, जिसमे अंकल एंटी के आलावा उनकी ३ बेटिया (रमिला, छाया और रत्ना) और एक लड़का (मुकेश) और उसकी बीवी (स्मिता) और एक उनका नन्हा सा बालक था, उसमे से रत्ना और छोटे बच्चे के अलावा सब लोग उम्र में मुझसे बड़े थे, बदकिस्मती (और मेरी खुस्किस्मती) से तीनो लड़की कुंवारी थी. सब से बड़ी रमिला को तो में कभी छू भी नहीं पाया था, लेकिन छाया, रत्ना और स्मिता के साथ बहुत मजे किये थे
सब से पहेले में स्मिता का एक्सपेरिएंस बताता हु एक बार रात को में देर से घर पहोचा, और जब सोने के लिए अपने रूम में गया (मेरे कमरा सबसे ऊपर के फ्लोर पर था, जहा टेरेस के आधे हिस्से में कमरा बनाया था, और सामने स्मिता का घर था, मेरी आदत थी इधर उधर झाँकने की . में दरवाज़े की दरार से देखा तो सामने स्मिता कुर्शी पर बैठी हुई थी और उसका पति मुकेश पीछे से स्मिता के मम्मे को दबा रहा था , मैंने गीता को कई बार नंगा देखा था, लेकिन यह पहली बार किसी की प्यार करते हुए देख रहा था और मेरा लंड तुरंत टाईट हो कर मेरे पेंट से बहार आने को तरसने लगा
रात को करीब १ बज गया था, वोह दोनों अपने सेक्स के नशे में चूर थे, मेरे कमरे की बत्ती बंध होने के कारन शायद उसको मालूम नहीं था की कोई देख रहा है, या फिर वासना की आग में दोनों इस तरह से जल रहे थे की शायद उन्हें खिड़की या बत्ती बजाने की जरुरत नहीं समजी थी. उन्हों ने सोचा होगा की रात को १ बजे कौन देखेगा, मुकेश स्मिता के बूब्स दबा रहा था और उसके होठो को किस कर रहा था
फिर उसने स्मिता को खड़ा किया और अपना एक हाथ स्मिता की साडी के निचे से उंदर दाल दिया, हलाकि मुझे उसका हाथ क्या कर रहा था वोह तो नहीं दिख रहा था, पर जिस तरह से स्मिता छटपत्ता रही थी में समज गया की उसका हाथ स्मिता की छुट से खेल रहे है और फिर मुकेश ने धीरे से स्मिता की पेंटी को नीचे कर दिया और एकदम से फिर निकल ही दिया , फिर वापस हाथ अन्दर डाला और स्मिता की हरकते और तेज़ हो गई, मतलब यह था की मुकेश अब शायद अपनी ऊँगली उंगलिया स्मिता की चूत में मस्ती कर रही होगी वह पर यह सब हो रहा था तभी मुझे पता ही नहीं चला की कब में अपना लंड निकल कर मुठ मारने लगा था, फिर मुकेश ने स्मिता का ब्लाउस के बटन खोलना शुरू किया और एक के बाद एक सरे बटन खोल दिए. ताजुब यह हुआ की स्मिता ने ब्रा नहीं पहनी थी और ना तो मुकेश ने स्मिता की साडी खोली. स्मिता के मम्मे बिना ब्रा के एकदम पैड पे लटकते आम की तरह जुल रहे थे, मुकेश ने ब्लाउस एक बाजु किया तो स्मिता के बूब्स के दर्शन हुए, क्या बूब्स था, दिम लाइट होने के बाउजुद भी उसके मम्मे दिखाई दे रहे थे, उधर मुकेश ने स्मिता के बूब्स चुसना शुरू किया, मैंने अपने हाथ की रफ़्तार तेज़ की. मुकेश का मुह स्मिता के बूब्स चूस रहे थे और एक हाथ उसकी चूत पे खेल रहा था. तब एक बात मेरी ध्यान में आई के स्मिता जब भी मुकेश का लंड पकड़ ने जाती तो मुकेश तुरंत स्मिता का हाथ रोक लेता था . यह बात कुछ समज में नही आई.
बाद में मुकेश ने स्मिता तो बिस्तर पे लिटा दिया, मुझे लगा अभी लाइव ब्लू फिल्म देखने को मिलेगी, मैंने कभी किसी को रियल में चोद्ते हु नहीं देखा था, इसीलिए मेरे लंड इस तरह से टाईट हो रहा था की पूछो मत, अब दोस्तों स्मिता को नंगी देखने को मिलेगा, लेकिन यह मुकेश तो अजीब इन्सान है. ना तो उसने स्मिता की साडी खोली ना तो खुद के कपडे खोले, बस सिर्फ स्मिता की साडी और पेटीकोट को कमर के उपर तक उठाया, और अपना पेंट और उन्देर्वेअर थोडा नीचे किया और फिर में क्या देखा की मुकेश का लंड एकदम छोटा सा था, मेरा लंड जब सोया हुआ रहता है तब भी इसे बड़ा दिखता है. लेकिन यह तो एकदम छोटा अफ़सोस इस बात का रहा की ना तो उसने स्मिता के कपडे खोले और दिम लाइट की वजह से मुझे ये पता नहीं चला की स्मिता की चूत पर जाँते थी या नहीं जाट , और फिर मुकेश को ना तो स्मिता की चूत चाटने की जरुरत पड़ी, न तो उसकी चूत गीली करने की न अपना लंड चुस्वाने के, बस वोह तो सीधा अपना लंड स्मिता मी चूत में दाल दिया, और स्मिता तो चोदने लगा. और फिर ८-१० धक्के में तो मुकेश खलाश हो गया. अब दोस्तों आप ही बताओ की एक जवान शादीशुदा औरत और एक बच्चे की माँ, क्या इतने से सेक्स से संतुस्ट हो सकती है और मुकेश तो जैसे हम लोग पीसाब करने जाते कैसे पेंट खोला पीसाब किया और चुपचाप पेंट वापस पहन लिया वैसे ही खलास होकर तुरंत अपना लंड बहार निकला छड़ी और पेंट वापस पहना और स्मिता के बाजु में सो गया.
मुझे स्मिता की हालत पर दया आ गई और साथ साथ में खुश भी हो रहा था की एक चांस है स्मिता को जितने का, वरना तो मुकेश सभी बातो में मुझसे आगे था, लेकिन सेक्स के बारे में बेचारा बहोत पीछे रह गया था स्मिता अपने पति असंतुस्ट थी और उसका में फैयदा उठाना चाहता था, उसका असंतोष मेरे लिए आशीर्वाद बनने वाला था, अब में स्मिता तो कैसे पटाया जाये वो सोचने लगा था, गीता तो मेरे घर पर रोज आती थी इसीलिए आसानी से मेरा कम हो सका था, और शायद यही तरीका रत्ना के साथ भी अजमाया जा सकता है, लेकिन स्मिता तो कभी कभार ही मेरे घर पर आती थी, और वोह भी अकेले नहीं. अब के करू वोह समज में नहीं आ रहा था
फिर मुझे ध्यान आया के जो चीज़ स्मिता को मेरी तरफ आकर्षित कर सकती है वो एक मात्र मेरा लंड था, तो क्यों ना अपने लंड का ही इस्तेमाल किया जाए, यह तरीका थोडा जोखिम वाला था, पर कुछ pane के लिए जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा. दोपहर को खाने के बाद स्मिता अपने ऊपर के कमरे में आराम करने के लिए आती थी, तो में यही वक़्त पे उसको अपनी और आकर्षित करने की कोशिश करने का फैसला किया, एक बार दोपहर को में ऊपर मेरे कमरे में गया और दरवाज़े की दरार से स्मिता के घर में झाँकने लगा. थोड़ी देर के बाद स्मिता अपने कमरे में आई, मैंने अपने बदन पर सिर्फ तोलिया लपेटा हुआ था, और उन्देर्वेअर भी नहीं पहनी थी. क्योंकि कई बार में नहाने के बाद टेरेस पर धुप में सिर्फ तोलिया लपेट कर खड़ा रहता था में दरवाज़े की दरार से देखते हुए अपना लंड हिलाने लगा, मुठ मारने का हथियार तो सामने था ही, मेरा लंड तुरंत टाईट हो गया, थोड़ी देर के बाद मैंने बड़े आवाज के साथ दरवाजा खोल दिया, ताकि स्मिता का ध्यान मुज पर पड़े, और दरवाजा खुलते ही स्मिता ने मुझे देखा और मैंने अपना तोलिया नीचे गिया दिया, मानो की गलती से अपने आप तोलिये निकल गया हो. और मैंने तुरंत तोलिया उठाया और फिर से लपेट लिया और तुरंत अन्दर आ कर टेरेस का दरवाजा बंध कर लिया, लेकिन ये सब के दौरान स्मिता को पूरा मौका मिल गया मेरे लंड को देखने का और फिर लंड देखने के बाद जो ख़ुशी स्मिता के चेहरे पर थी वोह मुझसे छुपी ना रही.
वोही ख़ुशी जो मेरे लिए एक नयी उम्मीद नया जोश और नया माल (मेरे लंड के लिए) ले कर आने वाली थी. मैंने दरवाजे की दरार से देखा तो स्मिता मेरे घर की और ही देख रही थी. शायद मुझे देखने की कोशिश कर रही थी. में कपडे पहन कर फिर टेरेस पर गया तो स्मिता मुझे देख कर शर्मा के अन्दर चली गई. लेकिन जाते जाते शरमाते हुए जो मुस्कुराई मुझे लगा की अभी स्मिता को चोदना इतना मुस्किल काम नहीं होगा, क्योंकि उसकी भी लगा की शायद मेरे लंड उसकी चूत की प्यास बजा सकेगा
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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