Tuesday, June 17, 2014

FUN-MAZA-MASTI ट्यूशन पढ़ाई का या चुदाई का पार्ट--1

FUN-MAZA-MASTI

 ट्यूशन पढ़ाई का या चुदाई का पार्ट--1 


अनिल ने अब तक जितनी भी लड़कियों को ट्यूशन पढ़ाया था दिव्या उन सबसे सेक्सी और चुदाई के लिए पकी हुई थी. मेकॅनिकल इंजिनियरिंग के सेकेंड एअर में पढ़ रहे अनिल ने इससे पहले केवल 7थ - 8थ के स्टूडेंट्स को ट्यूशन पढ़ाया था... उस उम्र में कुच्छ लड़कियों के स्तन उभर तो आते हैं पर जो आकार और गोलाई 11थ में पढ़ रही दिव्या की चुचियों में था वो उनमे में नही था. और उस समय अनिल भी कहाँ केर करता था. इंजिनियरिंग कॉलेज में आने के बाद ये तीसरी लड़की है जिसे अनिल ट्यूशन पढ़ा रहा था. इससे पहले उसने मीनाक्षी और देवयानी को पढ़ाया था. मीनाक्षी तो दुबली पतली थी और उसकी चुचियाँ अभी तक विकसित नही हुई थी. हां देवयानी सेक्सी थी और इसे लाइन भी दे रही थी पर अनिल को कभी हिम्मत ही नही हुई पहल करने की. छ्होटे सहर के संस्कारी वातावरण से आए अनिल के लिए ये समझना बहुत कठिन था कि देवयानी जान बूझ कर अपने ब्रा और चुचियाँ उसे दिखा रही है या बस ग़लती से उसे दिख जा रहा है. अपनी ग़लती का एह्शास तो उसे तब हुआ जब एग्ज़ॅम से पहले वो देवयानी को बेस्ट ऑफ लक विश करने गया था तो घर में अकेली देवयानी ने उससे लिपट कर उसकी छाती पर अपनी चुचियाँ दबा दी थी. जब अनिल के उम्मीद से अधिक देर तक और अधिक ज़ोर से देवयानी उससे लिपटी रही तो अनिल की पॅंट में कुच्छ गतिविधि हुई और उसका हाथ देवयानी की छोटी सी स्कर्ट में छिपी गोल कोमल गांद पर गया. देवयानी ने अपने पैर उपर उठा अनिल की पॅंट में उभड़ रहे पर्वत को उसके अनुकूल स्थान के निकट ला दिया. अनिल के हाथों का ज़ोर बढ़ा और उसने देवयानी को बगल की दीवार की ओर धकेल कर उसके बदन को अपने बदन से मसल्ने लगा. देवयानी ने आँखे बंद कर अपने चेहरे को उपर की तरफ उठाया, अनिल ने आमंत्रण स्वीकार करते हुए उसके गुलाब के पंखुरियों समान नशीले होंठों पर चुंबन जड़ दिया. दवयायानी ने अपने मुँह को खोल अनिल की जीभ को उकसाया. सिर्फ़ अनिल की जीभ दवयायानी के मुँह में नही गयी, उसका हाथ भी दवयायानी की शर्ट में घुस उसकी ब्रा में दबी रसगुल्ले जैसी चुचियों को मसल्ने लगा था. दवयायानी के संपूर्णा समर्पण से प्रोत्साहित हो अनिल उसकी शर्ट के बटन को खोल काले ब्रा में आधी धकी हुई सफेद चुचियों के गुलाबी निपल को चूसने लगा. राक कॉन्सर्ट के ड्रम की तरह धड़कते दिल, धड़कन के साथ लयबद्ध हो फूलती चुचियाँ, और वॅक्यूम क्लीनर की तरह चलती साँसों के साथ दीवार से अटकी दवयायानी अपनी आँखे बंद सबकुच्छ लुटाने को तैयार खड़ी थी. उसकी चुचियों से सारे रस को निचोड़ लेने के बाद अनिल अपने लक्ष्या की तरफ बढ़ा, स्कर्ट खोल कर नीचे गिरने और स्कर्ट सरका कर रेशमी बालों के बीच सुगंध बिखेरती अमृत टपकाती दवयायानी की गुलाबी चूत को प्रकाशमान करने में अनिल को अधिक वक़्त नही लगा. चूत को पहली बार आँखों के सामने प्रत्यक्ष देख कर अनिल के मुँह और लंड दोनो से लार टपक पड़ी. अपनी उंगलियों के नाख़ून को अपनी हथेली में दबाती हुई, अपने निचले होंठ को दांतो तले दबा, आँखों को बंद कर बढ़ती धड़कन और तेज़ होती साँसों के साथ दवयायानी मुर्तिवत खड़ी हो अपनी पंखुरियों के खुलने और भवरे द्वारा रस को चूसने का इंतेज़ार कर रही थी. थोड़ी देर रेशमी झाड़ियों से खेलने के बाद अनिल की उंगलियाँ शबनम से गीली हो चुकी गुलाबी पंखुरियों के बीच जा पहुँची. उन पंखुरियों के गीलेपन, चिकनाई और गर्मी का एह्शास करते हुए उसकी उंगली प्रेम की गहराइयों में जा घुसी. दवयायानी मचल उठी, उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल गयी. सिसकारियो ने अनिल को भी जोश में ला दिया और अनिल की उंगलियाँ गहराई में जा उस कच्ची कली की सिंचाई करने लगी. उंगलियों से सिंचाई कर कली को फूल बनाने की पूरी तैयारी कर अनिल कली को फूल बनाने के लिए बिस्तर पर ले गया और अपनी पॅंट की ज़िप को खोल जल से भरे ट्यूबिवेल को बाहर निकाला. तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी. दवयायानी स्प्रिंग की तरह उच्छल कर अपने स्कर्ट की ओर लपकी और अपने कपड़े ठीक करने लगी. अनिल ने भी जल्दी से अपने हथियार को अंदर डाला और दवयायानी के कमरे से निकल कर भागा. 

इसके बाद तो एग्ज़ॅम हुए, फिर ट्यूशन बंद और फिर दोनो को कभी मिलने का मौका नही मिला. चुदाई के इतने नज़दीक पहुँच कर मिस कर जाने पर अनिल पागल हो उठा था. उस दिन की घटना को, दवयायानी के नंगे बदन को याद कर कर अनिल ना जाने कितनी ही बार हिला चुका था. पर जो मज़ा असली चुदाई का है वो हाथ में कहाँ. दिव्या को पहली बार देख कर अनिल का लंड अपनी अधिकतम लंबाई पर पहुँच गया था. उसने उस रात तीन बार हिलाया. दिव्या दवयायानी से ठीक उल्टी थी. वो गाओं से पहली बार 11थ की पढ़ाई करने आई थी. उसके पिताजी किसान थे और सबलॉग गाओं के संस्कारों के पुजारी थे जहाँ गुरु को भगवान से भी उँचा दर्जा दिया जाता है. अनिल के घर पहुँचने पर दिव्या की मा हाथ जोड़ कर अनिल को प्रणाम करती और दिव्या पावं च्छू कर प्रणाम करती. दूसरे माले पर दिव्या का बेडरूम था, ट्यूशन वहीं चलता और बस एक कप चाइ देने के लिए दिव्या की मा उपर आती, इसके अलावा उपर कोई देखने नही आता. दिव्या नज़र उठा कर भी अनिल की तरफ नही देखती. वो तो बेचारी ठीक से कुच्छ बोल ही नही पाती. बस सर हिला कर अनिल के सवालों का जवाब देती. अनिल इस मौके का खूब फायेदा उठाता और दिव्या के समीज़ से अंदर और समीज़ के उपर से दिव्या के पर्वतों को इतना घूरता कि उसकी पॅंट पर पर्वत खड़ा हो जाता. दिव्या का जिश्म जितना विकसित था, मस्तिष्क उतना ही अविकसित. वो अपने आदरणीय गुरुजी को प्रसन्न रखने का प्रयास तो बहुत करती पर मैथ और फिज़िक्स उसके दीमाग में घुसता ही नही था. केयी बार तो उसकी मंद बुद्धि से अनिल क्रोध में आ उसे डाँट देता और तब उसका गोरा चेहरा लाल हो जाता जो दिव्या को और भी मादक बना देता था. 

महीना बीत गया पर समीज़ के उपर से उसकी बढ़ी हुए चुचि को मापने के अलावा अनिल अपने लक्ष्या की तरफ एक कदम भी नही बढ़ा पाया था. महीने के अंत में फीस देते समय जब दिव्या के पिताजी ने दिव्या की पढ़ाई के बारे में पूचछा तो अनिल का सारा फ्रस्ट्रेशन बाहर आ गया. उसने खुल कर दिव्या की शिकायत की. दिव्या के पिताजी नीरस हो कर बोले "देखिए सर, हमारा काम फीस देना है, पढ़ना इसका काम है और पढ़ाना आपका. अगर पढ़ाई नही करे तो आप इसे जो जी में आए सज़ा दीजिए. मैं और दिव्या की मा एक शब्द नही बोलेंगे". 'जो जी में आए सज़ा दीजिए' ये शब्द कान में पड़ते ही अनिल का लंड खड़ा हो गया. उसने सर झुकाए, आँखे भरी हुई, चेहरा लाल, खड़ी दिव्या को देखा और उसके पिताजी से आग्या ले हॉस्टिल वापस आ गया. रात भर अनिल यही सोचता रहा अपनी इस नयी आज़ादी का लाभ वो कैसे उठाए. 

अगले दिन अनिल का लंड सुरू से ही खड़ा था. सलवार, समीज़ और ओढनी में बिस्तर पर दिव्या बैठी थी और सामने कुर्शी पर अनिल. दिव्या जब भी कुच्छ लिखने के लिए झुकती, उसकी ओढनी नीचे गिर जाती और फिर वो ओढनी ठीक करने लगती. ओढनी के कारण अनिल को दिव्या के अमूल्या निधि का भरपूर नज़ारा नही मिल रहा था. उसने चाइ आने तक इंतेज़ार किया, फिर खुद को मिली आज़ादी से उत्तेजित अनिल ने दिव्या के जिश्म पर से ओढनी खीच कर साइड में रख दी. "इससे बार बार डिस्टर्ब हो रही हो, बिना इसके रहो". दिव्या चुपचाप अपने गुरु की आग्या मानते हुए झुक कर पढ़ाई में लग गयी. अब अनिल को दिव्या की पुर्णवीकसित चुचियों के आकार का सही अंदाज़ लग रहा था और उसके आकार ने कदाचित् अनिल के लंड का आकार बढ़ा दिया था. अब जब भी दिव्या नीचे झुकती उसकी समीज़ से उसकी गोल चुचियों का कुच्छ हिस्सा अनिल को दिख जाता जो उसके लंड में रक्त संचार बढ़ा उसे उत्तेजित कर देता. अगले दिन से दिव्या पढ़ने बिना ओढनी के ही आई और अगले कुच्छ दिनो में अनिल को दिव्या के ब्रा के कलेक्षन की पूरी जानकारी मिल चुकी थी और उसे दिव्या की गुलाबी निपल्स के भी दर्शन हो चुके थे. पर बात आगे नही बढ़ रही थी. सिर्फ़ देख कर उसका मंन नही भरता. दिव्या को पढ़ा कर लौटने पर वो अक्सर हिला कर अपने लंड के जोश को ठंढा करता फिर सोता. वो दिव्या के जिश्म तक पहुँचने की नयी तरकीब सोचने लगा. 


अगले दिन अनिल ने उस बेचारी जान को टरिगॉनओमीट्री के सारे आइडेंटिटीस याद करने का होमवर्क दे दिया. अनिल अच्छि तरह से जानता था कि दिव्या की मंदबुद्धि में ये आइडेंटिटीस कभी नही घुसने वाले हैं. पर उसका उद्देश्या उसके दिमाग़ में फ़ॉर्मूला घुसाना नही अपितु उसकी चूत में अपना लंड घुसाना था. दिव्या अनिल की उम्मीद पर पूरी तरह से खरी उतरी. अनिल ने झूठ मूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा "तुम पढ़ाई बिल्कुल नही करती, ऐसे काम नही चलेगा. जब तक तुम्हे पनिशमेंट नही मिलता तुम पढ़ाई नही करोगी. चलो मुर्गी बनो" ये सज़ा अनिल को बचपन में स्कूल में मिला करती थी, पर इसमे उसे दिव्या की गांद को नज़दीक से देखने का मौका मिलता. बेचारी दिव्या रुआंसी हो चुप चाप अनिल की बगल में खड़ी हो गयी. उसके लाल गाल देख कर अनिल के जी में आया अभी उसे बाहों में भर कर चूम ले. पर उसने कहा "रोने धोने से काम नही चलेगा. जब तक तुम्हे सज़ा नही मिलेगी तुम्हारा पढ़ाई में ध्यान नही लगेगा". दिव्या जब फिर भी नही हिली तो अनिल खड़ा हो गया और गुस्से में कहा "मैने तुमसे कुच्छ कहा है?" दिव्या ने रोती हुई कहा "मुझे मुर्गी बनना नही आता" अनिल को ऐसे ही किसी मौके की तलाश थी. वो दिव्या के पीछे उसके बदन के एकदम नज़दीक खड़ा हो गया और एक हाथ उसके पीठ पर और दूसरी हाथ उसकी चुचि पर रख कर बोला "नीचे झुको". दिव्या की चुचि को इससे पहले किसी मर्द ने नही च्छुआ था. उसके पूरे बदन में सनसनी दौड़ गयी, मानो उसे करेंट लगा हो. वो रोनो धोना सब भूल गयी थी, उसके आँसू ना जाने कहाँ गायब हो गये थे और उसके दिल की धड़कन अचानक बढ़ने लगी. अनिल के हाथ का दबाव उसकी चुचि पर बढ़ने लगा, वो दिव्या के धड़कते दिल को अपनी हथेलियों पर महशूस कर सकता था. जब दिव्या झुक गयी तो उसने उसे अपने पैर के पीछे से हाथ ला कान पकड़ने को कहा. फिर अनिल का शरारती हाथ दिव्या की टाइट और पूरी तरह से विकसित गांद पर गया और उसने गांद को मसल्ते हुए कहा "इसे उपर उठाओ" फिर अपने हाथ को उसकी गांद पर भ्रमण कराते हुए उसकी चूत पर अपनी उंगली को दबाया. चूत पर सलवार के उपर से उंगली के दबाव ने दिव्या को जैसे पागल बना दिया. उसे ऐसा एह्शास पहले कभी नही हुआ था. उसे सर जी की ये सज़ा पसंद आ रही थी. चूत पर उंगली पड़ते ही एक सनसनी सी दिव्या के पूरे बदन मे होते हुए उसके चूत तक पहुँची और गीलापन बन बाहर आ गयी. दिव्या ने पहले ऐसा कभी महशूष नही किया था. वो उठ कर सीधा टाय्लेट भागना चाहती थी. पर अनिल का हाथ उसकी गांद के आयतन, द्राव्यमान और घनिष्टता मानो सब माप लेना चाहता हो. उसका व्याकुल लंड अपने आगे चूत को देख पॅंट फाड़ कर बाहर निकलने को बेचैन हो रहा था. पर इस डर से की कहीं कोई चला ना आए, अनिल उसके गांद का मज़ा अधिक समय तक नही ले सकता था. उसने थोड़ी ही देर में दिव्या को उठ जाने को कहा. 

अब दिव्या का मंन पढ़ाई में और नही लग रहा था. अपनी चुचि और चूत पर अनिल के हाथ के स्पर्श से उसके अंदर आनंद की जो लहर उठी थी दिव्या उसकी अनुभूति फिर से करना चाहती थी. वो देखना चाहती थी कि उसकी चूत पर कैसा गीलापन है. उसे अगले दिन सारे आइडेंटिटीस याद करने का होमवर्क दे अनिल घर आ कर सबसे पहले अपने लंड को हिला कर झाड़ा. फिर उसे एह्शास हुआ कि उसने जो सब दिव्या के साथ किया है कहीं उसने अपने घर वालों को बता दिया तो गंभीर समस्या हो जाएगी. दवयायानी के अनुभव से अनिल इतना तो समझ ही गया था कि 11थ की लड़कियाँ छ्होटी बच्ची नही होती. अब उसे भय सताने लगा. कहीं उसने अपने पिताजी को बता दिया हो तो? वो अगले दिन दिव्या को पढ़ाने नही गया. उधर दिव्या बेचारी उसकी यादों में नज़रे बिच्छाए बैठी थी. कल वाली सज़ा वो फिर से पाना चाहती थी. रात को दिव्या के कहने पर दिव्या के पिताजी ने फोन कर अनिल से उसकी तबीयत के बारे में पूछा तो अनिल की जान में जान आई. वो समझ चुका था कि अब दिव्या का शिकार करना अधिक मुश्किल नही होगा. दिव्या के शिकायत ना करने से अनिल की हिम्मत बढ़ गयी थी, अब वो अक्सर दिव्या को मुर्गी बना सलवार के उपर से उसके गांद और चूत से खेलता था. धीरे धीरे उसकी झिझक जाती रही और अब वो अपने पॅंट पर बन रहे पर्वत को छिपाने की कोशिश नही करता. कभी कभी तो वो दिव्या के सामने ही अपने लंड पर हाथ रख देता. दिव्या भी इस खेल में मज़ा उठा रही थी. उसे नही पढ़ने का एक और बहाना मिल गया था, होमवर्क नही करो और सर से मस्ती लूटो. धीरे धीरे वो भी खुलने लगी थी. अब वो सर की तरफ सीधे देखती और अनिल के पॅंट की सूजन को देख कर मुश्कूराती. 

एक दिन मुर्गी बनाने की सज़ा पर उसने कह दिया "मैं मुर्गी नही बनूँगी, पैर दुख़्ता है. आप कोई और सज़ा दे दीजिए." अनिल ने उसे बेड पकड़ कर झुकने को कहा और उसके पीछे खड़ा हो उसके गांद पर अपना लंड दबा दिया. फिर वह झुक कर दोनो हाथों से दिव्या की दोनो चुचि को पकड़ कर मसल्ने लगा. इस खेल में दिव्या को और अधिक मज़ा आ रहा था. अब से पहले अनिल ने उसकी चुचियों को बस दबाया था, पर मसल्ने पर मज़ा कुच्छ और था. वो भी मचल कर अपनी गांद को अनिल के लंड पर धकेलने लगी. फिर अनिल को कुच्छ आहट सुनाई दी, वो झट से दिव्या के पीछे से हट कुर्शी पर बैठ गया और दिव्या को बैठ जाने को बोला. पर कोई आया नही था. दिव्या की चुचियों का ये मज़ा अब अनिल से बर्दाश्त नही हो रहा था. उसने उठ कर कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और दिव्या से फिर झुक कर खड़ा होने को कहा. दिव्या अनिल के इरादे को समझती थी पर नखड़ा दिखाना तो लड़कियों की अदा है. उसने कहा "अब मैने क्या किया है?" 
क्रमशः......





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