FUN-MAZA-MASTI
शिकस्त ---02 लास्ट पार्ट
सर, अब आगे नही. किसी भी मर्द को इस मौके पर रुकावट पसंद नही. वो भी चिड़े हुए स्वर मे बोले
" क्या है". मैने खुलासा किया,
" मैं अभी तक कुँवारी हूँ, सर". झट से जवाब आया,
" हर लऱ'की पह'ले कुँवारी ही होती है और तब तक रह'ती है जब तक कोई मर्द उसे औरत न बना दे. " और बिना मेरे जवाब की दरकार किए , उन्हो ने अपना लंड अंदर घूसा दिया. आगे वही हुआ जो सब जानते है. कुच्छ ही पल मे मैं लड़की से औरत बन गयी.
जब मुझे आहेसास हुआ की क्या हो गया है तो इस तरह अपना कौमार्या खोने पर मैं थोड़ी उदास हो गयी. वो भी मेरे मूड को समझे. शाम हो रही थी. मुझे कहा ,
मैं ज़रा बाहर हो आता हूँ. उनके जाने के बाद मैं गुम सूम लेटी रही और अपने जीवन का मुआयना करती रही. घंटे भर मे वो वापस आए, एक थैली मुझे दी और कहा ये ले, तैयार हो जेया. मैने देखा तो अंदर नया ड्रेस था. चावी वाले पुतले की तरह, बिना कोई भाव'ना के, मैं उठी और ड्रसस पहन लिया. वो मुझे साथ लिए बाहर चल दिए. गाड़ी रुकी तो वो एक सुना मंदिर था. वो दर्शन करने गये, तो मैं भी गयी. दर्शन कर के आँखे खोली तो, ..... आश्चर्य चकित हो गयी. वो हाथ मे मंगल सट्रा लिए खड़े थे. मुझे भीने स्वर मे कहा,
"भगवान को साक्चि मान कर, मैं तुझे अपनी पत्नी स्वीकार करता हूँ". मैं देखती ही रह गयी... कहीं ये सपना तो नही?? उन्हो ने मेरे गले मे वो मंगल सट्रा पहना दिया. मैं खुश हो गयी. उस रात मैने बेड पर तूफान मचा दिया. वो भी पूरी तरह से खिले थे. ना जाने रात भर मे कितनी बार चुदाई हुई. सुबह होते होते नींद लगी और दोपहर को खुली. फिर एक बार हम'ने कामसुख भोगा. जब वापस चले तो हम दोनो पूर्णा टाइया तृप्त थे. मुझे लगा वो बादल है और मैं धरती. बादल रत भर बरसा और पानी बनकर धरती मे समा गया. खुद खाली हो गया और धरती को तृप्त कर दिया. मैं अपने आप को मिसिज. राजन समझने लगी थी. संगीता के बाद मेरा ही तो है सब.
वापस लौट के आने के बाद उन्हों ने मेरे लिए एक फ्लॅट ले लिया और मुझे वहाँ ठहरा दिया. डॉक्टर ने भले ही संगीता को 20-25 दिन की मेहमान होने का कहा था, उस की तबीयत कुच्छ सुध'री और हॉस्पिटल मे ही उसने चार महीने और खींचे. तब तक रोज, राजन सर मेरे फ्लॅट पर आते थे , मुझे भोगते थे और चले जाते थे. मैं कुछ बोल भी नही सकती थी. एक बार आत्म-समर्पण जो कर चुकी थी और उनकी पत्नी बनने के सपने भी देखती थी. संगीता की डेत के बाद वो बोले, हमारे घर्मे एक साल का शोक मानते है. तो एक साल शादी की बात फिर ताल गयी. साल भी बीत गया और दूसरा साल भी आ गया. राजन सर कोई ना कोई बहाना बना कर शादी टाल देते थे, पर मुझे चोदना नही भुलाते थे. मेरी जवानी का और सुंदरता का पूरा पूरा लुत्फ़ (आनंद) उठाया, मज़ा लिया.
मैं भी समझने लगी थी,... की .. पत्नी बनने के चक्कर मे मैं उनकी रखैल बन चुकी हूँ!! फिर अपना बॅकग्राउंड देख कर और जॉब ढूँढने के समय के अनुभवों को याद कर, मान को मनाती रही ; रखैल भी बन गयी तो ठीक ही है. फिर एक दिन एक नई बात बनी. उस रात ऑफीस की और से पार्टी थी. मैं भी तैयार हो के गयी थी और मेहमानों की देख भाल देख रही थी. ये सब मैं पहले भी कई बार कर चुकी थी. सारी व्यवस्था पर नज़र रख रही थी. जब पार्टी ख़त्म होने मे थोड़ी देर बाकी थी, तो राजन सर आए और मुझे एक कोने मे ले जेया के प्यार भरे सुर मे कहा,
" अनु, वो ब्राउन सूट मे मिस्टर. शरमा खड़े है, देख रही हो ?" मैने हामी भारी. आवाज़ और धीमी और गंभीर करते हुए कहा.
"हमारे लिए बहोट इंपॉर्टेंट गेस्ट है. उनसे हमे 25 करोर का कांट्रॅक्ट मिल सकता है. बड़े रंगीन मिज़ाज आदमी है. कांट्रॅक्ट पेपर्स को लड़की के खुले स्तन पर रख के साइन करने का शौक रखते है. तू ही इनको संभाल सकती है. उन को ओबेरोई मे ड्रॉप करने जेया और खुश कर के सुबह लौटना, समझी ??" और मेरे जवाब की परवाह किए बिना ही मुझे ले चले और मिस्टर. शर्मा से इंट्रोडक्षन करवा दिया,
"सर, यह है हमारी हॉट ब्यूटी क्वीन, अनुपमा." आँख विंक करते हुए आड किया,
"`हर काम' मे माहिर है. आप को होटेल पर छ्चोड़ने आ रही है. आप कांट्रॅक्ट पर दस्तख़त ज़रूर कर देना." शर्मा ने लोलुप नज़रों से मेरे स्तनों को देखा और बोला,
"साइन करने की जगह तो सही है" और गंदी तरह से हंस पड़ा. राजन सर भी उसकी हँसी मे शामिल हो गये और मुझे उसकी और पुश करते हुए कहा,
"गुड नाइट तो बोत ऑफ योउ". सब कुच्छ इतना फास्ट हो गया, की बिना कोई प्रतिक्रिया किए मैं ओबेरोई मे शर्मा की बेड पर पहुँच गयी. . मैने सोचा, अब आ ही गयी हूँ तो काम पूरा कर दूं. .. और मैने शर्मा को खुश कर दिया.... सुबह होते उसने कोंटर्कत पेपर्स निकले और मेरे नंगे स्तनों पर रख कर साइन कर दिया. वापस आ के पेपर्स राजन सर को दिए तो बहोट खुश होते हुए कह उठे,
"मैं जनता था, तुम ये काम ज़रूर कर सकती हो". उस के बाद तो ये सिलसिला ही बन गया. मैं रखैल से कब रंडी बन गयी पता ही नही चला. धीरे धीरे राजन सिर का मेरे फ्लॅट पर आना कम हो गया. और एक दिन देखा की उन्हों ने ऑफीस मे एक नई प. ए. भी रख ली थी. अब मेरा ऑफीस मे पहले जैसा रेस्पेक्ट भी नही रहा था. मुझे कहीं भी कुच्छ भी अच्च्छा नही लग रहा था. तो मैने राजन सर को एक दिन अपने फ्लॅट पर बुला लिया. वो आए. मैं साज धज के तैयार हुई थी, उन्हे आकर्षित करने के लिए. उन्हों ने जाम के मेरी चुदाई भी की. जब लगा मुझे की वी संत्ुस्त है तो मैने बात निकली और जो हो रहा था उसके प्रति नाराज़'गी व्यक्त करते हुए कहा,
" सर, आप ने तो मुझे मंदिर मे भगवान को साक्षी मान कर पत्नी बनाया था, फिर आपने पत्नी की जगह रखैल बना दिया, मैने वो भी सह लिया, लेकिन अब तो आपने मुझे रंडी बना दिया है, क्या ये ठीक है?" वो हंसते हुए बोले,
"छ्होटी बच्ची थोड़ी हो की मैं काहु और तुम चली जाओ किसी के साथ सोने के लिए ? तुम्हे भी तो खुजली थी शर्मा से चुदाने की." अब आवाज़ तीखी हुई,
" एक तो रहने को आलीशान फ्लॅट दिया है, पैसे की तकलीफ़ नही है, तुम्हे रोज नई वेराइटी मिलती है, फिर भी नखरे दिखती है ? और तुम्हे क्या फ़र्क पड़ता है, मैं चोदु या कोई और चोदे ? चुदाई तो चुदाई ही है ना ? समाज ले अपना शरीर मुझे ही दिया है."
उनका ये रूप देख कर मैं तो हक्का बक्का रह गयी. थोड़ी देर तो क्या बोलना है, कुच्छ सूझा ही नही. फिर जब संभाली तो मैने भी कसर नही छ्चोड़ी. दोनो गुस्से मे आ गये. बात बिगड़ती गई. बड़ा झगड़ा हो गया. मैने कह दिया,
"राजन, तूने मुझे धोखा दिया है. मैं तुझे नही छ्चोड़ूँगी. देख लूँगी. " इस पर तो वो लाल-पीला हो गया. बड़ी हस्ती थी. उसे कोई ऐसा कह जाए तो कैसे सुन लेता ? वो भी बिगड़ा,
"तू ? तू मुझे देख लेगी ? तेरी हैसियत ही क्या है ? मेरे सामने तेरा क्या वजूद है ? मेरे पास पैसे की ताक़त है, सोशियल स्टेटस है, पोलिटिकल कॉंटॅक्ट है, बड़े बड़े नेता से संबंध है, पोलीस और अंडरवर्ल्ड मे पहेचन है. और तू ? एक रंडी मात्रा !! तेरी क्या औकात है की मुझे देख लेगी ? चल खाली कर ये घर अभी का अभी !!" मेरे पास कोई चारा नही था. लेकिन घर छ्चोड़ते हुए मैने अपनी सारी भादश निकल दी,
"राजन, तू देखना , इन सब के बावजूद मैं तुझे हरा दूँगी, मॅट दे दूँगी !! तुझे ये रंडी शिकस्त देगी, शिकस्त !!! " घर तो छ्चोड़ दिया, पर जिए कैसे... कहाँ जाए.... ये सारे प्रश्ना सामने आ गये. मैने फिर एक बार शहर छ्चोड़ दिया. लेकिन जल्द ही भूख-प्यास से मैं उब गई. रातों को हाइवे पर खड़ी रह के ट्रक द्रिवेरोन के साथ सोई और खनेका पैसा जुटाया. एक भले ड्राइवर ने बताया ,
"देल्ही जितना सेक्स का व्यवसाय कहीं नही होगा अपने देश मे. तू सुंदर है. वहाँ तेरी कदर होगी. मैं देल्ही जेया रहा हूँ ये ट्रक ले के, मैं वहाँ कोठे भी जानता हूँ, बैठ जेया, तुझे वहाँ पहुँचा दूँगा." इस तरह नसीब मुझे देल्ही ले आया. मजबूरी मे मुझे वाकई रंडी ही बनना पड़ा. मैने भी वो कोठा पकड़ लिया. सुंदर तो मैं थी ही. मेरा काम चल पड़ा. बहोट कस्टमर आते थे. एक रात मे दस कस्टमर्स को बैठा लेती थी. कोठे की मेडम भी खुश और मैं भी. अब रहने की और खनेकी चिंता तो ना रही. कुच्छ कस्टमर तो खाश हो गये.
यूँ दिन बीत रहे थे.... कुच्छ साल भी बीत गये. अब पैसे भी बन गये थे. लेकिन मैं राजन को नहीं भूली थी. कैसे उस से बदला लूँ, ये सोचती रहती थी.
[दोस्तों, अनुपमा की ज़िंदगी मे फिर कुच्छ ऐसी बात बनी , जो कहानी के रस को ध्यान मे रखते हुए मैं आगे बताऊँगा. ]
फिर एक दिन कुच्छ ऐसी बात हुई की मुझे मेरा हथियार मिल गय....ऱजन को हराने के लिए. और मैं चल पड़ी वापस मुंबई की और.
मुंबई आ के दो महीने तक मैं उस'से नही मिल पाई, क्यों की वो विदेश गया हुआ था. लेकिन उस समय मे मैने अपना काफ़ी काम कर लिया. अब अंतिम वार करने का समय आ गया. राजन के लौटते ही मैं उसे मिली. सेक्सी ड्रेस मे साज धज के गयी थी. मुझे देख के उसे आश्चर्या हुआ. मुहे उपर से नीचे तक देखते हुए बोला,
"थोड़ी फीकी पद गयी हो" मैने कहा,
"हन, आप के बिना ये हाल हो गया मेरा." उसके चेहरे पर अभिमान भारी मुस्कान च्चाई,
"तो अब तेरी अककाल ठिकाने आ गयी ! चली थी मुझे हराने की चॅलेंज दे कर !! कहाँ पिघल गया तेरा वो सब गुमान ?" विनती भारी आवाज़ मे मैं ने कहा,
" अब भूल भी जाइए वो सब, सर ! मैं लौट आई हूँ हमेशा के लिए आप की होने के लिए. आप जो कहेंगे वो सब मैं करूँगी." गंदा हास्या करते हुए वो बोला,
"तो अब घर, पैसा और सुविधा के लिए तू रंडी बनने को भी तैयार हो गयी." मैं ने एक सेक्सी आवाज़ मे कहा,
"वो तो है ही, पर एक बात और भी है, सर,... जिसने मुझे मजबूर किया है." आचरजभरी निगाह से वो मुझे देखता रह गया, लेकिन जब बात समझ मे नही आई तो पुच्छ बैठा,
" और वो क्या है ? " मैं ने एक सेक्सी अंगड़ाई ली और ड्रेस की स्लिट से पूरी जाँघ उसे दिखाते हुए बोली,
"आप की जैसी चुदाई भी तो कोई नही करता, ना !!, आप मुझे रंडी बनके चाहे जिस'के पास भेजे, लेकिन आप को भी मुझे रोज चोदना होगा ! " वो घमंड से फूला ना समाया. वैसे भी सारे मर्द को यही लगता है की उसके जैसी हार्ड चुदाई कोई नही करता. वह भी खुशी भरा चेहरा ले कर बोला,
" तो ये बात है ! ठीक है, तेरे साथ एक प्रोग्राम बनता हूँ" मैं जेया के उसके लॅप मे बैठी और उसके गले मे हाथ डालते हुए कहा,
" मुझे वहीं ले चलो, जहाँ पहली बार चोदा था." उसे सब याद था, बोल पड़ा,
"तो 'डूक्स' खंडाला मे जाने का इरादा है मेडम का !" मैने मंडी हिला के हन कही और उसके रलोब पर एक गरम किस और बीते दे दी. उसने वीकेंड का प्रोग्रामे बना लिया... और दूसरे दिन शनिवार की दोपहर हम वही सूट मे पहुँच गये.... जहाँ मैने अपना कौमार्या खोया था ! अंदर पहॉंच के मैं उस'से लिपट गयी और उसके गले मे बाहें डालते हुए मेरे होठ उसके होठ पर रख दिए. वो भी शुरू हो गया.
तुरत ही दोनो की जीभ एक दूसरे के मूह मे फिर रही थी... मैने ये चुंबन बहोट लंबा चलाया ..और दोनो के मूह की लार एक दूसरे मे घुलमिल गयी. थोड़ी ही देर मे जब दोनो नंगे हो गये और वो बेड पर लेत तो मैं उसके मूह पर जेया के इस तरह बैठी की मेरी चूत उसके होत पर आ जाए. वो उसे चूमने लगा. मैने सेक्सी आआहएं भारी तो समझा मुझे मज़ा आ रहा है, और चूत को फैला के जीभ अंदर डाल के चाटने लगा. मैं यहाँ भी लंबे समय तक लगी रही. उसे भी मैने पूरा गरम किया और उसने मुझे जाम के चोदा. थोड़ी ही देर मे मैं फिर उठी और उसे कहा,
चलो आज साथ नहाते है. बाथरूम मे फिर एक और रौंद हो गया. रात भर मैं लगी रही. (देल्ही मे दस दस को बैठा के मेरी केपॅसिटी भी तो बन चुकी थी !) सुबह तक में तो मैने उसे निचोड़ ही डाला. सनडे का दिन और रात भी ऐसे ही तूफान भरे बिताए. उसे भी बड़ा असचर्या हो रहा था, मेरा ये रूप देख कर. कुच्छ अजीब भी लग रहा था उसे, मेरा इस तरह अचानक आना और उसे यहाँ ले आना, और उसके बाद इस तरह से चुदते रहना.... पर समझ नही पा रहा था. मंडे की सुबह को लौटने से पहले जब मैने उसे फिर एक बार उकसाया तो आखरी चुदाई करते हुए बोल ही पड़ा,
"अनु, तुम किस बात पर उतार आई हो, समझ मे नही आता !!! ऐसा लग रहा है, कोई राज है !!!" मैने रंग बदलते तीखी आवज़ मे कहा,
"तो मैं समझा देती हू.... की... मैं किस बात पर उतार आई हू ! तू सही कहता है, एक राज है, और ले, वो राज भी मैं खोल देती हू." उसे धक्का दे कर मेरे उपर से हटाया और मेरी पर्स से एक एन्वेलप निकलके उसकी और फैंकते हुए मैने कहा,
" पढ़ इसे, ये तेरी मौत का परवाना है !" वो बिना कुच्छ समझे मेरा मूह ताक'ता रहा. मैने आवाज़ मे सारी नफ़रत घोलते हुए कहा,
" राजन, मुझे एड्स हुआ है !!!!! उसका रिपोर्ट है उस एन्वेलप मे . इतना ही नही, और एक फटल एस टी डी (सेक्षुयली ट्रॅन्स्मिटेड डेसीज़) का भी मैं शिकार हो गयी हू, जो बहोत बहोत ही चेपी (कंटेजियस) है . जो मेरे साथ एक बार भी सोएगा , उसका शिकार हो जाएगा. .डॉक्टर्स ने हाथ उठा लिए है !!! मैं इस धरती पर अब कुच्छ ही महीनों की मेहमान हू !!! और मैने ये दो दिन मे तुझे भी ये रोग लगा दिया है. अब तू भी कुच्छ ही महीने का मेहमान है. इतना ही नही..... जब तुम पिच्छाले दो महीने से विदेश मे था, मैने तेरे तीनो बिटो को भी ये रोग पूरी तरह लगा दिया है. अब तो बड़े लड़'के की पत्नी (एक बेटे की शादी इस दौरान हो गयी थी) भी इसका शिकार हो गयी होगी." दुख, घृणा, संतोष और आनंद मिश्रित स्वर मे मैने कहा,
" राजन, मैने सिर्फ़ तुझे ही नही तेरे सारे खानदान को सत्यानाश कर दिया है !!!!!! अब लगा ले अपनी पैसों की ताक़त ! कर ले उपयोग अपने सोशियल स्टेटस का !! इस्तेमाल कर अपने पोलिटिकल कॉंटॅक्ट्स !!! बुला उन सारे बड़े बड़े नेताजी को !!!! बुला तेरे वो पोलीस वालों को और अंडरवर्ल्ड वालों को !!!!!! किसी तरह बचा ले तुझे !!!!!!!! राजन, इस अकेली औरत ने तेरी उन सारी ताकतों के बावजूद तुझे हरा दिया !!!!!!!! बेवकूफ़, ये दो दिन से तू मुझे यहाँ चोद नही रहा था !!!!!! मैं तुझे शिकस्त दे रही थी, शिकस्त !!!
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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शिकस्त ---02 लास्ट पार्ट
सर, अब आगे नही. किसी भी मर्द को इस मौके पर रुकावट पसंद नही. वो भी चिड़े हुए स्वर मे बोले
" क्या है". मैने खुलासा किया,
" मैं अभी तक कुँवारी हूँ, सर". झट से जवाब आया,
" हर लऱ'की पह'ले कुँवारी ही होती है और तब तक रह'ती है जब तक कोई मर्द उसे औरत न बना दे. " और बिना मेरे जवाब की दरकार किए , उन्हो ने अपना लंड अंदर घूसा दिया. आगे वही हुआ जो सब जानते है. कुच्छ ही पल मे मैं लड़की से औरत बन गयी.
जब मुझे आहेसास हुआ की क्या हो गया है तो इस तरह अपना कौमार्या खोने पर मैं थोड़ी उदास हो गयी. वो भी मेरे मूड को समझे. शाम हो रही थी. मुझे कहा ,
मैं ज़रा बाहर हो आता हूँ. उनके जाने के बाद मैं गुम सूम लेटी रही और अपने जीवन का मुआयना करती रही. घंटे भर मे वो वापस आए, एक थैली मुझे दी और कहा ये ले, तैयार हो जेया. मैने देखा तो अंदर नया ड्रेस था. चावी वाले पुतले की तरह, बिना कोई भाव'ना के, मैं उठी और ड्रसस पहन लिया. वो मुझे साथ लिए बाहर चल दिए. गाड़ी रुकी तो वो एक सुना मंदिर था. वो दर्शन करने गये, तो मैं भी गयी. दर्शन कर के आँखे खोली तो, ..... आश्चर्य चकित हो गयी. वो हाथ मे मंगल सट्रा लिए खड़े थे. मुझे भीने स्वर मे कहा,
"भगवान को साक्चि मान कर, मैं तुझे अपनी पत्नी स्वीकार करता हूँ". मैं देखती ही रह गयी... कहीं ये सपना तो नही?? उन्हो ने मेरे गले मे वो मंगल सट्रा पहना दिया. मैं खुश हो गयी. उस रात मैने बेड पर तूफान मचा दिया. वो भी पूरी तरह से खिले थे. ना जाने रात भर मे कितनी बार चुदाई हुई. सुबह होते होते नींद लगी और दोपहर को खुली. फिर एक बार हम'ने कामसुख भोगा. जब वापस चले तो हम दोनो पूर्णा टाइया तृप्त थे. मुझे लगा वो बादल है और मैं धरती. बादल रत भर बरसा और पानी बनकर धरती मे समा गया. खुद खाली हो गया और धरती को तृप्त कर दिया. मैं अपने आप को मिसिज. राजन समझने लगी थी. संगीता के बाद मेरा ही तो है सब.
वापस लौट के आने के बाद उन्हों ने मेरे लिए एक फ्लॅट ले लिया और मुझे वहाँ ठहरा दिया. डॉक्टर ने भले ही संगीता को 20-25 दिन की मेहमान होने का कहा था, उस की तबीयत कुच्छ सुध'री और हॉस्पिटल मे ही उसने चार महीने और खींचे. तब तक रोज, राजन सर मेरे फ्लॅट पर आते थे , मुझे भोगते थे और चले जाते थे. मैं कुछ बोल भी नही सकती थी. एक बार आत्म-समर्पण जो कर चुकी थी और उनकी पत्नी बनने के सपने भी देखती थी. संगीता की डेत के बाद वो बोले, हमारे घर्मे एक साल का शोक मानते है. तो एक साल शादी की बात फिर ताल गयी. साल भी बीत गया और दूसरा साल भी आ गया. राजन सर कोई ना कोई बहाना बना कर शादी टाल देते थे, पर मुझे चोदना नही भुलाते थे. मेरी जवानी का और सुंदरता का पूरा पूरा लुत्फ़ (आनंद) उठाया, मज़ा लिया.
मैं भी समझने लगी थी,... की .. पत्नी बनने के चक्कर मे मैं उनकी रखैल बन चुकी हूँ!! फिर अपना बॅकग्राउंड देख कर और जॉब ढूँढने के समय के अनुभवों को याद कर, मान को मनाती रही ; रखैल भी बन गयी तो ठीक ही है. फिर एक दिन एक नई बात बनी. उस रात ऑफीस की और से पार्टी थी. मैं भी तैयार हो के गयी थी और मेहमानों की देख भाल देख रही थी. ये सब मैं पहले भी कई बार कर चुकी थी. सारी व्यवस्था पर नज़र रख रही थी. जब पार्टी ख़त्म होने मे थोड़ी देर बाकी थी, तो राजन सर आए और मुझे एक कोने मे ले जेया के प्यार भरे सुर मे कहा,
" अनु, वो ब्राउन सूट मे मिस्टर. शरमा खड़े है, देख रही हो ?" मैने हामी भारी. आवाज़ और धीमी और गंभीर करते हुए कहा.
"हमारे लिए बहोट इंपॉर्टेंट गेस्ट है. उनसे हमे 25 करोर का कांट्रॅक्ट मिल सकता है. बड़े रंगीन मिज़ाज आदमी है. कांट्रॅक्ट पेपर्स को लड़की के खुले स्तन पर रख के साइन करने का शौक रखते है. तू ही इनको संभाल सकती है. उन को ओबेरोई मे ड्रॉप करने जेया और खुश कर के सुबह लौटना, समझी ??" और मेरे जवाब की परवाह किए बिना ही मुझे ले चले और मिस्टर. शर्मा से इंट्रोडक्षन करवा दिया,
"सर, यह है हमारी हॉट ब्यूटी क्वीन, अनुपमा." आँख विंक करते हुए आड किया,
"`हर काम' मे माहिर है. आप को होटेल पर छ्चोड़ने आ रही है. आप कांट्रॅक्ट पर दस्तख़त ज़रूर कर देना." शर्मा ने लोलुप नज़रों से मेरे स्तनों को देखा और बोला,
"साइन करने की जगह तो सही है" और गंदी तरह से हंस पड़ा. राजन सर भी उसकी हँसी मे शामिल हो गये और मुझे उसकी और पुश करते हुए कहा,
"गुड नाइट तो बोत ऑफ योउ". सब कुच्छ इतना फास्ट हो गया, की बिना कोई प्रतिक्रिया किए मैं ओबेरोई मे शर्मा की बेड पर पहुँच गयी. . मैने सोचा, अब आ ही गयी हूँ तो काम पूरा कर दूं. .. और मैने शर्मा को खुश कर दिया.... सुबह होते उसने कोंटर्कत पेपर्स निकले और मेरे नंगे स्तनों पर रख कर साइन कर दिया. वापस आ के पेपर्स राजन सर को दिए तो बहोट खुश होते हुए कह उठे,
"मैं जनता था, तुम ये काम ज़रूर कर सकती हो". उस के बाद तो ये सिलसिला ही बन गया. मैं रखैल से कब रंडी बन गयी पता ही नही चला. धीरे धीरे राजन सिर का मेरे फ्लॅट पर आना कम हो गया. और एक दिन देखा की उन्हों ने ऑफीस मे एक नई प. ए. भी रख ली थी. अब मेरा ऑफीस मे पहले जैसा रेस्पेक्ट भी नही रहा था. मुझे कहीं भी कुच्छ भी अच्च्छा नही लग रहा था. तो मैने राजन सर को एक दिन अपने फ्लॅट पर बुला लिया. वो आए. मैं साज धज के तैयार हुई थी, उन्हे आकर्षित करने के लिए. उन्हों ने जाम के मेरी चुदाई भी की. जब लगा मुझे की वी संत्ुस्त है तो मैने बात निकली और जो हो रहा था उसके प्रति नाराज़'गी व्यक्त करते हुए कहा,
" सर, आप ने तो मुझे मंदिर मे भगवान को साक्षी मान कर पत्नी बनाया था, फिर आपने पत्नी की जगह रखैल बना दिया, मैने वो भी सह लिया, लेकिन अब तो आपने मुझे रंडी बना दिया है, क्या ये ठीक है?" वो हंसते हुए बोले,
"छ्होटी बच्ची थोड़ी हो की मैं काहु और तुम चली जाओ किसी के साथ सोने के लिए ? तुम्हे भी तो खुजली थी शर्मा से चुदाने की." अब आवाज़ तीखी हुई,
" एक तो रहने को आलीशान फ्लॅट दिया है, पैसे की तकलीफ़ नही है, तुम्हे रोज नई वेराइटी मिलती है, फिर भी नखरे दिखती है ? और तुम्हे क्या फ़र्क पड़ता है, मैं चोदु या कोई और चोदे ? चुदाई तो चुदाई ही है ना ? समाज ले अपना शरीर मुझे ही दिया है."
उनका ये रूप देख कर मैं तो हक्का बक्का रह गयी. थोड़ी देर तो क्या बोलना है, कुच्छ सूझा ही नही. फिर जब संभाली तो मैने भी कसर नही छ्चोड़ी. दोनो गुस्से मे आ गये. बात बिगड़ती गई. बड़ा झगड़ा हो गया. मैने कह दिया,
"राजन, तूने मुझे धोखा दिया है. मैं तुझे नही छ्चोड़ूँगी. देख लूँगी. " इस पर तो वो लाल-पीला हो गया. बड़ी हस्ती थी. उसे कोई ऐसा कह जाए तो कैसे सुन लेता ? वो भी बिगड़ा,
"तू ? तू मुझे देख लेगी ? तेरी हैसियत ही क्या है ? मेरे सामने तेरा क्या वजूद है ? मेरे पास पैसे की ताक़त है, सोशियल स्टेटस है, पोलिटिकल कॉंटॅक्ट है, बड़े बड़े नेता से संबंध है, पोलीस और अंडरवर्ल्ड मे पहेचन है. और तू ? एक रंडी मात्रा !! तेरी क्या औकात है की मुझे देख लेगी ? चल खाली कर ये घर अभी का अभी !!" मेरे पास कोई चारा नही था. लेकिन घर छ्चोड़ते हुए मैने अपनी सारी भादश निकल दी,
"राजन, तू देखना , इन सब के बावजूद मैं तुझे हरा दूँगी, मॅट दे दूँगी !! तुझे ये रंडी शिकस्त देगी, शिकस्त !!! " घर तो छ्चोड़ दिया, पर जिए कैसे... कहाँ जाए.... ये सारे प्रश्ना सामने आ गये. मैने फिर एक बार शहर छ्चोड़ दिया. लेकिन जल्द ही भूख-प्यास से मैं उब गई. रातों को हाइवे पर खड़ी रह के ट्रक द्रिवेरोन के साथ सोई और खनेका पैसा जुटाया. एक भले ड्राइवर ने बताया ,
"देल्ही जितना सेक्स का व्यवसाय कहीं नही होगा अपने देश मे. तू सुंदर है. वहाँ तेरी कदर होगी. मैं देल्ही जेया रहा हूँ ये ट्रक ले के, मैं वहाँ कोठे भी जानता हूँ, बैठ जेया, तुझे वहाँ पहुँचा दूँगा." इस तरह नसीब मुझे देल्ही ले आया. मजबूरी मे मुझे वाकई रंडी ही बनना पड़ा. मैने भी वो कोठा पकड़ लिया. सुंदर तो मैं थी ही. मेरा काम चल पड़ा. बहोट कस्टमर आते थे. एक रात मे दस कस्टमर्स को बैठा लेती थी. कोठे की मेडम भी खुश और मैं भी. अब रहने की और खनेकी चिंता तो ना रही. कुच्छ कस्टमर तो खाश हो गये.
यूँ दिन बीत रहे थे.... कुच्छ साल भी बीत गये. अब पैसे भी बन गये थे. लेकिन मैं राजन को नहीं भूली थी. कैसे उस से बदला लूँ, ये सोचती रहती थी.
[दोस्तों, अनुपमा की ज़िंदगी मे फिर कुच्छ ऐसी बात बनी , जो कहानी के रस को ध्यान मे रखते हुए मैं आगे बताऊँगा. ]
फिर एक दिन कुच्छ ऐसी बात हुई की मुझे मेरा हथियार मिल गय....ऱजन को हराने के लिए. और मैं चल पड़ी वापस मुंबई की और.
मुंबई आ के दो महीने तक मैं उस'से नही मिल पाई, क्यों की वो विदेश गया हुआ था. लेकिन उस समय मे मैने अपना काफ़ी काम कर लिया. अब अंतिम वार करने का समय आ गया. राजन के लौटते ही मैं उसे मिली. सेक्सी ड्रेस मे साज धज के गयी थी. मुझे देख के उसे आश्चर्या हुआ. मुहे उपर से नीचे तक देखते हुए बोला,
"थोड़ी फीकी पद गयी हो" मैने कहा,
"हन, आप के बिना ये हाल हो गया मेरा." उसके चेहरे पर अभिमान भारी मुस्कान च्चाई,
"तो अब तेरी अककाल ठिकाने आ गयी ! चली थी मुझे हराने की चॅलेंज दे कर !! कहाँ पिघल गया तेरा वो सब गुमान ?" विनती भारी आवाज़ मे मैं ने कहा,
" अब भूल भी जाइए वो सब, सर ! मैं लौट आई हूँ हमेशा के लिए आप की होने के लिए. आप जो कहेंगे वो सब मैं करूँगी." गंदा हास्या करते हुए वो बोला,
"तो अब घर, पैसा और सुविधा के लिए तू रंडी बनने को भी तैयार हो गयी." मैं ने एक सेक्सी आवाज़ मे कहा,
"वो तो है ही, पर एक बात और भी है, सर,... जिसने मुझे मजबूर किया है." आचरजभरी निगाह से वो मुझे देखता रह गया, लेकिन जब बात समझ मे नही आई तो पुच्छ बैठा,
" और वो क्या है ? " मैं ने एक सेक्सी अंगड़ाई ली और ड्रेस की स्लिट से पूरी जाँघ उसे दिखाते हुए बोली,
"आप की जैसी चुदाई भी तो कोई नही करता, ना !!, आप मुझे रंडी बनके चाहे जिस'के पास भेजे, लेकिन आप को भी मुझे रोज चोदना होगा ! " वो घमंड से फूला ना समाया. वैसे भी सारे मर्द को यही लगता है की उसके जैसी हार्ड चुदाई कोई नही करता. वह भी खुशी भरा चेहरा ले कर बोला,
" तो ये बात है ! ठीक है, तेरे साथ एक प्रोग्राम बनता हूँ" मैं जेया के उसके लॅप मे बैठी और उसके गले मे हाथ डालते हुए कहा,
" मुझे वहीं ले चलो, जहाँ पहली बार चोदा था." उसे सब याद था, बोल पड़ा,
"तो 'डूक्स' खंडाला मे जाने का इरादा है मेडम का !" मैने मंडी हिला के हन कही और उसके रलोब पर एक गरम किस और बीते दे दी. उसने वीकेंड का प्रोग्रामे बना लिया... और दूसरे दिन शनिवार की दोपहर हम वही सूट मे पहुँच गये.... जहाँ मैने अपना कौमार्या खोया था ! अंदर पहॉंच के मैं उस'से लिपट गयी और उसके गले मे बाहें डालते हुए मेरे होठ उसके होठ पर रख दिए. वो भी शुरू हो गया.
तुरत ही दोनो की जीभ एक दूसरे के मूह मे फिर रही थी... मैने ये चुंबन बहोट लंबा चलाया ..और दोनो के मूह की लार एक दूसरे मे घुलमिल गयी. थोड़ी ही देर मे जब दोनो नंगे हो गये और वो बेड पर लेत तो मैं उसके मूह पर जेया के इस तरह बैठी की मेरी चूत उसके होत पर आ जाए. वो उसे चूमने लगा. मैने सेक्सी आआहएं भारी तो समझा मुझे मज़ा आ रहा है, और चूत को फैला के जीभ अंदर डाल के चाटने लगा. मैं यहाँ भी लंबे समय तक लगी रही. उसे भी मैने पूरा गरम किया और उसने मुझे जाम के चोदा. थोड़ी ही देर मे मैं फिर उठी और उसे कहा,
चलो आज साथ नहाते है. बाथरूम मे फिर एक और रौंद हो गया. रात भर मैं लगी रही. (देल्ही मे दस दस को बैठा के मेरी केपॅसिटी भी तो बन चुकी थी !) सुबह तक में तो मैने उसे निचोड़ ही डाला. सनडे का दिन और रात भी ऐसे ही तूफान भरे बिताए. उसे भी बड़ा असचर्या हो रहा था, मेरा ये रूप देख कर. कुच्छ अजीब भी लग रहा था उसे, मेरा इस तरह अचानक आना और उसे यहाँ ले आना, और उसके बाद इस तरह से चुदते रहना.... पर समझ नही पा रहा था. मंडे की सुबह को लौटने से पहले जब मैने उसे फिर एक बार उकसाया तो आखरी चुदाई करते हुए बोल ही पड़ा,
"अनु, तुम किस बात पर उतार आई हो, समझ मे नही आता !!! ऐसा लग रहा है, कोई राज है !!!" मैने रंग बदलते तीखी आवज़ मे कहा,
"तो मैं समझा देती हू.... की... मैं किस बात पर उतार आई हू ! तू सही कहता है, एक राज है, और ले, वो राज भी मैं खोल देती हू." उसे धक्का दे कर मेरे उपर से हटाया और मेरी पर्स से एक एन्वेलप निकलके उसकी और फैंकते हुए मैने कहा,
" पढ़ इसे, ये तेरी मौत का परवाना है !" वो बिना कुच्छ समझे मेरा मूह ताक'ता रहा. मैने आवाज़ मे सारी नफ़रत घोलते हुए कहा,
" राजन, मुझे एड्स हुआ है !!!!! उसका रिपोर्ट है उस एन्वेलप मे . इतना ही नही, और एक फटल एस टी डी (सेक्षुयली ट्रॅन्स्मिटेड डेसीज़) का भी मैं शिकार हो गयी हू, जो बहोत बहोत ही चेपी (कंटेजियस) है . जो मेरे साथ एक बार भी सोएगा , उसका शिकार हो जाएगा. .डॉक्टर्स ने हाथ उठा लिए है !!! मैं इस धरती पर अब कुच्छ ही महीनों की मेहमान हू !!! और मैने ये दो दिन मे तुझे भी ये रोग लगा दिया है. अब तू भी कुच्छ ही महीने का मेहमान है. इतना ही नही..... जब तुम पिच्छाले दो महीने से विदेश मे था, मैने तेरे तीनो बिटो को भी ये रोग पूरी तरह लगा दिया है. अब तो बड़े लड़'के की पत्नी (एक बेटे की शादी इस दौरान हो गयी थी) भी इसका शिकार हो गयी होगी." दुख, घृणा, संतोष और आनंद मिश्रित स्वर मे मैने कहा,
" राजन, मैने सिर्फ़ तुझे ही नही तेरे सारे खानदान को सत्यानाश कर दिया है !!!!!! अब लगा ले अपनी पैसों की ताक़त ! कर ले उपयोग अपने सोशियल स्टेटस का !! इस्तेमाल कर अपने पोलिटिकल कॉंटॅक्ट्स !!! बुला उन सारे बड़े बड़े नेताजी को !!!! बुला तेरे वो पोलीस वालों को और अंडरवर्ल्ड वालों को !!!!!! किसी तरह बचा ले तुझे !!!!!!!! राजन, इस अकेली औरत ने तेरी उन सारी ताकतों के बावजूद तुझे हरा दिया !!!!!!!! बेवकूफ़, ये दो दिन से तू मुझे यहाँ चोद नही रहा था !!!!!! मैं तुझे शिकस्त दे रही थी, शिकस्त !!!
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
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`·.¸.·´ -- raj
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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