Sunday, June 1, 2014

FUN-MAZA-MASTI जीजू गुदगुदी होती है ! रहने दो ना--2

FUN-MAZA-MASTI

 जीजू गुदगुदी होती है ! रहने दो ना--2



उसने रसोई की तरफ झांककर देखा और वहाँ से संतुष्ट होकर बोली, “जीजू गुदगुदी होती है ! रहने दो ना !”
उनका इतना बोलना था, कि मैंने तुरन्त अपना हाथ पीछे खींच लिया, और चुपचाप टीवी देखने लगा। उसने बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखा और पूछा, “नाराज हो गये क्या?”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
वो बोली, “अच्छा कर लो, पर धीरे धीरे करना, बहुत गुदगुदी होती है।”
मैंने तुरन्त आज्ञा का पालन किया और फिर से उसकी गोरी-गोरी बाहों पर अपनी उंगलियों को फेरना शुरू कर दिया। इस बार उनके होठों से कोई आवाज नहीं निकल रही थी, पर उसके शरीर में होने वाले कंपन को मैं महसूस कर पा रहा था।
अब हम दोनों का ध्यान टीवी को छोड़कर अपनी अंगक्रीड़ा पर केन्द्रित हो गया था और हम उसका पूरा पूरा आनन्द ले रहे थे। मैंने गौर से देखा उसका आंखें बंद थी और पूरे बदन में कंपन था।
उसके गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठों पर भी हल्का हल्का कंपन था।
मैंने बहुत धीमी आवाज में कहा- कामना, तुम्हारे होंठ बहुत सुन्दर हैं। उनसे मेरी तरफ हल्की सी आँख खोल कर देखा और पूछा, “सिर्फ होंठ क्या?”
“नहीं, सुन्दर तो पूरा बदन है तुम्हारा, पर कहीं से तो शुरुआत करनी थी ना !” मैं बोला।
“ओह, तो यह शुरुआत है, जनाब की; तो अन्त कहाँ करने वाले हो?” पूछकर वो कनखियों से मुझे देखने लगी।
अब मैं तो कोई जवाब ही नहीं दे पाया उसको, मैंने कहा- मैंने तुमको आज तक साड़ी में नहीं देखा है, मेरा बात मान लो, आज मूवी देखने साड़ी पहन कर चलना। “बस इतनी सी बात जीजू, आपका हुक्म सर-आखों पर !”
तभी शशि की आवाज आई- खाना तैयार है। जल्दी से डायनिंग टेबल पर आइये।बहुत बुरा लग रहा था उस समय वहाँ से उठना। पर पत्नी रानी का आदेश था तो पालन तो करना ही था। हम लोग बाहर आ गये और जल्दी से खाना खाकर तैयार हो कर मूवी देखने निकल गये।
इस बार मैंने फिर से बाईक का प्रयोग करना ही उचित समझा। चूंकि शशि ने कोई विरोध नहीं किया इसीलिये मुझे कोई परेशानी भी नहीं हुई। कामना ने क्रीम रंद की हल्की कढ़ाई वाली साड़ी पहनी थी। पतली स्टैप वाला ब्लाउज, जिसमें से उसके दोनों गोरे कंधे साफ दिखाई दे रहे थे। ब्लाउज के अंदर से झांकता दूधिया यौवन जैसे मुझे पुकार रहा था। मैं खुद बहुत अधीर था। पर खुद पर काबू रखना बहुत जरूरी था। मैं शशि से बहुत प्यार करता था। उसकी निगाह में गुनाहगार नहीं बनना चाहता था। और मैं यह भी नहीं चाहता था कि कहीं से भी कामना को ये महसूस हो कि मैं सिर्फ उसके यौवन का दीवाना हूँ इस सबके बावजूद भी मैं दिल के हाथों मजबूर था। दिमाग तो कल रात से बस एक ही काम कर रहा था।
कामना मेरे पीछे बाईक पर बैठ चुकी थी। इस बार वो पूरा सहयोग कर रही थी। या शायद मेरे साथ सहज महसूस करने लगी थी। पर मुझे अच्छा लग रहा था। शशि के बैठने के बाद मैंने बाईक को धीरे धीरे आगे बढ़ाया। कामना से हाथ आगे करके मुझे कस के पकड़ लिया, और मुझसे चिपक कर बैठ गई।
थियेटर पहुँच कर हमने मूवी ’रब ने बना दी जोड़ी’ की तीन टिकट ली और अन्‍दर जा पहुँचे। हमेशा की तरह शशि कोने वाली सीट पर बैठ गई और मैं उसके बराबर में। कामना मेरे बराबर में आकर बैठ गई। इस प्रकार मैं अब दोनों के बीच में था, और दोनों ओर से महकती खुशबू का आनन्द ले रहा था।
हॉल में अंधेरा हो चुका था। जब से कामना आई थी मैंने एक बार भी शशि से छेड़छाड़ नहीं की थी इसीलिये मैंने पहले शशि को चुना और उसकी बाजू को पकड़ कर उस पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। शशि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। तो मैंने वो ही हरकत जारी रखी थोड़ी ही देर में शशि पर मेरी हरकत का असर दिखाई देने लगा। उसकी सांसें तेज चलने लगी। उसने अपना हाथ मेरी जांघ पर रख लिया और वो भी धीरे धीरे मेरी जांघ सहलाकर आनन्दानुभूति करने लगी।
हम लोग अपनी अंगक्रीड़ा और मूवी का मजा एक साथ ले रहे थे। हम दोनों की इस प्रेमक्रीड़ा के फलस्वरूप मेरा लिंग भी अंगड़ाई लेने लगा, जैसे-जैसे शशि मेरी जांघ पर मस्ती से हाथ फेर रही थी, वैसे वैसे ही उसका परिणाम अपने लिंग पर मैं महसूस कर रहा था।
मैंने घूमकर शशि की तरफ देखा उसकी निगाह सामने फिल्मी के पर्दे पर थी और हाथ की उंगलियाँ मेरी जांघों पर। और शायद उसको भी अनुमान हो गया था कि उसकी इस धीमी मालिश का असर होने लगा है अचानक उसने मेरी जांघ से हाथ हटाया और सीधे मेरा लिंग पेंट के उपर से ही पकड़ लिया।
उस समय वो अपने पूर्ण रूप में था। शशि के हाथ में जाने के बाद तो वो नाचने लगा।
अचानक मेरे मुँह से ‘हम्म…’ की आवाज हुई। शायद मेरे बांई ओर बैठी कामना ने उस आवाज को सुना। उनसे मेरी तरफ देखा। सौभाग्य ऐसा कि उस समय मेरी निगाह भी उसी को निहार रही थी। हम दोनों की नजरें आपस में टकराई तो उसने बिना कोई आवाज किये नजरों के इशारे से आँखें ऊपर की ओर मटका कर पूछा- क्या हुआ?
मैंने भी बिना किसी आवाज के सिर्फ गरदन हिला कर ही जवाब दिया- कुछ नहीं। पर तब तक वो मेरे साथ और मेरे द्वारा होने वाली हर हरकत को देख चुकी थी। इस बार जब हमारी निगाहें मिली तो उसने मुस्कुरा कर निगाहें नीची कर ली और मैंने मौका ना गंवाते हुए अपने बांयें हाथ से उसकी दांयीं बाजू को पकड़ा और उस पर धीरे धीरे उंगलियों फिराने लगा।
उसने बाजू छुड़ाने की नाकाम कोशिश की पर मैंने मजबूती से पकड़ी थी इसीलिये वो बाजू नहीं छुड़ा पाई। एक प्रयास के बाद उसने समर्पण कर दिया। और अब मेरे दोनों हाथ हरकत कर रहे थे दांया शशि के साथ और बांया कामना के साथ हालांकि कामना से मुझे मेरी हरकत का प्रतिफल नहीं मिल रहा था। पर शशि से मिलने वाले प्रतिफल से मैं संतुष्ट था।
तभी मैंने महसूस किया कि कामना ने अपना बांये हाथ से मेरे बांये हाथ की उंगलियों पकड़ ली हैं और अब मेरी और उसकी उंगलियों आपस में खेल रही थी। शशि का हाथ मेरी पैंट के ऊपर लिंग पर हल्के हल्के चल रहा था। कामना का ध्यान मूवी से हट चुका था। अब वो लगातार मेरे हाथ की उंगलियों से खेल रही थी और उसकी निगाहें शशि के उस हाथ पर थी जो लगातार मेरे लिंग के ऊपर से खेल रहा था।
इंटरवल में कुछ खाने पीने के बाद मूवी फिर से शुरू हुई और हम लोगों की क्रीड़ा भी। मूवी का पूरा पूरा आनन्द लेने के बाद हम लोग मॉल में चले गये और इधर उधर घूमते रहे वातावरण का आनन्द लेते रहे।
शशि को अकेले में साथ पाकर मैंने आज अपनी सैक्स की इच्छा जाहिर कर दी।
शशि ने कहा, “कामना के जाने तक सब्र कर लो। उसके बाद जो चा‍हो कर लेना।”
मैं भी शशि को छेड़ने के मूड में था, मैंने कहा “देख लो, तुमको पता है मुझे रोज ही तुम्हारी जरूरत पड़ती है एक रात मैं बिना तुम्हारे गुजार चुका हूँ, ऐसा ना हो कहीं गलती से मेरा हाथ तुम्हारी जगह तुम्हारी सहेली पर चला जाये।”
इतना बोल कर मैं हंसने लगा।
“मार खाओगे तुम !” कहकर शशि ने भी मेरे साथ हंसना शुरू कर दिया।
तभी कामना आ गई और बोली- क्या बात बहुत खुश लग रहे हो दोनों, क्या हुआ? शशि ने कहा, “ये तेरे जीजा जी तुझे आधी से पूरी घरवाली बनाने के मूड़ में थे जो जरा इनको प्यार से समझा दिया कि कहीं पूरी के चक्कर में से आधी भी हाथ से ना निकल जाये।”
इसी तरह हंसते, बात करते हम लोग रात को डिनर करके घर वापस आ गये।
घर आते ही शशि थकान के कारण तुरन्त सोने की तैयारी करने लगी। पर मेरी आँखों से तो नींद कोसों दूर थी मुझे तो आज कुछ करना था मूवी के बीच में मेरा ऐसा मूड बन चुका था कि अब रुकना मुश्किल था।
तभी शशि की आवाज आई, “कामना, मैं तो बहुत थक गई हूँ, सोने जा रही हूँ। फ्रिज में दूध रखा है अपने जीजू को पिला देना।”
तब तक मैं टीवी ऑन करके न्यूज देखने लगा और कामना फ्रैश होने चली गई। मैं भी फ्रैश होकर निक्कर और बनियान पहन कर टीवी देखने लगा।
फ्रैश होने के बाद कामना भी ड्राइंग रूम में मेरे साथ बैठ कर टीवी देखने लगी। 5 मिनट बाद कामना बोली, “जीजू मैं चेंज करके आती हूँ।”
“शशि सो गई क्या?” मैंने पूछा।
वो बोली- हाँ जी, और बोलकर सोई थी कि आपको दूध पिला दूं।
कहकर वो मुस्कुराई और वहाँ से जाने लगी। मैंने एक बार झांककर अपने बैडरूम में देखा, शशि सच में सो चुकी थी। मैंने एकदम कामना का हाथ पकड़ा और रोक लिया।
वो बोली, “क्या है अब?”
“थोड़ी देर मेरे पास बैठो ना मैं तुमको साड़ी में देखना चाहता था।”
“तो देख तो लिया, दोपहर से आपके साथ साड़ी में ही तो हूँ।”
“पर तब सिर्फ तुम पर ध्यान नहीं था ना अगर बुरा ना मानो तो थोड़ी देर मेरे पास ऐसे ही रहो, साड़ी में।”
मेरे इतना बोलते ही वो मेरे एकदम सामने आकर खड़ी हो गई और बोली, “लो जी भर कर देख लो।”
उसके दोनों गुब्बारे एकदम तने हुए थे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे ही पुकार रहे थे कि आकर हमसे खेलो। मैं भी खड़ा हुआ और उसके बिल्कुल सामने पहुँच गया। मैंने पूछा, “कैसे खुद को इतना मेंटेंन रखती हो?”
वो हंसने लगी और बोली- ऐसा कुछ नहीं है सब आपकी आंखों का धोखा है।
तब तक मैं उसके एकदम सामने खड़ा था, एकदम नजदीक ! मैंने फिर से उसकी गोरी गोरी बाजुओं पर अपनी उंगलियाँ फेरी।
“उईईई…” वो एकदम सिहर उठी।
मैं बोला “क्या हुआ?”
कामना ने कहा, “मीठी मीठी गुदगुदी होती है।”
मैंने पूछा- अच्छी नहीं लगी क्या?
तो उसने नजरें लज्जा से नीची कर ली। मैं मौके का फायदा उठाते हुए एकदम उसके पीछे आ गया, और पीछे से उसकी कमर में हाथ डालकर उसके पेट पर उंगलियाँ फिराने लगा।
उसने खुद को कसकर दबा लिया। अब उसकी आंखें बंद, बाजू तनी हुई, होंठ फड़फड़ाते हुए, ऊ… ऊ… आहहह.. ई… आह.. .सी…आहहह..सीईईई… की हल्की हल्की आवाज लगातार उसके मुँह से निकल रही थी।
मैं लगातार कोई 10 मिनट तक उसके वस्त्ररहित अंगों पर अपनी उंगलियाँ फिराता रहा और कामना ऐसे ही ‘आहहहह… ई… आह… सीईईई…’ की आवाज के साथ कसमसा रही थी।
मैंने धीरे धीरे अपनी उंगलियों का जादू कामना के पेट के ऊपरी हिस्से पर चलाना शुरू किया। ‘हम्म…सीईईई…’ की लयबद्ध आवाज के साथ उसके अंगों की थिरकन मैं महसूस कर रहा था। मेरी ऊपर की ओर बढ़ती उंगलियों का रास्ता उसके ब्लाउज के निचले किनारे ने रोक लिया। अभी मैंने जल्दबाजी ना करते हुए उससे ऊपर न जाने का फैसला किया और कामना की आनन्दमयी सीत्कार का आनन्द लेते हुए उसके वस्त्रविहीन अंगों से ही क्रीड़ा करने लगा।


उसके पेट पर उंगलियों की थिरकन मुझे मलाई का अहसास करा रही थी। इतनी कोमल त्वचा पर उंगलियाँ फेरने से मेरी उंगलियाँ खुद-ब-खुद हर इधर-उधर फिसल जाती। जिसका अहसास मुझे कामना के मुँह से निकलने वाली सीत्कार तुरन्त करा रही थी।
मैंने एक कदम और बढ़ाते हुए पीछे से पकड़े पकड़े ही कामना को अपनी ओर खींच लिया। वो भी बिल्कुल किसी शिकार की तरह अपने शिकारी की ओर आ गई। अब कामना के सुन्दर शरीर का पिछला हिस्सा मेरे अगले हिस्से से टकरा रहा था। पर शायद बीच में कुछ हवा का आवागमन हो रहा था। अचानक कामना थोड़ा और पीछे हटी और खुद ही पीछे से मुझसे चिपक गई। हम दोनों के बीच की दूरी अब हवा भी नहीं नाप पा रही थी।
मेरा पुरुषत्व अपना पूर्ण आकार लेने लगा, जो शायद कामना को भी उसके नितम्बों के बीच अपनी उपस्थिति का आभास करा रहा था। कामना के नितम्बों की थरथराहट उनकी स्थिति की भनक मुझे देने लगी…, मेरा मुँह उसके कंधे पर ब्लाउज और गर्दन के बीच की गोरे अंग पर टकराने लगा।
मैंने मुँह को उसके कान के नजदीक ले जाकर हल्के से बताया, “तुम सच में बहुत सुन्दर हो, कामना।”
“जी…जू…, आपने बस सामने से साड़ी… में… देखने को बोला था…, प्लीज… अब मुझे जाने दीजिए..।” हल्की सी मिमियाती आवाज में बोलकर वो पीछे से मुझमें समाने का प्रयास करने लगी। मैं कामना की मनोदशा, हया को समझ रहा था। पर बिना उसकी इच्छा के मैं कुछ भी नहीं करना चाहता था। या यूं कहूँ कि मैं चाहता था कि कामना इस खेल को खुलकर खेले।
“मैं तो तुम्हारे पीछे खड़ा हूँ। आगे की तरफ रास्ता खुला है…, चाहो तो जा सकती हो…, मैं रोकूंगा नहीं…” मैंने उसके कान में फुसफुसाकर कहा।
“छोड़ो…अब…मुझे…” बोलती वो मुझसे बेल की तरह लिपटने सी लगी…, उसकी लज्जा और शर्म मैं समझ रहा था।
अचानक मैंने अपने होंठ उसके कान के नीचे के हिस्से पर रख दिये…, “आहहहहह…” की आवाज की साथ वो दोहरी होती जा रही थी। अब मेरी उंगलियों के साथ मेरे होंठ भी कामना के सुन्दर बदन में संवेदनशील अंगों को तलाश और उत्तेजित करने का काम करने लगी। मेरे होंठ लगातार उसके कान के नीचे के हिस्से पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। कामना गर्दन इधर उधर घुमाकर होने वाली आनन्दानुभुति का आभास कराने लगी।
लगातार चुम्बन करते करते मैंने उसके कंधे पर पड़े साड़ी के पल्लू को दांत से पकड़कर नीचे गिरा दिया… जिसका शायद उसे आभास नहीं हुआ, वैसे भी अब वो जिस दुनिया में पहुँच चुकी थी वहाँ शायद वस्त्रविहिन होना ही अधिक सुखकारी होता है। मेरा एक हाथ अब उसके नाभि वाले भाग को सहला रहा था। जबकि दूसरा हाथ वहाँ से हटकर गर्दन के नीचे ब्लाउज के गले के खुले हिस्से में सहलाने का काम करने लगा। मुँह से लगातार कामना के गर्दन एवं कान के निचले हिस्से पर चुम्बन जारी थे।
उसका विरोध, “जी…जू… बस अब और… नहीं…” की हल्की होती कामुक आवाज के साथ घटता जा रहा था।
मैंने उसको प्यार से पकड़ कर आगे की तरफ घुमाया। देखा उसकी बंद आँखें, गुलाब की पंखुड़ी जैसे नाजुक गुलाबी फड़फड़ाते होंठ, मेरी छाती पर सीधी पड़ने वाली गर्म गर्म सांसें… कामना के कामान्दित होने का एहसास कराने लगी। अब मेरे हाथ उसकी पीठ और गर्दन के पीछे की तरफ सहला रहे थे। मैंने अपने होठों को बहुत प्यार से उसके गुलाबी होठों पर रखा, कामना शायद इस चुम्बन के लिये तैयार हो चुकी थी उसके होंठ मेरे होठों के साथ अठखेलियाँ करने लगे। मैंने महसूस किया कि कामना के हाथ भी मेरी कमर पर आ गये। हम लोग लगातार कुछ मिनटों तक आलिंगनबद्ध रहे।
मैंने ही अलग होने की पहल की। क्योंकि मुझे अभी आगे बहुत लम्बा रास्ता तय करना था। मैंने देखा कामना की आंखें अब खुल चुकी थी। हम दोनों की नजरें मिली…, हया की गुड़िया बनी कामना नजरें झुकाकर मेरे सीने में छिपने का असफल प्रयास करने लगी।
मैंने उसी अवस्था में कामना के कान के नीचे फिर से चूमना शुरू कर दिया। कामना वहीं जड़ अवस्था में खड़ी थी। मैंने धीरे धीरे नीचे से उसकी साड़ी को पेटीकोट से बाहर निकाला और अलग कर दिया। इसके बाद कामना के मोहक चेहरे को दोनों हाथ से पकड़ कर ऊपर किया। हम दोनों की दूसरे की नजरों में डूबने का प्रयास कर रहे थे।
तभी कामना ने कहा “जी…जू…”
“हम्म..”
“मुझे बहुत जोर से लगी है…”
“क्या …?”
“मुझे टायलेट जाना है…”
मैंने ड्राइंग रूम के साथ अटैच टायलेट की ओर इशारा करते हुए कहा- चली जाओ, और फ्रैश होने के बाद वहीं रखा शशि का नाईट गाउन पहन लेना।
कामना मुझसे अलग होकर टायलेट में चली गई। मैं भी उसके टायलेट जाते ही अपने बैडरूम में गया और शशि को निहारा। मैं शशि से बहुत प्यार करता था और किसी भी सूरत में उसको धोखा नहीं देना चाहता था पर इस बार शायद में अपने आपे में नहीं था। मैं शशि को देखकर असमंजस की स्थिति में बाहर आया। मैं खुद पर से अपना नियंत्रण खो चुका था। शशि को निहारने के बाद मैं वापस ड्राइंग रूम में वापस आया और टीवी बंद करने के साथ ही लाइट बंद करके गुलाबी रंग का जीरो वाट का बल्ब जलाकर ड्राइंग रूम का बिस्तर ठीक करने लगा…
अब उस गुलाबी प्रकाश में मैं कामना का इंतजार करने लगा। तभी टायलेट का दरवाजा खुला ‘काम की देवी’ कामना मेरे सामने नहाई हुई नाइट गाउन में थी…,
“अरे वाह, नहा ली?” मैं बोला।
“हां, वो सारी टांगें गीली गीली चिपचिपी हो गई थी…” उसने कहा।
“तुम्हारे अपने ही रस से।” कहकर मैं हंसने लगा।
वो नजरें नीचे करके मुस्कुरा रही थी। मैं उसके नजदीक गया… और उसको बताया इस खेल में अगर साथ दोगी तो ज्यादा आनन्द आयेगा, अगर ऐसे शर्माती रहोगी तो मुझे तो आनन्द आयेगा पर तुम अधूरी रह जाओगी।
कामना बोली, “जीजू, 10 बज गये हैं, अब सो जाना चाहिए, आप सो जाओ मैं आपके लिये दूध बना कर लाती हूँ।”
मैंने अपनी बाहें उसकी तरफ बढ़ा दी और वो किसी चुम्बक की तरह आकर मुझसे लिपट गई।
मैंने कहा- दूध तो मैं जरूर पियूंगा, पर आज ताजा दूध पीयूंगा।
मैंने उसको बाहों में भरा और बिस्तर पर ले गया। मैंने महसूस किया कि उसकी सांसें धौंकनी की तरह बहुत तेज चल रही थी। कामना के नथूनों से निकलने वाली गरम गरम हवा मुझे भी मदहोश करने लगी। बिस्तर पर लिटाकर मैंने बहुत प्यार से उसके दोनों उरोजों को सहलाया।
“जी…जू…अब बरदाश्त नहीं हो रहा है प्लीज अब मुझे जाने दो…” कहते कहते कामना से मेरा सिर पकड़कर अपनी दोनों पहाडि़यों के बीच की खाई में रख दिया…
मैंने महसूस किया उसने अभी ब्रा पहनी हुई थी। नाईट गाऊन के आगे के दो हुक खोलने पर उसकी गोरी पहाडियों के अन्दर का भूगोल दिखाई देने लगा। मैंने उसके होठों को पुन: भावावेश में चूमना शुरू कर दिया। कामना मेरे होठों को अपने होठों में दबा दबाकर चूस रही थी।
मैंने कामना को बिल्कुल सीधा करके बिस्तर पर लिटाया, और लगातार उसको चूमता रहा। पहले होंठ, फिर गाल, आंखें कान, गले और जहाँ जहाँ मेरे होंठ बिना रुकावट के कामना के बदन को छू सकते थे लगातार छू रहे थे। कामना के बदन की गरमाहट मैं महसूस कर रहा था। उसने दोनों हाथों को मेरी कमर के दोनों ओर से लपेट कर मुझे पकड़ लिया। मेरे होंठ लगातार कामना के बदन के ऊपरी नग्‍न क्षेत्र का रस चख रहे थे। मैंने एक हाथ से नीचे से नाईट गाऊन धीरे धीरे ऊपर खिसकाना शुरू किया। गाऊन उसकी पिं‍डलियों से ऊपर करने के बाद मैंने धीरे धीरे कामना की गोरी पिंडलियों को जैसे ही छुआ… मुझे लगा जैसे किसी रेशमी कपड़े के थान पर हाथ रख दिया हो। मेरे हाथ खुद-ब-खुद पिंडलियों पर फिसलने लगे। कामना को भी शायद इसका आभास हो गया था। उसकी सिसकारियाँ इस बात की गवाही देने लगीं।
आहह…जी…जू…आहहह…अब…बस…करो… की बहुत हल्की सी परन्तु मादक आवाज मेरे कानों में पड़ने लगी। हम दोनों की बीच होने वाली चुम्बन क्रिया कामना को लगातार मदहोश कर रही थी। मेरा एक हाथ कामना की पिंडलियों से खेलता खेलता ऊपर की ओर आ रहा था, साथ में गाऊन भी धीरे धीरे ऊपर सरक रहा था।
हम्म…सीईअईई…आहहह… की आवाज के साथ कामना की कामुक सिसकारियाँ भी लगातार तेज होती जा रही थी। कामना की दोनों टांगें अपने आप हौले हौले खुलने लगी। अचानक मेरा हाथ किसी गीली चीज से टकराया मैंने नीचे देखा… मेरा हाथ कामना की पैंटी के ऊपर फिसल रहा था। गुलाबी रंग की नीले फूलों वाली पैंटी कामना के यौवन रस से भीगी हुई महसूस हुई।
मैंने एक तरफ से कामना का नाइट गाऊन उसके नीचे से निकालने के लिये जैसे ही खींचा कामना से अपने नितम्ब ऊपर करके तुरन्त नाइट गाऊन ऊपर करने में मेरी मदद की। मैंने कामना के ऊपरी हिस्से को बिस्तर से उठाकर नाइट गाऊन को उसके बदन से अलग कर दिया… और वो काम सुन्दरी मेरे सामने सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी वैसे तो उस समय वो गुलाबी रंग की ब्रा उस पर गजब ढा रही थी पर फिर भी वो मुझे कामना और मेरे मिलने में बाधक दिखाई दी।
मैंने हौले से कामना के कान में कहा, “दूध नहीं पिलाओगी क्या?”




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