FUN-MAZA-MASTI
दिल पर जोर नहीं --3
मेरे पास बहुत समय था। मैंने पहले खुद ही अपना फेशियल किया। मेनिक्योर, पेडिक्योर करके मैंने खुद को संवारना शुरू किया। शाम को 4 बजे मुझे अरूण से पहली बार मिलना था… मैं बहुत उत्साहित थी… मैं चाहती थी कि मेरी पहली छाप ही उन पर जबरदस्त हो…. अपने मैकअप किट से वीट क्रीम निकालकर वैक्सिंग भी कर डाली…. नहा धोकर फ्रैश हुई, अपने लिये नई साड़ी निकाली, फिर सोचा कि अभी तैयार नहीं होती शाम को ही हो जाऊँगी… अगर अभी तैयार हुई तो शाम तक तो साड़ी खराब हो जायेगी। मैंने फिर से नाइट गाऊन ही पहन लिया।
अब मैं शाम होने का इंतजार करने लगी। समय काटे नहीं कट रहा था.. मैंने फिर से कम्प्यूटर चला कर वही पोर्न मूवी चला ली। पर आज मेरा मन उसमें भी नहीं लग रहा था। मेरे मन में अजीब सा उत्साह था।
शादी से पहले जब संजय मुझे देखने आये थे… तब तो मैं बिल्कुल अल्हड़ थी, इतना उत्साहित तो तब भी नहीं थी मैं….
मैं अपने बैड पर बैठकर विचार करने लगी, अरूण से मिलकर एक घंटे में क्या क्या बातें करूँगी? कैसे उनके साथ बैठूँगी, कैसे वो मुझसे बात करेंगे आदि आदि।
मुझे पता ही नहीं लगा ये सब सोचते सोचते कब मेरी आँख लग गई।
दरवाजे पर घंटी बजी… तो मेरी आँख खुली मैंने घड़ी में समय देखा। बच्चों के आने का टाइम हो चुका था। मैंने तुरन्त उठकर दरवाजा खोला। बच्चों को ड्रैस चेंज करवा कर खाना खिलाना, होमवर्क करवाना फिर ट्यूशन भेजना बस टाइम का पता ही नहीं चला कैसे तीन बज भी गये।
बच्चों को ट्यूशन भेजकर मैं तैयार होने लगी। अरूण के फोन का भी इंतजार था… अभी मैं पेटीकोट ही पहन रही थी कि दरवाजे पर घंटी बजी…
“इस समय कौन होगा?” मैं सोचने लगी।
घंटी दोबारा बजी तो मैंने फिर से नाइट गाउन पहना और दरवाजा खोलने गई।
दरवाजा खोला तो देखा बाहर संजय खड़े थे। मैं उनको 3 बजे दरवाजे पर देखकर चौंक गई।
वो अन्दर आये तो मैंने पूछा, “क्या हुआ? आप इस टाइम, सब ठीक-ठाक ना?”
संजय बोले, “हां, यार वो आज 9 बजे रात की ट्रेन से मुझे जयपुर जाना है कल वहाँ मेरी मीटिंग है एक कस्टमर से। तो तैयारी करनी थी इसीलिये जल्दी आ गया।”
मैंने पूछा, “तो किस टाइम जाओगे स्टेशन?”
संजय बोले, “टिकट करवा ली है, अब 7 बजे निकलूंगा सीधे स्टेशन के लिये।”
अब मैं तो फंस गई। अरूण मेरा इंतजार करेंगे। घर से कैसे निकलूँ, यही विचार कर रही थी कि मेरे मोबाइल की घंटी बजी।
मैं समझ गई कि अरूण का ही फोन होगा पर अब कैसे बात करूं अरूण से, और क्या जवाब दूं अरूण को….
सोचने का भी टाइम नहीं था। फोन बजकर खुद ही बंद हो गया। सबसे पहले मैंने फोन उठाकर उसको साइलेंट पर किया। तभी संजय ने पूछा, “किसका फोन था?”
मैंने जवाब दिया, “कुछ नहीं वो कम्पनी वालों के फोन आते रहते हैं, मैं तो दुखी हो जाती हूँ।” संजय ने कहा, “बाद में मुझे याद दिलाना, मैं डी एन डी एक्टीवेट कर दूँगा।”
“हम्म्म्म्म्म्म….” बोलती हुई मैं मोबाइल लेकर टायलेट में चली गई।तब तक देखा अरूण की 3 मिस कॉल आ चुकी थी। मैंने सबसे पहले अरूण को मैसेज किया कि मेरे पति घर आ गये हैं। मैं थोड़ी देर में निकल कर फोन करती हूँ। फिर सोचने लगी कि क्या तरकीब निकालूं। पर मैं उस समय खुद को बहुत बेचारा महसूस कर रही थी। संजय 7 बजे घर से जाने वाले थे। तो मैं 7 से पहले तो घर से निकल ही नहीं सकती थी और 7 बजे के बाद अंधेरा हो जाता तो बच्चों को घर में अकेला छोड़कर मैं 7 बजे के बाद भी घर से नहीं निकल सकती थी। मैं एक पारिवारिक महिला ही जिम्मेदारियों में फंस चुकी थी। मेरे पास अब अरूण से मिलने का कोई रास्ता नहीं था…
और वो इतनी दूर से आये थे सिर्फ मेरे लिये रात की ट्रेन से टिकट कराई मैं उनसे ना मिलूं ये भी ठीक नहीं था। समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करूं।
मैं बहुत देर से टाइलेट में थी तो बाहर जाना भी जरूरी था। मैं मोबाइल को छुपाकर धीरे से बाहर निकली।
“कुसुम, चाय पीने का मन है यार। तुम चाय बनाओ मैं ब्रैड लेकर आता हूँ।” बोलते हुए संजय घर से बाहर चले गये। मेरी तो जैसे सांस में सांस आई। उनके बाहर जाते ही मैंने दरवाजा अन्दर से बंद किया और अरूण को फोन किया। पहली ही घंटी पर अरूण का फोन उठा वो बोले, “कहाँ हो यार? मैं कब से तुम्हारा वेट कर रहा हूँ।”
मैंने पूछा, “कहाँ हो आप?”
मुझे उनको यह बताने में बहुत ही शर्म महसूस हो रही थी कि मैं नहीं आ पाऊंगी… पर बताना तो था ही। इसीलिये मैं बातें बना रही थी। उन्होंने बताया, “कश्मीरी गेट मैट्रो स्टेशन के नीचे काफी शॉप पर हूँ। यहीं तो मिलने को बोला था ना तुमने।”
अब मैं क्या करती, मैंने उनको सच-सच बताने का फैसला किया, “सुनो, मैं आज नहीं आ पाऊँगी।” “कोई बात नहीं, पर क्या कारण जान सकता हूँ? अगर तुम बताना चाहो तो।” उन्होंने बिल्कुल शान्त स्वभाव से पूछा।
मैंने उनको सारी बात बता दी।
तो अरूण बोले, “तुम्हारा पहला फर्ज पति का साथ देना है, तुम उनके जाने की तैयारी करो। जब वो चले जायेंगे 7 बजे तब मुझसे बात करना मेरी ट्रेन रात को 11 बजे की है।” मैंने कहा, “पर 7 बजे अंधेरा हो जाता है मैं घर से उस समय नहीं निकल पाऊँगी।”
“अरे यार, तुम टैंशन मत लो। मैं कब तुमको बाहर निकलने को बोल रहा हूँ। मैं तो सिर्फ फोन पर बात करने को बोल रहा हूँ। अभी तुम अपने पति पर ध्यान दो।” बोलकर अरूण ने ही फोन काट दिया।
सच में अरूण कितने अच्छे, मैच्योर और कोआपरेटिव इंसान, हैं ना। मैं सोचने लगी… और चाय बनाने चली गई।
तब तक बच्चे भी वापस आ गये और संजय भी। मैंने सभी को चाय ब्रैड खिलाकर जल्दी जल्दी खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी। और संजय अपनी पैकिंग करने लगे। समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। मैंने संजय के लिये रात का खाना पैक कर दिया।
सात बजे संजय ने अपना बैग उठाया और चलने लगे। मैंने संजय को विदा किया और बच्चों की तरफ देखा दोनों ही टीवी में व्यस्त थे। मैंने दूसरे कमरे में जाकर तुरन्त अरूण को फोन किया।
उधर से अरूण की आवाज आई, “हैल्लो, हो गई क्या फ्री?”
“हाँ जी, फ्री सी ही हूँ… पर इस समय बच्चों को घर में अकेला छोड़कर नहीं निकल सकती।” मैंने कहा।
“अरे अरे, तुम टैंशन मत लो, कोई बात नहीं अगर किस्मत में इस बार तुमसे मिलना नहीं लिखा तो क्या हुआ? अगली बार देखते हैं।” अरूण बोले।
“पर मैं बहुत उदास हूँ, मेरा बहुत मन है आपसे मिलने का, आप एक काम कर सकते हो क्या?” मैंने कुछ सोचते हुए पूछा।
“हां, बताओ।” अरूण ने कहा।
“मैं बच्चों को जल्दी सुलाने की कोशिश करती हूँ।, आप 8 बजे तक मेरे घर ही आ जाओ। मैं आपको अपने हाथ का बना खाना भी खिलाऊंगी… और तसल्ली से बैठकर बातें भी होंगी। आपकी ट्रेन 11 बजे है ना आप 10.30 पर भी निकलकर आटो से जाओगे तो 11 बजे तक पुरानी दिल्ली स्टेशन पहुँच ही जाओगे।” मैंने कहा।
अरूण मेरी बात से सहमत हो गये। मैंने उनको अपने घर का पता समझाया और तुरन्त आटो करने को बोला।
उन्होंने ‘ओ के’ बोलकर फोन काटा। मैंने बच्चों को खाना खिलाकर तुरन्त सोने का आदेश दे दिया। थोड़ी सी कोशिश करने के बाद ही दोनों बच्चे सो गये। मैं तुरन्त बच्चों के कमरे से बाहर आई, अरूण को फोन किया तो वो बोले की आटो में हूँ। उतर कर फोन करता हूँ। मेरे पास अब ज्यादा समय नहीं था। मैं तेजी से तैयार होने लगी।
अभी मैं साड़ी बांधकर हल्का सा मेकअप कर ही रही थी कि अरूण का फोन आया।
मैंने फोन उठाया तो एकदम ही अरूण बोले, “अरे, देखो शायद मैं तुम्हारी बिल्डिंग के बाहर ही हूँ।”
मैंने खिड़की खोलकर देखा तो अरूण बिल्कुल मेरे फ्लैट के नीचे ही खड़े थे। मैंने उनको ऊपर देखने को कहा। वो मेरी तरफ देखते ही मुस्कुराये। मैं बहुत खुश थी मैंने उनको मेरे फ्लैट तक बिना शोर या आवाज किये आने को कहा। वो धीरे से सीधे मेरे फ्लैट के दरवाजे पर आये।
मैंने दरवाजा पहले से ही खोल रखा था… उनको अन्दर लेकर मैंने दरवाजा बन्द कर दिया। अब सब ठीक था कोई परेशानी नहीं थी। उन्होंने अन्दर आते ही मुझे गले लगाया।
मैं बहुत खुश थी।
उन्होंने कहा, “बहुत सुन्दर लग रही हो।”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा मिलते ही चालू हो गये। आप बैठो सब्जी तैयार है मैं पहले आपके लिये गर्म गर्म रोटी बनाती हूँ।” अरूण मना करने लगे। पर मैं जबरदस्ती करती हुई रसोई में चली गई। वो भी मेरे पीछे पीछे वहीं आ गये।
मैंने कहा, “आप बाहर बैठो मैं आती हूँ।”
अरूण बोले, “समय कम है हमारे पास मैं यहीं तुम्हारे साथ बात भी करता रहूँगा और तुम खाना भी बना लेना। वैसे भी इस साड़ी में मस्त लग रही हो। तुम्हारा तो किडनैप करना पड़ेगा।”
मैंने जवाब दिया, “ऐसे तो कभी कभी मिल भी सकते हैं किडनैप करोगे तो एक बार में ही काम खत्म।”
वो हंसते हुए बोले, “लगता है आज ही वैक्स भी किया है बाजू बहुत चिकनी चिकनी लग रही है।”
और मेरे पीछे से खड़े होकर मेरी दोनों बाजुओं पर अपने हाथ फिराने लगे…
“सीईईई ईईय…” मैं सीत्कार उठी। मैंने वहीं खड़े-खड़े अपने नितम्बों को पीछे करके उनको पीछ की तरफ धकेला।
अरूण बोले, “ये क्या कर रही हो? बीच में तुम्हारी साड़ी आ गई नहीं तो पता है तुम्हारे कूल्हे कहाँ जा टकराएँ हैं? अगर कुछ गड़बड़ हो जाती तो…?”
“हा… हा… हा… हा… हो जाने दो…!” मैंने हंसते हुए अरूण को छेड़ा।
अरूण बोले, “नहीं, वक्त नहीं है… 9 बजने वाले हैं… और मुझे अपनी ट्रेन भी पकड़नी है। मैं तो बस तुमसे मिलने आया हूँ और कुछ नहीं।”
अरूण मेरे सबसे अच्छा दोस्त बन गये थे… पता नहीं क्यों पर मैं अरूण के साथ बिल्कुल भी झिझक महसूस नहीं कर रही थी बल्कि मैं तो बहुत ज्यादा सहज महसूस कर रही थी अरूण के साथ।
इतना तो मैंने कभी संजय के साथ भी महसूस नहीं किया था। पर मैं पता नहीं आज किस मूड में थी। पर अरूण को कुछ कहूँ भी तो कैसे कहीं वो मुझे गलत ना समझ लें। रोटी बनाकर मैं डायनिंग पर दोनों के लिये खाना लगाने लगी, अरूण भी मेरी मदद कर रहे थे जबकि संजय ने तो आज तक मेरे साथ घर के काम में हाथ भी नहीं लगाया।
मैं तो अरूण के व्यवहार की कायल होने लगी थी।
खाना खाते-खाते ही 9.30 हो गये। अरूण 10 बजे तक वापस जाना चाहते थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि उसको कैसे रोकूं। मैंने अरूण को बोला कि आप 10.30 तक भी निकलोगे तब भी आपको ट्रेन मिल जायेगी। अभी तो आपसे बहुत सारी बातें करनी हैं। अभी आप जल्दी मत करो।
वो मेरी बात मान गये और रिलैक्स होकर बैठ गये।
10 मिनट बैठने के बाद ही अरूण फिर से बोले, “कुसुम एक कप चाय पिला दो फिर जाना भी है।”
अब तो मुझे गुस्सा आ गया, मैंने कहा, “इतनी जल्दी है जाने की तो आप आये की क्यों थे? अब मैं चाय नहीं बनाऊँगी आपको जाना है तो जाओ।”
“ओह…हो… मेरी बुलबुल नाराज हो गई, चलो मैं बुलबुल को चाय बनाकर पिलाता हूँ।” अरूण ने कहा।
उनका इस तरह प्यार से बोलना मुझे बहुत ही अच्छा लगा… और चाय तो 11 सालों में मुझे कभी संजय ने भी नहीं पिलाई, उनको तो चाय बनानी आती भी नहीं। मैं तो यही सोचती रही, तब तक अरूण उठ कर रसोई की तरफ चल दिये।
मैंने कहा, “ठीक है आज चाय आप ही पिलाओ।”
अरूण बोले, “मैं चाय बनाकर पिलाऊँगा तो क्या तोहफ़ा दोगी?”
“अगर चाय मुझे पसन्द आ गई तो जो आप मांगोगे वो दूंगी और अगर नहीं आई तो कुछ नहीं।” मैंने कहा।
“ओके…” बोल कर वो गैस जलाते हुए बोले, “तुम बस साथ में खड़ी रहो, क्योंकि रसोई तुम्हारी है। मुझे तो सामान का नहीं पता ना…”
मैं उनके साथ खड़ी उनको देखती रही। कितनी सादगी और अपनापन था ना उनमें। मुझे तो उनमें कोई भी अवगुण दिखाई ही नहीं दे रहा था।
वो चाय बनाने लगे। मैं उनको देखती रही। मुझे अरूण पर बहुत प्यार आ रहा था पर मैं अपनी सामाजिक बेड़ियों में कैद थी। चाय बनाकर अरूण कप में डालकर ट्रे में दो कप सजाकर डाइनिंग टेबल पर रखकर वापस रसोई में आये… और मेरा हाथ बड़ी नजाकत से पकड़कर किसी रानी की तरह मुझे डाइनिंग टेबल तक लेकर गये और बोले, “लीजिये मैडम, चाय आपकी सेवा में प्रस्तुत है।”
मैंने चाय की एक चुस्की लेते ही उनकी तारीफ की तो अरूण बोले, “तब तो मेरा उपहार पक्का ना?”
मैंने कहा, “क्या चाहिए आपको?”
“अपनी मर्जी से जो दे दो।” अरूण ने कहा।
“नहीं, तय यह हुआ था कि आपकी मर्जी का गिफ्ट मिलेगा, तो आप ही बताइये आपको क्या चाहिए?” मैंने दृढ़ता से कहा।
अरूण बोले, “देख लो, कहीं मैं कुछ उल्टा सीधा ना मांग लूं, फिर तुम फंस जाओगी।”
“कोई बात नहीं, मुझे आप पर पूरा विश्वास है, आप मांगो।” मैंने फिर से जवाब दिया।
“तब ठीक है, मुझे तुम्हारे गुलाबी होठों की… एक चुम्मी चाहिए।” अरूण ने बेबाक कहा।
मैंने बिना कोई जवाब दिये, नजरें नीचे कर ली। अरूण ने उसको मेरी मंजूरी समझा और मेरे नजदीक आने लगे। मेरी जुबान जो अभी तक कैंची की तरह चल रही थी… अब खामोश हो गई। मैं चाहकर भी कुछ नहीं बोल पा रही थी।
अरूण मेरे बिल्कुल नजदीक आ गये। मेरी सांस धौंकनी की तरह चलने लगी। अरूण ने चेहरा ऊपर करके अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिया। आहहहह… कितना मीठा अहसास था। उम्म्म्म्म… बहुत मजा आ रहा था। मेरी आँखें खुद-ब-खुद बन्द हो गई।
संजय के बाद वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मेरे होठों को चूमा था… उनका अहसास संजय से बिल्कुल अलग था। अरूण बहुत देर तक मेरे होठों को लालीपॉप की तरह चूसते रहे। वो कभी मेरे ऊपरी होंठ को चूसते तो कभी नीचे वाले। उन्होंने मुझे अपनी बाहों में जकड़ रखा था।
अचानक उन्होंने अपनी जीभ मेरे होठों के बीच से मेरे मुँह में सरका दी। उनकी जीभ मेरी जीभ से जो ठकराई तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी जन्नत में आ गई हूँ। उनकी जीभ मेरी जीभ से मुँह के अन्दर ही अठखेलियाँ करने लगी। अब मैं मदहोश हो रही थी। मैं भी उनका साथ देने लगी। उनका यह एक चुम्बन ही 10 मिनट से ज्यादा लम्बा चला।
जब उन्होंने मेरे होठों को छोड़ा तो भी मीठा मीठा रस मेरे होठों को चुम्बन का अहसास दिला रहा था। मेरी आँखें अभी भी बन्द ही थी। अरूण बोले, “आँखें खोलो कुसुम मुझे जाना है।”
यह बोलकर वो चाय पीने लगे। मैं उस इंसान को नहीं समझ पा रही थी। क्या अरूण सच में इतना शरीफ थे। परन्तु उनके एक चुम्बन के अहसास ने मुझे नारी के अन्दर की वासना का अहसास दिला दिया था, मैं तुरन्त बोली, “यह तो आपका चुम्बन था, अब मेरा भी तो देकर जाओ।”
वो चाय खत्म करके मेरे पास आये और बोले, “ले लो, मैंने कब बना किया पर मेरे पास अब ज्यादा समय नहीं है।”
मैं भी समय नहीं गंवाना चाहती थी, मैंने उनकी गर्दन में बांहें डालकर उनको थोड़ा सा नीचे किया… और अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिये… अब तो मैं भी चुम्बन करना सीख ही गई थी, मैंने उनके होठों की उसी प्रकार चूसना शुरू कर दिया जैसे कुछ पल पहले वो मेरे होठों को चूस रहे थे।
उम्म्म… ! क्या स्वाद था उनके होठों का !
चाय पीने के बाद तो उनके होंठ और भी मीठे लग रहे थे। मैंने भी उनकी नकल करते हुए अपनी जीभ उनके मुँह में ठेल दी। वो तो बहुत ही अनुभवी थे, उन्होंने अपनी जीभ को मुँह के अन्दर मेरी जीभ में लपेटना शुरू कर दिया। मैं इस चुम्बन में बहुत लम्बा समय लेना चाहती थी। इस बात का मैं ध्यान रख रही थी… और चुम्बन बहुत ही धीरे धीरे परन्तु लगातार कर रही थी। बीच बीच में सांस भी ले रही थी, मैं उनके होठों का पूरा स्वाद ले रही थी।
इस बार शायद मैं जीत गई। कुछ देर बाद ही उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। उनकी बाहों का घेरा मेरी पीठ के चारों ओर बन चुका था, वो अपने हाथों से मेरी पीठ को सहलाने लगे… हम्म्म… अब तो अरूण के होंठ मुझे और भी स्वादिष्ट लगने लगे थे।
आह…यह क्या…? अरूण ने मेरे दोनों नितम्बों को पकड़कर… सीईईईईई… अपनी ओर खींच लिया। इस प्रगाढ़ चुम्बन की वजह से मेरी सांस रुकने लगी थी, मुझे अपने होंठ उनके होंठों से अलग करने पड़े।
जैसे ही हमारे होंठ अलग हुए… अरूण ने अपने तपते हुए होंठ मेरे कन्ध्ो पर रख दिए।
उईई ईईईई… माँऽऽऽऽऽऽऽ… मैं सीत्कार उठी।
वो लगातार मेरे बांयें कन्धे को चूम रहे थे। उनके गर्म होंठों का अहसास मेरे पूरे बदन में होने लगा। मेरे बांयें कन्धे को कई बार
चूमने के बाद… उन्होंने अचानक… मुझे पीछे की तरफ घुमा दिया… अब मेरी पीठ उनकी छाती से चिपकी हुई थी… अरूण मेरे बिल्कुल पीछे आ गये… और अपने गरम होंठ मेरे दायें कन्धे पर रख दिये… अपने दोनों हाथों से अरूण ने मेरे दोनों स्तनों को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया…
मुझे तो जैसे नशा सा छाने लगा था… मैं खुद ही पीछे होकर अरूण से चिपक गई। वो दोनों हाथों से लगातार मेरे स्तनों को सहला रहे थे… आहहहहहह… मेरे तो चुचुक भी कड़े हो गये थे… शायद…अरूण… को… भी… इसका… अहसास… हो… गया… था…!
अरूण ने ऊपर से मेरे दोनों चुचूकों को पकड़ लिया… सीईईईई ईई… कितनी बेदर्दी से वो मेरे चुचूक मसल रहे थे… पर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। धीरे धीरे उनका सिर्फ दाहिना हाथ ही मेरे स्तनों पर रह गया… बांया हाथ तो सरक कर नीचे मेरे पेट पर… हम्म्म्म… नहीं… नाभि पर आ गया था… मुझे मीठी मीठी गुदगुदी होने लगी… मुझे तो पता ही नहीं लगा कब मेरी नाभि से खेलते खेलते उन्होंने मेरी साड़ी पेटीकोट में से खोलकर… नीचे गिरा दी… मैं तो मूरत बनी अरूण की हर क्रिया का आनन्द ले रही थी। मुझे तो होश ही तब आया जब अरूण के हाथ मेरे पेटीकोट के नाड़े को खींचने लगे।
मैंने झट से अरूण का हाथ पकड़ लिया। अरूण ने मौन रहकर ही बिना कुछ बोले फिर से नाड़े को खीचने का प्रयास किया। इस बार मैंने फिर से बल्कि ज्यादा मजबूती से उनका हाथ रोक लिया।
बिना कुछ बोले उन्होंने वहाँ से हाथ हटा लिया… और फिर से मुझे पकड़कर गुड़िया की तरह घुमाया… मेरा चेहरा अपनी तरफ कर लिया… अब उनकी जुबान मेरे चेहरे पर घूमने लगी वो मेरे चेहरे को चाटने लगे… छी: … शायद इस बारे में कभी कोई बात भी करता तो मुझे बहुत घिनौना लगता… पर… पता नहीं क्यों… अरूण की यह हरकत मेरे लिये बहुत कामुक हो गई… उनके दोनों हाथ मेरी पीठ पर सरकने लगे… अब तो मैंने भी अपनी दोनों बाहें उनकी कमर में डाल कर उनको जकड़ लिया…
अरूण शायद इसी पल का… इन्तजार कर रहे थे… उन्होंने झट से अपने एक हाथ से मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया… एक ही झटके में मेरा वो आवरण नीचे गिर गया… मुझे तो उसका अहसास भी तब हुआ जब वो मेरे पैरों पर गिरा… पर… मैं उस समय इतनी कामुक अवस्था में आ चुकी थी… कि दोबारा पेटीकोट की तरफ ध्यान भी नहीं दिया।
अब मैं नीचे से सिर्फ पैंटी में थी, अरूण लगातार मेरे चेहरे, गर्दन एवं कन्धों पर चुम्बन कर रहे थे। सीईईईई… आहहह हह… हम्म्म्म्म… मैं लगातार कराह सी रही थी… अरूण की उंगलियों मेरे नितम्बों पर गुदगुदी कर रही थी मुझे ऐसा आनन्द तो जीवन में कभी मिला ही नहीं था। मेरे नितम्ब तो अरूण की उंगलियों की ताल पर खुद ही थिरकने लगे थे… कभी कभी अरूण मेरी पैंटी में उंगली डालकर मेरे नितम्बों की बीच की दरार कुरेद सी देते… तो मैं सिर से पैर तक हिल जाती… पर मन कहता कि वो ऐसा ही करते रहें… पता नहीं अरूण ने कब अपने हाथ मेरे नितम्बों से हटा कर ऊपर मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिये।
अचानक मुझे अपना ब्लाउज कुछ ढीला महसूस होने लगा, मेरा ध्यान उधर गया तो पता चला कि अब तक अरूण मेरे ब्लाउज के हुक भी खोल चुके थे… हाय… रेएए… ये इन्होंने क्या कर दिया… अब तो मुझे लज्जा महसूस होने लगी… इतनी रोशनी में नंगी होना… वो भी पर-पुरूष के सामने…??
इतनी रोशनी में तो मैं कभी संजय के सामने भी नंगी नहीं हुई… और उन्होंने कोशिश भी नहीं की… मैंने झट से अपनी बाहों से अरूण की पीठ को अच्छी तरह जकड़ लिया।
वो मुझे आगे करके मेरा ब्लाउज उतारना चाहते थे… बार बार कोशिश कर रहे थे पर मैंने उनको इतनी जोर से पकड़ रखा था कि कई कोशिश के बाद भी वो मुझे खुद से अलग नहीं कर पाये। आखिर में उन्होंने हथियार डाल दिये और फिर से मेरी पीठ पर गुदगुदी करने लगे… मैं बहुत खुश थी एक तो ब्लाउज उतारने से बच गई… दूसरे उनकी गुदगुदी मेरे अन्दर बहुत ही मस्ती पैदा कर रही थी… मैंने समझा कि अब तो ये मेरा ब्लाउज उतार ही नहीं पायेंगे… हायय… पर ये अरूण तो बहुत ही बदमाश निकले… सीईईईई… मैं कहाँ फंस गई आज… इन्होंने तो मेरी पीठ पर गुदगुदी करते करते मेरी ब्रा का हुक भी खोल दिया… कितने आराम और मनोभाव से वो मेरा एक एक वस्त्र खोल रहे थे… मुझे तो अन्दाजा भी तब लगता था जब वो वस्त्र खुल जाता था…
मैंने उनको जकड़ का पकड़ा था… वो… मुझे… खुद से अलग करने की कोशिश कर रहे थे, ताकि मेरा ब्लाउज और ब्रा निकाल सकें… मैं शर्म से दोहरी सी हुई जा रही थी… मेरी टांगें थर-थर कांप रही थी…
अब जाकर कहीं उनके मुँह से कोई आवाज निकली… वो बोले, “जानेमन, मैं तुम्हारी पूरी खूबसूरती अपनी नजरों में कैद करना चाहता हूँ। सिर्फ एक सैकेन्ड के लिये मुझे छोड़ दो, फिर मैं खुद ही तुमको पकड़ लूँगा।”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
उन्होंने अपने हाथ से मेरी ठोड़ी को पकड़ कर ऊपर किया और मेरी आँखों में झांकते हुए विनती सी करने लगे जैसे कह रहे हों, “प्लीज, मुझे अपनी प्राकृतिक अवस्था का दर्शन कराओ।”
उनकी नजरों में देखते देखते पता नहीं कब मेरी पकड़ ढीली हुई और वो मुझसे थोड़ा सा अलग हुए… मेरी ब्रा और ब्लाउज निकल कर उनके हाथ में आ गये।
आहहह… मैं तो खुद को अपने हाथों से ही छुपाने लगी, ट्यूब की रोशनी में… मैं… अपना बदन… उनकी नजरों से बचाने की… नाकाम कोशिश… कर रही थी… और वो जैसे बेशर्मों की तरह मुझे लगातार एकटक निहार रहे थे…
हाय… मांऽऽऽऽ… ये कैसे… हो… गया… मुझसे… मैं तो काम और लज्जा के समुद्र में एक साथ गोते लगा रही थी।
उन्होंने मुझे पकड़ और धीरे से वहीं सोफे पर गिरा दिया…
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दिल पर जोर नहीं --3
मेरे पास बहुत समय था। मैंने पहले खुद ही अपना फेशियल किया। मेनिक्योर, पेडिक्योर करके मैंने खुद को संवारना शुरू किया। शाम को 4 बजे मुझे अरूण से पहली बार मिलना था… मैं बहुत उत्साहित थी… मैं चाहती थी कि मेरी पहली छाप ही उन पर जबरदस्त हो…. अपने मैकअप किट से वीट क्रीम निकालकर वैक्सिंग भी कर डाली…. नहा धोकर फ्रैश हुई, अपने लिये नई साड़ी निकाली, फिर सोचा कि अभी तैयार नहीं होती शाम को ही हो जाऊँगी… अगर अभी तैयार हुई तो शाम तक तो साड़ी खराब हो जायेगी। मैंने फिर से नाइट गाऊन ही पहन लिया।
अब मैं शाम होने का इंतजार करने लगी। समय काटे नहीं कट रहा था.. मैंने फिर से कम्प्यूटर चला कर वही पोर्न मूवी चला ली। पर आज मेरा मन उसमें भी नहीं लग रहा था। मेरे मन में अजीब सा उत्साह था।
शादी से पहले जब संजय मुझे देखने आये थे… तब तो मैं बिल्कुल अल्हड़ थी, इतना उत्साहित तो तब भी नहीं थी मैं….
मैं अपने बैड पर बैठकर विचार करने लगी, अरूण से मिलकर एक घंटे में क्या क्या बातें करूँगी? कैसे उनके साथ बैठूँगी, कैसे वो मुझसे बात करेंगे आदि आदि।
मुझे पता ही नहीं लगा ये सब सोचते सोचते कब मेरी आँख लग गई।
दरवाजे पर घंटी बजी… तो मेरी आँख खुली मैंने घड़ी में समय देखा। बच्चों के आने का टाइम हो चुका था। मैंने तुरन्त उठकर दरवाजा खोला। बच्चों को ड्रैस चेंज करवा कर खाना खिलाना, होमवर्क करवाना फिर ट्यूशन भेजना बस टाइम का पता ही नहीं चला कैसे तीन बज भी गये।
बच्चों को ट्यूशन भेजकर मैं तैयार होने लगी। अरूण के फोन का भी इंतजार था… अभी मैं पेटीकोट ही पहन रही थी कि दरवाजे पर घंटी बजी…
“इस समय कौन होगा?” मैं सोचने लगी।
घंटी दोबारा बजी तो मैंने फिर से नाइट गाउन पहना और दरवाजा खोलने गई।
दरवाजा खोला तो देखा बाहर संजय खड़े थे। मैं उनको 3 बजे दरवाजे पर देखकर चौंक गई।
वो अन्दर आये तो मैंने पूछा, “क्या हुआ? आप इस टाइम, सब ठीक-ठाक ना?”
संजय बोले, “हां, यार वो आज 9 बजे रात की ट्रेन से मुझे जयपुर जाना है कल वहाँ मेरी मीटिंग है एक कस्टमर से। तो तैयारी करनी थी इसीलिये जल्दी आ गया।”
मैंने पूछा, “तो किस टाइम जाओगे स्टेशन?”
संजय बोले, “टिकट करवा ली है, अब 7 बजे निकलूंगा सीधे स्टेशन के लिये।”
अब मैं तो फंस गई। अरूण मेरा इंतजार करेंगे। घर से कैसे निकलूँ, यही विचार कर रही थी कि मेरे मोबाइल की घंटी बजी।
मैं समझ गई कि अरूण का ही फोन होगा पर अब कैसे बात करूं अरूण से, और क्या जवाब दूं अरूण को….
सोचने का भी टाइम नहीं था। फोन बजकर खुद ही बंद हो गया। सबसे पहले मैंने फोन उठाकर उसको साइलेंट पर किया। तभी संजय ने पूछा, “किसका फोन था?”
मैंने जवाब दिया, “कुछ नहीं वो कम्पनी वालों के फोन आते रहते हैं, मैं तो दुखी हो जाती हूँ।” संजय ने कहा, “बाद में मुझे याद दिलाना, मैं डी एन डी एक्टीवेट कर दूँगा।”
“हम्म्म्म्म्म्म….” बोलती हुई मैं मोबाइल लेकर टायलेट में चली गई।तब तक देखा अरूण की 3 मिस कॉल आ चुकी थी। मैंने सबसे पहले अरूण को मैसेज किया कि मेरे पति घर आ गये हैं। मैं थोड़ी देर में निकल कर फोन करती हूँ। फिर सोचने लगी कि क्या तरकीब निकालूं। पर मैं उस समय खुद को बहुत बेचारा महसूस कर रही थी। संजय 7 बजे घर से जाने वाले थे। तो मैं 7 से पहले तो घर से निकल ही नहीं सकती थी और 7 बजे के बाद अंधेरा हो जाता तो बच्चों को घर में अकेला छोड़कर मैं 7 बजे के बाद भी घर से नहीं निकल सकती थी। मैं एक पारिवारिक महिला ही जिम्मेदारियों में फंस चुकी थी। मेरे पास अब अरूण से मिलने का कोई रास्ता नहीं था…
और वो इतनी दूर से आये थे सिर्फ मेरे लिये रात की ट्रेन से टिकट कराई मैं उनसे ना मिलूं ये भी ठीक नहीं था। समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करूं।
मैं बहुत देर से टाइलेट में थी तो बाहर जाना भी जरूरी था। मैं मोबाइल को छुपाकर धीरे से बाहर निकली।
“कुसुम, चाय पीने का मन है यार। तुम चाय बनाओ मैं ब्रैड लेकर आता हूँ।” बोलते हुए संजय घर से बाहर चले गये। मेरी तो जैसे सांस में सांस आई। उनके बाहर जाते ही मैंने दरवाजा अन्दर से बंद किया और अरूण को फोन किया। पहली ही घंटी पर अरूण का फोन उठा वो बोले, “कहाँ हो यार? मैं कब से तुम्हारा वेट कर रहा हूँ।”
मैंने पूछा, “कहाँ हो आप?”
मुझे उनको यह बताने में बहुत ही शर्म महसूस हो रही थी कि मैं नहीं आ पाऊंगी… पर बताना तो था ही। इसीलिये मैं बातें बना रही थी। उन्होंने बताया, “कश्मीरी गेट मैट्रो स्टेशन के नीचे काफी शॉप पर हूँ। यहीं तो मिलने को बोला था ना तुमने।”
अब मैं क्या करती, मैंने उनको सच-सच बताने का फैसला किया, “सुनो, मैं आज नहीं आ पाऊँगी।” “कोई बात नहीं, पर क्या कारण जान सकता हूँ? अगर तुम बताना चाहो तो।” उन्होंने बिल्कुल शान्त स्वभाव से पूछा।
मैंने उनको सारी बात बता दी।
तो अरूण बोले, “तुम्हारा पहला फर्ज पति का साथ देना है, तुम उनके जाने की तैयारी करो। जब वो चले जायेंगे 7 बजे तब मुझसे बात करना मेरी ट्रेन रात को 11 बजे की है।” मैंने कहा, “पर 7 बजे अंधेरा हो जाता है मैं घर से उस समय नहीं निकल पाऊँगी।”
“अरे यार, तुम टैंशन मत लो। मैं कब तुमको बाहर निकलने को बोल रहा हूँ। मैं तो सिर्फ फोन पर बात करने को बोल रहा हूँ। अभी तुम अपने पति पर ध्यान दो।” बोलकर अरूण ने ही फोन काट दिया।
सच में अरूण कितने अच्छे, मैच्योर और कोआपरेटिव इंसान, हैं ना। मैं सोचने लगी… और चाय बनाने चली गई।
तब तक बच्चे भी वापस आ गये और संजय भी। मैंने सभी को चाय ब्रैड खिलाकर जल्दी जल्दी खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी। और संजय अपनी पैकिंग करने लगे। समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। मैंने संजय के लिये रात का खाना पैक कर दिया।
सात बजे संजय ने अपना बैग उठाया और चलने लगे। मैंने संजय को विदा किया और बच्चों की तरफ देखा दोनों ही टीवी में व्यस्त थे। मैंने दूसरे कमरे में जाकर तुरन्त अरूण को फोन किया।
उधर से अरूण की आवाज आई, “हैल्लो, हो गई क्या फ्री?”
“हाँ जी, फ्री सी ही हूँ… पर इस समय बच्चों को घर में अकेला छोड़कर नहीं निकल सकती।” मैंने कहा।
“अरे अरे, तुम टैंशन मत लो, कोई बात नहीं अगर किस्मत में इस बार तुमसे मिलना नहीं लिखा तो क्या हुआ? अगली बार देखते हैं।” अरूण बोले।
“पर मैं बहुत उदास हूँ, मेरा बहुत मन है आपसे मिलने का, आप एक काम कर सकते हो क्या?” मैंने कुछ सोचते हुए पूछा।
“हां, बताओ।” अरूण ने कहा।
“मैं बच्चों को जल्दी सुलाने की कोशिश करती हूँ।, आप 8 बजे तक मेरे घर ही आ जाओ। मैं आपको अपने हाथ का बना खाना भी खिलाऊंगी… और तसल्ली से बैठकर बातें भी होंगी। आपकी ट्रेन 11 बजे है ना आप 10.30 पर भी निकलकर आटो से जाओगे तो 11 बजे तक पुरानी दिल्ली स्टेशन पहुँच ही जाओगे।” मैंने कहा।
अरूण मेरी बात से सहमत हो गये। मैंने उनको अपने घर का पता समझाया और तुरन्त आटो करने को बोला।
उन्होंने ‘ओ के’ बोलकर फोन काटा। मैंने बच्चों को खाना खिलाकर तुरन्त सोने का आदेश दे दिया। थोड़ी सी कोशिश करने के बाद ही दोनों बच्चे सो गये। मैं तुरन्त बच्चों के कमरे से बाहर आई, अरूण को फोन किया तो वो बोले की आटो में हूँ। उतर कर फोन करता हूँ। मेरे पास अब ज्यादा समय नहीं था। मैं तेजी से तैयार होने लगी।
अभी मैं साड़ी बांधकर हल्का सा मेकअप कर ही रही थी कि अरूण का फोन आया।
मैंने फोन उठाया तो एकदम ही अरूण बोले, “अरे, देखो शायद मैं तुम्हारी बिल्डिंग के बाहर ही हूँ।”
मैंने खिड़की खोलकर देखा तो अरूण बिल्कुल मेरे फ्लैट के नीचे ही खड़े थे। मैंने उनको ऊपर देखने को कहा। वो मेरी तरफ देखते ही मुस्कुराये। मैं बहुत खुश थी मैंने उनको मेरे फ्लैट तक बिना शोर या आवाज किये आने को कहा। वो धीरे से सीधे मेरे फ्लैट के दरवाजे पर आये।
मैंने दरवाजा पहले से ही खोल रखा था… उनको अन्दर लेकर मैंने दरवाजा बन्द कर दिया। अब सब ठीक था कोई परेशानी नहीं थी। उन्होंने अन्दर आते ही मुझे गले लगाया।
मैं बहुत खुश थी।
उन्होंने कहा, “बहुत सुन्दर लग रही हो।”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा मिलते ही चालू हो गये। आप बैठो सब्जी तैयार है मैं पहले आपके लिये गर्म गर्म रोटी बनाती हूँ।” अरूण मना करने लगे। पर मैं जबरदस्ती करती हुई रसोई में चली गई। वो भी मेरे पीछे पीछे वहीं आ गये।
मैंने कहा, “आप बाहर बैठो मैं आती हूँ।”
अरूण बोले, “समय कम है हमारे पास मैं यहीं तुम्हारे साथ बात भी करता रहूँगा और तुम खाना भी बना लेना। वैसे भी इस साड़ी में मस्त लग रही हो। तुम्हारा तो किडनैप करना पड़ेगा।”
मैंने जवाब दिया, “ऐसे तो कभी कभी मिल भी सकते हैं किडनैप करोगे तो एक बार में ही काम खत्म।”
वो हंसते हुए बोले, “लगता है आज ही वैक्स भी किया है बाजू बहुत चिकनी चिकनी लग रही है।”
और मेरे पीछे से खड़े होकर मेरी दोनों बाजुओं पर अपने हाथ फिराने लगे…
“सीईईई ईईय…” मैं सीत्कार उठी। मैंने वहीं खड़े-खड़े अपने नितम्बों को पीछे करके उनको पीछ की तरफ धकेला।
अरूण बोले, “ये क्या कर रही हो? बीच में तुम्हारी साड़ी आ गई नहीं तो पता है तुम्हारे कूल्हे कहाँ जा टकराएँ हैं? अगर कुछ गड़बड़ हो जाती तो…?”
“हा… हा… हा… हा… हो जाने दो…!” मैंने हंसते हुए अरूण को छेड़ा।
अरूण बोले, “नहीं, वक्त नहीं है… 9 बजने वाले हैं… और मुझे अपनी ट्रेन भी पकड़नी है। मैं तो बस तुमसे मिलने आया हूँ और कुछ नहीं।”
अरूण मेरे सबसे अच्छा दोस्त बन गये थे… पता नहीं क्यों पर मैं अरूण के साथ बिल्कुल भी झिझक महसूस नहीं कर रही थी बल्कि मैं तो बहुत ज्यादा सहज महसूस कर रही थी अरूण के साथ।
इतना तो मैंने कभी संजय के साथ भी महसूस नहीं किया था। पर मैं पता नहीं आज किस मूड में थी। पर अरूण को कुछ कहूँ भी तो कैसे कहीं वो मुझे गलत ना समझ लें। रोटी बनाकर मैं डायनिंग पर दोनों के लिये खाना लगाने लगी, अरूण भी मेरी मदद कर रहे थे जबकि संजय ने तो आज तक मेरे साथ घर के काम में हाथ भी नहीं लगाया।
मैं तो अरूण के व्यवहार की कायल होने लगी थी।
खाना खाते-खाते ही 9.30 हो गये। अरूण 10 बजे तक वापस जाना चाहते थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि उसको कैसे रोकूं। मैंने अरूण को बोला कि आप 10.30 तक भी निकलोगे तब भी आपको ट्रेन मिल जायेगी। अभी तो आपसे बहुत सारी बातें करनी हैं। अभी आप जल्दी मत करो।
वो मेरी बात मान गये और रिलैक्स होकर बैठ गये।
10 मिनट बैठने के बाद ही अरूण फिर से बोले, “कुसुम एक कप चाय पिला दो फिर जाना भी है।”
अब तो मुझे गुस्सा आ गया, मैंने कहा, “इतनी जल्दी है जाने की तो आप आये की क्यों थे? अब मैं चाय नहीं बनाऊँगी आपको जाना है तो जाओ।”
“ओह…हो… मेरी बुलबुल नाराज हो गई, चलो मैं बुलबुल को चाय बनाकर पिलाता हूँ।” अरूण ने कहा।
उनका इस तरह प्यार से बोलना मुझे बहुत ही अच्छा लगा… और चाय तो 11 सालों में मुझे कभी संजय ने भी नहीं पिलाई, उनको तो चाय बनानी आती भी नहीं। मैं तो यही सोचती रही, तब तक अरूण उठ कर रसोई की तरफ चल दिये।
मैंने कहा, “ठीक है आज चाय आप ही पिलाओ।”
अरूण बोले, “मैं चाय बनाकर पिलाऊँगा तो क्या तोहफ़ा दोगी?”
“अगर चाय मुझे पसन्द आ गई तो जो आप मांगोगे वो दूंगी और अगर नहीं आई तो कुछ नहीं।” मैंने कहा।
“ओके…” बोल कर वो गैस जलाते हुए बोले, “तुम बस साथ में खड़ी रहो, क्योंकि रसोई तुम्हारी है। मुझे तो सामान का नहीं पता ना…”
मैं उनके साथ खड़ी उनको देखती रही। कितनी सादगी और अपनापन था ना उनमें। मुझे तो उनमें कोई भी अवगुण दिखाई ही नहीं दे रहा था।
वो चाय बनाने लगे। मैं उनको देखती रही। मुझे अरूण पर बहुत प्यार आ रहा था पर मैं अपनी सामाजिक बेड़ियों में कैद थी। चाय बनाकर अरूण कप में डालकर ट्रे में दो कप सजाकर डाइनिंग टेबल पर रखकर वापस रसोई में आये… और मेरा हाथ बड़ी नजाकत से पकड़कर किसी रानी की तरह मुझे डाइनिंग टेबल तक लेकर गये और बोले, “लीजिये मैडम, चाय आपकी सेवा में प्रस्तुत है।”
मैंने चाय की एक चुस्की लेते ही उनकी तारीफ की तो अरूण बोले, “तब तो मेरा उपहार पक्का ना?”
मैंने कहा, “क्या चाहिए आपको?”
“अपनी मर्जी से जो दे दो।” अरूण ने कहा।
“नहीं, तय यह हुआ था कि आपकी मर्जी का गिफ्ट मिलेगा, तो आप ही बताइये आपको क्या चाहिए?” मैंने दृढ़ता से कहा।
अरूण बोले, “देख लो, कहीं मैं कुछ उल्टा सीधा ना मांग लूं, फिर तुम फंस जाओगी।”
“कोई बात नहीं, मुझे आप पर पूरा विश्वास है, आप मांगो।” मैंने फिर से जवाब दिया।
“तब ठीक है, मुझे तुम्हारे गुलाबी होठों की… एक चुम्मी चाहिए।” अरूण ने बेबाक कहा।
मैंने बिना कोई जवाब दिये, नजरें नीचे कर ली। अरूण ने उसको मेरी मंजूरी समझा और मेरे नजदीक आने लगे। मेरी जुबान जो अभी तक कैंची की तरह चल रही थी… अब खामोश हो गई। मैं चाहकर भी कुछ नहीं बोल पा रही थी।
अरूण मेरे बिल्कुल नजदीक आ गये। मेरी सांस धौंकनी की तरह चलने लगी। अरूण ने चेहरा ऊपर करके अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिया। आहहहह… कितना मीठा अहसास था। उम्म्म्म्म… बहुत मजा आ रहा था। मेरी आँखें खुद-ब-खुद बन्द हो गई।
संजय के बाद वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मेरे होठों को चूमा था… उनका अहसास संजय से बिल्कुल अलग था। अरूण बहुत देर तक मेरे होठों को लालीपॉप की तरह चूसते रहे। वो कभी मेरे ऊपरी होंठ को चूसते तो कभी नीचे वाले। उन्होंने मुझे अपनी बाहों में जकड़ रखा था।
अचानक उन्होंने अपनी जीभ मेरे होठों के बीच से मेरे मुँह में सरका दी। उनकी जीभ मेरी जीभ से जो ठकराई तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी जन्नत में आ गई हूँ। उनकी जीभ मेरी जीभ से मुँह के अन्दर ही अठखेलियाँ करने लगी। अब मैं मदहोश हो रही थी। मैं भी उनका साथ देने लगी। उनका यह एक चुम्बन ही 10 मिनट से ज्यादा लम्बा चला।
जब उन्होंने मेरे होठों को छोड़ा तो भी मीठा मीठा रस मेरे होठों को चुम्बन का अहसास दिला रहा था। मेरी आँखें अभी भी बन्द ही थी। अरूण बोले, “आँखें खोलो कुसुम मुझे जाना है।”
यह बोलकर वो चाय पीने लगे। मैं उस इंसान को नहीं समझ पा रही थी। क्या अरूण सच में इतना शरीफ थे। परन्तु उनके एक चुम्बन के अहसास ने मुझे नारी के अन्दर की वासना का अहसास दिला दिया था, मैं तुरन्त बोली, “यह तो आपका चुम्बन था, अब मेरा भी तो देकर जाओ।”
वो चाय खत्म करके मेरे पास आये और बोले, “ले लो, मैंने कब बना किया पर मेरे पास अब ज्यादा समय नहीं है।”
मैं भी समय नहीं गंवाना चाहती थी, मैंने उनकी गर्दन में बांहें डालकर उनको थोड़ा सा नीचे किया… और अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिये… अब तो मैं भी चुम्बन करना सीख ही गई थी, मैंने उनके होठों की उसी प्रकार चूसना शुरू कर दिया जैसे कुछ पल पहले वो मेरे होठों को चूस रहे थे।
उम्म्म… ! क्या स्वाद था उनके होठों का !
चाय पीने के बाद तो उनके होंठ और भी मीठे लग रहे थे। मैंने भी उनकी नकल करते हुए अपनी जीभ उनके मुँह में ठेल दी। वो तो बहुत ही अनुभवी थे, उन्होंने अपनी जीभ को मुँह के अन्दर मेरी जीभ में लपेटना शुरू कर दिया। मैं इस चुम्बन में बहुत लम्बा समय लेना चाहती थी। इस बात का मैं ध्यान रख रही थी… और चुम्बन बहुत ही धीरे धीरे परन्तु लगातार कर रही थी। बीच बीच में सांस भी ले रही थी, मैं उनके होठों का पूरा स्वाद ले रही थी।
इस बार शायद मैं जीत गई। कुछ देर बाद ही उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। उनकी बाहों का घेरा मेरी पीठ के चारों ओर बन चुका था, वो अपने हाथों से मेरी पीठ को सहलाने लगे… हम्म्म… अब तो अरूण के होंठ मुझे और भी स्वादिष्ट लगने लगे थे।
आह…यह क्या…? अरूण ने मेरे दोनों नितम्बों को पकड़कर… सीईईईईई… अपनी ओर खींच लिया। इस प्रगाढ़ चुम्बन की वजह से मेरी सांस रुकने लगी थी, मुझे अपने होंठ उनके होंठों से अलग करने पड़े।
जैसे ही हमारे होंठ अलग हुए… अरूण ने अपने तपते हुए होंठ मेरे कन्ध्ो पर रख दिए।
उईई ईईईई… माँऽऽऽऽऽऽऽ… मैं सीत्कार उठी।
वो लगातार मेरे बांयें कन्धे को चूम रहे थे। उनके गर्म होंठों का अहसास मेरे पूरे बदन में होने लगा। मेरे बांयें कन्धे को कई बार
चूमने के बाद… उन्होंने अचानक… मुझे पीछे की तरफ घुमा दिया… अब मेरी पीठ उनकी छाती से चिपकी हुई थी… अरूण मेरे बिल्कुल पीछे आ गये… और अपने गरम होंठ मेरे दायें कन्धे पर रख दिये… अपने दोनों हाथों से अरूण ने मेरे दोनों स्तनों को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया…
मुझे तो जैसे नशा सा छाने लगा था… मैं खुद ही पीछे होकर अरूण से चिपक गई। वो दोनों हाथों से लगातार मेरे स्तनों को सहला रहे थे… आहहहहहह… मेरे तो चुचुक भी कड़े हो गये थे… शायद…अरूण… को… भी… इसका… अहसास… हो… गया… था…!
अरूण ने ऊपर से मेरे दोनों चुचूकों को पकड़ लिया… सीईईईई ईई… कितनी बेदर्दी से वो मेरे चुचूक मसल रहे थे… पर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। धीरे धीरे उनका सिर्फ दाहिना हाथ ही मेरे स्तनों पर रह गया… बांया हाथ तो सरक कर नीचे मेरे पेट पर… हम्म्म्म… नहीं… नाभि पर आ गया था… मुझे मीठी मीठी गुदगुदी होने लगी… मुझे तो पता ही नहीं लगा कब मेरी नाभि से खेलते खेलते उन्होंने मेरी साड़ी पेटीकोट में से खोलकर… नीचे गिरा दी… मैं तो मूरत बनी अरूण की हर क्रिया का आनन्द ले रही थी। मुझे तो होश ही तब आया जब अरूण के हाथ मेरे पेटीकोट के नाड़े को खींचने लगे।
मैंने झट से अरूण का हाथ पकड़ लिया। अरूण ने मौन रहकर ही बिना कुछ बोले फिर से नाड़े को खीचने का प्रयास किया। इस बार मैंने फिर से बल्कि ज्यादा मजबूती से उनका हाथ रोक लिया।
बिना कुछ बोले उन्होंने वहाँ से हाथ हटा लिया… और फिर से मुझे पकड़कर गुड़िया की तरह घुमाया… मेरा चेहरा अपनी तरफ कर लिया… अब उनकी जुबान मेरे चेहरे पर घूमने लगी वो मेरे चेहरे को चाटने लगे… छी: … शायद इस बारे में कभी कोई बात भी करता तो मुझे बहुत घिनौना लगता… पर… पता नहीं क्यों… अरूण की यह हरकत मेरे लिये बहुत कामुक हो गई… उनके दोनों हाथ मेरी पीठ पर सरकने लगे… अब तो मैंने भी अपनी दोनों बाहें उनकी कमर में डाल कर उनको जकड़ लिया…
अरूण शायद इसी पल का… इन्तजार कर रहे थे… उन्होंने झट से अपने एक हाथ से मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया… एक ही झटके में मेरा वो आवरण नीचे गिर गया… मुझे तो उसका अहसास भी तब हुआ जब वो मेरे पैरों पर गिरा… पर… मैं उस समय इतनी कामुक अवस्था में आ चुकी थी… कि दोबारा पेटीकोट की तरफ ध्यान भी नहीं दिया।
अब मैं नीचे से सिर्फ पैंटी में थी, अरूण लगातार मेरे चेहरे, गर्दन एवं कन्धों पर चुम्बन कर रहे थे। सीईईईई… आहहह हह… हम्म्म्म्म… मैं लगातार कराह सी रही थी… अरूण की उंगलियों मेरे नितम्बों पर गुदगुदी कर रही थी मुझे ऐसा आनन्द तो जीवन में कभी मिला ही नहीं था। मेरे नितम्ब तो अरूण की उंगलियों की ताल पर खुद ही थिरकने लगे थे… कभी कभी अरूण मेरी पैंटी में उंगली डालकर मेरे नितम्बों की बीच की दरार कुरेद सी देते… तो मैं सिर से पैर तक हिल जाती… पर मन कहता कि वो ऐसा ही करते रहें… पता नहीं अरूण ने कब अपने हाथ मेरे नितम्बों से हटा कर ऊपर मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिये।
अचानक मुझे अपना ब्लाउज कुछ ढीला महसूस होने लगा, मेरा ध्यान उधर गया तो पता चला कि अब तक अरूण मेरे ब्लाउज के हुक भी खोल चुके थे… हाय… रेएए… ये इन्होंने क्या कर दिया… अब तो मुझे लज्जा महसूस होने लगी… इतनी रोशनी में नंगी होना… वो भी पर-पुरूष के सामने…??
इतनी रोशनी में तो मैं कभी संजय के सामने भी नंगी नहीं हुई… और उन्होंने कोशिश भी नहीं की… मैंने झट से अपनी बाहों से अरूण की पीठ को अच्छी तरह जकड़ लिया।
वो मुझे आगे करके मेरा ब्लाउज उतारना चाहते थे… बार बार कोशिश कर रहे थे पर मैंने उनको इतनी जोर से पकड़ रखा था कि कई कोशिश के बाद भी वो मुझे खुद से अलग नहीं कर पाये। आखिर में उन्होंने हथियार डाल दिये और फिर से मेरी पीठ पर गुदगुदी करने लगे… मैं बहुत खुश थी एक तो ब्लाउज उतारने से बच गई… दूसरे उनकी गुदगुदी मेरे अन्दर बहुत ही मस्ती पैदा कर रही थी… मैंने समझा कि अब तो ये मेरा ब्लाउज उतार ही नहीं पायेंगे… हायय… पर ये अरूण तो बहुत ही बदमाश निकले… सीईईईई… मैं कहाँ फंस गई आज… इन्होंने तो मेरी पीठ पर गुदगुदी करते करते मेरी ब्रा का हुक भी खोल दिया… कितने आराम और मनोभाव से वो मेरा एक एक वस्त्र खोल रहे थे… मुझे तो अन्दाजा भी तब लगता था जब वो वस्त्र खुल जाता था…
मैंने उनको जकड़ का पकड़ा था… वो… मुझे… खुद से अलग करने की कोशिश कर रहे थे, ताकि मेरा ब्लाउज और ब्रा निकाल सकें… मैं शर्म से दोहरी सी हुई जा रही थी… मेरी टांगें थर-थर कांप रही थी…
अब जाकर कहीं उनके मुँह से कोई आवाज निकली… वो बोले, “जानेमन, मैं तुम्हारी पूरी खूबसूरती अपनी नजरों में कैद करना चाहता हूँ। सिर्फ एक सैकेन्ड के लिये मुझे छोड़ दो, फिर मैं खुद ही तुमको पकड़ लूँगा।”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
उन्होंने अपने हाथ से मेरी ठोड़ी को पकड़ कर ऊपर किया और मेरी आँखों में झांकते हुए विनती सी करने लगे जैसे कह रहे हों, “प्लीज, मुझे अपनी प्राकृतिक अवस्था का दर्शन कराओ।”
उनकी नजरों में देखते देखते पता नहीं कब मेरी पकड़ ढीली हुई और वो मुझसे थोड़ा सा अलग हुए… मेरी ब्रा और ब्लाउज निकल कर उनके हाथ में आ गये।
आहहह… मैं तो खुद को अपने हाथों से ही छुपाने लगी, ट्यूब की रोशनी में… मैं… अपना बदन… उनकी नजरों से बचाने की… नाकाम कोशिश… कर रही थी… और वो जैसे बेशर्मों की तरह मुझे लगातार एकटक निहार रहे थे…
हाय… मांऽऽऽऽ… ये कैसे… हो… गया… मुझसे… मैं तो काम और लज्जा के समुद्र में एक साथ गोते लगा रही थी।
उन्होंने मुझे पकड़ और धीरे से वहीं सोफे पर गिरा दिया…
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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