Monday, June 2, 2014

FUN-MAZA-MASTI दीदी, आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं

FUN-MAZA-MASTI

 दीदी, आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं

मेरी बहन मुझसे लगभग तीन साल बड़ी है। वो एम ए में पढ़ती थी और मैंने कॉलेज में दाखिला लिया ही था। मैं भी जवान हो चला था। मुझे भी जवान लड़कियाँ अच्छी लगती थी। सुन्दर लड़कियाँ देख कर मेरा भी लण्ड खड़ा होता था। मेरी दीदी भी चालू किस्म की थी। लड़कों का साथ उसे बहुत अच्छा लगता था। वो अधिकतर टाईट जीन्स और टीशर्ट पहनती थी। उसके उरोज 23 साल की उम्र में ही भारी से थे, कूल्हे और चूतड़ पूरे शेप में थे। रात को तो वो ऐसे सोती थी कि जैसे वो कमरे में अकेली सोती हो। एक छोटी सी सफ़ेद शमीज और एक वी शेप की चड्डी पहने हुये होती थी। फिर एक करवट पर वो पांव यूँ पसार कर सोती थी कि उसके प्यारे-प्यारे से गोल चूतड़ उभर कर मेरा लण्ड खड़ा कर देते थे। उसके भारी भारी स्तन शमीज में से चमकते हुये मन को मोह लेते थे। उसकी बला से भैया का लण्ड खड़ा होवे तो होवे, उसे क्या मतलब ?
कितनी ही बार जब मैं रात को पेशाब करने उठता था तो दीदी की जवानी की बहार को जरूर जी भर कर देखता था। कूल्हे से ऊपर उठी हुई शमीज उसकी चड्डी को साफ़ दर्शाती थी जो चूत के मध्य में से हो कर उसे छिपा देती थी। उसकी काली झांटे चड्डी की बगल से झांकती रहती थी। उसे देख कर मेरा लण्ड तन्ना जाता था। बड़ी मुश्किल से अपने लण्ड को सम्भाल पाता था।
एक बार तो मैंने दीदी को रंगे हाथों पकड़ ही लिया था। क्रिकेट के मैदान से मैं बीच में ही पानी पीने राजीव के यहाँ चला गया। घर बन्द था, पर मैं कूद कर अन्दर चला आया। तभी मुझे कमरे में से दीदी की आवाज सुनाई दी। मैं धीरे से दबे पांव यहाँ-वहाँ से झांकने लगा। अन्त में मुझे सफ़लता मिल ही गई। दीदी राजीव का लण्ड दबा रही थी। राजीव भी बड़ी तन्मयता के साथ दीदी की कभी चूचियाँ दबाता तो कभी चूतड़ दबाता। कुछ ही देर में दीदी नीचे बैठ गई और राजीव का लण्ड निकाल कर चूसने लगी। मेरे शरीर में सनसनाहट सी दौड़ पड़ी। मेरा मन उनकी यह रास-लीला देखने को मचल उठा। उनकी पूरी चुदाई देख कर ही मुझे चैन आया।
तो यह बात है ... दीदी तो एक नम्बर की चालू निकली। एक नम्बर की चुदक्कड़ निकली दीदी तो।
मैं भारी मन से बाहर निकल आया। आंखों के आगे मुझे अब सिर्फ़ दीदी की भोंसड़ी और राजीव का लण्ड दिख रहा था। मेरा मन ना तो क्रिकेट खेलने में लगा और ना ही किसी हंसी मजाक में। शाम हो चली थी ... सभी रात का भोजन कर के सोने की तैयारी करने लगे थे। दीदी भी अपनी परम्परागत ड्रेस में आ गई थी।
मैं भी अपने कपड़े उतार कर चड्डी में बिस्तर पर लेट गया था। पर नींद तो कोसों दूर थी ... रह रह कर अभी भी दीदी के मुख में राजीव का लण्ड दिख रहा था। मेरा लण्ड भी फ़ूल कर खड़ा हो गया था।
अह्ह्ह... मुझे दीदी को चोदना है ... बस चोदना ही है।
मेरी चड्डी की ऊपर की बेल्ट में से बाहर निकला हुआ अध खुला सुपारा नजर आ रहा था। इसी हालत में मेरी आंख जाने कब लग गई।
यकायक एक खटका सा हुआ। मेरी नींद खुल गई। कमरे की लाईट जली हुई थी। मुझे लगा कि मेरे पास कोई खड़ा हुआ है। समझते देर नहीं लगी कि दीदी ही है। वो बड़े ध्यान से मेरे लण्ड का उठान देख रही थी। दीदी को शायद अहसास भी नहीं हुआ होगा कि मेरी नींद खुल चुकी है और मैं उसका यह तमाशा देख रहा हूँ।
उसने झुक कर अपनी एक अंगुली से मेरे अध खुले सुपारे को छू लिया। फिर मेरी वीआईपी डिज़ाइनर चड्डी की बेल्ट को अंगुली से धीरे नीचे सरका दिया। उसकी इस हरकत से मेरा लण्ड और भी फ़ूल कर कड़क हो गया। मुझे लगने लगा था- काश ! दीदी मेरा लण्ड पकड़ कर मसल दे। अपनी भोंसड़ी में उसे घुसा ले।
उसकी नजरें मेरे लण्ड को बहुत ही गौर से देख रही थी, जाहिर है कि मेरी काली झांटे भी लण्ड के आसपास उसने देखी होगी। उसने अपने स्तनों को जोर से मल दिया और उसके मुँह से एक वासना भरी सिसकी निकल पड़ी। फिर उसका हाथ उसकी चूत पर आ गया। शायद वो मेरा लण्ड अपनी चूत में महसूस कर रही थी। उसका चूत को बार बार मसलना मेरे दिल पर घाव पैदा कर रहे थे। फिर वो अपने बिस्तर पर चली गई।
दीदी अपने अपने बिस्तर पर बेचैनी से करवटें बदल रही थी। अपने उभारों को मसल रही थी। फिर वो उठी और नीचे जमीन पर बैठ गई। अब शायद वो हस्त मैथुन करने लगी थी। तभी मेरे लण्ड से भी वीर्य निकल पड़ा। मेरी चड्डी पूरी गीली हो गई थी। अभी भी मेरी आगे होकर कुछ करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
दूसरे दिन मेरा मन बहुत विचलित हो रहा था। ना तो भूख रही थी... ना ही कुछ काम करने को मन कर रहा था। बस दीदी की रात की हरकतें दिल में अंगड़ाईयाँ ले रही थी। दिमाग में दीदी का हस्त मैथुन बार बार आ रहा था। मैं अपने दिल को मजबूत करने में लगा था कि दीदी को एक बार तो पकड़ ही लूँ, उसके मस्त बोबे दबा दूँ। बार बार यही सोच रहा था कि ज्यादा से ज्यादा होगा तो वो एक तमाचा मार देगी, बस !
फिर मैं ट्राई नहीं करूंगा।
जैसे तैसे दिन कट गया तो रात आने का नाम नहीं ले रही थी।
रात के ग्यारह बज गये थे। दीदी अपनी रोज की ड्रेस में कमरे में आई। कुछ ही देर में वो बिस्तर पर जा पड़ी। उसने करवट ले कर अपना एक पांव समेट लिया। उसके सुडौल चूतड़ के गोले बाहर उभर आये। उसकी चड्डी उसकी गाण्ड की दरार में घुस गई और उसके गोल गोल चमकदार चूतड़ उभर कर मेरा मन मोहने लगे।
मैंने हिम्मत की और उसकी गाण्ड पर हाथ फ़ेर कर सहला दिया। दीदी ने कुछ नहीं कहा, वो बस वैसे ही लेटी रही।
मैंने और हिम्मत की, अपना हाथ उसके चूतड़ों की दरार में सरकाते हुये चूत तक पहुँचा दिया। मैंने ज्योंही चूत पर अपनी अंगुली का दबाव बनाया, दीदी ने सिसक कर कहा,"अरे क्या कर रहा है ?"
"दीदी, एक बात कहनी थी !"
उसने मुझे देखा और मेरी हालत का जायजा लिया। मेरी चड्डी में से लण्ड का उभार उसकी नजर से छुप नहीं सका था। उसके चेहरे पर जैसे शैतानियत की मुस्कान थिरक उठी।
"हूम्म ... कहो तो ... "
मैं दीदी के बिस्तर पर पीछे आ गया और बैठ कर उसकी कमर को मैंने पकड़ लिया।
"दीदी, आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं !"
"ऊ हूं ... तो... "
"मैं आपको देख कर पागल हो जाता हूँ ... " मेरे हाथ उसकी कमर से होते हुये उसकी छातियों की ओर बढ़ने लगे।
"वो तो लग रहा है ... !" दीदी ने घूम कर मुझे देखा और एक कंटीली हंसी हंस दी।
मैंने दीदी की छातियों पर अपने हाथ रख दिये,"दीदी, प्लीज बुरा मत मानना, मैं आपको चोदना चाहता हूँ !"
मेरी बात सुन कर दीदी ने अपनी आंखें मटकाई,"पहले मेरे बोबे तो छोड़ दे... " वो मेरे हाथ को हटाते हुये बोली।
"नहीं दीदी, आपके चूतड़ बहुत मस्त हैं ... उसमें मुझे लण्ड घुसेड़ने दो !" मैं लगभग पागल सा होकर बोल उठा।
"तो घुसेड़ ले ना ... पर तू ऐसे तो मत मचल !" दीदी की शैतानियत भरी हरकतें शुरू हो गई थी।
मैं बगल में लेट कर अनजाने में ही कुत्ते की तरह उसकी गाण्ड में लण्ड चलाने लगा। मुझे बहुत ताज्जुब हुआ कि मेरी किसी भी बात का दीदी ने कोई विरोध नहीं किया, बल्कि मुझे उसके गाण्ड मारने की स्वीकृति भी दे दी। मुझे लगा दीदी को तो पटाने की आवश्यकता ही नहीं थी। बस पकड़ कर चोद ही देना था।
"बस बस ... बहुत हो गया ... दिल बहुत मैला हो रहा है ना ?" दीदी की आवाज में कसक थी।
मैं उसकी कमर छोड़ कर एक तरफ़ हट गया।
"दीदी, इस लण्ड को देखो ना ... इसने मुझे कैसा बावला बना दिया है।" मैंने दीदी को अपना लण्ड दिखाया।
"नहीं बावला नहीं बनाया ... तुझ पर जवानी चढ़ी है तो ऐसा हो ही जाता है... आ यहाँ मेरे पास बैठ जा, सब कुछ करेंगे, पर आराम से ... मैं कहीं कोई भागी तो नहीं जा रही हूँ ना ... इस उम्र में तो लड़कियों को चोदना ही चहिये... वर्ना इस कड़क लण्ड का क्या फ़ायदा ?" दीदी ने मुझे कमर से पकड़ कर कहा।
मेरे दिल की धड़कन सामान्य होने लगी थी। पसीना चूना बंद हो गया था। दीदी की स्वीकारोक्ति मुझे बढ़ावा दे रही थी। वो अब बिस्तर पर बैठ गई और मुझे गोदी में बैठा लिया। दीदी ने मेरी चड्डी नीचे खींच कर मेरा लण्ड बाहर निकाल लिया।
"ये ... ये हुई ना बात ... साला खूब मोटा है ... मस्त है... मजा आयेगा !" मेरे लण्ड के आकार की तारीफ़ करते हुये वो बोल उठी। उसने मेरा लण्ड पकड़ कर सहलाया। फिर धीरे से चमड़ी खींच कर मेरा लाल सुपारा बाहर निकाल लिया।
अचानक उसकी नजरें चमक उठी,"भैया, तू तो प्योर माल है रे... " वो मेरे लौड़े को घूरते हुये बोली।
"प्योर क्या ... क्या मतलब?" मुझे कुछ समझ में नहीं आया।
"कुछ नहीं, तेरे लण्ड पर लिखा है कि तू प्योर माल है।" मेरे लण्ड की स्किन खींच कर उसने देखा।
"दीदी, आप तो जाने कैसी बातें करती हैं... " मुझे उसकी भाषा समझने में कठिनाई हो रही थी।
"चल अपनी आंखें बन्द कर ... मुझे तेरा लण्ड घिसना है !" दीदी की शैतान आंखें चमक उठी थी।
मुझे पता चल गया था कि अब वो मुठ मारेगी, सो मैंने अपनी आंखें बंद कर ली।
दीदी ने मेरे लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भर कर आगे पीछे करना चालू कर दिया। कुछ ही देर में मैं मस्त हो गया। मुख से सुख भरी सिसकियाँ निकलने लगी। जब मैं पूरा मदहोश हो गया था, चरम सीमा पर पहुंचने लगा था, दीदी ने जाने मेरे लण्ड के साथ क्या किया कि मेरे मुख से एक चीख सी निकल गई। सारा नशा काफ़ूर हो गया। दीदी ने जाने कैसे मेरे लण्ड की स्किन सुपारे के पास से अंगुली के जोर से फ़ाड़ दी थी। मेरी स्किन फ़ट गई थी और अब लण्ड की चमड़ी पूरी उलट कर ऊपर आ गई थी। खून से सन कर गुलाबी सुपाड़ा पूरा खिल चुका था।
"दीदी, ये कैसी जलन हो रही है ... ये खून कैसा है?" मुझे वासना के नशे में लगा कि जैसे किसी चींटी ने मुझे जोर से काट लिया है।
"अरे कुछ नहीं रे ... ये लण्ड हिलाने से स्किन थोड़ी सी अलग हो गई है, पर अब देख ... क्या मस्त खुलता है लण्ड !" मेरे लण्ड की चमड़ी दीदी ने पूरी खींच कर पीछे कर दी। सच में लण्ड का अब भरपूर उठाव नजर आ रहा था।
उसने हौले हौले से मेरा लण्ड हिलाना जारी रखा और सुपाड़े के ऊपर कोमल अंगुलियों से हल्के हल्के घिसती रही। मेरा लण्ड एक बार फिर मीठी मीठी सी गुदगुदी के कारण तन्ना उठा। कुछ ही देर में मुठ मारते मारते मेरा वीर्य निकल पड़ा। उसने मेरे ही वीर्य से मेरा लण्ड मल दिया। मेरा दिल शान्त होने लगा।
मैंने दीदी को पटा लिया था बल्कि यू कहें कि दीदी ने मुझे फ़ंसा लिया था। मेरा लण्ड मुरझा गया था। दीदी ने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया। मेरे होंठों पर अपने होंठ उसने दबा दिये और अधरों का रसपान करने लगी।
"भैया, विनय से मेरी दोस्ती करा दे ना, वो मुझे लिफ़्ट ही नहीं देता है !"
"पर तू तो राजीव से चुदवाती है ना ... ?"
उसे झटका सा लगा।
"तुझे कैसे पता ?" उसने तीखी नजरो से मुझे देखा।
"मैंने देखा है आपको और राजीव को चुदाई करते हुये ... क्या मस्त चुदवाती हो दीदी !"
"मैं तो विनय की बात कर रही हूँ ... समझता ही नहीं है ?" उसने मुझे आंखें दिखाई।
"लिफ़्ट की बात ही नहीं है ... सच तो यह है कि उसे पता ही नहीं है कि आप उस पर मरती हैं।"
"फिर भी ... उसे घर पर लाना तो सही... और हाँ मरी मेरी जूती ... !"
"अरे छोड़ ना दीदी, मेरे अच्छे दोस्तों से तुझे चुदवा दूँगा ... बस, सालों के ये मोटे मोटे लण्ड हैं !"
"सच, भैया " उसकी आंखें एक बार फिर से चमक उठी।
दीदी के बिस्तर में हम दोनों लेट गये। कुछ ही देर मेरा मन फिर से मचल उठा।
"दीदी, एक बार अपनी चूत का रस मुझे लेने दे।"
"चल फिर उठ और नीचे आ जा !"
दीदी ने अपनी टांगें फ़ैला दी। उसकी भोंसड़ी खुली हुई सामने थी पाव रोटी के समान फ़ूली हुई। उसकी आकर्षक पलकें, काली झांटों से भरा हुआ जंगल ... उसके बीचों बीच एक गुलाबी गुफ़ा ... मस्तानी सी ... रस की खान थी वो ...
उसने अपनी दोनों टांगें ऊपर उठा ली... नजरें जरा और नीचे गई। भूरा सा अन्दर बाहर होता हुआ गाण्ड का कोमल फ़ूल ...
एक बार फिर लण्ड की हालत खराब होने लगी। मैंने झुक कर उसकी चूत का अभिवादन किया और धीरे से अपनी जीभ निकाल कर उसमें भरे रस का स्वाद लिया। जीभ लगते ही चूत जैसे सिकुड़ गई। उसका दाना फ़ड़क उठा ... जीभ से रगड़ खा कर वो भी मचल उठा। दीदी की हालत वासना से बुरी हो रही थी। चूत देख कर ही लग रहा था कि बस इसे एक मोटे लण्ड की आवश्यकता है। दीदी ने मेरी बांह पकड़ कर मुझे खींच कर नीचे लेटा लिया और धीरे से मेरे ऊपर चढ़ गई और अपनी चूत खोल कर मेरे मुख से लगा दी। उसकी प्यारी सी झांटों भरी गुलाबी सी चूत देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने उसकी चूत को चाटते हुये उसे खूब प्यार किया। दीदी ने अपनी आंखें मस्ती में बन्द कर ली। तभी वो और मेरे ऊपर आ गई। उसकी गाण्ड का कोमल नरम सा छेद मेरे होंठों के सामने था। मैंने अपनी लपलपाती हुई जीभ से उसकी गाण्ड चाट ली और जीभ को तिकोनी बना कर उसकी गाण्ड में घुसेड़ने लगा।
"तूने तो मुझे मस्त कर दिया भैया ... देख तेरा लण्ड कैसा तन्ना रहा है... !"
उसने अपनी गाण्ड हटाते हुये कहा," भैया मेरी गाण्ड मारेगा ?"
वो धीरे से नीचे मेरी टांगों पर आ गई और पास पड़ी तेल की शीशी में से तेल अपनी गाण्ड में लगा लिया।
"आह ... देख कैसा कड़क हो रहा है ... जरा ठीक से लण्ड घुसेड़ना... "
वो अपनी गाण्ड का निशाना बना कर मेरे लण्ड पर धीरे से बैठ गई। सच में वो गजब की चुदाई की एक्सपर्ट थी। उसके शरीर के भार से ही लण्ड उसकी गाण्ड में घुस गया। लण्ड घुसता ही चला गया, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
लगता था उसकी गाण्ड लड़कों ने खूब बजाई थी ... उसकी मुख से मस्ती भरी आवाजें निकलने लगी।
"कितना मजा आ रहा है ... " वो ऊपर से लण्ड पर उछलने लगी ...
लण्ड पूरी गहराई तक जा रहा था। उसकी टाईट गाण्ड का लुफ़्त मुझे बहुत जोर से आ रहा था। मेरे मुख से सिसकियाँ निकल रही थी। वो अभी भी सीधी बैठी हुई गाण्ड मरवा रही थी। अपने चूचों को अपने ही हाथ से दबा दबा कर मस्त हो रही थी। उसने अपनी गाण्ड उठाई और मेरा लण्ड बाहर निकाल लिया और थोड़ा सा पीछे हटते हुये अपनी चूत में लण्ड घुसा लिया। वो अब मेरे पर झुकी हुई थी ... उसके बोबे मेरी आंखों के सामने झूलने लगे थे। मैंने उसके दोनों उरोज अपने हाथों में भर लिये और मसलने लगा। वो अब चुदते हुये मेरे ऊपर लेट सी गई और मेरी बाहों को पकड़ते हुये ऊपर उठ गई। अब वो अपनी चूत को मेरे लण्ड पर पटक रही थी। मेरी हालत बहुत ही नाजुक हो रही थी। मैं कभी भी झड़ सकता था। वो बेतहाशा तेजी के साथ मेरे लण्ड को पीट रही थी, बेचारा लण्ड अन्त में चूं बोल ही गया। तभी दीदी भी निस्तेज सी हो गई। उसका रस भी निकल रहा था। दोनों के गुप्तांग जोर लगा लगा कर रस निकालने में लगे थे। दीदी ने मेरे ऊपर ही अपने शरीर को पसार दिया था। उसकी जुल्फ़ें मेरे चेहरे को छुपा चुकी थी। हम दोनों गहरी-गहरी सांसें ले रहे थे।
"मजा आया भैया... ?"
"हां रे ! बहुत मजा आया !"
"तेरा लण्ड वास्तव में मोटा है रे ... रात को और मजे करेंगे !"
"दीदी तेरी भोंसड़ी है भी चिकनी और रस दार !" मैं वास्तव में दीदी की सुन्दर चूत का दीवाना हो गया था, शायद इसलिये भी कि चूत मैंने जिन्दगी में पहली बार देखी थी।
पर मेरे दिल में अभी भी कुछ ग्लानि सी थी, शायद अनैतिक कार्य की ग्लानि थी।
"दीदी, देखो ना हमसे कितनी बड़ी भूल हो गई, अपनी ही सगी दीदी को चोद दिया मैंने !"
"अहह्ह्ह्ह ... तू तो सच में बावला ही है ... भाई बहन का रिश्ता अपनी जगह है और जवानी का रिश्ता अपनी जगह है ... जब लण्ड और चूत एक ही कमरे में मौजूद हैं तो संगम होगा कि नहीं, तू ही बता !" उसका शैतानियत से भरा दिमाग जाने मुझे क्या-क्या समझाने में लगा था। मुझे अधिक तो कुछ समझ में आया ... आता भी कैसे भला। क्यूंकि अगले ही पल वो मेरा लौड़ा हाथ में लेकर मलने लगी थी ... और मैं बेसुध होता जा रहा था...










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