FUN-MAZA-MASTI
अंजली की ख़ुशी
हाय ! मैं अपने रहस्य अपनी सबसे अच्छी सहेलियाँ को बताने के
बजाए अजनबियों को बताना ज्यादा पसंद करती हूँ।
मेरा नाम अंजलि है, मुझे प्यार
से सभी अंजू कह कर बुलाते हैं। अपनी गाण्ड में लौड़े लेना मेरी सबसे बड़ी खुशी है!
कुछ लड़कियाँ समझती हैं कि इसमें बहुत ज्यादा दर्द होता है, या यह गलत है, लेकिन मैं जानती हूँ कि दुनिया में इससे बेहतर आनन्द कोई नहीं हो सकता जब कोई
लड़का मेरी योनि से खेलते हुए मेरे चूतड़ों में लण्ड घुसा रहा हो ! इससे मैं एक मिनट
से भी कम समय में परम आनन्द प्राप्त कर लेती हूँ।
लेकिन मैं एक लड़की हूँ और मैं बार-बार, रात भर यह आनन्द ले सकती हूँ जब तक आप मेरी तंग, गीली चूत और कसी गाण्ड में अन्दर-बाहर करते
रहेंगे।
मैं आपको अपने देवर से चुदाई का किस्सा सुनाती हूँ !
मेरे पति अविनाश एक कम्पनी में वरिष्ठ पद पर स्थापित थे। वे
एक औसत शरीर के दुबले पतले सुन्दर युवक थे। बहुत ही वाचाल, वाक पटु, समझदार और
दूरदर्शी थे। मैं तो उन पर जी जान से मरती थी। वो थे ही ऐसे, उन पर हर ड्रेस फ़बती थी। मैं तो उनसे अक्सर कहा
करती थी कि तुम तो हीरो बन जाओ, बहुत ऊपर तक
जाओगे। वो मेरी बात को हंसी में उड़ा देते थे कि सभी पत्नियों को अपने पति
"ही-मैन" लगते हैं। हमारी रोज रात को सुहागरात मनती थी। मैं तो बहुत ही
जोश से चुदवाती थी। उनका लण्ड भी मस्त मोटा और लम्बा था। वो एक बार तो मस्ती से
चोद देते थे पर दूसरी बार में उन्हें थकान सी आ जाती थी। उनका लण्ड चूसने से वो
बहुत जल्दी मस्ती में आ जाते थे। मेरी चूत तो तो वो बला की मस्ती से चूस कर मुझे
पागल बना देते थे। मेरे पति गाण्ड चोदने का शौक रखते थे, उन्हें मेरी उभरी हुई और फ़ूली हुई खरबूजे सी गाण्ड
बड़ी मस्त लगती थी। फिर बस उसे मारे बिना उन्हें चैन नहीं आता था।
उनके कुछ खास गुणों के कारण कम्पनी ने फ़ैसला किया कि उन्हें
ट्रेनिंग के लिये छः माह के लिये अमेरिका भेज दिया जाये। फिर उन्हें पदोन्नत करके
उन्हें क्षेत्रीय मैनेजर बना दिया जाये।
कम्पनी के खर्चे पर विदेश यात्रा !
ओह !
अविनाश बहुत खुश थे।
उन्होंने अपने पापा को लिखा कि आप रिटायर्ड है सो शहर आ जाओ
और कुछ समय के लिये अंजलि के साथ रह लो। पापा ने अवनी के छोटे भैया अखिलेश को
भेजने का फ़ैसला किया। उसकी परीक्षायें समाप्त हो चुकी थी और उसके कॉलेज की छुट्टियाँ
शुरू हो गई थी।
अखिलेश शहर आकर बहुत प्रसन्न था। फिर यहाँ पापा जो नहीं थे
उसे रोकने टोकने के लिये। अखिलेश अविनाश के विपरीत एक पहलवान सा लड़का था। वो
अखाड़ची था, वो कुश्तियाँ नहीं
लड़ता था पर उसे अपना शरीर को सुन्दर बनाने का शौक था। वह अक्सर अपनी भुजाये अपना
शरीर वगैरह आईने में निहारा करता था। अखिलेश ने आते ही अपनी फ़रमाईश रख दी कि उसे
सुबह कसरत करने के बाद एक किलो शुद्ध दूध बादाम के साथ चाहिये।
आखिर वो दिन भी आ गया कि अविनाश को भारत से प्रस्थान करना
था। अविनाश के जाने के बाद मैं बहुत ही उदास रहने लगी थी। पर समय समय पर अविनाश का
फोन आने से मुझे बहुत खुशी होती थी। मन गुदगुदा जाता था। रात को शरीर में सुहानी
सी सिरहन होने लगी थी। दस पन्द्रह दिन बीतते-बीतते मुझे बहुत बैचेनी सी होने लगी
थी। मुझे चुदाने की ऐसी बुरी लत लग गई थी कि रात होते होते मेरे बदन में बिजलियाँ
टूटने लगती थी। फिर मैं तो बिन पानी की मछली की तरह तड़प उठती थी। दूसरी ओर अखिलेश
जिसे हम प्यार से अक्कू कहते थे, उसे देख कर
मुझे अविनाश की याद आ जाती थी। अब मैं सुबह सुबह चुपके से छत पर जाकर उसे झांक कर
निहारने लगी थी। उसका शरीर मुझे सेक्सी नजर आने लगा था। उसकी चड्डी में उसका सिमटा
हुआ लण्ड मुझ पर कहर ढाने लगा था। हाय, इतना प्यारा
सा लण्ड, चड्डी में कसा हुआ
सा, उसकी जांघें, उसकी छाती, और फिर
गर्दन पर खिंची हुई मजबूत मांसपेशियाँ। सब कुछ मन को लुभाने वाला था। कामाग्नि को
भड़काने वाला था।
मेरा झांकना और उसे निहारना शायद उसने देख लिया था। सो वो
मुझे और दिखाने के अन्दाज में अपना बलिष्ठ बदन और उभार कर दिखाता था। मेरी नजरें
उसे देख कर बदलने लगी।
एक दिन अचानक मुझे लगा कि रात को मुझे कोई वासना में तड़पते
हुये देख रहा है। देखने वाला इस घर में अक्कू के सिवाय भला कौन हो सकता था। मेरी
तेज निगाहें खिड़की पर पड़ ही गई। यूं तो उस पर काले कागज चिपके हुये थे, अन्दर दिखने की सम्भावना ना के बराबर थी, पर वो कुरेदा हुआ काला कागज बाहर की ओर से दिन
में रोशनी से चमकता था। मैं मन ही मन मुस्कुरा उठी ...... तो जनाब यहाँ से मेरा
नजारा देखा करते हैं। मैंने अन्दर से कांच को गीला करके उसे अखबार से साफ़ करके और
भी पारदर्शी बना दिया।
आज मैं सावधान थी। रात्रि भोजन के उपरान्त मैंने कमरे की
दोनों ट्यूब लाईट रोज की भांति जला दी। आज मुझे अक्कू को मुफ़्त शो दिखला कर तड़पा
देना था। मेरी नजरें चुपके चुपके से उस खिड़की के छेद को सावधानी से निहार रही थी।
तभी मुझे लगा कि अब वहाँ पर अक्कू की आँख आ चुकी है। मैंने
अन्जान बनते हुये अपने शरीर पर सेक्सी अन्दाज से हाथ फ़िराना शुरू कर दिया। कभी कभी
धीरे से अपनी चूचियाँ भी दबा देती थी। मेरे हाथ में एक मोमबत्ती भी थी जिसे मैं
बार बार चूसने का अभिनय कर रही थी। फिर मैं अपनी एक चूची बाहर निकाल कर उसे दबाने
लगी और आहें भरने लगी। मुझे नहीं पता उधर अक्कू का क्या हाल हो रहा होगा। तभी
मैंने खिड़की की तरफ़ अपनी गाण्ड की और पेटीकोट ऊपर सरका लिया। ट्यूब लाईट में मेरी
गोरी गोरी गाण्ड चमक उठी थी। मैंने अपनी टांगें फ़ैलाई और गाण्ड के दोनों खरबूजों
को अलग अलग खोल दिया। मेरी मोमबती अब गाण्ड के छेद पर थी। मैं उसे उस पर हौले हौले
घिसने सी लगी। फिर सिमट कर बिस्तर पर गिर कर तड़पने सी लगी। मैंने अपनी अब मजबूरी
में अपनी चूत मसल दी और मैं जोर जोर से हांफ़ते हुये झड़ गई। मुझे पता था कि आज के
लिये इतना काफ़ी है। फिर मैंने बत्तियाँ बन्द की और सो गई, बिना यह सोचे कि अक्कू पर क्या बीती होगी। पर
अब मैं नित्य नये नये एक्शन उसे दिखला कर उसे उत्तेजित करने लगी थी। मकसद था कि वो
अपना आपा खो कर मुझ पर टूट पड़े।
अक्कू की नजरें धीरे धीरे बदलने लगी थी। हम सुबह का नाश्ता
करने बैठे थे। वो अपना दूध गरम करके पी रहा था और मैं अपनी चाय पी रही थी। उसमें
वासना का भाव साफ़ छलक रहा था। वो मुझे एक टक देख रहा था। मैंने भी मौका नहीं चूका।
मैंने उसकी आँखों में अपनी आँखें डाल दी। बीच बीच में वो झेंप जाता था। पर अन्ततः
उसने हिम्मत करके मेरी अंखियों से अपनी अंखियाँ लड़ा ही दी। मेरे दिल में चुदास की
भावना घर करने लगी थी। मैं अब कोई भी मौका नहीं बेकार होने देना चाहती थी। मैं इस
क्रिया को मैं चक्षु-चोदन कहा करती थी। हम एक दूसरे को एकटक देखते रहे और ना जाने
क्या क्या आँखों ही आँखों में इशारे करते रहे।
मुझसे रहा नहीं गया,"अक्कू, क्या देख रहे हो?"
"वो आपकी ब्रा, खुली हुई है !" वो झिझकते हुये बोला।
मैं एकदम चौंक सी गई पर मेरी आधी चूची के दर्शन तो उसे हो
ही गये थे।
"ओह शायद ठीक से नहीं
लगी होगी!"
वो उठ खड़ा हुआ,"लाओ मैं लगा
दूँ !"
मेरे दिल में गुदगुदी सी उठी। मैं कुछ कहती वो तब तक मेरी
कुर्सी के पीछे आ चुका था। उसने ब्लाऊज़ के दो बटन खोले और ब्रा का स्ट्रेप पकड़ कर
खींचा। मेरी चूचियाँ झनझना उठी। मैंने ओह करके पीछे मुड़ कर उसे देखा।
"बहुत कसी है ब्रा
!"
उसने मुस्करा कर और खींचा फिर हुक लगा दिया। फिर मेरे
ब्लाऊज़ के बटन भी लगा दिये। मैं शरमा कर झुक सी गई और उठ कर उसे देखा और कमरे में
भाग गई।
उस दिन के बाद से मैंने ब्रा पहनना छोड़ दिया। अन्दर चड्डी
भी उतार दी। मुझे लग रहा था कि जल्दी ही अक्कू कुछ करने वाला है। मैंने अब सामने
वाले हुक के ब्लाऊज़ पहना शुरू कर दिया था। सामने के दो हुक मैं जानबूझ कर खुले
रखती थी। झुक कर उसे अपनी शानदार चूचियों के दर्शन करवा देती थी। किसी भी समय
चुदने को तैयार रहने लगी थी। मुझे जल्दी ही पता चल गया था कि भैया अब सवेरे वर्जिश
करने के बदले मुठ मारा करता था। वैसे भी अब मेरे चूतड़ों पर कभी कभी हाथ मारने लगा
था। बहाने से चूचियों को भी छू लेता था। हमारे बीच की शर्म की दीवार बहुत मजबूत
थी। हम दोनों एक दूसरे का हाल मन ही मन जान चुके थे, पर बिल्ली के गले में घण्टी कौन बांधे।
अब मैंने ही मन को मजबूत किया और सोचा कि इस तरह तो जवानी
ही निकल जायेगी। मैं तो मेरी चूत का पानी रोज ही बेकार में यूँ ही निकाल देती हूँ।
आज रात को वो ज्योंही खिड़की पर आयेगा मैं उसे दबोच लूंगी, फिर देखे क्या करता है। मैं दिन भर अपने आप को
हिम्मत बंधाती रही। जैसे जैसे शाम ढलती जा रही थी। मेरे दिल की धड़कन बढ़ती ही जा
रही थी।
रात्रि-भोज के बाद आखिर वो समय आ ही गया।
मैं अपने बिस्तर पर लेटी हुई अपनी सांसों पर नियंत्रण कर
रही थी। पर दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। मेरा जिस्म सुन्न पड़ता जा रहा था। आखिर
में मेरी हिम्मत टूट गई और मैं निढाल सी बिस्तर पर पड़ गई। मेरा हाथ चूत पर हरकत
करने लगा था। पेटीकोट जांघों से ऊपर उठा हुआ था। मेरी आँखे बन्द हो चली थी। मैं
समझ गई कि मेरी हिम्मत ही नहीं ऐसा करने की। तभी मुझे लगा कि कोई मेरे बिस्तर के
पास खड़ा है। वो अक्कू ही था। मैं तो सन्न सी रह गई। मेरे अधनंगे शरीर को वो ललचाई
नजर से देख रहा था। मेरी चूची भी खुली हुई थी।
"गजब की हो भाभी !, क्या चूचियां हैं आपकी !"
उसका पजामे में लण्ड खड़ा हुआ झूम रहा था। पजामा तम्बू जैसा
तना हुआ था।
"अरे तुम? यहाँ कैसे आ गये?"
"ओह ! कुछ नहीं भाभी, भैया को गये हुये बीस दिन हो गये, याद नहीं आती है?"
"क्या बताऊँ भैया, उनके बिना नहीं रहा जाता है, उनसे कभी अलग नहीं रही ना !"
"भाभी, तुम्हारा भोसड़ा चोदना है।"
"क्...क्... क्या कहा, बेशरम...?"
वो मेरे पास बिस्तर पर बैठ गया।
"भाभी, यह मेरा लौड़ा देखो ना, अब तो ये भोसड़े में ही घुस कर मानेगा।"
"अरे, तुम ... भैया कितने बद्तमीज हो, भाभी से ऐसी बातें करते हैं?"
वो मेरे ऊपर लेटता हुआ सा बोला- मैंने देखा है भाभी तुम्हें
रातों को तड़पते हुये ! मुझे पता है कि तुम्हारा भोसड़ा प्यासा है, एक बार मेरा लण्ड तो चूत में घुसेड़ कर
खालो।"
मेरी दोनों बाहों को उसने कस कर पकड़ लिया। मेरे मन में
तरंगें उठने लगी। मन गुदगुदा उठा। नाटक करती हुई मैं जैसे छटपटाने लगी। तभी उसके
एक हाथ ने मेरी चूची दबा दी और मुझे पर झुक पड़ा। मैं अपना मुख बचाने के इधर उधर
घुमाने लगी। पर कब तक करती, मेरे मन में
तो तेज इच्छा होने लगी थी। उसने मेरे होंठ अपने होंठों में दबा लिये और उसे चूसने
लगा। मैं आनन्द के मारे तड़प उठी। मेरी चूत लप-लप करने लगी उसका लौड़ा खाने के लिये।
पर अपना पेटीकोट कैसे ऊपर उठाऊँ, वो क्या
समझेगा।
"भैया ना कर ऐसे, मैं तो लुट जाऊंगी... हाय रे कोई तो बचाओ
!" मैं धीरे से कराह उठी।
तभी उसने मेरा ब्लाऊज़ उतार कर एक तरफ़ डाल दिया।
"अब भाभी, यह पेटीकोट उतार कर अपनी मुनिया के दर्शन करा
दो !"
मैंने उसे जोर से धक्का दिया और यह भी ख्याल रखा कि उसे चोट
ना लग जाये। पर वो तो बहुत ही ताकतवर निकला। उसने खड़ा हो कर मुझे भी खड़ा कर दिया।
मेरा पेटीकोट उतार कर नीचे सरका दिया। अब मैं बिल्कुल नंगी थी, मेरे सारे बदन में सनसनी सी फ़ैल गई थी। इतने
समय से मैं चुदने का यत्न कर रही थी और यहां तो परोसी हुई थाली मिल गई। बस अब
स्वाद ले ले कर खाना था। उसने कहा,"भाभी, मेरा लौड़ा देखोगी ... ?"
"देख भैया, ये मेरा तूने क्या हाल कर दिया है, बस अब बहुत हो गया, मुझे कपड़े पहनने दे."
"तो यह मेरा लौड़ा कौन
खायेगा?" कहकर उसने अपना
पजामा उतार दिया।
आह ! दैया री, इतना मोटा
लण्ड। मुझे तो मजा आ जायेगा चुदवाने में। मेरे दिल की कली खिल उठी। मैंने मन ही मन
उसे मुख में चूस ही लिया। वो धीरे से मेरे पास आया और मुझे लिपटा लिया।
"भाभी, शरम ना करो, लड़की हो तो
चुदना ही पड़ेगा, भैया से चुदती हो, मुझसे भी फ़ड़वा लो !"
वो मुझे बुरी तरह चूसने और चूमने लगा। उसका कठोर लण्ड मेरी
चूत के नजदीक टकरा रहा था। मेरी चूत का द्वार बस उसे लपेटने के चक्कर में था। तभी
भैया का एक हाथ मेरे सर पर आ गया और उसने मुझे दबा कर नीचे बैठाना चालू कर दिया।
"आह, अब मेरा लण्ड चूस लो भाभी, शर्माओ मत, मुझे बहुत
मजा आ रहा है।"
मैं नीचे बैठती गई और फिर उसका मस्त लण्ड मेरे सामने झूमने
लगा। उसने अपनी कमर उछाल कर अपना लौड़ा मेरे मुख पर दबा दिया। मैंने जल्दी से उसका
लाल सुर्ख सुपाड़ा अपने मुख में ले लिया।
"अब चूस लो मेरी जान, साले को मस्त कर दो।"
मुझे भी जोश आने लगा। उसका कठोर लण्ड को मैं घुमा घुमाकर चूसने लगी। वो आहें भरता रहा।
"साली कैसा नाटक कर
रही थी और अब शानदार चुसाई ! मेरी रानी जोर लगा कर चूसो !"
तभी उसका रस मेरे मुख में निकलने लगा। मैं मदहोश सी उसे
पीने लगी। खूब ढेर सारा रस निकला था।
"अब तुम्हारी बारी है
भाभी, लेट जाओ चूत चुसाई के लिये।"
"बस हो गया ना अब, अब तुम जाओ।"
"अरे जाओ, मैं ऐसे नहीं छोड़ने वाला। लेट कर अपनी दोनों
टांगें चौड़ी करो !"
"मुझे शरम आती है
भैया!"
"ओये होये, मेरी रानी, जिसने की
शरम, उसके फ़ूटे करम ! चूत में से पानी नहीं
निकालना है क्या?"
मैंने अब अक्कू को अपने पास खींच लिया और उसकी चौड़ी छाती पर
सिर रख दिया। इतना कुछ हो गया तो अब मैं भी क्यों पीछे रहूँ। अब मन तो चुदवाने को
कर ही रहा है, देखना साले के लण्ड
को निचोड़ कर रख दूंगी। तबियत से चुदवाऊंगी ... इन बीस दिनों की कसर पूरी
निकालूंगी। मेरे समीप आते ही उसने मेरे शरीर को मसलना और दबाना शुरू कर दिया, बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया।
"भाभी फिर इतने नखरे
क्यूँ...?"
"साला मुझे रण्डी
समझता है क्या ... जो झट से झोली में आ जाऊं, नखरे तो
करने ही पड़ते हैं ना !"
"ऐ साली ! मां की
लौड़ी ! मुझे बेवकूफ़ बना दिया? तभी तो कहूँ
रोज रात को अपनी टांगें उठा अपना गुलाबी भोसड़ा मुझे दिखाती है, जब मैं हिम्मत करके चोदने आया तो, हाय, मम्मी, देय्या री चालू हो गई?"
"अब ज्यादा ना बोल, साला रोज सुबह मेरे नाम की मुठ्ठी मारता है, और फिर माल निकालता है वो कुछ नहीं?"
"भाभी, अब तुम्हारे नाम की ही तो मुठ्ठी मारता हू, साली तू सोलिड माल जो है !"
"सोलिड ...हुंह ...
अरे चल, अब मेरी चूत चूस के तो बता दे !"
उसने मुझे फ़ूल की तरह से उठा लिया और बिस्तर पर ऐसे लेटा
दिया कि वो बिस्तर के नीचे बैठ कर मेरी चूत को खुल कर चूस ले। वो मेरी टांगों के
मध्य आकर बैठ गया, मेरे दोनों पैर फ़ैला
दिए, मेरी गुलाबी चूत उसके सामने फ़ूल की तरह
खिल कर उसके सामने आ गई।
उसके दोनों हाथ मेरी दोनों चूचियों पर आ गये और हौले हौले
से उसे सहलाने और दबाने लगे थे। मेरी सांसें खुशी के मारे और उत्तेजना के मारे तेज
होने लगी। शरीर में मीठी मीठी सी जलन होने लगी। तभी मेरी गीली चूत की दरार पर उसकी
जीभ ने एक सड़ाका मारा। मेरा सारा रस उसकी जीभ पर आ गया। मेरी यौवन कलिका पर अब
उसने आक्रमण कर दिया। उसकी जीभ ने हल्का सा घुमा कर उसे सहला दिया। जैसे एक बिजली
का करण्ट लगा।
तभी मैं उछल पड़ी ! उसकी दो-दो अंगुलियाँ एक साथ मेरी चूत
में अन्दर सरक गई थी ! मेरा हाल बेहाल हो रहा था। कुछ देर अंगुलियाँ अन्दर बाहर
होती रही। मैं तड़प सी गई। उसकी अंगुलियों ने मेरी चूत के कपाटों को चौड़ा करके खोल
दिया, उसकी पलकों के बीच उसकी जीभ लहराने लगी।
फिर उसकी जीभ हौले से मेरी चूत में घुस गई, चूत में वो
लपपाती रही, उसकी अंगुलियां भी
अन्दर मस्ताती रही।
मैंने अपनी दोनों चूचियाँ जोर से दबा कर एक आह भरी और अपना
जवानी का सारा रस छोड़ दिया। कुछ देर तक तो वह चूत के साथ खेलता रहा फिर मैंने जोर
लगा उसे हटा दिया।
"क्या भाभी, कितना मजा आ रहा था !"
"आह देवर जी, मेरी बाहों में आ जाओ, मेरी चूचियों में अपना सर रख कर सो जाओ।"
मैं संतुष्टि से भर कर बोली।
मैं नींद के आगोश में बह निकली थी। पता नहीं रात को कितना
समय हुआ होगा, मेरी नींद खुल गई।
मुझे लगा मेरी गाण्ड में शायद तेल लगा हुआ था और मेरे पीछे मेरा देवर चिपका हुआ
था। उसका सुपारा मेरी गाण्ड के छेद में उतर चुका था।
"क्या कर रहे भैया?"
"मन नहीं मान रहा था, तुम्हारी गाण्ड से चिपका हुआ लण्ड बेईमान हो
गया था। और देखो तो तुम्हारा यह तेल भी यही पास में था, सो सोने पर सुहागा !"
"आह, सोने दो ना भैया, अब तो कभी भी कर लेना !"
"हाँ यार, बात तो तुम्हारी सही है, पर इस लौड़े को कौन समझाये?"
उसका लण्ड थोड़ा सा और अन्दर सरक आया।
ओह बाबा ! कितना मोटा लण्ड है ! पर लण्ड खाने का मजा तो
आयेगा ही !
मैंने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। उसका लण्ड काफ़ी अन्दर तक
उतर आया था। मुझे अब मजा आने लगा था।
"भाभी तुम तो खाई
खिलाई हो, दर्द तो नहीं हुआ?"
"देय्या री, गाण्ड में लण्ड तो कितनी ही बार खाई खिलाई है
तो उससे क्या हुआ, लण्ड तो साला
मुस्टण्डा है ना !"
मुझे पता था कि चिल्लाऊँगी तो उसे मजा आयेगा। वरना हो सकता
है वो बीच में ही छोड़ दे।
"ओह तो ये ले फिर
!"
"धीरे से राजा, देख फ़ाड़ ना देना मेरी गाण्ड !"
"अरे नहीं ना ... ये
और ले !"
"ओह मैया री, दर्द हो रहा है, जरा धीरे से !"
"ऐ तेरी मां का भोसड़ा
..."
उसने फिर जोर का झटका दिया। मैं आनन्द के मारे सिकुड़ सी गई।
वो समझा कि दर्द से दोहरी हो गई है। उसने मेरी खुली गाण्ड में अब जोर से पेल दिया।
मैं खुशी से चीख उठी।
"ओह मर गई राजा, क्या कर रहा है?"
"तेरी तो मां चोद
दूंगा आज मैं ! साली बड़ी अपनी गाण्ड मटकाती फ़िरती थी ना !"
आह ! साले जोर से गाण्ड को चोद दे !
वो क्या जाने मैं तो गाण्ड चुदवाने में माहिर हूँ। उसके
जोरदार झटके मुझे आनन्दित कर रहे थे। अविनाश यूँ तो नियम से मेरी गाण्ड चोदता था।
पर इस बार लण्ड थोड़ा मोटा होने के कारण अधिक मजा आ रहा था।
"बस कर राजा, मेरी गाण्ड की चटनी बन जायेगी, रहम कर भैया !"
वो तो और जोश में आ गया और मेरी गाण्ड को मस्ती से चोदने
लगा। तभी मस्ती में मेरी चूत से रस निकल पड़ा। कुछ देर में वो भी झड़ गया। उसके झड़ते
ही मैंने भी चीखना बन्द कर दिया। मैं हांफ़ती हुई अक्कू से लिपट गई।
"भैया, बहुत मस्त चोदता है रे तू तो ! रोज चोद दिया कर, मेरी गाण्ड को तो तूने मस्त कर दिया।"
वो मुझसे लिपट कर सो गया। मैं फिर सो गई। सुबह उठे तो देखा
आठ बज रहे थे। मैं जल्दी से उठने लग़ी। तभी अक्कू ने मुझे फिर से दबोच लिया।
"यह क्या कर रहे हो, अब तो चोदते ही रहना, चाय नाश्ता तो बना लें !"
"सुबह सुबह चुदने से
अच्छा शगुन होता है, चुदा लो !"
"अच्छा किसने कहा है
ऐसा?"
"... उह ... मैंने कहा है
ऐसा !"
मैं खिलखिलाती हुई उस पर गिर पड़ी।
"साला खुद ही कहता है
और फिर खुद चोद भी देता है !"
"तो और कौन चोदेगा
फिर?"
कह कर उसने मुझे अपने नीचे दबा लिया। मैं खिलखिला कर उसे
गुदगुदी करने लगी। उसका लण्ड बेहद तन्नाया हुआ था। लग रहा था कि चोदे बिना वो नहीं
मानने वाला है। पर सच भी तो है कि मुझे उसके लण्ड का मजा अपनी चूत में मिला ही
कहाँ था। सो मैंने अपनी टांगें धीरे से मुस्कराते हुए ऊपर उठा ली। वो मेरे ऊपर
छाने लगा, मैं उसके नीचे उसके
सुहाने से दबाव में दबती चली गई। फ़ूल सा उसका बदन लग रहा था। उसके होंठ मेरे होंठो
से मिल गये। मेरी दोनों चूचियाँ उसके कठोर हाथों से दबने लगी। लण्ड लेने के लिये
मेरी चूत ऊपर उठने लगी। उसका लण्ड मेरी चूत के आसपास ठोकर मारने लगा था। लण्ड के
आस पास फ़िसलन भरी जगह थी, बेचारा लण्ड कब तक
सम्भलता। लड़खड़ा कर वो खड्डे में गिरता चला गया। मेरी चूत ने उसके मोटे लण्ड को
प्यार से झेल लिया और आगोश में समा लिया। मेरे मुख से एक प्यार भरी सिसकी निकल
पड़ी। अक्कू के मुख से भी एक आनन्द भरी सीत्कार निकल गई।
अब अक्कू ने अपनी कमर का जोर लगा कर अपने लण्ड को चूत के
भीतर ठीक से सेट कर लिया और दबा कर लण्ड को अन्दर बाहर खींचने लगा। मेरी तो जैसे
जान ही निकली जा रही थी। कसावट भरी चुदाई मेरे मन को अन्दर तक आह्लादित कर रही थी।
उसका लण्ड खाने के लिये मेरी चूत भी बराबर उसका साथ उछल उछल कर दे रही थी। मैं
दूसरी दुनिया में खो चली थी ... लग रहा था कि स्वर्ग है तो मेरे राजा के लण्ड में
है। जितना चोदेगा, जितना अन्दर बाहर
जायेगा उतनी ही जन्नत नसीब होगी। आह, मेरा मन तो
बार बार झड़ने को होने लगा था। "मेरे राजा... चोदे जाओ ... बहुत मजा आ रहा है, मेरे राजा, मेरे भैया
!"
"रानी, मेरी अंजू, तुम रोज
चुदाया करो ना ... मेरी जान निकाल दिया करो... आह मेरी रानी !"
जाने कब तक हम लोग चुदाई करते रहे, झड़ जाते तो फिर से तैयार होकर चुदाई करने लग
जाते।
"ओह, बाबा, अब नहीं, अब बस करो, अब तो मैं
मर ही जाऊंगी !"
"हां भाभी ... मेरी
तो अब हिम्मत ही नहीं रही है।"
हम पर कमजोरी चढ़ गई थी। मुझे पता नहीं मैं कब फिर से सो गई
थी। पास ही में अक्कू भी पड़ा सो गया था। जब नींद खुली तो कमजोरी के मारे तो मुझसे
उठा ही नहीं जा रहा था। अक्कू उठा और नहा धो कर वापिस आया और मुझे ठीक से कपड़े
पहना कर कुछ खाने को लेने चला गया। उसके आने के बाद हम दोनों ने दूध पिया और एक एक
केला खा लिया। खाने से मुझे कुछ जान में जान आई । और मुझे फिर से ताजगी आते ही
नींद आ गई।
मुझे नींद ही नींद में अक्कू ने फिर मुझे कई बार चोद दिया।
पर मैं इस बार एक भी बार नहीं झड़ी। मुझे अब इतना चुदने के बाद बिलकुल मजा नहीं आ
रहा था। रात को दस बजे जब नींद खुली तो अक्कू ने मुझे थोड़ी सी शराब पिलाई। तब कहीं
जाकर मेरे शरीर में गर्मी आई। मेरी चूत और गाण्ड में बुरी तरह दर्द हो रहा था।
तौबा तौबा इस चुदाई से। मेरा तो बाजा ही बज गया था।
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अंजली की ख़ुशी
हाय ! मैं अपने रहस्य अपनी सबसे अच्छी सहेलियाँ को बताने के
बजाए अजनबियों को बताना ज्यादा पसंद करती हूँ।
मेरा नाम अंजलि है, मुझे प्यार
से सभी अंजू कह कर बुलाते हैं। अपनी गाण्ड में लौड़े लेना मेरी सबसे बड़ी खुशी है!
कुछ लड़कियाँ समझती हैं कि इसमें बहुत ज्यादा दर्द होता है, या यह गलत है, लेकिन मैं जानती हूँ कि दुनिया में इससे बेहतर आनन्द कोई नहीं हो सकता जब कोई
लड़का मेरी योनि से खेलते हुए मेरे चूतड़ों में लण्ड घुसा रहा हो ! इससे मैं एक मिनट
से भी कम समय में परम आनन्द प्राप्त कर लेती हूँ।
लेकिन मैं एक लड़की हूँ और मैं बार-बार, रात भर यह आनन्द ले सकती हूँ जब तक आप मेरी तंग, गीली चूत और कसी गाण्ड में अन्दर-बाहर करते
रहेंगे।
मैं आपको अपने देवर से चुदाई का किस्सा सुनाती हूँ !
मेरे पति अविनाश एक कम्पनी में वरिष्ठ पद पर स्थापित थे। वे
एक औसत शरीर के दुबले पतले सुन्दर युवक थे। बहुत ही वाचाल, वाक पटु, समझदार और
दूरदर्शी थे। मैं तो उन पर जी जान से मरती थी। वो थे ही ऐसे, उन पर हर ड्रेस फ़बती थी। मैं तो उनसे अक्सर कहा
करती थी कि तुम तो हीरो बन जाओ, बहुत ऊपर तक
जाओगे। वो मेरी बात को हंसी में उड़ा देते थे कि सभी पत्नियों को अपने पति
"ही-मैन" लगते हैं। हमारी रोज रात को सुहागरात मनती थी। मैं तो बहुत ही
जोश से चुदवाती थी। उनका लण्ड भी मस्त मोटा और लम्बा था। वो एक बार तो मस्ती से
चोद देते थे पर दूसरी बार में उन्हें थकान सी आ जाती थी। उनका लण्ड चूसने से वो
बहुत जल्दी मस्ती में आ जाते थे। मेरी चूत तो तो वो बला की मस्ती से चूस कर मुझे
पागल बना देते थे। मेरे पति गाण्ड चोदने का शौक रखते थे, उन्हें मेरी उभरी हुई और फ़ूली हुई खरबूजे सी गाण्ड
बड़ी मस्त लगती थी। फिर बस उसे मारे बिना उन्हें चैन नहीं आता था।
उनके कुछ खास गुणों के कारण कम्पनी ने फ़ैसला किया कि उन्हें
ट्रेनिंग के लिये छः माह के लिये अमेरिका भेज दिया जाये। फिर उन्हें पदोन्नत करके
उन्हें क्षेत्रीय मैनेजर बना दिया जाये।
कम्पनी के खर्चे पर विदेश यात्रा !
ओह !
अविनाश बहुत खुश थे।
उन्होंने अपने पापा को लिखा कि आप रिटायर्ड है सो शहर आ जाओ
और कुछ समय के लिये अंजलि के साथ रह लो। पापा ने अवनी के छोटे भैया अखिलेश को
भेजने का फ़ैसला किया। उसकी परीक्षायें समाप्त हो चुकी थी और उसके कॉलेज की छुट्टियाँ
शुरू हो गई थी।
अखिलेश शहर आकर बहुत प्रसन्न था। फिर यहाँ पापा जो नहीं थे
उसे रोकने टोकने के लिये। अखिलेश अविनाश के विपरीत एक पहलवान सा लड़का था। वो
अखाड़ची था, वो कुश्तियाँ नहीं
लड़ता था पर उसे अपना शरीर को सुन्दर बनाने का शौक था। वह अक्सर अपनी भुजाये अपना
शरीर वगैरह आईने में निहारा करता था। अखिलेश ने आते ही अपनी फ़रमाईश रख दी कि उसे
सुबह कसरत करने के बाद एक किलो शुद्ध दूध बादाम के साथ चाहिये।
आखिर वो दिन भी आ गया कि अविनाश को भारत से प्रस्थान करना
था। अविनाश के जाने के बाद मैं बहुत ही उदास रहने लगी थी। पर समय समय पर अविनाश का
फोन आने से मुझे बहुत खुशी होती थी। मन गुदगुदा जाता था। रात को शरीर में सुहानी
सी सिरहन होने लगी थी। दस पन्द्रह दिन बीतते-बीतते मुझे बहुत बैचेनी सी होने लगी
थी। मुझे चुदाने की ऐसी बुरी लत लग गई थी कि रात होते होते मेरे बदन में बिजलियाँ
टूटने लगती थी। फिर मैं तो बिन पानी की मछली की तरह तड़प उठती थी। दूसरी ओर अखिलेश
जिसे हम प्यार से अक्कू कहते थे, उसे देख कर
मुझे अविनाश की याद आ जाती थी। अब मैं सुबह सुबह चुपके से छत पर जाकर उसे झांक कर
निहारने लगी थी। उसका शरीर मुझे सेक्सी नजर आने लगा था। उसकी चड्डी में उसका सिमटा
हुआ लण्ड मुझ पर कहर ढाने लगा था। हाय, इतना प्यारा
सा लण्ड, चड्डी में कसा हुआ
सा, उसकी जांघें, उसकी छाती, और फिर
गर्दन पर खिंची हुई मजबूत मांसपेशियाँ। सब कुछ मन को लुभाने वाला था। कामाग्नि को
भड़काने वाला था।
मेरा झांकना और उसे निहारना शायद उसने देख लिया था। सो वो
मुझे और दिखाने के अन्दाज में अपना बलिष्ठ बदन और उभार कर दिखाता था। मेरी नजरें
उसे देख कर बदलने लगी।
एक दिन अचानक मुझे लगा कि रात को मुझे कोई वासना में तड़पते
हुये देख रहा है। देखने वाला इस घर में अक्कू के सिवाय भला कौन हो सकता था। मेरी
तेज निगाहें खिड़की पर पड़ ही गई। यूं तो उस पर काले कागज चिपके हुये थे, अन्दर दिखने की सम्भावना ना के बराबर थी, पर वो कुरेदा हुआ काला कागज बाहर की ओर से दिन
में रोशनी से चमकता था। मैं मन ही मन मुस्कुरा उठी ...... तो जनाब यहाँ से मेरा
नजारा देखा करते हैं। मैंने अन्दर से कांच को गीला करके उसे अखबार से साफ़ करके और
भी पारदर्शी बना दिया।
आज मैं सावधान थी। रात्रि भोजन के उपरान्त मैंने कमरे की
दोनों ट्यूब लाईट रोज की भांति जला दी। आज मुझे अक्कू को मुफ़्त शो दिखला कर तड़पा
देना था। मेरी नजरें चुपके चुपके से उस खिड़की के छेद को सावधानी से निहार रही थी।
तभी मुझे लगा कि अब वहाँ पर अक्कू की आँख आ चुकी है। मैंने
अन्जान बनते हुये अपने शरीर पर सेक्सी अन्दाज से हाथ फ़िराना शुरू कर दिया। कभी कभी
धीरे से अपनी चूचियाँ भी दबा देती थी। मेरे हाथ में एक मोमबत्ती भी थी जिसे मैं
बार बार चूसने का अभिनय कर रही थी। फिर मैं अपनी एक चूची बाहर निकाल कर उसे दबाने
लगी और आहें भरने लगी। मुझे नहीं पता उधर अक्कू का क्या हाल हो रहा होगा। तभी
मैंने खिड़की की तरफ़ अपनी गाण्ड की और पेटीकोट ऊपर सरका लिया। ट्यूब लाईट में मेरी
गोरी गोरी गाण्ड चमक उठी थी। मैंने अपनी टांगें फ़ैलाई और गाण्ड के दोनों खरबूजों
को अलग अलग खोल दिया। मेरी मोमबती अब गाण्ड के छेद पर थी। मैं उसे उस पर हौले हौले
घिसने सी लगी। फिर सिमट कर बिस्तर पर गिर कर तड़पने सी लगी। मैंने अपनी अब मजबूरी
में अपनी चूत मसल दी और मैं जोर जोर से हांफ़ते हुये झड़ गई। मुझे पता था कि आज के
लिये इतना काफ़ी है। फिर मैंने बत्तियाँ बन्द की और सो गई, बिना यह सोचे कि अक्कू पर क्या बीती होगी। पर
अब मैं नित्य नये नये एक्शन उसे दिखला कर उसे उत्तेजित करने लगी थी। मकसद था कि वो
अपना आपा खो कर मुझ पर टूट पड़े।
अक्कू की नजरें धीरे धीरे बदलने लगी थी। हम सुबह का नाश्ता
करने बैठे थे। वो अपना दूध गरम करके पी रहा था और मैं अपनी चाय पी रही थी। उसमें
वासना का भाव साफ़ छलक रहा था। वो मुझे एक टक देख रहा था। मैंने भी मौका नहीं चूका।
मैंने उसकी आँखों में अपनी आँखें डाल दी। बीच बीच में वो झेंप जाता था। पर अन्ततः
उसने हिम्मत करके मेरी अंखियों से अपनी अंखियाँ लड़ा ही दी। मेरे दिल में चुदास की
भावना घर करने लगी थी। मैं अब कोई भी मौका नहीं बेकार होने देना चाहती थी। मैं इस
क्रिया को मैं चक्षु-चोदन कहा करती थी। हम एक दूसरे को एकटक देखते रहे और ना जाने
क्या क्या आँखों ही आँखों में इशारे करते रहे।
मुझसे रहा नहीं गया,"अक्कू, क्या देख रहे हो?"
"वो आपकी ब्रा, खुली हुई है !" वो झिझकते हुये बोला।
मैं एकदम चौंक सी गई पर मेरी आधी चूची के दर्शन तो उसे हो
ही गये थे।
"ओह शायद ठीक से नहीं
लगी होगी!"
वो उठ खड़ा हुआ,"लाओ मैं लगा
दूँ !"
मेरे दिल में गुदगुदी सी उठी। मैं कुछ कहती वो तब तक मेरी
कुर्सी के पीछे आ चुका था। उसने ब्लाऊज़ के दो बटन खोले और ब्रा का स्ट्रेप पकड़ कर
खींचा। मेरी चूचियाँ झनझना उठी। मैंने ओह करके पीछे मुड़ कर उसे देखा।
"बहुत कसी है ब्रा
!"
उसने मुस्करा कर और खींचा फिर हुक लगा दिया। फिर मेरे
ब्लाऊज़ के बटन भी लगा दिये। मैं शरमा कर झुक सी गई और उठ कर उसे देखा और कमरे में
भाग गई।
उस दिन के बाद से मैंने ब्रा पहनना छोड़ दिया। अन्दर चड्डी
भी उतार दी। मुझे लग रहा था कि जल्दी ही अक्कू कुछ करने वाला है। मैंने अब सामने
वाले हुक के ब्लाऊज़ पहना शुरू कर दिया था। सामने के दो हुक मैं जानबूझ कर खुले
रखती थी। झुक कर उसे अपनी शानदार चूचियों के दर्शन करवा देती थी। किसी भी समय
चुदने को तैयार रहने लगी थी। मुझे जल्दी ही पता चल गया था कि भैया अब सवेरे वर्जिश
करने के बदले मुठ मारा करता था। वैसे भी अब मेरे चूतड़ों पर कभी कभी हाथ मारने लगा
था। बहाने से चूचियों को भी छू लेता था। हमारे बीच की शर्म की दीवार बहुत मजबूत
थी। हम दोनों एक दूसरे का हाल मन ही मन जान चुके थे, पर बिल्ली के गले में घण्टी कौन बांधे।
अब मैंने ही मन को मजबूत किया और सोचा कि इस तरह तो जवानी
ही निकल जायेगी। मैं तो मेरी चूत का पानी रोज ही बेकार में यूँ ही निकाल देती हूँ।
आज रात को वो ज्योंही खिड़की पर आयेगा मैं उसे दबोच लूंगी, फिर देखे क्या करता है। मैं दिन भर अपने आप को
हिम्मत बंधाती रही। जैसे जैसे शाम ढलती जा रही थी। मेरे दिल की धड़कन बढ़ती ही जा
रही थी।
रात्रि-भोज के बाद आखिर वो समय आ ही गया।
मैं अपने बिस्तर पर लेटी हुई अपनी सांसों पर नियंत्रण कर
रही थी। पर दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। मेरा जिस्म सुन्न पड़ता जा रहा था। आखिर
में मेरी हिम्मत टूट गई और मैं निढाल सी बिस्तर पर पड़ गई। मेरा हाथ चूत पर हरकत
करने लगा था। पेटीकोट जांघों से ऊपर उठा हुआ था। मेरी आँखे बन्द हो चली थी। मैं
समझ गई कि मेरी हिम्मत ही नहीं ऐसा करने की। तभी मुझे लगा कि कोई मेरे बिस्तर के
पास खड़ा है। वो अक्कू ही था। मैं तो सन्न सी रह गई। मेरे अधनंगे शरीर को वो ललचाई
नजर से देख रहा था। मेरी चूची भी खुली हुई थी।
"गजब की हो भाभी !, क्या चूचियां हैं आपकी !"
उसका पजामे में लण्ड खड़ा हुआ झूम रहा था। पजामा तम्बू जैसा
तना हुआ था।
"अरे तुम? यहाँ कैसे आ गये?"
"ओह ! कुछ नहीं भाभी, भैया को गये हुये बीस दिन हो गये, याद नहीं आती है?"
"क्या बताऊँ भैया, उनके बिना नहीं रहा जाता है, उनसे कभी अलग नहीं रही ना !"
"भाभी, तुम्हारा भोसड़ा चोदना है।"
"क्...क्... क्या कहा, बेशरम...?"
वो मेरे पास बिस्तर पर बैठ गया।
"भाभी, यह मेरा लौड़ा देखो ना, अब तो ये भोसड़े में ही घुस कर मानेगा।"
"अरे, तुम ... भैया कितने बद्तमीज हो, भाभी से ऐसी बातें करते हैं?"
वो मेरे ऊपर लेटता हुआ सा बोला- मैंने देखा है भाभी तुम्हें
रातों को तड़पते हुये ! मुझे पता है कि तुम्हारा भोसड़ा प्यासा है, एक बार मेरा लण्ड तो चूत में घुसेड़ कर
खालो।"
मेरी दोनों बाहों को उसने कस कर पकड़ लिया। मेरे मन में
तरंगें उठने लगी। मन गुदगुदा उठा। नाटक करती हुई मैं जैसे छटपटाने लगी। तभी उसके
एक हाथ ने मेरी चूची दबा दी और मुझे पर झुक पड़ा। मैं अपना मुख बचाने के इधर उधर
घुमाने लगी। पर कब तक करती, मेरे मन में
तो तेज इच्छा होने लगी थी। उसने मेरे होंठ अपने होंठों में दबा लिये और उसे चूसने
लगा। मैं आनन्द के मारे तड़प उठी। मेरी चूत लप-लप करने लगी उसका लौड़ा खाने के लिये।
पर अपना पेटीकोट कैसे ऊपर उठाऊँ, वो क्या
समझेगा।
"भैया ना कर ऐसे, मैं तो लुट जाऊंगी... हाय रे कोई तो बचाओ
!" मैं धीरे से कराह उठी।
तभी उसने मेरा ब्लाऊज़ उतार कर एक तरफ़ डाल दिया।
"अब भाभी, यह पेटीकोट उतार कर अपनी मुनिया के दर्शन करा
दो !"
मैंने उसे जोर से धक्का दिया और यह भी ख्याल रखा कि उसे चोट
ना लग जाये। पर वो तो बहुत ही ताकतवर निकला। उसने खड़ा हो कर मुझे भी खड़ा कर दिया।
मेरा पेटीकोट उतार कर नीचे सरका दिया। अब मैं बिल्कुल नंगी थी, मेरे सारे बदन में सनसनी सी फ़ैल गई थी। इतने
समय से मैं चुदने का यत्न कर रही थी और यहां तो परोसी हुई थाली मिल गई। बस अब
स्वाद ले ले कर खाना था। उसने कहा,"भाभी, मेरा लौड़ा देखोगी ... ?"
"देख भैया, ये मेरा तूने क्या हाल कर दिया है, बस अब बहुत हो गया, मुझे कपड़े पहनने दे."
"तो यह मेरा लौड़ा कौन
खायेगा?" कहकर उसने अपना
पजामा उतार दिया।
आह ! दैया री, इतना मोटा
लण्ड। मुझे तो मजा आ जायेगा चुदवाने में। मेरे दिल की कली खिल उठी। मैंने मन ही मन
उसे मुख में चूस ही लिया। वो धीरे से मेरे पास आया और मुझे लिपटा लिया।
"भाभी, शरम ना करो, लड़की हो तो
चुदना ही पड़ेगा, भैया से चुदती हो, मुझसे भी फ़ड़वा लो !"
वो मुझे बुरी तरह चूसने और चूमने लगा। उसका कठोर लण्ड मेरी
चूत के नजदीक टकरा रहा था। मेरी चूत का द्वार बस उसे लपेटने के चक्कर में था। तभी
भैया का एक हाथ मेरे सर पर आ गया और उसने मुझे दबा कर नीचे बैठाना चालू कर दिया।
"आह, अब मेरा लण्ड चूस लो भाभी, शर्माओ मत, मुझे बहुत
मजा आ रहा है।"
मैं नीचे बैठती गई और फिर उसका मस्त लण्ड मेरे सामने झूमने
लगा। उसने अपनी कमर उछाल कर अपना लौड़ा मेरे मुख पर दबा दिया। मैंने जल्दी से उसका
लाल सुर्ख सुपाड़ा अपने मुख में ले लिया।
"अब चूस लो मेरी जान, साले को मस्त कर दो।"
मुझे भी जोश आने लगा। उसका कठोर लण्ड को मैं घुमा घुमाकर चूसने लगी। वो आहें भरता रहा।
"साली कैसा नाटक कर
रही थी और अब शानदार चुसाई ! मेरी रानी जोर लगा कर चूसो !"
तभी उसका रस मेरे मुख में निकलने लगा। मैं मदहोश सी उसे
पीने लगी। खूब ढेर सारा रस निकला था।
"अब तुम्हारी बारी है
भाभी, लेट जाओ चूत चुसाई के लिये।"
"बस हो गया ना अब, अब तुम जाओ।"
"अरे जाओ, मैं ऐसे नहीं छोड़ने वाला। लेट कर अपनी दोनों
टांगें चौड़ी करो !"
"मुझे शरम आती है
भैया!"
"ओये होये, मेरी रानी, जिसने की
शरम, उसके फ़ूटे करम ! चूत में से पानी नहीं
निकालना है क्या?"
मैंने अब अक्कू को अपने पास खींच लिया और उसकी चौड़ी छाती पर
सिर रख दिया। इतना कुछ हो गया तो अब मैं भी क्यों पीछे रहूँ। अब मन तो चुदवाने को
कर ही रहा है, देखना साले के लण्ड
को निचोड़ कर रख दूंगी। तबियत से चुदवाऊंगी ... इन बीस दिनों की कसर पूरी
निकालूंगी। मेरे समीप आते ही उसने मेरे शरीर को मसलना और दबाना शुरू कर दिया, बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया।
"भाभी फिर इतने नखरे
क्यूँ...?"
"साला मुझे रण्डी
समझता है क्या ... जो झट से झोली में आ जाऊं, नखरे तो
करने ही पड़ते हैं ना !"
"ऐ साली ! मां की
लौड़ी ! मुझे बेवकूफ़ बना दिया? तभी तो कहूँ
रोज रात को अपनी टांगें उठा अपना गुलाबी भोसड़ा मुझे दिखाती है, जब मैं हिम्मत करके चोदने आया तो, हाय, मम्मी, देय्या री चालू हो गई?"
"अब ज्यादा ना बोल, साला रोज सुबह मेरे नाम की मुठ्ठी मारता है, और फिर माल निकालता है वो कुछ नहीं?"
"भाभी, अब तुम्हारे नाम की ही तो मुठ्ठी मारता हू, साली तू सोलिड माल जो है !"
"सोलिड ...हुंह ...
अरे चल, अब मेरी चूत चूस के तो बता दे !"
उसने मुझे फ़ूल की तरह से उठा लिया और बिस्तर पर ऐसे लेटा
दिया कि वो बिस्तर के नीचे बैठ कर मेरी चूत को खुल कर चूस ले। वो मेरी टांगों के
मध्य आकर बैठ गया, मेरे दोनों पैर फ़ैला
दिए, मेरी गुलाबी चूत उसके सामने फ़ूल की तरह
खिल कर उसके सामने आ गई।
उसके दोनों हाथ मेरी दोनों चूचियों पर आ गये और हौले हौले
से उसे सहलाने और दबाने लगे थे। मेरी सांसें खुशी के मारे और उत्तेजना के मारे तेज
होने लगी। शरीर में मीठी मीठी सी जलन होने लगी। तभी मेरी गीली चूत की दरार पर उसकी
जीभ ने एक सड़ाका मारा। मेरा सारा रस उसकी जीभ पर आ गया। मेरी यौवन कलिका पर अब
उसने आक्रमण कर दिया। उसकी जीभ ने हल्का सा घुमा कर उसे सहला दिया। जैसे एक बिजली
का करण्ट लगा।
तभी मैं उछल पड़ी ! उसकी दो-दो अंगुलियाँ एक साथ मेरी चूत
में अन्दर सरक गई थी ! मेरा हाल बेहाल हो रहा था। कुछ देर अंगुलियाँ अन्दर बाहर
होती रही। मैं तड़प सी गई। उसकी अंगुलियों ने मेरी चूत के कपाटों को चौड़ा करके खोल
दिया, उसकी पलकों के बीच उसकी जीभ लहराने लगी।
फिर उसकी जीभ हौले से मेरी चूत में घुस गई, चूत में वो
लपपाती रही, उसकी अंगुलियां भी
अन्दर मस्ताती रही।
मैंने अपनी दोनों चूचियाँ जोर से दबा कर एक आह भरी और अपना
जवानी का सारा रस छोड़ दिया। कुछ देर तक तो वह चूत के साथ खेलता रहा फिर मैंने जोर
लगा उसे हटा दिया।
"क्या भाभी, कितना मजा आ रहा था !"
"आह देवर जी, मेरी बाहों में आ जाओ, मेरी चूचियों में अपना सर रख कर सो जाओ।"
मैं संतुष्टि से भर कर बोली।
मैं नींद के आगोश में बह निकली थी। पता नहीं रात को कितना
समय हुआ होगा, मेरी नींद खुल गई।
मुझे लगा मेरी गाण्ड में शायद तेल लगा हुआ था और मेरे पीछे मेरा देवर चिपका हुआ
था। उसका सुपारा मेरी गाण्ड के छेद में उतर चुका था।
"क्या कर रहे भैया?"
"मन नहीं मान रहा था, तुम्हारी गाण्ड से चिपका हुआ लण्ड बेईमान हो
गया था। और देखो तो तुम्हारा यह तेल भी यही पास में था, सो सोने पर सुहागा !"
"आह, सोने दो ना भैया, अब तो कभी भी कर लेना !"
"हाँ यार, बात तो तुम्हारी सही है, पर इस लौड़े को कौन समझाये?"
उसका लण्ड थोड़ा सा और अन्दर सरक आया।
ओह बाबा ! कितना मोटा लण्ड है ! पर लण्ड खाने का मजा तो
आयेगा ही !
मैंने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। उसका लण्ड काफ़ी अन्दर तक
उतर आया था। मुझे अब मजा आने लगा था।
"भाभी तुम तो खाई
खिलाई हो, दर्द तो नहीं हुआ?"
"देय्या री, गाण्ड में लण्ड तो कितनी ही बार खाई खिलाई है
तो उससे क्या हुआ, लण्ड तो साला
मुस्टण्डा है ना !"
मुझे पता था कि चिल्लाऊँगी तो उसे मजा आयेगा। वरना हो सकता
है वो बीच में ही छोड़ दे।
"ओह तो ये ले फिर
!"
"धीरे से राजा, देख फ़ाड़ ना देना मेरी गाण्ड !"
"अरे नहीं ना ... ये
और ले !"
"ओह मैया री, दर्द हो रहा है, जरा धीरे से !"
"ऐ तेरी मां का भोसड़ा
..."
उसने फिर जोर का झटका दिया। मैं आनन्द के मारे सिकुड़ सी गई।
वो समझा कि दर्द से दोहरी हो गई है। उसने मेरी खुली गाण्ड में अब जोर से पेल दिया।
मैं खुशी से चीख उठी।
"ओह मर गई राजा, क्या कर रहा है?"
"तेरी तो मां चोद
दूंगा आज मैं ! साली बड़ी अपनी गाण्ड मटकाती फ़िरती थी ना !"
आह ! साले जोर से गाण्ड को चोद दे !
वो क्या जाने मैं तो गाण्ड चुदवाने में माहिर हूँ। उसके
जोरदार झटके मुझे आनन्दित कर रहे थे। अविनाश यूँ तो नियम से मेरी गाण्ड चोदता था।
पर इस बार लण्ड थोड़ा मोटा होने के कारण अधिक मजा आ रहा था।
"बस कर राजा, मेरी गाण्ड की चटनी बन जायेगी, रहम कर भैया !"
वो तो और जोश में आ गया और मेरी गाण्ड को मस्ती से चोदने
लगा। तभी मस्ती में मेरी चूत से रस निकल पड़ा। कुछ देर में वो भी झड़ गया। उसके झड़ते
ही मैंने भी चीखना बन्द कर दिया। मैं हांफ़ती हुई अक्कू से लिपट गई।
"भैया, बहुत मस्त चोदता है रे तू तो ! रोज चोद दिया कर, मेरी गाण्ड को तो तूने मस्त कर दिया।"
वो मुझसे लिपट कर सो गया। मैं फिर सो गई। सुबह उठे तो देखा
आठ बज रहे थे। मैं जल्दी से उठने लग़ी। तभी अक्कू ने मुझे फिर से दबोच लिया।
"यह क्या कर रहे हो, अब तो चोदते ही रहना, चाय नाश्ता तो बना लें !"
"सुबह सुबह चुदने से
अच्छा शगुन होता है, चुदा लो !"
"अच्छा किसने कहा है
ऐसा?"
"... उह ... मैंने कहा है
ऐसा !"
मैं खिलखिलाती हुई उस पर गिर पड़ी।
"साला खुद ही कहता है
और फिर खुद चोद भी देता है !"
"तो और कौन चोदेगा
फिर?"
कह कर उसने मुझे अपने नीचे दबा लिया। मैं खिलखिला कर उसे
गुदगुदी करने लगी। उसका लण्ड बेहद तन्नाया हुआ था। लग रहा था कि चोदे बिना वो नहीं
मानने वाला है। पर सच भी तो है कि मुझे उसके लण्ड का मजा अपनी चूत में मिला ही
कहाँ था। सो मैंने अपनी टांगें धीरे से मुस्कराते हुए ऊपर उठा ली। वो मेरे ऊपर
छाने लगा, मैं उसके नीचे उसके
सुहाने से दबाव में दबती चली गई। फ़ूल सा उसका बदन लग रहा था। उसके होंठ मेरे होंठो
से मिल गये। मेरी दोनों चूचियाँ उसके कठोर हाथों से दबने लगी। लण्ड लेने के लिये
मेरी चूत ऊपर उठने लगी। उसका लण्ड मेरी चूत के आसपास ठोकर मारने लगा था। लण्ड के
आस पास फ़िसलन भरी जगह थी, बेचारा लण्ड कब तक
सम्भलता। लड़खड़ा कर वो खड्डे में गिरता चला गया। मेरी चूत ने उसके मोटे लण्ड को
प्यार से झेल लिया और आगोश में समा लिया। मेरे मुख से एक प्यार भरी सिसकी निकल
पड़ी। अक्कू के मुख से भी एक आनन्द भरी सीत्कार निकल गई।
अब अक्कू ने अपनी कमर का जोर लगा कर अपने लण्ड को चूत के
भीतर ठीक से सेट कर लिया और दबा कर लण्ड को अन्दर बाहर खींचने लगा। मेरी तो जैसे
जान ही निकली जा रही थी। कसावट भरी चुदाई मेरे मन को अन्दर तक आह्लादित कर रही थी।
उसका लण्ड खाने के लिये मेरी चूत भी बराबर उसका साथ उछल उछल कर दे रही थी। मैं
दूसरी दुनिया में खो चली थी ... लग रहा था कि स्वर्ग है तो मेरे राजा के लण्ड में
है। जितना चोदेगा, जितना अन्दर बाहर
जायेगा उतनी ही जन्नत नसीब होगी। आह, मेरा मन तो
बार बार झड़ने को होने लगा था। "मेरे राजा... चोदे जाओ ... बहुत मजा आ रहा है, मेरे राजा, मेरे भैया
!"
"रानी, मेरी अंजू, तुम रोज
चुदाया करो ना ... मेरी जान निकाल दिया करो... आह मेरी रानी !"
जाने कब तक हम लोग चुदाई करते रहे, झड़ जाते तो फिर से तैयार होकर चुदाई करने लग
जाते।
"ओह, बाबा, अब नहीं, अब बस करो, अब तो मैं
मर ही जाऊंगी !"
"हां भाभी ... मेरी
तो अब हिम्मत ही नहीं रही है।"
हम पर कमजोरी चढ़ गई थी। मुझे पता नहीं मैं कब फिर से सो गई
थी। पास ही में अक्कू भी पड़ा सो गया था। जब नींद खुली तो कमजोरी के मारे तो मुझसे
उठा ही नहीं जा रहा था। अक्कू उठा और नहा धो कर वापिस आया और मुझे ठीक से कपड़े
पहना कर कुछ खाने को लेने चला गया। उसके आने के बाद हम दोनों ने दूध पिया और एक एक
केला खा लिया। खाने से मुझे कुछ जान में जान आई । और मुझे फिर से ताजगी आते ही
नींद आ गई।
मुझे नींद ही नींद में अक्कू ने फिर मुझे कई बार चोद दिया।
पर मैं इस बार एक भी बार नहीं झड़ी। मुझे अब इतना चुदने के बाद बिलकुल मजा नहीं आ
रहा था। रात को दस बजे जब नींद खुली तो अक्कू ने मुझे थोड़ी सी शराब पिलाई। तब कहीं
जाकर मेरे शरीर में गर्मी आई। मेरी चूत और गाण्ड में बुरी तरह दर्द हो रहा था।
तौबा तौबा इस चुदाई से। मेरा तो बाजा ही बज गया था।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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