Sunday, July 20, 2014

FUN-MAZA-MASTI जीवन संगिनी -3

FUN-MAZA-MASTI

 जीवन संगिनी  -3

सबको प्यार भरी नमस्ते, इस नाचीज़ सीमा की खूबसूरत अदा से प्रणाम !

मैं पच्चीस साल की एक हसीन लड़की हूँ और बाकी सब आपने मेरी पिछली चुदाई की दास्तान में पढ़ ही लिया होगा किस तरह मैंने पैसों के लालच में आकर फुद्दू बन्दे से शादी कर ली।

अपने पति के गाँव के एक बाकें जवान से चुदकर मेरी वासना कुछ दिन शांत रही। पति का पास होना, न होना एक बराबर है। मैं सोचने लगी कि किसको बिस्तर का साथी बनाऊँ, कहीं इनको मालूम पड़ा तो घर से निकाल देंगे और मैं फिर से वही छोटे से घर में चली जाऊँगी।

मेरा जन्म दिन था, इन्होंने दोनों ऑफिस और कम्पनी मेरे नाम कर दी। मैं खुद को सुरक्षित महसूस करने लगी।

रात को ढीली लुल्ली से मुझे आधी अधूरी चोद कर अगले दिन शुक्ला जी फिर चले गए।

मैं जब अकेली घर में रूकती हूँ, रोज़ खाने के बाद छत पर टहलने, हवा खाने जाती हूँ सिर्फ ब्रा शॉट्स पहन कर ! मैंने अचानक से नीचे ध्यान दिया, शायद कोई मुझे देख रहा था। मैंने सैर ज़ारी रखी और फिर वो लड़का गली में सैर करने लगा, बार बार मुझे देख रहा था। मैं सैर छोड़ किनारे पर खड़ी उसको ताकने लगी। मैंने दोनों हाथों से ब्रा के ऊपर से सहलाया उसको उकसाने के लिए, उसने इधर उधर देखा और पजामा नीचे करके अपने लुल्ले को सहलाने लगा।

उसका विकराल लुल्ला देख कर मेरी चूत मचलने लगी। उसने पने लौड़े को सहला सहला कर खड़ा कर दिया। उसने वापस पजामे में डाला और सैर करने लगा।

मैं एक रण्डी की तरह चुदक्कड़ बन चुकी हूँ मुझे सिर्फ वासना दिखती है ! मैंने अपनी ब्रा उतारी और दोनों हाथ से अपने मस्त मम्मों को उठा उठा मसलने लगी। वो फिर से रुक गया, मुझे चोदने का गंदा इशारा करने लगा, अंगूठे और साथ वाली उंगली से मोरी बना कर दूसरे हाथ की उंगली उस मोरी में अन्दर बाहर करने लगा।

मुझे उसकी यह गंदी हरक़त बहुत पसंद आई। वो हमारे गेट पर ही खड़ा हो गया, मैंने उसको दिखा मम्मे खूब सहलाए, मैंने भी होंठ काटते हुए चबाते हुए चुदने का गंदा इशारा उसकी तरफ किया।

उसने उसको अंदर आने को कहा। मैं नीचे गई, इधर उधर देख वो जल्दी से मेरे घर में घुस गया और उसको अंदर लेकर मैंने दरवाज़ा लॉक किया और उसने मुझे बाँहों में समेट लिया।

हाय भाभी ! बहुत दिनों से तुझे पसंद करता था ! काश तेरी चूड़ियों वाली बाजू मेरा तकिया बनती !

"अब क्या हो गया? बना लो अपनी !"

उसने मेरी ब्रा खोल शॉर्ट्स उतार दिया और पैंटी के ऊपर से मेरी चूत को चूमने लगा। तभी उसने पैंटी सरका दी, मुझे बिस्तर पर लिटा कर जम कर मेरी चूत चाटी और मैंने बराबर उसका लुल्ला चूसा। यह कहानी आप अन्त र्वा स ना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

वो भी पागल हुए जा रहा था, उसका नौ इंच का लुल्ला काफी मोटा भी था, चूसने में तब थोड़ी परेशानी हुई, जब पूरा तन गया तो !

उसने मेरे मम्मे बारी बारी मुँह में लेकर खूब चूसे ! उस लड़के की उम्र तो चाहे कम थी, 18 का ही होगा लेकिन जान बहुत थी, उसने मुझे जम कर मसला और फिर उसने मुझे घोड़ी बना लिया, पहले मेरी चूत को और चाटा और फिर लंड घुसाने लगा। उससे घुस नहीं पाया, वो अनजान राही था, मंजिल हासिल करने में कच्चा था, मैंने हाथ ले जा कर उसके लुल्ले को पकड़ सही जगह टिका दिया और उसने झटका दिया, सर सर करता चीरता लंड घुसता चला गया मेरे !

दर्द से मेरी एक बार जान निकल गई लेकिन फिर उसी मोटे लुल्ले ने मुझे स्वर्ग दिखाया।

उसने अपने घर फ़ोन किया और बोला- मुझे सुनील मिल गया था और मैं उसके साथ हॉस्पिटल में हूँ, उसकी माँ बीमार है।

पूरी रात उसने मेरी चूत भजाई और एक बार फिर से मुझे तृप्त कर सुबह चला गया। मैं फिर से हल्की हल्की सी महसूस कर रही थी। लेकिन जब मुँह को खून लग जाता है तो वो नये नये शिकार ढूंढने निकलता है।

एक रात में कई बार चुदने के बाद मैंने उसको मैंने त्याग दिया क्योंकि मेरे खसम ने एक ड्राईवर मेरे आने जाने के लिए रख दिया।

काफी गठीला बदन था उसका, कड़क जवान था !

मैं कार में पीछे बैठने के बजाये उसके बराबर बैठती और मन में उसको बिस्तर पर ले जाने के सपने देखती।

अपने पति के गाँव के एक बाकें जवान से चुदकर मेरी वासना कुछ दिन शांत रही, उसके बाद गली के एक लड़के से तृप्ति हासिल करने के बाद मेरी नज़र अपने नये ड्राईवर पर थी। जब मैं उसके साथ बाहर जाती तो पीछे बैठने के बजाये उसके बराबर बैठती और मन में उसको बिस्तर पर ले जाने के सपने देखती और मुझे मालूम था किस तरह मर्द को लुभाया जाता है, मैं इस खेल की मंझी हुई खिलाड़िन बन चुकी थी, कभी उसके सामने अपनी चुन्नी सरका के अपने विशाल वक्ष के दर्शन करवा देती तो कभी छोटे कपड़े पहन घर में उसके कमरे तक किसी बहाने पहुँच जाती !

मुझे ऐसे कपड़ों में देख शाम का लंड ज़रूर खड़ा होता होगा।

मैंने एक दिन अपनी धोई हुई पैंटी सूखने के लिए पीछे तार पर डाल दी और अपने कमरे से खिड़की के ज़रिये उधर देखने लगी।

उसने सोचा मैडम सो गई है, वो धीरे धीरे आया और मेरी पैंटी उठा कमरे में लेकर गया। हैरानी तब हुई जब उसके साथ मैंने नौकर दीपक को निकलते देखा। उन्होंने पैंटी वापस वहीं टांग दी।

मैं थोड़ी देर बाद में उठी और पैंटी उतार लाई तो देखा कि चूत वाली जगह उनके माल से भीगी हुई थी। दो लौड़ों का पानी निकला था उस में ! मैं जुबान निकाल कर उस पर लगे माल को चाटने लगी, मेरे बदन में वासना की आग जलने लगी, उनकी ऐसी हरकत से तन बदन जलने लगा था।

रात हुई, दीपक खाना लगाकर वापस अपने कमरे में गया और मैं खाना खाकर अपने कमरे में गई और परदे सरका दिए। लाइट जलने दी। मैंने एक एक कर के अपने सारे कपड़े उतारे, एकदम नंगी होकर बिस्तर पर तकिया बाँहों में भरकर हाथ चूत के दाने को मसलते हुए 'शाम मुझे चोदो ! दीपक, मेरे राजा, मुझे चोदो !' कहने लगी।

मुझे मालूम था कि कोई मुझे बाहर से देख रहा है। मैंने टी.वी का रिमोट उठाया और डीवीडी पर ब्लू मूवी लगाईं और बिस्तर पर लौटने से पहले फुर्ती से पिछला दरवाज़ा खोल दिया। वो दोनों भाग नहीं पाए, उनके हाथों में उनके विकराल लौड़े तने देख मेरा बदन आहें भरने लगा।

मैंने बाहरी गुस्सा दिखाया उनको उकसाने के लिए- हरामजादो, मादरचोदो, शर्म नहीं आती, अपनी मालकिन को नंगी देखते हो? और उसकी पैंटी पर मुठ मारते हो? भागो, वरना जूती से मारूँगी कमीनो !

"साली रण्डी, छिनाल !" दीपक बोला- कुतिया न जाने कितनों से भोसड़ा मरवाती है!

मैंने करारा थप्पड़ उसके गाल पर मार दिया।

"हरामजादी, मुझे मारा?" उसने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया दोनों पाँव और हाथ बाँध दिए- कुतिया, दिखाते हैं तुझे कि चुदाई कैसे होती है !

दोनों नंगे हो गए, दीपक मेरी गोरी चूत चाटने लगा और शाम अपना लुल्ला चुसवाने लगा।

चपड़-चपड़ उसका लुल्ला चूसा, मुझे गर्म होती देख उन्होंने मुझे आज़ाद किया। मैंने नाटकीय रूप में उठने की भागने की कोशिश की दोनों ने मुझे वापस दबोच लिया और दीपक ने घोड़ी बना कर अपना बड़ा लुल्ला चूत में घुस दिया और झटके पर झटका लगाने लगा। दोनों दोपहर को झड़े थे इसलिए वक्त लगा रहे थे।

"साली रंडी, देख कितने मजे से आँखें मूँद रही है !"

"मादरचोद, बकवास छोड़, चूत मार मेरी !" मैं तड़फ़ते हुए बोली- उफ़... अह... उफ़... अह... अह... उइ... और... सी... सी... आई... उह... उन्ह... फक मी... जोर से...!

"साली छिनाल मालकिन है !"

"मादरचोदो, चोदो मुझे...!!"

दीपक ने लंड निकाल दिया और मेरी गांड पर रगड़ने लग गया, मुझे कुछ नियत खराब महसूस हुई। अभी कुछ कहती, करती, शाम ने मुझे आगे से कस लिया और दीपक ने मेरी चूत से गीला हुआ लंड मेरी गांड में घुस दिया।

मैं चिल्लाने लगी, जोर जोर से चीखें मारने लगी, दे दोनो मुश्टण्डे हँसते रहे। दीपक ने धीरे धीरे पूरा लंड मेरी गांड में उतार दिया।

मैं पहली बार गाण्ड मरवा रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

अचानक उसने अपना लौड़ा निकाल लिया तो मुझे सुख का सांस आया लेकिन उनका इरादा देख मैं डर गई।

दीपक सीधे लेट गया मुझे उसकी तरफ पीठ करके लंड डलवाने को कहा।

मैंने मना किया तो करारा थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा। मैं उस पर बैठ गई, पूरा लिंग मेरी गान्ड में घुस चुका था और ऊपर से शाम आया उसने अपना लंड मेरी चूत को फैला कर घुसा दिया।

"हाय ! तौबा ! मारोगे क्या ! मैं मर जाऊँगी !"

दोनों पेलने पर उतारू थे और धीरे धीरे मुझे इस चुदाई का बहुत मजा आने लगा। वे दोनों फाड़ फाड़ मेरी गांड चूत मार रहे थे। पहले दीपक झड़ा तो कुछ समय में शाम की पिचकारी मेरे अन्दर गर्माहट देने लगी।

दोनों काफ़ी देर तक मुझ नंगी को चूमते रहे थे। सुबह के ढाई बजे तक मेरी गेम बजाई और आज एक नया अनुभव प्राप्त हुआ।

फिर शाम और दीपक अक्सर मुझे मसलने लगे, मुझे उन दोनों के बाँहों में जाना बहुत सुखदायक लगने लगा था।

मैं खुश थी, घर में लंड मिल रहे थे। तभी एक घटना घटी, हमारी कार का एक्सीडेंट हुआ... !!
 











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