Sunday, July 20, 2014

FUN-MAZA-MASTI जीवन संगिनी -2

FUN-MAZA-MASTI

 जीवन संगिनी  -2
सबको प्यार भरी नमस्ते, इस नाचीज़ सीमा की खूबसूरत अदा से प्रणाम !

मैं पच्चीस साल की एक हसीन लड़की हूँ और बाकी सब आपने मेरी पिछली चुदाई की दास्तान में पढ़ ही लिया होगा किस तरह मैंने पैसों के लालच में आकर फुद्दू बन्दे से शादी कर ली।

चलो एक बात तो थी ! ना वो मुझसे हिसाब लेता था ना किसी चीज पर पैसे खर्चने से रोकता था।

और मुझे क्या चाहिए था, धीरे धीरे मेरे अंदर अमीर औरतों वाले गुण आने लगे, गाँव में हमारी काफी ज़मीन है, पति बिज़नेस की वजह से उस ज़मीन को ठेके पर दे देते थे, अब उसके ठेके को इकट्ठे करने का ज़िम्मा मेरा लगाया था। काफी दिन ऐसे घर में रहकर बोर होती, दीवारें और नौकर दिखते !

ईंट के भट्ठे का ऑफिस मुझे दे दिया, उसको मैं हैंडल करने लगी, घर से बाहर निकलने का मौका मिलने लगा। बाकी सब ठीक था, बस चुदाई के मामले में मेरी हालत काफी बुरी हो चुकी थी, ढंग से भरपूर चुदाई के लिए मरी जा रही थी, चूत फुदक फुदक जाती थी, ऊपर से ठेके का सीजन था और भट्ठे का भी ऑफिस था। मैं अपने ऑफिस में बैठी थी कि किसी ने दरवाज़ा खटखटाया।

"खुला है, आ जाओ !"

अंदर मुझे देख वो लड़का थोड़ा हैरान रह गया क्यूंकि मुंशी ने काम छोड़ दिया था। मैंने भरपूर गम्भीर नज़र से उसका जायजा लिया। रंग का ज़रूर पका हुआ था लेकिन उसका गठीला शरीर, उसकी चौड़ी छाती !

उसने भी मुझे भरपूर गहराई से नाप लिया और सामने बैठा, बोला- मैडम आप?

"हाँ मैंने ऑफिस सम्भाल लिया है, घर में बोर होती थी, इन्होंने मुझे ऑफिस सौंप दिया !"

"मैं आपके पति के गाँव से हूँ !"

"ओह !"

"भाई जी कहाँ हैं?"

"वो इंडिया से बाहर गए हैं !"

"मैं गुज़र रहा था, सोचा मिलता जाऊँ, कल ठेका दे जाऊँगा यहीं पर !"

"नहीं नहीं, कल मैं नहीं आऊँगी, शाम को घर ही आ जाना, मैं शाम को लौटूंगी !"

"शाम को मैडम मुझे वापस बहुत दूर जाना होता है !"

"कोई बात नहीं, आओ तो !" मैंने मुस्कान बिखेरी।और वो चला गया।

अगली शाम ठीक साढ़े छह बजे वो आया, मैंने स्लीवेलेस टॉप और शॉर्ट्स पहनी थी।

"आ गए? बैठो !"

"यह लो मैडम, ठेका ! मुझे निकलना है।"

"अरे रुक जाओ ना, इस वक़्त कहाँ लौटोगे? तुम्हारे भाई का घर है इतना बड़ा ! मैं नहीं भेजूँगी ! कल को वे मुझे गुस्सा होंगे !"

"चलो ठीक है !"

मैंने उसको अपने साथ वाला कमरा दिया, बीच में सांझा बाथरूम अटैच था। बाहर बैठ कर वोदका लेने लगी।

वो वापस लौटा तो बनियान और पेंट में था, उसकी चौड़ी छाती, घने बाल देख कर मेरा जी मचलने लगा।

"क्या लोगे, वोदका या व्हिस्की?"

वो बोला- हमें तो व्हिस्की ही भाती है।

मैंने उसके लिए मोटा पैग बनाया, उसको थमाने समय हाथ उसके हाथ से छुहा दिया। उसने मेरे वापस बैठने से पहले उसने पैग डकार लिया। मैंने थोड़ी देर बाद दूसरा बना दिया, ऐसे तीन पैग जाने के बाद उसको काफी नशा होने लगा था।

मैंने नौकर से कहा- खाना टेबल पर लगाओ और जाकर सो जाओ !

नौकर के जाते ही मैंने दरवाज़े बंद किये, उसके साथ सट कर बैठ गई।

वो बोला- पैग बना जान !

सुन कर मैं हैरान हो गई, पर बोली- अभी लो मेरे सरताज !

अब यह सुन उसकी थोड़ी उतरने लगी। मैंने पल्लू सरका दिया और कयामत बिखेर दी उस पर !

मैं उठकर गई, बिना पैंटी बिना ब्रा गुलाबी रंग की नाईटी पहनी उसके पास आकर बैठ गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

"हाय क्या लग रही हो !"

उसकी छाती पर हाथ फेरते हुए मैंने कहा- तुम कौन सा कम लग रहे हो?

कहते हुए मैंने उसके गले में बाँहों का हार डाल दिया, उसने मुझे कस कर सीने से लगाया, मैंने उसकी पैंट भी उतार दी, अंडरवियर के ऊपर से उसके आधे खड़े लंड को सहलाया तो वो सांप फ़ुंकारें मारने लगा। मैंने भी वोडका छोड़ एक पैग व्हिस्की का खींचा।

वो बोला- आज मेरे साथ लेटोगी रानी?

"कमबख्त जवानी नहीं रहने दे रही राजा ! इसलिए तुझे जाने नहीं दिया !" मैंने उसका अंडरवियर भी सरका दिया, अपनी नाईटी उतार फेंकी। मुझे नंगी देख उसको मेरे हुस्न का नशा होने लगा। उसके आगे आगे उलटी चलती हुई उसको पीछे आने का इशारा करती बेडरूम में ले गई और जाकर बिस्तर पर उलटी लेट गई।

वो आकर मुझ पर चढ़ गया, उसका लंड मेरे चूतड़ों की दरार पर चुभ रहा था। उसने मुझे सीधे किया और मेरे मम्मे चूसने लगा।

मैं पागल हुए जा रही थी, मैंने उसको हटाया और उसके लंड को मुँह में ले लिया। शायद पहली बार उसने किसी के मुँह में अपना लौड़ा दिया था।

कुछ देर चूसने के बाद सीधी लेटी, टाँगें खोल उसने निशाने पर अपना आठ इंच का लंड रखा और धकेलता चला गया। उसने मेरी हड्डी से हड्डी बजा दी। जब तूफ़ान थमा तो मैं तृप्त थी।

पूरी रात खेल चला, उसने मुझे जी भर कर भोगा, मुझे आनन्द विभोर कर दिया। सुबह नींद खुली तो मैं और वो नंगे एक दूसरे की बाँहों में थे।

मैंने उसको जल्दी से उठाया, कहा- नौकर के आने का समय है, अब जाओ !

"अब किस दिन आऊँ?"

"मैं तुझे फ़ोन करुँगी !" कह उसको भेज दिया। मैं बहुत हल्का महसूस कर रही थी।

तीन दिन ही बीते कि मेरी अन्तर्वासना की आग फिर से हवा पकड़ने से मचलने लगी।











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