FUN-MAZA-MASTI
‘मैं सब
समझती हूँ…
चालाक कहीं
का..! तुझे
सब मालूम
है फिर
भी अंजान
बनता है।’
आंटी लजाते
हुए बोलीं।
‘लगता है तुझे पढ़ना-लिखना नहीं है, मैं सोने जा रही हूँ।’
‘लेकिन अंकल ने तो आपको नहीं बुलाया।’ मैंने शरारत भरे स्वर में पूछा।
आंटी जबाब में सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपने कमरे की ओर चल दीं।
उनकी मस्तानी चाल, मटकते हुए भारी चूतड़ और दोनों चूतड़ों के बीच में पिस रही बेचारी पैन्टी को देख कर मेरे लंड का बुरा हाल था।
अगले दिन अंकल के ऑफिस जाने के बाद आंटी और मैं बाल्कनी में बैठे चाय पी रहे थे। इतने में सामने सड़क पर एक गाय गुज़री, उसके पीछे-पीछे एक भारी-भरकम साण्ड हुंकार भरता हुआ आ रहा था। साण्ड का लम्बा मोटा लंड नीचे झूल रहा था।
साण्ड के लंड को देख कर आंटी के माथे पर पसीना छलक आया। वो उसके लम्बे-तगड़े लंड से नज़रें ना हटा सकीं।
इतने में साण्ड ने ज़ोर से हुंकार भरी और गाय पर चढ़ कर उसकी बुर में पूरा का पूरा लंड घुसेड़ दिया।
यह देख कर आंटी के मुँह से सिसकारी निकल गई।
वो साण्ड की रास-लीला और ना देख सकीं और शर्म के मारे अन्दर भाग गईं।
मैं भी पीछे-पीछे अन्दर गया। आंटी रसोई में थीं।
मैंने बहुत ही भोले स्वर में पूछा- आंटी वो साण्ड क्या कर रहा था?
‘तुझे नहीं मालूम?’ आंटी ने झूटा गुस्सा दिखाते हुए कहा।
‘तुम्हारी कसम आंटी मुझे कैसे मालूम होगा? बताइए ना..!’
हालाँकि आंटी को अच्छी तरह पता था कि मैं जानबूझ कर अंजान बन रहा हूँ लेकिन अब उनको भी मेरे साथ ऐसी बातें करने में मज़ा आने लगा था।
वो मुझे समझाते हुए बोलीं- देख राज, सांड़ वही काम कर रहा था जो एक मर्द अपनी बीवी के साथ शादी के बाद करता है।
‘आपका मतलब है कि मर्द भी अपनी बीवी पर ऐसे ही चढ़ता है?’
‘हाय राम..! कैसे-कैसे सवाल पूछता है। हाँ… और क्या ऐसे ही चढ़ता है।’
‘ओह.. अब समझा, अंकल आपको रात में क्यों बुलाते हैं।’
‘चुप नालायक, ऐसा तो सभी शादीशुदा लोग करते हैं।’
‘जिनकी शादी नहीं हुई वो नहीं कर सकते?’
‘क्यों नहीं कर सकते? वो भी कर सकते हैं, लेकिन…!’
मैं तपाक से बीच में ही बोल पड़ा- वाह आंटी, तब तो मैं भी आप पर चढ़…’
आंटी ने एकदम मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और बोलीं- चुप.. जा यहाँ से.. और मुझे काम करने दे।
और यह कह कर उन्होंने मुझे रसोई से बाहर धकेल दिया।
इस घटना के दो दिन के बाद की बात आई।
मैं छत पर पढ़ने जा रहा था, आंटी के कमरे के सामने से गुज़रते समय मैंने उनके कमरे में झाँका।
आंटी अपने बिस्तर पर लेटी हुई कोई उपन्यास पढ़ रही थीं, उनकी नाइटी घुटनों तक ऊपर चढ़ी हुई थी। नाइटी इस प्रकार से उठी हुई थी कि आंटी की गोरी-गोरी टाँगें, मोटी मांसल जांघें और जांघों के बीच में सफेद रंग की पैन्टी साफ़ नज़र आ रही थी।
मेरे कदम एकदम रुक गए और इस खूबसूरत नज़ारे को देखने के लिए मैं छुप कर खिड़की से झाँकने लगा।
यह पैन्टी भी उतनी ही छोटी थी और बड़ी मुश्किल से आंटी की चूत को ढक रही थी।
आंटी की घनी काली झांटें दोनों तरफ से कच्छी के बाहर निकल रही थीं। वो बेचारी छोटी सी पैन्टी आंटी की फूली हुई बुर के उभार से बस किसी तरह चिपकी हुई थी।
बुर की दोनों फांकों के बीच में दबी हुई पैन्टी ऐसे लग रही थी जैसे हँसते वक़्त आंटी के गालों में डिंपल पड़ जाते हैं।
अचानक आंटी की नज़र मुझ पर पड़ गई, उन्होंने झट से टाँगें नीचे करते हुए पूछा- क्या देख रहा है राज?
चोरी पकड़े जाने के कारण मैं सकपका गया और ‘कुछ नहीं आंटी’ कहता हुआ छत पर भाग गया।
अब तो रात-दिन आंटी की सफेद पैन्टी में छिपी हुई बुर की याद सताने लगी।
मेरे दिल में विचार आया, क्यों ना आंटी को अपने विशाल लंड के दर्शन कराऊँ।
आंटी रोज़ सवेरे मुझे दूध का गिलास देने मेरे कमरे में आती थीं।
एक दिन सवेरे मैं तौलिया लपेट कर अखबार पढ़ने का नाटक करते हुए इस प्रकार बैठ गया कि सामने से आती हुई आंटी को मेरा लटकता हुआ लंड नज़र आ जाए।
जैसे ही मुझे आंटी के आने की आहट सुनाई दी, मैंने अखबार अपने चेहरे के सामने कर लिया। टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर लिया ताकि आंटी को पूरे लंड के आसानी से दर्शन हो सकें और अखबार के बीच के छेद से आंटी की प्रतिक्रिया देखने के लिए तैयार हो गया।
जैसे ही आंटी दूध का गिलास लेकर मेरे कमरे में दाखिल हुईं, उनकी नज़र तौलिए के नीचे से झाँकते मेरे 7-8 इंच लम्बे मोटे हथौड़े की तरह लटकते हुए लंड पर पड़ गई।
वो सकपका कर रुक गईं, आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं और उन्होंने अपना निचला होंठ दाँतों से दबा लिया। एक मिनट बाद उन्होंने होश संभाला और जल्दी से गिलास रख कर भाग गईं।
करीब 5 मिनट के बाद फिर आंटी के कदमों की आहट सुनाई दी।
मैंने झट से पहले वाला आसन धारण कर लिया और सोचने लगा, आंटी अब क्या करने आ रही हैं।
अखबार के छेद में से मैंने देखा आंटी हाथ में पोंछे का कपड़ा लेकर अन्दर आईं और मुझसे करीब 5 फुट दूर ज़मीन पर बैठ कर कुछ साफ़ करने का नाटक करने लगीं।
वो नीचे बैठ कर तौलिए के नीचे लटकता हुआ लंड ठीक से देखना चाहती थीं।
मैंने भी अपनी टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर दिया, जिससे आंटी को मेरे विशाल लंड के साथ मेरे अन्डकोषों के भी दर्शन अच्छी तरह से हो जाएँ।
आंटी की आँखें एकटक मेरे लंड पर लगी हुई थीं, उन्होंने अपने होंठ दाँतों से इतनी ज़ोर से काट लिए कि उनमें थोड़ा सा खून निकल आया, उनके माथे पर पसीने की बूँदें उभर आईं।
आंटी की यह हालत देख कर मेरे लंड ने फिर से हरकत शुरू कर दी।
मैंने बिना अखबार चेहरे से हटाए आंटी से पूछा- क्या बात है आंटी.. क्या कर रही हो?
आंटी हड़बड़ा कर बोलीं- कुछ नहीं, थोड़ा दूध गिर गया था.. उसे साफ़ कर रही हूँ।’
यह कह कर वो जल्दी से उठ कर चली गईं।
मैं मन ही मन मुस्काया। अब तो जैसे मुझे आंटी की चूत के सपने आते हैं, वैसे ही आंटी को भी मेरे मस्ताने लंड के सपने आएँगे।
लेकिन अब आंटी एक कदम आगे थीं। उसने तो मेरे लंड के दर्शन कर लिए थे, पर मैंने अभी तक उनकी चूत को नहीं देखा था।
मुझे मालूम था कि आंटी रोज़ हमारे जाने के बाद घर का सारा काम निपटा कर नहाने जाती थीं। मैंने आंटी की चूत देखने की योजना बनाई।
एक दिन मैं कॉलेज जाते समय अपने कमरे की खिड़की खुली छोड़ गया।
उस दिन कॉलेज से मैं जल्दी वापस आ गया, घर का दरवाज़ा अन्दर से बन्द था। मैं चुपके से अपनी खिड़की के रास्ते अपने कमरे में दाखिल हो गया।
आंटी रसोई में काम कर रही थीं। काफ़ी देर इंतज़ार करने के बाद आख़िर मेरी तपस्या रंग लाई, आंटी अपने कमरे में आईं। वो मस्ती में कुछ गुनगुना रही थीं। देखते ही देखते उन्होंने अपनी नाइटी उतार दी। अब वो सिर्फ़ आसमानी रंग की ब्रा और पैन्टी में थीं।
मेरा लंड हुंकार भरने लगा।
क्या बला की सुन्दर थीं। गोरा बदन, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए भारी चूतड़ और मोटी जांघें किसी नामर्द का भी लंड खड़ा कर दें।
आंटी की बड़ी-बड़ी चूचियाँ तो ब्रा में समा नहीं पा रही थीं।
फिर वही छोटी सी पैन्टी, जिसने मेरी रातों की नींद उड़ा रखी थी, आंटी के भारी चूतड़ उनकी पैन्टी से बाहर निकल रहे थे, दोनों चूतड़ों का एक चौथाई से भी कम भाग पैन्टी में था। बेचारी पैन्टी आंटी के चूतड़ों के बीच की दरार में घुसने की कोशिश कर रही थी।
उनकी जांघों के बीच में पैन्टी से ढकी फूली हुई चूत का उभार तो मेरे दिल-ओ-दिमाग़ को पागल बना रहा था।
मैं साँस थामे इंतज़ार कर रहा था कि कब आंटी पैन्टी उतारें और मैं उनकी चूत के दर्शन करूँ। आंटी शीशे के सामने खड़ी होकर अपने को निहार रही थीं, उनकी पीठ मेरी तरफ थी।
अचानक आंटी ने अपनी ब्रा और फिर पैन्टी उतार कर वहीं ज़मीन पर फेंक दी।
अब तो उनके नंगे चौड़े और गोल-गोल चूतड़ देख कर मेरा लंड बिल्कुल झड़ने वाला हो गया।
मैंने मन में सोचा कि अंकल ज़रूर आंटी की चूत पीछे से भी लेते होंगे और क्या कभी अंकल ने आंटी की गाण्ड मारी होगी?
मुझे ऐसी लाजवाब औरत की गाण्ड मिल जाए तो मैं स्वर्ग जाने से भी इन्कार कर दूँ।
लेकिन मेरी आज की योजना पर तब पानी फिर गया, जब आंटी बिना मेरी तरफ़ घूमे गुसलखाने में नहाने चली गईं।
उनकी ब्रा और पैन्टी वहीं ज़मीन पर पड़ी थी।
मैं जल्दी से आंटी के कमरे में गया और उनकी पैन्टी उठा लाया।
मैंने उनकी पैन्टी को सूँघा।
आंटी की चूत की महक इतनी मादक थी कि मेरा लंड और ना सहन कर सका और झड़ गया।
मैंने उस पैन्टी को अपने पास ही रख लिया और आंटी के बाथरूम से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगा।
सोचा जब आंटी नहा कर नंगी बाहर निकलेगीं तो उनकी चूत के दर्शन हो ही जाएँगे।
लेकिन किस्मत ने फिर साथ नहीं दिया, आंटी जब नहा कर बाहर निकलीं तो उन्होंने काले रंग की पैन्टी और ब्रा पहन रखी थी।
आंटी कमरे में अपनी पैन्टी गायब पाकर सोच में पड़ गईं।
अचानक उन्होंने जल्दी से नाइटी पहन ली और मेरे कमरे की तरफ आईं, शायद उन्हें शक हो गया कि यह काम मेरे अलावा और कोई नहीं कर सकता।
मैं झट से अपने बिस्तर पर ऐसे लेट गया जैसे नींद में हूँ।
आंटी मुझे कमरे में देखकर सकपका गईं।
मुझे हिलाते हुए बोलीं- राज उठ… तू अन्दर कैसे आया?
मैंने आँखें मलते हुए उठने का नाटक करते हुए कहा- क्या करूँ आंटी आज कॉलेज जल्दी बन्द हो गया, घर का दरवाज़ा बन्द था बहुत खटखटाने पर जब आपने नहीं खोला तो मैं अपनी खिड़की के रास्ते अन्दर आ गया।
‘तू कितनी देर से अन्दर है?’
‘यही कोई एक घंटे से।’
अब तो आंटी को शक हो गया कि शायद मैंने उन्हें नंगी देख लिया था और फिर उनकी पैन्टी भी तो गायब थी।
आंटी ने शरमाते हुए पूछा- कहीं तूने मेरे कमरे से कोई चीज़ तो नहीं उठाई?
‘अरे हाँ आंटी.. जब मैं आया तो मैंने देखा कि कुछ कपड़े ज़मीन पर पड़े हैं। मैंने उन्हें उठा लिया।’
आंटी का चेहरा सुर्ख हो गया, हिचकिचाते हुए बोलीं- वापस कर मेरे कपड़े।
मैं तकिये के नीचे से आंटी की पैन्टी निकालते हुए बोला- आंटी, यह तो अब मैं वापस नहीं दूँगा।
‘क्यों अब तू औरतों की पैन्टी पहनना चाहता है?’
‘नहीं आंटी…’ मैं पैन्टी को सूंघता हुआ बोला- इसकी मादक खुश्बू ने तो मुझे दीवाना बना दिया है।
‘अरे पगला है? यह तो मैंने कल से पहनी हुई थी… धोने तो दे।’
‘नहीं आंटी धोने से तो इसमें से आपकी महक निकल जाएगी… मैं इसे ऐसे ही रखना चाहता हूँ।’
‘धत्त पागल… अच्छा तू कब से घर में है?’ आंटी शायद जानना चाहती थीं कि कहीं मैंने उनको नंगी तो नहीं देख लिया।
मैंने कहा- आंटी मैं जानता हूँ कि आप क्या जानना चाहती हैं… मेरी ग़लती क्या है, जब मैं घर आया तो आप बिल्कुल नंगी शीशे के सामने खड़ी थीं लेकिन आपको सामने से नहीं देख सका। सच कहूँ आंटी, आप बिल्कुल नंगी होकर बहुत ही सुन्दर लग रही थीं। पतली कमर, भारी और गोल-गोल मस्त चूतड़ और गदराई हुई जांघें देख कर तो बड़े से बड़े ब्रह्मचारी की नियत भी खराब हो जाए।
आंटी शर्म से लाल हो उठीं।
‘हाय राम तुझे शर्म नहीं आती… कहीं तेरी भी नियत तो नहीं खराब हो गई है?’
‘आपको नंगी देख कर किसकी नियत खराब नहीं होगी?’
‘हे भगवान, आज तेरे अंकल से तेरी शादी की बात करनी ही पड़ेगी।’
इससे पहले मैं कुछ और कहता वो अपने कमरे में भाग गईं।
अंकल को 6 महीने के लिए किसी ट्रेनिंग के लिए मुंबई जाना था, आज उनका आखिरी दिन था, आज रात को तो आंटी की चुदाई निश्चित ही होनी थी।
रात को आंटी नींद आने का बहाना बना कर जल्दी ही अपने कमरे में चली गईं।
उनके कमरे में जाते ही लाइट बंद हो गई, मैं समझ गया कि चुदाई शुरू होने में अब देर नहीं।
मैं एक बार फिर चुपके से आंटी के दरवाज़े पर कान लगा कर खड़ा हो गया, अन्दर से मुझे अंकल-आंटी की बातें साफ सुनाई दे रही थीं।
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आंटी के साथ मस्तियाँ-2
‘चुप नालायक,
तू कुछ
ज़्यादा ही
समझदार हो
गया है,
जब तेरी
शादी होगी
ना तो
सब अपने
आप पता
लग जाएगा।
लगता है
तेरी शादी
जल्दी ही
करनी होगी,
शैतान होता
जा रहा
है।’
‘जिसकी इतनी सुन्दर आंटी हो वो किसी दूसरी लड़की के बारे में क्यों सोचने लगा?’
‘ओह हो..! अब तुझे कैसे समझाऊँ? देख राज, जिन बातों के बारे में तुझे अपनी बीवी से पता लग सकता है और जो चीज़ तेरी बीवी तुझे दे सकती है, वो आंटी तो नहीं दे सकती ना? इसी लिए कह रही हूँ शादी कर ले।’
‘आंटी ऐसी क्या चीज़ है जो सिर्फ़ बीवी दे सकती है और आप नहीं दे सकती?’ मैंने बहुत अंजान बनते हुए पूछा। अब तो मेरा लंड फनफनाने लगा था।
‘जिसकी इतनी सुन्दर आंटी हो वो किसी दूसरी लड़की के बारे में क्यों सोचने लगा?’
‘ओह हो..! अब तुझे कैसे समझाऊँ? देख राज, जिन बातों के बारे में तुझे अपनी बीवी से पता लग सकता है और जो चीज़ तेरी बीवी तुझे दे सकती है, वो आंटी तो नहीं दे सकती ना? इसी लिए कह रही हूँ शादी कर ले।’
‘आंटी ऐसी क्या चीज़ है जो सिर्फ़ बीवी दे सकती है और आप नहीं दे सकती?’ मैंने बहुत अंजान बनते हुए पूछा। अब तो मेरा लंड फनफनाने लगा था।
‘लगता है तुझे पढ़ना-लिखना नहीं है, मैं सोने जा रही हूँ।’
‘लेकिन अंकल ने तो आपको नहीं बुलाया।’ मैंने शरारत भरे स्वर में पूछा।
आंटी जबाब में सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपने कमरे की ओर चल दीं।
उनकी मस्तानी चाल, मटकते हुए भारी चूतड़ और दोनों चूतड़ों के बीच में पिस रही बेचारी पैन्टी को देख कर मेरे लंड का बुरा हाल था।
अगले दिन अंकल के ऑफिस जाने के बाद आंटी और मैं बाल्कनी में बैठे चाय पी रहे थे। इतने में सामने सड़क पर एक गाय गुज़री, उसके पीछे-पीछे एक भारी-भरकम साण्ड हुंकार भरता हुआ आ रहा था। साण्ड का लम्बा मोटा लंड नीचे झूल रहा था।
साण्ड के लंड को देख कर आंटी के माथे पर पसीना छलक आया। वो उसके लम्बे-तगड़े लंड से नज़रें ना हटा सकीं।
इतने में साण्ड ने ज़ोर से हुंकार भरी और गाय पर चढ़ कर उसकी बुर में पूरा का पूरा लंड घुसेड़ दिया।
यह देख कर आंटी के मुँह से सिसकारी निकल गई।
वो साण्ड की रास-लीला और ना देख सकीं और शर्म के मारे अन्दर भाग गईं।
मैं भी पीछे-पीछे अन्दर गया। आंटी रसोई में थीं।
मैंने बहुत ही भोले स्वर में पूछा- आंटी वो साण्ड क्या कर रहा था?
‘तुझे नहीं मालूम?’ आंटी ने झूटा गुस्सा दिखाते हुए कहा।
‘तुम्हारी कसम आंटी मुझे कैसे मालूम होगा? बताइए ना..!’
हालाँकि आंटी को अच्छी तरह पता था कि मैं जानबूझ कर अंजान बन रहा हूँ लेकिन अब उनको भी मेरे साथ ऐसी बातें करने में मज़ा आने लगा था।
वो मुझे समझाते हुए बोलीं- देख राज, सांड़ वही काम कर रहा था जो एक मर्द अपनी बीवी के साथ शादी के बाद करता है।
‘आपका मतलब है कि मर्द भी अपनी बीवी पर ऐसे ही चढ़ता है?’
‘हाय राम..! कैसे-कैसे सवाल पूछता है। हाँ… और क्या ऐसे ही चढ़ता है।’
‘ओह.. अब समझा, अंकल आपको रात में क्यों बुलाते हैं।’
‘चुप नालायक, ऐसा तो सभी शादीशुदा लोग करते हैं।’
‘जिनकी शादी नहीं हुई वो नहीं कर सकते?’
‘क्यों नहीं कर सकते? वो भी कर सकते हैं, लेकिन…!’
मैं तपाक से बीच में ही बोल पड़ा- वाह आंटी, तब तो मैं भी आप पर चढ़…’
आंटी ने एकदम मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और बोलीं- चुप.. जा यहाँ से.. और मुझे काम करने दे।
और यह कह कर उन्होंने मुझे रसोई से बाहर धकेल दिया।
इस घटना के दो दिन के बाद की बात आई।
मैं छत पर पढ़ने जा रहा था, आंटी के कमरे के सामने से गुज़रते समय मैंने उनके कमरे में झाँका।
आंटी अपने बिस्तर पर लेटी हुई कोई उपन्यास पढ़ रही थीं, उनकी नाइटी घुटनों तक ऊपर चढ़ी हुई थी। नाइटी इस प्रकार से उठी हुई थी कि आंटी की गोरी-गोरी टाँगें, मोटी मांसल जांघें और जांघों के बीच में सफेद रंग की पैन्टी साफ़ नज़र आ रही थी।
मेरे कदम एकदम रुक गए और इस खूबसूरत नज़ारे को देखने के लिए मैं छुप कर खिड़की से झाँकने लगा।
यह पैन्टी भी उतनी ही छोटी थी और बड़ी मुश्किल से आंटी की चूत को ढक रही थी।
आंटी की घनी काली झांटें दोनों तरफ से कच्छी के बाहर निकल रही थीं। वो बेचारी छोटी सी पैन्टी आंटी की फूली हुई बुर के उभार से बस किसी तरह चिपकी हुई थी।
बुर की दोनों फांकों के बीच में दबी हुई पैन्टी ऐसे लग रही थी जैसे हँसते वक़्त आंटी के गालों में डिंपल पड़ जाते हैं।
अचानक आंटी की नज़र मुझ पर पड़ गई, उन्होंने झट से टाँगें नीचे करते हुए पूछा- क्या देख रहा है राज?
चोरी पकड़े जाने के कारण मैं सकपका गया और ‘कुछ नहीं आंटी’ कहता हुआ छत पर भाग गया।
अब तो रात-दिन आंटी की सफेद पैन्टी में छिपी हुई बुर की याद सताने लगी।
मेरे दिल में विचार आया, क्यों ना आंटी को अपने विशाल लंड के दर्शन कराऊँ।
आंटी रोज़ सवेरे मुझे दूध का गिलास देने मेरे कमरे में आती थीं।
एक दिन सवेरे मैं तौलिया लपेट कर अखबार पढ़ने का नाटक करते हुए इस प्रकार बैठ गया कि सामने से आती हुई आंटी को मेरा लटकता हुआ लंड नज़र आ जाए।
जैसे ही मुझे आंटी के आने की आहट सुनाई दी, मैंने अखबार अपने चेहरे के सामने कर लिया। टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर लिया ताकि आंटी को पूरे लंड के आसानी से दर्शन हो सकें और अखबार के बीच के छेद से आंटी की प्रतिक्रिया देखने के लिए तैयार हो गया।
जैसे ही आंटी दूध का गिलास लेकर मेरे कमरे में दाखिल हुईं, उनकी नज़र तौलिए के नीचे से झाँकते मेरे 7-8 इंच लम्बे मोटे हथौड़े की तरह लटकते हुए लंड पर पड़ गई।
वो सकपका कर रुक गईं, आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं और उन्होंने अपना निचला होंठ दाँतों से दबा लिया। एक मिनट बाद उन्होंने होश संभाला और जल्दी से गिलास रख कर भाग गईं।
करीब 5 मिनट के बाद फिर आंटी के कदमों की आहट सुनाई दी।
मैंने झट से पहले वाला आसन धारण कर लिया और सोचने लगा, आंटी अब क्या करने आ रही हैं।
अखबार के छेद में से मैंने देखा आंटी हाथ में पोंछे का कपड़ा लेकर अन्दर आईं और मुझसे करीब 5 फुट दूर ज़मीन पर बैठ कर कुछ साफ़ करने का नाटक करने लगीं।
वो नीचे बैठ कर तौलिए के नीचे लटकता हुआ लंड ठीक से देखना चाहती थीं।
मैंने भी अपनी टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर दिया, जिससे आंटी को मेरे विशाल लंड के साथ मेरे अन्डकोषों के भी दर्शन अच्छी तरह से हो जाएँ।
आंटी की आँखें एकटक मेरे लंड पर लगी हुई थीं, उन्होंने अपने होंठ दाँतों से इतनी ज़ोर से काट लिए कि उनमें थोड़ा सा खून निकल आया, उनके माथे पर पसीने की बूँदें उभर आईं।
आंटी की यह हालत देख कर मेरे लंड ने फिर से हरकत शुरू कर दी।
मैंने बिना अखबार चेहरे से हटाए आंटी से पूछा- क्या बात है आंटी.. क्या कर रही हो?
आंटी हड़बड़ा कर बोलीं- कुछ नहीं, थोड़ा दूध गिर गया था.. उसे साफ़ कर रही हूँ।’
यह कह कर वो जल्दी से उठ कर चली गईं।
मैं मन ही मन मुस्काया। अब तो जैसे मुझे आंटी की चूत के सपने आते हैं, वैसे ही आंटी को भी मेरे मस्ताने लंड के सपने आएँगे।
लेकिन अब आंटी एक कदम आगे थीं। उसने तो मेरे लंड के दर्शन कर लिए थे, पर मैंने अभी तक उनकी चूत को नहीं देखा था।
मुझे मालूम था कि आंटी रोज़ हमारे जाने के बाद घर का सारा काम निपटा कर नहाने जाती थीं। मैंने आंटी की चूत देखने की योजना बनाई।
एक दिन मैं कॉलेज जाते समय अपने कमरे की खिड़की खुली छोड़ गया।
उस दिन कॉलेज से मैं जल्दी वापस आ गया, घर का दरवाज़ा अन्दर से बन्द था। मैं चुपके से अपनी खिड़की के रास्ते अपने कमरे में दाखिल हो गया।
आंटी रसोई में काम कर रही थीं। काफ़ी देर इंतज़ार करने के बाद आख़िर मेरी तपस्या रंग लाई, आंटी अपने कमरे में आईं। वो मस्ती में कुछ गुनगुना रही थीं। देखते ही देखते उन्होंने अपनी नाइटी उतार दी। अब वो सिर्फ़ आसमानी रंग की ब्रा और पैन्टी में थीं।
मेरा लंड हुंकार भरने लगा।
क्या बला की सुन्दर थीं। गोरा बदन, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए भारी चूतड़ और मोटी जांघें किसी नामर्द का भी लंड खड़ा कर दें।
आंटी की बड़ी-बड़ी चूचियाँ तो ब्रा में समा नहीं पा रही थीं।
फिर वही छोटी सी पैन्टी, जिसने मेरी रातों की नींद उड़ा रखी थी, आंटी के भारी चूतड़ उनकी पैन्टी से बाहर निकल रहे थे, दोनों चूतड़ों का एक चौथाई से भी कम भाग पैन्टी में था। बेचारी पैन्टी आंटी के चूतड़ों के बीच की दरार में घुसने की कोशिश कर रही थी।
उनकी जांघों के बीच में पैन्टी से ढकी फूली हुई चूत का उभार तो मेरे दिल-ओ-दिमाग़ को पागल बना रहा था।
मैं साँस थामे इंतज़ार कर रहा था कि कब आंटी पैन्टी उतारें और मैं उनकी चूत के दर्शन करूँ। आंटी शीशे के सामने खड़ी होकर अपने को निहार रही थीं, उनकी पीठ मेरी तरफ थी।
अचानक आंटी ने अपनी ब्रा और फिर पैन्टी उतार कर वहीं ज़मीन पर फेंक दी।
अब तो उनके नंगे चौड़े और गोल-गोल चूतड़ देख कर मेरा लंड बिल्कुल झड़ने वाला हो गया।
मैंने मन में सोचा कि अंकल ज़रूर आंटी की चूत पीछे से भी लेते होंगे और क्या कभी अंकल ने आंटी की गाण्ड मारी होगी?
मुझे ऐसी लाजवाब औरत की गाण्ड मिल जाए तो मैं स्वर्ग जाने से भी इन्कार कर दूँ।
लेकिन मेरी आज की योजना पर तब पानी फिर गया, जब आंटी बिना मेरी तरफ़ घूमे गुसलखाने में नहाने चली गईं।
उनकी ब्रा और पैन्टी वहीं ज़मीन पर पड़ी थी।
मैं जल्दी से आंटी के कमरे में गया और उनकी पैन्टी उठा लाया।
मैंने उनकी पैन्टी को सूँघा।
आंटी की चूत की महक इतनी मादक थी कि मेरा लंड और ना सहन कर सका और झड़ गया।
मैंने उस पैन्टी को अपने पास ही रख लिया और आंटी के बाथरूम से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगा।
सोचा जब आंटी नहा कर नंगी बाहर निकलेगीं तो उनकी चूत के दर्शन हो ही जाएँगे।
लेकिन किस्मत ने फिर साथ नहीं दिया, आंटी जब नहा कर बाहर निकलीं तो उन्होंने काले रंग की पैन्टी और ब्रा पहन रखी थी।
आंटी कमरे में अपनी पैन्टी गायब पाकर सोच में पड़ गईं।
अचानक उन्होंने जल्दी से नाइटी पहन ली और मेरे कमरे की तरफ आईं, शायद उन्हें शक हो गया कि यह काम मेरे अलावा और कोई नहीं कर सकता।
मैं झट से अपने बिस्तर पर ऐसे लेट गया जैसे नींद में हूँ।
आंटी मुझे कमरे में देखकर सकपका गईं।
मुझे हिलाते हुए बोलीं- राज उठ… तू अन्दर कैसे आया?
मैंने आँखें मलते हुए उठने का नाटक करते हुए कहा- क्या करूँ आंटी आज कॉलेज जल्दी बन्द हो गया, घर का दरवाज़ा बन्द था बहुत खटखटाने पर जब आपने नहीं खोला तो मैं अपनी खिड़की के रास्ते अन्दर आ गया।
‘तू कितनी देर से अन्दर है?’
‘यही कोई एक घंटे से।’
अब तो आंटी को शक हो गया कि शायद मैंने उन्हें नंगी देख लिया था और फिर उनकी पैन्टी भी तो गायब थी।
आंटी ने शरमाते हुए पूछा- कहीं तूने मेरे कमरे से कोई चीज़ तो नहीं उठाई?
‘अरे हाँ आंटी.. जब मैं आया तो मैंने देखा कि कुछ कपड़े ज़मीन पर पड़े हैं। मैंने उन्हें उठा लिया।’
आंटी का चेहरा सुर्ख हो गया, हिचकिचाते हुए बोलीं- वापस कर मेरे कपड़े।
मैं तकिये के नीचे से आंटी की पैन्टी निकालते हुए बोला- आंटी, यह तो अब मैं वापस नहीं दूँगा।
‘क्यों अब तू औरतों की पैन्टी पहनना चाहता है?’
‘नहीं आंटी…’ मैं पैन्टी को सूंघता हुआ बोला- इसकी मादक खुश्बू ने तो मुझे दीवाना बना दिया है।
‘अरे पगला है? यह तो मैंने कल से पहनी हुई थी… धोने तो दे।’
‘नहीं आंटी धोने से तो इसमें से आपकी महक निकल जाएगी… मैं इसे ऐसे ही रखना चाहता हूँ।’
‘धत्त पागल… अच्छा तू कब से घर में है?’ आंटी शायद जानना चाहती थीं कि कहीं मैंने उनको नंगी तो नहीं देख लिया।
मैंने कहा- आंटी मैं जानता हूँ कि आप क्या जानना चाहती हैं… मेरी ग़लती क्या है, जब मैं घर आया तो आप बिल्कुल नंगी शीशे के सामने खड़ी थीं लेकिन आपको सामने से नहीं देख सका। सच कहूँ आंटी, आप बिल्कुल नंगी होकर बहुत ही सुन्दर लग रही थीं। पतली कमर, भारी और गोल-गोल मस्त चूतड़ और गदराई हुई जांघें देख कर तो बड़े से बड़े ब्रह्मचारी की नियत भी खराब हो जाए।
आंटी शर्म से लाल हो उठीं।
‘हाय राम तुझे शर्म नहीं आती… कहीं तेरी भी नियत तो नहीं खराब हो गई है?’
‘आपको नंगी देख कर किसकी नियत खराब नहीं होगी?’
‘हे भगवान, आज तेरे अंकल से तेरी शादी की बात करनी ही पड़ेगी।’
इससे पहले मैं कुछ और कहता वो अपने कमरे में भाग गईं।
अंकल को 6 महीने के लिए किसी ट्रेनिंग के लिए मुंबई जाना था, आज उनका आखिरी दिन था, आज रात को तो आंटी की चुदाई निश्चित ही होनी थी।
रात को आंटी नींद आने का बहाना बना कर जल्दी ही अपने कमरे में चली गईं।
उनके कमरे में जाते ही लाइट बंद हो गई, मैं समझ गया कि चुदाई शुरू होने में अब देर नहीं।
मैं एक बार फिर चुपके से आंटी के दरवाज़े पर कान लगा कर खड़ा हो गया, अन्दर से मुझे अंकल-आंटी की बातें साफ सुनाई दे रही थीं।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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