FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--40
अब आगे...
मैं आँगन में पड़ी चारपाई पे बैठ गया.... अब भी मेरे ओर भौजी के बेच बात-चीत नहीं हो रही थी| हालाँकि भौजी पूरा प्रयास कर रहीं थी की मैं उनसे बात करूँ पर मैं चुप-चाप होने का नाटक कर रहा था| भौजी परेशान दिख रही थी, क्या मैं उनसे नाराज हूँ या नहीं? खेर अम्मा ओर माँ एक साथ बड़े घर में दाखिल हुईं| अम्मा ने भौजी से कहा की वे माँ को भी बुक्वा लगा दें| इतना कहके बड़की अम्मा रसिका भाभी को अपने साथ किसी काम के लिए ले गईं| अब बड़े घर में केवल मैं, माँ ओर भौजी रह गए| माँ नीचे बैठ गईं ओर भौजी ठीक उनके पीछे बैठी उनकी पीठ पे बुक्वा लगा रहीं थी| मेरी ओर भौजी की पीठ थी, यानी मैं सबसे पीछे बैठा था| तभी भौजी ने माँ से उनका मंगलसूत्र उतारने को कहा, नहीं तो उसमें भी बुक्वा लग जाता| माँ ने मुझे बुलाया ओर मेरे हाथ में अपना मंगल सूत्र दिया ओर कहा की इसे संभाल के रख दे| मुझे ना जाने क्या सूझी ओर मैंने मंगलसूत्र भौजी के गले में डाल दिया! भौजी एक दम से हैरान मेरी ओर देखने लगीं जैसे पूछ रहीं हो की क्या मैं अब भी नाराज हूँ या मैं मजाक कर रहा हूँ? मैंने माँ से कहा की मैं खेत जा रहा हूँ और आपका मंगलसूत्र भौजी के पास है|
दोपहर के भोजन के समय जब मैं वापस आया तो माँ ने मुझसे कहा की मैं उनका मंगलसूत्र भौजी से ले आऊँ| सच कहूँ तो मेरा मन बिलकुल नहीं था, भौजी से मंगलसूत्र वापस लेने का| परन्तु करता क्या, वो मंगलसूत्र 22000/- का था! मैं मुंह बनाके भौजी के पास गया और बेमन से उनसे माँ का मंगलसूत्र माँगा| भौजी ने वो मंगलसूत्र संभाल के अपनी अटैची में रखा था| उन्होंने मंगलसूत्र मेरे हाथ में देते हुए मुझसे पूछा;
भौजी: आपको मालुम है मंगलसूत्र पहनना क्या होता है?
मैं: हाँ....
बस इसके आगे मैंने उनसे कोई बात नहीं की और वहाँ से चला गया| मैं जानता था की मैंने उन्हें मंगलसूत्र पहनाया है और उसका अर्थ क्या है| और मुझे इसमें कुछ भी गलत नहीं लगा| मैंने मंगलसूत्र लाके माँ को दिया और नेहा को लेने स्कूल चला गया|
दोपहर का भोजन करने के बाद मैंने अपना ध्यान नेहा में लगा दिया और भौजी को ऐसा दिखाया जैसे मुझे उनकी कोई परवाह ही नहीं| भौजी मेरे और नेहा के पास ही लेट गईं और नेहा को कहने लगीं; "पापा से कहो की कहानी सुनायें!" अब ये सुन के तो मेरी आँखें फ़ैल गईं!!! ये क्या कह रहीं हैं भौजी? वो भी नेहा से? ये तो खुशकिस्मती थी की छप्पर के नीचे जहाँ हम बैठे थे वहाँ हम तीनों के आलावा कोई नहीं था| और मेरी बेवकूफी देखिये की मैंने उनकी बात का जवाब भी दे दिया; "बेटा मम्मी से कहो की कहानी रात में सुनाई जाती है, दिन में नहीं|" जवाब देके मुझे मेरी ही गलती का एहसास हुआ तो मैंने अपनी जबान दांतों टेल दबा ली और इसे देख भौजी खिल-खिला के हंस दी| परन्तु मैं मुस्कुराया नहीं... बहुत मुश्किल से अपने को रोका! मैं नेहा को लेके बैट-बॉल खेलने के लिए चला गया| भौजी तख़्त पे लेते मुझे देख रही थी और तरह-तरह के मुंह बनाके मुझे हंसाने की कोशिश कर रही थी| पर मैं पूरी कोशिश कर रहा था की मैं उनकी ओर ध्यान ना दूँ|
जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं बैट छोड़के खेत की ओर भाग गया और कुछ दूर पहुँच के भौजी के द्वारा बनाये गए उन चेहरों को याद कर के बहुत हँसा| कुछ देर बाद मैं वापस आया तो देखा तो चन्दर भैया ओर अजय भैया तैयार हो रहे थे| मैंने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया की मामा के घर किसी काम से जा रहे हैं, और कल शाम तक लौटेंगे| अकस्मात् ही मेरी किस्मत मुझ पे इतना मेहरबान हो गई थी| मेरा रास्ता लघभग साफ़ था बस एक ही अड़चन थी.... वो थी रसिका भाभी! खेर अगर किस्मत को मंजूर होगा तो उनका भी कोई न कोई उपाय मुझे सूझ ही जाएगा| अब मुझे अपने प्लान को अम्ल में लाना था... पर दिक्कत ये थी की मुझे हमला ठीक समय और अकस्मात् करना था, वरना सब कुछ नष्ट हो जाता| खेर मेरा भौजी से बातचीत ना करने का ड्रामा चालु था और काफी हद्द तक मैंने भौजी को दुविधा में डाल दिया था की क्या मैं वाकई में उनसे नाराज हूँ या मजाक कर रहा हूँ| एक पल के लिए तो मुझे भी ऐसा लगा की भौजी उदास हैं और उन्हें यकीन हो गया की मैं उनसे नाराज हूँ| मन तो किया उन्हें सब सच कहूँ पर मैं रिस्क नहीं लेना चाहता था| और सबसे बड़ी बात मैं उन्हें खुश देखना चाहता था और अगर मैं उन्हें सब बता देता तो ये सस्पेंस ख़त्म हो जाता| रात्रि भोज के समय भौजी ने मुझसे बात करने के लिए एक और पहल की, पर इस बार उन्होंने नेहा का सहारा लिया| नेहा मेरे पास आई और मेरी ऊँगली पकड़ के भौजी के पास ले आई| भौजी छप्पर के नीचे तख़्त पे लेटी थीं;
नेहा: बैठो चाचू|
मैं: अच्छा बोलो क्या चाहिए मेरी लाड़ली को?
नेहा: कुछ नहीं चाचू, आप बैठो! (भौजी की ओर देख के बोली) चाचू आप मम्मी से नाराज हो?
मैं: आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो ?
नेहा: आप मम्मी से बात नहीं कर रहे हो? आप तो मम्मी के बहुत अच्छे दोस्त हो ना तो फिर?
मैं समझ गया की ये जज्बात भौजी के हैं बस बोल नेहा रही है| अबतक नेहा की मासूमियत सुन के बड़की अम्मा भी आ गईं...
बड़की अम्मा: क्या हुआ मुन्नी? मुझे बताओ....
नेहा: दादी देखो ना चाचू मम्मी से बात नहीं कर रहे हैं|
बड़की अम्मा: क्या हुआ मुन्ना? बी क्या किया तुम्हारी भौजी ने? क्यों नाराज हो?
मैं: जी कुछ भी तो नहीं.... मैं तो ...... बस नेहा के साथ खेलने में व्यस्त था| (भौजी को उलाहना देते हुए कहा) अगर मैं नाराज होता तो दिल्ली वापस नहीं चला जाता?
ये सुन के बड़की अम्मा हँसे लगी ओर में भी जूठी हँसी हंसने लगा| मैं वहाँ से उठा और अपनी चारपाई पे लेटा आसमान में तारे देखने लगा| दोपहर की ही तरह भोजन रसिका भाभी ने पकाया था, क्योंकि चक्की चलाने की वजह से भौजी थक गईं थीं| जब सब को भोजन परोसा गया तो मैं अपनी थाली ले के अपनी चारपाई पे बैठ गया| मैंने नेहा को इशारे से अपने पास बुलाया और सारा भोजन उसे खिला दिया| दरअसल ये मेरा खुद को सजा देने का तरीका था| आज सारा दिन मैंने भौजी को बड़ा सताया था इसलिए प्रायश्चित तो बनता था| भोजन के कुछ देर बाद भौजी फिर से मेरे पास आईं और बोलीं; "अगर आप मुझसे बात नहीं करोगे तो मैं भोजन नहीं खाऊँगी|" मैं कुछ नहीं बोला और भौजी अपने घर के भीतर चलीं गई| मैं जानता था की वो भोजन नहीं करने वाली, इसलिए मैं बड़की अम्मा के पास गया और उनसे भौजी के लिए भोजन परोसने के लिए कहा|
बड़की अम्मा: पता नहीं भैया तुम दोनों के बीच में क्या चलता रहता है| कभी तुम नाराज होते हो तो कभी तुम्हारी भौजी| पता नहीं आज क्या हुआ बहु को सारा गुम-सुम सी रही, और अब भोजन के लिए कहा तो कह गई मुझे नींद आ रही है| मुन्ना वो सिर्फ तुम्हारी ही मानती है, ये लो भोजन करा दो|
मैं: आप चिंता ना करो अम्मा मैं उन्हें भोजन करा देता हूँ|
रसिका भाभी: हाँ भाई दीदी तो सिर्फ "आपकी ही सुनती हैं" !!! ही..ही..ही...
अब भी रसिका भाभी चुटकी लेने से बाज़ नहीं आई पर ठीक है! मैं भौजी के घर के भीतर पहुंचा तो देखा की भौजी चारपाई पे लेटी हैं| पर भूखे पेट किसे नींद आई है जो उन्हें आती| मैंने बड़े रूखेपन का दिखावा किया और बहुत रूखे तरीके से उन्हें कहा;
मैं: चलो उठो.... भोजन कर लो|
भौजी: अगर आप मुझसे बात नहीं करोगे तो मैं नहीं खाऊँगी|
मैं: भोजन मैंने भी नहीं किया है... अपना हिस्स का मैंने नेहा को खिला दिया था| अगर आपको नहीं खाना तो मत कहाओ, मैं थाली यहीं रख के जा रहा हूँ|
भौजी: रुकिए, आप मेरे साथ ही खा लीजिये|
मैं: नहीं.... रसिका भाभी आजकल ज्यादा ही नजर रख रहीं है हम पर| मैं जा रहा हूँ आप भोजन कर लो|
मुझे संदेह था की भौजी भोजन नहीं करेंगी इसलिए मैं पानी देने के बहाने वापस आया| देखा तो भौजी गर्दन झुकाये बेमन से भोजन कर रहीं थी| मैं पानी का गिलास रख के वापस जाने लगा तो भौजी बोलीं; "देख लो मैं भोजन कर रहीं हूँ, आप भी भोजन कर लो|" मैंने उनकी बात का जवाब नहीं दिया बस गर्दन हाँ में हिलाई और बहार चला आया| मैं चुप-चाप नेहा को गोद में लिए अपनी चारपाई पे लेट गया| करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी बहार आईं और मुझे लेटा हुआ देखा, साफ़ था की मैंने भोजन नहीं किया है| मैं कनखी नजरों से उन्हें देख रहा था, वो बर्तन रख के रसोई की ओर गईं परन्तु आज सारे बर्तन खाली थे, कुछ भी भोजन नहीं बचा था| भौजी पाँव पटकते हुए मेरे पास आईं और मेरे कान में खुस-फुसाई; "आपने भोजन नहीं किया ना? चलिए उठिए मैं कुछ बना देती हूँ, नहीं तो कुछ नमकीन वगैरह ही खा लीजिये| प्लीज उठिए ना ..." पर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था और सोने का नाटक कर रहा था| उनकी बेचैनी और तड़प मैं साफ़ महसूस कर पा रहा था पर मैं शिथिल पड़ा रहा| भौजी ने नेहा को अपने साथ ले जाने के लिए जब उठाने लगी तो मैंने नेहा को और कसके अपनी छाती से जकड लिया| अब भौजी समझ गईं थी की मैं सोने का नाटक कर रह हूँ इसलिए वो फिर से कुछ खाने के लिए जोर देने लगीं| “चलिए ना... कुछ तो खा लीजिये? प्लीज ..... प्लीज ..... अगर खाना नहीं था तो मुझे क्यों खाने को कहा? प्लीज चलिए ना, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ प्लीज !!”
मैं कुछ नहीं बोला, परन्तु लगता है शायद पिताजी ने भौजी की खुसफुसाहट सुन ली इसलिए वे अपनी चारपाई से मेरी चारपाई की ओर देखते हुए बोले; "क्या हुआ बहु बेटा? क्या ये नालायक फिर तंग कर रहा है?" पिताजी की आवाज बड़ी कड़क थी अगर मैं कुछ नहीं bolta तो भौजी पिताजी से अवश्य कह देती की मैंने कुछ नहीं खाया| इसलिए मैं बोल पड़ा; "नहीं पिताजी, नेहा मेरे साथ सो रही है और भौजी उसे लेने आईं है पर नेहा ने मेरी टी-शर्ट पकड़ रख है| मैं इन्हें कर रहा हूँ की नेहा को यहीं सोने दो पर ये मान ही नहीं रही?" पिताजी बोले; "सोने दो बहु दोनों चाचा-भतीजी को एक साथ| और तुम भी जाके सो जाओ रात बहुत हो रही है|" भौजी चुप-चाप चलीं गई पर जाते-जाते भी वो शिकायत भरी नजरों से मुझे देख रहीं थी| एक नै सुबह, और आज मैं जल्दी उठ गया| खाली पेट सोने कहाँ देता है!!! दैनिक दिनचर्या निपटा कर मैं सही समय का इंतेजआर करने लगा| आज रविवार था तो नेहा के स्कूल की छुट्टी थी, तो मैं नेहा के साथ खेलने में लगा था| जैसे ही पिताजी और बड़के दादा खेत में काम करने को निकले मैं पहले रसिका भाभी को ढूंढने लगा| और मेरा अंदाजा सही निकला, भाभी बुखार का बहाना करके बिस्तर पर पड़ी हुई थीं| मैं उनका हाल-चाल पूछने लगा और वो कहने लगी की तबियत नासाज़ है और वो तो बस आजका दिन आराम ही करेंगी| अब मैं नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ा कर बड़की अम्मा और माँ के पास पहुँचा|
अम्मा और माँ कच्चे आम धो के काट रहे थे, आचार बनाने के लिए|
मैं: अम्मा मुझे आपसे कुछ बात करनी थी|
बड़की अम्मा: हाँ कहो मुन्ना
मैं: अम्मा देखो आप तो जानते ही हो की भौजी मेरी वजह से शादी में नहीं गई| तो मैं सोच रहा था की आज मैं, आप, माँ, नेहा, भौजी और रसिका भाभी सब पिक्चर देखने जाएँ| पिताजी और अब्द्के दादा को इसलिए नहीं लजायेंगे क्योंकि उनके होते हुए भाभियाँ असहेज महसूस करेंगी| तो चलिए ना ?
बड़की अम्मा: देखो मुन्ना हमें तो ये फिल्म-विल्म का शौक है नहीं| तुम जाओ और बहुओं को ले जाओ| अब कहँ हम इन फिल्मों के चक्कर में पड़ें|
माँ: ठीक है बेटा तू बहुओं को साथ ले जाना उनका भी मन बहल जायेगा|
मैं तुरंत वहाँ से रसिका भाभी के पास दुबारा भागा, क्योंकि अब वो ही एक काँटा रह गई थी हमारे बीच! रसिका भाभी घोड़े बेच के सो रही थी, इसलिए मैं दुबारा अम्मा के पास आया और उन्हें बताया;
मैं: अम्मा, रसिका भाभी तो घोड़े बेच के सो रहीं हैं| सुबह जब मैंने उनसे हाल-चाल पूछा था तो उन्होंने कहा था की उनका बदन टूट रहा है और बुखार भी है| इसलिए वो सारा दिन आराम करेंगी| तो अब क्या करूँ?
ये सुनके बड़की अम्मा थोड़ा चिंत में पड़ गईं, परन्तु इसे पहले वो कुछ कहतीं मैंने भोली सी सूरत बनाई और कहा;
मैं: अम्मा अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं नेहा और भौजी फिल्म देख आएं?
बड़की अम्मा: हाँ... ये ठीक रहेगा| तुम तीनों हो आओ|
मैं: परन्तु अम्मा घर में सब का खाना कौन बनाएगा?
बड़की अम्मा: मुन्ना तुम चिंता नहीं करो... मैं संभाल लुंगी| तुम जाओ इसे बहाने बहु का मन भी कुछ हल्का होगा|
मैं ख़ुशी-ख़ुशी भौजी के घर में घुसा तो देखा भौजी जमीन पे बैठी, सर झुकाये शायद रो रहीं थी| आज सुबह से मैंने उन्हें अपनी शक्ल नहीं दिखाई थी और वैसे भी मैंने कल से बोल-चाल बंद कर रखी थी| उन्हें इस तरह उदास देख के मन तो बहुत दुखा|
मैं: चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, हम फिल्म देखने जा रहे हैं|
भौजी ने मेरी ओर देखा और आँखों ही आँखों जैसे इस सब का कारन पूछ रहीं हो|
मैं: बाकी बातें रास्ते में, जल्दी करो दोपहर का शो है, सिर्फ आप मैं और नेहा ही जा रहे हैं| अगर पिताजी और बड़के दादा आ गए तो जबरदस्ती रसिका भाभी को भी ले जाना पड़ेगा|
भौजी जल्दी से उठीं और फटाफट तैयार होने लगीं और इधर मैं भी भाग के गया और पाँच मिनट में तैयार हो के आ गया| परन्तु भौजी ने तैयार होने में आधे घंटे का समय लिया, और लें भी क्यों ना औरत जो हैं!!! पर एक बहुत अवश्य कहूँगा की ये आधे घंटे का इन्तेजार व्यर्थ नहीं गया| जब भौजी को मैंने देखा तो बस बिना आँखें झपकाये देखता ही रह गया! पीतांबरी साडी में भौजी बहुत सुन्दर लग रहीं थी| उसपे पीले और नारंगी रंग की मिली जुली बिंदी... हाय!!! बस उन्होंने लिपस्टिक नहीं लगाईं थी परन्तु उसे उनकी सुंदरता में कुछ भी कमी नहीं आई| सर पे पल्लू और साडी में बने फूल का डिज़ाइन जिसे की बड़े प्यार से काढ़ा हुआ था..... हाय..हाय.हाय..!!! गजब!!! उँगलियों पे नेलपॉलिश और उनके बदन से आ रही गुलाब की सुगंध ने तो मुझे मन्त्र मुग्ध कर दिया| मन किया भौजी को भगा ले जाऊँ!
भौजी बड़े िढ़ालते हुए मेरे पास आईं और बोलीं; "चलना नहीं है क्या? पिक्चर छूट जायेगी!!!" हाय उनके कोकिल कंध से निकले शब्दों ने तो जैसे मुझे सन्न कर दिया|माँ को बाय-बाय कह के हम निकल पड़े| हमारे घर से मुख्य सड़क करीब पंद्रह मिनट दूर है|हम घर से करीब दस मिनट की दूरी पर आ चुके थे| अब भौजी ने बातें शुरू किया;
भौजी: अगर आप बुरा ना मनो तो एक बात कहूँ?
मैं: हाँ..हाँ बोलो
भौजी: आज आप बहुत हङ्सुम... लग रहे हो|
मैं: (भौजी के इस तरह हड़बड़ा कर अंग्रेजी में हैंडसम बोलने पे मुझे हंसी आ गई|) आप का मतलब हैंडसम ? हा..हा...हा...हा...
भौजी: हाँ..हाँ.. वही हैंडसम लग रहे हो!
मैं: थैंक यू|
भौजी का ऐसा कहने ककरण ये था की मैंने आज लाल रंग की टाइट वाली टी-शर्ट पहनी थी| ऊपर क दो बटन खुले थे और कालर खड़े किये हुए थे| नीचे मैंने ब्लू जीन्स पहनी थी और ब्राउन लोफ़र्स| मैं चलते समय अपने दोनों हाथ जीन्स के आगे की दोनों पॉकेट में डाले चल रहा था|
मैं: वैसे क़यामत तो आज आप ढा रहे हो| बस अपना ये घूँघट थोड़ा काम करो| सर पे पल्ला केवल अपने बालों के जुड़े तक ही रखो|
भौजी ने तुरंत ही मेरा सुझाव मान लिया और अपनी तारीफ सुन के थोड़ा मुस्कुराईं| फिर अचानक से गंभीर होते हुए बोलीं;
भौजी: आई...ऍम... सॉरी!
मैं: आपको सॉरी कहने की कोई जर्रूरत नहीं, मैं आपसे नाराज नहीं हूँ| मैंने तो आपको कल ही माफ़ कर दिया था| दरअसल मैं थोड़ा ज्यादा ही सेंसिटिव मतलव संवेदनशील हूँ| मैं जल्दी ही बातों को दिल पे ले लेता हूँ| आपने जरा सा मजाक ही तो किया था, और मैं बेकार में इतना भड़क गया और आपको डाँट दिया| I’M Sorry !!! वादा करता हूँ की मैं अपने इस व्यवहार को सुधारूँगा|
भौजी: आप जानते हो की आपकी एक ख़ास बात जिसने मुझे प्रभावित किया वो क्या है? आप अपनी गलती मानने में कभी नहीं जिझकते|
मैं: बस एक अच्छाई ही है... एक बुराई भी है| मैं बहुत जल्दी पिघल जाता हूँ... उस दिन जब आपने माधुरी और मेरी बात सुन ली थी, उस दिन मुझे माधुरी के लिए वाकई में बहुत बुरा लग रहा था| आखिर उसका दिल मेरी वजह से टूटा|
भौजी: ये बुराई नहीं है, आप किसी को भी दुखी नहीं देख सकते बस! चाहे वो इंसान कितना ही बुरा क्यों ना हो| खेर मैं आपसे नाराज हूँ!
मैं: क्यों?
भौजी: कल रात आपने खुद कुछ नहीं कहे और जबरदस्ती मुझे भोजन करा दिया| ऐसा क्यों किया आपने? जानते हैं आपने मुझे पाप का भागी बना दिया!
मैं: मैं प्रायश्चित कर रहा था|
भौजी: कैसा प्रायश्चित?
मैं: कल सारा दिन मैंने अपना जूठा गुस्सा दिखा के आपको बहुत तंग किया| मैं जानता हूँ आप मेरे इस बर्ताव से कितना बुझे हुए थे| मैं आपसे बात नहीं कर रहा था.. आपके आस-पास होक भी आपसे दूर था| इसलिए मैं प्रायश्चित कर रहा था|
भौजी: तो वो सब आप दिखाव कर रहे थे.... हाय राम! आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी| अब बड़े वो हैं!
(ये कहते हुए भौजी ने मेरी छाती पे धीरे से मुक्का मारा)
मैं: आह! हा..हा...हा...हा...
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दोपहर के भोजन के समय जब मैं वापस आया तो माँ ने मुझसे कहा की मैं उनका मंगलसूत्र भौजी से ले आऊँ| सच कहूँ तो मेरा मन बिलकुल नहीं था, भौजी से मंगलसूत्र वापस लेने का| परन्तु करता क्या, वो मंगलसूत्र 22000/- का था! मैं मुंह बनाके भौजी के पास गया और बेमन से उनसे माँ का मंगलसूत्र माँगा| भौजी ने वो मंगलसूत्र संभाल के अपनी अटैची में रखा था| उन्होंने मंगलसूत्र मेरे हाथ में देते हुए मुझसे पूछा;
भौजी: आपको मालुम है मंगलसूत्र पहनना क्या होता है?
मैं: हाँ....
बस इसके आगे मैंने उनसे कोई बात नहीं की और वहाँ से चला गया| मैं जानता था की मैंने उन्हें मंगलसूत्र पहनाया है और उसका अर्थ क्या है| और मुझे इसमें कुछ भी गलत नहीं लगा| मैंने मंगलसूत्र लाके माँ को दिया और नेहा को लेने स्कूल चला गया|
दोपहर का भोजन करने के बाद मैंने अपना ध्यान नेहा में लगा दिया और भौजी को ऐसा दिखाया जैसे मुझे उनकी कोई परवाह ही नहीं| भौजी मेरे और नेहा के पास ही लेट गईं और नेहा को कहने लगीं; "पापा से कहो की कहानी सुनायें!" अब ये सुन के तो मेरी आँखें फ़ैल गईं!!! ये क्या कह रहीं हैं भौजी? वो भी नेहा से? ये तो खुशकिस्मती थी की छप्पर के नीचे जहाँ हम बैठे थे वहाँ हम तीनों के आलावा कोई नहीं था| और मेरी बेवकूफी देखिये की मैंने उनकी बात का जवाब भी दे दिया; "बेटा मम्मी से कहो की कहानी रात में सुनाई जाती है, दिन में नहीं|" जवाब देके मुझे मेरी ही गलती का एहसास हुआ तो मैंने अपनी जबान दांतों टेल दबा ली और इसे देख भौजी खिल-खिला के हंस दी| परन्तु मैं मुस्कुराया नहीं... बहुत मुश्किल से अपने को रोका! मैं नेहा को लेके बैट-बॉल खेलने के लिए चला गया| भौजी तख़्त पे लेते मुझे देख रही थी और तरह-तरह के मुंह बनाके मुझे हंसाने की कोशिश कर रही थी| पर मैं पूरी कोशिश कर रहा था की मैं उनकी ओर ध्यान ना दूँ|
जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं बैट छोड़के खेत की ओर भाग गया और कुछ दूर पहुँच के भौजी के द्वारा बनाये गए उन चेहरों को याद कर के बहुत हँसा| कुछ देर बाद मैं वापस आया तो देखा तो चन्दर भैया ओर अजय भैया तैयार हो रहे थे| मैंने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया की मामा के घर किसी काम से जा रहे हैं, और कल शाम तक लौटेंगे| अकस्मात् ही मेरी किस्मत मुझ पे इतना मेहरबान हो गई थी| मेरा रास्ता लघभग साफ़ था बस एक ही अड़चन थी.... वो थी रसिका भाभी! खेर अगर किस्मत को मंजूर होगा तो उनका भी कोई न कोई उपाय मुझे सूझ ही जाएगा| अब मुझे अपने प्लान को अम्ल में लाना था... पर दिक्कत ये थी की मुझे हमला ठीक समय और अकस्मात् करना था, वरना सब कुछ नष्ट हो जाता| खेर मेरा भौजी से बातचीत ना करने का ड्रामा चालु था और काफी हद्द तक मैंने भौजी को दुविधा में डाल दिया था की क्या मैं वाकई में उनसे नाराज हूँ या मजाक कर रहा हूँ| एक पल के लिए तो मुझे भी ऐसा लगा की भौजी उदास हैं और उन्हें यकीन हो गया की मैं उनसे नाराज हूँ| मन तो किया उन्हें सब सच कहूँ पर मैं रिस्क नहीं लेना चाहता था| और सबसे बड़ी बात मैं उन्हें खुश देखना चाहता था और अगर मैं उन्हें सब बता देता तो ये सस्पेंस ख़त्म हो जाता| रात्रि भोज के समय भौजी ने मुझसे बात करने के लिए एक और पहल की, पर इस बार उन्होंने नेहा का सहारा लिया| नेहा मेरे पास आई और मेरी ऊँगली पकड़ के भौजी के पास ले आई| भौजी छप्पर के नीचे तख़्त पे लेटी थीं;
नेहा: बैठो चाचू|
मैं: अच्छा बोलो क्या चाहिए मेरी लाड़ली को?
नेहा: कुछ नहीं चाचू, आप बैठो! (भौजी की ओर देख के बोली) चाचू आप मम्मी से नाराज हो?
मैं: आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो ?
नेहा: आप मम्मी से बात नहीं कर रहे हो? आप तो मम्मी के बहुत अच्छे दोस्त हो ना तो फिर?
मैं समझ गया की ये जज्बात भौजी के हैं बस बोल नेहा रही है| अबतक नेहा की मासूमियत सुन के बड़की अम्मा भी आ गईं...
बड़की अम्मा: क्या हुआ मुन्नी? मुझे बताओ....
नेहा: दादी देखो ना चाचू मम्मी से बात नहीं कर रहे हैं|
बड़की अम्मा: क्या हुआ मुन्ना? बी क्या किया तुम्हारी भौजी ने? क्यों नाराज हो?
मैं: जी कुछ भी तो नहीं.... मैं तो ...... बस नेहा के साथ खेलने में व्यस्त था| (भौजी को उलाहना देते हुए कहा) अगर मैं नाराज होता तो दिल्ली वापस नहीं चला जाता?
ये सुन के बड़की अम्मा हँसे लगी ओर में भी जूठी हँसी हंसने लगा| मैं वहाँ से उठा और अपनी चारपाई पे लेटा आसमान में तारे देखने लगा| दोपहर की ही तरह भोजन रसिका भाभी ने पकाया था, क्योंकि चक्की चलाने की वजह से भौजी थक गईं थीं| जब सब को भोजन परोसा गया तो मैं अपनी थाली ले के अपनी चारपाई पे बैठ गया| मैंने नेहा को इशारे से अपने पास बुलाया और सारा भोजन उसे खिला दिया| दरअसल ये मेरा खुद को सजा देने का तरीका था| आज सारा दिन मैंने भौजी को बड़ा सताया था इसलिए प्रायश्चित तो बनता था| भोजन के कुछ देर बाद भौजी फिर से मेरे पास आईं और बोलीं; "अगर आप मुझसे बात नहीं करोगे तो मैं भोजन नहीं खाऊँगी|" मैं कुछ नहीं बोला और भौजी अपने घर के भीतर चलीं गई| मैं जानता था की वो भोजन नहीं करने वाली, इसलिए मैं बड़की अम्मा के पास गया और उनसे भौजी के लिए भोजन परोसने के लिए कहा|
बड़की अम्मा: पता नहीं भैया तुम दोनों के बीच में क्या चलता रहता है| कभी तुम नाराज होते हो तो कभी तुम्हारी भौजी| पता नहीं आज क्या हुआ बहु को सारा गुम-सुम सी रही, और अब भोजन के लिए कहा तो कह गई मुझे नींद आ रही है| मुन्ना वो सिर्फ तुम्हारी ही मानती है, ये लो भोजन करा दो|
मैं: आप चिंता ना करो अम्मा मैं उन्हें भोजन करा देता हूँ|
रसिका भाभी: हाँ भाई दीदी तो सिर्फ "आपकी ही सुनती हैं" !!! ही..ही..ही...
अब भी रसिका भाभी चुटकी लेने से बाज़ नहीं आई पर ठीक है! मैं भौजी के घर के भीतर पहुंचा तो देखा की भौजी चारपाई पे लेटी हैं| पर भूखे पेट किसे नींद आई है जो उन्हें आती| मैंने बड़े रूखेपन का दिखावा किया और बहुत रूखे तरीके से उन्हें कहा;
मैं: चलो उठो.... भोजन कर लो|
भौजी: अगर आप मुझसे बात नहीं करोगे तो मैं नहीं खाऊँगी|
मैं: भोजन मैंने भी नहीं किया है... अपना हिस्स का मैंने नेहा को खिला दिया था| अगर आपको नहीं खाना तो मत कहाओ, मैं थाली यहीं रख के जा रहा हूँ|
भौजी: रुकिए, आप मेरे साथ ही खा लीजिये|
मैं: नहीं.... रसिका भाभी आजकल ज्यादा ही नजर रख रहीं है हम पर| मैं जा रहा हूँ आप भोजन कर लो|
मुझे संदेह था की भौजी भोजन नहीं करेंगी इसलिए मैं पानी देने के बहाने वापस आया| देखा तो भौजी गर्दन झुकाये बेमन से भोजन कर रहीं थी| मैं पानी का गिलास रख के वापस जाने लगा तो भौजी बोलीं; "देख लो मैं भोजन कर रहीं हूँ, आप भी भोजन कर लो|" मैंने उनकी बात का जवाब नहीं दिया बस गर्दन हाँ में हिलाई और बहार चला आया| मैं चुप-चाप नेहा को गोद में लिए अपनी चारपाई पे लेट गया| करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी बहार आईं और मुझे लेटा हुआ देखा, साफ़ था की मैंने भोजन नहीं किया है| मैं कनखी नजरों से उन्हें देख रहा था, वो बर्तन रख के रसोई की ओर गईं परन्तु आज सारे बर्तन खाली थे, कुछ भी भोजन नहीं बचा था| भौजी पाँव पटकते हुए मेरे पास आईं और मेरे कान में खुस-फुसाई; "आपने भोजन नहीं किया ना? चलिए उठिए मैं कुछ बना देती हूँ, नहीं तो कुछ नमकीन वगैरह ही खा लीजिये| प्लीज उठिए ना ..." पर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था और सोने का नाटक कर रहा था| उनकी बेचैनी और तड़प मैं साफ़ महसूस कर पा रहा था पर मैं शिथिल पड़ा रहा| भौजी ने नेहा को अपने साथ ले जाने के लिए जब उठाने लगी तो मैंने नेहा को और कसके अपनी छाती से जकड लिया| अब भौजी समझ गईं थी की मैं सोने का नाटक कर रह हूँ इसलिए वो फिर से कुछ खाने के लिए जोर देने लगीं| “चलिए ना... कुछ तो खा लीजिये? प्लीज ..... प्लीज ..... अगर खाना नहीं था तो मुझे क्यों खाने को कहा? प्लीज चलिए ना, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ प्लीज !!”
मैं कुछ नहीं बोला, परन्तु लगता है शायद पिताजी ने भौजी की खुसफुसाहट सुन ली इसलिए वे अपनी चारपाई से मेरी चारपाई की ओर देखते हुए बोले; "क्या हुआ बहु बेटा? क्या ये नालायक फिर तंग कर रहा है?" पिताजी की आवाज बड़ी कड़क थी अगर मैं कुछ नहीं bolta तो भौजी पिताजी से अवश्य कह देती की मैंने कुछ नहीं खाया| इसलिए मैं बोल पड़ा; "नहीं पिताजी, नेहा मेरे साथ सो रही है और भौजी उसे लेने आईं है पर नेहा ने मेरी टी-शर्ट पकड़ रख है| मैं इन्हें कर रहा हूँ की नेहा को यहीं सोने दो पर ये मान ही नहीं रही?" पिताजी बोले; "सोने दो बहु दोनों चाचा-भतीजी को एक साथ| और तुम भी जाके सो जाओ रात बहुत हो रही है|" भौजी चुप-चाप चलीं गई पर जाते-जाते भी वो शिकायत भरी नजरों से मुझे देख रहीं थी| एक नै सुबह, और आज मैं जल्दी उठ गया| खाली पेट सोने कहाँ देता है!!! दैनिक दिनचर्या निपटा कर मैं सही समय का इंतेजआर करने लगा| आज रविवार था तो नेहा के स्कूल की छुट्टी थी, तो मैं नेहा के साथ खेलने में लगा था| जैसे ही पिताजी और बड़के दादा खेत में काम करने को निकले मैं पहले रसिका भाभी को ढूंढने लगा| और मेरा अंदाजा सही निकला, भाभी बुखार का बहाना करके बिस्तर पर पड़ी हुई थीं| मैं उनका हाल-चाल पूछने लगा और वो कहने लगी की तबियत नासाज़ है और वो तो बस आजका दिन आराम ही करेंगी| अब मैं नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ा कर बड़की अम्मा और माँ के पास पहुँचा|
अम्मा और माँ कच्चे आम धो के काट रहे थे, आचार बनाने के लिए|
मैं: अम्मा मुझे आपसे कुछ बात करनी थी|
बड़की अम्मा: हाँ कहो मुन्ना
मैं: अम्मा देखो आप तो जानते ही हो की भौजी मेरी वजह से शादी में नहीं गई| तो मैं सोच रहा था की आज मैं, आप, माँ, नेहा, भौजी और रसिका भाभी सब पिक्चर देखने जाएँ| पिताजी और अब्द्के दादा को इसलिए नहीं लजायेंगे क्योंकि उनके होते हुए भाभियाँ असहेज महसूस करेंगी| तो चलिए ना ?
बड़की अम्मा: देखो मुन्ना हमें तो ये फिल्म-विल्म का शौक है नहीं| तुम जाओ और बहुओं को ले जाओ| अब कहँ हम इन फिल्मों के चक्कर में पड़ें|
माँ: ठीक है बेटा तू बहुओं को साथ ले जाना उनका भी मन बहल जायेगा|
मैं तुरंत वहाँ से रसिका भाभी के पास दुबारा भागा, क्योंकि अब वो ही एक काँटा रह गई थी हमारे बीच! रसिका भाभी घोड़े बेच के सो रही थी, इसलिए मैं दुबारा अम्मा के पास आया और उन्हें बताया;
मैं: अम्मा, रसिका भाभी तो घोड़े बेच के सो रहीं हैं| सुबह जब मैंने उनसे हाल-चाल पूछा था तो उन्होंने कहा था की उनका बदन टूट रहा है और बुखार भी है| इसलिए वो सारा दिन आराम करेंगी| तो अब क्या करूँ?
ये सुनके बड़की अम्मा थोड़ा चिंत में पड़ गईं, परन्तु इसे पहले वो कुछ कहतीं मैंने भोली सी सूरत बनाई और कहा;
मैं: अम्मा अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं नेहा और भौजी फिल्म देख आएं?
बड़की अम्मा: हाँ... ये ठीक रहेगा| तुम तीनों हो आओ|
मैं: परन्तु अम्मा घर में सब का खाना कौन बनाएगा?
बड़की अम्मा: मुन्ना तुम चिंता नहीं करो... मैं संभाल लुंगी| तुम जाओ इसे बहाने बहु का मन भी कुछ हल्का होगा|
मैं ख़ुशी-ख़ुशी भौजी के घर में घुसा तो देखा भौजी जमीन पे बैठी, सर झुकाये शायद रो रहीं थी| आज सुबह से मैंने उन्हें अपनी शक्ल नहीं दिखाई थी और वैसे भी मैंने कल से बोल-चाल बंद कर रखी थी| उन्हें इस तरह उदास देख के मन तो बहुत दुखा|
मैं: चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, हम फिल्म देखने जा रहे हैं|
भौजी ने मेरी ओर देखा और आँखों ही आँखों जैसे इस सब का कारन पूछ रहीं हो|
मैं: बाकी बातें रास्ते में, जल्दी करो दोपहर का शो है, सिर्फ आप मैं और नेहा ही जा रहे हैं| अगर पिताजी और बड़के दादा आ गए तो जबरदस्ती रसिका भाभी को भी ले जाना पड़ेगा|
भौजी जल्दी से उठीं और फटाफट तैयार होने लगीं और इधर मैं भी भाग के गया और पाँच मिनट में तैयार हो के आ गया| परन्तु भौजी ने तैयार होने में आधे घंटे का समय लिया, और लें भी क्यों ना औरत जो हैं!!! पर एक बहुत अवश्य कहूँगा की ये आधे घंटे का इन्तेजार व्यर्थ नहीं गया| जब भौजी को मैंने देखा तो बस बिना आँखें झपकाये देखता ही रह गया! पीतांबरी साडी में भौजी बहुत सुन्दर लग रहीं थी| उसपे पीले और नारंगी रंग की मिली जुली बिंदी... हाय!!! बस उन्होंने लिपस्टिक नहीं लगाईं थी परन्तु उसे उनकी सुंदरता में कुछ भी कमी नहीं आई| सर पे पल्लू और साडी में बने फूल का डिज़ाइन जिसे की बड़े प्यार से काढ़ा हुआ था..... हाय..हाय.हाय..!!! गजब!!! उँगलियों पे नेलपॉलिश और उनके बदन से आ रही गुलाब की सुगंध ने तो मुझे मन्त्र मुग्ध कर दिया| मन किया भौजी को भगा ले जाऊँ!
भौजी बड़े िढ़ालते हुए मेरे पास आईं और बोलीं; "चलना नहीं है क्या? पिक्चर छूट जायेगी!!!" हाय उनके कोकिल कंध से निकले शब्दों ने तो जैसे मुझे सन्न कर दिया|माँ को बाय-बाय कह के हम निकल पड़े| हमारे घर से मुख्य सड़क करीब पंद्रह मिनट दूर है|हम घर से करीब दस मिनट की दूरी पर आ चुके थे| अब भौजी ने बातें शुरू किया;
भौजी: अगर आप बुरा ना मनो तो एक बात कहूँ?
मैं: हाँ..हाँ बोलो
भौजी: आज आप बहुत हङ्सुम... लग रहे हो|
मैं: (भौजी के इस तरह हड़बड़ा कर अंग्रेजी में हैंडसम बोलने पे मुझे हंसी आ गई|) आप का मतलब हैंडसम ? हा..हा...हा...हा...
भौजी: हाँ..हाँ.. वही हैंडसम लग रहे हो!
मैं: थैंक यू|
भौजी का ऐसा कहने ककरण ये था की मैंने आज लाल रंग की टाइट वाली टी-शर्ट पहनी थी| ऊपर क दो बटन खुले थे और कालर खड़े किये हुए थे| नीचे मैंने ब्लू जीन्स पहनी थी और ब्राउन लोफ़र्स| मैं चलते समय अपने दोनों हाथ जीन्स के आगे की दोनों पॉकेट में डाले चल रहा था|
मैं: वैसे क़यामत तो आज आप ढा रहे हो| बस अपना ये घूँघट थोड़ा काम करो| सर पे पल्ला केवल अपने बालों के जुड़े तक ही रखो|
भौजी ने तुरंत ही मेरा सुझाव मान लिया और अपनी तारीफ सुन के थोड़ा मुस्कुराईं| फिर अचानक से गंभीर होते हुए बोलीं;
भौजी: आई...ऍम... सॉरी!
मैं: आपको सॉरी कहने की कोई जर्रूरत नहीं, मैं आपसे नाराज नहीं हूँ| मैंने तो आपको कल ही माफ़ कर दिया था| दरअसल मैं थोड़ा ज्यादा ही सेंसिटिव मतलव संवेदनशील हूँ| मैं जल्दी ही बातों को दिल पे ले लेता हूँ| आपने जरा सा मजाक ही तो किया था, और मैं बेकार में इतना भड़क गया और आपको डाँट दिया| I’M Sorry !!! वादा करता हूँ की मैं अपने इस व्यवहार को सुधारूँगा|
भौजी: आप जानते हो की आपकी एक ख़ास बात जिसने मुझे प्रभावित किया वो क्या है? आप अपनी गलती मानने में कभी नहीं जिझकते|
मैं: बस एक अच्छाई ही है... एक बुराई भी है| मैं बहुत जल्दी पिघल जाता हूँ... उस दिन जब आपने माधुरी और मेरी बात सुन ली थी, उस दिन मुझे माधुरी के लिए वाकई में बहुत बुरा लग रहा था| आखिर उसका दिल मेरी वजह से टूटा|
भौजी: ये बुराई नहीं है, आप किसी को भी दुखी नहीं देख सकते बस! चाहे वो इंसान कितना ही बुरा क्यों ना हो| खेर मैं आपसे नाराज हूँ!
मैं: क्यों?
भौजी: कल रात आपने खुद कुछ नहीं कहे और जबरदस्ती मुझे भोजन करा दिया| ऐसा क्यों किया आपने? जानते हैं आपने मुझे पाप का भागी बना दिया!
मैं: मैं प्रायश्चित कर रहा था|
भौजी: कैसा प्रायश्चित?
मैं: कल सारा दिन मैंने अपना जूठा गुस्सा दिखा के आपको बहुत तंग किया| मैं जानता हूँ आप मेरे इस बर्ताव से कितना बुझे हुए थे| मैं आपसे बात नहीं कर रहा था.. आपके आस-पास होक भी आपसे दूर था| इसलिए मैं प्रायश्चित कर रहा था|
भौजी: तो वो सब आप दिखाव कर रहे थे.... हाय राम! आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी| अब बड़े वो हैं!
(ये कहते हुए भौजी ने मेरी छाती पे धीरे से मुक्का मारा)
मैं: आह! हा..हा...हा...हा...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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