FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--45
अब आगे...
मैं: आप बड़े शैतान हो... तो प्रॉमिस Me, अब से आप और मैं अंग्रेजी में ही बात करेंगे?
भौजी: नहीं.... अगर किसी को पता चल गया तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा| प्लीज !!!
मैं: ठीक है बाबा... वैसे भी आप कौन सी मेरी हर बात मानते हो|
भौजी: नहीं आपके लिए तो जान हाजिर है| पर ....
मैं: ठीक है बाबा आपको सफाई देने की कोई जर्रूरत नहीं…… मैं समझ सकता हूँ|
भौजी: आप मेरी हर बात बिना कहे ही समझ जाते हो|
जब भौजी ने मेरे सामने अंग्रेजी में वो शब्द बोले तो मैं हैरान था पर बाद में उनकी पूरी बात सुनके मैं यही समझ पाया की उनका इस बात को राज रखने का कारन बहुत ही साफ़ था| घर वालों को वैसे भी कोई फर्क नहीं पड़ता बस यदि किसी बात में अगर भौजी अपनी राय देती तो सब यही कहते की ये जयादा पढ़ी लिखी है और अपनी धोंस दिखा रही है| जो की भौजी का आचरण बिलकुल भी नहीं था| और दूसरी बात उन्होंने मुझसे अंग्रेजी में बात करने से इसलिए मन कर दिया की घर वाले सोचंेगे की ये दोनों अंग्रेजी में बातें कर के जर्रूर कोई खिचड़ी पका रहे हैं| मैं और भौजी दोनों किसी की Unwanted Attention नहीं चाहते थे|
भौजी: अच्छा आप को मुझसे कुछ बात करनी थी?
मैं: हाँ वो.... (कुछ सोचते हुए)
भौजी: बोलो ना?
मैं: अभी नहीं... कल बात करेंगे, अभी सो जाओ|
भौजी: तो आप जा रहे हो? (उनका चेहरा फीका पढ़ने लगा था|)
मैं: अरे नहीं बाबा.... मैं अपनी जानेमन को छोड़ के कहाँ जाऊँगा|
मैं जानता था की अगर मैं जाने की बात की तो उनका मन ख़राब हो जायेगा इसलिए उनकी ख़ुशी के लिए मैं उनके साथ चिपका सोने लगा| पर नींद उड़ चुकी थी.... मैं तो बस इन्तेजार कर रहा था की कब उनकी आँख लगे और मैं चुप-चाप सरक के बहार आ जाऊँ| क्योंकि अगर मैं वहीँ सो जाता तो सुबह तूफ़ान आना तय था| करीब आधे घंटे में भौजी मुझसे लिपटी हुई सो गईं और मुझे ये पूरा यकीन हो गया की वो सो चुकी हैं| मैंने धीरे से अपना दायें हाथ को उनके सर के नीचे से खींच लिया| और अपने कपडे पहन लिए... पर भौजी अब भी निर्वस्त्र थीं| मैंने उनकी साडी उठाई और उनके ऊपर दाल दी और ऊपर से एक चादर डाल दी| मैं चुप-चाप बहार निकला और दरवाजा वापस बंद कर दिया|
बहार आके मैं अपनी चारपाई पे नेहा के बगल में लेट गया| नेहा ने करवट बदली और अपने हाथ मेरी छाती पे रख दिया| मैंने उसकी ओर करवट ली ओर उसके सर पे हाथ फेरने लगा| और अपने जीवन में आये इतने परिवर्तनों के बारे में सोचने लगा|
एक औरत जिसे पहले मैं अपना दोस्त मानता था आज वो मुझे अपना पति मानती है और मैं उसे अपनी पत्नी मानता हूँ! एक छोटी सी बच्ची जिसने आज मुझे "पापा" कहके सम्बोधित किया और मेरे मन में जैसे भावनाओं का सागर उमड़ आया! और मैं भी उसे अपनी बेटी मानने लगा| इतनी सी उम्र में मुझे इतना प्यार कैसे मिल गया? जो पैसे मुझे जेब खर्ची के लिए मिलते थे और मैं उन्हें जोड़ रहा था की मैं एक नया मोबाइल लूंगा उन्हें बिना कुछ सोचे मैं भौजी और नेहा पे खर्च कर दिया!!! मैं इतना बड़ा हो गया की एक शादी-शुदा औरत को भगाने की बात कर रहा हूँ? और उसकी और उसकी बेटी जिनसे मेरे दिल का अटूट रिश्ता बन चूका है उनकी जिम्मेदारियां उठाने को तैयार हूँ! आखिर मुझ हो क्या गया है? ये कैसा जादू है जिसने मेरे अंदर इतना बदलाव किया और मुझे इतना जिम्मेदार बना दिया| ये सब सोचते-सोचते मैं सारी रात जागता रहा| वो रात जैसे मेरे विचारों के अनुसार पहर बदल रही थी! सुबह मेरी आँखें खुली हुईं थी और मैं इन्तेजार कर रहा था की कब घर के सब लोग उठें और मैं भी उठ के बैठूं| मेरा हाथ अब भी नेहा को थप-थापा रहा था और आँखें खुलीं थी... जैसे मैं खुली आँखों से अब तक जो हुआ वो सब देख रहा हूँ| करीब पांच बजे भौजी आईं, नेहा को जगाने और मुझे जागता हुआ देख के थोड़ा परेशान हुईं;
भौजी: आप सोये नहीं रात भर?
मैं: नहीं.... नींद ही नहीं आई|
भौजी: क्या सोच रहे थे?
मैं: कुछ नहीं
भौजी: अभी आप थोड़ा सो लो मैं आपको आठ बजे उठाऊंगी फिर बात करेंगे| इस तरह सोओगे नहीं तो बीमार हो जाओगे|
मैं: नहीं... नींद नहीं आएगी| अब सब उठ गए हैं तो मैं भी उठ के नह धो लेता हूँ| दिन में सो लूंगा!
भौजी: (शिकायत भरे लहजे में कहा) हाँ भई अब हमारी कौन सुनता है|
बस इतना कहके वो नेहा को गोद में ले के चलीं गई और मैं भी उठ के नह धो के तैयार हो गया| भौजी ने नेहा को तैयार कर सात बजे तक स्कूल भेज दिया| मैं प्रमुख आँगन में बैठा चाय की चुस्की ले रहा था जब भौजी मेरे पास आईं और बोलीं;
भौजी: मैं आपसे नाराज हूँ.....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) ये अच्छा है मुझसे तो वादा ले लिया की की मैं कभी आपसे नाराज नहीं हो सकता और आप मुझसे नाराज हो जाओ?
भौजी: (मुस्कुरा दीं) आप मुझे रात में अकेला क्यों छोड़ आये?
मैं: अब मैं.....
मेरे कुछ कहने से पहले भौजी ने अपने मुंह पे हाथ रखा जैसे उन्हें उबकाई आ रही हो| वो तुरंत अपने घर की ओर भागीं| उन्हें इस तरह देख के मेरे प्राण सुख गए और मैं भी उनके पीछे भगा| अंदर जा के देखा तो भौजी स्नान घर में खड़ी हैं और उलटी कर रही हैं| मैं तुरंत भाग के रसोई की ओर भागा और चीखते हुए बड़की अम्मा को पुकारा| बड़की अम्मा रसोई से निकलीं और मेरी परेशानी का कारन पूछा| मैंने उन्हें बताया; "अम्मा भौजी उलटी कर रहीं हैं.. आप प्लीज देखिये ने उन्हें क्या हुआ है|" मेरी चिंता मेरे चेहरे पे झलक रही थी और अम्मा भौजी के पास दौड़ीं और मैं दौड़ के माँ को बुलाने बड़े घर पहुँचा| माँ कपडे तह लगा के रख रहीं थीं जब मैंने उन्हें भौजी के बारे में सब बताया| माँ बड़बड़ाते हुए निकलीं; "कल जर्रूर तूने कुछ अटपटा खिला दिया होगा इसलिए बहु को उलटी हो रही है|" अब मैं डर गया की कहीं उन्हें फ़ूड पोइज़निंग तो नहीं हो गई? अगर ऐसा होता तो उस दुकानवाले की खेर नहीं थी! इधर रसियक भाभी को देखा तो वो तो घोड़े बेच के सो रहीं थी| मैं जल्दी से अपने ख्यालों से बहार आया और भौजी के घर की ओर भाग| मैं अंदर जाना चाहता था परन्तु नहीं गया ... अब तक घर में हड़कम्प मच चूका था और ये कहना गलत नहीं होगा की वो हड़कम्प मैंने ही मचाया था|
करीब पांच मिनट बाद अम्मा भार निकलीं और उनके मुख पे ख़ुशी झलक रही थी| बहार का सीन कुछ इस तरह था;
भौजी के घर के दरव्वाजे के ठीक सामने मैं खड़ा था| भूसा रखने वाले कमरे के बहार पिताजी और बड़के दादा चारपाई डाल के बैठ थे और कुछ बात कर रहे थे| चन्दर भैया और अजय भैया खेतों और कुऐं के पास खड़े बात कर रहे थे| अब सब से पहले बड़की अम्मा को मैं दिखा तो वो मेरा परेशान चेहरा देख के बोलीं;
बड़की अम्मा: अरे मुन्ना परेशान मत हो, तुम चाचा बनने वाले हो!!!
ये सुन के मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और मन किया की अंदर जाके भौजी को गले लगा लूँ, पर मैं रूक गया और देखना चाहता था की चन्दर भैया की क्या प्रतिक्रिया है? अमा ख़ुशी-ख़ुशी चन्दर भैया के पास गईं और उन्हें खुश खबरी सुनाई पर उनके चेहरे पे कोई भाव ही नहीं थे| वो सर झुकाये सोच में पद गए और फिर खेतों की ओर निकल गए| पर अजय भैया बहुत खुश थे अब चूँकि मैं समझ चूका था की आज तो बवाल होना तय है इसलिए मैं भौजी को बधाई देने के लिए भागा| अंदर भौजी ओर माँ चारपाई पे बैठे थे ओर सबसे ज्यादा भौजी खुश दिख रहीं थी| और हों भी क्यों ना आखिर वो माँ बनने वालीं थीं... वो भी मेरे बच्चे के माँ!!!!
मैं जब अंदर पहुँचा तो भौजी मुझे गले लगाना चाहती थीं पर फिर उन्हें एहसास हुआ की माँ भी बैठी हैं| इसलिए वो मन मार के बैठीं रहीं| मैं उनके हाव भाव देख के समझ गया की वो क्या चाहती हैं| इसलिए मैं पहले अंदर गया और फिर 4 - ५ कदम दूर जाके खड़ा हो गया, और बड़े जोश से बोला;
"आप माँ बनने वाले हो!!!" और इतना कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोल दी और उन्हें दिखाया की मैं उन्हें गले लगाना चाहता हूँ| अब भौजी को खुद को रोक पाना मुश्किल था इसलिए वो तेजी से मेरी ओर बढ़ीं और मुझे गले लगा लिया|
भौजी ने मुझे कस के जकड लिया और मेरे कान में खुसफुसाइन; "आप बाप बनने वाले हो!" और मैंने जवाब में उन्हिएँ; "थैंक यू" कहा| ये सब माँ के सामने हो रहा था और माँ सोच रहीं थी की ये देवर-भाभी का प्यार है| हम अलग हुए और भौजी वापस अपनी चारपाई पे माँ के बगल में बैठ गईं और माँ ने उनके सर पे हाथ फेरा| इतने में बड़की अम्मा अंदर आ गईं और उनके हाथ में मिठाई थी| वो बोलीं;
बड़की अम्मा: चलो भई अबकी मेरा अपने पोते को गोद में खिलाने का सपना पूरा जर्रूर होगा|
अब ये सुनके मेरा दिमाग ख़राब होगया| बड़की अम्मा एक औरत होक ऐसी दाखियानूसी बातें कैसे कर सकती हैं इसलिए मैं उन्हें अपना विरोध जताया;
मैं: क्यों अम्मा अगर लड़की हुई तो?
बड़की अम्मा: नहीं... मैं जानती हूँ की लड़का ही होगा! तुम ये मिठाई खाओ| (ये कहते हुए उन्होंने मेरे आगे मिठाई का डिब्बा सरका दिया|)
मैं: आप इतना यकीन से कैसे कह सकते हो की लड़का ही होगा? और मुझे तो आश्चर्य इस बात का है की आप एक औरत हो के इस तरह कह रहे हो|
बड़की अम्मा: मुन्ना वंश चालने के लिए लड़का तो होना चाहिए ना?
मैं: तो लड़का है नहीं क्या? लड़का या लड़की भगवान की मर्जी होती है इसमें माँ क्या कर सकती है?
बड़की अम्मा: मुन्ना तुम्हारे बड़के दादा को पोता ही चाहिए?
मैं: ओह तो ये बात है! मैं उनसे इस बारे में बात अवश्य करूँगा|
भौजी ने मुझे रोकना चाहा पर मैंने उनकी अनसुनी कर ई और बड़के दादा से बहस का इरादा लिए उनके सामने खड़ा हो गया| ऐसा नहीं था की मुझे हीरो बनने का बहुत शौक था या ये मेरा बच्चा है और बड़े बुजुर्ग इसमें भौजी को दोष दे रहे हैं, परन्तु मेरी अंतर आत्मा ने कहा की मुझे इसका विरोध करना चाहिए| मैंने बड़ी उखड़ी हुए अंदाज में उनसे बात की;
बड़के दादा: आओ-आओ बेटा बैठो! ये लो मिटहाउि खाओ, तुम चाचा बनने वाले हो!
मैं: दादा मुझे आपसे कुछ बात करनी है|
बड़के दादा: हाँ कहो?
मैं: आपको पोती चाहिए या पोता?
बड़के दादा: (बड़े गर्व से) पोता!!!!
मैं: अगर पोती हुई तो?
बड़के दादा: अरे शुभ-शुभ कहो बेटा?
मैं: मैंने कौन सी मनहूसियत की बात कह दी? मैं तो आपसे एक सीधा सा सवाल पूछ रहा हूँ|
बड़के दादा: अरे पोता ही होगा|
मैं: आप इतना यकीन से कैसे कह सकते हैं?
बड़के दादा: अरे मुन्ना (मेरे पताजी से) देख तो तेरा लड़का बड़े सवाल पूछ रहा है?
पिताजी: क्यों रे? बड़ों का लिहाज नहीं है तुझे?
मैं: पिताजी मैंने तो बस एक सीधा सा सवाल पूछा बस?
पिताजी: तो उन्होंने कह तो दिया की पोता होगा?
मैं: मैं यही तो जानना चाहता हूँ की दादा इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं?
पिताजी: तू....
मैं: (बीच में बात काटते हुए) क्षमा करें पिताजी मैं आपकी बात काट रहा हूँ परन्तु मुझे बड़के दादा का यूँ पोते के प्रति पक्षपात ठीक नहीं लगा| पहले भी जब नेहा पैदा हुई तो भी यही बखेड़ा खड़ा हुआ था और नतीजा आप देख सकते हो की चन्दर भैया और भौजी की नहीं बनती| और अब फिर ये सवाल की पोता ही होगा? अगर मेरी जगह आपके घर लड़की पैदा होती तो क्या आप उसे उतना प्यार नहीं देते जितना आप मुझे देते हैं? क्या आप उसे वही शिक्षा नहीं देते जो आपने मुझे दी? क्या आप उसे बड़ों का आदर करना और छोटों से प्यार करना नहीं सिखाते? आपने तो कभी कोई भेद-भाव नहीं किया तो बड़के दादा क्यों करते हैं?
पिताजी और बड़के दादा के पास कोई जवाब नहीं था और ना ही मैं किसी जवाब की अपेक्षा रखता था| इसलिए मैं चुप-चाप वहाँ से उठ आया, मैं जानता था की मेरे इस ज्ञान का उन सब पे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा| इसलिए मैं वापस अंदर आ गया ...
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बदलाव के बीज--45
अब आगे...
मैं: आप बड़े शैतान हो... तो प्रॉमिस Me, अब से आप और मैं अंग्रेजी में ही बात करेंगे?
भौजी: नहीं.... अगर किसी को पता चल गया तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा| प्लीज !!!
मैं: ठीक है बाबा... वैसे भी आप कौन सी मेरी हर बात मानते हो|
भौजी: नहीं आपके लिए तो जान हाजिर है| पर ....
मैं: ठीक है बाबा आपको सफाई देने की कोई जर्रूरत नहीं…… मैं समझ सकता हूँ|
भौजी: आप मेरी हर बात बिना कहे ही समझ जाते हो|
जब भौजी ने मेरे सामने अंग्रेजी में वो शब्द बोले तो मैं हैरान था पर बाद में उनकी पूरी बात सुनके मैं यही समझ पाया की उनका इस बात को राज रखने का कारन बहुत ही साफ़ था| घर वालों को वैसे भी कोई फर्क नहीं पड़ता बस यदि किसी बात में अगर भौजी अपनी राय देती तो सब यही कहते की ये जयादा पढ़ी लिखी है और अपनी धोंस दिखा रही है| जो की भौजी का आचरण बिलकुल भी नहीं था| और दूसरी बात उन्होंने मुझसे अंग्रेजी में बात करने से इसलिए मन कर दिया की घर वाले सोचंेगे की ये दोनों अंग्रेजी में बातें कर के जर्रूर कोई खिचड़ी पका रहे हैं| मैं और भौजी दोनों किसी की Unwanted Attention नहीं चाहते थे|
भौजी: अच्छा आप को मुझसे कुछ बात करनी थी?
मैं: हाँ वो.... (कुछ सोचते हुए)
भौजी: बोलो ना?
मैं: अभी नहीं... कल बात करेंगे, अभी सो जाओ|
भौजी: तो आप जा रहे हो? (उनका चेहरा फीका पढ़ने लगा था|)
मैं: अरे नहीं बाबा.... मैं अपनी जानेमन को छोड़ के कहाँ जाऊँगा|
मैं जानता था की अगर मैं जाने की बात की तो उनका मन ख़राब हो जायेगा इसलिए उनकी ख़ुशी के लिए मैं उनके साथ चिपका सोने लगा| पर नींद उड़ चुकी थी.... मैं तो बस इन्तेजार कर रहा था की कब उनकी आँख लगे और मैं चुप-चाप सरक के बहार आ जाऊँ| क्योंकि अगर मैं वहीँ सो जाता तो सुबह तूफ़ान आना तय था| करीब आधे घंटे में भौजी मुझसे लिपटी हुई सो गईं और मुझे ये पूरा यकीन हो गया की वो सो चुकी हैं| मैंने धीरे से अपना दायें हाथ को उनके सर के नीचे से खींच लिया| और अपने कपडे पहन लिए... पर भौजी अब भी निर्वस्त्र थीं| मैंने उनकी साडी उठाई और उनके ऊपर दाल दी और ऊपर से एक चादर डाल दी| मैं चुप-चाप बहार निकला और दरवाजा वापस बंद कर दिया|
बहार आके मैं अपनी चारपाई पे नेहा के बगल में लेट गया| नेहा ने करवट बदली और अपने हाथ मेरी छाती पे रख दिया| मैंने उसकी ओर करवट ली ओर उसके सर पे हाथ फेरने लगा| और अपने जीवन में आये इतने परिवर्तनों के बारे में सोचने लगा|
एक औरत जिसे पहले मैं अपना दोस्त मानता था आज वो मुझे अपना पति मानती है और मैं उसे अपनी पत्नी मानता हूँ! एक छोटी सी बच्ची जिसने आज मुझे "पापा" कहके सम्बोधित किया और मेरे मन में जैसे भावनाओं का सागर उमड़ आया! और मैं भी उसे अपनी बेटी मानने लगा| इतनी सी उम्र में मुझे इतना प्यार कैसे मिल गया? जो पैसे मुझे जेब खर्ची के लिए मिलते थे और मैं उन्हें जोड़ रहा था की मैं एक नया मोबाइल लूंगा उन्हें बिना कुछ सोचे मैं भौजी और नेहा पे खर्च कर दिया!!! मैं इतना बड़ा हो गया की एक शादी-शुदा औरत को भगाने की बात कर रहा हूँ? और उसकी और उसकी बेटी जिनसे मेरे दिल का अटूट रिश्ता बन चूका है उनकी जिम्मेदारियां उठाने को तैयार हूँ! आखिर मुझ हो क्या गया है? ये कैसा जादू है जिसने मेरे अंदर इतना बदलाव किया और मुझे इतना जिम्मेदार बना दिया| ये सब सोचते-सोचते मैं सारी रात जागता रहा| वो रात जैसे मेरे विचारों के अनुसार पहर बदल रही थी! सुबह मेरी आँखें खुली हुईं थी और मैं इन्तेजार कर रहा था की कब घर के सब लोग उठें और मैं भी उठ के बैठूं| मेरा हाथ अब भी नेहा को थप-थापा रहा था और आँखें खुलीं थी... जैसे मैं खुली आँखों से अब तक जो हुआ वो सब देख रहा हूँ| करीब पांच बजे भौजी आईं, नेहा को जगाने और मुझे जागता हुआ देख के थोड़ा परेशान हुईं;
भौजी: आप सोये नहीं रात भर?
मैं: नहीं.... नींद ही नहीं आई|
भौजी: क्या सोच रहे थे?
मैं: कुछ नहीं
भौजी: अभी आप थोड़ा सो लो मैं आपको आठ बजे उठाऊंगी फिर बात करेंगे| इस तरह सोओगे नहीं तो बीमार हो जाओगे|
मैं: नहीं... नींद नहीं आएगी| अब सब उठ गए हैं तो मैं भी उठ के नह धो लेता हूँ| दिन में सो लूंगा!
भौजी: (शिकायत भरे लहजे में कहा) हाँ भई अब हमारी कौन सुनता है|
बस इतना कहके वो नेहा को गोद में ले के चलीं गई और मैं भी उठ के नह धो के तैयार हो गया| भौजी ने नेहा को तैयार कर सात बजे तक स्कूल भेज दिया| मैं प्रमुख आँगन में बैठा चाय की चुस्की ले रहा था जब भौजी मेरे पास आईं और बोलीं;
भौजी: मैं आपसे नाराज हूँ.....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) ये अच्छा है मुझसे तो वादा ले लिया की की मैं कभी आपसे नाराज नहीं हो सकता और आप मुझसे नाराज हो जाओ?
भौजी: (मुस्कुरा दीं) आप मुझे रात में अकेला क्यों छोड़ आये?
मैं: अब मैं.....
मेरे कुछ कहने से पहले भौजी ने अपने मुंह पे हाथ रखा जैसे उन्हें उबकाई आ रही हो| वो तुरंत अपने घर की ओर भागीं| उन्हें इस तरह देख के मेरे प्राण सुख गए और मैं भी उनके पीछे भगा| अंदर जा के देखा तो भौजी स्नान घर में खड़ी हैं और उलटी कर रही हैं| मैं तुरंत भाग के रसोई की ओर भागा और चीखते हुए बड़की अम्मा को पुकारा| बड़की अम्मा रसोई से निकलीं और मेरी परेशानी का कारन पूछा| मैंने उन्हें बताया; "अम्मा भौजी उलटी कर रहीं हैं.. आप प्लीज देखिये ने उन्हें क्या हुआ है|" मेरी चिंता मेरे चेहरे पे झलक रही थी और अम्मा भौजी के पास दौड़ीं और मैं दौड़ के माँ को बुलाने बड़े घर पहुँचा| माँ कपडे तह लगा के रख रहीं थीं जब मैंने उन्हें भौजी के बारे में सब बताया| माँ बड़बड़ाते हुए निकलीं; "कल जर्रूर तूने कुछ अटपटा खिला दिया होगा इसलिए बहु को उलटी हो रही है|" अब मैं डर गया की कहीं उन्हें फ़ूड पोइज़निंग तो नहीं हो गई? अगर ऐसा होता तो उस दुकानवाले की खेर नहीं थी! इधर रसियक भाभी को देखा तो वो तो घोड़े बेच के सो रहीं थी| मैं जल्दी से अपने ख्यालों से बहार आया और भौजी के घर की ओर भाग| मैं अंदर जाना चाहता था परन्तु नहीं गया ... अब तक घर में हड़कम्प मच चूका था और ये कहना गलत नहीं होगा की वो हड़कम्प मैंने ही मचाया था|
करीब पांच मिनट बाद अम्मा भार निकलीं और उनके मुख पे ख़ुशी झलक रही थी| बहार का सीन कुछ इस तरह था;
भौजी के घर के दरव्वाजे के ठीक सामने मैं खड़ा था| भूसा रखने वाले कमरे के बहार पिताजी और बड़के दादा चारपाई डाल के बैठ थे और कुछ बात कर रहे थे| चन्दर भैया और अजय भैया खेतों और कुऐं के पास खड़े बात कर रहे थे| अब सब से पहले बड़की अम्मा को मैं दिखा तो वो मेरा परेशान चेहरा देख के बोलीं;
बड़की अम्मा: अरे मुन्ना परेशान मत हो, तुम चाचा बनने वाले हो!!!
ये सुन के मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और मन किया की अंदर जाके भौजी को गले लगा लूँ, पर मैं रूक गया और देखना चाहता था की चन्दर भैया की क्या प्रतिक्रिया है? अमा ख़ुशी-ख़ुशी चन्दर भैया के पास गईं और उन्हें खुश खबरी सुनाई पर उनके चेहरे पे कोई भाव ही नहीं थे| वो सर झुकाये सोच में पद गए और फिर खेतों की ओर निकल गए| पर अजय भैया बहुत खुश थे अब चूँकि मैं समझ चूका था की आज तो बवाल होना तय है इसलिए मैं भौजी को बधाई देने के लिए भागा| अंदर भौजी ओर माँ चारपाई पे बैठे थे ओर सबसे ज्यादा भौजी खुश दिख रहीं थी| और हों भी क्यों ना आखिर वो माँ बनने वालीं थीं... वो भी मेरे बच्चे के माँ!!!!
मैं जब अंदर पहुँचा तो भौजी मुझे गले लगाना चाहती थीं पर फिर उन्हें एहसास हुआ की माँ भी बैठी हैं| इसलिए वो मन मार के बैठीं रहीं| मैं उनके हाव भाव देख के समझ गया की वो क्या चाहती हैं| इसलिए मैं पहले अंदर गया और फिर 4 - ५ कदम दूर जाके खड़ा हो गया, और बड़े जोश से बोला;
"आप माँ बनने वाले हो!!!" और इतना कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोल दी और उन्हें दिखाया की मैं उन्हें गले लगाना चाहता हूँ| अब भौजी को खुद को रोक पाना मुश्किल था इसलिए वो तेजी से मेरी ओर बढ़ीं और मुझे गले लगा लिया|
भौजी ने मुझे कस के जकड लिया और मेरे कान में खुसफुसाइन; "आप बाप बनने वाले हो!" और मैंने जवाब में उन्हिएँ; "थैंक यू" कहा| ये सब माँ के सामने हो रहा था और माँ सोच रहीं थी की ये देवर-भाभी का प्यार है| हम अलग हुए और भौजी वापस अपनी चारपाई पे माँ के बगल में बैठ गईं और माँ ने उनके सर पे हाथ फेरा| इतने में बड़की अम्मा अंदर आ गईं और उनके हाथ में मिठाई थी| वो बोलीं;
बड़की अम्मा: चलो भई अबकी मेरा अपने पोते को गोद में खिलाने का सपना पूरा जर्रूर होगा|
अब ये सुनके मेरा दिमाग ख़राब होगया| बड़की अम्मा एक औरत होक ऐसी दाखियानूसी बातें कैसे कर सकती हैं इसलिए मैं उन्हें अपना विरोध जताया;
मैं: क्यों अम्मा अगर लड़की हुई तो?
बड़की अम्मा: नहीं... मैं जानती हूँ की लड़का ही होगा! तुम ये मिठाई खाओ| (ये कहते हुए उन्होंने मेरे आगे मिठाई का डिब्बा सरका दिया|)
मैं: आप इतना यकीन से कैसे कह सकते हो की लड़का ही होगा? और मुझे तो आश्चर्य इस बात का है की आप एक औरत हो के इस तरह कह रहे हो|
बड़की अम्मा: मुन्ना वंश चालने के लिए लड़का तो होना चाहिए ना?
मैं: तो लड़का है नहीं क्या? लड़का या लड़की भगवान की मर्जी होती है इसमें माँ क्या कर सकती है?
बड़की अम्मा: मुन्ना तुम्हारे बड़के दादा को पोता ही चाहिए?
मैं: ओह तो ये बात है! मैं उनसे इस बारे में बात अवश्य करूँगा|
भौजी ने मुझे रोकना चाहा पर मैंने उनकी अनसुनी कर ई और बड़के दादा से बहस का इरादा लिए उनके सामने खड़ा हो गया| ऐसा नहीं था की मुझे हीरो बनने का बहुत शौक था या ये मेरा बच्चा है और बड़े बुजुर्ग इसमें भौजी को दोष दे रहे हैं, परन्तु मेरी अंतर आत्मा ने कहा की मुझे इसका विरोध करना चाहिए| मैंने बड़ी उखड़ी हुए अंदाज में उनसे बात की;
बड़के दादा: आओ-आओ बेटा बैठो! ये लो मिटहाउि खाओ, तुम चाचा बनने वाले हो!
मैं: दादा मुझे आपसे कुछ बात करनी है|
बड़के दादा: हाँ कहो?
मैं: आपको पोती चाहिए या पोता?
बड़के दादा: (बड़े गर्व से) पोता!!!!
मैं: अगर पोती हुई तो?
बड़के दादा: अरे शुभ-शुभ कहो बेटा?
मैं: मैंने कौन सी मनहूसियत की बात कह दी? मैं तो आपसे एक सीधा सा सवाल पूछ रहा हूँ|
बड़के दादा: अरे पोता ही होगा|
मैं: आप इतना यकीन से कैसे कह सकते हैं?
बड़के दादा: अरे मुन्ना (मेरे पताजी से) देख तो तेरा लड़का बड़े सवाल पूछ रहा है?
पिताजी: क्यों रे? बड़ों का लिहाज नहीं है तुझे?
मैं: पिताजी मैंने तो बस एक सीधा सा सवाल पूछा बस?
पिताजी: तो उन्होंने कह तो दिया की पोता होगा?
मैं: मैं यही तो जानना चाहता हूँ की दादा इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं?
पिताजी: तू....
मैं: (बीच में बात काटते हुए) क्षमा करें पिताजी मैं आपकी बात काट रहा हूँ परन्तु मुझे बड़के दादा का यूँ पोते के प्रति पक्षपात ठीक नहीं लगा| पहले भी जब नेहा पैदा हुई तो भी यही बखेड़ा खड़ा हुआ था और नतीजा आप देख सकते हो की चन्दर भैया और भौजी की नहीं बनती| और अब फिर ये सवाल की पोता ही होगा? अगर मेरी जगह आपके घर लड़की पैदा होती तो क्या आप उसे उतना प्यार नहीं देते जितना आप मुझे देते हैं? क्या आप उसे वही शिक्षा नहीं देते जो आपने मुझे दी? क्या आप उसे बड़ों का आदर करना और छोटों से प्यार करना नहीं सिखाते? आपने तो कभी कोई भेद-भाव नहीं किया तो बड़के दादा क्यों करते हैं?
पिताजी और बड़के दादा के पास कोई जवाब नहीं था और ना ही मैं किसी जवाब की अपेक्षा रखता था| इसलिए मैं चुप-चाप वहाँ से उठ आया, मैं जानता था की मेरे इस ज्ञान का उन सब पे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा| इसलिए मैं वापस अंदर आ गया ...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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