Thursday, October 30, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--53

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--53

अब आगे...

 सुबह छः बजे मेरी आँख खुली| मैंने उठने की कोशिश की पर ताकत नहीं थी... बहुत कमजोरी थी! अब मूतने जाना था तो उठना तो पड़ता ही| जैसे-तैसे कर के सहारा लेते हुए मैं उठ बैठा और स्नानघर तक लड़खड़ाते हुए पहुँच गया| मूट के वापस आ रहा था तो अम्मा दिखीं;

बड़की अम्मा: अरे मुन्ना तुम्हारी तबियत तो और ख़राब लग रही है| तुम आज आराम करो! खेत में अब जयदा काम नहीं है|

मैं चुप-चाप चारपाई पे पीठ के बल लेट गया और उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं| आगे जो भी हुआ वो मुझे भौजी ने ही बताया था| तो मैं आगे की कहानी भौजी की जुबानी सुना रहा हूँ|

करीब दस बजे भौजी घर पहुंची और सब से पहले मुझे ढूंढने लगीं| उन्हें मैं ना तो खेतों में मिला...न प्रमुख आँगन में और ना ही उनके घर में| जब उन्होंने रसिका भाभी से पूछा तब पता चला की मैं अपने कमरे में हूँ| भौजी दौड़ती हुई कमरे में दाखिल हुईं और मुझे सोते हुए देख उन्होंने मुझे पुकारा; "सुनिए..........सुनिए.........सुनिए......" तीन बार पुकारने पर भी जब मैं कुछ नहीं बोला तो उन्हें चिंता हुई और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के हिलाया| मेरा शरीर बुखार से तप रहा था| उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के हिलाया पर मैं तब भी नहीं उठा, तो भौजी के मन में बुरे ख्याल आने लगे की कहीं मैं मर तो नहीं गया| ये ख्याल आते ही उनके आँखों से आँसूं बह निकले| उन्होंने चीखते हुए कहा; "No.No.No….. you can’t do this to me! …Please…. Talk to me!!! Please …." इतना कहते उए वो बिलख-बिलख के रोने लगीं... उन्होंने मेरी छाती पे अपना कान लगा की मेरे दिल की धड़कन चेक की.... वो अब भी उनके लिए धड़क रहा था| वो तुरंत भाग के बहार आइन और लोटे में पानी ले के उसके कुछ छींटें मेरे मुख पे मारे|

पानी की ठंडी बूंदों ने मेरी चेतना को भांग किया और मैं बेहोशी की हालत से बाहर आया| जब आँख खुली तो शुरू-शुरू में सब धुंधला सा दिखा क्योंकि बहार से प्रकाश तेजी से आँखों को चुभ रहा था| जब गर्दन घुमा के भौजी को देखा तो दिल की धड़कन तेज हो गई| एल पल के लिए तो विश्वास ही नहीं हुआ की भौजी मेरे पास बैठीं हैं| मन तो किया की उन्हें कस के गले लगा लूँ पर शरीर साथ नहीं दे रहा था| भौजी को रोता हुआ देख के मन दुखा पर ये समझ नहीं आया की वो रो क्यों रहीं है| मेरा गाला सुख रहा था इसलिए शब्द बड़ी मुश्किल से बाहर आये; "आप.....रो क्यों......रहे हो?"

भौजी कुछ बोलीं नहीं बस मुझसे लिपट गई और फुट-फुट के रोने लगीं| मैंने उनकी पीठ को सहलाया और उन्हें चुप कराया| उन्होंने आँसूं पोछते हुए कहा; "आपने मेरी जान ही निकाल दी थी!"

मैं: क्यों..... मैंने क्या ....किया?

भौजी: आप बेहोश थे! और मैं कितना डर गई थी ... आपको नहीं पता|

मैं: हुंह.....

भौजी: ये क्या हालत बना ली है आपने? आपका शरीर बुखार से जल रहा है... आँखें सूजी हुई हैं... DARK CIRCLES हो गए हैं.... इतनी कमजोरी.... जब मेरे बिना रह नहीं सकते तो क्यों भेजा आपने मुझे?

मैं: मैं.... भी यही... सोच रहा था| पर....

भौजी: पहले आप पानी पीओ....

भौजी ने मुझे सहारा दे के बैठाया और पानी पिलाया| पर सच में अब मुझ में वो शक्ति नहीं थी की मैं बैठ पाऊँ इसलिए मैं पुनः लेट गया| भौजी: अब मैं आपको छोड़के कहीं नहीं जाऊंगी....

इतने में रसिका भाभी आ गईं;

भौजी: क्यों छोटी.... तूने ध्यान नहीं रखा इनका? और आप बताओ की आखिर हुआ क्या है?

मैं कुछ नहीं बोला बस अपना मुँह फेर लिया.... भौजी समझ गईं की कुछ तो बात है जो मैं उनसे छुपा रहा हूँ| भौजी ने रसिका भाभी से कहा की वो नेहा को देखें वो कहाँ है?

भौजी: अब आप बताओ क्या बात है?

मैं कुछ नहीं बोला ...

भौजी: आपको मेरी कसम...मुझसे कुछ मत छुपाना!



अब मुझे उनकी कसम दी गई थी तो मैंने उन्हें सारी बात बता दी| ये सब सुन के भौजी का चेहरा देखने लायक था| गुस्से से उनका मुँह तमतमाया हुआ था| उन्होंने गरज के आवाज लगाईं;

भौजी: रसिका !!! रसिका !!!

मैं: आप प्लीज शांत हो जाओ...सीन मत CREATE करो!

भौजी: मैं आज इसे नहीं छोडूंगी|

भौजी की सांसें तेज हो गईं थी.. वो इतना गुस्से में थी की सामने वाले को चीर दें और आज उनकी बिजली रसिका नाम की बेल पर गिरने वाली थी जिसने उनके प्यारे से घरौंदे को अपने वष में करने की कोशिश की थी|
इतने में रसिका भाभी नेहा को लेके आ गईं, और भौजी को तमतमाया देख उनकी फटी जर्रूर होगी|


भौजी: तेरी हिम्मत कैसे हुई इनहें छूने की? ये सिर्फ मेरे हैं!!! और अगर तू इनके आस पास भी भटकी ..या आँख उठा के देखा तो मैं तेरी चमड़ी उधेड़ दूँगी!!

भौजी का ये रोद्र रूप देख के बेचारी नेहा सहम गई और आके मेरी चारपाई के नीचे छिप गई| मैं भी हैरान था की भौजी मुझे लेके इतनी Possessive हैं!!! और सच कहूँ तो मैं भी थोड़ा डर गया था| मैं परेशान था की भौजी ने बिना डरे रसिका भाभी से ये कह दिया की "ये मेरे है"... अब अगर रसिका भाभी ने जलन के मारे ये बात किसी से कह दी तो? रसिका भाभी मोटे-मोटे आँसूं गिराते हुए वहाँ से चली गईं और इधर भौजी करीब दो मिनट तक आँगन में अकेली कड़ी रहीं| वो सर झुकाये कुछ सोच रहीं थीं...फिर वो अंदर कमरे में आई| मैं कुछ नहीं बोला...बस उन्हें एकटक देख रहा था| भौजी मुझसे कुछ नहीं बोलीं, फिर अचानक उठीं और मुझसे पूछा; "आपका पर्स कहाँ है?" मैंने इशारे से उन्हें बताय की दरवाजे के पीछे टंगी पैंट की जेब में है| भौजी ने पर्स निकला और उसमें कुछ ढूंढने लगीं| फिर उन्होंने पर्स से एक कागज का टुकड़ा निकला और उसे लेके बहार चलीं गई| मुझे याद आया की नेहा चारपाई के नीचे छुपी है| मैंने उसे पुकारा और उसे बहार निकलने को बोला| नेहा बहार आई तो सहमी थी और रो रही थी| मैंने उसके आँसूं पोछे; उसने अपनी प्यारी सी आवाज में पूछा, "पापा....मम्मी च्जची को डाँट क्यों रही थी?" मैंने उसे कहा; " बेटा आपकी चाची ने कुछ गलत काम किया इसलिए उन्हें झाड़ पड़ी| आप घबराओ मत और यहाँ कुर्सी पे बैठो|" नेहा ने मेरी बगल में लेटना चाहा तो मैंने उसे ये कह के मना कर दिया की, " बेटा मुझे खांसी-जुखाम है... आप मुझसे थोड़ा दूर रहो नहीं तो आपको भी हो जायेगा?" नेहा ने अच्छे बच्चे की तरह मेरी बात मान ली और सामने पड़ी कुर्सी पे बैठ गई और वहीँ से मेरे साथ "चिड़िया उडी" खेलने लगी|

करीब पांच मिनट बाद भौजी लौटीं और अब वो नार्मल लग रहीं थीं| एक बार फिर उन्हें देख नेहा डर गई और मेरे पास आके बैठ गई|

 भौजी कुर्सी पे बैठ गई और मुझसे बोलीं;

भौजी: थोड़ी देर में डॉक्टर साहब आ रहे हैं|

दरअसल भौजी नेमेरे पर्स से डॉक्टर का नंबर ढूंढा था ओर डॉक्टर साहब को फ़ोन कर के बुला लिया था|

मैं: ठीेक है| (मैंने कोई बहस नहीं की)

भौजी: नेहा चलो आप कपडे बदल लो और फिर पापा के पास सो जाना तब तक मैं खाना बनाती हूँ|

मैं: नहीं...नेहा बेटा आप मेरे साथ मत सोना!

भौजी: क्यों?

मैं: मुझे जुखाम-खांसी है और मैं नहीं चाहता की नेहा बीमार पड़ जाए|

भौजी: कुछ नहीं होगा!

मैं: नहीं ...

भौजी समझ गई की उनके बर्ताव ना केवल नेहा डरी हुई है बल्कि मैं भी नाराज हूँ| पर अब भी उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ था और वो अगर बहस करती तो बात बिगड़ जाती| इसलिए वो चुप-चाप खाना बनाने चली गईं| नेहा डर के मारे कहीं नहीं गई और मेरे पास बैठ के मुझे कंपनी देने लगी और बीच-बीच में अपने प्यारे-प्यारे सवालों से मुझे हँसाती रही| करीब आधे घंटे बाद डॉक्टर साहब आये और मेरे पास कुर्सी पे बैठ गए| उन्हें देखते ही नेहा भौजी को बुलाने चली गई|

डॉक्टर साहब: Hey Friend….How are you feeling now?

मेरे जवाब देने से पहले ही भौजी आ गईं और मेरे सिरहाने आके बैठ गईं| मैंने उनकी ओर देखते हुए जवाब दिया:

मैं: Well I’m feeling better…Cause I’m in safe hands now!

डॉक्टर साहब: Oh! Okay your bhabhi told me that you haven’t eaten anything since she was gone to her Mom’s.

मैं: Yeah….. I was missing her!

भौजी हमारी बातें समझ चुकी थीं ओर उनके मुख पे मैंने वही प्यारी मुस्कान देखी| उन्होंने बीच में ही अपनी बात जोड़ दी ओर मेरी बात को नया मोड़ दे दिया;

भौजी: डॉक्टर साहब दरअसल इन्हें नेहा की याद बहुत आई| इनका उसके साथ लगाव इतना है की क्या बताऊँ| वहाँ नेहा का भी यही हाल था...बार बार इनके बारे में पूछती थी| रोने लगती थी ...की मुझे इनके पास जाना है|

भौजी ने नेहा की आध लेके अपने दिल के बात सामने रख दी| मैं हैरान था की एक तरफ तो भौजी खुद रसिका भाभी के सामने हमारे रिश्ते को उजागर कर रहीं थी ओर दूसरी तरफ अभी डॉक्टर साहब के सामने जब मैंने कुछ कहँ अ चाहा तो उन्होंने बातों को घुमा दिया|

डॉक्टर साहब: यार तुम्हें कमजोरी बहुत हो गई है| मैं तुम्हें एक इंजेक्शन दे रहा हूँ| इससे कमजोरी कम होगी पर हाँ जरा चलने फिरने में ध्यान रखना कहीं गिर ना जाओ|

भौजी: आप चिंता ना करें डॉक्टर साहब, अब मैं आ गईं हूँ तो मैं मैं इनका पूरा ध्यान रखूँगी|

डॉक्टर साहब: That's Good ! ठन्डे पानी से नहाना मत ओर ठंडी चीजों से परहेज करना| ओर ये दवाइयाँ समय पे लेते रहना| वैसे इस इंजेक्शन से बुखार कम हो जायेगा बाकी काम ये दवाइयाँ कर देंगी| हो सकता है की रात में बुखार चढ़ जाए...ऐसे में आपको (भौजी) को थोड़ा ध्यान रखना होगा| अगर बुखार चढ़ गया तो ठन्डे पानी की पत्तियां बदलते रहना ओर मुझे कल फ़ोन करके जर्रूर बुलाना नहीं तो बिमारी बढ़ जाएगी|

भौजी: जी डॉक्टर साहब|

मैं: अच्छा डॉक्टर साहब एक बात आपसे पूछनी है? आपने तो देखा ही है की मुझे जुखाम-खांसी है, जो की एक COMMUNICABLE DISESASE है और ऐसे में मैं नेहा को खुद से दूर रखता हूँ तो इन्हें (भौजी को) बड़ी तकलीफ होती है| मैं कहता हूँ की बच्ची को भी ये बिमारी लग जाएगी तो ये कहतीं हैं की कुछ नहीं होगा| अब आप ही इन्हें (भौजी को) समझाइये!

डॉक्टर साहब: देखिये ये कोई बड़ी बिमारी नहीं है पर फिर भी एक इंसान से दूसरे को बड़ी आसानी से लग जाती है| जल्द ही मानु ठीक हो जायेगा तब आप अपने चाचा के साथ खूब खेलना| (उन्होंने नेहा के सर पे हाथ फेरते हुए कहा)

मैंने मेरे सिरहाने पड़े पर्स से ५००/- रूपए निकाल के डॉक्टर को दिए तो भौजी मुझे रोकने लगीं की मैं दूँगी तो मैंने जिद्द करके दे दिए| भौजी का मुँह बन गया! डॉक्टर साहब तो चले गए ....पर यहाँ मेरे ओर भौजी में शीत युद्ध का माहोल बन गया|

 खेर ये युद्ध कम शरारत ज्यादा थी...भौजी ने शिकायती लहजे में कहा;

भौजी: आपने पैसे क्यों दिए?

मैं: क्यों क्या हुआ?

भौजी: मैंने उन्हें बुलाया था...पैसे मुझे देने थे ओर आप.....

मैं: अरे बाबा, पैसे मैं दूँ या आप बात तो एक ही है|

भौजी: नहीं ...आप मुझे कभी भी कुछ नहीं करने देते|

मैं: अच्छा बाबा...अगली बार आप दे देना|

भौजी: मतलब अगली बार फिर बीमार पड़ोगे?

भौजी की इस बात पे हम दोनों खिल-खिला के हंस पड़े| वाकई कई दिनों बाद मैं हँसा था....!!! दोपहर को उन्हीं के हाथ का बना खाना मैंने खाया जिसे उन्होंने मुझे खुद खिलाया| मैं उनसे कहा भी की मैं खुद खा लूंगा पर वो नहीं मानी| खाने में, अरहर की दाल, चावल, रोटी और भिन्डी की सब्जी थी| अब हमारे गाँव में यही म मिलता है तो क्या करें! खाना मैं कम ही खा रहा था क्योंकि पेट को आदत नहीं थी इतना प्यार भरा खाना खाने की! शाम को भौजी ने चाय बनाई और मुझे पिलाई...घर में बड़के दादा और अम्मा भी खुश थे| क्योंकि एक तो मैंने काम बहुत किया था ऊपर से भौजी की वजह से मैं खुश था| शाम को सब साथ बैठे थे और शादी में क्या-क्या हुआ उसकी बातें चल रही थी| रसिका भाभी भी पास ही बैठी थीं पर वो कुछ बोल नहीं रही थी, शायद भौजी का खौफ अब भी उनके दिल में था| रात को सबने भोजन एक साथ बड़े घर में खाया क्योंकि मैं कमजोरी महसूस कर रहा था और मैं अकेला खाता इसलिए अम्मा, बड़के दादा सब मेरे पास ही बैठ के खाना खाने लगे| हाँ एक बात और अब बड़के दादा और बड़की अम्मा को ये बात साफ़ पता चल गई थी की मैं खाना भौजी की वजह से नहीं खा रहा था,पर वो ये बात नहीं जानते थे की रसिका भाभी ने मेरे साथ कैसा अभद्र व्यवहार किया था| उन्होंने जो सवाल पूछा वो कुछ इस प्रकार था;

"मुन्ना ...अब हम समझे तुम खाना क्यों नहीं खा रहे थे? अपनी भौजी को याद करके तुमने अन्न-जल त्याग दिया था| बेटा प्यार...मोह ठीक है.... पर अधिक हो जाए तो कष्ट अवश्य देता है| खेर ये बात तो तुम समझ ही गए होगे|" इस बात पे सब खाना खा के हटे और मैं अपनी चाराई पे फ़ैल गया|

कुछ समय बाद भौजी आईं, और मेरे सिराहने बैठ गईं... फिर धीरे-धीरे उन्होंने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया|



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