FUN-MAZA-MASTI
आय्याश बाप और बेटी--3
रणजीत घर पहुँच गया। गेट ममता ने खोला- अरे आ गए.. आप तो कह रहे थे कि सुबह आएँगे?
‘अरे पुलिस वालों को क्या रात और क्या दिन… हर वक़्त काम ही काम.. दरअसल सूचना ग़लत मिली थी। एस.पी.साहब ने कहा कि कोई ने ग़लत सूचना दी थी। चलो खाना लगाओ।’
‘खाना तो मैंने बनाया ही नहीं.. मैंने सोचा कि आप तो आओगे ही नहीं.. तो मैं और डॉली ने खा लिया, लेकिन बन जाएगा.. जैसा आप कहो।’
‘नहीं.. नहीं.. रहने दो.. मैं देख लूँगा।’
‘अरे ऐसे नहीं सोते.. मैं दूध गर्म कर देती हूँ।’
वो दूध और दो स्लाइस ब्रेड गर्म करके ले आई।
‘लो खाओ और दूध पी कर सो जाओ, दो बज रहे हैं।’
रणजीत ने जल्दी से ब्रेड खाई और दूध पी कर अपनी पत्नी के गले से लग कर सो गया।
सुबह डॉली जब उठी तो देखा की पापा आ गए हैं। उसने अपनी माँ से पूछा- पापा कब आए माँ?
माँ ने कहा- दो बजे आए हैं.. कोई ग़लत सूचना मिली थी, सो आकर सो गए। तुम जाओ बेटी नहा लो, मैं नाश्ता बनाती हूँ, पता नहीं कब उठेंगे।
डॉली तौलिया ले कर बाथरूम में चली गई। वो सारे कपड़े उतार कर नहाने लगी, उसने दर्पण में अपने आपको देखा और शरमा गई।
जब से उसने राज को देखा है, तब से वो बिंदी और मेकअप करने लगी थी, कपड़े भी ढंग से पहन लगी थी। इस बात पर सभी ने गौर किया था।
सरकारी क्वॉर्टर में एक ही बाथरूम होता है और वो भी अटॅच्ड होता है।
रणजीत को ज़ोर से पेशाब लगी थी। वो भागा-भागा गुसलखाने में गया। दरवाजा ठीक से नहीं लगा हुआ था, जरा सा धक्का लगने से दरवाजा खुल गया और तौलिया जो खूँटी पर टंगी हुई थी, फर्श पर गिर गई।
उस समय डॉली अपनी झांटों पर क्रीम लगा रही थी। अपने पापा को देखते ही शरमा गई और अपनी नजरें नीचे कर दीं और वहीं बिल्कुल नंगी फर्श पर बैठ गई।
उसने अपने मुँह को अपने हाथों से ढक लिया।
रणजीत ने ‘सॉरी’ कहा और वापस बाहर आ गया।
डॉली ने दौड़ कर दरवाजा ज़ोर से लगाया और फिर अपने आप को साफ़ किया और चली आई।
जब वापस आई तो रणजीत जा चुका था, पूछने पर माँ ने कहा- कोई दोस्त आए थे, उनके साथ गए हैं… वो जल्दी में भी थे।
पता नहीं डॉली को सब पता था। पर माँ को क्या कहती कि उन्हें ज़ोर से पेशाब लगी हुई थी।
वो चुपचाप अपने कमरे में चली गई।
कपड़ा बदल कर दूसरे कपड़े पहन लिए और घर से अस्पताल चली गई।
आज सारा दिन यही सोच रही थी कि क्या पापा मेरी जवानी को देख चुके थे, कब से वो दरवाजे पर थे.. कहीं मेरी झांटों पर क्रीम लगाते हुए तो नहीं देख लिया।
कई सवाल उभर गए, पर वो अपने पापा के स्वभाव के बारे में जानती थी कि वो किसी लड़की को भी घूर सकते हैं चाहे कोई भी हो। उन्हें रिश्तों का कोई डर नहीं था।
उनके स्वभाव के बारे में वो अपनी मौसी से सुन चुकी थी क्योंकि उसकी मौसी (कमली) जो अब शादीशुदा है, उसने सब कुछ अपने पापा के कुकर्मों के बारे में बता चुकी थी।
उसके पापा दिल के बहुत अच्छे थे। किसी का भी दु:ख-दर्द उनसे देखा नहीं जाता, वो मोहल्ले की नाक हैं।
लोग उनकी बहुत इज़्ज़त करते थे। रही बात लड़कियों की, तो लड़की-औरतें खुद उनके पास सेक्स के लिए आती हैं, इसका भी डॉली को पता था।
पर उनका रिश्ता बाप-बेटी का होने की वजह से दोनों में कभी कोई बात इस बारे में नहीं हुई।
ममता तो पहले से ही जानती थी कि कमली की सील शादी से पहले यानी रणजीत ने ही तोड़ी थी और फिर जाकर उसकी शादी भी करा दी थी।
पुलिस में रहने के वजह से लोग उनसे पंगा भी नहीं ले सकते थे, वो काफ़ी चर्चित भी थे।
पर अपनी बेटी पर कभी बुरी नज़र नहीं डाली। पर आज उसे अपनी बेटी को देखकर अजीब सा लगा दो-तीन घंटे के बाद वो वापस घर आ गया।
तब तक डॉली अपने अस्पताल जा चुकी थी।
आज ऑफिस में उसका मन नहीं लग रहा था, बार-बार पापा के बारे में सोच रही थी।
डॉक्टर नेहा तो कुछ और सोच रही थी कि शायद डॉली राज की याद कर रही हो, पर हकीकत कुछ और ही थी।
जब नेहा ने देखा कि डॉली का मूड कुछ ज्यादा ही खराब है, तो उसने कहा- चलो कैंटीन चलते हैं.. चाय पीते हैं।
दोनों कैंटीन में चले गए, नेहा ने चाय का ऑर्डर किया और डॉक्टर के केबिन में बैठ गए।
‘अरे बाबा बोलो ना.. क्या बात है? मैं देख रही हूँ कि कब से तुम खामोश हो.. प्लीज़ बाबा बोलो न…!’
डॉली को समझ में ही नहीं आ रहा था कि बोलूँ या नहीं.. अगर बोलती हूँ तो मेरे पापा की छवि खराब होती है और ना बोलूँ तो पक्की सहेली से बुराई होती है। सो उसने तय कर लिया कि चाहे जो भी हो वो डॉक्टर नेहा से ज़रूर बात करेगी।
तभी चाय आ गई, चाय पीते हुए डॉली ने धीरे से कहा- यार मैं जो बोलने जा रही हूँ… उसे अपने पास तक रखना और मुझसे मज़ाक मत करना, पर मैं चाहती हूँ कि तुम एक सही निर्णय बताओ।
नेहा- तुम बताओ तो सही।
डॉली- ओके.. पर वादा करो कि तुम ये बात किसी को नहीं बताओगी, मेरी माँ या पापा को भी नहीं।
नेहा- ठीक है मेरी माँ.. मैं नहीं बताऊँगी.. अब तो बक।
डॉली मुस्कुराई फिर धीरे से बोली- आज मैं सुबह नहा रही थी, उस समय राज की याद कर रही थी।
नेहा- ये बात.. मैं ना कहती थी कि मेरा भाई हीरा है हीरा.. उसने तुम्हारे मन में घर बना ही लिया है। अब देखना आगे क्या होता है.. तुम्हारी जान निकाल देगा।
डॉली- अरे बाबा आगे तो सुनो.. बीच में ही बोल देती हो।
वो आगे बोलना चाह रही थी कि केबिन में दो पुरुष डॉक्टर्स आ गए और डॉली के मुँह पर ताला लग गया।
‘मुझे शरम आ रही है बोलने में… मैं जा रही हूँ।’
नेहा- अरे इसमें शर्म की क्या बात है.. प्यार में तो सब जायज़ है, तुम बहुत शर्मीली हो।
डॉली- चलो मैं जा रही हूँ और वैसे भी मंडी भी जाना है, सब्जी ख़रीदनी है।
‘कोई बात नहीं.. मैं बाइक से छोड़ देती हूँ।’
दोनों पैसा दे करके निकल गईं और डॉली जो डॉक्टर नेहा से कहना चाहती थी वो नहीं कह पाई।
वो सोचने लगी कि कोई बात नहीं.. जब भी कोई उचित समय रहेगा तो मैं बता दूँगी क्योंकि नेहा ही एक ऐसी सहेली थी, जिससे वो अपने दिल की सभी बातें साझा करती थी।
घर पर आने के बाद डॉली गुसलखाने में जाकर फ्रेश हुई और चाय बनाने लगी।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई वो चाय को वहीं मेज पर रख कर दरवाजा खोला।
उसके पापा आए थे, वो भी नशे में धुत..
डॉली एक तरफ हो गई और रण्जीत शराब के नशे में धुत अपने कमरे में चला गया।
उस समय ममता घर पर नहीं थी।
डॉली भी अपने कमरे में चली गई।
थोड़ी देर बाद वो अपने पापा के कमरे में यह पूछने के लिए आई कि खाना लगा दूँ या मम्मी के आने के बाद खायेंगे।
जब वो उनके रूम में गई थी तो वो बिस्तर पर बिल्कुल नंगा अधलेटा हुआ था।
यह देखते ही डॉली को एक झटका लगा, वो तुरंत वापस बाहर आ गई, पर पता नहीं उसे क्या हुआ।
उसने अपने पापा को इस अवस्था में देखने की इच्छा करते हुए फिर से कमरे में झाँका।
अब भी उसी स्थिति में दृश्य था, एक हाथ से रणजीत अपने लंड को खुज़ला रहा था।
यह देखते ही डॉली का पारा गर्म हो गया। उसके मन में जो लड़की अभी तक सोई हुई थी, वो जाग गई।
उसके ललाट पर पसीने की कुछ बूंदें भी थीं। उसका मन घबराया हुआ था, पहले उसने सोचा कि यहाँ से चली जाऊँ, पर वो नहीं गई।
थोड़ी देर यूँ ही रहने के थोड़ी देर बाद ममता आ गई।
दरवाजे पर दस्तक देते हुए ममता आ गई, ममता ने आते ही डॉली से कहा- ले प्रसाद खा.. मंदिर गई थी… खाना बन गया?
‘हाँ.. मम्मी रोटी और सब्जी बना ली है, बस सलाद काट लेती हूँ.. पापा भी आ गए हैं सो रहे हैं।’
ममता अपने कमरे में गई, रणजीत को इस स्थिति में देखते ही उसका दिमाग़ खराब हो गया।
वो बड़बड़ाने लगी- अरे बाप रे.. एकदम पागल है, कभी भी नहीं सोचते कि घर में एक जवान बेटी है, कुछ तो शर्म करनी चाहिए।
उसने झकझोर कर रणजीत को उठाया, जैसे ही झकझोरा कि उसने उसे खींच लिया और एक चुम्बन दे दिया।
ममता- यह क्या है.. कुछ तो शर्म करो?
रणजीत- आज मूड है मेरी जान.. प्लीज़ आ जाओ।
ममता- छि.. अभी नहीं.. मंदिर से आई हूँ और हाँ दस बज रहे हैं… खाना खाते हैं उठिए।
रणजीत- खा लेंगे यार..!
ममता- लीजिए प्रसाद खाइए।
रणजीत- मेरा प्रसाद तो ये है।
उसके ममता के एक मम्मे को दबा दिया।
ममता- उई माँ… क्या करते हो.. चलो उठो और तैयार हो जाओ।
रणजीत मायूस मन से उठ गया और गुसलखाने में चला गया।
ममता भी साड़ी बदल करके नाइटी पहन ली।
थोड़ी देर बाद दोनों खाने की मेज पर आ गए।
डॉली पहले से ही खाना खा रही थी पर आज खाने की मेज पर रणजीत और डॉली में कोई भेद था, तभी दोनों एक-दूसरे से बात नहीं कर रहे थे और ना ही एक-दूसरे से आँख मिला रहे थे।
डॉली ने अपने पापा के लिए एक प्लेट लगा ली और फिर रोटी और थोड़ी सब्जी रख दी और खुद खाने लगी।
रणजीत ने भी बिना कोई सवाल किए और बिना कोई बात किए प्लेट उठाई और खाना खाने लगा और फिर रणजीत और ममता अपने कमरे में चले गए।
उस दिन ममता और रणजीत की चुदाई जम कर हुई, ममता ने भी खूब साथ दिया, पर इधर डॉली की जवानी में एक आग लग गई थी, आज तक जो जवान जिस्म को समझा-बुझा कर रोके हुए थी, उसमें आज आग लगी हुई थी।
वो उठी और बाथरूम में गई और सारे कपड़े खोल कर, नंगी अपने शरीर को सहलाने लगी, पर मन नहीं भरा तब वो नहाने लगी।
पानी की ठंडी धार से थोड़ी देर के लिए उसे राहत मिली।
फिर वो अपने बिस्तर पर सोने चली गई।
दूसरे दिन ललिता का फोन आया, उस समय रणजीत अपनी ड्यूटी पर था, उसने फोन रिसीव किया। ललिता काफ़ी खुश दिखाई दे रही थी, वो चहक कर बातें कर रही थी।
ललिता- हैलो जानू कैसे हो?
रणजीत- आज बहुत दिन बाद मेरी याद आई।
ललिता- अरे नहीं यार… पेपर था, वो अब क्लियर हो गया है एक खुशखबरी है, जो तुम्हें सुनाना है।
रणजीत- खुशखबरी… पर क्या.. कहीं तुम माँ तो नहीं बन गईं।
रणजीत को एक अंजान सा डर हो गया था।
ललिता- छी.. अरे नहीं यार मेरी शादी पक्की हो गई है।
रणजीत- क्या बात है… वाह यार मुबारक हो।
ललिता- इसी सिलसिले में मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ। राजवार को घर जा रही हूँ पापा ने बुलाया है, वहीं लड़के वाले भी मुझे देख लेंगे।
रणजीत- तो ठीक है… एक घंटे में मेरी ड्यूटी ऑफ हो जाएगी। तुम वहीं आ जाना जहाँ हम मिले थे।
ललिता के शरीर में एक अजीब सी गुदगुदी हो गई थी और एक हल्की सी शरम उसके गालों पर दिख रही थी।
वो बोली- ठीक है.. मैं 5.30 तक आ जाऊँगी।
रणजीत- और बताओ.. क्या चल रहा है?
ललिता- पेपर हो गया है.. बोर हो रही थी सो फोन कर लिया, आप बताओ कैसे हो। आपकी पत्नी और बेटी कैसी हैं?
रणजीत- मस्त हैं सभी अपने-अपने काम में लगे हुए हैं।
ललिता- यार.. तुम्हारी बेटी के बारे में सोचते हुए दु:ख होता है। इस जवानी में और विधवा… कैसे सहन करती होगी ? मैं होती तो पागल हो जाती।
रणजीत- सब भगवान की मरजी है.. उनके आगे किसका जोर चलता है। मैं तो कहता हूँ कि दूसरी शादी कर लो.. पर तैयार ही नहीं होती और मैं क्या कर सकता हूँ। उसे अपने दु:ख से उबरने में समय लगेगा, पर अब कुछ बदलाव आ गया है। अब उसके चेहरे पर एक चमक है। लगता है उसके जीवन में बहार फिर आएगी।
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आय्याश बाप और बेटी--3
रणजीत घर पहुँच गया। गेट ममता ने खोला- अरे आ गए.. आप तो कह रहे थे कि सुबह आएँगे?
‘अरे पुलिस वालों को क्या रात और क्या दिन… हर वक़्त काम ही काम.. दरअसल सूचना ग़लत मिली थी। एस.पी.साहब ने कहा कि कोई ने ग़लत सूचना दी थी। चलो खाना लगाओ।’
‘खाना तो मैंने बनाया ही नहीं.. मैंने सोचा कि आप तो आओगे ही नहीं.. तो मैं और डॉली ने खा लिया, लेकिन बन जाएगा.. जैसा आप कहो।’
‘नहीं.. नहीं.. रहने दो.. मैं देख लूँगा।’
‘अरे ऐसे नहीं सोते.. मैं दूध गर्म कर देती हूँ।’
वो दूध और दो स्लाइस ब्रेड गर्म करके ले आई।
‘लो खाओ और दूध पी कर सो जाओ, दो बज रहे हैं।’
रणजीत ने जल्दी से ब्रेड खाई और दूध पी कर अपनी पत्नी के गले से लग कर सो गया।
सुबह डॉली जब उठी तो देखा की पापा आ गए हैं। उसने अपनी माँ से पूछा- पापा कब आए माँ?
माँ ने कहा- दो बजे आए हैं.. कोई ग़लत सूचना मिली थी, सो आकर सो गए। तुम जाओ बेटी नहा लो, मैं नाश्ता बनाती हूँ, पता नहीं कब उठेंगे।
डॉली तौलिया ले कर बाथरूम में चली गई। वो सारे कपड़े उतार कर नहाने लगी, उसने दर्पण में अपने आपको देखा और शरमा गई।
जब से उसने राज को देखा है, तब से वो बिंदी और मेकअप करने लगी थी, कपड़े भी ढंग से पहन लगी थी। इस बात पर सभी ने गौर किया था।
सरकारी क्वॉर्टर में एक ही बाथरूम होता है और वो भी अटॅच्ड होता है।
रणजीत को ज़ोर से पेशाब लगी थी। वो भागा-भागा गुसलखाने में गया। दरवाजा ठीक से नहीं लगा हुआ था, जरा सा धक्का लगने से दरवाजा खुल गया और तौलिया जो खूँटी पर टंगी हुई थी, फर्श पर गिर गई।
उस समय डॉली अपनी झांटों पर क्रीम लगा रही थी। अपने पापा को देखते ही शरमा गई और अपनी नजरें नीचे कर दीं और वहीं बिल्कुल नंगी फर्श पर बैठ गई।
उसने अपने मुँह को अपने हाथों से ढक लिया।
रणजीत ने ‘सॉरी’ कहा और वापस बाहर आ गया।
डॉली ने दौड़ कर दरवाजा ज़ोर से लगाया और फिर अपने आप को साफ़ किया और चली आई।
जब वापस आई तो रणजीत जा चुका था, पूछने पर माँ ने कहा- कोई दोस्त आए थे, उनके साथ गए हैं… वो जल्दी में भी थे।
पता नहीं डॉली को सब पता था। पर माँ को क्या कहती कि उन्हें ज़ोर से पेशाब लगी हुई थी।
वो चुपचाप अपने कमरे में चली गई।
कपड़ा बदल कर दूसरे कपड़े पहन लिए और घर से अस्पताल चली गई।
आज सारा दिन यही सोच रही थी कि क्या पापा मेरी जवानी को देख चुके थे, कब से वो दरवाजे पर थे.. कहीं मेरी झांटों पर क्रीम लगाते हुए तो नहीं देख लिया।
कई सवाल उभर गए, पर वो अपने पापा के स्वभाव के बारे में जानती थी कि वो किसी लड़की को भी घूर सकते हैं चाहे कोई भी हो। उन्हें रिश्तों का कोई डर नहीं था।
उनके स्वभाव के बारे में वो अपनी मौसी से सुन चुकी थी क्योंकि उसकी मौसी (कमली) जो अब शादीशुदा है, उसने सब कुछ अपने पापा के कुकर्मों के बारे में बता चुकी थी।
उसके पापा दिल के बहुत अच्छे थे। किसी का भी दु:ख-दर्द उनसे देखा नहीं जाता, वो मोहल्ले की नाक हैं।
लोग उनकी बहुत इज़्ज़त करते थे। रही बात लड़कियों की, तो लड़की-औरतें खुद उनके पास सेक्स के लिए आती हैं, इसका भी डॉली को पता था।
पर उनका रिश्ता बाप-बेटी का होने की वजह से दोनों में कभी कोई बात इस बारे में नहीं हुई।
ममता तो पहले से ही जानती थी कि कमली की सील शादी से पहले यानी रणजीत ने ही तोड़ी थी और फिर जाकर उसकी शादी भी करा दी थी।
पुलिस में रहने के वजह से लोग उनसे पंगा भी नहीं ले सकते थे, वो काफ़ी चर्चित भी थे।
पर अपनी बेटी पर कभी बुरी नज़र नहीं डाली। पर आज उसे अपनी बेटी को देखकर अजीब सा लगा दो-तीन घंटे के बाद वो वापस घर आ गया।
तब तक डॉली अपने अस्पताल जा चुकी थी।
आज ऑफिस में उसका मन नहीं लग रहा था, बार-बार पापा के बारे में सोच रही थी।
डॉक्टर नेहा तो कुछ और सोच रही थी कि शायद डॉली राज की याद कर रही हो, पर हकीकत कुछ और ही थी।
जब नेहा ने देखा कि डॉली का मूड कुछ ज्यादा ही खराब है, तो उसने कहा- चलो कैंटीन चलते हैं.. चाय पीते हैं।
दोनों कैंटीन में चले गए, नेहा ने चाय का ऑर्डर किया और डॉक्टर के केबिन में बैठ गए।
‘अरे बाबा बोलो ना.. क्या बात है? मैं देख रही हूँ कि कब से तुम खामोश हो.. प्लीज़ बाबा बोलो न…!’
डॉली को समझ में ही नहीं आ रहा था कि बोलूँ या नहीं.. अगर बोलती हूँ तो मेरे पापा की छवि खराब होती है और ना बोलूँ तो पक्की सहेली से बुराई होती है। सो उसने तय कर लिया कि चाहे जो भी हो वो डॉक्टर नेहा से ज़रूर बात करेगी।
तभी चाय आ गई, चाय पीते हुए डॉली ने धीरे से कहा- यार मैं जो बोलने जा रही हूँ… उसे अपने पास तक रखना और मुझसे मज़ाक मत करना, पर मैं चाहती हूँ कि तुम एक सही निर्णय बताओ।
नेहा- तुम बताओ तो सही।
डॉली- ओके.. पर वादा करो कि तुम ये बात किसी को नहीं बताओगी, मेरी माँ या पापा को भी नहीं।
नेहा- ठीक है मेरी माँ.. मैं नहीं बताऊँगी.. अब तो बक।
डॉली मुस्कुराई फिर धीरे से बोली- आज मैं सुबह नहा रही थी, उस समय राज की याद कर रही थी।
नेहा- ये बात.. मैं ना कहती थी कि मेरा भाई हीरा है हीरा.. उसने तुम्हारे मन में घर बना ही लिया है। अब देखना आगे क्या होता है.. तुम्हारी जान निकाल देगा।
डॉली- अरे बाबा आगे तो सुनो.. बीच में ही बोल देती हो।
वो आगे बोलना चाह रही थी कि केबिन में दो पुरुष डॉक्टर्स आ गए और डॉली के मुँह पर ताला लग गया।
‘मुझे शरम आ रही है बोलने में… मैं जा रही हूँ।’
नेहा- अरे इसमें शर्म की क्या बात है.. प्यार में तो सब जायज़ है, तुम बहुत शर्मीली हो।
डॉली- चलो मैं जा रही हूँ और वैसे भी मंडी भी जाना है, सब्जी ख़रीदनी है।
‘कोई बात नहीं.. मैं बाइक से छोड़ देती हूँ।’
दोनों पैसा दे करके निकल गईं और डॉली जो डॉक्टर नेहा से कहना चाहती थी वो नहीं कह पाई।
वो सोचने लगी कि कोई बात नहीं.. जब भी कोई उचित समय रहेगा तो मैं बता दूँगी क्योंकि नेहा ही एक ऐसी सहेली थी, जिससे वो अपने दिल की सभी बातें साझा करती थी।
घर पर आने के बाद डॉली गुसलखाने में जाकर फ्रेश हुई और चाय बनाने लगी।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई वो चाय को वहीं मेज पर रख कर दरवाजा खोला।
उसके पापा आए थे, वो भी नशे में धुत..
डॉली एक तरफ हो गई और रण्जीत शराब के नशे में धुत अपने कमरे में चला गया।
उस समय ममता घर पर नहीं थी।
डॉली भी अपने कमरे में चली गई।
थोड़ी देर बाद वो अपने पापा के कमरे में यह पूछने के लिए आई कि खाना लगा दूँ या मम्मी के आने के बाद खायेंगे।
जब वो उनके रूम में गई थी तो वो बिस्तर पर बिल्कुल नंगा अधलेटा हुआ था।
यह देखते ही डॉली को एक झटका लगा, वो तुरंत वापस बाहर आ गई, पर पता नहीं उसे क्या हुआ।
उसने अपने पापा को इस अवस्था में देखने की इच्छा करते हुए फिर से कमरे में झाँका।
अब भी उसी स्थिति में दृश्य था, एक हाथ से रणजीत अपने लंड को खुज़ला रहा था।
यह देखते ही डॉली का पारा गर्म हो गया। उसके मन में जो लड़की अभी तक सोई हुई थी, वो जाग गई।
उसके ललाट पर पसीने की कुछ बूंदें भी थीं। उसका मन घबराया हुआ था, पहले उसने सोचा कि यहाँ से चली जाऊँ, पर वो नहीं गई।
थोड़ी देर यूँ ही रहने के थोड़ी देर बाद ममता आ गई।
दरवाजे पर दस्तक देते हुए ममता आ गई, ममता ने आते ही डॉली से कहा- ले प्रसाद खा.. मंदिर गई थी… खाना बन गया?
‘हाँ.. मम्मी रोटी और सब्जी बना ली है, बस सलाद काट लेती हूँ.. पापा भी आ गए हैं सो रहे हैं।’
ममता अपने कमरे में गई, रणजीत को इस स्थिति में देखते ही उसका दिमाग़ खराब हो गया।
वो बड़बड़ाने लगी- अरे बाप रे.. एकदम पागल है, कभी भी नहीं सोचते कि घर में एक जवान बेटी है, कुछ तो शर्म करनी चाहिए।
उसने झकझोर कर रणजीत को उठाया, जैसे ही झकझोरा कि उसने उसे खींच लिया और एक चुम्बन दे दिया।
ममता- यह क्या है.. कुछ तो शर्म करो?
रणजीत- आज मूड है मेरी जान.. प्लीज़ आ जाओ।
ममता- छि.. अभी नहीं.. मंदिर से आई हूँ और हाँ दस बज रहे हैं… खाना खाते हैं उठिए।
रणजीत- खा लेंगे यार..!
ममता- लीजिए प्रसाद खाइए।
रणजीत- मेरा प्रसाद तो ये है।
उसके ममता के एक मम्मे को दबा दिया।
ममता- उई माँ… क्या करते हो.. चलो उठो और तैयार हो जाओ।
रणजीत मायूस मन से उठ गया और गुसलखाने में चला गया।
ममता भी साड़ी बदल करके नाइटी पहन ली।
थोड़ी देर बाद दोनों खाने की मेज पर आ गए।
डॉली पहले से ही खाना खा रही थी पर आज खाने की मेज पर रणजीत और डॉली में कोई भेद था, तभी दोनों एक-दूसरे से बात नहीं कर रहे थे और ना ही एक-दूसरे से आँख मिला रहे थे।
डॉली ने अपने पापा के लिए एक प्लेट लगा ली और फिर रोटी और थोड़ी सब्जी रख दी और खुद खाने लगी।
रणजीत ने भी बिना कोई सवाल किए और बिना कोई बात किए प्लेट उठाई और खाना खाने लगा और फिर रणजीत और ममता अपने कमरे में चले गए।
उस दिन ममता और रणजीत की चुदाई जम कर हुई, ममता ने भी खूब साथ दिया, पर इधर डॉली की जवानी में एक आग लग गई थी, आज तक जो जवान जिस्म को समझा-बुझा कर रोके हुए थी, उसमें आज आग लगी हुई थी।
वो उठी और बाथरूम में गई और सारे कपड़े खोल कर, नंगी अपने शरीर को सहलाने लगी, पर मन नहीं भरा तब वो नहाने लगी।
पानी की ठंडी धार से थोड़ी देर के लिए उसे राहत मिली।
फिर वो अपने बिस्तर पर सोने चली गई।
दूसरे दिन ललिता का फोन आया, उस समय रणजीत अपनी ड्यूटी पर था, उसने फोन रिसीव किया। ललिता काफ़ी खुश दिखाई दे रही थी, वो चहक कर बातें कर रही थी।
ललिता- हैलो जानू कैसे हो?
रणजीत- आज बहुत दिन बाद मेरी याद आई।
ललिता- अरे नहीं यार… पेपर था, वो अब क्लियर हो गया है एक खुशखबरी है, जो तुम्हें सुनाना है।
रणजीत- खुशखबरी… पर क्या.. कहीं तुम माँ तो नहीं बन गईं।
रणजीत को एक अंजान सा डर हो गया था।
ललिता- छी.. अरे नहीं यार मेरी शादी पक्की हो गई है।
रणजीत- क्या बात है… वाह यार मुबारक हो।
ललिता- इसी सिलसिले में मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ। राजवार को घर जा रही हूँ पापा ने बुलाया है, वहीं लड़के वाले भी मुझे देख लेंगे।
रणजीत- तो ठीक है… एक घंटे में मेरी ड्यूटी ऑफ हो जाएगी। तुम वहीं आ जाना जहाँ हम मिले थे।
ललिता के शरीर में एक अजीब सी गुदगुदी हो गई थी और एक हल्की सी शरम उसके गालों पर दिख रही थी।
वो बोली- ठीक है.. मैं 5.30 तक आ जाऊँगी।
रणजीत- और बताओ.. क्या चल रहा है?
ललिता- पेपर हो गया है.. बोर हो रही थी सो फोन कर लिया, आप बताओ कैसे हो। आपकी पत्नी और बेटी कैसी हैं?
रणजीत- मस्त हैं सभी अपने-अपने काम में लगे हुए हैं।
ललिता- यार.. तुम्हारी बेटी के बारे में सोचते हुए दु:ख होता है। इस जवानी में और विधवा… कैसे सहन करती होगी ? मैं होती तो पागल हो जाती।
रणजीत- सब भगवान की मरजी है.. उनके आगे किसका जोर चलता है। मैं तो कहता हूँ कि दूसरी शादी कर लो.. पर तैयार ही नहीं होती और मैं क्या कर सकता हूँ। उसे अपने दु:ख से उबरने में समय लगेगा, पर अब कुछ बदलाव आ गया है। अब उसके चेहरे पर एक चमक है। लगता है उसके जीवन में बहार फिर आएगी।
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