FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--44
अब आगे...
शायद उन्हें लगा की इससे से हम दोनों को वो संतुष्टि नहीं मिल पायेगी जो हमें आगे मिलती| या फिर उनके अंदर अग्नि अब ज्वाला का रूप ले चुकी थी की उन्होंने मेरे होठों को आजादा किया और उसके बाद मैंने भी उन्हें आजाद किया| हम दोनों के ही होंठ पूरी तरह से गीले थे और ..... उस दृश्य को बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं! हम अलग तो हुए पर आँखें अब भी एक दूसरे से मिली हुईं थी और जैसे अलग ही ना होना चाहती हों! इस तरह से एक दूसरे को देखने से शरीर में लगी अग्नि अब प्रगाढ़ रूप धारण कर चुकी थी पर फिर भी कुछ था जिसने हमें जंगली होने से रोका हुआ था| मैंने दुबारा पहल की और अपनी आँखों से उनके ब्लाउज की ओर इशारा किया, और दुबारा टकटकी लगाए उन्हें देखता रहा| भौजी ने भी बिना अपनी नजरें हटाये अपने ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए और जैसे ही ब्लाउज खुला मेरे सामने दूध से सफ़ेद एक दम सही गोलाकार स्तन थे| मैं थोड़ा सा नीचे खिसका और उनके बाएं स्तन पे अपने होंठ रख दिए| ये मेरा तरीका था उन्हीने बताने का की आपके दिल पे अब बस मेरा राज है! भौजी ने मेरी इस प्रतिक्रिया का जवाब अपने दोनों हाथों को मेरे सर पे रख के दबा के दिया| मैंने उनके स्तन का पान करना शुरू कर दिया| हालाँकि नमें दूध नहीं था पर दोष की महक जर्रूर आ रही थी| मैं उनके निप्पल को अपनी जीभ से छेड़ना लगा और भाजी के मुंह से सिस्कारियां फूटने लगीं थी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ... म्म्म्म्म्म्म्म .... आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ज़्ज़्ज़्ज़"| अपने बाएं हाथ से मैंने भौजी के दाहिने स्तन का मर्दन शुरू कर दिया था और भौजी के शरीर ने प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी थी| वो बहुत कसमसा रहीं थी... उनके दिल की धड़कनें मुझे माथे पे महसूस होने लगी थी| भौजी अपने हाथों का दबाव मेरे सर पे डाले जा रहीं थी जैसे कह रहीं हो की खा जाओ... काट लो इन्हें! एक बात कहूँ मित्रों आप जब भी सेक्स करें तो कोशिश करें की आप बोलें ना| मैं आपको गारंटी देता हूँ की आपको जो सैटिस्फैक्शन मिलेगा उसकी आप किसी भी चीज से तुलना नहीं कर सकते बशर्ते आपका पार्टनर बिना कहे आपके मन की बातें समझ सकता हो!
मैंने अपने दांतों से भौजी के निप्पलों को काटना शुरू कर दिया था, और जैसे ही मेर दाँत उनके निप्पल को छूटे वो चिहुक उठती और उनके मुंह से "आअह्ह्ह..स्स्स्स्स्स" निकल पड़ता| बहुत मजा आ रहा है और रुकने का मन भी नहीं कर रहा था पर मैं भौजी के दाहिने स्तन के साथ तो ज्यादती नहीं कर सकता था| इसलिए मैंने भौजी के बाएं स्तन को छोड़ा ... एक नजर उसे देखो और देखता रहा वो बिलकुल लाल हो चूका था और उसमें मेरे दांतों के निशाँ पड़ चुके थे| दायाँ स्तन जैसे मेरे होठों से शिकायत कर रहा हो की आखिर मेरे साथ ही सौतेला व्यवहार क्यों! आखिर मैंने उसे (दायें स्तन) को अपने मुंह में भर लिया और उसे भी वही प्यार दिया जो बायें वाले को दिया था| भौजी का कसमसाना अब भी जारी था और उनके मुंह से "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...... उम्म्म अन्न्न्ह्ह्ह्ह " की सिसकारियाँ जारी थी| मैंने अपनी जीभ से उनके निप्पल को बार बार छेड़ता ... कभी उनके निप्पल को दांतों से दबाता और भौजी के मुंह से आह निकल पड़ती; "आअह्हह्हह म्म्म्म"... फिर मैंने अपना मुंह जितना हो सकता था उतना खोला और उनके स्तन को अपने मुंह में भर के काट लिया! भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर में उँगलियाँ फिराना चालु कर दिन और मुझे महसूस हुआ की उन्हिएँ कितना आन्नद आ रहा है! अब मैंने दायें वाले को भी चूस-चूस के लाल कर दिया था| अब मैं सीधा नीचे की ओर बढ़ा... उनकी नाभि को KISS किया और फिर उनकी साडी खोली और जो पल्ला उन्होंने अपनी कमर में खोंसा हुआ था उसे निकाल दिया|साडी खुल गई .. अब बचा पेत्तिसोअत तो मैंने उसका नाद खोल दिया और उसे नीचे ना उतार के ऊपर की ओर सरका दिया और उनकी योनि पे अपने होंठ टिका दिए| भौजी ने अपनी दोनों टांगें पूरी खोल ली जिससे उनकी योनि ओर उभर के सामने आ गई|
अब मैंने एक नजर भौजी को देखा तो जैसे वो इन्तेजार कर यहीं हों की कब मैं अपना मुंह उनकी धधकती योनि पे लगाउँगा|
मैंने जैसे ही अपनी जीभ उनकी योनि पे लगा के एक सुड़का मारा (क्योंकि उनकी योनि पहले से ही पनिया चुकी थी|) भौजी का बदन कमान की तरह उठ गया| मैं फिर भी रुका नहीं ओर अपनी जीभ से उनकी योनि ऊपर-ऊपर से कुरेदने लगा| मैंने धीरे से भौजी के भगनासा को अपने जीभ से छेड़ा तो भौजी तड़प उठीं; "स्स्स्स्स्स्स्स्स ...उम्म्म"| मैंने उनके भगनासा को अपने मुँह में भर लिया ओर उसे चूसने लगा| भौजी विचलित होने लॉगिन ओर उनकाबदन फिर से कमान की तरह खिंच गया| केवल उनकी गर्दन तकिये पे थी बाकी का सारा शरीर कमान की तरह ऊपर की ओर मुड़ चूका था| मैंने उनके भगनासा को छोड़ा और धीरे-धीरे उनका शरीर पुनः सामान्य हो गया| मुझे महसूस हुआ की अब भी उनका मन नहीं भरा इसलिए करीब 5 - 7 सेकंड सांस लेने के बाद मैंने पुनः डुबकी लगाईं और भौजी की योनि में अपनी जीभ प्रवेश करा दी और भौजी तो छटपटाने लगीं| उन्होंने तकिये को दोनों हाथों से पकड़ लिया और बार-बार अपनी कमर हवा में उठा लेतीं| मैंने उनकी योनि की खुदाई जारी रखी और इधर भौजी ने अपना हाथ मेरे सर के ऊपर रखा और मेरे बालों में उँगलियाँ फिराने लगीं| उनकी उँगलियाँ मेरे सर पे जादू करने लगीं और मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैं और भी ज्यादा जोश से उनकी योनि को चाटने-चूसने लगा| कभी-कभी तो मैं भौजी की योनि की कपालों को अपने दाँतों से हल्का दबा देता और भौजी चिहुंक उठती; "आह!"!!! दस मिनट तक उनकी योनि को अपने मुँह से भोगने के बाद मुझे लगा की भौजी अब स्खलित होने वाली हैं इसलिए मैं पूरी तरह तैयार था| अगले दो सेकंड में भौजी ने अपनी कमर हवा में उठाई और उनकी योनि से रस मेरे मुँह में जाने लगा| बिना रुके भौजी स्खलित होती रहीं और मुझे उनका नमकीन रस अपने मुँह में भरता महसूस होने लगा| अब उनकी योनि से एक मादक खुशबु ने मेरे दिल में हलचल मचा दी और मैं रह-रह के उनके भगनासा को छेड़ देता| रस निकलना अब भी नाद नहीं हुआ... करीब बीस सेकंड तक वो स्खलित होती रहीं और मैं जीभ से उनके रस को पीता रहा|
भौजी हाँफने लगीं और मैं उन्हें और तंग ना करते हुए उनकी बगल में लेट गया| करीब एक मिनट बाद उनकी सांसें सामान्य हुईं और वो मेरी और करवट लेके लेट गेन| उनका सर मेरी छाती पे था और उनका बायां हाथ मेरे पेट पे था| मुझे उनके हाव भाव से लगा की वो संतुष्ट हैं और मैं मन ही मन बहुत खुश था| मैं उनके साथ सम्भोग नहीं करना चाहता था क्योंकि ऐसा करना ऐसा होता जैसे मैं उनसे दिन में दिए सभी सुरप्रीज़ों के बदले में उनसे कुछ माँग रहा हूँ| मैं उनसे कोई सौदा नहीं करना चाहता था बल्कि उन्हें खुश देखना चाहता था | मेरा मन अवश्य कह रहा था की आगे बढूँ पर आत्मा मना कर रही थी| इसलिए मैं शांत पड़ा रहा..... पर पता नहीं कैसे उन्हें हमेशा मेरे दिल की बात बिना कहे ही पता चल जाती थी? भौजी उठ के कड़ी हुईं और अपना पैटीकोट निकाल फेंका और वापस आके मेरे बगल में उसी तरह लेट गईं| उनका नंगा बदन मेरे अंदर आग लगा चूका था पर मैं बहुत झिझक रहा था| उन्होंने अपनी बायीं टांग उठा के मेरे लंड पे रख दिया| मैं हल्का सा मुस्कुरा दिया और वो अपने आप ही मेरे ऊपर चढ़ गईं ... उनके मेरे मुँह से अपने रस की महक आ रही थी और उन्होंने बिना कुछ कहे मेरे होठों पे Kiss किया| वो मेरे होठों को मदहोश होके चूसने लगीं और ये सिलसिला करीब तीन मिनट तक चलता रहा| जब तक उन्हें ये संतोष नहीं हो गया की मेरे मुंख में अब उनके योनि रस की महक खत्म नहीं हो गई वो मेरे होठों को चूसती रहीं| अब वो धीरे-धीरे नीचे हुईं और मेरे निप्प्लेस को अपने दांतों से काट लिया, मेरे मुँह से पीड़ा से भरी चीख निकल पड़ी; "आह! स्स्स" फिर उन्होंने मेरे निप्पल के इर्द-गिर्द भूरे हिस्से को निप्पल समेत अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगीं| शायद उन्हें लगा की इसमें से कुछ निकलेगा? पर जहाँ से निकलना था वो तो उनकी नंगी योनि और मेरे पजामे के बीच फँसा हुआ था| भौजी की योनि की गर्मी मुझे अपने लंड पे साफ़ महसूस होने लगी थी और वो बेचारा बहार आके सांस लेने के लिए तड़प रहा था! भौजी ने मेरे दोनों निप्पलों को चूसना... चबाना जारी रखा| और मैं बस सिसकियों के सागर में गोता लगा रहा था|
अब वो नीचे की ओर बढ़ीं ओर मेरी नाभि को चूमा और फिर मेरे पजामे के नाड़े को खोला और उसे और कच्छे को एक साथ पकड़ा और नीचे खींच के उतार दिया| अब मेरे फैन फनाता हुआ लंड उनके सामने खड़ा था और वो उसे प्यासी नजरों से क्षण भर देखती रहीं| इधर मेरे लंड ने एक तेज सांस ली क्योंकि बेचारे का दम क्षण भर पहले जो घुट रहा था| भौजी ने दाहिने हाथ से उसे पकड़ा और उसकी चमड़ी नीचे की और सुपाड़ा बहार आ गया| भौजी ने धीरे-धीरे अपना मुँह खोला और उसे अपने मुँह में भर के सहज हो गईं| मैं तो जैसे अव में उड़ने लगा... उनके मुँह से निकल रहीं गरम सांसें मुझे अपने लंड पे महसूस होने लगी थी| भौजी ने अपने दाँतों से सुपाड़े को धीरे-धीरे दबाने लगी| "स्स्स्स्स्स्स आह!" और मैं बस इतना ही कह पाया.... भौजी ने एक लम्बा सुड़पा मारा और लंड को पूरा अंदर ले लिए! पूरा लंड उनके गर्म-गर्म मुँह में और ऊपर से उस पे धोंकनी जैसी लग राय उनकी गर्म सांसें मेरी हालत ख़राब करने लगी थी| फिर उन्होंने अपना मुँह ऊपर-नीचे करना शुरू किया और लंड को पूरा चूसने लगीं| अंदर का ज्वलमुखी उबाल रहा था और बहार आने को तैयार था.... मैंने उनके गालों को अपने हाथ से छुआ और रुकने का इशारा किया| फिर उन्हें अपने ऊपर खींच लिया और अपनी बगल में लिटा लिया| क्षण भर हम एक दूसरे को देखते रहे और इसका ये फायदा भी था की जवालानुखी शांत होने लगा था| जब वो बिलकुल ठंडा हो गया तब मैं भौजी के ऊपर आगया और अपने लंड को उनकी योनि पे सेट किया पर फिर मन किया की क्यों ना इन्हें और तड़पाऊँ? इसलिए मैं लंड को ऊपर-ऊपर से उनकी योनि पे रगड़ने लगा परन्तु अंदर नहीं धकेल रहा था| भौजी तड़प उठीं और अपने हाथ से मेरे लंड को पकड़ने की कोशिश करने लगीं पर मैंने उन्हें पकड़ने नहीं दिया, उसके बाद जो हुआ उसे सुन के मेरे होश उड़ गए!
अनायास ही उनके मुँह से ये बोल फूट पड़े; "Please .... I Can’t take it anymore!" (प्लीज मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता!) ये सुन के मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं| अब मेरा दिमाग एकदम सन्न हो गया क्योंकि मैंने कभी नहीं सोचा था की भौजी अंग्रेजी भी बोल सकती हैं! मुझे उनके अंग्रेजी बोलने से कोई दिक्कत नहीं थी बस एक शिकवा था की उन्होंने कभी बताया नहीं| मैं एक दम से रूक गया और भौजी समझ गईं की क्या कारन है उन्होंने अचानक से मुझे अपने ऊपर खींचा और मुझे नीचे कर के मेरे लंड पे सवार हो गईं और अपने हाथों से लंड को योनि के अंदर धकेल दिया| अब उन्होंने ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया.... इधर मैं हैरान था और मैंने अपनी आँखें बंद कर ली| मैं कुछ नहीं बोला बस चुप-चाप लेटा रहा... अब दिमाग तो संन्न था परन्तु लंड अंदर पूरे मजे ले रहा था| उस बेचारे को इस सब से क्या फर्क पड़ता| उसे तो अंदर से गर्म-गर्म और भौजी के रस का गीलापन दोनों ही मिल रहे थे और वो बस अपनी प्यास बुझाना चाहता था| इधर भौजी की योनि भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रही थी| इधर भौजी कुछ ज्यादा ही उत्साह और मस्ती में बह गईं और उन्होंने अपनी गति बढ़ा दी थी| आँगन में उनकी सिसकारियाँ गूंजने लगीं थी, "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..... उम्म्म्म्म्म्म्म्म" इधर मैं झड़ने की कगार पे आ चूका था| उधर भौजी की हालत भी कुछ ऐसी ही थी, उन्होंने अचानक ही ब्रेक लगा दी और स्थिर हो गईं बस अपनी कमर को गोल घुमा रहीं थी और उनकी योनि ने मेरे लंड को जकड के उसे दबाना चालु कर दिया| आखिर भौजी स्खलित हो गईं और मेरा लंड उनके रस में भीग चूका था और उनका रस बहार मेरे लंड से होता हुआ चारपाई और मेरी गांड तक बह निकला| अब बारी मेरी थी, भौजी ने अपनी कमर को हिलाना बंद नहीं किया था और आखिर मैंने अपना फव्वारा अंदर छोड़ दिया| जैसे ही मेरा फव्वारा अंदर छूटा भौजी ने अपनी गर्दन ऊँची कर के पीछे की ओर मोड़ लिया| मैंने अपने दोनों हाथों से चारपाई पे बिछी चादर को पकड़ लिया था|
करीब बीस सेकंड के बाद मैं शांत हुआ ओर भौजी मेरे ऊपर ही लेट गईं| दोनों ही पसीने से तरबतर थे ओर थक चुके थे| दोनों की सांसें तेज थी... अगर मैं गलत नहीं तो भौजी मेरी धड़कनेंईं सुन पा रहीं होंगी क्योंकि उनका सर मेरी छाती पे था| भौजी हैरान तो होंगी की मैंने आखिर उनसे अंग्रेजी बोलने के बारे में क्यों कुछ बात नहीं की| पर मैं उन्हें वचन दे चूका था की मैं आपसे नाराज कभी नहीं हूँगा|
एक लम्बी सांस लेते हुए भौजी बोलीं;
भौजी: आप मुझसे नाराज हैं?
मैं कुछ नहीं बोला बस आँख बंद किये ना में गर्दन हिला दी|
भौजी: तो आप ने मुझसे मेरे अंग्रेजी बोलने पे कुछ क्यों नहीं कहा?
मैं अब भी कुछ नहीं बोला बस उनकी पीठ पे दोनों हाथ रखे और करवट बदली| अब भौजी का सर मेरे दायें बाजू पे था और हम अब भी नंगे थे और लंड अब भी योनि में शिथिल पड़ा था| मैं उनकी आँखों में देखता हुआ बोला;
मैं: मैंने आपसे वादा किया था की मैं आपसे कभी नाराज नहीं हूँगा…. और हाँ मुझे थोड़ा बुरा लगा की आपने मुझे कभी नहीं बताया की आप कितना पढ़े हो? मैंने तो ये सोचा था की आप भी चन्दर भैया की तरह अनपढ़ हो| पर अगर आपने मुझे इस बारे में कुछ नहीं बताया तो गलती मेरी भी है.... मैंने भी तो कभी इस बारे पे आपसे कुछ नहीं पूछा… और आपका ये सब न बताने के पीछे भी कोई न कोई कारन होगा|
भौजी: कभी-कभी तो लगता है की मैं आपको बिलकुल नहीं समझ पाती! मैं तो डर रही थी की आप मुझसे नाराज होंगे पर आपने कितनी सरलता से इस बात को एक्सेप्ट (accept) कर लिया| मैं सच मैं बहुत लकी (lucky) हूँ की मुझे आप मिले|
मैं: Likewise .... (मैंने उन्हें अपने से कस के चिपका लिया|)
भौजी: दरअसल बचपन से मुझे पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था| पर पिताजी ने कभी पढ़ने नहीं दिया, उन दिनों चरण काका की भतीजी शहर से आई हुई थी और मैंने जीवन में पहली बार किताबें देखी! मैं उन्हें खोल के देखने लगी और चरण काका की भतीजी मुझे वर्णमाला के कुछ अक्षर सिखाने लगी| ये सब चरण काका ने देख लिया और पिताजी से कहा की मुझे पढ़ने दिया जाए| पर मितजी नहीं माने... ऐसा नहीं था की हमारी माली (financial) हालत ख़राब थी पर पिताजी का मानना था की केवल लड़कों को ही शिक्षा का अधिकार है| पर चरण काका के जोर देने पर पिताजी ने मुझे पढ़ने के लिए मेरे मौसी के पास शहर भेज दिया| मौसी ने मेरे एडमिशन अंग्रेजी मध्यम स्कूल में करा दिया और मैं दसवीं के इम्तिहान दे चुकी थी तब मेरे ब्याह करा दिया गया| उसके बाद मैंने अपने मन को मार लिया और चुलह-चौक में अपना मन लगा लिया| (ये कहते हुए भौजी की आँखों से आंसूं छलक आये और मेरी छाती गीली करने लगे|) फिर आप मिले और मेरी जिंदगी बदल गई, सच कहूँ तो मैं रब की शुक्रगुजार हूँ जो आप मेरी जिंदगी में आये| मुझे अब कोई गिला नहीं की मेरी पढ़ाई छूट गई, हाँ शुरू-शुरू में हुई थी पर अब नहीं ... मेरे पास आप हो और मुझे कुछ नहीं चाहिए| (भौजी ने अपने आप ही आंसूं पोछे और फिर से मुझसे चिपक गईं|)
मैं: आप अब भी पढ़ना चाहते हो?
भौजी: नहीं... अब मन नहीं लगता और ना ही आपको इसके बारे में किसी से बात करने की कोई जर्रूरत है| आप के आलावा इस घर में और कोई नहीं जानता की मैं दसवीं तक अंग्रेजी में पढ़ी हूँ|
मैं: यार कितनी शर्म की बात है की घर में अंग्रेजी पढ़ी हुई बहु है और किसी को उसकी कदर ही नहीं| इसलिए मैं कह रहा था की मेरे साथ भाग चलो|
भौजी: छोडो उस बात को.... वैसे एक कारन है जिसकी वजह से मैंने आपको कभी नहीं बताया की मैं अंग्रेजी पढ़ी हूँ|
मैं: वो क्या?
भौजी: जब मैं आपके सामने लड़खड़ाते हुए अंग्रेजी बोलती थी तो जो मुस्कान आपके चहरे पे छलक आती थी उसके लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ|
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मैंने अपने दांतों से भौजी के निप्पलों को काटना शुरू कर दिया था, और जैसे ही मेर दाँत उनके निप्पल को छूटे वो चिहुक उठती और उनके मुंह से "आअह्ह्ह..स्स्स्स्स्स" निकल पड़ता| बहुत मजा आ रहा है और रुकने का मन भी नहीं कर रहा था पर मैं भौजी के दाहिने स्तन के साथ तो ज्यादती नहीं कर सकता था| इसलिए मैंने भौजी के बाएं स्तन को छोड़ा ... एक नजर उसे देखो और देखता रहा वो बिलकुल लाल हो चूका था और उसमें मेरे दांतों के निशाँ पड़ चुके थे| दायाँ स्तन जैसे मेरे होठों से शिकायत कर रहा हो की आखिर मेरे साथ ही सौतेला व्यवहार क्यों! आखिर मैंने उसे (दायें स्तन) को अपने मुंह में भर लिया और उसे भी वही प्यार दिया जो बायें वाले को दिया था| भौजी का कसमसाना अब भी जारी था और उनके मुंह से "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...... उम्म्म अन्न्न्ह्ह्ह्ह " की सिसकारियाँ जारी थी| मैंने अपनी जीभ से उनके निप्पल को बार बार छेड़ता ... कभी उनके निप्पल को दांतों से दबाता और भौजी के मुंह से आह निकल पड़ती; "आअह्हह्हह म्म्म्म"... फिर मैंने अपना मुंह जितना हो सकता था उतना खोला और उनके स्तन को अपने मुंह में भर के काट लिया! भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर में उँगलियाँ फिराना चालु कर दिन और मुझे महसूस हुआ की उन्हिएँ कितना आन्नद आ रहा है! अब मैंने दायें वाले को भी चूस-चूस के लाल कर दिया था| अब मैं सीधा नीचे की ओर बढ़ा... उनकी नाभि को KISS किया और फिर उनकी साडी खोली और जो पल्ला उन्होंने अपनी कमर में खोंसा हुआ था उसे निकाल दिया|साडी खुल गई .. अब बचा पेत्तिसोअत तो मैंने उसका नाद खोल दिया और उसे नीचे ना उतार के ऊपर की ओर सरका दिया और उनकी योनि पे अपने होंठ टिका दिए| भौजी ने अपनी दोनों टांगें पूरी खोल ली जिससे उनकी योनि ओर उभर के सामने आ गई|
अब मैंने एक नजर भौजी को देखा तो जैसे वो इन्तेजार कर यहीं हों की कब मैं अपना मुंह उनकी धधकती योनि पे लगाउँगा|
मैंने जैसे ही अपनी जीभ उनकी योनि पे लगा के एक सुड़का मारा (क्योंकि उनकी योनि पहले से ही पनिया चुकी थी|) भौजी का बदन कमान की तरह उठ गया| मैं फिर भी रुका नहीं ओर अपनी जीभ से उनकी योनि ऊपर-ऊपर से कुरेदने लगा| मैंने धीरे से भौजी के भगनासा को अपने जीभ से छेड़ा तो भौजी तड़प उठीं; "स्स्स्स्स्स्स्स्स ...उम्म्म"| मैंने उनके भगनासा को अपने मुँह में भर लिया ओर उसे चूसने लगा| भौजी विचलित होने लॉगिन ओर उनकाबदन फिर से कमान की तरह खिंच गया| केवल उनकी गर्दन तकिये पे थी बाकी का सारा शरीर कमान की तरह ऊपर की ओर मुड़ चूका था| मैंने उनके भगनासा को छोड़ा और धीरे-धीरे उनका शरीर पुनः सामान्य हो गया| मुझे महसूस हुआ की अब भी उनका मन नहीं भरा इसलिए करीब 5 - 7 सेकंड सांस लेने के बाद मैंने पुनः डुबकी लगाईं और भौजी की योनि में अपनी जीभ प्रवेश करा दी और भौजी तो छटपटाने लगीं| उन्होंने तकिये को दोनों हाथों से पकड़ लिया और बार-बार अपनी कमर हवा में उठा लेतीं| मैंने उनकी योनि की खुदाई जारी रखी और इधर भौजी ने अपना हाथ मेरे सर के ऊपर रखा और मेरे बालों में उँगलियाँ फिराने लगीं| उनकी उँगलियाँ मेरे सर पे जादू करने लगीं और मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैं और भी ज्यादा जोश से उनकी योनि को चाटने-चूसने लगा| कभी-कभी तो मैं भौजी की योनि की कपालों को अपने दाँतों से हल्का दबा देता और भौजी चिहुंक उठती; "आह!"!!! दस मिनट तक उनकी योनि को अपने मुँह से भोगने के बाद मुझे लगा की भौजी अब स्खलित होने वाली हैं इसलिए मैं पूरी तरह तैयार था| अगले दो सेकंड में भौजी ने अपनी कमर हवा में उठाई और उनकी योनि से रस मेरे मुँह में जाने लगा| बिना रुके भौजी स्खलित होती रहीं और मुझे उनका नमकीन रस अपने मुँह में भरता महसूस होने लगा| अब उनकी योनि से एक मादक खुशबु ने मेरे दिल में हलचल मचा दी और मैं रह-रह के उनके भगनासा को छेड़ देता| रस निकलना अब भी नाद नहीं हुआ... करीब बीस सेकंड तक वो स्खलित होती रहीं और मैं जीभ से उनके रस को पीता रहा|
भौजी हाँफने लगीं और मैं उन्हें और तंग ना करते हुए उनकी बगल में लेट गया| करीब एक मिनट बाद उनकी सांसें सामान्य हुईं और वो मेरी और करवट लेके लेट गेन| उनका सर मेरी छाती पे था और उनका बायां हाथ मेरे पेट पे था| मुझे उनके हाव भाव से लगा की वो संतुष्ट हैं और मैं मन ही मन बहुत खुश था| मैं उनके साथ सम्भोग नहीं करना चाहता था क्योंकि ऐसा करना ऐसा होता जैसे मैं उनसे दिन में दिए सभी सुरप्रीज़ों के बदले में उनसे कुछ माँग रहा हूँ| मैं उनसे कोई सौदा नहीं करना चाहता था बल्कि उन्हें खुश देखना चाहता था | मेरा मन अवश्य कह रहा था की आगे बढूँ पर आत्मा मना कर रही थी| इसलिए मैं शांत पड़ा रहा..... पर पता नहीं कैसे उन्हें हमेशा मेरे दिल की बात बिना कहे ही पता चल जाती थी? भौजी उठ के कड़ी हुईं और अपना पैटीकोट निकाल फेंका और वापस आके मेरे बगल में उसी तरह लेट गईं| उनका नंगा बदन मेरे अंदर आग लगा चूका था पर मैं बहुत झिझक रहा था| उन्होंने अपनी बायीं टांग उठा के मेरे लंड पे रख दिया| मैं हल्का सा मुस्कुरा दिया और वो अपने आप ही मेरे ऊपर चढ़ गईं ... उनके मेरे मुँह से अपने रस की महक आ रही थी और उन्होंने बिना कुछ कहे मेरे होठों पे Kiss किया| वो मेरे होठों को मदहोश होके चूसने लगीं और ये सिलसिला करीब तीन मिनट तक चलता रहा| जब तक उन्हें ये संतोष नहीं हो गया की मेरे मुंख में अब उनके योनि रस की महक खत्म नहीं हो गई वो मेरे होठों को चूसती रहीं| अब वो धीरे-धीरे नीचे हुईं और मेरे निप्प्लेस को अपने दांतों से काट लिया, मेरे मुँह से पीड़ा से भरी चीख निकल पड़ी; "आह! स्स्स" फिर उन्होंने मेरे निप्पल के इर्द-गिर्द भूरे हिस्से को निप्पल समेत अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगीं| शायद उन्हें लगा की इसमें से कुछ निकलेगा? पर जहाँ से निकलना था वो तो उनकी नंगी योनि और मेरे पजामे के बीच फँसा हुआ था| भौजी की योनि की गर्मी मुझे अपने लंड पे साफ़ महसूस होने लगी थी और वो बेचारा बहार आके सांस लेने के लिए तड़प रहा था! भौजी ने मेरे दोनों निप्पलों को चूसना... चबाना जारी रखा| और मैं बस सिसकियों के सागर में गोता लगा रहा था|
अब वो नीचे की ओर बढ़ीं ओर मेरी नाभि को चूमा और फिर मेरे पजामे के नाड़े को खोला और उसे और कच्छे को एक साथ पकड़ा और नीचे खींच के उतार दिया| अब मेरे फैन फनाता हुआ लंड उनके सामने खड़ा था और वो उसे प्यासी नजरों से क्षण भर देखती रहीं| इधर मेरे लंड ने एक तेज सांस ली क्योंकि बेचारे का दम क्षण भर पहले जो घुट रहा था| भौजी ने दाहिने हाथ से उसे पकड़ा और उसकी चमड़ी नीचे की और सुपाड़ा बहार आ गया| भौजी ने धीरे-धीरे अपना मुँह खोला और उसे अपने मुँह में भर के सहज हो गईं| मैं तो जैसे अव में उड़ने लगा... उनके मुँह से निकल रहीं गरम सांसें मुझे अपने लंड पे महसूस होने लगी थी| भौजी ने अपने दाँतों से सुपाड़े को धीरे-धीरे दबाने लगी| "स्स्स्स्स्स्स आह!" और मैं बस इतना ही कह पाया.... भौजी ने एक लम्बा सुड़पा मारा और लंड को पूरा अंदर ले लिए! पूरा लंड उनके गर्म-गर्म मुँह में और ऊपर से उस पे धोंकनी जैसी लग राय उनकी गर्म सांसें मेरी हालत ख़राब करने लगी थी| फिर उन्होंने अपना मुँह ऊपर-नीचे करना शुरू किया और लंड को पूरा चूसने लगीं| अंदर का ज्वलमुखी उबाल रहा था और बहार आने को तैयार था.... मैंने उनके गालों को अपने हाथ से छुआ और रुकने का इशारा किया| फिर उन्हें अपने ऊपर खींच लिया और अपनी बगल में लिटा लिया| क्षण भर हम एक दूसरे को देखते रहे और इसका ये फायदा भी था की जवालानुखी शांत होने लगा था| जब वो बिलकुल ठंडा हो गया तब मैं भौजी के ऊपर आगया और अपने लंड को उनकी योनि पे सेट किया पर फिर मन किया की क्यों ना इन्हें और तड़पाऊँ? इसलिए मैं लंड को ऊपर-ऊपर से उनकी योनि पे रगड़ने लगा परन्तु अंदर नहीं धकेल रहा था| भौजी तड़प उठीं और अपने हाथ से मेरे लंड को पकड़ने की कोशिश करने लगीं पर मैंने उन्हें पकड़ने नहीं दिया, उसके बाद जो हुआ उसे सुन के मेरे होश उड़ गए!
अनायास ही उनके मुँह से ये बोल फूट पड़े; "Please .... I Can’t take it anymore!" (प्लीज मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता!) ये सुन के मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं| अब मेरा दिमाग एकदम सन्न हो गया क्योंकि मैंने कभी नहीं सोचा था की भौजी अंग्रेजी भी बोल सकती हैं! मुझे उनके अंग्रेजी बोलने से कोई दिक्कत नहीं थी बस एक शिकवा था की उन्होंने कभी बताया नहीं| मैं एक दम से रूक गया और भौजी समझ गईं की क्या कारन है उन्होंने अचानक से मुझे अपने ऊपर खींचा और मुझे नीचे कर के मेरे लंड पे सवार हो गईं और अपने हाथों से लंड को योनि के अंदर धकेल दिया| अब उन्होंने ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया.... इधर मैं हैरान था और मैंने अपनी आँखें बंद कर ली| मैं कुछ नहीं बोला बस चुप-चाप लेटा रहा... अब दिमाग तो संन्न था परन्तु लंड अंदर पूरे मजे ले रहा था| उस बेचारे को इस सब से क्या फर्क पड़ता| उसे तो अंदर से गर्म-गर्म और भौजी के रस का गीलापन दोनों ही मिल रहे थे और वो बस अपनी प्यास बुझाना चाहता था| इधर भौजी की योनि भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रही थी| इधर भौजी कुछ ज्यादा ही उत्साह और मस्ती में बह गईं और उन्होंने अपनी गति बढ़ा दी थी| आँगन में उनकी सिसकारियाँ गूंजने लगीं थी, "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..... उम्म्म्म्म्म्म्म्म" इधर मैं झड़ने की कगार पे आ चूका था| उधर भौजी की हालत भी कुछ ऐसी ही थी, उन्होंने अचानक ही ब्रेक लगा दी और स्थिर हो गईं बस अपनी कमर को गोल घुमा रहीं थी और उनकी योनि ने मेरे लंड को जकड के उसे दबाना चालु कर दिया| आखिर भौजी स्खलित हो गईं और मेरा लंड उनके रस में भीग चूका था और उनका रस बहार मेरे लंड से होता हुआ चारपाई और मेरी गांड तक बह निकला| अब बारी मेरी थी, भौजी ने अपनी कमर को हिलाना बंद नहीं किया था और आखिर मैंने अपना फव्वारा अंदर छोड़ दिया| जैसे ही मेरा फव्वारा अंदर छूटा भौजी ने अपनी गर्दन ऊँची कर के पीछे की ओर मोड़ लिया| मैंने अपने दोनों हाथों से चारपाई पे बिछी चादर को पकड़ लिया था|
करीब बीस सेकंड के बाद मैं शांत हुआ ओर भौजी मेरे ऊपर ही लेट गईं| दोनों ही पसीने से तरबतर थे ओर थक चुके थे| दोनों की सांसें तेज थी... अगर मैं गलत नहीं तो भौजी मेरी धड़कनेंईं सुन पा रहीं होंगी क्योंकि उनका सर मेरी छाती पे था| भौजी हैरान तो होंगी की मैंने आखिर उनसे अंग्रेजी बोलने के बारे में क्यों कुछ बात नहीं की| पर मैं उन्हें वचन दे चूका था की मैं आपसे नाराज कभी नहीं हूँगा|
एक लम्बी सांस लेते हुए भौजी बोलीं;
भौजी: आप मुझसे नाराज हैं?
मैं कुछ नहीं बोला बस आँख बंद किये ना में गर्दन हिला दी|
भौजी: तो आप ने मुझसे मेरे अंग्रेजी बोलने पे कुछ क्यों नहीं कहा?
मैं अब भी कुछ नहीं बोला बस उनकी पीठ पे दोनों हाथ रखे और करवट बदली| अब भौजी का सर मेरे दायें बाजू पे था और हम अब भी नंगे थे और लंड अब भी योनि में शिथिल पड़ा था| मैं उनकी आँखों में देखता हुआ बोला;
मैं: मैंने आपसे वादा किया था की मैं आपसे कभी नाराज नहीं हूँगा…. और हाँ मुझे थोड़ा बुरा लगा की आपने मुझे कभी नहीं बताया की आप कितना पढ़े हो? मैंने तो ये सोचा था की आप भी चन्दर भैया की तरह अनपढ़ हो| पर अगर आपने मुझे इस बारे में कुछ नहीं बताया तो गलती मेरी भी है.... मैंने भी तो कभी इस बारे पे आपसे कुछ नहीं पूछा… और आपका ये सब न बताने के पीछे भी कोई न कोई कारन होगा|
भौजी: कभी-कभी तो लगता है की मैं आपको बिलकुल नहीं समझ पाती! मैं तो डर रही थी की आप मुझसे नाराज होंगे पर आपने कितनी सरलता से इस बात को एक्सेप्ट (accept) कर लिया| मैं सच मैं बहुत लकी (lucky) हूँ की मुझे आप मिले|
मैं: Likewise .... (मैंने उन्हें अपने से कस के चिपका लिया|)
भौजी: दरअसल बचपन से मुझे पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था| पर पिताजी ने कभी पढ़ने नहीं दिया, उन दिनों चरण काका की भतीजी शहर से आई हुई थी और मैंने जीवन में पहली बार किताबें देखी! मैं उन्हें खोल के देखने लगी और चरण काका की भतीजी मुझे वर्णमाला के कुछ अक्षर सिखाने लगी| ये सब चरण काका ने देख लिया और पिताजी से कहा की मुझे पढ़ने दिया जाए| पर मितजी नहीं माने... ऐसा नहीं था की हमारी माली (financial) हालत ख़राब थी पर पिताजी का मानना था की केवल लड़कों को ही शिक्षा का अधिकार है| पर चरण काका के जोर देने पर पिताजी ने मुझे पढ़ने के लिए मेरे मौसी के पास शहर भेज दिया| मौसी ने मेरे एडमिशन अंग्रेजी मध्यम स्कूल में करा दिया और मैं दसवीं के इम्तिहान दे चुकी थी तब मेरे ब्याह करा दिया गया| उसके बाद मैंने अपने मन को मार लिया और चुलह-चौक में अपना मन लगा लिया| (ये कहते हुए भौजी की आँखों से आंसूं छलक आये और मेरी छाती गीली करने लगे|) फिर आप मिले और मेरी जिंदगी बदल गई, सच कहूँ तो मैं रब की शुक्रगुजार हूँ जो आप मेरी जिंदगी में आये| मुझे अब कोई गिला नहीं की मेरी पढ़ाई छूट गई, हाँ शुरू-शुरू में हुई थी पर अब नहीं ... मेरे पास आप हो और मुझे कुछ नहीं चाहिए| (भौजी ने अपने आप ही आंसूं पोछे और फिर से मुझसे चिपक गईं|)
मैं: आप अब भी पढ़ना चाहते हो?
भौजी: नहीं... अब मन नहीं लगता और ना ही आपको इसके बारे में किसी से बात करने की कोई जर्रूरत है| आप के आलावा इस घर में और कोई नहीं जानता की मैं दसवीं तक अंग्रेजी में पढ़ी हूँ|
मैं: यार कितनी शर्म की बात है की घर में अंग्रेजी पढ़ी हुई बहु है और किसी को उसकी कदर ही नहीं| इसलिए मैं कह रहा था की मेरे साथ भाग चलो|
भौजी: छोडो उस बात को.... वैसे एक कारन है जिसकी वजह से मैंने आपको कभी नहीं बताया की मैं अंग्रेजी पढ़ी हूँ|
मैं: वो क्या?
भौजी: जब मैं आपके सामने लड़खड़ाते हुए अंग्रेजी बोलती थी तो जो मुस्कान आपके चहरे पे छलक आती थी उसके लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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