Saturday, October 11, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--39

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--39

अब आगे...
 भोजन के पश्चात मैं अपनी चारपाई पे बैठा था और नेहा हमेशा की तरह कहानी सुनते-सुनते मेरी गोद में ही सो गई| भौजी जब नेहा को लेने आईं तो मैंने उनसे कुछ बात की;

मैं: आप चले जाओ शादी में, मेरे लिए| नहीं तो घर के सब लोग मुझे ही दोष देंगे|

भौजी: मैं आपकी कोई भी बात मान सकती हूँ पर मैं सच में इस शादी में नहीं जाना चाहती| मैं आपसे अलग नहीं रह सकती| प्लीज मुझे जाने के लिए मत कहिये, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ| और रही बात आपको दोष देने की तो मैं देखती हूँ कौन आपसे कुछ कहता है|

मैं ठीक है, पर वादा करो की मुझे लेके आप किसी से लड़ाई नहीं करोगे| अगर इस बारे में कोई कुछ कहे भी तो भी आप चुप रहोगे| बोलो मंजूर है?

भौजी: आपने मुझे गजब दुविधा में डाल दिया.. पर ठीक है आपसे अलग रहने से तो अच्छा है की मैं चुप रहूँ| पर अगर बात हद्द से बढ़ गई तो मैं आपकी भी नहीं सुनुँगी|

ऐसा पहली बार था की मैंने भौजी के ऐसे बागी तेवर देखे थे!

मैं: मुझे आप से एक और बात कहनी है, मुझे आपका ये डबल मीनिंग वाली बातें करना बिलकुल पसंद नहीं| इसलिए आइन्दा ये डबल मीनिंग वाली बातें मुझसे मत करना|

भौजी: डबल मीनिंग बात?

मैं: शाम को जब हम दोनों क्रिकेट की बात कर रहे थे तब... डबल मीनिंग वाली बातें मतलब= दो अर्थ वाली बातें| ये बातें आपको शोभा नहीं देती| आपका चरित्र ऐसा नहीं है इसलिए आइन्दा कभी भी मुझसे ऐसी बातें मत करना|

भौजी: सॉरी जी! मैं तो बस थोड़ा मजाक कर रही थी| आगे से इस बात का ध्यान रखूंगी|

मैं बस थोड़ा मुस्कुराया और बात खत्म की| भौजी नेहा को गोद में ले के चली गईं... मैं भी लेट गया पर अब भी मैं भौजी "ख्वाइश" पूरी करने के बारे में सोच रहा था| कई बार मित्रों सीधा रास्ता मुश्किल होता है परन्तु मंजिल तक तो पहुंचा ही देता है| जैसे ही घडी में रात के एक बजे मैं उठा और भौजी के घर की ओर चल दिया| दरवाजा खुला था, और मैं चुप-चाप अंदर पहुँच गया| देखा तो भौजी अंदर सो रहीं थी! जब उन्हें सोते हुए देखा तो बस देखता ही रह गया ... बहुत प्यारी लग रही थीं वो| मैं बस दरवाजे पे खड़ा उन्हें निहारता रहा... मन ही नहीं किया की वहां से जाऊँ या उन्हें जगाऊँ| मैं धीरे-धीरे भौजी के पास गया और झुक के उनके होठों को चूमा| शायद भौजी को जबरदस्त नींद आ रही थी इसलिए उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी| मैं चुप-चाप दुबारा दरवाजा बंद कर के वापस अपनी चारपाई पे आके सो गया|


 नई सुबह.. नया दिन... पर आज कुछ तो ख़ास बात थी| जब मेरी आँख खुली तो मुझे "चक्की" चलने की आवाज आई| मैं उठ के बैठा और पाया की मेरे आस-पास कोई नहीं है| कुछ देर में मुझे माँ और बड़की अम्मा आते हुए दिखाई दिए| मेरे नजदीक आके माँ ने कहा की; "जल्दी से हाथ-मुंह धो के तैयार हो जाओ| और हाँ नहाना मत!" मैंने ना नहाने का करना पूछा तो पता चला की आज मुझे "बुक्वा" लगेगा|

मित्रों चूँकि आप नहीं जानते की "बुक्वा" क्या होता है तो मैं आपको इसके बारे में डिटेल में बताता हूँ| हमारे गाँव में स्त्रियाँ घर की चक्की पे सरसों को पीसती हैं और फिर उस मिश्रण में सरसों का तेल मिलाया जाता है| कहते हैं की इस मिश्रण को बदन पे लगाने से निखार और तमाम खाज-खुजली की तकलीफें ठीक हो जाती हैं| इसे घर की स्त्रियाँ ही लगाती हैं पर हाँ ये सिर्फ और सिर्फ घर के पुरुषों के लिए होता है| घर के बड़े जैसे मेरे पिताजी या बड़के दादा को बुक्वा केवल और केवल बड़की अम्मा ही लगाती हैं| चन्दर भैया, या अजय भैया को बुक्वा या तो बड़की अम्मा अथवा उनकी पत्नियाँ ही बुक्वा लगाती हैं| और सबसे छोटे देवर अर्थात मैं मैं जिससे चाहे बुक्वा लगा सकता हूँ| सरल शब्दों में कहें तो स्त्रियाँ अपने से छोटे पुरूषों को बुक्वा लगा सकती हैं, परन्तु अपने से बड़ों को नहीं| किसी भी बहार के पुरुष को ये सेवा किसी भी हाल में उपलब्ध नहीं होती| ना ही वो इसे लगाते हुए देख सकता है| इसे लगाने के विधि कुछ ख़ास नहीं है, बस इस मिश्रण को हाथों से लेप की तरह लगाया जाता है और कुछ समय बाद (तकरीबन 1 - 2 घंटे) इसे पानी से धोके उतार दिया जाता है| फिर साबुन से नहा के ये काम पूरा होता है| चूँकि मैं छोटा था तो मुझे बुक्वा लगाने की जिम्मेदारी भाभियों की थी| अब मेरी प्यारी भौजी से अच्छा विकल्प क्या हो सकता है!

बुक्वा लगाने की बात सुन के मैं खुश तो था ही पर नजाने मन में भौजी का चन्दर भैया को बुक्वा लगाने के बारे में सोच कर मन खराब हो गया| मैं मुंह हाथ धो के भौजी को ढूंढता हुआ उनके घर पहुँचा| वहां पहुँच के देखा तो भौजी चक्की चला रहीं थी और सरसों पीस रहीं थीं| दरअसल चक्की भौजी के घर में ही थी, मैंने उन्हें देखा परन्तु बोला कुछ नहीं| थोड़ा अजीब सा लग रहा था... शायद भौजी मेरी परेशानी भाँप गई और उनके मुख पे भी बिलकुल वैसे ही भाव थे जैसे मेरे मुख पे थे| मैं बिना कुछ बोले वापस आ गया और अपनी बारी का इन्तेजार बड़े घर में करने लगा| मैं सोच रहा था की बार-बार मुझे भौजी का इस तरह रिश्ते जोड़ना बहुत अच्छा लगने लगा था| कभी अपने पिताजी को मेरा ससुर कहना, मेरे पिताजी को अपना ससुर मानना, अपने भाई को मेरा साला कहना, मेरी माँ को चाची ना कह के माँ कहना ये सब बातें मेरे दिल को छू जातीं ओर मुझे एक अलग ही एहसास कराती| मैं इतना बहक चूका था की रात्रि में बातों-बातों में भौजी के मायके को मैंने ससुराल कह दिया| वो तो शुक्र है की पिताजी ने इस बात को तवज्जो नहीं दी वरना कल तो मेरी ठुकाई पक्की थी| करीब एक घंटे बाद भौजी आई और उनके पास एक डोंगे जैसा ताम्बे का बर्तन था| मैं आँगन में चारपाई पे बैठा था| मेरी पीठ दरव्वाजे की ओर थी तो मुझे केवल भौजी के पायल की आवाज ही सुन पाया| भौजी बर्तन लिए मेरे सामने कड़ी हो गईं ओर सवालियां नज़रों से मुझे देखने लगी|


 इससे पहले की वो कुछ पूछें मैं स्वयं ही चुप्पी तोड़ते हुए बोला;

मैं: लगा दिया आपने चन्दर भैया को बुक्वा?

भौजी: मैंने नहीं .... अम्मा ने लगाया| मैं तो चक्की चलने में व्यस्त थी ....

मैं कुछ बोला नहीं बस एक ठंडी साँस छोड़ी... और टी-शर्ट उतार दी| भौजी ने ऊँगली से मेरे पजामे की ओर इशारा किया और उसे भी उतारने को कहा| अब मैं केवल कच्छा पहने उनके सामने बैठा था| भौजी ने उबटन लगन शुरू किया... सबसे पहले उन्होंने छाती पे उबटन लगाया;

भौजी: तो आप का मूड इसलिए खराब था की मैं आपके भैया को उबटन लगाउंगी?

मैं: हाँ... पूछो मत| ऐसा लग रहा था जैसे शरीर पे चींटे काट रहे हों|

भौजी: पर मैं तो सिर्फ आपकी हूँ| और मैं किसी पराये मर्द को कैसे स्पर्श कर सकती हूँ?

मैं: जानता हूँ... पर यदि बड़की अम्मा ने आपसे भैया को उबटन लगाने को कहा होता तो? आप कैसे मन करते उन्हें ?

भौजी: बड़ा आसान है.... मैं अपना हाथ जख्मी कर लेती!

मैं: आपका दिमाग खराब है?

भौजी: हाँ !!! आपसे प्यार जो किया है..... निभाना तो पड़ेगा ही|

मैं: आप सच में पागल हो! अगर आप उन्हें उबटन लगा भी देते तो क्या होता? दुनिया के सामने तो वो आपके पति हैं|

भौजी: आपको क्या हुआ था जब आपने माधुरी के साथ.... ??? वही हाल मेरा भी होता!
(भौजी इतना कहके रूक गईं और दस सेकंड बाद अपनी बात पूरी की|)

मैं जानता था... और ये कहें की समझ सकता था की उनपे और मुझ पे क्या बीतती| खेर भौजी ने स्वयं ही बातें घुमा दीं;

मैं: एक बात कहूँ.... आप सोते हुए बहुत प्यारे लगते हो?

भौजी: ओह! आपने कब देख लिया मुझे सोते हुए? हमेशा तो मेरे सोने से पहले ही आप चले जाते हो| दिन में तो मैं कभी सोती नहीं|

मैं: कल रात को मैं आया था... देखा आप सो रहे थे| दस मिनट तक आपको निहारता रहा ... फिर आपके होठों को KISS किया और वापस चला गया|

भौजी: तो मुझे उठाया क्यों नहीं?

मैं: मन नहीं किया... मन तो कर रहा था की वहीँ खड़ा सारी रात आपको सोता हुआ देखता रहूँ|

भौजी: आप भी ना...

अब तक भौजी मेरे पूरे बदन पे बुक्वा लगा चुकीं थी....



 मैं: (अपना कच्छा सामने की ओर खींच के भौजी को दिखाते हुए) इस पे भी थोड़ा बुक्वा लगा दो| इसमें भी थोड़ी चमक आ जाए... ये भी गोरा हो जाए!

भौजी: ना जी ना.... अगर ये गोरा हो गया तो फिर यहाँ-वहां मुँह मारेगा|

अब ये सुन के तो मेरे तन-बदन में आग लग गई| गुस्से से मैं तमतमा गया ओर उठ के खड़ा हो गया| गुस्सा मेरी शक्ल से झलक रहा था... मैं अंदर अपने कमरे की ओर बढ़ा ओर अंदर जाके बैग में अपने कपडे भरने लगा| मुझे ऐसा करता देख भौजी के प्राण सूख गए ओर वो बोलीं;

भौजी: ये आप क्या कर रहे हो? ........ प्लीज मेरे साथ ऐसा मत करो| मुझे छोड़ के मत जाओ!!!

मैं: नहीं... आप को अब भी मुझ पे विशवास नहीं| आप को अंदर ही अंदर अब भी लगता है की मैंने आपके साथ दगा किया|

भौजी: नहीं... वो तो बस मैं आपसे थोड़ा मजाक कर रही थी| प्लीज मुझे इस तरह छोड़ के मत जाओ... मैं मर जाऊँगी!!! (इतना कह के भौजी रोने लगीं)

मैं: मजाक !!! आपको हर-बार यही विषय मिलता है मजाक करने के लिए? आपको पता है ना की मुझे इस बात से कितनी तकलीफ होती है? बार-बार आपका इस विषय को छेड़ने से मुझे ग्लानि महसूस होती है... अपने आपको कोसता हूँ..... पर फिर भी..... मैं तो कभी आपसे इस विषय में मजाक नहीं करता?

इतना कह के मैं भौजी की ओर मुड़ा और उनके नजदीक आया| गुस्स्सा तो अब भी अंदर था पर फिर भी मैंने भौजी के आँसूं पोछे और वहाँ से चला गया|मैं कुऐं की मुंडेर जो की मेरी पसंदीदा जगह बन चुकी थी वहाँ पे अकेला बैठा था|अकेला बैठा मैं यही सोच रहा था की क्या मैंने भौजी को इस तरह डाँट के सही किया? पर उन्हें भी तो पता होना चाहिए की मुझे कितना बुरा लगता होगा? मैं ये भी भूल चूका था की मैं केवल कच्छे में हूँ| डेढ़ घंटे तक मैं वहीँ बैठ रहा ... और फिर भौजी वहाँ आईं और मुझे नहाने के लिए कहा| मैं वापस बड़े घर आ गया और नहाने के लिए बाल्टी भरने लगा|जैसे ही मैं बाल्टी ले के स्नान घर की ओर बढ़ा... भौजी ने मेरे हाथ से बाल्टी ले ली| साफ़ जाहिर था की भौजी ही मुझे नहलाने वाली हैं| उनके मुख पे मुझे अफ़सोस ओर शर्मिंदगी के मिले-जुले भाव दिख रहे थे|

भौजी: आई ...ऍम....सॉरी जी!!!

मैं कुछ नहीं बोला... अब भी मेरे मुख पे गंभीर भाव थे|

भौजी: तो आप मुझसे बात नहीं करेंगे? प्लीज माफ़ कर दीजिये ना ... आगे से ऐसा मजाक कभी नहीं करुँगी| प्लीज .....
आगे की बात पूरी होने से पहले ही रसिका भाभी आ गईं|

रसिका भाभी: तो मानु जी, नहाना हो रहा है!

मैं: जी नहाने ही जा रहा था| (इतना कह के मैंने भौजी के हाथ से बाल्टी लेने के लिए हाथ बढ़ाया, परन्तु भौजी ने बाल्टी पीछे खींच ली|)

भौजी: आप रहने दो.... मैं नहला देती हूँ|

रसिका भाभी: (इस बात पे भी चुटकी लेने से बाज़ नहीं आई|) आय-हाय!!! देवर-भाभी का प्यार तो देखो!!! ही... ही...ही...ही !!!

अब मैं कहता भी क्या, मैं अर्ध नग्न हालत में चुप-चाप खड़ा हो गया और भौजी मुझे नहलाने लगी| पहले उन्होंने पानी की मदद से साड़ी उबटन छुड़ाई और फिर साबुन लगने लगीं| एक पल के लिए भौजी पीछे मुड़ीं और रसिका भाभी को देखा| रसिका भाभी अपने कमरे में थीं तो मौके का फायदा उठा के भौजी ने मेरे कच्छे की इलास्टिक को पकड़ के सामने की ओर खींचा, जिससे उन्हें मेरा सोया हुआ लंड दिख गया| उन्होंने उसे छूना चाहा परन्तु मैंने झट से उनका हाथ हटते हुए कच्छे की इलास्टिक छुड़ा ली| मैं जल्दी से भाग के कमरे में गया ओर तौलिया लपेट लिया ओर कपडे बदल कर, तेल कंघी कर के भर आ गया| जब मैं बहार आया तो भौजी अब भी स्नान घर के पास खडीन मेरी ओर देख रहीं थीं|

ऐसा नहीं था की मैं अकड़ दिखा रहा था या अब भी नाराज था| माफ़ तो मैं उन्हें पहले ही कर चूका था... मैं तो बस उन्हें थोड़ा तड़पा रहा था, क्योंकि आगे के लिए मैंने जो सोचा था उसके लिए थोड़ा गुस्सा दिखाना जर्रुरी था|



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