Thursday, October 30, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--50

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--50

अब आगे...

 वरुण मेरे पास बैठ गया और हाथ से है जहाज बनाके उड़ाने लगा| उसे खुश देख के मन को थोड़ी तसल्ली हुई.. जब खाना बन गया तब मैं खाना लेने रसोई तो गया और अपना खाना ले के वापस अपनी चारपाई पे आया पर खुद ना खाके मैंने सारा खाना वरुण को खिला दिया| अब मैं वापस भूखे पेट सोने लगा और वरुण भी मुझसे चिपक के सो गया| ये पहलीबार था जब मैं बिना कहानी सुनाये सो रहा था, पर एक अजब सी ख़ुशी थी मन में... वो ये की आज दिन भर में जो भी हुआ ... वो अब मेरे शरीर के किसी भी भाग को विचिलित नहीं करेगा| मन साफ़ है और खुश है, बस कमी है तो बस भौजी की! पता नहीं कब पर मुझे नींद आ ही गई... और मैं एक सपना देखने लगा| सपने में मेरे और भौजी के आलावा और कोई नहीं था| हम हाथ में हाथ डाले फूलों से लैह-लहाते बाग़ में घूम रहे थे| नंगे पाँव... घांस में पड़ी ओस की बूँदें पाँव को गीला कर रहीं थी| भौजी बहुत खुश थीं और मैं भी... फिर अचानक से भौजी के पाँव में एक काँटा चुभ गया और वो लँगड़ाने लगीं| ,मैं नीचे बैठ के उनके पाँव से कांटा निकालने लगा और फिर भौजी वहीँ बैठ गईं| मैंने उनकी गोद में सर रख लिया और उन्होंने उसी स्थिति में झुक के मेरे होठों पे अपने थिरकते हुए होंठ रख दिए और हम एक दूसरे के होठों का रसपान करने लगे| भौजी मुझे Kiss कर रहीं थीं और तभी अचानक उन्होंने अपना हाथ सरकाते हुए मेरे गले से लेकर लंड तक हाथ घुमाया और मेरा लंड पकड़ लिया| जैसे ही उन्होंने मेरा लंड पकड़ा मेरा सपना टूटा और मैं उठ के बैठ गया| मेरे सामने रसिका भाभी थीं जिनका हाथ मेरे लंड पे था और मेरे सपने में जो कुछ हुआ वो रसिका भाभी मेरे साथ कर रहीं थी सिवाय उस चुम्बन के जो सपने में मेरे और भौजी के बीच हुआ था! अब मैं अगर चिल्लाता तो शोर मचता और बवाल खड़ा होता| मैंने दबी हुई आवाज में आँखें दिखाते हुए रसिका भाभी को डराया;

मैं: ये क्या बेहूदगी है? मैंने मन किया था न मेरे आस-पास मत भटकना?

रसिका भाभी: अब तो तुमने मुझे पीट भी लिया अब तो पूरी कर दो मेरी ख्वाइश?

मैं: आप जाओ यहाँ से... कोई देख लेगा तो… आपकी इजात का तो कुछ नहीं पर मेरी मट्टी-पलीत हो जाएगी|

रसिका भाभी: ना..मैं नहीं जाउंगी जब तक तुम मुझे अपना ये (मेरा लंड) नहीं दिखते!

मैं: आपका दिमाग ख़राब हो गया है! आप मत जाओ मैं यहाँ से जा रहा हूँ!

जैसे ही मैं उठ के खड़ा हुआ तो देखा वरुण मेरी बगल में नहीं था, यानी पहले भाभी उसे उठा के ले गईं और दूसरी चारपाई पे सुला दिया और फिर खुद आके मेरे साथ बदतमीजी करने लगी| भाभी ने मेरा हाथ जकड लिया और मुझे इतनी जोर से खींचा की मैं वापस चारपाई पे आ गिरा| सच में बहुत ताकत थी उनमें... पर दिखने में तो छुइ-मुई सी थी!

रसिका भाभी: तुम कहनी नहीं जाओगे जब तक मैं तुम्हारा वो नहीं देख लेती|

मैं: छोड़ दो... वरना मैं चिल्लाउंगा!!

रसिका भाभी: चिल्लाओ... बदनामी तुम्हारी ही होगी| मैं कह दूंगी की तुम मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे थे|

मैं: आप तो सच में बहुत कमीनी निकली! मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो?

रसिका भाभी: जिस आग में मैं जल रही हूँ उसे बुझाने के लिए उझे जो भी करना पड़े मैं करुँगी|

मैं: ठीक है... पर अब मेरा हाथ छोडो और ,मुझसे थोड़ा दूर हटो!


 मैंने सोच लिया था की चाहे जो हो जाए मैं वो कभी नहीं करूँगा जो ये चाहती हैं| मुझे अब उनसे घिन्न होने लगी थी| मैं झट से उठा और भाग के पिताजी की चारपाई के पास आ गया| पिताजी पीठ के बल लेटे थे और मैं ठीक उनके सामने खड़ा हो गया| अगर जरा सी भी आवाज होती और पिताजी की आँख खुलती तो उन्हें सबसे पहले मैं दिखता| भाभी का मुँह सड़ गया और मेरे दिल को चैन आया| पर भाभी इतनी ढीठ थीं की अभी भी मेरी चारपाई से गईं नहीं और उसी चारपाई पे बड़े आराम से बैठ गईं| ऐसा लग रहा था मानो मुझे चिढ़ा रहीं हो की बच्चू कभी न कभी तो आओगे ही अपनी चारपाई पे सोने| मैं उनसे भी ढीठ था.. मैं पिताजी की बगल में लेटने लगा| जैसे ही मैं चारपाई पे बैठा तो पिताजी की आँख खुल गई;

पिताजी: क्या हुआ?

मैं: जी.. नींद नहीं आ रही थी... तो आपके पास आगया|

पिताजी थोड़ा एडजस्ट हुए और मैं उनकी ही बगल में लेट गया| जगह काम थी पर कम से कम अपनी इज्जत तो लूटने से बचा ली मैंने!!! अब भाभी का पारा चढ़ गया होगा!!! अगली सुबह तो और भी मुसीबतों वाली थी!!! सुबह मैं सब के साथ ही उठा और दुबारा रगड़-रगड़ के नहाया क्योंकी मुझे अपने बदन से रसिका भाभी की बू जो छुडानी थी| किस्मत अब भी चैन नहीं ले रही थी और मुझे तंग किये जा रही थी| चाय भी रसिका भाभी ने बनाई थी जो पीना मेरे लिए मानो जहर पीना था| चाय तो मैं ले के खेतों की ओर गया ओर फेंक दी| आजका प्लान बिलकुल साफ़ था... घरवालों की आड़ में रहो तो इज्जत बची रहेगी| पिताजी और बड़के दादा खेत जाने के लिए तैयार थे मैं उन्हीं के पास बैठ गया| तभी वहाँ सर पे पल्ला किये माँ और बड़की अम्मा आ गए|

माँ: क्यों भई लाड साहब, रात को बड़ा प्यार आ रहा था अपने पिताजी पर जो उनके साथ सोया था|

मैं: जी ... नींद नहीं आ रही थी इसलिए ....

माँ: हाँ..हाँ.. जानती हूँ|

मैं: अब आप लोगों की मदद खेतों में करूँगा तो नींद जबरदस्त आएगी|

बड़के दादा: हाँ मुन्ना... अजय और चन्दर तो आज लखनऊ जा रहे हैं|

मैं: किस लिए?

बड़के दादा: वो मुन्ना ... एक पुराना केस है उसके लिए|

मैं: केस?

बड़के दादा: हाँ बेटा तुम्हारे दादा की एक जमीन थी जिस पे कुछ लोगों ने कब्ज़ा कर लिया था|


 खेर बातें ख़त्म हुईं और हम खेतों में चले गए| मैं काम कर रहा था पर ध्यान अब भी भौजी पे लगा हुआ था| हाथ में हंसिया लिए फसल काट रहा था और ना जानने कब हंसिए से मेरा हाथ काट गया मुझे पता ही नहीं चला| मेरी हथेली की जो सबसे बड़े रेखा थी वो कट गई और खून निकलने लगा| मेरा उस पे ध्यान ही नहीं गया.. जब माँ घर से पानी लेके आईं तब उन्होंने खून देखा और तब जाके कहीं मेरा ध्यान हाथ पे गया| मैंने रुमाल निकला और ऐसे ही बांध लिया और वापस काम पे लग गया| खेत में बस पिताजी, बड़की अम्मा, मैं और माँ ही थे| चन्दर भैया और अजय भैया लखनऊ के लिए निकल चुके थे| तभी अचानक से वरुण भागता हुआ आया;

वरुण: चाचा ...चाचा ... माँ ने आपको बुलाया है|

मैं: क्यों?

वरुण: टांड से एक गठरी उतारनी है|

मैं जानता था की उन्हिएँ कोई गठरी नहीं उतरवानी बस अपनी कमर की गठरी खोल के दिखानी है! मैं वरुण से साफ़ मन कर दिया और कह दिया की बाद में उतार दूँगा| वरुण जवाब सुनके चला गया... और पांच मिनट में ही भागता हुआ फिर आया;

वरुण: चाचा, माँ कह रही है की गठरी में कुछ कपडे हैं जो उन्हीने "सी" ने हैं|

मैं: कहा ना बाद में उतार दूँगा अभी काम करने दो!

पिताजी: जाके उतार क्यों नहीं देता गठरी| क्यों बार-बार बच्चे को धुप में भगा रहा है?

मैं: जी ... जाता हूँ|

अब मैं घर पहुँचा तो भाभी कुऐं के पास मेरा बेसब्री से इन्तेजार कर रही थी| मुझे लगा की ये कल रात का बदला जर्रूर लेगी मुझसे|

पर हुआ कुछ अलग ही;

रसिका भाभी: कल रात जो हुआ उसके लिए मुझे माफ़ कर दो! मैं हाथ जोड़के तुमसे माफ़ी मांगती हूँ!

मैं हैरान हो गया की अचानक से ये इतने प्यार से कैसे बात कर रही है| इतनी जल्दी इसका हृदय परिवर्तन कैसे हो गया| कुछ तो गड़बड़ है!

रसिका भाभी: प्लीज मुझे माफ़ कर दो!

मैं बोला कुछ नहीं बस हाँ में गर्दन हिला दी और उन्हें लगा की मैंने उन्हें माफ़ कर दिया| मैं अब भी उनकी पहुँच से दूर था क्योंकी दिल को लग रहा था की ये लपक के कहीं फिर से तुझे जकड न ले|

रसिका भाभी: अच्छा तो अब हम दोस्त हैं ना?

मैं फिर कुछ नहीं बोला बस हाँ में सर हिला दिया|

रसिका भाभी: तो मेरी मदद करोगे?

मैं: कैसी मदद?

रसिका भाभी: मेरे कमरे में सीढ़ी लगा के टांड से एक गठरी उतार दो| 


 अब मैंने “सविता भाभी कॉमिक्स का एपिसोड 2” देखा था| इसलिए मैं सचेत था की जब मैं सीढ़ी पे चढ़ा हूँ तब ये मेरा लंड हमेशा पकड़ लेगी और उस हालत में अगर मेरा बैलेंस बिगड़ा तो मैं सीधा जमीन पे गिरूंगा और हड्डी टूटेगी ही| और अगर मैं बेहोश हो गया तो ये मेरा फायदा अवश्य उठाएगी| मैं सीढ़ी ले के उनके कमरे में पहुँचा और टांड से सीढ़ी लगा दी| इतने में भाभी आई और मुझे लगा की अब ये कहेगी की तुम सीढ़ी पर चङो मैं सीढ़ी पकड़ती हूँ और जैसे हे मैं ऊपर चढूंगा ये फिर मुझसे छेड़खानी करेंगी| पर भाभी मेरे पास आईं और मुझे टांड पे रखी गठरी दिखाई और उसे उतारने के लिए कहा और बाहर आँगन में चली गईं| मैं हैरान था की इतनी जल्दी ये लोमड़ी सुधर कैसे गई? खेर मैं सीढ़ी पर चढ़ा और गठरी को छूने की कोशिश करने लगा| गठरी मेरी पहुँच से थोड़ा दूर थी| मैंने बहुत कोशिश की परन्तु मेरा हाथ नहीं पहुँचा फिर मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली से उसे खींचा परन्तु असफल रहा| मैं कोसिशकर रहा था तभी अचानक वो हुआ जिसका मुझे डर था| भाभी ने अचानक से मेरा लंड सामने से पकड़ा और एक झटके में मेरा पाजामा खेंच के नीचे कर दिया| पाजामा नीचे गिरते ही मेरा लंड उनके सामने था| इधर मेरा हाथ गठरी तक पहुँच गया था| जैसे ही भाभी ने मेरा पाजामा खींचा मैंने गठरी खेंची और वो धड़ाम से नीचे गिरी और मैं सीढ़ी से कूद पड़ा और अपना पजामा ठीक किया| मैंने एक लात सीढ़ी में मारी और वो जाके दूसरी दिवार से जा लगी| अब मैं एक दम से भाभी पे चढ़ गया और खींच के दो लाफ़े उनके गाल पे जड़ दिए| 

 
पर हैरानी की बात ये थी की भाभी को कोई फर्क ही नहीं पड़ा था हँस रही थी! वो बहुत तेजी से खिलखिला के हँसी... मैं हैरानी से कुछ पल उन्हें घूरता रहा जैसे मैं जानना चाहता था की आखिर इन्हें हुआ क्या है| मैं मुड़ के जाने लगा तो वो बोलीं; "मज़ा आ गया मानु जी...!!!" एक पल के लिए मेरा दिमाग जैसे सन्न रह गया| भला ये कैसी औरत है जो दो लाफ़े खा के भी खुश है और कह रही है की मज़ा आ गया| मैं वहां से वापस खेत भाग आया, पर अब मुझे एक जाइब सा डर लगने लगा था| पर मेरी मुसीबतें तो अभी शुरू ही हुईं थी| मैं यूँ तो खेत में बैठा काम कर रहा था परन्तु मन मेरा बैचैनी से पागल हुआ जा रहा था| दिल भौजी को याद कर रहा था... दिमाग रसिका भाभी से सहमा हुआ था और मन तो जैसे बावला हो रहा था| तभी अचानक पिताजी का फ़ोन बज उठा| फ़ोन चन्दर भैया ने किया था, उन्हें कोर्ट कचहरी के काम के कारन कुछ दिन और रुकना था लुक्खनऊ में| खेर भोजन का समय हुआ तो सब घर वापस आ गए| घर आके बड़की अम्मा ने भाभी को बताया की अजय भैया कुछ दिन और नहीं आएंगे तो भाभी की बाँछें खिल गेन| वही कटीली मुस्कान उनके होंठों पे लौट आई| ये सब वो मेरी ओर देख के कर रहीं थीं| हमेशा की तरह मैंने अपना खाना लिया और वरुण को अपने साथ बिठा के सब खिला दिया| खाने के उपरान्त सब वापस जाने को हुए तभी एक और बिजली गिरी| दुबारा फ़ोन बजा, परन्तु इस बार बड़के दादा का| ये फ़ोन मां जी के घर से आया था| बात ख़ुशी की थी, वो दादा बन गए थे|

उन्होंने सब को अपने घर पे आमंत्रित किया था| परन्तु खेतों में कटाई बाकी थी इसलिए बड़के दादा ने कह दिया की वो नहीं आ पाएंगे| अब घर पे काम से काम दो लोगों को रहना था, और बड़की अम्मा और बड़के दादा दोनों तैयार थे| अब मेरा मन तो वैसे ही भौजी के बिना अशांत था और मैं वहां जाना भी नहीं चाहता था| इसलिए मैंने कहा की मैं यहीं रह के बड़के दादा के पास रह के खेत की कटाई में मदद करूँगा| बड़के दादा ने मन किया पर पिताजी के जोर देने पर वो मान गए| दरअसल बड़के दादा चाहते थे की मैं थोड़ा घूमूं -फिरूँ पर उन्हें क्या पता मेरी मनोदशा क्या थी| मैं अंदर ही अंदर खुश था की कम से कम भाभी घर में नहीं होंगी तो कुछ तो चैन मिलेगा|


 लेकिन एक बार फिर उन्होंने अपना तुरुक का इक्का फेंका;

रसिका भाभी: काका (मेरे पिताजी) मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है| और फिर इतने दिनों बाद वरुण आया है तो आप बड़की अम्मा को साथ ले जाइये मैंने यहाँ खाना वगेरह संभाल लुंगी|

बड़की अम्मा: नहीं बहु .... तुम आराम करो| मैं देख लूंगी सब|

रसिका भाभी: अम्मा आप वैसे भी कहीं बहार नहीं जाते... और पिछली बार आप मामा के घर साल भर पहले गए थे.

पिताजी: हाँ भाभी... आप चलो ये संभाल लेगी और फिर हुमक-दो दिन में आ ही जायेंगे|

तब जाके बड़की अम्मा मानी पर इधर मुझे अंदर-ही-अंदर गुस्सा भी आ रहा था और डर भी लग रहा था| सभी जल्दी तैयार होक निकल गए और अब घर पे केवल हम चार लोग रह गए थे; मैं. बड़के दादा, वरुण और रसिका भाभी| मैं बड़के दादा के साथ काम में जुट गया| कुछ देर बाद भाभी भी आ गईं और मेरे पास ही बैठ के कटाई करने लगी| वरुण भी अपने नन्हे-नन्हे हाथों से मदद करने लगा| पर बड़के दादा के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे| वो बस काम में लगे हुए थे, और इधर भाभी धीरे-धीरे मेरे नजदीक आ रहीं थीं| जब वो मेरे कुछ ज्यादा नजदीक आ गईं तो मैं उठ के दूसरी तरफ जाने लगा, तभी उन्होंने जानबूझ के मुझ से पूछा; "मानु जी... कहाँ जा रहे हो?" मैं कुछ नहीं बोला| तभी बड़के दादा ने पूछा; "अरे मुन्ना वहाँ कहाँ जा रहे हो?" अब वो चूँकि मेरे बड़े थे तो उनकी बात का जवाब देना जर्रुरी था; "जी मैं बाथरूम जा रहा हूँ|" अब बाथरूम किसे आया था? मैं कुछ दूरी पे दूसरे खेत की ओर मुंह करके ऐसे खड़ा हो गया जैसे मूट आ रहा हो| पर मूता नहीं... कुछ देर बाद वापस आया ओर बड़के दादा के पास ही बैठ के कटाई चालु कर दी| जब अँधेरा होने लगा तो हम वापस घर आ गए|घर लौट के सबसे पहले तो मेरा नहाने का मन था| क्योंकि रसिका भाभी ने मुझे दोपहर में जो छुआ था| पर दिक्कत ये थी की चन्दर भैया का घर लॉक था औरउसकी चाभी रसिका भाभी के पास थी| अब मैं उनके सामने नहीं जान चाहता था इसलिए मैं बड़े घर ही चला गया स्नान करने| बड़के दादा ने मुझे बाल्टी में पानी ले जाते हुए देखा तो पूछा;

बड़के दादा: मुन्ना इस पानी का क्या करोगे?

मैं: जी नहाने जा रहा हूँ|

बड़के दादा: अरे मुन्ना बीमार पद जाओगे| मौसम ठंडा है और ऊपर से पानी बहुत ठंडा है|

मैं: नहीं दादा थकावट उतर जाएगी|

बड़के दादा: बेटा इसीलिए मैं कह रहा था की तुम चले जाओ, अब यहाँ रह के तुम खेतों में काम करोगे तो थक तो जाओगे ही|

मैं: नहीं दादा... आदत पड़ जाएगी| (मैं मुस्कुरा के नहाने चल दिया|)

पानी वाकई में बहुत ठंडा था, और ऊपर से जैसे ही मैंने सारे कपडे उतारे और पहला लोटा पानी का डाला तो मेरी कंपकंपी छूट गई| किसी तरह मैं रगड़-रगड़ के नहाया ताकि रसिका भाभी की महक छुड़ा सकूँ| नह के काँपता हुआ मैं बहार आया और छापर के नीचे एक चादर ले के लेट गया| रात को जब खाना बना तो मैंने अपना वही पुराण तरीका अपनाया और बर्तन रख के हाथ धोके आया|





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