FUN-MAZA-MASTI
मैं आप
लोगों के
लिए अपनी
ज़िंदगी का
और खूबसूरत
लम्हा एक
कहानी के
माध्यम से
साझा कर
रहा हूँ।
बात उस
समय की
है जब
मैं ग्रेजुयेशन
कर रहा
था। मेरे
घर के
पास एक
फैमिली रहती
थी।
पति और पत्नी, जो रिश्ते में मेरे अंकल और आंटी लगते हैं।
चूंकि.. आंटी भी कॉमर्स ग्रेजुयेट थीं, तो वो मुझे मेरी पढ़ाई में मदद करती रहती थीं। इसीलिए मेरा भी ज़्यादातर वक्त उनके घर पर ही व्यतीत होता था। मैं उन्हीं के यहाँ खाना ख़ाता और सो भी जाता था। कोई इसको बुरा या ग़लत भी नहीं कहता, क्योंकि वो मेरे अंकल और आंटी थे। यहाँ तक की उनके घर में भी मेरा एक कमरा हो गया था जिसे सिर्फ़ मैं पढ़ने और सोने के लिए इस्तेमाल करता था।
आंटी का नाम डॉली है। वो बहुत ही खूबसूरत और कमनीय काया की महिला हैं। उस वक़्त उनकी उम्र 22 साल और मेरी 19 साल थी। उनकी देहयष्टि का नाप उस समय 34-26-40 थी। पहले उनके लिए मेरे दिल में कुछ भी नहीं था, लेकिन एक घटना ने मेरा नज़रिया बदल दिया। मैं जब भी उनकी उभरी हुई ठोस चूचियाँ और गोल-गोल उभरे हुए चूतड़ों को देखता तो मेरे अन्दर बेचैनी सी होने लगती थी।
क्या मादक जिस्म था उनका। बिल्कुल किसी परी की तरह।
एक दिन की बात है, आंटी मुझे पढ़ा रही थीं और अंकल अपने कमरे में लेटे हुए थे। रात के दस बजे थे, इतने में अंकल की आवाज़ आई- सुम्मी और कितनी देर है जल्दी आओ ना..।
आंटी आधे में से उठते हुए बोलीं- राज बाकी कल करेंगे, तुम्हारे अंकल आज कुछ ज्यादा ही उतावले हो रहे हैं।
यह कह कर वो जल्दी से अपने कमरे में चली गईं।
मुझे आंटी की बात कुछ ठीक से समझ नहीं आई, काफ़ी देर तक सोचता रहा, फिर अचानक ही दिमाग़ की ‘ट्यूब-लाइट’ जली और मेरी समझ में आ गया कि अंकल किस बात के लिए उतावले हो रहे थे।
मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई। आज तक मेरे दिल में आंटी को ले कर बुरे विचार नहीं आए थे, लेकिन आंटी के मुँह से उतावले होने वाली बात सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था।
मुझे लगा कि आंटी के मुँह से अनायास ही यह निकल गया होगा। जैसे ही आंटी के कमरे की लाइट बन्द हुई, मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गई।
मैंने जल्दी से अपने कमरे की लाइट भी बन्द कर दी और चुपके से आंटी के कमरे के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया।
अन्दर से फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी पर कुछ-कुछ ही साफ़ सुनाई दे रहा था।
‘क्यों जी.. आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो?’
‘मेरी जान, कितने दिन से तुमने दी नहीं… इतना ज़ुल्म तो ना किया करो मेरी रानी…!’
‘चलिए भी, मैंने कब रोका है, आप ही को फ़ुर्सत नहीं मिलती। राज का कल इम्तिहान है, उसे पढ़ाना ज़रूरी था।’
‘अब श्रीमती जी की इज़ाज़त हो तो आपकी बुर का उद्घाटन करूँ?’
‘हाय राम.. कैसी बातें बोलते हो, शरम नहीं आती?’
‘शर्म की क्या बात है, अब तो शादी को दो साल हो चुके हैं, फिर अपनी ही बीवी की बुर को चोदने में शर्म कैसी?’
‘बड़े खराब हो… आह..अई..आह हाय राम… धीरे करो राजा.. अभी तो सारी रात बाकी है।’
मैं दरवाज़े पर और ना खड़ा रह सका। पसीने से मेरे कपड़े भीग चुके थे, मेरा लंड अंडरवियर फाड़ कर बाहर आने को तैयार था। मैं जल्दी से अपने बिस्तर पर लेट गया, पर सारी रात आंटी के बारे में ही सोचता रहा। मैं एक पल भी ना सो सका, ज़िंदगी में पहली बार आंटी के बारे में सोच कर मेरा लंड खड़ा हुआ था।
सुबह अंकल ऑफिस चले गए। मैं आंटी से नज़रें नहीं मिला पा रहा था, जबकि आंटी मेरी कल रात की करतूत से बेख़बर थीं।
आंटी रसोई में काम कर रही थीं, मैं भी रसोई में खड़ा हो गया, ज़िंदगी में पहली बार मैंने आंटी के जिस्म को गौर से देखा।
उनका गोरा भरा हुआ गदराया सा बदन, लम्बे घने काले बाल जो आंटी के कमर तक लटकते थे, बड़ी-बड़ी आँखें, गोल-गोल बड़े संतरे के आकार की चूचियाँ जिनका साइज़ 34 से कम ना होगा। पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौड़े, भारी चूतड़, एक बार फिर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।
इस बार मैंने हिम्मत करके आंटी से पूछ ही लिया- आंटी, मेरा आज इम्तिहान है और आपको तो कोई चिंता ही नहीं थी, बिना पढ़ाए ही आप कल रात सोने चल दीं..!
‘कैसी बातें करता है राज, तेरी चिंता नहीं करूँगी तो किसकी करूँगी?’
‘झूठ, मेरी चिंता थी तो गई क्यों?’
‘तेरे अंकल ने जो शोर मचा रखा था।’
‘आंटी, अंकल ने क्यों शोर मचा रखा था?’ मैंने बड़े ही भोले स्वर में पूछा।
आंटी शायद मेरी चालाकी समझ गईं और तिरछी नज़र से देखते हुए बोलीं- धत्त बदमाश, सब समझता है और फिर भी पूछ रहा है। मेरे ख्याल से तेरी अब शादी कर देनी चाहिए। बोल है कोई लड़की पसंद?
‘आंटी सच कहूँ मुझे तो आप ही बहुत अच्छी लगती हो।’
‘चल नालायक भाग यहाँ से और जा कर अपना इम्तिहान दे।’
मैं इम्तिहान तो क्या देता, सारा दिन आंटी के ही बारे में सोचता रहा। पहली बार आंटी से ऐसी बातें की थीं और आंटी बिल्कुल नाराज़ नहीं हुईं, इससे मेरी हिम्मत और बढ़ने लगी।
मैं आंटी का दीवाना होता जा रहा था। आंटी रोज़ रात को देर तक पढ़ाती थीं। मुझे महसूस हुआ शायद अंकल आंटी को महीने में दो तीन बार ही चोदते थे। मैं अक्सर सोचता, अगर आंटी जैसी खूबसूरत औरत मुझे मिल जाए तो दिन में चार दफे चोदूँ।
दीवाली के लिए आंटी को मायके जाना था। अंकल ने उन्हें मायके ले जाने का काम मुझे सौंपा, क्योंकि अंकल को छुट्टी नहीं मिल सकी।
टिकट खिड़की पर बहुत भीड़ थी, मैं आंटी के पीछे रेलवे स्टेशन पर रिज़र्वेशन की लाइन में खड़ा था। धक्का-मुक्की के कारण आदमी-आदमी से सटा जा रहा था। मेरा लंड बार-बार आंटी के मोटे-मोटे चूतड़ों से रगड़ रहा था।
मेरे दिल की धड़कन तेज़ होने लगी, हालांकि मुझे कोई धक्का भी नहीं दे रहा था, फिर भी मैं आंटी के पीछे चिपक कर खड़ा था। मेरा लंड फनफना कर अंडरवियर से बाहर निकल कर आंटी के चूतड़ों के बीच में घुसने की कोशिश कर रहा था।
आंटी ने हल्के से अपने चूतड़ों को पीछे की तरफ धक्का दिया, जिससे मेरा लंड और ज़ोर से उनके चूतड़ों से रगड़ने लगा। लगता है आंटी को मेरे लंड की गर्माहट महसूस हो गई थी और उसका हाल पता था लेकिन उन्होंने दूर होने की कोशिश नहीं की।
भीड़ के कारण सिर्फ़ आंटी को ही रिज़र्वेशन मिला, ट्रेन में हम दोनों एक ही सीट पर थे।
रात को आंटी के कहने पर मैंने अपनी टाँगें आंटी की तरफ और उन्होंने अपनी टाँगें मेरी तरफ कर लीं और इस प्रकार हम दोनों आसानी से लेट गए। रात को मेरी आँख खुली तो ट्रेन के नाइट-लैंप की हल्की-हल्की रोशनी में मैंने देखा, आंटी गहरी नींद में सो रही थीं और उनकी साड़ी जांघों तक सरक गई थी।
आंटी की गोरी-गोरी नंगी टाँगें और मोटी मांसल जांघें देख कर मैं अपना संयम खोने लगा। उनकी साड़ी का पल्लू भी एक तरफ गिरा हुआ था और बड़ी-बड़ी चूचियाँ ब्लाउज में से बाहर गिरने को हो रही थीं।
मैं मन ही मन मानने लगा कि साड़ी थोड़ी और ऊपर उठ जाए ताकि आंटी की चूत के दर्शन कर सकूँ। मैंने हिम्मत करके बहुत ही धीरे से साड़ी को ऊपर सरकाना शुरू किया। साड़ी अब आंटी की चूत से सिर्फ़ 2 इंच ही नीचे थी, पर कम रोशनी होने के कारण मुझे यह नहीं समझ आ रहा था की 2 इंच ऊपर जो कालिमा नज़र आ रही थी वो काले रंग की पैन्टी थी या आंटी की बुर के बाल।
मैंने साड़ी को थोड़ा और ऊपर उठाने की जैसे ही कोशिश की, आंटी ने करवट बदली और साड़ी को नीचे खींच लिया।
मैंने गहरी सांस ली और फिर से सोने की कोशिश करने लगा।
मायके में आंटी ने मेरी बहुत खातिरदारी की, दस दिन के बाद हम वापस लौट आए।
वापसी में मुझे आंटी के साथ लेटने का मौका नहीं लगा। अंकल आंटी को देख कर बहुत खुश हुए और मैं समझ गया कि आज रात आंटी की चुदाई निश्चित है।
उस रात को मैं पहले की तरह आंटी के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया। अंकल कुछ ज़्यादा ही जोश में थे। अन्दर से आवाजें साफ़ सुनाई दे रही थीं।
‘सुम्मी मेरी जान, तुमने तो हमें बहुत सताया… देखो ना हमारा लंड तुम्हारी चूत के लिए कैसे तड़प रहा है.. अब तो इनका मिलन करवा दो..!’
‘हाय राम, आज तो यह कुछ ज़्यादा ही बड़ा दिख रहा है… ओह हो.. ठहरिए भी.. साड़ी तो उतारने दीजिए।’
‘ब्रा क्यों नहीं उतारी मेरी जान, पूरी तरह नंगी करके ही तो चोदने में मज़ा आता है। तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत को चोदना हर आदमी की किस्मत में नहीं होता।’
‘झूठ.. ऐसी बात है तो आप तो महीने में सिर्फ़ दो-तीन बार ही!’
‘दो-तीन बार ही क्या?’
‘ओह हो.. मेरे मुँह से गंदी बात बुलवाना चाहते हैं..!’
‘बोलो ना मेरी जान, दो-तीन बार क्या?’
‘अच्छा बाबा, बोलती हूँ; महीने में दो-तीन बार ही तो चोदते हो… बस..!’
‘सुम्मी, तुम्हारे मुँह से चुदाई की बात सुन कर मेरा लंड अब और इंतज़ार नहीं कर सकता… थोड़ा अपनी टाँगें और चौड़ी करो। मुझे तुम्हारी चूत बहुत अच्छी लगती है… मेरी जान।’
‘मुझे भी आपका बहुत… उई.. मर गई… उई… आ…ऊफ़.. बहुत अच्छा लग रहा है….थोड़ा धीरे… हाँ ठीक है….थोड़ा ज़ोर से…आ..आह..आह…!’
अन्दर से आंटी के कराहने की आवाज़ के साथ साथ ‘फच..फच’ जैसी आवाज़ भी आ रही थीं जो मैं समझ नहीं सका।
बाहर खड़े हुए मैं अपने आप पर संयम नहीं कर सका और मेरा लंड झड़ गया। मैं जल्दी से वापस आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया। अब तो मैं रात-दिन आंटी को चोदने के सपने देखने लगा। मैं पहले भी अपने आस-पास की 3-4 लड़कियों को चोद चुका था इसलिए चुदाई की कला से भली-भाँति परिचित था।
मैंने इंग्लिश की बहुत सी कामुक ब्लू-फिल्म्स देख रखी थीं और हिन्दी और इंग्लिश के कई कामुक उपन्यास भी पढ़े थे।
मैं अक्सर कल्पना करने लगा कि आंटी बिल्कुल नंगी होकर कैसी लगती होंगी।
जितने लम्बे और घने बाल उनके सिर पर थे ज़रूर उतने ही घने बाल उनकी चूत पर भी होंगे। अंकल आंटी को कौन-कौन सी मुद्राओं में चोदते होंगे। एकदम नंगी आंटी टाँगें फैलाई हुए चुदवाने की मुद्रा में बहुत ही सेक्सी लगती होंगी। यह सब सोच कर मेरी आंटी के लिए काम-वासना दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी।
मैं भी 5’7′ लंबा हूँ, अपने कॉलेज का बॉडी-बिल्डिंग का चैम्पियन था। रोज़ दो घंटे कसरत और मालिश करता हूँ। लेकिन सबसे खास चीज़ है मेरा लंड। ढीली अवस्था में भी 4 इंच लम्बा और 2 इंच मोटा किसी हथौड़े के माफिक लटकता रहता है। यदि मैं अंडरवियर ना पहनू तो पैन्ट के ऊपर से भी उसका आकार साफ़ दिखाई देता है। खड़ा हो कर तो उसकी लम्बाई करीब 7-8 इंच और मोटाई 3.5 इंच हो जाती है।
एक डॉक्टर ने मुझे बताया था कि इतना लम्बा और मोटा लंड बहुत कम लोगों का होता है। मैं अक्सर बरामदे में तौलिया लपेट कर बैठ जाता था और अखबार पढ़ने का नाटक करता था। जब भी कोई लड़की घर के सामने से निकलती, मैं अपनी टाँगों को थोड़ा सा इस प्रकार से चौड़ा करता कि उस लड़की को तौलिए के अन्दर से झाँकता हुआ लंड नज़र आ जाए।
मैंने अखबार में छोटा सा छेद कर रखा था। अखबार से अपना चेहरा छुपा कर उस छेद में से लड़की की प्रतिक्रिया देखने में बहुत मज़ा आता था। लड़कियों को लगता था कि मैं अपने लंड की नुमाइश से बेख़बर हूँ। एक भी लड़की ऐसी ना थी जिसने मेरे लंड को देख कर मुँह फेर लिया हो।
धीरे-धीरे मैं शादीशुदा औरतों को भी लंड दिखाने लगा, क्योंकि उन्हें ही लम्बे, मोटे लंड का महत्व पता था।
एक दिन मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था कि आंटी ने आवाज़ लगाई- राज, ज़रा बाहर जो कपड़े सूख रहे हैं, उन्हें अन्दर ले आओ… बारिश आने वाली है।’
‘अच्छा आंटी..।’ मैं कपड़े लेने बाहर चला गया। घने बदल छाए हुए थे, आंटी भी जल्दी से मेरी मदद करने आ गईं।
डोरी पर से कपड़े उतारते समय मैंने देखा की आंटी की ब्रा और पैन्टी भी टंगी हुई थी। मैंने आंटी की ब्रा को उतार कर साइज़ पढ़ लिया; साइज़ था 34बी, उसके बाद मैंने आंटी की पैन्टी को हाथ में लिया। गुलाबी रंग की वो पैन्टी करीब-करीब पारदर्शी थी और इतनी छोटी सी थी जैसे किसी दस साल की बच्ची की हो।
आंटी की पैन्टी का स्पर्श मुझे बहुत आनन्द दे रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा कि इतनी छोटी सी पैन्टी आंटी के इतने बड़े चूतड़ों और चूत को कैसे ढकती होगी। शायद यह कच्छी आंटी अंकल को रिझाने के लिए पहनती होंगी। मैंने उस छोटी सी पैन्टी को सूंघना शुरू कर दिया ताकि आंटी की चूत की कुछ खुश्बू पा सकूँ।
आंटी ने मुझे ऐसा करते हुए देख लिया और बोलीं- क्या सूंघ रहे हो राज ? तुम्हारे हाथ में क्या है?
मेरी चोरी पकड़ी गई थी। बहाना बनाते हुए बोला- देखो ना आंटी ये छोटी सी कच्छी पता नहीं किसकी है? यहाँ कैसे आ गई।
आंटी मेरे हाथ में अपनी पैन्टी देख कर झेंप गईं और चीखती हुई बोलीं- लाओ इधर दो।
‘किसकी है आंटी ?’ मैंने अंजान बनते हुए पूछा।
‘तुमसे क्या मतलब, तुम अपना काम करो।’ आंटी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोलीं।
‘बता दो ना… अगर पड़ोस वाली बच्ची की है तो लौटा दूँ।’
‘जी नहीं, लेकिन तुम सूंघ क्या रहे थे?’
‘अरे आंटी, मैं तो इसको पहनने वाली की खुशबू सूंघ रहा था, बड़ी मादक खुश्बू थी। बता दो ना किसकी है?’
आंटी का चेहरा यह सुन कर शर्म से लाल हो गया और वो जल्दी से अन्दर भाग गईं।
उस रात जब वो मुझे पढ़ाने आईं तो मैंने देखा कि उन्होंने एक सेक्सी सी नाइटी पहन रखी थी। नाइटी थोड़ी सी पारदर्शी थी। आंटी जब कुछ उठाने के लिए नीचे झुकीं तो मुझे साफ़ नज़र आ रहा था कि आंटी ने नाइटी के नीचे वो ही गुलाबी रंग की पैन्टी पहन रखी थी। झुकने की वजह से पैन्टी की रूप-रेखा साफ़ नज़र आ रही थी। मेरा अंदाज़ा सही था। पैन्टी इतनी छोटी थी कि आंटी के भारी चूतड़ों के बीच की दरार में घुसी जा रही थी।
मेरे लंड ने हरकत करनी शुरू कर दी, मुझसे ना रहा गया और मैं बोल ही पड़ा- आंटी अपने तो बताया नहीं, लेकिन मुझे पता चल गया कि वो छोटी सी पैन्टी किसकी थी।
‘तुझे कैसे पता चल गया?’ आंटी ने शरमाते हुए पूछा।
‘क्योंकि वो पैन्टी आपने इस वक़्त नाइटी के नीचे पहन रखी है।’
‘हट बदमाश..! तू ये सब देखता रहता है?’
‘आंटी एक बात पूछूँ? इतनी छोटी सी पैन्टी में आप फिट कैसे होती हैं?’ मैंने हिम्मत जुटा कर पूछ ही लिया।
‘क्यों मैं क्या तुझे मोटी लगती हूँ?’
‘नहीं आंटी, आप तो बहुत ही सुन्दर हैं, लेकिन आपका बदन इतना सुडौल और गठा हुआ है, आपके चूतड़ इतने भारी और फैले हुए हैं कि इस छोटी सी पैन्टी में समा ही नहीं सकते। आप इसे क्यों पहनती हैं? यह तो आपकी जायदाद को छुपा ही नहीं सकती और फिर यह तो पारदर्शी है, इसमें से तो आपका सब कुछ दिखता होगा।’
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आंटी के साथ मस्तियाँ-1
पति और पत्नी, जो रिश्ते में मेरे अंकल और आंटी लगते हैं।
चूंकि.. आंटी भी कॉमर्स ग्रेजुयेट थीं, तो वो मुझे मेरी पढ़ाई में मदद करती रहती थीं। इसीलिए मेरा भी ज़्यादातर वक्त उनके घर पर ही व्यतीत होता था। मैं उन्हीं के यहाँ खाना ख़ाता और सो भी जाता था। कोई इसको बुरा या ग़लत भी नहीं कहता, क्योंकि वो मेरे अंकल और आंटी थे। यहाँ तक की उनके घर में भी मेरा एक कमरा हो गया था जिसे सिर्फ़ मैं पढ़ने और सोने के लिए इस्तेमाल करता था।
आंटी का नाम डॉली है। वो बहुत ही खूबसूरत और कमनीय काया की महिला हैं। उस वक़्त उनकी उम्र 22 साल और मेरी 19 साल थी। उनकी देहयष्टि का नाप उस समय 34-26-40 थी। पहले उनके लिए मेरे दिल में कुछ भी नहीं था, लेकिन एक घटना ने मेरा नज़रिया बदल दिया। मैं जब भी उनकी उभरी हुई ठोस चूचियाँ और गोल-गोल उभरे हुए चूतड़ों को देखता तो मेरे अन्दर बेचैनी सी होने लगती थी।
क्या मादक जिस्म था उनका। बिल्कुल किसी परी की तरह।
एक दिन की बात है, आंटी मुझे पढ़ा रही थीं और अंकल अपने कमरे में लेटे हुए थे। रात के दस बजे थे, इतने में अंकल की आवाज़ आई- सुम्मी और कितनी देर है जल्दी आओ ना..।
आंटी आधे में से उठते हुए बोलीं- राज बाकी कल करेंगे, तुम्हारे अंकल आज कुछ ज्यादा ही उतावले हो रहे हैं।
यह कह कर वो जल्दी से अपने कमरे में चली गईं।
मुझे आंटी की बात कुछ ठीक से समझ नहीं आई, काफ़ी देर तक सोचता रहा, फिर अचानक ही दिमाग़ की ‘ट्यूब-लाइट’ जली और मेरी समझ में आ गया कि अंकल किस बात के लिए उतावले हो रहे थे।
मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई। आज तक मेरे दिल में आंटी को ले कर बुरे विचार नहीं आए थे, लेकिन आंटी के मुँह से उतावले होने वाली बात सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था।
मुझे लगा कि आंटी के मुँह से अनायास ही यह निकल गया होगा। जैसे ही आंटी के कमरे की लाइट बन्द हुई, मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गई।
मैंने जल्दी से अपने कमरे की लाइट भी बन्द कर दी और चुपके से आंटी के कमरे के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया।
अन्दर से फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी पर कुछ-कुछ ही साफ़ सुनाई दे रहा था।
‘क्यों जी.. आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो?’
‘मेरी जान, कितने दिन से तुमने दी नहीं… इतना ज़ुल्म तो ना किया करो मेरी रानी…!’
‘चलिए भी, मैंने कब रोका है, आप ही को फ़ुर्सत नहीं मिलती। राज का कल इम्तिहान है, उसे पढ़ाना ज़रूरी था।’
‘अब श्रीमती जी की इज़ाज़त हो तो आपकी बुर का उद्घाटन करूँ?’
‘हाय राम.. कैसी बातें बोलते हो, शरम नहीं आती?’
‘शर्म की क्या बात है, अब तो शादी को दो साल हो चुके हैं, फिर अपनी ही बीवी की बुर को चोदने में शर्म कैसी?’
‘बड़े खराब हो… आह..अई..आह हाय राम… धीरे करो राजा.. अभी तो सारी रात बाकी है।’
मैं दरवाज़े पर और ना खड़ा रह सका। पसीने से मेरे कपड़े भीग चुके थे, मेरा लंड अंडरवियर फाड़ कर बाहर आने को तैयार था। मैं जल्दी से अपने बिस्तर पर लेट गया, पर सारी रात आंटी के बारे में ही सोचता रहा। मैं एक पल भी ना सो सका, ज़िंदगी में पहली बार आंटी के बारे में सोच कर मेरा लंड खड़ा हुआ था।
सुबह अंकल ऑफिस चले गए। मैं आंटी से नज़रें नहीं मिला पा रहा था, जबकि आंटी मेरी कल रात की करतूत से बेख़बर थीं।
आंटी रसोई में काम कर रही थीं, मैं भी रसोई में खड़ा हो गया, ज़िंदगी में पहली बार मैंने आंटी के जिस्म को गौर से देखा।
उनका गोरा भरा हुआ गदराया सा बदन, लम्बे घने काले बाल जो आंटी के कमर तक लटकते थे, बड़ी-बड़ी आँखें, गोल-गोल बड़े संतरे के आकार की चूचियाँ जिनका साइज़ 34 से कम ना होगा। पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौड़े, भारी चूतड़, एक बार फिर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।
इस बार मैंने हिम्मत करके आंटी से पूछ ही लिया- आंटी, मेरा आज इम्तिहान है और आपको तो कोई चिंता ही नहीं थी, बिना पढ़ाए ही आप कल रात सोने चल दीं..!
‘कैसी बातें करता है राज, तेरी चिंता नहीं करूँगी तो किसकी करूँगी?’
‘झूठ, मेरी चिंता थी तो गई क्यों?’
‘तेरे अंकल ने जो शोर मचा रखा था।’
‘आंटी, अंकल ने क्यों शोर मचा रखा था?’ मैंने बड़े ही भोले स्वर में पूछा।
आंटी शायद मेरी चालाकी समझ गईं और तिरछी नज़र से देखते हुए बोलीं- धत्त बदमाश, सब समझता है और फिर भी पूछ रहा है। मेरे ख्याल से तेरी अब शादी कर देनी चाहिए। बोल है कोई लड़की पसंद?
‘आंटी सच कहूँ मुझे तो आप ही बहुत अच्छी लगती हो।’
‘चल नालायक भाग यहाँ से और जा कर अपना इम्तिहान दे।’
मैं इम्तिहान तो क्या देता, सारा दिन आंटी के ही बारे में सोचता रहा। पहली बार आंटी से ऐसी बातें की थीं और आंटी बिल्कुल नाराज़ नहीं हुईं, इससे मेरी हिम्मत और बढ़ने लगी।
मैं आंटी का दीवाना होता जा रहा था। आंटी रोज़ रात को देर तक पढ़ाती थीं। मुझे महसूस हुआ शायद अंकल आंटी को महीने में दो तीन बार ही चोदते थे। मैं अक्सर सोचता, अगर आंटी जैसी खूबसूरत औरत मुझे मिल जाए तो दिन में चार दफे चोदूँ।
दीवाली के लिए आंटी को मायके जाना था। अंकल ने उन्हें मायके ले जाने का काम मुझे सौंपा, क्योंकि अंकल को छुट्टी नहीं मिल सकी।
टिकट खिड़की पर बहुत भीड़ थी, मैं आंटी के पीछे रेलवे स्टेशन पर रिज़र्वेशन की लाइन में खड़ा था। धक्का-मुक्की के कारण आदमी-आदमी से सटा जा रहा था। मेरा लंड बार-बार आंटी के मोटे-मोटे चूतड़ों से रगड़ रहा था।
मेरे दिल की धड़कन तेज़ होने लगी, हालांकि मुझे कोई धक्का भी नहीं दे रहा था, फिर भी मैं आंटी के पीछे चिपक कर खड़ा था। मेरा लंड फनफना कर अंडरवियर से बाहर निकल कर आंटी के चूतड़ों के बीच में घुसने की कोशिश कर रहा था।
आंटी ने हल्के से अपने चूतड़ों को पीछे की तरफ धक्का दिया, जिससे मेरा लंड और ज़ोर से उनके चूतड़ों से रगड़ने लगा। लगता है आंटी को मेरे लंड की गर्माहट महसूस हो गई थी और उसका हाल पता था लेकिन उन्होंने दूर होने की कोशिश नहीं की।
भीड़ के कारण सिर्फ़ आंटी को ही रिज़र्वेशन मिला, ट्रेन में हम दोनों एक ही सीट पर थे।
रात को आंटी के कहने पर मैंने अपनी टाँगें आंटी की तरफ और उन्होंने अपनी टाँगें मेरी तरफ कर लीं और इस प्रकार हम दोनों आसानी से लेट गए। रात को मेरी आँख खुली तो ट्रेन के नाइट-लैंप की हल्की-हल्की रोशनी में मैंने देखा, आंटी गहरी नींद में सो रही थीं और उनकी साड़ी जांघों तक सरक गई थी।
आंटी की गोरी-गोरी नंगी टाँगें और मोटी मांसल जांघें देख कर मैं अपना संयम खोने लगा। उनकी साड़ी का पल्लू भी एक तरफ गिरा हुआ था और बड़ी-बड़ी चूचियाँ ब्लाउज में से बाहर गिरने को हो रही थीं।
मैं मन ही मन मानने लगा कि साड़ी थोड़ी और ऊपर उठ जाए ताकि आंटी की चूत के दर्शन कर सकूँ। मैंने हिम्मत करके बहुत ही धीरे से साड़ी को ऊपर सरकाना शुरू किया। साड़ी अब आंटी की चूत से सिर्फ़ 2 इंच ही नीचे थी, पर कम रोशनी होने के कारण मुझे यह नहीं समझ आ रहा था की 2 इंच ऊपर जो कालिमा नज़र आ रही थी वो काले रंग की पैन्टी थी या आंटी की बुर के बाल।
मैंने साड़ी को थोड़ा और ऊपर उठाने की जैसे ही कोशिश की, आंटी ने करवट बदली और साड़ी को नीचे खींच लिया।
मैंने गहरी सांस ली और फिर से सोने की कोशिश करने लगा।
मायके में आंटी ने मेरी बहुत खातिरदारी की, दस दिन के बाद हम वापस लौट आए।
वापसी में मुझे आंटी के साथ लेटने का मौका नहीं लगा। अंकल आंटी को देख कर बहुत खुश हुए और मैं समझ गया कि आज रात आंटी की चुदाई निश्चित है।
उस रात को मैं पहले की तरह आंटी के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया। अंकल कुछ ज़्यादा ही जोश में थे। अन्दर से आवाजें साफ़ सुनाई दे रही थीं।
‘सुम्मी मेरी जान, तुमने तो हमें बहुत सताया… देखो ना हमारा लंड तुम्हारी चूत के लिए कैसे तड़प रहा है.. अब तो इनका मिलन करवा दो..!’
‘हाय राम, आज तो यह कुछ ज़्यादा ही बड़ा दिख रहा है… ओह हो.. ठहरिए भी.. साड़ी तो उतारने दीजिए।’
‘ब्रा क्यों नहीं उतारी मेरी जान, पूरी तरह नंगी करके ही तो चोदने में मज़ा आता है। तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत को चोदना हर आदमी की किस्मत में नहीं होता।’
‘झूठ.. ऐसी बात है तो आप तो महीने में सिर्फ़ दो-तीन बार ही!’
‘दो-तीन बार ही क्या?’
‘ओह हो.. मेरे मुँह से गंदी बात बुलवाना चाहते हैं..!’
‘बोलो ना मेरी जान, दो-तीन बार क्या?’
‘अच्छा बाबा, बोलती हूँ; महीने में दो-तीन बार ही तो चोदते हो… बस..!’
‘सुम्मी, तुम्हारे मुँह से चुदाई की बात सुन कर मेरा लंड अब और इंतज़ार नहीं कर सकता… थोड़ा अपनी टाँगें और चौड़ी करो। मुझे तुम्हारी चूत बहुत अच्छी लगती है… मेरी जान।’
‘मुझे भी आपका बहुत… उई.. मर गई… उई… आ…ऊफ़.. बहुत अच्छा लग रहा है….थोड़ा धीरे… हाँ ठीक है….थोड़ा ज़ोर से…आ..आह..आह…!’
अन्दर से आंटी के कराहने की आवाज़ के साथ साथ ‘फच..फच’ जैसी आवाज़ भी आ रही थीं जो मैं समझ नहीं सका।
बाहर खड़े हुए मैं अपने आप पर संयम नहीं कर सका और मेरा लंड झड़ गया। मैं जल्दी से वापस आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया। अब तो मैं रात-दिन आंटी को चोदने के सपने देखने लगा। मैं पहले भी अपने आस-पास की 3-4 लड़कियों को चोद चुका था इसलिए चुदाई की कला से भली-भाँति परिचित था।
मैंने इंग्लिश की बहुत सी कामुक ब्लू-फिल्म्स देख रखी थीं और हिन्दी और इंग्लिश के कई कामुक उपन्यास भी पढ़े थे।
मैं अक्सर कल्पना करने लगा कि आंटी बिल्कुल नंगी होकर कैसी लगती होंगी।
जितने लम्बे और घने बाल उनके सिर पर थे ज़रूर उतने ही घने बाल उनकी चूत पर भी होंगे। अंकल आंटी को कौन-कौन सी मुद्राओं में चोदते होंगे। एकदम नंगी आंटी टाँगें फैलाई हुए चुदवाने की मुद्रा में बहुत ही सेक्सी लगती होंगी। यह सब सोच कर मेरी आंटी के लिए काम-वासना दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी।
मैं भी 5’7′ लंबा हूँ, अपने कॉलेज का बॉडी-बिल्डिंग का चैम्पियन था। रोज़ दो घंटे कसरत और मालिश करता हूँ। लेकिन सबसे खास चीज़ है मेरा लंड। ढीली अवस्था में भी 4 इंच लम्बा और 2 इंच मोटा किसी हथौड़े के माफिक लटकता रहता है। यदि मैं अंडरवियर ना पहनू तो पैन्ट के ऊपर से भी उसका आकार साफ़ दिखाई देता है। खड़ा हो कर तो उसकी लम्बाई करीब 7-8 इंच और मोटाई 3.5 इंच हो जाती है।
एक डॉक्टर ने मुझे बताया था कि इतना लम्बा और मोटा लंड बहुत कम लोगों का होता है। मैं अक्सर बरामदे में तौलिया लपेट कर बैठ जाता था और अखबार पढ़ने का नाटक करता था। जब भी कोई लड़की घर के सामने से निकलती, मैं अपनी टाँगों को थोड़ा सा इस प्रकार से चौड़ा करता कि उस लड़की को तौलिए के अन्दर से झाँकता हुआ लंड नज़र आ जाए।
मैंने अखबार में छोटा सा छेद कर रखा था। अखबार से अपना चेहरा छुपा कर उस छेद में से लड़की की प्रतिक्रिया देखने में बहुत मज़ा आता था। लड़कियों को लगता था कि मैं अपने लंड की नुमाइश से बेख़बर हूँ। एक भी लड़की ऐसी ना थी जिसने मेरे लंड को देख कर मुँह फेर लिया हो।
धीरे-धीरे मैं शादीशुदा औरतों को भी लंड दिखाने लगा, क्योंकि उन्हें ही लम्बे, मोटे लंड का महत्व पता था।
एक दिन मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था कि आंटी ने आवाज़ लगाई- राज, ज़रा बाहर जो कपड़े सूख रहे हैं, उन्हें अन्दर ले आओ… बारिश आने वाली है।’
‘अच्छा आंटी..।’ मैं कपड़े लेने बाहर चला गया। घने बदल छाए हुए थे, आंटी भी जल्दी से मेरी मदद करने आ गईं।
डोरी पर से कपड़े उतारते समय मैंने देखा की आंटी की ब्रा और पैन्टी भी टंगी हुई थी। मैंने आंटी की ब्रा को उतार कर साइज़ पढ़ लिया; साइज़ था 34बी, उसके बाद मैंने आंटी की पैन्टी को हाथ में लिया। गुलाबी रंग की वो पैन्टी करीब-करीब पारदर्शी थी और इतनी छोटी सी थी जैसे किसी दस साल की बच्ची की हो।
आंटी की पैन्टी का स्पर्श मुझे बहुत आनन्द दे रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा कि इतनी छोटी सी पैन्टी आंटी के इतने बड़े चूतड़ों और चूत को कैसे ढकती होगी। शायद यह कच्छी आंटी अंकल को रिझाने के लिए पहनती होंगी। मैंने उस छोटी सी पैन्टी को सूंघना शुरू कर दिया ताकि आंटी की चूत की कुछ खुश्बू पा सकूँ।
आंटी ने मुझे ऐसा करते हुए देख लिया और बोलीं- क्या सूंघ रहे हो राज ? तुम्हारे हाथ में क्या है?
मेरी चोरी पकड़ी गई थी। बहाना बनाते हुए बोला- देखो ना आंटी ये छोटी सी कच्छी पता नहीं किसकी है? यहाँ कैसे आ गई।
आंटी मेरे हाथ में अपनी पैन्टी देख कर झेंप गईं और चीखती हुई बोलीं- लाओ इधर दो।
‘किसकी है आंटी ?’ मैंने अंजान बनते हुए पूछा।
‘तुमसे क्या मतलब, तुम अपना काम करो।’ आंटी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोलीं।
‘बता दो ना… अगर पड़ोस वाली बच्ची की है तो लौटा दूँ।’
‘जी नहीं, लेकिन तुम सूंघ क्या रहे थे?’
‘अरे आंटी, मैं तो इसको पहनने वाली की खुशबू सूंघ रहा था, बड़ी मादक खुश्बू थी। बता दो ना किसकी है?’
आंटी का चेहरा यह सुन कर शर्म से लाल हो गया और वो जल्दी से अन्दर भाग गईं।
उस रात जब वो मुझे पढ़ाने आईं तो मैंने देखा कि उन्होंने एक सेक्सी सी नाइटी पहन रखी थी। नाइटी थोड़ी सी पारदर्शी थी। आंटी जब कुछ उठाने के लिए नीचे झुकीं तो मुझे साफ़ नज़र आ रहा था कि आंटी ने नाइटी के नीचे वो ही गुलाबी रंग की पैन्टी पहन रखी थी। झुकने की वजह से पैन्टी की रूप-रेखा साफ़ नज़र आ रही थी। मेरा अंदाज़ा सही था। पैन्टी इतनी छोटी थी कि आंटी के भारी चूतड़ों के बीच की दरार में घुसी जा रही थी।
मेरे लंड ने हरकत करनी शुरू कर दी, मुझसे ना रहा गया और मैं बोल ही पड़ा- आंटी अपने तो बताया नहीं, लेकिन मुझे पता चल गया कि वो छोटी सी पैन्टी किसकी थी।
‘तुझे कैसे पता चल गया?’ आंटी ने शरमाते हुए पूछा।
‘क्योंकि वो पैन्टी आपने इस वक़्त नाइटी के नीचे पहन रखी है।’
‘हट बदमाश..! तू ये सब देखता रहता है?’
‘आंटी एक बात पूछूँ? इतनी छोटी सी पैन्टी में आप फिट कैसे होती हैं?’ मैंने हिम्मत जुटा कर पूछ ही लिया।
‘क्यों मैं क्या तुझे मोटी लगती हूँ?’
‘नहीं आंटी, आप तो बहुत ही सुन्दर हैं, लेकिन आपका बदन इतना सुडौल और गठा हुआ है, आपके चूतड़ इतने भारी और फैले हुए हैं कि इस छोटी सी पैन्टी में समा ही नहीं सकते। आप इसे क्यों पहनती हैं? यह तो आपकी जायदाद को छुपा ही नहीं सकती और फिर यह तो पारदर्शी है, इसमें से तो आपका सब कुछ दिखता होगा।’
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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