FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--37
अब आगे...
मेरे चहेरे पे अब भी एक "सदमे" के भाव थे और रह-रह के वो “डर” मुझे परेशान कर रहा था| ऐसा लग रहा था एक "विष" मेरे बदन में फैलता जा रहा है! मैं उस कमरे से बहार से तो बहार आ गया था पर "उससे" नहीं...
भौजी को थोड़ा बहुत अजब तो लग रहा होगा क्योंकि अचानक से एक हँसता खेलता हुआ इंसान गुम-सुम हो गया था| बाकी सबके सामने मैं सामान्य दिखने की पूरी कोशिश करता था, इसीलिए किसी भी घर के सदस्य ने मुझे मेरे उदास चेहरे को ना ही देखा और ना ही टोका| दोपहर के भोजन के बाद भौजी ने जिद्द की कि मैं बड़े घर से बहार निकलूं और पहले कि तरह खेलूं, हँसूँ, चहकूं पर कहीं तो कुछ था जो बदल चूका था| कुछ तो था जिसने मेरे अंदर इतना बदलाव पैदा कर दिया था|
भौजी: आखिर बात क्या है? क्यों आप इस तरह से अंदर ही अंदर घुट रहे हो? पिछले दो दिनों से मैं देख रही हूँ आप बिलकुल बदल गए हो| आप ठीक से सो भी नहीं रहे हो .. दिन भर उंघते रहते हो|
मैं: कैसे कहूँ....... जब भी मैं आँख बंद करता हूँ सोने के लिए तो बार-बार वो सब याद आता है| अब भी मुझे अपने शरीर पे उसके हाथों के चलने का एहसास होता है| एक ज़हर है जो मेरे अंदर घुलता जा रहा है| भौजी: आपने ये सब मुझे पहले क्यों नहीं बताया? क्यों आप इतने दिन तक .... खेर अब चूँकि आपका बुखार उतर चूका है मैं आपकी इस परेशानी का भी इलाज मैं ही करुँगी|
मैं: तो डॉक्टर साहिबा इस बार क्या इलाज सोचा है आपने? (मैंने माहोल को हल्का करने के लिए थोड़ा मजाक किया|)
भौजी: वो तो आज रात आपको पता चल ही जायेगा|
मैं: देखो आपने पहले ही बहुत कुछ किया है मेरे लिए ....अब और
भौजी: (मेरी बात काटते हुए) श श श श .... मैं आपकी पत्नी हूँ| ये मेरा फ़र्ज़ है!
हमेशा कि तरह इस बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था| और मैं मुस्कुरा दिया..... अब बस रात होनी थी... ऐसी रात जो शायद मेरे जीवन को किसी सुखद मोड़ पे ले आये|आज मैं वापस अपनी पुरानी जगह पे ही सोने वाला था, वही भौजी के घर के पास वाली जगह! मैं भोजन कर के अपनी चारपाई पे लेट गया| कुछ देर बाद माँ आई और मेरे पास बैठ के मेरा हल-चाल पूछ रही थीं| दोस्तों आप कितना भी छुपाओ पर माँ आपके हर दुःख को भांप लेती है| मेरी माँ ने भी मेरे अंदर छुपी उदासी को ढूंढ लिया था और वो इसका कारन जानना चाहती थीं| पर मैं उन्हें कुछ नहीं बता सकता था| वो तो शुक्र है की भौजी वहां आ गईं; "चाची आप चिंता मत करो, मैं हूँ ना!" भौजी ने इतना अपनेपन से कहा की माँ निश्चिन्त हो गईं और भौजी को कह गईं, "बहु बेटा, एक तुम ही हो जिसे ये सब बताता है| कैसे भी मेरे लाल को पहले की तरह हंसने बोलने वाला बना दो|" भौजी ने हाँ में सर हिलाया और माँ उठ के सोने चली गईं|
भौजी: देखा आपने? चाची को कितनी चिंता है आपकी| खेर आज के बाद आप कभी उदास नहीं होगे| मैं साढ़े बारह बजे आउंगी ....
मैं: ठीक है|
बस भौजी घर के भीतर चलीं गई और मुझे उनके किवाड़ बंद करने की आवाज आई| मैंने सोच की क्यों न मैं फिर से सोने की कोशिश करूँ, शायद कामयाबी मिल जाए| पर कहाँ जी!!! जैसे ही आँख बंद करता बार-बार ऐसा लगता जैसे माधुरी मेरी पथ सहला रही हो... कभी लगता की वो मेरे ऊपर सवार है| कभी ऐसा लगता मानो उसके हाथ मेरी छाती पे धीरे-धीरे रेंगते हुए मेरी नाभि तक जा रहे हैं| ये ऐसा भयानक पल था जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था .. तभी अचानक भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रखा और मैं सकपका के उठ बैठा| मेरे दिल की धड़कनें तेज थीं... चेहरे पे डर के भाव थे| माथे पे हल्का सा पसीना था... जबकि मौसम कुछ ठंडा था| धीमी-धीमी सर्द हवाएं चल रहीं थी....| मेरी हालत देख के एक पल के लिए तो भौजी के चेहरे पर भी चिंता के भाव आ गए|उन्होंने अपनी गर्दन और आँखों के इशारे से मुझे अंदर आने का कहा| मैं उठा और चुप-चाप अंदर चला गया और आँगन में खड़ा हो के गर्दन नीचे झुकाये देखने लगा| भौजी ने दरवाजा बंद किया और ठीक मेरे पीछे आके कड़ी हो गईं| धीरे से उन्होंने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझसे लिपट गईं| उनकी सांसें मुझे अपनी पीठ पे महसूस होने लगीं थी|
उन्होंने मेरी टी-शर्ट को नीचे से पकड़ा और धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ाते हुए उतार दिया| अब मैं ऊपर से बिलकुल नग्न अवस्था में था| मैंने आँखें बंद कर ली थीं... भौजी ने अपने होठों को जैसे ही मेरी पीठ पे रखा एक अजीब एहसास ने मुझे झिंझोड़ दिया| ऐसा लगा जैसे गर्म लोहे की सलाख को किसी ने ठन्डे पानी में डाल दिया .... श..श ..श..श..श..!!! ये चुम्बन कोई आम चुम्बन नहीं था! उन्होंने मेरी पीठ पे जहाँ-जहाँ भी अपने होठों से चूमा वहां-वहां ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंदर भरा माधुरी का "विष" मेरी छाती की ओर भाग रहा हो| अब मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे .... सांसें तेज हो गई.... ह्रदय की गाती बढ़ गई| धक ... धक ... की जगह दिल ढोल की तरह बजने लगा| मुझे अपनी स्वयं के हृदय की धड़कनें कानों में सुनाई देने लगी| आस-पास की कोई भी आवाज मेरे कानों तक नहीं पहुँच रही थी| माथे पे पसीना बहने लगा.... गाला सूखने लगा... कान लाल हो गए .... हाथ कांपने लगे और मन विचलित हो चूका था|
भौजी होले से मेरे कान में खुसफुसाई; "आप लेट जाओ!" .. मैं बिना कुछ कहे, बिना कुछ समझे, मन्त्र मुग्ध सा होके चारपाई पे पीठ के बल लेट गया| आँखें बंद थी, इसलिए लुच नहीं पता था की क्या होरह है| बस मुझे चूड़ियों के खनकने की आवाज आ रही थी| धीरे-धीरे मुझे भौजी के पायल की आवाज सुनाई दी| वो मेरे पैरों के पास थी, उन्होंने धीरे से मेरे पजामे को नीचे खींचा परन्तु पूरी तरह उतार नहीं| फिर मेरे कच्छे को भी उन्होंने खूनच के घुटनों तक कर दिया| वो किसी जंगली शिकारी की तरह मेरे ऊपर नीचे की तरफ से बढ़ने लगी| ये सब मैं महसूस कर पा रहा था| थोड़ी ही देर में मुझे अपनी छाती पे उनके नंगे स्तन रगड़ते हुए महसूस हुए|भौजी का मुख ठीक मेरे मुंह के सामने था क्योंकि मुझे अपने चेहरे पे उनकी गर्म सांसें महसूस हो रहीं थी|सबसे पहले उन्होंने अपने हाथो से मेरे मुंह का पसीना पोंछा फिर उन्होंने झुक के मेरे मस्तक को चूमा| उनका चुमबन गहरा होता जा रहा था ... वो करीब पांच सेकंड तक अपने होठों को मेरे मस्तक पर रखे हुई थीं| अब जो विश मेरे मस्तिष्क पे भारी पड़ रहा था वो अब नीचे उतारने लगा था| धीरे-धीरे भौजी मेरे मस्तक से नीचे आने लगी| उन्होंने मेरी नाक को चूमा... मेरे बाएं गाल को चूमा...फिर दायें गाल को| ऐसा लगा मानो वो विष मेरी गर्दन तक नीचे उतर चूका हो| फिर उन्होंने मेरे कंठ को चूमा... एक पल के लिए लगा जैसे मेरी सांस ही रूक गई हो| अब उन्होंने मेरे दायें हाथ को उठा के अपने होठों के पास लाईं... फिर मेरी हथेली को चूमा... विष कुछ ऊपर को चढ़ा| भौजी भी थोड़ा ऊपर की ओर बढ़ीं... थोड़ा और... फिर मेरी कोहनी को चूमा .. थोड़ा और ऊपर .... फिर मेरे कंधे को चूमा|
अब भौजी ने मेरे बाएं हाथ को उठाया और उसे अपने होठों के पास लाईं... मेरी हथेली को चूमा और विष वहाँ से भी ऊपर की ओर भागने लगा| भौजी ने मेरी कलाई को चूमा... थोड़ा और ऊपर ... मेरी कोहनी को चूमा... थोड़ा और ऊपर और फिर मेरे कंधे को चूमा| अब जैसे सारा विष मेरी छाती में इकठ्ठा हो चूका था| ऐसा लगा जैसे वो वापस पूरे शरीर में फ़ैल जाना चाहता हो पर चूँकि भौजी ने मेरी पीठ, मस्तक, गले और हाथों को अपने चुमबन से चिन्हित (मार्केड) कर दिया था इसलिए विष को कहीं भी भागने की जगह नहीं मिल रही थी| परन्तु अब भी भौजी का उपचार अभी भी खत्म नहीं हुआ था...
अब भौजी ने मेरी छाती पे हर जगह अपने चुम्बनों की बौछार कर दी| परन्तु अब भी वो हर अपने होठों को मेरी छाती से पांच सेकंड तक छुए रहती| उन्होंने मेरे निप्पलों को चूमा... मेरी नाभि कुछ भी उन्होंने नहीं छोड़ी थी| विष जैसे अब नीचे की ओर भागने लगा था| अंत में उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे लंड को पकड़ा और उसकी चमड़ी को धीरे-धीरे नीचे किया| अब सुपाड़ा बहार आ चूका था ... उन्होंने मेरे छिद्र पे अपने होंठ रख दिए| मेरा कमर से ऊपर का बदन कमान की तरह खींच गया... भौजी ने धीरे-धीरे सुपाड़े को अपने मुंह में भरना शुरू किया|
अब मुझे लग रहा था की भौजी उसे अंदर-बहार करेंगी पर नहीं.... वो बस सुपाड़े को अपने मुंह में भरे स्थिर थीं! अब मेरी कमर से नीचे के हिस्से में कुछ होने लगा था... जैसे कोई चीज बहार निकलने को बेताब हो! मैं उसे बाहर निकलते हुए महसूस करा पा रहा था| पर असल में कुछ भी नहीं हो रहा था .... धीरे-धीरे मेरा शरीर ऐठने लगा| लगा की अब मैं मुक्त हो जाऊंगा....!!!
धीरे ... धीरे ... धीरे... धीरे... मेरा बदन सामान्य होने लगा| मैं अब शिथिल पड़ने लगा.... शरीर ने कोई भी प्रतिक्रिया देनी बंद कर दी| सांसें नार्मल होने लगी .... ह्रदय की गति सामान्य हो गई| अब भौजी मेरे ऊपर आके लेट गईं| उनके नंगे स्तन मेरी छाती से दबे हुए थे और उनके हाथों ने मुझे अपने आलिंगन से जकड़ा हुआ था| मैंने भी उन्हें अपनी बाँहों में भर लिया ... मेरे हाथ उनकी नंगी पीठ पर थे और हम ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे रहे| ना जाने भौजी को क्या सूझी उन्होंने मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ा और अपनी योनि में प्रवेश करा दिया| मुझे लगा शायद भौजी का मन सम्भोग करने का है पर ये करने के बाद भी उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वैसे ही मेरे ऊपर बिना हिले-डुले लेटी रहीं|उनकी योनि अंदर से पनिया चुकी थी और मुझे अपने लंड पे गर्मी का एहसास होने लगा था| पर नींद मेरे ऊपर हावी होने लगी| पिछले कई दिनों से मैं ठीक तरह से सो नहीं पाया था और आज भौजी के इस तथाकथित उपचार के बाद मुझे मीठी-मीठी नींद आने लगी थी| नाजाने कब मेरी आँखें बंद हुई मुझे पता नहीं...
जब आँख खुली तो सर पे सूरज चमक रहा था| मैं जल्दी से उठ के बैठा तो पाया की मैं रात को भौजी के घर में ही सो गया था और मैं अब भी अर्ध नग्न हालत में था| मैंने जल्दी से पास पड़ी मेरी टी-शर्ट उठाई और पहन के बहार आ गया| मेरी फटी हुई थी क्योंकि मैं और भौजी रात भर अंदर अकेले सोये थे| अब तक तो सारे घर-भर में बात फ़ैल चुकी होगी| आज तो शामत थी मेरी !!!
जैसे ही मैं घर के प्रमुख आँगन में आय तो सामने पिताजी दिखाई दिए, उन्होंने बड़ी कड़क आवाज में मुझसे पूछा; "क्यों लाड-साहब उठ गए? नींद पूरी हो गई? या बही और सोना है? कहाँ गुजारी सारी रात? तुम तो आँगन में सोये थे अंदर कैसे पहुँच गए?"
मेरे पास उनकी बातों का कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं चुप-चाप गर्दन झुकाये खड़ा रहा| मैंने कनखी नजरों से देखा तो भौजी छप्पर के नीचे छुपी मुझे देख रही थीं| उन्होंने मुझे इशारे से कुछ समझाना चाहा परन्तु मैं समझ नहीं पा रहा था .... भौजी बार-बार अपने माथे पर हाथ फेर रहीं थीं मैंने थोड़ा सा अंदाजा लगाया और जल्दी से पिताजी के सवालों का जवाब देने लगा;
मैं: जी वो रात को सर दर्द कर रहा था तो मैं भौजी से दवाई लेने गया था| तो भौजी मेरा सर दबाने लगीं और मुझे वहीँ नींद आ गई|
पिताजी: सर में दर्द था तो माँ को बताता क्यों अपनी भाभी को तंग करता रहता है?
मैं: जी, माँ को उठाने जाता तो बड़की अम्मा भी जाग जाती| और मैं नहीं चाहता था की बड़की अम्मा या माँ परेशान हों|
पिताजी: तो इसलिए तू बहु को परेशान करने पहुँच गया| सारा दिन वो काम करती है और तू उसे तंग करने से बाज नहीं आता| पता भी है की तेरी वजह से तेरी प्यारी भाभी कहाँ सोई रात भर? सारी रात बेचारी तख़्त पे सोई वो भी बिना बिस्तर के? कुछ तो शर्म कर !!!
मैं गर्दन झुकाये नीचे देखने ला और मुझे खुद पर क्रोध आने लगा क्योंकि मेरी वजह से भौजी को तख़्त पे सोना पड़ा| मैं अब भी कनखी नजरों से भौजी को देख रहा था जैसे उनसे माफ़ी मांगने की कोशिश कर रहा हूँ| तभी माँ रसोई से निकली और बीच में बोल पड़ीं;
माँ: अजी छोड़िये से, इसकी तो आदत है| यहाँ आके अपनी भौजी का बहुत दुलार करता है| आप लोग तो खेत चले जाते हो और ये बस भौजी-भौजी करता रहता है... ये नहीं सुधरेगा| आप जाइये भाई साहब (बड़के दादा) खेत में आपका इन्तेजार करते होंगे|और तू (मेरी ओर ऊँगली से इशारा करते हुए) चल जा जल्दी से नहा-धो ले ओर जल्दी से चाय पी| तेरी भौजी को और भी काम हैं सिर्फ तेरी तीमारदारी ही नहीं करनी... जा जल्दी|
मैं फ्रेश हो के आया और भौजी से माफ़ी मांगने के लिए व्याकुल था| परन्तु आस-पास माँ, बड़की अमा और रसिका भाभी मौजूद थे इसलिए मैं कुछ कह नहीं पाया| कुछ देर सर जुखाये बैठने के बाद मैंने मन में ठान लिया की भले ही सबके सामने सही पर माफ़ी माँगना तो बनता है| माँ और बड़की अम्मा दाल-चावल साफ़करने में लगे थे और रसिका भाभी बटन तांख रहीं थी|
मैं: अम्म्म.... भौजी... मुझे माफ़ कर दो! मेरी वजह से आपको कल रात तख़्त पे बिना बिस्तर के सोना पड़ा| I'M Sorry !!!
भौजी: देख रहे हो अम्मा, एक दिन मुझे तख़्त पे क्या सोना पड़ा ये माफ़ी माँग रहे हैं| अरे अगर मैं तख़्त पे सो गई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा| आप वैसे भी बहुत दिनों से ठीक से नहीं सोये थे अब मेरे सर दबाने से आपको वहीँ नींद आ गई तो इसमें आपका क्या कसूर| मैंने आपको इसीलिए नहीं उठाया की मैं आपकी नींद खराब नहीं करना चाहती थी|
बड़की अम्मा: अरे मुन्ना कोई बात नहीं... तुम भी तो अपनी भौजी की बिमारी में सारी रात जागे थे| तुम दोनों के रिश्ते में इतना प्यार है की तुम दोनों एक दूसरे के लिए ये छोटी-छोटी कुर्बानी देते रहते हो| भूल जाओ इस बात को, और आने दो तुम्हारे पिताजी को जरा मैं भी तो डाँट लगाऊँ उन्हें|
अम्मा की बात सुनके सब हंस दिए और पुनः अपने-अपने काम में लग गए| मेरा मन अब कुछ हल्का हो गया था ... परन्तु अब मन में कल रात को जो हुआ उसे ले कर विचार उमड़ने लगे| वो सब क्या था, और मुझे ये सब अजीब एहसास क्यों हो रहा था? हालाँकि मैं भूत-प्रेत, आत्मा पर विशवाास नहीं करता था परन्तु कल रात हुए उस एहसास ने मुझे थोड़ा चिंतित कर दिया था| अगर कोई मेरी चिंता दूर कर सकता था तो वो थीं "भौजी" पर सब के सामने मैं उनसे इस बारे में कुछ नहीं कह सकता था| इसलिए मैं सब्र करने लगा... दोपहर भोजन बाद समय मिल ही गया बात करने का| भोजन के बाद सभी पुरुष सदस्य आँगन में ही चारपाई डाल के बैठे थे| मौसम कुछ शांत था.. ठंडी-ठंडी हवाएं चल रहीं थी, आसमान में बदल थे और धुप का नामो निशान नहीं था| नेहा स्कूल से आ चुकी थी और भोजन करने के बाद मेरी ही गोद में सर रख के सो चुकी थी| मैं आँगन में चारपाई पे बैठा था... कुछ ही देर में भौजी भी वहां आ गईं और मेरे सामने नीचे बैठ गईं|
मैं: अरे, आप नीचे क्यों बैठे हो? ऊपर बैठो
भौजी: नहीं सभी घर पे हैं और उनके सामने मैं कैसे...
मैं: (बीच में बात काटते हुए) मैं नहीं जानता कोई क्या सोचेगा आप बस ऊपर बैठो! मुझे आप से कुछ पूछना है?
भौजी मेरी बात मानते हुए मेरी चारपाई पे कुछ दूरी पे बैठ गईं| दरअसल हमारे गाँव में कुछ रीति रिवाज ऐसे हैं जिन्होंने औरत को बहुत सीमित कर रखा है| यूँ तो अकेले में भौजी मेरे साथ बैठ जाया करती थी परन्तु जब घर के बड़े घर में मौजूद हों तब वो मुझसे दूर ही रहती थीं| उनके सामने हमेशा घूँघट और मुझसे गज भर की दूरी|
भौजी: अच्छा जी ! पूछिये क्या पूछना है आपको?
मैं: (मैंने भौजी को रात में मुझे जो भी महसूस हुआ वो सब सुना दिया और फिर अंत में उनसे पूछा...) कल रात को मुझे क्या हुआ था...? मैं ऐसा अजीब सा बर्ताव क्यों कर रहा था?
भौजी: (थोड़ा मुस्कुराते हुए) मन कोई डॉक्टर नहीं... ना ही कोई ओझा या तांत्रिक हूँ! कल दोपहर में जब आपने अपने अंदर आये बदलावों को बताया तो मैं समझ गई थी की आपको क्या तकलीफ है| ये एक तरह का संकेत था की आप मुझसे कितना प्यार करते हो| आपका वो बारिश में भीगना... ठन्डे पानी से रात को बारिश में साबुन लगा-लगा के नहाना.. चैन से ना सो पाना.. बार-बार ऐसा लगना की माधुरी के हाथ आपके शरीर से खेल रहे हैं या आपको ऐसा लगना की उसके शरीर की महक आपके शरीर से आ रही है... ये सब आप के दिमाग की सोच थी| आप अंदर ही अंदर अपने आपको कसूरवार ठहरा चुके थे और अनजाने में ही खुद को तकलीफ दे रहे थे| आपका दिल आपके दिमाग पे हावी था और धीरे-धीरे आपको भ्रम होने लगा था| मैंने कोई उपचार नहीं किया.... कोई जहर आपके शरीर से नहीं निकला| बस आप ये समझ लो की मैंने आपको अपने प्यार से पुनः "चिन्हित" किया| ये आपका मेरे प्रति प्यार था जिससे आपको इतना तड़पना पड़ा और मैंने बस आपकी तकलीफ को ख़त्म कर दिया|
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मेरे चहेरे पे अब भी एक "सदमे" के भाव थे और रह-रह के वो “डर” मुझे परेशान कर रहा था| ऐसा लग रहा था एक "विष" मेरे बदन में फैलता जा रहा है! मैं उस कमरे से बहार से तो बहार आ गया था पर "उससे" नहीं...
भौजी को थोड़ा बहुत अजब तो लग रहा होगा क्योंकि अचानक से एक हँसता खेलता हुआ इंसान गुम-सुम हो गया था| बाकी सबके सामने मैं सामान्य दिखने की पूरी कोशिश करता था, इसीलिए किसी भी घर के सदस्य ने मुझे मेरे उदास चेहरे को ना ही देखा और ना ही टोका| दोपहर के भोजन के बाद भौजी ने जिद्द की कि मैं बड़े घर से बहार निकलूं और पहले कि तरह खेलूं, हँसूँ, चहकूं पर कहीं तो कुछ था जो बदल चूका था| कुछ तो था जिसने मेरे अंदर इतना बदलाव पैदा कर दिया था|
भौजी: आखिर बात क्या है? क्यों आप इस तरह से अंदर ही अंदर घुट रहे हो? पिछले दो दिनों से मैं देख रही हूँ आप बिलकुल बदल गए हो| आप ठीक से सो भी नहीं रहे हो .. दिन भर उंघते रहते हो|
मैं: कैसे कहूँ....... जब भी मैं आँख बंद करता हूँ सोने के लिए तो बार-बार वो सब याद आता है| अब भी मुझे अपने शरीर पे उसके हाथों के चलने का एहसास होता है| एक ज़हर है जो मेरे अंदर घुलता जा रहा है| भौजी: आपने ये सब मुझे पहले क्यों नहीं बताया? क्यों आप इतने दिन तक .... खेर अब चूँकि आपका बुखार उतर चूका है मैं आपकी इस परेशानी का भी इलाज मैं ही करुँगी|
मैं: तो डॉक्टर साहिबा इस बार क्या इलाज सोचा है आपने? (मैंने माहोल को हल्का करने के लिए थोड़ा मजाक किया|)
भौजी: वो तो आज रात आपको पता चल ही जायेगा|
मैं: देखो आपने पहले ही बहुत कुछ किया है मेरे लिए ....अब और
भौजी: (मेरी बात काटते हुए) श श श श .... मैं आपकी पत्नी हूँ| ये मेरा फ़र्ज़ है!
हमेशा कि तरह इस बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था| और मैं मुस्कुरा दिया..... अब बस रात होनी थी... ऐसी रात जो शायद मेरे जीवन को किसी सुखद मोड़ पे ले आये|आज मैं वापस अपनी पुरानी जगह पे ही सोने वाला था, वही भौजी के घर के पास वाली जगह! मैं भोजन कर के अपनी चारपाई पे लेट गया| कुछ देर बाद माँ आई और मेरे पास बैठ के मेरा हल-चाल पूछ रही थीं| दोस्तों आप कितना भी छुपाओ पर माँ आपके हर दुःख को भांप लेती है| मेरी माँ ने भी मेरे अंदर छुपी उदासी को ढूंढ लिया था और वो इसका कारन जानना चाहती थीं| पर मैं उन्हें कुछ नहीं बता सकता था| वो तो शुक्र है की भौजी वहां आ गईं; "चाची आप चिंता मत करो, मैं हूँ ना!" भौजी ने इतना अपनेपन से कहा की माँ निश्चिन्त हो गईं और भौजी को कह गईं, "बहु बेटा, एक तुम ही हो जिसे ये सब बताता है| कैसे भी मेरे लाल को पहले की तरह हंसने बोलने वाला बना दो|" भौजी ने हाँ में सर हिलाया और माँ उठ के सोने चली गईं|
भौजी: देखा आपने? चाची को कितनी चिंता है आपकी| खेर आज के बाद आप कभी उदास नहीं होगे| मैं साढ़े बारह बजे आउंगी ....
मैं: ठीक है|
बस भौजी घर के भीतर चलीं गई और मुझे उनके किवाड़ बंद करने की आवाज आई| मैंने सोच की क्यों न मैं फिर से सोने की कोशिश करूँ, शायद कामयाबी मिल जाए| पर कहाँ जी!!! जैसे ही आँख बंद करता बार-बार ऐसा लगता जैसे माधुरी मेरी पथ सहला रही हो... कभी लगता की वो मेरे ऊपर सवार है| कभी ऐसा लगता मानो उसके हाथ मेरी छाती पे धीरे-धीरे रेंगते हुए मेरी नाभि तक जा रहे हैं| ये ऐसा भयानक पल था जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था .. तभी अचानक भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रखा और मैं सकपका के उठ बैठा| मेरे दिल की धड़कनें तेज थीं... चेहरे पे डर के भाव थे| माथे पे हल्का सा पसीना था... जबकि मौसम कुछ ठंडा था| धीमी-धीमी सर्द हवाएं चल रहीं थी....| मेरी हालत देख के एक पल के लिए तो भौजी के चेहरे पर भी चिंता के भाव आ गए|उन्होंने अपनी गर्दन और आँखों के इशारे से मुझे अंदर आने का कहा| मैं उठा और चुप-चाप अंदर चला गया और आँगन में खड़ा हो के गर्दन नीचे झुकाये देखने लगा| भौजी ने दरवाजा बंद किया और ठीक मेरे पीछे आके कड़ी हो गईं| धीरे से उन्होंने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझसे लिपट गईं| उनकी सांसें मुझे अपनी पीठ पे महसूस होने लगीं थी|
उन्होंने मेरी टी-शर्ट को नीचे से पकड़ा और धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ाते हुए उतार दिया| अब मैं ऊपर से बिलकुल नग्न अवस्था में था| मैंने आँखें बंद कर ली थीं... भौजी ने अपने होठों को जैसे ही मेरी पीठ पे रखा एक अजीब एहसास ने मुझे झिंझोड़ दिया| ऐसा लगा जैसे गर्म लोहे की सलाख को किसी ने ठन्डे पानी में डाल दिया .... श..श ..श..श..श..!!! ये चुम्बन कोई आम चुम्बन नहीं था! उन्होंने मेरी पीठ पे जहाँ-जहाँ भी अपने होठों से चूमा वहां-वहां ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंदर भरा माधुरी का "विष" मेरी छाती की ओर भाग रहा हो| अब मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे .... सांसें तेज हो गई.... ह्रदय की गाती बढ़ गई| धक ... धक ... की जगह दिल ढोल की तरह बजने लगा| मुझे अपनी स्वयं के हृदय की धड़कनें कानों में सुनाई देने लगी| आस-पास की कोई भी आवाज मेरे कानों तक नहीं पहुँच रही थी| माथे पे पसीना बहने लगा.... गाला सूखने लगा... कान लाल हो गए .... हाथ कांपने लगे और मन विचलित हो चूका था|
भौजी होले से मेरे कान में खुसफुसाई; "आप लेट जाओ!" .. मैं बिना कुछ कहे, बिना कुछ समझे, मन्त्र मुग्ध सा होके चारपाई पे पीठ के बल लेट गया| आँखें बंद थी, इसलिए लुच नहीं पता था की क्या होरह है| बस मुझे चूड़ियों के खनकने की आवाज आ रही थी| धीरे-धीरे मुझे भौजी के पायल की आवाज सुनाई दी| वो मेरे पैरों के पास थी, उन्होंने धीरे से मेरे पजामे को नीचे खींचा परन्तु पूरी तरह उतार नहीं| फिर मेरे कच्छे को भी उन्होंने खूनच के घुटनों तक कर दिया| वो किसी जंगली शिकारी की तरह मेरे ऊपर नीचे की तरफ से बढ़ने लगी| ये सब मैं महसूस कर पा रहा था| थोड़ी ही देर में मुझे अपनी छाती पे उनके नंगे स्तन रगड़ते हुए महसूस हुए|भौजी का मुख ठीक मेरे मुंह के सामने था क्योंकि मुझे अपने चेहरे पे उनकी गर्म सांसें महसूस हो रहीं थी|सबसे पहले उन्होंने अपने हाथो से मेरे मुंह का पसीना पोंछा फिर उन्होंने झुक के मेरे मस्तक को चूमा| उनका चुमबन गहरा होता जा रहा था ... वो करीब पांच सेकंड तक अपने होठों को मेरे मस्तक पर रखे हुई थीं| अब जो विश मेरे मस्तिष्क पे भारी पड़ रहा था वो अब नीचे उतारने लगा था| धीरे-धीरे भौजी मेरे मस्तक से नीचे आने लगी| उन्होंने मेरी नाक को चूमा... मेरे बाएं गाल को चूमा...फिर दायें गाल को| ऐसा लगा मानो वो विष मेरी गर्दन तक नीचे उतर चूका हो| फिर उन्होंने मेरे कंठ को चूमा... एक पल के लिए लगा जैसे मेरी सांस ही रूक गई हो| अब उन्होंने मेरे दायें हाथ को उठा के अपने होठों के पास लाईं... फिर मेरी हथेली को चूमा... विष कुछ ऊपर को चढ़ा| भौजी भी थोड़ा ऊपर की ओर बढ़ीं... थोड़ा और... फिर मेरी कोहनी को चूमा .. थोड़ा और ऊपर .... फिर मेरे कंधे को चूमा|
अब भौजी ने मेरे बाएं हाथ को उठाया और उसे अपने होठों के पास लाईं... मेरी हथेली को चूमा और विष वहाँ से भी ऊपर की ओर भागने लगा| भौजी ने मेरी कलाई को चूमा... थोड़ा और ऊपर ... मेरी कोहनी को चूमा... थोड़ा और ऊपर और फिर मेरे कंधे को चूमा| अब जैसे सारा विष मेरी छाती में इकठ्ठा हो चूका था| ऐसा लगा जैसे वो वापस पूरे शरीर में फ़ैल जाना चाहता हो पर चूँकि भौजी ने मेरी पीठ, मस्तक, गले और हाथों को अपने चुमबन से चिन्हित (मार्केड) कर दिया था इसलिए विष को कहीं भी भागने की जगह नहीं मिल रही थी| परन्तु अब भी भौजी का उपचार अभी भी खत्म नहीं हुआ था...
अब भौजी ने मेरी छाती पे हर जगह अपने चुम्बनों की बौछार कर दी| परन्तु अब भी वो हर अपने होठों को मेरी छाती से पांच सेकंड तक छुए रहती| उन्होंने मेरे निप्पलों को चूमा... मेरी नाभि कुछ भी उन्होंने नहीं छोड़ी थी| विष जैसे अब नीचे की ओर भागने लगा था| अंत में उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे लंड को पकड़ा और उसकी चमड़ी को धीरे-धीरे नीचे किया| अब सुपाड़ा बहार आ चूका था ... उन्होंने मेरे छिद्र पे अपने होंठ रख दिए| मेरा कमर से ऊपर का बदन कमान की तरह खींच गया... भौजी ने धीरे-धीरे सुपाड़े को अपने मुंह में भरना शुरू किया|
अब मुझे लग रहा था की भौजी उसे अंदर-बहार करेंगी पर नहीं.... वो बस सुपाड़े को अपने मुंह में भरे स्थिर थीं! अब मेरी कमर से नीचे के हिस्से में कुछ होने लगा था... जैसे कोई चीज बहार निकलने को बेताब हो! मैं उसे बाहर निकलते हुए महसूस करा पा रहा था| पर असल में कुछ भी नहीं हो रहा था .... धीरे-धीरे मेरा शरीर ऐठने लगा| लगा की अब मैं मुक्त हो जाऊंगा....!!!
धीरे ... धीरे ... धीरे... धीरे... मेरा बदन सामान्य होने लगा| मैं अब शिथिल पड़ने लगा.... शरीर ने कोई भी प्रतिक्रिया देनी बंद कर दी| सांसें नार्मल होने लगी .... ह्रदय की गति सामान्य हो गई| अब भौजी मेरे ऊपर आके लेट गईं| उनके नंगे स्तन मेरी छाती से दबे हुए थे और उनके हाथों ने मुझे अपने आलिंगन से जकड़ा हुआ था| मैंने भी उन्हें अपनी बाँहों में भर लिया ... मेरे हाथ उनकी नंगी पीठ पर थे और हम ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे रहे| ना जाने भौजी को क्या सूझी उन्होंने मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ा और अपनी योनि में प्रवेश करा दिया| मुझे लगा शायद भौजी का मन सम्भोग करने का है पर ये करने के बाद भी उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वैसे ही मेरे ऊपर बिना हिले-डुले लेटी रहीं|उनकी योनि अंदर से पनिया चुकी थी और मुझे अपने लंड पे गर्मी का एहसास होने लगा था| पर नींद मेरे ऊपर हावी होने लगी| पिछले कई दिनों से मैं ठीक तरह से सो नहीं पाया था और आज भौजी के इस तथाकथित उपचार के बाद मुझे मीठी-मीठी नींद आने लगी थी| नाजाने कब मेरी आँखें बंद हुई मुझे पता नहीं...
जब आँख खुली तो सर पे सूरज चमक रहा था| मैं जल्दी से उठ के बैठा तो पाया की मैं रात को भौजी के घर में ही सो गया था और मैं अब भी अर्ध नग्न हालत में था| मैंने जल्दी से पास पड़ी मेरी टी-शर्ट उठाई और पहन के बहार आ गया| मेरी फटी हुई थी क्योंकि मैं और भौजी रात भर अंदर अकेले सोये थे| अब तक तो सारे घर-भर में बात फ़ैल चुकी होगी| आज तो शामत थी मेरी !!!
जैसे ही मैं घर के प्रमुख आँगन में आय तो सामने पिताजी दिखाई दिए, उन्होंने बड़ी कड़क आवाज में मुझसे पूछा; "क्यों लाड-साहब उठ गए? नींद पूरी हो गई? या बही और सोना है? कहाँ गुजारी सारी रात? तुम तो आँगन में सोये थे अंदर कैसे पहुँच गए?"
मेरे पास उनकी बातों का कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं चुप-चाप गर्दन झुकाये खड़ा रहा| मैंने कनखी नजरों से देखा तो भौजी छप्पर के नीचे छुपी मुझे देख रही थीं| उन्होंने मुझे इशारे से कुछ समझाना चाहा परन्तु मैं समझ नहीं पा रहा था .... भौजी बार-बार अपने माथे पर हाथ फेर रहीं थीं मैंने थोड़ा सा अंदाजा लगाया और जल्दी से पिताजी के सवालों का जवाब देने लगा;
मैं: जी वो रात को सर दर्द कर रहा था तो मैं भौजी से दवाई लेने गया था| तो भौजी मेरा सर दबाने लगीं और मुझे वहीँ नींद आ गई|
पिताजी: सर में दर्द था तो माँ को बताता क्यों अपनी भाभी को तंग करता रहता है?
मैं: जी, माँ को उठाने जाता तो बड़की अम्मा भी जाग जाती| और मैं नहीं चाहता था की बड़की अम्मा या माँ परेशान हों|
पिताजी: तो इसलिए तू बहु को परेशान करने पहुँच गया| सारा दिन वो काम करती है और तू उसे तंग करने से बाज नहीं आता| पता भी है की तेरी वजह से तेरी प्यारी भाभी कहाँ सोई रात भर? सारी रात बेचारी तख़्त पे सोई वो भी बिना बिस्तर के? कुछ तो शर्म कर !!!
मैं गर्दन झुकाये नीचे देखने ला और मुझे खुद पर क्रोध आने लगा क्योंकि मेरी वजह से भौजी को तख़्त पे सोना पड़ा| मैं अब भी कनखी नजरों से भौजी को देख रहा था जैसे उनसे माफ़ी मांगने की कोशिश कर रहा हूँ| तभी माँ रसोई से निकली और बीच में बोल पड़ीं;
माँ: अजी छोड़िये से, इसकी तो आदत है| यहाँ आके अपनी भौजी का बहुत दुलार करता है| आप लोग तो खेत चले जाते हो और ये बस भौजी-भौजी करता रहता है... ये नहीं सुधरेगा| आप जाइये भाई साहब (बड़के दादा) खेत में आपका इन्तेजार करते होंगे|और तू (मेरी ओर ऊँगली से इशारा करते हुए) चल जा जल्दी से नहा-धो ले ओर जल्दी से चाय पी| तेरी भौजी को और भी काम हैं सिर्फ तेरी तीमारदारी ही नहीं करनी... जा जल्दी|
मैं फ्रेश हो के आया और भौजी से माफ़ी मांगने के लिए व्याकुल था| परन्तु आस-पास माँ, बड़की अमा और रसिका भाभी मौजूद थे इसलिए मैं कुछ कह नहीं पाया| कुछ देर सर जुखाये बैठने के बाद मैंने मन में ठान लिया की भले ही सबके सामने सही पर माफ़ी माँगना तो बनता है| माँ और बड़की अम्मा दाल-चावल साफ़करने में लगे थे और रसिका भाभी बटन तांख रहीं थी|
मैं: अम्म्म.... भौजी... मुझे माफ़ कर दो! मेरी वजह से आपको कल रात तख़्त पे बिना बिस्तर के सोना पड़ा| I'M Sorry !!!
भौजी: देख रहे हो अम्मा, एक दिन मुझे तख़्त पे क्या सोना पड़ा ये माफ़ी माँग रहे हैं| अरे अगर मैं तख़्त पे सो गई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा| आप वैसे भी बहुत दिनों से ठीक से नहीं सोये थे अब मेरे सर दबाने से आपको वहीँ नींद आ गई तो इसमें आपका क्या कसूर| मैंने आपको इसीलिए नहीं उठाया की मैं आपकी नींद खराब नहीं करना चाहती थी|
बड़की अम्मा: अरे मुन्ना कोई बात नहीं... तुम भी तो अपनी भौजी की बिमारी में सारी रात जागे थे| तुम दोनों के रिश्ते में इतना प्यार है की तुम दोनों एक दूसरे के लिए ये छोटी-छोटी कुर्बानी देते रहते हो| भूल जाओ इस बात को, और आने दो तुम्हारे पिताजी को जरा मैं भी तो डाँट लगाऊँ उन्हें|
अम्मा की बात सुनके सब हंस दिए और पुनः अपने-अपने काम में लग गए| मेरा मन अब कुछ हल्का हो गया था ... परन्तु अब मन में कल रात को जो हुआ उसे ले कर विचार उमड़ने लगे| वो सब क्या था, और मुझे ये सब अजीब एहसास क्यों हो रहा था? हालाँकि मैं भूत-प्रेत, आत्मा पर विशवाास नहीं करता था परन्तु कल रात हुए उस एहसास ने मुझे थोड़ा चिंतित कर दिया था| अगर कोई मेरी चिंता दूर कर सकता था तो वो थीं "भौजी" पर सब के सामने मैं उनसे इस बारे में कुछ नहीं कह सकता था| इसलिए मैं सब्र करने लगा... दोपहर भोजन बाद समय मिल ही गया बात करने का| भोजन के बाद सभी पुरुष सदस्य आँगन में ही चारपाई डाल के बैठे थे| मौसम कुछ शांत था.. ठंडी-ठंडी हवाएं चल रहीं थी, आसमान में बदल थे और धुप का नामो निशान नहीं था| नेहा स्कूल से आ चुकी थी और भोजन करने के बाद मेरी ही गोद में सर रख के सो चुकी थी| मैं आँगन में चारपाई पे बैठा था... कुछ ही देर में भौजी भी वहां आ गईं और मेरे सामने नीचे बैठ गईं|
मैं: अरे, आप नीचे क्यों बैठे हो? ऊपर बैठो
भौजी: नहीं सभी घर पे हैं और उनके सामने मैं कैसे...
मैं: (बीच में बात काटते हुए) मैं नहीं जानता कोई क्या सोचेगा आप बस ऊपर बैठो! मुझे आप से कुछ पूछना है?
भौजी मेरी बात मानते हुए मेरी चारपाई पे कुछ दूरी पे बैठ गईं| दरअसल हमारे गाँव में कुछ रीति रिवाज ऐसे हैं जिन्होंने औरत को बहुत सीमित कर रखा है| यूँ तो अकेले में भौजी मेरे साथ बैठ जाया करती थी परन्तु जब घर के बड़े घर में मौजूद हों तब वो मुझसे दूर ही रहती थीं| उनके सामने हमेशा घूँघट और मुझसे गज भर की दूरी|
भौजी: अच्छा जी ! पूछिये क्या पूछना है आपको?
मैं: (मैंने भौजी को रात में मुझे जो भी महसूस हुआ वो सब सुना दिया और फिर अंत में उनसे पूछा...) कल रात को मुझे क्या हुआ था...? मैं ऐसा अजीब सा बर्ताव क्यों कर रहा था?
भौजी: (थोड़ा मुस्कुराते हुए) मन कोई डॉक्टर नहीं... ना ही कोई ओझा या तांत्रिक हूँ! कल दोपहर में जब आपने अपने अंदर आये बदलावों को बताया तो मैं समझ गई थी की आपको क्या तकलीफ है| ये एक तरह का संकेत था की आप मुझसे कितना प्यार करते हो| आपका वो बारिश में भीगना... ठन्डे पानी से रात को बारिश में साबुन लगा-लगा के नहाना.. चैन से ना सो पाना.. बार-बार ऐसा लगना की माधुरी के हाथ आपके शरीर से खेल रहे हैं या आपको ऐसा लगना की उसके शरीर की महक आपके शरीर से आ रही है... ये सब आप के दिमाग की सोच थी| आप अंदर ही अंदर अपने आपको कसूरवार ठहरा चुके थे और अनजाने में ही खुद को तकलीफ दे रहे थे| आपका दिल आपके दिमाग पे हावी था और धीरे-धीरे आपको भ्रम होने लगा था| मैंने कोई उपचार नहीं किया.... कोई जहर आपके शरीर से नहीं निकला| बस आप ये समझ लो की मैंने आपको अपने प्यार से पुनः "चिन्हित" किया| ये आपका मेरे प्रति प्यार था जिससे आपको इतना तड़पना पड़ा और मैंने बस आपकी तकलीफ को ख़त्म कर दिया|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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