Thursday, October 30, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--48

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--48

अब आगे...


 अनिल: वैसे जीजा जी, कुछ तो बात है आप में| आपने तो जैसे जीजी पर जादू कर दिया है| पिछली बार जब मैं आया था तब आप नहीं थे ... बाजार गए थे| जीजी ने आपकी ख़ुशी के लिए शादी अटेंड करने से मना कर दिया| और आज मैंने कितनी मिन्नत की... जीजा जी (चन्दर भैया) ने भी कहा, पिताजी ने भी स्पेशल बुलावा भेजा पर ना ... जीजी ने साफ़ मना कर दिया आने से| पर पता नहीं आपने पाँच मिनट में ऐसा क्या कहा की जीजी झट से तैयार हो गईं? यहाँ तक की नेहा भी ... पहले मेरे पास आ जाती थी पर आज जब से आया हूँ मेरे पास भटकती भी नहीं| तबसे देख रहा हूँ आपसे चिपकी हुई है| बताइये ना क्या जादू किया आपने?

मैं: यार... कोई जादू नहीं है बस "प्यार है" ... (अब ये मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया, अब बात संभालने के लिए मैंने आगे नेहा का नाम जोड़ दिया|) नेहा का मुझसे जो वो मेरे बिना नहीं रहती| मेरे साथ खेलती है, मेरे साथ खाती है, मेरे साथ सोती है और आजकल तो होमवर्क भी मेरे साथ करती है| और रही बात आपकी जीजी की तो हमारी अंडरस्टैंडिंग बहुत अच्छी है| ये मेरी बात झट से समझ जाती हैं|

भौजी ये सुन के मुस्कुरा दीं और मेरी बातों में और बात जोड़ दी;

भौजी: हाँ, इनका समझाने का तरीका जरा हटके है!!! बड़े प्यार से समझते हैं....

मैं जानता था की अनिल इतना बेवकूफ नहीं है जो हमारे बीच में क्या चल रहा है वो समझ ना पाये इसलिए मैंने भौजी की आत को अलग ही अर्थ दे दिया;

मैं: यार अब आप मेरी टांग मत खींचो! अनिल यार तुम नहीं जानते ये मुझे इतना तंग करती हैं... मेरी हर बात पे टांग खींचती हैं और जो तुम कह रहे हो ना की ये मेरी हर बात मानती हैं, ऐसा कुछ भी नहीं है| सौ में से निन्यानवे बातें तो ये कभी नहीं मानती! पिछली बार इन्होने मेरे जिससे के डर से मना कर दिया था| आज से कुछ साल पहले की बात है, तब मैं amature था, तब ऐसे ही एक दीं सुबह तुम आये थे इन्हें लेने, तब आपके घर में हवन था| ये मुझे कह गईं की मैं जल्दी वापस आउंगी| अब इनके अलावा तो मेरा कोई दोस्त है नहीं| मैं इनका इन्तेजार करता रहा की ये आज आएँगी.. कल आएँगी.. पर ना जी ना इन्होने तो वापस ना आने की कसम खा ली| इसी गुस्से में मैं तब वापस चला गया था, अब आज तुम फिर आये तो इन्हें डर लगा की मैं फिर से रूठ के वापस ना चला जाऊँ इसलिए मना कर रहीं थी| जब मैंने इन्हें भरोसा दिलाया की मैं नहीं जाऊँगा तब जा के मानी हैं|

अनिल: अच्छा तो ये बात है!

मैं: (भौजी को छेड़ते हुए) वैसे मैंने कोई गारंटी नहीं दी की मैं इनके वापस आने तक रहूँगा?

भौजी का मुंह उतर गया...

मैं: बाबा मैं मजाक कर रहा था, I Promise मैं कहीं नहीं जाऊँगा|

ये सुन के उनका मूड कुछ ठीक हुआ पर ऐसा लगा जैसे उन्हें तसल्ली नहीं हुई... भौजी ने सामान पैक कर लिया था और वो निकलने के लिए तैयार थीं| मैं खड़ा हुआ और अनिल भी, अचानक भौजी मेरे पास आईं और उन्होंने मुझे गले लगा लिया|

मैं: यार कुछ दिनों की ही तो बात है... क्यों भई अनिल ज्यादा से ज्यादा तीन दिन ना?

अनिल: जी जीजा जी| जीजी आप चिंता ना करो मैं आपको तीन दिन बाद छोड़ जाऊँगा|

भौजी: तीन दिन बाद नहीं तीसरे दिन ही वापस आना है मुझे|

अनिल: हाँ वही मतलब मेरा|

हम कुछ इस प्रकार खड़े थे की भौजी की पीठ अनिल की ओर थी ओर वो मुझसे अब तक गले लगी हुईं थी| भौजी ने अचानक मेरा दाहिना हाथ पकड़के अपने पेट पे रखा ओर मेरे कान में खुसफुसाई;

भौजी: खाओ अपने बच्चे की कसम की आप मुझे बिना मिले नहीं जाओगे?

मैं: कसम खाता हूँ की जब तक आप नहीं आओगे मैं कहीं नहीं जाऊँगा|

तबजाके भौजी को तसल्ली हुई और हम अलग हुए| हम बहार निकले, आगे-आगे अनिल था ओर उसके हाथ में एक छोटा सा बैग था, उसके पीछे भौजी और पीछे मैं और मेरी गोद में नेहा| घरवाले भौजी को तैयार देख हैरान हुए और सब की नजर एक साथ मेरी ओर ठहर गई|


 बड़के दादा: अच्छा हुआ भौ जो तुम जाने के लिए मान गई|

अनिल: जी ये सब तो जीजा जी (मेरी ओर इशारा करते हुए) का कमाल है!

बड़के दादा: मैं जानता था की मानु ही तुम्हें मना सकता है| खेर समधी जो को मेरा राम-राम कहना|

मैं भौजी और अनिल को छोड़ने के लिए चौक तक चल दिया| जब हम चौक पहुंचे तो नेहा मेरी गोद से उतरने का नाम नहीं ले रही थी| वो तो मुझसे लिपट गई और ना ही भौजी की गोद में जा रही थी और ना ही अपने मामा की गोद में|

मैं: क्या हुआ बेटा? नानू के घर नहीं जाना?

नेहा: नहीं

मैं: बेटा ऐसा नहीं कहते| देखो नानू आपका इन्तेजार कर रहे हैं, उनके पास बहुत अच्छी-अच्छी मिठाइयां है, खिलोने हैं ... (मैं अपनी तरफ से नेहा को हर प्रलोभन दे रहा था की वो मान जाए पर ना|)

नेहा: आप भी चलो !

मैं: बेटा मैं नहीं आ सकता ... मुझे घर में काफी काम है|

नेहा: नहीं पा...

इससे पहले की वो आगे कुछ बोले मैं नेहा को गोद में लिए पाँच कदम दूर हुआ और उसके कान में बोला;

मैं: बेटा जिद्द नहीं करते ... देखो तीन दिन बाद हम फिर मिलेंगे और मैं आपको आपकी मनपसंद चीज खिलाऊँगा|

नेहा: नहीं पापा मैं नहीं जाऊँगी|

मैं वापस भौजी और अनिल के पास आया;

भौजी: आप भी चलो न हमारे साथ|

अनिल: हाँ जीजा जी आप भी चलो मज़ा आएगा!

मैं: यार (भौजी से) आप तो जानते ही हो मेरा मन शादी-ब्याह के फंक्शन में जरा भी नहीं लगता|

भौजी: तो मेरा कौन सा लगता है, मुझे तो जबरदस्ती भेज ही रहे हो|

मैं: यार मैं वहां किसी को नहीं जानता... बोर हो जाऊँगा|

भौजी: आप मेरे साथ रहना! मैं आपको बोर नहीं होने दूंगी!

मैं: मतलब लेडीज के साथ... बाप रे बाप उससे तो अच्छा है मैं यहीं रहूँ|

हमें वहां खड़े-खड़े पंद्रह मिनट हो गए और पिताजी हमें दूर से देख रहे थे और वो स्वयं आ गए और उन्हें देख भौजी ने तुरंत घूँघट काढ लिया ;

पिताजी: क्या हुआ बेटा?

मैं: नेहा मेरी गोद से उतर ही नहीं रही|

पिताजी: क्यों गुड़िया क्या हुआ?

नेहा कुछ नहीं बोली पर मैं बात जल्दी खत्म करना चाहता था क्योंकि मैं शादी अटेंड नहीं करना चाहता था| दरअसल मैं पार्टी और शादी-ब्याह के फंक्शनो से दूर ही रहता हूँ, और अगर पिताजी को ये पता लग जाता की नेहा जिद्द कर रही है की मैं भी उनके साथ चलूँ तो वो जबरदस्ती मुझे भेज देते|

मैं: देखो बेटा अगर आप नहीं गए तो मैं आपसे कभी बात नहीं करूँगा!

अब हार के नेहा मान गई और भौजी की गोद में चली गई| मैंने उन्हें बाय-बाय किया और फिर मैं और पिताजी वापस आ गए| मेरा दिल तो भौजी के साथ ही चल गया था! मैं बस आके चारपाई पे पसर गया इतने में रसिका भाभी मेरे पास आ गईं और मेरी ही चारपाई पे बैठ गईं|

रसिका भाभी: अब तो आप अकेले हो गए मानु जी?

मैं: क्यों ... आप हो ना?

रसिका भाभी: अब भैया हम में वो बात कहाँ जो आपकी भौजी में हैं!!!

इसके आगे बोलने का कोई मौका ही नहीं मिला, क्योंकि अजय भैया ने आके घमासान युद्ध का बिगुल बजा दिया|




 अजय भैया: तू किसी भी काम की है? @#@#@#**@#*@#*@#*@#*@#*@##*#*#*#*@@@

आगे भैया ने अचानक से ही भाभी को गालियां देनी शुरू कर दीं| ऐसी गालियां जो मैं लिखने के बारे में सोच भी नहीं सकता| रसिका भाभी एक दम से उठ खड़ी हुई और मैं भी सकपका के खड़ा हो गया...

मैं: भैया शांत हो जाओ! आप क्यों भड़क रहे हो भाभी पे? क्या कर दिया इन्होने?

अजय भैया: कुछ किया ही तो नहीं इस @#@#**@* ने! साली हमेशा सोती रहती है... काम करने को कहो तो बीमार पड़ जाती है|

मैं: आप ऐसे गालियां क्यों दे रहे हो ... आराम से बात करते हैं|

अजय भैया: तुम हट जाओ मानु भैया मैं अभी इस @##@** की अक्ल ठिकाने लगाता हूँ|

इतना कह के वो छड़ी उठाने लपके| अब घर में कोई नहीं था.. पिताजी, बड़के दादा, माँ, चन्दर भैया और बड़की अम्मा सब के सब खेत जा चुके थे| अब कौन रोकेगा इन्हें! जैसे-तैसे मैंने भैया के हाथ से छड़ी छीन ली और दूर फेंक दी| किसी तरह उन्हें समझा-बुझा के वापस खेत में भेजा, और इधर रसिका भाभी रोये जा रही थी| मैंने उनके आँसूं पोछे और उन्हिएँ चुप कराया| भौजी मुझसे लिपट गई और सुबकने लगी और अंत में शांत हुई| मुझे उनका मुझे गले लगाना कुछ अजीब सा लगा पर फिर मैने सोचा की भाभी थोड़ा भावुक हो गईं है इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा| जब भाभी शांत हुई तब मैंने उनसे ये सोच के बात उठाई की शायद मैं उनके विवाहित जीवन में वापस खुशयीयाँ ला सकूँ|

मैं: (उनको खुद से अलग करते हुए) भाभी अब बताओ की आखिर बात क्या है? क्यों आपका और भैया का हमेशा झगड़ा होता है? क्यों भैया को आप और आपको भैया एक भी आँकक नही भाते?

रसिका भाभी: मानु जी.... अब आपसे क्या छुपाना, आपके भैया मुझे खुश नहीं कर पाते! हमेशा मुझे प्यासा छोड़ देते हैं|

मैं भौजी का जवाब सुन के अवाक रह गया, मैं उनकी बात तो समझ गया था पर फिर भी ऐसा दिखाया जैसे मैं कुछ नहीं समझा| क्योंकि मुझे अपनी टाक बचानी थी और अगर रसिका भाभी को जरा सा भी शक हो जाता या पता चल जाता की मैं सेक्स के बारे में सब जानता हूँ तो वो ये बकवास सब के सामने कर देती|

मैं: भाभी मैं कुछ समझा नहीं? वो आपको खुश नहीं कर पाते... आप प्यासे रह जाते हो... मतलब?

रसिका भाभी: मानु जी आप बिलकुल भोले हो और इसलिए आप मुझे इतने पसंद हो!

मैं: जी.. मैं कुछ समझा नहीं| (मेरा भोले बनने का नाटक जारी था|)

रसिका भाभी: क्या तुम्हें सेक्स के बारे में कुछ नहीं पता?

मैं: (झेंपते हुए) जी नहीं!

रसिका भाभी: चलो मैं तुम्हें बताती हूँ की सेक्स किसे कहते हैं? जब लड़का अपना वो (मेरे लंड की ओर इशारा करते हुए) लड़की की इस जगह (अपनी योनि की ओर इशारा करते हुए) घुसता है तो उसे सेक्स करना कहते हैं!

ये सुन के मेरे कान लाल होने लगे ओर मैंने अपनी नजरें झुका ली|

मैं: आप बहुत गन्दी बातें करते हो|

रसिका भाभी: गन्दी कसी? ये तो तुम भी करोगे...

मैं उठ के जाने लगा तो उन्होंने ने मेरे हाथ पकड़ के मुझे फिर बैठा दिया| फिर मेरा दायां हाथ अपने दोनों हाथों के बीच में रख के बोलीं;

रसिका भाभी: मानु जी... बस एक बार मेरी प्यास बुझा दो....प्लीज !!! बस एक बार....

मैं: क्या (उठ के खड़ा हो गया) आपका दिमाग ठीक है!!! आप मेरी भाभी हो.... आप पागल हो गए हो!

रसिका भाभी: मानु जी ... आपको देख के मैं बहक जाती हूँ| उस दिन जब मैंने आपको नहाते हुए देखा तो मैं बता नहीं सकती मुझ पे क्या बीती| प्लीज ... एक बार ....

मैं बोला कुछ नहीं बस उठ के जाने लगा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया और मुझे धकेल के दिवार से लगा दिया और मुझसे एक डैम सट के कड़ी हो गईं| मुझे उनकी सांसें मेरे मुंह पे महसूस हो रही थी|

रसिका भाभी: मान जाओ ना.... क्यों तड़पा रहे हो मुझे? जान लोगे क्या मेरी? लेलो ... (इतना कहके उन्होंने अपना पल्ला गिरा दिया और मुझे उनके स्तनों के बीच की खाईं साफ़ दिखने लगी|)

मैं: मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी| आप होश में नहीं हो!

रसिका भाभी ने अपना वजन मुझ पे डाल दिया ताकि मैं हिल ना पाऊँ| अब मेरी हालत ख़राब होने लगी थी... मुझे टेंशन ये थी की अगर किसी ने हमें इस हाल में देख लिया तो मेरी वॉट लग्न तय था!























 






















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