Friday, December 19, 2014

FUN-MAZA-MASTI भिखारी की हवस-18

FUN-MAZA-MASTI 


 भिखारी की हवस-18
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अब आगे
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 उसकी बात सुनकर भूरे का दिल धक्क से रह गया...एक सड़क छाप भिखारी मे मुँह से ऐसी बात सुनने की उम्मीद उसे नही थी...वो शायद नही जानता था की जिन लोगो को वो मारने की सोच रहा है वो कितने खतरनाक अपराधी है..

भूरे : "तू पागल हो गया है क्या गंगू...तुझे पता भी है की तू क्या बोल रहा है...नेहाल भाई के साथ मैं बरसों से काम कर रहा हू...वो भाई है इस शहर का...और वो इक़बाल भाई, वो तो उसका भी भाई है...यानी अंडरवर्ल्ड की दुनिया मे उसकी तूती बोलती है...और तू उन्हे मारने की बात कर रहा है...तू वहां पहुँच भी नही पाएगा और तेरी लाश पड़ी होगी किसी सड़क पर...''

गंगू (गुस्से मे) : "वो तो फिर भी पड़ी होगी...जब उन्हे पता चलेगा की वो इतने टाइम से जिसे ढूंड रहे हैं वो मेरे पास है..या फिर मैं भाग कर कहीं और भी चला गया तो मुझे ढूंड कर वो मेरी आरती नही उतारेंगे ..मेरे भेजे मे गोली उतारेंगे ...उनकी डील को मैने इसलिए मना नही किया की कुछ टाइम तो मिल ही जाएगा और उनका विश्वास भी , ताकि वो मेरी बातों मे आकर फँस जाए और मैं उन्हे मार सकूँ...''

गंगू की बात अभी तक भूरे के गले से नही उतर रही थी...वो जानता था उन लोगो की ताक़त को...और ये गंगू अपने हाथ मे एक पिस्टल लेकर उन्हे मारने निकल पड़ा है..

पर वो जानता था की गंगू को समझाना आसान नही है, उसने जो एक बार ठान ली, उसके बाद वो किसी की नही सुनता...

भूरे : "पर इससे मुझे क्या मिलेगा...मेरा क्या फायदा है तेरी हेल्प करने मे...''

उसके दिमाग में तो बस नेहा का नंगा बदन ही घूम रहा था...इसलिए गंगू को नाराज़ करके वो नेहा से दूर नही होना चाहता था...

गंगू ने अपनी जेब से वही तीन लाख रुपय निकाल कर उसके सामने रख दिए जो नेहाल भाई ने दिए थे...और बोला : "इन दोनो के मरने के बाद तू अपनी गेंग अकेले चलाएगा..तेरा तो फायेदा ही फायेदा है...''

पैसे देखकर तो कुछ नही हुआ भूरे को..पर गंगू की बात सुनकर एक दम से उसके अंदर डॉन वाली फीलिंग आ गयी...बात तो वो सही कह रहा था...पूरे शहर मे नेहाल भाई के सारे धंधे वही देखता था...और उसके अलावा कोई और नही था जो उस धंधे को चला सके...इक़बाल का धंदा तो काफ़ी बड़ा था, पूरी दुनिया मे फेला हुआ...पर कम से कम नेहाल के धंधे को तो वो संभाल ही सकता है इस शहर मे रहकर...

भूरे : "और इसमे मैं तेरी मदद कैसे कर सकता हू....''

गंगू के दिमाग़ मे एक योजना थी, जो उसने भूरे के सामने रख दी...उसने तो सोचा भी नही था की गंगू जैसे भिखारी के दिमाग़ मे ऐसी ख़तरनाक योजना भी हो सकती है...और वो काफ़ी असरदार भी लग रही थी..भूरे तो उसकी योजना का कायल हो उठा..

फिर कुछ चीज़ो का इंतज़ाम करने की बात कहकर गंगू वहाँ से वापिस आ गया...और जाते-2 भूरे ने वो पैसे भी गंगू को वापिस कर दिए..और बोला की ये पैसे अपने पास रख,आगे तेरे ही काम आएँगे..

उसके जाते ही भूरे के दिमाग़ मे सतरंगी ख्वाब तैरने लगे...भाई बनने के..नेहाल भाई के अंडर रहकर काफ़ी काम कर लिया...अब वो खुद का गेंग चलाएगा..

और फिर उसके दिमाग़ की सुई नेहा की तरफ चली गयी...इतने दिनों से जिसके उपर उसकी नज़र थी वो तो गंगू की पत्नी थी ही नही...वो ऐसे ही गंगू के डर से उसके पास नही जा रहा था...उसे वो सब बातें याद आ रही थी जब नेहा खुद उसके साथ वो सब करना चाहती थी जो करने के लिए वो मरा जा रहा था..यानी सेक्स..पर किसी ना किसी कारण से कुछ हो ही नही पाया..

अब उसकी समझ मे आ रहा था की क्यों वो ऐसा कर रही थी...वरना किसी की बीबी कम से कम ऐसे खुलकर हर किसी के साथ नही शुरू हो जाती है...वो अपनी यादश्त खो चुकी है और इसलिए वो ये सब रीति रिवाज और मर्यादा नही जानती इस समाज के..

और भूरे को जैसे एक और मौका मिल गया अपनी दबी हुई इच्छा को पूरी करने का..और यही एक और वजह थी जिसके लिए भूरे भी इतना बड़ा रिस्क लेकर गंगू की योजना मे शामिल हो गया था..

अब वो किसी भी हालत मे गंगू की नज़र बचाकर नेहा के साथ मज़े लेना चाहता था..बाद मे तो गंगू और नेहा पता नही कहाँ चले जाए..इसलिए वो ये काम पहले ही कर लेना चाहता था.

इधर भूरे ये सब ख्वाब बुन रहा था और उधर गंगू ने अपनी योजना को अंजाम देना शुरू कर दिया..वो रज्जो के घर गया ...और उसे सिर्फ़ ये कहकर की जैसा मैं कहूँ करती जा,फिर कुछ बातें समझाने के बाद और कुछ पैसे और एक फोन देने के बाद वो निकल आया..

वो अपने अगले काम के लिए जा ही रहा था की उसका फ़ोन बज उठा..वो इक़बाल भाई का फोन था..

एक तरफ तो गंगू उसे मारने की सोच रहा था..पर उसका फोन आते ही उसके पसीने निकल गये..क्योंकि इतनी जल्दी उसके फोन के आने की उम्मीद नहीं थी उसको..

गंगू ने फोन उठाया : "जी भाई..."

इक़बाल : "सुन गंगू...मैने तुझे पहले ही बता दिया था की मेरे पास वक़्त कम है...अगर तूने ये काम 3 दिन मे नही किया तो तेरी खैर नही है...समझा...''

और इतना कहकर उसने फोन रख दिया..

उसके पास हथियार भी था और पैसा भी...पर वक़्त की कमी थी ..

अब उसे जो भी करना था,इन्ही 3 दिनों मे करना था.


 
रात को अपने झोपडे मे पहुँचकर गंगू को नींद ही नही आई...वो हर एंगल से यही सोचने में लगा था की अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा...वैसा हो गया तो क्या होगा..और सभी तरफ से सोचने के बाद जो कमी थी उसकी योजना में,वो उसको सुधारने मे लग गया..और ये सोचते-2 कब उसको नींद आ गयी उसे भी पता नही चला..सुबह 9 बजे के आस पास नेहा ने उसको उठाया..वो नहा कर भी आ चुकी थी..

गंगू ने जल्दी से नाश्ता किया और नेहा को घर पर ही रहने की हिदायत देकर वो बाहर निकल आया.

वो भूरे के घर गया और दोनो मिलकर वहां से निकल गये..अब समय था अपनी योजना को अंजाम देने का..

गंगू ने सीधा इक़बाल भाई को फोन मिलाया

गंगू : "भाई...उस लड़की का पता चल गया है...''

इतना सुनते ही इक़बाल खुशी से उछल पड़ा...उसे तो विश्वास ही नही हो पा रहा था की जिसे वो पिछले 2 महीने से ढूंड रहा है, गंगू ने उसे 2 दिन मे ही ढूंड लिया..

इक़बाल : "क्या बात कर रहा है गंगू...तुझे पूरा विश्वास है ना की वो लड़की वही है...शनाया..तूने सही से देखा है ना उसको..''

गंगू : "हाँ भाई...मैने सही से देखा भी है...और आस पास वालो से पता भी करा लिया है..मेरी किस्मत अच्छी थी की आज मैने जिस मोहल्ले से छान बिन करनी शुरू करी, वहीं पर पहली बार मे ही वो दिख गयी..मैने उसका पीछा किया तो वो एक घर मे चली गयी..लोगों से पूछा तो उन्होने बताया की एक औरत रहती है उस घर मे और उसके सिर पर समाज सेवा का भूत सवार है..उसे ये लड़की एक दिन एक्सीडेंट की हालत मे मिली थी ..और वो उसे घर ले आई थी...''

इक़बाल : "हाँ ...हाँ ...उस दिन आक्सिडेंट ही तो हुआ था..मैंने बताया था न तुझे , जब वो मेरे चुंगल से निकल भागी थी...यही है गंगू....यही है वो लड़की....जल्दी बता कौनसा मोहल्ला है...पता बता मुझे...मैं अभी के अभी अपने आदमी भेजता हूँ ..''

इक़बाल का इतना उतावलापन देखकर गंगू को अपनी योजना सफल होती नज़र आ रही थी..

उसने एकदम से ये कहते हुए फोन रख दिया : "भाई...पुलिस वाले है यहाँ ...मैं बाद मे फोन करता हू...''

और गंगू ने जल्दी से फोन काट दिया और उसे स्विच ऑफ भी कर दिया..क्योंकि वो जानता था की इक़बाल अब हर थोड़ी देर मे उसे फोन करता रहेगा..

उसके बाद गंगू और भूरे शहर से थोड़ी दूर बने एक खंडहर की तरफ चल दिए...क्योंकि असली काम तो उन्हे वहीं करना था..

एक पुराना सा किला था ये...दिन के समय तो यहा युगल जोड़े घूमते रहते थे...चूमा चाटी , चुदाई के लिए...पर रात को कोई नही आता था...बिल्कुल सुनसान सा हो जाता था वो किला रात के समय..

अभी तो 12 ही बजे थे दिन के..इसलिए वहां कई जोड़े हर कोने मे दुबक कर एक दूसरे से मज़े लेने मे लगे थे.

वो पूरे किले मे घूमते रहे और आख़िर मे जाकर उन्होने एक शांत सी जगह देखी जो काफ़ी अंदर जाकर थी..और जो काम वो वहाँ करने वाले थे उसके लिए वो जगह बिल्कुल उपयुक्त भी थी..

सही जगह का चुनाव करने के बाद वो वहां से निकल आए.

अभी काफ़ी समय था उनके पास...किसी भी तरह उन्हे अंधेरा होने तक का वेट करना था..पर इससे पहले गंगू को ठीक वैसी ही एक औरत का घर ढूँढना था जैसी औरत के बारे मे उसने इक़बाल को जानकारी दी थी..

वो भूरे को समझा कर अपने काम के लिए निकल पड़ा..दो घंटे की मेहनत के बाद उसे पूछने पर एक औरत के बारे मे पता चल ही गया..जो समाज सेवा का काम करती थी..और बेसहारा लड़कियो की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहती थी.

वो उसके घर पहुँचा और दरवाजा खड़काया , वो करीब 45 साल की सीधी साधी सी औरत थी, उसका नाम शांति था. गंगू ने मनघड़ंत कहानी बनाकर बताई की वो एक भिखारी है और उसने एक घर मे कई लड़कियो को बंदी बने हुए देखा है..और वहां रहने वाला एक गुंडे किस्म का आदमी उनसे जिस्म्फरोशी का धंधा करवाता है...पूछने पर गंगू ने बता दिया की किसी ने बताया था की आप ऐसी लड़कियो की मदद करती है इसलिए उसे ये सूचना देने के लिए चला आया..पुलिस भी उनके साथ मिली हुई है,इसलिए वो किसी समाजसेवक को ढूंढ रहा था,इसलिए उसके पास आया है

शान्ति को उसकी बातों पर विशवास हो गया , और गंगू से उसे वहां का पता माँगा

और गंगू ने जो पता उसे बताया वो था मुम्मेथ खान का, क्योंकि गंगू चाहता था की ऐसे समाज सेवको के डर से सही,मुम्मेथ को इस दलदल से निकालना जरुरी है, वरना इक़बाल के बाद वो किसी और की रखैल बनकर अपनी जिंदगी गुजार देगी, और उसकी अदाकारी उसके साथ ही दम तोड़ देगी

मुम्मेथ का घर काफी दूर था वहां से ...वहां जाकर आने मे ही रात हो जानी थी...गंगू की बात सुनते ही उसने फॉरन अपने घर पर ताला लगाया और अपनी संस्था के लोगो को लेकर वहां से निकल पड़ी..


 अब गंगू ने फोन ऑन किया...और फोन चालू करते ही इक़बाल भाई का फोन आ गया

इक़बाल : "साले ...इतनी देर से फोन कर रहा हू...फोन क्यो बंद था तेरा...''

गंगू : "भाई..वो पुलिस वाले थे...उनके सामने एक भिखारी फोन पर बात करता तो कैसा लगता...वो तो मुझे उठा कर ही ले जाते ना..''

इक़बाल को उसकी बेवकूफी और नासमझी पर गुस्सा भी आ रहा था पर फिर ये सोचकर वो ज़्यादा बोला नही की एक भिखारी की अक्ल मे जो आया वही किया ना उसने...

इक़बाल : "चल छोड़ ये सब...अब जल्दी से पता बता..मेरे सभी आदमी तैयार बैठे है..''

गंगू ने उसे उसी समाजसेविका शान्ति का पता बता दिया, जहां वो थोड़ी देर पहले गया था ..

अब अगर इक़बाल के आदमी वहां पहुँच भी जाते तो उन्हें वहाँ ताला ही मिलता.

गंगू ने भूरे को फोन करके बोला की अभी तक सब कुछ उनके अनुसार ही चल रहा है....और फिर अगली बात जो गंगू ने भूरे को कही वो सुनकर तो भूरे खुशी से उछल पड़ा

गंगू : "अब ध्यान से सुन भूरे...कुछ भी गड़बड़ हुई तो वो लोग सबसे पहले मेरे घर पर ही जाएँगे..मुझे ढूँढने..तू एक काम कर, मेरे घर जा और नेहा को भी अपने साथ लेकर उसी किले मे पहुंच जहाँ हमने रात को मिलना है...समझा..''

भूरे ने कोई सवाल नही किया...ये भी नही बोला की नेहा को ले जाने मे तो काफ़ी ख़तरा है वहां ...उसे तो बस एक मौका चाहिए था उसके साथ अकेले मे...जो खुद गंगू ने उसे दे दिया था.

अभी 5 बजे थे...और गंगू की योजना के अनुसार वो खुद वहां 8 बजे पहुँचने वाला था..तीन घण्टे थे बीच में .. .जो भूरे के लिए बहुत थे..वो उसी वक़्त नेहा को लेने के लिए निकल पड़ा.

उधर 1 घंटे मे ही इक़बाल के आदमी उस एड्रेस पर पहुँच गये..और उन्हे वहां ताला मिला..आस पास पूछा पर किसी को भी कुछ पता नही था..उन्होने फ़ौरन इक़बाल को फोन किया..और फिर इक़बाल ने गंगू को..और इस बार इक़बाल का पारा पूरी तरह से चड़ा हुआ था..

इक़बाल (गुस्से मे) : "गंगू....वहां तो ताला लगा है साले ...तूने तो कहा था की वो औरत वहीं पर है...''

गंगू : "भाई...वो वहीं थी...मेरी उसके साथ बात भी हुई है...और उसका नंबर भी लिया है मैने...आप चाहो तो उससे बात करके पूछ लो...वो लड़की शनाया उसके पास ही है...पर शायद उसे शक हो गया है..मैने शायद जिस तरीके से पूछा था उस लड़की के बारे मे, वो समझ चुकी है की हमारा इरादा क्या है..और शायद इसलिए वो घर छोड़कर निकल गयी है...''

इक़बाल : "साले ...तुझे सिर्फ पता करने के लिए कहा था,अंदर जाकर जासूसी करने को नही ...तूने इतनी पूछताछ करी ही क्यों वहां जाकर...उसे बेकार का शक़ भी हो गया...अब पता नही कहां गयी होगी वो...चल तू मुझे उसका नंबर भेज जल्दी से...मैं बात करके देखता हू..''

गंगू ने उसे रज्जो का नंबर भेज दिया...और वो पहले से ही रज्जो को समझा कर आ चुका था कल की कोई भी फोन आए तो उसे क्या बोलना है..

इक़बाल ने फ़ौरन रज्जो को फोन मिलाया

रज्जो : "कौन बोल रहा है...''

इक़बाल : "ये तुझे जानने की कोई ज़रूरत नही है...तेरे पास जो वो लड़की है...मुझे वो चाहिए...शनाया ..''

रज्जो : "ओहो....तो वो तुम हो जो उसके पीछे पड़े हो....मुझे तो पहले से ही शक़ हो गया था ,इसलिए मैं वहां से निकल आई...''

इक़बाल : "इतना दिमाग़ चलता है तो ये भी बता तो की कितनी रकम सोचकर तू वहां से निकली है...बोल , कितना चाहिए तुझे..''

रज्जो : "अब आए ना रास्ते पर....ठीक है....तुम बीस लाख रुपय तैयार रखो...मैं उस भिखारी को फोन करके बता दूँगी की कहाँ आना है...''

और इतना कहकर रज्जो ने फोन रख दिया..

इक़बाल के लिए 20 लाक कोई बड़ी रकम नही थी...इसलिए वो खुशी से झूम उठा..क्योंकि उसकी इच्छा जो पूरी होने वाली थी...उसने उसी वक़्त गंगू को फोन मिलाया..पर उसका फोन बिज़ी था..

क्योंकि उसके फोन पर पहले से ही रज्जो का फोन आ चुका था...और वो उसे अभी तक की सारी बातें बता रही थी..

रज्जो :"गंगू..तूने जैसा कहा ,मैने कह दिया...पर ये मामला क्या है...किस लड़की की बात कर रहे है वो..कौन था वो आदमी..जो इतने पैसे देने के लिए तैयार हो गया...''


 गंगू : "तू अपना दिमाग़ ज़्यादा मत चला...बस अब तेरा काम ख़त्म...अगर मुझे पैसे मिल गये तो तेरे भी 2 लाख पक्के...और अब इस फोन मे से सिम को निकाल कर फेंक दे...मैं तुझे जल्दी ही मिलूँगा..''

2 लाख की बात सुनकर रज्जो भी खुश हो गयी...सिर्फ़ इतने से काम के अगर इतने पैसे मिल रहे हैं तो उसे क्या प्राब्लम हो सकती है...उसने जल्दी से वो सिम निकाल कर फेंक दिया..

फिर गंगू ने देखा की उसके फोन पर 4 मिस कॉल्स थी,इक़बाल की...उसने इक़बाल को फोन किया

इक़बाल : "गंगू...तूने सही कहा था...ये वही लड़की है...और वो औरत भी बड़ी चालाक निकली, 20 लाख माँग रही है...मैने भी बोल दिया की दे दूँगा...वो अब तुझे कॉन्टेक्ट करेगी...समझा..''

गंगू उसकी बात सुनता रहा...योजना तो उसके अनुसार ही चल रही थी...और इक़बाल बेवजह ही खुश होकर उसे वो सब बता रहा था...

गंगू : "ठीक है भाई...मैं उससे बात करके अभी आपको बताता हूँ ..''

और उसने फोन रख दिया...

और फिर 10 मिनट के बाद दोबारा इक़बाल को फोन किया

गंगू : "भाई...मेरी बात हो गयी है उस औरत से...हमे आज रात को 8 बजे बुलाया है...पैसो के साथ...बिना किसी सुरक्षा के...सिर्फ़ हम दोनों को...''

इक़बाल : "ओके , पर...कहाँ पर...''

गंगू : "वो उसने अभी बताया नही...बड़ी शातिर औरत लग रही है...थोड़ी देर मे फोन करके बताएगी...''

इक़बाल : "तो तू एक काम कर...मेरे अड्डे पर आ जा..यहीं से दोनो निकल चलेंगे एक साथ...वैसे भी मेरे सारे आदमी उस औरत के घर की तरफ ही गये है...उन्हे मैं वहीं रुके रहने को बोल देता हू...अगर वो वापिस वहीँ आई तो उसे पकड़ कर ले आएँगे...वरना हमारे पास तो आ ही रही है वो ..''

गंगू के लिए इतना बहुत था...यही तो वो चाहता था...वो उसी वक़्त इक़बाल भाई के घर की तरफ निकल पड़ा...

अब तक अंधेरा होने लगा था...और भूरे भी नेहा को अपनी जीप मे लेकर उस किले मे पहुँच चुका था...

नेहा : "तुम बता क्यो नही रहे की बात क्या है.....और ये कहां ले आए तुम मुझे...यहां तो काफ़ी अंधेरा है ...और कोई है भी नही...''

भूरे : "अरे भाभी जी...अप चिंता क्यो कर रही हो...मैने कहा ना,गंगू ने ही कहा है आपको यहां लाने के लिए...आप चलिए,उसने आपके लिए एक सर्प्राइज़ रखा है यहां पर...''

और इतना कहकर उसने नेहा की कमर मे हाथ रखा और उसे अंदर की तरफ ले गया...उसने साड़ी पहनी हुई थी...और भूरे के कड़क हाथ अपनी नंगी कमर पर लगते ही उसका शरीर काँप उठा...भूरे ने पहले भी कई बार उसके करीब आने की कोशिश की थी...और नेहा ने उसके लंड को भी पकड़ा था एक बार...और वही सब एकदम से उसे याद आने लगा...मौसम भी नशीला सा हो रहा था...अंधेरा भी था...और उसकी चूत तो वैसे भी हर वक़्त कसकती रहती थी...इसलिए उसका हाथ लगते ही उसे अंदर से कुछ -2 होने लगा...

गंगू ने भी वो कंपन महसूस किया, जो नेहा के जिस्म से निकला था...अभी सिर्फ़ 6 बजे थे...पूरे 2 घंटे थे उसके पास....इस कंपन को एक भूचाल बनाने के लिए...




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