FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--91
मैं: ये बता की ये सब हुआ कैसे?
अनिल: जीजू...वो मैं बाइक से जा रहा था....
मैं: बाइक? पर तेरे पास बाइक कैसे आई?
अनिल: जी वो मेरे दोस्त की थी|
मैं: फिर...?
अनिल: इनकी गाडी wrong साइड से आ रही थी और मुझे आ लगी...
मैंने पलट के डॉक्टर की तरफ देखा| सुरेन्द्र घबरा गया और बोला;
सुरेन्द्र: Sorry Sir .... मैंने आप से झूठ कहा...गलती मेरी थी.... मैं फोन पे बात कर रहा था और सामने नहीं देख रहा था ....I'm Sorry ! Please मुझे माफ़ कर दीजिये!!!
मुझे गुस्सा तो बहुत आया...पर फिर खुद को रोक लिया और ये सोचा की अगर ये चाहता तो अनिल को उसी हालत पे मरने को छोड़ जाता और हमें कभी पता ही नहीं चलता| पर अगर ये इंसान अपनी इंसानियत नहीं भुला तो मैं कैसे भूल जाऊँ|
मैं: Calm down ... I'm not gonna file any complaint against you! Relax .... आप चाहते तो इसे वहीँ छोड़ के भाग सकते थे...और मुझे कभी पता भी नहीं चलता...पर ना केवल आपने इसे हॉस्पिटल पहुँचाया बल्कि इसके फोन से मुझे कॉल भी किया और मेरे आने तक इसका पूरा ध्यान रखा| Thank You .... Thank You Very Much !
मैंने उससे हाथ मिलाया तब जा के उसकी घबराहट कम हुई|
मैं: अब आप प्लीज ये बता दो की अनिल को यहाँ कितने दिन रहना है? दरअसल इनकी दीदी नहीं जानती की इनका एक्सीडेंट हुआ है... तो मैं इसे जल्द से जल्द गाँव भेज दूँ जहाँ इसकी देखभाल अच्छे से होगी|
सुरेन्द्र: सर....कल का दिन और रुकना पड़ेगा| कल शाम तक मैं discharge करवा दूँगा|
अनिल: जीजू...मैं गाँव नहीं जा सकता..exams आ रहे हैं| attendance भी short है|
मैं: पर यहाँ तेरा ख्याल कौन रखेगा?
सुरेन्द्र: सर.. If you don’t mind…मैं हॉस्टल में रहता हूँ and I can take good care of him! वैसे भी गलती मेरी ही है|
मैं: Sorry यार I don’t want to trouble you anymore.
अनिल: जीजू...वो.....मेरी grilfreind है...and she can take good care of me!
मैं: अबे साले तूने girlfriend भी बना ली?
अनिल मुस्कुराने लगा|
मैं: कहाँ है वो? मैं जब से आया हूँ मुझे तो दिखी नहीं|
अनिल: वो ... उसे इसका पता नहीं है... वो मेरे ही साथ पढ़ती है! पर प्लीज घर में किसी को कुछ मत बताना|
मैं: ठीक है... पर अभी तू आराम कर सुबह के पाँच बज रहे हैं|
सुरेन्द्र: सर आप मेरे केबिन में आराम करिये|
मैं: No Thanks ! मैं यहीं बैठता हूँ और जरा घर फोन कर दूँ|
अनिल: नहीं जीजू...प्लीज एक्सीडेंट के बारे में किसी को कुछ मत बताना...सब घबरा जायेंगे|
मैं: अरे यार...मेरे माँ-पिताजी को सब पता है और मैं उन्हें तो बात दूँ| वो किसी से नहीं कहेंगे..अब तू सो जा|
अनिल: जी ठीक है!
मैंने पिताजी को फोन कर के सब बताया तो वो उस डॉक्टर पे बहुत गुस्सा हुए, पर फिर मैंने उन्हें समझाया की घबराने की बात नही है...अनिल के सीधे हाथ में फ्रैक्चर हुआ है ... उस डॉक्टर ने इंसानियत दिखाई...और न केवल अनिल को हॉस्पिटल लाया..बल्कि उसे स्पेशल वार्ड में दाखिल कराया और उसका ध्यान वही रख रहा था| तब जाके उनका क्रोध शांत हुआ और मैंने उन्हें बता दिया की मैं एक-दो दिन में आ जाऊँगा| बात खत्म हुई और मैं भी वहीँ सोफे पे बैठ गया और आँख लग गई| सुबह आठ बजे फोन बजा...फोन भौजी का था....उन्हें अब भी बात नहीं पता थी उन्होंने तो फोन इसलिए किया की बच्चे बात करना चाहते थे|
आयुष: हैल्लो पापा...आप मेरे लिए क्या लाओगे?
मैं: आप बोलो बेटा क्या चाहिए आपको?
आयुष: Game ... Assassin's Creed Unity
मैं: बेटा ...वो तो वहां भी मिलेगी...यहाँ से क्या लाऊँ?
आयुष: पता नहीं ...
और पीछे से मुझे नेहा और भौजी के हंसने की आवाज आई| बात हंसने वाली ही थी...आयुष चाहता था की मैं उसके लिए कुछ लाऊँ...पर क्या ये उसे नहीं पता था!!! फिर नेहा से बात हुई तो उसने कहा की उसे कुछ स्पेसल चाहिए....क्या उसने नहीं बताया| अगली बारी भौजी की थी;
भौजी: तो जानू.... कब आ रहे हो?
मैं: बस जान.... एक-दो दिन!
भौजी: आप चूँकि वहां हो तो आप अनिल से मिल लोगे? भाई-दूज के लिए आ जाता तो अच्छा होता? आप उसे साथ ले आओ ना?
मैं: उम्म्म्म ऐसा करता हूँ मैं आपकी बात उससे करा देता हूँ|
भौजी: हाँ दो न उसे फोन?
मैं: Hey ... मैं अपने दोस्त के घर हूँ| अनिल की बगल में नहीं बैठा| मैं उससे आज शाम को मिलूंगा...तब आपकी बात करा दूँगा|
भौजी: ठीक है...और आपका दोस्त कैसा है?
मैं: ठीक है.... ! अच्छा मैं चलता हूँ...बैटरी डिस्चार्ज होने वाली है|
भौजी: ठीक है...लंच में फोन करना|
मैं: Done!
मैं अनिल के कमरे में लौटा तो वो उठ चूका था| मैंने उसे बताया की उसकी दीदी का फोन था;
मैं: तेरी दीदी कह रही है की भाई-दूज के लिए तुझे साथ ले आऊँ?
अनिल: इस हालत में? ना बाबा ना .... आपने दीदी का गुस्सा नहीं देखा! मैं उनसे शाम को बात कर लूँगा|
मैं: तो तूने फोन कर दिया अपनी गर्लफ्रेंड को?
अनिल: हाँ...वो आ रही है| मैं उसके साथ उसके कमरे में ही रुकूँगा?
मैं: अबे...तू कुछ ज्यादा तेज नहीं जा रहा? साले लेटे-लेटे सारा प्लान बना लिया?
अनिल शर्मा गया!
मैं: आय-हाय शर्म देखो लौंडे की ?? (मैं उसे छेड़ रहा था और शर्म से उसके गाल लाल थे|)
अनिल: जीजू...आप भी ना.... खेर छोडो ये सब और आप बताओ की कैसा चल रहा है आपका काम? कब शादी कर रहे हो? (उसने बात बदल दी)
मैं: काम सही चल रहा है.... और शादी....वो जल्दी ही होगी|
अनिल: जल्दी? कब?
मैं: पता चल जायेगा|
अनिल: कौन है लड़की? ये तो बताओ?
मैं: तू मेरी वाली छोड़ और ये बता की इस के साथ तेरा क्या relationship है? Time pass या Serious भी है तू?
अनिल: जी...serious वाला केस है| कोर्स पूरा होते ही शादी कर लूँगा|
मैं: घर वालों को पता है?
अनिल: नहीं...और जानता हूँ वो मानेंगे नहीं...पर देखते हैं की आगे क्या होता है? वैसे भी आप और दीदी तो है ही|
मैं: पागल कहीं का...
इतने में वो लड़की आ गई, जिसकी हम बात कर रहे थे| दिखने में बड़ी सेंसिबल थी| अनिल अब भी मुझे जीजू ही ख रहा था और वो भी यही समझ रही थी की मैं उसका जीजू ही हूँ| डॉक्टर आके अनिल को चेक कर रहे थे तो हम दोनों बहार आ गए| उस लड़की का नाम सुमन था;
मैं: सुमन... If you don’t mind me asking you….ummmm… how’s he in studies?
सुमन: He’s good…. मतलब मेरे से तो अच्छा ही है| मैं इसी से टूशन लेती हूँ|
मैं: I hope he doesn’t drink or do shit like that?
सुमन: Naa…he’s very shy to these things…even I don’t do drinks and all! Ummmm…. (वो कुछ कहना चाहती थी...पर कहते-कहते रूक गई|)
मैं: क्या हुआ? You wanna say something?
सुमन: अम्म्म..actually जीजू.....इसकी थर्ड और फोर्थ सेमेस्टर की फीस पेंडिंग है.... मैंने इसे कहा की मुझसे लेले ...पर माना नहीं...कहता है की घर में कुछ प्रॉब्लम है...तो....
मैं: Fees कैसे जमा होती है?
सुमन: जी चेक से, कॅश से...ड्राफ्ट से ...
मैंने अपनी जेब से चेक-बुक निकाली और कॉलेज का नाम भर के उसे दे दिया| फीस 50,000/- की थी| मुझे देने में जरा भी संकोच नहीं हुआ... जब अनिल का चेकअप हो गया तो हम कमरे में आये और मैंने उसे फीस का चेक दे दिया| वो हैरान हो के मुझे देखने लगा फिर गुस्से से सुमन को देखने लगा|
मैं: Hey .... मैंने उससे पूछा था...वो बता नहीं रही थी...तेरी कसम दी तब बोली| अब उसे घूर मत और इसे संभाल के रख| मैं जरा एकाउंट्स डिपार्टमेंट से होके आया|
मैं एकाउंट्स डिपार्टमेंट पहुँचा तो सुरेन्द्र वहीँ खड़ा था .... उसने बिल सेटल कर दिया था|
सुरेन्द्र: सर आप चाहें तो अभी अनिल को घर ले जा सकते हैं| हाँ बीच-बीच में उसे follow up के लिए आना होगा तो मैंने उसे अपना नंबर दे दिया है..वो मुझसे मिल लेगा और मैं जल्दी से उसका check up करा दूँगा|
मैं: (एकाउंट्स क्लर्क से) ये लीजिये ..(मैंने उन्हें debit card दिया)
क्लर्क: सर पेमेंट तो हो गई...Mr. Surendra ने आपके Behalf पे पेमेंट कर दी|
मैं: What? सुरेन्द्र...ये नहीं चलेगा....
सुरेन्द्र: सर...गलती मेरी थी...मेरी वजह से आप को दिल्ली से यहाँ अचानक आना पड़ा...
मैं: आपने अपनी इंसानियत का फ़र्ज़ पूरा किया और अनिल को हॉस्पिटल तक लाये...उसका इलाज कराया..वो भी मेरी अनुपस्थिति में...मैं नहीं जानता की जब तक मरीज का कोई रिश्तेदार ना हो आपलोग आगे इलाज नहीं करते? प्लीज ...ऐसा मत कीजिये मैं बहुत ही गैरतमंद इंसान हूँ| प्लीज...सुनिए (एकाउंट्स क्लर्क) इनके पैसे वापस कीजिये और पेमेंट इस कार्ड से काटिये| प्लीज!
क्लर्क ने एक नजर सुरेन्द्र को देखा पर सुरेन्द्र के मुख पर कोई भाव नहीं थे... उसने (क्लर्क) ने कॅश पैसे मुझे दिए और कार्ड से पेमेंट काटी| मैंने पैसे सुरेन्द्र को वापस किये...वो ले नहीं रहा था पर मेरी गैरत देख के मान गया|
मैं अनिल को discharge करवा के सुमन के फ्लैट पे ले आया
अनिल: सॉरी जीजू...मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफ हुई.... extremely sorry!
मैं: ओ पगले! कोई तकलीफ नहीं हुई....बस कर और आराम कर| तो सुमन...आप ध्यान रख लोगे ना इस का?
सुमन: जीजू आप चिंता ना करें... मैं इनका अच्छे से ध्यान रखूंगी?
मैं: तो फिर मैं आज रात की flight ले लेता हूँ?
सुमन: अरे जीजू...आज तो मिलु हूँ आपसे... आजतक ये बताता ही था आपके बारे में...कुछ दिन तो रहो| कुछ घूमते-फिरते...!!
मैं: मैं यहाँ ये सोच के आया था की इसे गाँव छोड़ दूँगा...पर ये तुम्हारे पास रहना चाहता है| किसी को "तकलीफ" नहीं देना चाहता| बहाना अच्छा मारा था! खेर...अब तुम हो ही इसका ध्यान रखने...मैं चलता हूँ...वहां सब काम छोड़ के यहाँ भागा आया था| रही घूमने-फिरने की बात तो..... अगली बार ...और शायद मेरे साथ इसकी दीदी भी हों...!!!
बात खत्म करके मैं फ्रेश हुआ, टिकट बुक की...और चाय पी|
मैं: ओह...यार तू पहले अपनी दीदी से बात कर ले... (मैंने उसे भौजी का नंबर मिला के दिया|)
दोनों ने बात की और भौजी को अभी तक कुछ पता नहीं था| मैंने रात की फ्लाइट पकड़ी और बारह बजे तक घर पहुँच गया| बारह बजे तक बच्चे जाग ही रहे थे| मैं अपने कमरे में दाखिल हुआ तो देखा दोनों जागे हुए थे और पलंग के ऊपर खड़े हुए और मेरी तरफ लपके| मैंने दोनों को गले लगा लिया|
मैं: okay ..okay ... आपके लिए मैं स्पेशल gifts लाया हूँ| नेहा के लिए जो गिफ्ट है वो बाहर हॉल में है|
(नेहा बाहर हॉल की तरफ भागी| वो अपना गिफ्ट उठा के अंदर लाई| ये 30 inch का टेडी बेयर था!)
मैं: अब बारी है आयसुह की....तो ...आपके लिए मैं लाया हूँ Hot Wheels का Track set !
(वो भी अप गिफ्ट देख के खुश उअ और उसे खोल के tracks को सेट करने लगा|
भौजी: हे राम! आप ना....कभी नहीं सुधरोगे?
मैं: Oh Comeon यार!
भौजी: और मेरे लिए?
मैं: oops !!!
भौजी: कोई बात नहीं...आप आ गए..वही काफी है|
मैं: Sorry! जरा एक ग्लास पानी लाना|
भौजी पानी लेने गईं इतने में मैंने उनका एक गिफ्ट छुपा दिया| जब वो वापस आइन तब मैं उनहीं उनका दूसरा गिफ्ट दिया;
मैं: Here you go .... Handmade Chocolates for my beautiful wife!
भौजी: जानती थी...आप कुछ न कुछ लाये जर्रूर होगे|
फिर मैं माँ-पिताजी के कमरे में गया और उनके लिए कुछ gifts लाया था जो उन्हें दिए| पिताजी के लिए कोल्हापुरी चप्पल और माँ के लिए पश्मीना शाल!
पिताजी: बहु तुम जाके सो जाओ...मैं जरा इससे कुछ काम की बात कर लूँ|
भौजी चली गईं|
पिताजी: हाँ...तू बता...अब कैसा है अनिल?
मैं: जी plaster चढ़ा है...और उसके कॉलेज के दोस्त हैं तो उसका ख्याल वही रखेंगे| वो नहीं चाहता की गाँव में ये बात पता चले तो आप प्लीज कुछ मत कहना| अगर कल को बात खुली भी तो कह देना मैंने आपको कुछ नहीं बताया|
पिताजी: पर आखिर क्यों? गाँव जाता तो उसका ख्याल अच्छे से रखते सब|
मैं: उसके अटेंडेंस short है...लेक्टुरेस बाकी है...कह रहा था manage कर लेगा|
पिताजी: ठीक है जैसे तू कहे|
मैंने एक बात नोट की, जब से पिताजी गाँव से लौटे थे उनका मेरे प्रति थोड़ा झुकाव हो गया था| क्यों, ये मैं नहीं जानता था| खेर मैं भी अपने कमरे में आगया और बच्चों को बड़ी मुश्किल से सुकया| नेहा तो मान गई सोने के लिए पर आयुष...आयुष..जब तक ओ track set जोड़ नहीं लेता वो सोने वाला नहीं था| मैं भी उसके साथ track set जोड़ने लग गया और ट्रैक सेट जुड़ने के बाद उसने लांचर से कार चलाई तब जाके वो सोया| अगली सुबह.... एक नई खबर से शुरू हुई| खबर ये की समधी जी मतलब भौजी के पिताजी अगले हफ्ते आ रहे हैं| मैंने मन ही मन सोचा की चलो इसी बहाने मैं उसने भी बात कर लूँगा| पर पहले....पहले मुझे पिताजी से बात करनी थी| वो बात जो इतने सालों से मेरे मन में दबी हुई थी!
सुबह नाश्ता करने के बाद मैं और पिताजी डाइनिंग टेबल पे बैठे थे, बच्चे अंदर खेल रहे थे और माँ और भौजी किचन पे काम कर रहे थे| यही समय था उनसे बात करने का....पर ये समझ नहीं आ रहा था की की शुरू कैसे करूँ? शब्दों का चयन करने में समय बहुत लग रहा था ...और समय हाथ से फिसल रहा था| आखिर मैंने दृढ निश्चय किया की मैं आज बात कर के रहूँगा|
मैं: अ.आआ... पिताजी....मुझे आपसे और माँ से कुछ बात करनी है|
पिताजी: हाँ हाँ बोल?
मैं: माँ...आप भी प्लीज बैठ जाओ इधर| (मेरी आवाज गंभीर हो चली थी|) और आप (भौजी) प्लीज अंदर चले जाओ|
माँकुर्सी पे बैठते हुए) क्यों...?
मैं: माँ....बात कुछ ऐसी है|
भौजी समझ चुकी थीं ...और वो चुपचाप अंदर चली गईं| नजाने मुझे क्यों लगा की वो हमारी बातें सुन रही हैं!
मैं: (एक गहरी साँस लेटे हुए) पिताजी...आज मैं आपको जो बात कहने जा रहा हूँ...वो मेरे अंदर बहत दिनों से दबी हुई थी...आपसे बस एक गुजारिश है| जानता हूँ की ये बात सुन के आपको बहुत गुस्सा आएगा...पर प्लीज...प्लीज एक बार मेरी बात पूरी सुन लेना..और अंत में जो आप कहंगे वही होगा| (मैंने एक गहरी साँस छोड़ी और अपनी बात आगे कही|) मैं संगीता(भौजी का नाम) से प्यार करता हूँ!
ये सुन के पिताजी का चेहरा गुस्से से तमतमा गया|
मैं: ये सब तब शुरू हुआ जब हम गाँव गए थे| हम दोनों बहुत नजदीक आ गए| वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती हैं...जितना मैं उनसे! आयुष................आयुष मेरा बेटा है!
पिताजी का सब्र टूट गया और वो जोर से बोले;
पिताजी: क्या? ये क्या बकवास कर रहा है तू? होश में भी है?
मैं: प्लीज...पिताजी...मेरी पूरी बात सुन लीजिये| पिताजी: बात सुन लूँ? अब बचा क्या है सुनने को? देख लो अपने पुत्तर की करतूत|
मैं: पिताजी...मैं ...संगीता से शादी करना चाहता हूँ! (मैंने एक दम से अपनी बात उनके सामने रख दी|)
पिताजी: मैं तेरी टांगें तोड़ दूँगा आगे बकवास की तो!! होश है क्या कह रहा है? वो पहले से शादी शुदा है...उसका परिवार है...तू क्यों उसके जीवन में आग लगा रहा है?
मैं: तोड़ दो मेरी टांगें...खून कर दो मेरा...पर मैं उनके बिना नहीं जी सकता| वो भी मुझसे प्यार करती हैं.... उनके पेट में हमारा बच्चा है....और जिस शादी की आप बात कर रहे हो...उसे उन्होंने कभी शादी माना ही नहीं| चन्दर भैया के बारे में आप सब जानते हो...शादी से पहले से ही उनके क्या हाल थे.... उन्होंने भौजी की बहन के साथ भी वो किया...जो उन्हें नहीं करना चाइये ...इसीलिए तो वो उन्हें खुद को छूने तक नहीं देती|
पिताजी ने तड़ाक से एक झापड़ मुझे रसीद किया|
पिताजी: तू इतना नामाकूल हो गया की ऐसी गन्दी बातें करता है? यही शिक्षा दी थी मैंने तुझे?
इतने में संगीता (भौजी) की रोती हुई आवाज आई|
संगीता: नहीं पिताजी...ये सच कह रहे हैं|
पिताजी: तू बीच में मत पद बहु...ये तुझे बरगला रहा है| पागल हो गया है ये !!! बच्चों के प्यार में आके ये ऐसा कह रहा है! बहुत प्यार करता है ना ये बच्चों से...ये भी भूल गया की जिसे ये भौजी कहता था उसी के बारे में....छी....छी....छी....
मैं: आपने कभी गोर नहीं किया...मैंने इन्हें भौजी कहना कब का छोड़ दिया| कल रात भी तो मैं इन्हें आप ही कहा रह था ना?
पिताजी ने एक और झापड़ रसीद किया|
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बदलाव के बीज--91
अब आगे ....
कुछ देर में हॉस्पिटल पहुँच गए| गेट
पे मुझे दिषु का cousin मिल गया| उसने मुझे सब बता दिया और डॉक्टर से भी
मिला दिया| मैंने उसे दस हजार दिए जो उसने जमा कराये थे और उसे घर भेज
दिया| उसे विदा कर के मैं और डॉक्टर अनिल के कमरे में आये| अनिल सो रहा था
पर दरवाजा खुलने की आवाज से उठ बैठा| मैं तेजी से चल के उसके पास पहुँचा,
उसने पाँव छूने चाहे पर मैंने उसे रोक दिया| मैं: ये बता की ये सब हुआ कैसे?
अनिल: जीजू...वो मैं बाइक से जा रहा था....
मैं: बाइक? पर तेरे पास बाइक कैसे आई?
अनिल: जी वो मेरे दोस्त की थी|
मैं: फिर...?
अनिल: इनकी गाडी wrong साइड से आ रही थी और मुझे आ लगी...
मैंने पलट के डॉक्टर की तरफ देखा| सुरेन्द्र घबरा गया और बोला;
सुरेन्द्र: Sorry Sir .... मैंने आप से झूठ कहा...गलती मेरी थी.... मैं फोन पे बात कर रहा था और सामने नहीं देख रहा था ....I'm Sorry ! Please मुझे माफ़ कर दीजिये!!!
मुझे गुस्सा तो बहुत आया...पर फिर खुद को रोक लिया और ये सोचा की अगर ये चाहता तो अनिल को उसी हालत पे मरने को छोड़ जाता और हमें कभी पता ही नहीं चलता| पर अगर ये इंसान अपनी इंसानियत नहीं भुला तो मैं कैसे भूल जाऊँ|
मैं: Calm down ... I'm not gonna file any complaint against you! Relax .... आप चाहते तो इसे वहीँ छोड़ के भाग सकते थे...और मुझे कभी पता भी नहीं चलता...पर ना केवल आपने इसे हॉस्पिटल पहुँचाया बल्कि इसके फोन से मुझे कॉल भी किया और मेरे आने तक इसका पूरा ध्यान रखा| Thank You .... Thank You Very Much !
मैंने उससे हाथ मिलाया तब जा के उसकी घबराहट कम हुई|
मैं: अब आप प्लीज ये बता दो की अनिल को यहाँ कितने दिन रहना है? दरअसल इनकी दीदी नहीं जानती की इनका एक्सीडेंट हुआ है... तो मैं इसे जल्द से जल्द गाँव भेज दूँ जहाँ इसकी देखभाल अच्छे से होगी|
सुरेन्द्र: सर....कल का दिन और रुकना पड़ेगा| कल शाम तक मैं discharge करवा दूँगा|
अनिल: जीजू...मैं गाँव नहीं जा सकता..exams आ रहे हैं| attendance भी short है|
मैं: पर यहाँ तेरा ख्याल कौन रखेगा?
सुरेन्द्र: सर.. If you don’t mind…मैं हॉस्टल में रहता हूँ and I can take good care of him! वैसे भी गलती मेरी ही है|
मैं: Sorry यार I don’t want to trouble you anymore.
अनिल: जीजू...वो.....मेरी grilfreind है...and she can take good care of me!
मैं: अबे साले तूने girlfriend भी बना ली?
अनिल मुस्कुराने लगा|
मैं: कहाँ है वो? मैं जब से आया हूँ मुझे तो दिखी नहीं|
अनिल: वो ... उसे इसका पता नहीं है... वो मेरे ही साथ पढ़ती है! पर प्लीज घर में किसी को कुछ मत बताना|
मैं: ठीक है... पर अभी तू आराम कर सुबह के पाँच बज रहे हैं|
सुरेन्द्र: सर आप मेरे केबिन में आराम करिये|
मैं: No Thanks ! मैं यहीं बैठता हूँ और जरा घर फोन कर दूँ|
अनिल: नहीं जीजू...प्लीज एक्सीडेंट के बारे में किसी को कुछ मत बताना...सब घबरा जायेंगे|
मैं: अरे यार...मेरे माँ-पिताजी को सब पता है और मैं उन्हें तो बात दूँ| वो किसी से नहीं कहेंगे..अब तू सो जा|
अनिल: जी ठीक है!
मैंने पिताजी को फोन कर के सब बताया तो वो उस डॉक्टर पे बहुत गुस्सा हुए, पर फिर मैंने उन्हें समझाया की घबराने की बात नही है...अनिल के सीधे हाथ में फ्रैक्चर हुआ है ... उस डॉक्टर ने इंसानियत दिखाई...और न केवल अनिल को हॉस्पिटल लाया..बल्कि उसे स्पेशल वार्ड में दाखिल कराया और उसका ध्यान वही रख रहा था| तब जाके उनका क्रोध शांत हुआ और मैंने उन्हें बता दिया की मैं एक-दो दिन में आ जाऊँगा| बात खत्म हुई और मैं भी वहीँ सोफे पे बैठ गया और आँख लग गई| सुबह आठ बजे फोन बजा...फोन भौजी का था....उन्हें अब भी बात नहीं पता थी उन्होंने तो फोन इसलिए किया की बच्चे बात करना चाहते थे|
आयुष: हैल्लो पापा...आप मेरे लिए क्या लाओगे?
मैं: आप बोलो बेटा क्या चाहिए आपको?
आयुष: Game ... Assassin's Creed Unity
मैं: बेटा ...वो तो वहां भी मिलेगी...यहाँ से क्या लाऊँ?
आयुष: पता नहीं ...
और पीछे से मुझे नेहा और भौजी के हंसने की आवाज आई| बात हंसने वाली ही थी...आयुष चाहता था की मैं उसके लिए कुछ लाऊँ...पर क्या ये उसे नहीं पता था!!! फिर नेहा से बात हुई तो उसने कहा की उसे कुछ स्पेसल चाहिए....क्या उसने नहीं बताया| अगली बारी भौजी की थी;
भौजी: तो जानू.... कब आ रहे हो?
मैं: बस जान.... एक-दो दिन!
भौजी: आप चूँकि वहां हो तो आप अनिल से मिल लोगे? भाई-दूज के लिए आ जाता तो अच्छा होता? आप उसे साथ ले आओ ना?
मैं: उम्म्म्म ऐसा करता हूँ मैं आपकी बात उससे करा देता हूँ|
भौजी: हाँ दो न उसे फोन?
मैं: Hey ... मैं अपने दोस्त के घर हूँ| अनिल की बगल में नहीं बैठा| मैं उससे आज शाम को मिलूंगा...तब आपकी बात करा दूँगा|
भौजी: ठीक है...और आपका दोस्त कैसा है?
मैं: ठीक है.... ! अच्छा मैं चलता हूँ...बैटरी डिस्चार्ज होने वाली है|
भौजी: ठीक है...लंच में फोन करना|
मैं: Done!
मैं अनिल के कमरे में लौटा तो वो उठ चूका था| मैंने उसे बताया की उसकी दीदी का फोन था;
मैं: तेरी दीदी कह रही है की भाई-दूज के लिए तुझे साथ ले आऊँ?
अनिल: इस हालत में? ना बाबा ना .... आपने दीदी का गुस्सा नहीं देखा! मैं उनसे शाम को बात कर लूँगा|
मैं: तो तूने फोन कर दिया अपनी गर्लफ्रेंड को?
अनिल: हाँ...वो आ रही है| मैं उसके साथ उसके कमरे में ही रुकूँगा?
मैं: अबे...तू कुछ ज्यादा तेज नहीं जा रहा? साले लेटे-लेटे सारा प्लान बना लिया?
अनिल शर्मा गया!
मैं: आय-हाय शर्म देखो लौंडे की ?? (मैं उसे छेड़ रहा था और शर्म से उसके गाल लाल थे|)
अनिल: जीजू...आप भी ना.... खेर छोडो ये सब और आप बताओ की कैसा चल रहा है आपका काम? कब शादी कर रहे हो? (उसने बात बदल दी)
मैं: काम सही चल रहा है.... और शादी....वो जल्दी ही होगी|
अनिल: जल्दी? कब?
मैं: पता चल जायेगा|
अनिल: कौन है लड़की? ये तो बताओ?
मैं: तू मेरी वाली छोड़ और ये बता की इस के साथ तेरा क्या relationship है? Time pass या Serious भी है तू?
अनिल: जी...serious वाला केस है| कोर्स पूरा होते ही शादी कर लूँगा|
मैं: घर वालों को पता है?
अनिल: नहीं...और जानता हूँ वो मानेंगे नहीं...पर देखते हैं की आगे क्या होता है? वैसे भी आप और दीदी तो है ही|
मैं: पागल कहीं का...
इतने में वो लड़की आ गई, जिसकी हम बात कर रहे थे| दिखने में बड़ी सेंसिबल थी| अनिल अब भी मुझे जीजू ही ख रहा था और वो भी यही समझ रही थी की मैं उसका जीजू ही हूँ| डॉक्टर आके अनिल को चेक कर रहे थे तो हम दोनों बहार आ गए| उस लड़की का नाम सुमन था;
मैं: सुमन... If you don’t mind me asking you….ummmm… how’s he in studies?
सुमन: He’s good…. मतलब मेरे से तो अच्छा ही है| मैं इसी से टूशन लेती हूँ|
मैं: I hope he doesn’t drink or do shit like that?
सुमन: Naa…he’s very shy to these things…even I don’t do drinks and all! Ummmm…. (वो कुछ कहना चाहती थी...पर कहते-कहते रूक गई|)
मैं: क्या हुआ? You wanna say something?
सुमन: अम्म्म..actually जीजू.....इसकी थर्ड और फोर्थ सेमेस्टर की फीस पेंडिंग है.... मैंने इसे कहा की मुझसे लेले ...पर माना नहीं...कहता है की घर में कुछ प्रॉब्लम है...तो....
मैं: Fees कैसे जमा होती है?
सुमन: जी चेक से, कॅश से...ड्राफ्ट से ...
मैंने अपनी जेब से चेक-बुक निकाली और कॉलेज का नाम भर के उसे दे दिया| फीस 50,000/- की थी| मुझे देने में जरा भी संकोच नहीं हुआ... जब अनिल का चेकअप हो गया तो हम कमरे में आये और मैंने उसे फीस का चेक दे दिया| वो हैरान हो के मुझे देखने लगा फिर गुस्से से सुमन को देखने लगा|
मैं: Hey .... मैंने उससे पूछा था...वो बता नहीं रही थी...तेरी कसम दी तब बोली| अब उसे घूर मत और इसे संभाल के रख| मैं जरा एकाउंट्स डिपार्टमेंट से होके आया|
मैं एकाउंट्स डिपार्टमेंट पहुँचा तो सुरेन्द्र वहीँ खड़ा था .... उसने बिल सेटल कर दिया था|
सुरेन्द्र: सर आप चाहें तो अभी अनिल को घर ले जा सकते हैं| हाँ बीच-बीच में उसे follow up के लिए आना होगा तो मैंने उसे अपना नंबर दे दिया है..वो मुझसे मिल लेगा और मैं जल्दी से उसका check up करा दूँगा|
मैं: (एकाउंट्स क्लर्क से) ये लीजिये ..(मैंने उन्हें debit card दिया)
क्लर्क: सर पेमेंट तो हो गई...Mr. Surendra ने आपके Behalf पे पेमेंट कर दी|
मैं: What? सुरेन्द्र...ये नहीं चलेगा....
सुरेन्द्र: सर...गलती मेरी थी...मेरी वजह से आप को दिल्ली से यहाँ अचानक आना पड़ा...
मैं: आपने अपनी इंसानियत का फ़र्ज़ पूरा किया और अनिल को हॉस्पिटल तक लाये...उसका इलाज कराया..वो भी मेरी अनुपस्थिति में...मैं नहीं जानता की जब तक मरीज का कोई रिश्तेदार ना हो आपलोग आगे इलाज नहीं करते? प्लीज ...ऐसा मत कीजिये मैं बहुत ही गैरतमंद इंसान हूँ| प्लीज...सुनिए (एकाउंट्स क्लर्क) इनके पैसे वापस कीजिये और पेमेंट इस कार्ड से काटिये| प्लीज!
क्लर्क ने एक नजर सुरेन्द्र को देखा पर सुरेन्द्र के मुख पर कोई भाव नहीं थे... उसने (क्लर्क) ने कॅश पैसे मुझे दिए और कार्ड से पेमेंट काटी| मैंने पैसे सुरेन्द्र को वापस किये...वो ले नहीं रहा था पर मेरी गैरत देख के मान गया|
मैं अनिल को discharge करवा के सुमन के फ्लैट पे ले आया
अनिल: सॉरी जीजू...मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफ हुई.... extremely sorry!
मैं: ओ पगले! कोई तकलीफ नहीं हुई....बस कर और आराम कर| तो सुमन...आप ध्यान रख लोगे ना इस का?
सुमन: जीजू आप चिंता ना करें... मैं इनका अच्छे से ध्यान रखूंगी?
मैं: तो फिर मैं आज रात की flight ले लेता हूँ?
सुमन: अरे जीजू...आज तो मिलु हूँ आपसे... आजतक ये बताता ही था आपके बारे में...कुछ दिन तो रहो| कुछ घूमते-फिरते...!!
मैं: मैं यहाँ ये सोच के आया था की इसे गाँव छोड़ दूँगा...पर ये तुम्हारे पास रहना चाहता है| किसी को "तकलीफ" नहीं देना चाहता| बहाना अच्छा मारा था! खेर...अब तुम हो ही इसका ध्यान रखने...मैं चलता हूँ...वहां सब काम छोड़ के यहाँ भागा आया था| रही घूमने-फिरने की बात तो..... अगली बार ...और शायद मेरे साथ इसकी दीदी भी हों...!!!
बात खत्म करके मैं फ्रेश हुआ, टिकट बुक की...और चाय पी|
मैं: ओह...यार तू पहले अपनी दीदी से बात कर ले... (मैंने उसे भौजी का नंबर मिला के दिया|)
दोनों ने बात की और भौजी को अभी तक कुछ पता नहीं था| मैंने रात की फ्लाइट पकड़ी और बारह बजे तक घर पहुँच गया| बारह बजे तक बच्चे जाग ही रहे थे| मैं अपने कमरे में दाखिल हुआ तो देखा दोनों जागे हुए थे और पलंग के ऊपर खड़े हुए और मेरी तरफ लपके| मैंने दोनों को गले लगा लिया|
मैं: okay ..okay ... आपके लिए मैं स्पेशल gifts लाया हूँ| नेहा के लिए जो गिफ्ट है वो बाहर हॉल में है|
(नेहा बाहर हॉल की तरफ भागी| वो अपना गिफ्ट उठा के अंदर लाई| ये 30 inch का टेडी बेयर था!)
मैं: अब बारी है आयसुह की....तो ...आपके लिए मैं लाया हूँ Hot Wheels का Track set !
(वो भी अप गिफ्ट देख के खुश उअ और उसे खोल के tracks को सेट करने लगा|
भौजी: हे राम! आप ना....कभी नहीं सुधरोगे?
मैं: Oh Comeon यार!
भौजी: और मेरे लिए?
मैं: oops !!!
भौजी: कोई बात नहीं...आप आ गए..वही काफी है|
मैं: Sorry! जरा एक ग्लास पानी लाना|
भौजी पानी लेने गईं इतने में मैंने उनका एक गिफ्ट छुपा दिया| जब वो वापस आइन तब मैं उनहीं उनका दूसरा गिफ्ट दिया;
मैं: Here you go .... Handmade Chocolates for my beautiful wife!
भौजी: जानती थी...आप कुछ न कुछ लाये जर्रूर होगे|
फिर मैं माँ-पिताजी के कमरे में गया और उनके लिए कुछ gifts लाया था जो उन्हें दिए| पिताजी के लिए कोल्हापुरी चप्पल और माँ के लिए पश्मीना शाल!
पिताजी: बहु तुम जाके सो जाओ...मैं जरा इससे कुछ काम की बात कर लूँ|
भौजी चली गईं|
पिताजी: हाँ...तू बता...अब कैसा है अनिल?
मैं: जी plaster चढ़ा है...और उसके कॉलेज के दोस्त हैं तो उसका ख्याल वही रखेंगे| वो नहीं चाहता की गाँव में ये बात पता चले तो आप प्लीज कुछ मत कहना| अगर कल को बात खुली भी तो कह देना मैंने आपको कुछ नहीं बताया|
पिताजी: पर आखिर क्यों? गाँव जाता तो उसका ख्याल अच्छे से रखते सब|
मैं: उसके अटेंडेंस short है...लेक्टुरेस बाकी है...कह रहा था manage कर लेगा|
पिताजी: ठीक है जैसे तू कहे|
मैंने एक बात नोट की, जब से पिताजी गाँव से लौटे थे उनका मेरे प्रति थोड़ा झुकाव हो गया था| क्यों, ये मैं नहीं जानता था| खेर मैं भी अपने कमरे में आगया और बच्चों को बड़ी मुश्किल से सुकया| नेहा तो मान गई सोने के लिए पर आयुष...आयुष..जब तक ओ track set जोड़ नहीं लेता वो सोने वाला नहीं था| मैं भी उसके साथ track set जोड़ने लग गया और ट्रैक सेट जुड़ने के बाद उसने लांचर से कार चलाई तब जाके वो सोया| अगली सुबह.... एक नई खबर से शुरू हुई| खबर ये की समधी जी मतलब भौजी के पिताजी अगले हफ्ते आ रहे हैं| मैंने मन ही मन सोचा की चलो इसी बहाने मैं उसने भी बात कर लूँगा| पर पहले....पहले मुझे पिताजी से बात करनी थी| वो बात जो इतने सालों से मेरे मन में दबी हुई थी!
सुबह नाश्ता करने के बाद मैं और पिताजी डाइनिंग टेबल पे बैठे थे, बच्चे अंदर खेल रहे थे और माँ और भौजी किचन पे काम कर रहे थे| यही समय था उनसे बात करने का....पर ये समझ नहीं आ रहा था की की शुरू कैसे करूँ? शब्दों का चयन करने में समय बहुत लग रहा था ...और समय हाथ से फिसल रहा था| आखिर मैंने दृढ निश्चय किया की मैं आज बात कर के रहूँगा|
मैं: अ.आआ... पिताजी....मुझे आपसे और माँ से कुछ बात करनी है|
पिताजी: हाँ हाँ बोल?
मैं: माँ...आप भी प्लीज बैठ जाओ इधर| (मेरी आवाज गंभीर हो चली थी|) और आप (भौजी) प्लीज अंदर चले जाओ|
माँकुर्सी पे बैठते हुए) क्यों...?
मैं: माँ....बात कुछ ऐसी है|
भौजी समझ चुकी थीं ...और वो चुपचाप अंदर चली गईं| नजाने मुझे क्यों लगा की वो हमारी बातें सुन रही हैं!
मैं: (एक गहरी साँस लेटे हुए) पिताजी...आज मैं आपको जो बात कहने जा रहा हूँ...वो मेरे अंदर बहत दिनों से दबी हुई थी...आपसे बस एक गुजारिश है| जानता हूँ की ये बात सुन के आपको बहुत गुस्सा आएगा...पर प्लीज...प्लीज एक बार मेरी बात पूरी सुन लेना..और अंत में जो आप कहंगे वही होगा| (मैंने एक गहरी साँस छोड़ी और अपनी बात आगे कही|) मैं संगीता(भौजी का नाम) से प्यार करता हूँ!
ये सुन के पिताजी का चेहरा गुस्से से तमतमा गया|
मैं: ये सब तब शुरू हुआ जब हम गाँव गए थे| हम दोनों बहुत नजदीक आ गए| वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती हैं...जितना मैं उनसे! आयुष................आयुष मेरा बेटा है!
पिताजी का सब्र टूट गया और वो जोर से बोले;
पिताजी: क्या? ये क्या बकवास कर रहा है तू? होश में भी है?
मैं: प्लीज...पिताजी...मेरी पूरी बात सुन लीजिये| पिताजी: बात सुन लूँ? अब बचा क्या है सुनने को? देख लो अपने पुत्तर की करतूत|
मैं: पिताजी...मैं ...संगीता से शादी करना चाहता हूँ! (मैंने एक दम से अपनी बात उनके सामने रख दी|)
पिताजी: मैं तेरी टांगें तोड़ दूँगा आगे बकवास की तो!! होश है क्या कह रहा है? वो पहले से शादी शुदा है...उसका परिवार है...तू क्यों उसके जीवन में आग लगा रहा है?
मैं: तोड़ दो मेरी टांगें...खून कर दो मेरा...पर मैं उनके बिना नहीं जी सकता| वो भी मुझसे प्यार करती हैं.... उनके पेट में हमारा बच्चा है....और जिस शादी की आप बात कर रहे हो...उसे उन्होंने कभी शादी माना ही नहीं| चन्दर भैया के बारे में आप सब जानते हो...शादी से पहले से ही उनके क्या हाल थे.... उन्होंने भौजी की बहन के साथ भी वो किया...जो उन्हें नहीं करना चाइये ...इसीलिए तो वो उन्हें खुद को छूने तक नहीं देती|
पिताजी ने तड़ाक से एक झापड़ मुझे रसीद किया|
पिताजी: तू इतना नामाकूल हो गया की ऐसी गन्दी बातें करता है? यही शिक्षा दी थी मैंने तुझे?
इतने में संगीता (भौजी) की रोती हुई आवाज आई|
संगीता: नहीं पिताजी...ये सच कह रहे हैं|
पिताजी: तू बीच में मत पद बहु...ये तुझे बरगला रहा है| पागल हो गया है ये !!! बच्चों के प्यार में आके ये ऐसा कह रहा है! बहुत प्यार करता है ना ये बच्चों से...ये भी भूल गया की जिसे ये भौजी कहता था उसी के बारे में....छी....छी....छी....
मैं: आपने कभी गोर नहीं किया...मैंने इन्हें भौजी कहना कब का छोड़ दिया| कल रात भी तो मैं इन्हें आप ही कहा रह था ना?
पिताजी ने एक और झापड़ रसीद किया|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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