Thursday, December 25, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--81

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--81

अब आगे ....

 भौजी समझ चुकीं थीं की मैं रात को उनके जाने के बाद ही घर आऊँगा| भौजी ने कहाँ नहीं खाया...रात में खाना उन्होंने ही बनाया था और माँ ने फोन कर के डिनर के लिए बुलाया तो मैंने कह दिया की मैं थोड़ी देर में आ रहा हूँ..पर मैं दस बजे पिताजी और चन्दर भैया के साथ लौटा| अगले दो दिन तक मैं यही करता था...सुबह पिताजी के साथ निकल जाता.... और रात को देर से आता| लंच और डिनर के समय मैं पिताजी से कोई न कोई बहन कर के गोल हो जाता| चाय-वाय पी लेता..हल्का-फुल्का कुछ भी खा लेता..पर घर पे कभी खाना नहीं खाता| रात में सोते समय परेशान रहता...नींद नहीं आती...की आखिर हो क्या रहा है मेरे साथ? क्या करूँ? कुछ नहीं पता!

तीसरे दिन तो आफ़त हो गई| भौजी की तबियत ख़राब हो गई थी| मेरी वजह से पिछले तीन दिनों से वो फांके कर रहीं थीं| मैं चार बजे से जाग रहा था और दिवार से पीठ लगाये बैठा था| घडी में सात बज रहे थे की तभी माँ धड़धडाते हुए अंदर आईं और बोलीं;

माँ: क्या कहा तूने बहु से?

मैं: (हैरान होते हुए) मैंने? मैंने क्या कहा उनसे?

माँ: कुछ तो कहा है...वरना बहु खाना-पीना क्यों छोड़ देती?

अब ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए| मैं उठ के खड़ा हुआ और उनके घर की तरफ दौड़ लगाईं...literally दौड़ लगाईं! उनके घर पहुँच के दरवाजा खटखटाया, दरवाजा चन्दर भैया ने खोला|

मैं: कहाँ हैं भौजी?

चन्दर भैया: अंदर हैं.... देख यार पता नहीं क्या कह दिया तूने और इसने तीन दिन से खाना-पीना बंद कर दिया?

मैं धड़धड़ाते हुए उनके कमरे में घुसा तो देखा की आयुष और नेहा भौजी को घेर के बैठे हैं| मैं जाके उनके सिरहाने बैठ गया;

मैं: Hey what happened?

भौजी ने ना में सर हिलाया ... पर उन्होंने मेरे हाथ को पकड़ के हलके से दबा दिया| परेशानी मेरे चेहरे से साफ़ जहलक रही थी| मैं समझा गया की वो क्या कहना चाहती हैं|

मैं: बेटा आप दोनों यहीं बैठो मैं डॉक्टर को लेके आता हूँ|

भौजी: नहीं...डॉक्टर की कोई जर्रूरत नहीं है|

मैं: Hey I'm not asking you !

और मैं डॉक्टर को लेने चला गया| डॉक्टर सरिता हमारी फैमिली डॉक्टर हैं, उन्होंने उन्हें चेक किया...दवाइयाँ दीं और चलीं गईं| चन्दर भैया भी पिताजी के साथ साइट पे चले गए| अब भौजी के घर पे बस मैं, माँ, नेहा और आयुष रह गए थे|



 माँ: बेटा...मैं कुछ बनती हूँ...और सुन तू (मैं) जब मैं फोन करूँ तब आ जाइओ और फिर अपनी "भौजी" को खिला दो| और खबरदार जो तूने आज के बाद बहु को "भाभी" कहा तो? और बहु तू इस पागल की बात को दिल से लगाया मत कर| ये तो उल्लू है!

और माँ चलीं गईं| उन्होंने ये सोचा की उस दीं मैंने भौजी को "भाभी" कहा इस बात को भौजी ने दिल से लगा लिया और खाना-पीना छोड़ दिया|

आज सात साल में पहली बार मैंने भौजी को छुआ! मैंने उनका हाथ पकड़ा और अपने दोनों हाथों के बीच में रख के उन्हें दिलासा देने लगा|

मैं: क्यों किया ये?

भौजी: खुद को सजा दे रही थी....आपके साथ जो मैंने अन्याय किये ...उसके लिए!

मैं: पर मैंने आपको माफ़ कर दिया...दिल से माफ़ कर दिया|

भौजी: पर मुझे अपनाया तो नहीं ना?

मैं: मैं...... शायद अब मैं आपसे प्यार नहीं करता!

ये सुन के भौजी की आँखें भर आईं...

भौजी: कौन है वो लड़की? (उन्होंने सुबकते हुए पूछा)

मैं: 2008 में कोचिंग में मिली थी....बस उससे एक बार बात की ....अच्छी लगी...दिल में बस गई.... पर मई में एग्जाम थे...उस एग्जाम के बाद इस शहर में वो लापता हो गई| आज तक उससे बात नहीं हुई.... या देखा नहीं?

भौजी: तो आप मुझे भूल गए?

मैं: नहीं.... आपको याद करता था.... पर याद करने पे दिल दुखता था....वो दुःख शक्ल पे दीखता था....और मेरा दुःख देख के माँ परेशान हो जाया करती थी| इसलिए आपकी याद को मैंने सिर्फ सुनहरे पलों में समेत के रख दिया| उस टेलीफोन वाली बात को छोड़के सब याद करता था....

भौजी: आपने कभी उस लड़की से कहा की आप उससे प्यार करते हो?

मैं: नहीं.... इतनी अच्छी लड़की थी की उसका कोई न कोई बॉयफ्रेंड तो होगा ही! अब सीरत अच्छी होने से क्या होता है? शक्ल भी तो अच्छी होनी चाहिए?

भौजी: (उठ के बैठ गईं और बेडपोस्ट का सहारा ले के बैठ गईं) जो लड़की शक्ल देख के प्यार करे क्या वो प्यार सच्चा होता है?

मैं: नहीं .... (मैंने बात बदलने की सोची, क्योंकि मुझे उनकी हेल्थ की ज्त्यादा चिंता थी ना की मेरे love relationship की, जो की था ही नहीं) मैं...अभी आता हं...माँ ने आपके लिए सूप बनाया होगा|

मैं उठ के जाने लगा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और जाने नहीं दिया|


 भौजी: माँ ने कहा था की वो आपको फोन कर की बुलाएंगी...और अभी तो फोन नहीं आया ना? आप बैठो ..आज आप अच्छे मूड में हो...मुझे आपसे बहुत सारी बातें करनी है| पता नहीं क्यों पर मुझे लग रहा है की आप कुछ छुपा रहे हो?

मैं: नहीं तो....

भौजी: शायद आप भूल गए पर हमारे दिल अब भी connected हैं! बताओ ना....प्लीज?

मैं: मैं .... आपको कभी भुला नहीं पाया...पर ऐसे में उस नै लड़की का जादू...... मतलब मुझे ऐसा लगा की मैं आपके साथ दग़ा कर रहा हूँ!

भौजी: Did you got physical with her?

मैं: कभी नहीं...मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता| मतलब इसलिए नहीं की मैं आपसे प्यार करता था...या हूँ...पर इसलिए की मैं उस लड़की के बारे में आज तक मैंने ऐसा कुछ नहीं सोचा|

भौजी: फिर ...क्यों लगा आपको की आप मुझे cheat कर रहे हो?

मैं: मतलब....आप के होते हुए मैं एक ऐसी लड़की के प्रति "आकर्षित" हो गया...जिसे ......(मैंने बात अधूरी छोड़ दी)

भौजी: What did you just say? "आकर्षित"....O ...... समझी.....!!! It’s not LOVE….. its just attraction!!! Love and attraction are different?

मैं: How can you say this? I mean…मुझे वो अच्छी लगती है...

भौजी: You know what? मुझे सलमान खान अच्छा लगता है....तो क्या I’m in love with him? Its just you were attracted to her….और कहीं न कहीं दोष मेरा भी है...बल्कि देखा जाए तो दोष मेरा ही है| ना मैं उस दिन आपसे वो बकवास करती और ना ही आपका दिल टूटता! जब किसी का दिल टूटता है ना तो वो किसी की यादों के साथ जी ने लगता है| जैसे मैं आपकी यादों...मतलब आयुष के सहारे जिन्दा थी| आपके पास मेरी कोई याद नहीं थी...शायद वो रुमाल था?

मैं: था....गुस्से में आके मैंने ही उसे धो दिया!

भौजी: See I told you ! गुस्सा....मेरी बेवकूफी ने आपको गुस्से की आग में जला दिया| आपको सहारा चाहिए था....आपका दोस्त था पर वो भी आपके साथ emotionally तो attached नहीं था| ऐसे में कोचिंग में वो लड़की मिली...जिसके प्रति आप सिर्फ attract हो गए| That's it ! मैं जहाँ तक आपको जानती हूँ...अगर मैंने वो बेवकूफी नहीं की होती तो आप कभी किसी की तरफ attract नहीं होते| मैंने आपको कहा भी था की You’re a one woman man! ये मेरी गलती थी....मैं आपके भविष्य के बारे में जयादा सोचने लगी...वो भी बिना आपसे कुछ पूछे की मेरे इस फैसले से आपको कितना आघात लगेगा? मेरे इस कठोर फैसले ने आपको अपने ही बेटे से वंचित कर दिया...आपको नेहा से दूर कर दिया.... पर मैं सच कह रही हूँ...मैं कभी नहीं सोचा था की मेरे एक गलत फैसले से हम दोनों की जिंदगियाँ तबाह हो जाएँगी?

मैं: I’m still confused! मुझे अब भी लगता है की मैं उससे प्यार करता हूँ? मैं उसकी जन्मदिन की तारिख अब तक नहीं भुला...उहर साल उसके जन्मदिन पे उसकी ख़ुशी माँगता हूँ|

भौजी: क्या आप दिषु के जन्मदिन पे उसकी ख़ुशी नहीं मांगते? वो आपका Best friend है ना?

मैं: हाँ माँगता हूँ| मैं तो आपके जन्मदिन पर भी आपकी ख़ुशी माँगता हूँ?

भौजी: See ..... आप सब के जन्मदिन पे उनकी ख़ुशी चाहते हो.... That doesn’t make her special? मैं आपको गुमराह नहीं कर रही..बस आपके मन में उठ रहे सवालों का जवाब दे रही हूँ| वो भी आपकी पत्नी बनके नहीं बल्कि एक Neutral इंसान की तरह|

मैं: तो मैं उसके बारे में क्यों सोचता हूँ?

भौजी: सोचते तो आप मेरे बारे में भी हो?

मैं: Look may be you’re right or maybe not…but I…I ….can’t decide anything now.

भौजी: Take yor time…or may be ask Dishu, he’ll help you!

मैं: थैंक्स...मेरे दिमाग में उठे सवालों का जवाब देने के लिए|

भौजी: नहीं...अभी भी कुछ बाकी है

मैं: क्या?
भौजी ने आयुष को आवाज लगाईं| वो घर के बहार ही गली में खेल रहा था, अपनी मम्मी की आवाज सुन के वो भगा हुआ अंदर आया|


 भौजी: बेटा बैठो मेरे पास|

आयुष मेरे पास बैठ गया| कमरे में बस मैं. भौजी और आयसुह ही थे|

भौजी: बेटा ये आपके पापा हैं...

मैंने भौजी के मुँह पे हाथ रख के उन्हें चुप कराया पपर वो नहीं मानी और मेरा हाथ हटा दिया और अपनी बात पूरी की|

भौजी: बेटा..मैंने आपको बताया था न की आपके पापा शहर में पढ़ रहे हैं|

आयुष ने हाँ में गर्दन हिलाई और फिर मेरी तरफ देखने लगा| मैं अब खुद को रोक नहीं पाया और मन में उठ रही तीव्र इच्छा प्रकट की;

मैं: बेटा...आप एक बार मेरे गले लगोगे?

आयुष ने बिना कुछ सोचे-समझे ...मेरे गले लगा गया.... उस एहसास के लिए मैं सालों से तरस रहा था और उस एहसास का वर्णन मैं बस एक लाइन में कर सकता हूँ:

"मुझे ऐसा लगा जैसे सवान के प्यास को, तकदीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया हो|"

कालेज जो गुस्से की आग में पिछले सात सालों से जल रहा था उसे आज जाके ठंडक मिली हो| मेरी आँखें भर आईं और तभी आयुष बोला;

आयुष: पापा

उसके मुँह से ये शब्द सुन के मेरे सारे अरमान पूरे हो गए| उस समय मैं दुनिया का सब से खुशनसीब इंसान था! इस ख़ुशी का इजहार आँखों ने "नीर" बहा के किया! इस पिता-पुत्र के मिलान को देख भौजी की आँखें भी भर आईं| मैंने आयुष को खुद से अलग किया और उसके गालों को माथे को चूमने लगा| आज जो भी गुस्सा अंदर भरा हुआ था वो प्यार बनके बहार आ गया|

मैं: बेटा I missed you so much !!!

अब मुझे ग्लानि महसूस होने लगी थी| मैंने भौजी को कितना गलत समझा! उन्होंने मुझसे दूर होते हुए भी मेरे बच्चों के मन में मेरी याद जगाय राखी और मैं यहाँ अपने गुस्से की आग में जलता रहा और उन्हें दोष देता रहा? अब मुझे इसका confession उनके सामने करना बहुत जर्रुरी था|


 मैं: बेटा...नेहा को बुला के लाना|

आयुष नेहा को बुलाने चला गया|

भौजी: उस दिन आयुष ने पहली बार आपको देखा था..अब तक तो वो सिर्फ तस्वीर ही देखता था और तस्वीर में आपकी दाढ़ी-मूंछ नहीं थी ना....इसलिए आपको पहचान नहीं पाया|

मैं: I get it! वैसे आपने आयुष को बताय की वो सब के सामने मुझे "पापा" नहीं कह सकता?

भौजी: ये मैं कैसे कह सकती थी? मैं तो चाहती हूँ कि वो हमेशा आपको पापा ही कह के बुलाये|

मैं: आप जानते हो की ये Possible नहीं है| खेर मैं उससे बात कर लूँगा|

इतने में आयुष और नेहा दोनों आ गए| नेहा आके मेरे पास कड़ी हो गई और आयुष मेरे सामने भौजी के पास बैठ गया|

मैं: बेटा आपसे एक बात कहनी है| I hope आप समझ पाओगे| (एक लम्बी सांस लेते हुए) आप मुझे सब के सामने "पापा" नहीं कह सकते| (एक लम्बी सांस छोड़ते हुए) सिर्फ अकेले में ही ...आप कह सकते हो? आपकी दीदी भी ये बात जानती है|

आयुष: पर क्यों पापा?

मैं: बेटा.... (अपने माथे पे पड़ी शिकन पे हाथ फेरते हुए) मैं आपकी माँ को कितना प्यार करता हूँ ...ये कोई नहीं जानता...ये एक सीक्रेट है.... ये बात अब बस हम चार ही जानते हैं! नेहा मेरी बेटी नहीं है पर फिर भी मैं उसे आपके जितना ही प्यार करता हूँ...और आप...आप तो मेरा अपना खून हो... उस समय हालात ऐसे थे की हम (मैं और भौजी) एक हो गए| खेर उस बारे में समझने के लिए अभी आप बहुत छोटे हो और वैसे आपको वो बात जननी भी नहीं चाहिए? I hope आप समझ गए होगे|

आयुष ने हाँ में सर हिलाया, फिर मैंने उसे पुरस में से पचास रूपए दिए और दोनों को समोसे वगेरह लाने को भेज दिया| 


 इतने में मैंने सोचा की मैं अपने दिल की बात उन्हें कह ही दूँ;

मैं: I’ve a confession to make! मैंने आपको बहुत गलत समझा...बहुत...बहुत गलत.... जब से आप आये हो तब से आपको टोंट मारता रहा ...और उस दिन मने बिना कुछ जाने आपको इतना सब कुछ सुना दिया|..I’ve been very…very rude to you and for that I’m extrememly Sorry! आप मुझसे दूर हो के भी मुझे भुला नहीं पाये और इधर मैं आपको भुलाने की दिन रात कोशिश करता रहा|आपने हमारे बेटे का नाम भी वही रखा जो मैं उसे देना चाहता था..उसे वो सब बातें सिखाईं जो मैं सिखाना चाहता था...उसे आपने… मेरे बारे में भी बताया.... अगर मैं चाहता तो ये सब बात भुला के आपसे मिलने आ सकता था...आपकी, नेहा और आयुष की खोज-खबर ले सकता था| पर नहीं....मैं अपनी जूठी अकड़ और रोष की आग में जलता रहा| ये सब सुन के और देख के मुझे बहुत ग्लानि हो रही है| मैं शर्म से गड़ा जा रहा हूँ|

मेरी आँखें नम हो चलीं थीं|

भौजी: Hey ? What're you saying? You’re not wrong! गलती मेरी थी...मैं जानती थी की मेरी बात से आप को कितनी चोट लगेगी? पर मैंने एक पल के लिए भी ये नहीं सोच की आप पर क्या बीतेगी? आप कैसे झेल पाओगे? और आपका गुस्सा...बाप रे बाप! उसे कैसे मैं भूल गई? आपको जब गुस्सा आता है तो आप क्या-क्या करते हो ये जानती थी....फिर भी...बिना सोचे-समझे...मैंने वो फैसला किया! और आप खोज-खबर कैसे लेते? मैंने आपको फोन करने को जो मन किया था...और जहाँ तक मैं जानती हूँ...आप मेरी वजह से इतने गुस्से में थे की आपको तो गाँव आने से ही नफरत हो गई होगी| I was so stupid…. I mean I should have asked you…atleast for once? ना मैं ऐसा फैसला लेती और ना ही आज आपको इतनी तकलीफ झेलनी पड़ती|

मैं: तकलीफ...तकलीफ तो आप झेल रहे हो! बीमार आप पड़े हो.... मैं तो कुछ न कुछ खा लिया करता था पर आपने तो खुद को मेरी गलती की सजा दे डाली|

भौजी: Oh comeon ! Lets forget everthing …and start a fresh!

मैं: That is something I’ll have to think about!

आगे बात नहीं हो पाई और माँ का फोन आ गया की; "सूप तैयार हो गया है| आके ले जा और अपने सामने बहु को पिला दिओ|" फोन रखा ही था की इतने में बच्चे आ गए| मैं उन्हें वहां बैठा के घर आया और थर्मस में स्पूप ले के लौट आया| मैंने अपने हाथों से उन्हें वो सूप पिलाया और इधर नेहा, आयुष और मैं हम समोसे खा रहे थे| Finally सब खुश थे! पर अब भी कुछ तो था….. जो नहीं था! भौजी और चन्दर भैया को आये हफ्ता होने आया था...और अभी बच्चों का स्कूल में एडमिशन कराना बाकी था| मैंने पिताजी से बात की और पास ही के स्कूल में ले जाके दोनों का एडमिशन करवा दिया| अब बारी थी भौजी का किचन सेट करने की!


 भौजी: जानू...अलग रसोई की क्या जर्रूरत है?

मैं: Hey I’m just following orders!

भौजी: तो क्या आपके अनुसार अलग रसोई होनी चाहिए?

मैं: देखो.... to be honest ...मैं अंडा खाता हूँ! और जैसे की आप जानते हो की हमारे खानदान में सब शुद्ध शाकाहारी है ...ऐसे में .... एक रसोई....मतलब ...दिक्कत हो सकती है|

भौजी: सच में आप अंडा खाते हो? Hwwww !!! और इसके बावजूद आपने मुझे छुआ?

मैं: अरे मैं अंडा खा के थोड़े ही आपको छूता था| जो कुछ भी हुआ वो तब हुआ जब मैंने इन चीजों को हाथ भी नहीं लगाया था|

भौजी: माँ-पिताजी भी खाते हैं?

मैं: नहीं... मैं खुद बनता हूँ..खुद खाता हूँ...and don't woory ....अंडे वाले बर्तन अलग हैं और उसमें आप लोगों ने कभी नहीं खाया| और तो और मैं अंडा...हीटर पे बनाता था!

भौजी: (हँसते हुए बोलीं) पर आपने तो मेरा धर्म भ्रस्ट कर ही दिया|

मैं: हाँ....और साथ-साथ सारे घर का भी! ही..ही..ही... still if you think we shoul have a common kitchen talk to mom.

भौजी: ठीक है….मैं माँ से बात करुँगी|

भौजी ने माँ से पता नहीं क्या बात की...और माँ मान भी गईं तो आब भौजी और हम सब एक साथ खाना खाते हैं और खाना पकाने का काम ज्यादातर भौजी ही देखती हैं| ऐसे करते-करते दिन बीतने लगे...एक दिन की बात है की मेरी तबियत शाम से ठीक नहीं थी...बुखार था और सर दर्द कर रहा था| उसी दिन पिताजी के एक मित्र जो हमारे साथ काम करते हैं उनके घर में गोद-भराई का फंक्शन था और उन्होंने पिताजी और चन्दर भैया को सपरिवार बुलाया|

मैं; पिताजी....मैं नहीं आ पाउँगा..मेरी तबियत ठीक नहीं है|

पिताजी: ठीक है...तू आराम कर|

माँ: ठीक है फिर मैं भी रूक जाती हूँ|

पिताजी: नहीं...गोदभराई में मर्दों का कयाम काम...तुम्हें तो आना ही होगा| फिर मिश्रा जी की पत्नी ने ख़ास कर तुम्हें बुलाया है| ये अकेला रह लेगा|

मैं: हाँ माँ...आप जाओ...मैं वैसे भी सोने ही जा रहा हूँ|

चन्दर भैया: चाचा ... बच्चों को यहीं छोड़ देते हैं मानु भैया के पास|

पिताजी: ठीक है ...वैसे भी बहुत दिन हुए इसे कोई कहानी सुनाये|

मैंने नेहा और आयुष को आँख मारी और वो मेरे पास आके बैठ गए|

पिताजी: लो भई इन तीनों का प्रोग्राम तो सेट हो गया|

सब हँस पड़े पर भौजी के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था| उन्होंने हमेशा की तरह घूँघट काढ़ा हुआ था, उन्होंने माँ को अकेले में बुलाया और कुछ कहा|






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