Thursday, December 25, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--80

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--80

अब आगे ....

 मैं शाम को पांच बजे घर पहुंचा और ऐसे एक्टिंग की जैसे सारा दिन लाइन में खड़े रहने से मेरी टांगें टूट गईं हों| पर मेरा मन नहीं कर रहा था उनकी सूरत देखने को...अब मैं उन्हें AVOID करना चाहता था| भौजी गर्ग आंटी के घर में सामान सेट कर रहीं थीं और अब तक मेरी और उनकी मुलाकात नहीं हुई थी और ना ही मैं मिलना चाहता था| पर मैं जानता था की रात को तो मिलना ही पड़ेगा.....इसलिए मैंने उसका भी प्लान बना लिया| मैंने दिषु को sms किया की वो मुझे मिलने आये और किसी बहाने से बहार ले जाए| वो ठीक छः बजे आया;

दिषु: नमस्ते आंटी जी|

माँ: नमस्ते बेटा| कैसे हो? घर में सब कैसे हैं?

दिषु: जी सब ठीक हैं...आप सब को बहुत याद करते हैं|

माँ: बेटा समय नहीं मिल पाता वरना मैं भी सोच रही थी की मैं आऊँ|

और माँ अंदर पानी लेने चली गईं| मैंने दिषु को समझा दिया की उसे क्या कहना है|

माँ: ये लो बेटा...नाश्ता करो|

अब दिषु ने प्लान के अनुसार बात शुरू की|

दिषु: यार डाक्यूमेंट्स जमा हो गए थे?

मैं: हाँ ...ये ले उसकी कॉपी|

दिषु: थैंक्स यार.... नहीं तो एक हफ्ता और लगता|

मैं: यार ... थैंक्स मत बोल|

दिषु: चल ठीक है...ट्रीट देता हूँ तुझे|

मैं: हाँ...ये हुई ना बात| कब देगा?

दिषु: अभी चल

मैं: माँ...मैं और दिषु जा रहे हैं|

माँ: अरे अभी तो कह रहा था की टांगें टूट रहीं हैं|

मैं: अरे पार्टी के लिए मैं हमेशा तैयार रहता हूँ| तू बैठ यार मैं अभी चेंज करके आया|

माँ: ठीक है जा...पर कब तक आएगा?

दिषु: आंटी ....नौ बजे तक| डिनर करके मैं इसे बाइक पे यहाँ छोड़ जाऊँगा|

माँ: बेटा बाइक धीरे चलाना|

दिषु: जी आंटी|

मैं जल्दी से तैयार हो के आया और हम निकल पड़े| दिषु अपनी बाइक स्टार्ट कर ही रहा था की भौजी आ गईं ..उन्होंने मुझे देखा...मैंने उन्हें देखा.... पर फिर अपना attitude दिखाते हुए मैंने हेलमेट पहना और दिषु के साथ निकल गया|

उसके साथ घूमने निकल गया पर बार-बार उनका ख्याल आ रहा था| मुझे लगा की मुझे अपना जूठा attitude या अकड़ नहीं दिखना चाहिए था| ये बात मेरे चेहरे से झलक रही थी...दिषु ने मुझसे मेरी उदासी और भौजी को ignore करने का कारन पूछा, तो मैंने कह दिया की मैं अब फिर से उसी हालत में नहीं पहुँचना चाहता जिससे दिषु ने मुझे निकला था| मैं भला और उस लड़की यादें भलीं| रात को आधे नौ बजे घर पहुंचा...जानबूझ कर लेट आया था क्योंकि मैं चाहता था की मेरे आने तक भौजी चली जाएं और मुझे उनका सामना ना करना पड़े| पर भौजी माँ के साथ बैठी टी.वी. पे सास-बहु का सीरियल देख रहीं थीं| मैं आया और माँ को गुड नाईट बोल के अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर के लेट गया| 


पर अगले दिन कुछ इस प्रकार हुआ| मैं सो के लेट उठा....दस बजे उठ के तैयार हो के नीचे आया तो माँ ने कहा;

माँ: बेटा...तेरी भौजी के घर में ये सिलिंडर रख आ| चूल्हा तेरे पिताजी आज-कल में ला देंगे|

अब माँ का कहा मैं कभी नहीं टालता था तो मजबूरन मुझे सिलिंडर उठा के उनके घर जाना पड़ा| उनके घर पहुँच कर मैंने दरवाजा खटखटाया और उन्होंने दरवाजा खोला, उनके मुँह पर मुझे देखने की ख़ुशी झलक रही थी|

भौजी: जानू ... यहाँ रख दीजिये|

मैंने सिलिंडर रखा और जाने लगा तो भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रखा और मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे गले लग गईं| उन्होंने मुझे कस के गले लगा लिया, वो अपने हाथ मेरी पीठ पे फ़िर रहीं थीं| पर मैंने अपने हाथ मेरी पेंट की जेब में ठुसे थे| मैंने उन्हें जरा भी छुआ नहीं... कोई अगर देखता तो ये ही कहता की भौजी मेरे गले लगी हैं ...मैं नहीं!

मैं: OK …let go of me!

भौजी: आप मुझसे अब तक नाराज हो?

मैं: हुंह...नाराज.... किस रिश्ते से?

भौजी: प्लीज मुझे माफ़ कर दो...मुझे आपको वो सब कहने में कितनी तकलीफ हुई थी...मैं बता नहीं सकती| ग्यारह दिन तक खुद को रोकती रही आपको कॉल करने को पर.....मैं नहीं चाहती थी की मैं या नेहा आपके पाँव की बेड़ियां बने! प्लीज ...प्लीज मुझे गलत मत समझो!!!

मैं: (उन्हें खुद से अलग करते हुए) तकलीफ? ...इसका मतलब जानते हो आप? पूरे सात साल...Fucking सात साल....आपको भूलने में ...... और आप ग्यारह दिन की बात करते हो? आपने मुझे कुछ कहने का मौका तक नहीं दिया ...अपनी बात रखने का हक़ नहीं था क्या मुझे? कितनी आसानी से आपने कह दिया की; "भूल जाओ मुझे"? हुंह.... आपने मुझे समझा क्या है...? मुझे खुद से ऐसे अलग कर के फेंक दिया जैसे कोई मक्खी को दूध से निकाल के फेंक देता हो! जानते हो की मुझे कितनी तकलीफ हुई होगी... मैं ...मैं इतना दुखी था..इतना तड़प रहा था की.... आपने कहा था की मैं पढ़ाई पे ध्यान दूँ ... और मेरे सेकंड टर्म में कम नंबर आये सिर्फ और सिर्फ आपकी वजह से! इन सात सालों में आपको मेरी जरा भी याद नहीं आई? जरा भी? मैं कहना तो नहं चाहता पर, I feel like… like you USED ME! और जब आपका मन भर गया तो मुझे छोड़ दिया...मरने को? आप ने जरा भी नहीं सोचा की आपके बिना मेरा क्या होगा? मैं मर ही जाता ...अगर मेरा दोस्त दिषु नहीं होता! यही चाहते थे ना आप?

भौजी अब बिलख के रो पड़ीं थीं|

मैं: मेरे बारहवीं पास होने पे फोन नहीं किया...ग्रेजुएट होने पर भी नहीं.... इतना ही नहीं...आपने आयुष(भौजी और मेरा बेटा) के पैदा होने पर भी मुझे फोन तक नहीं किया? एक फोटो तक नहीं भेजी आपने? उसकी आवाज तक नहीं सुनाई? कोई किसी से ऐसा करता है क्या? किस गुनाह की सजा दी आपने मुझे? की आपने मुझे ऐसी सजा सुनाई? आपने तो मुझे ऐसी गलती की सजा दी जो मैंने कभी की ही नहीं! सजा देते समय आपको नेहा के बारे में जरा भी ख्याल नहीं आया? (एक लम्बी साँस लेते हुए) और इतना सब के बाद आप मुझसे कहते हो की क्या मैं आपसे नाराज हूँ?

मैंने उन्हें वो सब सुना दिया जो इतने सालों से मेरे अंदर दबा हुआ था|


 भौजी रो रहीं थीं...मैं उन्हें चुप करा सकता था....उनके आँसूं पांच सकता था... पर मैंने ऐसा नहीं किया| मैं उनहीं रोता-बिलखता छोड़ के जाने लगा तभी मुझे दो बच्चे घर में घुटे हुए दिखाई दिए| ये कोई और नहीं बल्कि नेहा और आयुष थे| नेहा अब XX साल की हो गई थी और आयुष की उम्र तो आप समझ ही चुके होंगे| आयुष ने तो मुझे नहीं पहचाना पर नेहा पांच सेकंड तक मुझे देखती रही पर फिर वो भी अंदर चली गई| दोस्तों आब जरा सोच के देखो की अगर कोई आपके साथ ऐसा करे ओ दिल को कितनी ठेस पहुँचती है| मैं उन बच्चों को छूना चाहता था.... पर छू न सका! कुछ कहना चाहता था...पर कह ना सका! गले लगाना चाहता था पर ....नहीं लगा सका| भौजी अंदर से हमें देख रहीं थीं और इससे पहले वो कुछ कहतीं मैं चला गया| घर आके मैंने खुद को अपने कमरे में लॉक किया और दरव्वाजे ले सहारे बैठ गया और अपने घुटनों में अपना चेहरे छुपा के रोने लगा| वो जख्म जिसपे धुल जम चुकी थी आज किसी ने उस जख्म को कुरेद को हरा कर दिया था| यही कारन था की मैं भौजी से बिलकुल मिलना नहीं चाहता था| दोपहर के भोजन से पहले ही मैं बहाना मार के घर से निकल गया और रात को नौ बजे आया| पिताजी से बड़ी डाँट पड़ी, की तू इस तरह अवरगिर्दी करता रहता है! पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया और उनकी डाँट चुप-चाप सुन के अपने कमरे में जाके सो गया| अगले दिन सुबह जल्दी उठ गया और घर से निकलने ही वाला था की पिताजी ने रोक लिया;

पिताजी: कहाँ जा रहा है?

मैं: जी साइट पे| (मैं पिताजी के साथ ही काम करता था| पिताजी ने बिल्डिंग रेनोवेशन का काम ले लिया था और यही कारन था की उन्होंने चन्दर भैया को अपने साथ काम में लगाने के लिए गाँव से बुलाया था|)

पिताजी: कोई जर्रूरत नहीं...मैंने चन्दर को वहां भेजा है..वो आज प्लंबिंग का काम करवा रहा है, वहां तेरा कोई काम नहीं है| तेरी भौजी ने कहा था की घर में कुछ सफाई और बिजली का कुछ काम है| तू जा और वो काम कर के आ|

मैं: पर मैं अभी नहया हूँ| आप मुझे फिरसे धुल-मिटटी का काम दे रहे हो?

पिताजी: तो फिर से नह लिओ...यहाँ कौन सा सुख पड़ा है जो तुझे नहाने को पानी नहीं मिलेगा| जा जल्दी|

मैं बेमन से उनके घर की ओर चल दिया| तभी मुझे अपना एक वादा याद आया..जो मैंने नेहा से किया था| मैं पहले मार्किट गया ओर उसके लिए एक जीन्स और टॉप खरीदा ओर उसे एक गिफ्ट पैक में wrap कराया और उसमें एक चिप्स का पैकेट भी छुपा के रख दिया, क्योंकि उसे बचपन से चिप्स बहुत पसंद थे| गिफ्ट पैक बहुत मोटा होगया था क्योंकि उसमें चिप्स का पैकेट इस तरह रखा था की जैसे ही कोई गिफ्ट खोलेगा तो उसे सबसे पहले चिप्स का पैकेट दिखेगा| पर पता नहीं उसे अब चिप्स पसंद होंगे या नहीं? आयुष के लिए मैंने एक Toy Plane लिया और उसे भी गिफ्ट पैक कराया| मैं भौजी के घर पहुँचा.... बच्चे घर पे नहीं थे| भौजी ने दरवाजा खोला और मुझे बैठने को कहा| फिर भौजी बहार गईं और उन्होंने बच्चों को आवाज दी| बच्चे बहार खेल रहे थे और भागगते हुए घर आये| दोनों मेरे सामने खड़े थे|

भौजी: आयुष बेटा...नेहा...ये आपके पा....

मैं: (मैंने भौजी की बात एक दम से काट दी|) बेटा मैं आपका चाचा हूँ|

मुझे ये बोलने में कितनी तकलीफ हुई ये मैं आप लोगों को बयान नहीं कर सकता| भौजी आँखें फ़ाड़े मेरी ओर देख रहीं थीं और उन्होंने बात पूरी करनी चाही पर मैंने उन्हें बोलने ही नहीं दिया| मैं चाहता था की उन्हें भी वो दर्द महसूस हो जो मुझे हुआ था जब उन्होंने ये कह के फोन काट दिया की ": मैं कुछ नहीं सुन्ना चाहती ...ये आखरी कॉल था, आजके बाद ना मैं आपको कभी फोन करुँगी और ना ही आप करोगे ..... इतना सब कहने में मुझे बहुत हिम्मत लगी है... आप मुझे भूल जाओ बस|"

मैं: नेहा बेटा....पता नहीं आपको याद होगा की नहीं...पर मैंने एक बार आपको प्रॉमिस किया था की मैं दशेरे की छुटियों में आऊँगा ..और आपके लिए गिफ्ट भी लाऊँगा| (ये कहता हुए मेरी आँखें भर आईं थीं...गाला भारी हो गया था, पर जैसे तैसे खुद को रोका|) हाँ थोड़ा लेट हो गया...सात साल! (ये मैंने भौजी को देखते हुए कहा, उनकी नजरें झुक गई थीं|)

नेहा: थैंक यू (वो कुछ कहने वाली थी पर रुक गई)

मैं: और आयुष बेटा...ये आपके लिए .. (मैंने उसे Toy प्लेन दे दिया|)

आयुष तो खिलौना ले के अंदर कमरे में भाग गया पर नेहा कुछ सोचते हुए अंदर जा रही थी... एक बार का तो मन हुआ की उसे रोक लूँ और पूछूं...पर नहीं| अब मेरा उस पे कोई हक़ नहीं था| आयुष को जब इतना नजदीक देख के उसे छूना चाहा...गले लगाना चाहा...आखिर वो मेरा खून था...पर फिर मैं अपना आपा खो देता इसलिए खुद को रोक लिया|


 भौजी की आँखें छलक आईं थीं पर मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा... मैं भी पांच मिनट तक चुप बैठा रहा और खुद को संभालने की कोशिश करता रहा| आखिर पांच मिनट बाद में बोला;

मैं: तो ...कहिये "भाभी" क्या काम है आपको?

मेरे मुँह से भाभी शब्द सुन के भौजी मेरे पास आके बैठ गईं और उनकी आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी|मैंने जान-बुझ के वो शब्द कहा था.... कारन साफ़ था!

मैं: क्या हुआ? (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) मैं जा रहा हूँ!

भौजी: (अपने आँसूं पोछते हुए) आप तो मुझे "जान" कहके बुलाया करते थे ना?

मैं: कहता था....जबतक आपने मुझे ऐसे अपराध की सजा नहीं दी थी जो मैंने किया ही नहीं था| और अब रहा ही क्या....जो मैं आपको जान कहके बुलाऊँ?

भौजी: कुछ नहीं रहा हमारे बीच?

मैं: नहीं.... मैं किसी और से प्यार करता हूँ|

भौजी ये सुनते ही रो पड़ीं और मुझे उन्हें रुला के बुरा लग रहा था पर फिर मैं ऐसे दिखा रहा था की मुझे कोई फर्क नहीं पद रहा है| पर ये मेरा दिल जानता है की मुझे पे उस पल क्या बीत रही थी|

भौजी: ठीक है .... (उन्होंने सुबकते हुए पूछा)

मैं: तो कुछ काम है मेरा की मैं जाऊँ?

भौजी कुछ नहीं बोलीं...इतने में मुझे अंदर से बच्चों के खेलने की आवाज सुनाई देने लगी...मैं एक कदम चला और फिर रूक गया|

भौजी: आप आयुष को गले नहीं लगाओगे?

मैं: किस हक़ से? ओह...याद आया....चाचा जो हूँ उसका! (मैंने भौजी को फिर टोंट मार|)

भौजी: आप ऐसा क्यों कह रहे हो?

मैं:हुंह...मैं....ऐसा क्यों कह रहा हूँ? मेरी बात का जवाब दो; क्या आपने उसे बताय की मैं उसका क्या हूँ? ये तो छोडो आपने उसे मेरे बारे में कुछ भी बताया?

भौजी: कैसे बताती ...आप कभी आये ही नहीं मिलने?

मैं: कैसे आता...आपको उस दिन कहना चाहता था की मेरे स्कूल की दशेरे की छुटियाँ पंद्रह अक्टूबर से सगुरु होंगी...पर आपने मेरी बात ही नहीं सुनी| और विासे भी मेरी तस्वीर तो थी ना आपके पास?

भौजी का सर ऑफर से झुक गया| मैं जाने लगा तो नेहा बाहर आई और मेरी कमीज पीछे से पकड़ के खींचते हुए बोली;

नेहा: पापा

उसके मुँह से पापा सुनते ही मैं घटनों पे जा गिरा और उसके गले लग गया| नेहा भी मुझे कस के गले लग गई और हम दोनों की आँखें भर आईं|

नेहा: (मैंने नेहा के आँसूं पोछे) पापा I missed you so much ! आपने कहा था ना की आप मुझसे मिलने दशेरे की छुटियों में आओगे? पर क्यों नहीं आये आप?

मैंने एक पल को तो सोचा की मैं उसे सब सच बता दूँ...पर फिर रूक गया| क्योंकि मैं जानता था की असल बात जानेक वो अपनी ही माँ से नफरत करेगी इसलिए मैंने सारा इल्जाम अपने सर ले लिया|

मैं: बेटा.... वो मैं......Sorry !!! मैं अपना वादा पूरा नहीं कर पाया| (नेहा मेरे आँसूं पोछते हुए बोली)

नेहा: It's okay पापा| अब तो आप कहीं नहीं जाओगे ना?

मैं: नहीं बीता...मैं यहीं पास रहता हूँ...जब चाहे आ जाना| और याद रहे ये पापा वाला सीक्रेट हमारे बीच रहे|

नेहा ने हाँ में सर हिलाया और मैं जाने लगा की एक पल की लिए ठहरा और भौजी की ओर देखने लगा| उनका चेहरे को देख के ये समझ नहीं आया की वो खुश हैं की दुखी?


 मैं जाने लगे तो भौजी ने अपने आंसूं पोछे और बोलीं;

भौजी: जानू...प्लीज !!!

मैं रूक गया पर मेरी पीठ उनकी ओर थी और फिर उन्होंने आयुष को आवाज मारी| नेहा ने मेरी ऊँगली पकड़ के मुझे रोक लिया|

भौजी: आयुष...बेटा इधर आओ....

आयुष बाहर आ गया, उसके हाथ में वही टॉय प्लेन था| मैं उसकी तरफ मुड़ा ओर एक बार को मन किया की उसे गले लगा लूँ...पर रूक गया|

भौजी: बेटा ये आपके पापा हैं|

मैं: (मैंने फिर उनकी बात को संभालते हुए कहा) चाचा ..मैं आपका चाचा हूँ.... और बेटा Thanks कहने की कोई जर्रूरत नहीं| आप जाओ और अपनी दीदी के साथ खेलो|

मैंने नेहा को आयुष के साथ खेलने का इशारा किया और वो उसके साथ भीतर चली गई| अब हॉल में बस मैं ओर भौजी ही रह गए थे| भौजी फिर से रोने लगीं.... उन्हें रोता हुआ देख मेरा भी दिल भी पसीज गया...पर मैंने उन्हें अब भी सहारा नहीं दिया| क्योंकि जब मैं रो रहा था तब मुझे सहारा देने वाला कोई नहीं था... उन्हें इसका एहसास करना जर्रुरी था!

फिर मैंने ही बात शुरू जी;

मैं: क्यों जबरदस्ती के रिश्ते बाँध रहे हो?

भौजी: (आसूँ पोछते हुए) जबरदस्ती के? वो आपका बेटा है...आपका अपना खून ...

मैं: Thanks बताने के लिए! (मैंने उन्हें फिर टोंट मारा)

भौजी: प्लीज...प्लीज ...एक बार मेरी बात सुन लो? ...प्लीज...प्लीज....

मैं: चहुँ तो मैं अभी जा सकता हूँ...और आप भी जानते हो की मैं कभी नहीं लौटूंगा और जो सफाई आप देना चाहते हो आपके अंदर ही दब कर रह जाएगी| पर मैं आपकी तरह नहीं हूँ....आपने तो मुझे अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया था...पर मैं अवश्य दूँगा| बोलो क्या बोलना है आपको? (मैं हाथ बांधे खड़ा हो गया|)


 भौजी: मैंने आपका इस्तेमाल कभी नहीं किया...मेरे मन में कभी भी ऐसा ख्याल नहीं आया की मैं आपको USE कर रही हूँ| आप के कारन टी मुझे परिवार में वो इज्जत वापस मिली...वो प्यार वापस मिला...नेहा को उसके दादा-दादी का प्यार मिला.... प्लीज मुझे गलत मत समझिए! मैंने खुद को आपसे दूर इसीलिए किया ताकि आप पढ़ाई में अपना मन लगा सको!

मैं: Oh please! Don’t gimme that bullshit story again! क्या मैंने कभी आपसे कहा की मैं पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पा रहा? क्या कभी आपने मुझसे पूछा की मैं पढ़ाई ठीक से कर रहा हूँ या नहीं? आप मेरी Inspiration थे! दिन में बस एक घंटा ही तो आपसे बात करता था...बस.... इससे ज्यादा मैंने कभी आपसे कुछ माँगा? आपके साथ डेढ़ महीना बिताने के बाद सिर्फ 15 दिन....fucking 15 दिन में सारा holiday homework खत्म कर दिया! What else you want me to do? What if I;ve commited suicide over our last telephonic conversation? Would you ever be able to forgive yourself?

भौजी: प्लीज...प्लीज... Don’t say this! मैं मानती हूँ की गलती मेरी थी...मुझे फैसला लेने से पहले आपको पूछना चाहिए था? मैंने बहुत बड़ी गलती की है...Punish Me !

मैं: Punish You ? You gotta be kidding me! ये इतनी छोटी गलती नहीं है की मैं आपको उठक-बैठक करने की सजा दूँ और बात खत्म! आपने.... You ruined everything…everything!

भौजी अपने घुटनों पे गिर गईं और बिलख-बिलख के रोने लगीं| उन्होंने मेरे पाँव पकड़ लिए! अब तो मेरा भी सब्र भी टूटने लगा था, मैंने उनहीं खुद से अलग किया और मैं तीन कदम पीछे गया और बोला;

मैं: Despite everything you did to me……. I forgive you! This is the least I can do!

इसके आगे मैंने उनसे कुछ नहीं कहा और वहां से चला आया|दोपहर को भोजन के समय हम अब बैठ के खाना खा रहे थे| हमारे घर में ऐसा कोई नियम नहीं की आदमी पहले खाएंगे और औरतें बादमें पर चूँकि भौजी को इसकी आदत नहीं थी तो वो हमारे साथ खाने के लिए नहीं बैठीं थीं| हम भोजन कर रहे थे की मुझे सलाद चाहिए था तो मैंने भौजी को कहा;

मैं: भाभी....सलाद देना|

पिताजी: क्यों भई...तू तो बहु को भौजी कहा करता था? अब भाभी कह रहा है?

मैं: जी तब मैं छोटा था....अब बड़ा हो चूका हूँ|

पिताजी: हाँ..हाँ बहुत बड़ा हो गया?

इतने में पिताजी का फोन बजा, साइट पे कोई पंगा हो गया था तो उन्हें और चन्दर भैया को तुरंत निकलना पड़ा| अब टेबल पे मैं, नेहा, आयुष और माँ ही बैठे थे|

माँ: बहु...तू भी आजा...

भौजी कुछ बोलीं नहीं...उन्होंने अब तक घूँघट काढ़ा हुआ था| वो भी अपनी प्लेट ले कर बैठ गईं| मैं उन्हें की तरफ देख रहा था..तभी मुझे टेबल पे टपकी उनकी आँसूं की बूँद दिखी| मैंने अपने माथे पे हाथ रख के चिंता जताई...फिर मैं आगे कुछ नहीं बोला और भोजन आधा छोड़के उठ गया|

माँ: तू कहाँ जा रहा है...खाना तो खा के जा?

मैं: सर दर्द हो रहा है...मैं सोने जा रहा हूँ|

मैं अपने कमरे में जाके बैठ गया| कुछ पांच मिनट बाद दरवाजा खुला और भौजी अंदर आईं| उनके हाथ में प्लेट थी ...

भौजी: जानू...खाना खा लो? चलो?

मैं: मूड नहीं है...और Sorry .....

मैंने उन्हें "भाभी" कहने के लिए Sorry बोला|

भौजी: पहले जख्म देते हो फिर उसपे Sorry की मरहम भी लगा देते हो? अब चलो खाना खा लो?

मैं: नहीं...मुझे कुछ जर्रुरी काम याद आगया...

भौजी: जानती हूँ क्या जर्रुरी काम है| चलो वार्ना मैं भी नहीं खाऊँगी?

मैं: आपकी मर्ज़ी|

और मैं कमरे से बहार चला गया और माँ को बोल गया की मैं साइट पे जा रहा हूँ... रात तक लौटूंगा|








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