FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--90
बच्चों को स्कूल छोड़ मैं काम पे निकल गया...और रात को आने में देर हो गई| भौजी ने खाना खा लिया था... और वो मुझ पर बहुत गुस्सा थीं|
भौजी: आपने एक कॉल तक नहीं किया? इतना busy हो गए थे?
मैं: जान फ़ोन की बैटरी discharge हो गई थी...इसलिए नहीं कर पाया ... मैं जानता हूँ की आपने खाना नहीं खाया है...I'm Sorry !
भौजी: नहीं...मैंने खाना खा लिया|
उनका जवाब बड़ा रुखा था और वो अपने कमरे में चली गईं| मैंने माँ से पूछा तो उन्होंने बताया की हाँ भौजी ने सब के साथ बैठ के खाना खाया था|उन्होंने रात को बच्चों को मेरे पास भी सोने नहीं दिया... दिवाली आने तक उनका व्यवहार अचानक मेरे साथ रूखा हो गया था.... बात-बात पे चिढ़ जातीं ....गुस्से में बात करती...फोन नहीं उठातीं....तो कभी-कभी इतने फोन करती की पूछो मत| आखिर दिवाली आ ही गई और आज वो बड़ी चुप थीं| सुबह पिताजी ने मुझे डाइनिंग टेबल पे बिठा के कुछ बात की;
पिताजी: बेटा हमारा प्रोजेक्ट फाइनल हो चूका है ...और ये तो तूने सारा काम संभाल लिया...वरना बहुत नुक्सान होता| ये ले चेक ...जैसा तूने कहा था...इन पैसों की तू नेहा और आयुष के नाम की FD बना दे और तेरे हिस्से का प्रॉफिट मैंने तेरे अकाउंट में डाल दिया है|
मैं: जी बेहतर!
मैंने मुड़ के भौजी की तरफ देखा तो उनका मुंह अब भी उतरा हुआ था| मैं सारी बात समझ गया|
मैं: पिताजी...दिवाली के लिए कुछ खरीदारी करनी है...तो आप की आज्ञा हो तो मैं इन्हें (भौजी), माँ और बच्चों को ले जाऊं?
पिताजी: बेटा आज मुझे तेरी माँ के साथ मिश्रा जी के यहाँ जाना है| दिवाली का दिन है...उन्हें मिठाई दे आते हैं| तू अपनी भौजी और बच्चों को ले जा|
मैं: जी ठीक है|
हम सारे तैयार हो के एक साथ निकले| मैं भौजी को सामान खरीदने के लिए बाजार ले गया| बच्चे इन दिनों में अपनी मम्मी से मिल रहे रूखेपन के करण उन से नाराज थे और मुझसे बातें करते थे और भौजी के आते ही चुप हो जाते थे| आज भी दोनों चुपचाप चल रहे थे|
मैं: नेहा...बेटा आपने स्कूल में रंगोली बनाई थी?
नेहा: जी पापा ...
मैं: तो यहाँ घर पे बनाओगे?
नेहा: हाँ (उसकी आँखें चमक उठीं)
मैं: ये लो पैसे और जो सामान लाना है ले लो...
भौजी: लोई जर्रूरत नहीं...घर पे सब रखा है|
नेहा सेहम गई और वापस मेरे पास आ गई|
मैं: आप चलो मेरे साथ...मैं आपको सामान दिलाता हूँ|
नेहा ने एक नजर भौजी को देखा और फिर से सेहम गई और जाने से मना कर दिया|
मैं: उनको मत देखो...चलो मेरे साथ!
मैं जबरदस्ती उन्हें दूकान में ले गया और रंग वगेरह खरीद दिए| फिर आयुष को चखरी, फूलझड़ी, अनार और राकेट दिला दिए| वो भी भौजी की तरफ देख के सहमा हुआ था पर मेरे साथ होने से वो कम डरा हुआ था| फिर भौजी ने खुद ही दिए लिए, और जो भी सामान लेना था सब लिया और हम घर आ गए| पिताजी और माँ अभी तक लौटे नहीं थे वो मिश्रा जी के यहाँ लंच के लिए रूक गए थे| घर पर हम अकेले थे....भौजी खाना बनाने लगीं तो मैंने उन्हें ओके दिया, ये कह की मैंने खाना आर्डर कर दिया है|
उन्होंने गुस्से में आके गैस बंद की और अपने कमरे में जाने लगीं तो मैंने उनका हाथ थाम लिया और अपने कमरे में ले आया| बच्चे टी.वी. देखने में व्यस्त थे.....
मैं: बैठो...कुछ बात करनी है|
भौजी बैठ गईं पर अब भी उनका मुँह उदास दिख रहा था|
मैं: जानता हूँ आप ये सब जान बुझ के कर रहे हो| बार-बार गुस्सा हो जाना... मेरे बिना खाए खाना खा लेना....बिना बात के बच्चों को डाँटना...डरा के रखना... और वो सब जो करवाचौथ के बाद आप कर रहे हो|
ये सुनते ही उन्होनेनजरें उठा के मेरी तरफ देखा...
मैं: जान-बुझ के इसलिए कर रहे हो ताकि मैं आपसे खफा हो जाऊँ और पिताजी से बात ना करूँ| है ना?
भौजी: हाँ (और उनकी आँखें छलक आईं)
मैं: और आपको लगा की मैं गुस्से में आपसे नफरत करने लगूंगा और आपको छोड़ दूँगा.... आपने ये सोच भी कैसे लिया?
भौजी रोने लगीं...मुझसे उनका रोना नहीं देखागया और मैं उनके सामने घुटनों पे आ गया और वो मेरे गले लग गईं|
मैं: मेरी एक बात का जवाब दो? क्या आप मुझसे प्यार नहीं करते? आप नहीं चाहते की हम एक साथ रहे ना की इस तरह छुप-छुप के...
भौजी: मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ...बस आपको खोना नहीं चाहती...कल आप पिताजी से वो बात कहेंगे तो वो हमें अलग कर देंगे....
मैं: ऐसा कुछ नहीं होगा...और अगर हुआ तो....मैं आपको भगा के ले जाऊँगा|
भौजी: यही मैं नहीं चाहती...मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से आप अपने माँ-पिताजी से अलग हो जाओ|
मैं: ऐसी नौबत नहीं आएगी....अब चुप हो जाओ ...आज त्यौहार का दिन है| प्लीज....आयुष...नेहा....बेटा इधर आओ|
दोनों बैठक से उठ के मेरे कमरे में आये;
मैं: बेटा मम्मी के गले लगो...
दोनों थोड़ा झिझक रहे थे ...
मैं: देखा आपके जरा सा रुखपन दिखाने से ये आपसे कितना डर गए हैं| बेटा ...मम्मी मुझसे नाराज थीं...और आप पर गुस्सा निकाल दिया|इन्हें माफ़ कर दो और गले लगो|
तब जाके दोनों भौजी के गले लगे|
खेर हम लोगों ने खाना खाया और घर की decoration में लग गए| मैंने छत पे जाके लड़ियाँ लगा दीं और भौजी और नेहा मिलके रंगोली बनाने लगे| माँ-पिताजी के आते -आते घर चमक रहा था! आयुष तो रात होने का इन्तेजार कर रहा था ताकि वो पटके जल सके| भौजी अब खुश लग रहीं थीं.... कुछ देर बाद मेरे नंबर पे अनिल (भौजी का भाई)का फोन आया| उससे बात हुई...और मैंनेफोन भौजी को दे दिया| दरसल भौजी के फोन की बैटरी discharge हो गई थी और उन्हें पता ही नहीं था| मैंने ही उनका फोन चार्जिंग पे लगाया|
रात को पूजा के समय हम लोग कुछ इस तरह बैठे थे| माँ और पिताजी एक साथ फिर मैं और भौजी, नेहा मेरी दाहिनी तरफ बैठी थी और आयुष मेरी गोद में बैठा था| पूजा के बाद हम छत पे आ गए पटाखे जलाने के लिए| आयुष को मैंने सिर्फ फूलझड़ी दी और मैं अनार जलने लगा| अनार के जलते ही वो ख़ुशी से कूदने लगा| नेहा पिताजी के साथ कड़ी-कड़ी ख़ुशी से चीख रही थी| मैंने एक फूलझड़ी जल के नेहा को दी, पहले तो वो डर रही थी फिर पिताजी ने उसके सर पे प्यार से हाथ फेरा तो वो मान गई और मेरे हाथ से फूलझड़ी ले ली| अब बारी थी चखरी जलाने की ..... मैंने आयुष को तरीका बताया और उसने पहली बार कोई पटाखा जलाया| चखरी को गोल-गोल घूमता देख दोनों भाई-बहन के उसके आस-पास कूदने लगे| बच्चों को इस तरह खुश देख मेरी आँखें ख़ुशी के मारे नम हो गईं| भौजी भी उन्हें कूदता हुआ देख खुश थीं| अब बारी थी राकेट जलाने की| अब मैंने अपनी जिंदगी में सिर्फ एक ही राकेट जलाया था जो की ऊपर ना जाके नीचे ही फ़ट गया था| उस दिन के बाद मैंने कभी राकेट नहीं जलाया| इसलिए राकेट जलाने का काम मैंने पिताजी को दिया| अब पिताजी भी बच्चे बन के नेहा और आयसुह के साथ पटाखे जला रहे थे| मैं उठ के माँ और भौजी के पास बैठ गया| टेबल पे कुछ सोन पापड़ी और ढोकला रखा हुआ था| मैं वही खाने लगा तभी माँ और भौजी की बात शुरू हुई;
माँ: बेटा तो कैसी लगी दिवाली हमारे साथ?
भौजी: माँ...सच कहूँ तो ये मेरी अब तक की सबसे बेस्ट दिवाली है| गाँव में ना तो इतनी रौशनी होती है...न ये शोर-गुल| रात की पूजा के बाद शायद ही कोई पटाखे जलाता है| पिछले साल मैंने आयसुह को फूलझड़ी का एक पैकेट खरीद के दिया था.... वो और नेहा तो जानते थे की यही दिवाली होती है! यहाँ आके पता चला की दिवाली क्या होती है!
माँ: बेटा वो ठहरा गाँव और ये शहर! पटाखे तो मानु कभी नहीं खरीदता था...पता नहीं इस बारी कैसे खरीद लिए? जब मैं कहती थी की पटाखे ले आ तो कहता था...माँ धरती पे pollution बढ़ गया है| और आज देखो?
मैं: मैं अब भी कहता हूँ की pollution बढ़ गया है....इसीलिए तो मैं बम नहीं लाया| उनसे noise pollution भी होता है और air pollution भी| रही बात फूलझड़ी और अनार की तो ये तो कुछ भी नहीं है...थोड़ा बहुत तो बच्चों के लिए करना ही होता है|
माँ: ठीक है बेटा ...मैं तुझे कब मना करती थी| अच्छा खाना मांगा ले!
भौजी: पर माँ मैंने पुलाव बना लिया है|
माँ: पुलाव? तुझे कैसे पता की दिवाली पे मैं पुलाव बनाती थी? इस बार तो समय नहीं मिला इसलिए नहीं बना पाई....
भौजी ने मेरी तरफ देख के इशारा किया और माँ समझ गईं|
माँ: हम्म्म....
एक पल के लिए लगा की माँ समझ गईं हों की हमारे बीच में क्या चल रहा है| पर शायद उन्होंने उस बात को तवज्जो नहीं दी और बच्चों को पटाखे जलाते हुए देखने लगीं माँ का ध्यान सामने की तरफ था और इतने में किसी ने दस हजार बम की लड़ी जला दी|
अब कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था...तो मैं भौजी के नजदीक गया और उनके कान में बोला;
मैं: दस मिनट बाद नीचे मिलना|
भौजी: ठीक है|
दरअसल मुझे भौजी को एक सरप्राइज देना था| मैं नीचे की चाभी ले के पहले आ गया| करीब पांच मिनट बाद भौजी भी आ गईं|
मैं: Hey .... क्या हुआ आपको?
भौजी: (नजरें झुकाते हुए) कुछ नहीं|
मैं: Awwww ...
मैंने भौजी को गले लगा लिया और उन्होंने मुझे अपनी बाहों में कस के जकड लिया|
मैं: I got a surprise for you !
मैंने अपने कमरे से उन्हें एक Bengali Design की साडी निकाल के दी| वो सेट पूरा कम्पलीट था और पिछले कुछ दिनों में टेलर मास्टर ने उसे सिल के तैयार कर दिया था|
मैं: इसे पहन लो|
भौजी: आप...आप ये कब लाये?
मैं: काफी दिन हो गए...टेलर मास्टर ने जब तक इसे कम्पलीट नहीं किया मैंने आप से छुपा के रखा| आज मौका अच्छा है...पहन लो फिर drive पे चलते हैं|
भौजी: ड्राइव पे? पर गाडी कहाँ है?
मैं: मैंने आज के लिए किराए पे ली है|
भौजी: पर माँ-पिताजी?
मैं: मैं उन्हें संभाल लूंगा...आप तैयार तो हो जाओ?
भौजी: रुकिए...पहले मैं भी आपको एक सरप्राइज दे दूँ|
भौजी फटाफट अपने कमरे में गईं और मेरे लिए एक कुरता-पजामा ले आईं| मैं: आपने ये कब खरीदा? आप तो नाराज थे ना मुझसे?
भौजी: ऑनलाइन आर्डर किया था ...आपके लिए!
मैं: तो ठीक है भई...दोनों तैयार हो जाते हैं|
मैं अपने कमरे में घुसा और वो अपने कमरे में...मैं तो दो मिनट में तैयार हो गया था...और डाइनिंग टेबल पे बैठा उनका इन्तेजार कर रहा था| करीब पंद्रह मिनट बाद वो निकलीं ...."WOW !" बिलकुल दुल्हन की तरह सजी हुई थीं|
भौजी: WoW ! शुक्र है आपको फिट आ गया| मैं तो दर रही थी की कहीं आपको फिट ना आया तो मेरा सरप्राइज खराब हो जायेगा| वैसे ये बताओ की आपको कैसे पता की मेरा ब्लाउज किस साइज का है?
मैं: उम्म्म्म....वो मैंने ..छत पे सुख रहे आपके कपडे....मतलब उस दिन...मैंने आपका ब्लाउज चुराया और माप के लिए दे दिया|
भौजी: अच्छा जी....!!! तो इसमें शर्माने वाली क्या बात है?
मैं: यार मैंने आजतक कभी ऐसा नहीं किया...इसलिए शर्मा रहा था...खेर चलो चलते हैं|
भौजी: ठीक है...आप-माँ पिताजी को बोल आओ|
मैं: आप भी साथ चलो...तो माँ-पिताजी मना नहीं करेंगे|
मैंने पिताजी से ड्राइव पे जाने को कहा तो पिताजी ने रोका नहीं...बच्चे तो वैसे भी पिताजी को पटाखे फोड़ने में लगाय हुए थे| माँ ने बस इतना कहा की बेटा जल्दी आ जाना, खाना भी खाना है| मैंने उन्हें ये नहीं बताया की मैंने गाडी किराए पर ली है वरना वो जाने नहीं देते| हाँ उन्होंने हमारे कपड़ों के बारे में अवश्य पूछा तो मैंने कह दिया की हमने एक दूसरे को गिफ्ट दिया है! जूठ बोलने की इच्छा नहीं थी...और साथ-साथ मैं ये भी चाहता थकी कल की बात के लिए मुझे कुछ BASE भी मिल जाए|
मैं और भौजी फटाफट निकल आये| मैंने गाडी घुमाई और भगाता हुआ इंडिया गेट के पास ले आया, पूरे रास्ते भौजी का सर मेरे कंधे पे था और उन्होंने गाने भी बड़े रोमांटिक लगा दिए थे| सही जगह पहुँच के मैंने गाडी रोकी और भौजी की तरफ मुड़ा|
मैं: Hey ...मूड रोमांटिक हो रहा है?
भौजी: आपके साथ अकेले में समय बिताने को मिले और मूड रोमांटिक ना हो...तो कैसे चलेगा?
मैं: तो चलें बैक सीट?
भौजी: I was hoping you'd never ask!
हम गाडी की बैकसीट पे आ गए| गाडी रोड की एक तरफ कड़ी ही और दिवाली के चलते यहाँ जयदा चहल-पहल नहीं थी| मैंने स्विफ्ट गाडी किराय पे ली थी! भौजी मेरी तरफ देख रहीं थीं और मैं उनकी तरफ| हम दोनों एक दूसरे को प्यासी नजरों से देख रहे थे| अब समय था आगे बढ़ने का.....
हम दोनों ही सीट पे एक दूसरे की तरफ आगे बढे और दोनों ने एक साथ एक दूसरे के लबों को छुआ और बेतहाशा एक दूसरे को चूमने लगे| दोनों की सांसें तेज हो चलीं थीं...दिल जोरों से धड़क रहा था...एक उतावलापन था! तभी अचानक डैशबोर्ड में रखे फोन की घंटी बज उठी! ये अनिल का फोन था....रात के साढ़े नौ बजे...अनिल का फोन? कहीं कोई परेशानी तो नहीं? पहले तो मन किया की भौजी को सब बता दूँ...पर फिर रूक गया...उनका मूड कल को लेके पहले से ही खराब था, वो तो मैं उन्हें ड्राइव पे ले आया तो वो कुछ खुश लग रहीं थीं| मैंने फोन उतहया और चुप-चाप गाडी के बाहर आ गया और फोन पे बात करते-करते आगे गाडी से दूर जाने लगा|
मैं: हेल्लो!
अनजान आवाज: जी नमस्ते.... आपका कोई रिश्तेदार जिसका एक्सीडेंट हो गया था वो यहाँ हॉस्पिटल में admit है!
मैं: क्या? ये ....ये तो अनिल का नंबर है| वो ठीक तो है? (मैं बहुत घबरा गया था|)
अनजान आवाज: जी वो फिलहाल बेहोश है...उसके हाथ में फ्रैक्चर हुआ है| में ... मैं ही उसे हॉस्पिटल लाया था|
मैं: आप कौन हो? और किस हॉस्पिटल में हो?
अनजान आवाज: जी मेरा नाम सुरेन्द्र है...मैं यहाँ Lilavati Hospital & Research Centre Bandra West से बोल रहा हूँ| मैं यहाँ PG डॉक्टर हूँ| मुझे आपका ये रिश्तेदार जख्मी हालत में मिला | मैं इसे तुरंत हस्पताल ले आया| उसके मोबाइल में लास्ट dialed नंबर आपका था तो आपको फोन किया|
तब मुझे याद आया की आखरी बार उसकी बात मुझसे और भौजी से हुई थी|)
मैं: Thank You Very Much! मैं....मैं.....कल ही मुंबई पहुँचता हूँ...आप प्लीज मेरे साले का ध्यान रखना| Please .....
सुरेन्द्र: जी आप चिंता ना करें|
फोन disconnect हुआ और मैं चिंता में पड़ गया की भौजी को कुछ बताऊँ या नहीं? शक्ल पे बारह बजे हुए थे.... कुछ समझ नहीं आ रहा था| फिर मैंने दिमाग को थोड़ा शांत किया....तब एक दम बात दिमाग में आई की दिषु के एक चाचा मुंबई में रहते हैं| मैंने तुरंत दिषु को फोन मिलाया....एक बार... दो बार....तीन बार....चार बार.... पांच बार.... पर वो फोन नहीं उठा रह था| मैं गाडी की तरफ भाग और ड्राइविंग सीट पे बैठा और गाडी भगाई|
भौजी: क्या हुआ? आप परेशान लग रहे हो?
मैं: हाँ...वो मेरे कॉलेज का एक दोस्त है...वो बीमार है| तो हम अभी दिषु के घर जा रहे हैं|
भौजी: क्या हुआ आपके दोस्त को?
मैं: Exactly पता नहीं...बस इतना पता है की तबियत खराब है|
भौजी: पर तबियत खराब होने पे आप इतना परेशान क्यों हैं?
मैं: यार....वो.....मेरा जिगरी दोस्त है| आप ऐसा करो ये मेरा फोन ओ और दिषु का नंबर तरय करते रहो| जैसे ही उठाये कहना घर के नीचे मुझे मिले|
भौजी को फोन देने से पहले मैं उसमें से अनिल की कॉल की entry delete का चूका था| भौजी दिषु का नंबर मिलाये जा रहीं थीं और करीब-करीब दस बार मिलाने के बाद उसकी माँ न उठाया| उसकी माँ से क्या बात हुई मुझे नहीं पता मैं ड्राइव कर रहा था और सोह रहा था की घर में कैसे बताऊंगा ये सब? और क्या मैं भौजी के घरवालों को फोन करूँ या नहीं? मुझे बस इतना सुनाई दिया; "आंटी जी दिषु से बात करनी है....मैं उनके दोस्त की भाभी बोल यही हूँ|" और फिर कुछ देर बाद; "दिषु...आपके दोस्त अभी ड्राइव कर रहे हैं और उन्होंने कहा है की आप हमें पांच मिनट में घर के नीचे मिलो...कुछ अर्जेंट काम है|" हम अगले पांच मिनट में दिषु के घर पे थे| भौजी अब भी बैक सीट पर ही बैठी थीं और मैं उत्तर के गाडी के सामने दिषु से बात कर रहा था|
मैं: भाई...तेरी help चाहिए?
दिषु: हाँ..हाँ बोल.... अंदर बैठ के बात करते हैं आजा|
मैं: नहीं यार...इनका (भौजी) का भाई मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल में है| इन्हें ये बात मैंने बताई नहीं है...उसका एक्सीडेंट हो गया और को PG डॉक्टर है सुरेन्द्र उसने अनिल को हॉस्पिटल में एडमिट किया है| भाई तू प्लीज अपने चाचा से बात कर ले और उन्हें एक बार चेक करने को भेज दे...कही कोई फुद्दू बना रहा हो| मैं अभी फ्लाइट की टिकट बुक करता हूँ ...और तू कन्फर्म करेगा तो मैं मुम्बई के लिए निकल जाऊँगा| प्लीज यार!
दिषु: रूक एक मिनट|
उसने मेरे साने ही अपने चाचा के लड़के को फोन मिलाया और उसे हॉस्पिटल भेजा| किस्मत से उसके चाचा बांद्रा वेस्ट में ही रहते थे| मैं आधे घंटे तक वहीँ खड़ा रहा उसके साथ और बाउजी गाडी में...वो बाहर निकल के आना चाहती थीं पर मैंने मना कर दिया|
दिषु: तुम दोनों गए कहाँ थे?
मैं: ड्राइव पे
दिषु: और ये गाडी किस की है?
मैं: किराय पे बुक की|
दिषु: अबे साले तेरा दिमाग खराब है...मुझसे चाभी ले लेता?
मैं: यार... अभी वो सब छोड़...तू जरा फोन करके पूछना?
दिषु: करता हूँ|
उसने फोन किया और मैं मन ही मन प्रार्थना कर रह था की कोई फुद्दू बना रहा हो...!!! ये बात जूठी हो !!! पर फोन पे बात करते-करते दिषु गंभीर हो आया मतलब बात serious थी| अभी उसने फ़ोन काटा भी नहीं था और मैंने अपना फोन निकाल के flights चेक करना शुरू कर दिया| सबसे जल्दी की फ्लाइट रात एक बजे की थी|
दिषु: यार बात सच है...मेरा cousin किसी Dr. सुरेन्द्र से मिला ...उसने अनिल से मिलवाया...वो फ़िलहाल होश में है ...उसके सीधे हाथ में fracture है|
मैं: Thanks yaar .... मैंने टिकट बुक कर ली है|
दिषु: सुन...साढ़े गयरह तैयार रहिओ मैं तुझे एयरपोर्ट ड्राप कर दूँगा|
मैं: Thanks भाई!
मैं गाडी में वापस बैठा...और भौजी से क्या बहाना मारूँ सोचने लगा|
भौजी: क्या हुआ? आपका दोस्त ठीक तो है?
मैं: हाँ...वो दरअसल किसी प्रोजेक्ट के लिए आज ही बुला रहा है|
भौजी: प्रोजेक्ट? कैसा प्रोजेक्ट? तो आप परेशान क्यों थे? आप कुछ तो छुपा रहे हो?
मैं: वो...दरअसल उसने किसी कंपनी के लिए ठेका उठाया था...एडवांस पैसे इधर-उधर खर्च कर दिए और अब बीमार पड़ा है| उसे हमारी मदद चाहिए...परसों कंपनी वाले साइट विजिट करे आ रहे हैं और ये बिस्तर से हिल-डुल नहीं सकता| अब अगर मैंने वहां पहुँच के काम शुरू नहीं किया तो ये फंसेगा...कंपनी सीधा केस ठोक देगी| इसलिए आज रात की flight से मुंबई जा रहा हूँ|
भौजी: आज रात की फ्लाइट से? कितने बजे?
मैं: फ्लाइट एक बजे की है| साढ़े गयरह-बारह बजे के around निकलूंगा|
भौजी: ठीक है...आप डिनर करो तब तक मैं आपका सामान पैक कर देती हूँ|
भौजी मेरी बातों से पूरी तरह आश्वस्त थीं| मैं भी हैरान था की मैं इतना बड़ा झूठ कैसे बोल गया| अब ये समझ नहीं आ रह था की घर आके माँ-पिताजी से सच कहूँ या झूठ| घर पहुंचा तो माँ-पिताजी खाने के टेबल पर ही बैठे थे और हमारा इन्तेजार कर रहे थे| मैंने पिताजी को एक मिनट के लिए उनके कमरे में बलाया और उन्हें सब सच बता दिया की अनिल का एक्सीडेंट हो गया है...और मैं रात एक बजे की flight से मुंबई जा रहा हूँ| पिताजी ने मुझे जाने से बिलकुल नहीं रोक और कुछ पैसे कॅश देने लगे| मैंने लेने से मन कर दिया क्योंकि मैं flight में पैसे carry नहीं करना चाहता था| मैंने उन्हें कह दिया की इस बात का जिक्र वो भौजी से बिलकुल ना करें...पहले मैं एक बार सुनिश्चित कर लूँ की सब ठीक है फिर मैं ही उन्हें बता दूँगा| पिताजी को ये बात जचि नहीं पर मेरे रिक्वेस्ट करने पे वो मान गए| परन्तु उन्होंने कह दिया की अगर बात गंभीर निकली तो ना केवल वो भौजी को बताएँगे बल्कि उनके माता-पिता को भी बता देंगे| माँ को भी ये बात पता चल गई और वो तो बताने के लिए आतुर थीं...जो की सही भी था...पर मेरे जोर देने पर वो चुप हो गईं|
मैंने बच्चों को सुलाया और निकलते समय भौजी ने मुझे मेरा ATM Card खुद ही दे दिया| मैंने उनके माथे को चूमा और इतने में दिषु आ चूका था| रास्ते में दिषु ने मुझे बताया की उसके cousin ने हॉस्पिटल में पैसे जमा करा दिए हैं और अब घबराने की कोई बात नहीं है| पर जब तक मैं उसे देख नही लेता दिल को चैन कहाँ पड़ने वाला था| अगले डेढ़ घंटे में मैं मुंबई पहुँच गया और जैसे ही मैं एयरपोर्ट से निकला और टैक्सी ली की भौजी का फोन आगया|
भौजी: जानू...पहुँच गए?
मैं: हाँ जान... बस बीस मिनट हुए|
भौजी: जल्दी काम निपटाना...यहाँ कोई आप का बेसब्री से इन्तेजार कर रहा है|
मैं: जानता हूँ....अच्छा मैं आपको कल सुबह फोन करता हूँ|
भौजी: पहले I Love You कहो?
मैं: I Love You जान!
भौजी: I Love You Toooooooooooooooooooooo ! Muah !!!
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बदलाव के बीज--90
अब आगे ....
बच्चों को स्कूल छोड़ मैं काम पे निकल गया...और रात को आने में देर हो गई| भौजी ने खाना खा लिया था... और वो मुझ पर बहुत गुस्सा थीं|
भौजी: आपने एक कॉल तक नहीं किया? इतना busy हो गए थे?
मैं: जान फ़ोन की बैटरी discharge हो गई थी...इसलिए नहीं कर पाया ... मैं जानता हूँ की आपने खाना नहीं खाया है...I'm Sorry !
भौजी: नहीं...मैंने खाना खा लिया|
उनका जवाब बड़ा रुखा था और वो अपने कमरे में चली गईं| मैंने माँ से पूछा तो उन्होंने बताया की हाँ भौजी ने सब के साथ बैठ के खाना खाया था|उन्होंने रात को बच्चों को मेरे पास भी सोने नहीं दिया... दिवाली आने तक उनका व्यवहार अचानक मेरे साथ रूखा हो गया था.... बात-बात पे चिढ़ जातीं ....गुस्से में बात करती...फोन नहीं उठातीं....तो कभी-कभी इतने फोन करती की पूछो मत| आखिर दिवाली आ ही गई और आज वो बड़ी चुप थीं| सुबह पिताजी ने मुझे डाइनिंग टेबल पे बिठा के कुछ बात की;
पिताजी: बेटा हमारा प्रोजेक्ट फाइनल हो चूका है ...और ये तो तूने सारा काम संभाल लिया...वरना बहुत नुक्सान होता| ये ले चेक ...जैसा तूने कहा था...इन पैसों की तू नेहा और आयुष के नाम की FD बना दे और तेरे हिस्से का प्रॉफिट मैंने तेरे अकाउंट में डाल दिया है|
मैं: जी बेहतर!
मैंने मुड़ के भौजी की तरफ देखा तो उनका मुंह अब भी उतरा हुआ था| मैं सारी बात समझ गया|
मैं: पिताजी...दिवाली के लिए कुछ खरीदारी करनी है...तो आप की आज्ञा हो तो मैं इन्हें (भौजी), माँ और बच्चों को ले जाऊं?
पिताजी: बेटा आज मुझे तेरी माँ के साथ मिश्रा जी के यहाँ जाना है| दिवाली का दिन है...उन्हें मिठाई दे आते हैं| तू अपनी भौजी और बच्चों को ले जा|
मैं: जी ठीक है|
हम सारे तैयार हो के एक साथ निकले| मैं भौजी को सामान खरीदने के लिए बाजार ले गया| बच्चे इन दिनों में अपनी मम्मी से मिल रहे रूखेपन के करण उन से नाराज थे और मुझसे बातें करते थे और भौजी के आते ही चुप हो जाते थे| आज भी दोनों चुपचाप चल रहे थे|
मैं: नेहा...बेटा आपने स्कूल में रंगोली बनाई थी?
नेहा: जी पापा ...
मैं: तो यहाँ घर पे बनाओगे?
नेहा: हाँ (उसकी आँखें चमक उठीं)
मैं: ये लो पैसे और जो सामान लाना है ले लो...
भौजी: लोई जर्रूरत नहीं...घर पे सब रखा है|
नेहा सेहम गई और वापस मेरे पास आ गई|
मैं: आप चलो मेरे साथ...मैं आपको सामान दिलाता हूँ|
नेहा ने एक नजर भौजी को देखा और फिर से सेहम गई और जाने से मना कर दिया|
मैं: उनको मत देखो...चलो मेरे साथ!
मैं जबरदस्ती उन्हें दूकान में ले गया और रंग वगेरह खरीद दिए| फिर आयुष को चखरी, फूलझड़ी, अनार और राकेट दिला दिए| वो भी भौजी की तरफ देख के सहमा हुआ था पर मेरे साथ होने से वो कम डरा हुआ था| फिर भौजी ने खुद ही दिए लिए, और जो भी सामान लेना था सब लिया और हम घर आ गए| पिताजी और माँ अभी तक लौटे नहीं थे वो मिश्रा जी के यहाँ लंच के लिए रूक गए थे| घर पर हम अकेले थे....भौजी खाना बनाने लगीं तो मैंने उन्हें ओके दिया, ये कह की मैंने खाना आर्डर कर दिया है|
उन्होंने गुस्से में आके गैस बंद की और अपने कमरे में जाने लगीं तो मैंने उनका हाथ थाम लिया और अपने कमरे में ले आया| बच्चे टी.वी. देखने में व्यस्त थे.....
मैं: बैठो...कुछ बात करनी है|
भौजी बैठ गईं पर अब भी उनका मुँह उदास दिख रहा था|
मैं: जानता हूँ आप ये सब जान बुझ के कर रहे हो| बार-बार गुस्सा हो जाना... मेरे बिना खाए खाना खा लेना....बिना बात के बच्चों को डाँटना...डरा के रखना... और वो सब जो करवाचौथ के बाद आप कर रहे हो|
ये सुनते ही उन्होनेनजरें उठा के मेरी तरफ देखा...
मैं: जान-बुझ के इसलिए कर रहे हो ताकि मैं आपसे खफा हो जाऊँ और पिताजी से बात ना करूँ| है ना?
भौजी: हाँ (और उनकी आँखें छलक आईं)
मैं: और आपको लगा की मैं गुस्से में आपसे नफरत करने लगूंगा और आपको छोड़ दूँगा.... आपने ये सोच भी कैसे लिया?
भौजी रोने लगीं...मुझसे उनका रोना नहीं देखागया और मैं उनके सामने घुटनों पे आ गया और वो मेरे गले लग गईं|
मैं: मेरी एक बात का जवाब दो? क्या आप मुझसे प्यार नहीं करते? आप नहीं चाहते की हम एक साथ रहे ना की इस तरह छुप-छुप के...
भौजी: मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ...बस आपको खोना नहीं चाहती...कल आप पिताजी से वो बात कहेंगे तो वो हमें अलग कर देंगे....
मैं: ऐसा कुछ नहीं होगा...और अगर हुआ तो....मैं आपको भगा के ले जाऊँगा|
भौजी: यही मैं नहीं चाहती...मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से आप अपने माँ-पिताजी से अलग हो जाओ|
मैं: ऐसी नौबत नहीं आएगी....अब चुप हो जाओ ...आज त्यौहार का दिन है| प्लीज....आयुष...नेहा....बेटा इधर आओ|
दोनों बैठक से उठ के मेरे कमरे में आये;
मैं: बेटा मम्मी के गले लगो...
दोनों थोड़ा झिझक रहे थे ...
मैं: देखा आपके जरा सा रुखपन दिखाने से ये आपसे कितना डर गए हैं| बेटा ...मम्मी मुझसे नाराज थीं...और आप पर गुस्सा निकाल दिया|इन्हें माफ़ कर दो और गले लगो|
तब जाके दोनों भौजी के गले लगे|
खेर हम लोगों ने खाना खाया और घर की decoration में लग गए| मैंने छत पे जाके लड़ियाँ लगा दीं और भौजी और नेहा मिलके रंगोली बनाने लगे| माँ-पिताजी के आते -आते घर चमक रहा था! आयुष तो रात होने का इन्तेजार कर रहा था ताकि वो पटके जल सके| भौजी अब खुश लग रहीं थीं.... कुछ देर बाद मेरे नंबर पे अनिल (भौजी का भाई)का फोन आया| उससे बात हुई...और मैंनेफोन भौजी को दे दिया| दरसल भौजी के फोन की बैटरी discharge हो गई थी और उन्हें पता ही नहीं था| मैंने ही उनका फोन चार्जिंग पे लगाया|
रात को पूजा के समय हम लोग कुछ इस तरह बैठे थे| माँ और पिताजी एक साथ फिर मैं और भौजी, नेहा मेरी दाहिनी तरफ बैठी थी और आयुष मेरी गोद में बैठा था| पूजा के बाद हम छत पे आ गए पटाखे जलाने के लिए| आयुष को मैंने सिर्फ फूलझड़ी दी और मैं अनार जलने लगा| अनार के जलते ही वो ख़ुशी से कूदने लगा| नेहा पिताजी के साथ कड़ी-कड़ी ख़ुशी से चीख रही थी| मैंने एक फूलझड़ी जल के नेहा को दी, पहले तो वो डर रही थी फिर पिताजी ने उसके सर पे प्यार से हाथ फेरा तो वो मान गई और मेरे हाथ से फूलझड़ी ले ली| अब बारी थी चखरी जलाने की ..... मैंने आयुष को तरीका बताया और उसने पहली बार कोई पटाखा जलाया| चखरी को गोल-गोल घूमता देख दोनों भाई-बहन के उसके आस-पास कूदने लगे| बच्चों को इस तरह खुश देख मेरी आँखें ख़ुशी के मारे नम हो गईं| भौजी भी उन्हें कूदता हुआ देख खुश थीं| अब बारी थी राकेट जलाने की| अब मैंने अपनी जिंदगी में सिर्फ एक ही राकेट जलाया था जो की ऊपर ना जाके नीचे ही फ़ट गया था| उस दिन के बाद मैंने कभी राकेट नहीं जलाया| इसलिए राकेट जलाने का काम मैंने पिताजी को दिया| अब पिताजी भी बच्चे बन के नेहा और आयसुह के साथ पटाखे जला रहे थे| मैं उठ के माँ और भौजी के पास बैठ गया| टेबल पे कुछ सोन पापड़ी और ढोकला रखा हुआ था| मैं वही खाने लगा तभी माँ और भौजी की बात शुरू हुई;
माँ: बेटा तो कैसी लगी दिवाली हमारे साथ?
भौजी: माँ...सच कहूँ तो ये मेरी अब तक की सबसे बेस्ट दिवाली है| गाँव में ना तो इतनी रौशनी होती है...न ये शोर-गुल| रात की पूजा के बाद शायद ही कोई पटाखे जलाता है| पिछले साल मैंने आयसुह को फूलझड़ी का एक पैकेट खरीद के दिया था.... वो और नेहा तो जानते थे की यही दिवाली होती है! यहाँ आके पता चला की दिवाली क्या होती है!
माँ: बेटा वो ठहरा गाँव और ये शहर! पटाखे तो मानु कभी नहीं खरीदता था...पता नहीं इस बारी कैसे खरीद लिए? जब मैं कहती थी की पटाखे ले आ तो कहता था...माँ धरती पे pollution बढ़ गया है| और आज देखो?
मैं: मैं अब भी कहता हूँ की pollution बढ़ गया है....इसीलिए तो मैं बम नहीं लाया| उनसे noise pollution भी होता है और air pollution भी| रही बात फूलझड़ी और अनार की तो ये तो कुछ भी नहीं है...थोड़ा बहुत तो बच्चों के लिए करना ही होता है|
माँ: ठीक है बेटा ...मैं तुझे कब मना करती थी| अच्छा खाना मांगा ले!
भौजी: पर माँ मैंने पुलाव बना लिया है|
माँ: पुलाव? तुझे कैसे पता की दिवाली पे मैं पुलाव बनाती थी? इस बार तो समय नहीं मिला इसलिए नहीं बना पाई....
भौजी ने मेरी तरफ देख के इशारा किया और माँ समझ गईं|
माँ: हम्म्म....
एक पल के लिए लगा की माँ समझ गईं हों की हमारे बीच में क्या चल रहा है| पर शायद उन्होंने उस बात को तवज्जो नहीं दी और बच्चों को पटाखे जलाते हुए देखने लगीं माँ का ध्यान सामने की तरफ था और इतने में किसी ने दस हजार बम की लड़ी जला दी|
अब कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था...तो मैं भौजी के नजदीक गया और उनके कान में बोला;
मैं: दस मिनट बाद नीचे मिलना|
भौजी: ठीक है|
दरअसल मुझे भौजी को एक सरप्राइज देना था| मैं नीचे की चाभी ले के पहले आ गया| करीब पांच मिनट बाद भौजी भी आ गईं|
मैं: Hey .... क्या हुआ आपको?
भौजी: (नजरें झुकाते हुए) कुछ नहीं|
मैं: Awwww ...
मैंने भौजी को गले लगा लिया और उन्होंने मुझे अपनी बाहों में कस के जकड लिया|
मैं: I got a surprise for you !
मैंने अपने कमरे से उन्हें एक Bengali Design की साडी निकाल के दी| वो सेट पूरा कम्पलीट था और पिछले कुछ दिनों में टेलर मास्टर ने उसे सिल के तैयार कर दिया था|
मैं: इसे पहन लो|
भौजी: आप...आप ये कब लाये?
मैं: काफी दिन हो गए...टेलर मास्टर ने जब तक इसे कम्पलीट नहीं किया मैंने आप से छुपा के रखा| आज मौका अच्छा है...पहन लो फिर drive पे चलते हैं|
भौजी: ड्राइव पे? पर गाडी कहाँ है?
मैं: मैंने आज के लिए किराए पे ली है|
भौजी: पर माँ-पिताजी?
मैं: मैं उन्हें संभाल लूंगा...आप तैयार तो हो जाओ?
भौजी: रुकिए...पहले मैं भी आपको एक सरप्राइज दे दूँ|
भौजी फटाफट अपने कमरे में गईं और मेरे लिए एक कुरता-पजामा ले आईं| मैं: आपने ये कब खरीदा? आप तो नाराज थे ना मुझसे?
भौजी: ऑनलाइन आर्डर किया था ...आपके लिए!
मैं: तो ठीक है भई...दोनों तैयार हो जाते हैं|
मैं अपने कमरे में घुसा और वो अपने कमरे में...मैं तो दो मिनट में तैयार हो गया था...और डाइनिंग टेबल पे बैठा उनका इन्तेजार कर रहा था| करीब पंद्रह मिनट बाद वो निकलीं ...."WOW !" बिलकुल दुल्हन की तरह सजी हुई थीं|
भौजी: WoW ! शुक्र है आपको फिट आ गया| मैं तो दर रही थी की कहीं आपको फिट ना आया तो मेरा सरप्राइज खराब हो जायेगा| वैसे ये बताओ की आपको कैसे पता की मेरा ब्लाउज किस साइज का है?
मैं: उम्म्म्म....वो मैंने ..छत पे सुख रहे आपके कपडे....मतलब उस दिन...मैंने आपका ब्लाउज चुराया और माप के लिए दे दिया|
भौजी: अच्छा जी....!!! तो इसमें शर्माने वाली क्या बात है?
मैं: यार मैंने आजतक कभी ऐसा नहीं किया...इसलिए शर्मा रहा था...खेर चलो चलते हैं|
भौजी: ठीक है...आप-माँ पिताजी को बोल आओ|
मैं: आप भी साथ चलो...तो माँ-पिताजी मना नहीं करेंगे|
मैंने पिताजी से ड्राइव पे जाने को कहा तो पिताजी ने रोका नहीं...बच्चे तो वैसे भी पिताजी को पटाखे फोड़ने में लगाय हुए थे| माँ ने बस इतना कहा की बेटा जल्दी आ जाना, खाना भी खाना है| मैंने उन्हें ये नहीं बताया की मैंने गाडी किराए पर ली है वरना वो जाने नहीं देते| हाँ उन्होंने हमारे कपड़ों के बारे में अवश्य पूछा तो मैंने कह दिया की हमने एक दूसरे को गिफ्ट दिया है! जूठ बोलने की इच्छा नहीं थी...और साथ-साथ मैं ये भी चाहता थकी कल की बात के लिए मुझे कुछ BASE भी मिल जाए|
मैं और भौजी फटाफट निकल आये| मैंने गाडी घुमाई और भगाता हुआ इंडिया गेट के पास ले आया, पूरे रास्ते भौजी का सर मेरे कंधे पे था और उन्होंने गाने भी बड़े रोमांटिक लगा दिए थे| सही जगह पहुँच के मैंने गाडी रोकी और भौजी की तरफ मुड़ा|
मैं: Hey ...मूड रोमांटिक हो रहा है?
भौजी: आपके साथ अकेले में समय बिताने को मिले और मूड रोमांटिक ना हो...तो कैसे चलेगा?
मैं: तो चलें बैक सीट?
भौजी: I was hoping you'd never ask!
हम गाडी की बैकसीट पे आ गए| गाडी रोड की एक तरफ कड़ी ही और दिवाली के चलते यहाँ जयदा चहल-पहल नहीं थी| मैंने स्विफ्ट गाडी किराय पे ली थी! भौजी मेरी तरफ देख रहीं थीं और मैं उनकी तरफ| हम दोनों एक दूसरे को प्यासी नजरों से देख रहे थे| अब समय था आगे बढ़ने का.....
हम दोनों ही सीट पे एक दूसरे की तरफ आगे बढे और दोनों ने एक साथ एक दूसरे के लबों को छुआ और बेतहाशा एक दूसरे को चूमने लगे| दोनों की सांसें तेज हो चलीं थीं...दिल जोरों से धड़क रहा था...एक उतावलापन था! तभी अचानक डैशबोर्ड में रखे फोन की घंटी बज उठी! ये अनिल का फोन था....रात के साढ़े नौ बजे...अनिल का फोन? कहीं कोई परेशानी तो नहीं? पहले तो मन किया की भौजी को सब बता दूँ...पर फिर रूक गया...उनका मूड कल को लेके पहले से ही खराब था, वो तो मैं उन्हें ड्राइव पे ले आया तो वो कुछ खुश लग रहीं थीं| मैंने फोन उतहया और चुप-चाप गाडी के बाहर आ गया और फोन पे बात करते-करते आगे गाडी से दूर जाने लगा|
मैं: हेल्लो!
अनजान आवाज: जी नमस्ते.... आपका कोई रिश्तेदार जिसका एक्सीडेंट हो गया था वो यहाँ हॉस्पिटल में admit है!
मैं: क्या? ये ....ये तो अनिल का नंबर है| वो ठीक तो है? (मैं बहुत घबरा गया था|)
अनजान आवाज: जी वो फिलहाल बेहोश है...उसके हाथ में फ्रैक्चर हुआ है| में ... मैं ही उसे हॉस्पिटल लाया था|
मैं: आप कौन हो? और किस हॉस्पिटल में हो?
अनजान आवाज: जी मेरा नाम सुरेन्द्र है...मैं यहाँ Lilavati Hospital & Research Centre Bandra West से बोल रहा हूँ| मैं यहाँ PG डॉक्टर हूँ| मुझे आपका ये रिश्तेदार जख्मी हालत में मिला | मैं इसे तुरंत हस्पताल ले आया| उसके मोबाइल में लास्ट dialed नंबर आपका था तो आपको फोन किया|
तब मुझे याद आया की आखरी बार उसकी बात मुझसे और भौजी से हुई थी|)
मैं: Thank You Very Much! मैं....मैं.....कल ही मुंबई पहुँचता हूँ...आप प्लीज मेरे साले का ध्यान रखना| Please .....
सुरेन्द्र: जी आप चिंता ना करें|
फोन disconnect हुआ और मैं चिंता में पड़ गया की भौजी को कुछ बताऊँ या नहीं? शक्ल पे बारह बजे हुए थे.... कुछ समझ नहीं आ रहा था| फिर मैंने दिमाग को थोड़ा शांत किया....तब एक दम बात दिमाग में आई की दिषु के एक चाचा मुंबई में रहते हैं| मैंने तुरंत दिषु को फोन मिलाया....एक बार... दो बार....तीन बार....चार बार.... पांच बार.... पर वो फोन नहीं उठा रह था| मैं गाडी की तरफ भाग और ड्राइविंग सीट पे बैठा और गाडी भगाई|
भौजी: क्या हुआ? आप परेशान लग रहे हो?
मैं: हाँ...वो मेरे कॉलेज का एक दोस्त है...वो बीमार है| तो हम अभी दिषु के घर जा रहे हैं|
भौजी: क्या हुआ आपके दोस्त को?
मैं: Exactly पता नहीं...बस इतना पता है की तबियत खराब है|
भौजी: पर तबियत खराब होने पे आप इतना परेशान क्यों हैं?
मैं: यार....वो.....मेरा जिगरी दोस्त है| आप ऐसा करो ये मेरा फोन ओ और दिषु का नंबर तरय करते रहो| जैसे ही उठाये कहना घर के नीचे मुझे मिले|
भौजी को फोन देने से पहले मैं उसमें से अनिल की कॉल की entry delete का चूका था| भौजी दिषु का नंबर मिलाये जा रहीं थीं और करीब-करीब दस बार मिलाने के बाद उसकी माँ न उठाया| उसकी माँ से क्या बात हुई मुझे नहीं पता मैं ड्राइव कर रहा था और सोह रहा था की घर में कैसे बताऊंगा ये सब? और क्या मैं भौजी के घरवालों को फोन करूँ या नहीं? मुझे बस इतना सुनाई दिया; "आंटी जी दिषु से बात करनी है....मैं उनके दोस्त की भाभी बोल यही हूँ|" और फिर कुछ देर बाद; "दिषु...आपके दोस्त अभी ड्राइव कर रहे हैं और उन्होंने कहा है की आप हमें पांच मिनट में घर के नीचे मिलो...कुछ अर्जेंट काम है|" हम अगले पांच मिनट में दिषु के घर पे थे| भौजी अब भी बैक सीट पर ही बैठी थीं और मैं उत्तर के गाडी के सामने दिषु से बात कर रहा था|
मैं: भाई...तेरी help चाहिए?
दिषु: हाँ..हाँ बोल.... अंदर बैठ के बात करते हैं आजा|
मैं: नहीं यार...इनका (भौजी) का भाई मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल में है| इन्हें ये बात मैंने बताई नहीं है...उसका एक्सीडेंट हो गया और को PG डॉक्टर है सुरेन्द्र उसने अनिल को हॉस्पिटल में एडमिट किया है| भाई तू प्लीज अपने चाचा से बात कर ले और उन्हें एक बार चेक करने को भेज दे...कही कोई फुद्दू बना रहा हो| मैं अभी फ्लाइट की टिकट बुक करता हूँ ...और तू कन्फर्म करेगा तो मैं मुम्बई के लिए निकल जाऊँगा| प्लीज यार!
दिषु: रूक एक मिनट|
उसने मेरे साने ही अपने चाचा के लड़के को फोन मिलाया और उसे हॉस्पिटल भेजा| किस्मत से उसके चाचा बांद्रा वेस्ट में ही रहते थे| मैं आधे घंटे तक वहीँ खड़ा रहा उसके साथ और बाउजी गाडी में...वो बाहर निकल के आना चाहती थीं पर मैंने मना कर दिया|
दिषु: तुम दोनों गए कहाँ थे?
मैं: ड्राइव पे
दिषु: और ये गाडी किस की है?
मैं: किराय पे बुक की|
दिषु: अबे साले तेरा दिमाग खराब है...मुझसे चाभी ले लेता?
मैं: यार... अभी वो सब छोड़...तू जरा फोन करके पूछना?
दिषु: करता हूँ|
उसने फोन किया और मैं मन ही मन प्रार्थना कर रह था की कोई फुद्दू बना रहा हो...!!! ये बात जूठी हो !!! पर फोन पे बात करते-करते दिषु गंभीर हो आया मतलब बात serious थी| अभी उसने फ़ोन काटा भी नहीं था और मैंने अपना फोन निकाल के flights चेक करना शुरू कर दिया| सबसे जल्दी की फ्लाइट रात एक बजे की थी|
दिषु: यार बात सच है...मेरा cousin किसी Dr. सुरेन्द्र से मिला ...उसने अनिल से मिलवाया...वो फ़िलहाल होश में है ...उसके सीधे हाथ में fracture है|
मैं: Thanks yaar .... मैंने टिकट बुक कर ली है|
दिषु: सुन...साढ़े गयरह तैयार रहिओ मैं तुझे एयरपोर्ट ड्राप कर दूँगा|
मैं: Thanks भाई!
मैं गाडी में वापस बैठा...और भौजी से क्या बहाना मारूँ सोचने लगा|
भौजी: क्या हुआ? आपका दोस्त ठीक तो है?
मैं: हाँ...वो दरअसल किसी प्रोजेक्ट के लिए आज ही बुला रहा है|
भौजी: प्रोजेक्ट? कैसा प्रोजेक्ट? तो आप परेशान क्यों थे? आप कुछ तो छुपा रहे हो?
मैं: वो...दरअसल उसने किसी कंपनी के लिए ठेका उठाया था...एडवांस पैसे इधर-उधर खर्च कर दिए और अब बीमार पड़ा है| उसे हमारी मदद चाहिए...परसों कंपनी वाले साइट विजिट करे आ रहे हैं और ये बिस्तर से हिल-डुल नहीं सकता| अब अगर मैंने वहां पहुँच के काम शुरू नहीं किया तो ये फंसेगा...कंपनी सीधा केस ठोक देगी| इसलिए आज रात की flight से मुंबई जा रहा हूँ|
भौजी: आज रात की फ्लाइट से? कितने बजे?
मैं: फ्लाइट एक बजे की है| साढ़े गयरह-बारह बजे के around निकलूंगा|
भौजी: ठीक है...आप डिनर करो तब तक मैं आपका सामान पैक कर देती हूँ|
भौजी मेरी बातों से पूरी तरह आश्वस्त थीं| मैं भी हैरान था की मैं इतना बड़ा झूठ कैसे बोल गया| अब ये समझ नहीं आ रह था की घर आके माँ-पिताजी से सच कहूँ या झूठ| घर पहुंचा तो माँ-पिताजी खाने के टेबल पर ही बैठे थे और हमारा इन्तेजार कर रहे थे| मैंने पिताजी को एक मिनट के लिए उनके कमरे में बलाया और उन्हें सब सच बता दिया की अनिल का एक्सीडेंट हो गया है...और मैं रात एक बजे की flight से मुंबई जा रहा हूँ| पिताजी ने मुझे जाने से बिलकुल नहीं रोक और कुछ पैसे कॅश देने लगे| मैंने लेने से मन कर दिया क्योंकि मैं flight में पैसे carry नहीं करना चाहता था| मैंने उन्हें कह दिया की इस बात का जिक्र वो भौजी से बिलकुल ना करें...पहले मैं एक बार सुनिश्चित कर लूँ की सब ठीक है फिर मैं ही उन्हें बता दूँगा| पिताजी को ये बात जचि नहीं पर मेरे रिक्वेस्ट करने पे वो मान गए| परन्तु उन्होंने कह दिया की अगर बात गंभीर निकली तो ना केवल वो भौजी को बताएँगे बल्कि उनके माता-पिता को भी बता देंगे| माँ को भी ये बात पता चल गई और वो तो बताने के लिए आतुर थीं...जो की सही भी था...पर मेरे जोर देने पर वो चुप हो गईं|
मैंने बच्चों को सुलाया और निकलते समय भौजी ने मुझे मेरा ATM Card खुद ही दे दिया| मैंने उनके माथे को चूमा और इतने में दिषु आ चूका था| रास्ते में दिषु ने मुझे बताया की उसके cousin ने हॉस्पिटल में पैसे जमा करा दिए हैं और अब घबराने की कोई बात नहीं है| पर जब तक मैं उसे देख नही लेता दिल को चैन कहाँ पड़ने वाला था| अगले डेढ़ घंटे में मैं मुंबई पहुँच गया और जैसे ही मैं एयरपोर्ट से निकला और टैक्सी ली की भौजी का फोन आगया|
भौजी: जानू...पहुँच गए?
मैं: हाँ जान... बस बीस मिनट हुए|
भौजी: जल्दी काम निपटाना...यहाँ कोई आप का बेसब्री से इन्तेजार कर रहा है|
मैं: जानता हूँ....अच्छा मैं आपको कल सुबह फोन करता हूँ|
भौजी: पहले I Love You कहो?
मैं: I Love You जान!
भौजी: I Love You Toooooooooooooooooooooo ! Muah !!!
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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