Thursday, December 25, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--93

FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--93

अब आगे ....

 अनिल: अब गाल किस के लाल हो रहे हैं?

अब की बार तीनों हँस पड़े! दोपहर को बच्चे स्कूल से आये और अपने मामा को देख के खुश हुए| दोपहर में पिताजी घर आये थे और साथ में शादी का कार्ड भी लाये थे... सब को कार्ड पसंद आया| पिताजी ने कार्ड का स्टाइल काफी राजसी रखा था| ये उनकी दिली तमन्ना थी तो मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा! पिताजी ने अनिल से बात की और कोशिश की कि समधी जी मान जाएँ...पर ससुर जी बड़े जिद्दी थे...उन्होंने तो अनिल से भी कह दिया था कि वो संगीता या मेरा फोन न उठाये..न कभी हम से मिले| अगर उसने ऐसा किया तो वो उस से भी मुँह मोड़ लेंगे! जब ये बात हमें पता लगी तो सबसे पहले मेरा रिएक्शन निकला;

मैं: अनिल...यार तब तो तुम्हें इस शादी में शरीक नहीं होना चाहिए! हमारी ँझ से अगर तुम भी अपने माँ-पिताजी से अलग हो गए तो कौन उनका साहरा होगा? वो कहाँ जायेंगे?

संगीता: (मेरी बात में हाँ में हाँ मिलते हुए|) हाँ भाई...अब मेरे आलावा तुम ही तो उनका सहारा हो!

अनिल: दीदी... प्लीज मुझे मत रोको...आप तो जानते ही हो पिताजी का सौभाव ...वो अपनी जिद्द के आगे किसी कि नहीं सुनते| पर पांच दिन बाद मैं गाँव जाने वाला हूँ! उन्हें भी तो ये पता चले की जिसे वो इतना गलत समझते हैं उन्होंने हमारे लिए क्या-क्या किया है?

मैं: नहीं अनिल...प्लीज उन्हें कुछ मत कहना| वरना वो समझेंगे की मैंने वो सब इसी लालच में किया|

अनिल: लालच? अगर आपको लालच ही होता तो आप उस दिन पिताजी से सब कुछ बता देते...और आज भी आप मुझे उन्हें बताने से रोक रहे हो! तो लालच होने का तो सवाल ही नहीं होता! मैं जानता हूँ आपने जो भी किया वो हमारी बेहतरी के लिए किया| वैसे भी मैं उन्हें सुमन से मिलाना चाहता हूँ!

मैं: क्या? यार तू इतनी जल्दी क्यों मचा रहा है? वो वैसे ही हमारी वजह से दुखी हैं...ऐसे में तेरा ये फैसला उनके लिए आघात साबित होगा|

संगीता: तू ऐसा कुछ नहीं करेगा...अभी तेरा कोर्स बाकी है...पहले उसे निपटा...तब तक ये बात भी ठंडी हो जाएगी! फिर बात कर लिओ! अगर उनका गुस्सा शांत हो गया तो मैं भी उनसे तेरी सिफारसिह कर दूँगी|

अनिल: वो कभी नहीं मानेंगे! सुमन की जात, उसके non-vegetarian होने से, traditional कपडे ना पहनने से ...और भी नजाने कितनी गलतियां निकाल देंगे|

मैं: देख अभी सब्र से काम ले...ज्यादा जल्दीबाजी ठीक नहीं|

अनिल: मैं गारंटी तो नहीं देता ...पर अगर उन्होंने आपके खिलाफ कुछ कहा तो....तो मैं खुद को नहीं रोक पाउँगा!

मैं: I'm not a GOD ...की तू मेरे लिए उनसे लड़ाई करेगा| तूने खुद ही कहा न की वो गुस्से में किसी की नहीं सुनते! एक बार उनका गुस्सा शांत हो जाए तो हम खुद मिलेंगे उनसे... तब तुझे मेरी जितनी तरफदारी करनी है कर लिओ| ठीक है?

अनिल: ठीक है जीजू!

संगीता: आखिर निकल ही आया तेरे मुँह से जीजू?

अनिल मुस्कुराने लगा|

 खेर रात की गाडी से अनिल का जाना तय था तो मैं ही उसे समय से स्टेशन छोड़ आया| गाडी में बिठा के मैं घर लौटा तो देर हो चुकी थी| मैं सीधा अपने कमरे में घुसा और देखा तो बच्चे सो रहे थे| मैंने चुप-चाप कंप्यूटर पे कहानी टाइप करनी शुरू कर दी, अब आप लोगों को भी तो MEGA UPDATE देना था! इतने में संगीता कमरे में आई और मेरे पीछे आके खड़ी हो गई| उन्होंने अपनी बाहें मेरे गले में डाली और पूछा की मैं हिंदी में क्या टाइप कर रहा हूँ| जब उन्हें पता चल की मैं हमारी ही कहानी टाइप कर रहा हूँ तो वो शर्मा गईं और उनके कान और गाल लाल हो गए|

संगीता: आप हमारी कहानी लिख रहे हो?

मैं: हाँ क्यों?

संगीता: और आपने मेरे नाम की जगह "भौजी: लिखा है?

मैं: हाँ...यार अब रीडर्स को सारी बात ऐसे ही तो नहीं बता सकता ना? वरना कहानी से सारा रस चला जायेगा|

संगीता: हम्म्म्म...आपने नाम बदल के हमारी गरिमा बनाये रखी है!

मैं: हाँ...वो तो है!

खेर अब उन्हें पता चल चूका था की मैं कहानी लिख रहा हूँ और अब वो आपके कमेंट्स भी पद रही हैं| कुछ कमेंट्स पढ़ के उन्हें गुस्सा अवश्य आया पर उनका कहना था की रीडर इसे सच माने या जूठ...मर्जी उसकी...हमें खुद को Justify करने की कोई जर्रूरत नहीं|

आगे बढ़ते हुए....

हमारा renovation cum construction का काम बढ़ गया था और इधर पिताजी ने शादी के कार्ड बांटने का जिम्मा खुद ले लिया था| मैं साइट पे बिजी रहता था तो अब घर आने में बहुत देर हो जाया करती थी| शादी से एक दिन प्पहले तक मैं सिर्फ इतना ही समय निकाल पाटा था की ये कहानी आगे लिख सकूँ| शादी में करीब दस दिन बचे थे की एक दिन किस्मत से मैं दोपहर के खाने पर पहुँच गया;

पिताजी: चलो...आज तेरी शक्ल तो दिख गई!

मैं: पिताजी...क्या करें... काम बहुत बढ़ गया है|

माँ: सब बहु के चरणों का प्रताप है!

संगीता: नहीं माँ... आपलोगों का आशीर्वाद है| पिताजी ने काफी नाम कमाया है बिज़नेस में..और ये उसी नाम को आगे ले जा रहे हैं!

मैं: Anyways ...पिताजी...सारे कार्ड बँट गए?

पिताजी: हाँ बेटा...

मैं: किसी ने पूछा नहीं की लड़की कौन है?

पिताजी: हाँ पूछा था...मैंने बहु का नाम बता दिया...अब बहु को तो यहाँ के लोग जानते ही हैं...ये भी तो तुम्हारी माँ के साथ कीर्तन वगेरह में हर जगह समिल्लित होती थी?

मैं: तो किसी ने कुछ कहा नहीं? I mean ....

पिताजी: (मेरी बात काटते हुए) नहीं...और अगर पूछा भी तो मैंने कह दिया की मेरा लड़का लड़की से प्यार करता है...बस इतना काफी है| लड़की सुशील है..हमारा बहुत ख्याल रखती है और हमारे लिए जिसने अपने माँ-पिताजी की कुर्बानी दे दी...इससे बड़ी बात क्या होगी? (पिताजी ने संगीता की तरफदारी की|)

मैं: हम्म्म्म !!!

ये सुन के तसल्ली हुई की माँ-पिताजी उन्हें दिल से अपना चुके हैं! अपनी बेटी की तरह प्यार और दुलार करते हैं| वो भी उन्हें अपने माता-पिता की तरह प्यार करती हैं....इससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए? खाना खाने के बाद मैं कहानी लिखने ही बैठा था की वो मेरे कमरे में आइन|


 एक सवाल था जो मन में उठ रहा था और मन किया तो मैंने उनसे पूछा|

मैं: जान... आपके पिताजी ओ बहुत गुस्सा हैं... पर आपकी माँ? क्या मैं उनसे बात करूँ?

संगीता: उनसे बात नहीं हो पायेगी! उनके पास फोन नहीं...पिताजी उन्हें बहुत बाँध के रखते हैं| बिना इजाजत तो वो घर से निकलती तक नहीं|

मैं: पर उस दिन जब मैं उनसे गाँव में मिला तो वो बड़ी सहज दिखीं|

संगीता: सब के सामने वो सहज ही दिखती हैं! पर मैं जानती हूँ की वो कितना घुट-घुट के जीती हैं|

मैं: अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं... एक बार उनसे बात करूँ? अभी अनिल भी वहीँ है...तो उसके फोन के जरिये उनसे बात कर के देखूं? या आप उनसे बात करो...शायद वो आपकी बात मान लें!

संगीता: ठीक है| मैं उनसे बात करती हूँ|

मैंने फोन मिलाया और अनिल से बात की और उसे कहा की वो सासु जी की बात संगीता से करा दे| उसने फोन सासु जी को दिया और संगीता ने उनसे बात करना शुरू की| जैसे ही उन्होंने "हेल्लो" बोला संगीता रो पड़ी और मैं उठ के उनके साथ बैठ गया और उन्हें अपना सहारा दे के चुप कराया ताकि वो अपनी माँ से बात कर सकें| किसी तरह उन्होंने खुद को संभाला और शायद सासु जी भी रो पड़ी थीं... सासु जी पहले तो उन्हें समझा रहीं थीं की वो ये शादी ना करें और उनके पास लौट आएं...पर जब संगीता ने उन्हें अपने दिल की बात बताई तो सासु माँ का मन भर आया और उन्होंने ने उन्हें आशीर्वाद दिया और फिर मेरी उनसे जो बात हुई वो ये थी;

मैं: प्रणाम माँ

सासु माँ; जीते रहो बेटा! बेटा मैं जान चुकी हूँ की तुम दोनों एक दूसरे को कितना प्यार करते हो...जब तुम हम से मिलने आये थे मुझे तुम तब भी बहुत अच्छे इंसान लगे थे...तुम्हारे विचार बहुत ऊँचे थे! मैं खुश हूँ की संगीता को अपना जीवनसाथी बनाना चाहते हो! मेरी दिली खवाइश ही की मैं वहां आउन और तुम दोनों को मिलूं और आशीर्वाद दूँ..पर ये संभव नहीं है| पर मैं तुम्हें फोन पर ही आशीर्वाद देती हूँ... जुग-जुग जिओ...फूलो फलो, तुम्हें हमेशा जीवन में कामयाबी मिले...खुशियों से तुम्हारा दामन भरा रहे|

मैं: माँ...आप आ जाओ ना| प्लीज ...मैं आपको खुद लेने आ जाता हूँ...या फिर आप अनिल के साथ आ जाओ! किसी को कुछ बताने की जर्रूरत नहीं...शादी निपटा के चले जाना|

सासु माँ: बेटा आ तो जाऊँ..पर यहाँ तुम्हारे ससुर जी का ख्याल कौन रखेगा? और अगर उन्हें भनक भी लग गई तो?

मैं: मैं हूँ ना...आप मेरे पास रहना... हम सब साथ रहेंगे|

सासु माँ: बेटा औरत के लिए उसके पति का घर ही सबकुछ होता है| मैं छह कर भी तुम सब के साथ नहीं रह सकती|

आगे कुछ बात होती इससे पहले ही पीछे से आवाज सुनाई दी;

"किस्से बात कर रही है?" ये किसी और की नहीं बल्कि ससुर जी की आवाज थी!


 उन्होंने सासु माँ के हाथ से फोन खींच लिया और बोले;

ससुर जी: हेल्लो...

मैं: प्रणाम पिता जी!

ससुर जी: (गुस्से में) तू? तेरी हिम्मत कैसे हुई फोन करने की!

मैं: जी 8 दिसंबर को हमारी शादी है.... उसके लिए कार्ड देने आना चाहता था...तो पूछ रहा था की कब आऊँ?

ससुर जी: @@@@@@@@@ (उन्होंने गाली दी) खबरदार जो इधर आया तो काट के रख दूँगा तुझे! तूने मेरी फूल सी बच्ची को बरगलाया है ...तू ...तू नर्क में जाएगा|

संगीता ने मेरे हाथ से फोन ले लिया और आगे की गालियाँ उन्ही ने सुनी| वो रो पड़ीं और मेरे सीने से लग गईं... उनके मुँह से बस इतना निकला; "पिताजी...." ससुर जी ने ये सुना ...फिर वो चुप हो गए और समझ गए की फोन संगीता के हाथ में है|

संगीता: (रोते हुए) आप...इन्हें गलत समझ...रहे हैं!

ससुर जी: कर दिया ना उसने तुझे आगे?

संगीता: नहीं...मैंने उनसे फोन ले लिया!

ससुर जी: रहने दे..झूठ मत बोल| मैं सब जानता हूँ ..

और उन्होंने फोन रख दिया| संगीता मुझसे लिपट के बुरी तरह रोने लगी...

मैं: Hey ... its okay ...चुप हो जाओ|

संगीता: मेरी वजह से.....

मैं: कुछ आपकी वजह से नहीं! ठीक है? वो बड़े हैं...उन्हें हक़ है गुस्सा होने का...नाराज होने का.... कोई बात नहीं| आप चुप हो जाओ... You're gonna be a mom soon….. don’t cry| Okay!

मैंने उन्हें बहुत पुचकारा और ढांढस बंधाया की सब ठीक हो जाएगा... और तब जाके वो चुप हुईं| उस दिन मैं साइट पे नहीं गया और शाम को सब को ले के घूमने निकल गया| संगीता प्रेग्नेंट थी... और डॉक्टर ने मुझे उनका ख्याल रखने को बोला था| वैसे भी मैं उनका कुछ EXTRA ही ख्याल रखता था| उन्हें खुश रखना मेरी Top Priority थी! मैं कितना कामयाब हुआ इसका पता आपको अंत में उनके कमेंट के रूप में पता चलेगा| मैं जानता हूँ की मैंने अपने माता-पिता के आलावा किसी को ये बात नहीं बताई थी की आयुष मेरा ही लड़का है या संगीता प्रेग्नेंट है..वरना सब को यही लगता की मैं मामला cover up कर रहा हूँ!

खेर दिन बीतने लगे और मुझे याद है उस दिन 1 दिसंबर था...रात की गाडी से अनिल ने आना था और 30 नवंबर को मैंने लेबर से ओवरटाइम करा मार ताकि 1 दिसंबर मैं घर पर रह सकूँ| रात भर जग था तो जब मैं सुबह सात बजे घर घुसा तो बच्चों को बाय बोल के सो गया| माँ-पिताजी को किसी से मिलने जाना था तो वो संगीता से कह गए की वो मेरे ध्यान रखें क्योंकि मैंने रात से कुछ खाया नहीं था..और थका होने के कारन मैं सीधा आके बिस्तर में घुसा और रजाई ओढ़ ली| उसके बाद मेरी नींद तब खुली जब संगीता की बाहें रजाई के अंदर से मुझे खुद से जकड़ने लॉगिन थीं| मुझे ऐसा लगा जैसे की कोई जंगली बेल मेरे शरीर से लिपट गई हो! मैंने दाईं करवट ले रखी थी| मेरी पीठ संगीता की तरफ थी| उन्होंने अपनी बाहें मेरी कमर से होते हुए मेरी छाती को जकड़ ने लगी थीं|


मैं: (मैंने आँखें बंद किये हुए नींद में कुनमुनाते हुए कहा) बाबू .... क्या कर रहे हो?

संगीता: What did you just say?

मैं: बाबू...

संगीता: Awwwwww ....I like what you just say?

मैं: उम्म्म्म... (मैं आँख बंद किये हुए...सोना चाहता था|)

संगीता: मैं आपको बहुत तंग करती हूँ ना?

मैं: उम्म्म्म्म

मैं अब भी नींद में था और बस कुनमुना रहा था;

संगीता: मेरी एक जिद्द के कारन ये सब हो गया| ना मैं आपसे कहती की I wanna conceive this baby ...ना आप कहते की Marry Me! सब मेरी गलती है| मेरी वजह से आप काम में इतना मशगूल हो गए की...मुझे पूरा समय नहीं दे पाते हो|

उनकी इस बात ने मेरे होश उड़ा दिए और मैं उनकी तरफ पलटा और उन्हें खींच के अपने वष में ले लिया;

मैं: Listen ...Stop Blaming yourself ... आप की कोई गलती नहीं है..आप की इसी जिद्द ने मुझे आपसे जुड़ने की एक वजह दे दी| राह मुश्किल थी पर अब बस सात दिन और...और फिर हम एक हो जायेंगे| आप finally मेरे बच्चे को मेरा नाम दे पाओगे...मैं उसे अपनी गोद में खिलाऊँगा...सब वैसा होगा जैसा की आप और मैं चाहते थे.... समय के साथ रिश्तों पर से ये कोहरा भी साफ़ हो जायेगा|

संगीता: सच?

जवाब में मैंने उनके माथे को चूमा!

संगीता: एक बात कहूँ?

मैं: कहो मेरी जान!

संगीता: बहुत दिनों से आपने मुझे प्यार नहीं किया!

मैं: Sorry यार...काम इतना जयदा बढ़ गया की समय ही नहीं मिला|

संगीता: मतलब शादी के बाद भी आप मुझे समय नहीं दोगे? I'm having second thoughts!
(उन्होंने मुझे छेड़ते हुए कहा|)

मैं: Really ... So you wanna back down? Its okay!

संगीता: इतनी आसानी से आपका पीछा नहीं छोडूंगी| ये फेविकोल का जोड़ है...इतनी आसानी से नहीं छूटेगा!

ये कहते हुए उन्होंने अपनी बाहों से मुझे जकड़ के खुद से चिपका लिया|

मैं: You’re getting naughty haan?

संगीता ने आँखें बंद किये हुए गर्दन हाँ में हिलाई!

मैंने लपक के अपना टेबलेट उठाया और उसमें गाना search करने लगा|  


वो गाना ये था, संगीता ने बस उसके बोल बदल दिए;

संगीता: हमारी शादी में...
अभी बाकी हैं दिन सात ....
सात बरस लगे ... ये हफ्ता होगा कैसे पार...
नहीं कर सकती मैं और एक दिन भी इंतज़ार...
आज ही पहना दे ...
हो आज ही पहना दे ...
अपनी बाँहों का हार ...
हो जन्म... हो जानम हो ....

संगीता का गाना सुन के उनके दिल की कावेश तो मैं समझ हो चूका था; अब बारी थी मेरी जवाब देने की...और मैं बस गाने के उस paragraph का इन्तेजार कर रहा था जिसके बोल मैंने कुछ इस प्रकार बदल दिए;

मैं: हमारी शादी में...
अभी बाकी है बस दिन सात...
महीने बीत गए ये दिन भी हो जाएंगे पार...
ना फिर तरसाऊँगा और करवाके इंतज़ार ...
मैं यूँ पहना दूँगा ...ऐसे पहना दूँगा...
हक़ से पहना दूँगा तुम्हे अपने बाहों का हार...
हो साजनी हो ... बालम हो

गाना खत्म होते ही उन्होंने अपना सवाल पूछा;

संगीता: So you’re not gonna fulfill my wish?

मैं: यार... मैं मना नहीं कर रहा...बस एक बात कह रहा हूँ की its just a matter of days… and then…

संगीता: After those days we'll be husband and wife and not Lovers?

मैं: Awwwww .... you mean you wanna have a lil bit of love before the marriage? (मैं जानता था की वो मानने वाली नहीं हैं|)

संगीता: (खुश होते हुए) हाँ...

मैं: Well if that's the case .... anything for my love! 


मैंने उन्हें अपने ऊपर खींचा और उनके होंठों को चूमा| मेरे एक Kiss ने उनके जिस्म में हरकत मचा दी| वो कसमसाने लगीं...

संगीता: उफ्फ्फ्फ़ जानू..... आपके छूने भर से मरा शरीर जलने लगता है|

मैंने करवट बदली और उन्हें अपने नीचे ले आया ...उनकी साडी खोलनी चाही तो वो बोलीं;

संगीता: जानू...माँ-पिताजी कभी भी आ सकते हैं... forget the formality!

मैं: But jaan it'll hurt you!

संगीता: Please grab some vaseline!

मैंने उठ के vaseline उठाई और वापस रजाई में घुस गया| मैंने ऊँगली से खूब सारी vaseline निकाली और ज्यादा तर अपने लंड पे चुपड़ दी और बाकी बची थोड़ी उनकी योनि पर| मैं डर रहा था की कहीं फिर से खून-खराबा न हो जाए| इसलिए मैं अपना लंड उनकी योनि द्वार पे रखे हुए उनपर झुका हुआ था|

संगीता: क्या हुआ?

मैं: यार डर लग रहा है की कहीं आपको दर्द हुआ तो?

संगीता: तो क्या हुआ?

मैं: यार शादी में अगर आप लँगड़ाये तो? सरे लोग मुझे ही घूर रहे होंगे?

संगीता हँस पड़ी|

संगीता: हाय...इतना प्यार करते हो आप मुझसे? मुझे जरा सा भी दर्द नहीं दे सकते? Here let me help you ...

ये कहते हुए वो उप्र आ गेन और मैं नीचे लेटा था| उन्होंने अपनी दोनों टांगें मोड़ी और मेरे लंड के ऊपर आ गईं| फिर उन्होंने अपने दायें हाथ से अपनी योनि के कपालों को खोल के सुपाड़े के लिए जहाज बनाई और बहुत धीरे-धीरे नीचे आने लगीं| इस बीच रजाई पूरे जिस्म से हट चुकी थी और कमरा ठंडा होने के कारन मुझे ठण्ड लगने लगी थी, क्योंकि मैं सोते समय बस एक पतली सी टी-शर्ट पहनता हूँ| वो इतना संभाल के नीचे आ रहीं थी की जैसा कोई कुँवारी योनि डरते-डरते आगे बढ़ती है| जैसे ही सुपाड़ा थोड़ा अंदर गया वो रूक गईं और उनके मुख पे दर्द के निशान थे| उनके मुख पे दर्द देख के मुझे भी दर्द एह्सा हुआ|

मैं: आप नीचे आ जाओ...I'll be gentle.

वो उठीं और मेरी बगल में लेट गईं| अब मैंने उनकी टांगें खोलीं और मैं उनके बीच में आ गया| मैंने हाथ से लंड को उनके योनि द्वार पे रखा और जैसे किसी Screw को screwdriver से धीरे-धीरे टाइट किया जाता है, ठीक उसी तरह मैंने लंड को धीरे-धीरे अंदर दबाना चालु किया| जब उन्हें ज्यादा दर्द होता तो मैं वहीँ रूक जाता और जब तक वो सामन्य नहीं होतीं मैं आगे नहीं बढ़ता| धीरे-धीरे आधा ही लंड अंदर जा पाया और मैं रूक गया और उतना ही अंदर-बाहर करने लगा| संगीता की योनि ने रस की धार छोड़ दी और अब अंदर घर्षण जरा भी नहीं रहा गया था| मैं अब भी आधा लंड ही अंदर डालता था| अंदर जो लावा था वो अब बाहर आने को तड़प रहा था| बीस मिनट के संघर्ष के बाद आखिर मैं और वो एक साथ ही स्खलित हुए और मैं उनकी बगल में लेट गया| रजाई की गर्मी और इस exercise ने शरी से कुछ पसीने की बूंदें निकलवा दीं थीं| वैसे ये पहली बार था की मैंने रजाई मैं ये सब किया हो| कभी इसके बारे में सोचा ही नहीं था|


जब दोनों की सांसें सामन्य हुईं तो वो बोलीं;

संगीता: Thanks ...मेरा दिल रखने के लिए and Sorry मैंने आपकी नींद खराब कर दी| आप आराम करो..मैं कुछ खाने के लिए बनाती हूँ|

मैं: अरे छोडो और मेरे पास रहो!

संगीता: और माँ ने मेरे बाल बिखरे हुए..और साडी की ये हालत देखि तो?

मैं: कोई नहीं...

संगीता: उन्हें लगेगा की मैं इतनी उतावली हूँ की...(आगे उन्होंने बात पूरी नहीं की|)

मैं: नहीं...बल्कि ये लगेगा की लड़का इतना बावरा हो गया है की बहु को छोड़ता ही नहीं!

और हम दोनों हंसने लगे...

मैं: ऐसा करो .... मैगी बना लो! और हम दोनों मिल के खाते हैं|

संगीता: अभी लाई|

अभी वो मैगी बना ही रहीं थीं की मैं किचन में पहुँच गया और उन्हें पीछे से अपनी बाँहों में भर लिया| मैंने अपने होठ उनकी गर्दन पे रख दिए और उन्हें Kiss करने लगा| मेरे हाथों ने उनकी कमर को जकड रखा था और वो बस हाथों से मैगी मसाला डाल रही थीं|

संगीता: छोडो ना?

मैं: क्यों? आप अगर मुझे इस तरह जकड सकते हो तो मैं क्यों नहीं?

संगीता: हम हॉल के पास हैं...कोई आ गया तो?

मैं: तो क्या हुआ...!

संगीता: आप ना...बहुत शरारती हो गए हो! छोडो मुझे... अब सात दिन बात बारी आएगी! उसके बाद कभी नहीं रोकूंगी...!

मैं: हाय...पहले तो आप आदत बिगाड़ते हो और फिर जब आपकी लत पड़ जाती है तो आदत छुड़ाने की बात करते हो|

संगीता: जानू ...लत छुड़ाने के लिए नहीं कह रही... बस सब्र करने को कह रही हूँ| सात दिन बात तो .... (उन्होंने अपने होंठ सिकोड़ के Kiss करने जैसा मुँह बनाया|

मैं: ना अब तो आपने सोते हुए शेर को जग दिया है| अब तो नहीं छोड़ने वाला आपको| अब तो आप माँ-पिताजी का सहारा लेना शुरू कर दो| वरना जहाँ अकेले मिले वहीँ आपको प्यार करना शुरू कर दूँगा|

संगीता मुस्कुराने लगी और मैगी बना के ले आई और हम दोनों डाइनिंग टेबल पे बैठे खा रहे थे जब पिताजी और माँ आ गए|
 
 
 

 पिताजी: क्यों भई मैगी खाई जा रही है?

मैं: हाँ देख लो पिता जी..शादी से पहले ये हाल है? शादी के बाद तो ब्रेड बटर पे आ जाऊँगा! ही..ही..ही..

पिताजी भी हँस पड़े!

माँ: इस घर में सबसे ज्यादा मैगी किसे पसंद है?

संगीता: इन्हें

माँ: सुन लिया जी! इसी ने बनवाई है! बदमाश!

इसी तरह रात हंसी-मजाक करते-करते रात हो गई. और मैं अनिल को लेने स्टेशन पहुँच गया| जब वो डीबी से निकला तो उसके साथ सुमन भी थी| उसे डेक्क के मैं हैरान हुआ.....की ये? मतलब अनिल ने तो बताया नहीं की सुमन भी आ रही है, वरना उसके ठहरने का इन्तेजाम मैं कर देता| खेर मैं दोनों को टैक्सी से घर ले आया| आज संगीता ने पहली बार सुमन को देखा ...ये तो नहीं कह सकता की दोनों दोस्त बन गईं पर हाँ ऐसा लगा की शायद उन्हें लड़की पसंद नहीं आई! रात के खाने के बाद सोने की बारी आई;

मैं: पिताजी...आप और माँ तो अपने कमरे में ही सोओगे!

आयुष: (जिद्द करते हुए) मैं दादी जी के पास सोऊंगा!

मैं: ठीक है मेरे बाप तू माँ के पास सो जाना!

आयुष: माँ नहीं दादी!

मैं: हाँ भई हाँ...मेरी माँ तेरी दादी जी ही हैं| चलो भाई इनका तो प्रोग्राम सेट...सुमन और संगीता अपने कमरे में...और मैं और तू (अनिल) एक कमरे में|

अनिल: जीजू, मैं यहीं सो जाऊँगा हॉल में|

माँ: नहीं बेटा ठण्ड का मौसम है|

अब सब फाइनल हो चूका था, सुमन तो संगीता के कमरे में चली गई, माँ-पिताजी भी अपने कमरे में चले गए, अनिल नेहा को मेरे कमरे में ले गया और गेम खेलने लगा|अब बस मैं और संगीता बचे थे, मैंने उन्हें इशारे से छत पे आने को कहा| आखिर मैं भी तो जानना चाहता था की वजह क्या है? पांच मिनट बाद वो भी छत पे आ गईं| मौसम ठंडा था पर वो सर्दी नहीं थी जो हाल ही के दिनों में पड़ने लगी है|


 मैं: तो बताओ क्यों मुँह बना हुआ है आपका?

संगीता: वो लड़की...मुझे कुछ जचि नहीं!

मैं: क्या मतलब?

संगीता: पता नहीं ...पर ऐसा लगता है की वो लड़की अनिल के लिए सही नहीं है|

मैं: यार देखो...पहले अनिल से बात करो| ऐसे ही अपना मन मत बनाओ!

संगीता: ठीक है... तो बस इसीलिए आपने मुझे बुलाया है?

मैं: नहीं...

मैं आगे बढ़ा और उन्हें दिवार से सटा के खड़ा कर दिया| उनका बदन मेरे दोनों हाथों के बीच था| मैं उनकी आँखों में दखते हुए उनके ऊपर झुका और उन्हें Kiss करने ही वाला था की इतने में मुझे cigarette की बू आई और सुमन हमारे सामने थी| मेरी पीठ उसकी तरफ थी पर संगीता का मुँह उसी की तरफ था| उसे देखा तो संगीता ने मुझे इशारे से कहा की कोई है| हमने मुड़ के देखा तो वो कड़ी cigarette पि रही थी| उसे cigarette पीता देख हम हैरान थे| मतलब मुझे भी नहीं पता था की वो cigarette पीती है|

सुमन: अरे जीजू...दीदी...आप लोग यहाँ क्या कर रहे हो? (उसने cigarette फेंक दी और वो बुरी तरह से हड़बड़ा गई|)

मैं: वो ...हम.... (इतने में संगीता गुस्से में नीचे चली गई|) तुम cigarette पीती हो?

सुमन: जी कभी-कभी!

मैं: कभी-कभी का कोई सवाल नहीं होता! खेर तुम्हारी जिंदगी है जैसे मर्जी जिओ! वैसे अनिल जानता है?

सुमना: जी हाँ!

मैं आगे कुछ नहीं बोला और नीचे आ गया| मैं अपने कमरे में आया और अनिल से बात करने लगा| इतने में ही नेहा जिद्द करने लगी की उसे कहानी सुन्नी है| तो मैंने अनिल से कहा की तुम गेम खेलो मुझे तुम से कुछ बात करनी है| नेहा कहानी सुनते-सुनते उझे से लिपट के रजाई ओढ़ के सो गई|

मैं: अनिल....PC बंद कर और यहाँ बैठ, कुछ पूछना है तुझ से?

अनिल: जी अभी आया| (उसने PC बंद किया और दूसरी रजाई ओढ़के बगल में लेट गया|)

मैं: सुमना... cigarette पीती है? (ये सुन के उसका चेहरा फीका पड़ गया|)

अनिल: जी...वो... हाँ!

मैं: हम्म्म्म ....

अनिल: पर आपको कैसे पता?

मैं: हम अभी छत पे थे और वो cigarette पीते हुए आ गई|

अनिल: मतलब दीदी ने भी देख लिया? सत्यानाश!

मैं: Dude .... कल अपनी दीदी का सामना करने के लिए तैयार रहना|

अनिल: जीजू... please help me!

मैं: I can't ..... until you tell me everything.


 इतने में दरवाजे पे दस्तक हुई और संगीता एक दम से अंदर आई और बोली;

संगीता: अनिल...तुझे मालूम है ना वो लड़की cigarette पीती है? और तू...तू भी cigarette पीता है ना?

अनिल: नहीं दीदी...नहीं...मैं नहीं पीता|

संगीता: (मुझ से) देखा...कहाँ था न मुझे वो लड़की अजीब लगी| उस समय मुझे उसके मुँह से ऐसी ई बू आई थी| मुझे नहीं पता था की ये cigarette की बू है|

मैं: बाबू calm down! अगर वो सिगरेट पीती भी है तो...क्या प्रॉब्लम है?

संगीता: क्यों पीती है? ऐसी कौन सी बिमारी है?

मैं: यार अनिल उसे कहेगा तो वो छोड़ देगी|

अनिल: हाँ दीदी..वो पक्का छोड़ देगी?

संगीता: तूने मुझे बवकूफ समझा है? cigarette और शराब कभी छूटती है? तू उससे शादी नहीं कर सकता!

मैं: Hey ...Hey ...Hey ..... Don't jump to a conclusion ...okay! कल हम उससे बात करते हैं| अभी आप सो जाओ..और उसे कुछ मत कहना...promise me! अगर वो कुछ कहे तो कहना कल बात करते हैं!

संगीता: ठीक है...पर शादी से पहले ये मामला सुलझना चाहिए! (उन्होंने अनिल से कहा|)

अनिल: जी दीदी!

मैं: अच्छा बाबू..अब आप जाओ और सो जाओ|

वो चलीं गईं|

अनिल: thanks जीजू आपने वर्ल्ड वॉर रुकवा दी| वरना दीदी आज उसे घर से बाहर ही सुलाती| You really know how to control her anger!

मैं: Atleast for now she’s quite… पर बेटा...कल की तैयारी कर| उनकी मर्जी के आगे मेरी भी नहीं चलती...और अभी तो माँ-पिताजी ने भी तुझ से कल बहुत सवाल पूछने हैं?

अनिल: मर गया|

सुबह हुई और बच्चों के स्कूल जाने के बाद मैं चाय पी रहा था, सुमन कित्च्ने में मदद करना चाहती थी पर संगगता मदद नहं करने दे रही थी| चूँकि पिताजी और माँ डाइनिंग टेबल पर ही बैठे थे इसलिए संगीता के होंठों पे चुप्पी थी| अगले पल गुस्से में संगीता नादर अपने कमरे में चली गई| अनिल और सुमन माँ-पिताजी के सामने बैठे थे...मैं उन्हें मानाने के लिए अंदर चला गया| वो बिस्तर के सामने कड़ी हो के रजाई तह लगा रही थीं की मैंने उन्हें पीछे से गले लगा लिया|

संगीता: छोड़िये! माँ-पिताजी देख लेंगे!

मैं: अच्छा पर पहले बताओ की मूड क्यों ऑफ है?

संगीता: वो मुझे वो लड़की नहीं जचि! रात भर मुझसे बात करने की कोशिश करती रहे पर मैं ने कुछ नहीं कहा|

मैं: Awwwww बाबू!

संगीता: आप ना... बहुत तरफदारी कर रहे हो उसकी! बार-बार बाबू कह के मुझे मन लेते हो! (और वो आके मेरे गले लग गईं|)

मैं: यार...चलो बाहर ..माँ-पिताजी बाहर बैठे हैं...चाय पीते हैं|

मैं उन्हें किसी तरह बाहर बुला लाया और सब चाय पी रहे थे|





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