Thursday, December 19, 2013

भाई बहन का खेल-1

भाई बहन का खेल-1


मेरा नाम सचिन है। मैं एक छोटे से कस्बे का रहने वाला हूँ। मेरे पिता सरकारी दफ़्तर में लिपिक हैं। मेरी उम्र 19 वर्ष की थी जब मैं और अपने ननिहाल गाँव गया था। वहाँ मेरे मामा की शादी थी। वहाँ पर सभी सगे संबंधी आने वाले थे। हम लोग शादी के दस बारह दिन पहले ही पहुँच गए थे। मेरे पिता जी हम लोग को वहाँ छोड़ कर वापस अपनी ड्यूटी पर चले गए और शादी से एक-दो दिन पहले आने की बात बोल गए।
वहाँ पर जयपुर से मेरे मौसी-मौसा भी अपने बाल बच्चों के साथ आये थे। मेरी एक ही मौसी है उनका एक बेटा और एक बेटी है। बेटे का नाम रोहित और उसकी उम्र लगभग 20 साल की थी। जबकी मौसी की बेटी का नाम दीपिका है और उसकी उम्र तब लगभग 18 साल की थी। हम तीनों में बहुत दोस्ती है। मेरे मौसा भी अपने परिवार को पहुँचा कर वापस अपने घर चले गए। उनका कपड़े का कारोबार है, इस व्यापार में कम समय में ही काफी दौलत कमा ली थी उन्होंने। उनका परिवार काफी आधुनिक विचारधारा का हो गया था। हम लोग लगभग तीन वर्षों के बाद एक दूसरे से मिले थे।
मैं, रोहित और दीपिका देर रात तक गप्पें हांकते थे। दीपिका पर जवानी छाती जा रही थी। उसके चूचे विकसित हो चुके थे। मैं और रोहित अक्सर खेतों में जाकर सेक्स की बातें करते थे। रोहित ने मुझे सिगरेट पीने सिखाया। रोहित काफी सारी ब्लू फिल्में देख चुका था और मैं तब तक इन सबसे वंचित ही था इसलिए वो सेक्स ज्ञान के मामले में गुरु था।
एक दिन जब हम दोनों खेतों की तरफ सिगरेट का सुट्टा मारने निकलने वाले थे तभी दीपिका ने पीछे से आवाज लगाई- कहाँ जा रहे हो तुम दोनों?
मैंने कहा- बस यूँ ही खेतों की तरफ ठंडी ठंडी हवा खाने !
दीपिका- मैं भी चलूँगी।
मैं कुछ सोचने लगा मगर रोहित ने कहा- चल !
अब वो भी हमारे साथ खेतों की तरफ चल दी। मैं सोचने लगा यह कहाँ जा रही है हमारे साथ? अब तो हम दोनों भाइयों के बीच सेक्स की बातें भी ना हो सकेंगी ना ही सिगरेट पी पाएंगे। लेकिन जब हम एक सुनसान जगह पार आये और एक तालाब के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठ गए तो रोहित ने अपनी जेब से सिगरेट निकाली और एक मुझे दी। मैं दीपिका के सामने सिगरेट नहीं पीना चाहता था क्योंकि मुझे डर था कि दीपिका घर में सबको बता देगी लेकिन रोहित ने कहा- बिंदास हो के पी ले यार ! ये कुछ नहीं कहेगी।
लेकिन दीपिका बोली- अच्छा... तो छुप छुप के सिगरेट पीते हो? चलो घर में सबको बताऊँगी।
मैं तो डर गया, बोला- नहीं, दीपिका ऐसी बात नहीं है। बस यूँ ही देख रहा था कि कैसा लगता है, मैंने आज तक अपने घर में कभी नहीं पी है। यहाँ आकर ही रोहित ने मुझे सिगरेट पीना सिखलाया है।
दीपिका ने जोर का ठहाका लगाया, बोली- बुद्धू, इतना बड़ा हो गया और सिगरेट पीने में शर्माता है? अरे रोहित, कितना शर्मीला है यह।
रोहित ने मुस्कुरा कर एक और सिगरेट निकाली और दीपिका को देते हुए कहा- अभी बच्चा है यह !
मैं चौंक गया, दीपिका सिगरेट पीती है?
दीपिका ने सिगरेट को मुँह से लगाया और जला कर एक गहरा कश लेकर ढेर सारा धुंआ ऊपर की तरफ निकालते हुए कहा- आह !! मन तरस रहा था सिगरेट पीने के लिए।
तब तक रोहित ने भी सिगरेट जला ली थी, उसने कहा- अरे यार सचिन, शहर में लड़कियाँ भी किसी से कम नहीं। सिगरेट पीने में भी नहीं। वहाँ जयपुर में हम दोनों रोज़ 2-3 सिगरेट एक साथ पीते हैं। एकदम बिंदास है दीपिका। चल अब शर्माना छोड़ और सिगरेट पी।
मैंने भी सिगरेट सुलगाई और आराम से पीने लगा, हम तीनों एक साथ धुंआ उड़ाने लगे।
दीपिका- अब मैं भी रोज आऊँगी तुम दोनों के साथ सिगरेट पीने।
रोहित- हाँ, चली आना।
सिगरेट पीकर हम तीनों वापस घर चले आये। अगले दिन भी हम तीनों वहीं पर गए और सिगरेट पी। अभी भी मामा की शादी में 10 दिन बचे थे।
अगले दिन सुबह सुबह मामा रोहित को लेकर शादी का जोड़ा लेने शहर चले गए। दिन भर की खरीददारी के बाद देर रात को लौटने का प्रोग्राम था। दोपहर में लगभग सभी सो रहे थे, मैं और दीपिका एक कमरे में बैठ कर गप्पें हांक रहे थे।
अचानक दीपिका बोली- चल ना खेत पर, सुट्टा मारते हैं। बदन अकड़ रहा है।
मैंने कहा- लेकिन मेरे पास सिगरेट नहीं है।
दीपिका- मेरे पास है न ! तू चिंता क्यों करता है?
अब मेरा भी मन हो गया सुट्टा मारने का, हम दोनों ने नानी को कहा- दीपिका और मैं दुकान तक जा रहे हैं। दीपिका को कुछ सामान लेना है।
कह कर हम दोनों फिर अपने पुराने अड्डे पर आ गए। दोपहर के दो बज रहे थे। दूर दूर तक कोई आदमी नहीं दिख रहा था। हम दोनों बरगद के विशाल पेड़ के पीछे छिप कर बैठ गए और दीपिका ने सिगरेट निकाली। हम दोनों ने सिगरेट पीनी शुरू की।
दीपिका ने एक टीशर्ट और स्कर्ट पहन रखी थी जिससे उसकी गोरी गोरी टांगें झलक रही थी। उस दिन वह कुछ ज्यादा ही अल्हड़ सी मस्त दिख रही थी। उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और मेरे से सट कर सिगरेट पीने लगी।
धीरे धीरे मुझे अहसास हुआ कि वो अपनी चूची मेरे सीने पर दबा रही है। पहले तो मैं कुछ संभल कर बैठने की कोशिश करने लगा मगर वो लगातार मेरे सीने की तरफ झुकती जा रही थी।
अचानक उसने कहा- देख, तू मुझे अपनी सिगरेट पिला। मैं तुझे अपनी सिगरेट पिलाती हूँ। देखना कितना मज़ा आयेगा।
मैंने कहा- ठीक है।
उसने मुझे अपनी सिगरेट मेरे होठों पर लगा दी, उसकी सिगरेट के ऊपर उसके थूक का गीलापन था। लेकिन मैंने उसे अपने होठों से लगाया और कश लिया। फिर मैंने अपनी सिगरेट उसके होठों पर लगाई और उसे कश लेने को कहा, उसने भी जोरदार कश लगाया। मेरा मन थोड़ा बदल गया, इस बार मैंने उसके होठों पर सिगरेट ही नहीं रखा बल्कि अपने उँगलियों से उसके होठों को सहलाने भी लगा। उसे बुरा नहीं माना, मैं उसके होठों को छूने लगा, वो चुपचाप मेरे कंधे पर रखे हुए हाथ से मेरे गालों को छूने लगी। हम दोनों चुपचाप एक दूसरे के होंठ और गाल सहला रहे थे। धीरे धीरे मेरा लंड खड़ा हो रहा था।
सिगरेट ख़त्म हो चुकी थी, मैंने कहा- दीपिका, अब हमें चलना चाहिए।
दीपिका- रुक न, थोड़ी देर के बाद एक और पियेंगे, तब चलना !
मैंने कहा- ठीक है।
तभी दीपिका ने कहा- मुझे पिशाब लगी है।
मैंने कहा- कर ले बगल की झाड़ी में !
दीपिका- मुझे झाड़ी में डर लगता है, तू भी मेरे साथ चल !
मैंने कहा- मेरे सामने करेगी क्या?
दीपिका- नहीं, लेकिन तू मेरी बगल में रहना। पीछे से कोई सांप-बिच्छु आ गया तो?
मैंने- ठीक है, चल !
मैं उसे लेकर झाड़ी के पीछे चला गया, बोला- कर ले यहाँ।
वो बोली- ठीक है। लेकिन तू मेरे पीछे देखते रहना, कोई सांप-बिच्छू ना आ जाये।
कह कर मेरे तरफ पीठ कर के उसने अपने स्कर्ट के अन्दर हाथ डाला और अपनी पेंटी को घुटनों के नीचे सरका ली और स्कर्ट को ऊपर करके मूत करने बैठ गई। पीछे से उसकी गोरी गोरी गांड दिख रही थी और उसका पेशाब उसके चूत से होते हुए उसके गांड की दरार में से होकर नीचे कर गिर रहा था। उसले पिशाब करने की 'छुर्र शुर्र' आवाज़ काफी जोर जोर से आ रही थी। थोड़ी देर में उसका पेशाब समाप्त हो गई, वो खड़ी हो गई, उसने अपनी पेंटी को ऊपर किया और बोली- चलो अब।
मैंने कहा- तू जाकर बैठ, मैं भी पिशाब करके आता हूँ।
वो बोली- तो कर ले न अभी।
मैंने कहा- तू जायेगी तब तो?
वो बोली- अरे, जब मैं लड़की होकर तेरे सामने मूत सकती हूँ तो क्या तू लड़का होके मेरे सामने नहीं मूत सकता?
मैं बोला- ठीक है।
मैं हल्का सा मुड़ा और अपनी पैंट खोल कर कमर से नीचे कर दिया। फिर मैंने अपना अंडरवियर को ऊपर से नीचे कर अपने लंड को निकाला। दीपिका के चूतड़ और गांड को देख कर यह खड़ा हो गया था। मैंने अपने लंड के मुंह पर से चमड़ी को नीचे किया और जोर से पिशाब करना शुरू किया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मेरा पेशाब लगभग तीन मीटर की दूरी पर गिर रहा था। दीपिका आँखें फाड़ मेरे लंड और पेशाब की धार को देख रही थी।
वो अचानक मेरे सामने आ गई और बोली- बाप रे बाप ! तेरा पेशाब इतनी दूर गिर रहा है?
कहानी जारी रहेगी !
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