प्यारा देवर-1
(कोमलप्रीत कौर के गरम गरम किस्से)
(कोमलप्रीत कौर के गरम गरम किस्से)
पिछली गर्मियों की बात है जब मेरे पति की मौसी का लड़का विकास हमारे घर आया हु*आ था। वो बहुत ही सीधा साधा और भोला सा है। उसकी उम्र करीब सत्रह-अठारह की होगी, मगर उसका बदन ऐसा कि किसी भी औरत को आकर्षित कर ले। मगर वो ऐसा था कि लड़की को देख कर उनके सामने भी नहीं आता था। मगर मैं उस से चुदने के लि*ए तड़प रही थी और वो ऐसा बुद्धू था कि उसको मेरी जवानी दिख ही नहीं रही थी। मैं उसको अपनी गाण्ड हिला हिला कर दिखाती रहती मगर वो देख कर भी दूसरी और मुँह फेर लेता। मैं समझ चुकी थी कि यह शर्मीला लड़का कुछ नहीं करेगा, जो करना है मुझे ही करना है।
एक दिन सुबह के करीब नौ बजे का वक्त था। सास और ससुर चाय-नाश्ता करके तैयार हो गुरुद्वारे और खेतों के लिये निकल गये थे। मैं भी नहा-धो कर सज-संवर कर तैयार हुई। फिर नौकरानी से चाय लेकर जब उसके कमरे में गई तो वो सो रहा था मगर उसका बड़ा सा कड़क लौड़ा जाग रहा था। मेरा मतलब कि उसका लौड़ा पजामे के अन्दर खड़ा था और पजामे को टैंट बना रखा था।
लण्ड तो मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी है। मेरा मन उसका लौड़ा देख कर बेहाल हो रहा था। अचानक उसकी आँख खुल गई। वो अपने लौड़े को देख कर घबरा गया और झट से अपने ऊपर चादर लेकर अपने लौड़े को छुपा लिया। मैं चाय लेकर बैड पर ही बैठ गई और अपनी कमर उसकी टांगों से लगा दी। वो अपनी टाँगें दूर हटाने की कोशिश कर रहा था मगर मैं ऊपर उठ कर उसके पेट से अपनी गाण्ड लगा कर बैठ गई।
उसकी परेशानी बढ़ती जा रही थी और शायद मेरे गरम बदन के छूने से उसका लौड़ा भी बड़ा हो रहा था जिसको वो चादर से छिपा रहा था।
मैंने उसको कहा- “विकास उठो और चाय पी लो!”
मगर वो उठता कैसे... उसके पजामे में तो टैंट बना हुआ था। वो बोला- “भाभी! चाय रख दो, मैं पी लूँगा।”
मैंने कहा- “नहीं! पहले तुम उठो, फिर मैं जाऊँगी।”
तो वो अपनी टांगों को जोड़ कर बैठ गया और बोला- “लाओ भाभी, चाय दो।”
मैंने कहा- “नहीं! पहले अपना मुँह धोकर आओ, फिर चाय पीना।”
अब तो मानो उसको कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। वो बोला- “नहीं भाभी! ऐसे ही पी लेता हूँ, तुम चाय दे दो।”
मैंने चाय एक तरफ़ रख दी और उसका हाथ पकड़ कर उसको खींचते हुए कहा- “नहीं! पहले मुंह धोकर आओ फिर चाय मिलेगी।”
वो एक हाथ से अपने लौड़े पर रखी हुई चादर को संभाल रहा था और बैड से उठने का नाम नहीं ले रहा था। मैंने उसको पूछा- “विकास! यह चादर में क्या छुपा रहे हो?”
तो वो बोला- “भाभी कुछ नहीं है।”
मगर मैंने उसकी चादर पकड़ कर खींच दी तो वो दौड़ कर बाथरूम में घुस गया। मुझे उस पर बहुत हंसी आ रही थी। वो काफी देर के बाद बाथरूम से निकला जब उसका लौड़ा बैठ गया।
ऐसे ही एक दिन मैंने अपने कमरे के पंखे की तार डंडे से तोड़ दी और फिर विकास को कहा- “तार लगा दो।”
वो मेरे कमरे में आया और बोला- “भाभी, कोई स्टूल चाहिए... जिस पर मैं खड़ा हो सकूँ।”
मैंने स्टूल ला कर दिया और विकास उस पर चढ़ गया। मैंने नीचे से उसकी टाँगें पकड़ लीं। मेरा हाथ लगते ही जैसे उसको करंट लग गया हो, वो झट से नीचे उतर गया।
मैंने पूछा- “क्या हुआ देवर जी? नीचे क्यों उतर गये?”
तो वो बोला- “भाभी जी, आप मुझे मत पकड़ो, मैं ठीक हूँ।”
जैसे ही वो फिर से ऊपर चढ़ा, मैंने फिर से उसकी टाँगें पकड़ ली।वो फिर से घबरा गया और बोला- “भाभी जी, आप छोड़ दो मुझे, मैं ठीक हूँ।”
मैंने कहा- “नहीं विकास, अगर तुम गिर गये तो...?”
वो बोला- “नहीं गिरता.. आप स्टूल को पकड़ लीजिये...!”
मैंने फिर से शरारत भरी हंसी हसंते हुए कहा- “अरे स्टूल गिर जाये तो गिर जाये, मैं अपने प्यारे देवर को नहीं गिरने दूंगी...!”
मेरी हंसी देख कर वो समझ गया कि भाभी मुझे नहीं छोड़ेंगी और वो चुपचाप फिर से तार ठीक करने लगा।
मैं धीरे-धीरे उसकी टांगों पर हाथ ऊपर ले जाने लगी जिससे उसकी हालत फिर से पतली होती मुझे दिख रही थी। मैं धीरे-धीरे अपने हाथ उसकी जाँघों तक ले आई मगर उसके पसीने गर्मी से कम मेरा हाथ लगने से ज्यादा छुट रहे थे। वो जल्दी से तार ठीक करके बाहर जाने लगा तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली- “देवर जी, आपने मेरा पंखा तो ठीक कर दिया, अब बोलो मैं आपकी क्या सेवा करूँ?”
तो वो बोला- “नहीं भाभी, मैं कोई दुकानदार थोड़े ही हूँ जो आपसे पैसे लूँगा।”
मैंने कहा- “तो मैं कौन से पैसे दे रही हूँ, मैं तो सिर्फ सेवा के बारे में पूछ रही हूँ, जैसे आपको कुछ खिलाऊँ या पिलाऊँ?”
वो बोला- “नहीं भाभी, अभी मैंने कुछ नहीं पीना!” और बाहर भाग गया।
मैं उसको हर रोज ऐसे ही सताती रहती जिसका कुछ असर भी दिखने लगा क्योंकि उसने चोरी-चोरी मुझे देखना शुरू कर दिया। मैं जब भी उसकी ओर अचानक देखती तो वो मेरी गाण्ड या मेरी छाती की तरफ नजरें टिकाये देख रहा होता और मुझे देख कर नजर दूसरी ओर कर लेता। मैं भी जानबूझ कर उसको खाना खिलाते समय अपनी छाती झुक-झुक कर दिखाती, क*ई बार तो बैठे-बैठे ही उसकी पैंट में तम्बू बन जाता और मुझसे छिपाने की कोशिश करता।
मेरा खुद का हाल भी बहुत खराब था। वो जितना मुझसे दूर भागता, उसके लिये मेरी प्यास उतनी ही ज्यादा भड़क रही थी। उसके लण्ड की कल्पना करके दिन रात मुठ मारती। मैं तो उसका लौड़ा अपनी चूत में घुसवाने के लिए इतनी बेक़रार थी, अगर सास-ससुर का डर न होता तो अब तक मैंने ही उसका बलात्कार कर दिया होता।
मैं भूखी शेरनी की तरह उस पर नज़र रखे हुए मौके के इंतज़ार में थी। मगर जल्दी मुझे ऐसा मौका मिल गया। एक दिन हमारे रिश्तेदारों में किसी की मौत हो गई और मेरे सास ससुर को वहाँ जाना पड़ गया।
मैंने आपने मन में ठान ली थी कि आज मैं इस लौन्डे से चुद कर ही रहूंगी... चाहे मुझे उसके साथ कितनी भी जबरदस्ती करनी पड़े, उसके कुँवारे लण्ड से अपनी चूत की आग बुझा कर ही रहुँगी। जो होगा बाद में देखा जायेगा।
सास-ससुर के जाते ही विकास भी मुझसे बचने के लिए बहाने की तलाश में था। पहले तो वो काफी देर तक घर से बाहर रहा। एक घंटे बाद जब मैंने उसके मोबाइल पर फोन किया और खाना खाने के लिए घर बुलाया तब जाकर वो घर आया।
उसके आने के पहले ही मैं फटाफट तैयार हुई। उसे रिझाने के लिये मैंने नेट का बहुत ही झीना और कसा हुआ सलवार-कमीज़ पहन लिया। मेरी कमीज़ का गला कुछ ज्यादा ही गहरा था उर उसके नीचे मेरी ब्रा की झलक बिल्कुल साफ नज़र आ रही थी। अपनी टांगों और गाण्ड की खूबसूरती बढ़ाने के लिये ऊँची ऐड़ी की सैंडल भी पहन ली और थोड़ा मेक-अप भी किया। फिर मूड बनाने के लिये शराब का पैग भी मार लिया।
जब वो आया तो मैं अपना और उसका खाना अपने कमरे में ही ले गई और उसको अपने कमरे में बुला लिया। मगर वो अपना खाना उठा कर अपने कमरे की ओर चल दिया। मेरे लाख कहने के बाद भी वो नहीं रुका तब मैं भी अपना खाना उसके कमरे में ले गई और बिस्तर पर उसके साथ बैठ गई।
वो फिर भी मुझसे शरमा रहा था। मैंने अपना दुपट्टा भी अपनी छाती से हटा लिया मगर वो आज मुझसे बहुत शरमा रहा था। उसको भी पता था कि आज मैं उसको ज्यादा परेशान करूँगी।
मैंने उससे पूछा- “विकास... मैं तुम को अच्छी नहीं लगती क्या...?”
तो वो बोला- “नहीं भाभी, आप तो बहुत अच्छी हैं...!”
मैंने कहा- “तो फिर तुम मुझसे हमेशा भागते क्यों रहते हो...?”
वो बोला- “भाभी, मैं कहाँ आपसे भागता हूँ?”
मैंने कहा- “फिर अभी क्यों मेरे कमरे से भाग आये थे? शायद मैं तुम को अच्छी नहीं लगती, तभी तो तुम मुझसे ठीक तरह से बात भी नहीं करते!”
“नहीं भाभी, अभी तो मैं बस यूँ ही अपने कमरे में आ गया था.. आप तो बहुत अच्छी हैं…”
मैंने थोड़ा डाँटते हुए कहा- “झूठ मत बोलो! मैं तुम को अच्छी नहीं लगती, तभी तो मेरे पास भी नहीं बैठते। अभी भी देखो कैसे दूर होकर बैठे हो? अगर मैं सच में तुम को अच्छी लगती हूँ तो मेरे पास आकर बैठो....!”
मेरी बात सुन कर वो थोड़ा सा मेरी ओर सरक गया।
यह देख कर मैं बिलकुल उसके साथ जुड़ कर बैठ गई जिससे मेरी गाण्ड उसकी जांघ को और मेरी छाती के उभार उसकी बाजू को छूने लगे।
मैंने कहा- “ऐसे बैठते हैं देवर भाभियों के पास.... अब बोलो ऐसे ही बैठो करोगे या दूर दूर...?”
वो बोला- “भाभी, ऐसे ही बैठूँगा मगर मौसी मुझसे गुस्सा तो नहीं होगी? क्योंकि लड़कियों के साथ ऐसे कोई नहीं बैठता।”
मैंने कहा- “अच्छा अगर तुम अपनी मौसी से डरते हो तो उनके सामने मत बैठना। मगर आज वो घर पर नहीं है इसलिए आज जो मैं तुम को कहूँगी वैसा ही करना।”
उसने भी शरमाते हुए हाँ में सर हिला दिया।
अब हम खाना खा चुके थे, मैंने उसे कहा- “अब मेरे कमरे में आ जाओ... वहाँ एयर-कन्डिशनर है!
वो बोला- “भाभी, आप जाओ, मैं आता हूँ।”
उसकी बात सुन कर जब मैंने उसकी पैंट की ओर देखा तो मैं समझ गई कि यह अब उठने की हालत में नहीं है।
मैंने बर्तन उठाये और रसोई में छोड़ कर अपने सैंडल टकटकाती अपने कमरे में आ गई। थोड़ी देर बाद ही विकास भी मेरे कमरे में आ गया और बिस्तर के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।
मैंने टीवी चालू किया और बिस्तर पर टाँगें लंबी करके बैठ गई और विकास को भी बिस्तर पर आने के लिए कहा।
वो बोला- “नहीं भाभी, मैं यहाँ ठीक हूँ।”
मैंने कहा- “अच्छा तो अपना वादा भूल गये कि तुम मेरे पास बैठोगे...?”
यह सुन कर उसको बिस्तर पर आना ही पड़ा! मगर फिर भी वो मुझसे दूर ही बैठा। मैंने उसको और नजदीक आने के लिए कहा, वो थोड़ा सा और पास आ गया। मैंने फिर कहा तो थोड़ा ओर वो मेरे पास आ गया, बाकी जो थोड़ी बहुत कसर रहती थी वो मैंने खुद उसके साथ जुड़ कर निकाल दी।
वो नज़रें झुकाये बस मेरे पैरों को ही ताक रहा था। मैंने अपनी एक टाँग थोड़ी उठा कर लचकाते हुए अपना सैंडल पहना हुआ पैर हवा में उसकी नज़रों के सामने मरोड़ा और बोली- “क्यों विकास! सैक्सी हैं ना?”
ये शब्द सुनकर वो सकपक गया! “क.... क... कौन... भाभी!”
मुझे हंसी आ गयी और मैं बोली- “सैंडल! अपने सैंडलों के बारे में पूछ रही हूँ मेरे भोले देवर...! बताओ इनमें मेरे पैर सैक्सी लग रहे हैं कि नहीं?”
“जी..जी भाभी! बहुत सुंदर हैं...!”
इसी तरह मैं बीच-बीच में उसे उकसाने के लिये छेड़ रही थी लेकिन वो ऐसे ही छोटे-छोटे जवाब दे कर चुप हो जाता। मेरा सब्र अब जवाब देने लगा था। मैं समझ गयी कि अब तो मुझे इसके साथ जबरदस्ती करनी ही पड़ेगी... पता नहीं फिर मौका मिले या ना मिले। अगर मैं बिल्कुल नंगी भी इसके सामने खड़ी हो जाऊँ तो भी ये चूतिया ऐसे ही नज़रें झुकाये बैठ रहेगा।
टीवी में भी जब भी कोई गर्म नजारा आता तो वो अपना ध्यान दूसरी ओर कर लेता... मगर उसके लौड़े पर मेरा और उन नजारों का असर हो रहा था, जिसको वो बड़ी मुश्किल से अपनी टांगों में छिपा रहा था।
मैंने अपना सर उसके कंधे पर रख दिया और बोली- “विकास आज तो बहुत गर्मी है...”
उसने बस सिर हिला हाँ में जवाब दे दिया। वैसे तो कमरे में ए-सी चल रहा था और गर्मी तो बस मेरे बदन में ही थी।
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