फिर से ठुकवा बैठी-2
उस रात को हुई अपनी मस्त ठुकाई पर! ज़बरदस्त चुदाई जो मुझे जीवन लाल चौंकीदार ने दी!
सच में वो फौलाद था जिसने मेरी तसल्ली करवा दी !
जो कहता था वो सच करके दिखाया और मेरा पूरा-पूरा बाजा बजाया उसने!
वैसे भी मेरा बहुत साथ दिया था उसने। मेरे लिए अपनी सरकारी नौकरी खतरे में डालता था जब भी मुझे स्कूल में दूसरे मास्टरों के साथ एय्याशी करनी होती तो हमें अपना कमरा हमें देता, हमें मौके देता! जरूरत पड़ने पर मैं उससे ही शराब या सिगरेट खरीदने भेज देती थी और उसने कभी आनाकानी नहीं की। इसलिए मैंने उसको आज रात घर बुलाया था ताकि उसको अपना जिस्म सौंप सकूँ! आज फिर मेरी खुशी के लिये फिर से नौकरी खतरे में डालने वाला था क्योंकि उसका काम तो स्कूल में रह कर चौकीदारी करना था और वो मेरे कहने पर पूरी रात मेरे घर पर गुज़ारने वाला था।
घर पहुँच कर मैं ठंडे पानी से नहाई और मैं खाना भी जल्दी खा लिया। उसके बाद ग्यारह बजे का इंतज़ार करते हुए इंटरनेट पर नंगी मुवी देखते हुए मोटे से केले से जी भर कर अपनी चूत चोदते हुए कईं बार झड़ी। इसी दौरान चिल्ड पेप्सी के साथ जिन का एक और पव्वा भी पी गयी थी और नशे में बदमस्त थी। पूरे ग्यारह बजे उसने मेरे घर में दस्तक दी। तेज़ गर्मी के दिन थे लेकिन ए-सी चलने की वजह से घर में काफी सुहावना मौसम था। घर में मैं अक्सर नंग धड़ंग ही रहती थी क्योंकि मैं अकेली ही थी और कोई आता भी था तो कोई आशिक ही! इसलिए मैंने सिर्फ बिकिनी वाली छोटी सी पेंटी और काफी ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने हुए थे। ऊपर से घुटनों तक की नाइटी पहनी हुई थी जो इतनी झीनी थी कि उसे पहनना या ना पहनना एक समान था।
वो अपने साथ देसी शराब की बोतल लेकर आया था। । वो खुद ही रसोई देख कर ग्लास लाया। मैंने भी दो सिगरेट जला लीं।
“मैडम, नारंगी ठर्रा है.... पियोगी या अपनी अंग्रेज़ी पियोगी?” एक ग्लास में पैग बनाते हुए उसने पूछा। वैसे तो मैं अंग्रेज़ी शराब जैसे कि जिन, रम, व्हिस्की वहैरह ही पिती थी लेकिन देसी ठर्रे से भी मुझे परहेज नहीं था। मैंने पहले भी कईं बार देसी शराब पी थी। मेरा तजुर्बे में देसी शराब स्वाद में चाहे तीखी और नागवार होती है लेकिन चाँद पे पहुँचने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। और मैं तो पहले ही नशे में बादलों में उड़ रही थी और चाँद पे जाने के लिये बिल्कुल तैयार थी। “अब तू इतने दिल से लाया है तो मैं भी ठर्रा ही पियूँगी... भर दे मेरा भी ग्लास!” मैं अपनी सिगरेट का कश लेते हुए बोली और दूसरी सिगरेट उसे थमा दी।
“बहुत प्यासा हूँ तेरी चूत का! मेरा लौड़ा खाएगी तो रोज़ ना बुलाया तो मेरा नाम बदल देना!”
“हाँ जीवन! तूने जब आज मुझे अपने लौड़े की झलक दिखलाई, उसी वक़्त जान गई थी कि तू बहुत कमीना है !”
“मैडम इस स्कूल में उन्नीस साल की उम्र से नौकरी कर रहा हूँ, इन सात-आठ सालों में कई मैडमों ने मुझसे चुदवाया था लेकिन तू सबसे अलग चीज़ है!”
“हाँ! बहुत शौक़ीन हूँ मैं चुदाई की! और तू भी आज अपनी कुत्तिया समझ कर चोद मुझे... बहुत कुत्ती चुदासी राँड हूँ मैं!”
मैं तो पहले से ही लगभग नंगी थी। पेग खींचते ही मैंने पहले उसका पजामा उतारा और ऊपर से ही सहलाया पुचकारा, बाकी का पजामा जीवन ने खुद उतार दिया और मैंने उसका कुरता उतार दिया उसकी छाती पर घंने बालों को देख मेरा सेक्स और भड़क उठा। मुझे बालों वाले मर्द बहुत पसंद हैं। मैंने जीवन की छाती पे ना जाने कितने चुम्बन लिए ! वो मेरे अनारों से खेलता रहा और मैं उसकी छाती से और एक हाथ से उसके लौड़े को मसल रही थी।
“साली पेग बना और अपने हाथों से मुझे जाम पिला!”
मैं रंडी की तरह उठी, नशे में झूमती, ऊँची हील की सैंडलों में लड़खड़ाती मैं गांड मटकाती हुई गई और कोठे वाली रंडी की तरह एक जाम उसको पिलाया, एक खुद खींचा! अब तो शराब का नशा पूरे परवान पर था और ऊपर से चुदाई का नशा, मेरा अपने ऊपर कोई नियंत्रण नहीं रह गया था... बैठे बैठे झूम रही थी... बार-बार सिगरेट हाथों से फिसल जाती... कभी खिलखिला कर हंसने लगती तो कभी गुर्राते हुए गालियाँ बकने लगती... ।
नशे में काँपते हाथों से मैंने एक पल में उसका अंडरवीयर उतार दिया- “ओह माय गॉ...; यह लौड़ा है या अजगर?” मेरी आवाज़ भी बहक रही थी।
“मैंने तभी तुझे कहा था कि यह देख, मेरा सोया हुआ लौड़ा भी दूसरों के खड़े लौड़े जैसा है।“
वास्तव में जैसे जैसे मेरा हाथ उस पे फिरने लगा वो उतना ही भयंकर होने लगा।
“साली चूस ले! जब खड़ा हो गया तुझसे चूसा नहीं जायेगा! और फिर जबड़ा तोड़ दूंगा!”
ज़बरदस्ती से मैं डर सी गई और उसके लौड़े के टोपे को चूसने लगी। सही में फिर वो मुझ से मुँह में नहीं लिया जा रहा था तो मैंने उसकी एक गोटी को चूसना शुरु कर दिया और साथ साथ जुबान से उसके लौड़े को चाट रही थी। खुश भी थी, थोड़ा डर भी था। उसको भी शराब चढ़ती जा रही थी, पूरी बोतल (खंबा) डकार चुका थे हम दोनों। मैंने लौड़ा चूसते हुए जब ऊपर देखा और एक और पेग लेने की सोची तो देखा- बोतल ख़त्म थी।
“हरामी की औलाद.... साले लाया भी तो एक ही बोतल... अब क्या अपना मूत पियूँगी!” मैंने गुस्से से कहा|
“चल कुतिया, मुझे तेरे साथ सुहाग रात मनानी है! मैं दारु लेकर आया ठेके से। तब तक बन-सवंर के घूंघट लेकर बैठ जा!”
वो दारू लेने चला गया। मैं भी नशे में झूमती हुई उठी और किसी तरह से सैक्सी सा ब्रा-पेंटी का सेट पहना, लाल रंग की आकर्षक साड़ी पहनी... पहनी क्या, बस किसी तरह लपेट ली... नशे में चुदाई के अलावा और कुछ भी कर पाने की लियाकत तो बची नहीं थी... पेंसिल हील के जो सैंडल पहने हुए थे वही पहने हुए बिस्तर के बीच बैठ गई और पल्लू सरका कर घूंघट कर लिया। जीवन अन्दर आया, कुण्डी लगा मेरे पास आकर मेरा घूंघट उठाया और मेरे होंठ चूसने लगा। मैं भी शरमा के दुल्हन का ढोंग कर रही थी। केले के छिलके की तरह उसने मेरा एक-एक कपड़ा उतार दिया। अब मैं सिर्फ उँची ऐड़ी वाले सैंडल पहने बिल्कुल नंगी उस चौंकीदार के पहलू में थी। वो मेरे बदन पर दारु डाल कर चाटने लगा।
मुझे भी कब से तलब हो रही थी तो मैंने भी एक दो पेग लगाए और फिर जीवन मुझ पर छाने लगा। उसका लौड़ा साधारण नहीं था, हब्शी जैसा था! वो मुझे खींच के बेड के किनारे लाया, खुद खड़ा हुआ और मेरी टाँगें खोल ली और मोटा लौड़ा चूत पे टिका दिया और झटका मारा।
मेरी सांसें रुक गई! नशे में चूर होने के बावजूद जान निकल रही थी मेरी! लेकिन वो नहीं माना!
मेरी चूत फट रही थी, उसने पूरा लौड़ा घुसा दिया जो मेरी बच्चेदानी को छूने लगा!
मैं गिड़गिड़ा रही थी, वो भी नशे में था पर मुझसे कम नशे में था।
वो हर बार पूरा लौड़ा निकालता, फिर डालता!
मैं चीखती रही- चिल्लाती रही- गंदी गंदी गालियाँ बकती रही- जीवन नहीं रुका! और फिर उसने मुझे घोड़ी बना दिया और मुझे चोदने लगा!
वोही लौड़ा अब मुझे स्वर्ग की सैर करवाने लगा था और मेरी गांड खुद ही हिल-हिल कर चुदवाने लगी। लेकिन वो नहीं झड़ने वाला था, उसने मुझे अपने लौड़े पर बिठा फ़ुटबाल की तरह उछाला।
“हाय! तौबा! क्या मर्द है साले! वाह मेरे जीवन लाल शेर! फाड़ दे आज! इस कुतिया को चलने लायक मत छोड़ना!”
पूरी रात जीवन ने मेरी चूत और गाँड दोनों का भुर्ता बना दिया। सुबह होते ही वो तो चला गया लेकिन मैं उस दिन स्कूल नहीं जा पाई। ठर्रे के हैंग-ओवर से सिर तो दर्द से फटा ही जा रहा था, चूत और गाँड भी सूज गयी थी। पूरा दिन कोसे पानी से चूत और गाँड की टकोर करती रही, तब जाकर सूजन उतरी।
और उसके बाद तो हर रोज़ छुट्टी के बाद स्कूल के किसी ना किसी कमरे में चुदवाने लगी!
मैं अपने दूसरे आशिकों को नज़रअंदाज़ करने लगी और सिर्फ जीवन से चुदवाने लगी। उसका लौड़ा था ही निराला कि मुझे और किसी का पसंद ही नहीं आता। वो भी मुझ से बहुत प्यार करने लगा। वो मुझसे शादी करना चाहता था और वो अपनी बीवी को छोड़ देता पर उसके सालों ने उसकी जमकर पिटाई करवा दी। मुझे भी शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी - सिर्फ उसके हलब्बी लौड़े से मतलब था। वो अपनी बीवी को छोड़ मेरे साथ मेरा रखैल बन कर रहने लगा। मैं जीवन के बच्चे की माँ तक बनने वाली हो गई लेकिन मैंने समय रहते बच्चा गिरवा दिया। करीब छः-सात महीने वो मेरा रखैल बन कर मेरे घर रहा और जब भी जैसे भी मैं चाहती वो दिन रात मुझे चोदता। कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। लेकिन मेरी खुशकिस्मती को किसी मादरचोद की बुरी नज़र लग गयी और एक दिन स्कूल जाते वक्त तेजी से आ रहे एक ट्रक की चपेत में आ कर उसकी मौत हो गयी।
दोस्तो, जीवन लाल से - सच कहुँ तो उसके लौड़े से - मैं बहुत प्यार करने लगी थी! दीवानी थी उसकी मस्त चुदाई की। दिन -रात उससे चुदवाती थी। वो भी पूरी निष्ठा से अपना फर्ज़ समझ कर मेरी जिस्मानी जरुरतों को पूरा करने के लिये हमेशा तैयार रहता था।
उससे तो दूर हूँ लेकिन चुदाई से कैसे दूर रहूँ ?
यह मेरे लिए मुश्किल काम बन सा गया था।
जीवन लाल से दूर होने के बाद मेरी हालत देवदसी जैसी हो गयी। स्कूल से घर लौट कर खुद को नशे में डुबो देती। इससे पहले दिन भर में मुश्किल से आधी बोतल शराब ही पीती थी लेकिन अब तो पूरी -पूरी बोतल शराब पी जाती। कोकेन और दूसरी ड्रग्स भी अक्सर लेने लगी। घंटों तक इंटरनेट पर नंगी वेबसाईट या चुदाई की सी-डी देखती रहती। जीवन लाल के लौड़े को याद करते हुए केले, बैंगन, लौकी से बार-बर अपनी चूत चोदती।
जब तक जीवन लाल मेरे साथ था, मैंने बारहवीं के उन लड़कों से कभी-कभी ही चुदवाया था। अब बारहवीं का वो बैच भी निकल गया जिसमें पढ़ने वाले तीन लड़कों से मैंने लेब में चुदवाया था। जीवन लाल की चुदाई से मैं इतनी खुश थी की जिन मास्टरों के साथ संबंध थे, वो तोड़ लिए थे।
नये संबंध बनाने के लिये मैंने स्कूल के बाद बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का फैसला लिया और तीन नए कंप्यूटर खरीद कर ऊपर के हिस्से में सेण्टर खोल लिया जिसमें बेसिक, सी ++, सी, वर्ड, एक्स्सल तक पढ़ाने की सोची। इसके पीछे असली मक्सद था कि ट्यूशन पढ़ने आये लड़कों को अपनी चूत में भड़कते शोले शाँत करने के लिये रिझा सकूँ।
मैंने एक बोर्ड भी बनवाया और पेम्प्लेट्स भी छपवाए और कुछ ही दिन में मेरे पास तीन लड़कियाँ पड़ने को आने लगी। लेकिन मुझे ज्यादा ज़रुरत लड़कों की थी। खैर मेरी चुदाई के किस्से तो आम सुने जाते थे, सभी जानते थे कि मैं अकेली किसलिए रहती हूँ। मुझे उम्मीद थी कि मेरी बदनामी की वजह से जल्दी ही लड़के भी पढ़ने आने लगेंगे।
खैर कुछ दिन ही बीते थे कि मेरे पास दो लड़के आये, उनकी उम्र करीब चौबीस-पच्चीस साल की होगी, मुझे बोले कि उनको कंप्यूटर की बेसिक चीज़ें सीखनी हैं क्योंकि वो दोनों ही क्लर्क थे सरकारी जॉब पर और क्योंकि अब सारा काम कम्प्यूटर पर होने लगा तो वो भी कुछ सीखने की सोच रहे थे। दोनों बहुत हट्टे कट्टे थे। दोनों ही शादीशुदा थे, नयी नयी शादी हुई थी।
उधर मेरे पास अब पाँच लड़कियों का बैच था, स्कूल से मैं दो बजे घर आती थी, साढ़े चार बजे मैंने लड़कियों का बैच रखा और उन दोनों को मैंने सात बजे का समय दे दिया। चुदाई की आग तो निरंतर भड़कती रहती थी मेरे अन्दर! मैं उन दोनों पर फ़िदा होने लगी।
मैं तो जिस्म की नुमाईश करने वाले सैक्सी कपड़े हमेशा पहनती ही थी पर उनकी क्लास के वक्त तो मैं बिल्कुल ही बेशर्म हो जाती। उनकी निगाहें मेरे जिस्म पर टिक जाती। समझाने के बहाने, माउस के बहाने झुक कर अपने जलवे दिखाती, उनसे सट जाती तो वो भी समझने लगे थे कि आग बराबर लगी हुई है, बस माचिस की एक तीली चाहिए।
उस रात को हुई अपनी मस्त ठुकाई पर! ज़बरदस्त चुदाई जो मुझे जीवन लाल चौंकीदार ने दी!
सच में वो फौलाद था जिसने मेरी तसल्ली करवा दी !
जो कहता था वो सच करके दिखाया और मेरा पूरा-पूरा बाजा बजाया उसने!
वैसे भी मेरा बहुत साथ दिया था उसने। मेरे लिए अपनी सरकारी नौकरी खतरे में डालता था जब भी मुझे स्कूल में दूसरे मास्टरों के साथ एय्याशी करनी होती तो हमें अपना कमरा हमें देता, हमें मौके देता! जरूरत पड़ने पर मैं उससे ही शराब या सिगरेट खरीदने भेज देती थी और उसने कभी आनाकानी नहीं की। इसलिए मैंने उसको आज रात घर बुलाया था ताकि उसको अपना जिस्म सौंप सकूँ! आज फिर मेरी खुशी के लिये फिर से नौकरी खतरे में डालने वाला था क्योंकि उसका काम तो स्कूल में रह कर चौकीदारी करना था और वो मेरे कहने पर पूरी रात मेरे घर पर गुज़ारने वाला था।
घर पहुँच कर मैं ठंडे पानी से नहाई और मैं खाना भी जल्दी खा लिया। उसके बाद ग्यारह बजे का इंतज़ार करते हुए इंटरनेट पर नंगी मुवी देखते हुए मोटे से केले से जी भर कर अपनी चूत चोदते हुए कईं बार झड़ी। इसी दौरान चिल्ड पेप्सी के साथ जिन का एक और पव्वा भी पी गयी थी और नशे में बदमस्त थी। पूरे ग्यारह बजे उसने मेरे घर में दस्तक दी। तेज़ गर्मी के दिन थे लेकिन ए-सी चलने की वजह से घर में काफी सुहावना मौसम था। घर में मैं अक्सर नंग धड़ंग ही रहती थी क्योंकि मैं अकेली ही थी और कोई आता भी था तो कोई आशिक ही! इसलिए मैंने सिर्फ बिकिनी वाली छोटी सी पेंटी और काफी ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने हुए थे। ऊपर से घुटनों तक की नाइटी पहनी हुई थी जो इतनी झीनी थी कि उसे पहनना या ना पहनना एक समान था।
वो अपने साथ देसी शराब की बोतल लेकर आया था। । वो खुद ही रसोई देख कर ग्लास लाया। मैंने भी दो सिगरेट जला लीं।
“मैडम, नारंगी ठर्रा है.... पियोगी या अपनी अंग्रेज़ी पियोगी?” एक ग्लास में पैग बनाते हुए उसने पूछा। वैसे तो मैं अंग्रेज़ी शराब जैसे कि जिन, रम, व्हिस्की वहैरह ही पिती थी लेकिन देसी ठर्रे से भी मुझे परहेज नहीं था। मैंने पहले भी कईं बार देसी शराब पी थी। मेरा तजुर्बे में देसी शराब स्वाद में चाहे तीखी और नागवार होती है लेकिन चाँद पे पहुँचने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। और मैं तो पहले ही नशे में बादलों में उड़ रही थी और चाँद पे जाने के लिये बिल्कुल तैयार थी। “अब तू इतने दिल से लाया है तो मैं भी ठर्रा ही पियूँगी... भर दे मेरा भी ग्लास!” मैं अपनी सिगरेट का कश लेते हुए बोली और दूसरी सिगरेट उसे थमा दी।
“बहुत प्यासा हूँ तेरी चूत का! मेरा लौड़ा खाएगी तो रोज़ ना बुलाया तो मेरा नाम बदल देना!”
“हाँ जीवन! तूने जब आज मुझे अपने लौड़े की झलक दिखलाई, उसी वक़्त जान गई थी कि तू बहुत कमीना है !”
“मैडम इस स्कूल में उन्नीस साल की उम्र से नौकरी कर रहा हूँ, इन सात-आठ सालों में कई मैडमों ने मुझसे चुदवाया था लेकिन तू सबसे अलग चीज़ है!”
“हाँ! बहुत शौक़ीन हूँ मैं चुदाई की! और तू भी आज अपनी कुत्तिया समझ कर चोद मुझे... बहुत कुत्ती चुदासी राँड हूँ मैं!”
मैं तो पहले से ही लगभग नंगी थी। पेग खींचते ही मैंने पहले उसका पजामा उतारा और ऊपर से ही सहलाया पुचकारा, बाकी का पजामा जीवन ने खुद उतार दिया और मैंने उसका कुरता उतार दिया उसकी छाती पर घंने बालों को देख मेरा सेक्स और भड़क उठा। मुझे बालों वाले मर्द बहुत पसंद हैं। मैंने जीवन की छाती पे ना जाने कितने चुम्बन लिए ! वो मेरे अनारों से खेलता रहा और मैं उसकी छाती से और एक हाथ से उसके लौड़े को मसल रही थी।
“साली पेग बना और अपने हाथों से मुझे जाम पिला!”
मैं रंडी की तरह उठी, नशे में झूमती, ऊँची हील की सैंडलों में लड़खड़ाती मैं गांड मटकाती हुई गई और कोठे वाली रंडी की तरह एक जाम उसको पिलाया, एक खुद खींचा! अब तो शराब का नशा पूरे परवान पर था और ऊपर से चुदाई का नशा, मेरा अपने ऊपर कोई नियंत्रण नहीं रह गया था... बैठे बैठे झूम रही थी... बार-बार सिगरेट हाथों से फिसल जाती... कभी खिलखिला कर हंसने लगती तो कभी गुर्राते हुए गालियाँ बकने लगती... ।
नशे में काँपते हाथों से मैंने एक पल में उसका अंडरवीयर उतार दिया- “ओह माय गॉ...; यह लौड़ा है या अजगर?” मेरी आवाज़ भी बहक रही थी।
“मैंने तभी तुझे कहा था कि यह देख, मेरा सोया हुआ लौड़ा भी दूसरों के खड़े लौड़े जैसा है।“
वास्तव में जैसे जैसे मेरा हाथ उस पे फिरने लगा वो उतना ही भयंकर होने लगा।
“साली चूस ले! जब खड़ा हो गया तुझसे चूसा नहीं जायेगा! और फिर जबड़ा तोड़ दूंगा!”
ज़बरदस्ती से मैं डर सी गई और उसके लौड़े के टोपे को चूसने लगी। सही में फिर वो मुझ से मुँह में नहीं लिया जा रहा था तो मैंने उसकी एक गोटी को चूसना शुरु कर दिया और साथ साथ जुबान से उसके लौड़े को चाट रही थी। खुश भी थी, थोड़ा डर भी था। उसको भी शराब चढ़ती जा रही थी, पूरी बोतल (खंबा) डकार चुका थे हम दोनों। मैंने लौड़ा चूसते हुए जब ऊपर देखा और एक और पेग लेने की सोची तो देखा- बोतल ख़त्म थी।
“हरामी की औलाद.... साले लाया भी तो एक ही बोतल... अब क्या अपना मूत पियूँगी!” मैंने गुस्से से कहा|
“चल कुतिया, मुझे तेरे साथ सुहाग रात मनानी है! मैं दारु लेकर आया ठेके से। तब तक बन-सवंर के घूंघट लेकर बैठ जा!”
वो दारू लेने चला गया। मैं भी नशे में झूमती हुई उठी और किसी तरह से सैक्सी सा ब्रा-पेंटी का सेट पहना, लाल रंग की आकर्षक साड़ी पहनी... पहनी क्या, बस किसी तरह लपेट ली... नशे में चुदाई के अलावा और कुछ भी कर पाने की लियाकत तो बची नहीं थी... पेंसिल हील के जो सैंडल पहने हुए थे वही पहने हुए बिस्तर के बीच बैठ गई और पल्लू सरका कर घूंघट कर लिया। जीवन अन्दर आया, कुण्डी लगा मेरे पास आकर मेरा घूंघट उठाया और मेरे होंठ चूसने लगा। मैं भी शरमा के दुल्हन का ढोंग कर रही थी। केले के छिलके की तरह उसने मेरा एक-एक कपड़ा उतार दिया। अब मैं सिर्फ उँची ऐड़ी वाले सैंडल पहने बिल्कुल नंगी उस चौंकीदार के पहलू में थी। वो मेरे बदन पर दारु डाल कर चाटने लगा।
मुझे भी कब से तलब हो रही थी तो मैंने भी एक दो पेग लगाए और फिर जीवन मुझ पर छाने लगा। उसका लौड़ा साधारण नहीं था, हब्शी जैसा था! वो मुझे खींच के बेड के किनारे लाया, खुद खड़ा हुआ और मेरी टाँगें खोल ली और मोटा लौड़ा चूत पे टिका दिया और झटका मारा।
मेरी सांसें रुक गई! नशे में चूर होने के बावजूद जान निकल रही थी मेरी! लेकिन वो नहीं माना!
मेरी चूत फट रही थी, उसने पूरा लौड़ा घुसा दिया जो मेरी बच्चेदानी को छूने लगा!
मैं गिड़गिड़ा रही थी, वो भी नशे में था पर मुझसे कम नशे में था।
वो हर बार पूरा लौड़ा निकालता, फिर डालता!
मैं चीखती रही- चिल्लाती रही- गंदी गंदी गालियाँ बकती रही- जीवन नहीं रुका! और फिर उसने मुझे घोड़ी बना दिया और मुझे चोदने लगा!
वोही लौड़ा अब मुझे स्वर्ग की सैर करवाने लगा था और मेरी गांड खुद ही हिल-हिल कर चुदवाने लगी। लेकिन वो नहीं झड़ने वाला था, उसने मुझे अपने लौड़े पर बिठा फ़ुटबाल की तरह उछाला।
“हाय! तौबा! क्या मर्द है साले! वाह मेरे जीवन लाल शेर! फाड़ दे आज! इस कुतिया को चलने लायक मत छोड़ना!”
पूरी रात जीवन ने मेरी चूत और गाँड दोनों का भुर्ता बना दिया। सुबह होते ही वो तो चला गया लेकिन मैं उस दिन स्कूल नहीं जा पाई। ठर्रे के हैंग-ओवर से सिर तो दर्द से फटा ही जा रहा था, चूत और गाँड भी सूज गयी थी। पूरा दिन कोसे पानी से चूत और गाँड की टकोर करती रही, तब जाकर सूजन उतरी।
और उसके बाद तो हर रोज़ छुट्टी के बाद स्कूल के किसी ना किसी कमरे में चुदवाने लगी!
मैं अपने दूसरे आशिकों को नज़रअंदाज़ करने लगी और सिर्फ जीवन से चुदवाने लगी। उसका लौड़ा था ही निराला कि मुझे और किसी का पसंद ही नहीं आता। वो भी मुझ से बहुत प्यार करने लगा। वो मुझसे शादी करना चाहता था और वो अपनी बीवी को छोड़ देता पर उसके सालों ने उसकी जमकर पिटाई करवा दी। मुझे भी शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी - सिर्फ उसके हलब्बी लौड़े से मतलब था। वो अपनी बीवी को छोड़ मेरे साथ मेरा रखैल बन कर रहने लगा। मैं जीवन के बच्चे की माँ तक बनने वाली हो गई लेकिन मैंने समय रहते बच्चा गिरवा दिया। करीब छः-सात महीने वो मेरा रखैल बन कर मेरे घर रहा और जब भी जैसे भी मैं चाहती वो दिन रात मुझे चोदता। कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। लेकिन मेरी खुशकिस्मती को किसी मादरचोद की बुरी नज़र लग गयी और एक दिन स्कूल जाते वक्त तेजी से आ रहे एक ट्रक की चपेत में आ कर उसकी मौत हो गयी।
दोस्तो, जीवन लाल से - सच कहुँ तो उसके लौड़े से - मैं बहुत प्यार करने लगी थी! दीवानी थी उसकी मस्त चुदाई की। दिन -रात उससे चुदवाती थी। वो भी पूरी निष्ठा से अपना फर्ज़ समझ कर मेरी जिस्मानी जरुरतों को पूरा करने के लिये हमेशा तैयार रहता था।
उससे तो दूर हूँ लेकिन चुदाई से कैसे दूर रहूँ ?
यह मेरे लिए मुश्किल काम बन सा गया था।
जीवन लाल से दूर होने के बाद मेरी हालत देवदसी जैसी हो गयी। स्कूल से घर लौट कर खुद को नशे में डुबो देती। इससे पहले दिन भर में मुश्किल से आधी बोतल शराब ही पीती थी लेकिन अब तो पूरी -पूरी बोतल शराब पी जाती। कोकेन और दूसरी ड्रग्स भी अक्सर लेने लगी। घंटों तक इंटरनेट पर नंगी वेबसाईट या चुदाई की सी-डी देखती रहती। जीवन लाल के लौड़े को याद करते हुए केले, बैंगन, लौकी से बार-बर अपनी चूत चोदती।
जब तक जीवन लाल मेरे साथ था, मैंने बारहवीं के उन लड़कों से कभी-कभी ही चुदवाया था। अब बारहवीं का वो बैच भी निकल गया जिसमें पढ़ने वाले तीन लड़कों से मैंने लेब में चुदवाया था। जीवन लाल की चुदाई से मैं इतनी खुश थी की जिन मास्टरों के साथ संबंध थे, वो तोड़ लिए थे।
नये संबंध बनाने के लिये मैंने स्कूल के बाद बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का फैसला लिया और तीन नए कंप्यूटर खरीद कर ऊपर के हिस्से में सेण्टर खोल लिया जिसमें बेसिक, सी ++, सी, वर्ड, एक्स्सल तक पढ़ाने की सोची। इसके पीछे असली मक्सद था कि ट्यूशन पढ़ने आये लड़कों को अपनी चूत में भड़कते शोले शाँत करने के लिये रिझा सकूँ।
मैंने एक बोर्ड भी बनवाया और पेम्प्लेट्स भी छपवाए और कुछ ही दिन में मेरे पास तीन लड़कियाँ पड़ने को आने लगी। लेकिन मुझे ज्यादा ज़रुरत लड़कों की थी। खैर मेरी चुदाई के किस्से तो आम सुने जाते थे, सभी जानते थे कि मैं अकेली किसलिए रहती हूँ। मुझे उम्मीद थी कि मेरी बदनामी की वजह से जल्दी ही लड़के भी पढ़ने आने लगेंगे।
खैर कुछ दिन ही बीते थे कि मेरे पास दो लड़के आये, उनकी उम्र करीब चौबीस-पच्चीस साल की होगी, मुझे बोले कि उनको कंप्यूटर की बेसिक चीज़ें सीखनी हैं क्योंकि वो दोनों ही क्लर्क थे सरकारी जॉब पर और क्योंकि अब सारा काम कम्प्यूटर पर होने लगा तो वो भी कुछ सीखने की सोच रहे थे। दोनों बहुत हट्टे कट्टे थे। दोनों ही शादीशुदा थे, नयी नयी शादी हुई थी।
उधर मेरे पास अब पाँच लड़कियों का बैच था, स्कूल से मैं दो बजे घर आती थी, साढ़े चार बजे मैंने लड़कियों का बैच रखा और उन दोनों को मैंने सात बजे का समय दे दिया। चुदाई की आग तो निरंतर भड़कती रहती थी मेरे अन्दर! मैं उन दोनों पर फ़िदा होने लगी।
मैं तो जिस्म की नुमाईश करने वाले सैक्सी कपड़े हमेशा पहनती ही थी पर उनकी क्लास के वक्त तो मैं बिल्कुल ही बेशर्म हो जाती। उनकी निगाहें मेरे जिस्म पर टिक जाती। समझाने के बहाने, माउस के बहाने झुक कर अपने जलवे दिखाती, उनसे सट जाती तो वो भी समझने लगे थे कि आग बराबर लगी हुई है, बस माचिस की एक तीली चाहिए।
आखिर वो दिन आ गया। वो दोनों क्योंकि अब मेरे साथ काफी घुलमिल गए थे, मैंने उनको कहा- “बैठो, मैं चाय लेकर आती हूँ!”
“नहीं रहने दो! चाय इस वक़्त हम पीते नहीं!”
“क्यों?”
“बस यह समय मूड बनाने का होता है, पेग-शेग लगाने का!”
“अच्छा जी! यह बात है तो पेग लगवा देती हूँ! आज यहाँ बैठ कर मूड बना लो!”
“यहाँ पर मूड कुछ ज्यादा न बन जाए क्योंकि आप तो हमारी टीचर हैं!”
“टीचर हूँ तो क्या हुआ, हूँ तो एक औरत ही ना! सिर्फ आठ-नौ साल ही तो बड़ी हुँ तुम दोनों से!”
“आपके बारे में काफी सुना है लेकिन आज देख भी रहे हैं!”
“जा फिर जोगिन्दर, पास के ठेके से दारु लेकर आ!” दूसरा बोला।
“अरे रुक! मेरे घर बैठे हो, यह फ़र्ज़ तो मेरा है!”
मैं कमरे में गई और सूट उतार कर पतली सी पारदर्शी नाइटी पहन ली। नाइटी में से मेरी सैक्सी ब्रा- पैंटी और पूरा जिस्म साफ-साफ गोचर हो रहा था। हमेशा की तरह ऊँची पेंसिल हील के सैक्सी सैंडल तो पैरों में पहले से ही पहने हुए थे। बार से विह्स्की की बोतल निकाली और ड्राई फ्रूट और फ्रिज से सोडा ले कर मैं इतराते हुए सैंडल खटखटाती आदा से कैट-वॉक करती हुई बाहर आयी।
“वाह मैडम! आप यह सब घर में रखती हो!”
“इतने नादान न बनो! जैसे कि तुम्हें पता ही नहीं की मैं शराब पीती हूँ... मेरी साँसों में हमेशा शराब-सिगरेट की मिलिजुली महक नहीं आती है क्या?”
“हमें शक सा तो था वैसे लेकिन...!”
“लेकिन क्या? अरे दारू के सहरे तो मैं ज़िंदा हुँ! मेरी तन्हा ज़िंदगी में इसका ही तो साथ मिलता है! सारा दिन मन खिलाकिला रहता है!” मैं हाथ घुमा कर अदा से बोली।
“उफ़ हो!” उसकी आहें निकल गई! आपकी नाइटी बहुत आकर्षक है!
“अच्छा जी! सिर्फ नाइटी...?” मैंने कहा- “कमरे में आराम से बैठ कर जाम से जाम टकराते हैं!”
मेज पर सब सामान रख दिया, वो जूते वगैरह उतार कर आराम से बिस्तर पर सहारा लगा कर बैठ गये। एक बेड के एक किनारे दूसरा दूसरे किनारे!
मैं झुक कर पेग बनाने लगी, मेरा पिछवाडा उनकी तरफ था। इधर वाले ने नाइटी ऊपर करके अपना हाथ मेरी गांड पर रख दिया और फेरने लगा।
“अभी से चढ़ने लगी है क्या मेरे राजा?”
“हाँ, तू है ही इतनी सेक्सी! क्या गोलाइयाँ हैं तेरी गांड की! उफ़!”
“तू तो पुरानी शराब से भी ज्यादा नशीली है!”
दोनों को गिलास थमाए और खुद का गिलास लेकर सैंडल पहने हुए ही बिस्तर पर चढ़ के दोनों के बीच में सहारा लगा कर बैठ गई। एक इस तरफ था, एक उस तरफ!
अपनी जांघों पर मैंने ड्राई फ्रूट की ट्रे रख ली।
दूसरे वाले ने काजू उठाने के बहाने मेरी जांघों को छुआ। दोनों मेरे करीब आने लगे, दोनों ने एक सांस में अपने पेग ख़त्म कर दिए और ट्रे एक तरफ़ पर कर मेरी नाइटी कमर तक ऊपर कर दी। मेरी मक्खन जैसी जांघें देख दोनों के लंड हरक़त करने लगे।
मैंने भी पेग ख़त्म किया। मैं पेग बनाने उठी तो एक ने मेरी नाइटी खींच दी और मैं सिर्फ ब्रा और पेंटी में उठी।
“वाह, क्या जवानी है तेरे ऊपर मैडम! आज की रात यहीं रुकेंगे और यहीं रंगीन होगी यह रात!”
“तेरी सारी तन्हाई दूर कर देंगे।”
फिर बोले- “मैडम, माफ़ करना सिर्फ आधे घंटे का वक़्त दो, हम ज़रा घर होकर वापस आते हैं। खाना मत बनाना, लेकर आयेंगे!”
“दारु मत लाना! बहुत स्टॉक है!” मैंने आवाज़ दी।
“ठीक है!”
वो चले गये तो मैं भी दूसरा पैग खत्म करके उठी। वाशरूम गई और वैक्सिंग क्रीम निकाली। मैं अपनी चूत, गाँड और बगलों की नियमित वैक्सिंग करती हूँ, बिल्कुल साफ रखती हूँ। वैसे तो चार दिन पहले भी वैक्सिंग की थी पर इतने दिन बाद लौड़े चोदने का मौका मिला था इसलिये वैक्सिंग करके अपनी चूत बिल्कुल मखमल की तरह चीकनी कर दी। ज़रा सा भी रोंआ या चुभन नहीं चाहती थी मैं।
“नहीं रहने दो! चाय इस वक़्त हम पीते नहीं!”
“क्यों?”
“बस यह समय मूड बनाने का होता है, पेग-शेग लगाने का!”
“अच्छा जी! यह बात है तो पेग लगवा देती हूँ! आज यहाँ बैठ कर मूड बना लो!”
“यहाँ पर मूड कुछ ज्यादा न बन जाए क्योंकि आप तो हमारी टीचर हैं!”
“टीचर हूँ तो क्या हुआ, हूँ तो एक औरत ही ना! सिर्फ आठ-नौ साल ही तो बड़ी हुँ तुम दोनों से!”
“आपके बारे में काफी सुना है लेकिन आज देख भी रहे हैं!”
“जा फिर जोगिन्दर, पास के ठेके से दारु लेकर आ!” दूसरा बोला।
“अरे रुक! मेरे घर बैठे हो, यह फ़र्ज़ तो मेरा है!”
मैं कमरे में गई और सूट उतार कर पतली सी पारदर्शी नाइटी पहन ली। नाइटी में से मेरी सैक्सी ब्रा- पैंटी और पूरा जिस्म साफ-साफ गोचर हो रहा था। हमेशा की तरह ऊँची पेंसिल हील के सैक्सी सैंडल तो पैरों में पहले से ही पहने हुए थे। बार से विह्स्की की बोतल निकाली और ड्राई फ्रूट और फ्रिज से सोडा ले कर मैं इतराते हुए सैंडल खटखटाती आदा से कैट-वॉक करती हुई बाहर आयी।
“वाह मैडम! आप यह सब घर में रखती हो!”
“इतने नादान न बनो! जैसे कि तुम्हें पता ही नहीं की मैं शराब पीती हूँ... मेरी साँसों में हमेशा शराब-सिगरेट की मिलिजुली महक नहीं आती है क्या?”
“हमें शक सा तो था वैसे लेकिन...!”
“लेकिन क्या? अरे दारू के सहरे तो मैं ज़िंदा हुँ! मेरी तन्हा ज़िंदगी में इसका ही तो साथ मिलता है! सारा दिन मन खिलाकिला रहता है!” मैं हाथ घुमा कर अदा से बोली।
“उफ़ हो!” उसकी आहें निकल गई! आपकी नाइटी बहुत आकर्षक है!
“अच्छा जी! सिर्फ नाइटी...?” मैंने कहा- “कमरे में आराम से बैठ कर जाम से जाम टकराते हैं!”
मेज पर सब सामान रख दिया, वो जूते वगैरह उतार कर आराम से बिस्तर पर सहारा लगा कर बैठ गये। एक बेड के एक किनारे दूसरा दूसरे किनारे!
मैं झुक कर पेग बनाने लगी, मेरा पिछवाडा उनकी तरफ था। इधर वाले ने नाइटी ऊपर करके अपना हाथ मेरी गांड पर रख दिया और फेरने लगा।
“अभी से चढ़ने लगी है क्या मेरे राजा?”
“हाँ, तू है ही इतनी सेक्सी! क्या गोलाइयाँ हैं तेरी गांड की! उफ़!”
“तू तो पुरानी शराब से भी ज्यादा नशीली है!”
दोनों को गिलास थमाए और खुद का गिलास लेकर सैंडल पहने हुए ही बिस्तर पर चढ़ के दोनों के बीच में सहारा लगा कर बैठ गई। एक इस तरफ था, एक उस तरफ!
अपनी जांघों पर मैंने ड्राई फ्रूट की ट्रे रख ली।
दूसरे वाले ने काजू उठाने के बहाने मेरी जांघों को छुआ। दोनों मेरे करीब आने लगे, दोनों ने एक सांस में अपने पेग ख़त्म कर दिए और ट्रे एक तरफ़ पर कर मेरी नाइटी कमर तक ऊपर कर दी। मेरी मक्खन जैसी जांघें देख दोनों के लंड हरक़त करने लगे।
मैंने भी पेग ख़त्म किया। मैं पेग बनाने उठी तो एक ने मेरी नाइटी खींच दी और मैं सिर्फ ब्रा और पेंटी में उठी।
“वाह, क्या जवानी है तेरे ऊपर मैडम! आज की रात यहीं रुकेंगे और यहीं रंगीन होगी यह रात!”
“तेरी सारी तन्हाई दूर कर देंगे।”
फिर बोले- “मैडम, माफ़ करना सिर्फ आधे घंटे का वक़्त दो, हम ज़रा घर होकर वापस आते हैं। खाना मत बनाना, लेकर आयेंगे!”
“दारु मत लाना! बहुत स्टॉक है!” मैंने आवाज़ दी।
“ठीक है!”
वो चले गये तो मैं भी दूसरा पैग खत्म करके उठी। वाशरूम गई और वैक्सिंग क्रीम निकाली। मैं अपनी चूत, गाँड और बगलों की नियमित वैक्सिंग करती हूँ, बिल्कुल साफ रखती हूँ। वैसे तो चार दिन पहले भी वैक्सिंग की थी पर इतने दिन बाद लौड़े चोदने का मौका मिला था इसलिये वैक्सिंग करके अपनी चूत बिल्कुल मखमल की तरह चीकनी कर दी। ज़रा सा भी रोंआ या चुभन नहीं चाहती थी मैं।
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