Saturday, December 21, 2013

गुपचुप कहानियाँ- राबिया का बेहेनचोद भाई--2

Lovers-point गुपचुप कहानियाँ-

 राबिया का बेहेनचोद भाई--2
. थोड़ी सी झांट छोड़ रखी थी अपनी चूत के उपरी हिस्से में पेडू के नीचे.....शायद रंडी ने डिज़ाइन बनाया हुआ था....अपने भाई को ललचाने के लिए....अब्बू तो कुत्ता था....अपना पेटिकोट भी सूँघा देती तो साला दुम हिलता चला आता उसके पास.... ही क्या गोरी चूत थी....वैसे चूत तो मेरी भी गोरी थी मगर अम्मी की चूत थोड़ी फूली हुई थी....मोटे मोटे लंड खा खा कर अपनी चूत को फूला लिया था चूत मरानी ने.....उनके नंगे हसीन जिस्म को देख कर मेरी चूत में भी जलन होने लगी.....मैं अपनी सलवार को चूतड़ से खिसका कर अपनी नंगी चूत को सहलाने लगी....और साथ ही अम्मी के मस्ताने खेल का नज़ारा भी देखती रही.....बड़ी मस्त औरत लग रही थी इस वक़्त मेरी अम्मी....थोड़ी देर तक अपने नंगे जिस्म पर हाथ फेरती रही.....


दोनो चूचियों को अपने हांथों से मसालते हुए दूसरा हाथ अपनी चूत पर ले गयी....चूत की होंठों को सहलाने लगी...और फिर सहलाते-सहलाते अपनी उँगलियों को चूत में घुसेड़ दिया....पहले तो धीरे धीरे उँगलियों को बुर के अंदर बहेर करती रही फिर उसकी रफ़्तार तेज़ होगआई....साथ ही साथ आमी अपनी गाँड को भी हिचकोले दे रही थी....बड़ा मस्त नज़ारा था....अम्मी थोड़ी देर तक अपने जिस्म से यह खेल खेलती रही फिर शावेर ओन किया और अपने जिस्म को भिगो कर साबुन लगाने लगी....खूब अच्छी तरह से उसने अपने पुर नंगे जिस्म पर साबुन लगाया.....अपनी दोनो चूचियों पर ....अपनी चिकनी चूत पर ....तो खूब झाग निकल कर उसने साबुन रग्रा....फिर अम्मी ने अपनी चूत में उंगलीयूं को घुसेड़ा ...एक ....दो...तीन ... और फिर पाँचों उंगलियाँ....चूत के अंदर दल दी.....धीरे धीरे अंदर बाहर करते हुए....


ही...अल्लाह... .क्या बताऊँ चूत मरानी कितनी गरम हो गई थी....मुँह से गु गु की आवाज़ निकलते हुए चूत में उंगलियाँ पेल रही थी.....थोड़ी देर तक अम्मी यूँही अपने बुर की चुदाई करती रही....चूतरों का हिचकोला तेज़ होता गया .....आहह....ऊओ... .और फिर अम्मी का जिस्म एक झटके के साथ शांत हो गया......अम्मी मदहोशी की आलम में फर्श पर झरने के नीचे लेट गयी.....थोड़ी देर शांत नंगे पड़ी रहने के बाद उठ कर नहाना शुरू किया....खेल ख़तम हो चक्का था.....मेरी बुर ने भी पानी छोड़ दिया था.....मैं शलवार थामे अपने कमरे में आई.....थोड़ी देर तक चूत को सहलाती रही .. एक उंगली घुसेरी....चूत के अंदर थोड़ी देर तक उंगली घुसती गयी...फिर रुक गयी....मैं अक्सर अपनी बुर एक उंगली से ही चोदा करती थी....पर अम्मी को देख कर जोश में आ गई ....बुर फैला कर दो उंगली घुसने की कोशिश की ....थोड़ा दबाव डाला तो दर्द हुआ... में ने डर कर छोड़ दिया....ही निगोरी मेरी चूत कब चौड़ी होगी....मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ...क्या मेरी चूत फाड़ने वाला कोई पैदा नही हुआ.


वक़्त गुज़रता गया....जिस्म की भूक भी बढ़ती गयी.....लेकिन है रे किस्मत .....17 साल की हो चुकी थी लेकिन कोई लंड नही नसीब हो सका था जो मेरी कुँवारी चूत के सील को तोड़ कर मुझे लड़की से औरत बना देता...कोई रगड़ कर मसल कर मज़ा देने वाला भी मुझे नही मिला था.....मेरी शादी भी नहीं हो रही थी... अम्मी और अब्बू मेरे लिए लड़के की खोज में थे......उनका ख्याल था की 18 की होते-होते वो मेरे लिए लड़का खोज़ लेंगे....पर 18 की होने में तो पूरा साल बाकी था....तब तक कैसे अपनी उफनती जवानी को संभालू....चूत के कीड़े जब रातो को मचलने लगते तो जी करता किसी भी राह चलते का लंड अपनी चूत में ले लूँ....पर फिर दिल नही मानता....इतने नाज़-नखरो से संभाली हुई....गोरी चित्ति अनचुदी बुर किसी ऐरे गैरे को देना ठीक नही होगा....इसलिए अपने दिल को समझती....


लेकिन बढ़ती उमर के साथ चूत की आग ने मुझे पागल कर दिया था और चुदाई की आग मुझे इस तरह सताने लगी थी की.....मेरे ख्वाबो ख़यालो में सिर्फ़ लंड ही घूमता रहता था....हाय रे किस्मत ....मेरी बहुत सारी सहेलियों ने उपर-उपर से सहलाने चुसवाने....चूसने का मज़ा ले लिया था और जब वो अपने किससे बताती तो मुझे अपनी किस्मत पर बहुत तरस आता...घर की पाबंदियों ने मुझे कही का नही छ्चोड़ा था....उपर-उपर से ही किसी से अपनी चूचियों को मसलवा लेती ऐसा भी मेरे नसीब में नही था....जबकि मेरी कई सहेलियों ने तो चूत की कुटाई तक करवा ली थी.


शुमैला ने तो अपने दोनो भाइयों को फसा लिया था...उसकी हर रात...सुहागरात होती थी और अपने दोनो भाइयों के बीच सोती थी....वो बता रही की एक अपना लंड उसकी चूत से सटा देता था और दूसरा उसकी गाँड से तब जा कर उसे नींद आती थी.....पर है रे मेरी किस्मत एक भाई भी था तो दूर दूर ही रहता था और अब तो शहर छोड़ कर बाहर MBA करने के लिए एक बड़े शहर में चला गया था.
मैने अब बारहवी की पढ़ाई पूरी कर ली थी. वैसे तो हम जिस शहर में रहते है वाहा भी कई कॉलेज और इन्स्टिट्यूशन थे जहा मैं आगे की पढ़ाई कर सकती थी मगर जब से मेरी सहेली रेहाना जो की मुझ से उमर में बड़ी है..... जिसकी शादी उसी शहर में हुई थी जिसमे भाई पढ़ने गये थे....के बारे में और वाहा के आज़ादी और खुलेपन के महॉल के बारे में बताया तो....मेरे अंदर भी वहा जाने और अपनी पढ़ाई को आगे बढाने की दिली तम्मना हो गई थी.

इसे शायद मेरी खुसकिस्मती कहे या फिर अल्लाह की मर्ज़ी, मेरा भाई 6 महीने पहले ही वही के एक मशहूर कॉलेज में MBA की पढ़ाई करने के लिए दाखिला लिया था. पैसे की परेशानी तो नही थी लेकिन अम्मी अब्बू राज़ी हो जाते तो मेरा काम बन जाता..... और मैं खुली हवा में साँस लेने का अपना ख्वाब पूरा कर लेती.....जो की इस छोटे से शहर में नामुमकिन था.


मैने अपनी ख्वाहिश अपनी अम्मी को बता दी...उसका जवाब तो मुझे पहले से पता था...कुतिया मुझे कही जाने नही देगी....मैने फिर ममुजान से सिफारिश लगवाई...मामू मुझे बहुत प्यार करते थे....शायद मैं उन्ही के लंड की पैदाइश थी...उन्होने अम्मी को समझाया की मुझे जाने दे....वैसे भी इसकी शादी अभी हो नही रही......पढ़ाई कर लेने में कोई हर्ज़ नही है....फिर भाई भी वही रह कर पढ़ाई कर रहा है....मामू की इस बात पर अम्मी मुस्कुराने लगी....मामू भी शायद समझ गये और मुस्कुराने लगे..... और मुझ से कहा जाओ बेटे अपने कपड़े जमा लो......मैं तुम्हारे भाई से बात करता हूँ...मैं बाहर जा कर रुक गई और कान लगा कर सुन ने लगी....

अम्मी कह रही थी... हाए !! नही !! वहा भाई के साथ अकेले रहेगी...कही कुछ .....मामू इस पर अम्मी की जाँघ पर हाथ मारते हुए बोले....आख़िर बच्चे तो हमाए ही है ना....अगर कुछ हो गया तो संभाल लेंगे फिर.....बाद में देखेंगे....मेरे पैर अब ज़मीन पर नही थे..अब मुझे खुली हवा में साँस लेने से कोई नही रोक सकता था....दौड़ती हुई अपने कमरे में आ कर अपने कपड़ो को जमाने लगी....अम्मी से छुपा कर खरीदे हुए जीन्स और T-शर्ट....स्कर्ट-ब्लाउस....लो-कट समीज़ सलवार....सभी को मैने अपने बैग में डाल लिया....उनके उपर अम्मी की पसंद के दो-चार सलवार कमीज़ और बुर्क़ा रख दिया....अम्मी साली को उपर से दिखा दूँगी....उसे क्या पता नीचे क्या माल भर रखा है मैने....फिर ख्याल आया की खाली चुदवाने के लिए तो बड़े शहर नही जाना है....


कुछ पढ़ाई की बाते भी सोच ली जाए....ये हाल था मेरी बहकति जवानी का पहले चुदाई के बारे में सोचती फिर पढ़ाई के बारे में.....अल्लाह ने ये चूत लंड का खेल ही क्यों बनाया...और बनाया भी तो इतना मजेदार क्यों बनाया....है. थोड़ी देर बाद अम्मी और मामू मेरे कमरे में आए और दोनो समझाने लगे.... की शहर में कैसे रहना है. भाई को उन्होने दो कमरो वाला फ्लॅट लेने के लिए कह दिया है....और ऐसे तो पता नही वो कहा ख़ाता-पिता होगा....मेरे रहने से उसके खाना बनाने की दुस्वरियों का भी ख़ात्मा हो जाएगा......दोनो लड़ाई नही करेंगे....और अपनी सहूलियत और सलाहियत के साथ एक दूसरे की मदद करेंगे....दो दिन बाद का ट्रेन का टिकेट बुक कर दिया गया...भाई मुझे स्टेशन पर आकर रिसीव कर लेगा ऐसा मामू ने बताया. 

दो दिन बाद मैं जब नक़ाब पहन कर ट्रेन में बैठी तो लगा जैसे दिल पर परा सालो से जमा बोझ उतार गया.....आज इतने दिनों के बाद मुझे मेरी आज़ादी मिलने वाली थी....अम्मी की पाबंदियों से कोसों दूर मैं अपनी दुनिया बसाने जा रही थी....ट्रेन खुलते ही सबसे पहले गुसलखाने जा कर अपने नक़ाब से खुद को आज़ादी दी अंदर मैने गुलाबी रंग का खूबसूरत सा सलवार कमीज़ पहन रखा था जो थोड़ा सा लो कट था....दिल में आया की ट्रेन में बैठे बुढहो को अपने कबूतरो को दिखा कर थोड़ा लालचाऊं ..... मगर मैने उसके उपर दुपट्टा डाल लिया. चुस्त सलवार कमीज़ मेरे जिस्मानी उतार चढ़ाव को बखूबी बयान कर रहा थे.....पर इसकी फिकर किसे थी मैं तो यही चाहती थी....



बालो का एक लट मेरे चेहरे पर झूल रहा था.....जब अपने बर्थ पर जा कर बैठी तो लोगो की घूरती नज़रे बता रही थी की मैं कितनी खूबसूरत हूँ....सभी दम साढ़े मेरी खूबसूरती को अपनी आँखो से चोदने की कोशिश कर रहे थे....शायद मन ही मन आहे भर रहे थे....एक बुड्ढे की पेशानी पर पसीने की बूंदे चमक रही थी.....एसी कॉमपार्टमेंट में बुढहे को क्यों पसीना आ रहा था.....खैर जाने दे मैं तो अपनी मस्ती में डूबी हुई नई-नई मिली आज़ादी के लज़्ज़त बारे मज़े से उठा ती हुई ...मस्तानी अल्ल्हड़ चाल से चलती.... कूल्हे मटकाती हुई आई और.....पूरी बर्थ पर पसार कर बैठ गई....हाथ में मेरे सिड्नी शेल्डन का नया नोवेल था....एक पैर को उपर उठा कर जब मैने अपनी सैंडल उतरी तो सब ऐसे देख रहे थे....जैसे मेरी सैंडल चाट लेंगे या खा जाएँगे....



अपने गोरे नाज़ुक पैरो से मैने सैंडल उतरी....पैर की पतली उंगलिया जिसके नाख़ून गुलाबी रंग से रंगे थे को थोड़ा सा चटकाया....हाथो को उपर उठा कर सीना फूला कर साँस लिया जैसे कितनी तक गई हूँ और फिर नोवेल में अपने आप को डूबा लिया.



सुबह सुबह जब ट्रेन स्टेशन पर पहुचने वाली थी तो मैं जल्दी से उठी और गुसलखाने में अपने आप को थोड़ा सा फ्रेश किया आँखो पर पानी के छींटे मारे....थोड़ा सा मेक-उप किया....काजल लगाया ...फिर वापस आकर अपने बैग को बाहर निकल कर संभालने लगी. ट्रेन रुकी खिड़की से बाहर भाई नज़र आ गया.
 
 

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