Lovers-point गुपचुप कहानियाँ- .
देवर भाभी की दास्तान
दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर हूँ एक और नई कहानी के साथ
नीतू भाभी अपने ख्यालों में कुच्छ डूबी हुई मेरी तरफ चुपचाप देखती रही. और फिर आहिस्ते से बोली, "जानते हो, मुझे तुमको यह सब सीखाना अच्छा लगता है. पता नही यह बात ठीक है कि नही. पर मुझे बहुत अच्छा लगता है. तुमको भी अच्छा लग रहा है ना? तुम भी कुच्छ कुच्छ सोचते रहते हो?"
"जी……"
"ज़रूर सोचते होगे…..है ना?"
वो अपने अंगूठे और दो उंगलियों से मेरे लंड के सूपदे को कभी पकड़कर दबाती, कभी मसालती, कभी सूपदे के टोपी के अंदर अपने नाख़ून से चारो तरफ धीरे से खरोचती.
"यह बहुत ज़रूरी होता है कि आपस मे इन बातों के बारें मे खुलापन हो….." वो अपनी हाथ मे मेरे खड़े लंड को देख रही थी. उनकी आवाज़ कुच्छ धीमी हो रही थी, और ऐसा लग रहा था कि वो अपनी ख्यालों मे डूब गयी हैं. "मैं सोच रही थी कि तुमको ठीक तरह से मज़ा लेना सिखाउ…..ठीक तरह से…….कुच्छ सोचना नही….कोई और ख्याल नही हो दिमाग़ मे….मज़े करते वक़्त सिर्फ़ मज़े करना……."
वो उंगलियाँ से मेरे सूपदे को बहुत ही प्यार से दबा रही थी, और बीच बीच मे आहिस्ते से सूपदे के छेद में नाख़ून से छेड़ रही थी. नीतू भाभी ने और रातों की तरह आज रात भी कमरे में एक छ्होटे कटोरे में कुच्छ गरम सरसो का तेल रख लिया था. उनकी उंगलियाँ सरसो के तेल में डुबोई हुई थी.
"समझ रहे हो, कि मैं क्या कह रही हूँ?"
"जी."
"मज़े करते समय, और कोई ख्याल नही होना चाहिए…..कुच्छ सोचना नही चाहिए…..सिर्फ़ मज़ा लेना और मज़ा देना…बस….सिर्फ़ मज़े का ख्याल!…" वो मेरे मेरे लंड को एक नज़र से देख रही थी और सूपड़ा के चारो तरफ अपनी उंगली को घुमा रही थी. बाहर चाँदनी रात थी, और खिड़की से चाँदनी की रोशनी आ रही थी. नीतू भाभी के बाल खुल गये थे और उनकी आँचल कब का गिर चुका था. मेरे जैसे लड़के को उनके बाल, उनका सुंदर चेहरा, उनकी आधी खुली हुई ब्लाउस से निकलती हुई चुचियाँ और उनका इकहरा बदन ही पागल बनाने के लिए काफ़ी था, पर वो तो अपनी हाथ से मेरे लंड को इस तरह प्यार से तरह तरह से दबा रही थी, नाख़ून से खरॉच रही थी मैं नशे मे मस्त हो रहा था. चाँदनी की उस रोशनी मे मेरा सरोसो के तेल मे मालिस किया लंड चमक रहा था, और नीतू भाभी की गेंहूआ रंग की मुथि और उंगलियों मे से मेरा लौदा बीच बीच में झाँकता, और फिर छुप जाता.
"यह मेरी एक ख्वाहिश है……सच पूच्छो तो मज़ा तो सभी इंसान कर ही लेते हैं…पर ज़्यादातर लोगों को बस थोरी देर के लिए प्यास बुझती हैं….ना मर्द पूरी तरह से खुश होते हैं और ना औरतें….जानते हो ना….ज़्यादातर औरतें प्यासी ही रह जाती हैं…..और चिर्चिरि मिज़ाज़ की हो जाती हैं…..और वही हाल मर्दों का भी!" भाभी ने इस बार मेरे सूपदे से लेकर लौदे के बिल्कुल जड़ तक दबा दिया. वो मेरे गांद के उपर अपनी उंगली भी फेर रही थी अब. मैने पूचछा, "नीतू भाभी, और क्या ख्वाहिशें हैं?"
"अभी नही बताउन्गि!…..अभी बस इतना ही!"
वो मेरे लंड को बहुत ही नाज़ुक सा सहला रही थी अब. फिर धीरे से हंस दी. कुच्छ शरमाते हुए, फिर बोली. "ख्याल तो बहुत हैं, पर क्या करूँ, थोरी शरम भी तो आती है!" मैं भाभी की चुचियों को ब्लाउस के अंदर ही हाथ डालकर आहिस्ते से दबा रहा था. वो चुप हो गयी. फिर आँखें मूंदकर एक गहरी साँस लेकर बोली," तुम्हारे हाथों में तो जादू है…..आह…आहह …...तुमको इतनी कम उमर मे ही औरतों के बदन का पूरा पता है….तुम्हारे हाथ तो सारे बदन में सिहरन ला देते हैं….हाअन्न्न्न!"
अब मैने नीतू भाभी की सारी को उतारने लगा. ब्लाउस के हुक्स खुले हुए थे और ब्रा भी उतर चुका था. उनकी चुचि के घुंडी को मैं मसल रहा था, और भाभी ने अपने पेटिकोट के नाडे को खोल दिया. नीतू भाभी फिर खरी हो गयी पर मुझसे कहा कि मैं उसी तरह बिस्तर के किनारे लेटा रहूं. अपनी पेटिकोट निकालकर भाभी आई और मेरे टाँगों के दोनो तरफ अपने पैरों को फैलाकर मेरे उपर आ गयी. मेरे सख़्त लंड को उन्होने फिर गौर से देखा और उसको अपनी हाथों मे पकड़े रखा. फिर अपनी चूतड़ कुच्छ उपर उठाकर उन्होने सूपदे को अपनी चूत की पत्तियों मे फँसा दिया, मानो उनकी चूत के पंखुरियाँ मेरे सूपदे को प्यार से, हल्के से चूम रही हो!
मैं ने अपना कमर थोड़ा उठाया,"एम्म."
"अच्छा लग रहा है?"
"जी……….…. हां"
"आहिस्ते से? ……इस तरह?"
"म्म्म, जी."
उनकी नज़र मेरे चेहरे पर थी. मेरे चेहरे को गौर से देख रही थी कि मुझे कैसा लग रहा है उनका मेरे सूपदे को अपनी बुर की पट्टियों पर रगड़ना. हल्का हल्का रगड़ना, और कभी कभी बुर के झाँत मे ज़ोर्से रगड़ना. बोली, "जब मेरे हाथ
में तुम्हारा लंड सख़्त होने लगता है ना, तो मुझे बहुत मज़ा आता है…. मुरझाया हुआ लंड जब बड़ा होने लगता है….बड़ा होता जाता है….बड़ा और गरम!" वो अब अपने घुटनों के बल बैठ गयी और मुझसे कहा, " लो, तुम मेरी चूत के दाने को प्यार करो….जब तक मैं तुम्हारे इस लौदे को एक गरम लोहे का हथौरा बना देती हूँ!"
मैने उनकी चूत को खोलकर उनके अंदर के दाने को सहलाने लगा, उसपर उंगली को फेरने लगा. उनसे पूचछा, "इस तरह?"
उन्होने आँख मूंद ली, जैसे की बिल्कुल मशगूल होकर किसी चीज़ का ज़ायज़ा ले रही हों. जैसे कुच्छ माप रही हों. " हां….इसी तरह…… आहिस्ता…….आहिस्ता….हाअन्न्न्न"
वो मेरे उपर ही घुटनों के बल बैठी रहीं और मेरे लौदे को और भी गरम करती रहीं, और जैसे मैं उनके चूत में अपनी उंगली घुमा रहा था मैं ने अपने गर्दन को आगे बढ़ाकर उनकी चुचि को अपने मुँह में लेने लगा. उनकी खूबसूरत,
गोल-गोल कश्मीरी सेब जैसी चुचियाँ मेरे मॅन को लुभा रही थी. जैसे मैने चुचि के घुंडी को मुँह मे लेकर चूसा, वो सिहर गयी और बोली,"बस….इसी तरह से..मुँह मे लेकर आहिस्ते से चूसो ….हां…..अभी ज़ोर्से नही…..हान्न्न्न…..इसी तरह…….अभी बस चूसो."
अब उनकी साँसें बढ़ने लगी. जल्दी ही उन्होने कहा, "अब लो….", और अपने घुटनों के बल उठकर उन्होने नीचे मेरे लौदे के तरफ गौर किया और उसको बिल्कुल सीधा खरा किया. अपने साँस को रोकते हुए और मेरे लौदे को अपने मुथि में उसी तरह से पकरे हुए अब उन्होने अपनी गीली चूत पर उपर से नीचे, फिर नीचे उपर रगड़ कर मेरी तरफ प्यार से देखा. मेरी तो हालत खराब हो रही थी; अब रुकना बेहद मुश्क़िल हो रहा था. मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी.
"अच्छा लग रहा है?", उन्होने पूचछा.
"म्म्म्मम….जी"
"मुझे भी मज़ा आ रहा है……म्म्म्मममम…………अहह…." नीचे देखते
हुए वो बोली, "जानते हो……..उमर के हिसाब से तुम्हारा लौदा काफ़ी बड़ा है…… बहुत कम मर्दों का इतना तगड़ा लौदा होता है…… मुझे तो ताज्जुब होता है कि तुम कितने सख़्त और गरम हो जाते हो! अहह …. ह्म्म्म्मम"
वो मेरे सूपदे के टिप को अपनी बुर के अंदर लेकर मेरे कंधों पर अपनी हथेली रख दी. " अब तुम आराम से मज़ा लो, जबतक मैं तुम्हारे लौदे को अपनी चूत में लेती हूँ. आराम से….मज़ा लो……कोई जल्दिबाज़ी नही… जब लगे कि झरने लगॉगे….तो उस से पहले बता देना…..ठीक?"
"जी….ठीक!"
वो मेरे चेहरे को बिल्कुल ध्यान से देखती रही और बहुत सावधानी से आधे लंड को चूत के अंदर लेकर रुक गयी. और कमर को सीधा किया. फिर पूचछा, "ठीक हो?"
"जी."
"बिल्कुल ठीक?… हनन्न….. ……बिल्कुल?"
"हन्णन्न्……बहुत मज़ा आ रहा है, पर अभी झरूँगा नही."
"फिर ठीक है!" वो गहरी साँस लेकर और आँखें मूंद कर अपनी चूत को नीचे मेरे लंड पर दबाकर लेने लगी, बहुत धीरे धीरे, एक बार में आधे इंच से ज़्यादा नही….और धीरे से बोली, "आहिस्ते से….आहिस्ते……महसूस करो कि अंदर कैसा लगता
है…. क्या होता है!….. जैसे मैं तुम्हारे लौदे को अंदर लेती हूँ……तो महसूस करो कि वो मेरी चूत में किस तरह घिस रहा हैं….बुर उसको किस तरह से लेती है…." वो गहरे साँस लेकर अपने होंठों पर जीभ चलाकर होंठों को गीला किया.
"गौर करो….. अब मैं तुम्हारे पूरे लॉड को किस तरह चूत में ले रही हूँ, किस तरह तुम्हारा लौदा मेरी चूत को पूरी तरह से खोल रहा है…..बिल्कुल अंदर तक……देखी कितनी गहराई मे है…… म्म्म्मममम…. …… अब मुझे थोरे आराम से
महसूस करने दो…..म्म्म्मममममम." मेरा लौदा उनकी चूत के बिल्कुल अंदर था, हमारी झाँतें बिल्कुल मिल गयी थी, उनकी चूत मेरे लॉडा के जड़ पर बैठी थी. "म्म्म्मममम," वो बोली, " …… झरोगे तो नही?"
मैने अपनी साँस रोके हुए सर हिला दिया. धीरे से बोला, "नही."
"बहुत अच्छा," और वो फिर अपना ध्यान चूत में लंड पर लगाने लगी. "अपने आप को ठीक से रोकना, जिस से हम दोनो पूरा मज़ा ले सकें. ठीक?" वो अपनी बुर को और नीचे लाई, करीब आधा इंच, फिर थोरा उपर उठाकर, मानो मेरे लॉडा के
किसी ख़ास पार्ट का ज़ायक़ा ले रही हों. मुझे लगा कि नीतू भाभी बिल्कुल सही कह रही थी: इस वक़्त कोई और ख्याल नही आना चाहिए.
अब फिर से पूरे लॉड को लेने के बाद उन्होने कहा,`हाआंन्नणणन्!" फिर एक पल साँस लेने के बाद मेरी आँखों में देखते हुए उन्होने पूचछा, "मज़ा आ रहा है?"
"म्म्म्मम…ह" मैने अपने सर को थोरा पीछे कर के ज़ोर्से साँस छोड़ा और नीतू भाभी को जवाब तो देना चाहता था, पर मुँह से सिर्फ़ आवाज़ निकली, "व्ह"
" अब एक मिनिट रूको, बस इसी तरह……", और भाभी ने गहरी साँस लेकर अपने चेहरे पर से अपने बाल को हटाकर एक लूज जूड़ा बना लिया, फिर कहा, "और बस बुर में पड़े हुए लंड का मज़ा लेना सीखो! महसूस करो कि बुर के अंदर लंड किस तरह से थिरकता है, ……किस तरह बुर लौदे को चूमती है, किस तरह बुर और लोड्ा एक दूसरे के साथ खेलते हैं." वो अब मेरे उपर पीठ सीधी करके बैठ गयी, और फिर कहा, " अपने उपर काबू रखने की कोशिश करना….ठीक?……तुम झरना चाहो तो झार सकते हो ….पर कोशिश करना कि जितनी देर तक अपने आप को रोक सको, रोकना…….. ठीक? जीतने देर तक अपने लौदा को इसी तरह अंदर रखोगे, उतना ही मज़ा आएगा ……तुमको भी……और मुझे भी ……म्म्म्ममममममम…….. जानते हो ना ……..
धीरे-धीरे साजना ……हौले हौले साजना ….. हम भी पीछे हैं तुम्हारे…….!
मेरी तो मस्ती से जान निकल रही थी. मैं ने गहरी साँस ली, और फिर कुच्छ बोलने की कोशिश करने लगा, पर मुँह से वाज़ निकली बस, "व्ह"
"कर सकोगे?……सिर्फ़ महसूस करो…. और कुच्छ करने की ज़रूरत नही है… सिर्फ़ मज़ा लो! …….करोगे ना?"
"हान्णन्न्."
उन्होने अपनी आँखें फिर मूंद ली और एक लंबी "अहह" भर के मेरे कंधों पर अपनी पकड़ को थोडा ढीला छ्चोड़ दिया.
कुच्छ समय तक हम दोनो चुप रहे, मेरे उपर भाभी बिल्कुल खामोश और रुकी रही. फिर मुझे समझ में आने लगा कि वो मुझे क्या महसूस कराना चाहती थी. अब मुझे महसूस होने लगा कि किस तरह मेरा लौदा उनकी बुर में उसके गीलेपान से बिल्कुल नाहया हुआ था और बुर के अंदर की बनावट को, बुर के अंदर के सभी खूबियों का ज़ायक़ा ले रहा था. अब मैं समझा कि बुर की गहराइयों मे हर जगह एक जैसा नही होता, पर हर गहराई का एक अपनी ही खूबी है. यह सब महसूस करते हुए मेरा लौदा और भी सख़्त होता जा रहा था, और एक बार ज़ोर्से थिरक
गया. भाभी की बुर ने भी जवाब में मेरे लौदा को जाकड़ लिया. नीतू भाभी बोली," इसी तरह रहो अभी…. आराम से. ………..और कुच्छ मत करो… बस… इसी तरह."
मैं ने वैसा ही किया. पर मेरे कोशिश के बावजूद मेरा लौदा बीच बीच में थिरक जाता था. भाभी के गीली बुर के जकड़ने से मेरा लौदा मस्ती में था और मुझे नही लग रहा था कि मैं अपने लौदा को पूरी तरह से काबू में रख पाउन्गा.
भाभी आँखें मूंदी ही हुई थी, पर मुस्कुराते हुए पूच्ची, " क्यूँ, नही रुका जाता क्या?"
मैने अपना सर हिलाते हुए कहा, "नही, पर मज़ा बहुत आ रहा है…अहह."
"हान्न्न, मुझे भी, मेरे राजा. बहुत मज़ाअ आ रहा है…ह". और मेरे कंधों को पकड़े हुए ही उन्होने अपने चेहरे को मेरे कान के पास रख दिया. वो फुसफुसकर बोली, "कितना मज़ा आता है …… इसी तरह से बुर में लौदा डालकर
…….. सिर्फ़ महसूस करने में….कुच्छ सोचो मत …….कोई और क्याल नही ……सिर्फ़ बुर में लॉडा…….सिर्फ़ लॉड की सख्ती…..लॉड की गर्मी……और बुर की मखमली, रस भरी सकूदती हुई जाकरन! ….सिर्फ़ जिस्म का ख्याल रखो….और कुच्छ भी नही…. आअहह."
भाभी रुक कर कुच्छ शुस्ता रही थी. कमरे में टेबल क्लॉक की चलने की `टिक टिक' आवाज़ आ रही थी. मैं ने उसी `टिक टिक' पर अपना ध्यान लगाया. उनकी साँसों की आवाज़ मेरे कान में बहुत ही मीठे गीत की तरह लग रही थी, बीच बीच में भाभी
"अहह" कहते हुए अपनी बुर से मेरे लौदे को जाकड़ लेती थी. कोई चारा नही था. जैसे ही बुर को भाभी स्क्वीज़ करती थी, मेरा लौदा थिरक जाता था! कुच्छ देर बाद नीतू भाभी ने अपने जांघों को मेरे उपर थोरा घिसकाया. अब उनके बुर का दाना
मेरे लॉडा के जड़ से घिस रहा था. उनके मुँह से एक मज़े की "ह्म्म्म" निकली और उन्होने धीरे से दो तीन बार अपने दाने को मेरे लंड के जड़ में घिसने लगी. मेरे कान में धीरे से बोली, "यह बहुत मज़ा दे रहा है…..अहह" अब उनकी चूतड़
पहले की तरह बिल्कुल बैठी नही रही. वो अपनी चूतड़ को आहिस्ते से, बहुत ख़ास अंदाज़ में घुमाने लगी. लौदा चूत की पूरी गहराई में, और उनके चूत का दाना मेरे लौदा के जड़ पर उगी झांतों से रगड़ रहा था.
अब नीतू भाभी कुच्छ मस्ती में आ रही थी. उन्होने मुझसे मुस्कुरकर पूचछा, "अब कुच्छ ज़्यादा मज़ा आ रहा है? कुच्छ चुदाई का मज़ा? आहह …..हाआंणन्न्?"
"जी!………. हाआन्न!!!"
"मुझे भी!"
अब उन्होने अपने चूतर को थोरा उठाया, और मुझसे कहा, " तुम मत हिलना….इसी तरह रहो… इसी तरह ……मेरे चूत के अंदर …"
वो अपनी चूत को आगे कर के घिसने लगी, उनकी बुर का दाना मेरे झाँत में रगड़ रहा था. कुच्छ देर तक वो इसी तरह, कुच्छ सावधानी बरतते हुए रगड़ती रही, पर बीच बीच में, लगता था कि उनको भी मस्ती बढ़ने लगती थी, और वो ज़ोर्से
रगड़ना चाहती हैं, पर फिर अपने आपको रोक कर वो अपनी चूतड़ मेरी झंघों पर बैठा देती.
वो बोली,"अब ज़रा," और उन्होनें अपने गले को सॉफ किया और गहरी साँस ली," अब ज़रा अपने आप को काबू में रखना!" और उन्होने अपने दाने को फिर रगड़ना शुरू किया, अपनी चूतड़ को चक्की की तरह घुमाते हुए, और मेरे चेहरे पर मेरी हालत देखकर मेरी कान में धीरे से बोली, " झरना नही….. अपने आप को काबू में रखो …….देखो कितना मज़ा आएगा अभी!" मैने उनसे हामी भर दी, और वो बोलती रही , "देखो, मैं कितनी गीली हो रही हूँ ….किस तरह मेरी बुर बिल्कुल रसिया गयी है….. ओहो…..ह्म्म्म्मम… मेरे खातिर…. हान्न्न…… रुके रहो… मैं एक बार झार जाउन्गि….. आअहह ….. मेरे राजा … इसी तरह ……अब झरनेवाली हूँ" और उनकी आवाज़ बिल्कुल धीमी होती गयी, पर उनकी चूतड़ मस्ती में चकई की तारह ज़ोर्से
चलने लगी. चार तरफ घूम रही थी, फिर रुक कर एक बार अच्छी तरह से आगे, फिर उसी तरह से पीछे की तरफ, फिर गोल चक्कर. उनके बर से कुच्छ रस निकलकर हमारी झांतों में बह गया था, पर बुर और लंड के इस मिलन में हम दोनो बिल्कुल मगन थे. वो और ज़ोर्से साँस लेने लगी, और जैसे उनका मस्ती में हाँफना उसी तरह से उनके कमर का नाचना: उनकी चूतड़ ज़ोर्से, और जल्दी जल्दी चक्कर लगाती रही और बर का मुँह मेरे लौदे के जड़ पर रगड़ती रही. मुझे लग गया कि नीतू भाभी अब झरने वाली हैं, और मैं किसी तरह से अपने आप को रोके रहा, पूरी कोशिश कर के सिर्फ़ टेबल क्लॉक के "टिक-टिक'" पर ध्यान लगाए रखा. फिर उन्होने अपना चेहरा मेरे गाल पर रख दिया, उनकी साँस रुकी हुई थी, उनके हाथ मेरे कंधों पर ज़ोर्से पकड़े हुए थे, और उनकी चूत लगा जैसे मेरे लौदे को हाथ में लेकर मुथि में मसल रही हो, उनकी चूत बार बार कभी मेरे सूपदे को, कभी बीच लौदे को दबा रही थी. और लौदे को उपर से नीचे तक चूत का रस बिल्कुल भिगो दिया था. उनका दाना मेरे लौदे को और ज़ोर्से रगड़ने लगा, और मैं ने अपने लौदे को उचका दिया. मेरा लंड उचकाना भाभी को शायद अच्छा लगा, और वो और सिसकारी भरने लगी, "आआहह……..है दैया…… हाआंणन्न् ….. है …रे ………..दैयय्याअ ……….हमम्म्मम… ………हाआंन्नणणन्"; और मुझे लगा कि वो कुच्छ देर तक इसी तरह से झरती रही. मेरे हाथ उनके चूतड़ को सहला रहे थे.
वो ज़ोर्से साँस लेते हुए, "ऊऊहह….हमम्म्म …. आअहहानं" करते हुए रुक गयी. आँखें मूंदी हुई थी, पर चेहरे पर खुशी झलक रही थी. मैं ने उनके कंधों को चूमा, चूमता रहा, और उनके चुचियों को आहिस्ते से दबाता रहा, घुंडीयों को मसलता रहा. नीतू भाभी इसितरह से मेरे उपर लेटी रही. मेरा सख़्त लौदा अभी उनके रसभरी बुर में लथपथ होकर आराम कर रहा था.
फिर उन्होने कहा, "दैयय्याअ…. रे …दैयय्ाआ …… ह्म्म्म्ममम… …..वाह, मेरे राजा…… आहह…. …..कितने दिन बाद मैं इस तरह से झारी हूँ ….बहुत मज़ा दिया है तुमने……. बहुत खुशियाँ देते हो तुम औरतों को इस तरह से…. काश हर
मर्द तुम्हारे तरह होता!" वो अपना सर उठाकर मेरे तरफ अब देखी और बोली, " अब आओ, …..तुमको मज़ा करती हूँ."
मैं ने उनसे पूचछा, "आप थॅकी नही हैं?" उनकी साँस अभी भी कुच्छ फूली हुई थी, पर उन्होने मेरी आँखों में मुस्कराते हुए देखा और बोली, "अभी सीखना ख़तम नही हुआ है! यह तो सिर्फ़ शुरू का लेसन था! और अभी तो रात जवान है…… क्यूँ?" और उन्होने मेरे कंधों पर हाथ ज़ोर्से दबाए और मुझसे कहा, " इस बार मैं तुमको झरना सिखौन्गि. तुमने मेरा झरना महसूस किया… ..पर जानते हो… हम दोनो के पूरे मज़े के लिए तुमको भी अच्छी तरह से झरना ज़रूरी है. जब लोग जल्दिबाज़ी में करते हैं तो वे झरते तो हैं ….पर झरने का असल मज़ा नही आता… मैं चाहती हूँ कि तुम अपने लौदे से एक एक बूँद मुझे दे देना ….हाँ ….एक एक बूँद….और तब जाकर तुम सही मतलब में खलाश होगे…. ठीक है?.. समझे?…. एक एक बूँद निचोर लेगी मेरी बुर!" मैने पहले के तरह उनसे हामी भर दी, और उन्होने अपने बदन को सीधा हारते हुए आगे कहा, "मैं बहुत जल्दिबाज़ी नही करूँगी…. और जब तुम झरने लगॉगे तब तो मैं और आहिस्ते से करूँगी, ताकि मेरे
बुर मे मुझे भी अच्छी तरह से महसूस हो कि तुम्हारा फुहारा चलने लगा है… चल रहा है… ठीक?" उन्होने आगे समझाया, " अपनी बुर मे मैं यह तो नही महसूस कर पाउन्गि कि तुम्हारी कितनी बूँद निकल रही हैं, पर हर फुहारे के साथ
मेरी बुर में एक गरम लहर गहराई में जाती लगेगी. समझे?" मैं उनके मुस्कुराते चेहरे को देखकर अपने आप को अब तो बिल्कुल ही काबू मे नही रख पा रहा था...पर देखना भी चाहता था कि नीतू भाभी क्या सिखाने जा रही हैं. मैने कहा, " आप जल्दी ही महसूस करेंगी. अब शायद मैं अपने आप को रोक नही पाउन्गा!"
वो मेरी आँखों में देखती हुई मुस्कुराइ, एक ममता भरी मुस्कुरात. "मज़ा आता है ना ?…… जब लौदा झरने के लिए तैयार रहता है, पर अभी झारा नही होता? …… ह्म्म्म…उस हालत में …..खूब मज़ा …… आता है ना?"
मैने हामी भर दी. मैं ने ज़ोर्से एक साँस ली, और तैयार होने लगा. सच पूच्हिए तो मैं तो कब से तैयार था, बस किसी तरह से अपने को काबू में रखा था. भाभी मुस्कुराती रही, उन्हें तो अच्छी तरह से पता था कि मेरी क्या हालत हो रही थी.
उन्होने अपने घुटनों को ठीक से जमाया और मेरे कंधों को जमकर पकड़ लिया. बोली, "अब मेरी फिकर मत करना, समझे?… अब तुम मज़ाय लो! ह्म … सिर्फ़ अपने लौदे का ख्याल करो ……."
"जी."
अब वो अपनी चुचि को मेरे मुँह के उपर रगड़ते हुए, मुझे चोदने लगी. वो उपर मेरे सूपदे के टिप तक आई और फिर बुर के बिल्कुल अंदर तक चली गयी. जल्दिबाज़ी में नहीं, बिल्कुल धीरे धीरे, पाँच या च्छेः बार, और जब लगा कि ठीक आंगल से
चुदाई हो रही है तो उन्होने मुझसे कहा. " अब देखो!…..लो मेरी बुर!" और उन्होने मेरी आँखों मे देखते हुए इसी रफ़्तार में ठप ठप धक्के लगाने शुरू किए. उनकी नज़र मेरे चेहरे पर से कभी नही गयी, और वो मेरी आँखों में आँखें डालकर
मेरे चेहरे के भाव पढ़ती रही.
कुच्छ धक्कों के बाद उन्होने पूचछा, " मज़ा आ रहा है?" मैं ने कहा, "हां" पर यह भी बताया कि वो अपनी चूतड़ उतनी उपर नही उठायें. मेरा रोकना बहुत मुश्क़िल हो रहा था. वो मान गयी और और मेरे लौदे को बुर के गहराई मे लेकर अब सिर्फ़ आधे लौदे तक चूतड़ उपर उठाती. एक-दो बार ऐसा करने के बाद उन्होने पूचछा, "अब ठीक है?" मैने अपना सर हिलाया. वो बोली, "तो तुमको ज़्यादा मज़ा आता है जब मैं तुम्हारे लौदे को बिल्कुल अंदर लेती हूँ और जब उठती हूँ तो सिर्फ़ आधे लौदे तक और बाकी लौदा बुर के अंदर" मैं मस्ती में पागल हो रहा था, और मैं ताज़्ज़ज़ूब करता रहा कि नीतू भाभी को इस वक़्त इतने आराम से सवाल पूच्छने की क्या ज़रूरत पर गयी है! मैं तो नशे मे पागल था! भाभी ने अपने धक्के फिर जारी किए, मेरे लौदे को बुर के बिल्कुल गहराई में ले जाकर फिर आधे लौदे तक उपर निकलना, और फिर पूचछा, "इस तरह?" मैने कहा, "हाँ", और और धीरे से हंसकर बोली, "ठीक है…. पर कही मेरा घुटना ना जवाब दे दे!"
पर उनके घुटने तो कमाल के थे. मैं तो बस उनके थाप देने के अंदाज़ को देख रहा था. किस तरह से उनक टाँगें, उनके मांसल जाँघ, उनका बिल्कुल सपाट पेट और लचीली कमर मेरे लौदे की हालत ख़स्ता कर रहे थे. कुच्छ देर के बाद, करीब 15-20
थाप उन्होने दिए थे, मेरा लौदा बेहद सख़्त हो गया और मुझे लगा कि अब मैं खलाश हुंगा. वो मेरे चेहरे को देखकर समझ गयी थी, और उन्होने कहा, "हाँ…मेरे राजा!", और मैने कहा कि अब शायद मैं और नही रोक पाउन्गा,
तो उन्होने "ष्ह्ह्ह …हां… मैं महसूस कर रही हूँ". अब वो रुक गयी, और बुर को मेरे लौदे पर ज़ोर्से दबाती रही. उनका चूतड़ अब बिल्कुल रुक गया.
वो बोली, "सुनो…….थोरा रुक जाओ! तुम अभी भी कुच्छ सोच रहे हो…सभी ख्यालों को हटाओ…….. " मैं कुच्छ चौंक गया और कहा, "अच्छा?!" मेरा लौदा उनकी चूत के अंदर बिल्कुल बाँस की तरह खरा था. वो बोली, "तुम्हारी आँखें बता रही हैं! तुम थोरी जल्दबाज़ी कर रहे हो….. तुम करीब हो ….पर अभी वहाँ पहुँचे नही …….क्या जल्दबाज़ी है?……ह्म्म्म्म…… आराम से मज़ा लो…….!" मुझ से नही
रहा गया, और मैं ने पूचछा, "नीतू भाभी, आप भी ग़ज़ब की हैं! …आपको कैसे पता चला कि मैं अभी तक वहाँ पहुँचा नही?" मुझे सच में लग रहा था कि अब किसी भी वक़्त मेरा लौदा फुहारा खोल देगा. भाभी मुस्करती हुई बोली, "तज़ुर्बे से
कह रही हूँ, मेरे भोले राजा!…… तुम्हारी आँखों मे सॉफ है……थोरा रूको……आराम से मज़ा लो!"
वो मेरे चेहरे को देखती रही, आँख में आँख मिलाकर, जैसे मुझे और मेरे लौदे का टेस्ट ले रही हो. फिर मेरे गाल को सहलाते हुए, वो मेरे माथे पर प्यार से चूमने लगी, और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा, "ठीक से मज़्ज़े करो… आराम से….आहिस्ते आहिस्ते…. हम वहाँ आराम से पहुँच जाएँगे …….कोई जल्दबाज़ी नही!" वो अपने सर को अब उठाकर, अपनी पीठ को फिर सीधा कर, चुचियों को मस्ती से उपर उठाकर, मेरी तरफ देखी और मुस्कुरकर पूछि, `तैयार हो?!!"
मैं ने सर हिलाकर "हां" कहा.
"फिर आ जाओ, मेरे राजा!" उन्होने अपने चूतड़ को उपर उठाया, फिर नीचे किया. फिर उपर.. "देखो ….आहिस्ते से..आहिस्ते." फिर नीचे. मेरी तरफ देखती रही. "सुनो, मेरी तरफ देखते रहो….मेरी आँखों में!" अब उनकी कमर एक नये अंदाज़ में लचाकने लगी, बहुत ही धीरे, पर चक्की की तरह. वो मुझे समझाती रही, " चुदाई का मज़ा सिर्फ़ बुर में लंड डालने में नही है….. ह्म … वो और बहुत कुच्छ है! ….. कहते हैं कि संभोग ही समाधि भी है…..हन्न्न…. इस मज़ा में हमें वो एहसास होता है जो हम और किसी भी तरह से नही जान सकते….एम्म्म …. अपने जिस्म से दूर, अपने दिमाग़ से दूर ……ह्म्म्म्मम.. …… मेरी तरफ देखते रहो, मेरी आँखों में. ……तुम्हारी आँखों से मुझे पता लग जाएगा कि तुम अभी बिल्कुल तैयार हो की नही……..ह्म्म्म्मम……..इसी तरह"
उनकी गीली चूत मेरे लौदे को चूस रही थी और वो मेरी आँखों मे अपनी आँखें डाले हुए मुझे चोद क्या रही थी, जन्नत का नज़ारा दिखा रही थी. कुच्छ ही देर में फिर से मेरे लौदे में सिहरन होने लगी और मेरे मुँह से "अर्घ" आवाज़ आने लगी, पर भाभी ने मुझ से कहा, `मेरी तरफ देखते रहो, मेरे राजा!….. चोदते हुए आँख नही चुराते!!" मेरी आँखें खुल गयी और वो मुझसे आँखें मिलाते हुए बोली, " अब तुम बहुत करीब आ गये हो ….मेरे बर में तुम्हारे लंड की गर्मी बता रही है……पर बिल्कुल तैयार तुम अभी भी नही हो. सोचना बिल्कुल छ्चोड़ो …… सिर्फ़ मज़ा लो. …..सिर्फ़ मेरे बुर की चाल को महसूस करो…..हाआंन्ननननणणन्" वो थोरी रुकी, और मुझे देखती रही, देखती रही, और बुर को आधे लौदे तक उठाकर, फिर रुकी, और तब धीरे से चूतड़ नीचे करके बुर के बिल्कुल अंदर मेरे लौदे को ले लिया. वो 2-3 बार फिर उपर नीचे अपने चूतड़ को घुमाती रही, फिर उसी तरह से आगे पीछे, आगे पीछे, और तब आधे लौदे तक फिर उठाकर मुझसे प्यार से कहा," सिर्फ़ मज़ा लो…… कुच्छ भी सोचो मत इस वक़्त…….सिर्फ़ मज़ा…. हायेयियी!"
इसी तरह नीतू भाभी बार बार अपनी चूतड़ की चक्की चलाती रही, और मेरा लौदा उनकी बुर में कोई गरम लोहे के हथौरे की तरह जमा रहा. उसकी सख्ती से अब मुझे मुझे ऐसी परेशानी हो रही थी कि लगता नही था कि अब 10 सेकेंड भी अपने
आपको रोक सकूँगा, पर मस्ती ऐसी थी कि किसी भी हालत में अपने आपको काबू में रखना ही था. वो अब रुकी, चूतड़ को मेरे लौदे के सूपदे के टिप तक उपर उठाया, और फिरे आहिस्ते, रगड़ते हुए मेरे पूरे लॉड को अपनी बुर में निगलती गयी. बोलती रही, " चुदाई का मज़ा तभी है जब और कोई ख्याल नही हो
….हान्णन्न् ….कोई और ख्याल नही…….सिर्फ़ सख़्त लौदे की गर्मी, सिर्फ़ बुर की प्यास …..हमम्म्म…." अब वो उपर उठ रही थी, धीरे, बहुत धीरे से, और बुर सिकुर रही थी, मेरे लौदा को जैसे किसी बच्चे का हाथ मुथि में पकड़ रहा हो…पकड़ लिया
हो…और छ्चोड़े ही ना. " मैं तुम्हारे चेहरे पर मस्ती देखना चाहती हूँ, …सिर्फ़ मस्ती…….मज़े का नशा!"
उनकी चूत मेरे लौदे को इसी तरह से जकड़े हुए रही, और वो मेरी आँखों में देखती रही. उनकी चूत लौदे को दबाती जा रही थी, दबाती जा रही थी. मेरे होश उड़ रहे थे, लौदे की हालत क्या बताउ, और मैं ने अपनी कमर को थोरे उठाने की कोशिश की जिस से कि लौदा उनकी चूत में कुच्छ और अंदर जा सके, कुच्छ इधर
उधर घूमे. उन्होने मुझे यह करते देख, अपनी चूत को सिकुरना बंद कर दिया, और धीरे से मुस्कुराने लगी. मैं फिर से पहले की तरह लेटा रहा. मेरे रुक जाने के बाद अब नीतू भाभी ने फिर अपनी चूत को सिकुरना शुरू किया. मस्ती के मारे मेरे
मुँह से सिसकारी निकल रही थी…."ऊऊऊहह……..म्म्म्मममममम". इस बार मैं भी उनकी आँखों में उसी तरह से देखने लगा जैसे वो देखती रही थी. वो फिर चूत को सिकुरने लगी, उसी तरह से, और मैं ने कहा, "ह्बीयेयन्न्न्न्न," और वो मुस्कुराते हुए मुझे देखी. उनके आँखों में अब कुच्छ शरारत थी. बोली, " मेरी तरफ देखते रहो!……….आँख नही मूंदना!"
उनकी चूत मेरे लौदे को रगड़ती रही, और दबाती रही. फिर वो अपनी चूतड़ को उठाई, बिल्कुल मेरे लौदे के सूपदे के उपर तक, और मेरे कान में फुसफुसाई," अब मेरी तरफ देखते रहो, …. महसूस करो कि मेरी चूत तुम्हारे लौदे को किस तरह
मज़ा देती है!" अपने चूतड़ को अब नीचे करने लगी, पर बहुत ही धीरे धीरे, और साथ ही कमर को घुमाती रही, आधा घुमान एक तरफ, फिर आधा घूमन दूसरी तरफ, धीरे……धीरे. उनकी रफ़्तार बस ऐसी थी कि मेरा लौदा काबू में रह सके, पर बस उतना ही. बिल्कुल धीरे नही! पर ऐसे कुच्छ ही नाज़ुक थाप के बाद, उन्होने देखा होगा कि मैं उनके चेहरे पर गौर कर रहा था, और मैं समझने लगा कि अगर मैं इसी तरह भाभी को देखता रहूं, सिर्फ़ उनके चूत के कमाल पर गौर करता रहूं, तो अपने लौदे को काबू में ना रखने का डर अपने आप ख़तम हो जाएगा. बस भाभी ने 2-3 और थाप दिए, और मुझे लगा कि दुनिया में और कुच्छ भी नही, उनकी आँखें की शरारत और चमक, और मेरे लौदे के उपर हौले-हौले नाचती हुई उनकी चूत! मैं अपने चेहरे पर की मुस्कुराहट को चाह कर भी नही रोक सकता था…सारी दुनिया मेरेलिए दूर जा रही थी….बस भाभी की आँखें, और उनके चूत के गहराई में जाता और फिर निकलता मेरा लौदा.
अब तो मस्ती ऐसी कि मुझ से सहा नही जा रहा था. अभी तक मैं ने इतने देर तक कभी भी अपने आप को काबू मे नही रख पाया था, ऐसी मस्ती का तो कभी अंदाज़ा भी नही किया था. अब मुझे समझ मे आने लगा कि नीतू भाभी मूज़े क्या सीखाना चाहती हैं. उनकी चूत का हर बार लौदे के उपर आना, और हर बार लौदे को बिल्कुल चूत के गहराई तक लेना, उनका हर ताप मुझे नशे से झकझोड़ देता था.
मेरे होंठ सूख रहे थे. बिल्कुल सूख गये थे.. हमारी आँखें अभी भी मिली थी. मैं ने धीरे से कहा, `भाभी…..थोरा आहिस्ते!"
भाभी के भौंह थोरे उपर उठे, और उनकी मुस्कुराहट में अब एक हूर या अप्सरा की सी मादकता थी. वो कुच्छ रुकी, अपनी कमर को सीधा करते आधे लौदे तक चूत को उठाया, मुझे शरारत और प्यार से देखा, और फिर कुच्छ और धीरे से अपनी चक्की चलाने लगी, धीरे, ….धीरे, …..और धीरे से. उनके चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रही. उन्होने फिर अपने चूतड़ को उपर उठाया, बिल्कुल सूपदे के नोक तक, नोक को थोडा अपने चूत के पट्टियों से रगड़ दिया, और फिर अपने पुरानी रफ़्तार से चक्की चल पड़ी. उनकी आँखें मुझसे बातें करती दिखी. कह रही थी: "अब समझे, मज़े कैसे किए जाते हैं!" उनकी चूत जब नीचे मेरे लौदे के जड़ तक आती थी तो वो अपने चूत से लौदे को चारो तरफ घूमाकर रगड़ती थी, पर जब उपर उठती तो अपनी चूत से लौदे को इस तरह जाकड़ लेती की मेरे लौदे को खींचती जाए और छ्चोड़े ही नही. पूरी गहराई तक लौदे को लेती थी, फिर सूपदे के नोक तक उठा लेती थी. मेरी हालत देख कर उनकी मुस्कुराहट रुकती ही नही थी. उनकी चूत मेरे लौदे को निचोड़ती जा रही थी, और उनकी मुस्कुराहट, उनके आँखों की शरारत, मेरे दिमाग़ से हर ख्याल को निचोड़ कर कहीं बाहर फेक चुकी थी. उनका हर थाप लगता था कि एक नयी तरह की मस्ती लाता था, हर थाप में एक नयापन. जैसे समुद्रा के बीच पर हर लहर का अपना ही नयापन होता है, नीतू भाभी की चूत में मेरा लोहे सा तप्ता हुआ लौदा उनकी चुदाई के हर एक लहर का नयापन, हर एक लहर की अपनी ख़ास मस्ती से जन्नत का मज़ा ले रहा था. उनकी रफ़्तार अब कुच्छ बढ़ गयी, वो मुझे गौर से देख रही थी, और मेरा लौदा चूत के अंदर और अकड़ गया, और लगा कि उनकी आँखों ने मुझे कहा हो कि उसे अच्छी तरह से महसूस कर रही हैं….फिर उन्होने आँखों से ही पूचछा कि क्या मैं अब झरने वाला हूँ.
मैं ने धीरे से कहा, "नाहह…..अभी नही!"
उनके चेहरे पर खिलकर हँसी आ गई, चुदाई मे लड़कियों की अपनी ख़ास, शरारती हँसी, वो खुशी से बोली, "हान्न्न!" अब मुझे समझ मे आने लगा कि यह भी बहुत ज़रूरी सीख नीतू भाभी ने अभी दी है कि चुदाई में बातें आँखों
से ही होती हैं …..चुदाई का असली मज़ा तभी है जब आँख में आँख बिल्कुल लीन हो जाए! सब से बड़ी बात तो यह कि दुनिया के सभी ख्याल छ्चोड़कर मज़े को पहचाने, उसको समझे, उसको आराम से महसूस करना सीखें. उनके चूत की गहराई में गिरफ़्त मेरा लौदा फिर एक बार ज़ोर्से थिरकने लगा. नीतू भाभी मेरी आँखों में देखकर मुस्कुराने लगी, और इशारे से बताया की ठीक है, वो समझ रही हैं कि मेरी मस्ती किस लेवेल पर पहुँच रही है. अब हम दोनो एक दूसरे के आँखों से ही बातें कर रहे थे, एक दूसरे को बिल्कुल अच्छी तरह से समझ
रहे थे. दो जिस्म, पर ऐसी मस्ती की चुदाई मे दोनो एक होते जा रहे थे!
मेरा लौदा फिर काबू के बाहर होने लगा. ऐसा लगने लगा कि अब और नही रोक पाउन्गा अपने आप को. फिर भी मैं ने कोशिश की, अपने मुँह को सख्ती से बंद किया, दाँत पर दाँत बिठाया, और भाभी की कमर को ज़ोर्से पकड़ने की कोशिश की. भाभी ने मुझे अपने आपको झरने से रोकते हुए देखकर, फिर अपनी मादक अंदाज़ मे मुस्कुराइ, और उनकी आँखें मे उनकी समझदारी, नशा और थोरा थोरा छिनल्पन की मिली-जुली नज़र मुझे तो एक दूसरी दुनिया में ले जा रही थी. मेरी गर्दन कड़ी हो रही थी, और जब भाभी को यह एहसास हो गया कि मैं भी इतनी आसानी से हार नही माननेवाला हूँ, तो उनकी आँखें चमकने लगी, और अब हम दोनो अपनी अलग अलग प्यास को छ्चोड़कर आगे बढ़ चुके थे….हमारी प्यास अब एक हो गयी थी. मेरे चेहरे पर भी अब एक चोदु की मुस्कुरात थी, जैसे कोई पहलवान कुश्ती के मुक़ाबले में दूसरे को चुनौती दे रहा हो, " आ जाओ…,. देखें कि कितनी ताक़त है तुम में."
मैं ने अब अपने पेट को सटका कर बिल्कुल अंदर कर लिया, साँस रोक ली, और पेट को उसी तरह सटा रखा: मेरा लौदा और भी कड़क गया चूत के अंदर, लोहार के हथौरे की तरह गरम और सख़्त, और जैसे ही नीतू भाभी ने महसूस किया कि मेरा लौदा अकड़ने लगा है, पर अभी भी काबू में है, उनकी मुस्कुराहट हँसी मे बदल गयी. कमरे में तो अंधेरा था, पर उस चाँदनी रात की रोशनी में, उनके दाँत खिल रहे थे. चुचियों पर झूलता हुआ उनका "मंगलसूत्रा" चमक रहा था. अब उनकी चूत अच्छी रफ़्तार में चक्की चलाते जा रही थी, उपर से नीचे, नीचे से उपर, और मेरे मुँह से "अहह," सिर्फ़ आहें. कुच्छ मुस्कुराते हुए, कुच्छ शरारती अंदाज़ में, अब उन्होने पूचछा, "क्यूँ…. अब मज़ा आ रहा है? …ह्म?"
"हाआअन्णन्न्… ……!!!!!….ह्म्म्म्मम…….और आपको?!!!"
"हाआंणन्न्….. ….. पूच्छो मत!!! ………… असली चुदाई का मज़ा!!!….. ह्म्म्म्मम!"
इस लम्हे मे लगा कि वाक़ई हम दोनो एक हो गये हैं, हमारे बदन जुड़े हुए थे, हमारी ख्वाहिश एक थी, एक ही प्यास. हमारे आँखों में एक ही चाह थी! नीतू भाभी ने अब अपने मुँह में दाँतों को कड़ा कर लिया और लौदे को चूत के बिल्कुल अंदर दबोच लिया, उनकी जंघें मेरे कमर को बिल्कुल जाकड़ चुकी थी. उनकी आँखें बता रही थी की उनको महसूस हो रहा है कि झरने से पहले मेरा लौदा अब बिल्कुल फूल कर तैयार है, सख़्त, बिल्कुल अकड़ कर उनके बच्चेदनि के मुँह पर सूपड़ा
तैयार है फुहारा छ्चोड़ने के लिए. मेरे मुँह से "आअरर्रघह" की आवाज़ निकली और मेरा लौदा झरने लगा, और भाभी की थाप अब चक्की नही, बिल्कुल सीधी और आहिस्ते हो गयी, सूपदे से लेकर जड़ तक, फिर जड़ से सूपड़ा तक. मई झाड़ता गया, झाड़ता गया,….नीतू भाभी की चूत भरती गयी, और नीतू भाभी मेरी तरफ मुस्कुराते हुए अपने रस भरी चूत से मुझे निचोड़ती रही, निचोड़ती रही, बार बार. लग रहा था जैसे मेरे अंदर अब एक भी बूँद नही बचेगी, भाभी की चूत हर बूँद को निचोड़ कर छ्चोड़ेगी. मेरी आँखें बंद हो गयी थी, मेरा लौदा फूला हुआ तो अभी भी था, पर उसकी गर्मी अब भाभी की चूत में कुच्छ कम होती जा रही थी….भाभी अभी भी आहिस्ते से, हौले हौले उसको निचोड़ रही थी.
"आआआहह…..," बस मैं इतना ही कह पाया. लगा जैसे मुझ में एक भी बूँद नही बची है, जैसे मेरे बदन में एक हड्डी नही, दिमाग़ में एक भी ख्याल नही. बिल्कुल खलाश. …..और नीतू भाभी के सिखाए हुए चुदाई के मस्ती
का एहसास!
उस रात मैं नीतू भाभी को देखता रहा. हम एक पार्टी से अभी लौटे थे. रात काफ़ी हो रही थी. भाभी की सहेली के घर एक बच्चे के बिर्थडे के मौके पर उनके जान-पहचान के कुच्छ दोस्तों की पार्टी थी. कुच्छ अकेले मर्द, कुच्छ अकेली औरतें, और कुच्छ कपल्स. सभी कोई आछे नौकरियों में थे. भाभी ने उन सभी लोगों से मेरा परिचय कराया. उन लोगों से मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई. और वे लोग
भी मुझसे बहुत प्यार से मिले.
पार्टी से लौटने के बाद भाभी अपने कपड़े उतार रही थी. अपनी खूबसूरत रेशमी सारी को उन्होने उतार कर ठीक से अलमारी में रखा. फिर अपने रेशमी ब्लाउस को. अब वो सिर्फ़ अपनी ब्रा और पेटिकोट मे. पार्टी वाला मेक-अप, बेहद सुंदर जोड़ा, मन
को बिल्कुल मोहने वाला टीका, लिपस्टिक, और बेली के माला के साथ बँधा हुआ जूड़ा.
मेरा लौदा कसक रहा था. मैं ने कपड़े पहले ही उतार लिए थे, और सिर्फ़ अपने अंडरवेर मे था. पार्टी मे 6-7 बहुत खूबसूरत औरतें थी, और भाभी की एक सहेली तो मुझे बहुत ही नमकीन लगी थी, पर उन सारी औरतों में मेरी नीतू भाभी किसी से कम नही लगी. भाभी अभी पार्टी की बात कर रही थी. अब अपनी अच्छी वाली लेस ब्रा के हुक्स को अपने हाथ पीछे कर के खोल रही थी. जैसे ही हुक्स खुले, उनकी मस्ती भरी चुचियाँ आज़ाद होकर खिलने लगी, और अब मैं अपने आपको काबू मे नही रख सका. कमरे में सिर्फ़ बेडसाइड लॅंप जल रही थी, मैं ने जाकर
उसको बंद कर दिया, और सिर्फ़ खिड़कियों से आती रोशनी में उनको देखता रहा.
भाभी अचानक लाइट बंद हो जाने कुच्छ चौंकी, पर तब तक मैं उनकी चुचियों के पास अपने मुँह को नीचा करके एक निपल को मुँह मे लेकर चाटने लगा. दूसरा निपल मेरे हाथ में, उसको सहला रहा था, धीरे धीरे मसल रहा था. दोनो निपल्स को मैं बारी बारी चूसने लगा.
भाभी हंसते हुए बोली, "अच्छा?!! …… लगता है कि पार्टी में तुमको खूब मज़ा आया ……. खूब गरम हो गये ……… क्यूँ?" वो अपनी चुचि को थोरा उठाकर मेरे मुँह में दे रही थी, और मैं धीरे धीरे, प्यार से चूस रहा था. मैं सर
उठाकर उनके छाती और गर्दन और कंधों पर चूमने लगा, और अपने हाथों में उनकी चुचियों को दबाता रहा. भाभी भी आहें भरने लगी, पर मैं तो उनके सुरहिदार गर्दन को हर जगह चूमता रहा, चाटते रहा. उनके बदन की अपनी खुसबू, और उसके उपर चंदन की खूबसूरत इत्र की खुसबू से मैं मस्ती मे आ रहा था. मैं ने उनकी तरफ देखा और फिर चूमने लगा, इस बार उनके कान को. भाभी खिलखिलती हुई बोली, " ह्म ……. वाहह ……. बहुत अच्छी तरह से चूम रहे हो …… … लगता है वाक़ई तुम बहुत गरम हो गये……. क्यूँ?!" भाभी
की आँखों में फिर वोही शरारत वाली मुस्कुराहट.
मैं ने उनको कंधो से पकड़े हुए उनको बिस्तर पर लिटा दिया. उनके पैर नीचे फर्श को छ्छू रहे थे. उन्होने ने अपने पैर फैलाए रखे, और मुस्कुराती रही. मैने उनपने अंडरवेर उतारा, और उनके पेटिकोट को उपर खींचकर कमर के पास
लपेट कर छ्चोड़ दिया. मेरा लौदा खड़ा हो रहा था, पर अभी उसकी सख्ती बहुत बढ़ने वाली थी. उनके टाँगों के बीच मैं घुटनों पर बैठ गया. अब भाभी नेअपने घुटनों को उपर उठाकर अपनी चूत को खोल दिया. मैं ने गर्दन झुका कर अपना
मुँह उनकी चूत पर रख दिया, उंगलियों से उनकी चूत को प्यार से खोला, और मुँह में कुच्छ थूक बनाते हुए, उनकी चूत के पंखुरे को उपर से नीचे चाता, अच्छी तरह से थूक लगाते हुए, फिर नीचे से उपर, दोनो पंखुरीओं को, और उनके दाने तक जाकर रुका.
भाभी का बदन मस्ती से थोड़ा सिहर उठा, और वो बोली, "तो आज तुम इधर उधर की बातों में बिल्कुल वक़्त नही बर्बाद करना चाहते हो….. क्या? …… बिल्कुल पॉइंट पर आ गये ….. हनन्न?" मैं उसी तरह उनकी चूत को चट रहा था, आहिस्ते से, थूक को
जीभ से ही चारो तरफ मलते हुए. चूत के चारो तरफ जीभ को घुमाता रहा, एक बार चूत के कुच्छ अंदर, फिर चूत के उपर, धीरे धीरे चूत का स्वाद लेता रहा. भाभी अपनी "आहह", "एम्म्म", "ऊऊहह" से बता रही थी मेरे चाटने का उनपर
असर हो रहा था.
पता नही कैसे, पर शायद मेरी भूखी नज़रें और मेरे चाटने और चूसने से नीतू भाभी बहुत जल्दी गरम हो गयी. मैं ने सर उठाकर देखा तो उनकी खूबसूरत चूत झांतों के बीच फूल गयी थी, थूक और अपने रस से चमकती हुई, अपने
फूली हुए पत्तियों को आधी खिली हुई फूल के तरह. कुच्छ ही देर के चूसने के बाद उनका दाना बाहर निकल चुका था, फूलकर तैयार. भाभी अपने आपको बिल्कुल ढीली छ्चोड़कर, घुटनों को उसी तरह उठाए हुए, मुझे देख रही थी. मैं ने अब
अपनी जीभ को काफ़ी बाहर निकालकर, उंगलियों से उनके चूत को फैलाए हुए, उनके दाने पर जीभ के नोक को घुमाने लगा, चाटने लगा. वो धीरे से, पर पूरी मज़े लेती हुई बोली, "आहह!", और अपने दाँतों को कासके बंद कर लिया. उन्होने
देखा कि मेरी नज़र उनके चेहरे पर है. उनकी पलकें अब बंद हो गयी, उनकी गर्दन तन गयी, अपनी जांघों को उन्होने और भी फैला दिया, उनकी चूत और भी खुल गयी थी, और मेरे अपने कंधों और गर्दन पर भाभी के जकड़ते जांघों से मैं सॉफ महसूस कर था कि भाभी के में कितनी गर्मी आ गयी है. मैं ने अब उनके दाने को चाटना छ्चोड़कर, उनके चूत के चारो तरफ उसी तरह से जीभ को नोकिला बनाकर घूमता रहा. उपर से नीचे नही, खुली हुई, फूली हुई चूत के बाहरी पट्टी के
चारो तरफ, फिर उसी तरह से चूत के अंदर की पत्तियॉं के चारो तरफ, चारो तरफ जीभ के नोक से थूक मालता रहा, चारो तरफ पर दाने को नही!. इसी तरह कुच्छ देर तक जीभ घुमाने के बाद, मैं ने देखा कि भाभी उतावली हो रही हैं अपनी चूत के दाने को चटवाने के लिए. वो अपने चूतड़ को उठाने की कोशिश कर रही थी कि दाना मेरी जीभ से रगड़ा खाए, पर मई भी उनको इतनी जल्दी छ्चोड़नेवाला नही था! चारो तरफ घूम आकर, छत कर, पर अब मई ने फिर एक बार दाने को जीभ के नोक से चटा, धीरे धीरे, और फिर दाने के चारो तरफ उसी तह से घूमने लगा.
भाभी को कुच्छ राहत मिली. बॉई, "अहह ……..वाअहह!"
अब मैने भाभी की चूत पर अपना मुँह ठीक से डाल दिया. और उनके दाने को उसी तरह से चूसने लगा जैसे कि चुचि के घुंडी चूस्ते हैं. अ पने होंठों को गीला करके उनको भाभी के फूले हुए दाने के उपर डालकर दाने को अंदर ले लेता, फिर जीभ से चट कर उसके बाहर आ जाता. भाभी की जंघें अब मेरे कंधों पर कड़क होने लगी. भाभी ने कुच्छ अस्चर्य से "ओह्ह्ह?!!" किया, और उन्होने अपने सर को ढीला छ्चोड़कर अपनी चूतड़ को अब उठाने लगी. उनकी साँस तेज हो गयी. पर मैं रुका नही. अपने होंठों को उसी तरह से दाने को प्यार से चट रहा था, उसके चारो तरफ जीभ घुमाता रहा, एक अच्छे रफ़्तार से. भाभी की चूत इस तरह मेरे मुँह में रगड़ रही थी कि मैं उसके हर भाग को एक हद तक रगड़ रहा था. उनकी चूतड़ अब कुच्छ घूमने लगी थी, पर मेरा मुँह उन की चूत से बिल्कुल सटा हुआ, उसका दाना मेरे होंठों के बीच, मेरे जीभ के नोक पर सटा हुआ.. भाभी अब ज़ोर्से सिसकारी लेते हुए बोली, " हाई दैयाआआ, …………..म्म्म्मह ………….ऊऊहह ……कितना मज़ा दे रहे हो……. ऊऊहह!" मुझे लग गया कि अब भाभी कुच्छ देर में झड़ने लगेगी. उनका पूरा बदन सिहरने लगा था, जांघें और भी खुलकर मुझको ज़ोर्से जाकड़ ली थी, और हू अपने कमर को इस तरह घुमाने लगी जैसे
मेरे मुँह को चोद रही हो. मैं ने चूसना जड़ी रखा, उसी तरह, जिस से की रफ़्तार ना टूटे, और कुच्छ ही देर में उनकी साँस, उनके जाँघ और कमर सॉफ बता रहे थे कि वो काबू से बाहर हो रही है. अब वो ठहड़ने वाली नही. मैं ने एक उपाय सोचा.
भाभी को मस्ती की उस उँचाई पर लाने के बाद, मैं रुक गया. बिल्कुल रुक गया. भाभी मज़े में अभी भी छॅट्पाटा रही थी. मैं उठा. कमरे में आती रोशनी मे मेरे लौदा का सूपड़ा चमक रहा था. मैं उठकर भाभी के मुँह के पास अपने कड़े लोड को हिलाने लगा, फिर उनके गुलाबी होंठ पर सूपदे को रगड़ने लगा. भाभी अब शरारती अंदाज़ से मुझे देखती हुई, मेरी आँखों मे देखती हुई, पूछि, "हान्न्न….?!!" वो हाथ पीछे करके अपनी एक तकिया (पिल्लो) को अपने सर के नीचे रख लिया, जिस से उनकी गर्दन को कुच्छ आराम मिले. मेरी तरफ मुस्कुर्ते हुए उन्होने अपने मुँह के अंदर जीभ को थूक से लेपकर मेरे लौदे को आहिस्ते से चटकार गीला करने लगी. वो अपने मुँह से बार बार थूक बनाकर निकलती और फिर प्पोरे लौदे को चूमते हुए, उस पर थूक मालती जा रही थी. फिर सारे थूक को अपनी जीभ से प्यार से चाटने लगी, पूरे लौदे में मले हुए थूक को बिल्कुल साफा कर दिया उन्होने जैसे चॉक्लेट आइस क्रीम के चम्मच को हम चटकार आइस क्रीम के हर बूँद का हम मज़ा लेते हैं. देखनेवाले कोई नही बता सकते कि अभी अभी मेरा लौदा थूक में बिल्कुल डुबोया हुआ था. उन्होने फिर अपने मुँह में थूक बनाकर मेरे लौदे के सूपदे को गीला किया और फिर उसी तरह से चाटना. मुँह मे
लेकर वो मेरे लौदे को इस तरह चाट और चूस रही थी कि वो और भी सख़्त होता गया. मेरा लौदा अब बेहद सख़्त और बेहद गरम! मेरे मुँह से आवाज़ निकलने लगी, हाआंणन्न् …. भाभी ….इसी तरह …….हाआअन्णन्न्!" मेरी मस्ती बहुत ज़ोर्से बढ़ती जा रही थी, अपनी हाथों को ज़ोर्से मुट्ठी बनाए हुए, मैं ने कहा, "
हाआंन्न …….चूऊसो …… हाआन्न …..इसी तरह …. चूवसू…..!"
अब तकिये पर अपने सर को थोड़ा ठीक से सेट करते हुए, भाभी ने अपना मुँह आगे किया, और मेरे पूरे लौदे को अपने मुँह में ले लिया. मुँह की अपनी गर्मी और उसपर गरम थूक, और सबसे बढ़कर भाभी की कॅमाल की जीभ ! थूक मे डुबोया मेरा लौदा अब भाभी के जीभ में बिल्कुल लिपटा हुआ था, और भाभी अपने मुँह को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगी. मेरे पूरे लौदे को चाटती रही, चुस्ती रही, और फिर मेरी चेहरे पर नज़र डाले हुए ही उन्होने सूपदे को ज़ोर्से चुस्कर छ्चोड़ दिया. मेरी मस्ती का पूच्हिए मत! अब वो सिर्फ़ सूपदे को मुँह में लेकर आपने होंठ के अंदर वाले तरफ से चाट रही थी. मेरा लौदा थिरक रहा था, कभी उपर, कभी नीचे, मस्ती में चूर.
`ह्म्म्म्म," वो आह भरी. उनके नज़र में फिर वोही शरारत, मेरी तरफ मुस्कुराते हुए बोली, " है…. बहुत मज़ा आ रहा है …..!"
मैं ने धीरे से कहा, " हाआंणन्न् ….. चूसीए ना …….हान्न्न ….. बहुत मज़ा देती हैं आप!" उन्होने मेरी तरफ गौर से देखा, और मेरे लौदे को फिर से मुँह में ले लिया. उनको सर आहिस्ते से आगे पीछे होता रहा, मेरे लौदे को हौले हौले चूस्ते हुए, थूक मलते हुए, चाटते हुए. उनकी गर्दन बहुत नही घूम रही थी, बस एक या 2 इंच, पर उनके होंठ खुलकर अपने उल्टे साइड से मेरे सूपड़ा को थूक मल कर मज़ा दे रहे थे. और साथ में उनकी जीभ मेरे सूपदे के चीड़ के नीचे
की तरफ़ दबाती रही, चाटती रही.
मैं ने एक गहरी साँस ली, उनकी तरफ़ देखता हुआ. फिर से एक बार यह ख्याल आया की नीतू भाभी वाक़ई में लौदे को चुस्ति या चाटती नही है. ये तो लौदे को अपने मुँह से चोदती हैं, ये तो चोदने का पूरा मज़ा अपने होंठ और जीभ से ही दे देती हैं. वो जानती हैं कि किस तरह एक औरत के मन को बिल्कुल एक प्यारी, चुस्ती हुई चूत बनाई जा सकती है, और जल्दी ही मेरा सूपड़ा उनके मुँह के अंदर उसके उपर वाले भाग को थिरक कर रगड़ने लगा.
मैं समझ गया कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो मैं जल्दी ही झड़ने लगूंगा. मैं ने धीरे से अपने लौदे को उनके मुँह से निकाल लिया, मेरे लौदे और उनके होंठ और जीभ पर मले थूक के कारण लोड्ा निकलते ही "फच" की आवाज़ निकली.
उनकी आँखों में भोखी नज़रों से देखते हुए, मैं अब नीचे घिसकने लगा, अपने पैर सीधे किए, और भाभी के उपर लेटने लगा. भाभी के चेहरे पर एक ताज़्ज़ूब , पर जब मैं अपने हाथों के बल उठा और अपने लौदे के सूपड़ा को उनके चूत
के मुँह पर निशाना लगाने लगा, तो उनकी ताज़्ज़ूब खुशी में बदल गयी. उनकी आहहें अभी चलती रही, साँसें कुच्छ फूली ही रही, और उनकी आँखें मुझे याद दिला रही थी कि अभी भी वो झड़ने के करीब ही हैं, झड़ी नही. उनकी आँखें मुझे यह बार-बार याद दिलाना चाह रही थी. मेरा सूपड़ा उनके फूले हुए, गीली पट्टियों को रगड़ता रहा, और उनकी जंघें बिल्कुल खुल गयी. उन्होने अपने को कुच्छ उपर उठा दिया, और चूतड़ को हल्के से घूमते हुए, उनके चूत का मुँह मेरे सूपदे को अब चूम रहा था, मेरे सूपदे को चारो तरफ घूमते हुए रगड़ रहा था. मैं थोड़ा आगे खिसका. उनकी आँखों में अब चमक आ गयी, मैं ने भी एक लंबे आआआहह के साथ अपना लौदा नीतू भाभी की मखमली चूत के गहराई में घुसेड़ता गया, बिल्कुल अंदर तक. अंदर पहुँचकर, मेरे सूपदे ने भाभी के चूत के एक ख़ास जगह को अपना सर उठाते हुए, कुच्छ अकड़ कर "नमस्ते" किया, और भाभी की चूत ने भी अपनी सिकास्ती को और भी सिंकुर्ते हुए जवाब में "नमस्ते" किए. मेरे लोड्े ने अब धीरे रफ़्तार से ही, पर लंबे, और कुच्छ जोरदार धक्के लगाने शुरू किए. मैं ने अपने गांद को थोड़ा सिंकुर लिया, और जब लौदा बिल्कुल अंदर जाता तो
भाभी और मेरे पेट बिल्कुल मिले होते, पर बराबर एक रफ़्तार से अब मैं भाभी की चूत में लौदा पेलते जा रहा था.
भाभी के चेहरे पर खुशी की चमक थी. अपनी आँखों से मुझे उकसाती हुई, हू बोली, " चोदो …मुझे…… ज़ोर्से … चोदो… इसी तरह… हाआंणन्न्!"
भाभी मेरे एक-एक धक्के का जवाब अपने चूतड़ को घुमा घूमकर मेरे लॉड के जड़ तक चूत के मुँह को उठाकर देती रही. मैं ने उनके चेहरे को देखा, उनके चूत का कुच्छ सिकुरना महसूस किया. मैने अपनने पेट और गॅंड को ज़ोर्से कसने की
कोशिश की, और अब धक्के देते हुए कुच्छ आगे की तरफ घिसकता रहा. आइ से हर धक्के में उनके चूत के दाने को मेरा लौदा रगड़ देता था, घुसेड़ते हुए भी और निकलते हुए भी, और नीतू भाभी के चेहरे पर मुस्कुराहट खिलने लगी.
मैं ने शरती अंदाज़ में पूचछा, "क्यूँ?…. झड़नेवाली हैं?"
भाभी ने उसी मुस्कुराहट के साथ जल्दी जल्दी सर हिलाया, उनकी आँखें मेरे चेहरे पर टिकी रही, उनकी साँसें वैसी ही चढ़ि रही. अब उनकी आँखें बिल्कुल खुल गयी. और जाइए वो किसी नशे में हों, एन्होने अपने होंठ खोले और कुच्छ कहने की
कोशिश की, पर कुच्छ भी बोल नही सकी. एक गहरी साँस लेते हुए वो अपनी चूत के गहराई में मेरे लौदे को जकड़ी हुई थी. उनकी आँखों में सिर्फ़ चाहत, और वे मेरे आँखों पर टिकी रही. अपने नाख़ून से वे मेरे कंधे को थोड़ी खरॉच रही थी, और उनके बाँहों से मेरे कमर की जाकड़ भी कुच्छ जोरदार हो रही थी. उनको मैं चोद्ते रहा, पर मैं ने अपने बायें हाथ के बल कुच्छ उठकर अपने दाहिने हाथ को नीतू भाभी के कमर के नीचे ले जाकर, उनकी पतली कमर और पीठ के बीच उनको ज़ोर्से पकड़ लिया. मेरी बाँहों और जाँघ और लौदे में उस पार्टी के वक़्त से ही इतनी गर्मी थी नीतू भाभी को बिकुल ही नही छ्चोड़ने का दिल कर रहा था, उनके चूत और चुचियाँ और जांघों को बिल्कुल करीब रखा. उनके झांग में थिरकन हो रही थी, और मैं ने पूचछा, " झड़ेंगी अब?…….. झड़ेंगी?!" उनकी मुँह खुली हुई थी, आँखों में चमक, और वो कुच्छ जवाब तो नही दे पाई, पर उनका कमर, उनके हाथ अकड़ गये! वो अपने दाने को मेरे लौदा मे ज़ोर ज़ोर्से रगड़ती रही. और अब सिसकारी लेती रही, "आआहह …….. हाआआन्न्ननणणन्.. ……..मैं झाड़ रही
हूऊंणन्न् ……हाआंन्न…….. उउउइईईईईईई… दैया….रे…..ददाययय्या……..आआआहह … हहााईयइ ….. दैया ….. !!!" मुझे मज़ा तो बहुत आ रहा था, पर मैं अपने आप को बिल्कुल काबू में रखने की कोशिश करता रहा. उनकी आकड़ी हुआ गर्दन और कड़ी हुई कमर देखकर मैं बहुत खुश था, भाभी वाक़ई में बहुत मस्त में थी, और उनको कहता रहा, " और झाड़ीए ………. इसी तरह से ……..मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है……हाआंन्णणन्!" उनकी चूत का जाकड़ और बढ़ गया था, और मुँह से कोई सॉफ बात नही, सिर्फ़ "ऊऊओउउउइईईईईई …….. आआआहह ………. डैय्य्याआआआआआ …….डायय्या रे दैययय्याअ ………..ऊऊओउुउउइईईई….. !!!!!" अब मैं ने अपनी चुदाई की रफ़्तार कुच्छ कम कर दी, ताकि भाभी का मज़ा कुच्छ देरी तक रहे, पर पेलता रहा बिल्कुल अंदर तक. कुच्छ देर में भाभी का पूरा बदन अकड़ कर काँपने लगा, जैसे उनको अपने बदन पर कोई काबू नही हो. उनकी आँखें तो खुली थी, पर उन में खुशी ऐसी कि वो कुच्छ और नही देख सकती थी. जब उनके गर्दन की अकड़न कुच्छ कम हुआ, तो वो अपने सर को आगे करके मुझे अपने बाँहों में ज़ोर्से भींच ली, और मेरे कंधे पर अपने मुँह को खोल कर धीरे धीरे दाँत काटने लगी, चूमती रही, उनका एक हाथ मेरे गाल को सहलाता रहा. भाभी ने बहुत कोशिश करके मुझसे कहा, " आओ तुम भी …… तुम भी मेरे अंदर झड़ो ….. हाअन्न्न्न!"
अपने दोनो हाथों पर उठकर मैं ने भाभी के बदन को खिड़की से आती हुई रोशनी में ठीक से देखा. मेरा लौदा चूत के मुँह के थोड़ा अंदर था. भाभी की मस्त चुचियाँ, उनकी पतली कमर, और उनके नाभि के नीचे उनके झाँत और फूले हुए
चूत की पंखुरियों को देखकर मेरी मस्ती और बढ़ गयी, और अपना रफ़्तार बढ़ते हुए, अब मैं ज़ोर्से लौदा पेलने लगा. एक झटके में चूत के बिल्कुल अंदर तक जाता था, और फिर हाथ के बल कमर को बिल्कुल उठाकर, सूपदे को चूत के मुँह पर ले आता था. बिल्कुल अंदर, बच्चेदनि के मुँह तक, फिर बाहर, चूत के मुँह पर. ज़ोर्से पेलता रहा, चूत तो गीली थी ही, मेरा लौदा पिस्टन की तरह अंदर, बाहर……फिर अंदर, …… फिर बाहर….भाभी चीखने लगी, "आआआआहह ……. हााआअन्न्ननणणन् …. और ज़ोर्से च*डूऊऊ…. हाआंणन्न् ….. इसी तरह ………. चोदते रहो ……..हाआऐययईई दैययय्याआआ ……. बहुत ग़ज़ब के चोदते हो ………….ह्हयाययीयियीयियी ………..चोदो और ज़ोर्साआयययी …..हयाययीयियैयियीयियी रे दैययय्याआअ!"
मुझे लगने लगा कि अब कुच्छ देर में मैं भी झड़ने लगूंगा. मेरे लौदे को लगा कि जैसे भाभी फिर चूत को ज़ोर्से सिकुरकर जाकड़ रही हैं. मैं ने मस्ती में रफ़्तार वही रखी, पर सर को नीचे को तरफ घूमकर देखा. मेरा ख्याल सच निकला.
भाभी अपने पेट को ज़ोर्से सिकुर रही थी, और उनकी चूत मेरे लौदे को जाकड़ रही थी. भाभी के अपने चूत पर किस तरह का कंट्रोल था, क्या बताउ! लगा जैसे लौदे को वो मुट्ठी में लेकर निचोड़ने लगी! मैं अपना पेलने की रफ़्तार रखने की कोशिश तो कर रहा था, पर मज़े को सहना मुश्किल हो गया. भाभी की कमर आहिस्ते आहिस्ते घूमती जा रही थी, चूतड़ चक्कर लगा रही थी, और उनकी चूत अपनी सिकास्ती से मेरे लौदा को दबाते जा रही थी. मेरा लौदा अब मेरे काबू में नही रहा! मैं ने एक लंबी आहह भरी, "अहह….. ………….. …… हाआंन्नणणन् ……. भाभी!" और उधर मेरा लौदा झड़ने लगा, फुहारे की तरह, शुरू में रुक रुक कर, फिर ज़ोर्से… भाभी बोली, "म्म्म्मममम…. …..हाआंणन्न्!" मैं उनके चुचि पर मुँह रखे हुए खलाश होता रहा. भाभी अपनी बाँहों में मुझे ज़ोर्से दबा ली, और उसी तरह मेरे लौदे को निचोड़ती रही, मेरे गरम साँस उनके गर्दन पर लग रहे थे. भाभी कुच्छ देर तक मेरे लौदे को उसी तरह चूत से दबाती रही, और उसकी गरमी को काम करती रही. फिर उन्होनेलौदे को चूत में रहते ही एक आखरी झटका दिया अपने कमर से, और मेरे लौदे का चूत के अंदर थिरकना अब रुक गया.. भाभी ने अपनी टाँगों को मेरे उपर डालकर मेरे कमर को अपने जांघों से जाकड़ ली, और मुझे में गिरफ़्त में रख ली!
हम दोनो ने गहरी साँस ली. मेरे कान के पास मुँह लाकर उन्होने धीरे से पूचछा, "हाआंन्णणन्?" मैं ने भी कहा, "हाआंणन्न्!" भाभी मुस्कुराती हुई बोली, " बहुत ज़बरदस्त चुदाई कि….तुम ने …….!"
मेरे मुँह से कुच्छ भी नही निकला. मेरी सारी गर्मी को नीतू भाभी ने फिलहाल तो निचोड़ लिया था. "अहह!"
कुच्छ देर तक उसी तरह लेट रहने के बाद, नीतू भाभी मेरे नीचे से हटने की कोशिश करने लगी. मैं उनके उपर से हटकर किनारे हो गया. भाभी बाथरूम जाने के लिए उठी, पर बीच मे रुक कर मुझसे कहते गयी, "ओईइ…… तुम तो इसको बिल्कुल भर दिए हो…. मेरी चूत बहती जा रही है…. " और वो जल्दी से बाथरूम को भागी. शायद हुंदोनो का मिला हुआ रस वाक़ई बहते हुए फर्श पर गिरने लगा हो. बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था, और मैं लेते हुए ही उनके पेशाब करने की आवाज़ सुनता रहा. वो देर तक ज़ोर की रफ़्तार से पेशाब करती रही, फिर ज़ोर्से "ऊऊओह" कह कर कमरे में आई. मेरे बगल में बिल्कुल सटकार भाभी अपना हाथ मेरे लौदे पर फिर रख दिया. अपनी चुचियों को मेरे पीठ में धीरे से रगड़ते हुए, भाभी मुझसे बोली, "बहुत मज़ा आया अभी, …….. बिल्कुल अंदर तक हिला दिया तुमने!" और धीरे धीरे
मेरे लौदे को मूठ मारने लगी. मेरा लौदा फिर से थोरा खड़ा होने लगा. भाभी और मैं दोनो करवट से लेते हुए थे. भाभी अपनी जाँघ को मेरे जांघों के उपर डाल दी थी और मेरे लौदे को कभी दबाती, कभी सरकती.
"क्यूँ, पार्टी अच्छी थी ना? ….. तुम बोर तो नही हुए?"
मैं ने कहा, "नही ……. मुझे तो बहुत मज़ा आया! बहुत आछे लोग थे."
"ह्म्म्म …… बहुत गरम होकर लौटे तुम! ….. क्यूँ? …….. मैं भी गरम हो गयी थी …….!"
"जी …. " और मैं ने करवट बदल कर नीतू भाभी के होंठों को अपने मुँह में लेकर उनको चूसने लगा. लौदे पर भाभी के हाथ का जादू मुझे फिर से खूब गरम बना रहा था. आँखों के सामने उस शाम की पार्टी के लोगों की झलक आ जा
रही थी. भाबी और उनके सहेलियों का मज़ाक़, उनके इशारों-इशारों में बातचीत और उनका खिलखिलाना. मैं उन के चुचियों के शेप, उनके चूतड़ के शेप और साइज़ के बारे में ही सोच रहा था, पर भाभी उस पार्टी के माहौल में किसी से भी कम नही लग रही थी. मैं ने भाभी के होंठों को चूस्ते हुए अब उनके दाँतों को अपने ज़ुबान से चाटने लगा, और उसको उनके मुँह में घुसने लगा. भाभी अपनी ज़ुबान मेरे मुँह में डाल रही थी, और मेरे मुँह में चारो तरफ अपनी ज़ुबान फेर रही थी. मैं उनके ज़ुबान को अपनी ज़ुबान में लपेटकर चूस्ता, और फिर वो मेरी ज़ुबान को उसी तरह लपेटकर कभी अपनी तरफ खींचती, तो कभी मेरे मुँह में घुसेड़ती. अपने हाथ से मेरे लौदा को वो उसी तरह तैयार करती रही. सूपड़ा के नीचे, फिर चारो तरफ वो कभी अपने उंगलियों से, कभी अपने नाख़ून से दबाती, मसालती, करोंछती जा रही थी. और हमारे मुँह एक दूसरे के ज़ुबान के खेल में बिल्कुल लीं थे. भाभी नेअपनी ज़ुबान से ढेर सारा थूक मेरे मुँह में डाल दी, और फिर मेरे मून के चारो तरफ, अपनी ज़ुबान घुमा घुमा कर वो मेरे मुँह को चाटने लगी, मेरे ज़ुबान से खेलने लगी, कभी उसको अपनी तरफ खींचती, कभी उसको लपेटकर चारो तफ़ घूमती, और इसी तरह मेरे मुँह का सारा थूक चाट गयी. मैं ने उनके मुँह मे उसी तरह थूक डालकर, उनकी ज़ुबान को चाटने लगा, चूसने लगा, कभी ज़ोर्से, कभी धीरे.
हम दोनो को कोई जल्दिबाज़ी नही थी. एक बार अच्छी तरह से झड़ने के बाद हुंदोनो आराम से मज़ा लेने के मूड में थे. सारी रात जो अपनी थी!
मेरे हाथ अब भाभी के चुचियों पर गये, और उनकी निपल जो कड़क हो गयी थी अब मेरे अंगूठे और उंगलियों के बीच मसलवाने के लिए बेकरार हो रही थी. उसी तरह एक दूसरे के ज़ुबान से चुदाई के धक्के के अंदाज़ में हुंदोनो एक दूसरे के चूस्ते रहे, पर अब मैं उनके चुचि को भी मसलता रहा. मेरे लौदे पर भाभी की पकड़ ओर ज़ोर की हो रही थी, और हमारा चूमना-चूसना जारी रहा. बीच बीच में भाभी सिसकारी लेती, और मुझे भी बढ़ती मस्ती के कारण गहरी साँस लेनी पड़ रही थी. भाभी ने फिर मेरे लौदे को जड़ से सूपदे तक दबाकर देखा, जैसे वो उसकी सख्ती को माप रही हो. मैं अब उनके मुँह से अपनी ज़ुबान निकालकर, उनके होंठों को एक बार ज़ोर्से चुस्कर, उनकी चुचि को मुँह में लेकर चूसने लगा. उनके कड़े हुए घुंडी पर ज़ुबान फेरने लगा, और उसको एक अंगूर की तरह चूसने लगा. भाभी मस्ती में "अहह ……….. हाअन्न्न्न्न्न्न्न' की आहें भरने लगी, पर मेरे लौदे को अपनी मुट्ठी में जकड़े ही रखा.
मैं ने एक हाथ को नीचे की तरफ ले जाकर भाभी के चूत को छ्छू कर देखना चाहा कि उस की क्या हालत है. अभी तक मैं ने उनके चूत पर थोरा भी ख्याल नही दिया था. पर चूत तो बिल्कुल रसिया गयी थी! भाभी हर वक़्त पेशाब करने के बाद चूत को
धोकर तौलिए से पोछ लेती है, पर लगा कि सिर्फ़ चूमने-चाटने और चुचि के मसलवाने से ही चूत बिल्कुल गीली हो गयी. पिछली चुदाई के कारण चूत की पंखुरियाँ तो फूली हुई थी ही. मैं अब अपने हाथों के बल थोरा उठा और भाभी के उपर आने की तैयारी करने लगा, पर भाभी ने कहा, " ह्म्म्म ……. एक मिनिट रूको ……ह्म्म्म्म …. इस तरह आओ."
भाभी ने अपना सर ड्रेसिंग टेबल के आईने की तरफ घूमकर घोरी बनकर अपने चूतड़ को मेरे सामने कर दिए. उनके चूतड़ की गोलाई देखकर मेरी मस्ती और बढ़ गयी. भाभी के कमर और चूतड़ बहुत ही खूबसूरत थे. वैसे भी छरहरा बदन, पर जब वे बैठती थी, तो उनके चूतड़ का आकर पीछे से देखने वाले को बिल्कुल एक सितार के जैसे लगता होगा. बहुत बड़े चूतड़ नही, सिर्फ़ 34 या 35 इंच के (उन्होने एक दिन मुझे बताया था), पर बेहद चुस्त, और जब वो इस तरह अपने पंजों और घुटनों के बल उकड़ू हुईं तो उनकी चूत बीच में मुस्कुराती हुई बिल्कुल मेरे सामने थी. मैं ने चूतड़ को सहलाया और चूमा. उनकी गांद पर उंगली फेरता रहा. भाभी बोल उठी, "अहह ……. हाआंन्ननननणणन्!", और तभी मैं ने अपने हाथों को नीचे से ले जाकर उनकी चुचियों को दोनो हाथ में लेकर मसल्ने लगा,
और साथ साथ उनकी गांद को चूमने और चाटने लगा. गांद और चूत के बीच के जगह को चाट रहा था. और अपनी ज़ुबान को नोकिला बनाकर कभी गांद के छेद पर फेरता तो कभी चूत के थोरा अंदर घुसेड देता. भाभी की सिसकारियाँ अब और बढ़ने
लगी. "आअहह …….. म्म्म्मममम …… हेन्न्नन्न्न्न …… इसी तरहह ….. हाअन्न्न्न्न्न्न!" चूत तो रसिया गयी थी, और पिच्छली चुदाई के कारण अभी भी कुच्छ कुच्छ फूली हुई थी, और इस लिए मेरे ज़ुबान को अंदर ले लेती थी, पर भाभी के गांद के छेद पर मैं सिर्फ़ थूक मालता रहा. बीच बीच में उनकी गांद कुच्छ और भी सिकुर जाती. भाभी के मुँह से आवाज़ आती रही, "ऊवू ….. हाआंन्णणन् ……" मैं ने एक हाथ को नीचे से चुचि से हटाकर चूतड़ पर लाया, उसको मुँह में लेकर थूक
से गीला करके, भाभी के गांद पर फेरने लगा, और कुच्छ अंदर घेसेदने लगा. भाभी सिसकारी लेती रही, " ऊओह …….. हान्णन्न् …… उंगली डाल दो ……….." मैं ने उंगली को करीबन 1 इंच अंदर डालकर उंसको अंदर बाहर करने लगा. भाभी अब अपनी चूतड़ को घुमाने लगी और मेरे उंगली को अंदर लेती रही. मैं भाभी के चूतड़ चूमता रहा, चाटता रहा. "ऊऊऊः. …... हाआंन्णणन् ……. इसी तरह ……… ज़्यादा अंदर नही …….. " भाभी के चूतड़ घूमने से मुझे फिर लगा कि अब वो तैयार हो रही हैं, और उन्होने कहा भी, " अब आ जाओ …….. आ जाओ ….. अपने जगह पे ………" पर मैं उनको कुच्छ और मस्ती में लाना चाहता था. इस लिए मैं ने उनकी गांद में उंगली करते हुए ही उनको जांघों को थोरा फैलाकर, अब उनकी चूत में अच्छी तरह से ज़ुबान को घुसेदने लगा. भाभी की सिसकारी ज़ोर्से चलने लगी, "आआहह …….. हाआंणन्न् ……… बहुत गीली हो रही हूँ ………… अब आ जाओ …….. और नही ले सकती ………अब आ भी जाओ ……हाआंन्णणन्!", पर मैं तो उसी तरह एक छेद में उंगली और
दूसरे छेद में ज़ुबान से उनको चोद्ता रहा. मेरा लौदा तो सख़्त और मस्त था ही, पर मुझे भाभी को तड़पने में बहुत मज़ा आ रहा था. मैं ने ज़ुबान को और भी अंदर डालकर उनके चूत को जमकर चाट रहा था, उनके दाने को भी बार बार चाट लेता था, और सब कुच्छ इस तरह की कोई जल्दबाज़ी नही है. भाभी फिर कराह उठी, "ऊऊहह ………उउउम्म्म्मम …….अब पेलो अपना मूसल जैसा लौदा …….. बहुत गीली हो गयी हूँ ……….आआहह!" पर मुझे तो भाभी को चिढ़ाना था, उनको मस्ती से तड़पाना था. मैं उसी तरह उनकी चूत को चूस्ता रहा, और कुच्छ देर के बाद भाभी बोलने लगी, "ऊऊहह …….. अब अंदर नही आओगे…….. तो मैं ऐसे ही झड़ने… …. लगूंगी ……. हााईयईईई!" यह सुनकर मैं ने चूत चाटने का रफ़्तार कुच्छ कर कुच्छ कम कर दिया और भाभी के चुचियों को फिर से मसालने लगा. चूतड़ को चाटना जारी रखा. भाभी का सर अब बिस्तर था, पे उनका चूतड़ अब घूमता ही नही, मेरे मुँह को धकेल रहा था, पर मैं उनकी चुचि के घुंडीयों को ज़ोर्से मसलता रहा, और उनको तड़प्ते देख कर मज़ा ले रहा था. मैं भाभी को जल्दी नही झड़ने देना चाहता था, पर साथ ही अभी उनको मस्ती के उस हद तक ले जाना चाहता था कि वो झड़नेवाली मस्ती के करीब तो हों, पर झदें नही.
कुच्छ देर के बाद नीतू भाभी अपने आप को काबू में नही रख सकी. मेरे चाटने से उनकी चूत में बहुत खलबली मच गयी, और वो ज़ोर्से सिसकारी लेते हुए अपनी चूतड़ को मेरे मुँह पर ज़ोर्से रगड़ते हुए निढाल सी होती गयी. " ऊऊहह
……दैययय्याआ रे दैयययययाआआअ …….आअहह ………हाऐईयईईईईईईईईईईईई रे ………. दैयय्य्ाआआअ ……… मैं तो गयी …………उउफफफफफफफफफफफफफ्फ़ ………….हूऊऊऊऊ…… आअहह …………हाआाआअन्न्ननननननणणन्!" भाभी ने अपने चूतड़ को बिस्तर गिरा दिया, और सिसकारी लेती ही रही. मैं उसी तरह बिस्तर पर घुटनों के बल बैठे हुए भाभी को देखता रहा. फिर हाँफती रही. मई उनके चूतड़ पर हाथ फेरता रहा, कमर सहलाता रहा. मेरा लौदा सख्ती से बिल्कुल खड़ा था, इस तरह से खड़ा की उसपर
एक बड़े साइज़ के तौलिए को भी आराम से टंगा सकता था.
भाभी कुच्छ सुसताने के बाद मेरी तरफ देखी. और मुस्कुराइ. बोली, "बहुत गीली हो गयी हूँ ……. उफफफफ्फ़ ……… कितने दिनों के बाद इतनी गीली हुई हूँ……..!" मेरे लौदे के तरफ देखकर उनकी आँखें चमकने लगी, "इसको देखो ……… कितना ज़ालिम लौदा है
तुम्हारा! …… हाऐईयइ ……… अभी चखती हूँ इसको मज़ा …………कैसा अकड़ कर खरा है ……… अभी इस बच्चू को बताती हूँ…….." और मेरी तरफ आँखों में आँख डालकर बोली, " अभी तुमको बताती हूँ…….. मैं इतनी जल्दी हारनेवाली नही! ……...
हान्न्न्न्न. ……."
अब भाभी फिर अपने चूतड़ को फिर उठाकर घोरी की तरह अपने मुँह के बैठ गयी, और मुझे इशारा किया कि मैं पीछे से चोदना शुरू करूँ. हम ड्रेसिंग टेबल के बिल्कुल सामने बिस्तर पर थे, और हुंदोनो अपनी चुदाई को आयने में सॉफ सॉफ देख रहे थे. भाभी की नज़र भी मेरी तरह आयने पर थी. मैं ने लौदा को चूत के मुँह पर अच्छी तरह से रगड़ते हुए, चोदना शुरू किया. भाभी की सुरंग वाली चूत में बिल्कुल अंदर ले जाकर, मैं ने अपने गांद को सिकुरकर लौदे को थोरा घुमाने लगा. भाभी की मस्ती इस से खूब बढ़ने लगी, और मेरे लौदे के अंदर घुमाने का जवाब उन्होने अपने चूतड़ को उल्टी तरफ से घूमकर दिया. हम इसी तरह कुच्छ धक्के देते रहे, पर आयने के सामने होने कारण, हुंदोनो की नज़र आयने पर बनी रही. चुदाई हो रही थी, पर हमारा ख्याल आयने पर था. कुच्छ देर तक तो हुमलोगो ने इस तरह चुदाई की, पर वैसा मज़ा नही आ रहा था. भाभी अपने चूतड़ को घुमाना छ्चोड़कर, अपने हाथ को पीछे लाकर मेरे लौदा को पकड़कर रोक लिया, और मुझ से कहा, "ऐसे नही मज़ा आ रहा ……..इधर आओ …….. तुम लेतो!"
मैं सर के नीचे दोनो हाथ लेकर लेट गया, और भाभी अपने टाँगों को फैलाकर मेरे सूपदे के नीचे ठीक से पकड़कर अपनी चूत के दाने को सूपदे से रगड़ती रही. फिर अपने कमर को सीधा करके, अपने चुचियों को थोरा उचकते हुए भाभी मेरे लौदे को अपनी चूत में आहिस्ते आहिस्ते, पर बिना रुके हुए, बिल्कुल गहराई में ले लिया. वो अपनी चूतड़ को थोरा इधर-उधर घुमाई , और फिर अपने सर को नीचे कर के देखी की लौदा बिल्कुल जड़ तक गया है, और अपनी चूतड़ अब चलाने लगी. मैं उनकी कमर पकड़ कर उनके थाप को थोरा सपोर्ट दे रहा था, पर भाभी का खुद का कंट्रोल ज़बरदस्त था. "फच ….फच्छ…" की आवाज़ के साथ उनका थाप चलने लगा. चूत इतनी गीली हो गयी थी हर धक्के के साथ मेरे लौदे के जड़ पर कुच्छ रस लग जाती थी. भाभी एक माहिर चक्की चलाने वाली औरत की तरह मेरे लौदे पर बैठकर अपने चूतड़ की चक्की चलाकर मसाला पीस रही थी. ऐसी पीसने वाली जो बिल्कुल महीन मसाला पीस कर ही खुश हो सकती है! मैं नीचे से उनके थाप का जवाब दे रहा था, हर थाप के बाद अपने कमर को उठाकर, थोरा अपना गांद को सिकुरकर, लौदा को पेलते हुए कुच्छ घुमाता था, और फिर भाभी की जानलेवा चक्की! इस तरह कुच्छ देर तक हुंदोनो एक दूसरे के साथ झूला झूलने के हिलोर देते रहे. पर भाभी फिर ज़ोर्से धक्के देने लगी, और चक्की भी उसी रफ़्तार में. उनकी आवाज़ भी बदल रही थी. मैं ने जब देखा कि भाभी एक बार फिर झड़नेवाली हैं, मैं ने अपने लौदा को इस तरह घुसेड़ना शुरू किया कि वो भाभी के दाने को भी रगड़ता अंदर जाए, और उसी तरह रगड़ते हुए बाहर भी आए. भाभी "हाआअंन्न ….
मैं तो फिर झाड़ रही हूवान्न्न्न.. ……!" कहते हुए मेरे छाती पर सर रखकर निढाल हो कर लेट गयी. उनकी चूत मेरे लौदे को दबा रही थी, और मैं अपने लौदे को उनका मज़ा बढ़ने के लिए चूत के अंदर घुमाता रहा. "हाआंन्न ……. ऊऊहह …. हाआऐ रे दैय्य्याआ …….ऊऊहह! ……. हाआंन्नणणन् ……. ऊवूवुउवूवैयीयियी ….. मेरिइईई चूऊऊओट कित्नीईईइ गिलिइीईईई हो रही है.. …..ऊऊओह ……. ह्हयाययीयीयियी रे ….. दैयया ……..ऊऊओह!"
एक गहरी साँस लेकर नीतू भाभी उसी तरह मेरी छाती को पकड़े लेटी रही. पसीना चल रहा था. बाल बिल्कुल खुल गये थे. माथे पर का टीका लिप गया था. साँस फूली हुई थी. पर कुच्छ देर के जी बाद, भाभी एक बाँह के सहारे अपना सर उठाकर
मेरी तरफ देखी, और झूठा गुस्सा दिखाते हुए पूछि," क्यूँ, तुम अपने को बहुत उस्ताद समझने लगे हो? …… मुझे उस तरह से तडपा रहे थे ……कब से मैं झड़ना चाहती थी ….. और तुम …… बार बार …... मुझे रोक रहे थे ……..उफफफफफफफफफफफ्फ़!"
"आपको अच्छा नही लगा क्या?"
"व्हूऊऊ! …….पागल ……..बहुत मज़ा आया ………बहुत मज़ा करते हो तुम!" वो अपने सर को उठाकर मेरी तरफ देखते हुए बोली. फिर पूछि, " तुम तो नही झाडे हो अभी ना?"
मैं ने सर हिलाकर बताया कि नही.
"मस्ती से झादोगे?"
"हाँ!"
"अच्छा! ……ह्म्म्म्मम …….फिर आओ….. अब झड़ना चाहते हो?
मैं उसी तरह लेटा रहा, पर मैं समझ गया कि अब भाभी कुच्छ शोख अंदाज़ में कुच्छ शुरू करनेवाली हैं. वो अपने दोनो हाथ बिस्तर पर जमाए अपनी चूत को मेरे लौदे पर रखकर धीरे धीरे चूतड़ घुमा रही थी.
"बोलो ….."
"जी……."
वो अपनी शोख और शरारतवाली मुस्कुराहट के साथ पूछि, " क्यूँ ……….झड़ना चाहते हो? ……..हुन्ह ……….बोलो! मुझे तो झड़ने नही दे रहे थे …….और तुम खुद झड़ना चाहते हो! …….. हन्न्नममम ……….बोलो"
" आआहह ……. भाभी…..शायद मैं ……आहह …….समझ नही सका ……. ……..मुझे लगा कि आप को और मज़ा क़राउ!" "हान्णन्न्? ……..तो? …….. भाभी को झड़ने से रोक रहे थे……? …. बोलो!"
" …… इसी लिए …..आअहह ……आपको थोरा रोक रहा था …….आअहह!"
भाभी उपर से तो बहुत कम घूम रही थी, और अभी जोरदार थाप न्ही नही लगा रही, पर अंदर ही अंदर उनकी चूत मेरे लौदा की तरह से दबा रही थी, जैसे चूत के अंदर मेरे लौदा को दूहा जा रहा हो.
`अच्छा ? ……… "थोरा" रोक रहे थे? …… "थोरा" कितना होता है ? . ……अभी बताती हूँ …….तुमको …….!"
भाभी धीरे धीरे चक्की पीसने लगी फिर, पर अभी भी चूत के अंदर लौदे को उसी तरह दबाती रही. मुस्कुराते हुए.
"थोरा…… क्यूँ? "थोरा" कहीं ज़्यादा तो नही हो गया?"
"हो सकता है!"
"अच्छा? …….हो सकता है?" यह कटे हुए भाभी ने अपनी चूत को कुच्छ इस तरह घुमाया कि मेरे पूरा सूपदे, जिसकी सख्ती का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं, चूत के जकड़न में बिल्कुल दब गया. कभी सूपड़ा जकड़न में दबाता था, कभी लौदे के जड़ का हिस्सा, कभी बीच का हिस्सा. बहुत कम ही हिलाते हुए, भाभी अपने चूत की कमाल दिखा रही थी. और मैं मस्ती के नशे में पागल हो रहा था!
मेरे मुँह से आवाज़ निकालने लगी, "ऊऊहह!"
"क्यूँ ……..सही जगह जकड़ा?"
"हान्न्न ………….भाभी!"
"ओह्ह्ह ……तब तो ठीक है ………जगह मिल गया मुझे!" वो फिर उसी तरह से चूत को सिंकुरने लगी, और मेरा लौदा मस्ती में फिर अकड़ने लगा अंदर, और मुझे फिर अपने गांद को सिंकुर कर काबू में रखना परा अपने आप को. " क्यूँ? …….लगता है कि अब झड़नेवाले हो? …….ह्म्म्म्म?"
`जी…"
`अच्छाा??? ……"
वो फिर अपने केहुनि के सहारे उठकरसर नीचे की तरफ देखा. उनके रस में गीला मेरा लौदा का करीब तीन-चौथाई दिख रहा था, भाभी अपने चूतड़ को उपर उठाई थी. वो अपने चूतड़ को कुच्छ और उठाई, जिस से कि आन सिर्फ़ मेरा सूपड़ा उनके
चूत के अंदर था. उनके चूत का मुँह मेरे सूपदे पर उंगती की तरह बैठा था. भाभी अपनी चूतड़ को उसी जगह, उसी तरह रखी रही, सिर्फ़ मेरे सूपदे को जकड़े हुए. "अभी नहियैयी ….."!
"अच्छाअ? ……..अब बोलो ……"थोरा" रुकोगे?" उसी तरह सिर्फ़ मेरे सूपदे को अब भाभी मद्धम मद्धम रफ़्तार में दबाने लगी. मेरे लौदे में ऐसा महसूस हो रहा था कि भाभी की चूत उसको चूम रही है, चारो तरफ चूस रही है. मैं अब आपने आप को काबू में नही रख सकता था. मैं "आआहह …… भाभिईीईईईईईईईईईईई ……….ऊऊहह'" की सिसकारी लगाने लगा.
भाभी मेरी हालत देख रही थी, पर मेरी मस्ती से वो और भी जोशीला होती जा रही थी. "अभी नहियिइ ……" वो गाने के अंदाज़ में बोलती रही, "अभी नहियीई…." और अपना मुँह मेरे करीब ले आई. फिर वो मेरे लौदे को अंदर लेने लगी, आहिस्ते आहिस्ते. एक
बार में एक इंच से ज़्यादा नही ले रही थी, और हर बार लौदे को एक जकड़न से दबा देती थी. भाभी के कमर का कंट्रोल बहुत ही ज़बरदस्त था, और पूरे लौदे को अंदर लेने के बाद वो एक गहरी साँस ली, और मेरे लौदे के जड़ पर अपने चूत के मुँह को बैठा कर रुकी. हमारे झाँत मिले हुए थे. अब शुरू हुई नीतू भाभी की चक्की फिर से. चूतड़ को घुमाती थी, फिर मेरे चेहरे को देखती कि मेरी क्या हालत हो रही है, और मेरे आँखों में आँखें डाले चूत को अंदर ही अंदर सिकोड कर मेरे लौदे को जाकड़ लेती थी.
मेरा लौदा इन हरकतों से चूत के अंदर ही उचक रहा था, बार बार. मेरा कमर हर बार उपर उठ जाता था.
"अभी झड़ना नही… …." वो फुसफुसकर मुझसे बोली, और फिर थाप देने लगी, मेरे आँखों में मुस्कुराहट के साथ देखते हुए. आहिस्ते से. करीबन दो सेकेंड लगती थी उठने में, और फिर दो सेकेंड बैठने में. "अभी नही झड़ना ….. बहुत मज़ा आ रहा है …….. अभी मज़ा करो! ……. ठीक?"
इसी तरह से करीबन 10 मिनिट तक भाभी मुझको मस्ती करती रही. उनका रफ़्तार बिल्कुल एक जैसा रहा, आंड हर थाप एक जगह से उठाकर बिल्कुल उसी जगह पर पहुँचकर रुकता था. हो सकता है, !0 मियनुट नही, 5 मिनिट ही रहा हो या हो सकता है कि 20 मिनिट तक चला हो. सच पूच्हिए तो मैं होश में था ही नही, मेरे लिए उस वक़्त समय का कोई मतलब नही था. "अभी नहियीईई ……..अभी नहियीईईई ……." भाभी गाते हुए मेरे चेहरे पर उंगली फेर्कर प्यार करती रही. बीच बीच में वो अपने चूतड़ को कुच्छ और नीचे दबा देती थी, और मेरा सूपड़ा उनके बच्चेड़नी के मुँह को छ्छू लेता था, और मैं हर बार मस्ती से सिहर जाता था. मेरे चेहरे को देखते हुए, हर सिहरन पर भाभी की मुस्कुरात और खिल जाती थी.
जब उन्होने देखा की मेरा पूरा बदन अकड़ गया है, वो मेरे चेहरे को चूमने लगी, मेरे आँखों पर, मेरे गर्दन पर, मेरे गाल पर.
"तैयार हो?", उन्होने शरारत से पूचछा.
" जी…." मेरी मस्ती ऐसी थी की मैं अपनी आवाज़ को भी नही पहचान सकता था. लगा जैसे कमरे के किसी और कोने से आवाज़ आई है. मेरे टांग बिल्कुल अकड़ गये थे.
"क्यूँ ….. रस का झोला भर गया है?"
"जी…"
वो उसी तरह थाप देती रही, और मेरे चेहरे को सहला रही थी. उनका चेहरा मेरे मुँह के बिल्कुल पास था.
"बहुत मज़ा आ रहा है………आअहह …….हाअन्न्न्न्न! ……है ना?"
मैं अब कुच्छ नही बोल सका. मेरा बदन इस तरह अकड़ गया था, मेरे लौदे में इस तरह की जलन थी, की मेरे लिए "आहह" कहना भी मुश्क़िल होता. मुझे लगा कि अगर अब मैं जल्दी नही झाड़ा तो पता नही क्या हो जाएगा, शायद मैं पागलों की तरह चिल्लाने ना लगूँ! मेरे मुँह से चीख ना निकलने लगे! पर भाभी इस तरह से चक्की चला रही थी कि मैं इसे भी छ्चोड़ना नही चाहता था. किसी तरह से अपने आपको काबू मे रखे रहा, और सोचता रहा कि भाभी भी क्या कमाल की औरत हैं! क्या
मस्ती लेना जानती हैं! क्या मस्ती करना जानती हैं!
यह सब सोचते हुए ही मुझे लगा कि अब मेरा लौदा काबू में नही रहा. मैं झड़ने लगा. एक फुहारा, फिर दूसरा, तीसरा. ज़ोर्से और पूरी गर्मी के साथ.
भाभी बोली, "हन्ंणणन्!"
मैं ने सोचा, " भाभिईीई ……. तुम भी ……ग़ज़ब की चीज़ हो!", और मैं झाड़ता रहा, झाड़ता रहा. भाभी ने फिर से मुझे उकसाया, "हान्णन्न् ……. हान्ंणणन्!"
मेरे मुँह से सिर्फ़ एक लंबी "आआआआहह" निकल सकी.
नीतू भाभी मुस्कुरा रही थी. मेरे कान के पास मुँह लाकर फुसफुसाई, " अब मज़ा लो …..हाआंन्णणन् ……..!" अब उनके कमर की रफ़्तार धीमी हुई, फिर रुक सी गयी. मेरे लौदे को उसी तरह चूत में रखे हुए, भाभी मेरा चेहरा सहला रही थी. मैं ने अपने आँखें खोले तो देखा की भाभी की चेहरे पर खुशी की चमक थी.
"अब तुमको मज़ा चखाई ना? ……..क्यूँ? कैसा लगा?"
"ऊऊहह," मेरे मुँह से निकली, और मैं ने अपने मूँछ और होंठ पर से पसीने को पोच्छा.
"बोलो ……. कैसा लगा?"
मैं ने चेहरे पर से बाल हटाए, और गहरे साँस लेता रहा. बोला, "मज़ा आया… खूब मज़ा!"
"कितना मज़ा? …… ठीक से बताओ!"
मैं ने उनकी आँखों में देखते हुए कहा, "क्या बताउ ……. आप तो मज़े से पागल कर रही थी मुझे. ……… मैं तो होश में नही था!"
"ह्म्म्म्ममम …..इस में कुच्छ बचा भी है?", पूछ्ते हुए भाभी एक दो बार फिर मेरे लौदे को चूत के अंदर दबाने लगी. "और झदोगे?"
"उफफफफफफफ्फ़ ……." मैं ने कहा, "कुच्छ नही बचा है …….इसकी क्या बात करती हैं …… कहा ना, मेरी जान भी नही बची है …….ऊऊओह!"
"अर्रे ……इतनी मस्ती से झड़ने के बाद कुच्छ मज़ेदार बात करो ….कुच्छ गंदी बातें तो करो!"
"ह्म्म्म्मम…"
"कुच्छ तो बोलो," और भाभी ने अपनी चूत को फिर सिनकोड लिया, और लंड का जकड़न बढ़ा दिया.
मैं ने उनके तरफ देखा. वो भी मुझे शोखी के साथ देख रही थी. मैं ने अपने हाथ उठाकर उनके बाल को छुते हुए कहा, " चूस लीजिए ……… अपनी चूत से मेरे लौदे को चूस लीजिए……चलिए!"
"हाँ?"
"हमम्म्मममममम…. एक-एक बूँद निचोड़ लीजिए!"
"अच्छा?"
"हामम्म्ममममम!"
"ऊर्ग्ग्घ्ह्ह्ह…." मैने कहा, "लीजिए और!"
"ह्म्म्म्म …… और भी है?"
" अब नही है… एक एक बूँद तो आप निचोड़ ली!"
"सच में? ….. एक भी बूँद नही?"
भाभी अपनी होंठ भींच रही थी. उनकी आँखों मे मस्ती समाई नही जा रही थी, और वो मुझ से कही, " हाऐ ……….. बहुत मज़ा आया!" मैं अपना एक हाथ उठाकर भाभी के गाल को सहलाया, उनके होंठ पर उंगली फेरा.
भाभी ने अपना सर फिर नीचे करके हल्के से कान को काटने लगी, अपनी गीली चूत की पत्तियॉं और दाने को मेरे लौदा के उपर रगदकर मेरे कान में धीरे से बोली, " क्यूँ?…हो सकता है …कि थोरा सा अभी भी बचा हो ……कहीं किसी कोने में!… क्यूँ…. अपने मुँह से चूस कर निकाल लूँ? ………ह्म्म्म्मममम? ….बोलो!"
तो दोस्तो कैसी लगी ये देवर भाभी की दास्तान
देवर भाभी की दास्तान
दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर हूँ एक और नई कहानी के साथ
नीतू भाभी अपने ख्यालों में कुच्छ डूबी हुई मेरी तरफ चुपचाप देखती रही. और फिर आहिस्ते से बोली, "जानते हो, मुझे तुमको यह सब सीखाना अच्छा लगता है. पता नही यह बात ठीक है कि नही. पर मुझे बहुत अच्छा लगता है. तुमको भी अच्छा लग रहा है ना? तुम भी कुच्छ कुच्छ सोचते रहते हो?"
"जी……"
"ज़रूर सोचते होगे…..है ना?"
वो अपने अंगूठे और दो उंगलियों से मेरे लंड के सूपदे को कभी पकड़कर दबाती, कभी मसालती, कभी सूपदे के टोपी के अंदर अपने नाख़ून से चारो तरफ धीरे से खरोचती.
"यह बहुत ज़रूरी होता है कि आपस मे इन बातों के बारें मे खुलापन हो….." वो अपनी हाथ मे मेरे खड़े लंड को देख रही थी. उनकी आवाज़ कुच्छ धीमी हो रही थी, और ऐसा लग रहा था कि वो अपनी ख्यालों मे डूब गयी हैं. "मैं सोच रही थी कि तुमको ठीक तरह से मज़ा लेना सिखाउ…..ठीक तरह से…….कुच्छ सोचना नही….कोई और ख्याल नही हो दिमाग़ मे….मज़े करते वक़्त सिर्फ़ मज़े करना……."
वो उंगलियाँ से मेरे सूपदे को बहुत ही प्यार से दबा रही थी, और बीच बीच मे आहिस्ते से सूपदे के छेद में नाख़ून से छेड़ रही थी. नीतू भाभी ने और रातों की तरह आज रात भी कमरे में एक छ्होटे कटोरे में कुच्छ गरम सरसो का तेल रख लिया था. उनकी उंगलियाँ सरसो के तेल में डुबोई हुई थी.
"समझ रहे हो, कि मैं क्या कह रही हूँ?"
"जी."
"मज़े करते समय, और कोई ख्याल नही होना चाहिए…..कुच्छ सोचना नही चाहिए…..सिर्फ़ मज़ा लेना और मज़ा देना…बस….सिर्फ़ मज़े का ख्याल!…" वो मेरे मेरे लंड को एक नज़र से देख रही थी और सूपड़ा के चारो तरफ अपनी उंगली को घुमा रही थी. बाहर चाँदनी रात थी, और खिड़की से चाँदनी की रोशनी आ रही थी. नीतू भाभी के बाल खुल गये थे और उनकी आँचल कब का गिर चुका था. मेरे जैसे लड़के को उनके बाल, उनका सुंदर चेहरा, उनकी आधी खुली हुई ब्लाउस से निकलती हुई चुचियाँ और उनका इकहरा बदन ही पागल बनाने के लिए काफ़ी था, पर वो तो अपनी हाथ से मेरे लंड को इस तरह प्यार से तरह तरह से दबा रही थी, नाख़ून से खरॉच रही थी मैं नशे मे मस्त हो रहा था. चाँदनी की उस रोशनी मे मेरा सरोसो के तेल मे मालिस किया लंड चमक रहा था, और नीतू भाभी की गेंहूआ रंग की मुथि और उंगलियों मे से मेरा लौदा बीच बीच में झाँकता, और फिर छुप जाता.
"यह मेरी एक ख्वाहिश है……सच पूच्छो तो मज़ा तो सभी इंसान कर ही लेते हैं…पर ज़्यादातर लोगों को बस थोरी देर के लिए प्यास बुझती हैं….ना मर्द पूरी तरह से खुश होते हैं और ना औरतें….जानते हो ना….ज़्यादातर औरतें प्यासी ही रह जाती हैं…..और चिर्चिरि मिज़ाज़ की हो जाती हैं…..और वही हाल मर्दों का भी!" भाभी ने इस बार मेरे सूपदे से लेकर लौदे के बिल्कुल जड़ तक दबा दिया. वो मेरे गांद के उपर अपनी उंगली भी फेर रही थी अब. मैने पूचछा, "नीतू भाभी, और क्या ख्वाहिशें हैं?"
"अभी नही बताउन्गि!…..अभी बस इतना ही!"
वो मेरे लंड को बहुत ही नाज़ुक सा सहला रही थी अब. फिर धीरे से हंस दी. कुच्छ शरमाते हुए, फिर बोली. "ख्याल तो बहुत हैं, पर क्या करूँ, थोरी शरम भी तो आती है!" मैं भाभी की चुचियों को ब्लाउस के अंदर ही हाथ डालकर आहिस्ते से दबा रहा था. वो चुप हो गयी. फिर आँखें मूंदकर एक गहरी साँस लेकर बोली," तुम्हारे हाथों में तो जादू है…..आह…आहह …...तुमको इतनी कम उमर मे ही औरतों के बदन का पूरा पता है….तुम्हारे हाथ तो सारे बदन में सिहरन ला देते हैं….हाअन्न्न्न!"
अब मैने नीतू भाभी की सारी को उतारने लगा. ब्लाउस के हुक्स खुले हुए थे और ब्रा भी उतर चुका था. उनकी चुचि के घुंडी को मैं मसल रहा था, और भाभी ने अपने पेटिकोट के नाडे को खोल दिया. नीतू भाभी फिर खरी हो गयी पर मुझसे कहा कि मैं उसी तरह बिस्तर के किनारे लेटा रहूं. अपनी पेटिकोट निकालकर भाभी आई और मेरे टाँगों के दोनो तरफ अपने पैरों को फैलाकर मेरे उपर आ गयी. मेरे सख़्त लंड को उन्होने फिर गौर से देखा और उसको अपनी हाथों मे पकड़े रखा. फिर अपनी चूतड़ कुच्छ उपर उठाकर उन्होने सूपदे को अपनी चूत की पत्तियों मे फँसा दिया, मानो उनकी चूत के पंखुरियाँ मेरे सूपदे को प्यार से, हल्के से चूम रही हो!
मैं ने अपना कमर थोड़ा उठाया,"एम्म."
"अच्छा लग रहा है?"
"जी……….…. हां"
"आहिस्ते से? ……इस तरह?"
"म्म्म, जी."
उनकी नज़र मेरे चेहरे पर थी. मेरे चेहरे को गौर से देख रही थी कि मुझे कैसा लग रहा है उनका मेरे सूपदे को अपनी बुर की पट्टियों पर रगड़ना. हल्का हल्का रगड़ना, और कभी कभी बुर के झाँत मे ज़ोर्से रगड़ना. बोली, "जब मेरे हाथ
में तुम्हारा लंड सख़्त होने लगता है ना, तो मुझे बहुत मज़ा आता है…. मुरझाया हुआ लंड जब बड़ा होने लगता है….बड़ा होता जाता है….बड़ा और गरम!" वो अब अपने घुटनों के बल बैठ गयी और मुझसे कहा, " लो, तुम मेरी चूत के दाने को प्यार करो….जब तक मैं तुम्हारे इस लौदे को एक गरम लोहे का हथौरा बना देती हूँ!"
मैने उनकी चूत को खोलकर उनके अंदर के दाने को सहलाने लगा, उसपर उंगली को फेरने लगा. उनसे पूचछा, "इस तरह?"
उन्होने आँख मूंद ली, जैसे की बिल्कुल मशगूल होकर किसी चीज़ का ज़ायज़ा ले रही हों. जैसे कुच्छ माप रही हों. " हां….इसी तरह…… आहिस्ता…….आहिस्ता….हाअन्न्न्न"
वो मेरे उपर ही घुटनों के बल बैठी रहीं और मेरे लौदे को और भी गरम करती रहीं, और जैसे मैं उनके चूत में अपनी उंगली घुमा रहा था मैं ने अपने गर्दन को आगे बढ़ाकर उनकी चुचि को अपने मुँह में लेने लगा. उनकी खूबसूरत,
गोल-गोल कश्मीरी सेब जैसी चुचियाँ मेरे मॅन को लुभा रही थी. जैसे मैने चुचि के घुंडी को मुँह मे लेकर चूसा, वो सिहर गयी और बोली,"बस….इसी तरह से..मुँह मे लेकर आहिस्ते से चूसो ….हां…..अभी ज़ोर्से नही…..हान्न्न्न…..इसी तरह…….अभी बस चूसो."
अब उनकी साँसें बढ़ने लगी. जल्दी ही उन्होने कहा, "अब लो….", और अपने घुटनों के बल उठकर उन्होने नीचे मेरे लौदे के तरफ गौर किया और उसको बिल्कुल सीधा खरा किया. अपने साँस को रोकते हुए और मेरे लौदे को अपने मुथि में उसी तरह से पकरे हुए अब उन्होने अपनी गीली चूत पर उपर से नीचे, फिर नीचे उपर रगड़ कर मेरी तरफ प्यार से देखा. मेरी तो हालत खराब हो रही थी; अब रुकना बेहद मुश्क़िल हो रहा था. मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी.
"अच्छा लग रहा है?", उन्होने पूचछा.
"म्म्म्मम….जी"
"मुझे भी मज़ा आ रहा है……म्म्म्मममम…………अहह…." नीचे देखते
हुए वो बोली, "जानते हो……..उमर के हिसाब से तुम्हारा लौदा काफ़ी बड़ा है…… बहुत कम मर्दों का इतना तगड़ा लौदा होता है…… मुझे तो ताज्जुब होता है कि तुम कितने सख़्त और गरम हो जाते हो! अहह …. ह्म्म्म्मम"
वो मेरे सूपदे के टिप को अपनी बुर के अंदर लेकर मेरे कंधों पर अपनी हथेली रख दी. " अब तुम आराम से मज़ा लो, जबतक मैं तुम्हारे लौदे को अपनी चूत में लेती हूँ. आराम से….मज़ा लो……कोई जल्दिबाज़ी नही… जब लगे कि झरने लगॉगे….तो उस से पहले बता देना…..ठीक?"
"जी….ठीक!"
वो मेरे चेहरे को बिल्कुल ध्यान से देखती रही और बहुत सावधानी से आधे लंड को चूत के अंदर लेकर रुक गयी. और कमर को सीधा किया. फिर पूचछा, "ठीक हो?"
"जी."
"बिल्कुल ठीक?… हनन्न….. ……बिल्कुल?"
"हन्णन्न्……बहुत मज़ा आ रहा है, पर अभी झरूँगा नही."
"फिर ठीक है!" वो गहरी साँस लेकर और आँखें मूंद कर अपनी चूत को नीचे मेरे लंड पर दबाकर लेने लगी, बहुत धीरे धीरे, एक बार में आधे इंच से ज़्यादा नही….और धीरे से बोली, "आहिस्ते से….आहिस्ते……महसूस करो कि अंदर कैसा लगता
है…. क्या होता है!….. जैसे मैं तुम्हारे लौदे को अंदर लेती हूँ……तो महसूस करो कि वो मेरी चूत में किस तरह घिस रहा हैं….बुर उसको किस तरह से लेती है…." वो गहरे साँस लेकर अपने होंठों पर जीभ चलाकर होंठों को गीला किया.
"गौर करो….. अब मैं तुम्हारे पूरे लॉड को किस तरह चूत में ले रही हूँ, किस तरह तुम्हारा लौदा मेरी चूत को पूरी तरह से खोल रहा है…..बिल्कुल अंदर तक……देखी कितनी गहराई मे है…… म्म्म्मममम…. …… अब मुझे थोरे आराम से
महसूस करने दो…..म्म्म्मममममम." मेरा लौदा उनकी चूत के बिल्कुल अंदर था, हमारी झाँतें बिल्कुल मिल गयी थी, उनकी चूत मेरे लॉडा के जड़ पर बैठी थी. "म्म्म्मममम," वो बोली, " …… झरोगे तो नही?"
मैने अपनी साँस रोके हुए सर हिला दिया. धीरे से बोला, "नही."
"बहुत अच्छा," और वो फिर अपना ध्यान चूत में लंड पर लगाने लगी. "अपने आप को ठीक से रोकना, जिस से हम दोनो पूरा मज़ा ले सकें. ठीक?" वो अपनी बुर को और नीचे लाई, करीब आधा इंच, फिर थोरा उपर उठाकर, मानो मेरे लॉडा के
किसी ख़ास पार्ट का ज़ायक़ा ले रही हों. मुझे लगा कि नीतू भाभी बिल्कुल सही कह रही थी: इस वक़्त कोई और ख्याल नही आना चाहिए.
अब फिर से पूरे लॉड को लेने के बाद उन्होने कहा,`हाआंन्नणणन्!" फिर एक पल साँस लेने के बाद मेरी आँखों में देखते हुए उन्होने पूचछा, "मज़ा आ रहा है?"
"म्म्म्मम…ह" मैने अपने सर को थोरा पीछे कर के ज़ोर्से साँस छोड़ा और नीतू भाभी को जवाब तो देना चाहता था, पर मुँह से सिर्फ़ आवाज़ निकली, "व्ह"
" अब एक मिनिट रूको, बस इसी तरह……", और भाभी ने गहरी साँस लेकर अपने चेहरे पर से अपने बाल को हटाकर एक लूज जूड़ा बना लिया, फिर कहा, "और बस बुर में पड़े हुए लंड का मज़ा लेना सीखो! महसूस करो कि बुर के अंदर लंड किस तरह से थिरकता है, ……किस तरह बुर लौदे को चूमती है, किस तरह बुर और लोड्ा एक दूसरे के साथ खेलते हैं." वो अब मेरे उपर पीठ सीधी करके बैठ गयी, और फिर कहा, " अपने उपर काबू रखने की कोशिश करना….ठीक?……तुम झरना चाहो तो झार सकते हो ….पर कोशिश करना कि जितनी देर तक अपने आप को रोक सको, रोकना…….. ठीक? जीतने देर तक अपने लौदा को इसी तरह अंदर रखोगे, उतना ही मज़ा आएगा ……तुमको भी……और मुझे भी ……म्म्म्ममममममम…….. जानते हो ना ……..
धीरे-धीरे साजना ……हौले हौले साजना ….. हम भी पीछे हैं तुम्हारे…….!
मेरी तो मस्ती से जान निकल रही थी. मैं ने गहरी साँस ली, और फिर कुच्छ बोलने की कोशिश करने लगा, पर मुँह से वाज़ निकली बस, "व्ह"
"कर सकोगे?……सिर्फ़ महसूस करो…. और कुच्छ करने की ज़रूरत नही है… सिर्फ़ मज़ा लो! …….करोगे ना?"
"हान्णन्न्."
उन्होने अपनी आँखें फिर मूंद ली और एक लंबी "अहह" भर के मेरे कंधों पर अपनी पकड़ को थोडा ढीला छ्चोड़ दिया.
कुच्छ समय तक हम दोनो चुप रहे, मेरे उपर भाभी बिल्कुल खामोश और रुकी रही. फिर मुझे समझ में आने लगा कि वो मुझे क्या महसूस कराना चाहती थी. अब मुझे महसूस होने लगा कि किस तरह मेरा लौदा उनकी बुर में उसके गीलेपान से बिल्कुल नाहया हुआ था और बुर के अंदर की बनावट को, बुर के अंदर के सभी खूबियों का ज़ायक़ा ले रहा था. अब मैं समझा कि बुर की गहराइयों मे हर जगह एक जैसा नही होता, पर हर गहराई का एक अपनी ही खूबी है. यह सब महसूस करते हुए मेरा लौदा और भी सख़्त होता जा रहा था, और एक बार ज़ोर्से थिरक
गया. भाभी की बुर ने भी जवाब में मेरे लौदा को जाकड़ लिया. नीतू भाभी बोली," इसी तरह रहो अभी…. आराम से. ………..और कुच्छ मत करो… बस… इसी तरह."
मैं ने वैसा ही किया. पर मेरे कोशिश के बावजूद मेरा लौदा बीच बीच में थिरक जाता था. भाभी के गीली बुर के जकड़ने से मेरा लौदा मस्ती में था और मुझे नही लग रहा था कि मैं अपने लौदा को पूरी तरह से काबू में रख पाउन्गा.
भाभी आँखें मूंदी ही हुई थी, पर मुस्कुराते हुए पूच्ची, " क्यूँ, नही रुका जाता क्या?"
मैने अपना सर हिलाते हुए कहा, "नही, पर मज़ा बहुत आ रहा है…अहह."
"हान्न्न, मुझे भी, मेरे राजा. बहुत मज़ाअ आ रहा है…ह". और मेरे कंधों को पकड़े हुए ही उन्होने अपने चेहरे को मेरे कान के पास रख दिया. वो फुसफुसकर बोली, "कितना मज़ा आता है …… इसी तरह से बुर में लौदा डालकर
…….. सिर्फ़ महसूस करने में….कुच्छ सोचो मत …….कोई और क्याल नही ……सिर्फ़ बुर में लॉडा…….सिर्फ़ लॉड की सख्ती…..लॉड की गर्मी……और बुर की मखमली, रस भरी सकूदती हुई जाकरन! ….सिर्फ़ जिस्म का ख्याल रखो….और कुच्छ भी नही…. आअहह."
भाभी रुक कर कुच्छ शुस्ता रही थी. कमरे में टेबल क्लॉक की चलने की `टिक टिक' आवाज़ आ रही थी. मैं ने उसी `टिक टिक' पर अपना ध्यान लगाया. उनकी साँसों की आवाज़ मेरे कान में बहुत ही मीठे गीत की तरह लग रही थी, बीच बीच में भाभी
"अहह" कहते हुए अपनी बुर से मेरे लौदे को जाकड़ लेती थी. कोई चारा नही था. जैसे ही बुर को भाभी स्क्वीज़ करती थी, मेरा लौदा थिरक जाता था! कुच्छ देर बाद नीतू भाभी ने अपने जांघों को मेरे उपर थोरा घिसकाया. अब उनके बुर का दाना
मेरे लॉडा के जड़ से घिस रहा था. उनके मुँह से एक मज़े की "ह्म्म्म" निकली और उन्होने धीरे से दो तीन बार अपने दाने को मेरे लंड के जड़ में घिसने लगी. मेरे कान में धीरे से बोली, "यह बहुत मज़ा दे रहा है…..अहह" अब उनकी चूतड़
पहले की तरह बिल्कुल बैठी नही रही. वो अपनी चूतड़ को आहिस्ते से, बहुत ख़ास अंदाज़ में घुमाने लगी. लौदा चूत की पूरी गहराई में, और उनके चूत का दाना मेरे लौदा के जड़ पर उगी झांतों से रगड़ रहा था.
अब नीतू भाभी कुच्छ मस्ती में आ रही थी. उन्होने मुझसे मुस्कुरकर पूचछा, "अब कुच्छ ज़्यादा मज़ा आ रहा है? कुच्छ चुदाई का मज़ा? आहह …..हाआंणन्न्?"
"जी!………. हाआन्न!!!"
"मुझे भी!"
अब उन्होने अपने चूतर को थोरा उठाया, और मुझसे कहा, " तुम मत हिलना….इसी तरह रहो… इसी तरह ……मेरे चूत के अंदर …"
वो अपनी चूत को आगे कर के घिसने लगी, उनकी बुर का दाना मेरे झाँत में रगड़ रहा था. कुच्छ देर तक वो इसी तरह, कुच्छ सावधानी बरतते हुए रगड़ती रही, पर बीच बीच में, लगता था कि उनको भी मस्ती बढ़ने लगती थी, और वो ज़ोर्से
रगड़ना चाहती हैं, पर फिर अपने आपको रोक कर वो अपनी चूतड़ मेरी झंघों पर बैठा देती.
वो बोली,"अब ज़रा," और उन्होनें अपने गले को सॉफ किया और गहरी साँस ली," अब ज़रा अपने आप को काबू में रखना!" और उन्होने अपने दाने को फिर रगड़ना शुरू किया, अपनी चूतड़ को चक्की की तरह घुमाते हुए, और मेरे चेहरे पर मेरी हालत देखकर मेरी कान में धीरे से बोली, " झरना नही….. अपने आप को काबू में रखो …….देखो कितना मज़ा आएगा अभी!" मैने उनसे हामी भर दी, और वो बोलती रही , "देखो, मैं कितनी गीली हो रही हूँ ….किस तरह मेरी बुर बिल्कुल रसिया गयी है….. ओहो…..ह्म्म्म्मम… मेरे खातिर…. हान्न्न…… रुके रहो… मैं एक बार झार जाउन्गि….. आअहह ….. मेरे राजा … इसी तरह ……अब झरनेवाली हूँ" और उनकी आवाज़ बिल्कुल धीमी होती गयी, पर उनकी चूतड़ मस्ती में चकई की तारह ज़ोर्से
चलने लगी. चार तरफ घूम रही थी, फिर रुक कर एक बार अच्छी तरह से आगे, फिर उसी तरह से पीछे की तरफ, फिर गोल चक्कर. उनके बर से कुच्छ रस निकलकर हमारी झांतों में बह गया था, पर बुर और लंड के इस मिलन में हम दोनो बिल्कुल मगन थे. वो और ज़ोर्से साँस लेने लगी, और जैसे उनका मस्ती में हाँफना उसी तरह से उनके कमर का नाचना: उनकी चूतड़ ज़ोर्से, और जल्दी जल्दी चक्कर लगाती रही और बर का मुँह मेरे लौदे के जड़ पर रगड़ती रही. मुझे लग गया कि नीतू भाभी अब झरने वाली हैं, और मैं किसी तरह से अपने आप को रोके रहा, पूरी कोशिश कर के सिर्फ़ टेबल क्लॉक के "टिक-टिक'" पर ध्यान लगाए रखा. फिर उन्होने अपना चेहरा मेरे गाल पर रख दिया, उनकी साँस रुकी हुई थी, उनके हाथ मेरे कंधों पर ज़ोर्से पकड़े हुए थे, और उनकी चूत लगा जैसे मेरे लौदे को हाथ में लेकर मुथि में मसल रही हो, उनकी चूत बार बार कभी मेरे सूपदे को, कभी बीच लौदे को दबा रही थी. और लौदे को उपर से नीचे तक चूत का रस बिल्कुल भिगो दिया था. उनका दाना मेरे लौदे को और ज़ोर्से रगड़ने लगा, और मैं ने अपने लौदे को उचका दिया. मेरा लंड उचकाना भाभी को शायद अच्छा लगा, और वो और सिसकारी भरने लगी, "आआहह……..है दैया…… हाआंणन्न् ….. है …रे ………..दैयय्याअ ……….हमम्म्मम… ………हाआंन्नणणन्"; और मुझे लगा कि वो कुच्छ देर तक इसी तरह से झरती रही. मेरे हाथ उनके चूतड़ को सहला रहे थे.
वो ज़ोर्से साँस लेते हुए, "ऊऊहह….हमम्म्म …. आअहहानं" करते हुए रुक गयी. आँखें मूंदी हुई थी, पर चेहरे पर खुशी झलक रही थी. मैं ने उनके कंधों को चूमा, चूमता रहा, और उनके चुचियों को आहिस्ते से दबाता रहा, घुंडीयों को मसलता रहा. नीतू भाभी इसितरह से मेरे उपर लेटी रही. मेरा सख़्त लौदा अभी उनके रसभरी बुर में लथपथ होकर आराम कर रहा था.
फिर उन्होने कहा, "दैयय्याअ…. रे …दैयय्ाआ …… ह्म्म्म्ममम… …..वाह, मेरे राजा…… आहह…. …..कितने दिन बाद मैं इस तरह से झारी हूँ ….बहुत मज़ा दिया है तुमने……. बहुत खुशियाँ देते हो तुम औरतों को इस तरह से…. काश हर
मर्द तुम्हारे तरह होता!" वो अपना सर उठाकर मेरे तरफ अब देखी और बोली, " अब आओ, …..तुमको मज़ा करती हूँ."
मैं ने उनसे पूचछा, "आप थॅकी नही हैं?" उनकी साँस अभी भी कुच्छ फूली हुई थी, पर उन्होने मेरी आँखों में मुस्कराते हुए देखा और बोली, "अभी सीखना ख़तम नही हुआ है! यह तो सिर्फ़ शुरू का लेसन था! और अभी तो रात जवान है…… क्यूँ?" और उन्होने मेरे कंधों पर हाथ ज़ोर्से दबाए और मुझसे कहा, " इस बार मैं तुमको झरना सिखौन्गि. तुमने मेरा झरना महसूस किया… ..पर जानते हो… हम दोनो के पूरे मज़े के लिए तुमको भी अच्छी तरह से झरना ज़रूरी है. जब लोग जल्दिबाज़ी में करते हैं तो वे झरते तो हैं ….पर झरने का असल मज़ा नही आता… मैं चाहती हूँ कि तुम अपने लौदे से एक एक बूँद मुझे दे देना ….हाँ ….एक एक बूँद….और तब जाकर तुम सही मतलब में खलाश होगे…. ठीक है?.. समझे?…. एक एक बूँद निचोर लेगी मेरी बुर!" मैने पहले के तरह उनसे हामी भर दी, और उन्होने अपने बदन को सीधा हारते हुए आगे कहा, "मैं बहुत जल्दिबाज़ी नही करूँगी…. और जब तुम झरने लगॉगे तब तो मैं और आहिस्ते से करूँगी, ताकि मेरे
बुर मे मुझे भी अच्छी तरह से महसूस हो कि तुम्हारा फुहारा चलने लगा है… चल रहा है… ठीक?" उन्होने आगे समझाया, " अपनी बुर मे मैं यह तो नही महसूस कर पाउन्गि कि तुम्हारी कितनी बूँद निकल रही हैं, पर हर फुहारे के साथ
मेरी बुर में एक गरम लहर गहराई में जाती लगेगी. समझे?" मैं उनके मुस्कुराते चेहरे को देखकर अपने आप को अब तो बिल्कुल ही काबू मे नही रख पा रहा था...पर देखना भी चाहता था कि नीतू भाभी क्या सिखाने जा रही हैं. मैने कहा, " आप जल्दी ही महसूस करेंगी. अब शायद मैं अपने आप को रोक नही पाउन्गा!"
वो मेरी आँखों में देखती हुई मुस्कुराइ, एक ममता भरी मुस्कुरात. "मज़ा आता है ना ?…… जब लौदा झरने के लिए तैयार रहता है, पर अभी झारा नही होता? …… ह्म्म्म…उस हालत में …..खूब मज़ा …… आता है ना?"
मैने हामी भर दी. मैं ने ज़ोर्से एक साँस ली, और तैयार होने लगा. सच पूच्हिए तो मैं तो कब से तैयार था, बस किसी तरह से अपने को काबू में रखा था. भाभी मुस्कुराती रही, उन्हें तो अच्छी तरह से पता था कि मेरी क्या हालत हो रही थी.
उन्होने अपने घुटनों को ठीक से जमाया और मेरे कंधों को जमकर पकड़ लिया. बोली, "अब मेरी फिकर मत करना, समझे?… अब तुम मज़ाय लो! ह्म … सिर्फ़ अपने लौदे का ख्याल करो ……."
"जी."
अब वो अपनी चुचि को मेरे मुँह के उपर रगड़ते हुए, मुझे चोदने लगी. वो उपर मेरे सूपदे के टिप तक आई और फिर बुर के बिल्कुल अंदर तक चली गयी. जल्दिबाज़ी में नहीं, बिल्कुल धीरे धीरे, पाँच या च्छेः बार, और जब लगा कि ठीक आंगल से
चुदाई हो रही है तो उन्होने मुझसे कहा. " अब देखो!…..लो मेरी बुर!" और उन्होने मेरी आँखों मे देखते हुए इसी रफ़्तार में ठप ठप धक्के लगाने शुरू किए. उनकी नज़र मेरे चेहरे पर से कभी नही गयी, और वो मेरी आँखों में आँखें डालकर
मेरे चेहरे के भाव पढ़ती रही.
कुच्छ धक्कों के बाद उन्होने पूचछा, " मज़ा आ रहा है?" मैं ने कहा, "हां" पर यह भी बताया कि वो अपनी चूतड़ उतनी उपर नही उठायें. मेरा रोकना बहुत मुश्क़िल हो रहा था. वो मान गयी और और मेरे लौदे को बुर के गहराई मे लेकर अब सिर्फ़ आधे लौदे तक चूतड़ उपर उठाती. एक-दो बार ऐसा करने के बाद उन्होने पूचछा, "अब ठीक है?" मैने अपना सर हिलाया. वो बोली, "तो तुमको ज़्यादा मज़ा आता है जब मैं तुम्हारे लौदे को बिल्कुल अंदर लेती हूँ और जब उठती हूँ तो सिर्फ़ आधे लौदे तक और बाकी लौदा बुर के अंदर" मैं मस्ती में पागल हो रहा था, और मैं ताज़्ज़ज़ूब करता रहा कि नीतू भाभी को इस वक़्त इतने आराम से सवाल पूच्छने की क्या ज़रूरत पर गयी है! मैं तो नशे मे पागल था! भाभी ने अपने धक्के फिर जारी किए, मेरे लौदे को बुर के बिल्कुल गहराई में ले जाकर फिर आधे लौदे तक उपर निकलना, और फिर पूचछा, "इस तरह?" मैने कहा, "हाँ", और और धीरे से हंसकर बोली, "ठीक है…. पर कही मेरा घुटना ना जवाब दे दे!"
पर उनके घुटने तो कमाल के थे. मैं तो बस उनके थाप देने के अंदाज़ को देख रहा था. किस तरह से उनक टाँगें, उनके मांसल जाँघ, उनका बिल्कुल सपाट पेट और लचीली कमर मेरे लौदे की हालत ख़स्ता कर रहे थे. कुच्छ देर के बाद, करीब 15-20
थाप उन्होने दिए थे, मेरा लौदा बेहद सख़्त हो गया और मुझे लगा कि अब मैं खलाश हुंगा. वो मेरे चेहरे को देखकर समझ गयी थी, और उन्होने कहा, "हाँ…मेरे राजा!", और मैने कहा कि अब शायद मैं और नही रोक पाउन्गा,
तो उन्होने "ष्ह्ह्ह …हां… मैं महसूस कर रही हूँ". अब वो रुक गयी, और बुर को मेरे लौदे पर ज़ोर्से दबाती रही. उनका चूतड़ अब बिल्कुल रुक गया.
वो बोली, "सुनो…….थोरा रुक जाओ! तुम अभी भी कुच्छ सोच रहे हो…सभी ख्यालों को हटाओ…….. " मैं कुच्छ चौंक गया और कहा, "अच्छा?!" मेरा लौदा उनकी चूत के अंदर बिल्कुल बाँस की तरह खरा था. वो बोली, "तुम्हारी आँखें बता रही हैं! तुम थोरी जल्दबाज़ी कर रहे हो….. तुम करीब हो ….पर अभी वहाँ पहुँचे नही …….क्या जल्दबाज़ी है?……ह्म्म्म्म…… आराम से मज़ा लो…….!" मुझ से नही
रहा गया, और मैं ने पूचछा, "नीतू भाभी, आप भी ग़ज़ब की हैं! …आपको कैसे पता चला कि मैं अभी तक वहाँ पहुँचा नही?" मुझे सच में लग रहा था कि अब किसी भी वक़्त मेरा लौदा फुहारा खोल देगा. भाभी मुस्करती हुई बोली, "तज़ुर्बे से
कह रही हूँ, मेरे भोले राजा!…… तुम्हारी आँखों मे सॉफ है……थोरा रूको……आराम से मज़ा लो!"
वो मेरे चेहरे को देखती रही, आँख में आँख मिलाकर, जैसे मुझे और मेरे लौदे का टेस्ट ले रही हो. फिर मेरे गाल को सहलाते हुए, वो मेरे माथे पर प्यार से चूमने लगी, और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा, "ठीक से मज़्ज़े करो… आराम से….आहिस्ते आहिस्ते…. हम वहाँ आराम से पहुँच जाएँगे …….कोई जल्दबाज़ी नही!" वो अपने सर को अब उठाकर, अपनी पीठ को फिर सीधा कर, चुचियों को मस्ती से उपर उठाकर, मेरी तरफ देखी और मुस्कुरकर पूछि, `तैयार हो?!!"
मैं ने सर हिलाकर "हां" कहा.
"फिर आ जाओ, मेरे राजा!" उन्होने अपने चूतड़ को उपर उठाया, फिर नीचे किया. फिर उपर.. "देखो ….आहिस्ते से..आहिस्ते." फिर नीचे. मेरी तरफ देखती रही. "सुनो, मेरी तरफ देखते रहो….मेरी आँखों में!" अब उनकी कमर एक नये अंदाज़ में लचाकने लगी, बहुत ही धीरे, पर चक्की की तरह. वो मुझे समझाती रही, " चुदाई का मज़ा सिर्फ़ बुर में लंड डालने में नही है….. ह्म … वो और बहुत कुच्छ है! ….. कहते हैं कि संभोग ही समाधि भी है…..हन्न्न…. इस मज़ा में हमें वो एहसास होता है जो हम और किसी भी तरह से नही जान सकते….एम्म्म …. अपने जिस्म से दूर, अपने दिमाग़ से दूर ……ह्म्म्म्मम.. …… मेरी तरफ देखते रहो, मेरी आँखों में. ……तुम्हारी आँखों से मुझे पता लग जाएगा कि तुम अभी बिल्कुल तैयार हो की नही……..ह्म्म्म्मम……..इसी तरह"
उनकी गीली चूत मेरे लौदे को चूस रही थी और वो मेरी आँखों मे अपनी आँखें डाले हुए मुझे चोद क्या रही थी, जन्नत का नज़ारा दिखा रही थी. कुच्छ ही देर में फिर से मेरे लौदे में सिहरन होने लगी और मेरे मुँह से "अर्घ" आवाज़ आने लगी, पर भाभी ने मुझ से कहा, `मेरी तरफ देखते रहो, मेरे राजा!….. चोदते हुए आँख नही चुराते!!" मेरी आँखें खुल गयी और वो मुझसे आँखें मिलाते हुए बोली, " अब तुम बहुत करीब आ गये हो ….मेरे बर में तुम्हारे लंड की गर्मी बता रही है……पर बिल्कुल तैयार तुम अभी भी नही हो. सोचना बिल्कुल छ्चोड़ो …… सिर्फ़ मज़ा लो. …..सिर्फ़ मेरे बुर की चाल को महसूस करो…..हाआंन्ननननणणन्" वो थोरी रुकी, और मुझे देखती रही, देखती रही, और बुर को आधे लौदे तक उठाकर, फिर रुकी, और तब धीरे से चूतड़ नीचे करके बुर के बिल्कुल अंदर मेरे लौदे को ले लिया. वो 2-3 बार फिर उपर नीचे अपने चूतड़ को घुमाती रही, फिर उसी तरह से आगे पीछे, आगे पीछे, और तब आधे लौदे तक फिर उठाकर मुझसे प्यार से कहा," सिर्फ़ मज़ा लो…… कुच्छ भी सोचो मत इस वक़्त…….सिर्फ़ मज़ा…. हायेयियी!"
इसी तरह नीतू भाभी बार बार अपनी चूतड़ की चक्की चलाती रही, और मेरा लौदा उनकी बुर में कोई गरम लोहे के हथौरे की तरह जमा रहा. उसकी सख्ती से अब मुझे मुझे ऐसी परेशानी हो रही थी कि लगता नही था कि अब 10 सेकेंड भी अपने
आपको रोक सकूँगा, पर मस्ती ऐसी थी कि किसी भी हालत में अपने आपको काबू में रखना ही था. वो अब रुकी, चूतड़ को मेरे लौदे के सूपदे के टिप तक उपर उठाया, और फिरे आहिस्ते, रगड़ते हुए मेरे पूरे लॉड को अपनी बुर में निगलती गयी. बोलती रही, " चुदाई का मज़ा तभी है जब और कोई ख्याल नही हो
….हान्णन्न् ….कोई और ख्याल नही…….सिर्फ़ सख़्त लौदे की गर्मी, सिर्फ़ बुर की प्यास …..हमम्म्म…." अब वो उपर उठ रही थी, धीरे, बहुत धीरे से, और बुर सिकुर रही थी, मेरे लौदा को जैसे किसी बच्चे का हाथ मुथि में पकड़ रहा हो…पकड़ लिया
हो…और छ्चोड़े ही ना. " मैं तुम्हारे चेहरे पर मस्ती देखना चाहती हूँ, …सिर्फ़ मस्ती…….मज़े का नशा!"
उनकी चूत मेरे लौदे को इसी तरह से जकड़े हुए रही, और वो मेरी आँखों में देखती रही. उनकी चूत लौदे को दबाती जा रही थी, दबाती जा रही थी. मेरे होश उड़ रहे थे, लौदे की हालत क्या बताउ, और मैं ने अपनी कमर को थोरे उठाने की कोशिश की जिस से कि लौदा उनकी चूत में कुच्छ और अंदर जा सके, कुच्छ इधर
उधर घूमे. उन्होने मुझे यह करते देख, अपनी चूत को सिकुरना बंद कर दिया, और धीरे से मुस्कुराने लगी. मैं फिर से पहले की तरह लेटा रहा. मेरे रुक जाने के बाद अब नीतू भाभी ने फिर अपनी चूत को सिकुरना शुरू किया. मस्ती के मारे मेरे
मुँह से सिसकारी निकल रही थी…."ऊऊऊहह……..म्म्म्मममममम". इस बार मैं भी उनकी आँखों में उसी तरह से देखने लगा जैसे वो देखती रही थी. वो फिर चूत को सिकुरने लगी, उसी तरह से, और मैं ने कहा, "ह्बीयेयन्न्न्न्न," और वो मुस्कुराते हुए मुझे देखी. उनके आँखों में अब कुच्छ शरारत थी. बोली, " मेरी तरफ देखते रहो!……….आँख नही मूंदना!"
उनकी चूत मेरे लौदे को रगड़ती रही, और दबाती रही. फिर वो अपनी चूतड़ को उठाई, बिल्कुल मेरे लौदे के सूपदे के उपर तक, और मेरे कान में फुसफुसाई," अब मेरी तरफ देखते रहो, …. महसूस करो कि मेरी चूत तुम्हारे लौदे को किस तरह
मज़ा देती है!" अपने चूतड़ को अब नीचे करने लगी, पर बहुत ही धीरे धीरे, और साथ ही कमर को घुमाती रही, आधा घुमान एक तरफ, फिर आधा घूमन दूसरी तरफ, धीरे……धीरे. उनकी रफ़्तार बस ऐसी थी कि मेरा लौदा काबू में रह सके, पर बस उतना ही. बिल्कुल धीरे नही! पर ऐसे कुच्छ ही नाज़ुक थाप के बाद, उन्होने देखा होगा कि मैं उनके चेहरे पर गौर कर रहा था, और मैं समझने लगा कि अगर मैं इसी तरह भाभी को देखता रहूं, सिर्फ़ उनके चूत के कमाल पर गौर करता रहूं, तो अपने लौदे को काबू में ना रखने का डर अपने आप ख़तम हो जाएगा. बस भाभी ने 2-3 और थाप दिए, और मुझे लगा कि दुनिया में और कुच्छ भी नही, उनकी आँखें की शरारत और चमक, और मेरे लौदे के उपर हौले-हौले नाचती हुई उनकी चूत! मैं अपने चेहरे पर की मुस्कुराहट को चाह कर भी नही रोक सकता था…सारी दुनिया मेरेलिए दूर जा रही थी….बस भाभी की आँखें, और उनके चूत के गहराई में जाता और फिर निकलता मेरा लौदा.
अब तो मस्ती ऐसी कि मुझ से सहा नही जा रहा था. अभी तक मैं ने इतने देर तक कभी भी अपने आप को काबू मे नही रख पाया था, ऐसी मस्ती का तो कभी अंदाज़ा भी नही किया था. अब मुझे समझ मे आने लगा कि नीतू भाभी मूज़े क्या सीखाना चाहती हैं. उनकी चूत का हर बार लौदे के उपर आना, और हर बार लौदे को बिल्कुल चूत के गहराई तक लेना, उनका हर ताप मुझे नशे से झकझोड़ देता था.
मेरे होंठ सूख रहे थे. बिल्कुल सूख गये थे.. हमारी आँखें अभी भी मिली थी. मैं ने धीरे से कहा, `भाभी…..थोरा आहिस्ते!"
भाभी के भौंह थोरे उपर उठे, और उनकी मुस्कुराहट में अब एक हूर या अप्सरा की सी मादकता थी. वो कुच्छ रुकी, अपनी कमर को सीधा करते आधे लौदे तक चूत को उठाया, मुझे शरारत और प्यार से देखा, और फिर कुच्छ और धीरे से अपनी चक्की चलाने लगी, धीरे, ….धीरे, …..और धीरे से. उनके चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रही. उन्होने फिर अपने चूतड़ को उपर उठाया, बिल्कुल सूपदे के नोक तक, नोक को थोडा अपने चूत के पट्टियों से रगड़ दिया, और फिर अपने पुरानी रफ़्तार से चक्की चल पड़ी. उनकी आँखें मुझसे बातें करती दिखी. कह रही थी: "अब समझे, मज़े कैसे किए जाते हैं!" उनकी चूत जब नीचे मेरे लौदे के जड़ तक आती थी तो वो अपने चूत से लौदे को चारो तरफ घूमाकर रगड़ती थी, पर जब उपर उठती तो अपनी चूत से लौदे को इस तरह जाकड़ लेती की मेरे लौदे को खींचती जाए और छ्चोड़े ही नही. पूरी गहराई तक लौदे को लेती थी, फिर सूपदे के नोक तक उठा लेती थी. मेरी हालत देख कर उनकी मुस्कुराहट रुकती ही नही थी. उनकी चूत मेरे लौदे को निचोड़ती जा रही थी, और उनकी मुस्कुराहट, उनके आँखों की शरारत, मेरे दिमाग़ से हर ख्याल को निचोड़ कर कहीं बाहर फेक चुकी थी. उनका हर थाप लगता था कि एक नयी तरह की मस्ती लाता था, हर थाप में एक नयापन. जैसे समुद्रा के बीच पर हर लहर का अपना ही नयापन होता है, नीतू भाभी की चूत में मेरा लोहे सा तप्ता हुआ लौदा उनकी चुदाई के हर एक लहर का नयापन, हर एक लहर की अपनी ख़ास मस्ती से जन्नत का मज़ा ले रहा था. उनकी रफ़्तार अब कुच्छ बढ़ गयी, वो मुझे गौर से देख रही थी, और मेरा लौदा चूत के अंदर और अकड़ गया, और लगा कि उनकी आँखों ने मुझे कहा हो कि उसे अच्छी तरह से महसूस कर रही हैं….फिर उन्होने आँखों से ही पूचछा कि क्या मैं अब झरने वाला हूँ.
मैं ने धीरे से कहा, "नाहह…..अभी नही!"
उनके चेहरे पर खिलकर हँसी आ गई, चुदाई मे लड़कियों की अपनी ख़ास, शरारती हँसी, वो खुशी से बोली, "हान्न्न!" अब मुझे समझ मे आने लगा कि यह भी बहुत ज़रूरी सीख नीतू भाभी ने अभी दी है कि चुदाई में बातें आँखों
से ही होती हैं …..चुदाई का असली मज़ा तभी है जब आँख में आँख बिल्कुल लीन हो जाए! सब से बड़ी बात तो यह कि दुनिया के सभी ख्याल छ्चोड़कर मज़े को पहचाने, उसको समझे, उसको आराम से महसूस करना सीखें. उनके चूत की गहराई में गिरफ़्त मेरा लौदा फिर एक बार ज़ोर्से थिरकने लगा. नीतू भाभी मेरी आँखों में देखकर मुस्कुराने लगी, और इशारे से बताया की ठीक है, वो समझ रही हैं कि मेरी मस्ती किस लेवेल पर पहुँच रही है. अब हम दोनो एक दूसरे के आँखों से ही बातें कर रहे थे, एक दूसरे को बिल्कुल अच्छी तरह से समझ
रहे थे. दो जिस्म, पर ऐसी मस्ती की चुदाई मे दोनो एक होते जा रहे थे!
मेरा लौदा फिर काबू के बाहर होने लगा. ऐसा लगने लगा कि अब और नही रोक पाउन्गा अपने आप को. फिर भी मैं ने कोशिश की, अपने मुँह को सख्ती से बंद किया, दाँत पर दाँत बिठाया, और भाभी की कमर को ज़ोर्से पकड़ने की कोशिश की. भाभी ने मुझे अपने आपको झरने से रोकते हुए देखकर, फिर अपनी मादक अंदाज़ मे मुस्कुराइ, और उनकी आँखें मे उनकी समझदारी, नशा और थोरा थोरा छिनल्पन की मिली-जुली नज़र मुझे तो एक दूसरी दुनिया में ले जा रही थी. मेरी गर्दन कड़ी हो रही थी, और जब भाभी को यह एहसास हो गया कि मैं भी इतनी आसानी से हार नही माननेवाला हूँ, तो उनकी आँखें चमकने लगी, और अब हम दोनो अपनी अलग अलग प्यास को छ्चोड़कर आगे बढ़ चुके थे….हमारी प्यास अब एक हो गयी थी. मेरे चेहरे पर भी अब एक चोदु की मुस्कुरात थी, जैसे कोई पहलवान कुश्ती के मुक़ाबले में दूसरे को चुनौती दे रहा हो, " आ जाओ…,. देखें कि कितनी ताक़त है तुम में."
मैं ने अब अपने पेट को सटका कर बिल्कुल अंदर कर लिया, साँस रोक ली, और पेट को उसी तरह सटा रखा: मेरा लौदा और भी कड़क गया चूत के अंदर, लोहार के हथौरे की तरह गरम और सख़्त, और जैसे ही नीतू भाभी ने महसूस किया कि मेरा लौदा अकड़ने लगा है, पर अभी भी काबू में है, उनकी मुस्कुराहट हँसी मे बदल गयी. कमरे में तो अंधेरा था, पर उस चाँदनी रात की रोशनी में, उनके दाँत खिल रहे थे. चुचियों पर झूलता हुआ उनका "मंगलसूत्रा" चमक रहा था. अब उनकी चूत अच्छी रफ़्तार में चक्की चलाते जा रही थी, उपर से नीचे, नीचे से उपर, और मेरे मुँह से "अहह," सिर्फ़ आहें. कुच्छ मुस्कुराते हुए, कुच्छ शरारती अंदाज़ में, अब उन्होने पूचछा, "क्यूँ…. अब मज़ा आ रहा है? …ह्म?"
"हाआअन्णन्न्… ……!!!!!….ह्म्म्म्मम…….और आपको?!!!"
"हाआंणन्न्….. ….. पूच्छो मत!!! ………… असली चुदाई का मज़ा!!!….. ह्म्म्म्मम!"
इस लम्हे मे लगा कि वाक़ई हम दोनो एक हो गये हैं, हमारे बदन जुड़े हुए थे, हमारी ख्वाहिश एक थी, एक ही प्यास. हमारे आँखों में एक ही चाह थी! नीतू भाभी ने अब अपने मुँह में दाँतों को कड़ा कर लिया और लौदे को चूत के बिल्कुल अंदर दबोच लिया, उनकी जंघें मेरे कमर को बिल्कुल जाकड़ चुकी थी. उनकी आँखें बता रही थी की उनको महसूस हो रहा है कि झरने से पहले मेरा लौदा अब बिल्कुल फूल कर तैयार है, सख़्त, बिल्कुल अकड़ कर उनके बच्चेदनि के मुँह पर सूपड़ा
तैयार है फुहारा छ्चोड़ने के लिए. मेरे मुँह से "आअरर्रघह" की आवाज़ निकली और मेरा लौदा झरने लगा, और भाभी की थाप अब चक्की नही, बिल्कुल सीधी और आहिस्ते हो गयी, सूपदे से लेकर जड़ तक, फिर जड़ से सूपड़ा तक. मई झाड़ता गया, झाड़ता गया,….नीतू भाभी की चूत भरती गयी, और नीतू भाभी मेरी तरफ मुस्कुराते हुए अपने रस भरी चूत से मुझे निचोड़ती रही, निचोड़ती रही, बार बार. लग रहा था जैसे मेरे अंदर अब एक भी बूँद नही बचेगी, भाभी की चूत हर बूँद को निचोड़ कर छ्चोड़ेगी. मेरी आँखें बंद हो गयी थी, मेरा लौदा फूला हुआ तो अभी भी था, पर उसकी गर्मी अब भाभी की चूत में कुच्छ कम होती जा रही थी….भाभी अभी भी आहिस्ते से, हौले हौले उसको निचोड़ रही थी.
"आआआहह…..," बस मैं इतना ही कह पाया. लगा जैसे मुझ में एक भी बूँद नही बची है, जैसे मेरे बदन में एक हड्डी नही, दिमाग़ में एक भी ख्याल नही. बिल्कुल खलाश. …..और नीतू भाभी के सिखाए हुए चुदाई के मस्ती
का एहसास!
उस रात मैं नीतू भाभी को देखता रहा. हम एक पार्टी से अभी लौटे थे. रात काफ़ी हो रही थी. भाभी की सहेली के घर एक बच्चे के बिर्थडे के मौके पर उनके जान-पहचान के कुच्छ दोस्तों की पार्टी थी. कुच्छ अकेले मर्द, कुच्छ अकेली औरतें, और कुच्छ कपल्स. सभी कोई आछे नौकरियों में थे. भाभी ने उन सभी लोगों से मेरा परिचय कराया. उन लोगों से मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई. और वे लोग
भी मुझसे बहुत प्यार से मिले.
पार्टी से लौटने के बाद भाभी अपने कपड़े उतार रही थी. अपनी खूबसूरत रेशमी सारी को उन्होने उतार कर ठीक से अलमारी में रखा. फिर अपने रेशमी ब्लाउस को. अब वो सिर्फ़ अपनी ब्रा और पेटिकोट मे. पार्टी वाला मेक-अप, बेहद सुंदर जोड़ा, मन
को बिल्कुल मोहने वाला टीका, लिपस्टिक, और बेली के माला के साथ बँधा हुआ जूड़ा.
मेरा लौदा कसक रहा था. मैं ने कपड़े पहले ही उतार लिए थे, और सिर्फ़ अपने अंडरवेर मे था. पार्टी मे 6-7 बहुत खूबसूरत औरतें थी, और भाभी की एक सहेली तो मुझे बहुत ही नमकीन लगी थी, पर उन सारी औरतों में मेरी नीतू भाभी किसी से कम नही लगी. भाभी अभी पार्टी की बात कर रही थी. अब अपनी अच्छी वाली लेस ब्रा के हुक्स को अपने हाथ पीछे कर के खोल रही थी. जैसे ही हुक्स खुले, उनकी मस्ती भरी चुचियाँ आज़ाद होकर खिलने लगी, और अब मैं अपने आपको काबू मे नही रख सका. कमरे में सिर्फ़ बेडसाइड लॅंप जल रही थी, मैं ने जाकर
उसको बंद कर दिया, और सिर्फ़ खिड़कियों से आती रोशनी में उनको देखता रहा.
भाभी अचानक लाइट बंद हो जाने कुच्छ चौंकी, पर तब तक मैं उनकी चुचियों के पास अपने मुँह को नीचा करके एक निपल को मुँह मे लेकर चाटने लगा. दूसरा निपल मेरे हाथ में, उसको सहला रहा था, धीरे धीरे मसल रहा था. दोनो निपल्स को मैं बारी बारी चूसने लगा.
भाभी हंसते हुए बोली, "अच्छा?!! …… लगता है कि पार्टी में तुमको खूब मज़ा आया ……. खूब गरम हो गये ……… क्यूँ?" वो अपनी चुचि को थोरा उठाकर मेरे मुँह में दे रही थी, और मैं धीरे धीरे, प्यार से चूस रहा था. मैं सर
उठाकर उनके छाती और गर्दन और कंधों पर चूमने लगा, और अपने हाथों में उनकी चुचियों को दबाता रहा. भाभी भी आहें भरने लगी, पर मैं तो उनके सुरहिदार गर्दन को हर जगह चूमता रहा, चाटते रहा. उनके बदन की अपनी खुसबू, और उसके उपर चंदन की खूबसूरत इत्र की खुसबू से मैं मस्ती मे आ रहा था. मैं ने उनकी तरफ देखा और फिर चूमने लगा, इस बार उनके कान को. भाभी खिलखिलती हुई बोली, " ह्म ……. वाहह ……. बहुत अच्छी तरह से चूम रहे हो …… … लगता है वाक़ई तुम बहुत गरम हो गये……. क्यूँ?!" भाभी
की आँखों में फिर वोही शरारत वाली मुस्कुराहट.
मैं ने उनको कंधो से पकड़े हुए उनको बिस्तर पर लिटा दिया. उनके पैर नीचे फर्श को छ्छू रहे थे. उन्होने ने अपने पैर फैलाए रखे, और मुस्कुराती रही. मैने उनपने अंडरवेर उतारा, और उनके पेटिकोट को उपर खींचकर कमर के पास
लपेट कर छ्चोड़ दिया. मेरा लौदा खड़ा हो रहा था, पर अभी उसकी सख्ती बहुत बढ़ने वाली थी. उनके टाँगों के बीच मैं घुटनों पर बैठ गया. अब भाभी नेअपने घुटनों को उपर उठाकर अपनी चूत को खोल दिया. मैं ने गर्दन झुका कर अपना
मुँह उनकी चूत पर रख दिया, उंगलियों से उनकी चूत को प्यार से खोला, और मुँह में कुच्छ थूक बनाते हुए, उनकी चूत के पंखुरे को उपर से नीचे चाता, अच्छी तरह से थूक लगाते हुए, फिर नीचे से उपर, दोनो पंखुरीओं को, और उनके दाने तक जाकर रुका.
भाभी का बदन मस्ती से थोड़ा सिहर उठा, और वो बोली, "तो आज तुम इधर उधर की बातों में बिल्कुल वक़्त नही बर्बाद करना चाहते हो….. क्या? …… बिल्कुल पॉइंट पर आ गये ….. हनन्न?" मैं उसी तरह उनकी चूत को चट रहा था, आहिस्ते से, थूक को
जीभ से ही चारो तरफ मलते हुए. चूत के चारो तरफ जीभ को घुमाता रहा, एक बार चूत के कुच्छ अंदर, फिर चूत के उपर, धीरे धीरे चूत का स्वाद लेता रहा. भाभी अपनी "आहह", "एम्म्म", "ऊऊहह" से बता रही थी मेरे चाटने का उनपर
असर हो रहा था.
पता नही कैसे, पर शायद मेरी भूखी नज़रें और मेरे चाटने और चूसने से नीतू भाभी बहुत जल्दी गरम हो गयी. मैं ने सर उठाकर देखा तो उनकी खूबसूरत चूत झांतों के बीच फूल गयी थी, थूक और अपने रस से चमकती हुई, अपने
फूली हुए पत्तियों को आधी खिली हुई फूल के तरह. कुच्छ ही देर के चूसने के बाद उनका दाना बाहर निकल चुका था, फूलकर तैयार. भाभी अपने आपको बिल्कुल ढीली छ्चोड़कर, घुटनों को उसी तरह उठाए हुए, मुझे देख रही थी. मैं ने अब
अपनी जीभ को काफ़ी बाहर निकालकर, उंगलियों से उनके चूत को फैलाए हुए, उनके दाने पर जीभ के नोक को घुमाने लगा, चाटने लगा. वो धीरे से, पर पूरी मज़े लेती हुई बोली, "आहह!", और अपने दाँतों को कासके बंद कर लिया. उन्होने
देखा कि मेरी नज़र उनके चेहरे पर है. उनकी पलकें अब बंद हो गयी, उनकी गर्दन तन गयी, अपनी जांघों को उन्होने और भी फैला दिया, उनकी चूत और भी खुल गयी थी, और मेरे अपने कंधों और गर्दन पर भाभी के जकड़ते जांघों से मैं सॉफ महसूस कर था कि भाभी के में कितनी गर्मी आ गयी है. मैं ने अब उनके दाने को चाटना छ्चोड़कर, उनके चूत के चारो तरफ उसी तरह से जीभ को नोकिला बनाकर घूमता रहा. उपर से नीचे नही, खुली हुई, फूली हुई चूत के बाहरी पट्टी के
चारो तरफ, फिर उसी तरह से चूत के अंदर की पत्तियॉं के चारो तरफ, चारो तरफ जीभ के नोक से थूक मालता रहा, चारो तरफ पर दाने को नही!. इसी तरह कुच्छ देर तक जीभ घुमाने के बाद, मैं ने देखा कि भाभी उतावली हो रही हैं अपनी चूत के दाने को चटवाने के लिए. वो अपने चूतड़ को उठाने की कोशिश कर रही थी कि दाना मेरी जीभ से रगड़ा खाए, पर मई भी उनको इतनी जल्दी छ्चोड़नेवाला नही था! चारो तरफ घूम आकर, छत कर, पर अब मई ने फिर एक बार दाने को जीभ के नोक से चटा, धीरे धीरे, और फिर दाने के चारो तरफ उसी तह से घूमने लगा.
भाभी को कुच्छ राहत मिली. बॉई, "अहह ……..वाअहह!"
अब मैने भाभी की चूत पर अपना मुँह ठीक से डाल दिया. और उनके दाने को उसी तरह से चूसने लगा जैसे कि चुचि के घुंडी चूस्ते हैं. अ पने होंठों को गीला करके उनको भाभी के फूले हुए दाने के उपर डालकर दाने को अंदर ले लेता, फिर जीभ से चट कर उसके बाहर आ जाता. भाभी की जंघें अब मेरे कंधों पर कड़क होने लगी. भाभी ने कुच्छ अस्चर्य से "ओह्ह्ह?!!" किया, और उन्होने अपने सर को ढीला छ्चोड़कर अपनी चूतड़ को अब उठाने लगी. उनकी साँस तेज हो गयी. पर मैं रुका नही. अपने होंठों को उसी तरह से दाने को प्यार से चट रहा था, उसके चारो तरफ जीभ घुमाता रहा, एक अच्छे रफ़्तार से. भाभी की चूत इस तरह मेरे मुँह में रगड़ रही थी कि मैं उसके हर भाग को एक हद तक रगड़ रहा था. उनकी चूतड़ अब कुच्छ घूमने लगी थी, पर मेरा मुँह उन की चूत से बिल्कुल सटा हुआ, उसका दाना मेरे होंठों के बीच, मेरे जीभ के नोक पर सटा हुआ.. भाभी अब ज़ोर्से सिसकारी लेते हुए बोली, " हाई दैयाआआ, …………..म्म्म्मह ………….ऊऊहह ……कितना मज़ा दे रहे हो……. ऊऊहह!" मुझे लग गया कि अब भाभी कुच्छ देर में झड़ने लगेगी. उनका पूरा बदन सिहरने लगा था, जांघें और भी खुलकर मुझको ज़ोर्से जाकड़ ली थी, और हू अपने कमर को इस तरह घुमाने लगी जैसे
मेरे मुँह को चोद रही हो. मैं ने चूसना जड़ी रखा, उसी तरह, जिस से की रफ़्तार ना टूटे, और कुच्छ ही देर में उनकी साँस, उनके जाँघ और कमर सॉफ बता रहे थे कि वो काबू से बाहर हो रही है. अब वो ठहड़ने वाली नही. मैं ने एक उपाय सोचा.
भाभी को मस्ती की उस उँचाई पर लाने के बाद, मैं रुक गया. बिल्कुल रुक गया. भाभी मज़े में अभी भी छॅट्पाटा रही थी. मैं उठा. कमरे में आती रोशनी मे मेरे लौदा का सूपड़ा चमक रहा था. मैं उठकर भाभी के मुँह के पास अपने कड़े लोड को हिलाने लगा, फिर उनके गुलाबी होंठ पर सूपदे को रगड़ने लगा. भाभी अब शरारती अंदाज़ से मुझे देखती हुई, मेरी आँखों मे देखती हुई, पूछि, "हान्न्न….?!!" वो हाथ पीछे करके अपनी एक तकिया (पिल्लो) को अपने सर के नीचे रख लिया, जिस से उनकी गर्दन को कुच्छ आराम मिले. मेरी तरफ मुस्कुर्ते हुए उन्होने अपने मुँह के अंदर जीभ को थूक से लेपकर मेरे लौदे को आहिस्ते से चटकार गीला करने लगी. वो अपने मुँह से बार बार थूक बनाकर निकलती और फिर प्पोरे लौदे को चूमते हुए, उस पर थूक मालती जा रही थी. फिर सारे थूक को अपनी जीभ से प्यार से चाटने लगी, पूरे लौदे में मले हुए थूक को बिल्कुल साफा कर दिया उन्होने जैसे चॉक्लेट आइस क्रीम के चम्मच को हम चटकार आइस क्रीम के हर बूँद का हम मज़ा लेते हैं. देखनेवाले कोई नही बता सकते कि अभी अभी मेरा लौदा थूक में बिल्कुल डुबोया हुआ था. उन्होने फिर अपने मुँह में थूक बनाकर मेरे लौदे के सूपदे को गीला किया और फिर उसी तरह से चाटना. मुँह मे
लेकर वो मेरे लौदे को इस तरह चाट और चूस रही थी कि वो और भी सख़्त होता गया. मेरा लौदा अब बेहद सख़्त और बेहद गरम! मेरे मुँह से आवाज़ निकलने लगी, हाआंणन्न् …. भाभी ….इसी तरह …….हाआअन्णन्न्!" मेरी मस्ती बहुत ज़ोर्से बढ़ती जा रही थी, अपनी हाथों को ज़ोर्से मुट्ठी बनाए हुए, मैं ने कहा, "
हाआंन्न …….चूऊसो …… हाआन्न …..इसी तरह …. चूवसू…..!"
अब तकिये पर अपने सर को थोड़ा ठीक से सेट करते हुए, भाभी ने अपना मुँह आगे किया, और मेरे पूरे लौदे को अपने मुँह में ले लिया. मुँह की अपनी गर्मी और उसपर गरम थूक, और सबसे बढ़कर भाभी की कॅमाल की जीभ ! थूक मे डुबोया मेरा लौदा अब भाभी के जीभ में बिल्कुल लिपटा हुआ था, और भाभी अपने मुँह को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगी. मेरे पूरे लौदे को चाटती रही, चुस्ती रही, और फिर मेरी चेहरे पर नज़र डाले हुए ही उन्होने सूपदे को ज़ोर्से चुस्कर छ्चोड़ दिया. मेरी मस्ती का पूच्हिए मत! अब वो सिर्फ़ सूपदे को मुँह में लेकर आपने होंठ के अंदर वाले तरफ से चाट रही थी. मेरा लौदा थिरक रहा था, कभी उपर, कभी नीचे, मस्ती में चूर.
`ह्म्म्म्म," वो आह भरी. उनके नज़र में फिर वोही शरारत, मेरी तरफ मुस्कुराते हुए बोली, " है…. बहुत मज़ा आ रहा है …..!"
मैं ने धीरे से कहा, " हाआंणन्न् ….. चूसीए ना …….हान्न्न ….. बहुत मज़ा देती हैं आप!" उन्होने मेरी तरफ गौर से देखा, और मेरे लौदे को फिर से मुँह में ले लिया. उनको सर आहिस्ते से आगे पीछे होता रहा, मेरे लौदे को हौले हौले चूस्ते हुए, थूक मलते हुए, चाटते हुए. उनकी गर्दन बहुत नही घूम रही थी, बस एक या 2 इंच, पर उनके होंठ खुलकर अपने उल्टे साइड से मेरे सूपड़ा को थूक मल कर मज़ा दे रहे थे. और साथ में उनकी जीभ मेरे सूपदे के चीड़ के नीचे
की तरफ़ दबाती रही, चाटती रही.
मैं ने एक गहरी साँस ली, उनकी तरफ़ देखता हुआ. फिर से एक बार यह ख्याल आया की नीतू भाभी वाक़ई में लौदे को चुस्ति या चाटती नही है. ये तो लौदे को अपने मुँह से चोदती हैं, ये तो चोदने का पूरा मज़ा अपने होंठ और जीभ से ही दे देती हैं. वो जानती हैं कि किस तरह एक औरत के मन को बिल्कुल एक प्यारी, चुस्ती हुई चूत बनाई जा सकती है, और जल्दी ही मेरा सूपड़ा उनके मुँह के अंदर उसके उपर वाले भाग को थिरक कर रगड़ने लगा.
मैं समझ गया कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो मैं जल्दी ही झड़ने लगूंगा. मैं ने धीरे से अपने लौदे को उनके मुँह से निकाल लिया, मेरे लौदे और उनके होंठ और जीभ पर मले थूक के कारण लोड्ा निकलते ही "फच" की आवाज़ निकली.
उनकी आँखों में भोखी नज़रों से देखते हुए, मैं अब नीचे घिसकने लगा, अपने पैर सीधे किए, और भाभी के उपर लेटने लगा. भाभी के चेहरे पर एक ताज़्ज़ूब , पर जब मैं अपने हाथों के बल उठा और अपने लौदे के सूपड़ा को उनके चूत
के मुँह पर निशाना लगाने लगा, तो उनकी ताज़्ज़ूब खुशी में बदल गयी. उनकी आहहें अभी चलती रही, साँसें कुच्छ फूली ही रही, और उनकी आँखें मुझे याद दिला रही थी कि अभी भी वो झड़ने के करीब ही हैं, झड़ी नही. उनकी आँखें मुझे यह बार-बार याद दिलाना चाह रही थी. मेरा सूपड़ा उनके फूले हुए, गीली पट्टियों को रगड़ता रहा, और उनकी जंघें बिल्कुल खुल गयी. उन्होने अपने को कुच्छ उपर उठा दिया, और चूतड़ को हल्के से घूमते हुए, उनके चूत का मुँह मेरे सूपदे को अब चूम रहा था, मेरे सूपदे को चारो तरफ घूमते हुए रगड़ रहा था. मैं थोड़ा आगे खिसका. उनकी आँखों में अब चमक आ गयी, मैं ने भी एक लंबे आआआहह के साथ अपना लौदा नीतू भाभी की मखमली चूत के गहराई में घुसेड़ता गया, बिल्कुल अंदर तक. अंदर पहुँचकर, मेरे सूपदे ने भाभी के चूत के एक ख़ास जगह को अपना सर उठाते हुए, कुच्छ अकड़ कर "नमस्ते" किया, और भाभी की चूत ने भी अपनी सिकास्ती को और भी सिंकुर्ते हुए जवाब में "नमस्ते" किए. मेरे लोड्े ने अब धीरे रफ़्तार से ही, पर लंबे, और कुच्छ जोरदार धक्के लगाने शुरू किए. मैं ने अपने गांद को थोड़ा सिंकुर लिया, और जब लौदा बिल्कुल अंदर जाता तो
भाभी और मेरे पेट बिल्कुल मिले होते, पर बराबर एक रफ़्तार से अब मैं भाभी की चूत में लौदा पेलते जा रहा था.
भाभी के चेहरे पर खुशी की चमक थी. अपनी आँखों से मुझे उकसाती हुई, हू बोली, " चोदो …मुझे…… ज़ोर्से … चोदो… इसी तरह… हाआंणन्न्!"
भाभी मेरे एक-एक धक्के का जवाब अपने चूतड़ को घुमा घूमकर मेरे लॉड के जड़ तक चूत के मुँह को उठाकर देती रही. मैं ने उनके चेहरे को देखा, उनके चूत का कुच्छ सिकुरना महसूस किया. मैने अपनने पेट और गॅंड को ज़ोर्से कसने की
कोशिश की, और अब धक्के देते हुए कुच्छ आगे की तरफ घिसकता रहा. आइ से हर धक्के में उनके चूत के दाने को मेरा लौदा रगड़ देता था, घुसेड़ते हुए भी और निकलते हुए भी, और नीतू भाभी के चेहरे पर मुस्कुराहट खिलने लगी.
मैं ने शरती अंदाज़ में पूचछा, "क्यूँ?…. झड़नेवाली हैं?"
भाभी ने उसी मुस्कुराहट के साथ जल्दी जल्दी सर हिलाया, उनकी आँखें मेरे चेहरे पर टिकी रही, उनकी साँसें वैसी ही चढ़ि रही. अब उनकी आँखें बिल्कुल खुल गयी. और जाइए वो किसी नशे में हों, एन्होने अपने होंठ खोले और कुच्छ कहने की
कोशिश की, पर कुच्छ भी बोल नही सकी. एक गहरी साँस लेते हुए वो अपनी चूत के गहराई में मेरे लौदे को जकड़ी हुई थी. उनकी आँखों में सिर्फ़ चाहत, और वे मेरे आँखों पर टिकी रही. अपने नाख़ून से वे मेरे कंधे को थोड़ी खरॉच रही थी, और उनके बाँहों से मेरे कमर की जाकड़ भी कुच्छ जोरदार हो रही थी. उनको मैं चोद्ते रहा, पर मैं ने अपने बायें हाथ के बल कुच्छ उठकर अपने दाहिने हाथ को नीतू भाभी के कमर के नीचे ले जाकर, उनकी पतली कमर और पीठ के बीच उनको ज़ोर्से पकड़ लिया. मेरी बाँहों और जाँघ और लौदे में उस पार्टी के वक़्त से ही इतनी गर्मी थी नीतू भाभी को बिकुल ही नही छ्चोड़ने का दिल कर रहा था, उनके चूत और चुचियाँ और जांघों को बिल्कुल करीब रखा. उनके झांग में थिरकन हो रही थी, और मैं ने पूचछा, " झड़ेंगी अब?…….. झड़ेंगी?!" उनकी मुँह खुली हुई थी, आँखों में चमक, और वो कुच्छ जवाब तो नही दे पाई, पर उनका कमर, उनके हाथ अकड़ गये! वो अपने दाने को मेरे लौदा मे ज़ोर ज़ोर्से रगड़ती रही. और अब सिसकारी लेती रही, "आआहह …….. हाआआन्न्ननणणन्.. ……..मैं झाड़ रही
हूऊंणन्न् ……हाआंन्न…….. उउउइईईईईईई… दैया….रे…..ददाययय्या……..आआआहह … हहााईयइ ….. दैया ….. !!!" मुझे मज़ा तो बहुत आ रहा था, पर मैं अपने आप को बिल्कुल काबू में रखने की कोशिश करता रहा. उनकी आकड़ी हुआ गर्दन और कड़ी हुई कमर देखकर मैं बहुत खुश था, भाभी वाक़ई में बहुत मस्त में थी, और उनको कहता रहा, " और झाड़ीए ………. इसी तरह से ……..मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है……हाआंन्णणन्!" उनकी चूत का जाकड़ और बढ़ गया था, और मुँह से कोई सॉफ बात नही, सिर्फ़ "ऊऊओउउउइईईईईई …….. आआआहह ………. डैय्य्याआआआआआ …….डायय्या रे दैययय्याअ ………..ऊऊओउुउउइईईई….. !!!!!" अब मैं ने अपनी चुदाई की रफ़्तार कुच्छ कम कर दी, ताकि भाभी का मज़ा कुच्छ देरी तक रहे, पर पेलता रहा बिल्कुल अंदर तक. कुच्छ देर में भाभी का पूरा बदन अकड़ कर काँपने लगा, जैसे उनको अपने बदन पर कोई काबू नही हो. उनकी आँखें तो खुली थी, पर उन में खुशी ऐसी कि वो कुच्छ और नही देख सकती थी. जब उनके गर्दन की अकड़न कुच्छ कम हुआ, तो वो अपने सर को आगे करके मुझे अपने बाँहों में ज़ोर्से भींच ली, और मेरे कंधे पर अपने मुँह को खोल कर धीरे धीरे दाँत काटने लगी, चूमती रही, उनका एक हाथ मेरे गाल को सहलाता रहा. भाभी ने बहुत कोशिश करके मुझसे कहा, " आओ तुम भी …… तुम भी मेरे अंदर झड़ो ….. हाअन्न्न्न!"
अपने दोनो हाथों पर उठकर मैं ने भाभी के बदन को खिड़की से आती हुई रोशनी में ठीक से देखा. मेरा लौदा चूत के मुँह के थोड़ा अंदर था. भाभी की मस्त चुचियाँ, उनकी पतली कमर, और उनके नाभि के नीचे उनके झाँत और फूले हुए
चूत की पंखुरियों को देखकर मेरी मस्ती और बढ़ गयी, और अपना रफ़्तार बढ़ते हुए, अब मैं ज़ोर्से लौदा पेलने लगा. एक झटके में चूत के बिल्कुल अंदर तक जाता था, और फिर हाथ के बल कमर को बिल्कुल उठाकर, सूपदे को चूत के मुँह पर ले आता था. बिल्कुल अंदर, बच्चेदनि के मुँह तक, फिर बाहर, चूत के मुँह पर. ज़ोर्से पेलता रहा, चूत तो गीली थी ही, मेरा लौदा पिस्टन की तरह अंदर, बाहर……फिर अंदर, …… फिर बाहर….भाभी चीखने लगी, "आआआआहह ……. हााआअन्न्ननणणन् …. और ज़ोर्से च*डूऊऊ…. हाआंणन्न् ….. इसी तरह ………. चोदते रहो ……..हाआऐययईई दैययय्याआआ ……. बहुत ग़ज़ब के चोदते हो ………….ह्हयाययीयियीयियी ………..चोदो और ज़ोर्साआयययी …..हयाययीयियैयियीयियी रे दैययय्याआअ!"
मुझे लगने लगा कि अब कुच्छ देर में मैं भी झड़ने लगूंगा. मेरे लौदे को लगा कि जैसे भाभी फिर चूत को ज़ोर्से सिकुरकर जाकड़ रही हैं. मैं ने मस्ती में रफ़्तार वही रखी, पर सर को नीचे को तरफ घूमकर देखा. मेरा ख्याल सच निकला.
भाभी अपने पेट को ज़ोर्से सिकुर रही थी, और उनकी चूत मेरे लौदे को जाकड़ रही थी. भाभी के अपने चूत पर किस तरह का कंट्रोल था, क्या बताउ! लगा जैसे लौदे को वो मुट्ठी में लेकर निचोड़ने लगी! मैं अपना पेलने की रफ़्तार रखने की कोशिश तो कर रहा था, पर मज़े को सहना मुश्किल हो गया. भाभी की कमर आहिस्ते आहिस्ते घूमती जा रही थी, चूतड़ चक्कर लगा रही थी, और उनकी चूत अपनी सिकास्ती से मेरे लौदा को दबाते जा रही थी. मेरा लौदा अब मेरे काबू में नही रहा! मैं ने एक लंबी आहह भरी, "अहह….. ………….. …… हाआंन्नणणन् ……. भाभी!" और उधर मेरा लौदा झड़ने लगा, फुहारे की तरह, शुरू में रुक रुक कर, फिर ज़ोर्से… भाभी बोली, "म्म्म्मममम…. …..हाआंणन्न्!" मैं उनके चुचि पर मुँह रखे हुए खलाश होता रहा. भाभी अपनी बाँहों में मुझे ज़ोर्से दबा ली, और उसी तरह मेरे लौदे को निचोड़ती रही, मेरे गरम साँस उनके गर्दन पर लग रहे थे. भाभी कुच्छ देर तक मेरे लौदे को उसी तरह चूत से दबाती रही, और उसकी गरमी को काम करती रही. फिर उन्होनेलौदे को चूत में रहते ही एक आखरी झटका दिया अपने कमर से, और मेरे लौदे का चूत के अंदर थिरकना अब रुक गया.. भाभी ने अपनी टाँगों को मेरे उपर डालकर मेरे कमर को अपने जांघों से जाकड़ ली, और मुझे में गिरफ़्त में रख ली!
हम दोनो ने गहरी साँस ली. मेरे कान के पास मुँह लाकर उन्होने धीरे से पूचछा, "हाआंन्णणन्?" मैं ने भी कहा, "हाआंणन्न्!" भाभी मुस्कुराती हुई बोली, " बहुत ज़बरदस्त चुदाई कि….तुम ने …….!"
मेरे मुँह से कुच्छ भी नही निकला. मेरी सारी गर्मी को नीतू भाभी ने फिलहाल तो निचोड़ लिया था. "अहह!"
कुच्छ देर तक उसी तरह लेट रहने के बाद, नीतू भाभी मेरे नीचे से हटने की कोशिश करने लगी. मैं उनके उपर से हटकर किनारे हो गया. भाभी बाथरूम जाने के लिए उठी, पर बीच मे रुक कर मुझसे कहते गयी, "ओईइ…… तुम तो इसको बिल्कुल भर दिए हो…. मेरी चूत बहती जा रही है…. " और वो जल्दी से बाथरूम को भागी. शायद हुंदोनो का मिला हुआ रस वाक़ई बहते हुए फर्श पर गिरने लगा हो. बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था, और मैं लेते हुए ही उनके पेशाब करने की आवाज़ सुनता रहा. वो देर तक ज़ोर की रफ़्तार से पेशाब करती रही, फिर ज़ोर्से "ऊऊओह" कह कर कमरे में आई. मेरे बगल में बिल्कुल सटकार भाभी अपना हाथ मेरे लौदे पर फिर रख दिया. अपनी चुचियों को मेरे पीठ में धीरे से रगड़ते हुए, भाभी मुझसे बोली, "बहुत मज़ा आया अभी, …….. बिल्कुल अंदर तक हिला दिया तुमने!" और धीरे धीरे
मेरे लौदे को मूठ मारने लगी. मेरा लौदा फिर से थोरा खड़ा होने लगा. भाभी और मैं दोनो करवट से लेते हुए थे. भाभी अपनी जाँघ को मेरे जांघों के उपर डाल दी थी और मेरे लौदे को कभी दबाती, कभी सरकती.
"क्यूँ, पार्टी अच्छी थी ना? ….. तुम बोर तो नही हुए?"
मैं ने कहा, "नही ……. मुझे तो बहुत मज़ा आया! बहुत आछे लोग थे."
"ह्म्म्म …… बहुत गरम होकर लौटे तुम! ….. क्यूँ? …….. मैं भी गरम हो गयी थी …….!"
"जी …. " और मैं ने करवट बदल कर नीतू भाभी के होंठों को अपने मुँह में लेकर उनको चूसने लगा. लौदे पर भाभी के हाथ का जादू मुझे फिर से खूब गरम बना रहा था. आँखों के सामने उस शाम की पार्टी के लोगों की झलक आ जा
रही थी. भाबी और उनके सहेलियों का मज़ाक़, उनके इशारों-इशारों में बातचीत और उनका खिलखिलाना. मैं उन के चुचियों के शेप, उनके चूतड़ के शेप और साइज़ के बारे में ही सोच रहा था, पर भाभी उस पार्टी के माहौल में किसी से भी कम नही लग रही थी. मैं ने भाभी के होंठों को चूस्ते हुए अब उनके दाँतों को अपने ज़ुबान से चाटने लगा, और उसको उनके मुँह में घुसने लगा. भाभी अपनी ज़ुबान मेरे मुँह में डाल रही थी, और मेरे मुँह में चारो तरफ अपनी ज़ुबान फेर रही थी. मैं उनके ज़ुबान को अपनी ज़ुबान में लपेटकर चूस्ता, और फिर वो मेरी ज़ुबान को उसी तरह लपेटकर कभी अपनी तरफ खींचती, तो कभी मेरे मुँह में घुसेड़ती. अपने हाथ से मेरे लौदा को वो उसी तरह तैयार करती रही. सूपड़ा के नीचे, फिर चारो तरफ वो कभी अपने उंगलियों से, कभी अपने नाख़ून से दबाती, मसालती, करोंछती जा रही थी. और हमारे मुँह एक दूसरे के ज़ुबान के खेल में बिल्कुल लीं थे. भाभी नेअपनी ज़ुबान से ढेर सारा थूक मेरे मुँह में डाल दी, और फिर मेरे मून के चारो तरफ, अपनी ज़ुबान घुमा घुमा कर वो मेरे मुँह को चाटने लगी, मेरे ज़ुबान से खेलने लगी, कभी उसको अपनी तरफ खींचती, कभी उसको लपेटकर चारो तफ़ घूमती, और इसी तरह मेरे मुँह का सारा थूक चाट गयी. मैं ने उनके मुँह मे उसी तरह थूक डालकर, उनकी ज़ुबान को चाटने लगा, चूसने लगा, कभी ज़ोर्से, कभी धीरे.
हम दोनो को कोई जल्दिबाज़ी नही थी. एक बार अच्छी तरह से झड़ने के बाद हुंदोनो आराम से मज़ा लेने के मूड में थे. सारी रात जो अपनी थी!
मेरे हाथ अब भाभी के चुचियों पर गये, और उनकी निपल जो कड़क हो गयी थी अब मेरे अंगूठे और उंगलियों के बीच मसलवाने के लिए बेकरार हो रही थी. उसी तरह एक दूसरे के ज़ुबान से चुदाई के धक्के के अंदाज़ में हुंदोनो एक दूसरे के चूस्ते रहे, पर अब मैं उनके चुचि को भी मसलता रहा. मेरे लौदे पर भाभी की पकड़ ओर ज़ोर की हो रही थी, और हमारा चूमना-चूसना जारी रहा. बीच बीच में भाभी सिसकारी लेती, और मुझे भी बढ़ती मस्ती के कारण गहरी साँस लेनी पड़ रही थी. भाभी ने फिर मेरे लौदे को जड़ से सूपदे तक दबाकर देखा, जैसे वो उसकी सख्ती को माप रही हो. मैं अब उनके मुँह से अपनी ज़ुबान निकालकर, उनके होंठों को एक बार ज़ोर्से चुस्कर, उनकी चुचि को मुँह में लेकर चूसने लगा. उनके कड़े हुए घुंडी पर ज़ुबान फेरने लगा, और उसको एक अंगूर की तरह चूसने लगा. भाभी मस्ती में "अहह ……….. हाअन्न्न्न्न्न्न्न' की आहें भरने लगी, पर मेरे लौदे को अपनी मुट्ठी में जकड़े ही रखा.
मैं ने एक हाथ को नीचे की तरफ ले जाकर भाभी के चूत को छ्छू कर देखना चाहा कि उस की क्या हालत है. अभी तक मैं ने उनके चूत पर थोरा भी ख्याल नही दिया था. पर चूत तो बिल्कुल रसिया गयी थी! भाभी हर वक़्त पेशाब करने के बाद चूत को
धोकर तौलिए से पोछ लेती है, पर लगा कि सिर्फ़ चूमने-चाटने और चुचि के मसलवाने से ही चूत बिल्कुल गीली हो गयी. पिछली चुदाई के कारण चूत की पंखुरियाँ तो फूली हुई थी ही. मैं अब अपने हाथों के बल थोरा उठा और भाभी के उपर आने की तैयारी करने लगा, पर भाभी ने कहा, " ह्म्म्म ……. एक मिनिट रूको ……ह्म्म्म्म …. इस तरह आओ."
भाभी ने अपना सर ड्रेसिंग टेबल के आईने की तरफ घूमकर घोरी बनकर अपने चूतड़ को मेरे सामने कर दिए. उनके चूतड़ की गोलाई देखकर मेरी मस्ती और बढ़ गयी. भाभी के कमर और चूतड़ बहुत ही खूबसूरत थे. वैसे भी छरहरा बदन, पर जब वे बैठती थी, तो उनके चूतड़ का आकर पीछे से देखने वाले को बिल्कुल एक सितार के जैसे लगता होगा. बहुत बड़े चूतड़ नही, सिर्फ़ 34 या 35 इंच के (उन्होने एक दिन मुझे बताया था), पर बेहद चुस्त, और जब वो इस तरह अपने पंजों और घुटनों के बल उकड़ू हुईं तो उनकी चूत बीच में मुस्कुराती हुई बिल्कुल मेरे सामने थी. मैं ने चूतड़ को सहलाया और चूमा. उनकी गांद पर उंगली फेरता रहा. भाभी बोल उठी, "अहह ……. हाआंन्ननननणणन्!", और तभी मैं ने अपने हाथों को नीचे से ले जाकर उनकी चुचियों को दोनो हाथ में लेकर मसल्ने लगा,
और साथ साथ उनकी गांद को चूमने और चाटने लगा. गांद और चूत के बीच के जगह को चाट रहा था. और अपनी ज़ुबान को नोकिला बनाकर कभी गांद के छेद पर फेरता तो कभी चूत के थोरा अंदर घुसेड देता. भाभी की सिसकारियाँ अब और बढ़ने
लगी. "आअहह …….. म्म्म्मममम …… हेन्न्नन्न्न्न …… इसी तरहह ….. हाअन्न्न्न्न्न्न!" चूत तो रसिया गयी थी, और पिच्छली चुदाई के कारण अभी भी कुच्छ कुच्छ फूली हुई थी, और इस लिए मेरे ज़ुबान को अंदर ले लेती थी, पर भाभी के गांद के छेद पर मैं सिर्फ़ थूक मालता रहा. बीच बीच में उनकी गांद कुच्छ और भी सिकुर जाती. भाभी के मुँह से आवाज़ आती रही, "ऊवू ….. हाआंन्णणन् ……" मैं ने एक हाथ को नीचे से चुचि से हटाकर चूतड़ पर लाया, उसको मुँह में लेकर थूक
से गीला करके, भाभी के गांद पर फेरने लगा, और कुच्छ अंदर घेसेदने लगा. भाभी सिसकारी लेती रही, " ऊओह …….. हान्णन्न् …… उंगली डाल दो ……….." मैं ने उंगली को करीबन 1 इंच अंदर डालकर उंसको अंदर बाहर करने लगा. भाभी अब अपनी चूतड़ को घुमाने लगी और मेरे उंगली को अंदर लेती रही. मैं भाभी के चूतड़ चूमता रहा, चाटता रहा. "ऊऊऊः. …... हाआंन्णणन् ……. इसी तरह ……… ज़्यादा अंदर नही …….. " भाभी के चूतड़ घूमने से मुझे फिर लगा कि अब वो तैयार हो रही हैं, और उन्होने कहा भी, " अब आ जाओ …….. आ जाओ ….. अपने जगह पे ………" पर मैं उनको कुच्छ और मस्ती में लाना चाहता था. इस लिए मैं ने उनकी गांद में उंगली करते हुए ही उनको जांघों को थोरा फैलाकर, अब उनकी चूत में अच्छी तरह से ज़ुबान को घुसेदने लगा. भाभी की सिसकारी ज़ोर्से चलने लगी, "आआहह …….. हाआंणन्न् ……… बहुत गीली हो रही हूँ ………… अब आ जाओ …….. और नही ले सकती ………अब आ भी जाओ ……हाआंन्णणन्!", पर मैं तो उसी तरह एक छेद में उंगली और
दूसरे छेद में ज़ुबान से उनको चोद्ता रहा. मेरा लौदा तो सख़्त और मस्त था ही, पर मुझे भाभी को तड़पने में बहुत मज़ा आ रहा था. मैं ने ज़ुबान को और भी अंदर डालकर उनके चूत को जमकर चाट रहा था, उनके दाने को भी बार बार चाट लेता था, और सब कुच्छ इस तरह की कोई जल्दबाज़ी नही है. भाभी फिर कराह उठी, "ऊऊहह ………उउउम्म्म्मम …….अब पेलो अपना मूसल जैसा लौदा …….. बहुत गीली हो गयी हूँ ……….आआहह!" पर मुझे तो भाभी को चिढ़ाना था, उनको मस्ती से तड़पाना था. मैं उसी तरह उनकी चूत को चूस्ता रहा, और कुच्छ देर के बाद भाभी बोलने लगी, "ऊऊहह …….. अब अंदर नही आओगे…….. तो मैं ऐसे ही झड़ने… …. लगूंगी ……. हााईयईईई!" यह सुनकर मैं ने चूत चाटने का रफ़्तार कुच्छ कर कुच्छ कम कर दिया और भाभी के चुचियों को फिर से मसालने लगा. चूतड़ को चाटना जारी रखा. भाभी का सर अब बिस्तर था, पे उनका चूतड़ अब घूमता ही नही, मेरे मुँह को धकेल रहा था, पर मैं उनकी चुचि के घुंडीयों को ज़ोर्से मसलता रहा, और उनको तड़प्ते देख कर मज़ा ले रहा था. मैं भाभी को जल्दी नही झड़ने देना चाहता था, पर साथ ही अभी उनको मस्ती के उस हद तक ले जाना चाहता था कि वो झड़नेवाली मस्ती के करीब तो हों, पर झदें नही.
कुच्छ देर के बाद नीतू भाभी अपने आप को काबू में नही रख सकी. मेरे चाटने से उनकी चूत में बहुत खलबली मच गयी, और वो ज़ोर्से सिसकारी लेते हुए अपनी चूतड़ को मेरे मुँह पर ज़ोर्से रगड़ते हुए निढाल सी होती गयी. " ऊऊहह
……दैययय्याआ रे दैयययययाआआअ …….आअहह ………हाऐईयईईईईईईईईईईईई रे ………. दैयय्य्ाआआअ ……… मैं तो गयी …………उउफफफफफफफफफफफफफ्फ़ ………….हूऊऊऊऊ…… आअहह …………हाआाआअन्न्ननननननणणन्!" भाभी ने अपने चूतड़ को बिस्तर गिरा दिया, और सिसकारी लेती ही रही. मैं उसी तरह बिस्तर पर घुटनों के बल बैठे हुए भाभी को देखता रहा. फिर हाँफती रही. मई उनके चूतड़ पर हाथ फेरता रहा, कमर सहलाता रहा. मेरा लौदा सख्ती से बिल्कुल खड़ा था, इस तरह से खड़ा की उसपर
एक बड़े साइज़ के तौलिए को भी आराम से टंगा सकता था.
भाभी कुच्छ सुसताने के बाद मेरी तरफ देखी. और मुस्कुराइ. बोली, "बहुत गीली हो गयी हूँ ……. उफफफफ्फ़ ……… कितने दिनों के बाद इतनी गीली हुई हूँ……..!" मेरे लौदे के तरफ देखकर उनकी आँखें चमकने लगी, "इसको देखो ……… कितना ज़ालिम लौदा है
तुम्हारा! …… हाऐईयइ ……… अभी चखती हूँ इसको मज़ा …………कैसा अकड़ कर खरा है ……… अभी इस बच्चू को बताती हूँ…….." और मेरी तरफ आँखों में आँख डालकर बोली, " अभी तुमको बताती हूँ…….. मैं इतनी जल्दी हारनेवाली नही! ……...
हान्न्न्न्न. ……."
अब भाभी फिर अपने चूतड़ को फिर उठाकर घोरी की तरह अपने मुँह के बैठ गयी, और मुझे इशारा किया कि मैं पीछे से चोदना शुरू करूँ. हम ड्रेसिंग टेबल के बिल्कुल सामने बिस्तर पर थे, और हुंदोनो अपनी चुदाई को आयने में सॉफ सॉफ देख रहे थे. भाभी की नज़र भी मेरी तरह आयने पर थी. मैं ने लौदा को चूत के मुँह पर अच्छी तरह से रगड़ते हुए, चोदना शुरू किया. भाभी की सुरंग वाली चूत में बिल्कुल अंदर ले जाकर, मैं ने अपने गांद को सिकुरकर लौदे को थोरा घुमाने लगा. भाभी की मस्ती इस से खूब बढ़ने लगी, और मेरे लौदे के अंदर घुमाने का जवाब उन्होने अपने चूतड़ को उल्टी तरफ से घूमकर दिया. हम इसी तरह कुच्छ धक्के देते रहे, पर आयने के सामने होने कारण, हुंदोनो की नज़र आयने पर बनी रही. चुदाई हो रही थी, पर हमारा ख्याल आयने पर था. कुच्छ देर तक तो हुमलोगो ने इस तरह चुदाई की, पर वैसा मज़ा नही आ रहा था. भाभी अपने चूतड़ को घुमाना छ्चोड़कर, अपने हाथ को पीछे लाकर मेरे लौदा को पकड़कर रोक लिया, और मुझ से कहा, "ऐसे नही मज़ा आ रहा ……..इधर आओ …….. तुम लेतो!"
मैं सर के नीचे दोनो हाथ लेकर लेट गया, और भाभी अपने टाँगों को फैलाकर मेरे सूपदे के नीचे ठीक से पकड़कर अपनी चूत के दाने को सूपदे से रगड़ती रही. फिर अपने कमर को सीधा करके, अपने चुचियों को थोरा उचकते हुए भाभी मेरे लौदे को अपनी चूत में आहिस्ते आहिस्ते, पर बिना रुके हुए, बिल्कुल गहराई में ले लिया. वो अपनी चूतड़ को थोरा इधर-उधर घुमाई , और फिर अपने सर को नीचे कर के देखी की लौदा बिल्कुल जड़ तक गया है, और अपनी चूतड़ अब चलाने लगी. मैं उनकी कमर पकड़ कर उनके थाप को थोरा सपोर्ट दे रहा था, पर भाभी का खुद का कंट्रोल ज़बरदस्त था. "फच ….फच्छ…" की आवाज़ के साथ उनका थाप चलने लगा. चूत इतनी गीली हो गयी थी हर धक्के के साथ मेरे लौदे के जड़ पर कुच्छ रस लग जाती थी. भाभी एक माहिर चक्की चलाने वाली औरत की तरह मेरे लौदे पर बैठकर अपने चूतड़ की चक्की चलाकर मसाला पीस रही थी. ऐसी पीसने वाली जो बिल्कुल महीन मसाला पीस कर ही खुश हो सकती है! मैं नीचे से उनके थाप का जवाब दे रहा था, हर थाप के बाद अपने कमर को उठाकर, थोरा अपना गांद को सिकुरकर, लौदा को पेलते हुए कुच्छ घुमाता था, और फिर भाभी की जानलेवा चक्की! इस तरह कुच्छ देर तक हुंदोनो एक दूसरे के साथ झूला झूलने के हिलोर देते रहे. पर भाभी फिर ज़ोर्से धक्के देने लगी, और चक्की भी उसी रफ़्तार में. उनकी आवाज़ भी बदल रही थी. मैं ने जब देखा कि भाभी एक बार फिर झड़नेवाली हैं, मैं ने अपने लौदा को इस तरह घुसेड़ना शुरू किया कि वो भाभी के दाने को भी रगड़ता अंदर जाए, और उसी तरह रगड़ते हुए बाहर भी आए. भाभी "हाआअंन्न ….
मैं तो फिर झाड़ रही हूवान्न्न्न.. ……!" कहते हुए मेरे छाती पर सर रखकर निढाल हो कर लेट गयी. उनकी चूत मेरे लौदे को दबा रही थी, और मैं अपने लौदे को उनका मज़ा बढ़ने के लिए चूत के अंदर घुमाता रहा. "हाआंन्न ……. ऊऊहह …. हाआऐ रे दैय्य्याआ …….ऊऊहह! ……. हाआंन्नणणन् ……. ऊवूवुउवूवैयीयियी ….. मेरिइईई चूऊऊओट कित्नीईईइ गिलिइीईईई हो रही है.. …..ऊऊओह ……. ह्हयाययीयीयियी रे ….. दैयया ……..ऊऊओह!"
एक गहरी साँस लेकर नीतू भाभी उसी तरह मेरी छाती को पकड़े लेटी रही. पसीना चल रहा था. बाल बिल्कुल खुल गये थे. माथे पर का टीका लिप गया था. साँस फूली हुई थी. पर कुच्छ देर के जी बाद, भाभी एक बाँह के सहारे अपना सर उठाकर
मेरी तरफ देखी, और झूठा गुस्सा दिखाते हुए पूछि," क्यूँ, तुम अपने को बहुत उस्ताद समझने लगे हो? …… मुझे उस तरह से तडपा रहे थे ……कब से मैं झड़ना चाहती थी ….. और तुम …… बार बार …... मुझे रोक रहे थे ……..उफफफफफफफफफफफ्फ़!"
"आपको अच्छा नही लगा क्या?"
"व्हूऊऊ! …….पागल ……..बहुत मज़ा आया ………बहुत मज़ा करते हो तुम!" वो अपने सर को उठाकर मेरी तरफ देखते हुए बोली. फिर पूछि, " तुम तो नही झाडे हो अभी ना?"
मैं ने सर हिलाकर बताया कि नही.
"मस्ती से झादोगे?"
"हाँ!"
"अच्छा! ……ह्म्म्म्मम …….फिर आओ….. अब झड़ना चाहते हो?
मैं उसी तरह लेटा रहा, पर मैं समझ गया कि अब भाभी कुच्छ शोख अंदाज़ में कुच्छ शुरू करनेवाली हैं. वो अपने दोनो हाथ बिस्तर पर जमाए अपनी चूत को मेरे लौदे पर रखकर धीरे धीरे चूतड़ घुमा रही थी.
"बोलो ….."
"जी……."
वो अपनी शोख और शरारतवाली मुस्कुराहट के साथ पूछि, " क्यूँ ……….झड़ना चाहते हो? ……..हुन्ह ……….बोलो! मुझे तो झड़ने नही दे रहे थे …….और तुम खुद झड़ना चाहते हो! …….. हन्न्नममम ……….बोलो"
" आआहह ……. भाभी…..शायद मैं ……आहह …….समझ नही सका ……. ……..मुझे लगा कि आप को और मज़ा क़राउ!" "हान्णन्न्? ……..तो? …….. भाभी को झड़ने से रोक रहे थे……? …. बोलो!"
" …… इसी लिए …..आअहह ……आपको थोरा रोक रहा था …….आअहह!"
भाभी उपर से तो बहुत कम घूम रही थी, और अभी जोरदार थाप न्ही नही लगा रही, पर अंदर ही अंदर उनकी चूत मेरे लौदा की तरह से दबा रही थी, जैसे चूत के अंदर मेरे लौदा को दूहा जा रहा हो.
`अच्छा ? ……… "थोरा" रोक रहे थे? …… "थोरा" कितना होता है ? . ……अभी बताती हूँ …….तुमको …….!"
भाभी धीरे धीरे चक्की पीसने लगी फिर, पर अभी भी चूत के अंदर लौदे को उसी तरह दबाती रही. मुस्कुराते हुए.
"थोरा…… क्यूँ? "थोरा" कहीं ज़्यादा तो नही हो गया?"
"हो सकता है!"
"अच्छा? …….हो सकता है?" यह कटे हुए भाभी ने अपनी चूत को कुच्छ इस तरह घुमाया कि मेरे पूरा सूपदे, जिसकी सख्ती का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं, चूत के जकड़न में बिल्कुल दब गया. कभी सूपड़ा जकड़न में दबाता था, कभी लौदे के जड़ का हिस्सा, कभी बीच का हिस्सा. बहुत कम ही हिलाते हुए, भाभी अपने चूत की कमाल दिखा रही थी. और मैं मस्ती के नशे में पागल हो रहा था!
मेरे मुँह से आवाज़ निकालने लगी, "ऊऊहह!"
"क्यूँ ……..सही जगह जकड़ा?"
"हान्न्न ………….भाभी!"
"ओह्ह्ह ……तब तो ठीक है ………जगह मिल गया मुझे!" वो फिर उसी तरह से चूत को सिंकुरने लगी, और मेरा लौदा मस्ती में फिर अकड़ने लगा अंदर, और मुझे फिर अपने गांद को सिंकुर कर काबू में रखना परा अपने आप को. " क्यूँ? …….लगता है कि अब झड़नेवाले हो? …….ह्म्म्म्म?"
`जी…"
`अच्छाा??? ……"
वो फिर अपने केहुनि के सहारे उठकरसर नीचे की तरफ देखा. उनके रस में गीला मेरा लौदा का करीब तीन-चौथाई दिख रहा था, भाभी अपने चूतड़ को उपर उठाई थी. वो अपने चूतड़ को कुच्छ और उठाई, जिस से कि आन सिर्फ़ मेरा सूपड़ा उनके
चूत के अंदर था. उनके चूत का मुँह मेरे सूपदे पर उंगती की तरह बैठा था. भाभी अपनी चूतड़ को उसी जगह, उसी तरह रखी रही, सिर्फ़ मेरे सूपदे को जकड़े हुए. "अभी नहियैयी ….."!
"अच्छाअ? ……..अब बोलो ……"थोरा" रुकोगे?" उसी तरह सिर्फ़ मेरे सूपदे को अब भाभी मद्धम मद्धम रफ़्तार में दबाने लगी. मेरे लौदे में ऐसा महसूस हो रहा था कि भाभी की चूत उसको चूम रही है, चारो तरफ चूस रही है. मैं अब आपने आप को काबू में नही रख सकता था. मैं "आआहह …… भाभिईीईईईईईईईईईईई ……….ऊऊहह'" की सिसकारी लगाने लगा.
भाभी मेरी हालत देख रही थी, पर मेरी मस्ती से वो और भी जोशीला होती जा रही थी. "अभी नहियिइ ……" वो गाने के अंदाज़ में बोलती रही, "अभी नहियीई…." और अपना मुँह मेरे करीब ले आई. फिर वो मेरे लौदे को अंदर लेने लगी, आहिस्ते आहिस्ते. एक
बार में एक इंच से ज़्यादा नही ले रही थी, और हर बार लौदे को एक जकड़न से दबा देती थी. भाभी के कमर का कंट्रोल बहुत ही ज़बरदस्त था, और पूरे लौदे को अंदर लेने के बाद वो एक गहरी साँस ली, और मेरे लौदे के जड़ पर अपने चूत के मुँह को बैठा कर रुकी. हमारे झाँत मिले हुए थे. अब शुरू हुई नीतू भाभी की चक्की फिर से. चूतड़ को घुमाती थी, फिर मेरे चेहरे को देखती कि मेरी क्या हालत हो रही है, और मेरे आँखों में आँखें डाले चूत को अंदर ही अंदर सिकोड कर मेरे लौदे को जाकड़ लेती थी.
मेरा लौदा इन हरकतों से चूत के अंदर ही उचक रहा था, बार बार. मेरा कमर हर बार उपर उठ जाता था.
"अभी झड़ना नही… …." वो फुसफुसकर मुझसे बोली, और फिर थाप देने लगी, मेरे आँखों में मुस्कुराहट के साथ देखते हुए. आहिस्ते से. करीबन दो सेकेंड लगती थी उठने में, और फिर दो सेकेंड बैठने में. "अभी नही झड़ना ….. बहुत मज़ा आ रहा है …….. अभी मज़ा करो! ……. ठीक?"
इसी तरह से करीबन 10 मिनिट तक भाभी मुझको मस्ती करती रही. उनका रफ़्तार बिल्कुल एक जैसा रहा, आंड हर थाप एक जगह से उठाकर बिल्कुल उसी जगह पर पहुँचकर रुकता था. हो सकता है, !0 मियनुट नही, 5 मिनिट ही रहा हो या हो सकता है कि 20 मिनिट तक चला हो. सच पूच्हिए तो मैं होश में था ही नही, मेरे लिए उस वक़्त समय का कोई मतलब नही था. "अभी नहियीईई ……..अभी नहियीईईई ……." भाभी गाते हुए मेरे चेहरे पर उंगली फेर्कर प्यार करती रही. बीच बीच में वो अपने चूतड़ को कुच्छ और नीचे दबा देती थी, और मेरा सूपड़ा उनके बच्चेड़नी के मुँह को छ्छू लेता था, और मैं हर बार मस्ती से सिहर जाता था. मेरे चेहरे को देखते हुए, हर सिहरन पर भाभी की मुस्कुरात और खिल जाती थी.
जब उन्होने देखा की मेरा पूरा बदन अकड़ गया है, वो मेरे चेहरे को चूमने लगी, मेरे आँखों पर, मेरे गर्दन पर, मेरे गाल पर.
"तैयार हो?", उन्होने शरारत से पूचछा.
" जी…." मेरी मस्ती ऐसी थी की मैं अपनी आवाज़ को भी नही पहचान सकता था. लगा जैसे कमरे के किसी और कोने से आवाज़ आई है. मेरे टांग बिल्कुल अकड़ गये थे.
"क्यूँ ….. रस का झोला भर गया है?"
"जी…"
वो उसी तरह थाप देती रही, और मेरे चेहरे को सहला रही थी. उनका चेहरा मेरे मुँह के बिल्कुल पास था.
"बहुत मज़ा आ रहा है………आअहह …….हाअन्न्न्न्न! ……है ना?"
मैं अब कुच्छ नही बोल सका. मेरा बदन इस तरह अकड़ गया था, मेरे लौदे में इस तरह की जलन थी, की मेरे लिए "आहह" कहना भी मुश्क़िल होता. मुझे लगा कि अगर अब मैं जल्दी नही झाड़ा तो पता नही क्या हो जाएगा, शायद मैं पागलों की तरह चिल्लाने ना लगूँ! मेरे मुँह से चीख ना निकलने लगे! पर भाभी इस तरह से चक्की चला रही थी कि मैं इसे भी छ्चोड़ना नही चाहता था. किसी तरह से अपने आपको काबू मे रखे रहा, और सोचता रहा कि भाभी भी क्या कमाल की औरत हैं! क्या
मस्ती लेना जानती हैं! क्या मस्ती करना जानती हैं!
यह सब सोचते हुए ही मुझे लगा कि अब मेरा लौदा काबू में नही रहा. मैं झड़ने लगा. एक फुहारा, फिर दूसरा, तीसरा. ज़ोर्से और पूरी गर्मी के साथ.
भाभी बोली, "हन्ंणणन्!"
मैं ने सोचा, " भाभिईीई ……. तुम भी ……ग़ज़ब की चीज़ हो!", और मैं झाड़ता रहा, झाड़ता रहा. भाभी ने फिर से मुझे उकसाया, "हान्णन्न् ……. हान्ंणणन्!"
मेरे मुँह से सिर्फ़ एक लंबी "आआआआहह" निकल सकी.
नीतू भाभी मुस्कुरा रही थी. मेरे कान के पास मुँह लाकर फुसफुसाई, " अब मज़ा लो …..हाआंन्णणन् ……..!" अब उनके कमर की रफ़्तार धीमी हुई, फिर रुक सी गयी. मेरे लौदे को उसी तरह चूत में रखे हुए, भाभी मेरा चेहरा सहला रही थी. मैं ने अपने आँखें खोले तो देखा की भाभी की चेहरे पर खुशी की चमक थी.
"अब तुमको मज़ा चखाई ना? ……..क्यूँ? कैसा लगा?"
"ऊऊहह," मेरे मुँह से निकली, और मैं ने अपने मूँछ और होंठ पर से पसीने को पोच्छा.
"बोलो ……. कैसा लगा?"
मैं ने चेहरे पर से बाल हटाए, और गहरे साँस लेता रहा. बोला, "मज़ा आया… खूब मज़ा!"
"कितना मज़ा? …… ठीक से बताओ!"
मैं ने उनकी आँखों में देखते हुए कहा, "क्या बताउ ……. आप तो मज़े से पागल कर रही थी मुझे. ……… मैं तो होश में नही था!"
"ह्म्म्म्ममम …..इस में कुच्छ बचा भी है?", पूछ्ते हुए भाभी एक दो बार फिर मेरे लौदे को चूत के अंदर दबाने लगी. "और झदोगे?"
"उफफफफफफफ्फ़ ……." मैं ने कहा, "कुच्छ नही बचा है …….इसकी क्या बात करती हैं …… कहा ना, मेरी जान भी नही बची है …….ऊऊओह!"
"अर्रे ……इतनी मस्ती से झड़ने के बाद कुच्छ मज़ेदार बात करो ….कुच्छ गंदी बातें तो करो!"
"ह्म्म्म्मम…"
"कुच्छ तो बोलो," और भाभी ने अपनी चूत को फिर सिनकोड लिया, और लंड का जकड़न बढ़ा दिया.
मैं ने उनके तरफ देखा. वो भी मुझे शोखी के साथ देख रही थी. मैं ने अपने हाथ उठाकर उनके बाल को छुते हुए कहा, " चूस लीजिए ……… अपनी चूत से मेरे लौदे को चूस लीजिए……चलिए!"
"हाँ?"
"हमम्म्मममममम…. एक-एक बूँद निचोड़ लीजिए!"
"अच्छा?"
"हामम्म्ममममम!"
"ऊर्ग्ग्घ्ह्ह्ह…." मैने कहा, "लीजिए और!"
"ह्म्म्म्म …… और भी है?"
" अब नही है… एक एक बूँद तो आप निचोड़ ली!"
"सच में? ….. एक भी बूँद नही?"
भाभी अपनी होंठ भींच रही थी. उनकी आँखों मे मस्ती समाई नही जा रही थी, और वो मुझ से कही, " हाऐ ……….. बहुत मज़ा आया!" मैं अपना एक हाथ उठाकर भाभी के गाल को सहलाया, उनके होंठ पर उंगली फेरा.
भाभी ने अपना सर फिर नीचे करके हल्के से कान को काटने लगी, अपनी गीली चूत की पत्तियॉं और दाने को मेरे लौदा के उपर रगदकर मेरे कान में धीरे से बोली, " क्यूँ?…हो सकता है …कि थोरा सा अभी भी बचा हो ……कहीं किसी कोने में!… क्यूँ…. अपने मुँह से चूस कर निकाल लूँ? ………ह्म्म्म्मममम? ….बोलो!"
तो दोस्तो कैसी लगी ये देवर भाभी की दास्तान
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