मेरी मस्त दीदी--7
ऊपर रज़िया अभी भी सो रही थी लेकिन उसकी पोजीशन थोड़ी बदल गयी थी। अब वह दरवाजे की तरफ पीठ किये अपनी एक टांग मोड़े करवट से लेटी थी। इस पोजीशन में भी उसकी चिकनी दूधिया जांघे पूरी तौर से नुमाया हो रहीं थी। मैं उसके चहरे की तरफ जा के बेड पर बिलकुल चिपक कर लेट गया और धीरे से कंधा पकड़ कर हिलाते हुए पूछा, " रज़िया , मेरी अच्छी सी बहन , आज सोती ही रहेगी क्या ?"
रज़िया थोडा सा ऊ ऊ करके सीधी होकर उसी पोजीशन में ।> लेट गयी। मेरा लंड थोड़ी देर पहले की याद करके भक्क से टनटनाने लगा। मैंने धीरे से उठ कर सबसे पहले अपना पेंट व अंडरवियर उतार दिए। अब मैं बिलकुल नंगा केवल बनियान पहने रजिया के बगल में लेट गया , मेरा लंड बुरी तरह से झटके ले रहा था। मैंने हाथ बढ़ा कर जैसे ही उसकी स्कर्ट को पेट पर पलटा , मैं धक्क से रह गया , थोड़ी देर पहले जो उसने गहरे नीले रंग की चड्डी पहन रखी थी अब उसकी जगह महरून कलर की नेट की चड्डी उसकी चूत से चिपकी थी जिसमे से उसकी चूत की एक एक चीज़ नुमाया हो रही थी। ऐसा लग रहा था की झांटों को रात में ही साफ़ किया गया था क्योंकि चूत पूरी तौर पर चिकनी और साफ़ नज़र आ रही थी। दूसरी बात बदली हुई चड्डी से साबित होता था कि रज़िया सोने का नाटक कर रही है , उसने मेरे नीचे जाने के बाद अपनी चूत पानी से धोकर साफ़ करके चड्डी बदली है क्योंकि सुबह वाली चड्डी इसके चूतरस में बहुत भीग चुकी थी जो इतनी जल्दी किसी कीमत पर सूख ही नहीं सकती थी। दूसरी और सबसे अहम् बात ये थी कि रज़िया का यूँ चुपचाप सोने के नाटक से यह क्लियर भी हो गया कि उसे इन सब बातों में मज़ा आ रहा है लेकिन मैं भी कच्चा खिलाडी नहीं था , इस जैसी पता नहीं कितनी चूतवालियों की चूत को मेरा लंड चोद चुका था सो मैंने ऐसा शो किया जैसे मुझे उसके जागने का पता नहीं है। मैंने उसकी कमर पकड़ कर उसे अपने से इस तरह चिपका लिया कि मेरा लंड उसकी दोनों टांगो के जोड़ो में टिक गया जिसे मैंने एक झटके में अन्दर कर दिया , लंड भी उसकी चूत से रगड़ता हुआ पीछे गांड की तरफ निकल गया। रज़िया ने भी फुल मस्ती में अपनी एक टांग उठा कर मेरी कमर पर रख ली , अब मेरा लंड पूरी तरह से उसकी चूत पे रगड़ता हुआ चूतरस में भीगा मस्त हो चुका था। लेकिन वह अभी तक सोने का नाटक जारी रक्खे थी परन्तु मुझे इससे कोई फ़रक नहीं पड़ रहा था क्योंकि वह बीच बीच में ऊ ऊ s s s करके अपने शरीर को हिला डुला कर धीरे धीरे पूरा मज़ा ले रही थी। मैंने फिर से उसको अपने से चिपकाते हुए उसके चूतडों को मसलते हुए धीरे से उसके कान में पूछा , " अरे रज़िया , आज क्या उठेगी नहीं , तू तो सो के ही रह गयी है आज , बड़ी गहरी नींद सोती है "
रज़िया अपनी कमर हिला कर अपनी चूत मेरे लंड से कस के चार पांच बार रगड़ी जैसे सोते में कर रही हो,फिर ऊ ऊ ऊ कर के मेरे गले में बांह फंसा के अपने होंठ मेरे गालों पे रख कर चुपचाप लेट गयी।
अब मुझ से भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था सो मैंने उसकी टॉप उतारते हुए अपने ऊपर लिटा लिया , अब मैं सीधा बेड पर लेटा था व रजिया मेरे ऊपर पट अपनी चूत से मेरे लंड को दबाये हुई लेटी थी। मेरा लंड उसकी कुँवारी चूत की मस्त खुशबू से दीवाना हुआ झटके ले रहा था। मेरी झांटे और लंड पूरी तौर से रज़िया के चूतरस में भीग चुके थे। मैं तो पहले से ही नीचे से नंगा था , सो मैंने रज़िया की पीठ पर हाथ लेजा कर उसकी ब्रा के हुक खोल कर उतार दी।
रज़िया पूरी तरह से चुदासी होकर मुझसे चिपकी थी लेकिन शायद शरम या संकोच के कारण वो सोने का ड्रामा कर रही थी वरना उसकी चूत मेरे लंड को गपकने को मुंह बाये खड़ी थी।चूँकि मुझे भी पता था कि ये सोने का सिर्फ नाटक कर रही है वरना इसकी चूत की हालत चीख चीख कर कह रही है कि मुझे चोदो व पेल पेल कर फाड़ दो।सो मैंने सबसे पहले रज़िया को धीरे से अपने बगल में लिटा करके उसकी इकलौती चड्डी भी उतार कर उसे नंगा कर दिया व अपनी बनियान उतार कर मैं भी पूरा नंगा होकर उसके बगल में आ कर एक हाथ से उसकी संतरे जैसी चूची को मसलते हुए दूसरी चूची के निप्पल को चुकर चुकर करके चूसने लग गया। रज़िया की आँखे ज़रूर इस वक़्त बंद थीं परन्तु उसके हाथ मेरे बालों में धीरे धीरे चल रहे थे जो ये साबित कर रहे थे कि वह भी पूरी मस्ती में है। उसकी चूत व मेरा लंड दोनों एक दूसरे के मिलन को धडाधड पानी छोड़ रहे थे।मैंने भी अब देर करना ठीक नहीं समझा क्योंकि दो बार पहले ही K L P D हो चुकी थी। मैंने उसे बेड पर चित्त लिटा कर उसकी टांगों को फैला कर अपने फनफनाते लंड का सुपाडा उसकी बुर पे टिका कर घिसना शुरू कर दिया। मेरे ऐसा करते ही रज़िया के मुंह से सिसकारियां निकालनी शुरू हो गयीं वह दोनों हाथों से सिर के नीचे रक्खे तकिये को कस कर पकडे धीरे धीरे छटपटा सी रही थी , उसकी चूत की हालत मेरे लंड से भी बद्तर हो रही थी लेकिन शायद अभी कहीं न कहीं थोड़ी बहुत शरम बाकी थी जिससे वह अपनी आँखे व मुंह दोनों बंद किये थी परन्तु उसकी रह रह कर झटके लेती कमर मानों चिल्ला चिल्ला के मेरे लंड से बिसमिल्लाह की गुज़ारिश कर रही थी। चूंकि मेरी हालत भी बहुत ज्यादा ख़राब हो चुकी थी सो मैं उसकी चूत पर अपने लंड का सुपाडा टिका कर उसके ऊपर लेट गया और उसकी बगलों में हाथ डाल के उसके कन्धों को कस कर पकड़ लिया। नीचे से वह अपनी चूत उचकाने की कोशिश करके मेरे लंड को अन्दर लेना चाह रही थी चूँकि मैंने उसे कस के दबा रक्खा था सो वह कामयाब नहीं हो पा रही थी। मैंने अपनी टांगों से ही उसकी टांगों को पूरी तरह से चौड़ा कर एक ज़ोरदार धक्के के साथ अपना आधे से ज्यादा लंड उसकी चूत में ठांस दिया। एक पल के लिए रुक कर मैंने रज़िया के चहरे की तरफ़ देखा तो दंग रह गया , उसने न तो आँखे खोली और ना मुंह से आवाज़ निकलने दी। हाँ उसकी आँखों से भल भल आँसू निकल के तकिये में ज़ज्ब हो रहे थे और वह अपने दांतों से अपने निचले होंठ को कुचले जा रही थी। मैंने अपने लंड को सुपाडे तक पीछे खींचकर फिर से एक ज़ोरदार धक्का से अबकी बार जड़ तक ठांस दिया। आखिर बहुत बर्दाश्त करने के बाद भी उसके गले से एक भारी सी आह s s s निकल गयी।
" बहुत दर्द हो रहा है भैय्या " वह नीचे से छटपटाते हुए रोते रोते बोली "बस छुटकी बस , हो गया ...... अब दर्द नहीं होगा " मैंने उसके कंधे छोड़ कर अपने दोनों हाथों की उँगलियों की कैंची बनाकर उसमे उसका सिर जकड़ लिया। वह मेरे नीचे पूरी तरह से बेबस दबी थी और सिर्फ़ उसके हाथ आज़ाद थे , जिनसे वह मेरी पीठ अपने बड़े बड़े नाखूनों की मदद से खुरच रही थी। मैं अपनी जीभ से उसके होठों को चाटते हुए भकाभक अपने लंड को उसकी मांसल व मखमली टाइट चूत में अन्दर बाहर कर रहा था।
शायद रज़िया का दर्द अब कुछ कम हो गया था क्योंकि उसने अपनी टांगों को पूरी तरह से चौड़ा कर मेरी कमर के इर्द गिर्द लपेट लिया था व मेरे लंड की हर ठोकर पर नीचे से अपनी चूत उचका कर पूरा का पूरा ठंसवाने की कोशिश कर रही थी। अब मैं उसके सिर को छोड़ कर दोनों हाथो से चूचियों को कस कर मसलते हुए पूरी ताक़त से रज़िया को चोद रहा था। मज़े की अधिकता के कारण रज़िया की आँखे फिर बंद हो चुकीं थी , अब वह टांगों से मेरी कमर को व हाथों से मेरी पीठ को बुरी तरह से जकड़े नीचे से गांड उचका उचका कर चुदवा रही थी।
थोड़ी देर बाद मुझे अपने लंड पर गरमागरम लावा सा महसूस हुआ और रज़िया हाथ पैर ढीले छोड़ कर हांफती हुई टाँगे फैलाये चुदवाती रही लेकिन मुझे अब मज़ा नहीं आ रहा था सो मैंने अपना लंड बाहर निकाल कर पास पड़े टॉप से उसकी चूत व अपने लंड को ढंग से साफ़ करके फिर चोदना शुरू कर दिया। दीदी की तरह रज़िया बिना नाज़ नखरे दिखाए ज़म के चुद रही थी और सबसे बड़ी बात उसने अपने होठों पर तो जैसे फेवीकोल लगा रक्खा था।
लेकिन दोस्तों मेरी आदत है कि मुझे चुपचाप चोदने में बिलकुल मज़ा नहीं आता सो मैं रज़िया को छेड़ते बोला ," कैसा लग रहा है चुदने में , मज़ा आ रहा है या नहीं "
" हूँ . . . ." कहकर उसने फिर आँखे बंद कर लीं। मेरा लंड उसे पूरी ताक़त से चोद रहा था।
" अरे कुछ तो बोलो , जिससे लगे कि मैं किसी ज़िंदा लौंडिया की चूत में अपना लंड पेल रहा हूँ " मैंने उसे फिर छेड़ा
" क्या बोलूँ , अब बोलने को बचा ही क्या है , कल रात में दीदी आज मुझे ...... दोनों को तो आप निपटा चुके है " रज़िया ने उसी तरह आँखे बंद किये ज़बाब दिया , अब वह मुझसे फिर कस कर चिपक गयी थी।
मैंने उसी स्पीड से चोदते हुए कहा ," क्या रज़िया ! ऊपर वाले ने तुम लोगों को चूत इसीलिए दी है कि इसे लंड से चुदवाओ , अरे अगर मैं नहीं चोदता तो कोई और चोदता , चूत बनी ही लंड पिलवाने को है ...... कोई ऐसी चूत बता दो जो चुदी ना हो " रज़िया ने इस बार कोई ज़बाब नहीं दिया बस मुझसे थोडा और कस कर लिपट गयी। मुझे अपना अब स्टेशन नज़र आने लगा था सो पूरे शरीर की ताक़त लंड में इकठ्ठी करके दोनों हाथों से चूचियां मसलते हुए मैं उसे चोदने लगा। अचानक हम दोनों के शरीर ने झटका लेते हुए एक साथ ही पानी निकाल दिया और बेड पर पड़े हांफने लगे। रज़िया इस वक़्त बड़ी नशीली आँखों से मुझे देख रही थी , वह धीरे से करवट लेकर मेरे सीने पर अपना सिर रख मुझसे नंगी ही चिपक कर लेट गयी। यूं तो रज़िया बहुत खूबसूरत नहीं थी लेकिन उसके शरीर की बनावट दीदी से इक्कीस ही थी यह मुझे उसको नंगा देखने पर ही पता लगा। लाइट कलर की बेडशीट पर तकरीबन एक by एक फुट के एरिया में गहरा लाल निशान पड़ा था जो उसकी कुंवारी चूत की सील टूटने की गवाही दे रहा था। पता नहीं क्यों इस वक़्त मुझे रज़िया पर बहुत ही प्यार आ रहा था जो बिना होठों और जीभ का इस्तेमाल किये सिर्फ नज़रों से ही अपनी दिल की बात मुझसे किये जा रही थी। उसकी आँखों में असीम तृप्ति के भाव थे जैसे किसी बहुत दिन के भूखे शख्श को रोटी की जगह कोई रसगुल्ला खिला दे। वह धीरे धीरे मेरे सीने को सहलाती हुई मुझसे चिपकी लेटी थी। मैंने भी उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसते हुए उसे अपने ऊपर लिटा लिया। यह जानते हुए भी कि वह मेरी छोटी बहन है मुझे वाकई इस वक़्त उस पर बहुत प्यार आ रहा था रज़िया की चुदाई के बाद मुझे एक असीम तृप्ति का अनुभव हो रहा था। इतना मज़ा मुझे बहुत दिनों बाद किसी चूत को चोदने में मिला था , वाकई रज़िया की एक एक चीज़ ऊपर वाले ने बड़ी फुर्सत में बनाई थी। चूंकि मैं पूरी रात का जगा हुआ था सो मैं रज़िया को अपने से चिपकाये हुए वैसे ही सो गया। शाम तकरीबन चार बजे भूख के कारण मेरी आँख खुली तो देखा मैं ऊपर वाले कमरे में अकेला ही सो रहा था , रज़िया पता नहीं कब उठ कर नीचे चली गयी थी। मैं भी फटाफट उठ कर नीचे आया तो देखा दीदी नहा धोकर किचिन में कुछ कर रहीं थीं और रज़िया नहा कर अपने गीले बाल ड्रायर से सुखा रही थी। उसने पिंक कलर का टॉप और पर्पल कलर की लॉन्ग स्कर्ट पहन रखी थी। जैसे ही हमारी नज़रें मिलीं वो धीरे से शरमा कर मुस्करा दी , उसके चेहरे पर एक अजीब से सुकून का भाव था व उसका रूप और निखर आया था।
दोस्तों एक बात आप ज़रूर नोट करना कि जो स्त्रियाँ अपने जीवन में भरपूर सम्पूर्ण सेक्स का आनंद लेतीं है अर्थात अपनी चूत को पूरी तरह संतुष्ट होने तक चुदवातीं है उनके चहरे पर एक अलग तरह का नूर होता है व जो इस सुख को नहीं भोग पातीं है या जिनकी चूत प्यासी रह जाती है उनके चहरे की चमक धीरे धीरे चली जाती है। कुल मिला कर उनका चेहरा ही उनकी सेक्स लाइफ का आईना होता है।
कुछ इसी तरह की चमक मुझे रज़िया के चेहरे पर नज़र आ रही थी। मैंने पीछे से जाकर उसकी चूचियों को धीरे से मसलते हुए नाज़ुक गालों को चूम लिया।
" क्यूं अभी भी दिल नहीं भरा क्या ? मौका देख के रात में ऊपर आ जाना , सारे बाकी के अरमान भी पूरे कर लेना लेकिन प्लीज़ अभी नहीं , अभी दीदी है यहां ... वो मुझे कच्चा ही चबा जाएँगी "रज़िया ने बड़े प्यार से मेरे हाथों को अपनी चूचियो से हटाते हुए कहा और एक गाढा सा मीठा चुम्बन मेरे होठों पर जड़ दिया।
चूंकि मैंने इस चुदाई के चक्कर में सुबह से कुछ खाया भी नहीं था सो इस वक़्त मेरे पेट में बड़े बड़े चूहे उछ्ल कूद कर रहे थे।मैंने रज़िया से पुछा ," कुछ खाने को है क्या , बहुत तेज़ भूख लगी है "
" हाँ दीदी ने नमकीन सेवइयां बनाई है क्योंकि अब खाने का वक़्त तो रहा नहीं , पूरा खाना शाम को बना लेंगे। वो आपको जगाने जाने ही वालीं थीं , अभी हम लोगों ने भी नहीं खाया है " रज़िया ने हमेशा की तरह बड़ी शालीनता से ज़बाब दिया
" तो चल जल्दी से सबका खाना लगवा ले , अब भूख बर्दाश्त नहीं हो रही है " मैंने बड़ी बेसब्री से कहा
तभी दीदी हाथ में सेवइयों की प्लेट लिए किचिन से आ गयीं और मुस्कराते हुए बोलीं ," मुझे मालूम था की तू उठते ही भूख भूख चिल्लाएगा "
उन्होंने व्हाइट कलर का वी गले का टॉप और नीले रंग का पेटीकोट पहन रखा था। पेटीकोट का नाडा कमर पर साइड में करके बांधा था जिससे उसके कट से उनकी नंगी कमर का गोरा गोरा थोडा सा हिस्सा नुमाया हो रहा था क्योंकि अन्दर उन्होंने पेन्टी नहीं पहनी थी। यही अगर नार्मल तरीके से बंधा होता तो शायद कमर की जगह उनकी छोटी छोटी झांटे दिखाई दे रहीं होती। कुल मिला कर इस अजीब पहनावे में भी वह गज़ब की सेक्सी लग रहीं थीं , उनकी चाल और बातचीत के अंदाज़ से लग रहा था कि उनकी चूत व गांड में दवा से ज़बरदस्त आराम हुआ है और सबसे बड़ी बात दो में से कोई भी चुदने के बाद भी मुझसे नाराज़ नहीं थीं। सो मैंने अब पूरी तरह से निश्चिन्त होकर उनके हाथ से प्लेट लेकर सेवइयां खानी शुरू कर दीं। तभी अचानक मेरा मोबाइल बजने लगा। मैंने पॉकेट से मोबाइल निकाल कर देखा तो वह अस्पताल से मामू का था। मैंफोन पिक करके बात करने लगा।
" हाँ ....... हाँ ....... ठीक है ........ ठीक है ....... मैं आता हूँ "
बात करने के बाद फोन काट दिया। फिर सारी बात दीदी और रज़िया को बताते हुए बोला ," दीदी ! मामू का फोन था , कह रहे थे कि अम्बाला से मामी की छोटी बहन और उनकी बेटी रात की ट्रेन से लुधियाना पहुँच रहे हैं , दूसरी बात यह कि मामी की हालत में बहुत आराम है जिससे डॉक्टर का कहना है कि अगर हम चाहें तो मामी को आज ही घर ले जा सकते है। अब आप अपनी राय दीजिये कि मामी को आज ही ले आयें या कल ही लाया जाए , वैसे मेरी राय में अगर हम कल लेकर आयें तो वही ज्यादा उचित रहेगा , कहीं कुछ उल्टा सीधा न हो जाये "
चूंकि मैं आज रात दोनों बहनों को खुल कर ढंग से चोदने का मज़ा लेना चाह रहा था जो शायद अम्मी और मामू के आने से संभव न हो पाता और फिर कबाब में हड्डी बनने वैसे भी मामू की साली और उनकी बेटी जो दोनों ही बड़ी चिपकू थीं , आ ही रहीं थीं सो मुझे अपनी रात का मज़ा खटाई में पड़ता दीख रहा था। यही कारण था कि मैं आज मामी को घर नहीं लाना चाह रहा था।
" तू ठीक कह रहा है मुन्ना , अम्मी अगर आज रात वहीँ अस्पताल में ही रहें तो ज्यादा सही रहेगा क्योंकि उनका घाव बहुत ही गहरा था " दीदी ने चिंतित होते हुए कहा
" अगर आप ही मामू को चल कर समझायें तो ज्यादा सही रहेगा " मैंने दीदी को कहा
" ठीक है , अभी पौने छह बजे है , मैं पंद्रह मिनट में तैयार हो जाती हूँ पर ये बता सायरा की ट्रेन कितने बजे की है "
" सात बजे की "
" ओ हो फिर तो वक़्त नहीं बचा है तू मुझे अस्पताल छोड़ कर स्टेशन चले जाना और सायरा व खाला को लेकर वहीं अस्पताल आ जाना। तब तक मैं अम्मी की कंडीशन देख कर डॉक्टर से भी बात कर लेती हूँ "
" ये ठीक रहेगा दीदी " मैंने दीदी से कहा
दीदी अपने पेटीकोट का नाडा खोलते हुए अन्दर वाले कमरे की तरफ कपडे बदलने चलीं गयीं। मैंने घूम कर रज़िया की तरफ देखा , वो मेरी तरफ देख के धीमे धीमे मुस्करा रही थी। मैंने आगे बढ़ कर उसे अपने से कस कर चिपका लिया , उसने भी मेरे गले में अपनी बांहे डाल के बंद आँखों के साथ अपने होंठ मेरी तरफ बढ़ा दिये। मैंने भी उसकी भावनाओ को समझते हुए उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसते हुए उसके चूतडों को मसलना शुरू कर दिया। मेरा लंड मेरी जींस में खडा होकर उसकी नाभि से रगड़ता हुआ मुझे दिक्कत दे रहा था। " आज तो दोबारा शायद संभव नहीं होगा भैय्या , आपने उस बेचारी की बहुत बुरी हालत कर दी है। ज़रा सा जोर लगते ही M C की तरह ब्लीडिंग होने लगती है। सुज़ के कुप्पा हो गयी है बेचारी , इतना दर्द हो रहा है कि पेंटी भी नहीं पहनी जा रही है।" रज़िया मेरे सीने से चिपक कर बोली।
मैंने अब तक की ज़िन्दगी में कई लौंडियों को चोदा था लेकिन पता नहीं क्यों मुझे रज़िया को चोदने के बाद उससे बड़ा लगाव हो गया था। मैंने मन ही मन कुछ निश्चय कर लिया और उसके टॉप में अन्दर हाथ डाल कर ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को मसलते हुए उसके मुंह में अपनी जीभ घुसा दी। तभी पीछे से दीदी के खांसने की आवाज़ आयी तो वह मुझ से छिटक कर अलग हो गयी। दोस्तों दोनों को ही यह अच्छी तरह पता था कि मैं उनकोढंग से चोद चुका हूँ परन्तु शायद शर्म या रिश्तों की उस दीवार के कारण वो एक दूसरे के सामने अनजान शो कर रहीं थीं लेकिन मैंने भी इस दीवार को गिराने की ठान ली थी।
" दीदी , वो जो दवा मैं सुबह ले कर आया था वो अभी दो खुराक बची होगी , उसमे से ज़रा एक खुराक दे दो " मैंने दीदी से खुल कर पूछा
" वो वहीं ड्रेसिंग टेबल पर रखी है " दीदी ने नज़रें चुराते ज़बाब दिया
" लो , ये खा लो , दो तीन घंटे में आराम मिल जायेगा " मैंने दवा की एक खुराक ला कर रज़िया को देते हुए कहा " दीदी , जल्दी चलो लेट हो रहे है "
" चल ना , मैं तो कब से तैयार हो चुकी हूँ " दीदी ने कहा। दीदी ने इस समय डार्क ब्लू जींस और स्काई ब्लू कलर का मैचिंग टॉप पहन रखा था। इस ड्रेस में वो बड़ी धांसू आइटम लग रहीं थीं। मैंने आगे बढ़ कर उनके दोनों होठ चूमते हुये कहा ," हाय हाय , कहीं नज़र न लग जाये "
" चल हट " दीदी का चेहरा लाल हो गया जबकि रज़िया की हँसी निकल गयी। उसको हंसते देख मुझे अन्दर ही अन्दर बहुत अच्छा महसूस हुआ। मैं दीदी को लेकर अस्पताल की तरफ लेकर चल दिया और उन्हें गेट पर ही छोड़ कर स्टेशन की तरफ निकल लिया। स्टेशन पहुँच कर मैंने इन्क्वायरी पर देखा तो पता चला कि ट्रेन राइट टाइम है यानी के पंद्रह मिनट बाद ट्रेन आ रही थी। मैं वहीं स्टेशन पर पंजाबिन लड़कियों की फूली फूली गांड और मस्त बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर टाइम पास करने लगा। थोड़ी देर में प्लेटफार्म पर गाडी आ गयी। मैं जल्दी से S 5 की तरफ बढ़ा जिसमे मामी और सायरा का रिजर्वेशन था। डिब्बे के सामने पहुँच कर मैं उन लोगों को ढूँढने लगा , तभी किसी ने पीछे से मेरे कंधे पे हाथ रख कर कहा ,"मुन्ना भैय्या ! कहाँ देख रहे हो ? हम लोग उतर कर इधर खड़े हैं"
मैंने देखा कि एक बड़ी मस्त तकरीबन 5 फुट 7 इंच हाईट वाली लड़की मेरे पीछे खड़ी थी व उसके साथ एक औरत बुर्के में एक एयर बैग व एक स्काई बैग लिए खड़ी थी। मेरे चेहरे पे असमंजस के भाव देख कर वह फिर बोली ,"क्या भैय्या ! पहचाना नहीं ? अरे मैं सायरा ....... और ये मम्मी"
"ओहो ! कैसे पहचानूं ? मामी बुरके में है और तू इत्ती बड़ी हो गयी है,पिछली बार जब मिली थी तो फ्राक पहना करती थी" मैंने उसकी शर्ट से झांकतीं बड़ी बड़ी चूचियों को घूरते हुए कहा
"आय हाय आय ! जैसे पिछली बार ज़नाब ऐसे ही छः फुटा थे,सिर्फ तीन साल ही मुझसे बड़े हो" सायरा मेरे सीने पे मुक्का मारती बोली
"अरे तुम दोनों यहीं लड़ते ही रहोगे या अब चलोगे भी" मामी ने कहा हाँ हाँ चलो " कह कर मैंने कुली को बुला कर उसे सामान थमा दिया और हम लोग स्टेशन के बाहर की तरफ चल दिए। मेरी निगाह सायरा की फूली हुई गांड और उसकी खरबूजे जैसी चूचियों से हट नहीं रही थी। मुझे ऐसे देखते सायरा बोली ,"किधर ध्यान है ज़नाब का"
"कहीं नहीं,तुझी से तो बात कर रहा हूँ"
"हाँ , ज़नाब बात तो मुझ से कर रहे है लेकिन नज़रें कहीं और भटक रहीं है"
"अरे नज़र तो नज़र है,जहां अच्छी चीज़ दिखाई देगी वहीं तो टिकेगी"
मैं उसकी बोल्डनेस से भली भांति परिचित था और उसकी यही आदत मुझे बचपन से पसंद भी थी।
"ओहो , परन्तु इसका मतलब ?"
"मतलब क्या ये तुम्हारी बात का ज़बाब था"
"आपकी गोल मोल बात करने की आदत गयी नहीं,अरे यार क्यू लड़कियों जैसा शरमाते हो। खुल के कहो ना कि सायरा तू मुझे अच्छी लग रही है"
"वाह वाह अपने मुंह ही अपनी तारीफ़,कभी आईना देखा है,बिलकुल बंदरिया लगती है"
"अच्छा जी ! मैं बंदरिया लगती हूँ। शायद तभी मेरे शरीर को इतनी देर से घूर रहे हो जैसे नज़रों से ही घोल के पी जाओगे"
इसी तरह नोक झोंक करते हम स्टेशन के बाहर आ गए। मामी थोडा धीरे चल रहीं थी सो बाहर आकर मैंने कुली को पैसे दिए और मामी का इंतजार करने लगे। मामी के आते ही मैंने उनसे कहा ,"आप दोनों के लिए मैं ऑटो किये दे रहा हूँ क्योंकि मेरे पास बाइक है"
" नहीं मैं तो आपके साथ ही बाइक से चलूंगी " सायरा बच्चों सी जिद करती बोली
" ऐसा करते है मुन्ना ! इसे तू बाइक पर ही बिठा ले और हम लोग पहले हॉस्पिटल ही चलते है , दीदी को देखे बिना मुझे सुकून नहीं मिलेगा "
" ठीक है , ऐसा ही करते है " मैंने ज़बाब दिया मामी को ऑटो में बिठा कर मैंने स्टैंड से बाइक निकाल कर स्टार्ट की और सायरा को साथ लेकर हम अस्पताल के लिए चल दिए। सायरा ने पीछे से मुझे पकड़ कर अपनी ठुड्डी मेरे कंधे पर और अपने दोनों हाथ मेरी जाँघों पर रख लिए। इस पोजीशन में उसकी चूचियां मेरी पीठ में धंसी जा रहीं थीं।
" कैसे बैठी हो , सब देख रहे है ..... हम घर के अन्दर नहीं है सायरा , सड़क पर है। ऐसा लग रहा है कि तुम मेरी बहन नहीं कोई गर्ल फ्रेंड हो " मैंने सायरा से फुल मज़ा लेते हुए कहा
" ओ हो तो ज़नाब अगर घर के अन्दर हो तो मुझे ऐसे चिपका कर रक्खेंगे " सायरा मेरी पीठ से और लिपटते बोली
" घर में अगर तुम यूं लिपटना चाहो तो कम से कम दूसरे मज़ा लेने वाले तो नहीं होंगे , यहां सड़क पर सब मज़ा ले रहे है "
" वाह सिर्फ चिपक के बैठने से ही दूसरों को मज़ा आ जाता है ? और फिर जब मज़ा आने वाला काम करेंगे तो फिर उनका क्या हाल होगा " सायरा हंसती हुई बेबाकी से बोली
तभी अस्पताल आ गया और मैंने सायरा को उतार कर बाइक स्टैंड पर लगा दी। हम सब अन्दर जा कर मामी के रूम में पहुँच गए। वहां मामी को डॉक्टर ने ड्रेसिंग करके तैयार कर दिया था लेकिन दीदी ने घाव को देख कर आज रात और यहीं हॉस्पिटल में रुकने की कह दी थी। हालांकि मामी घर जाने की बहुत जिद कर रहीं थीं लेकिन हम लोगों के समझाने पर एक रात और रुकने को मान गयीं थीं। छोटी मामी ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह तो हॉस्पिटल में ही रुकेंगी और कल सबके साथ ही घर जाएँगी। अंत में यह तय हुआ कि मैं दीदी और सायरा को लेकर घर चला जाऊं बाकी वो तीनो लोग वहीं मामी के साथ हॉस्पिटल में रुकेंगे। चूंकि सायरा का सामान भी था और लोग भी तीन थे अतः मैंने ऑटो करना ही मुनासिब समझा। बाइक वहीं हॉस्पिटल में मामू के पास छोड़ कर हम तीनों ऑटो से घर चल दिए।
ऑटो में सायरा बीच में बैठी थी और मेरी बाजू से उसकी लेफ्ट चूची दब रही थी , उसने भी अपना एक हाथ मेरी जांघ पर बेफिक्री से रक्खा हुआ था। जब भी कोई हल्का सा झटका लगता तो मैं जानबूझ कर अपनी बाजू से उसकी चूची मसल देता था लेकिन वह इन सब बातों से अनजान मस्त बैठी थी।
घर पहुँच कर मैंने ऑटो का पेमेंट करके सामान अन्दर रखवा दिया। सायरा रज़िया के गले लग के खूब मस्ती से बतिया रही थी। अन्दर आ कर मैंने घडी देखी तो टाइम साढ़े नौ से ऊपर ही हो रहा था।
" दीदी , साढे नौ बज चुके है , बड़ी भूख लगी है। आप लोग फ़टाफ़ट खाना लगाओ तब तक मैं चेंज करके आता हूँ " कह कर मैं अन्दर कमरे में चला गया। अन्दर जाकर मैंने अपने लिए एक लार्ज व्हिस्की का पैग बनाया और ख़तम करके अपने कपडे उतार दिए। मैं सिर्फ अंडरवियर व बनियान में था कि तभी सायरा और रज़िया अन्दर आ गयीं। उन्हें देख कर मैं झेंप कर अपनी लुंगी तलाशने लगा क्योंकि जैसा कि आप सभी जानते ही है की इन रेडीमेड अंडरवियर में लंड गांड सब क्लियर पता चलती है।
" वाह भाई वाह , अकेले अकेले ही शौक फ़रमाया जा रहा है।" सायरा ने मेरा व्हिस्की का गिलास और बोतल देख कर कहा
" अरे मुझे क्या पता था कि तू पीती है , तेरे लिए भी बनाऊ क्या ?" मैंने लुंगी उठा के लपेटते हुए कहा
" नहीं नहीं , मैं तो मज़ाक कर रही थी , मैं ये सब नहीं लेती हूँ "
" आहा , तो मैडम फिर क्या लेती है " मैंने सायरा के गालों पर चिकोटी काटते शरारत से पूछा
" अरे लेने वाली चीज़ मैं सब ले लेती हूँ , ये सब फ़िज़ूल की चीज़ें थोड़े ही लेती हूँ "
तब तक मैं अपना एक दूसरा लार्ज पैग बना कर पीने लगा।
" चल चल सायरा , तू भी फ़टाफ़ट फ्रेश होकर चेंज कर ले फिर हम सब खाना खाते हैं , मुझे बहुत तेज़ भूख लगी है " मैंने सायरा को बोला।
वो लोग कमरे से बाहर चले गए और मैं भी एक पैग और लेकर बाहर किचिन के पास लाबी में पड़ी डाइनिंग टेबल पर बैठ गया जिस पर दीदी खाना लगा रहीं थीं। दीदी ने अपनी वही ड्रेस यानी पेटीकोट और टॉप पहन रखा था। तभी रज़िया और सायरा भी चेंज करके डाइनिंग टेबल पर आ गये। सायरा ने एक ढीला ढाला गाउन पहन रखा था जिसमे उसकी चुचियों की तनी हुई घुन्डियाँ साफ़ साफ़ उठी हुई नज़र आ रहीं थी।
" ये क्या पहन रखा है , इस ड्रेस में तेरा सब कुछ दिखाई दे रहा है " दीदी ने धीरे से सायरा को टोका
" अरे दीदी, सारा दिन बॉडी कसी रहती है इसलिए रात में इसे बिलकुल फ्री करके हमें सोना चाहिए " सायरा बेझिझक बोली
मेरा लंड तो वैसे भी उसकी चुचियों की घुंडियों को देख देख कर अंगड़ाईयां ले रहा था लेकिन ये सुन कर कि उसने चड्डी भी नहीं पहनी है , वह बुरी तरह फनफना उठा। मैंने टांग पर टांग चढ़ा कर अपने लंड को उसमे कस कर दबा लिया। हालांकि मेरी उसको चोदने की तबियत हो रही थी लेकिन मैं यह अभी शो नहीं करना चाह रहा था। मैं उसी की तरफ से किसी पहल का इंतज़ार कर रहा था फिर तो उसकी चूत में अपना लंड पेल के उसे चोद ही देना था। वैसे उसकी एक्टिविटी से लग रहा था कि सायरा उस टाइप की लड़की है जो ये सोचतीं है की जब चुदाई करने से लड़कों के लंड का कुछ नहीं बिगड़ता तो लड़कियों की चूत का क्यों बिगड़ेगा। चूंकि खाना लग चुका था सो हम सब खाना खाने लगे लेकिन मेरी निगाह बार बार सायरा की चूचियों की तरफ ही उठ जा रही थी जिसे सभी बखूबी समझ रहे थे क्योंकि में बीच बीच में अपने फनफनाते लंड को भी एडजस्ट कर रहा था। खाना खाकर रज़िया ऊपर वाले कमरे में चली गयी। हालांकि वह इतनी बुरी तरह चुदने के बाद भी चुप थी , दीदी की तरह हाय हाय नहीं कर रही थी फिर भी मैं उसकी चूत की हालत समझते हुए आज उसे छेड़ना नहीं चाहता था। एक रात के रेस्ट के बाद उसकी चूत की हालत भी सुधर ही जानी थी और फिर मेरे लंड के लिए कौन सी चूतों की कमी थी , यहाँ लुधियाना आने के बाद तो मेरे लंड को वैसे भी बिलकुल रेस्ट नहीं मिला था , हर वक़्त चूत में ही घुसा रहता था। दो दो कुंवारी चूतों की सील तो खोल ही चुका था ऊपर से खुदा ने सायरा को और भेज दिया , वैसे मैं उसकी चूत के बारे में डाउट में था क्योंकि इतनी बोल्ड लड़की अपनी चूत में बिना लंड पिलवाये नहीं मान सकती। ज़रूर उसने लंड का मज़ा ले लिया होगा। खैर , दीदी व सायरा भी खाने से फ्री होकर लेटने चल दीं तो मैंने फोर्मली पूछा , " आज कैसे लेट बैठ होगी "
" हम दोनों तो अन्दर वाले कमरे में लेट जाते है , बैठने का काम आप पूरी रात शौक से फरमा सकते हैं " सायरा ने मेरी बात पर चुटकी ली
" वाह भई वाह , रज़िया ऊपर और तुम दोनों अन्दर वाले कमरे में .......... मैं अकेले यहाँ क्या करूंगा।" मैंने टोका
" आप ज़नाब , कांग्रेस आई के सहयोग से रात काटिए ( कांग्रेस आई का निशान हाथ का पंजा है ) " सायरा शोखी से आँखे नाचते बोली
" अजी अगर हम कांग्रेस का सपोर्ट लेंगे तो आपको भी तो रात काटने को उसी का सपोर्ट लेना पड़ेगा " मैंने भी उसी के टोन में ज़बाब दिया
" हाँ यार , इससे बढ़िया तो ये रहेगा कि हम दोनों ही मिलजुल के सरकार बना ले " सायरा मेरी बनियान की स्ट्रिप्स में अपनी उंगली फंसाकर धीरे से बोली
" मुझे कब ऐतराज है "
" हाँ जी , वो तो तुम अपना डंडा लिए झंडा फहराने को बिलकुल तैयार दिखाई दे ही रहे हो " सायरा मेरी लुंगी में काफी उभरे हुए लंड को देख कर बोली
वैसे तो दोस्तों मैंने अपनी इस छोटी सी लाइफ में कई चुदासी चूतों को चोदा और कई चूतों को थोडा ज़बरदस्ती करके भी चोदा था लेकिन ऐसी बोल्ड चूत खुल के चुदवाने को उतावली आज पहली बार देख रहा था। हम लोगों को खुसुर पुसुर करते देख दीदी ने मामू के कमरे में सोने का ऐलान कर दिया। वह भी समझ चुकीं थी कि हम दोनों ही चुदाई प्रोग्राम किये बिना नहीं मानेंगे सो उन्होंने हम लोगों को अकेला छोड़ देने का सोचा लेकिन सायरा ने दीदी की बात काटते हुए कहा ," क्या दीदी , कितने दिन बाद तो मिले है , आप भी हमारे साथ ही लेटिये ना ...... ढेर सारी बातें करेंगे " फिर मेरी तरफ देखकर मुस्करा दी। हालांकि मेरे और दीदी के बीच अब कोई पर्दा नहीं था फिर भी मेरी समझ में उसका प्लान नहीं आ रहा था क्योंकि वह तो हमारे इस चुदाई रिलेशन से बिलकुल ही अनजान थी।
ऊपर रज़िया अभी भी सो रही थी लेकिन उसकी पोजीशन थोड़ी बदल गयी थी। अब वह दरवाजे की तरफ पीठ किये अपनी एक टांग मोड़े करवट से लेटी थी। इस पोजीशन में भी उसकी चिकनी दूधिया जांघे पूरी तौर से नुमाया हो रहीं थी। मैं उसके चहरे की तरफ जा के बेड पर बिलकुल चिपक कर लेट गया और धीरे से कंधा पकड़ कर हिलाते हुए पूछा, " रज़िया , मेरी अच्छी सी बहन , आज सोती ही रहेगी क्या ?"
रज़िया थोडा सा ऊ ऊ करके सीधी होकर उसी पोजीशन में ।> लेट गयी। मेरा लंड थोड़ी देर पहले की याद करके भक्क से टनटनाने लगा। मैंने धीरे से उठ कर सबसे पहले अपना पेंट व अंडरवियर उतार दिए। अब मैं बिलकुल नंगा केवल बनियान पहने रजिया के बगल में लेट गया , मेरा लंड बुरी तरह से झटके ले रहा था। मैंने हाथ बढ़ा कर जैसे ही उसकी स्कर्ट को पेट पर पलटा , मैं धक्क से रह गया , थोड़ी देर पहले जो उसने गहरे नीले रंग की चड्डी पहन रखी थी अब उसकी जगह महरून कलर की नेट की चड्डी उसकी चूत से चिपकी थी जिसमे से उसकी चूत की एक एक चीज़ नुमाया हो रही थी। ऐसा लग रहा था की झांटों को रात में ही साफ़ किया गया था क्योंकि चूत पूरी तौर पर चिकनी और साफ़ नज़र आ रही थी। दूसरी बात बदली हुई चड्डी से साबित होता था कि रज़िया सोने का नाटक कर रही है , उसने मेरे नीचे जाने के बाद अपनी चूत पानी से धोकर साफ़ करके चड्डी बदली है क्योंकि सुबह वाली चड्डी इसके चूतरस में बहुत भीग चुकी थी जो इतनी जल्दी किसी कीमत पर सूख ही नहीं सकती थी। दूसरी और सबसे अहम् बात ये थी कि रज़िया का यूँ चुपचाप सोने के नाटक से यह क्लियर भी हो गया कि उसे इन सब बातों में मज़ा आ रहा है लेकिन मैं भी कच्चा खिलाडी नहीं था , इस जैसी पता नहीं कितनी चूतवालियों की चूत को मेरा लंड चोद चुका था सो मैंने ऐसा शो किया जैसे मुझे उसके जागने का पता नहीं है। मैंने उसकी कमर पकड़ कर उसे अपने से इस तरह चिपका लिया कि मेरा लंड उसकी दोनों टांगो के जोड़ो में टिक गया जिसे मैंने एक झटके में अन्दर कर दिया , लंड भी उसकी चूत से रगड़ता हुआ पीछे गांड की तरफ निकल गया। रज़िया ने भी फुल मस्ती में अपनी एक टांग उठा कर मेरी कमर पर रख ली , अब मेरा लंड पूरी तरह से उसकी चूत पे रगड़ता हुआ चूतरस में भीगा मस्त हो चुका था। लेकिन वह अभी तक सोने का नाटक जारी रक्खे थी परन्तु मुझे इससे कोई फ़रक नहीं पड़ रहा था क्योंकि वह बीच बीच में ऊ ऊ s s s करके अपने शरीर को हिला डुला कर धीरे धीरे पूरा मज़ा ले रही थी। मैंने फिर से उसको अपने से चिपकाते हुए उसके चूतडों को मसलते हुए धीरे से उसके कान में पूछा , " अरे रज़िया , आज क्या उठेगी नहीं , तू तो सो के ही रह गयी है आज , बड़ी गहरी नींद सोती है "
रज़िया अपनी कमर हिला कर अपनी चूत मेरे लंड से कस के चार पांच बार रगड़ी जैसे सोते में कर रही हो,फिर ऊ ऊ ऊ कर के मेरे गले में बांह फंसा के अपने होंठ मेरे गालों पे रख कर चुपचाप लेट गयी।
अब मुझ से भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था सो मैंने उसकी टॉप उतारते हुए अपने ऊपर लिटा लिया , अब मैं सीधा बेड पर लेटा था व रजिया मेरे ऊपर पट अपनी चूत से मेरे लंड को दबाये हुई लेटी थी। मेरा लंड उसकी कुँवारी चूत की मस्त खुशबू से दीवाना हुआ झटके ले रहा था। मेरी झांटे और लंड पूरी तौर से रज़िया के चूतरस में भीग चुके थे। मैं तो पहले से ही नीचे से नंगा था , सो मैंने रज़िया की पीठ पर हाथ लेजा कर उसकी ब्रा के हुक खोल कर उतार दी।
रज़िया पूरी तरह से चुदासी होकर मुझसे चिपकी थी लेकिन शायद शरम या संकोच के कारण वो सोने का ड्रामा कर रही थी वरना उसकी चूत मेरे लंड को गपकने को मुंह बाये खड़ी थी।चूँकि मुझे भी पता था कि ये सोने का सिर्फ नाटक कर रही है वरना इसकी चूत की हालत चीख चीख कर कह रही है कि मुझे चोदो व पेल पेल कर फाड़ दो।सो मैंने सबसे पहले रज़िया को धीरे से अपने बगल में लिटा करके उसकी इकलौती चड्डी भी उतार कर उसे नंगा कर दिया व अपनी बनियान उतार कर मैं भी पूरा नंगा होकर उसके बगल में आ कर एक हाथ से उसकी संतरे जैसी चूची को मसलते हुए दूसरी चूची के निप्पल को चुकर चुकर करके चूसने लग गया। रज़िया की आँखे ज़रूर इस वक़्त बंद थीं परन्तु उसके हाथ मेरे बालों में धीरे धीरे चल रहे थे जो ये साबित कर रहे थे कि वह भी पूरी मस्ती में है। उसकी चूत व मेरा लंड दोनों एक दूसरे के मिलन को धडाधड पानी छोड़ रहे थे।मैंने भी अब देर करना ठीक नहीं समझा क्योंकि दो बार पहले ही K L P D हो चुकी थी। मैंने उसे बेड पर चित्त लिटा कर उसकी टांगों को फैला कर अपने फनफनाते लंड का सुपाडा उसकी बुर पे टिका कर घिसना शुरू कर दिया। मेरे ऐसा करते ही रज़िया के मुंह से सिसकारियां निकालनी शुरू हो गयीं वह दोनों हाथों से सिर के नीचे रक्खे तकिये को कस कर पकडे धीरे धीरे छटपटा सी रही थी , उसकी चूत की हालत मेरे लंड से भी बद्तर हो रही थी लेकिन शायद अभी कहीं न कहीं थोड़ी बहुत शरम बाकी थी जिससे वह अपनी आँखे व मुंह दोनों बंद किये थी परन्तु उसकी रह रह कर झटके लेती कमर मानों चिल्ला चिल्ला के मेरे लंड से बिसमिल्लाह की गुज़ारिश कर रही थी। चूंकि मेरी हालत भी बहुत ज्यादा ख़राब हो चुकी थी सो मैं उसकी चूत पर अपने लंड का सुपाडा टिका कर उसके ऊपर लेट गया और उसकी बगलों में हाथ डाल के उसके कन्धों को कस कर पकड़ लिया। नीचे से वह अपनी चूत उचकाने की कोशिश करके मेरे लंड को अन्दर लेना चाह रही थी चूँकि मैंने उसे कस के दबा रक्खा था सो वह कामयाब नहीं हो पा रही थी। मैंने अपनी टांगों से ही उसकी टांगों को पूरी तरह से चौड़ा कर एक ज़ोरदार धक्के के साथ अपना आधे से ज्यादा लंड उसकी चूत में ठांस दिया। एक पल के लिए रुक कर मैंने रज़िया के चहरे की तरफ़ देखा तो दंग रह गया , उसने न तो आँखे खोली और ना मुंह से आवाज़ निकलने दी। हाँ उसकी आँखों से भल भल आँसू निकल के तकिये में ज़ज्ब हो रहे थे और वह अपने दांतों से अपने निचले होंठ को कुचले जा रही थी। मैंने अपने लंड को सुपाडे तक पीछे खींचकर फिर से एक ज़ोरदार धक्का से अबकी बार जड़ तक ठांस दिया। आखिर बहुत बर्दाश्त करने के बाद भी उसके गले से एक भारी सी आह s s s निकल गयी।
" बहुत दर्द हो रहा है भैय्या " वह नीचे से छटपटाते हुए रोते रोते बोली "बस छुटकी बस , हो गया ...... अब दर्द नहीं होगा " मैंने उसके कंधे छोड़ कर अपने दोनों हाथों की उँगलियों की कैंची बनाकर उसमे उसका सिर जकड़ लिया। वह मेरे नीचे पूरी तरह से बेबस दबी थी और सिर्फ़ उसके हाथ आज़ाद थे , जिनसे वह मेरी पीठ अपने बड़े बड़े नाखूनों की मदद से खुरच रही थी। मैं अपनी जीभ से उसके होठों को चाटते हुए भकाभक अपने लंड को उसकी मांसल व मखमली टाइट चूत में अन्दर बाहर कर रहा था।
शायद रज़िया का दर्द अब कुछ कम हो गया था क्योंकि उसने अपनी टांगों को पूरी तरह से चौड़ा कर मेरी कमर के इर्द गिर्द लपेट लिया था व मेरे लंड की हर ठोकर पर नीचे से अपनी चूत उचका कर पूरा का पूरा ठंसवाने की कोशिश कर रही थी। अब मैं उसके सिर को छोड़ कर दोनों हाथो से चूचियों को कस कर मसलते हुए पूरी ताक़त से रज़िया को चोद रहा था। मज़े की अधिकता के कारण रज़िया की आँखे फिर बंद हो चुकीं थी , अब वह टांगों से मेरी कमर को व हाथों से मेरी पीठ को बुरी तरह से जकड़े नीचे से गांड उचका उचका कर चुदवा रही थी।
थोड़ी देर बाद मुझे अपने लंड पर गरमागरम लावा सा महसूस हुआ और रज़िया हाथ पैर ढीले छोड़ कर हांफती हुई टाँगे फैलाये चुदवाती रही लेकिन मुझे अब मज़ा नहीं आ रहा था सो मैंने अपना लंड बाहर निकाल कर पास पड़े टॉप से उसकी चूत व अपने लंड को ढंग से साफ़ करके फिर चोदना शुरू कर दिया। दीदी की तरह रज़िया बिना नाज़ नखरे दिखाए ज़म के चुद रही थी और सबसे बड़ी बात उसने अपने होठों पर तो जैसे फेवीकोल लगा रक्खा था।
लेकिन दोस्तों मेरी आदत है कि मुझे चुपचाप चोदने में बिलकुल मज़ा नहीं आता सो मैं रज़िया को छेड़ते बोला ," कैसा लग रहा है चुदने में , मज़ा आ रहा है या नहीं "
" हूँ . . . ." कहकर उसने फिर आँखे बंद कर लीं। मेरा लंड उसे पूरी ताक़त से चोद रहा था।
" अरे कुछ तो बोलो , जिससे लगे कि मैं किसी ज़िंदा लौंडिया की चूत में अपना लंड पेल रहा हूँ " मैंने उसे फिर छेड़ा
" क्या बोलूँ , अब बोलने को बचा ही क्या है , कल रात में दीदी आज मुझे ...... दोनों को तो आप निपटा चुके है " रज़िया ने उसी तरह आँखे बंद किये ज़बाब दिया , अब वह मुझसे फिर कस कर चिपक गयी थी।
मैंने उसी स्पीड से चोदते हुए कहा ," क्या रज़िया ! ऊपर वाले ने तुम लोगों को चूत इसीलिए दी है कि इसे लंड से चुदवाओ , अरे अगर मैं नहीं चोदता तो कोई और चोदता , चूत बनी ही लंड पिलवाने को है ...... कोई ऐसी चूत बता दो जो चुदी ना हो " रज़िया ने इस बार कोई ज़बाब नहीं दिया बस मुझसे थोडा और कस कर लिपट गयी। मुझे अपना अब स्टेशन नज़र आने लगा था सो पूरे शरीर की ताक़त लंड में इकठ्ठी करके दोनों हाथों से चूचियां मसलते हुए मैं उसे चोदने लगा। अचानक हम दोनों के शरीर ने झटका लेते हुए एक साथ ही पानी निकाल दिया और बेड पर पड़े हांफने लगे। रज़िया इस वक़्त बड़ी नशीली आँखों से मुझे देख रही थी , वह धीरे से करवट लेकर मेरे सीने पर अपना सिर रख मुझसे नंगी ही चिपक कर लेट गयी। यूं तो रज़िया बहुत खूबसूरत नहीं थी लेकिन उसके शरीर की बनावट दीदी से इक्कीस ही थी यह मुझे उसको नंगा देखने पर ही पता लगा। लाइट कलर की बेडशीट पर तकरीबन एक by एक फुट के एरिया में गहरा लाल निशान पड़ा था जो उसकी कुंवारी चूत की सील टूटने की गवाही दे रहा था। पता नहीं क्यों इस वक़्त मुझे रज़िया पर बहुत ही प्यार आ रहा था जो बिना होठों और जीभ का इस्तेमाल किये सिर्फ नज़रों से ही अपनी दिल की बात मुझसे किये जा रही थी। उसकी आँखों में असीम तृप्ति के भाव थे जैसे किसी बहुत दिन के भूखे शख्श को रोटी की जगह कोई रसगुल्ला खिला दे। वह धीरे धीरे मेरे सीने को सहलाती हुई मुझसे चिपकी लेटी थी। मैंने भी उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसते हुए उसे अपने ऊपर लिटा लिया। यह जानते हुए भी कि वह मेरी छोटी बहन है मुझे वाकई इस वक़्त उस पर बहुत प्यार आ रहा था रज़िया की चुदाई के बाद मुझे एक असीम तृप्ति का अनुभव हो रहा था। इतना मज़ा मुझे बहुत दिनों बाद किसी चूत को चोदने में मिला था , वाकई रज़िया की एक एक चीज़ ऊपर वाले ने बड़ी फुर्सत में बनाई थी। चूंकि मैं पूरी रात का जगा हुआ था सो मैं रज़िया को अपने से चिपकाये हुए वैसे ही सो गया। शाम तकरीबन चार बजे भूख के कारण मेरी आँख खुली तो देखा मैं ऊपर वाले कमरे में अकेला ही सो रहा था , रज़िया पता नहीं कब उठ कर नीचे चली गयी थी। मैं भी फटाफट उठ कर नीचे आया तो देखा दीदी नहा धोकर किचिन में कुछ कर रहीं थीं और रज़िया नहा कर अपने गीले बाल ड्रायर से सुखा रही थी। उसने पिंक कलर का टॉप और पर्पल कलर की लॉन्ग स्कर्ट पहन रखी थी। जैसे ही हमारी नज़रें मिलीं वो धीरे से शरमा कर मुस्करा दी , उसके चेहरे पर एक अजीब से सुकून का भाव था व उसका रूप और निखर आया था।
दोस्तों एक बात आप ज़रूर नोट करना कि जो स्त्रियाँ अपने जीवन में भरपूर सम्पूर्ण सेक्स का आनंद लेतीं है अर्थात अपनी चूत को पूरी तरह संतुष्ट होने तक चुदवातीं है उनके चहरे पर एक अलग तरह का नूर होता है व जो इस सुख को नहीं भोग पातीं है या जिनकी चूत प्यासी रह जाती है उनके चहरे की चमक धीरे धीरे चली जाती है। कुल मिला कर उनका चेहरा ही उनकी सेक्स लाइफ का आईना होता है।
कुछ इसी तरह की चमक मुझे रज़िया के चेहरे पर नज़र आ रही थी। मैंने पीछे से जाकर उसकी चूचियों को धीरे से मसलते हुए नाज़ुक गालों को चूम लिया।
" क्यूं अभी भी दिल नहीं भरा क्या ? मौका देख के रात में ऊपर आ जाना , सारे बाकी के अरमान भी पूरे कर लेना लेकिन प्लीज़ अभी नहीं , अभी दीदी है यहां ... वो मुझे कच्चा ही चबा जाएँगी "रज़िया ने बड़े प्यार से मेरे हाथों को अपनी चूचियो से हटाते हुए कहा और एक गाढा सा मीठा चुम्बन मेरे होठों पर जड़ दिया।
चूंकि मैंने इस चुदाई के चक्कर में सुबह से कुछ खाया भी नहीं था सो इस वक़्त मेरे पेट में बड़े बड़े चूहे उछ्ल कूद कर रहे थे।मैंने रज़िया से पुछा ," कुछ खाने को है क्या , बहुत तेज़ भूख लगी है "
" हाँ दीदी ने नमकीन सेवइयां बनाई है क्योंकि अब खाने का वक़्त तो रहा नहीं , पूरा खाना शाम को बना लेंगे। वो आपको जगाने जाने ही वालीं थीं , अभी हम लोगों ने भी नहीं खाया है " रज़िया ने हमेशा की तरह बड़ी शालीनता से ज़बाब दिया
" तो चल जल्दी से सबका खाना लगवा ले , अब भूख बर्दाश्त नहीं हो रही है " मैंने बड़ी बेसब्री से कहा
तभी दीदी हाथ में सेवइयों की प्लेट लिए किचिन से आ गयीं और मुस्कराते हुए बोलीं ," मुझे मालूम था की तू उठते ही भूख भूख चिल्लाएगा "
उन्होंने व्हाइट कलर का वी गले का टॉप और नीले रंग का पेटीकोट पहन रखा था। पेटीकोट का नाडा कमर पर साइड में करके बांधा था जिससे उसके कट से उनकी नंगी कमर का गोरा गोरा थोडा सा हिस्सा नुमाया हो रहा था क्योंकि अन्दर उन्होंने पेन्टी नहीं पहनी थी। यही अगर नार्मल तरीके से बंधा होता तो शायद कमर की जगह उनकी छोटी छोटी झांटे दिखाई दे रहीं होती। कुल मिला कर इस अजीब पहनावे में भी वह गज़ब की सेक्सी लग रहीं थीं , उनकी चाल और बातचीत के अंदाज़ से लग रहा था कि उनकी चूत व गांड में दवा से ज़बरदस्त आराम हुआ है और सबसे बड़ी बात दो में से कोई भी चुदने के बाद भी मुझसे नाराज़ नहीं थीं। सो मैंने अब पूरी तरह से निश्चिन्त होकर उनके हाथ से प्लेट लेकर सेवइयां खानी शुरू कर दीं। तभी अचानक मेरा मोबाइल बजने लगा। मैंने पॉकेट से मोबाइल निकाल कर देखा तो वह अस्पताल से मामू का था। मैंफोन पिक करके बात करने लगा।
" हाँ ....... हाँ ....... ठीक है ........ ठीक है ....... मैं आता हूँ "
बात करने के बाद फोन काट दिया। फिर सारी बात दीदी और रज़िया को बताते हुए बोला ," दीदी ! मामू का फोन था , कह रहे थे कि अम्बाला से मामी की छोटी बहन और उनकी बेटी रात की ट्रेन से लुधियाना पहुँच रहे हैं , दूसरी बात यह कि मामी की हालत में बहुत आराम है जिससे डॉक्टर का कहना है कि अगर हम चाहें तो मामी को आज ही घर ले जा सकते है। अब आप अपनी राय दीजिये कि मामी को आज ही ले आयें या कल ही लाया जाए , वैसे मेरी राय में अगर हम कल लेकर आयें तो वही ज्यादा उचित रहेगा , कहीं कुछ उल्टा सीधा न हो जाये "
चूंकि मैं आज रात दोनों बहनों को खुल कर ढंग से चोदने का मज़ा लेना चाह रहा था जो शायद अम्मी और मामू के आने से संभव न हो पाता और फिर कबाब में हड्डी बनने वैसे भी मामू की साली और उनकी बेटी जो दोनों ही बड़ी चिपकू थीं , आ ही रहीं थीं सो मुझे अपनी रात का मज़ा खटाई में पड़ता दीख रहा था। यही कारण था कि मैं आज मामी को घर नहीं लाना चाह रहा था।
" तू ठीक कह रहा है मुन्ना , अम्मी अगर आज रात वहीँ अस्पताल में ही रहें तो ज्यादा सही रहेगा क्योंकि उनका घाव बहुत ही गहरा था " दीदी ने चिंतित होते हुए कहा
" अगर आप ही मामू को चल कर समझायें तो ज्यादा सही रहेगा " मैंने दीदी को कहा
" ठीक है , अभी पौने छह बजे है , मैं पंद्रह मिनट में तैयार हो जाती हूँ पर ये बता सायरा की ट्रेन कितने बजे की है "
" सात बजे की "
" ओ हो फिर तो वक़्त नहीं बचा है तू मुझे अस्पताल छोड़ कर स्टेशन चले जाना और सायरा व खाला को लेकर वहीं अस्पताल आ जाना। तब तक मैं अम्मी की कंडीशन देख कर डॉक्टर से भी बात कर लेती हूँ "
" ये ठीक रहेगा दीदी " मैंने दीदी से कहा
दीदी अपने पेटीकोट का नाडा खोलते हुए अन्दर वाले कमरे की तरफ कपडे बदलने चलीं गयीं। मैंने घूम कर रज़िया की तरफ देखा , वो मेरी तरफ देख के धीमे धीमे मुस्करा रही थी। मैंने आगे बढ़ कर उसे अपने से कस कर चिपका लिया , उसने भी मेरे गले में अपनी बांहे डाल के बंद आँखों के साथ अपने होंठ मेरी तरफ बढ़ा दिये। मैंने भी उसकी भावनाओ को समझते हुए उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसते हुए उसके चूतडों को मसलना शुरू कर दिया। मेरा लंड मेरी जींस में खडा होकर उसकी नाभि से रगड़ता हुआ मुझे दिक्कत दे रहा था। " आज तो दोबारा शायद संभव नहीं होगा भैय्या , आपने उस बेचारी की बहुत बुरी हालत कर दी है। ज़रा सा जोर लगते ही M C की तरह ब्लीडिंग होने लगती है। सुज़ के कुप्पा हो गयी है बेचारी , इतना दर्द हो रहा है कि पेंटी भी नहीं पहनी जा रही है।" रज़िया मेरे सीने से चिपक कर बोली।
मैंने अब तक की ज़िन्दगी में कई लौंडियों को चोदा था लेकिन पता नहीं क्यों मुझे रज़िया को चोदने के बाद उससे बड़ा लगाव हो गया था। मैंने मन ही मन कुछ निश्चय कर लिया और उसके टॉप में अन्दर हाथ डाल कर ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को मसलते हुए उसके मुंह में अपनी जीभ घुसा दी। तभी पीछे से दीदी के खांसने की आवाज़ आयी तो वह मुझ से छिटक कर अलग हो गयी। दोस्तों दोनों को ही यह अच्छी तरह पता था कि मैं उनकोढंग से चोद चुका हूँ परन्तु शायद शर्म या रिश्तों की उस दीवार के कारण वो एक दूसरे के सामने अनजान शो कर रहीं थीं लेकिन मैंने भी इस दीवार को गिराने की ठान ली थी।
" दीदी , वो जो दवा मैं सुबह ले कर आया था वो अभी दो खुराक बची होगी , उसमे से ज़रा एक खुराक दे दो " मैंने दीदी से खुल कर पूछा
" वो वहीं ड्रेसिंग टेबल पर रखी है " दीदी ने नज़रें चुराते ज़बाब दिया
" लो , ये खा लो , दो तीन घंटे में आराम मिल जायेगा " मैंने दवा की एक खुराक ला कर रज़िया को देते हुए कहा " दीदी , जल्दी चलो लेट हो रहे है "
" चल ना , मैं तो कब से तैयार हो चुकी हूँ " दीदी ने कहा। दीदी ने इस समय डार्क ब्लू जींस और स्काई ब्लू कलर का मैचिंग टॉप पहन रखा था। इस ड्रेस में वो बड़ी धांसू आइटम लग रहीं थीं। मैंने आगे बढ़ कर उनके दोनों होठ चूमते हुये कहा ," हाय हाय , कहीं नज़र न लग जाये "
" चल हट " दीदी का चेहरा लाल हो गया जबकि रज़िया की हँसी निकल गयी। उसको हंसते देख मुझे अन्दर ही अन्दर बहुत अच्छा महसूस हुआ। मैं दीदी को लेकर अस्पताल की तरफ लेकर चल दिया और उन्हें गेट पर ही छोड़ कर स्टेशन की तरफ निकल लिया। स्टेशन पहुँच कर मैंने इन्क्वायरी पर देखा तो पता चला कि ट्रेन राइट टाइम है यानी के पंद्रह मिनट बाद ट्रेन आ रही थी। मैं वहीं स्टेशन पर पंजाबिन लड़कियों की फूली फूली गांड और मस्त बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर टाइम पास करने लगा। थोड़ी देर में प्लेटफार्म पर गाडी आ गयी। मैं जल्दी से S 5 की तरफ बढ़ा जिसमे मामी और सायरा का रिजर्वेशन था। डिब्बे के सामने पहुँच कर मैं उन लोगों को ढूँढने लगा , तभी किसी ने पीछे से मेरे कंधे पे हाथ रख कर कहा ,"मुन्ना भैय्या ! कहाँ देख रहे हो ? हम लोग उतर कर इधर खड़े हैं"
मैंने देखा कि एक बड़ी मस्त तकरीबन 5 फुट 7 इंच हाईट वाली लड़की मेरे पीछे खड़ी थी व उसके साथ एक औरत बुर्के में एक एयर बैग व एक स्काई बैग लिए खड़ी थी। मेरे चेहरे पे असमंजस के भाव देख कर वह फिर बोली ,"क्या भैय्या ! पहचाना नहीं ? अरे मैं सायरा ....... और ये मम्मी"
"ओहो ! कैसे पहचानूं ? मामी बुरके में है और तू इत्ती बड़ी हो गयी है,पिछली बार जब मिली थी तो फ्राक पहना करती थी" मैंने उसकी शर्ट से झांकतीं बड़ी बड़ी चूचियों को घूरते हुए कहा
"आय हाय आय ! जैसे पिछली बार ज़नाब ऐसे ही छः फुटा थे,सिर्फ तीन साल ही मुझसे बड़े हो" सायरा मेरे सीने पे मुक्का मारती बोली
"अरे तुम दोनों यहीं लड़ते ही रहोगे या अब चलोगे भी" मामी ने कहा हाँ हाँ चलो " कह कर मैंने कुली को बुला कर उसे सामान थमा दिया और हम लोग स्टेशन के बाहर की तरफ चल दिए। मेरी निगाह सायरा की फूली हुई गांड और उसकी खरबूजे जैसी चूचियों से हट नहीं रही थी। मुझे ऐसे देखते सायरा बोली ,"किधर ध्यान है ज़नाब का"
"कहीं नहीं,तुझी से तो बात कर रहा हूँ"
"हाँ , ज़नाब बात तो मुझ से कर रहे है लेकिन नज़रें कहीं और भटक रहीं है"
"अरे नज़र तो नज़र है,जहां अच्छी चीज़ दिखाई देगी वहीं तो टिकेगी"
मैं उसकी बोल्डनेस से भली भांति परिचित था और उसकी यही आदत मुझे बचपन से पसंद भी थी।
"ओहो , परन्तु इसका मतलब ?"
"मतलब क्या ये तुम्हारी बात का ज़बाब था"
"आपकी गोल मोल बात करने की आदत गयी नहीं,अरे यार क्यू लड़कियों जैसा शरमाते हो। खुल के कहो ना कि सायरा तू मुझे अच्छी लग रही है"
"वाह वाह अपने मुंह ही अपनी तारीफ़,कभी आईना देखा है,बिलकुल बंदरिया लगती है"
"अच्छा जी ! मैं बंदरिया लगती हूँ। शायद तभी मेरे शरीर को इतनी देर से घूर रहे हो जैसे नज़रों से ही घोल के पी जाओगे"
इसी तरह नोक झोंक करते हम स्टेशन के बाहर आ गए। मामी थोडा धीरे चल रहीं थी सो बाहर आकर मैंने कुली को पैसे दिए और मामी का इंतजार करने लगे। मामी के आते ही मैंने उनसे कहा ,"आप दोनों के लिए मैं ऑटो किये दे रहा हूँ क्योंकि मेरे पास बाइक है"
" नहीं मैं तो आपके साथ ही बाइक से चलूंगी " सायरा बच्चों सी जिद करती बोली
" ऐसा करते है मुन्ना ! इसे तू बाइक पर ही बिठा ले और हम लोग पहले हॉस्पिटल ही चलते है , दीदी को देखे बिना मुझे सुकून नहीं मिलेगा "
" ठीक है , ऐसा ही करते है " मैंने ज़बाब दिया मामी को ऑटो में बिठा कर मैंने स्टैंड से बाइक निकाल कर स्टार्ट की और सायरा को साथ लेकर हम अस्पताल के लिए चल दिए। सायरा ने पीछे से मुझे पकड़ कर अपनी ठुड्डी मेरे कंधे पर और अपने दोनों हाथ मेरी जाँघों पर रख लिए। इस पोजीशन में उसकी चूचियां मेरी पीठ में धंसी जा रहीं थीं।
" कैसे बैठी हो , सब देख रहे है ..... हम घर के अन्दर नहीं है सायरा , सड़क पर है। ऐसा लग रहा है कि तुम मेरी बहन नहीं कोई गर्ल फ्रेंड हो " मैंने सायरा से फुल मज़ा लेते हुए कहा
" ओ हो तो ज़नाब अगर घर के अन्दर हो तो मुझे ऐसे चिपका कर रक्खेंगे " सायरा मेरी पीठ से और लिपटते बोली
" घर में अगर तुम यूं लिपटना चाहो तो कम से कम दूसरे मज़ा लेने वाले तो नहीं होंगे , यहां सड़क पर सब मज़ा ले रहे है "
" वाह सिर्फ चिपक के बैठने से ही दूसरों को मज़ा आ जाता है ? और फिर जब मज़ा आने वाला काम करेंगे तो फिर उनका क्या हाल होगा " सायरा हंसती हुई बेबाकी से बोली
तभी अस्पताल आ गया और मैंने सायरा को उतार कर बाइक स्टैंड पर लगा दी। हम सब अन्दर जा कर मामी के रूम में पहुँच गए। वहां मामी को डॉक्टर ने ड्रेसिंग करके तैयार कर दिया था लेकिन दीदी ने घाव को देख कर आज रात और यहीं हॉस्पिटल में रुकने की कह दी थी। हालांकि मामी घर जाने की बहुत जिद कर रहीं थीं लेकिन हम लोगों के समझाने पर एक रात और रुकने को मान गयीं थीं। छोटी मामी ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह तो हॉस्पिटल में ही रुकेंगी और कल सबके साथ ही घर जाएँगी। अंत में यह तय हुआ कि मैं दीदी और सायरा को लेकर घर चला जाऊं बाकी वो तीनो लोग वहीं मामी के साथ हॉस्पिटल में रुकेंगे। चूंकि सायरा का सामान भी था और लोग भी तीन थे अतः मैंने ऑटो करना ही मुनासिब समझा। बाइक वहीं हॉस्पिटल में मामू के पास छोड़ कर हम तीनों ऑटो से घर चल दिए।
ऑटो में सायरा बीच में बैठी थी और मेरी बाजू से उसकी लेफ्ट चूची दब रही थी , उसने भी अपना एक हाथ मेरी जांघ पर बेफिक्री से रक्खा हुआ था। जब भी कोई हल्का सा झटका लगता तो मैं जानबूझ कर अपनी बाजू से उसकी चूची मसल देता था लेकिन वह इन सब बातों से अनजान मस्त बैठी थी।
घर पहुँच कर मैंने ऑटो का पेमेंट करके सामान अन्दर रखवा दिया। सायरा रज़िया के गले लग के खूब मस्ती से बतिया रही थी। अन्दर आ कर मैंने घडी देखी तो टाइम साढ़े नौ से ऊपर ही हो रहा था।
" दीदी , साढे नौ बज चुके है , बड़ी भूख लगी है। आप लोग फ़टाफ़ट खाना लगाओ तब तक मैं चेंज करके आता हूँ " कह कर मैं अन्दर कमरे में चला गया। अन्दर जाकर मैंने अपने लिए एक लार्ज व्हिस्की का पैग बनाया और ख़तम करके अपने कपडे उतार दिए। मैं सिर्फ अंडरवियर व बनियान में था कि तभी सायरा और रज़िया अन्दर आ गयीं। उन्हें देख कर मैं झेंप कर अपनी लुंगी तलाशने लगा क्योंकि जैसा कि आप सभी जानते ही है की इन रेडीमेड अंडरवियर में लंड गांड सब क्लियर पता चलती है।
" वाह भाई वाह , अकेले अकेले ही शौक फ़रमाया जा रहा है।" सायरा ने मेरा व्हिस्की का गिलास और बोतल देख कर कहा
" अरे मुझे क्या पता था कि तू पीती है , तेरे लिए भी बनाऊ क्या ?" मैंने लुंगी उठा के लपेटते हुए कहा
" नहीं नहीं , मैं तो मज़ाक कर रही थी , मैं ये सब नहीं लेती हूँ "
" आहा , तो मैडम फिर क्या लेती है " मैंने सायरा के गालों पर चिकोटी काटते शरारत से पूछा
" अरे लेने वाली चीज़ मैं सब ले लेती हूँ , ये सब फ़िज़ूल की चीज़ें थोड़े ही लेती हूँ "
तब तक मैं अपना एक दूसरा लार्ज पैग बना कर पीने लगा।
" चल चल सायरा , तू भी फ़टाफ़ट फ्रेश होकर चेंज कर ले फिर हम सब खाना खाते हैं , मुझे बहुत तेज़ भूख लगी है " मैंने सायरा को बोला।
वो लोग कमरे से बाहर चले गए और मैं भी एक पैग और लेकर बाहर किचिन के पास लाबी में पड़ी डाइनिंग टेबल पर बैठ गया जिस पर दीदी खाना लगा रहीं थीं। दीदी ने अपनी वही ड्रेस यानी पेटीकोट और टॉप पहन रखा था। तभी रज़िया और सायरा भी चेंज करके डाइनिंग टेबल पर आ गये। सायरा ने एक ढीला ढाला गाउन पहन रखा था जिसमे उसकी चुचियों की तनी हुई घुन्डियाँ साफ़ साफ़ उठी हुई नज़र आ रहीं थी।
" ये क्या पहन रखा है , इस ड्रेस में तेरा सब कुछ दिखाई दे रहा है " दीदी ने धीरे से सायरा को टोका
" अरे दीदी, सारा दिन बॉडी कसी रहती है इसलिए रात में इसे बिलकुल फ्री करके हमें सोना चाहिए " सायरा बेझिझक बोली
मेरा लंड तो वैसे भी उसकी चुचियों की घुंडियों को देख देख कर अंगड़ाईयां ले रहा था लेकिन ये सुन कर कि उसने चड्डी भी नहीं पहनी है , वह बुरी तरह फनफना उठा। मैंने टांग पर टांग चढ़ा कर अपने लंड को उसमे कस कर दबा लिया। हालांकि मेरी उसको चोदने की तबियत हो रही थी लेकिन मैं यह अभी शो नहीं करना चाह रहा था। मैं उसी की तरफ से किसी पहल का इंतज़ार कर रहा था फिर तो उसकी चूत में अपना लंड पेल के उसे चोद ही देना था। वैसे उसकी एक्टिविटी से लग रहा था कि सायरा उस टाइप की लड़की है जो ये सोचतीं है की जब चुदाई करने से लड़कों के लंड का कुछ नहीं बिगड़ता तो लड़कियों की चूत का क्यों बिगड़ेगा। चूंकि खाना लग चुका था सो हम सब खाना खाने लगे लेकिन मेरी निगाह बार बार सायरा की चूचियों की तरफ ही उठ जा रही थी जिसे सभी बखूबी समझ रहे थे क्योंकि में बीच बीच में अपने फनफनाते लंड को भी एडजस्ट कर रहा था। खाना खाकर रज़िया ऊपर वाले कमरे में चली गयी। हालांकि वह इतनी बुरी तरह चुदने के बाद भी चुप थी , दीदी की तरह हाय हाय नहीं कर रही थी फिर भी मैं उसकी चूत की हालत समझते हुए आज उसे छेड़ना नहीं चाहता था। एक रात के रेस्ट के बाद उसकी चूत की हालत भी सुधर ही जानी थी और फिर मेरे लंड के लिए कौन सी चूतों की कमी थी , यहाँ लुधियाना आने के बाद तो मेरे लंड को वैसे भी बिलकुल रेस्ट नहीं मिला था , हर वक़्त चूत में ही घुसा रहता था। दो दो कुंवारी चूतों की सील तो खोल ही चुका था ऊपर से खुदा ने सायरा को और भेज दिया , वैसे मैं उसकी चूत के बारे में डाउट में था क्योंकि इतनी बोल्ड लड़की अपनी चूत में बिना लंड पिलवाये नहीं मान सकती। ज़रूर उसने लंड का मज़ा ले लिया होगा। खैर , दीदी व सायरा भी खाने से फ्री होकर लेटने चल दीं तो मैंने फोर्मली पूछा , " आज कैसे लेट बैठ होगी "
" हम दोनों तो अन्दर वाले कमरे में लेट जाते है , बैठने का काम आप पूरी रात शौक से फरमा सकते हैं " सायरा ने मेरी बात पर चुटकी ली
" वाह भई वाह , रज़िया ऊपर और तुम दोनों अन्दर वाले कमरे में .......... मैं अकेले यहाँ क्या करूंगा।" मैंने टोका
" आप ज़नाब , कांग्रेस आई के सहयोग से रात काटिए ( कांग्रेस आई का निशान हाथ का पंजा है ) " सायरा शोखी से आँखे नाचते बोली
" अजी अगर हम कांग्रेस का सपोर्ट लेंगे तो आपको भी तो रात काटने को उसी का सपोर्ट लेना पड़ेगा " मैंने भी उसी के टोन में ज़बाब दिया
" हाँ यार , इससे बढ़िया तो ये रहेगा कि हम दोनों ही मिलजुल के सरकार बना ले " सायरा मेरी बनियान की स्ट्रिप्स में अपनी उंगली फंसाकर धीरे से बोली
" मुझे कब ऐतराज है "
" हाँ जी , वो तो तुम अपना डंडा लिए झंडा फहराने को बिलकुल तैयार दिखाई दे ही रहे हो " सायरा मेरी लुंगी में काफी उभरे हुए लंड को देख कर बोली
वैसे तो दोस्तों मैंने अपनी इस छोटी सी लाइफ में कई चुदासी चूतों को चोदा और कई चूतों को थोडा ज़बरदस्ती करके भी चोदा था लेकिन ऐसी बोल्ड चूत खुल के चुदवाने को उतावली आज पहली बार देख रहा था। हम लोगों को खुसुर पुसुर करते देख दीदी ने मामू के कमरे में सोने का ऐलान कर दिया। वह भी समझ चुकीं थी कि हम दोनों ही चुदाई प्रोग्राम किये बिना नहीं मानेंगे सो उन्होंने हम लोगों को अकेला छोड़ देने का सोचा लेकिन सायरा ने दीदी की बात काटते हुए कहा ," क्या दीदी , कितने दिन बाद तो मिले है , आप भी हमारे साथ ही लेटिये ना ...... ढेर सारी बातें करेंगे " फिर मेरी तरफ देखकर मुस्करा दी। हालांकि मेरे और दीदी के बीच अब कोई पर्दा नहीं था फिर भी मेरी समझ में उसका प्लान नहीं आ रहा था क्योंकि वह तो हमारे इस चुदाई रिलेशन से बिलकुल ही अनजान थी।
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