Saturday, December 21, 2013

गुपचुप कहानियाँ- राबिया का बेहेनचोद भाई--5

Lovers-point गुपचुप कहानियाँ-

 राबिया का बेहेनचोद भाई--5
 
. फिर हम दोनो कॉलेज की कैंटीन के पीछे जहाँ एक दम सन्नाटा होता है वाहा चले गये....पत्थर पर बैठने के बाद उसने कहा...हा पूछ क्या पूछ ना है....पहले तो ये बता कब हुई तेरी सगाई.....कल.....ही....तूने बताया भी नही पहले....किसके साथ...पहले से चक्कर था तेरा....शबनम झल्ला उठी....धत ! बकवास किए जा रही है....तुझे पता है मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नही.....फिर इतनी जल्दी कैसे....जल्दी तो नही है....बस तुझे पता नही था इसलिए....अच्छा चल अब तो बता दे कौन है वो खुशकिस्मत जो मेरी शब्बो रानी के रानों के बीच की सहेली का रस चखेगा....शबनम का चेहरा लाल हो गया.....धत ! साली हर समय यही सोचती है क्या.....



ज़रा भी लिहाज़ नही है तेरे से दो साल बड़ी हूँ मैं...मैने शबनम की जाँघो पर हाथ मारते हुए कहा....तो फिर बता ना मेरी शाब्बो बाजी कौन है वो....शबनम हंस दी फिर मस्कुराते हुए शरमाते हुए बोली....खालिद नाम है उनका....खालिद अच्छा यही के है या....यही के है....मेरी खाला के लड़के....मतलब तेरे खलजाद भाई....हा....अर्रे वा तब तो पहले से देख रखा होगा तूने....हा हमारे घर से जयदा दूर नही है उनका घर.....हम जब छोटे थे साथ में खेलते भी थे.....जब बड़े हो गये तो थोड़ी दूरी आ गई...मतलब.... शबनम बोली अर्रे कामिनी मतलब क्या समझोउ....जब लड़का-लड़की जवानी की दहलीज़ पर कदम रख देते है तो फिर दूरी तो आ ही जाती है, है ना.....



मैने और छेड़ने के इरादे से पुछा ....ही मतलब बचपन का प्यार है....धत !...क्या बोलती है...अरे मैने क्या बोला....तूने ही तो कहा...बचपन में साथ खेलते थे और जब तेरी चूची बड़ी हो गई तो दूरी आ गई....इसका तो यही मतलब निकला की बचपन से अम्मी अब्बा वाला खेल चल रहा था.....धत ! साली ....मुझे खुद नही पता था की खालिद भाई...है खालिद मुझे चाहते है....मैं बीच में बोल पड़ी ....पर तू उन्हे चाहती थी....अरी नही रे....मैं उन्हे खालिद भाई कह कर बुलाती थी....जब भी कभी घर आते थे तो घर का महॉल बरा खुशनूमा हो जाता था....हम साथ में वीडियो गेम्स खेलते और हसी मज़ाक करते थे...मैं बीच में बोल पड़ी ....ही बस तुम दोनो साथ में....अरे नही रे मेरी बाकी दोनो बहनें भी...हम चारों जाने ....खालिद भाई....ओह तौबा तौबा....



खालिद के कोई भाई या बहन नही है ना.... उनका मान हमारे यहाँ बहल जाता था....ही! ये मान बहलाते बहलाते लगता है कुछ ज़यादा ही बहल गये तेरे खालिद भाई......चुप्प कर साली अब वो मेरे खाविंद है.....मैने कमर में चिकोटी काट कर कहा.....ही रब्बा....अभी से इतनी वफ़ादारी.... तू बाज आएगी या फिर तेरा कुछ और इलाज़ करना परेगा...ही! इलाज़ क्या करोगी....बस मिठाई खिला दो....खाली हाथ आ गई...बड़ी बाजी बनती हो इतना तो शरम लिहाज़ रखो की अपनी सगाई पर मुँह मीठा करा दो....भले ही अपने मियाँ से नही मिलवाना...शबनम मुस्कुराने लगी....बोली क्लास छोड़ चल मेरे साथ...मैने पुछा क्यों कर भला....अर्रे चल ना बस....घर चलते है वही तेरा मुँह भी मीठा करा दूँगी....घर पर अभी कोई नही होगा फिर आराम से बाते करेंगे....मैं भी उस से उसके खालिद भाई के बारे में खोद खोद कर पूछ ना चाह रही थी..... इसलिए थोड़ा सोचने के बाद हामी भर दी...... 

टॅक्सी पकड़ घर पहुचे....घर पर केवल उसकी अम्मी थी.....ड्रॉयिंग रूम में बैठ कर टीवी देख रही थी....उनको सलाम करने के बाद कुछ देर वही बैठी उनसे बाते करती रही फिर वो उठ कर पड़ोस में चली गई......शबनब ने टीवी ऑफ किया और कहा.... चल मेरे कमरे में वही बैठ कर बाते करेंगे.....अम्मी तो अब दो घंटे से पहले नही आने वाली.....कमरे में पहुच...दरवाजा बंद कर.... हम दोनो बिस्तर पर बैठ गये....मैं पेट के बाल हाथो के नीचे एक तकिया डाल कर लेट गई....शबनम दीवान की पुष्ट से पीठ टीका कर बैठी थी.... एसी की ठंडी हवा में....हम दोनो कुछ देर तक तो यू ही उसके घर के बारे में बाते करते रहे....फिर थोड़ा आगे सरक, शबनम का हाथ थाम पुछा ...... ही शाब्बो बाजी ये तो बता......भाई बहन से मियाँ बीबी बन ने का ख्याल कब और क्यों कर आया....



मेरे इतना बोलते ही शबनम ने मेरी पीठ पर कस कर थप्पड़ जमा दिया और हँसते हुए बोली....तू मानेगी नही....जा मैं नही बताती....साली हर बात का उल्टा मतलब निकल देती है....हाए !!! शाब्बो मेरी जान प्लीज़ बता ना....आख़िर तुम दोनो का प्यार कैसे परवान चढ़ा....हाए !!! मुझे भी तो एक्सपीरियेन्स.....बड़ी आई एक्सपीरियेन्स वाली....इसमे क्या बात है जो तेरे फाएेदे की....मैं शबनम की तुड़ी पकड़ बोली हाए !!! प्लीज़ बता ना....नही...मैं मिठाई लाती हूँ....मैं इतराती हुई बोली नही खानी मुझे.....पहले बता....हाए !!! रब्बा क्या बताऊँ तुझे....जो बताना था बता तो दिया....नही मुझे विस्तार से बता.....तुझे कब पता चला कहलीद भाई तेरी जाँघो के दरमियाँ आने चाहते है....अफ....कामिनी है तू....साली एक नंबुर की....ले दे कर वही बात....कहते हुए मेरी पीठ पर एक चपत लगाई...और ये क्या बार बार खालिद भाई...निगोरी....



मैं हँसते हुए बोली चल नही बोलूँगी.....पर कुछ तो बता....मैं थोड़ा मासूम सा मुँह बनाते हुए कहा....शबनम मेरे मासूम से चेहरे को देखती हुई मुस्कुरा दी....कुतिया साली....क्या बताऊँ ....किसने शुरुआत की...मैने पुछा ....मुझे नही पता...खाला आई थी उन्होने अम्मी से बात की....कब आई थी....करीब एक महीने पहले.....ओह...पर फिर भी पहले कुछ तो हुआ होगा....नही ऐसा तो कुछ नही था....हा कई बार खालिद भाई ओह ओह...वो कई बार बात करते करते एकदम से खामोश हो जाते....और मेरे चेहरे की तरफ देखते रहते..... बड़ा अटपटा सा लगता की ऐसा क्यों करते है....फिर राहिला ने एक दिन बताया की आपा खालिद भाई आपको अपने चस्मे के पीछे से बहुत देखते है....मैने उसको बहुत डांटा मगर....फिर मैने भी नोटीस किया मैं जब इधर उधर देख रही होती तो वो लगातार मुझे घूरते रहते....

जैसे ही मुझ से नज़रे मिलती....वो सकपका जाते.....फिर मुझे लगने लगा था की डाल में ज़रूर कुछ काला है.... शबनम की जाँघ को दबाते हुए मैं बोली....ही पूरी डाल ही काली निकली.....वो भी हँसने लगी...फिर मैने पुछा ....अच्छा ये तो बता की उन्होने कभी और कोई हरकत नही की तेरे साथ....और कोई हरकत से तेरा मतलब अगर वैसी हरकतों से है....तो नही....वैसा कुछ नही हुआ हमारे बीच....हा जब से मुझे इस बात का अहसास हुआ तो मैं उनके सामने जाने में थोड़ा हिचकिचाने लगी....फिर कभी मौका भी नही मिला...हर वाक़ूत कोई ना कोई तो होता ही था....ही कभी कुछ नही किया....क्या यार कम से कम लिपटा छिपटि, का खेल तो हो ही सकता थे तुम दोनो मे, मैं होती तो एक आध बार मसलवा लेती....चुप साली....मैं तेरे जैसी लंड की भूखी नही हू.....कौन कितना भूखा है ये तो निकाह होने दो फिर पता चलेगा....दो महीने में पेट फुलाए घुमोगी.....चल निगोरी....ही शाब्बो मैने तो सोचा एक आध बार उन्होने अब तक तेरी कबूतारीओयोन को दबा दिया होगा....



अल्लाह कसम बता ना....एक बार भी नही....अब तक शबनम भी धीरे धीरे खुलने लगी थी....उसके चेहरे पर हल्की शर्म की लाली दौर गई.... मुस्कुराती हुई बोली....पहले तो कभी नही पर कल....ही! मुझे शर्म आ रही है....कहते हुए उसने अपनी हथेली से अपना चेहरा धक लिया....ही! कल क्या...बता ना....प्लीज़...वो फिर शरमाई...ही! नही...ही! बता ना प्लीज़....फिर मुस्कुराते हुए धीरे से सिर को नीचे झुकती बोली.....ही कल जब माँगनी हो गई....फिर सब ने हमे पाच सात मिनिट के लिए अकेला कमरे में छोड़ दिया....ही! फिर क्या…??



तब खालिद मेरे पास आए....और धत !!....कैसे बोलू....ही बता ना क्यों तडपा रही है....ही फिर उन्होने मेरे गालो को हल्के से चूमा....ही मैं तो घबरा कर सिमट गई....मगर उन्होने मेरे दोनो हाथो को पकड़ लिया और हम सोफे पर बैठ गये फिर....फिर क्या मेरी जान....फिर उन्होने मुझे बताया की वो बचपन से मुझे चाहते है...और दिलो-जान से प्यार करते है....वो हमेशा मुझे ही अपने ख्वाबो में देखते थे....उन्हे बस इसी बात का इंतेज़ार था की कब उनकी नौकरी लग जाए....उन्होने ने मुझ से पुछा की मैं राज़ी हूँ या नही....मैं क्या बोलती सगाई हो चुकी थी.....मैने चुपचाप सिर हिला दिया....वो खिसक कर मेरे पास आ गये और मेरी थोड़ी को उपर उठा मेरे चेहरे को देखते हुए हल्के से मेरे होंठो पर अपनी एक उंगली फिराई....

मेरा पूरा बदन काँप उठा....फिर आगे बढ़ कर उन्होने हल्के से अपने तपते होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया....ओह मैं बतला नही सकती....सहेली मेरा पूरा बदन कपने लगा....मेरे पैर थरथरा उठे....दिल धड़ धड़ कर बाज रहा था....तभी उन्होने मेरे होंठों को अपने होंठों में कस कर पकड़ लिया और अपना एक हाथ उठा कर हल्के से मेरी चूची पर रख दिया....और और सहलाने लगे....उफ़फ्फ़! मैं बयान नही कर सकती राबिया उस लम्हे को....मेरे बदन का रॉयन रॉयन सुलग उठा था.....लग रहा था जैसे मैं पिघल कर उनकी बाहों में पानी की तरह बह जौंगी....उनकी हथेली की पकड़ मजबूत होती जा रही थी....वो अब बेशखता मेरी चूचियों को मसल रहे थे....ये मेरा पहला मौका था....किसी लड़के के हाथ चूचियों को मसलवाने का....मेरी जाँघो के बीच सुरसुरी होने लगी थी....
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उफफफफ्फ़....!!! क्या बताऊँ मैं....ऐसा लग रहा था जैसे मेरे चारो तरफ की ज़मीन घूम रही है.....कहते कहते शबनम की साँसे उखाड़ सी गई...उसकी आँख एकदम लाल हो चुकी थी...उसने मेरा कंधा पकड़ कर एक बार भीच कर फिर छोड़ दिया....मैं बेताबी से इंतेज़ार कर रही थी की वो और आगे कुछ बोलेगी मगर वो चुप हो गई....अपनी आँखो को उसने बंद कर लिया था....लग रहा जैसे कही खो गई है....मैने हल्के से उसका कंधा पकड़ हिलाते हुए कहा....शाब्बो.....धीरे से उसने अपनी आँखे खोली और हल्के से मुस्कुराते हुए बोली....जानती है फिर क्या हुआ...क्या मैं बोली....सुनेगी तो तू बहुत हासेगी...मैने खालिद को थोड़ा पीछे धकेलते हुए उनके होंठों के चंगुल से अपने होंठों को आज़ाद करते हुए कहा...ही खालिद भाई छ्चोड़िए.....ही ये क्या कर रहे है....ही खालिद भाई ये ठीक नही...तू समझ सकती है खालिद की क्या हालत हुई होगी....वो एकदम से घबरा गये....



झट से मुझे छोड़ कर उठ खड़े हुए और फिर कमरे से बाहर निकल गये.....हम दोनो हँसने लगे....मेरा तो बुरा हाल हो रहा था हँसते हँसते ....फिर भी मैने पुछा ...ही बुरा तो नही मान गये तेरे मियाँ......नही यार मैं अपना पसीना पोच्च कर बाहर निकल गई....घर में बहुत सारे लोग थे गुप-सॅप करने लगी....मौका देख कर मैने खालिद को सॉरी बोल दिया....तो वो मुस्कुरा कर बोले....आदत तो धीरे धीरे ही जाएगी बेगम साहिबा....और मेरी कमर पर चिकोटी काट ली.....मैं फिर भाग गई इस से पहले की वो कोई और हरकत करे....ही शाब्बो डार्लिंग तूने मौका गावा दिया....मज़ा तो आया होगा तुझे....थोड़ी देर और चुप रहती तो शायद चूत में उंगली भी कर देता....या उसका लंड देख लेती....कॉलेज की तरह खुले गंदे लफ़जो का इस्तेमाल करते हुए मैने कहा....शबनम भी शरमाई नही....हँसते हुए बोली...साली पहली बार किसी लड़के ने हाथ लगाया था...


मैने ये एक्सपेक्ट नही किया था.....मुझे होश कहा था....जो मान में आया बोल दिया....अब अफ़सोस तो होता है....लगता है थोड़ी देर और मसलवा लेती....उंगली तो मैने बहुत डलवाई है....


ये सुनकर मुझे बरा ताज्जुब हुआ....ही खुद से तो मैं भी डाल लेती हूँ....मगर तूने किस से डलवा ली....जब तेरा कोई बाय्फ्रेंड नही.....ही मेरी लालपरी...तुझे नही पता......ही रब्बा....मुझे कैसे पता ....तू कैसे करती थी...डार्लिंग ये खेल ज़रा अलहाड़े किस्म का है....पर होता कैसे है ये खेल......दिखौ....कहते हुए उसने हाथ बढ़ा कर मेरी एक चूंची को समीज़ के उपर से पकड़ लिया....ही रब्बा...मैने घबरा कर उसका हाथ झटका....वो हँसने लगी और पूरे ज़ोर से हमला बोल दिया....मुझे पीछे धकेल बेड पर गिरा, मेरी पेट पर बैठ.....दोनो हाथो से मेरी दोनो चूचियों को अपनी हथेली में भर मसल दिया......आईईइ....क्या करती है मुई....उफफफ्फ़....छोड़ ....



पर उसने अनसुना कर दिया....अपना चेहरा झुकते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों में भर मेरी चूचियों को और कस कस कर मसलने लगी.....मैं उसे पीछे धकेल तो रही थी मगर पूरी ताक़त से नही....वो लगातार मसले जा रही थी.....मैं भी इस अंजाने खेल का मज़ा लेना चाहती थी.....देखना था की शाब्बो क्या करती है.....कहा तक आगे ......कुछ लम्हो के बाद ऐसा लगा जैसे जाँघो के बीच सुरसुरी हो रही है......मुझे एक अजीब सा मज़ा आने लगा......मैने उसको धखेलना बंद कर दिया...... मेरे हाथ उसके सिर के बालो में घूमने लगे.....तभी उसने मेरे होंठों को छोड़ दिया....हम दोनो हाँफ रहे थे....वो अभी भी हल्के हल्के मेरी छातियों को सहला रही थी.....मुस्कुराते हुए अपनी आँखो को नचाया जैसे पूछ रही हो क्यों कैसा लगा....मेरे चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गयी......उसकी समझ में आ गया......



मेरी आँखे मेरे मज़े को बयान कर रही थी......नीचे झुक मेरे होंठों को चूमते, मेरी कानो में सरगोशी करते बोली......ऐसे होता है ये खेल......मेरे लिए ये सब अंजना सा था....शाब्बो का ये एकदम नया अंदाज था......कुछ पल तक हम ऐसे हे गहरी साँसे लेते रहे.....मेरे चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट और शर्म की लाली फैली हुई थी..... मैने पुछा .....आगे .....शबनम ने फिर से मेरी दोनो चूंची यों को दबोच लिया और बोली.....ही साली तूने आज मेरी आग भड़का दी.....अब पूरा खेल खेलेंगे......कहते हुए वो ज़ोर ज़ोर से मेरे होंठों और गालो को चूमने चाटने लगी....मुझे फिर से मज़ा आने लगा....और मैं भी उकसा साथ देने लगी......हम दोनो आपस में एक दूसरे से लिपट गये....
 
 
 

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