Sunday, March 23, 2014

FUN-MAZA-MASTI भाभी और उस की ननद -1

FUN-MAZA-MASTI


भाभी और उस की ननद -1

 दोस्तों मेरा नाम दलबीर सिंह है और दिल्ली में रहता हूँ। और पेशे से डाक्टर हूँ। मेरी उम्र अब 35 साल है।
   कम उम्र में ही मुझे मस्तराम की कहानियों का चस्का पड़ गया था और मुठ मारने की भी आदत हो गई थी। तब मैं 11वीं क्लास में पढ़ता था। मेरी माँ की एक सहेली थीं, मिसेज़ हांडा, उनकी बहू का नाम था नीता। नीता भाभी का फिगर कमाल का था। साइज़ तो मैं नहीं बता सकता पर खूब भरी-भरी छातियाँ भारी कूल्हे व बीच में पतली कमर, कसम से नीयत ख़राब हो जाती थी।
आंटी जी को अपने बड़े बेटे के पास काशीपुर जाना था और उनका छोटा बेटा यानी वरुण भैया भी अपने काम से देर रात को लौटते थे। आंटी जी जाते वक्त मेरी माँ को बोल कर गई थीं कि आप अपने बेटे को शाम को हमारे घर भेज दिया करना।
मेरी माँ ने उन को इस काम के लिए हाँ बोल दिया था। शाम को जब मैं स्कूल से लौट कर आता था तो माँ मुझे उन के घर भेज देती थीं। उन का घर हमारे घर से थोड़ी दूरी पर था। उस तरफ ज्यादा घर भी नहीं थे।
मैं रोज़ शाम को उनके घर चला जाता था, अपनी किताबें भी साथ ले जाता था। कुछ देर पढ़ने के बाद भाभी जी के साथ गप्पें मारने बैठ जाता था। कभी-कभी उनके घर पर पड़ी हुई मैंग्जीन्स भी पढ़ता था।
एक दिन मैं उनके घर पर था तो भाभी जी ने मुझे एक मैगजीन दी जिस पर पूरी तरह तो नहीं, हाँ कुछ अर्धनग्न तस्वीरें थीं। मैं तस्वीरें देख कर गर्म होने लगा पर क्योंकि मैं उम्र में उनसे छोटा था, इसलिए किसी तरह की पहल न कर सका।
मुझे मैगज़ीन दे कर वो अपने काम निपटाने लगीं। कुछ देर बाद मेरे से बोलीं- दलबीर क्या तू मेरे लिए ऐसी ही एक मैगज़ीन ला सकता है? जिसमें ऐसी ही और इससे बढ़िया तस्वीरें होती हैं? या फिर कहानियाँ होती हैं?
मैं तुरंत समझ गया कि भाभी जी को क्या चाहिए। मगर मैं फिर भी पहल न कर सका।
मैं बोला- भाभी जी मैं पता करूँगा और अगर मिल गई तो ला दूँगा।
इतने में ही भैया के स्कूटर की आवाज़ आ गई और मैं थोड़ा संभल गया। भैया के आने के बाद भाभी जी ने चाय बनाई जो कि मैंने भी पी और मैं अपने घर आ गया।
उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाया और रात में हाथ को तकलीफ देनी पड़ी यानि मुठ मारनी पड़ी। सुबह उठ कर अपने कामों में लग गया पर ध्यान तो वहीं पर था।
जैसे-तैसे दिन निकला और शाम हुई तो मैं मस्तराम की एक किताब लेकर भाभी जी के घर पहुँचा। घर पहुँचते ही खबर मिली कि आज भैया रात को नहीं आएँगे क्योंकि उनकी फैक्टरी में कोई मशीन खराब हो गई थी जिसमें सारी रात लग सकती थी। मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।
भाभी बोलीं- आज तुझे यहीं पर रहना पड़ेगा।
मैं बोला- पहले मैं यह बात घर बता कर आ जाऊँ।
मैंने भाभी जी को वो किताब पकड़ाई और घर आकर माँ को बताया कि आज भैया घर नहीं आ रहे और मैं उन के घर पर ही सोने वाला हूँ।
इस आने-जाने में मुझे आधा घंटा लग गया। जब मैं वापिस लौटा और घन्टी बजाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था तभी मैंने खिड़की में से देखा कि भाभी जी कुछ पढ़ रही थीं। जब गौर से देखा तो भाभी जी वही किताब पढ़ रही थीं जो मैं लाया था।
मैंने घंटी का बटन दबाया और भाभी जी दरवाज़ा खोलने आईं, उनकी आँखें लाल लग रही थीं, वासना के डोरे साफ़ दिख रहे थे।
मैं घर में आया तो पूछा- क्या हुआ? आँखें लाल क्यों हैं?
वो बोलीं- कुछ नहीं सर में दर्द है।
मैं बोला- लाओ मैं दबा दूँ?
तो उन्होंने कहा- पहले खाना खा लो।
वो खाना लगा कर ले आई। मैं हैरान था कि वो खाना एक ही प्लेट में लगा कर लाईं थीं।
उन्होंने कहा- आओ खाना खा लो।
मैंने बोला- एक साथ?
तो वो बोलीं- क्यों मैं तुम्हें कड़वी लगती हूँ क्या?
मैं शरमा कर बोला- वो बात नहीं है, खाना तो मियां-बीवी साथ में खाते हैं।
वो बोलीं- ऐसा कुछ भी नहीं है, आओ खाना खा लो।
मैं उनके साथ खाना खाने लगा। वे बड़े ही अनोखे अंदाज़ से मुझे देख रही थीं। खाना खाने के बाद वो दो गिलासों में दूध गर्म कर के ले आईं और बोलीं- लो दूध पी लो और अब मेरा सर दबा दो।
मैं उनके बिस्तर पर बैठ गया और सर दबाने लगा।
वो मुझसे बोलीं- जाओ पहले कपड़े बदल लो।
मैंने कमीज़ उतार कर खूंटी पर टांग दी और पैंट उतार कर भैया की लुंगी बांध ली और फिर से भाभी जी का सर दबाने लगा। जैसे-जैसे मैं उन का सर दबा रहा था, वो मेरे और नज़दीक होती जा रही थीं, मेरी लुँगी में मेरा हथियार फनफना रहा था।
भाभी जी बोलीं- दलबीरे, अब सर रहने दे, जरा मेरे कंधे दबा दे।
मैंने कहा- ठीक है भाभी जी, पर आप अपने कपड़े बदल लो फिर मैं ठीक से दबा दूंगा।
भाभी बोलीं- ठीक है तू रुक।
वे उठीं और मेरे सामने ही उन्होंने अपने सलवार सूट को उतार कर एक फ्रंट ओपन होने वाली नाईट-ड्रेस पहन ली। मैंने तो उनको जब ब्रा-पैन्टी में देखा तो गनगना गया।
उनकी छोटी सी पारदर्शी फ्रॉक जैसी ड्रेस देख कर बहुत ही उत्तेजित हो गया। उनने मेरी ओर गौर से देखा और मेरे उभार को भी देखा जो लुँगी में अपना फन उठा रहा था।
वे मुस्कुरा कर बोलीं- क्या हो रहा है तुझे?
मैंने कहा- कुछ भी तो नहीं भाभी, मुझे क्या होना है।
वो कुछ नहीं बोलीं, बैड पर आकर लेट गईं। जब वो लेटी थीं, तो उनकी गोरी और चिकनी टाँगे मस्त लग रहीं थीं। मैं उनके कन्धे दबाने लगा। मैंने उनके सिरहाने की तरफ बैठा था। मुझे उनकी चूचियाँ साफ़ दिख रही थीं।
मेरी साँसे बहुत तेज चल रही थीं, उन्होंने अपनी आँखें मूँद ली थीं। तभी अचानक उनका हाथ मेरे लौड़े के पास आया। मुझे लगा कि शायद नींद में उनका हाथ इधर को आ गया है।
एकाध मिनट तक ऐसे ही रहा फिर अचानक उन्होंने मेरे लौड़े को स्पर्श किया। मेरा लंड तो खड़ा था ही, उनके छूने से वो और फनफना गया। मैं कुछ समझ पाता तब तक तो उनने मेरे लौड़े को अपने हाथों में पकड़ लिया।
मैं अवाक था।
उन्होंने कहा- दलबीरे, तूँ इत्थे आ मेरे कोल।
मैं उनके पास लेट गया। उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया। मैंने भी उनका पूरा साथ देना शुरू कर दिया।
वो मुझसे बोलीं- मुझे चोदना चाहता है न? चल आज चोद ले।
मैं भी अब उन्माद में आ गया था मैंने उनके मस्त दुद्दुओं को अपने हाथों में लेकर भंभोड़ना चालू कर दिया। उनकी मादक सिसकारियाँ मुझे पागल बना रही थीं। मैंने उनके सब कपड़े उतार दिए और उनके ऊपर आ गया।
मेरा लौड़ा देख कर वो भी मचल गईं, बोलीं- कब से तेरा लण्ड का इन्तजार कर रही हूँ, आज घुसेड़ दे मेरे राजा।
मैंने भी देर न की और एक ही झटके में पूरा लण्ड उनकी चूत में घुसेड़ दिया। मेरे इस अचानक हमले से वो एकदम से चीख पड़ीं, मुझसे कहा- अबे, जान लेगा क्या मेरी?
मैं बोला- भाभी, पहले फ़ुद्दी तो ले लूँ, बाकी की बाद में देखेंगे !
मैंने अपने धक्के कुछ आहिस्ता से लगाए पर फ़िर भी कुछ ही देर बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा। मैंने भाभी की तरफ देखा। उनका भी इशारा था।
मैंने पूछा- किधर?
बोलीं- अंदर ही गिरा दे।
मैंने भाभी को खूब जोर से भींच लिया और ताबड़तोड़ आठ दस धक्के मारे और अपना लावा उनकी चूत में छोड़ दिया। मैं ठण्डा होकर उनसे ही चिपक गया और भाभी भी मेरे बालों में प्यार से अपने हाथ फेरने लगीं।
उसके बाद कई बार भाभी के साथ मेरा चुदाई कार्यक्रम बना। आज तक उनके साथ हुई मेरी पहली चुदाई की यादें मेरे मन में ताजा हैं।


हुआ यूँ कि एक बार नीता भाभी की ननद माला आई हुई थी और वरुण भैया को कंपनी के काम से 3-4 दिन के लिए बाहर जाना था।
भैया ने मुझे कहा- बिट्टू, मैं 3-4 दिन के लिए कानपुर जा रहा हूँ, कंपनी के काम से, तुझे हमारे घर सोना है।
मेरे लिए तो यह ‘अंधे के हाथ बटेर लगने’ वाली बात थी। मैंने तुरंत ‘हाँ’ नहीं कहा कि कहीं भैया को शक ना हो क्योंकि मेरे मन में तो चोर था न, मैंने कहा- भैया, मम्मी से पूछ कर बताऊँगा।
इस पर वो बोले- उनसे मैंने बात कर ली है।
मैंने कहा- मेरी ट्यूशन...?
मेरी बात पूरी होने से पहले ही वो बोल पड़े- चिंता मत कर तेरी भाभी तुझे एकनॉमिक्स पढ़ा देगी और तू थोड़ा देर से भी चला जाएगा तो भी चलेगा।
मैं उनको दिखाते हुए अनमने भाव से बोला- ठीक है भैया, मैं वहीं पर सो जाऊँगा।
तब तक मुझे यह नहीं पता था कि उनकी बहन भी आई हुई है। वर्ना मैं शायद उन्हें मना कर देता और अपने जीवन के बेहतरीन अनुभवों में से एक का मौका गँवा देता।
नवम्बर का महीना था। सर्दी शुरू हो चुकी थी। मेरा स्कूल शाम की शिफ्ट का था। सर्दियों में हमारे स्कूल की छुट्टी शाम को 5:45 पर हो जाया करती थी। वहाँ से घर आते-आते अँधेरा हो जाता था।
मैं घर आकर सबसे पहले अपनी वर्दी उतार कर घर के कपड़े पहनता था, फिर चाय पीने के बाद अपने बाकी के काम करता था। और ट्यूशन वगैरह जाता था।
जैसे ही मैंने कपड़े बदले तो माँ बोलीं- तू एक काम कर, जा नीता के घर चला जा, क्योंकि वरुण घर पर नहीं है और तेरा खाना नीता बना लेगी।
'अँधा क्या मांगे दो आँखें।'
पर मैंने ऊपरी मन से कहा- तुम ऐंवैं ई हाँ कर देती हो।
तो माँ बोलीं- बेटे उनके परिवार से अपने परिवार के अच्छे सम्बन्ध हैं, जा चला जा बेटा।
मैं मन ही मन खुश होते हुए लगभग साढ़े सात बजे के करीब घर से निकला और करीब बीस मिनट में उनके घर पहुँच गया।
जब उनके घर जाकर मैंने उन घन्टी बजाई, तो दरवाज़ा खोलने के लिए माला यानि कि वरुण की बहन आई थी।
जैसे ही उसने मुझे देखा तो मुस्कुरा कर बोलीं- आ बिट्टू, की हाल आ तेरा !
उसे देख कर मेरी तो सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई। क्योंकि मैं तो यहाँ इस उम्मीद में आया था कि आज तो भाभी को चोदना है।
माला जो कि मुझसे एक साल के करीब ही बड़ी थी, पर मैं उसे उसका नाम ले कर ही बुलाता था, उसको देख कर मेरे लन्ड का तो सारा करंट ही डॉउन हो गया था कि इसके सामने तो कोई बात ही नहीं बनेगी।
मैं अभी इसी सोच में डूबा था कि वो मेरा कन्धा पकड़ कर हिलाते हुए बोलीं- हाँ, क्या हुआ? किस ख्याल में गुम हो गए मिस्टर?
तो मैं चौंकते हुए बोला- कुछ नहीं, आज अचानक बहुत दिनों बाद तुझे देखा है, तो मैं चौंक गया था क्योंकि भैया ने तो बताया नहीं थी कि तू भी आई हुई है।
अंदर ही अंदर मैं उसे कोस रहा था , "साली मुसीबत ! सारा प्लान ही चौपट कर दिया!"
वो बोली- अच्छा अंदर तो आ !
और मैं उसके पीछे-पीछे घर के अंदर आ गया।
भाभी रसोई में थी, खाना बना रही थी, मुझसे बोलीं- बिट्टू, खाना खा ले।
तो मैं इशारे में बोला- भाभी मैं तो लेट ही खाऊँगा पिछली बार की तरह।
भाभी ने मेरी तरफ कनखियों से देखा और मुस्कुरा दीं और रोटियाँ सेकने में लग गईं।
अब मैं सोच रहा था कि कब यह माला थोड़ा मौका दे और कब मैं भाभी से बात करूँ।
मैं घर के अंदर चला गया और अपनी किताब खोल कर बैठ गया। पर जब वासना अपना जोर मारे तो बड़े-बड़े सूरमा भी हार जाते हैं। मैं तो वैसे ही नया-नया खिलाड़ी था। सो मेरा मन भी किताब में कहाँ लगना था पर फिर भी लगा रहा।
लगभग पौने घंटे में भाभी अपने काम से फ्री हुई और वो भी अंदर कमरे में आ गई और माला से बोलीं- टीवी लगा ले, चित्रहार आने वाला है।
यह उस समय की बात है जब दूरदर्शन ही एकमात्र चैनल था।
माला बोलीं- भाभी, दो मिनट में आकर लगाती हूँ !
कह कर बाथरूम में घुस गई।
भाभी बर्तन वगैरह सैट कर रही थीं। मैं फटाफट उठा और भाभी के पास जाकर धीरे से बोला- इसके रहते बात कैसे बनेगी?
भाभी जल्दी से बोलीं- उसे भी तैयार करुँगी। बस जब हमारी रजाई जोर-जोर से हिले तो हमारी रजाई अपनी तरफ से उठा देना, पर पहले सोने का नाटक करना बाकी काम मेरा है। 
तब तक बाथरूम से पानी की आवाज़ आई और भाभी फिर से अपने काम में लग गईं। माला के आने तक भाभी अपने कामों से फारिग हो चुकी थीं।
जैसे ही माला बाहर आई, भाभी मेरे से बोलीं- मैं खाना लगा देती हूँ । जब तक चित्रहार आ रहा है, साथ-साथ ही खाना भी खा लिया जाए। बिट्टू तुम भी अभी खाओगे न?
मैंने कहा- हाँ भाभी, मैं भी आप लोगों के साथ ही खा लूँगा।
पर मैं मन ही मन सोच रहा था कि बात बनेगी कैसे?
इतने में माला ने टीवी ऑन कर दिया और डबल बेड की चादर झाड़ कर उसके ऊपर अखबार बिछाने लगी।
भाभी ने स्टोर में से एक रूम हीटर निकाल कर लगा दिया और बाहर के गेट का ताला लगा कर आ गईं, अंदर आकर कमरे का दरवाज़ा भी अंदर से बंद कर लिया।
टीवी पर अभी विज्ञापन आ रहे थे, रूम हीटर अपना काम शुरू कर चुका था। लेकिन भाभी के मन की सही प्लानिंग क्या थी, यह अभी भी मेरे समझ में नहीं आ पा रहा था। मैं ऊपर से कुछ महसूस नहीं होने देना चाहता था।
भाभी ने खाना लगा दिया था और आकर साथ ही बैठ गई। अब हम लोग अर्ध-वृत में बैठे थे और टीवी देख रहे थे। साथ-साथ ही खाना भी खा रहे थे। चित्रहार शुरू हो चुका था और पुऱाने गाने आ रहे थे।
चित्रहार के ख़त्म होने तक हम लोग खाना खा चुके थे। चित्रहार बंद होने के साथ ही भाभी ने उठकर टीवी बंद कर दिया और बर्तन उठा कर रसोई में गईं।
तो माला बोली- भाभी, मैं आ रही हूँ बर्तन अभी ही मांज लेते हैं।
भाभी ने मना कर दिया कि बर्तन सुबह मांजे जायेंगे, अभी तो ठण्ड हो रही है और ज्यादा बर्तन हैं भी नहीं।
तो माला बोली- ठीक है भाभी, सुबह ही मांज लेंगे।
इतने में भाभी बर्तन रसोई में रख कर आ गई थीं, अंदर आकर भाभी बोली- चलो एक-एक बाजी ताश की हो जाये।
मेरा तो मन था ही नहीं ताश खेलने का पर मेरे से भी पहले माला बोली- भाभी ताश-वाश का मन नहीं है। अब यह बताओ कि सोना कैसे है?
तो भाभी बोलीं- यहीं डबल बैड पर हो सो जाते हैं सारे। तू और मैं बड़ी रजाई ले लेते हैं और बिट्टू सिंगल वाली रजाई में सो जाएगा। क्यों बिट्टू ठीक है ना?
तो मैं बोला- जैसा आप ठीक समझो।
सोने से पहले भाभी ने थर्मस में से चाय निकाल कर 3 गिलासों में डाल दी और बोलीं- लो तुम लोग भी क्या याद करोगे कि भाभी के राज में खूब ऐश की थी।
पर उनके ऐसे बोलने का मतलब बहुत बाद में मेरी समझ में आया।
मैंने दीवान में से दोनों रजाइयाँ निकाल दी थीं। अपनी रजाइयों में घुस कर हम लोगों ने अपनी-अपनी चाय पी। सब से पहले दीवार की तरफ माला लेटी, फिर भाभी, और मुझसे बोलीं- बिट्टू, पहले लाइट बुझा कर नाइट बल्ब जला दे, फिर लेटना।
मैंने ट्यूब बुझा कर नाइट बल्ब जला दिया और आकर मैं भी अपनी रजाई में घुस गया और आँखें बंद कर लीं।
पर नींद का तो दूर-दूर तक पता नहीं था। मन ही मन मैं कुढ़ रहा था कि यह कहाँ दाल-भात में मूसलचंद आन पड़ी।
इस बात को वो ही समझ सकता है जो ऐसे हालात से गुज़रा हो।
लगभग बीस-पच्चीस मिनट बाद मुझे भाभी वाली रजाई में कुछ हलचल सी महसूस हुई।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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