Monday, March 24, 2014

FUN-MAZA-MASTI दिलो की फरियाद--9

 FUN-MAZA-MASTI

 दिलो की फरियाद--9

 तब रेखा बोली- रेखा – मोहन जी आप कितना अच्छा ख्याल रखते है आपकी पत्नी कितनी खुशनसीब होगी जिसको आप जैसा पति मिला है मोहन – हाँ, आप ठीक कह रही है, मेरी पत्नी बहुत खुशनसीब है पर मै नहीं हूँ रेखा – ये आप क्या कह रहे है? आप खुश नहीं है, मै नहीं मान सकती हूँ अगर आप जैसा किसी को भी मिले तो वह खुशनसीब तो होगा ही मोहन – आप छोडि*ए इन बातों को, मै बेकार में आपको परेशान नहीं करना चाहता हूँ रेखा – नहीं इसमें परेशानी कैसी है एक पड़ोसी होने के नाते आपने जैसे मेरी मदद की है उसी प्रकार कम से कम मै आपकी परेशानी सुनकर आपका मन का बोझ कुछ हल्का कर सकूं मोहन – ‘’फिर भी रेखा जी आप बेकार में ही परेशान हो रही है, यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है बस वक्त की बात है, सही समय आने पर सब ठीक हो जाएगा रेखा – कम से कम आप मुझे अपना दोस्त समझकर ही कुछ बाते शेयर कर सकते है मोहन – जब आप इतना कह रही है तो सुनिए। अगर शादी के बाद मियॉ बीवी एक साथ नहीं रह पाये तो उस शादी कर कोई मतलब नहीं रह जाता है\ जब से मेरी शादी हुई है तब से पिंकी मेरे साथ कुछ १० से १५ दिन ही साथ मे रही है उसके बाद हम दोनो बस एक या दो दिन के लिए ही मिल पाते है, बस यही बात मुझे अच्छी नहीं लगती है, और मै अक्सर अकेला महसूस करता हूँ रेखा – बस इतनी सी बात है, आप पिंकी को हमेशा के लिए लेकर आ जाइए, फिर आपकी समस्या खत्म हो गई मान लीजिए मोहन –अगर ऐसा हो जाता तो कितनी अच्छी बात थी, पर उसको तो पति से ज्यादा नौकरी प्यारी है, आप ही बताइए क्या यहा पर उसको दुसरी नौकरी नहीं मिलेगी?आप भी तो शादीशुदा है किसी की पत्नि है क्या आपका मन नहीं करता होगा कि आप अपने पति के साथ रहे, बताइए?’ रेखा – अगर मेरा पति मेरी इच्छा पुछ्ता तो कितनी अच्छी बात थी, उसने तो बस मुझे एक इस्तेमाल करने की चीज समझा, पैसो के लिये उसने मुझे मारा पीटा \ अगर वह आप की तरह मान सम्मान देता तो मै आज यहा पर नहीं रहती पर मेरी किस्मत में ऐसी बात कहां ऐसी बाते करते करते रेखा की आंखो से आंसू निकलने लगे\ मोहन – देखा मेरे कारण आपके आंखो से आंसू निकल गये और अनायास ही मोहन के हाथ रेखा के पीठ पर से उसको चुप करा रहे थे\ रेखा ने आंचल से अपने आंसुओ को पोंछा, फिर वह बोली- रेखा – बातें करते करते बहुत देर हो गई है अब मै चलती हूँ,छुटकी और मॉ मेरा इंतजार करते होंगे\’ रेखा जैसे ही घर जाने के लिए उठी और चलने लगी तभी मोहन ने कहा – अगर आप वुरा न माने तो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ?’ रेखा जो मुश्किल से दो कदम भी न चल पायी थी बोली – “ जी कहिए! मोहन – पह्ली बात आप ने मुझे दोस्त कहा है आपने मेरा दुख तकलीफ बांटना चाहा है, मै चाहता हूँ कि आप मेरे नाम के साथ जी मत लगाइए, आप मुझे सिर्फ मोहन कह सकते है रेखा – ठीक है मोहन जी! सॉरी......मोहन रेखा ने अपने सिर को हिलाते हुए हामी भरी\ मोहन –दुसरी बात,रेखा जी आप बहुत सुंदर है, आपकी सुंदरता और आपके बदन की कसावट ने पिछ्ले कुछ दिनो से इतना आकर्षित किया है कि मै आपकी तारिफ किए बिना नहीं रह सका\’

 मोहन – पह्ली बात आप ने मुझे दोस्त कहा है आपने मेरा दुख तकलीफ बांटना चाहा है, मै चाहता हूँ कि आप मेरे नाम के साथ जी मत लगाइए, आप मुझे सिर्फ मोहन कह सकते है रेखा – ठीक है मोहन जी! सॉरी......मोहन रेखा ने अपने सिर को हिलाते हुए हामी भरी। मोहन –दुसरी बात,रेखा जी आप बहुत सुंदर है, आपकी सुंदरता और आपके बदन की कसावट ने पिछ्ले कुछ दिनो से इतना आकर्षित किया है कि मै आपकी तारिफ किए बिना नहीं रह सका। मोहन के मुह से ऐसी बाते सुनकर रेखा को यह समझ में ही नहीं आया कि वह मोहन को उसकी इस तरिफ पर शुक्रिया अदा करे या मोहन के इस दु:साहस का जवाब उसको झिड़की देकर करे। वह कुछ नही बोली लेकिन मोहन कि बातो को सुनकर हंस दी और चली गई। चूंकि अब मोहन का रेखा और उसकी बहन सीमा के साथ घूमना फिरना उसके परिवार साथ उठना- बैठना रोज होता था। कुछ ही समय में रेखा मोहन और सीमा आपस में काफी घूल मिल गये थे। कभी-कभी मोहन रेखा से के साथ कुछ ज्यादा ही पर्सनल बातों पर आ जाता था जिससे रेखा अपने आप को कुछ समय के लिये असहज महसुस करती थी। फिर सभी चीजे समान्य हो जाती थी। इस तरह हफ्तो एवं महीनो गुजर गए, इतने दिनो में मोहन रेखा और उसके परिवार वालो के सम्बंध बहुत अच्छे हो गए थे, मोहन अब उनके काफी करीबी हो गया था। अब रेखा और सीमा भी बिना किसी संकोच व झिझक के मोहन के कमरे कभी भी और किसी समय भी चले आते थे और वहा पर मोहन के साथ घंटो गुजारा करते थे। जिससे रेखा और सीमा के माता- पिता को मोहन के पास उनका समय बिताने से कभी भी कोई समस्या नही हुई और ना ही कभी पुछा कि वे वहा क्या करते थे। और इसी तरह कई और हफ्ते निकल गए। इसी दौरान एक बार मोहन ने रेखा को बताया कि वह, उसकी पत्नी पिंकी और उसके कुछ दोस्त मिलकर कहीं बाहर टुर में जाने वाले है। रेखा और सीमा ने भी साथ में जाने की इच्छा जाहिर को तब मोहन ने बतलाया कि इस टुर की प्लानिंग उसने नहीं की है वह तो बस उनके साथ जा रहा है। है। रेखा ने इस परिस्तिथि को समझा पर सीमा ने फिर जिद की तो अंततः उन्होने ने भी बाद में पिकनिक जाने का निर्णय किया। वह समय आया जब मोहन को पिंकी, संगीता और नेहा के साथ पिकनिक में जाना था। मोहन टुर के लिए निकल गया और लगभग एक सप्ताह में वह टुर से वापस भी आ गया। जब मोहन टुर से लौटा उस समय उसका परिवार, पिंकी और राहूल, भी साथ में था। Flashback End

Now Present Moments
चूंकि पिंकी यहां कई महीने बाद आई थी तो उसने महसुस किया कि बहुत सारी चीजे बदल गई थी। सीमा से वह पहले से ही मिल चुकी थी पर रेखा से मुलाकात पहली बार हुई थी। पहली ही मुलाकात में पिंकी की रेखा से अच्छी मित्रता हो गई। रेखा नेबातो ही बातो में अपनी आप बीती पिंकी को सुनाई जिसे सुनकर पिंकी भी थोड़ी देर लिए ही सही रेखा के साथ उसके दुःख में खो गई और भावनाओ के आवेश में पिंकी ने भी अपनी मन व्यथा को रेखा के सामने बताया।
पिंकी बोली मेरे पति चाह्ते है कि मै अपनी नौकरी छोड़ दू, भला आज के समय में कोई अच्छी खासी सरकारी नौकरी को कोई कैसे छोड़ सकता है। बस इस कारण से हमारे बीच में अक्सर खट पट होते रह्ती है
रेखा ने पिंकी की मन की भावनाओ को समझा और उसे संतावना दी जल्द ही उसकी समस्या ठीक हो जाएगी।
पिंकी ने और आगे बताया मेंरे पति मुझे मारते पीटते तो नही पर कभी- कभी ऐसा व्यहार करते है जिस कारण मुझको ऐसा मन करता है कि मै मर जाऊ। और रात को जब दोनो एक साथ सोते है उस समय वह मुझे बस एक खिलौना समझते है कि जब पति ने चाहा कि चोदना है तो बस क्या है लंड को घुसाया और मुझे चोद डाला। मेरे मन की इच्छा, मेरे मन की प्यार और सेक्स की चाहत का कोई कीमत ही नही है  


रेखा के मने में अनायास ही एक सवाल आया ‘ क्या तुम्हारे पति तुमको सच में प्यार नही करते’
पिंकी –‘ हाँ, मोहन को केवल उसके लिंग की भूख शांत करनी रहती है, मेरे इच्छओं के बारे में नही सोंचते है और इसके अलावा बाकि समय कभी प्यार से दो शब्द बात भी नही करते है’
रेखा –‘ मतलब!’
पिंकी – ‘एक औरत को क्या चाहिए? प्यार, दुलार और देखभाल, अभी पिकनिक में मै और मोहन लगभग दो महीने बाद मिले थे इतने अन्तराल के बाद में मिलने के बावजूद भी उन्होने उस समय सिर्फ एक ही बार मुझसे प्यार किया, बस उन्होने लिंग को घुसाया और जोर जोर से मुझे धक्का मारकर झड़ गए। ना ही मेरे स्तनो को ठीक से सहलाया भी नही और निप्पल्स को भी ठीक से नही चुमा और ना ही मेरे बाकी शरीर को, मैं दर्द के मारे कराहई, तडपी, तो उनको ऐसा लगा कि सेक्स का आनंद ले रही हूँ। लेकिन वह दर्द मेरे योनि के सुखेपन से था। यहा तककि मुझे पुछा भी नही कि मुझे अच्छा लगा कि नही। आप ही बताइए अगर आपके पति आपके साथ ऐसा करते तो कैसा करती?’
पिंकी की इन बातों ने रेखा के मन झंझोर दिया, उसका अतीत उसके आंखो के सामने झुलने लगा। पल भर में ही वो सारी घटनाए उसके मन को कचोट गई। कुछ ही दिन में रेखा और पिंकी आपसे में अचछे से खुल गए। लेकिन पिंकी हमेशा की तरह मोहन के पास दो दिन से ज्यादा नही रुकी, दो दिन बाद पिंकी वहा से चली गई। गई। क्योंकि अब मोहन के बिना भी एक नारी की, पिन्की की जरूरते शरद से पुरी हो जा रही थी। पिंकी की बात ने रेखा को यह यकीन हो गया कि इन दोनो के बीच में कुछ दूरियॉ है। पिंकी से मिलने के बाद रेखा के मन में मोहन के प्रति संत्वनापूर्ण विचार आया। रेखा को लगा कि मोहन को वह साथ नही मिल पा रहा है जिसे उसे मिलना चाहिए क्योंकि रेखा भी उसी अवस्था से गुजर रही थी। पिंकी तो चली गई पर उसने रेखा के मन में मोहन का ध्यान रखने का लालसा उत्पन्न कर दी।
अब रेखा मोहन के साथ अधिकतर वक्त बिताने के लिए मोहन के साथ उसके घर में बैठकर घंटो बातचीत किया करती थी। मोहन की अनुपस्थिति में रेखा मोहन के कमरे कि थोड़ी बहुत साफ सफाई भी कर दिया करती थी। उसके पीसी टेबल में रखे समान को या घर में रखे समानो और बर्तनो को भी व्यस्थित कर देती थी। शाम के वक्त यदि घर में कोई पकवान, नाश्ता, सब्जी अथवा खाने पीने की कोई चीज आदि पकी हो तो रेखा उन चीजो को मोहन के पास भेजवाती थी या फिर खुद ही लेकर जाती थी।
मोहन ने देखा कि शाम को जब घर पहुंचता है तब उसे हर रोज के कुछ ना कुछ नास्ता मिलता है इसके अलावा उसके कमरे बिखरी हुई चीजे भी उसके लौटने में पर व्यस्थित मिलती थी यह देखकर रेखा और उसके घरवालो के लिए उसके दिल मे सम्मान और बढ़ गया। मोहन को जब पता चला कि उसके कमरो की साफ़ सफ़ई रेखा करती है तब उसके दिल में रेखा के एक कसक सी हुई अगर रेखा जैसी कोई लड़की उसकी पत्नी होती तब शायद वह बहुत सुखी होता।
पिकनिक से आने के बाद अब तक करीब एक हफ्ते निकल चुके थे। पिन्की भी वापस लौट चुकी थी। एक शाम जब मोहन, रेखा और सीमा ( छुटकी) एक जगह बैठे हुए थे और आपसे में बाते कर रहे थें तब-


पिकनिक से आने के बाद अब तक करीब एक हफ्ते निकल चुके थे। पिन्की भी वापस लौट चुकी थी। एक शाम जब मोहन, रेखा और सीमा ( छुटकी) एक जगह बैठे हुए थे और आपसे में बाते कर रहे थें तब-
मोहन – रेखा आप ने मेरी बहुत असान कर दी है, अभी मै सिर्फ आप के कारण ही काम में बहुत अच्छे से ध्यान दे पा रहा हूँ। आपको बहुत बहुत धन्यवाद! ............
रेखा – बीच में रोकते हुए एक मिनट! किस चीज के लिए धन्यवाद, मैंने कौन सा ऐसा काम किया है?’
मोहन – क्यों जानकर भी अनजान बन रही हो, मुझे छुटकी ने सब बताया है कि आप मेरी हेल्प करने के लिए आप मेरे कमरे की साफ़ सफ़ाई कर देती है और बिखरे हुए समानो को भी ठीक कर देती है, इसलिए....
रेखा – मुझे लगता है कि चूंकि आप अकेले हो इसलिए मैं बस आपकी मदद कर देती हूँ.........इतना ही बस इससे ज्यादा कुछ नही है, अगर मेरे इस काम से आपको हेल्प मिल रही है तो इससे अच्छी बात और कुछ नही हो सक्ती है
मोहन – रेखा आप कितनी अच्छी है कि मेरी मदद करना चाह्ती है लेकिन अगर मुझे इन सब चीजो का आदत पड़ गई तो मुशकिल हो जाएगी क्योकि आप एक ना एक दिन यहा से चले ही जाओगे तब तो मुशकिल हो ही जाएगी ना…’
रेखा – अचानक से नही-नही मैं कभी भी नही जाऊंगी............. मै यही रहूंगी, हो सकता है आप ही जाओगे एक दिन, क्योंकि आप तो परदेसी हो
तभी सीमा बोली – आप दीदी को हमेशा के लिए अपने साथ रख लो, फिर आपको कभी भी कोई मुशकिल नही होगी
रेखा – चुप रे! बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देती है। मोहन जी आप इसकी बातो पर ध्यान मत दीजिए ये तो ऐसे ही कुछ भी बोल देती है.....
मोहन – नही- नही छुटकी की बात में दम है..... तुम भी एक बार सोच के तो देखो मोहन ने रेखा की ओर देखकर कह।
रेखा मोहन से नजरें नही मिला सकी – छी! मोहन जी ये तो बच्ची है पर आप तो समझदार है आप भी कैसी कैसी बाते करते हैं
इसी बीच छुटकी का घर से बुलावा आ जाता है तो छुटकी चली जाती है, रेखा भी चलने के लिए उठती है तब मोहन उसे रुकने के लिए कहता है।
मोहन – आप थोड़ा सा रुको ना, आप साथ मुझे अच्छा लगता है इसलिए जब पुकारेंगे तब चले जाना
रेखा ठीक है कहकर बैठ जाती है और दोनो के बीच की बात आगे बढ़ती है।
मोहन – रेखा अगर आप बुरा ना माने तो मै आपसे एक बात कहना चाह्ता हूँ
रेखा – मैं आपकी किसी भी बात का बुरा नही मानूंगी, आप कहिए! 
 







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