Sunday, March 30, 2014

FUN-MAZA-MASTI सुष्मिता भाभी पार्ट--4

FUN-MAZA-MASTI

 सुष्मिता भाभी पार्ट--4

गतान्क से आगे..............


मैं एक लग्षुरी नाइट कोच से सुष्मिता के साथ काठमांडू से लौट रहा था.होटेल से निकलने के पहले सुष्मिता ने नहा कर काफ़ी आकरसाक मेकप किया था. उस ने गुलाबी रंग की सिल्क सारी और उस से मिलते रंग की ब्लाउस पहन रखा था. ब्लाउस का गला आगे और पिछे दोनो तरफ से काफ़ी बड़ा था जिस से उस के पीठ का अधिकांस हिस्सा खुला हुवा था. ब्लाउस के आगे के लो कट यू-शेप के गले से उस की चूचियों का कुच्छ हिस्सा झलक रहा था. ब्लाउस के अंदर पहने उसके ब्रा का पूरा नकसा ब्लाउस के उपर से साफ दिख रहा था. टाइट ब्लाउस में कसे होने के कारण उस की चूचियों के बीच एक लाइन बन गयी थी. सारी और ब्लाउस में कसमसाती उस की चूंचिया काफ़ी सुडौल और आकरसाक लग रही थी. उन्हें देख कर किसी भी मर्द का मन उन्हें कपड़ो के बाहर देखने को तडपे बिना नहीं रह सकता. गले में उसने सोने का चैन और चैन में एक आकरसाक लॉकेट पहन रखा था जो उस की चूचियों के उपर लटक रहा था. कानों में सुंदर सोने की बलियाँ और नाक में सोने का नथ उस की सुंदरता को और बढ़ा रहे थे. उसने अपनी दोनो बाँहों में सारी से मॅच करते रंग की सुंदर चूड़ीयाँ पहन रखी थी. उस की दोनो हथेली आकरसाक डिज़ाइन में लगी मेहंदी से सजी हुवी थी और उस के हाथों और पाँवों के नाखूनों पर गुलाबी नाइल पोलिश लगी हुवी थी. उस ने अपने पाओं में घुंघरू दार चाँदी की पायल पहन रखी थी. इस तरह चलते वक्त उस की पायल के घुंघरुओं से छम छम का मधुर संगीत बज उठता था और जब कभी वो अपने हाथों को हिलाती थी तो उस की बाँहों की चूड़ीयाँ खनक कर वातावरण को मधुर तरंगों से भर देती थी.उसने मेक-अप भी काफ़ी आकरसाक ढंग से किया था. उस के गोरे गाल महँगा क्रीम लगा होने से और सुंदर लग रहे थे तो वहीं होंठों पे लगा लिपस्टिक उस के होंठों की सुंदरता को और बढ़ा रहा था. .. उस के माथे पे लगी बिंदी और माँग में सजी सिंदूर उस के रूप को ऐसे चमका रहे थे जिसे देखने के बाद उसके सुंदर मुखड़े को छुने और चूमने को कोई भी व्याकुल हो जाए. जब वो अपनी बलखाती चाल के साथ टॅक्सी से उतर कर अपनी कमर मतकती बस में सवार हुई तो लोग उसे देखते रह गये. मुझे पूरी उम्मीद है कि आसपास के सभी मर्द उसे छुने और कम से कम एक बार उसे चोदने की लालसा ज़रूर किए होंगे. आस पास की औरतों और लड़कियों को उस के हुस्न से ज़रूर जलन हुई होगी.
लेकिन इन बातों से बेख़बर वो अपनी कमर मतकती हुई बलखाती चल से चलती हुई बस में सॉवॅर हो कर अपनी सीट पे बैठ गयी और उस के पिछे पिछे चलते हुवे मैं भी उस के बगल वाली सीट पे बैठ गया. बस के अंदर भी हमारी सीट के आस पास बैठे लोग एक दूसरे की नज़र बचा कर अपनी आँखों से उस की सुंदरता के जाम को पी रहे थे. हमारी सीट से आगे के रो में बैठे लोग बार बार पिछे मूड कर उसे देख लेते थे, मानो ऐसा करने से उन की आँखों और दिलों को ठंढक पहुँच रही हो. हमारी रो में ऑपोसिट साइड की सीट पे दो सुंदर लड़कियाँ बैठी हुई थी और वो भी कभी कभी मूड कर सुष्मिता और मेरी तरफ देख लेती थी. बस अपने निर्धारित समय से रात के 9 बजे चल पड़ी. बस चलने के बाद करीब एक घंटे तक बस के अंदर की लाइट जलती रही और इस बीच लोग बार बार उस की सुंदरता को अपनी आँखों से पीते रहे. करीब दस बजे कंडक्टर ने बस की सारी बत्तियाँ बुझा दी जिस से बस के अंदर अंधेरा च्छा गया. अंधेरे में कुच्छ देर तक लोगों की बात चीत के आवाज़ आती रही और करीब 10 बजते बजते बस के अंदर बिल्कुल खामोसी च्छा गयी. . मैं इसी मौके के इंतजार में था. मैने सुष्मिता को अपने पास खींच लिया और खुद भी थोडा खिसक कर उस से सॅट गया. मैने अपने दाहिने हाथ में उसका बायां हाथ ले लिया और उसके हाथ को अपने हाथों से सहलाने लगा. मेरे अंदर इस से सनसनी बढ़ती जा रही थी. मैने उसे अपनी गोद में खींच कर उसके मुखड़े पे एक चुंबन जड़ दिया. अब मैने अपने दाए हाथ को उस के कंधे पे रख कर उस के कंधे और नंगे पीठ को सहलाने लगा. थोड़ी देर में मेरा हाथ फिसलता हुवा उस की दाहिने चूची पे पहुँच गया और मैं उसे ब्लाउस के उपर से ही सहलाने लगा. चूची को सहलाते सहलाते कभी कभी मैं उसे जोस से दबा देता था. अब मेरा लंड पॅंट के अंदर पूरी तरह खड़ा हो कर तेज़ी से फुदकने लगा था. मैने उसके बाएँ हाथ को अपने बाएँ हाथ से पकड़ कर अपने लंड पे खींच लाया. वो अपने हाथ से पॅंट के उपर से ही मेरे लंड को दबाने लगी. मैं अपने बँये हाथ को उस की जांघों पे रख कर उन्हे सहलाने लगा. मेरा दाहिना हाथ लगातार उस की चूंचियों पे फिसल रहा था. मैं सुष्मिता की चूचियों और जांघों को सहला रहा था और वो मेरे लंड को अपने हाथों से मसल रही थी. रात अब काफ़ी बीत चक्का था और मार्च का महीना होने के कारण अब हल्का ठंड महसूस हो रहा था जिस का फ़ायडा उठाते हुवे बॅग से हमने एक चदडार निकाल कर उसे अपने जिस्मों पर डाल लिया. हमारे जिस्म अब चदडार से पूरी तरह धक गये थे. जिस्म पे चदडार डालने के पिच्चे ठंड तो सिर्फ़ एक बहाना था क्योंकि इतना ज़्यादा ठंड भी नहीं पड़ रहा था की बिना चदडार के काम ना चल सके. हमने तो चदडार का इस्तेमाल सिर्फ़ खुल कर एक दूसरे के बदन का लुत्फ़ उठाने के लिए किया था.

चदडार डालने के बाद मैने सुष्मितकी सारी और पेटिकोट को उसके कमर तक उठा दिया और उसके ब्लाउस के हुक और ब्रा के हुक को खोल कर उस की चूचियों को इन के बंधन से मुक्त कर दिया. अब मैं अपने एक हाथ से उसकी नंगी चूचियों को मसालते हुवे दूसरे हाथ से उस की नंगी जांघों और चूत को सहला रहा था. सुष्मिता ने मेरे पॅंट का ज़िपर खोल कर मेरे खड़े लंड को बाहर निकाल लिया था और वो उसे अपने हाथों में लेकर बड़े प्यार से सहला रही थी. मैं उस की चूचियों को मसालते मसालते कभी कभी उस की चूचियों की घुंडी को ज़ोर से दबा देता. वो मेरे लंड को तेज़ी के साथ सहलाने लगी थी. मेरे कड़े लंड से थोडा थोड़ा पानी (प्र-कम) निकालने लगा था जो लंड पे चिकनाई का काम कर रहा था. अब उसके हाथ मेरे पूरे लंड पे तेज़ी के साथ चल रहे थे. वो मेरे लंड पर सुपरे से लेकर जड़ तक और कभी कभी मेरे अंडकोस तक अपने हाथ को घुमाने लगी थी. उत्तेजना हर पल बढ़ती जा रही थी और हम अब तेज़ी से एक दूसरे के बदन को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगे थे. मैने उसकी जांघों को थोडा फैला कर, अपना हाथ उसकी चूत पे रख कर, उस की चूत की फांको को अपनी उंगली से फाइयला कर, उस की चूत की दरार में अपने हाथ की बिचली उंगली घुसा डी. मेरी उंगली उस की चूत के अंदर के दाने को टिक टिक कर के सहला रही थी. अब उत्तेजना के मारे वो अपना कमर हिलाने लगी थी. उस की चूत के दाने को काफ़ी देर तक सहलाने के बाद मैं अपनी उंगली चूत के छेद पे रख कर अंदर की तरफ ठेलने लगा. मेरी उंगली बड़ी आसानी से उसकी चूत में समा गयी क्यों की काफ़ी लंबे समय से सहलाए और मसले जाने के कारण उस की चूत पानी छ्चोड़ने लगी थी. मैं उस की चिकनी चूत में गाचा गछ उंगली पेले जा रहा था. मेरी उंगली तेज़ी से उस की चूत में अंदर बाहर होने लगी थी. उस ने अपने होंठो को ज़ोर से दबा रखा था. शायद वो अपने मुँह से निकल पड़ने को व्याकुल सेक्सी उत्तेजक सिसकियों को रोकने के लिए ऐसा किया थी.

अपनी चूत में घुसते निकलते उंगली की तेज गति के साथ ले मिलकर वो अपना कमर हिलाए जा रही थी. वो मेरे लंड को भी ज़ोर ज़ोर से मसालने लगी थी. हम दोनो स्वर्ग का आनंद उठा रहे थे. सुष्मिता ने एका एक मेरे लंड को कस के पकड़ कर अपनी जाँघो की तरफ खींचना शुरू किया. मैने अपना दाहिना पैर सीट के उपर किया और थोड़ा तिरच्छा होकर अपनी कमर को उस की नंगी जाँघो से सटा दिया. अब मेरा लंड उस के जांघों से टकरा रहा था. उस ने भी अपने दाहिने पैर को सीट पे मोड़ कर रख लिया और मेरे ऑपोसिट डाइरेक्षन में झुकते हुवे अपने चुटटर को मेरे लॅंड पे सटा दिया. अब मेरा लंड उस के चुटटर के बीच के दरार पर बस की रफ़्तार के साथ ही हिचकोले खा रहा था. मैं अपनी कमर को हिलाते हुवे उस के चुट्त्रों के बीच के दरार में अपने लंड का धक्का लगाने लगा. मेरा लंड उस के चुटटरों के बीच आगे पिछे घूमते हुवे पूरी मस्ती में उसकी गांद के बीच सफ़र कर रहा था. सफ़र में कभी मेरा लंड उस के गांद के छेद से टकरा जाता तो कभी उस की चूत तक पहुँच जाता. वह अपने चूतदों को थोड़ा और तिरच्छा करते हुवे थोडा और झुक गयी. मैने भी अब अपने चुटटर को थोडा और तिरच्छा कर लिया जिस से मेरा लंड अब उसके फुददी के छेद से सॅट गया.

उस की जांघों को अपने हाथ से पकड़ कर मैने अपना लंड उस की चूत में ठेलने की कोशीष की लेकिन अंदर जाने के बजाय मेरा लंड फिसल कर उस की चूत पे आगे बढ़ गया. मैं आंगल बदल बदल कर उस की चूत में अपना लंड घुसाने की कोशीष करता रहा और आख़िर मुझे कामयाबी मिल ही गयी. मेरा लंड उस की चूत के अंदर समा गया. अब मैं उस की चूत में अपना कमर हिलाते हुवे लंड को धकेलने लगा. मेरा लंड उसकी चूत में अंदर बाहर होने लगा. लेकिन प्रायापत स्थान के अभाव में धक्के लगाते वक्त बार बार मेरा लंड उस की चूत के बाहर आ जाता था. लंड के चूत से बाहर निकलते ही वो अपने हाथ से पकड़ कर मेरे लंड को अपनी चूत में घुसा लेती थी और मैं फिर से धक्के लगा कर उस की चूत को चोदने लगता था. उस की चूत को इस तरह चलती बस में चोदने में मुझे बड़ा अनोखा मज़ा मिल रहा था. ऐसा मज़ा उसे या किसी और को चोदने में मुझे कभी नहीं मिला था. वो भी पूरी मस्ती में अपना चूत चुड़वाए जा रही थी. उस की चूत को चोद्ते हुवे एका एक मेरे मन में सरारत सूझी. मैने सोचा की चूत से बार बार लंड बाहर निकल जा रहा है. उस की चूत के बनिस्पात गांद का आंगल लंड पेलने के लिए ज़्यादा सूबिधा जनक है, इस लिए क्यों ना गांद में ही लंड घुसा कर गांद मारने की कोसिस की जाए. ये सोच कर मैं एक दम रोमांचित हो गया और अपने हाथ से लंड पकड़ कर मैने उसे सुष्मिता के गांद पर टीका कर एक ज़ोर दार धक्का लगा दिया. मेरे लंड का सुपारा सुष्मिता के गांद में फँस गया. मैने तुरंत बिना समय गँवाए दो तीन धक्के उस के गांद में जड़ दिए. मेरा समुचा लंड उस की गांद में समा गया. जैसा मैने सोचा था वैसे ही चूत की बनिस्पात गांद में लंड पेलने में ज़्यादा आसानी हो रही थी. लेकिन इस का उल्टा असर सुष्मिता पे पड़ा. .अचानक गांद में लंड के घुसने से वो एकाएक चीख पड़ी. उस की चीख से हमारे ऑपोसिट रो में बैठी लड़की की आँख खुल गयी और हमे इस पोज़ में देख कर उस की आँखें हैरत से फटी रह गयी. लेकिन मैं इतना ज़्यादा उत्तेजित हो चुक्का था की उस के देखने का परवाह किए बगैर मैं दनादन सुष्मिता के गांद में अपना लंड पेलता रहा. सुष्मिता के गांद में घुसता निकलता लंड तो वो नहीं देख सकती थी क्यों कि हमारा जिस्म चदडार से ढाका हुवा था लेकिन हमारे हिलते चूतदों की गति से वो समझ चुकी थी की चलती बस में हम चुदाई में भिड़े हुवे हैं. उस के लगातार हमारे तरफ देखते रहने से हम और अधिक उत्तेजित हो गये और मैं तेज़ी से सुष्मिता के गांद में अपना लंड आगे पिछे ठेलने लगा. मुझ से भी ज़्यादा सुष्मिता उत्तेजित हो चुकी थी और वो काफ़ी बोल्ड भी हो गयी. उस ने धीरे से चदडार हमारे बदन से सरका दी. अब वो लड़की और हैरत से हमारी तरफ देखने लगी थी. .. सुष्मिता के ब्लाउस और ब्रा खुले हुवे थे और उसकी सारी कमर तक उठी हुवी थी जिस से उसकी नंगी गोरी और सुडौल चिकनी जंघें बस के भीतर की हल्के लाइट में चमक रही थी. मैं उस लड़की के आँखों के सामने सुष्मिता के गांद में सटा सॅट अपना लंड पेले जा रहा था. गांद मराने में सुष्मिता भी अपनी कमर हिला हिला कर मेरी मदद कर रही थी. और हमारे चुदाई का खेल वो लड़की आँखें फारे देख रही थी. करीब पंडरह मिनिट के धक्कों के बाद मैं सुष्मिता के गांद में ही झार गया. फिर हम सीधे होकर बैठ गये.

अभी भी हम में से किसी ने अपना कपड़ा दुरुस्त नहीं किया था. अभी तक शायद वह लड़की सुष्मिता की चूत या मेरा लंड नहीं देखा पायी थी. ठीक उसी समय आगे से कोई गाड़ी आई जिस के हेडलाइट में हमारा नंगा जिस्म, मेरा लंड और सुष्मिता की चूत और चूची चमक पड़ी. मेरा लंड और सुष्मिता की चूत और चूची को देख कर पता नहीं उस लड़की पे क्या असर पड़ा लेकिन मेरे मन में उसे चोदने की इच्छा जाग उठी. मैं इसी ख्याल में सुष्मिता के होंठों को उस लड़की के सामने चूमते हुवे उस की चूचियों को ज़ोर ज़ोर से मसालने लगा. साथ ही मैने अपने एक हाथ की उग्लियों से सुष्मिता की चूत फैला कर उस में उंगली घुसेड दी. सुष्मिता मेरे मुरझाए लंड को अपने हाथों में लेकर उस के सामने ऐसे हिलाने लगी मानो वो उस लड़की को चुद्वाने का निमंत्रण दे रही हो. ऐसा करते वक्त सुष्मिता ने उस लड़की की तरफ देखते हुवे आँख मार दी. इस पे वो लड़की अपना आँख बंद कर के अपना मुँह दूसरी तरफ फेर ली. लेकिन हम देख सकते थे कि उस की साँसें बड़ी तेज़ी से चल रही थी. कुच्छ देर तक ऐसे ही हम दोनों चलती बस में नंगा बैठे रहे फिर हमने अपना काप्रा ठीक कर लिया. इस घटना के करीब एक घंटा बाद बस एक सुनसान जगह पे लोगों के पेशाब करने के लिए रुकी.मैं बस से उतार कर पेशाब करने चला गया. मेरे बाद सुष्मिता भी उतर कर एक तरफ चल पड़ी. उसके बाद वो लड़की भी उसी तरफ चल पड़ी जिधर सुष्मिता गयी थी. मैं उन्हें ही देख रहा था. पेशाब कर के आते वक्त वी दोनो आपस में कुच्छ बातें कर रही थी. बस चलने के बाद मैने धीरे से सुष्मिता से पुचछा की तुम्हारी क्या बातें हुई. उसने बाद में बताने को कह के बात ताल दी.

घर पहुँच कर उस ने कहा कि वो लड़की बंद कमरे में हमारी चुदाई का खेल अपनी आँखों से देखना चाहती है. उसने इसके लिए अपना टेलिफोन नंबर भी दिया है. मैने अपनी पिच्छले कहानी में बस में सुष्मिता को चोद्ते वक्त हमें देखने वाली जिस लड़की की बात की थी आज मैं उसकी चुदाई की कहानी यहाँ लिख रहा हूँ. उम्मीद है आप को ये कहानी पहले की कहानियों की तरह ही पसंद आएगी. अब मैं आप को ज़्यादा इंतेजर नहीं कराना चाहता अब कहानी पढ़ने के लिए मेरे पुरुष मित्रा अपने पॅंट से अपना अपना लंड निकाल कर अपने हाथों में ले लें और मेरी महिला मित्रा अपनी चूचियों और चूतो को उघेद कर अपने हाथों को उन पर जमा लें. आगे क्या करना है आप खुद समझ गये होंगे. हमारे सफ़र वाले दिन के बाद के नेक्स्ट सॅटर्डे को करीब 12 बजे दिन में बस वाली लड़की के द्वारा दिए गये नंबर पे सुष्मिता ने उसे फोन किया. उस से संपर्क हो जाने के बाद सुष्मिता ने उसे हमारे यहाँ आने का निमंत्रण दिया, जिसे उस ने स्वीकार करते हुवे हमारा अड्रेस पुचछा. सुष्मिता ने हमारे घर के पास के एक पार्क में मिल कर उसे साथ लाने की बात बताकर संपर्क बिच्छेद कर दिया. अब हम उस लड़की के बारे में बातें करते हुवे पार्क की तरफ चल पड़े. रास्ते में सुष्मिता ने बताया की बस से उतरकर पेशाब करने जाते समय उस लड़की ने उसे गाली बकते हुवे कहा था, " तुम्हे और तुम्हारे सौंदर्या को देख कर तुम मुझे कितनी अच्छी लगी थी लेकिन तुम तो बिल्कुल रंडी ही निकली, कैसे हिम्मत के साथ तुमने बस में चूड़ा लिया, मेरे जागने का भी तुम्हें कोई ख्याल नहीं हुवा, मुझे तो तुम्हारे रंडी होने का पूरा यकीन तब हुवा जब तूने चुड़वाने के बाद मेरे सामने अपनी चूचियों को और अपनी चूत को पसार कर दिखा दिया. ऐसे बस में चुड़वाने में वो भी मेरे सामने तुम्हे शरम भी नहीं आई. क्या घर में भी तुम दूसरों के सामने ऐसे ही चुदवा कर दिखाती हो ?" . ऐसा मौका आज तक तो नहीं आया लेकिन अगर तुम देखना चाहो तो मैं तुम्हे अपनी चुदाई का खेल दिखा सकती हूँ. देखना हो तो बोलो ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता. मुझे चुड़वाते देख कर तुम्हारी भी चूत मस्त हो जाएगी. ठीक है लेकिन ये होगा कैसे, मेरी तो चूत अभी से ही चुलबुला रही है. चिंता मत करो तुम अपना फोन नंबर देदो मैं तुम से संपर्क कर लूँगी. और उसने अपना फोन नंबर दे दिया था. यही बातें करते हम पार्क में पहुँच गये. करीब आधे घंटे के बाद वो दूर से ही आती हुवी दिख गयी. हम उस की तरफ गये. पास आते ही सुष्मिता उस से हाथ मिलाई और हम सब साथ साथ अपने घर के तरफ चल पड़े. घर पहुँच कर सुष्मिता उसे सीधे अपने बेडरूम में ले गयी और घर का दरवाजा अंदर से बंद कर दी. तुम्हारा नाम क्या है और तुम क्या करती हो - सुष्मिता ने पुचछा. मेरा नाम पिंकी है और मैं 12थ क्लास में पढ़ रही हूँ. तुम्हारे साथ जो बैठी थी वो कौन थी. वो मेरी भाभी थी. क्या हमारे उस दिन के खेल के बारे में तुमने उसे बता दिया है. हन, वो बोल रही थी कि मैने उसे क्यों नहीं जगाया वो भी देखना चाहती है उसे भी ये सब देखने का मौका नहीं मिला है. ठीक है आज तुम ठीक से देख लो फिर किसी दिन उसे भी लेते आना हम उसे भी दिखा देंगे. उस के बाद सुष्मिता मेरे पास खिसक आई. मैने सुष्मिता को सोफे पे खींच लिया और उसकी सारी के पल्लू को उस की छाती से हटा कर उसकी चूचियों को ब्लाउस के उपर से ही मसालने लगा. सुष्मिता मेरे कप्रदो को हल्का करने में जुट गयी. कुच्छ देर बाद मैं बिल्कुल नंगा पड़ा था. मेरा अर्ध उत्तेजित लंड जो मेरी जाँघो के बीच लटक रहा था, उसी पे पिंकी की आँख टिकी हुवी थी. सुष्मिता को नंगा किए बगैर ही मैं उसकी चूचियों को अब भी मसालते जा रहा था. सुष्मिता मेरे लंड को अपने हाथ में लेकर उसे दिखती हुई सहला रही थी. लंड अब धीरे धीरे तन कर खड़ा होने लगा था. सुष्मिता ने मेरे लंड पे अपना मुँह रख कर अपने होठों से उसे चूमने लगी. वो अपनी जीभ निकाल कर मेरे लंड पर रगड़ने लगी. कभी कभी वो मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगती थी. अब मेरा लंड पूरे फुलाव में आ गया था.
क्रमशः........................
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दोस्तों पूरी कहानी जानने के लिए जरूर पढ़े .................................
आपका दोस्त
राज शर्मा








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