FUN-MAZA-MASTI
अपनी चूत की सील मुझसे तुड़वाने के बाद सुप्रिया का मेरे प्रति लगाव बढ़ गया। अब हम दोनों रोज रात को चुदाई का मजा लेते थे। रात को वह मेरे पास आ जाती थी और हम उसी मुलायम बिस्तर पर जवानी के मजे लेते जो मैंने खास तौर पर उसे पेलने के लिए ही तैयार किया था। रात को चुदाई के बाद हम चिपक कर सोते और फिर भोर में नींद खुलने पर फिर मजा लेते।
हफ्ता भर बीत गया। इस बीच सुप्रिया को मेरे लौड़े का चस्का लग गया और वो मेरे लंड की दीवानी बन गई। अब तक मैं उसे अपना लंड चुसवा या चटवा नहीं पाया था। जब तक लड़की के तीनों छेदों का मजा न ले लूँ तब तक मुझे संतोष न होता है। सुप्रिया की गाण्ड मारना मेरा प्रमुख लक्ष्य था लेकिन उसके पहले उसका दूसरा छेद यानि मुँह में लण्ड देना था।
सुप्रिया मेरी नियमित चुदाई से मस्त थी और मुझे दिल से प्यार करने लगी। प्यार तो मुझे भी उससे होने लगा था लेकिन हमें पता था कि हमारा साथ स्थायी नहीं हो सकता लिहाजा जब तक हमारे पास समय था तब तक हम अपने यौन जीवन का भरपूर आनन्द लेना चाहते थे। मुझे लगता था कि मैं उससे सीधे अपना लंड चाटने या चूसने को कहूँगा तो वो मना कर देगी।
हालांकि कभी-कभी वो मजाक में मेरा लंड दाँत से काटने को कहती तो मैं यही कहता कि तू इसे काटेगी नहीं चाटेगी, तो वह हँस देती।
फिर मैं कहता कि काटने पर तो तेरा ही नुकसान होगा तो वो कहती कि क्यों नुकसान होगा? गुस्साया रहेगा तभी तो और तेज हमला करेगा।
धीरे-धीरे मैंने उसे चुदाई, लंड और चूत जैसे शब्द बुलवाना शुरु कर दिया। एक दिन रात को हम चुदाई के पहले फोरप्ले का मजा ले रहे थे। मैं उसके साथ लेटा हुआ अपने बाएँ हाथ पर उसका सिर रख कर उसकी दाई चूची अपने मुँह में लेकर चूस रहा था और अपने दाहिने हाथ से उसकी रेशमी जाँघों को सहलाते हुए उसकी चूत छेड़ रहा था।
वह बुरी तरह गर्म हो गई थी।
फिर मैंने अपना हाथ हटा लिया और उससे कुछ करने को कहा। वो उठ कर बैठ गई, मैंने उससे कहा- मेरे कपड़े उतारो।
उसने मेरे कपड़े उतारे। जब उसने मेरी ब्रीफ उतारी तो मेरा टनटनाया हुआ लंड उसके सामने था। मैंने कहा- जरा इसे प्यार कर दो। सुप्रिया ने मेरे लंड कर चार-पाँच चुम्बन जड़ दिये और मेरी तरफ देखने लगी।
फिर मैंने उससे कहा- जरा इसे अपने मुँह में लेकर चूस लो।
सुप्रिया इतनी गर्म थी कि उस वक्त कुछ भी करती।
उसने मेरा लंड तुरंत मुँह में लिया और चूसने लगी। मुझे जन्नत का आनन्द आ गया। थोड़ी देर में उसने मेरा लंड मुँह से निकाल दिया तो मैंने उससे फिर चूसने को कहा तो वो फिर चूसने लगी। मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था कि इतनी मस्त लौंडिया मेरा लंड चूस रही है।
थोड़ी देर बाद उसने मेरा लंड फिर मुँह से निकाल दिया तो मैंने उससे कहा- वाह मेरी जान ! तूने तो मेरा लंड चूस कर मुझे मस्त कर दिया।
फिर मैंने उसके होठ चूमते हुए कहा- अब कभी कुल्फी खाना तो समझना कि रोहित का लंड तुम्हारे मुँह में है।
वो कुछ नहीं बोली।
फिर मैंने दूने उत्साह से उसकी चुदाई की। अगले दिन फिर मैंने फिर उसे गर्म करने के बाद कुछ करने को कहा तो उसने मेरे होंठ, गाल, माथे और सीने पर चुम्बन लिया मेरी आँखों में देखने लगी।
मैंने उससे कहा- कुछ और करो मेरी जान !
उसने पूछा- रोहित, क्या करूँ?
मैंने कहा- लंड चाटो !
और सुप्रिया मेरा लंड चाटने लगी। मजा आ गया मुझे। बाद में मैंने उसे समझाया कि लंड को मुँह में लेने से हिचकिचाया मत करो। इसी से तो लड़कियों को मोक्ष मिलता है, यही लिंग है जिसकी तुम पूजा करती हो।
इसके बाद मैंने सुप्रिया को बताया कि पहले लंड को हाथ में लेकर सहलाओ फिर उसे चूमो और अंत में उसे में लेकर चूसो या चाटो। आगे से सुप्रिया यही करने लगी। उसे भी लंड चूसने और चाटने में मजा आने लगा। अब अक्सर वो मेरा लंड निकाल कर चूसने लगती भले चुदाई हो या न हो।
आम तौर पर मैं सवेरे जब अपने काम पर निकलने को होता तो सुप्रिया आकर मेरे सामने अपने घुटने पर बैठकर मेरे पैंट से लंड निकाल कर मेरी आँखों में देखते हुए शानदार ब्लोजॉब देती। वह अब लण्ड-चट बन चुकी थी लेकिन मैंने उसे 'लण्ड-चटोरी' नाम दिया।
सुप्रिया के दो छेदों की मरम्मत करने के बाद अब मेरा अगला और सबसे प्रमुख लक्ष्य था उसकी गाण्ड मारना।
मैं जानता था कि यह भी मुश्किल नहीं होगा क्योंकि सुप्रिया मेरी किसी बात को मना नहीं करती थी। फिर भी किसी लौंडिया को गाण्ड मरवाने के लिए तैयार करने में मुश्किल तो आती ही है।
मैं और सुप्रिया अब नियमित रूप से चुदाई का मजा लेते थे लेकिन अब मैं उसकी गाण्ड मारने के लिए बेचैन था। जब मैंने पहली बार सुप्रिया को नंगी किया था तभी से उसकी एकलक्खी (लाखों में एक) गाण्ड में अपना लंड पेलने के लिए व्याकुल था और अब तो सुप्रिया पूरी तरह मेरे कंट्रोल में थी लिहाजा इस शुभ काम में देरी ठीक नहीं थी। एक दिन चुदाई के दौरान मैंने सुप्रिया को बताया कि पीछे भी लण्ड डाला जाता है। सुप्रिया ने चकित होकर कहा- अच्छा? ऐसा भी होता है क्या? मैंने कहा- हाँ ! तुझमें भी मैं डालूंगा, हालांकि यह अप्राकृतिक होता है। इस पर सुप्रिया ने कहा- तब तो मैं कतई नहीं डालने दूंगी। लेकिन मैंने उसकी बात अनसुनी करते हुए कहा- एक ना एक दिन मैं भी तुझमें डालूँगा। सुप्रिया ने उकताते हुए कहा- ठीक है डाल लेना, आज नहीं न डालोगे? मैं समझ गया कि अब उसकी गाण्ड का रास्ता साफ है। अगले दो-तीन दिन मैं सुप्रिया को खूब उत्तेजित करने के बाद उससे पूछता कि पीछे डालूँ तो वह यही कहती कि 'मुझे कुछ नहीं पता, जो चाहे करो' और मैं उसकी चूत ही ठोक कर छोड़ देता। इसी बीच 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस आ गया। सवेरे मैंने सुप्रिया को अपनी बाँहों में कस कर उसकी गाण्ड में उंगली घुमाते हुए कहा- डार्लिंग, आज इसी में लण्ड डालकर गणतंत्र दिवस मनाना है। सुप्रिया का चेहरा लाल हो गया और उसने 'तुम बड़े गंदे हो !' कह कर खुद को छुड़ा लिया। रात को मैंने उसे खूब गर्म करने के बाद उसे पेट के बल लिटा दिया और उसके कान में फुसफुसाया- जरा कल्पना करो डार्लिंग कि मैं तुम्हारे ऊपर लेट कर अपने हाथों को तुम्हारी चूचियों पर पहुँचा दूँ, मेरे होंठ तुम्हारे गाल पर हों, मेरी गर्म साँसें तुम्हें मस्त करें और तुम्हारे पीछे मेरा लंड धीरे-धीरे अंदर-बाहर हो। सुप्रिया ने बेसुध आवाज में कहा- ठीक है, कर लो। अब मैंने सुप्रिया की चूत के नीचे एक तकिया लगाया जिससे उसकी गाण्ड उभर जाए। इसके बाद मैंने एक जेली की ट्यूब ली और सुप्रिया की गाण्ड में जेली डालने लगा, उसने भी गाण्ड ढीली कर सहयोग किया। पूरी ट्यूब की जेली को सुप्रिया की गाण्ड में डालने के बाद मैंने अपने लंड का सुपारा सुप्रिया की गाण्ड के छेद पर रखा और ईश्वर को धन्यवाद देते हुए धक्का लगाया। सुपाड़ा जाते ही सुप्रिया चीख उठी लेकिन मैंने तुरंत दूसरा धक्का लगाया और आधा लंड अंदर चला गया। सुप्रिया की तो जैसे गाण्ड ही फट गई और वो चिल्लाने लगी। तभी मैंने तीसरा धक्का लगाया और पूरा लंड अंदर ! सुप्रिया छटपटाई लेकिन मैं उसके ऊपर लेट गया और अपनी दोनों हथेलियों को उसकी चूचियों पर पहुँचा दिया। मेरे होंठ उसके गाल पर थे और मेरी गर्म साँसें उसे महसूस हो रही थी। कुछ देर पहले की कल्पना साकार हो चुकी थी। मैं उसे 'मेरी सुप्पी ! मेरी जानू ! आई लव यू डार्लिंग !' जैसे शब्द बोलते हुए अपना लंड अंदर-बाहर कर रहा था। जेली के कारण मेरा लंड आसानी से मूव कर रहा था लेकिन सुप्रिया को दर्द हो रहा था फिर भी उसे अपने ऊपर अपने प्रियतम रोहित के होने का अहसास सांत्वना दे रहा था। तकरीबन 15 मिनट तक सुप्रिया की गाण्ड मारने के बाद मैंने अपना लंडामृत उसकी गाण्ड में ही छोड़ दिया ताकि उसे अपनी गाण्ड में इसका गर्म अहसास बना रहे। झड़ने के बाद भी मैं उसके ऊपर ही लेटा रहा और जब लण्ड ढीला होकर बाहर आया तो मैं उस पर से उतर गया और करवट लेटते हुए सुप्रिया को अपनी बाँहों में कस लिया और एक गहरा चुम्बन लेने के बाद कहा- लो डार्लिंग, तुम्हारा गण्डतंत्र दिवस मन गया, आज मैंने तुम्हारी गाण्ड भी मार ली। सुप्रिया झेंप गई और कुछ न बोल कर चुम्बनबाजी में व्यस्त हो गई। कुछ देर बाद हम दोनों मीठी नींद में सो गये। अब मैं सुप्रिया से पूछता नहीं था, उसे चूम-चाट कर गर्म करने के बाद उससे लंड चुसवाता-चटवाता था, फिर लंड को उसकी गाण्ड में डाल देता था। थोड़ी देर गाण्ड मारने के बाद फिर अंत में उसकी चूत चोदता था। सुप्रिया समझ गई कि चूत में लंड लेने के लिए लंड चाटना और गाण्ड मरवानी ही पड़ेगी। सुप्रिया को गाण्ड मरवाना बहुत पसंद नहीं था लेकिन मेरी खुशी के लिए मरवाती थी। कभी-कभी वो कहती भी थी- देखो, पीछे कुछ मत करना ! तब मैं कटाक्ष करता- क्यों गाण्ड फटती है क्या तेरी? फिर सुप्रिया ताव में आ जाती और अपनी तशरीफ(गाण्ड) मेरे लंड पर रख देती। अब मैं नियमित रूप से सुप्रिया की गाण्ड मारने लगा। मेरी पसंदीदा स्टाइल था कि उसे बिस्तर के बाहर खड़ा करता और फिर उसके दोनों हाथ बिस्तर पर रख कर झुका देता। इससे उसकी मस्त गाण्ड उभर कर सामने आ जाती और मैं अपना लंड पेल कर अपनी दाएँ हाथ की उंगली सुप्रिया की चूत में डाल देता। मेरा बायाँ हाथ उसकी बायीं चूची मसलता रहता। जबकि सुप्रिया को वह स्टाइल ज्यादा पसंद थी जिसमें उसकी गाण्ड का उद्घाटन हुआ था। तो मित्रो, इस तरह मैंने सुप्रिया को न सिर्फ चुदक्कड़ बनाया बल्कि लंड़चट यानी लंडचटोरी और अन्ततः गाण्डू भी बना दिया।
सुप्रिया की नशीली जवानी का रसपान करते हुए लगभग डेढ़ वर्ष कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला। इस दौरान सुप्रिया ने न केवल अपनी मदमस्त जवानी को मुझ पर लुटाते हुए जमकर अपने तीनो छेदों को चुदवाया बल्कि पत्नी की भाँति मेरी सेवा भी की। इतने दिन हम पति-पत्नी की ही तरह रहे। वो मेरा खाना-नाश्ता बनाने के अलावा मेरे कपड़े तक धो दिया करती थी, बदले में उसने कभी कोई फरमाइश नहीं की। उसे केवल मेरा प्यार ही पर्याप्त था। मेरी नियमित चुदाई से उसका सेक्सी बदन खूब निखर गया।
सुप्रिया के होने वाले पति ने उसे बता दिया था कि शादी के बाद उसे गृहिणी की ही भूमिका रहना है, नौकरी नहीं करनी है। अतः सुप्रिया भी अपना कोर्स केवल टाइमपास के लिए कर रही थी, दो-तीन घंटे की क्लास के बाद वो घर पर ही रहती थी लिहाजा मेरा जब भी मूड करता उसे पकड़ कर पेल देता था और वो भी शायद ही कभी ना-नुकुर करती थी। जब वह अपने घर जाती या मैं कहीं बाहर जाता तो हम दोनों फोन सेक्स करते थे।
सुप्रिया को तो मुझसे चुदवाए बिना नींद ही नहीं आती थी। एक रात मैंने उसे बिना चोदे छोड़ दिया तो वो थोड़ी देर बाद मेरे पास फिर आ गई कि उसे घबराहट हो रही है, मैं उसकी स्थिति समझ गया और उसकी चुदाई की। मेरे उसके सम्बन्ध इतने सेक्सी थे कि फोन पर मेरी आवाज सुनते ही उसके जिस्म में चीटियाँ रेंगने लगती थी और बात करने के पाँच मिनट के भीतर ही वो गीली हो जाती थी, भले ही बात किसी विषय पर हो।
मजे की बात यह थी कि हमारा रिश्ता पूरी तरह गोपनीय रहा। कोई भी तीसरा व्यक्ति इसके बारे में नहीं जानता था। हम कभी भी बाहर नहीं मिलते थे। केवल एक बार उसे दिल्ली जाना पड़ा तो मैं भी पहुँच गया। दरअसल मेरी एक फैंटेसी थी, उसे ही पूरा करना था। मैं उसे एक पार्क में ले गया जहाँ प्रेमी जोड़ों की भरमार रहती है।
मैं ट्रेक सूट पहने था और अंडरवीयर नहीं पहने था, जबकि सुप्रिया ने टॉप और लाँग स्कर्ट पहना और पैंटी नहीं पहनी। मैं एक पेड़ के सहारे अपनी टाँगें फैला कर बैठ गया और अपना लंड बाहर निकाल लिया, सुप्रिया मेरी गोद में ऐसी बैठी कि उसकी चूत में मेरा लंड चला गया और उसकी स्कर्ट से सब ढक गया। वो धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होकर चुदवाने लगी। कोई देखता भी तो यही समझता कि लड़का अपनी गर्लफ्रेंड को अपनी गोद में बिठाए है। किसी को अंदाजा नहीं था कि अंदर ही अंदर रचनात्मक काम हो रहा है।
खैर बाहर हमारी यही एक मुलाकात थी।
उसकी शादी का दिन भी करीब आ गया। अपनी शादी के 15 दिन पहले वो अपने घर चली गई। मैं उसकी शादी में नहीं गया, उसी ने मना कर दिया था।
शादी के करीब 15 दिन बाद सुप्रिया ने फोन किया और शादी के बाद के किस्से बताए कि कैसे उसके पति ने उसकी वैधानिक चुदाई कर सुहागरात मनाई। सुप्रिया अपने पति से खुश थी अतः मुझे भी सन्तोष था। मेरी दिलचस्पी इस बात को जानने में थी कि उसके पति ने उसकी गाण्ड मारी या नहीं।
सुप्रिया ने बताया कि उसके पति की गाण्ड मारने में दिलचस्पी नहीं है। मैंने सुप्रिया से वादा ले लिया कि वो कभी अपने पति से न तो गांड़ मरवाएगी न ही उसका लंड चूसेगी, यह केवल मेरे लिए ही रहे।
सुप्रिया ने इस वादे को निभाया। सुप्रिया का पति लखनऊ में ही रहता था अतः सुप्रिया कभी-कभी मुझसे चुदवाने के लिए कहती थी लेकिन मैंने मना कर दिया कि अब तुम पर मेरा हक नहीं है।
हमारे बीच बातें होती रहती थी। उसकी सेक्स लाइफ बहुत अच्छी थी, उसका पति उसका दीवाना था। लिहाजा साल भर में ही उसने सुप्रिया से एक बच्चा पैदा कर लिया। बच्चे का नाम सुप्रिया ने रोहित ही रखा। बच्चा पैदा होने के बाद जब वह मिली तो उसका बदन बेहद शानदार हो गया था। अब मेरा मन डोलने लगा और सुप्रिया तो मुझसे अभी भी प्यार करती ही थी लिहाजा हमारी चुदाई का रिश्ता फिर शुरू हो गया।
एक ही शहर में रहने से हमे मिलने के मौके बराबर मिलते थे और हम इसका लाभ उठाते थे।
उसे दूसरा बच्चा भी पैदा हो गया लेकिन हमारे सम्बन्ध बने रहे। मैं उससे पूछता भी था कि इतने अच्छे पति के होते तुम्हें मुझसे चुदवाना क्यों पसंद है?
तो उसने कहा कि उसे मानसिक संतुष्टि मिलती है, दूसरी बात ये मेरे प्यार करने का तरीका बहुत शानदार है।
सुप्रिया अब चुदाई की माहिर खिलाड़ी बन गई थी, उसे लंड की सवारी गाँठना बहुत पसंद था। पहले जब वो ऐसा करती थी तो लंड पर ऊपर-नीचे होती और ये पूछने पर कि क्या कर रही हो, कहती कि चुदवा रही हूँ; लेकिन अब तो सुप्रिया लंड पर बैठ कर इतनी तेजी से आगे-पीछे करती कि मेरे होश उड़ जाते। अब मेरे पूछने पर कि क्या कर रही हो वो बोलती कि तुम्हें चोद रही हूँ या तुम्हारी चुदाई हो रही है। हार मान कर मुझे ही कहना पड़ता कि तुझ जैसे मस्त माल से कौन नहीं चुदवाना चाहेगा।
खैर यह रिश्ता भी खत्म हो गया जब उसके पति का लखनऊ से ट्रांसफर हो गया। आज सुप्रिया से मेरा कोई संपर्क नहीं है कि वो कहाँ और कैसे है लेकिन जिस निःस्वार्थ भाव से उसने मुझे प्यार किया, मैं हमेशा उसका आभारी रहूँगा।
सुप्रिया के साथ मैं तीन चीजें नहीं कर पाया- पहली यह कि उससे अपनी मूठ नहीं मरवाया, दूसरा उससे खूब लंड चुसवाने के बाद भी उसे अपना लंडामृत कभी नहीं पिलाया ! मेरी इच्छा है कि वो मेरा लंडामृत पीकर लंड को चाट कर साफ करे, तीसरा उसकी जम कर गांड़ मारने के बाद भी उसकी गाण्ड के छेद में अपनी जीभ को नुकीला कर नहीं घुमा पाया।
अगर जीवन में कभी उससे मुलाकात हुई और उसने करने दिया तो ये तीन चीजें जरूर करूँगा।
तो यह थी मेरी और सुप्रिया की कहानी।
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गाँव से निकली लौंडिया-2
अपनी चूत की सील मुझसे तुड़वाने के बाद सुप्रिया का मेरे प्रति लगाव बढ़ गया। अब हम दोनों रोज रात को चुदाई का मजा लेते थे। रात को वह मेरे पास आ जाती थी और हम उसी मुलायम बिस्तर पर जवानी के मजे लेते जो मैंने खास तौर पर उसे पेलने के लिए ही तैयार किया था। रात को चुदाई के बाद हम चिपक कर सोते और फिर भोर में नींद खुलने पर फिर मजा लेते।
हफ्ता भर बीत गया। इस बीच सुप्रिया को मेरे लौड़े का चस्का लग गया और वो मेरे लंड की दीवानी बन गई। अब तक मैं उसे अपना लंड चुसवा या चटवा नहीं पाया था। जब तक लड़की के तीनों छेदों का मजा न ले लूँ तब तक मुझे संतोष न होता है। सुप्रिया की गाण्ड मारना मेरा प्रमुख लक्ष्य था लेकिन उसके पहले उसका दूसरा छेद यानि मुँह में लण्ड देना था।
सुप्रिया मेरी नियमित चुदाई से मस्त थी और मुझे दिल से प्यार करने लगी। प्यार तो मुझे भी उससे होने लगा था लेकिन हमें पता था कि हमारा साथ स्थायी नहीं हो सकता लिहाजा जब तक हमारे पास समय था तब तक हम अपने यौन जीवन का भरपूर आनन्द लेना चाहते थे। मुझे लगता था कि मैं उससे सीधे अपना लंड चाटने या चूसने को कहूँगा तो वो मना कर देगी।
हालांकि कभी-कभी वो मजाक में मेरा लंड दाँत से काटने को कहती तो मैं यही कहता कि तू इसे काटेगी नहीं चाटेगी, तो वह हँस देती।
फिर मैं कहता कि काटने पर तो तेरा ही नुकसान होगा तो वो कहती कि क्यों नुकसान होगा? गुस्साया रहेगा तभी तो और तेज हमला करेगा।
धीरे-धीरे मैंने उसे चुदाई, लंड और चूत जैसे शब्द बुलवाना शुरु कर दिया। एक दिन रात को हम चुदाई के पहले फोरप्ले का मजा ले रहे थे। मैं उसके साथ लेटा हुआ अपने बाएँ हाथ पर उसका सिर रख कर उसकी दाई चूची अपने मुँह में लेकर चूस रहा था और अपने दाहिने हाथ से उसकी रेशमी जाँघों को सहलाते हुए उसकी चूत छेड़ रहा था।
वह बुरी तरह गर्म हो गई थी।
फिर मैंने अपना हाथ हटा लिया और उससे कुछ करने को कहा। वो उठ कर बैठ गई, मैंने उससे कहा- मेरे कपड़े उतारो।
उसने मेरे कपड़े उतारे। जब उसने मेरी ब्रीफ उतारी तो मेरा टनटनाया हुआ लंड उसके सामने था। मैंने कहा- जरा इसे प्यार कर दो। सुप्रिया ने मेरे लंड कर चार-पाँच चुम्बन जड़ दिये और मेरी तरफ देखने लगी।
फिर मैंने उससे कहा- जरा इसे अपने मुँह में लेकर चूस लो।
सुप्रिया इतनी गर्म थी कि उस वक्त कुछ भी करती।
उसने मेरा लंड तुरंत मुँह में लिया और चूसने लगी। मुझे जन्नत का आनन्द आ गया। थोड़ी देर में उसने मेरा लंड मुँह से निकाल दिया तो मैंने उससे फिर चूसने को कहा तो वो फिर चूसने लगी। मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था कि इतनी मस्त लौंडिया मेरा लंड चूस रही है।
थोड़ी देर बाद उसने मेरा लंड फिर मुँह से निकाल दिया तो मैंने उससे कहा- वाह मेरी जान ! तूने तो मेरा लंड चूस कर मुझे मस्त कर दिया।
फिर मैंने उसके होठ चूमते हुए कहा- अब कभी कुल्फी खाना तो समझना कि रोहित का लंड तुम्हारे मुँह में है।
वो कुछ नहीं बोली।
फिर मैंने दूने उत्साह से उसकी चुदाई की। अगले दिन फिर मैंने फिर उसे गर्म करने के बाद कुछ करने को कहा तो उसने मेरे होंठ, गाल, माथे और सीने पर चुम्बन लिया मेरी आँखों में देखने लगी।
मैंने उससे कहा- कुछ और करो मेरी जान !
उसने पूछा- रोहित, क्या करूँ?
मैंने कहा- लंड चाटो !
और सुप्रिया मेरा लंड चाटने लगी। मजा आ गया मुझे। बाद में मैंने उसे समझाया कि लंड को मुँह में लेने से हिचकिचाया मत करो। इसी से तो लड़कियों को मोक्ष मिलता है, यही लिंग है जिसकी तुम पूजा करती हो।
इसके बाद मैंने सुप्रिया को बताया कि पहले लंड को हाथ में लेकर सहलाओ फिर उसे चूमो और अंत में उसे में लेकर चूसो या चाटो। आगे से सुप्रिया यही करने लगी। उसे भी लंड चूसने और चाटने में मजा आने लगा। अब अक्सर वो मेरा लंड निकाल कर चूसने लगती भले चुदाई हो या न हो।
आम तौर पर मैं सवेरे जब अपने काम पर निकलने को होता तो सुप्रिया आकर मेरे सामने अपने घुटने पर बैठकर मेरे पैंट से लंड निकाल कर मेरी आँखों में देखते हुए शानदार ब्लोजॉब देती। वह अब लण्ड-चट बन चुकी थी लेकिन मैंने उसे 'लण्ड-चटोरी' नाम दिया।
सुप्रिया के दो छेदों की मरम्मत करने के बाद अब मेरा अगला और सबसे प्रमुख लक्ष्य था उसकी गाण्ड मारना।
मैं जानता था कि यह भी मुश्किल नहीं होगा क्योंकि सुप्रिया मेरी किसी बात को मना नहीं करती थी। फिर भी किसी लौंडिया को गाण्ड मरवाने के लिए तैयार करने में मुश्किल तो आती ही है।
मैं और सुप्रिया अब नियमित रूप से चुदाई का मजा लेते थे लेकिन अब मैं उसकी गाण्ड मारने के लिए बेचैन था। जब मैंने पहली बार सुप्रिया को नंगी किया था तभी से उसकी एकलक्खी (लाखों में एक) गाण्ड में अपना लंड पेलने के लिए व्याकुल था और अब तो सुप्रिया पूरी तरह मेरे कंट्रोल में थी लिहाजा इस शुभ काम में देरी ठीक नहीं थी। एक दिन चुदाई के दौरान मैंने सुप्रिया को बताया कि पीछे भी लण्ड डाला जाता है। सुप्रिया ने चकित होकर कहा- अच्छा? ऐसा भी होता है क्या? मैंने कहा- हाँ ! तुझमें भी मैं डालूंगा, हालांकि यह अप्राकृतिक होता है। इस पर सुप्रिया ने कहा- तब तो मैं कतई नहीं डालने दूंगी। लेकिन मैंने उसकी बात अनसुनी करते हुए कहा- एक ना एक दिन मैं भी तुझमें डालूँगा। सुप्रिया ने उकताते हुए कहा- ठीक है डाल लेना, आज नहीं न डालोगे? मैं समझ गया कि अब उसकी गाण्ड का रास्ता साफ है। अगले दो-तीन दिन मैं सुप्रिया को खूब उत्तेजित करने के बाद उससे पूछता कि पीछे डालूँ तो वह यही कहती कि 'मुझे कुछ नहीं पता, जो चाहे करो' और मैं उसकी चूत ही ठोक कर छोड़ देता। इसी बीच 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस आ गया। सवेरे मैंने सुप्रिया को अपनी बाँहों में कस कर उसकी गाण्ड में उंगली घुमाते हुए कहा- डार्लिंग, आज इसी में लण्ड डालकर गणतंत्र दिवस मनाना है। सुप्रिया का चेहरा लाल हो गया और उसने 'तुम बड़े गंदे हो !' कह कर खुद को छुड़ा लिया। रात को मैंने उसे खूब गर्म करने के बाद उसे पेट के बल लिटा दिया और उसके कान में फुसफुसाया- जरा कल्पना करो डार्लिंग कि मैं तुम्हारे ऊपर लेट कर अपने हाथों को तुम्हारी चूचियों पर पहुँचा दूँ, मेरे होंठ तुम्हारे गाल पर हों, मेरी गर्म साँसें तुम्हें मस्त करें और तुम्हारे पीछे मेरा लंड धीरे-धीरे अंदर-बाहर हो। सुप्रिया ने बेसुध आवाज में कहा- ठीक है, कर लो। अब मैंने सुप्रिया की चूत के नीचे एक तकिया लगाया जिससे उसकी गाण्ड उभर जाए। इसके बाद मैंने एक जेली की ट्यूब ली और सुप्रिया की गाण्ड में जेली डालने लगा, उसने भी गाण्ड ढीली कर सहयोग किया। पूरी ट्यूब की जेली को सुप्रिया की गाण्ड में डालने के बाद मैंने अपने लंड का सुपारा सुप्रिया की गाण्ड के छेद पर रखा और ईश्वर को धन्यवाद देते हुए धक्का लगाया। सुपाड़ा जाते ही सुप्रिया चीख उठी लेकिन मैंने तुरंत दूसरा धक्का लगाया और आधा लंड अंदर चला गया। सुप्रिया की तो जैसे गाण्ड ही फट गई और वो चिल्लाने लगी। तभी मैंने तीसरा धक्का लगाया और पूरा लंड अंदर ! सुप्रिया छटपटाई लेकिन मैं उसके ऊपर लेट गया और अपनी दोनों हथेलियों को उसकी चूचियों पर पहुँचा दिया। मेरे होंठ उसके गाल पर थे और मेरी गर्म साँसें उसे महसूस हो रही थी। कुछ देर पहले की कल्पना साकार हो चुकी थी। मैं उसे 'मेरी सुप्पी ! मेरी जानू ! आई लव यू डार्लिंग !' जैसे शब्द बोलते हुए अपना लंड अंदर-बाहर कर रहा था। जेली के कारण मेरा लंड आसानी से मूव कर रहा था लेकिन सुप्रिया को दर्द हो रहा था फिर भी उसे अपने ऊपर अपने प्रियतम रोहित के होने का अहसास सांत्वना दे रहा था। तकरीबन 15 मिनट तक सुप्रिया की गाण्ड मारने के बाद मैंने अपना लंडामृत उसकी गाण्ड में ही छोड़ दिया ताकि उसे अपनी गाण्ड में इसका गर्म अहसास बना रहे। झड़ने के बाद भी मैं उसके ऊपर ही लेटा रहा और जब लण्ड ढीला होकर बाहर आया तो मैं उस पर से उतर गया और करवट लेटते हुए सुप्रिया को अपनी बाँहों में कस लिया और एक गहरा चुम्बन लेने के बाद कहा- लो डार्लिंग, तुम्हारा गण्डतंत्र दिवस मन गया, आज मैंने तुम्हारी गाण्ड भी मार ली। सुप्रिया झेंप गई और कुछ न बोल कर चुम्बनबाजी में व्यस्त हो गई। कुछ देर बाद हम दोनों मीठी नींद में सो गये। अब मैं सुप्रिया से पूछता नहीं था, उसे चूम-चाट कर गर्म करने के बाद उससे लंड चुसवाता-चटवाता था, फिर लंड को उसकी गाण्ड में डाल देता था। थोड़ी देर गाण्ड मारने के बाद फिर अंत में उसकी चूत चोदता था। सुप्रिया समझ गई कि चूत में लंड लेने के लिए लंड चाटना और गाण्ड मरवानी ही पड़ेगी। सुप्रिया को गाण्ड मरवाना बहुत पसंद नहीं था लेकिन मेरी खुशी के लिए मरवाती थी। कभी-कभी वो कहती भी थी- देखो, पीछे कुछ मत करना ! तब मैं कटाक्ष करता- क्यों गाण्ड फटती है क्या तेरी? फिर सुप्रिया ताव में आ जाती और अपनी तशरीफ(गाण्ड) मेरे लंड पर रख देती। अब मैं नियमित रूप से सुप्रिया की गाण्ड मारने लगा। मेरी पसंदीदा स्टाइल था कि उसे बिस्तर के बाहर खड़ा करता और फिर उसके दोनों हाथ बिस्तर पर रख कर झुका देता। इससे उसकी मस्त गाण्ड उभर कर सामने आ जाती और मैं अपना लंड पेल कर अपनी दाएँ हाथ की उंगली सुप्रिया की चूत में डाल देता। मेरा बायाँ हाथ उसकी बायीं चूची मसलता रहता। जबकि सुप्रिया को वह स्टाइल ज्यादा पसंद थी जिसमें उसकी गाण्ड का उद्घाटन हुआ था। तो मित्रो, इस तरह मैंने सुप्रिया को न सिर्फ चुदक्कड़ बनाया बल्कि लंड़चट यानी लंडचटोरी और अन्ततः गाण्डू भी बना दिया।
सुप्रिया की नशीली जवानी का रसपान करते हुए लगभग डेढ़ वर्ष कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला। इस दौरान सुप्रिया ने न केवल अपनी मदमस्त जवानी को मुझ पर लुटाते हुए जमकर अपने तीनो छेदों को चुदवाया बल्कि पत्नी की भाँति मेरी सेवा भी की। इतने दिन हम पति-पत्नी की ही तरह रहे। वो मेरा खाना-नाश्ता बनाने के अलावा मेरे कपड़े तक धो दिया करती थी, बदले में उसने कभी कोई फरमाइश नहीं की। उसे केवल मेरा प्यार ही पर्याप्त था। मेरी नियमित चुदाई से उसका सेक्सी बदन खूब निखर गया।
सुप्रिया के होने वाले पति ने उसे बता दिया था कि शादी के बाद उसे गृहिणी की ही भूमिका रहना है, नौकरी नहीं करनी है। अतः सुप्रिया भी अपना कोर्स केवल टाइमपास के लिए कर रही थी, दो-तीन घंटे की क्लास के बाद वो घर पर ही रहती थी लिहाजा मेरा जब भी मूड करता उसे पकड़ कर पेल देता था और वो भी शायद ही कभी ना-नुकुर करती थी। जब वह अपने घर जाती या मैं कहीं बाहर जाता तो हम दोनों फोन सेक्स करते थे।
सुप्रिया को तो मुझसे चुदवाए बिना नींद ही नहीं आती थी। एक रात मैंने उसे बिना चोदे छोड़ दिया तो वो थोड़ी देर बाद मेरे पास फिर आ गई कि उसे घबराहट हो रही है, मैं उसकी स्थिति समझ गया और उसकी चुदाई की। मेरे उसके सम्बन्ध इतने सेक्सी थे कि फोन पर मेरी आवाज सुनते ही उसके जिस्म में चीटियाँ रेंगने लगती थी और बात करने के पाँच मिनट के भीतर ही वो गीली हो जाती थी, भले ही बात किसी विषय पर हो।
मजे की बात यह थी कि हमारा रिश्ता पूरी तरह गोपनीय रहा। कोई भी तीसरा व्यक्ति इसके बारे में नहीं जानता था। हम कभी भी बाहर नहीं मिलते थे। केवल एक बार उसे दिल्ली जाना पड़ा तो मैं भी पहुँच गया। दरअसल मेरी एक फैंटेसी थी, उसे ही पूरा करना था। मैं उसे एक पार्क में ले गया जहाँ प्रेमी जोड़ों की भरमार रहती है।
मैं ट्रेक सूट पहने था और अंडरवीयर नहीं पहने था, जबकि सुप्रिया ने टॉप और लाँग स्कर्ट पहना और पैंटी नहीं पहनी। मैं एक पेड़ के सहारे अपनी टाँगें फैला कर बैठ गया और अपना लंड बाहर निकाल लिया, सुप्रिया मेरी गोद में ऐसी बैठी कि उसकी चूत में मेरा लंड चला गया और उसकी स्कर्ट से सब ढक गया। वो धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होकर चुदवाने लगी। कोई देखता भी तो यही समझता कि लड़का अपनी गर्लफ्रेंड को अपनी गोद में बिठाए है। किसी को अंदाजा नहीं था कि अंदर ही अंदर रचनात्मक काम हो रहा है।
खैर बाहर हमारी यही एक मुलाकात थी।
उसकी शादी का दिन भी करीब आ गया। अपनी शादी के 15 दिन पहले वो अपने घर चली गई। मैं उसकी शादी में नहीं गया, उसी ने मना कर दिया था।
शादी के करीब 15 दिन बाद सुप्रिया ने फोन किया और शादी के बाद के किस्से बताए कि कैसे उसके पति ने उसकी वैधानिक चुदाई कर सुहागरात मनाई। सुप्रिया अपने पति से खुश थी अतः मुझे भी सन्तोष था। मेरी दिलचस्पी इस बात को जानने में थी कि उसके पति ने उसकी गाण्ड मारी या नहीं।
सुप्रिया ने बताया कि उसके पति की गाण्ड मारने में दिलचस्पी नहीं है। मैंने सुप्रिया से वादा ले लिया कि वो कभी अपने पति से न तो गांड़ मरवाएगी न ही उसका लंड चूसेगी, यह केवल मेरे लिए ही रहे।
सुप्रिया ने इस वादे को निभाया। सुप्रिया का पति लखनऊ में ही रहता था अतः सुप्रिया कभी-कभी मुझसे चुदवाने के लिए कहती थी लेकिन मैंने मना कर दिया कि अब तुम पर मेरा हक नहीं है।
हमारे बीच बातें होती रहती थी। उसकी सेक्स लाइफ बहुत अच्छी थी, उसका पति उसका दीवाना था। लिहाजा साल भर में ही उसने सुप्रिया से एक बच्चा पैदा कर लिया। बच्चे का नाम सुप्रिया ने रोहित ही रखा। बच्चा पैदा होने के बाद जब वह मिली तो उसका बदन बेहद शानदार हो गया था। अब मेरा मन डोलने लगा और सुप्रिया तो मुझसे अभी भी प्यार करती ही थी लिहाजा हमारी चुदाई का रिश्ता फिर शुरू हो गया।
एक ही शहर में रहने से हमे मिलने के मौके बराबर मिलते थे और हम इसका लाभ उठाते थे।
उसे दूसरा बच्चा भी पैदा हो गया लेकिन हमारे सम्बन्ध बने रहे। मैं उससे पूछता भी था कि इतने अच्छे पति के होते तुम्हें मुझसे चुदवाना क्यों पसंद है?
तो उसने कहा कि उसे मानसिक संतुष्टि मिलती है, दूसरी बात ये मेरे प्यार करने का तरीका बहुत शानदार है।
सुप्रिया अब चुदाई की माहिर खिलाड़ी बन गई थी, उसे लंड की सवारी गाँठना बहुत पसंद था। पहले जब वो ऐसा करती थी तो लंड पर ऊपर-नीचे होती और ये पूछने पर कि क्या कर रही हो, कहती कि चुदवा रही हूँ; लेकिन अब तो सुप्रिया लंड पर बैठ कर इतनी तेजी से आगे-पीछे करती कि मेरे होश उड़ जाते। अब मेरे पूछने पर कि क्या कर रही हो वो बोलती कि तुम्हें चोद रही हूँ या तुम्हारी चुदाई हो रही है। हार मान कर मुझे ही कहना पड़ता कि तुझ जैसे मस्त माल से कौन नहीं चुदवाना चाहेगा।
खैर यह रिश्ता भी खत्म हो गया जब उसके पति का लखनऊ से ट्रांसफर हो गया। आज सुप्रिया से मेरा कोई संपर्क नहीं है कि वो कहाँ और कैसे है लेकिन जिस निःस्वार्थ भाव से उसने मुझे प्यार किया, मैं हमेशा उसका आभारी रहूँगा।
सुप्रिया के साथ मैं तीन चीजें नहीं कर पाया- पहली यह कि उससे अपनी मूठ नहीं मरवाया, दूसरा उससे खूब लंड चुसवाने के बाद भी उसे अपना लंडामृत कभी नहीं पिलाया ! मेरी इच्छा है कि वो मेरा लंडामृत पीकर लंड को चाट कर साफ करे, तीसरा उसकी जम कर गांड़ मारने के बाद भी उसकी गाण्ड के छेद में अपनी जीभ को नुकीला कर नहीं घुमा पाया।
अगर जीवन में कभी उससे मुलाकात हुई और उसने करने दिया तो ये तीन चीजें जरूर करूँगा।
तो यह थी मेरी और सुप्रिया की कहानी।
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