Sunday, March 23, 2014

FUN-MAZA-MASTI दोस्तों के साथ होली

FUN-MAZA-MASTI


  दोस्तों के साथ होली

 
सभी तड़कते-फड़कते हुए आशिक़ों और चाहने वाले दोस्तों को मेरा नमस्कार। जैसा कि आप सबको पता है होली आ गई है इसलिए मैं आपको आज मेरी होली की आप-बीती सुनाती हूँ। आजकल के लड़के जब किसी सुन्दर लड़की को देखते हैं तो दिल करता है जल्दी से लड़की के नीचे के कपड़े खोल लूँ और अपने पास जो औज़ार है उसे घुसा दूँ।
पर दोस्तो, यह सोच हमेशा अगर आपके ज़हन में रहेगी तो इसमें किसी की भलाई नहीं है, ना तो आपकी और ना ही उस लड़की की। इन्हीं वजहों से हमारे देश में रेप केस की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। जवान तो जवान आज कल के लोग तो छोटी बच्चियों को भी नहीं छोड़ते और इन सबको देखकर और सुनकर बहुत बुरा लगता है और मैं आप लोगों से विनती करना चाहूँगी कि ऐसे ख्याल दिमाग में ना लायें और ऐसे करने की सोचना भी पाप है जिससे किसी की ज़िन्दगी ख़राब हो।
क्योंकि मुझे बहुत सारे मेल आते हैं जिनमें लिखा रहता है मैं दिन भर सेक्स से बारे में सोचता रहता हूँ, पर ये आपकी शारीरिक और मानसिक ज़िन्दगी में परेशनियाँ ला सकता है। कभी-कभी ठीक है, पर हमेशा कतई सही नही। आप अपना दिमाग दूसरे कामों में लगायें जिससे आपका मन किसी और ओर आकर्षित हो जाए, जैसे कि कहीं घूमने चले जायें, अपनी फैमिली के साथ समय बितायें, थोड़ा बहुत एक्सरसाइज करने लगें, जिससे आपको फायदा हो।
अगर फिर भी आप इन सब चीजों को दिमाग से नहीं हटा पाते हैं तो मेरा नम्र निवेदन है आपसे आप तुरंत किसी डॉक्टर से मिलें और उससे अपनी परेशानी बतायें, बतायें कि दिन भर सेक्स के बारे में सोचना और फिर कोई गलती कर बैठना, जिससे सबका नुकसान हो। यह हम जैसे पढ़े-लिखे सभ्य समाज में रहने वालों को ज़रा भी शोभा नहीं देता।
ये तो थी थोड़ी से ज्ञान की बात, चलिए आगे बढ़ते हैं, अब मैं अपनी कहानी पर आती हूँ।
मेरी उम्र चौबीस साल की है, मैं एम.कॉम. सेकंड ईयर की छात्रा हूँ। जैसे-जैसे मेरी दोस्ती लड़कों में बढ़ने लगी और प्यार और सेक्स का मज़ा लेने लगी, तैसे ही मेरा ध्यान और अन्य लड़कों में लगने लगा। इसी हफ्ते में होली आने वाली थी और कॉलेज में छुट्टियाँ शुरू होने वाली थीं इसलिए हम लोगों ने तय किया कि छुट्टियों से पहले हम लोगों कॉलेज में अपने दोस्तों के साथ होलीमनाएँगे, फिर न जाने कब मौका मिले। क्योंकि ज्यादातर लड़के लड़कियाँ तो बाहर से थे और वो अमूमन त्योहारों के मौके पर घर चले जाते हैं।
हमने कॉलेज में नोटिस लगा दिया और सबको फ़ोन कॉल्स और मैसेज के जरिये भी बता दिया कि शनिवार को कॉलेज में होली फंक्शन है इसलिए जो भी छात्र इसमें रुचि रखते हों, प्लीज वे और उनके फ्रेंड्स भी आमंत्रित हैं।
सुबह हुई सबका आना-जाना शुरू हुआ और सब अपने ग्रुप्स में एक-दूसरे को गुलाल लगाने लगे।
हमने खाने का भी इंतज़ाम कर रखा था जिसमे स्नैक्स, ठंडाई, शरबत, समोसे, पोहा जलेबी और न जाने क्या-क्या आइटम्स थे। हम लोगों भी एक दूसरों को रंग लगाने लगे और धीरे-धीरे एक-दूसरे का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था।
मेरे कुछ फ्रेंड्स अपने भाई बहनों को भी लेकर आये थे और अब जब हम लोग होली खेल कर थोड़ा थक गए तो वो लोग हम लोगों से सबको परिचय कराने लगे। अब मैं बात को ना बढ़ाते हुए सीधे मुद्दे पर पहुँचती हूँ।
मेरी सहेली आँचल भी अपने भाई अजय को लेकर होली फंक्शन में आई थी और वो काफी हट्टा-कट्टा एंड स्मार्ट सा था और उसने सफ़ेद टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहने था, सो काफी डैशिंग सा लग रहा था। मैंने उसे ‘हाय’ किया और फिर अपनी सब अपनी मस्ती में लग गए। इस बीच कुछ बदमाश लड़कों ने जो कि हर कॉलेज में होते ही है उनने टेरेस से सब लोगों पर पानी डाल दिया और सब गीले हो गये। शुरू में तो सबने खूब गलियाँ दीं, पर थोड़ी देर बाद फिर सब अपनी-अपनी मस्ती में लग गए।
मैं भी अपने दोस्तों से बचते-बचते अचानक अजय से जाकर जोर से टकरा गए। हम दोनों इतनी जोर टकराए कि अजय गिरते-गिरते बचा। मैं उससे 'सॉरी-सॉरी' बोलने लगी और वो उठा मुझे पकड़ा और बोला- कोई प्रॉब्लम नहीं, इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं।
मैंने सोचा बंदा अच्छा है, थोड़ी देर इससे बात करती हूँ। मैं उससे साथ एक कोने में आ गई ताकि हम शांति से बात कर सकें। फिर हम दोनों से एक बार फिर इस बार खुद अपना-अपना परिचय दिया और फिर एक-दूसरे को देखने लगे।
मैंने अजय से पूछा- तुम आँचल के साथ इससे पहले तो कभी नहीं दिखे।
तो उसने बताया कि वो दिल्ली में पढ़ाई करता है, इसलिए यहाँ उसका बहुत कम ही आना होता है।
मैंने बोला- ओह, तो तुम दिल्ली में पढ़ते हो तो तुम्हें तो यहाँ ज्यादा अच्छा नहीं लगता होगा? कहाँ दिल्ली और कहाँ ये शहर !
अजय बोलने लगा- ऐसी कोई बात नहीं, मैं बचपन से यहीं रहता हूँ और हर सिटी की अपनी खासियत होती है और इंदौर हर सिटी के मुकाबले में सबसे अलग और बेहतर है।
मैंने पूछा- ऐसी क्या बात है जो तुम्हें इंदौर अलग लगता है?
वो बोला- यहाँ के लोग, उनका अपनापन, शांत वातावरण जो कि दिल्ली जैसी सिटी में कभी नहीं मिल सकता क्योंकि वहाँ इतनी भीड़ और ट्रैफिक है कि लोग अपनी ही दौड़ में लगे हैं, उन्हें दूसरे से कोई मतलब नहीं।
मुझे उसके ख्यालात उसकी और आकर्षित करने लगे। जैसे कि मेरी आदत है जब मुझे कोई अच्छा लगने लगता है। फिर हम लोग यूं ही इधर-इधर टहलने लगे और फिर एक पेड़ के नीचे जा कर बैठ गए।
अजय ने मुझसे पूछा- तुम अकेले होली खेल रही हो, तुम्हारा बॉय-फ्रेंड कहाँ है?
मैंने मन ही मन कहा 'बॉयफ्रेंड तो एक भी नहीं पर फ्रेंड्स जो कि बॉयज हैं उनको तो गिन पाना भी सम्भव नहीं।
मैंने जवाब दिया- मेरा कोई बॉय-फ्रेंड नहीं।
अजय बोला- इतनी सुन्दर लड़की का बॉय-फ्रेंड नहीं है, झूठ मत बोलो।
मैंने बोला- अरे सच्ची, मेरा कोई बॉय-फ्रेंड नहीं, तुम चाहो तो अपनी बहन से पूछ सकते हो।
अजय बोला- ओके... ओके मान लेते हैं कि जूही मैडम का कोई बॉय-फ्रेंड नहीं, तो क्या अब हम जूही मैडम को अपनी गर्ल-फ्रेंड बना सकते है? क्यूंकि अभी हम दोनों सिंगल हैं।
मैंने पूछा- हम दोनों?
यह सुनकर वो हँसने लगा और बोला- आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया।
मैंने बोला- इतनी जल्दी क्या जवाब दूँ?
अजय बोला- या तो आप ‘हाँ’ कर दीजिये और हमारे साथ बैठकर होली मना लीजिये या न कहकर चली जायें और अपनी सहेलियों के साथ होली की मस्ती करें जो कि आप अभी कर रही हैं।
मैं सोचने लगी, बॉय-फ्रेंड बना लूँ तो क्या? थोड़ा बहुत जानने का और मेरी दोस्त का भाई है, तो कोई टेंशन की बात भी नहीं है और फिर दोस्तों का क्या है इसके साथ तो जब चाहे होली मना सकती हूँ। वैसे भी होली में अभी एक हफ्ता है और फिर पंचमी भी तो है मनाने के लिए।
मैंने बोला- ठीक है अजय, बना लेते है आपको अपना बॉय-फ्रेंड।
अब हम लोग पेड़ के नीचे पेड़ का टेका लेकर पैर फैला कर बैठ गए और बातें करने लगे।
क्या बातें की होगीं, ये तो आप सबको पता है, आफ्टर आल बॉय-फ्रेंड शुरू-शुरू में क्या बातें करते हैं ! ये सबको मालूम है।
बातों-बातों में आखिर उसने मुझसे वो बात पूछ ही ली जो हर लड़के को पूछने की सबसे ज्यादा जल्दी होती है कि क्या तुमने कभी सेक्स किया है?
मैंने कहा- हाँ, बस एक बार किया है !
उसका प्रमाण है मेरा पहला सांड !
जब उसने पूछ लिया तो मैं भला क्यों पीछे रहती, मैंने भी उससे पूछा- तुमने तो जरूर किया होगा। और जैसा मुझे लग रहा था, उसका जवाब ‘हाँ’ था। बातों-बातों में वो मेरे गीली जाँघों को सहलाने लगा क्योंकि मैं भी भीगी थी इसलिए मेरे भी लगभग पूरे कपड़े गीले हो गये थे।
वो सहलाये जा रहा था फिर वो एकदम से अपने होंठ मेरे होंठों के पास लाया तो मुझसे भी कण्ट्रोल नहीं हुआ और मैंने भी उसके होंठों से होंठ सटा दिए और फिर गन्दा वाला स्मूच वाला ‘फ्रेंच-किस’ होने लगा हम दोनों से बीच। कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था।
वैसे भी आज का दिन तो मस्ती करने के लिए और मस्ती भरा दिन था। सब अपने-अपने में मस्त थे इसलिए हमने भी किसी और की तरफ ध्यान नहीं दिया और अपनी होंठों की चुदाई में लगे रहे। करीब दस मिनट बाद जब हमने इस बार का एहसास हुआ कि हम लोग झड़ने वाले हैं, मेरा मतलब चूमा-चाटी बहुत हो चुकी सो इस पर ब्रेक लगाते हुए एक-दूसरे से अलग होने लगे।
पर लड़के कहाँ मानने वाले हैं, उसने तो अपने हाथ मेरे मम्मों पर फेरने शुरू कर दिए थे और धीरे-धीरे अपनी पकड़ और तेज़ कर रहा था। हम दोनों को पता था और एहसास भी कि बस बहुत हुआ पब्लिक प्लेस में ये सब शोभा नहीं देता इसलिए हम लोगों ने इसको विराम देना ही ठीक समझा।
पर अब न अजय का लंड अब शांत होने वाला था और न मेरी चूत। मैं भी खुली होने लगी थी। आखिर अगर कोई आपको उंगली कर के छोड़ दे तो बड़ा अजीब सा लगता है। यहाँ उंगली से मेरा तात्पर्य था कि अगर कोई आपको कोई किसी चीज़ का लालच दे और आप जब उसके करीब पहुँच जायें, तो वो उसे बगैर दिए चला जाये तो ऐसा लगता है अब तो लेकर ही मानूंगी। कुछ वैसी ही हालत मेरी भी हो रही थी।
इसलिए अजय ने कहा- कहीं और चलते हैं।
तो मैंने पूछा- कहाँ?
उसने कहा- मेरे घर तुम कपड़े भी बदल लेना, तब तक आँचल भी आ जाएगी और हम थोड़ी देर आराम से बैठकर बात कर लेंगे, फिर सब लोग कहीं बाहर घूमने चलेंगे।
मैंने कहा- ठीक है।
और हम दोनों आँचल के पास चले गए और उससे कहा- मेरी तबियत थोड़ी ठीक नहीं लग रही इसलिए मैं तुम्हारे घर चली जाती हूँ। थोड़ी देर में जब तुम लोग घर आओगे फिर प्लान करते हैं कहीं पार्टी-शार्टी का।
आँचल ने कहा- ठीक है, तुम दोनों जाओ और आराम करो। मैं फ्रेंड्स के साथ थोड़ी देर में आती हूँ।
अजय ने अपनी कार निकाली और हम दोनों बैठ कर उसके घर चल दिए। रास्ते भर अजय की छेड़खानियाँ जारी रहीं। जैसे कि गियर बदलते वक़्त मेरा हाथ पकड़ना कभी बालों के साथ खेलना, कभी मेरे बदन पर हाथ फेरना। मैं भी इशारे समझ गई थी और मुझे भी देखना था आखिर दिल्ली वालों में कुछ खास है या वही सब कुछ, जो बाकी मर्दो में।
हम घर पहुँचे।
अजय ने कार में रखी अपनी जैकेट मुझे दी और कहा- पहन लो, तुम्हारा बदन भीगा और लोग देखेंगे तो गलत समझेंगे। मैंने उसकी जैकेट पहन ली और हम लोग लिफ्ट से सीधे उसके फ्लैट में पहुँच गए, फ्लैट पर कोई नहीं था।
मैंने पूछा- अभी तो तुम्हारे घर पर कोई नहीं है?
अजय ने बोला- मोम-डैड भोपाल गए हैं, शाम तक आएंगे।
मैंने भी बात टाल दी और उनके बड़े से घर को निहारने लगी।
अजय मुझे आँचल के कमरे में ले गया और कहा- उसकी अलमीरा से जो ड्रेस तुम्हें पसंद हो वो तुम पहन लो।
मैंने सर हिलाया और वो चला गया। मैंने दरवाज़ा बंद किया और उसकी जैकेट बिस्तर पर रख दी और लाकर में से कपड़े देखने लगी।
मैंने कपड़े पसंद किए और सोचा, क्या बाथरूम जाऊँ, यहीं चेंज कर लेती हूँ, दरवाज़ा तो लॉक है ही। मैंने अपनी कुर्ती खोली ही थी और पीछे से अचानक से दरवाज़ा खुला और अजय आया।
अजय ने दरवाजा इतनी जल्दी खोला कि मैं कुछ समझ पाती तब तक तो वो मेरे पीछे खड़ा था। मैंने कुर्ती उतार दी थी और मैं अभी सिर्फ ब्रा में थी और मेरी पीठ दरवाज़े की तरफ थी। उधर से अजय आया और मेरी पीठ सहलाने लगा।
मैंने बोला- क्या कर रहे हो?
अजय बोला- वही जो हर बॉय-फ्रेंड अपनी गर्ल-फ्रेंड के साथ करता है।
मैंने मन ही मन बोला, सच में दिल्ली के लड़के कुछ ज्यादा ही फ़ास्ट होते हैं। मौका देखा नहीं कि चौका मारने को तैयार बैठे रहते हैं।
अजय अपनी सख्त हाथों से मेरी पीठ सहलाने लगा और मुझे एहसास हो गया था कि अब यह ब्रा भी कुछ लम्हों की मेहमान है और पता नहीं कब ये नीचे और मैं ऊपर होऊँगी। थोड़ी देर तब पीठ सहलाने के बाद रणवीर ने मुझे घुमाया और बिस्तर पर उल्टा धकेल दिया और मेरी पीठ अपनी होंठों से चूमने लगा।
मुझे अच्छा लग रहा था इसलिए मैंने भी विरोध नहीं जताया। मेरा आधा शरीर बिस्तर के कोने में था और आधा नीचे। अजय मेरी कमर को जकड़े हुए था। अजय मेरी पीठ चूमते-चूमते अपने हाथ भी मेरी कमर के पास घुमा रहा था और थोड़ी देर में ही उसने मेरे पजामे का नाड़ा खोल दिया और उसे नीचे मेरे घुटने तक गिरा दिया।
थोड़ी देर बाद अजय ने मुझे खड़ा किया और मेरा पजामा मेरे शरीर से अलग कर दिया। फिर उसने मुझे अपनी बांहों में उठा लिया और बाहर की तरफ ले जाने लगा।
मैंने पूछा- ये क्या कर रहे हो?
तो उसने बोला- अब जो होगा, मेरे कमरे में होगा, यह आँचल का कमरा है और अगर उसको शक हो गया तो वो मेरी बैंड बजा देगी। इसलिए आगे का प्रोग्राम मेरे रूम में।
अजय मुझे अपने कमरे में लाया और बड़े प्यार से आहिस्ते से मुझे बिस्तर पर लेटा दिया। अब चूंकि मैं सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी इसलिए अजय का कपड़ों में रहना तो गुनाह था। इसलिए जब अजय ऊपर आने लगा और मैं उठी और उसकी टी-शर्ट उतारने लगी।
अजय ने भी मेरा साथ दिया और अपनी टी-शर्ट उतारने लगा और फिर मैं उसके शॉर्ट्स पर झपटी जिसके अंदर काला सा नाग फन मार कर खड़ा था। जो मैं बाहर से ही देख सकती थीं फिर भी मैंने हार नहीं मानी और उसका सामने करने का निश्चय किया और उसका शॉर्ट्स उतार दिया। उतारते ही उसका काला लंड मुझे पर ऐसे झपटा, जैसे सांप को अपना शिकार मिल गया हो।
मैंने दोनों हाथों से अजय के लंड को पकड़ा और सहलाने लगी। मैं फिर नीचे झुकी और अपने जीभ बाहर निकाली और उसको हल्का सा चाटा। दूसरी बार फिर मैंने उससे चाटा और अपने हाथों से अजय के लंड को जोर-जोर से ऊपर-नीचे हिलाने लगी और फिर उसको मुँह में ले लिया। फिर जिस तरह मैं उसके लंड को अपने हाथों से ऊपर-नीचे कर रही थी, उसी तरह अपने मुँह को में उसको लंड को भी कभी अंदर घुसाती तो कभी बाहर।
थोड़ी बाद मैंने अजय को लेटाया और फिर मज़े से उसके लंड को चूसने और चूमने लगी। उससे भी मज़ा आ रहा था, वो भी मेरे बालों को सहला रहा था। फिर मैंने अजय के लंड के चारों और अपनी जीभ घुमाई। यह पहली बार था जब मैंने किसी ऐसे पुरुष का लंड चूसा था जिसके लंड के पास ज़रा भी बाल नहीं थे।
मैंने सोचा शायद दिल्ली वालों की एक और खासियत है, ये हर चीज़ साथ-सुथरी मेन्टेन रहनी चाहिये। जब मेरा मन भर गया तो अजय ने मेरे मम्मों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और दबाने लगा। थोड़ी देर बाद उसने मेरे पीठ के नीचे हाथ लगाकर ब्रा का हुक खोल दिया और मम्में हवा में लटक गए।
अब अजय ने अपना निशाना मेरे मम्मों से हटा कर मेरे चूचुकों पर केंद्रित कर लिया और फिर अपनी ऊँगली और अंगूठे से उनको मींजने लगा और फिर अपनी होंठ मेरे चूचुकों में सटा दिए और खींचने लगा। मुझे हल्की-हल्की चुभन सी हुई जैसे कोई कांटा लगने पर दर्द होता है, उस तरह के दर्द का एहसास हो रहा था। थोड़ी देर तक उसने मेरे एक ही निप्पल के साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया, पर फिर उसने वही हाल मेरा किया और मेरे मुँह से कराहने का आवाज़ आने लगीं।
मैंने मन ही मन सोचा 'जूही, अभी तो बस शुरुआत हुई है, तुझे आज आगे ना जाने क्या-क्या सहना पड़ेगा।' जब अजय का मन मेरी चूचुकों से तृप्त हो गया तो फिर वो मेरी चूत की और बढ़ा और मेरी नाभि, कमर को चूमते हुए मेरी कमर में दोनों हाथ फंसा कर मेरी पैंटी उतार दी और अब मैं और अजय पूरे तरह से नग्न अवस्था में थे। अजय अपनी जीभ से मेरी चूत चाटने लगा और मेरी सिसकारियाँ तेज होती जा रही थीं।
पर उसने ज्यादा समय मेरी चूत नहीं चाटी और चुदाई के मूड में आ गया। उसने मेरी दोनों टाँगों को पकड़ा और फैला दिया। अपने लंड को मेरी चूत के पास लाया और मेरी जाँघों पर थपथपाने लगा जैसे कि कोई गुरु बेंत को मारने से पहले हवा में घुमा कर चैक करता है।
थोड़ी देर बाद अपने लंड को पकड़ा और मेरी चूत के मुँह के पास लाकर चिपका दिया और फिर अचानक से ज़ोर का झटका मारा और सटाक से उसका लंड मेरी चूत के अंदर। मेरी सांस रुक गई थोड़ी देर के लिए, मुझे दर्द तो पहले से हो रहा था और फिर जब उसने एक झटके में अपना लंड मेरी चूत में डाला तो दर्द और बढ़ गया।
मैं दर्द से कराहने लगी, “आआह्ह एएए हाई मरर गईई बहुत दर्द हो रहा हैईइ आआह्हह ऊऊओह्ह।”
अजय ने जैसे ही अपना लंड निकाला, मेरा दर्द थोड़ा सा कम हुआ और मैंने चैन की सांस ली, पर मुझे तो पता था यह इतना जल्दी शांत होने वाला नहीं था। अजय मेरे ऊपर लेट गया और अपने होंठ मेरे होंठों से सटा दिए और फिर उसने शॉट मारना शुरू किया।
मुझे फिर से वही दर्द हुआ, पर मेरे होंठों पर अब अजय के होंठ थे। इसलिए मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी। फिर धीरे-धीरे अजय ने शॉट की स्पीड बढ़ा दी, पर धीरे-धीरे मेरे बदन ने मेरे दर्द की स्पीड घटा दी, और मज़ा का मीटर तेजी से दौड़ने लगा।
मैंने अजय की पीठ को अपनी दोनों हाथों से पकड़ लिया और अपनी टाँगों को अजय की टाँगों से चिपका लिया और अजय के शॉट चालू रहे। थोड़ी देर बाद जब अजय को लगा कि उसका वीर्य गिरने वाला है, उसने अपना लंड बाहर निकाला और मम्मों पर अपने वीर्य गिरा दिया और दोनों हाथों से मेरे मम्मों को पकड़ कर उनको मेरे मम्मों के आस-पास मलने लगा।
थोड़ी देर तक हम दो जिस्म और एक जान की तरह एक-दूसरे पर लेटे रहे, पर जैसे ही अजय की मर्दानगी वापस जगी, उसने मुझे घुमा कर रख दिया।
उसने मुझे उल्टा लिटाया और बोला- अब तुम्हारी गांड की बारी है।
अजय ने अपना लंड मेरी गांड के छेद के पास ले गया और मेरे ऊपर लद गया और दोनों हाथों से मेरे मम्मों को पकड़ लिया और फटाक से झटका मारा। मुझे फिर से ऐसा दर्द उठा मान लो अब तो मर ही गई क्योंकि यह वाला दर्द पिछले वाले से भी ज्यादा था, पर अजय ने एक सेकंड के लिए भी अपना गांड मारने का कार्यक्रम बंद नहीं किया।
मेरी गांड जोरों-शोरों से पूरे दम से मारता रहा, जब तक वो थक नहीं गया। फिर मेरे ऊपर लेट गया। उधर मेरी जान और गांड दोनों मरी पड़ी थीं।
मैं दर्द से चिल्ला रही थी, “आआह्ह आआऊऊओह्ह्ह्ह उउफ्फ्फ्फ।”
पर जनाब तो थक कर मेरे शरीर को सोफा समझ चुके थे और वहीं विश्राम करने का उनका पूरा प्रोग्राम था। चार बज गए थे और आँचल आने वाली थी, इसलिए हमने इसको इस वक़्त यही ठीक समझा और तय किया कि नहा लेते हैं, फिर आराम से बैठ कर बात करेंगे।
मैं नहाने गई, मेरे चेहरे में थोड़ा रंग लगा था। उसे साफ़ करने लगी। वहीं पीछे से अजय आ गया और मेरी गांड दबाने लगा। मैंने फिर भी हार नहीं मानी और अपना काम करती रही जब तक कि मेरे चेहरे से रंग नहीं निकल गया। उसने मुझे नहाते नहाते बाथटब में लगभग फिर से चोद ही दिया था, पर देर हो गई थी, इसलिए मैं बाहर आई, अपनी ब्रा-पैंटी उठाई और आँचल के कमरे में गई। उसके लाकर से एक ब्रा-पैंटी निकाली जो मुझे फिट लगी और जो कपड़े मैंने पहनने के लिए निकाले थे, वो ले जाकर पहन लिए। मेरी कुर्ती जो उसके कमरे में थी उसे उसके बाथरूम में डाल दिया।
थोड़ी देर तक हम दोनों ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी देखते रहे। तभी आँचल आई और पूछने लगी कि मेरी तबीयत कैसी है।
मैंने हँस कर कहा- एकदम बढ़िया।
फिर हमने तय किया छप्पन चलते हैं, वहीं कुछ खाएगें और फिर वहीं टी-आइ में कुछ शॉपिंग करेंगे। आँचल ने कार की चाभी मांगी तो अजय ने कहा- रुको कमरे में है, मैं लेकर आता हूँ।
आँचल ने कहा- रहने दो, तुम बैठो मैं ले आती हूँ। आँचल चाभी ढूंढ रही थी, उससे मिल नहीं रही थी फिर उसने बेड के नीचे देखा तो एक कोने में चाभी पड़ी थी। जैसे ही वो चाभी उठा रही थी, उसने देखा मेरी सलवार भी नीचे पड़ी थी। वो बाहर आई और उसने कुछ नहीं कहा।
उसने बोला- चलो चलते हैं।
मैं जैसे ही उठी, पैर में थोड़ा सा दर्द होने लगा।
आँचल ने पूछा- क्या हुआ?
तो मैंने कहा- कुछ नहीं चेंज करते वक़्त पाँव में बस थोड़ी चोट लग गई थी और कुछ नहीं।
आँचल जिस तरह मुझे देख रही थी, वो समझ गई थी कि ये वो चोट किसी और चीज़ की नहीं बल्कि अजय की चुदाई के कारण हो रही है, पर उसने उस समय कुछ नहीं कहा और फिर हम लोगों लिफ्ट से नीचे चले गए।
आप लोगों को मेरे जीवन का यह हिस्सा कैसा लगा? मुझे जरूर बताइएगा।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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