FUN-MAZA-MASTI
दिलो की फरियाद--8
पिंकी, नेहा और संगीता बहते हुए पानी तोड़ा अंदर जाकर आपस में मस्ती करने लगे, सब ने झरने का खूब लुत्फ़ उठाया. इसके बाद सब वहाँ क ईक मंदिर को देखने चले गये, वहाँ से वापस होते शाम हो गयी, फिर शाम को सब मार्केट की ओर चले गये. सब ने दिन भर खूब मौज मस्ती की, बेज़ार में खूब खरीदारी भी की, और अंततः रात होते-होते सब अपने होटेल में वापस आ गये. रात को खाना खाने के बाद सभी अपने कमरों में चले गये, रातभर उनकी कांक्रिया फिर से चलो हुई. मोहन ने पिंकी की चुदाई की, शरद और नेहा कुंवर होते हुए अभी वे पति-पत्नी की तरह एक ही कमरे में सो रहे थे, और जीतू और संगीता का भी वही हाल था. जीतू ने संगीता को रात में कई बार चोद, कभी बाथरूम में तो काबी बेड में, शरद ने भी नेहा की चुदाई की. नेहा, संगीता, को ऐसा लग रहा था की जैसे की यह उनको हनिमून हो. करीब एक हफ्ते तक वे वहाँ रुके और पिक्निक का आनंद लिया, इस दौरान सब ने खूब मौज मस्ती की, दिन को बाहर सैर किया करते थे और रात को सेक्स. इस एक हफ्ते में रोज कई बार चुड कर इन औरतों के छूट सूज गये थे. एक हफ्ते बाद टीन जोड़िया वहाँ से वापस लौट आए.
FlashBack बात आज से करीब एक साल पहले की है, रेखा मोहन अच्छेराम के घर में किराये से रहता था, अच्छेराम मोहन का मकान मालिक एक सरकारी ऑफिस में चपरसी था । अच्छेराम की दो ही संतान थी और दोनो ही लड*कियॉं। बड़ी लड़की का नाम रेखा और छोटी वाली का नाम सीमा है, रेखा की शादी दो साल पहले हो चुकी थी लेकिन उसके पति ने दहेज के कारण उसे मार मार के घर से निकाल दिया था। रेखा करीबन २५ साल की है, सुंदर सा गोल चेहरा, कसे हुए स्तन, भरे*-भरे कुल्हे, अच्छा कद काठी,उसे देखकर कोई भी पहली नजर में ही उसे चाहने लगता और उसके साथ चुदाई के ख्याल में डूब जाता। सीमा अभी २० साल की है और वह कालेज में पढा करती है। मोहन अच्छेराम के घर में करीब 3-4 साल से रह रहा था। जिस समय मोहन अच्छेराम के घर में आया उस समय सीमा बहुत छोटी थी पर रेखा और भी मदमस्त, हसीन और खुबसुरत थी। मोहन पहली नजर में ही फिदा हो गया था। लेकिन रेखा ने कभी मोहन की तरफ नजर उठा कर नही देखा और शायद किसी दिन ही रेखा ने मोहन से बातचीत कि होगी। इसी दौरान मोहन की शादी पिंकी से हो गई, मोहन की शादी होते ही कुछ समय के लिए उसका ध्यान रेखा से हट गया। रेखा भी शादी कर अपने ससुराल चली गई थी। मोहन और पिन्की के शादी के साल भर भीतर ही जब दोनो का नौकरी के कारण अलग-अलग रहना शुरु हुआ। तब मोहन की चुदाई के लिए तड़प बढ़ गई लेकिन उसकी यह तड़प प्यास नही मिट पाती थी। मोहन रातों को बेबस और मजबुरी में हाथों से ही काम चलाना पड़ता था। इसी दौरान एक दिन
रेखा रोते-रोते ससुराल से मायके आई। जब घरवालो ने उसके रोने कारण पूछा तब रेखा ने बताया कि उसका पति उसे पैसो के लिए रोज मारता है और उसे ताने भी देता है। आज उसने घर से यह कहकर घर से निकाल दिया कि जब तद वह उसके लिए रुपये नही लायेगी तब तक वह घर न लौटे। रुपयों कि बात सुनकर अच्छेराम का दिल बैठ जाता है। रेखा की मॉ और उसकी बहन भी उसके साथ मिलकर खुब जोर-जोर से रोने लगते है। रेखा बार- बार यही कह रही थी की वह अब वापस नही जायेगी। रेखा के माता- पिता उसे रेखा को बहुत मनाने की कोशिश करते है कि किसी तरह वे उसके लिए रुपयों का इंतजाम कर देंगे लेकिन रेखा नही मानती है।
मोहन और पिन्की के शादी के साल भर भीतर ही जब दोनो का नौकरी के कारण अलग-अलग रहना शुरु हुआ। तब मोहन की चुदाई के लिए तड़प बढ़ गई लेकिन उसकी यह तड़प प्यास नहीं मिट पाती थी। मोहन रातों को बेबस और मजबुरी में हाथों से ही काम चलाना पड़ता था। इसी दौरान एक दिन रेखा रोते-रोते ससुराल से मायके आई। जब घरवालो ने उसके रोने कारण पूछा तब रेखा ने बताया कि उसका पति उसे पैसो के लिए रोज मारता है और उसे ताने भी देता है। आज उसने घर से यह कहकर घर से निकाल दिया कि जब तद वह उसके लिए रुपये नहीं लायेगी तब तक वह घर न लौटे। रुपयों कि बात सुनकर अच्छेराम का दिल बैठ जाता है। रेखा की मॉ और उसकी बहन भी उसके साथ मिलकर खुब जोर-जोर से रोने लगते है। रेखा बार- बार यही कह रही थी की वह अब वापस नहीं जायेगी। रेखा के माता- पिता उसे रेखा को बहुत मनाने की कोशिश करते है कि किसी तरह वे उसके लिए रुपयों का इंतजाम कर देंगे लेकिन रेखा नहीं मानती है।
रेखा के पिता और उसके परिवार वालो ने हर प्रकार से कोशिश की रेखा उसके ससुराल फिर से चली जाए लेकिन रेखा के हस्बंड के व्यवहार के कारण ऐसा सम्भव ना हो सका। रेखा अपने माता-पिता के साथ रहने लगी, रेखा और उसकी छोटी बहन सीमा दोनो एक साथ एक ही कमरे में रहने लगे। मोहन उसी घर में आंगन के उस पार एक कमरे में रहा करता था। मोहन का कमरा सर्वसुविधायुक्त कमरा था, मतलब उसे किसी भी चीज के लिए अपने कमरे से बाहर नहीं निकलना पड*ता था। फिरभी वह कभी-कभी रात को घर के आंगन में अकेले में टहला करता था। एक रात को मोहन घर के आंगन में अकेले में जब टहल रहा था, उसने देखा भी रेखा भी ऊपर बालकनी में इधर उधर घुम रही थी। मोहन के मन में ख्याल आया कि कि अभी रात के बारह बजे फिर भी ये अभी तक नहीं सोयी है। मोहन ने रेखा को गौर से बहुत देर तक देखा, मोहन घर के आंगन में रखी एक चेयर पर बैठ गया और रेखा को देख रहा था, थोड़ी देर बाद वह अंदर चली गयी, उसके कुछ देर बाद मोहन भी अंदर जाकर सो गया। यह सिलसिला दिनो, ह्फ्तो तक चला मोहन को यह समझ नहीं आरहा था कि आखिर वह रात को इतने देर तक किसलिए जगा करती है। मोहन ने सोचा कि क्यो न उसी से ही पुछ लिया जाए। आखिरकार एक रात को मोहन ने हिम्मत करके रेखा से पुछ ही लिया*- मोहन-‘ रेखा जी! जरा सुनिए।‘ रेखा- ‘जी’ नीचे की ओर देखकर ‘ कहिए’ । मोहन- ‘ मैं कई रातों से देखरहा हूँ कि आप रातों को अक्सर देर तक जगती रहती है, क्या आप को नींद नहीं आती है या फिर कोई समस्या है’ रेखा- ‘ नहीं*- नहीं* ऐसी कोई बात नहीं है,आप मेरे कारण परेशान मत होइए,मै बस ऐसे ही.................। वैसे आप भी तो रातों को देर तक जगते है’ मोहन- ‘ मै तो बस रात को अक्सर पी.सी. में कुछ ना कुछ काम करते रहता हूँ फिर सोने से पह्ले थोड़ा टहल लेता हूँ इससे नींद अच्छी आती है, लेकिन आप का कुछ अलग कारण नजर आता है’
रेखा इससे आगे कुछ नहीं बात करती है और गुडनाईट कहकर सोने चली जाती है। अगले कुछ रातों को रेखा अपने बालकनी में नजर नहीं आती, लेकिन उसकी आंखो में नींद नहीं रहती है , अपने बिस्तर पर वह इधर उधर करती रहती थी। जब रेखा को नींद नहीं आती तब फिर से वह इधर उधर टहलने लगती है। रेखा जब कमरे से बाहर आई तो उसने पाया कि मोहन पहले से ही आंगन मै टहल रहा था। रेखा तो नींद के कारण मजबुर थी इसलिए वह भी अपने कमरे के बाहर बालकनी मे इधर उधर घुमने लगी। मोहन को जब उसके सवालो के जवाब नही मिले तब उसने दोबारा बात करना उचित नही समझा, मोहन नीचे आंगन में और रेखा ऊपर टहला करती थी। एक दिन की बात है, उस दिन रेखा के घर में कोई नही था,रेखा के अलावा सभी कोई उनके किसी रिस्तेदार के यहा घुमने गये हूये थे। उस समय पुरे मकान में रेखा और मोहन थे, मोहन अपने कमरे के अंदर पी.सी.में हमेशा कि तरह काम कर रहा थ। तभी मोहन को किसी के जोर जोर से चिखने चिल्लाने की अवाज सुनाई दी, मोहन अपने कमरे से बाहर आकर उस अवाज को सुनने लगा। वह अवाज सामने से उसके मकान मालिक के घर से आ रही थी। मोहन अवाज की तरफ दौड़ा, जब दरवाजे के पास पहुचा तब अवाज और बढ़ गई थी दरवाजा खुला था, मोहन घर के अंदर घुसा तो उसने देखा कि रेखा की साड़ी के आंचल में आग लगी हुई थी और रेखा उस आग को बुझाने का प्रयास कर रही थी और जोर जोर से चिल्ला रही थी। मोहन रेखा के समीप दौड़कर पहुचा और वह भी आग को बुझाने लगा लेकिन मोहन को समझ में नही आ रहा था कि वह कैसे इस आग को बुझाये। मोहन ने साड़ी के हिस्से को पकड़कर आग को रेखा से दूर करने के लिए उसे जोर से खींचा। रेखा जोर जोर बचाओ कहते हुए रो रही थी। रेखा को आग से बचाने के लिए उसके साड़ी को रेखा से दूर करने के चक्कर में मोहन ने साड़ी को कफी जोर से खींचा जिससे रेखा की साड़ी छिटककर जमीन पर गिर गई। अब मोहन ने साड़ी में लगे आग को पानी डालकर बुझा दिया। मोहन ने जब रेखा के साड़ी को जोर से खीचा चुंकि साड़ी ब्लाउज के साथ पिन लगा हुआ था इस कारण से ब्लाउज के भी कुछ हिस्से फटकर साड़ी के साथ आ गये। मोहन ने उसके जलते हुए साड़ी में लगे आग को बुझाने के बाद वह रेखा की तरफ मुड़ा, रेखा अब राहत की सांस ले रही थी उसको जरा सा भी एहसास नही था कि उसका ब्लाउज फट गया है, मोहन जैसे ही पलटा उसने पाया कि रेखा का एक तरफ का दुध ब्लाउज के फट जाने के कारण दिख रहा था हांलाकि ब्रा ने उसके दुध को ढंका हुआ था फिरभी ब्रा में भी उसके स्तन बहुत आकर्षक और मनमोहक था। मोहन की नजरें उस पर टिक गई अब अचानक से रेखा ने जब खुद को देखा तो वह दंग रह गई। रेखा को कुछ नही सुझा उसने तुरंत ही अपने हाथ से दुध को ढंक लिया । रेखा- ‘ क्या हुआ?’ मोहन- ‘कुछ नही आप ठीक तो है ना’ रेखा- ‘ मै ठीक हूँ लेकिन आप मुझे ऐसे क्यो देख रहे थे?’ मोहन-‘रेखा जी! आप बहुत सुंदर है, आपका हर अंग बहुत ही आकर्षक है, सच में’
मोहन ऐसा कहते हुए रेखा की ओर बढ़ा लेकिन रेखा मोहन के कदमो को अपनी ओर बढ़ते देख उसने अपने कदमो को भी पीछे कर बोली।
रेखा – ‘ मोहन जी! आप यह क्या बोल रहे हो, आप ठीक तो है ना। मै अभी घर में अकेली हूँ, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है आप प्लीज अभी चले जाइये\’ मोहन को समझ में नहीं आया कि वह क्या करें। इससे पहले कि मोहन कुछ समझ पाता रेखा वहा से भागकर अपने कमरें में चली गई। रेखा के वहा पर से जाने के बाद मोहन भी अपने कमरे में वापस आ गया। मोहन कि नजरों वह दृश्य झुल रहा था। रेखा के स्तन उसके आंखो से ओझल नहीं हो रहे थे। रेखा ने अपने कमरें में जाकर फटे हुए कपड़ो को बदलने लगी, तब उसकी नजर उसके स्तन के गोलाईयो पर गई, बड़े गौर से उसे देखने लगी और उसके दिमाग में मोहन के साथ का वह पल और उसकी बातें आदि घुमने लगी। रेखा ने सोचा अगर आज मोहन जी नहीं होते तो तब उसका क्या हाल होता, हो सकता था कि आज वह जल जाती तो, मोहन जी ने आज उसकी जान बचाई थी, उसे इस बात का शुक्र्गुजार होना चाहिए। रेखा को याद आया कि मोहन ने रेखा को आग से बचाने के लिए शायद उसने खुद को जला लिया था ।
घर के अन्य सदस्य जब शाम को वापस लौटे तब रेखा ने उन पुरे दिन की घटना के बारे में बतायी। जब उन लोगो ने सुना कि मोहन ने खुद को खतरे में डालकर कैसे उसे बचाया यह जानकर मोहन के प्रति सीमा (छुटकी), उसके पापा और उसकी मॉ के हृदय में इज्जत बढ़ गई जिसका नतीजा यह रहा कि मोहन अब उनके घर में एक परिवार के सदस्य की तरह था। मोहन के आने- जाने से किसी को भी कोई दिक्कत नहीं होती थी। उस शाम को जब सब कोई घर के आंगन में बैठे हुए थे तब रेखा के कहने पर सीमा ने मोहन के जले हाथ में दवाई लगाई। रेखा भी वहीं पर बैठी हुई थी, रात होते तक सिर्फ रेखा और मोहन ही वहा पर थे बाकी अन्य किसी ना किसी काम से व्यस्त हो गये। इतने दिनो में रेखा पहली बार मोहन से ऐसे खुलकर बात कर रही थी।
रेखा- ‘ मोहन जी आज आपने मुझे एक नई जिंदगी दी है, अगर आप नहीं होते तो पता नहीं मेरा क्या होता’
मोहन- ‘नहीं रेखा जी एक पड़ोसी होने के नाते यह तो मेरा फर्ज था, मैंने तो बस वही किया जो मुझे करना चहिए था, ये बताइए आप ठीक तो है ना’
रेखा-‘ मै तो बिल्कुल ठीक हूँ पर मेरे कारण आप जल गये, भगवान करे आपका घाव जल्दी ठीक हो जाये तब कही जाकर मेरे दिल को सुकुन मिलेगा’
मोहन- ‘ आप मेरी चिंता मत कीजिए, यह घाव तो बहुत जल्दी ठीक हो जाएगा, पर अगर आप किसी दिन घर में अकेली हो और किसी प्रकार की जरुरत पड़े तो मुझे जरुर याद कर लीजिए हो सकता हो मै कुछ आपके काम आ जाऊ’
रेखा- ‘ बहुत- बहुत धन्यावाद! मै आपके इस बात को याद रखूंगी।
समय गुजरता गया, अब रेखा और मोहन शाम के समय या फिर किसी भी समय जब दोनो की मुलाकात होती रेखा मोहन से बाते करती थी इस कारण दोनो में काफी समझ उत्पन्न हो गया था\ कभी- कभी छुटकी (सीम) उनके साथ मे रहती और दोने के साथ- साथ सीमा भी बहुत कुछ बाते किया करती थी। ऐसे ही एक शाम को दोने (रेखा और मोहन) घर के आंगन में बैठे हुए आपस में बाते कर रहे थे\
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दिलो की फरियाद--8
पिंकी, नेहा और संगीता बहते हुए पानी तोड़ा अंदर जाकर आपस में मस्ती करने लगे, सब ने झरने का खूब लुत्फ़ उठाया. इसके बाद सब वहाँ क ईक मंदिर को देखने चले गये, वहाँ से वापस होते शाम हो गयी, फिर शाम को सब मार्केट की ओर चले गये. सब ने दिन भर खूब मौज मस्ती की, बेज़ार में खूब खरीदारी भी की, और अंततः रात होते-होते सब अपने होटेल में वापस आ गये. रात को खाना खाने के बाद सभी अपने कमरों में चले गये, रातभर उनकी कांक्रिया फिर से चलो हुई. मोहन ने पिंकी की चुदाई की, शरद और नेहा कुंवर होते हुए अभी वे पति-पत्नी की तरह एक ही कमरे में सो रहे थे, और जीतू और संगीता का भी वही हाल था. जीतू ने संगीता को रात में कई बार चोद, कभी बाथरूम में तो काबी बेड में, शरद ने भी नेहा की चुदाई की. नेहा, संगीता, को ऐसा लग रहा था की जैसे की यह उनको हनिमून हो. करीब एक हफ्ते तक वे वहाँ रुके और पिक्निक का आनंद लिया, इस दौरान सब ने खूब मौज मस्ती की, दिन को बाहर सैर किया करते थे और रात को सेक्स. इस एक हफ्ते में रोज कई बार चुड कर इन औरतों के छूट सूज गये थे. एक हफ्ते बाद टीन जोड़िया वहाँ से वापस लौट आए.
जब सब पिकनिक से वापस आ रहे थे तब पिंकी मोहन के साथ कुछ दिनो के लिये उसके घर चली गयी। जीतु भीउसके घर चला गया और नेहा, संगीता भी अपने-2 निवास स्थान में वापस आ गये।
पिंकी और मोहन की शुरु*-शुरु जब शादी हुई थी तब शुरुवात में पिंकी को लगा कि उसके प्यार की चाह्त पुरी हो रही है। इसलिये पिंकी ने मोहन पर अपना तन मन नौछावर कर दिया । मोहन ने पिंकी की जिस्म की जरुरत को हर बार पूरा किया, दोनो बहुत खुश थे। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नही चली, जब पिंकी और मोहन अपने*- अपने नौकरी के कारण उनको दूर होना पड़ा तब से इनके बीच कि दूरियॉं भी बढ़ गयी थी । क्योंकि मोहन को पिंकी को सिर्फ चोदने की चीज़ समझता था, इसके अलावा वह उसे कभी भी प्यार के दो शब्द भी नही बोलता था। नौकरी के कारण वे कभी भी दो-चार दिन से ज्यादा एक साथ नही रहे जिसके कारण पति पत्नि होने के बावजुद उनके बीच शरीरिक सम्बंध और ज्यादा प्रेम भी नही रहा। परिणाम यह रहा कि मोहन को अपनी तन की प्यास को बुझाना था और पिंकी को प्यार चहिये था। पिंकी को शरद से मिलने के बाद ऐसा लगा कि मोहन में वो सब खुबिया है जो उसे चाहिये इसलिये पिन्की शादीशुदा होते हुए भी शरद के साथ शारिरीक संबंध बना बैठी, और उधर मोहन ने अपनी चोदने के लिये रेखा नाम की एक औरत का सहारा लिया।
पिंकी और मोहन की शुरु*-शुरु जब शादी हुई थी तब शुरुवात में पिंकी को लगा कि उसके प्यार की चाह्त पुरी हो रही है। इसलिये पिंकी ने मोहन पर अपना तन मन नौछावर कर दिया । मोहन ने पिंकी की जिस्म की जरुरत को हर बार पूरा किया, दोनो बहुत खुश थे। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नही चली, जब पिंकी और मोहन अपने*- अपने नौकरी के कारण उनको दूर होना पड़ा तब से इनके बीच कि दूरियॉं भी बढ़ गयी थी । क्योंकि मोहन को पिंकी को सिर्फ चोदने की चीज़ समझता था, इसके अलावा वह उसे कभी भी प्यार के दो शब्द भी नही बोलता था। नौकरी के कारण वे कभी भी दो-चार दिन से ज्यादा एक साथ नही रहे जिसके कारण पति पत्नि होने के बावजुद उनके बीच शरीरिक सम्बंध और ज्यादा प्रेम भी नही रहा। परिणाम यह रहा कि मोहन को अपनी तन की प्यास को बुझाना था और पिंकी को प्यार चहिये था। पिंकी को शरद से मिलने के बाद ऐसा लगा कि मोहन में वो सब खुबिया है जो उसे चाहिये इसलिये पिन्की शादीशुदा होते हुए भी शरद के साथ शारिरीक संबंध बना बैठी, और उधर मोहन ने अपनी चोदने के लिये रेखा नाम की एक औरत का सहारा लिया।
FlashBack बात आज से करीब एक साल पहले की है, रेखा मोहन अच्छेराम के घर में किराये से रहता था, अच्छेराम मोहन का मकान मालिक एक सरकारी ऑफिस में चपरसी था । अच्छेराम की दो ही संतान थी और दोनो ही लड*कियॉं। बड़ी लड़की का नाम रेखा और छोटी वाली का नाम सीमा है, रेखा की शादी दो साल पहले हो चुकी थी लेकिन उसके पति ने दहेज के कारण उसे मार मार के घर से निकाल दिया था। रेखा करीबन २५ साल की है, सुंदर सा गोल चेहरा, कसे हुए स्तन, भरे*-भरे कुल्हे, अच्छा कद काठी,उसे देखकर कोई भी पहली नजर में ही उसे चाहने लगता और उसके साथ चुदाई के ख्याल में डूब जाता। सीमा अभी २० साल की है और वह कालेज में पढा करती है। मोहन अच्छेराम के घर में करीब 3-4 साल से रह रहा था। जिस समय मोहन अच्छेराम के घर में आया उस समय सीमा बहुत छोटी थी पर रेखा और भी मदमस्त, हसीन और खुबसुरत थी। मोहन पहली नजर में ही फिदा हो गया था। लेकिन रेखा ने कभी मोहन की तरफ नजर उठा कर नही देखा और शायद किसी दिन ही रेखा ने मोहन से बातचीत कि होगी। इसी दौरान मोहन की शादी पिंकी से हो गई, मोहन की शादी होते ही कुछ समय के लिए उसका ध्यान रेखा से हट गया। रेखा भी शादी कर अपने ससुराल चली गई थी। मोहन और पिन्की के शादी के साल भर भीतर ही जब दोनो का नौकरी के कारण अलग-अलग रहना शुरु हुआ। तब मोहन की चुदाई के लिए तड़प बढ़ गई लेकिन उसकी यह तड़प प्यास नही मिट पाती थी। मोहन रातों को बेबस और मजबुरी में हाथों से ही काम चलाना पड़ता था। इसी दौरान एक दिन
रेखा रोते-रोते ससुराल से मायके आई। जब घरवालो ने उसके रोने कारण पूछा तब रेखा ने बताया कि उसका पति उसे पैसो के लिए रोज मारता है और उसे ताने भी देता है। आज उसने घर से यह कहकर घर से निकाल दिया कि जब तद वह उसके लिए रुपये नही लायेगी तब तक वह घर न लौटे। रुपयों कि बात सुनकर अच्छेराम का दिल बैठ जाता है। रेखा की मॉ और उसकी बहन भी उसके साथ मिलकर खुब जोर-जोर से रोने लगते है। रेखा बार- बार यही कह रही थी की वह अब वापस नही जायेगी। रेखा के माता- पिता उसे रेखा को बहुत मनाने की कोशिश करते है कि किसी तरह वे उसके लिए रुपयों का इंतजाम कर देंगे लेकिन रेखा नही मानती है।
मोहन और पिन्की के शादी के साल भर भीतर ही जब दोनो का नौकरी के कारण अलग-अलग रहना शुरु हुआ। तब मोहन की चुदाई के लिए तड़प बढ़ गई लेकिन उसकी यह तड़प प्यास नहीं मिट पाती थी। मोहन रातों को बेबस और मजबुरी में हाथों से ही काम चलाना पड़ता था। इसी दौरान एक दिन रेखा रोते-रोते ससुराल से मायके आई। जब घरवालो ने उसके रोने कारण पूछा तब रेखा ने बताया कि उसका पति उसे पैसो के लिए रोज मारता है और उसे ताने भी देता है। आज उसने घर से यह कहकर घर से निकाल दिया कि जब तद वह उसके लिए रुपये नहीं लायेगी तब तक वह घर न लौटे। रुपयों कि बात सुनकर अच्छेराम का दिल बैठ जाता है। रेखा की मॉ और उसकी बहन भी उसके साथ मिलकर खुब जोर-जोर से रोने लगते है। रेखा बार- बार यही कह रही थी की वह अब वापस नहीं जायेगी। रेखा के माता- पिता उसे रेखा को बहुत मनाने की कोशिश करते है कि किसी तरह वे उसके लिए रुपयों का इंतजाम कर देंगे लेकिन रेखा नहीं मानती है।
रेखा के पिता और उसके परिवार वालो ने हर प्रकार से कोशिश की रेखा उसके ससुराल फिर से चली जाए लेकिन रेखा के हस्बंड के व्यवहार के कारण ऐसा सम्भव ना हो सका। रेखा अपने माता-पिता के साथ रहने लगी, रेखा और उसकी छोटी बहन सीमा दोनो एक साथ एक ही कमरे में रहने लगे। मोहन उसी घर में आंगन के उस पार एक कमरे में रहा करता था। मोहन का कमरा सर्वसुविधायुक्त कमरा था, मतलब उसे किसी भी चीज के लिए अपने कमरे से बाहर नहीं निकलना पड*ता था। फिरभी वह कभी-कभी रात को घर के आंगन में अकेले में टहला करता था। एक रात को मोहन घर के आंगन में अकेले में जब टहल रहा था, उसने देखा भी रेखा भी ऊपर बालकनी में इधर उधर घुम रही थी। मोहन के मन में ख्याल आया कि कि अभी रात के बारह बजे फिर भी ये अभी तक नहीं सोयी है। मोहन ने रेखा को गौर से बहुत देर तक देखा, मोहन घर के आंगन में रखी एक चेयर पर बैठ गया और रेखा को देख रहा था, थोड़ी देर बाद वह अंदर चली गयी, उसके कुछ देर बाद मोहन भी अंदर जाकर सो गया। यह सिलसिला दिनो, ह्फ्तो तक चला मोहन को यह समझ नहीं आरहा था कि आखिर वह रात को इतने देर तक किसलिए जगा करती है। मोहन ने सोचा कि क्यो न उसी से ही पुछ लिया जाए। आखिरकार एक रात को मोहन ने हिम्मत करके रेखा से पुछ ही लिया*- मोहन-‘ रेखा जी! जरा सुनिए।‘ रेखा- ‘जी’ नीचे की ओर देखकर ‘ कहिए’ । मोहन- ‘ मैं कई रातों से देखरहा हूँ कि आप रातों को अक्सर देर तक जगती रहती है, क्या आप को नींद नहीं आती है या फिर कोई समस्या है’ रेखा- ‘ नहीं*- नहीं* ऐसी कोई बात नहीं है,आप मेरे कारण परेशान मत होइए,मै बस ऐसे ही.................। वैसे आप भी तो रातों को देर तक जगते है’ मोहन- ‘ मै तो बस रात को अक्सर पी.सी. में कुछ ना कुछ काम करते रहता हूँ फिर सोने से पह्ले थोड़ा टहल लेता हूँ इससे नींद अच्छी आती है, लेकिन आप का कुछ अलग कारण नजर आता है’
रेखा इससे आगे कुछ नहीं बात करती है और गुडनाईट कहकर सोने चली जाती है। अगले कुछ रातों को रेखा अपने बालकनी में नजर नहीं आती, लेकिन उसकी आंखो में नींद नहीं रहती है , अपने बिस्तर पर वह इधर उधर करती रहती थी। जब रेखा को नींद नहीं आती तब फिर से वह इधर उधर टहलने लगती है। रेखा जब कमरे से बाहर आई तो उसने पाया कि मोहन पहले से ही आंगन मै टहल रहा था। रेखा तो नींद के कारण मजबुर थी इसलिए वह भी अपने कमरे के बाहर बालकनी मे इधर उधर घुमने लगी। मोहन को जब उसके सवालो के जवाब नही मिले तब उसने दोबारा बात करना उचित नही समझा, मोहन नीचे आंगन में और रेखा ऊपर टहला करती थी। एक दिन की बात है, उस दिन रेखा के घर में कोई नही था,रेखा के अलावा सभी कोई उनके किसी रिस्तेदार के यहा घुमने गये हूये थे। उस समय पुरे मकान में रेखा और मोहन थे, मोहन अपने कमरे के अंदर पी.सी.में हमेशा कि तरह काम कर रहा थ। तभी मोहन को किसी के जोर जोर से चिखने चिल्लाने की अवाज सुनाई दी, मोहन अपने कमरे से बाहर आकर उस अवाज को सुनने लगा। वह अवाज सामने से उसके मकान मालिक के घर से आ रही थी। मोहन अवाज की तरफ दौड़ा, जब दरवाजे के पास पहुचा तब अवाज और बढ़ गई थी दरवाजा खुला था, मोहन घर के अंदर घुसा तो उसने देखा कि रेखा की साड़ी के आंचल में आग लगी हुई थी और रेखा उस आग को बुझाने का प्रयास कर रही थी और जोर जोर से चिल्ला रही थी। मोहन रेखा के समीप दौड़कर पहुचा और वह भी आग को बुझाने लगा लेकिन मोहन को समझ में नही आ रहा था कि वह कैसे इस आग को बुझाये। मोहन ने साड़ी के हिस्से को पकड़कर आग को रेखा से दूर करने के लिए उसे जोर से खींचा। रेखा जोर जोर बचाओ कहते हुए रो रही थी। रेखा को आग से बचाने के लिए उसके साड़ी को रेखा से दूर करने के चक्कर में मोहन ने साड़ी को कफी जोर से खींचा जिससे रेखा की साड़ी छिटककर जमीन पर गिर गई। अब मोहन ने साड़ी में लगे आग को पानी डालकर बुझा दिया। मोहन ने जब रेखा के साड़ी को जोर से खीचा चुंकि साड़ी ब्लाउज के साथ पिन लगा हुआ था इस कारण से ब्लाउज के भी कुछ हिस्से फटकर साड़ी के साथ आ गये। मोहन ने उसके जलते हुए साड़ी में लगे आग को बुझाने के बाद वह रेखा की तरफ मुड़ा, रेखा अब राहत की सांस ले रही थी उसको जरा सा भी एहसास नही था कि उसका ब्लाउज फट गया है, मोहन जैसे ही पलटा उसने पाया कि रेखा का एक तरफ का दुध ब्लाउज के फट जाने के कारण दिख रहा था हांलाकि ब्रा ने उसके दुध को ढंका हुआ था फिरभी ब्रा में भी उसके स्तन बहुत आकर्षक और मनमोहक था। मोहन की नजरें उस पर टिक गई अब अचानक से रेखा ने जब खुद को देखा तो वह दंग रह गई। रेखा को कुछ नही सुझा उसने तुरंत ही अपने हाथ से दुध को ढंक लिया । रेखा- ‘ क्या हुआ?’ मोहन- ‘कुछ नही आप ठीक तो है ना’ रेखा- ‘ मै ठीक हूँ लेकिन आप मुझे ऐसे क्यो देख रहे थे?’ मोहन-‘रेखा जी! आप बहुत सुंदर है, आपका हर अंग बहुत ही आकर्षक है, सच में’
मोहन ऐसा कहते हुए रेखा की ओर बढ़ा लेकिन रेखा मोहन के कदमो को अपनी ओर बढ़ते देख उसने अपने कदमो को भी पीछे कर बोली।
रेखा – ‘ मोहन जी! आप यह क्या बोल रहे हो, आप ठीक तो है ना। मै अभी घर में अकेली हूँ, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है आप प्लीज अभी चले जाइये\’ मोहन को समझ में नहीं आया कि वह क्या करें। इससे पहले कि मोहन कुछ समझ पाता रेखा वहा से भागकर अपने कमरें में चली गई। रेखा के वहा पर से जाने के बाद मोहन भी अपने कमरे में वापस आ गया। मोहन कि नजरों वह दृश्य झुल रहा था। रेखा के स्तन उसके आंखो से ओझल नहीं हो रहे थे। रेखा ने अपने कमरें में जाकर फटे हुए कपड़ो को बदलने लगी, तब उसकी नजर उसके स्तन के गोलाईयो पर गई, बड़े गौर से उसे देखने लगी और उसके दिमाग में मोहन के साथ का वह पल और उसकी बातें आदि घुमने लगी। रेखा ने सोचा अगर आज मोहन जी नहीं होते तो तब उसका क्या हाल होता, हो सकता था कि आज वह जल जाती तो, मोहन जी ने आज उसकी जान बचाई थी, उसे इस बात का शुक्र्गुजार होना चाहिए। रेखा को याद आया कि मोहन ने रेखा को आग से बचाने के लिए शायद उसने खुद को जला लिया था ।
घर के अन्य सदस्य जब शाम को वापस लौटे तब रेखा ने उन पुरे दिन की घटना के बारे में बतायी। जब उन लोगो ने सुना कि मोहन ने खुद को खतरे में डालकर कैसे उसे बचाया यह जानकर मोहन के प्रति सीमा (छुटकी), उसके पापा और उसकी मॉ के हृदय में इज्जत बढ़ गई जिसका नतीजा यह रहा कि मोहन अब उनके घर में एक परिवार के सदस्य की तरह था। मोहन के आने- जाने से किसी को भी कोई दिक्कत नहीं होती थी। उस शाम को जब सब कोई घर के आंगन में बैठे हुए थे तब रेखा के कहने पर सीमा ने मोहन के जले हाथ में दवाई लगाई। रेखा भी वहीं पर बैठी हुई थी, रात होते तक सिर्फ रेखा और मोहन ही वहा पर थे बाकी अन्य किसी ना किसी काम से व्यस्त हो गये। इतने दिनो में रेखा पहली बार मोहन से ऐसे खुलकर बात कर रही थी।
रेखा- ‘ मोहन जी आज आपने मुझे एक नई जिंदगी दी है, अगर आप नहीं होते तो पता नहीं मेरा क्या होता’
मोहन- ‘नहीं रेखा जी एक पड़ोसी होने के नाते यह तो मेरा फर्ज था, मैंने तो बस वही किया जो मुझे करना चहिए था, ये बताइए आप ठीक तो है ना’
रेखा-‘ मै तो बिल्कुल ठीक हूँ पर मेरे कारण आप जल गये, भगवान करे आपका घाव जल्दी ठीक हो जाये तब कही जाकर मेरे दिल को सुकुन मिलेगा’
मोहन- ‘ आप मेरी चिंता मत कीजिए, यह घाव तो बहुत जल्दी ठीक हो जाएगा, पर अगर आप किसी दिन घर में अकेली हो और किसी प्रकार की जरुरत पड़े तो मुझे जरुर याद कर लीजिए हो सकता हो मै कुछ आपके काम आ जाऊ’
रेखा- ‘ बहुत- बहुत धन्यावाद! मै आपके इस बात को याद रखूंगी।
समय गुजरता गया, अब रेखा और मोहन शाम के समय या फिर किसी भी समय जब दोनो की मुलाकात होती रेखा मोहन से बाते करती थी इस कारण दोनो में काफी समझ उत्पन्न हो गया था\ कभी- कभी छुटकी (सीम) उनके साथ मे रहती और दोने के साथ- साथ सीमा भी बहुत कुछ बाते किया करती थी। ऐसे ही एक शाम को दोने (रेखा और मोहन) घर के आंगन में बैठे हुए आपस में बाते कर रहे थे\
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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