FUN-MAZA-MASTI
मैंने ट्यूब बुझा कर नाइट बल्ब जला दिया, और आकर मैं भी अपनी रजाई में घुस गया और आँखें बंद कर लीं।
पर नींद का तो दूर-दूर तक पता नहीं था। मन ही मन मैं कुढ़ रहा था कि यह माला कहाँ दाल भात में मूसलचंद आन पड़ी।
इस बात को वो ही समझ सकता है जो ऐसे हालात से गुज़रा हो।
लगभग बीस-पच्चीस मिनट बाद मुझे भाभी वाली रजाई में कुछ हलचल सी महसूस हुई।
मैंने धीरे से करवट उनकी तरफ ले ली और मैंने देखा कि वास्तव में ही उनकी रजाई में तो तूफ़ान सा मचा पड़ा था। अब तो सिसकारियों की आवाज़ भी आ रही थी।
अचानक मुझे धीरे से फुसफुसाने की आवाज़ आई- भाभी, कहीं बिट्टू न जग जाये।
भाभी बोलीं- कोई बात नहीं, इससे तो फायदा ही होगा।
मैं भी भौंचक्का सा था क्योंकि तब मुझे किताबों में लिखा लेस्बियन सेक्स मात्र कल्पना ही लगता था। लेकिन आज वास्तव में ये देख कर मेरे 'छोटू; ने भी अंगड़ाइयाँ लेनी शुरू कर दी थीं। अब भाभी की बात भी समझ में आ गई थी कि जब हमारी रजाई खूब हिले तो तब रजाई को अपनी तरफ से उठा देना।
मैंने अभी और कुछ देर इंतज़ार करने का फैसला लिया और अपनी सांस भी इतने धीरे ले रहा थी कि मेरे सांस लेने की आवाज़ न हो, उन दोनों की पूरी बात मेरी समझ में आए।
तभी भाभी की आवाज़ आई- माला, मैं क्या करूँ यार ! तेरा भाई एक तो महीने में एक-आध बार ही करता है और झड़ भी जल्दी जाता है। बता मेरी माला बहन, मैं क्या करूँ?
तो माला बोली- भाभी, आप कोई दोस्त बना लो ना !
भाभी बोलीं- सोचती मैं भी यही हूँ, पर बदनामी से डरती हूँ। कोई अपना सा हो जो बाहर बदनाम न करे।
फिर उनकी आवाज़ें बंद हो गईं और फिर से चूमने की और सिसकारियों की आवाज़ें आने लगीं- आआआह भाभीइइइ आआईईईई ! हालाँकि कि ये आवाज़ें बहुत हल्की थीं, पर मेरा जोश बहुत बढ़ गया था।
अब उनकी रजाई काफी ऊँची हो गई थी और काफी हिलजुल हो रही थी रजाई में। मैं समझ गया कि अब मेरा रोल शुरू होने वाला है, क्योंकि मुझे साफ़ पता चल रहा था कि अब दोनों की कमीज़ें उतर चुकी हैं। सीत्कारों और सिसकियों की आवाज़ें तेज़ हो गई थीं।
अब तक तो मैं जैसे-तैसे सब्र करे पड़ा था। पर अब धीरे से मैंने उनकी रजाई का कोना उठाया। क्योंकि कमरा तो रूम हीटर की वजह से पूरी तरह गर्म था, और इस वक्त वो दोनों भी पूरे जोश में थीं। इसलिए उन्हें एकाएक तो पता भी नहीं चला कि मैं उनका खेल देख रहा हूँ।
मैंने देखा कि भाभी ने अपना सर माला की चूची पर लगा रखा था और उसे मुँह में पूरी भर कर चूस रही थीं। माला का एक हाथ रजाई में भाभी की कमर पर था और दूसरा भाभी की गर्दन पर लिपटा हुआ था। माला ने भाभी का सर पूरे ज़ोर से अपने सीने पर भींच रखा था।
अब मुझ से रहा नहीं गया और मैं अचानक बोल ही पड़ा, "भाब्भी, मैं की अछूत हाँ?"( भाभी, मैं क्या अछूत हूँ?)
और मेरे ऐसा बोलते ही एकाएक दोनों की हरकतों को जैसे ब्रेक लग गया और उनकी हालत ऐसे हो गई जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो।
माला तो एकदम कांपने लग गई और चेहरा पीला पड़ गया, पर भाभी एकदम संभल गई। क्योंकि इस सारी कहानी की सूत्रधार तो वो ही थीं।
भाभी एकदम मेरी तरफ पलटीं, मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं- देवर जी तुसीं वी आओ ना, तुहान्नूँ किन्ने मना कित्ता ए !(तुम भी आ जाओ, तुम्हें किसने मना किया है।)
और अपनी तरफ खींचती हुई बोलीं- एह तां घर दी गल्ल, घर विच ही हैगा न !(यह तो घर की बात है, घर में ही तो है)
अब मैं जो कि पिछले दो घंटे से ‘किलस’ रहा था, अब क्या बोलता ! मैं तो एक के ना मिल पाने से कुढ़ा हुआ था अब तो दो-दो थीं।
और भाभी माला से बोलीं- कुड़िये, तूं घबरा ना, ऐह तां बड़ा ही बीब्बा मुंडा है, ऐ साड्डी गल्ल किसी नूँ नी दस्सेगा।( लड़की, तू घबरा मत, यग तो बड़ा मासून लड़का है, यह हमारी बात किसी को नहीं बतएगा।)
मैं तो एकदम खुश 'मुझे क्या साला चूतिया कुत्ते ने काटा है जो मैं किसी को बताऊँगा?'
मैं तो बस आगे बढ़ कर भाभी से लिपट गया। अपना बांया हाथ भाभी की कमर पर रखते हुए, आगे बढ़ा कर माला की कमर पर रख दिया और उसे भी अपनी ओर खींचा।
अब समीकरण ऐसे था कि मेरा मुँह भाभी की तरफ, भाभी का मुँह मेरी तरफ और भाभी की पीठ माला की तरफ थी।
और मैंने माला को जब अपनी तरफ खींचा तो माला भाभी की पीठ से चिपक गई पर अभी भी वो घबराई सी लग रही थी।
मैंने अपना मुँह तो भाभी की चूची पर लगा दिया और चूसने लगा और अपने बांयें हाथ से माला की एक चूची पकड़ कर मलनी शुरू कर दी। कभी पूरी चूची को मैं हाथ से दबा रहा था और कभी अपनी उंगली और अंगूठे से उसके छोटे-छोटे निप्पलों को मसल रहा था। मेरे लण्ड की तो पूछो ही मत बस, एकदम टाईट हो चुका था और झटके से मार रहा था।
भाभी ने अपना हाथ बढ़ाया और मेरे लण्ड को बड़े प्यार से सहलाने लगीं। उधर अब माला भी कुछ सयंत हो गई थी और उसने भी अपना हाथ भाभी के ऊपर से लाकर मेरी छाती पर फेरने लगी।
मुझे जोश तो पूरा आ चुका था, पर ऐसे मज़ा नहीं आ रहा था। साथ ही यह भी लग रहा था कि कहीं दो के चक्कर में मेरा माल ही जल्दी न निकल जाए।
मैंने अपना हाथ माला से हटा कर अपने दोनों हाथों से भाभी की कौली भर ली। और उन्हें अपने से ऊपर उठा कर करवट बदल ली। जिससे कि वो मेरे ऊपर से होकर मेरी बाईं तरफ आ गईं।
अब माला मेरी दांईं तरफ भाभी मेरी बांईं तरफ और मैं बीच में था। एक हाथ मैंने माला की सलवार में डाल दिया। उसका नाड़ा खुला हुआ ही था और दूसरा हाथ भाभी की सलवार में।
अब क्योंकि भाभी तो मेरी देखी भाली थी इसलिए मेरा ध्यान तो माला की तरफ था। पर कहीं भाभी नाराज़ न हो जाएँ, इसलिए मैं ज्यादा हरकत भाभी के साथ ही कर रहा था।
लगभग 2-3 मिनट के बाद भाभी बोलीं- बिट्टू, पहले तुम माला के साथ कर लो। मैं तो बाद में भी कर लूंगी। फिर एक पल रुक कर बोलीं- बिट्टू तुमने पहले कभी कुछ किया है क्या?
मैं समझ गया था कि इस नाटक में मुझे भाभी का सहयोग करना है, तभी मेरा फायदा है।
इसलिए मैं तुरंत बोला- भाभी, मैंने कभी भी ये सब किया नहीं है। मुझे तो आपको ही सिखाना पड़ेगा।
अब भाभी बोलीं- पहले तुम और माला की मार लो फिर मैं दूसरी बार में मरवा लूंगी।
'पर भाभी करना क्या है?'
वो बोलीं- यार, तुम शुरू तो करो। जहाँ कहीं गलती करोगे, मैं सुधार दूंगी। सबसे पहले तो तुम दोनों पप्पी करो, मुँह से मुँह जोड़ कर।
अब दोस्तो, यह तो सभी जानते हैं कि ‘अँधा क्या मांगे दो आँखें’ और यहाँ तो बिना मांगे ही मिल रही थीं। सो मैंने अब अपना मुँह माला की तरफ कर लिया, उसके होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा और अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी, अपना एक हाथ उसकी चूची पर और दूसरा उसकी सलवार में डाल कर अपनी उँगलियाँ उसकी चूत पर फेरनी शुरू कर दीं।
उसकी चूत थोड़ी थोड़ी गीली थी और उसकी चूत पर बाल भी नहीं थे। शायद, आज ही उसने साफ़ करे थे क्योंकि उसकी चूत के इर्द-गिर्द की चमड़ी बिल्कुल नर्म थी और किसी बच्चे के गाल जैसी कोमल लग रही थी।
जैसे ही मैंने हाथ वहाँ पर घिसा तो उसके मुँह से एक सिसकारी सी निकली, “सीईई ईइहह आआअह्ह” और वो कस कर मुझ से लिपट गई।
जैसे ही उसने मुझे ज़ोर से अपनी बाँहों में कसा, मेरा हाथ उसकी चूची पर ज़ोर से कस गया।
मेरी बेचैनी बढ़ती जा क्योंकि 18-19 साल की उम्र में कंट्रोल करना कितना मुश्किल होता है, यह तो सभी जानते हैं।
इधर मैं माला के होंठ और जीभ चूस रहा था और उधर भाभी मेरे पीछे से अपने हाथ मेरी कमीज़ में डाल कर आगे की तरफ ला कर मेरे छोटे-छोटे निप्पलों को मसल रही थीं। जितना ज्यादा ज़ोर उधर से भाभी लगा रही थीं, उतना ही अधिक जोर मैं माला पर लगा रहा था।
अचानक माला ने मुझे पीछे को धक्का दिया। मेरी समझ में नहीं आया कि हुआ। उसने एक लम्बा सा साँस लिया और बोली- सांस तो लेने दो ! और अब उसने मेरी कमीज़ के बटन खोलने शुरू कर दिए। मैंने अपना पजामा उतार दिया और उसकी सलवार उतारने लगा।
अब तक वो मेरी कमीज़ के बटन खोल चुकी थी। मैं फट से उठा और कमीज़ और बनियान उतार दी। कमाल की बात यह थी कि अब ठण्ड नहीं लग रही थी।
उधर माला के भी सब कपड़े उतर चुके थे और भाभी भी अपने कपड़े उतार चुकी थीं।
मेरे जिस्म पर सिर्फ अंडरवियर था, माला की पेंटी भी उतर चुकी थी।
अब मैंने माला की चूचियों पर अपना मुँह रख दिया और बारी-बारी से चूचियों को चूसने लगा। कभी एक और कभी दूसरी। चूची चूसते-चूसते ही पलटी मार कर माला के ऊपर आ गया।
अब माला मेरे नीचे थी। मेरे मुँह में माला की चूची थी और भाभी मेरे सीधे हाथ की तरफ थी। मैंने तुरंत अपना हाथ बढ़ा कर भाभी की चूची पकड़ ली और ज़ोर-ज़ोर से दबाना शुरू कर दिया। क्योंकि मैंने कभी दो औरतों के साथ एक साथ चुदाई नहीं की थी। और वैसे भी मैं ज्यादा ट्रेंड भी नहीं था। इसलिए समझ में भी नहीं आ रहा था कि क्या करना है?
भाभी ने मुझे थोड़ा परे को ढकेला और मेरा अंडरवियर पकड़ कर नीचे की ओर खींच दिया।
फिर बोलीं- बिट्टू, तू हुन्न अपना ‘पप्पू’ माला दी घुत्ती दे अंदर धुन्न दे ! हौली हौली धक्कीं ! ऐदा पह्ल्ली वार ए ! ऐन्ने अज्ज तक नी ऐ काम्म कित्ता !( तू अब अपना पप्पू माला की खाई में डाल दे ! पर धीरे से डालना, क्योंकि इसने पहले कभी किया नहीं है।)
भाभी ने मुझे थोड़ा परे को ढकेला और मेरा अंडरवियर पकड़ कर नीचे की ओर खींच दिया।
फिर बोलीं- बिट्टू, तू हुन्न अपना ‘पप्पू’ माला दी घुत्ती दे अंदर धुन्न दे ! हौली हौली धक्कीं ! ऐदा पह्ल्ली वार ए ! ऐन्ने अज्ज तक नी ऐ काम्म कित्ता ! (तू अब अपना पप्पू माला की खाई में डाल दे ! पर धीरे से डालना, क्योंकि इसने पहले कभी किया नहीं है।)
मैं बोला- ठीक है भाभी।
भाभी ने अपना मुँह माला के मुँह पर लगाया और मेरा लन्ड पकड़ कर माला की चूत पर रख दिया।
मेरा तो उत्तेजना के मारे बुरा हाल था ही। सो मैंने भी एक जोर का धक्का मारा। मेरा आधे से ज्यादा घुस गया। माला बड़े जोर से छटपटाई लेकिन उसका मुँह भाभी ने अपने मुँह से बंद कर रखा था। इसलिए उसके मुँह से कोई आवाज़ नहीं आ पाई।
लेकिन उस के चेहरे से पता चल रहा था कि उसे दर्द हो रहा था। अंदर से उसकी चूत बहुत गर्म लग रही थी। मैंने दूसरा धक्का नहीं मारा और माला की चूची ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। भाभी ने भी अब उसका मुँह छोड़ दिया, और दूसरी तरफ की चूची अपने मुँह में भर ली और चूसने लगीं।
माला बोलीं- भाभी बस और नहीं, मुझे बहुत ज़ोर का दर्द हो रहा है।
तो भाभी उसका सर सहलाते हुए बोलीं- बस मेरी बन्नो इतना ही दर्द था, अब और नहीं होगा। एक बार तो यह होना ही था।
और भाभी ने फिर से उसकी चूची को मुँह में भर लिया। लगभग एक-डेढ़ मिनट तक हम दोनों उसे ऐसे ही चूसते और सहलाते रहे।
फिर भाभी ने मेरे चूतड़ पर हाथ मार कर इशारा किया और मैंने धीरे-धीरे ज़ोर लगाना शुरू किया। बिल्कुल टाईट फंस कर मेरा लन्ड अंदर जा रहा था।
माला ने अपने हाथ से मेरी पीठ पर इतने ज़ोर से पकड़ा कि उसके नाखून मुझे चुभने लगे और उसका चेहरा दर्द के मारे लाल हो गया था।
लेकिन इस बार मैंने बिना रुके सारा लण्ड जड़ तक उसके भीतर डाल ही दिया। मैंने इससे पहले भाभी की चूत भी 3-4 दफा ली थी। उनकी चूत इतनी गर्म नहीं लगती थी।
अब पूरा लण्ड अंदर डाल कर, मैं थोड़ा रुक गया और उसकी गर्दन पर बाईं तरफ जीभ से चाटने लगा। उधर भाभी भी कभी उसकी चूची चूसतीं, कभी उसके गाल पर पप्पी करतीं और कभी उसके होंठों को चूसने लगतीं।
अब मेरा एक हाथ माला की कमर के नीचे चला गया था और दूसरा भाभी की चूत पर चला गया। भाभी की चूत भी गीली हो रही थी।
अब माला का चेहरे से दर्द के भाव कम हो गए थे और उसने नीचे से थोड़ा-थोड़ा हिलना शुरू कर दिया था। मैं समझ गया कि अब उसे भी मजा आने लगा है।
फिर धीरे-धीरे मैंने भी हिलना शुरू किया, पर अभी मैं अपना पूरा लण्ड बाहर नहीं निकाल रहा था। बस थोड़ा-थोड़ा ही आगे पीछे हिल रहा था। धीरे-धीरे करते-करते कब मेरी स्पीड बढ़ गई, पता भी नहीं लगा।
अब माला पूरे ज़ोर से सहयोग कर रही थी। और साथ-साथ बड़बड़ा भी रही थी, "आआह… ह्हह्हा… बिट्टूऊ…ऊऊ भाअ…भीइइ… ये मुझे क्या हो रहा है...नशाआ सा हो रह्ह्हाआ है।"
और वो भी नीचे से जोर से उछलने लगी और उसका जिस्म अकड़ने लगा। वो कुछ ऐसे शब्द बड़बड़ा रही थी, जो समझ में नहीं आ रहे थे।
अचानक माला का शरीर पूरे ज़ोर से अकड़ा। उसने अपनी कमर ऊपर की ओर उठा दी, और मुझे इतने ज़ोर से भींचा कि कुछ पल के लिए मेरा हिलना रुक गया।
और उसके मुँह से आवाज़ें निकल रही थीं 'आआईईई मांआअ मांआआअ हाईईई रेआआऐ आह' करते ही वो रुक गई।
उसने मुझे इतने ज़ोर से भींचा कि मुझे भी लगा कि कुछ देर के लिए सांस लेने में भी ज़ोर लगाना मुश्किल हो रही है। मेरा भी लण्ड जो कि झड़ने ही वाला था, इतनी देर में वो भी रुक गया।
और माला ! वो तो बेसुध सी हो गई थी और शरीर एकदम शिथिल हो गया। उसकी मुझ पर से पकड़ भी ढीली हो गई।
भाभी ने कहा- आजा मेरे शेर आ, अब भाभी की सर्दी भी दूर कर दे।
और मैं ऐसे ही माला की चूत से निकले रज से सना हुआ लण्ड ले कर ही भाभी पर चढ़ गया। बिना किसी फार्मेलिटी के ही भाभी की चूत में अपना लण्ड डाल दिया और लगा ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने।
भाभी भी मेरी और माला की चुदाई देख कर और साथ में खुद भी सहयोग करने के कारण पूरी तरह से गर्म हो चुकी थीं।
मैं अपना सारा का सारा जोश भाभी पर ही दिखा रहा था। कभी भाभी की बाईं चूची चूस रहा था तो, कभी दांई। कभी मेरा मुँह उनके मुँह पर चला जाता।
वो भी पूरा सहयोग कर रही थीं। कभी मेरी जीभ अपने मुँह में लेकर चूसतीं और कभी अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल देतीं। मेरी पूरी पीठ पर हाथ फेर रही थीं। कभी मुझे जोर से कस लेतीं। अब भाभी ने अपनी दोनों टाँगें हवा में उठा दी थीं।
चुदाई की इतनी गर्मी हम दोनों को चढ़ी हुई थी कि ठण्ड का तो एहसास भी नहीं हो रहा था।
अचानक भाभी ने कहा- एक मिनट रुको।
मेरे रुकते ही भाभी ने पलटी खाई और मुझे नीचे कर के खुद मेरे ऊपर आ गईं, और दोनों टांगें मेरे दोनों तरफ कर दीं। ऊपर आ कर ज़ोर-ज़ोर से मेरे लण्ड पर कूदने लगीं। उनके भारी भरकम मम्मे झूलते हुए इतने मस्त लग रहे थे कि क्या बताऊँ !
कभी वो मेरे ऊपर बैठ कर हिलती थीं। कभी मेरे ऊपर झुक कर अपने मम्में मेरे मुँह के आगे कर देतीं और मैं उन्हें मुँह में भर कर चूसने लगता।
मेरे मुँह से भी और भाभी के मुँह से भी सेक्सी आवाज़ें निकाल रही थीं 'आआ…आआह ओह्ह हयआऐ।'
भाभी बोल रही थीं- ज़ोर से डाल बिट्टू ! इसके भाई से तो कुछ होता ही नहीं ! आआहहह्ह हाय रे।
वो और भी पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ा रही थीं। इसी तरह से कुछ देर करने से मेरी थकावट कुछ कम हो गई थी। लेकिन अब इस तरह से मुझे पूरा मजा नहीं आ रहा था।
मैंने कहा- भाभी तुम नीचे आओ।
मेरे इतना कहते ही वो तुरंत रुकीं और मेरे ऊपर से उठ कर कमर के बल लेट गईं।
मैंने फिर से ऊपर आकर भाभी की टाँगें ऊपर को कर दीं। उन की जांघों के नीचे से हाथ निकाल कर चूचियों को पकड़ लिया, और पूरा लण्ड उनकी चूत में डाल दिया। मैं लंड पूरा बाहर खींच कर अंदर धकेल रहा था। 5-7 धक्के मारते ही मुझे लगने लगा कि मेरा माल निकालने वाला है।
तो मैं तुरंत भाभी से बोला- भाभी, मेरा होने वाला है।
भाभी ने मेरे चूतड़ों को कस कर पकड़ लिया और बोलीं- जोर से करो मेरी जान, मेरा भी होने वाला है। अपना सारा माल मेरे अंदर ही डाल दे। बस मेरी तस्सल्ली करवा दे बिट्टूऊऊ…
भाभी का इतना बोलना था कि मैं तो पूरा मस्त हो कर, टोपा अंदर छोड़ कर पूरा लण्ड बाहर तक खींचता और फिर पूरे जोर से धक्का मार कर वापस धकेल रहा था।
और इस समय मुझे पूरी दुनिया में भाभी की चूत के सिवाए और कुछ भी नहीं सूझ रहा था। मैं तो बस आगे-पीछे आगे-पीछे हिल रहा था और धक्के मार रहा था।
8-10 धक्के और मारे होंगे कि भाभी का और मेरा शरीर अकड़ने लगे। भाभी ने मुझे पूरे जोर से भींच लिया और मैंने भाभी को।
इधर भाभी का पानी छूटा और साथ ही फिर अचानक जैसे एक जलजला सा आ जाए, इसी तरह मेरे लण्ड के टोपे पर ऐसी गुदगुदी सी होने लगी कि जिसे मैं सिर्फ महसूस कर सकता हूँ।
उसके लिए शायद सही शब्द कोई बना ही नहीं। मेरे शरीर की सारी गर्मी जैसे पिंघल कर मेरे लण्ड के रास्ते से भाभी की चूत में उतरने लगी। कई सारी पिचकारियाँ सी निकल कर भाभी के अंदर चली गईं।
अब मैं भाभी के सीने पर सर रख कर लम्बी लम्बी साँसें ले रहा था। जैसे पता नहीं कितने मील भाग कर आया होऊँ। यही हाल भाभी का भी था।
अब मेरा ध्यान माला की तरफ गया। वो भी होश में आ चुकी थी और अधखुली आँखों से हमारी तरफ देख रही थी।
मेरा शरीर ऐसे हो गया, जैसे जान ही नहीं रही हो। भाभी के सीने पर लेटे-लेटे मेरी आँख लग गई।
लगभग 15-20 मिनट बाद हमें होश आया तो भाभी ने तकिये के नीचे से एक कपड़ा निकाल कर दिया, और कहा- लो इससे साफ़ कर लो।
हम सबने अपने-अपने को साफ़ किया, अपने-अपने कपड़े पहन लिए। फिर भाभी उठी और रूम हीटर के सामने रखा पतीला उठाया और हमारे चाय वाले गिलासों में दूध डाल कर हमें पकड़ा दिया।
और बोलीं- लो सब लोग दूध पियो और ताकत हासिल करो।
उसके बाद हम लोग तरह से सो गए। यानि एक तरफ भाभी, एक तरफ माला और बीच में मैं।
उस रात बहुत बढ़िया नींद आई। सुबह दिन निकलने से पहले मैंने और भाभी ने एक बार और चुदाई की। माला के साथ दर्द के कारण उस समय दोबारा नहीं कर पाया। अगली शाम को भाभी को तो महीना आ गया और वो तो अगले पांच दिन के लिए कुछ कर नहीं पाईं।
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भाभी और उस की ननद -2
मैंने ट्यूब बुझा कर नाइट बल्ब जला दिया, और आकर मैं भी अपनी रजाई में घुस गया और आँखें बंद कर लीं।
पर नींद का तो दूर-दूर तक पता नहीं था। मन ही मन मैं कुढ़ रहा था कि यह माला कहाँ दाल भात में मूसलचंद आन पड़ी।
इस बात को वो ही समझ सकता है जो ऐसे हालात से गुज़रा हो।
लगभग बीस-पच्चीस मिनट बाद मुझे भाभी वाली रजाई में कुछ हलचल सी महसूस हुई।
मैंने धीरे से करवट उनकी तरफ ले ली और मैंने देखा कि वास्तव में ही उनकी रजाई में तो तूफ़ान सा मचा पड़ा था। अब तो सिसकारियों की आवाज़ भी आ रही थी।
अचानक मुझे धीरे से फुसफुसाने की आवाज़ आई- भाभी, कहीं बिट्टू न जग जाये।
भाभी बोलीं- कोई बात नहीं, इससे तो फायदा ही होगा।
मैं भी भौंचक्का सा था क्योंकि तब मुझे किताबों में लिखा लेस्बियन सेक्स मात्र कल्पना ही लगता था। लेकिन आज वास्तव में ये देख कर मेरे 'छोटू; ने भी अंगड़ाइयाँ लेनी शुरू कर दी थीं। अब भाभी की बात भी समझ में आ गई थी कि जब हमारी रजाई खूब हिले तो तब रजाई को अपनी तरफ से उठा देना।
मैंने अभी और कुछ देर इंतज़ार करने का फैसला लिया और अपनी सांस भी इतने धीरे ले रहा थी कि मेरे सांस लेने की आवाज़ न हो, उन दोनों की पूरी बात मेरी समझ में आए।
तभी भाभी की आवाज़ आई- माला, मैं क्या करूँ यार ! तेरा भाई एक तो महीने में एक-आध बार ही करता है और झड़ भी जल्दी जाता है। बता मेरी माला बहन, मैं क्या करूँ?
तो माला बोली- भाभी, आप कोई दोस्त बना लो ना !
भाभी बोलीं- सोचती मैं भी यही हूँ, पर बदनामी से डरती हूँ। कोई अपना सा हो जो बाहर बदनाम न करे।
फिर उनकी आवाज़ें बंद हो गईं और फिर से चूमने की और सिसकारियों की आवाज़ें आने लगीं- आआआह भाभीइइइ आआईईईई ! हालाँकि कि ये आवाज़ें बहुत हल्की थीं, पर मेरा जोश बहुत बढ़ गया था।
अब उनकी रजाई काफी ऊँची हो गई थी और काफी हिलजुल हो रही थी रजाई में। मैं समझ गया कि अब मेरा रोल शुरू होने वाला है, क्योंकि मुझे साफ़ पता चल रहा था कि अब दोनों की कमीज़ें उतर चुकी हैं। सीत्कारों और सिसकियों की आवाज़ें तेज़ हो गई थीं।
अब तक तो मैं जैसे-तैसे सब्र करे पड़ा था। पर अब धीरे से मैंने उनकी रजाई का कोना उठाया। क्योंकि कमरा तो रूम हीटर की वजह से पूरी तरह गर्म था, और इस वक्त वो दोनों भी पूरे जोश में थीं। इसलिए उन्हें एकाएक तो पता भी नहीं चला कि मैं उनका खेल देख रहा हूँ।
मैंने देखा कि भाभी ने अपना सर माला की चूची पर लगा रखा था और उसे मुँह में पूरी भर कर चूस रही थीं। माला का एक हाथ रजाई में भाभी की कमर पर था और दूसरा भाभी की गर्दन पर लिपटा हुआ था। माला ने भाभी का सर पूरे ज़ोर से अपने सीने पर भींच रखा था।
अब मुझ से रहा नहीं गया और मैं अचानक बोल ही पड़ा, "भाब्भी, मैं की अछूत हाँ?"( भाभी, मैं क्या अछूत हूँ?)
और मेरे ऐसा बोलते ही एकाएक दोनों की हरकतों को जैसे ब्रेक लग गया और उनकी हालत ऐसे हो गई जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो।
माला तो एकदम कांपने लग गई और चेहरा पीला पड़ गया, पर भाभी एकदम संभल गई। क्योंकि इस सारी कहानी की सूत्रधार तो वो ही थीं।
भाभी एकदम मेरी तरफ पलटीं, मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं- देवर जी तुसीं वी आओ ना, तुहान्नूँ किन्ने मना कित्ता ए !(तुम भी आ जाओ, तुम्हें किसने मना किया है।)
और अपनी तरफ खींचती हुई बोलीं- एह तां घर दी गल्ल, घर विच ही हैगा न !(यह तो घर की बात है, घर में ही तो है)
अब मैं जो कि पिछले दो घंटे से ‘किलस’ रहा था, अब क्या बोलता ! मैं तो एक के ना मिल पाने से कुढ़ा हुआ था अब तो दो-दो थीं।
और भाभी माला से बोलीं- कुड़िये, तूं घबरा ना, ऐह तां बड़ा ही बीब्बा मुंडा है, ऐ साड्डी गल्ल किसी नूँ नी दस्सेगा।( लड़की, तू घबरा मत, यग तो बड़ा मासून लड़का है, यह हमारी बात किसी को नहीं बतएगा।)
मैं तो एकदम खुश 'मुझे क्या साला चूतिया कुत्ते ने काटा है जो मैं किसी को बताऊँगा?'
मैं तो बस आगे बढ़ कर भाभी से लिपट गया। अपना बांया हाथ भाभी की कमर पर रखते हुए, आगे बढ़ा कर माला की कमर पर रख दिया और उसे भी अपनी ओर खींचा।
अब समीकरण ऐसे था कि मेरा मुँह भाभी की तरफ, भाभी का मुँह मेरी तरफ और भाभी की पीठ माला की तरफ थी।
और मैंने माला को जब अपनी तरफ खींचा तो माला भाभी की पीठ से चिपक गई पर अभी भी वो घबराई सी लग रही थी।
मैंने अपना मुँह तो भाभी की चूची पर लगा दिया और चूसने लगा और अपने बांयें हाथ से माला की एक चूची पकड़ कर मलनी शुरू कर दी। कभी पूरी चूची को मैं हाथ से दबा रहा था और कभी अपनी उंगली और अंगूठे से उसके छोटे-छोटे निप्पलों को मसल रहा था। मेरे लण्ड की तो पूछो ही मत बस, एकदम टाईट हो चुका था और झटके से मार रहा था।
भाभी ने अपना हाथ बढ़ाया और मेरे लण्ड को बड़े प्यार से सहलाने लगीं। उधर अब माला भी कुछ सयंत हो गई थी और उसने भी अपना हाथ भाभी के ऊपर से लाकर मेरी छाती पर फेरने लगी।
मुझे जोश तो पूरा आ चुका था, पर ऐसे मज़ा नहीं आ रहा था। साथ ही यह भी लग रहा था कि कहीं दो के चक्कर में मेरा माल ही जल्दी न निकल जाए।
मैंने अपना हाथ माला से हटा कर अपने दोनों हाथों से भाभी की कौली भर ली। और उन्हें अपने से ऊपर उठा कर करवट बदल ली। जिससे कि वो मेरे ऊपर से होकर मेरी बाईं तरफ आ गईं।
अब माला मेरी दांईं तरफ भाभी मेरी बांईं तरफ और मैं बीच में था। एक हाथ मैंने माला की सलवार में डाल दिया। उसका नाड़ा खुला हुआ ही था और दूसरा हाथ भाभी की सलवार में।
अब क्योंकि भाभी तो मेरी देखी भाली थी इसलिए मेरा ध्यान तो माला की तरफ था। पर कहीं भाभी नाराज़ न हो जाएँ, इसलिए मैं ज्यादा हरकत भाभी के साथ ही कर रहा था।
लगभग 2-3 मिनट के बाद भाभी बोलीं- बिट्टू, पहले तुम माला के साथ कर लो। मैं तो बाद में भी कर लूंगी। फिर एक पल रुक कर बोलीं- बिट्टू तुमने पहले कभी कुछ किया है क्या?
मैं समझ गया था कि इस नाटक में मुझे भाभी का सहयोग करना है, तभी मेरा फायदा है।
इसलिए मैं तुरंत बोला- भाभी, मैंने कभी भी ये सब किया नहीं है। मुझे तो आपको ही सिखाना पड़ेगा।
अब भाभी बोलीं- पहले तुम और माला की मार लो फिर मैं दूसरी बार में मरवा लूंगी।
'पर भाभी करना क्या है?'
वो बोलीं- यार, तुम शुरू तो करो। जहाँ कहीं गलती करोगे, मैं सुधार दूंगी। सबसे पहले तो तुम दोनों पप्पी करो, मुँह से मुँह जोड़ कर।
अब दोस्तो, यह तो सभी जानते हैं कि ‘अँधा क्या मांगे दो आँखें’ और यहाँ तो बिना मांगे ही मिल रही थीं। सो मैंने अब अपना मुँह माला की तरफ कर लिया, उसके होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा और अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी, अपना एक हाथ उसकी चूची पर और दूसरा उसकी सलवार में डाल कर अपनी उँगलियाँ उसकी चूत पर फेरनी शुरू कर दीं।
उसकी चूत थोड़ी थोड़ी गीली थी और उसकी चूत पर बाल भी नहीं थे। शायद, आज ही उसने साफ़ करे थे क्योंकि उसकी चूत के इर्द-गिर्द की चमड़ी बिल्कुल नर्म थी और किसी बच्चे के गाल जैसी कोमल लग रही थी।
जैसे ही मैंने हाथ वहाँ पर घिसा तो उसके मुँह से एक सिसकारी सी निकली, “सीईई ईइहह आआअह्ह” और वो कस कर मुझ से लिपट गई।
जैसे ही उसने मुझे ज़ोर से अपनी बाँहों में कसा, मेरा हाथ उसकी चूची पर ज़ोर से कस गया।
मेरी बेचैनी बढ़ती जा क्योंकि 18-19 साल की उम्र में कंट्रोल करना कितना मुश्किल होता है, यह तो सभी जानते हैं।
इधर मैं माला के होंठ और जीभ चूस रहा था और उधर भाभी मेरे पीछे से अपने हाथ मेरी कमीज़ में डाल कर आगे की तरफ ला कर मेरे छोटे-छोटे निप्पलों को मसल रही थीं। जितना ज्यादा ज़ोर उधर से भाभी लगा रही थीं, उतना ही अधिक जोर मैं माला पर लगा रहा था।
अचानक माला ने मुझे पीछे को धक्का दिया। मेरी समझ में नहीं आया कि हुआ। उसने एक लम्बा सा साँस लिया और बोली- सांस तो लेने दो ! और अब उसने मेरी कमीज़ के बटन खोलने शुरू कर दिए। मैंने अपना पजामा उतार दिया और उसकी सलवार उतारने लगा।
अब तक वो मेरी कमीज़ के बटन खोल चुकी थी। मैं फट से उठा और कमीज़ और बनियान उतार दी। कमाल की बात यह थी कि अब ठण्ड नहीं लग रही थी।
उधर माला के भी सब कपड़े उतर चुके थे और भाभी भी अपने कपड़े उतार चुकी थीं।
मेरे जिस्म पर सिर्फ अंडरवियर था, माला की पेंटी भी उतर चुकी थी।
अब मैंने माला की चूचियों पर अपना मुँह रख दिया और बारी-बारी से चूचियों को चूसने लगा। कभी एक और कभी दूसरी। चूची चूसते-चूसते ही पलटी मार कर माला के ऊपर आ गया।
अब माला मेरे नीचे थी। मेरे मुँह में माला की चूची थी और भाभी मेरे सीधे हाथ की तरफ थी। मैंने तुरंत अपना हाथ बढ़ा कर भाभी की चूची पकड़ ली और ज़ोर-ज़ोर से दबाना शुरू कर दिया। क्योंकि मैंने कभी दो औरतों के साथ एक साथ चुदाई नहीं की थी। और वैसे भी मैं ज्यादा ट्रेंड भी नहीं था। इसलिए समझ में भी नहीं आ रहा था कि क्या करना है?
भाभी ने मुझे थोड़ा परे को ढकेला और मेरा अंडरवियर पकड़ कर नीचे की ओर खींच दिया।
फिर बोलीं- बिट्टू, तू हुन्न अपना ‘पप्पू’ माला दी घुत्ती दे अंदर धुन्न दे ! हौली हौली धक्कीं ! ऐदा पह्ल्ली वार ए ! ऐन्ने अज्ज तक नी ऐ काम्म कित्ता !( तू अब अपना पप्पू माला की खाई में डाल दे ! पर धीरे से डालना, क्योंकि इसने पहले कभी किया नहीं है।)
भाभी ने मुझे थोड़ा परे को ढकेला और मेरा अंडरवियर पकड़ कर नीचे की ओर खींच दिया।
फिर बोलीं- बिट्टू, तू हुन्न अपना ‘पप्पू’ माला दी घुत्ती दे अंदर धुन्न दे ! हौली हौली धक्कीं ! ऐदा पह्ल्ली वार ए ! ऐन्ने अज्ज तक नी ऐ काम्म कित्ता ! (तू अब अपना पप्पू माला की खाई में डाल दे ! पर धीरे से डालना, क्योंकि इसने पहले कभी किया नहीं है।)
मैं बोला- ठीक है भाभी।
भाभी ने अपना मुँह माला के मुँह पर लगाया और मेरा लन्ड पकड़ कर माला की चूत पर रख दिया।
मेरा तो उत्तेजना के मारे बुरा हाल था ही। सो मैंने भी एक जोर का धक्का मारा। मेरा आधे से ज्यादा घुस गया। माला बड़े जोर से छटपटाई लेकिन उसका मुँह भाभी ने अपने मुँह से बंद कर रखा था। इसलिए उसके मुँह से कोई आवाज़ नहीं आ पाई।
लेकिन उस के चेहरे से पता चल रहा था कि उसे दर्द हो रहा था। अंदर से उसकी चूत बहुत गर्म लग रही थी। मैंने दूसरा धक्का नहीं मारा और माला की चूची ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। भाभी ने भी अब उसका मुँह छोड़ दिया, और दूसरी तरफ की चूची अपने मुँह में भर ली और चूसने लगीं।
माला बोलीं- भाभी बस और नहीं, मुझे बहुत ज़ोर का दर्द हो रहा है।
तो भाभी उसका सर सहलाते हुए बोलीं- बस मेरी बन्नो इतना ही दर्द था, अब और नहीं होगा। एक बार तो यह होना ही था।
और भाभी ने फिर से उसकी चूची को मुँह में भर लिया। लगभग एक-डेढ़ मिनट तक हम दोनों उसे ऐसे ही चूसते और सहलाते रहे।
फिर भाभी ने मेरे चूतड़ पर हाथ मार कर इशारा किया और मैंने धीरे-धीरे ज़ोर लगाना शुरू किया। बिल्कुल टाईट फंस कर मेरा लन्ड अंदर जा रहा था।
माला ने अपने हाथ से मेरी पीठ पर इतने ज़ोर से पकड़ा कि उसके नाखून मुझे चुभने लगे और उसका चेहरा दर्द के मारे लाल हो गया था।
लेकिन इस बार मैंने बिना रुके सारा लण्ड जड़ तक उसके भीतर डाल ही दिया। मैंने इससे पहले भाभी की चूत भी 3-4 दफा ली थी। उनकी चूत इतनी गर्म नहीं लगती थी।
अब पूरा लण्ड अंदर डाल कर, मैं थोड़ा रुक गया और उसकी गर्दन पर बाईं तरफ जीभ से चाटने लगा। उधर भाभी भी कभी उसकी चूची चूसतीं, कभी उसके गाल पर पप्पी करतीं और कभी उसके होंठों को चूसने लगतीं।
अब मेरा एक हाथ माला की कमर के नीचे चला गया था और दूसरा भाभी की चूत पर चला गया। भाभी की चूत भी गीली हो रही थी।
अब माला का चेहरे से दर्द के भाव कम हो गए थे और उसने नीचे से थोड़ा-थोड़ा हिलना शुरू कर दिया था। मैं समझ गया कि अब उसे भी मजा आने लगा है।
फिर धीरे-धीरे मैंने भी हिलना शुरू किया, पर अभी मैं अपना पूरा लण्ड बाहर नहीं निकाल रहा था। बस थोड़ा-थोड़ा ही आगे पीछे हिल रहा था। धीरे-धीरे करते-करते कब मेरी स्पीड बढ़ गई, पता भी नहीं लगा।
अब माला पूरे ज़ोर से सहयोग कर रही थी। और साथ-साथ बड़बड़ा भी रही थी, "आआह… ह्हह्हा… बिट्टूऊ…ऊऊ भाअ…भीइइ… ये मुझे क्या हो रहा है...नशाआ सा हो रह्ह्हाआ है।"
और वो भी नीचे से जोर से उछलने लगी और उसका जिस्म अकड़ने लगा। वो कुछ ऐसे शब्द बड़बड़ा रही थी, जो समझ में नहीं आ रहे थे।
अचानक माला का शरीर पूरे ज़ोर से अकड़ा। उसने अपनी कमर ऊपर की ओर उठा दी, और मुझे इतने ज़ोर से भींचा कि कुछ पल के लिए मेरा हिलना रुक गया।
और उसके मुँह से आवाज़ें निकल रही थीं 'आआईईई मांआअ मांआआअ हाईईई रेआआऐ आह' करते ही वो रुक गई।
उसने मुझे इतने ज़ोर से भींचा कि मुझे भी लगा कि कुछ देर के लिए सांस लेने में भी ज़ोर लगाना मुश्किल हो रही है। मेरा भी लण्ड जो कि झड़ने ही वाला था, इतनी देर में वो भी रुक गया।
और माला ! वो तो बेसुध सी हो गई थी और शरीर एकदम शिथिल हो गया। उसकी मुझ पर से पकड़ भी ढीली हो गई।
भाभी ने कहा- आजा मेरे शेर आ, अब भाभी की सर्दी भी दूर कर दे।
और मैं ऐसे ही माला की चूत से निकले रज से सना हुआ लण्ड ले कर ही भाभी पर चढ़ गया। बिना किसी फार्मेलिटी के ही भाभी की चूत में अपना लण्ड डाल दिया और लगा ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने।
भाभी भी मेरी और माला की चुदाई देख कर और साथ में खुद भी सहयोग करने के कारण पूरी तरह से गर्म हो चुकी थीं।
मैं अपना सारा का सारा जोश भाभी पर ही दिखा रहा था। कभी भाभी की बाईं चूची चूस रहा था तो, कभी दांई। कभी मेरा मुँह उनके मुँह पर चला जाता।
वो भी पूरा सहयोग कर रही थीं। कभी मेरी जीभ अपने मुँह में लेकर चूसतीं और कभी अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल देतीं। मेरी पूरी पीठ पर हाथ फेर रही थीं। कभी मुझे जोर से कस लेतीं। अब भाभी ने अपनी दोनों टाँगें हवा में उठा दी थीं।
चुदाई की इतनी गर्मी हम दोनों को चढ़ी हुई थी कि ठण्ड का तो एहसास भी नहीं हो रहा था।
अचानक भाभी ने कहा- एक मिनट रुको।
मेरे रुकते ही भाभी ने पलटी खाई और मुझे नीचे कर के खुद मेरे ऊपर आ गईं, और दोनों टांगें मेरे दोनों तरफ कर दीं। ऊपर आ कर ज़ोर-ज़ोर से मेरे लण्ड पर कूदने लगीं। उनके भारी भरकम मम्मे झूलते हुए इतने मस्त लग रहे थे कि क्या बताऊँ !
कभी वो मेरे ऊपर बैठ कर हिलती थीं। कभी मेरे ऊपर झुक कर अपने मम्में मेरे मुँह के आगे कर देतीं और मैं उन्हें मुँह में भर कर चूसने लगता।
मेरे मुँह से भी और भाभी के मुँह से भी सेक्सी आवाज़ें निकाल रही थीं 'आआ…आआह ओह्ह हयआऐ।'
भाभी बोल रही थीं- ज़ोर से डाल बिट्टू ! इसके भाई से तो कुछ होता ही नहीं ! आआहहह्ह हाय रे।
वो और भी पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ा रही थीं। इसी तरह से कुछ देर करने से मेरी थकावट कुछ कम हो गई थी। लेकिन अब इस तरह से मुझे पूरा मजा नहीं आ रहा था।
मैंने कहा- भाभी तुम नीचे आओ।
मेरे इतना कहते ही वो तुरंत रुकीं और मेरे ऊपर से उठ कर कमर के बल लेट गईं।
मैंने फिर से ऊपर आकर भाभी की टाँगें ऊपर को कर दीं। उन की जांघों के नीचे से हाथ निकाल कर चूचियों को पकड़ लिया, और पूरा लण्ड उनकी चूत में डाल दिया। मैं लंड पूरा बाहर खींच कर अंदर धकेल रहा था। 5-7 धक्के मारते ही मुझे लगने लगा कि मेरा माल निकालने वाला है।
तो मैं तुरंत भाभी से बोला- भाभी, मेरा होने वाला है।
भाभी ने मेरे चूतड़ों को कस कर पकड़ लिया और बोलीं- जोर से करो मेरी जान, मेरा भी होने वाला है। अपना सारा माल मेरे अंदर ही डाल दे। बस मेरी तस्सल्ली करवा दे बिट्टूऊऊ…
भाभी का इतना बोलना था कि मैं तो पूरा मस्त हो कर, टोपा अंदर छोड़ कर पूरा लण्ड बाहर तक खींचता और फिर पूरे जोर से धक्का मार कर वापस धकेल रहा था।
और इस समय मुझे पूरी दुनिया में भाभी की चूत के सिवाए और कुछ भी नहीं सूझ रहा था। मैं तो बस आगे-पीछे आगे-पीछे हिल रहा था और धक्के मार रहा था।
8-10 धक्के और मारे होंगे कि भाभी का और मेरा शरीर अकड़ने लगे। भाभी ने मुझे पूरे जोर से भींच लिया और मैंने भाभी को।
इधर भाभी का पानी छूटा और साथ ही फिर अचानक जैसे एक जलजला सा आ जाए, इसी तरह मेरे लण्ड के टोपे पर ऐसी गुदगुदी सी होने लगी कि जिसे मैं सिर्फ महसूस कर सकता हूँ।
उसके लिए शायद सही शब्द कोई बना ही नहीं। मेरे शरीर की सारी गर्मी जैसे पिंघल कर मेरे लण्ड के रास्ते से भाभी की चूत में उतरने लगी। कई सारी पिचकारियाँ सी निकल कर भाभी के अंदर चली गईं।
अब मैं भाभी के सीने पर सर रख कर लम्बी लम्बी साँसें ले रहा था। जैसे पता नहीं कितने मील भाग कर आया होऊँ। यही हाल भाभी का भी था।
अब मेरा ध्यान माला की तरफ गया। वो भी होश में आ चुकी थी और अधखुली आँखों से हमारी तरफ देख रही थी।
मेरा शरीर ऐसे हो गया, जैसे जान ही नहीं रही हो। भाभी के सीने पर लेटे-लेटे मेरी आँख लग गई।
लगभग 15-20 मिनट बाद हमें होश आया तो भाभी ने तकिये के नीचे से एक कपड़ा निकाल कर दिया, और कहा- लो इससे साफ़ कर लो।
हम सबने अपने-अपने को साफ़ किया, अपने-अपने कपड़े पहन लिए। फिर भाभी उठी और रूम हीटर के सामने रखा पतीला उठाया और हमारे चाय वाले गिलासों में दूध डाल कर हमें पकड़ा दिया।
और बोलीं- लो सब लोग दूध पियो और ताकत हासिल करो।
उसके बाद हम लोग तरह से सो गए। यानि एक तरफ भाभी, एक तरफ माला और बीच में मैं।
उस रात बहुत बढ़िया नींद आई। सुबह दिन निकलने से पहले मैंने और भाभी ने एक बार और चुदाई की। माला के साथ दर्द के कारण उस समय दोबारा नहीं कर पाया। अगली शाम को भाभी को तो महीना आ गया और वो तो अगले पांच दिन के लिए कुछ कर नहीं पाईं।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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