Monday, June 2, 2014

FUN-MAZA-MASTI मेरी कहानी मेरी जुबानी --1

FUN-MAZA-MASTI

 मेरी कहानी मेरी जुबानी --1

 यह बात उस समय की है जब मैं बारहवीं में पढ़ती थी, हमारे परिवार में मम्मी-पापा, भैया-भाभी और मैं, हम पाँच लोग हैं। पापा बैंक में खजांची हैं और भईया आर्मी में सर्विस करते हैं, उनकी ड्यूटी जम्मू कश्मीर में है। हमारा घर दो मंजिल का है, नीचे एक कमरा, ड्राइंग रूम, रसोई और लैटरीन बाथरूम है, ऊपर दो कमरे और उनके बीच में सांझा लैटरीन-बाथरूम है। नीचे के कमरे में मम्मी-पापा रहते हैं और ऊपर का एक कमरा भैया-भाभी का है और दूसरा मेरा है। मगर मैं भाभी के कमरे में ही रहती हूँ क्योंकि भैया आर्मी में हैं इसलिए उनको साल में तीन महीने की ही छुटी मिलती है। ज़ब भैया घर पर रहते हैं तब ही मैं अपने कमरे में रहती हूँ नहीं तो भाभी के कमरे में ही रहती हूँ।
मैंने भाभी के कमरे में ही पढ़ने के लिये एक मेज-कुर्सी लगा रखी है और पढ़ाई के बाद मैं भाभी के साथ ही बेड पर सो जाती हूँ।
भाभी दस-साढ़े दस बजे तक घर का काम खत्म करके कमरे में आती तब तक मैं पढ़ाई करती थी, उसके बाद हम दोनों कुछ देर टीवी देखते और सो जाते !
मैं और भाभी सहेली की तरह रहते थे।
सब कुछ सामान्य ही चल रहा था, मगर एक रात सब कुछ बदल गया, उस रात मैं और भाभी सो रहे थे और करीब दो बजे भैया घर आ गये। वैसे तो जब भी भैया घर आते तो दिन में ही आते थे मगर उस रात पता नहीं कैसे आ गये, भैया भाभी की आवाज सुनकर मैं जग तो गई थी मगर मुझे बहुत नींद आ रही थी इसलिए मैं यह सोचकर कि ‘भैया से सुबह मिल लेंगे’ फिर से सो गई।
मगर कुछ देर बाद अजीब तरह की आवाज सुनकर मेरी नींद फिर से खुल गई। मैंने चेहरे से थोड़ा सा कम्बल उठाकर भाभी की तरफ देखा तो मेरी सांस अटक कर रह गई और मैंने दोबारा अपने चेहरे पर कम्बल डाल लिया क्योंकि सामने के नजारे के बारे में मैंने थोड़ा बहुत सिर्फ अपनी सहेलियों से ही सुना था मगर आज पहली बार देख रही थी, वो भी अपने भैया भाभी को !
भाभी की नाईटी उनके कंधों तक उल्टी हुई थी और नीचे भी उन्होंने कुछ नहीं पहना हुआ था, भैया भी बिल्कुल नंगे होकर भाभी के ऊपर लेटे हुए थे और अपनी कमर को ऊपर नीचे हिला रहे थे। भाभी के पैर भैया की कमर से लिपटे हुए थे और उनके मुँह से धीरे धीरे ओह्आह्ह ओह्ह्ह्ह की मादक आवाज आ रही थी जिसे मैं आसानी से सुन सकती थी। सर्दी का मौसम था, इसलिए मैंने कम्बल औढ़ रखा था मगर भैया भाभी को ऐसी हालात में देख कर मेरा पूरा बदन पसीने से भीग गया और मेरे दिल की धड़कन रेल के इंजन की तरह चलने लगी। मैंने फिर से कम्बल को चेहरे से बस इतना सा हटाया कि मैं भैया भाभी को देख सकती थी और वो मेरे चेहरे को नहीं देख सकते थे।
वैसे भी उनका ध्यान मुझ पर बिल्कुल नहीं था, वो समझ रहे थे की मैं गहरी नीन्द सो रही हूँ और उसी तरह लगे रहे।
कुछ देर बाद भैया ने गति पकड़ ली वो कमर को जोर जोर से हिलने लगे और साथ ही भाभी के उरोज भी दबा रहे थे और भाभी भी कमर उठा-उठा कर भैया का साथ दे रही थी।
यह सब देख कर मेरी हालत खराब हो रही थी।
कुछ देर बाद भाभी की ऊह्ह, आह्ह्ह, आह्ह की आवाज सिसकारियों में बदल गई और भाभी ने अपने हाथों और पैरों से भैया की कमर को कस कर पकड़ लिया और वो शान्त हो गई कुछ देर बाद भैया भी निढाल हो गए और भाभी की बगल में लेट गए। कुछ देर दोनों ऐसे ही पड़े रहे, फिर भाभी उठी और अपनी ब्रा और पैंटी पहनने लगी।
मैंने भाभी को ब्रा और पैंटी में कई बार देखा था मगर भाभी के बड़े बड़े उरोज और योनि को आज पहली बार देख रही थी। इसके बाद भैया भी उठकर अपने कपड़े पहनने लगे तभी मेरी नजर भैया के लिंग पर गई जो कि अब शान्त हो गया था। मगर अब भी उसका आकार काफी बड़ा था। मैंने पहली बार किसी का लिंग देखा था जो मेरे लिये एक आश्चर्य के जैसा था।
इसके बाद भैया-भाभी सो गए मगर यह सब देखने के बाद मेरी नींद कोसों दूर भाग गई थी, मेरा पूरा बदन भट्टी की तरह तपने लगा, ऐेसा लग रहा था जैसे मुझे बहुत तेज बुखार हो गया हो और मेरी योनि तो अंगारों की तरह सुलगती महसूस हो रही थी। अपने आप ही मेरा एक हाथ सलवार के ऊपर से ही योनि पर चला गया मुझे पैंटी में कुछ गीला गीला सा महसूस हुआ तो मैंने एक हाथ सलवार के अंदर डाल दिया, योनि से चिपचिपा पानी सा निकल रहा था, मैंने उसे सूंघा तो उसमें से अजीब सी खुशबू आ रही थी।
कम्बल को एक बार फिर चेहरे से हटाकर मैंने भैया भाभी को देखा वो सो चुके थे, मैंने फिर से अपना हाथ सलवार में डाल दिया और योनि की दरार में उंगली घुमाने लगी, उंगली घुमाने से मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था और पूरे बदन में एक करेंट सा दौड़ने लगा, योनि से पानी निकलने के करण वो पूरी तरह से गीली हो गई थी इसलिए अपने आप ही मेरी एक उंगली योनि के अन्दर चली गई जिसे मैं अंदर-बाहर करने लगी तो मुझे बड़ा आनन्द आने लगा और एक अजीब सा नशा छाने लगा। इसलिए मैंने उंगली की हरकत को तेज कर दिया, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरा सारा खून मेरी जांघों के बीच इकट्ठा हो गया है और सारे शरीर में आग भड़क रही है।
मैंने उंगली की हरकत को और तेज कर दिया….
मेरा मुँह सूख गया और साँसें उखड़ने लगी और कुछ देर बाद ही मेरी दोनों जाँघें एक दूसरे से चिपक गई, व मेरा पूरा शरीर अकड़ सा गया और मेरी योनि ढेर सारा पानी उगलने लगी जिससे मेरी जाँघें और पूरा हाथ तक गीला हो गया, आँखें अपने आप मस्ती में बंद हो गई और पूरे बदन में आनन्द की लहर सी दौड़ गई।
अब मैं काफी हल्का महसूस कर रही थी और मेर दिल को एक अजीब सुकून सा मिल गया था। मैंने उँगली से आज पहली बार ये सब किया था, अभी तक मैं इस सुख से अनजान थी।
इसके बाद मैं अपनी पेंटी से ही हाथ को साफ करके, पेंटी व सलवार को ठीक से पहन लिया और फिर पता नहीं कब मेरी आँख लग गई। सुबह मैं देर सोती रही और कॉलेज भी नहीं गई।
जब भाभी ने मुझे जगाया तो जागते ही मैंने उनसे भैया के बारे में पूछा !
भाभी ने बताया कि वो छुट्टी नहीं आये थे, वो तो आगरा किसी काम से आये हुए थे इसलिए एक रात के लिये घर पर भी आ गये और सुबह 4 बजे ही चले गये।
मैंने पूछा- फिर कब आयेंगे?
तो भाभी ने कहा- तेरे एग्जाम खत्म होने के बाद।
इसके बाद भाभी अपना काम करने लगी और मैं बाथरूम चली गई। जब नहाने लिये मैंने अपने कपड़े उतारे तो मेरा ध्यान अपनी पेंटी पर चला गया जिस पर सफ़ेद दाग लगा हुआ था और वो सूख कर सख्त भी हो गया था।
तभी मुझे रात की घटना याद आ गई और शर्म से मेरे गाल लाल हो गये। मैं बाथरूम में लगे शीशे के सामने जाकर नँगी ही खड़ी हो गई और खुद को देखने लगी। लम्बा कद, दूधिया गोरा रंग, काले घने लम्बे बाल, बड़ी बड़ी काली आँखें, पतले और सुर्ख गुलाबी होंठ, उभरे हुए स्तन जो कि नीम्बू के आकार से बस थोड़े ही बड़े थे और उन पर गुलाबी निप्पल ऐसे लग रहे थे जैसे सफेद आईसक्रीम पर लाल चेरी रखी हुई हो, पतली कमर, केले के तने सी चिकनी और मखमल सी मुलायभ गोरी जांघें और जाँघों के बीच फ़ूली हुई गुलाबी रंगत लिए मेरी छोटी सी योनि जिस पर हल्के हल्के रोयें ही आए थे और योनि के बीच हल्का सा दिखाई देता गुलाबी दाना (क्लिटोरियस) ऐसा लगता था मानो पाव (डबल रोटी) को चाकू से बीच में से काटकर उसमें अनार दाना छुपा रखा हो, मांसल भरे हुए नितम्ब।
मैंने पहले भी कई बार खुद को शीशे में नंगा देखा है मगर आज़ पता नहीं क्यो खुद को देख कर रोमाँचित हो रही थी और बदन में एक अजीब गुदगुदी सी होने लगी। मैं भाभी से अपने शरीर की तुलना कर रही थी मगर भाभी के मुकाबले में मेरा शरीर कुछ भी नहीं था क्योंकि भाभी तो पूरी तरह खिला हुआ फ़ूल थी और मैं अभी ताजा ताजा खिली हुई कली के समान थी जिसको फ़ूल बनने में अभी काफी समय लगना था।
थोड़ा गौर से देखने पर मुझे योनि पर भी सफेद दाग दिखाई दिया मैंने हाथ में पानी लिया और योनि को साफ करने लगी, जैसे ही ठण्डे पानी का स्पर्श योनि से हुआ तो मेरे पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई और मैं उत्तेजना से भर उठी, एक बार फिर मैंने अपनी उंगली से हस्तमैथुन किया, इस बार मुझे रात से भी ज्यादा मज़ा आया।
इसके जब भी मुझे मौका लगता, मैं उंगली से अपना काम कर लेती थी और मुझमें काफी परिर्वतन भी आ गया था। अब मैं बनने-सँवरने पर काफी ध्यान देने लगी, घन्टों तक बाथरुम में नँगी होकर खुद के शरीर को देखती रहती और भाभी से अपनी तुलना करती।
जब भी लड़कों की नजर मुझे घूरती तो मैं सहम सी जाती क्योंकि अब मुझे मालूम हो गया था कि लड़कों की नजरें मुझमें क्या ढूंढती हैं।
और यह बात उस समय की है जब मैं बारहवीं में पढ़ती थी, हमारे परिवार में मम्मी-पापा, भैया-भाभी और मैं, हम पाँच लोग हैं। पापा बैंक में खजांची हैं और भईया आर्मी में सर्विस करते हैं, उनकी ड्यूटी जम्मू कश्मीर में है। हमारा घर दो मंजिल का है, नीचे एक कमरा, ड्राइंग रूम, रसोई और लैटरीन बाथरूम है, ऊपर दो कमरे और उनके बीच में सांझा लैटरीन-बाथरूम है। नीचे के कमरे में मम्मी-पापा रहते हैं और ऊपर का एक कमरा भैया-भाभी का है और दूसरा मेरा है। मगर मैं भाभी के कमरे में ही रहती हूँ क्योंकि भैया आर्मी में हैं इसलिए उनको साल में तीन महीने की ही छुटी मिलती है। ज़ब भैया घर पर रहते हैं तब ही मैं अपने कमरे में रहती हूँ नहीं तो भाभी के कमरे में ही रहती हूँ।
मैंने भाभी के कमरे में ही पढ़ने के लिये एक मेज-कुर्सी लगा रखी है और पढ़ाई के बाद मैं भाभी के साथ ही बेड पर सो जाती हूँ।
भाभी दस-साढ़े दस बजे तक घर का काम खत्म करके कमरे में आती तब तक मैं पढ़ाई करती थी, उसके बाद हम दोनों कुछ देर टीवी देखते और सो जाते !
मैं और भाभी सहेली की तरह रहते थे।
सब कुछ सामान्य ही चल रहा था, मगर एक रात सब कुछ बदल गया, उस रात मैं और भाभी सो रहे थे और करीब दो बजे भैया घर आ गये। वैसे तो जब भी भैया घर आते तो दिन में ही आते थे मगर उस रात पता नहीं कैसे आ गये, भैया भाभी की आवाज सुनकर मैं जग तो गई थी मगर मुझे बहुत नींद आ रही थी इसलिए मैं यह सोचकर कि ‘भैया से सुबह मिल लेंगे’ फिर से सो गई।
मगर कुछ देर बाद अजीब तरह की आवाज सुनकर मेरी नींद फिर से खुल गई। मैंने चेहरे से थोड़ा सा कम्बल उठाकर भाभी की तरफ देखा तो मेरी सांस अटक कर रह गई और मैंने दोबारा अपने चेहरे पर कम्बल डाल लिया क्योंकि सामने के नजारे के बारे में मैंने थोड़ा बहुत सिर्फ अपनी सहेलियों से ही सुना था मगर आज पहली बार देख रही थी, वो भी अपने भैया भाभी को !
भाभी की नाईटी उनके कंधों तक उल्टी हुई थी और नीचे भी उन्होंने कुछ नहीं पहना हुआ था, भैया भी बिल्कुल नंगे होकर भाभी के ऊपर लेटे हुए थे और अपनी कमर को ऊपर नीचे हिला रहे थे। भाभी के पैर भैया की कमर से लिपटे हुए थे और उनके मुँह से धीरे धीरे ओह्आह्ह ओह्ह्ह्ह की मादक आवाज आ रही थी जिसे मैं आसानी से सुन सकती थी। सर्दी का मौसम था, इसलिए मैंने कम्बल औढ़ रखा था मगर भैया भाभी को ऐसी हालात में देख कर मेरा पूरा बदन पसीने से भीग गया और मेरे दिल की धड़कन रेल के इंजन की तरह चलने लगी। मैंने फिर से कम्बल को चेहरे से बस इतना सा हटाया कि मैं भैया भाभी को देख सकती थी और वो मेरे चेहरे को नहीं देख सकते थे।
वैसे भी उनका ध्यान मुझ पर बिल्कुल नहीं था, वो समझ रहे थे की मैं गहरी नीन्द सो रही हूँ और उसी तरह लगे रहे।
कुछ देर बाद भैया ने गति पकड़ ली वो कमर को जोर जोर से हिलने लगे और साथ ही भाभी के उरोज भी दबा रहे थे और भाभी भी कमर उठा-उठा कर भैया का साथ दे रही थी।
यह सब देख कर मेरी हालत खराब हो रही थी।
कुछ देर बाद भाभी की ऊह्ह, आह्ह्ह, आह्ह की आवाज सिसकारियों में बदल गई और भाभी ने अपने हाथों और पैरों से भैया की कमर को कस कर पकड़ लिया और वो शान्त हो गई कुछ देर बाद भैया भी निढाल हो गए और भाभी की बगल में लेट गए। कुछ देर दोनों ऐसे ही पड़े रहे, फिर भाभी उठी और अपनी ब्रा और पैंटी पहनने लगी।
मैंने भाभी को ब्रा और पैंटी में कई बार देखा था मगर भाभी के बड़े बड़े उरोज और योनि को आज पहली बार देख रही थी। इसके बाद भैया भी उठकर अपने कपड़े पहनने लगे तभी मेरी नजर भैया के लिंग पर गई जो कि अब शान्त हो गया था। मगर अब भी उसका आकार काफी बड़ा था। मैंने पहली बार किसी का लिंग देखा था जो मेरे लिये एक आश्चर्य के जैसा था।
इसके बाद भैया-भाभी सो गए मगर यह सब देखने के बाद मेरी नींद कोसों दूर भाग गई थी, मेरा पूरा बदन भट्टी की तरह तपने लगा, ऐेसा लग रहा था जैसे मुझे बहुत तेज बुखार हो गया हो और मेरी योनि तो अंगारों की तरह सुलगती महसूस हो रही थी। अपने आप ही मेरा एक हाथ सलवार के ऊपर से ही योनि पर चला गया मुझे पैंटी में कुछ गीला गीला सा महसूस हुआ तो मैंने एक हाथ सलवार के अंदर डाल दिया, योनि से चिपचिपा पानी सा निकल रहा था, मैंने उसे सूंघा तो उसमें से अजीब सी खुशबू आ रही थी। 
कम्बल को एक बार फिर चेहरे से हटाकर मैंने भैया भाभी को देखा वो सो चुके थे, मैंने फिर से अपना हाथ सलवार में डाल दिया और योनि की दरार में उंगली घुमाने लगी, उंगली घुमाने से मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था और पूरे बदन में एक करेंट सा दौड़ने लगा, योनि से पानी निकलने के करण वो पूरी तरह से गीली हो गई थी इसलिए अपने आप ही मेरी एक उंगली योनि के अन्दर चली गई जिसे मैं अंदर-बाहर करने लगी तो मुझे बड़ा आनन्द आने लगा और एक अजीब सा नशा छाने लगा। इसलिए मैंने उंगली की हरकत को तेज कर दिया, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरा सारा खून मेरी जांघों के बीच इकट्ठा हो गया है और सारे शरीर में आग भड़क रही है।
मैंने उंगली की हरकत को और तेज कर दिया….
मेरा मुँह सूख गया और साँसें उखड़ने लगी और कुछ देर बाद ही मेरी दोनों जाँघें एक दूसरे से चिपक गई, व मेरा पूरा शरीर अकड़ सा गया और मेरी योनि ढेर सारा पानी उगलने लगी जिससे मेरी जाँघें और पूरा हाथ तक गीला हो गया, आँखें अपने आप मस्ती में बंद हो गई और पूरे बदन में आनन्द की लहर सी दौड़ गई।
अब मैं काफी हल्का महसूस कर रही थी और मेर दिल को एक अजीब सुकून सा मिल गया था। मैंने उँगली से आज पहली बार ये सब किया था, अभी तक मैं इस सुख से अनजान थी।
इसके बाद मैं अपनी पेंटी से ही हाथ को साफ करके, पेंटी व सलवार को ठीक से पहन लिया और फिर पता नहीं कब मेरी आँख लग गई। सुबह मैं देर सोती रही और कॉलेज भी नहीं गई।
जब भाभी ने मुझे जगाया तो जागते ही मैंने उनसे भैया के बारे में पूछा !
भाभी ने बताया कि वो छुट्टी नहीं आये थे, वो तो आगरा किसी काम से आये हुए थे इसलिए एक रात के लिये घर पर भी आ गये और सुबह 4 बजे ही चले गये।
मैंने पूछा- फिर कब आयेंगे?
तो भाभी ने कहा- तेरे एग्जाम खत्म होने के बाद।
इसके बाद भाभी अपना काम करने लगी और मैं बाथरूम चली गई। जब नहाने लिये मैंने अपने कपड़े उतारे तो मेरा ध्यान अपनी पेंटी पर चला गया जिस पर सफ़ेद दाग लगा हुआ था और वो सूख कर सख्त भी हो गया था।
तभी मुझे रात की घटना याद आ गई और शर्म से मेरे गाल लाल हो गये। मैं बाथरूम में लगे शीशे के सामने जाकर नँगी ही खड़ी हो गई और खुद को देखने लगी। लम्बा कद, दूधिया गोरा रंग, काले घने लम्बे बाल, बड़ी बड़ी काली आँखें, पतले और सुर्ख गुलाबी होंठ, उभरे हुए स्तन जो कि नीम्बू के आकार से बस थोड़े ही बड़े थे और उन पर गुलाबी निप्पल ऐसे लग रहे थे जैसे सफेद आईसक्रीम पर लाल चेरी रखी हुई हो, पतली कमर, केले के तने सी चिकनी और मखमल सी मुलायभ गोरी जांघें और जाँघों के बीच फ़ूली हुई गुलाबी रंगत लिए मेरी छोटी सी योनि जिस पर हल्के हल्के रोयें ही आए थे और योनि के बीच हल्का सा दिखाई देता गुलाबी दाना (क्लिटोरियस) ऐसा लगता था मानो पाव (डबल रोटी) को चाकू से बीच में से काटकर उसमें अनार दाना छुपा रखा हो, मांसल भरे हुए नितम्ब।
मैंने पहले भी कई बार खुद को शीशे में नंगा देखा है मगर आज़ पता नहीं क्यो खुद को देख कर रोमाँचित हो रही थी और बदन में एक अजीब गुदगुदी सी होने लगी। मैं भाभी से अपने शरीर की तुलना कर रही थी मगर भाभी के मुकाबले में मेरा शरीर कुछ भी नहीं था क्योंकि भाभी तो पूरी तरह खिला हुआ फ़ूल थी और मैं अभी ताजा ताजा खिली हुई कली के समान थी जिसको फ़ूल बनने में अभी काफी समय लगना था।
थोड़ा गौर से देखने पर मुझे योनि पर भी सफेद दाग दिखाई दिया मैंने हाथ में पानी लिया और योनि को साफ करने लगी, जैसे ही ठण्डे पानी का स्पर्श योनि से हुआ तो मेरे पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई और मैं उत्तेजना से भर उठी, एक बार फिर मैंने अपनी उंगली से हस्तमैथुन किया, इस बार मुझे रात से भी ज्यादा मज़ा आया।
इसके जब भी मुझे मौका लगता, मैं उंगली से अपना काम कर लेती थी और मुझमें काफी परिर्वतन भी आ गया था। अब मैं बनने-सँवरने पर काफी ध्यान देने लगी, घन्टों तक बाथरुम में नँगी होकर खुद के शरीर को देखती रहती और भाभी से अपनी तुलना करती।
जब भी लड़कों की नजर मुझे घूरती तो मैं सहम सी जाती क्योंकि अब मुझे मालूम हो गया था कि लड़कों की नजरें मुझमें क्या ढूंढती हैं।
और यह सारा बदलाव मुझमें उस रात की घटना के बाद आया।
यह सारा बदलाव मुझमें उस रात की घटना के बाद आया।

 मेरे सोचने समझने का तरीका ही बदल गया था। कुछ दिन बाद मेरी परीक्षा आ गई और एक दिन जब मैं अपना आखिरी पेपर देकर लौटी तो देखा घर पर महेश जी आए हुये थे। महेश जी मेरी भाभी के भाई थे जिनकी उम्र 30-32 साल होगी, वो शादीशुदा व एक दो साल के बच्चे के पिता भी थे।
मैंने उन्हें नमस्ते की और ऊपर भाभी के कमरे में चली गई।
बाद में भाभी ने मुझे बताया कि महेश की नौकरी इसी शहर में एक लिमिटेड कम्पनी में लग गई है और जब तक उन्हें कम्पनी की तरफ से घर नहीं मिल जाता वो हमारे ही घर में रहेंगे।
महेश जी को मेरा कमरा दे दिया गया, वैसे भी मेरा कमरा खाली ही रहता था क्योंकि मैं तो पहले से ही भाभी के कमरे में रहती थी। महेश जी सुबह नौ बजे काम पर चले जाते और शाम को पाँच बजे तक आते थे। पहले जब महेश जी हमारे घर आते थे तो ऐसा नहीं लगता था मगर इस बार पता नहीं क्यों उनकी नजर मुझे घूरती सी महसूस होती थी। मैं जब भी उनके सामने जाती वो मुझे ऐसे देखते जैसे आँखों से मेरा एक्सरे कर रहे हों और किसी ना किसी बहाने से मुझे छूने की कोशिश करते, कभी कभी तो मौका मिलने पर मेरे नाजुक अंगों को भी सहला देते और ऐसा दिखाते कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं। उनकी इन हरकतों पर मुझे बड़ा गुस्सा आता और मुझे उनसे डर भी लगने लगा।
पहले तो मैं उनसे बातचीत और कभी कभी हंसी मजाक भी कर लिया करती थी मगर अब तो मुझे उनके सामने जाने में भी डर लगता था। ऐसा पता नहीं वो जानबूझ कर करते थे या मुझे ही लगता था। कभी कभी तो मैं सोचती कि महेशजी की शिकायत मम्मी-पापा और भाभी से कर दूँ पर यह सोचकर रह जाती कि हो सकता है वो जानबूझकर ना कर रहे हों और यह मेरा ही वहम हो, और मैं डरती भी थी की कही मम्मी पापा और भाभी मुझे गलत ना समझ लें।
एक रात हमें किसी पार्टी में जाना था, पार्टी में महेश जी नहीं जा रहे थे इसलिये भाभी ने उनके लिये खाना बना कर रख दिया था। पार्टी में जाने के लिये भाभी के कहने पर मैंने उनके साड़ी व ब्लाउज पहन लिये मगर भाभी का ब्लाउज मुझे फिट नहीं हो रहा था क्योंकि भाभी की तुलना में मेरे उरोज बहुत छोटे हैं इसलिये भाभी ने मुझे ब्लाउज के नीचे अपनी एक फोम वाली पैडिड ब्रा पहना दी। वैसे मैंने पहले कभी भी ना तो ब्रा पहनी थी और ना ही कभी साड़ी पहनी थी मगर उस ब्रा को पहनने के बाद मुझे उनका ब्लाउज बिल्कुल फिट आ गया और मेरे उरोज भी बड़े दिखने लगे। हम पार्टी के लिये निकल ही रहे थे कि महेश जी आ गये, मुझे साड़ी में देख कर महेश जी ने मेरी तारीफ की मगर मैंने ध्यान नहीं दिया पर इस बात का अहसास मुझे पार्टी में जाने के बाद हुआ। मैंने देखा कि पार्टी में सब लड़कों की नजरें मुझ पर ही थी और मैं भी अपने आप पर गर्व कर रही थी।
पार्टी के बाद हम करीब ग्यारह बजे घर पहुँचे, घर पहुँचते ही मैं बिना कपड़े बदले ऐसे ही सोने लगी तो भाभी ने कपड़े बदल लेने के लिये कहा मगर मैंने मना कर दिया क्योंकि वो साड़ी मुझे बहुत अच्छी लग रही थी और दूसरे मैं पार्टी में बहुत थक गई थी, मैं और भाभी बात कर ही रहे थे कि तभी नीचे से मम्मी ने आवाज लगा कर बताया कि भैया आये है उनके लिये खाना बनाना है।
भैया के आने की बात सुनते ही भाभी का चेहरा खिल सा गया और वो भैया के लिये खाना बनाने नीचे चली गई। खुशी तो मुझे भी हुई पर मैं यह सोचकर ज्यादा खुश थी कि आज फिर से मुझे उस रात की तरह कुछ देखने को मिलेगा !
कुछ देर बाद भैया ऊपर कमरे में आ गये, मैंने उन्हें नमस्ते किया और हम दोनों बातें करने लगे। इसके कुछ देर बाद भाभी भी भैया का खाना ऊपर कमरे में ही ले आई। जब तक भैया ने खाना खाया मैं उनसे बातें करती रही।
भैया के खाना खत्म करते ही भाभी ने कहा- चलो अब सो जाओ, बाकी बातें सुबह कर लेना, समय देखो, रात का एक बज रहा है।
मैंने घड़ी की तरफ देखा तो सच में एक बज रहा था मगर मैं यह सोचकर बैठी रही कि मुझे तो यहीं पर सोना है, पर कुछ देर बाद भाभी ने फिर से कहा- चलो पायल, अपने कमरे में चलो और सो जाओ ! तुम्हारे भैया इस बार एक रात के लिये नहीं बल्कि महीने भर के लिये आये हैं।
मैंने कहा- मगर भाभी, मेरे कमरे में तो महेश जी सो रहे हैं !
भाभी ने कहा- अरे हाँ ! और अब तो मम्मी पापा भी सो गये होंगे? उन्हें जगाना भी ठीक नहीं होगा !
मैं दिल ही दिल में यह सोच कर खुश हो गई कि चलो अब तो यहीं पर सोना है मगर कुछ देर सोच कर भाभी ने कहा- कोई बात नहीं पायल, तुम आज रात भर के लिये महेश भैया के साथ अपने कमरे में ही सो जाओ, मैं कल तुम्हारा बिस्तर नीचे मम्मी पापा के कमरे में लगा दूँगी ! चलो मैं महेश भैया को बता देती हूँ।
मुझे भाभी पर गुस्सा तो बहुत आया पर क्या कर सकती थी, बिना कुछ बोले भाभी के पीछे पीछे चल पड़ी और दिल ही दिल में भाभी को गालियाँ दे रही थी। भाभी मुझे महेश जी के कमरे में छोड़ कर चली गई।
उस कमरे में कम पावर का बल्ब जल रहा था जिसकी रोशनी में मुझे महेश जी बेड पर लेटे हुए दिखाई दे रहे थे। महेश जी से मुझे पहले ही डर लगता था ऊपर से उनके कमरे में सोने के लिये तो मेरी रुह तक काँपने लगी इसलिये मैं चादर लेकर नीचे सोने लगी मगर महेश जी कहने लगे- फर्श बहुत ठण्डा है और बाहर से ठण्डी हवा भी आ रही है। दरवाजा बँद कर दो और तुम बेड पर ही एक तरफ सो जाओ।
मुझे डर लग रहा था मगर शर्म के कारण मैं यह कह भी नहीं सकती थी, इसलिये मैंने दरवाजे को बँद तो नहीं किया मगर उसे हल्का सा सटा दिया और महेश जी के पैरों की तरफ सर करके बेड के एक किनारे चुपचाप सो गई और कुछ देर बाद मुझे नींद भी आ गई।
पर अचानक मेरी नीन्द खुल गई क्योंकि मुझे अपने सीने पर कुछ भारी भारी सा महसूस हुआ। हाथ लगाकर देखा तो महेश जी का पैर मेरे सीने पर था। मैंने उसे हटाया और करवट बदल कर फ़िर से सो गई। करवट बदलने से मेरी पीठ महेश जी की तरफ और मेर चेहरा बेड के किनारे की तरफ हो गया मगर कुछ देर बाद मुझे अपने पैरों पर कुछ रेंगता सा महसूस हुआ्। मैंने गरदन घुमा कर देखा तो महेश जी मुझसे बिल्कुल सटे हुए थे, उनका सर मेरे पैरों में था और वो एक हाथ से मेरे पैरों को सहला रहे थे।
जब मैं सोई थी तो दरवाजे को थोड़ा सा खुला छोड़ दिया था और मेरे व महेश जी में करीब दो फ़ीट का फासला था मगर अब दरवाजा बिल्कुल बन्द था और महेश जी भी मुझसे चिपके हुए थे। यह सोचकर शर्म और डर से मेरा गला सूख गया, दिल की धड़कन तेज हो गई, मैं कुछ बोलना चाह रही थी मगर मेरे मुँह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी और महेश जी को हटाना चाह रही थी पर मेरे हाथ पैर काम नहीं कर रहे थे, मैं बुत बन कर रह गई।
कुछ देर मेरे पैरों को सहलाने के बाद महेश जी मेरी पिण्डलियों को जीभ से चाटने लगे और एक हाथ से धीरे धीरे मेरी साड़ी व पेटिकोट को ऊपर की तरफ़ खिसकाने लगे, इसके बाद उनकी जीभ भी धीरे धीरे ऊपर की तरफ बढ़ने लगी।
जब उनकी जीभ मेरे घुटनों से ऊपर बढ़ने लगी तो एक बार मेरे दिल में आया कि मैं जोर से चिल्ला कर सभी घर वालों को जगा दूँ मगर यह सोचकर रह गई कि मम्मी पापा और भैया भाभी मेरे बारे में क्या सोचेंगे और इसमे मेरी ही बदनामी होगी, इसलिये मैं खुद ही हिम्मत जुटा कर उन्हें हटाने लगी। मैंने अपने घुटने मोड़ कर एक हाथ से अपनी साड़ी व पेटीकोट को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से महेश जी को हटाने लगी मगर वो नहीं माने उन्होंने मेरी साड़ी व पेटीकोट को मेरे पेट तक उलट दिया व एक हाथ मेरे कूल्हों के नीचे से डाल कर मुझे कस कर पकड़ लिया और अपना मुँह मेरे कूल्हों से सटा दिया।
नीचे मैंने पैंटी पहन रखी थी इसलिये वो पैंटी के ऊपर से ही मेरे कूल्हे पर अपनी जीभ घुमाने लगे। कभी कभी वो पैंटी के किनारों से जीभ अँदर घुसाने की कोशिश करते तो मेरी साँस अटक कर रह जाती और पूरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ जाती। कुछ देर बाद महेश जी ने अपना हाथ मेरे कूल्हों के नीचे से निकाल लिया और मेरी जाँघों के बीच डालने लगे मगर कामयाब नहीं हो पाए क्योंकि मैंने अपनी जाँघें पूरी ताकत से भींच रखी थी उनके बीच हवा तक गुजरने के लिये जगह नहीं थी पर अचानक महेश जी ने मेरे चूतड़ों पर दाँत से काट लिया जिससे मैं अआ.आ..ह …ह.. आ.उ ..ऊँ…च… की आवाज करके उछल पड़ी और मेरी जाँघें खुल गई। तभी उन्होंने मेरी एक जाँघ को ऊपर उठा कर अपना सर मेरी जाँघों के बीच फ़ंसा लिया और अपने मुँह को मेरी जाँघों के जोड़ से सटा दिया।
मैं उन्हें हटाने लगी तो उन्होंने मेरी जाँघों को पकड़ लिया और फिर से जीभ को पैंटी के ऊपर से ही मेरी जाँघों के जोड़ पर घुमाने लगे। उनकी जीभ से मुझे कुछ हो रहा था। जब उनकी जीभ मेरी योनि पर जाती तो मैं सिकुड़ जाती, उनकी जीभ की गर्मी मुझे पैंटी के ऊपर से ही महसूस हो रही थी। मुझे डर भी लग रहा था मगर पता नहीं क्यों मजा भी आ रहा था।
एक बार फिर से मैं उन्हें हटाने लगी इस बार मैंने उनके सर के बाल पकड़ कर खींच लिये, बाल खींचने से उन्हें दर्द हुआ जिससे वो हट तो गये मगर उन्होंने फिर से मुझे पकड़ लिया। इस बार उन्होंने मेरे कँधे को दबाकर मुझे सीधा कर लिया और अपने दोनों पैरों से मेरे दोनों हाथों को दबाकर मेरे ऊपर आ गये। अब मेरे पैरों की तरफ उनका सर व उनके पैरों की तरफ मेरा सर था 69 की पोजिशन में ! और उन्होंने एक झटके में मेरी पैंटी को खींच कर निकाल दिया। यह सब महेश जी ने इतनी जल्दी से किया कि मैं कुछ भी नहीं कर पाई और बिल्कुल बेबस सी हो गई क्योंकि मेरे दोनों हाथों को महेश जी ने अपने पैरों से दबा रखा था। अब नीचे से मैं बिल्कुल नँगी हो गई थी क्योंकि मेरी साड़ी व पटीकोट तो पहले से ही मेरे पेट तक उल्टे हुए थे। इसके बाद महेश जी ने मेरी जाँघों को पकड़ कर फैला दिया व अपने होंठ फिर से मेरी जाँघों के जोड़ से सटा दिये और धीरे धीरे मेरी नँगी जाँघों को और छोटी सी योनि को चूमने चाटने लगे।
उनकी इस हरकत से मेरी योनि में एक चिन्गारी सी सुलग उठी और वो चिन्गारी मेरे पूरे बदन को जलाने लगी, मुझ पर एक बेचैनी और खुमारी सी छा गई। धीरे धीरे महेश जी अपनी जीभ को मेरी योनि की दरार में घुमाने लगे।
अब तो मुझे भी मज़ा आ रहा था मगर मैं नहीं चाहती थी कि महेश जी को पता चले कि मुझे मज़ा आ रहा है पर मेरी योनि पानी उगल उगल कर मेरी चुगली करने लगी। 
मैंने अपने मुँह को जबरदस्ती बन्द कर रखा था मगर फ़िर भी जब उनकी गर्म जीभ मेरी योनि के छोटे से गुलाबी दाने (क्लिटोरियस) को छूती तो मेरी जाँघें काँप सी जाती व पूरे शरीर में करेंट की एक लहर सी दौड़ जाती और ना चाहते हुए भी मेरे मुँह से सिसकारी निकल जाती।
इस बात का अहसास महेश जी को भी हो गया कि मुझे मज़ा आ रहा है इसलिये महेश जी ने मेरी जाँघों को छोड़ दिया और अपने दोनों हाथों को मेरे कूल्हो के नीचे ले जाकर मुझे थोड़ा सा ऊपर उठा लिया और जीभ निकाल कर मेरी योनि में कभी दाने पर तो कभी योनिद्वार पर घुमाने लगे। मेरे मुँह से ना चाहते हुए भी जोर जोर से सिसकारियाँ फ़ूटने लगी। कभी कभी वो जानबूझ कर मेरे दाने को दाँतों से हल्का सा दबा देते तो मैं उछल पड़ती और मेरे मुँह से कराह निकल जाती।
उत्तेजना से मेरी हालत खराब हो रही थी और मेरी योनि तो जैसे उबल ही रही थी जिसमें से पानी उबल उबल कर बाहर आने लगा था जो कि मेरी जाँघों को भी गीला करने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी जाँघों के बीच मेरी योनि में लाखो चींटियाँ काट रही हैं। धीरे धीरे महेश जी अपनी जीभ को मेरी योनि में गहराई तक पहुँचाने लगे अब तो मैं अपने आप पर काबू नहीं कर पा रही थी, अपने आप ही मेरे मुँह से जोर जोर से ईइ इशशश्श्श्श शश…अआआह्ह्ह… ईइशशश्श्श्श शश…अआआहहह… की आवाजें निकलने लगी। इससे महेश जी को पूरा यकीन हो गया कि मुझे मज़ा आ रहा है इसलिये महेश जी ने मेरे हाथों को भी आजाद कर दिया और जल्दी जल्दी अपनी जीभ को मेरी योनि में अन्दर बाहर करने लगे।
मेरे हाथ आजाद होते ही अपने आप महेश जी के सर पर चले गये और मैं उनके सर को जोर जोर से अपनी योनि पर दबाने लगी। उत्तेजना से मेरा बुरा हाल हो रहा था और मेरी योनि में तो मानो पानी की बाढ़ सी आ गई थी, ऊपर से महेश जी के मुहँ से निकलने वाली लार के मिलने से मेरी पूरी जाँघें भीगने लगी।
उत्तेजना से मैं पागल हो रही थी और मेरी योनि में तो जैसे अन्गारे से सुलगते महसूस हो रहे थे इसलिये मैंने अपनी जाँघों को अधिक से अधिक फ़ैला लिया और शर्म लिहाज को भुला कर मैं भी अपनी कमर को ऊपर नीचे हिलाने लगी ताकी उनकी जीभ अधिक से अधिक मेरी योनि में समा जाये।
मैं चाह रही थी कि मेरी योनि में जो आग लगी हुई है, महेश जी उस आग को जल्दी से जल्दी अपनी जीभ से शान्त कर दें। महेश जी ने भी अपनी जीभ की हरकत को तेज कर दिया और नीचे से मेरे कूल्हों को धीरे धीरे दबाने लगे।
उनकी इस हरकत ने आग में घी का काम किया और मैं उत्तेजना के कारण पागलों की तरह जोर जोर से अपनी कमर को हिलाकर ईइइशश… अआहह्ह्ह… ईइइशश… अआआहहह्ह्ह… की आवाज करने लगी।
और अचानक जैसे सब कुछ जैसे थम सा गया, मेरा शरीर अकड़ गया मैंने महेश जी के सर को दोनों हाथों से अपनी योनि पर दबा लिया और अपनी जाँघों से कस कर पकड़ लिया, मेरी सिसकारियाँ हिचकियों में बदल गई और मेरी योनि ढेर सारा पानी उगलने लगी, आनन्द की एक लहर सी पूरे बदन में दौड़ गई।
यह मेरा पहला मुखमैथुन था जो अत्यधिक आनन्द से भरा हुआ था।
अब सब कुछ शान्त हो गया।




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